Saturday 27 December 2014

कश्मीर में क्यों हो रही है हिन्दू-मुसलमान की राजनीति

कश्मीर में क्यों हो रही है हिन्दू-मुसलमान की राजनीति
सवाल यह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में कौन मुख्यमंत्री बनेगा? अह्म सवाल यह है कि आखिर कश्मीर में हिन्दू-मुसलमान की राजनीति क्यों हो रही है? जब हम भारत को धर्मनिरपेक्ष देश मानते हैं और कहते हंै कि भारत में किसी भी धर्म का व्यक्ति अपने धर्म के अनुरुप जीवन यापन कर सकता है तो फिर भारत के ही अभिन्न अंग कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री से परहेज क्यों किया जा रहा है? कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री न बने इसके लिए मुस्लिम राजनैतिक दल माने जाने वाले सभी एकजुट हो रहे हैं। सवाल भाजपा और पीडीपी का भी नहीं है, सवाल तो कश्मीर में हिन्दू मुस्लिम राजनीति का है। जिस राजनैतिक दल का व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बना हुआ है उसी दल के व्यक्ति को कश्मीर में मुख्यमंत्री बनने से इसलिए रोका जा रहा है कि वह हिन्दू है। क्या कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री बन जाना कोई अपराध है या संविधान में प्रतिबंध लगा हुआ है। भारतीय संविधान की दुहाई देकर ही पूरे देश में करोड़ों लोग अपने धर्म के अनुरुप जीवन यापन कर रहे हैं तो फिर कश्मीर में साम्प्रदायिक सद्भावना की पहल क्यों नहीं की जा रही। क्या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने पर ही कश्मीर में साम्प्रदायिक सद्भावना बनी रहेगी। यदि हिन्दू मुख्यमंत्री बन गया तो क्या कश्मीर में साम्प्रदायिकता हो जाएगी। देश के अन्य प्रांतों में यह अपेक्षा की जाती है कि साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए बड़े से बड़ा त्याग किया जाए। कई बार स्वयं को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए अपने ही लोगों की राजनैतिक बलि दे दी जाती है, लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद कश्मीर में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। इसके उलट हिन्दू और मुस्लिम राजनीति एकदम आमने-सामने हो गई है जो लोग धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिक सद्भावना की बात करते हैं वे बताएं कि कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता। क्या धर्मनिरपेक्षता के किसी भी झण्डाबरदार ने अभी तक कश्मीर में साम्प्रदायिक सद्भावना की बात कही है। मैंने देश की हिन्दू और मुस्लिम की राजनीति पर बेबाक टिप्पणियां की है और इस बार भी मैं कश्मीर की राजनीति पर देश की असली हकीकत को बार-बार सामने रख रहा हूं। आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब कश्मीर में सही मायने में साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल देने का मौका आया है। राजनैतिक दल जाति और धर्म के अनुरुप अपने उम्मीदवारों का चयन करते हैं। मैं कोई भाजपा का पक्षधर नहीं हूं लेकिन कश्मीर के जो हालात हैं उसमें हिन्दू और मुसलमानों के बीच खिंचाव होना देश के लिए घातक होगा। यदि भाजपा के हिन्दू मुख्यमंत्री को रोकने के लिए पीडीपी, एनसी और कांग्रेस एक जुट होती है तो यह बेहद गंभीर बात है। जहां तक भाजपा का सवाल है तो वह भी देश के अन्य राजनैतिक दलों की तरह ही एक दल बनकर रह गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकल कर भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बने राममाधव ने भी कह दिया है कि उनका मकसद कश्मीर में स्थाई सरकार देना है। यानि कश्मीर में देशहित में जो होना चाहिए उससे भाजपा पीछे हट गई है, इसलिए पीडीपी से समर्थन लिया और दिया जा रहा है जिसको चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने गालियां दी। बाप-बेटी की सरकार कह कर मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती की कड़ी आलोचना की गई। कथित स्थाई सरकार के चक्कर में भाजपा कश्मीर में वो सब कर रही है जिसका अब तक विरोध करती रही। यदि पीडीपी, एनसी और कांग्रेस के सहयोग से सरकार नहीं बना सकी तो फिर पीडीपी भाजपा का समर्थन लेकर सरकार बनाएगी। यदि भाजपा पीडीपी की हर शर्त को स्वीकार कर लेगी। भाजपा से भी यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आखिर कश्मीर में स्थाई सरकार की चिन्ता उसे ही क्यों ज्यादा है? क्या यह चिन्ता पीडीपी और एनसी को नहीं है? कश्मीर में हालत पहले से ही बद से बदतर हो गए है। यदि अभी भी कोई सुधार नहीं हुआ तो कश्मीर को भारत में बनाए रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा। जो लोग हिन्दू मुसलमानों में भाईचारे और सद्भावना की बात कहते हैं उन्हें कश्मीर में हो रही राजनीति पर गहनता के साथ विचार करना चाहिए।
(एस.पी. मित्तल)
(spmittal.blogspot.in)

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