Saturday 31 January 2015

बटन दबेगा 'आपÓ का, वोट मिलेगा भाजपा को

बटन दबेगा 'आपÓ का, वोट मिलेगा भाजपा को
दिल्ली विधानसभा के चुनाव सात फरवरी को होने हैं। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और आप (आम आदमी पार्टी) के बीच है। दोनों ही दल चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यही वजह है कि दोनों ही इन नकारात्मक प्रचार भी कर रहे हैं, ताकि परिणाम के बाद हार हो जाए तो बहाने गढ़े जा सके। 31 जनवरी की भाजपा और आप के नेता चुनाव आयोग पहुंच गए। आप के संयोजक और मुख्यमंत्री पद के दावेदार अरविन्द केजरीवाल ने आकांक्षा प्रकट की कि मतदान के दिन जब मतदाता ईवीएम मशीन पर आम उम्मीदवार का बटन दबाएगा तो वोट भाजपा को मिलेगा, क्योंकि ईवीएम में गड़बड़ी होने की वजह से मशीन की लाईट उम्मीदवार की जली। चुनाव आयोग ने केजरीवाल की आकांक्षा के मद्देनजर कहा कि यदि मतदाता को इस तरह की शिकायत मिले तो वह मतदाता केन्द्र पर उपस्थित पीठासीन अधिकारी को बताए। अधिकारी तत्काल ही नई ईवीएम मशीन का इंतजाम करेंगे। आयोग ने कहा कि  'आपÓ के वोट भाजपा के पक्ष में नहीं जाने दिए जाएंगे। आयोग के रूख पर केजरीवाल ने संतोष प्रकट करते हुए कहा कि अब हम ईवीएम की गड़बड़ी के बारे में मतदाताओं को जागरूक कर रहे है। उन्होंने कहा कि भाजपा दिल्ली में किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहती है इसलिए कुछ भी कर सकती है। वहीं दूसरी ओर 31 जनवरी को ही भाजपा नेताओं ने एक शिष्टमंडल में चुनाव आयोग से  'आपÓ के नेता और कवि कुमार विश्वास की शिकायत की। दो दिन पहले विश्वास ने दिल्ली की आम सभा में भाजपा की मुख्यमंत्री पद की दावेदार किरण बेदी का नाम लिए बगैर कहा कि भाजपा को अरविन्द केजरीवाल में दो गलतियां नजर आई। एक केजरीवाल मफलर पहनते हैं, दूसरा खांसते हैं। विश्वास ने मजाकिया लहजे में कहा कि क्या मफलर किसी से मांगा है और क्या किसी को केजरीवाल के बेडरूम में सोना है जो उनकी खांसी पर ऐतराज कर रहे हैं। कुमार विश्वास के इस भाषण को भाजपा अभद्र मान रही है। इसलिए कुमार विश्वास के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत की गई है। इसी प्रकार 1988 की एक घटना को लेकर आम आदमी पार्टी के समर्थक वकील अब किरण बेदी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है। वकीलोंं का आरोप है कि बेदी 1988 में जब दिल्ली में डीएसपी के पद पर तैनात थी तब वकीलों को बुरी तरह से पीटा गया था। दिल्ली के चुनावों में जिस तरह बिना महत्व की बातें उठाई जा रही है उससे दिल्लीवासियों की मूल समस्याएं गौण हो गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि हार जाने पर दोनों ही दल बचाव का तरीका अभी से ही तैयार कर रहे हैं। हरियाणा चुनाव के बाद यह माना जा रहा था कि दिल्ली में भी भाजपा जीत जाएगी, लेकिन जिस तरीके से संपूर्ण भाजपा ने  'आपÓ पर हमला बोला है उससे लगता है कि भाजपा की जीत आसान नहीं है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 31 जनवरी को एक बड़ी रैली को संबोधित किया। मोदी 5 फरवरी तक 4 रैलियों को संबोधित करेंगे। खांसने और मफलर पहनने वाले केजरीवाल को हराने के लिए भाजपा के सभी बड़े नेता, मंत्री, सांसद आदि मैदान में कूद पड़े हैं। भाजपा और आप की जंग में कांग्रेस का कोई शोर सुनाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस अपने प्रचार को भी पैनी धार नहीं दे पाई।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

कांग्रेस के काम का श्रेय मोदी ने लिया

कांग्रेस के काम का श्रेय मोदी ने लिया
पीएम मोदी ने 31 जनवरी को दिल्ली में एक चुनावी रैली को संबोधित किया। इस रैली में मोदी ने कहा कि रसोई गैस सिलेण्डर पर मिलने वाली सब्सिडी को भाजपा सरकार ने उपभोक्ता के बैंक अकाउन्ट में डलवाकर कई हजार करोड़ रुपए की बचत की है। उनके ही निर्णय से सब्सिडी बैंक खाते में जमा करवाई जा रही है। पहले सब्सिडी का दुरुपयोग होता था। शायद मोदी यह भूल गए कि सिलेण्डर पर मिलने वाली सब्सिडी को बैंक खाते में जमा कराने का निर्णय कांग्रेस के शासन का था। देश के रसोई गैस उपभोक्ताओं को याद है कि मनमोहन सिंह के शासन में सब्सिडी की राशि उपभोक्ता के खाते में ही जमा करवाई गई थी। चूंकि उस समय बिना सब्सिडी वाला सिलेण्डर उपभोक्ताओं को एक हजार रुपए तक मिलता था इसलिए उपभोक्ता को एक हजार रुपए की राशि चुकानी पड़ रही थी। भले ही बाद में सब्सिडी की राशि खाते में जमा हो रही थी। कांग्रेस के इस निर्णय के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि राज्यों में जब कांग्रेस की हार हो गई तो केन्द्र सरकार ने इस निर्णय को वापस ले लिया। इतना ही नहीं कांग्रेस के शासन में 450 रुपए की राशि जमा कराई गई थी ताकि उपभोक्ता को महंगा सिलेण्डर खरीदने में परेशानी ना हो। यानि जो काम कांग्रेस शासन में हुआ उसका श्रेय दिल्ली में पीएम मोदी ने ले लिया। आमतौर पर यह माना जाता है कि नरेन्द्र मोदी किसी भी मुद्दे पर बहुत अध्ययन करने के बाद बोलते हैं लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि 31 जनवरी को मोदी के सलाहकारों से कोई चूक हो गई है इसलिए मोदी ने उस काम का श्रेय लिया जो कांग्रेस के शासन में हुआ था। मजे की बात तो यह है कि विधानसभा के चुनावों में भाजपा ने उपभोक्ता के खाते में सब्सिडी जमा कराने के निर्णय की आलोचना की थी, लेकिन आज उसी काम श्रेय पीएम मोदी खुद ले रहे हैं। देखना है कि नरेन्द्र मोदी से यह जो चूक हुई है उसका बचाव अब भाजपा कैसे करती है। इसके साथ ही अब कांग्रेस के नेताओं को भी मोदी पर राजनैतिक हमला करने का अवसर मिल गया है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

Friday 30 January 2015

क्या गद्दारों के हाथों मरने के लिए फौज में भर्ती हों, शहीद राय के बच्चे

क्या गद्दारों के हाथों मरने के लिए फौज में भर्ती हों, शहीद राय के बच्चे
जब कोई सैनिक अपने देश की हिफाजत करते हुए शहीद होता है तो यह उसके और उसके परिवार के लिए गर्व की बात होती है, इसलिए शहीद के परिवार के बच्चे एक बार फिर यह संकल्प लेते हैं कि वे देश की सुरक्षा के लिए सेना में भर्ती हो। लेकिन यदि सेना का जवान अपने ही देश के गद्दारों के हाथों मारा जाए और फिर उसके बच्चे अपने पिता के शव के सामने सेना में जाने का संकल्प ले तो उन लोगों को शर्म आनी चाहिए, जो देश का शासन संभाले हुए हैं। भारतीय सेना के कर्नल एम.एन.राय गत 27 जनवरी को उस समय मारे गए जब वे अपने ही देश के कश्मीर प्रांत में गद्दारों के साथ लड़ रहे थे। 29 जनवरी को जब दिल्ली में शहीद कर्नल राय का अंतिम संस्कार हुआ तो राय की दोनों बेटियों अल्का व रिचा तथा पुत्र आदित्य ने शव को सैल्यूट मारा और संकल्प लिया कि वे भी फौज में भर्ती होकर अपने पिता की तरह देश के दुश्मनों से मुकाबला करेंगे। मीडिया  ने बच्चों की इस खबर को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया, लेकिन खबर प्रकाशित करना एक बात है और अपने पिता के शव पर हाथ रखकर संकल्प लेना आसान नहीं है। इसका दर्द शहीद कर्नल राय की विधवा और उनके बच्चे ही महसूस कर सकते हैं। सवाल शहीद के परिवार के दर्द का भी नहीं है। सवाल यह है कि आखिर कर्नल राय किन लोगों के हाथों मारे गए? क्या पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल आदि की सीमा पर भारत का कोई युद्ध हो रहा था। जब देश की सीमा पर युद्ध होता है तो भारत का जवान अपने घर से ही सिर पर कफन बांधकर निकलता है। घरवालों को भी इस बात का पता नहीं होता कि उनका बेटा, पुत्र, पति वापस आएगा या नहीं। परिवार के सदस्य भी गर्व महसूस करते हैं, लेकिन कर्नल राय तो कोई युद्ध लडऩे नहीं गए थे, कर्नल राय तो कश्मीर में अपने ही देश के लागों की हिफाजत के लिए तैनात हुए थे। यह पहला अवसर नहीं है जब कश्मीर में भारतीय फौज का सैनिक मौत के घाट उतारा गया है। कश्मीर में आखिर कौन लोग है जो इतने ताकतवर है कि भारतीय फौज के कर्नल को मौत के घाट उतार रहे हैं? केन्द्र में जिस पार्टी की सरकार होती है, उसके नेता हर जवान की मौत पर कहते हैं कि पाकिस्तान से आए आतंकवादी हमारे जवानों को मार रहे हैं। किसी भी सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती कि पड़ौसी देश का आतंकी हमारे प्रांत में घुस आए और फौज के कर्नल को मौत के घाट उतार दे। असल में कश्मीर में आतंकी नहीं देश के गद्दार फौज के जवानों पर हमला कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी जब लोकसभा चुनाव का प्रचार कर रहे थे, तो बार-बार भारतीय सैनिकों की मौत का मुद्दा उठाकर कांग्रेस की सरकार को कमजोर बता रहे थे। जिस अंदाज में मोदी ने अपनी बात कही उससे देशवासियों को लगा कि पीएम बनने पर मोदी कश्मीर के गद्दारों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करेंगे और तब हमारी फौज का कोई सैनिक नहीं मरेगा। लेकिन कर्नल राय की शाहादत बताती है कि कश्मीर में कांग्रेस शासन की तरह मोदी के शासन में भी गद्दार भारी पड़ रहे है। मोदी यह बताए कि क्या कर्नल राय के बच्चों को फौज में भर्ती होकर देश के गद्दारों से लडऩे के लिए जाना चाहिए? देश में गद्दारों से तो उस राज्य की पुलिस को ही लडऩा चाहिए। यदि सेना का जवान गद्दारों से लड़ेगा तो देश की सुरक्षा कौन करेगा? कर्नल राय की शाहादत का मामला कश्मीर में बन रही भाजपा और पीडीपी की संयुक्त सरकार से भी जुड़ा हुआ है। यह वही पीडीपी है जो खुलेआम कह रही है कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत को पाकिस्तान से वार्ता करनी चाहिए तथा केन्द्र सरकार ने कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों को जो विशेष अधिकार दे रखे हैं, उसे तत्काल समाप्त किया जाए। इतना ही नहीं भाजपा से कहा जा रहा है कि वह धारा 370 हटाने वाली मांग को खत्म कर दे। पीडीपी की इन शर्तों को मानने के बाद क्या नरेन्द्र मोदी कश्मीर में भारतीय सेना के जवानों की हिफाजत कर पाएंगे? कश्मीर में सरकार बनाना जरूरी नहीं है, जरूरी यह है कि हमारी सेना के जवान गद्दारों के हाथों न मरे। देशवासियों को अभी भी उस नरेन्द्र मोदी से उम्मीदे हैं जो सरदार वल्लभ भाई पटेल और स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों पर चलने का दावा करते हैं। यदि केन्द्र में पूर्ण बहुमत के बाद भी नरेन्द्र मोदी कश्मीर में गद्दारों के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पाते तो फिर और किसी से अपेक्षा भी नहीं है।

(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

अब अंबानी सिखाएंगे पत्रकारिता

अब अंबानी सिखाएंगे पत्रकारिता
रिलायंस और टीवी 18 मीडिया हाऊस की ओर से 30 जनवरी को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ पत्रकारिता सीखाने का एक समझौता हुआ है। रमन सिंह की उपस्थिति में यह समझौता छत्तीसगढ़ के कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने किया है। यानि अब इस विश्वविद्यालय में मुकेश अंबानी की नीति के अनुरूप युवाओं को पत्रकारिता सिखाई जाएगी। पत्रकारिता सीखाने का काम अंबानी के मीडिया समूह में काम करने वाले पत्रकार करेंगे। टीवी 18 में आईबीएन-7 न्यूज चैनल और ईटीवी के सभी चैनल शामिल है। माना जा रहा है कि मुकेश अंबानी का समूह भाजपा शासित सभी राज्य सरकारों से ऐसा समझौता करेगा। एक ओर मुकेश अंबानी के मालिकाना वाला मीडिया समूह सरकारों के पत्रकारिता के विश्वविद्यालयों पर कब्जा कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर इस समूह से जुड़े पत्रकारों को ट्रेडर और वेंडर बनाया जा रहा है। पत्रकारिता में रिपोर्टर, संवाददाता, उपसंपादक, संपादक आदि के पद होते है, लेकिन अब पत्रकारों की भूमिका समाचारों के खरीदने और बेचने वालों की जा रही है। ट्रेडर व वेंडर का यही मतलब होता है। मुकेश अंबानी जिस प्रकार अपने रिलायंस उद्योग में वस्तुओं की खरीद-फरोख्त  करते है, ठीक उसी प्रकार अब खबरों की भी खरीद फरोख्त होगी। यानि एक सब्जी वाले की तरह ट्रेडर और वेंडर की शुरुआत करना सभी मीडिया घरानों को भा रहा है। मीडिया घरानों में मजिठीया आयोग के वेतनमान से बचने के लिए यह तरीका बहुत अच्छा है और जब पत्रकारिता के विश्वविद्यालयों में ट्रेडर और वेंडर की ही शिक्षा दी जाएगी तो फिर पत्रकारिता मुकेश अंबानी के इशारे पर ही होगी। आने वाले दिनों में देश में पत्रकारिता का भविष्य कैसा हो, यह भी मुकेश अंबानी ही तय करेंगे।

(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

Thursday 29 January 2015

प्रिंट पर भारी पड़ा सोशल मीडिया

प्रिंट पर भारी पड़ा सोशल मीडिया
26 जनवरी को मैंने सोशल मीडिया पर एक खोजपूर्ण खबर पोस्ट की थी। इस खबर का शीर्षक था 'इसलिए है ओबामा को अजमेर से लगाव इस खबर को वाट्सएप के साथ-साथ फेसबुक, ट्विटर, मेरे ब्लॉग आदि पर हजारों लोगों ने पढ़ा वाट्सएप और फेसबुक पर इस खबर पर अनेक कमेंटस आए। इस खबर में यह बताया कि अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के राजनीतिक गुरु मार्टिन लूथर किंग 2 मार्च, 59 को अजमेर आए थे। किंग ने अजमरे के निकट गगवाना में सर्वोदय आंदोलन के प्रमुख विनोबा भावे से मुलाकात की थी। मुझे यह महत्त्वपूर्ण जानकारी अजमेर के सर्वोदय कार्यकर्ता स्वर्गीय रामस्वरूप गर्ग के पुत्र कौशल गर्ग ने उपलब्ध करवाई थी। उस समय मार्टिन लूथर किंग कौशल गर्ग की माताजी श्रीमती सत्यभामा से मिलने भी गए थे। ओबामा अब अजमेर को इसलिए स्मार्ट शहर बनाना चाहते हैं कि उनके राजनीतिक गुरु भी अजमेर आए थे। सोशल मीडिया पर वायरल हुई इस खबर की तर्ज पर ही देश के सबसे बड़े अखबार दैनिक भास्कर के 29 जनवरी के अंक में प्रथम पृष्ठ पर खबर को प्रकाशित किया गया है। देश के सबसे बड़े अखबार में सोशल मीडिया पर पोस्ट हुई खबर प्रकाशित होने से जाहिर है कि बदली हुई परिस्थिति में प्रिंट मीडिया पर सोशल मीडिया भारी पड़ रहा है। भास्कर प्रबंधन की नजर में यह खबर कितनी महत्त्वपूर्ण रही, इसका अंदाजा इसी से लगता है। खबर को प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया। इसके लिए भास्कर को भी बधाई दी जानी चाहिए कि उसने एक खोजपूर्ण और ऐतिहासिक महत्त्व वाली खबर को प्रकाशित किया। भले ही इस खबर को सोशल मीडिया से उठाया गया हो, जो लोग थोड़ा बहुत लिखना जानते हैं, उन्हें अब ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारियां सोशल मीडिया पर शेयर करनी चाहिए।
(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

Wednesday 28 January 2015

मोहम्मद साहब का परिवार खुद आतंक का शिकार रहा

मोहम्मद साहब का परिवार खुद आतंक का शिकार रहा
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक व सीरिया आदि मुस्लिम देशों में इन दिनों लगातार आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं। आतंकी हमलों में लाखों मुसलमान मारे जा रहे हैं, जब कभी अमरीका, भारत और अन्य गैर मुस्लिम राष्ट्रों में आतंकवादी वारदातें होती हैं तो मुसलमानों को ही संदेह की निगाह से देखा जाता है। आईएसआईएस, अलकायदा, तालिबान, लश्कर आदि ऐसे अनेक आतंकी संगठन हैं। जो जेहाद के नाम मानवता की हत्या कर रहे हैं। इससे पैगम्बर मोहम्मद साहब को मानने वालों को भी पीड़ा हो रही है। यह पीड़ा इसलिए भी हो रही है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कभी भी लड़ाई-झगड़े की शिक्षा नहीं दी,उन्होंने तो मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम दिया। इसी वजह से पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवार को भी आतंक का शिकार होना पड़ा। अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के प्रमुख खादिम और मुस्लिम विद्वान सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र 'जियारत-ए-ख्वाजाÓ के 10 जनवरी 2015 अंक में मुस्लिम इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है। इसमें बताया गया है कि सन् 680ई० में यजीद बादशाह और उसकी आतंकी फौज ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवार के 72 सदस्यों को इराक के करबला में धोखे से बुलाया और इन सभी सदस्यों जिनमें औरतें और छह महीने  तक के बच्चे शामिल थे को सरेआम कत्ल कर दिया गया। मोहम्मद साहब के परिवार के सदस्यों के सिर काट कर इराक से सीरिया के बादशाह के पास भेजे गए। लाशों पर घोड़े दौड़ा कर बेइज्जत किया गया, आतंकी यजीद और उसकी फौज का जुल्म यहीं नहीं रुका, बल्कि मक्का और मदीना में दस हजार लोगों का कत्लेआम करने के बाद काबे शरीफ में आग लगा दी। मोहम्मद साहब की मस्जिद में घोड़े, ऊंट व खच्चर आदि जानवर बंधे गए। यजीद के शासन में मस्जिद में नमाज तक नहीं हुई। सन् 683ई० में यजीद के मरने के बाद मरवान बादशाह बना। यह मरवान वो बादशाह था, जिसे मोहम्मद साहब ने उसके पिता के साथ मदीने में तड़ीपार किया था। इस दौरान भी जुल्म जारी रहे। इसके बाद मरवान का बेटा वलीद राजा बना। वलीद के सिपाहसालार हज्जाज बिन यूसुफ ने 692ई० में मक्का-मदीना, इराक और अरब में एक लाख मुलसमानों का कत्ले आम किया। ये वे लोग थे जो मोहम्मद साहब द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करते थे।
गनी गुर्देजी ने मुस्लिम पुस्तकों का हवाला देते हुए लिखा है कि मक्के के खलीफा अब्दुल्ला बिन जुबेर को खाना-ए-काबा के अंदर ही कत्ल कर दिया गया। वलीद बादशाह के शासन में ही सन् 712 ई० में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहरसेन पर हमला किया। गुर्देजी ने अपने लेख में लिखा है कि आतंकवादियों ने अपनी हरकतों से मोहम्मद साहब को बदनाम कर रखा है। ऐसे आतंकवादियों का हमारे नबी के सूफी इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। उन्होंने लिखा है कि मुस्लिम विद्वानों, सुफियों, मौलवियों आदि को दुनिया के समक्ष यह बताना चाहिए कि इस्लाम का आतंकवाद से कोई वास्ता नहीं है। मोहम्मद साहब का इस्लाम तो मोहब्बत प्यार अमन और भाईचारे का पैगाम देता है। इसी भावना के अनुरूप ख्वाजा साहब की दरगाह में मोहम्मद साहब के दामाद हजरत अली की याद में योमे अली का आयोजन किया जाता था। ख्वाजा साहब भी उनकी ही औलाद में से थे। ख्वाजा साहब हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के तमाम सुफियों के सरदार हैं। इन मुल्कों के 98 प्रतिशत मुसलमान ख्वाजा साहब की बरकत से कन्वर्ट हुए हैं। गुर्देजी ने लिखा की योमे अली के आयोजन में सभी धर्मों के लोगों की भागीदारी होती थी। यह आयोजन 1980 में मोलाई कमेटी द्वारा शुरू किया गया, जो 2012 तक जारी रहा। इसके साथ ही सिंधी समुदाय के चेटीचंड के जुलूस के निकलने पर दरगाह के बाहर स्वागत भी किया जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह के खादिम सूफी हैं और अपने देश में अमन चैन की दुआ दरगाह में करते हैं। गुर्देजी ने अपने लेख में लिखा है कि उनका मकसद दुनिया को यह बताना है कि आतंकवाद से इस्लाम का कोई सरोकार नहीं है। जब आतंकवाद को इस्लाम के साथ जोड़ा जाता है, तब उन लोगों को पीड़ा होती है, जो पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का अमल करते हैं। जब खुद मोहम्मद साहब का परिवार आतंक का शिकार हुआ तो उनकी शिक्षाओं पर अमल करने वाले आतंकी नहीं हो सकते। आलोचकों को इस्लाम और आतंकवाद को अलग-अलग नजरिए से देखना चाहिए।
(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

Tuesday 27 January 2015

क्या हुस्नी मुबारक की नकल कर रहे है नरेन्द्र मोदी

क्या हुस्नी मुबारक की नकल कर रहे है नरेन्द्र मोदी
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ पीएम नरेन्द्र मोदी ने 25 जनवरी को नई दिल्ली के हैदराबाद हाऊस के बगीचे में चाय पर गपशप की। लोगों ने टीवी चैनलों पर देखा कि मोदी ने जो काले रंग के बंद गले का सूट पहन रखा था उसमें हल्के पीले रंग की धारियां थी। यह धारियां फैशन डिजाइन की तरह नजर आ रही थी, लेकिन इन धारियों के बीच नरेन्द्र दामोदर दास मोदी लिखा हुआ था। यानी सूत का कपड़ा खासतौर से पीएम मोदी के लिए तैयार कराया गया। भारत में संभवत: यह पहला अवसर रहा जब सूत का कपड़ा व्यक्ति के नाम पर बनाया गया। चूंकि अब पीएम मोदी ने इसकी शुरूआत कर दी है इसलिए आने वाले दिनों में अडानी, अंबानी जैसे धनाढ्य व्यक्ति भी अपने नाम का कपड़ा तैयार करवा लेंगे। भले ही इसकी शुरूआत भारत में पीएम मोदी ने की है, लेकिन जानकारों के अनुसार विश्व स्तर पर सबसे पहले इस तरह का सूट मिश्र के तानाशाह रहे राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक ने पहना था।  हुस्नी मुबारक जो सूट पहनते थे उस पर धारियों के बीच उनका नाम लिखा रहता था। यानी मुबारक के बाद नरेन्द्र मोदी ऐसे राजनेता नजर आए जिन्होंने अपने नाम का सूट धारण किया है। हालांकि अभी यह पता नहीं चला है कि मोदी ने सूट के कपड़े को कहां तैयार करवाया।
बताया जा रहा है कि मोदी को सूट का कपड़ा उपहार में मिला है लेकिन उपहार देने वाले का नाम भी सामने नहीं आया है। अभी सिर्फ इतना ही पता चला है कि मोदी ने जोधपुरी सूट अहमदाबाद में अपने पुराने डिजाइनर से सिलवाया है। राष्ट्रपति ओबामा ने भी मोदी के फैशन और कपड़ों की कई बार प्रंशसा की है। ओबामा तीन दिन की भारत यात्रा में भले ही एक अथवा दो कोट पेंट में नजर आए लेकिन मोदी ने हर समारोह में नया परिधान पहना। मोदी ने ओबामा के सामने अपने स्टाइल को दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह कहा जा सकता है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति पर पीएम मोदी हावी रहे। यह मोदी का ही आत्मविश्वास रहा जो उन्होंने सिर्फ बराक कहकर ही अमेरिका के राष्ट्रपति को संबोधित किया। मोदी का यह कहना कि वे जब चाहे तब बराक से टेलीफोन पर बात कर सकते है। जब मर्जी हो तब गप-शप कर सकते है। मोदी ने यह बात कुछ इस अंदाज से कही कि वे दो देशों के प्रमुख नहीं बल्कि कॉलेज के दोस्त है। इसमें कोई दोराय नहीं कि मोदी ने दुनिया के समक्ष भारत का डंका बजाया है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

क्या हुस्नी मुबारक की नकल कर रहे है नरेन्द्र मोदी

क्या हुस्नी मुबारक की नकल कर रहे है नरेन्द्र मोदी
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ पीएम नरेन्द्र मोदी ने 25 जनवरी को नई दिल्ली के हैदराबाद हाऊस के बगीचे में चाय पर गपशप की। लोगों ने टीवी चैनलों पर देखा कि मोदी ने जो काले रंग के बंद गले का सूट पहन रखा था उसमें हल्के पीले रंग की धारियां थी। यह धारियां फैशन डिजाइन की तरह नजर आ रही थी, लेकिन इन धारियों के बीच नरेन्द्र दामोदर दास मोदी लिखा हुआ था। यानी सूत का कपड़ा खासतौर से पीएम मोदी के लिए तैयार कराया गया। भारत में संभवत: यह पहला अवसर रहा जब सूत का कपड़ा व्यक्ति के नाम पर बनाया गया। चूंकि अब पीएम मोदी ने इसकी शुरूआत कर दी है इसलिए आने वाले दिनों में अडानी, अंबानी जैसे धनाढ्य व्यक्ति भी अपने नाम का कपड़ा तैयार करवा लेंगे। भले ही इसकी शुरूआत भारत में पीएम मोदी ने की है, लेकिन जानकारों के अनुसार विश्व स्तर पर सबसे पहले इस तरह का सूट मिश्र के तानाशाह रहे राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक ने पहना था।  हुस्नी मुबारक जो सूट पहनते थे उस पर धारियों के बीच उनका नाम लिखा रहता था। यानी मुबारक के बाद नरेन्द्र मोदी ऐसे राजनेता नजर आए जिन्होंने अपने नाम का सूट धारण किया है। हालांकि अभी यह पता नहीं चला है कि मोदी ने सूट के कपड़े को कहां तैयार करवाया।
बताया जा रहा है कि मोदी को सूट का कपड़ा उपहार में मिला है लेकिन उपहार देने वाले का नाम भी सामने नहीं आया है। अभी सिर्फ इतना ही पता चला है कि मोदी ने जोधपुरी सूट अहमदाबाद में अपने पुराने डिजाइनर से सिलवाया है। राष्ट्रपति ओबामा ने भी मोदी के फैशन और कपड़ों की कई बार प्रंशसा की है। ओबामा तीन दिन की भारत यात्रा में भले ही एक अथवा दो कोट पेंट में नजर आए लेकिन मोदी ने हर समारोह में नया परिधान पहना। मोदी ने ओबामा के सामने अपने स्टाइल को दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह कहा जा सकता है कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति पर पीएम मोदी हावी रहे। यह मोदी का ही आत्मविश्वास रहा जो उन्होंने सिर्फ बराक कहकर ही अमेरिका के राष्ट्रपति को संबोधित किया। मोदी का यह कहना कि वे जब चाहे तब बराक से टेलीफोन पर बात कर सकते है। जब मर्जी हो तब गप-शप कर सकते है। मोदी ने यह बात कुछ इस अंदाज से कही कि वे दो देशों के प्रमुख नहीं बल्कि कॉलेज के दोस्त है। इसमें कोई दोराय नहीं कि मोदी ने दुनिया के समक्ष भारत का डंका बजाया है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)