Saturday 31 October 2015

इस तरह परीक्षा करवाने पर शर्म आनी चाहिए राजस्थान लोकसेवा आयोग को



राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अथवा राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष ललित के. पंवार की बेटी किसी परीक्षा केन्द्र पर पहुंचे और वहां खड़ा पुलिस का एक सिपाही बदतमीजी के साथ कहे कि अपना कुर्ता उतार कर आ अथवा हाथ बांह का कुर्ता पहन। इसी वक्त उस बेटी की आंखों में आंसू हो तो बताएं वसुंधरा राजे और ललित के. पंवार को कैसा लगेगा? कुछ इसी बदतमीजी और बिगड़े माहौल में 31 अक्टूबर को राजस्थान भर में आरएएस प्री 2013 की परीक्षा सम्पन्न हुई। राजे और पंवार अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने परीक्षा को अंजाम दे दिया। लेकिन परीक्षा केन्द्रों पर बेटियों और बेटों को जिस प्रकार अपमानित होना पड़ा उसमें इन दोनों को ही शर्म आनी चाहिए। इतना ही नहीं बेटियों की चुन्नी अथवा सर्दी के मौसम में पहनी गई जाकेट को भी बेशर्मी के साथ उतरवा दिया गया। समझ में नहीं आता कि जो सीएम सार्वजनिक समारोह में लोगों द्वारा दी गई ओढऩी, चुनरी को शर्म और सम्मान का प्रतीक मानती हैं उसी सीएम के राज में प्रदेश भर में बेटियों की चुन्नियां - चुनरी उतरवा दी गई। सीएम राजे बताएं कि जब परीक्षा केन्द्रों पर बेटियों की चुन्नियां उतरवाई जा रही है तो फिर वे क्यों समारोह में चुनरी ओढ़ती हैं? आयोग ने नकल रोकने के लिए परीक्षा केन्द्रों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए। होना तो यह चाहिए था कि परीक्षा केन्द्र के अन्दर ऐसी व्यवस्था की जाती कि अभ्यर्थी किसी भी साधन से नकल नहीं कर सके। लेकिन इसके बजाए आयोग ने यह मान लिया कि सभी अभ्यर्थी नकल करते हैं। इसलिए ऐसे प्रतिबंध लगा दिए गए जिससे राजस्थान के स्वाभिमानी युवाओं को सरेआम अपमानित होना पड़ा। मुझे पता है कि आयोग के अध्यक्ष सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए मैं अजमेर शहर के एक परीक्षा केन्द्र का सबूत सहित उदाहरण दे रहा हूं और यही हालात प्रदेशभर के परीक्षा केन्द्रों के रहे हैं। आयोग ने अजमेर शहर के हरिसुन्दर बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय को परीक्षा केन्द्र बनाया। अभ्यर्थियों को जो प्रवेश पत्र भेजे गए उसमें इस विद्यालय का पता नवाब का बेड़ा लिखा। जबकि यह विद्यालय नवाब का बेड़ा से 2 वर्ष पहले ही स्थानान्तरित होकर आशागंज क्षेत्र में चला गया। 31 अक्टूबर को सुबह सैंकड़ो अभ्यर्थी इस विद्यालय को नवाब का बेड़ा में ढूंढते रहे। इस विद्यालय का टेलीफोन नंबर 2431369 अंकित किया गया जबकि विद्यालय का सही नंबर 2431359 है। प्रवेश पत्र पर छपे फोन नंबर पर जब अभ्यर्थियों ने सम्पर्क किया तो पता चला कि यह अजमेर की जिला परिषद के कार्यालय का नंबर है। इस विद्यालय में पार्किंग की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। स्कूल के संवेदनहीन शिक्षकों और कर्मचारियों ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि पार्किंग हमारी जिम्मेदारी नहीं है। इस केन्द्र पर तैनात पुलिस के दीवान डूंगाराम का स्वयं कहना था कि यह विद्यालय मुझे भी बड़ी मुश्किल से मिल पाया है। जब ड्यूटी देने वाले दीवान की यह पीड़ा थी तो अभ्यर्थियों की परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। आयोग के प्रवेश पत्र पर यह अंकित किया गया था कि अभ्यर्थियों को प्रात: 9 बजे परीक्षा केन्द्र पर पहुंचना है ताकि अभ्यर्थियों के आई कार्ड, प्रवेश पत्र और ड्रेस कोड की जांच पड़ताल हो सके। लेकिन इसे आयोग और परीक्षा केन्द्र में तालमेल का अभाव ही कहा जाएगा कि विद्यालय के शिक्षकों ने कहा कि हमारे पास आयोग के जो दिशा-निर्देश प्राप्त हुए हैं उसमें प्रात: 9.30 बजे अभ्यर्थियों को प्रवेश देने की बात लिखी गई है। यही वजह रही कि अभ्यर्थियों को बेवजह आधा घंटा परीक्षा केन्द्र के बाहर ही खड़ा रहना पड़ा। इन अक्ल के अंधों से कोई यह पूछे कि जब परीक्षा 10 बजे शुरू होनी है तो फिर मात्र आधा घंटे में ढाई सौ अभ्यर्थियों के आई कार्ड, प्रवेश पत्र और ड्रेस कोड की जांच कैसे की जा सकती है? इस विद्यालय पर 250 अभ्यर्थी निर्धारित किए गए हैं। विद्यालय के शिक्षकों ने एक-एक अभ्यर्थी की जांच करवाई है। जिन परीक्षा केन्द्रों पर अधिक अभ्यर्थी थे उनको तो और भी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। मैं खुद हरिसुन्दर बालिका विद्यालय के बाहर बेटे-बेटियों की परेशानी को देख रहा था। मुझे तब बहुत ही बुरा लगा जब विद्यालय के संवेदनहीन शिक्षकों और पुलिसकर्मियों ने उन अभ्यर्थियों को बाहर कर दिया जो पूरी बांह की शर्ट और कुर्ते पहनकर आए थे। मैंने 26 अक्टूबर को ब्लॉग लिखा था जिसमें बेटियों के हाफ बांह के कुर्ते पर आपत्ति जताई थी। इस ब्लॉग के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे यह आश्वस्त किया कि आयोग के अध्यक्ष ललित के. पंवार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि महिला अभ्यर्थी पूरी बांह का कुर्ता पहनकर आ सकती है। लेकिन पंवार का यह कथन उस समय झूठा साबित हुआ जब हरिसुन्दर बालिका विद्यालय पर बेटियों को अपमानित कर बाहर चले जाने को कहा। पुरुष अभ्यर्थियों से भी कहा गया कि वे हाफ बांह की शर्ट पहनकर प्रवेश कर सकते हैं। मैंने जब बेटियों और बेटों की आंखों में आंसू देखे तो अजमेर में आरएएस प्री की परीक्षा के प्रभारी और डीएसओ सुरेश सिन्धी से फोन पर संवाद किया। इस पर सुरेश सिन्धी ने भी यह माना कि जो बेटियां और बेटे फुल बांह के कपड़े पहनकर आए हैं उन्हें परीक्षा में शामिल किया जाए। ज्यादा से ज्यादा कपड़े की बांह को उलटवाया सकता है। हो सकता है कि सुरेश सिन्धी ने अंधे, बहरे, गूंगे और संवेदनहीन राजस्थान लोक सेवा आयोग के अधिकारियों से सम्पर्क किया हो और बाद में यह निर्देश दिलवाए हों कि फुल बांह के परिधान पहने अभ्यर्थियों को भी परीक्षा देने ही जाए। यहां पर सवाल उठता है कि आखिर पहले बेटे-बेटियों को अपमानित क्यों किया गया। ऐसे निर्देश पहले ही दिए जा सकते थे। सिर्फ पूरी बांह के परिधान पर परीक्षा के शुरू में बेटे-बेटियों को जो मानसिक तनाव झेलना पड़ा उसके बाद किन हालातों में परीक्षा दी होगी इसका अंदाजा वसुंधरा राजे और ललित के. पंवार को लगाना चाहिए। सीएम की कुर्सी और आयोग के अध्यक्ष के पद पर बैठकर सिर्फ फरमान जारी करने से कुछ नहीं होगा। इन दोनों को प्रदेश के युवाओं की भावनाओं को समझना चाहिए। प्रदेश भर में 31 अक्टूबर को परीक्षा केन्द्रों पर जो हालात बिगड़े उसका जवाब राजे और पंवार को देना ही चाहिए।
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बताओ, ख्वाजा साहब की दरगाह में नजराना भेजने वाला पहला मराठा सरदार कौन था? अफसर बनने वालों से परीक्षा में पूछा सवाल! राजस्थान लोक सेवा आयोग की


 ओर से 31 अक्टूबर को राज्य प्रशासनिक और अधीनस्थ सेवा 2013 की प्रारंभिक परीक्षा ली गई। परीक्षा में 150 सवाल पूछे गए। 134 नम्बर के सवाल में आयोग ने अभ्यर्थियों से पूछा कि अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह पर नजर (भेंट) भेजने वाले प्रथम मराठा सरदार कौन थे? आयोग ने अभ्यर्थियों को चार विकल्प सुझाए। पहला- पेशवा बालाजी राव। दूसरा- नवाब अली बहादुर, पेशवा बालाजी राव प्रथम का पौत्र (मस्तानी नामक पत्नी से), तीसरा राजन साहु, शिवाजी के पौत्र। चौथा-पेशवा बालाजी विश्वनाथ।
आयोग ने 31 अक्टूबर को जो परीक्षा ली वह राज्य सेवा के लिए अफसरों का चयन करने वाली है। परीक्षार्थियों के यह समझ में नहीं आया कि आखिर 134 नम्बर के सवाल से आयोग अफसर बनने की कौन सी योग्यता जांचना चाहता है? यह माना कि ख्वाजा साहब की दरगाह में देश-विदेश के शासकों ने समय-समय पर अपनी ओर से नजराना भेजा है या फिर स्वयं जियारत करने के लिए आए हैं। देश में शासन किसी का भी रहा हो लेकिन दरगाह में आने वाले लोगों की कभी कमी नहीं रही। चाहे कोई किसी भी समुदाय का रहा हो लेकिन उसने ख्वाजा साहब की दरगाह के प्रति अपनी आस्था को प्रकट किया है।
यह भी रहा चकराने वाला सवाल:
98 नम्बर का सवाल भी अभ्यर्थियों को चकराने वाला रहा। इस सवाल में पूछा गया कि हाल ही में किसने कहा था कि लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत का भविष्य खतरे में है? इस सवाल के चार विकल्प सुझाए गए, पहला- अरूधन्ति राय, दूसरा-किरण बेदी, तीसरा-रिचर्ड ए फाल्क तथा चौथा एम जे अकबर। 
आधे भी नहीं आए परीक्षा देने:
आरएएस प्री की परीक्षा के लिए आयोग ने 4 लाख 78 हजार 29 अभ्यर्थियों को बुलावा पत्र भेजा लेकिन 31 अक्टूबर को मात्र एक लाख 71 हजार 571 अभ्यर्थियों ने ही परीक्षा दी। यानि कुल 42.07 प्रतिशत अभ्यर्थी ही उपस्थित हुए। कम उपस्थिति के संबंध में अध्यक्ष पंवार का कहना रहा कि इस बार गंभीर अभ्यर्थियों ने ही परीक्षा दी है।
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Friday 30 October 2015

क्या देवनानी ने वसुन्धरा का एक चुनाव वायदा पूरा किया। रीट परीक्षा के लिए आवेदन 18 नवम्बर से



राजस्थान के स्कूली शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने 30 अक्टूबर को घोषणा की है कि राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा (रीट) के लिए आगामी 18 नवम्बर से आवेदन शुरू हो जाएंगे। यह आवेदन 17 दिसम्बर तक लिए जाएंगे। जबकि परीक्षा अगले वर्ष 7 फरवरी को होगी। परीक्षा दो स्तरीय होगी। इस परीक्षा को लेकर प्रदेश भर में उत्सुकता बनी हुई थी क्योंकि सीएम वसुन्धरा राजे ने गत विधानसभा चुनाव में इस परीक्षा को महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बनाया था। राजे ने प्रचार के दौरान हर बार कहा कि कांग्रेस सरकार ने बेरोजगारों को तंग करने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की शुरूआत की है। राजे ने घोषणा की कि भाजपा की सरकार बनने के बाद इस परीक्षा को रद्द कर दिया जाएगा। शिक्षक की नौकरी पहले की तरह बीएड और एसटीसी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मिल जाएगी। लेकिन राजे पात्रता परीक्षा को रोक तो नहीं सकी, लेकिन दो परीक्षाओं को एक अवश्य किया है। देवनानी ने जो घोषणा की उसके मुताबिक रीट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही बेरोजगारों को शिक्षक की नौकरी मिल जाएगी। देवनानी ने कहा कि सरकार को अभी 15 हजार शिक्षकों की भर्ती करनी है। रीट परीक्षा के परिणाम की जो मेरिट बनेगी उसमें प्रथम 15 हजार अभ्यर्थियों को शिक्षक बना दिया जाएगा। ऐसे युवकों को शिक्षक की नौकरी के लिए किसी भी प्रकार की परीक्षा अथवा इन्टरव्यू नहीं देना पड़ेगा। देवनानी ने कहा कि मुख्यमंत्री राजे ने चुनाव के दौरान जो वायदा किया था उसे आज पूरा कर दिया गया है। रीट की परीक्षा पूरी तरह पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ सम्पन्न करवाई जाएगी। परीक्षा का परिणाम आगामी दो वर्षों तक प्रभावी रहेगा।
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संथारा से कम नहीं रहा विशनी देवी का निधन



अजमेर की सुप्रसिद्ध फर्म चन्दीराम एण्ड संस के मालिक चन्दीराम नारुमल की 85 वर्षीय पत्नी श्रीमती विशनी देवी का 30 अक्टूबर को निधन हो गया। विशनी देवी सिन्धी समुदाय की उन झुझारू महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने देश के विभाजन की त्रासदी को झेला। विशनी देवी देश के विभाजन के समय अपने पति के साथ विपरीत परिस्थितियों में पाकिस्तान से भारत और अजमेर आई। विशनी देवी का झुझारूपन अंतिम समय तक रहा। पिछले दो-तीन माह से विशनी देवी ने अन्न का त्याग कर दिया था। इस अवधि में सिर्फ जल पर ही निर्भर थीं लेकिन पिछले तीन-चार दिनों से तो विशनी देवी ने जल का भी त्याग कर दिया। यानि विशनी देवी सिर्फ ईश्वर की दी गई हवा पर ही जिन्दा थीं। आमतौर पर ऐसी स्थिति जैन सम्प्रदाय में सन्थारा के दौरान होती है लेकिन इस स्थिति की निगरानी जैन साधु और साध्वी करते हैं। एक तरह से उन्हें आध्यात्म और विज्ञान का ज्ञान होता है इसलिए जैन समाज में सन्थारा को मृत्यु पर विजय का उत्सव भी माना जाता है। विशनी देवी ने जिन परिस्थितियों में मृत्यु को गले लगाया उसमें किसी साधु-सन्त अथवा साध्वी की देखरेख भी नहीं थी। विशनी देवी ने जब जल भी ग्रहण करने से इंकार कर दिया तो उनके पुत्र रमेश और भगवान चन्दीराम ने डॉक्टरों से जांच करवाई। डॉक्टरों ने जांच पड़ताल के बाद कहा कि विशनी देवी पूरी तरह स्वस्थ हैं। सामान्य व्यक्ति की तरह विशनी देवी का रक्तचाप सही और उन्हें किसी भी प्रकार का रोग नहीं है। डॉक्टरों का यह भी मानना रहा कि यह ईश्वर का ही चमत्कार है। 30 अक्टूबर की तड़के जब विशनी देवी ने अंतिम सांस ली तो पहले परिवार के सभी सदस्यों को बुलाया और आशीर्वाद दिया। विशनी देवी अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गई हैं। उनके दोनों पुत्र रमेश और भगवान ने अजमेर ही नहीं बल्कि राजस्थान में कपड़े के व्यवसाय में आसमान की ऊंचाईयां छुईं हैं। विशनी देवी का अंतिम संस्कार 30 अक्टूबर को ही कर दिया गया और उठावना एक नवम्बर रविवार को सायं 4.30 बजे लोहागल रोड स्थित लक्ष्मी नैन स्थल पर होगा।
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Thursday 29 October 2015

क्या आतंकी अबू कासिम के मारे जाने और छोटा राजन की गिरफ्तारी के विरोध में फिल्मकारों ने लौटाए अवार्ड?



29 अक्टूबर को भारतीय सेना ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर अबू कासिम को एक मुठभेड़ में मार डाला। कासिम पर सेना के सैकड़ों जवानों और कश्मीर के निर्दोष नागरिकों को मारने के आरोप है। कासिम पर सरकार ने 20 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित कर रखा था। जम्मू-कश्मीर की सरकार और सेना के अधिकारियों का मानना है कि अबू कासिम के मारे जाने से कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति होगी। इससे पहले मुम्बई के कुख्यात अपराधी छोटा राजन को भी इंडोनेशिया में गिरफ्तार कर लिया गया। कुतर्क करने वाले भले ही इन घटनाओं को सरकार की कामयाबी न माने, लेकिन इससे आंतकियों और अपराधिक तत्वों में भय तो होगा ही। 29 अक्टूबर को ही देश के 12 फिल्मकारों ने अपने अवार्ड लौटाने की घोषणा की। सवाल उठता है कि क्या इन फिल्मकारों ने अबू कासिम के मारे जाने और छोटा राजन की गिरफ्तारी के विरोध में अवार्ड लौटाए हंै? इससे पहले भी देश के कुछ साहित्यकारों ने अपने अवार्ड लौटाए थे। कुछ साहित्यकारों और फिल्मकारों का आरोप है कि देश का माहौल खराब है और केन्द्र सरकार कुछ भी नहीं कर रही है। जो लोग अपने अवार्ड लौटा रहे हैं, वे यह नहीं बता रहे कि आखिर किस प्रकार से देश का माहौल खराब है। साहित्यकारों ने दो हत्याओं का जिक्र किया। एक हत्या कर्नाटक में और दूसरी यूपी में हुई। नि:संदेह किसी भी साहित्यकार की हत्या निदंनीय है। लेकिन हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। कर्नाटक में कांग्रेस की और यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार है। कायदे से साहित्यकारों और फिल्मकारों को संबंधित राज्य सरकारों के खिलाफ गुस्सा जाहिर करना चाहिए था। लेकिन जिस प्रकार केन्द्र सरकार के खिलाफ विरोध जताया जा रहा है, उससे प्रतीत होता है कि अवार्ड किसी राजनीतिक नजरिए से लौटाए जा रहे हैं। कुछ साहित्यकार और फिल्मकार देश का माहौल खराब होने की बात करते हैं, जबकि उनके अवार्ड लौटाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेवजह भारत की प्रतिष्ठा कमजोर होगी।
अवार्ड लौटाने वालों के पास एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है, जो यह जाहिर करता हो कि वर्तमान केन्द्र सरकार किसी पर जुल्म ढाह रही है। पूरा देश जानता है कि आजादी के बाद से किस प्रकार से दरबारियों को सरकारी अवार्ड मिले हैं। दरबार के प्रति वफादारी दिखाने के लिए बेवजह अवार्ड लौटा रहे हैं। यदि वाकई इस देश का माहौल खराब है, तो क्या माहौल को सुधारने की जिम्मेदारी देश के बुद्धिजीवी वर्ग की नहीं है। अच्छा होता कि  अवार्ड लौटाने वाले माहौल को सुधारने में सकारात्मक भूमिका निभाते। मैं अवार्ड लौटाने के मुद्दे को हिन्दू और मुसलमानों की राजनीति से नहीं जोडऩा चाहता। लेकिन इस बात का उल्लेख करना चाहता हंू कि कश्मीर के  4 लाख हिन्दू आज भी दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। कश्मीर में मौजूद आतंकवादी हिन्दुओं को अपने घरों में रहने नहीं देते हैं। इसी प्रकार तुष्टिकरण की नीति के चलते पश्चिम बंगाल की  सीएम ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा के आयोजनों पर ही रोक लगा दी है। असल में आज हिन्दुओं और मुसलमानों में सद्भावना का माहौल बढ़ाने की जरुरत है। यदि सत्ता के लालच में तुष्टिकरण की नीति को राजनीतिक दलों ने जारी रखा तो फिर हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई बढ़ती जाएगी। कुछ दरबारी साहित्यकार और फिल्मकार ऐसा ही कृत्य कर रहे हैं। 
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प्रो. सारस्वत तीसरी बार अजमेर देहात भाजपा के अध्यक्ष बने।



सीएम राजे का है समर्थन।
एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष प्रो.बी.पी.सारस्वत 29 अक्टूबर को लगातार तीसरी बार अजमेर देहात भाजपा के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। 19 मंडल अध्यक्षों की उपस्थिति में हुए चुनाव में सारस्वत को सर्वसम्मिति से अध्यक्ष चुना गया। चुनाव की प्रक्रिया से पहले सारस्वत ने कहा कि वे अध्यक्ष बनने के इच्छुक नहीं है। लेकिन अधिकांश मंडल अध्यक्षों और जिले के भाजपा विधायकों की राय थी कि वर्तमान में सारस्वत का कोई विकल्प नहीं है। सारस्वत ने पिछले एक-डेढ़ वर्ष में जो राजनीतिक कुशलता दिखाई है, उससे भाजपा के आम कार्यकर्ता तो संतुष्ट रहे ही, साथ ही बड़े नेता भी खुश रहे। चाहे पंचायती राज के चुनाव हो या फिर संगठन के मंडल अध्यक्षों के चुनाव। सभी में प्रो. सारस्वत ने सूझबूझ का परिचय दिया। भले ही अजमेर शहर के मंडल अध्यक्षों के चुनाव नहीं हो पाए हैं, लेकिन सारस्वत ने पूरी मेहनत के साथ 19 मंडल अध्यक्षों के चुनाव करवाए। राजनीति की भागदौड़ के साथ-साथ प्रो. सारस्वत एमडीएस यूनिवर्सिटी में भी अनेक जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष होने के साथ-साथ सारस्वत के पास पीटीईटी और बीएसटीसी जैसी राज्य स्तरीय परीक्षाओं की भी जिम्मेदारी है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार की योजना के अंतर्गत महिलाओं के स्वरोजगार के प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी बड़े स्तर पर चलाए जा रहे हैं। आमतौर पर भाजपा संगठन और विधायकों में खींचतान रहती है, लेकिन सारस्वत ने अपनी राजनीतिक कुशलता से देहात क्षेत्र के सभी पांचों विधायकों को संतुष्ट कर रखा है। हालांकि ब्यावर के विधायक शंकर सिंह रावत से तालमेल कुछ कमजोर है। लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं के व्यापक समर्थन के कारण ब्यावर विधानसभा क्षेत्र में भी प्रो. सारस्वत का दबदबा है। असल में सारस्वत ब्यावर के ही रहने वाले है। सारस्वत ने शिक्षा के साथ-साथ विश्वहिन्दू परिषद की गतिविधियों से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। विहिप के प्रवीण भाई तोगडिय़ा को जब अजमेर में गिरफ्तार किया गया तब तोगडिय़ा के साथ प्रो. सारस्वत भी गिरफ्तार हुए। 
सीएम राजे का समर्थन 
प्रो. सारस्वत को सीएम वसुंधरा राजे का समर्थन शुरू से ही रहा है। राजे की ओर से सारस्वत को एमडीएस यूनिवर्सिटी का कुलपति बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन सारस्वत ने राजनीतिक में काम करने की इच्छा जताई। सारस्वत की रुचि को देखते हुए ही पूर्व में सारस्वत को देहात भाजपा का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। सारस्वत राजनीति में रहकर ही बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते हैं। सारस्वत की नजर अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के पद पर भी लगी हुई है। लेकिन अजमेर जिले के प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी से पटरी नहीं बैठ पाने के कारण प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने में अड़चन आ रही है। अलबत्ता अजमेर के सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट तथा प्रदेश की महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती अनिता भदेल ने सारस्वत के नाम पर सहमति जता दी है। 
सोशल मीडिया पर सक्रिय:
सारस्वत सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह सक्रिय है, पिछले दिनों जब सीएम राजे पर ललित मोदी को लेकर आरोप लगे तो सारस्वत के समर्थकों ने वाट्स एप पर एक ग्रुप बनाया। इस ग्रुप का नाम वसुंधरा समर्थक रखा गया। इस ग्रुप के माध्यम से सारस्वत के समर्थकों ने राजे के समर्थन में माहौल बनाया। वर्तमान में भी ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के जो ग्रुप बने हुए है, उसके पीछे भी सारस्वत की प्रेरणा रही है। हालांकि देहात अध्यक्ष का चुनाव 29 अक्टूबर को दोपहर को हुआ, लेकिन सुबह से ही सोशल मीडिया पर सारस्वत के समर्थन में माहौल बन गया। पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा और किशन गोपाल कोगटा के नाम भी चलाए गए, लेकिन अधिकांश मंडल अध्यक्षों ने सोशल मीडिया पर ही सारस्वत को अपना समर्थन जता दिया। ऐसे में चुनाव की नौबत ही नहीं आई। भाजपा के युवा नेता भंवर सिंह पलाड़ा केकड़ी के विधायक शत्रुघ्न गौतम, पुष्कर के विधायक सुरेश सिंह रावत, किशनगढ़ के विधायक भागीरथ चौधरी ने अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र के मंडल अध्यक्षों को पहले ही सारस्वत के पक्ष में इशारा कर दिया था। पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गेना ने भी सारस्वत के पक्ष में सक्रिय भूमिका निभाई। 
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Wednesday 28 October 2015

न शेखावत आए और न हंगामा हुआ।



2 नवम्बर को फिर होगी निगम की साधारण सभा।
भाजपा के धर्मेन्द्र गहलोत के मेयर बनने के बाद 28 अक्टूबर को पहली बार अजमेर नगर निगम की साधारण सभा हुई। मेयर चुनाव में गहलोत को चुनौती देने वाले भाजपा के बागी सुरेन्द्र सिंह शेखावत सभा में आए ही नहीं। सभा में पूरी तरह गहलोत छाए रहे। कचरा परिवहन के लिए ठेकेदार को 32 लाख रुपए के भुगतान का प्रस्ताव सभी पार्षदों ने मंजूर कर दिया। अब ठेकेदारों को प्रतिमाह 1 करोड़ 16 लाख 375 रुपए का भुगतान किया जाएगा। सरकार के नए बिल्डिंग बायलॉज में संशोधन करने के लिए 2 नवम्बर को फिर से साधारण सभा बुलाई गई है। गहलोत ने कहा कि पार्षदों को पहले बायलॉज पढऩे चाहिए और फिर संशोधन के सुझाव दें।उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि बिना पढ़े ही पार्षद अपने विचार रख रहे हैं। उन्होंने माना कि राज्य सरकार के नए बायलॉज अजमेर में लागू नहीं हो सकते हैं। सभा के शुरू होने पर गहलोत ने भाषण देते हुए कहा कि विकास में राजनीति नहीं होनी चाहिए। चुनाव राजनीतिक दल अपने-अपने नजरिए से लड़ते हैं, लेकिन विकास के मुद्दे पर सब को एक रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे भले ही भाजपा से जुड़े हों,लेकिन उनकी नजर में निगम के सभी साठ पार्षद बराबर हैं। वे कांग्रेस के पार्षदों का भी उतना ही सम्मान करेंगे जितना भाजपा के पार्षदों का करते हैं। गहलोत के भाषण का कांग्रेस के पार्षदों ने भी स्वागत किया। कांग्रेस के पूर्व मेयर कमल बाकोलिया के साधारण सभा से भागने की ओर इशारा करते हुए गहलोत ने कहा कि वे साधारण सभा में जमकर बैठे रहेंगे। असल में गहलोत ने जो राजनीतिक जाजम बिछाई उसमें भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के पार्षद संतुष्ट नजर आए। 
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पीएम मोदी से मुलाकात के बाद सीएम वसुंधरा का हौंसला बुलंद।



राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने 27 अक्टूबर की शाम को दिल्ली में पीएम नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। सरकारी खबरों में कहा गया कि सीएम ने रिसर्जेट राजस्थान के समारोह में आने का निमंत्रण पीएम को दिया और प्रदेश की विकास योजनाओं एवं समस्याओं के बारे में भी बताया। इस मुलाकात के अगले ही दिन 28 अक्टूबर को सीएम राजे ने देशनोक स्थित करणी माता स्मारक का शिलान्यास किया। इसके बाद राजे तीन दिवसीय दौरे पर नागौर आ गई। देशनोक के समारोह में राजे ने जो भाषण दिया। वह आत्मविश्वास से भरा हुआ था। राजे के हाव-भाव और बोलने के अंदाज से लग रहा था कि पीएम मोदी से बड़े ही सौहार्द्र पूर्ण माहौल में बातचीत हुई है। पिछले दो तीन माह स ेएक के बाद एक  वसुंधरा राजे पर राजनीतिक हमले हुए है। क्रिकेट के भस्मासुर ललित मोदी की कंपनी से शेयर बेचने के नाम पर 11 करोड़ रुपए लेने के आरोपों के मद्देनजर कांग्रेस ने संसद नहीं चलने दी और इधर राजस्थान में खान आवंटन घोटाला उजागर होने से राजे की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा। इस खराब माहौल में ही राजे के इस्तीफा अथवा हटाए जाने की अटकलें भी लगाई गई। यहां तक कहा गया कि बिहार के चुनाव के बाद वसुंधरा राजे को हटा दिया जाएगा। ऐसे वातावरण में कई मौकों पर राजे को भी निराश देखा गया। लेकिन 28 अक्टूबर को देशनोक और नागौर में ओजस्वी भाषण देकर राजे ने संकेत दिए हैं कि पीएम मोदी के स्तर पर उनके खिलाफ कोई नकारात्मक माहौल नहीं है और फिलहाल उन्हें सीएम की कुर्सी से बेदखल भी नहीं किया जा रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में राजे अनेक बड़े निर्णय लेंगी। जिसमें राजनीतिक नियुक्तियां भी शामिल हैं। हो सकता है कि मंत्री मंडल में फेरबदल भी किया जाए। 
लखावत की प्रशंसा
देशनोक के समारोह में राजे ने राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की जमकर प्रशंसा की। राजे ने कहा कि आज प्रदेश भर में हमारी सांस्कृतिक विरासत का जो संरक्षण और विकास हो रहा है उसके पीछे लखावत की ही मेहनत है। लखावत के बिना सरकार को इतनी सफलता नहीं मिल पाती। प्राधिकरण के माध्यम से लखावत ने हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों का जो विकास किया है, वह सराहनीय है। संभवत: राजस्थान के सभी जिलों में काम शुरू हुए है। मुझे उम्मीद है कि अगले एक दो वर्षों में सभी कार्य पूरे हो जाएंगे। इससे पहले लखावत ने अपने संबोधन में कहा कि वसुंधरा राजे भी किसी देवी से कम नहीं हैं। अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के अनुरूप सीएम राजे ने प्राधिकरण को धनराशि उपलब्ध करवाई है। यह कार्य सीएम के सहयोग के बिना नहीं हो सकता था। मुझे संतोष है कि प्रदेश की जानता को अपनी सांस्कृतिक विरासत और इतिहास को समझने का अवसर मिलेगा।

महिला मजिस्ट्रेट की जागरुकता को भी मात दी अजमेर की गंज थाने की पुलिस ने।



राजस्थान की महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती सुमन शर्मा ने 27 अक्टूबर को दिन में अजमेर में कहा कि महिलाओं को निडर होकर पुलिस थाने में जाना चाहिए और अपनी शिकायत दर्ज करवानी चाहिए। लेकिन 27 अक्टूबर की रात को ही अजमेर के गंज थाने की पुलिस ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट पूनम दरगन की जागरुकता को ही मात दे दी। हुआ यंू कि भाजपा के कार्यकर्ता विमल काबरा ने मजिस्ट्रेट दरगन को रात दस बजे जानकारी दी कि गंज पुलिस ने एक युवक को पिछले दो दिनों से जबरन थाने पर बैठा रखा है। काबरा ने यह भी कहा कि यदि इसी समय थाने पर जांच की जाए तो नागफणी निवासी युवक सुरेन्द्र भाट बैठा हुआ मिल जाएगा। काबरा की इस जानकारी पर मजिस्ट्रेट दरगन ने रात को ही जागरुकता दिखाते हुए गंज थाने का अचानक निरीक्षण किया। काबरा की जानकारी सही निकली और युवक सुरेन्द्र थाने में ही मिल गया। मजिस्ट्रेट के रात को साढ़े दस बजे थाने पर आने की स्थिति को देखते हुए गंज पुलिस एक बार तो शिकंजे में फंस गई। लेकिन तभी चालाक और होशियार पुलिस ने अपना पैंतरा बदला और सुरेन्द्र को चोरी का मोबाइल खरीदने का आरोपी बता दिया। मजिस्ट्रेट होने के नाते पूनम दरगन कानून से बंधी हुई थी, इसलिए पुलिस को हिदायत दी कि युवक सुरेन्द्र को नियमानुसार नोटिस दिए जाने के बाद ही थाने पर बुलाया जाना चाहिए था। दरगन ने कहा कि इस मामले में जो भी कार्यवाही की जाए वह कानून के अनुरूप हो। पुलिस ने यह नहीं बताया कि सुरेन्द्र को दो दन से थाने पर जबरन बैठा कर रखा गया है और सुरेन्द्र की वजह से ही असली मोबाइल चोर मोहम्मद यूसुफ को पकड़ा गया है। सुरेन्द्र ने पहले दिन ही बता दिया था कि मोबाइल उसके पड़ौसी भरत कुमार से लिया गया है। पुलिस तो पुलिस है। जब पीडि़त सुरेन्द्र चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट पूनम दरगन को रात साढ़े दस बजे थाने पर बुला सकता है तो फिर सुरेन्द्र को भी चोरी का मोबाइल खरीदने का आरोपी बनना ही पड़ेगा। दिन में गंज पुलिस यह मान रही थी कि इस पूरे प्रकरण में सुरेन्द्र का कोई दोष नहीं है। क्योंकि असली मोबाइल चोर तो मोहम्मद यूसुफ है। यूसुफ ने ही सेंधमारी कर शक्ति सिंह की दुकान से मोबाइल चुराए थे।  जिन भी लोगों का पुलिस से पाला पड़ा है, वे समझ सकते हैं कि आखिर दो दिनों तक युवक सुरेन्द्र को थाने पर क्यों बैठाए रखा? महिला आयोग की अध्यक्ष महिलाओं को निडर होकर थानों पर जाने की सलाह दे रही हैं, वहीं रात को ही गंज थाने की पुलिस ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की जागरुकता को ही मात दे दी। जब मजिस्ट्रेट के अकास्मिक निरीक्षण के बाद सुरेन्द्र बेवजह आरोपी बन सकता है, तो फिर उन लोगों का क्या होता होगा, जो बिना किसी एप्रोच के पुलिस वालों के रहमोकरम पर थाने पर बंधक रहते हैं। 27 अक्टूबर की रात को गंज थाने पर जो कुछ भी हुआ वह पुलिस की हकीकत बयां करता है। होना तो यह चाहिए था कि जिन अधिकारियों ने युवक सुरेन्द्र को दो दिनों तक थाने पर बैठाए रखा, उनके विरुद्ध कार्यवाही होती। गंज पुलिस इस सच्चाई को भी जानती है कि मोहम्मद यूसुफ को पकड़वाने में सुरेन्द्र के पिता प्रेम कुमार की सक्रिय भूमिका थी। 
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मुझे न राज सत्ता चाहिए, न स्वर्ग न मोक्ष।



शिक्षा राज्यमंत्री के रूप में एक वर्ष पूरा होने पर वासुदेव देवनानी ने कहा। 
वासुदेव देवनानी को राजस्थान के शिक्षा राज्यमंत्री बने एक वर्ष पूरा हो गया। इस अवसर पर देवनानी ने सोशल मीडिया का सहारा लेते हएु अपने फेसबुक पेज पर अनोखे अंदाज में अपनी भावनाओं को प्रकट किया है। आदिकाल में राजा रतीदेव ने जो लिखा उसे ही देवनानी ने प्रकट किया। देवनानी ने अपनी भावनाओं को कुछ इस प्रकार प्रकट किया है।
मुझे राज सत्ता नहीं चाहिए
न ही स्वर्ग, न ही मोक्ष
मैं इस लायक हो सकू की
मेरे समक्ष कोई दु:खी न रहे
पीडि़त न रहे
बस इस लायक बनू यही मेरी कामना है।
देवनानी ने कहा कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विचारों के अनुरूप ही राजस्थान में स्कूली शिक्षा का कार्य किया है। एक साल में शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षालय के हितों का ध्यान रखते हुए ही सहायक कर्मचारी से उपनिदेशक तक की पदोन्नति करवाई गई है। आधारभूत, संरचना, विकास और नवाचारों के प्रयास किए गए है। मैं स्वयं एक शिक्षक हंू, इसलिए शिक्षकों के अधिकारों और सम्माान के लिए प्रयासरत हंू। मेरा प्रयास है कि सरकारी स्कूलों में बच्चे उत्साह के साथ मौजूद रहे। 
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Tuesday 27 October 2015

बोर्ड की मेरिट में अब स्कूलों के अंक शामिल नहीं होंगे



27 अक्टूबर को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने अपनी 10वीं और 12वीं की परीक्षा की मेरिट लिस्ट बनाने का एक फार्मूला घोषित किया है। बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. चौधरी और सचिव मेघना चौधरी ने बताया कि वर्ष 2015-16 की परीक्षा की मेरिट लिस्ट सिर्फ लिखित परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर ही जारी होगी। बोर्ड को ऐसी शिकायतें मिल रही थी कि प्राईवेट स्कूल वाले अपने विद्यार्थियों को प्रायोगिक परीक्षा और अद्र्धवार्षिक परीक्षा में योग्यता से ज्यादा अंक दे रहे थे, ताकि उनके विद्यार्थी मेरिट में शामिल हो सके। इस प्रवृति से योग्य विद्यार्थियों को नुकसान हो रहा था। स्कूलों के अंक अंतिम परिणाम में तो शामिल होंगे लेकिन मेरिट बनाने में नहीं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में अब 8वीं की परीक्षा भी बोर्ड की दसवीं की परीक्षा की तरह ही होगी। शिक्षा बोर्ड ही प्रदेशभर में एक साथ प्रश्न-पत्र तैयार करवाकर परिणाम जारी करेगा। 8वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही 9वीं कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा। पूर्व स्कूल स्तर पर ली जाने वाली 8वीं की परीक्षा को बंद कर दिया गया है। अब उत्तर-पुस्तिका जांचने वाले परीक्षक के पास विद्यार्थी का नाम और रोल नम्बर भी नहीं जाएगा। इसके बजाए कम्प्यूटर द्वारा बार कोड ही उत्तर पुस्तिका पर अंकित होगा।
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बिगड़े हालातों में कितना सफल होगा रिसर्जेन्ट राजस्थान।



साम्प्रदायिक उन्माद लगातार जारी।
27 अक्टूबर को भी राजस्थान के बारां जिले के छीपा बड़ौद में साम्प्रदायिक उन्माद हुआ। हालात इतने बिगड़े की दुकानों को आग लगा दी गई और प्रशासन ने इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया। प्रशासन ने धारा 144 घोषित की है, लेकिन हालात कफ्र्यू जैसे हैं। प्रशासन के अधिकारी लगातार दोनों समुदायों के लोगों से संवाद कर हालात को नियंत्रण करने में लगे हुए हैं। पिछले एक सप्ताह में लगातार तीसरा अवसर है, जब साम्प्रदायिक उन्माद हुआ है। इससे पहले बीकानेर के श्रीडूंगरगढ़ और भीलवाड़ा शहर में साम्प्रदायिक फसाद हो चुका है। भीलवाड़ा और डूंगरगढ़ में अभी भी सामान्य स्थिति नहीं हो पाई है। प्रदेश के ऐसे माहौल में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे देशी-विदेशी निवेश के लिए रिसर्जेंट राजस्थान का आयोजन कर रही हैं। प्रदेश के विकास के लिए निवेश जरूरी है। लेकिन इससे पहले प्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव का माहौल होना भी जरूरी है। यदि साम्प्रदायिक उन्माद होता रहा, तो कोई भी उद्योगपति निवेश नहीं करेगा। प्रदेश में लगातार साम्प्रदायिक उन्माद की घटनाएं हो रही है, तो वहीं ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं है। इन घटनाओं को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अभी तक भी एक शब्द भी नहीं कहा है। अच्छा हो कि राजे साम्प्रदायिक उन्माद को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास करें। जहां तक प्रशासन का सवाल है तो छोटी सी घटना पर भी अधिकारियों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। तत्काल कफ्र्यू की घोषणा कर दी जाती है। डूंगरगढ़ से लेकर छीपा बड़ोद तक में कफ्र्यू जैसे हालात हैं। इंटरनेट सेवाओं को बंद करने से भी जाहिर होता है कि प्रशासन तंत्र पूरी तरह विफल है। प्रशासन जब यह मानता है कि सोशल मीडिया पर अफवाह  फैलाई जाती है तो फिर अफवाह फैलाने वालों के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? सोशल मीडिया पर जहां शरारतीतत्व भी सक्रिय हैं, वहीं माहौल को सुधारने में भी सोशल मीडिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। 
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से सूचना विलम्ब से पहुंचती है, जबकि सोशल मीडिया के महाध्यम से सूचनाएं तत्काल पहुंच जाती है। अच्छा हो कि प्रशासन माहौल  सुधारने में सोशल मीडिया का उपयोग प्रभावी तरीके से करे। अफवाह फैलाने वालों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्यवाही हो और माहौल सुधारने की सूचनाएं प्रशासन की ओर से ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करवाई जाए। असल में अभी ऐसा लग रहा है कि सरकार और प्रशासन में ही तालमेल नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने हुए जनप्रतिनिधि ही माहौल सुधारने में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। सवाल किसी एक राजनीतिक दल का नहीं है, बल्कि सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की यह जिम्मेदारी हो कि वे माहौल को सुधारने में सकारात्मक भूमिका निभाएं। कहीं ऐसा तो नहीं कि रिसर्जेंट राजस्थान को विफल करने के लिए सुनियोजित तरीके से साम्प्रदायिक उन्माद की वारदातें करवाई जा रही हो। मुख्यमंत्री राजे को इस ओर भी तत्काल ध्यान देना चाहिए। छोटी छोटी बातों पर हिन्दू और मुसलमानों का आमने-सामने होना उचित नहीं  है। ऐसे में उन लोगों को भी आगे आना चाहिए जो साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए सक्रिय रहते हैं। 
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छोटा राजन की वजह से दाऊद इब्राहिम को नहीं पकड़ा जा सकता।



फर्क है इंडोनेशिया और पाकिस्तान में। 
कुख्यात अपराधी छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद कहा जा रहा है कि अब भारत के मोस्ट वॉन्टेड दाऊद इब्राहिम को भी पकड़ा लिया जाएगा। जो लोग इस  तरह के दावे कर रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि इंडोनेशिया और पाकिस्तान में फर्क है। छोटा राजन को इंडोनेशिया के बाली एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया था, जबकि दाऊद इब्राहिम तो पाकिस्तान में सरकारी संरक्षण में ही बैठा हुआ है। यह बात पूर्व में कांग्रेस और वर्तमान में भाजपा की सरकार के प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं। जब भी पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता होती है, तब दाऊद इब्राहिम के पते ठिकाने की सूची दी जाती है, लेकिन पाकिसतान ने आज तक भी यह स्वीकार नहीं किया है कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में है। जहां तक छोटा राजन की गिरफ्तारी का सवाल है, तो यह माना जा रहा है कि पी.एम.नरेन्द्र मोदी की कूटनीति की वजह से गिरफ्तारी हुई है। 
भारतीय थल सेना के अध्यक्ष रहे और वर्तमान में विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के.सिंह ने पिछले दिनों इंडोनेशिया की यात्रा की थी। इस यात्रा में जो रणनीति बनी, उसी का परिणाम रहा कि छोटा राजन को इंडोनेशिया पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद छोटा राजन का जो फोटो जारी हुआ है,उसमें यह लग ही नहीं रहा कि गिरफ्तारी से छोटा राजन घबराया हुआ है। अब कुछ ही दिनों में छोटा राजन इंडोनेशिया से भारत भी आ जाएगा, लेकिन छोटा राजन की वजह से दाऊद को पकडऩा आसान नहीं होगा। अपराध जगत की जानकारी रखने वालों के अनुसार छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम तो 1993 में मम्बई हमले के बाद ही अलग-अलग हो गए थे। उल्टे राजन गिरोह के शूटरों ने दाऊद गिरोह के कई सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया। यानि राजन के पास दाऊद को लेकर जो भी जानकारियां थी, वह पहले ही दी जा चुकी हैं। राजन के पास अब ऐसी कोई जानकारी नहीं है, जिससे पाकिस्तान में बैठे दाऊद को पकड़ा जा सके। जब पाकिस्तान की सरकार ही दाऊद को संरक्षण दे रही है, तो फिर उसकी गिरफ्तारी  कैसे हो सकती है? दाऊद को पाकिस्तान की सरकार ही नहीं, बल्कि बदनाम आईएसआई और आतंकवादी संगठनों का भी संरक्षण है। सरकार किसी की भी हो, लेकिन यह विफलता ही दर्शाती है कि 1993 के बाद से दाऊद इब्राहिम का कोई फोटो तक हासिल नहीं किया जा सका। अखबारों और टीवी चैनलों में जो भी फोटो दिखाए जाते हैं वे तब के है, जब 1993 से पहले दाऊद मुम्बई में रहता था। जब हम गत 23 वर्षों में दाऊद का एक फोटो तक हासिल नहीं कर सके, तब उसकी गिरफ्तारी की बात करना बेमानी है। अभी तो यह भी नहीं पता कि दाऊद इब्राहिम जिन्दा भी है या नहीं। हमें यह भी समझना चाहिए कि इंडोनेशिया और पाकिस्तान में फर्क है। इंडोनेशिया की सरकार के सहयोग की वजह से ही छोटा राजन पकड़ा गया है,जबकि इस तरह का सहयोग पाकिस्तान की सरकार दाऊद के मामले में कभी भी नहीं करेगी। जब पाकिस्तान आतंकी भेज कर भारत में अशांति करा रहा है, तब दाऊद इब्राहिम को कैसे भारत को सौंप सकता है?
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Monday 26 October 2015

अजमेर में 2 रुपए लीटर सस्ता मिलेगी डेयरी का दूध



आगामी 21 नवम्बर से अजमेर जिले में उपभोक्ताओं को डेयरी का दूध 2 रुपए लीटर सस्ता मिलेगा। डेयरी के अध्यक्ष रामचन्द्र चौधरी ने बताया कि 38 रुपए प्रति लीटर वाला दूध 21 नवम्बर से 36 रुपए में मिलेगा। दरों में कमी इसलिए की गई है ताकि प्राइवेट डेयरियों से मुकाबला किया जा सके। अजमेर डेयरी का दूध जहां गुणवत्ता की दृष्टि से शुद्ध होता है, वहीं सरकारी नियम कायदों के तहत व्यवस्था होती है, जबकि प्राइवेट डेयरियां गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखती और अपनी मनमर्जी से संचालित होती है। अभी हाल ही में खरीद मूल्य में 3 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि भी की गई थी। यह भी इसलिए की गई ताकि दुग्ध उत्पादक प्राइवेट डेयरियों की बजाए सरकारी डेयरी को ही दूध बेचे। उन्होंने बताया कि आगामी 14 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय सहकार दिवस के अवसर पर अजमेर के आजाद पार्क में जिलेभर के दुग्ध उत्पादकों का सम्मेलन होगा। अजमेर डेयरी का 563 करोड़ रुपए का वार्षिक बजट भी स्वीकृत किया गया है।
जलोटा की भजन संध्या 2 को:
सुप्रसद्धि भजन गायक अनूप जालोटा अजमेर में आगामी 2 नवम्बर को भजनों की प्रस्तुति देंगे। राजस्थान संगीत अकादमी के प्रतिनिधि सोमरत्न आर्य ने बताया कि भजन संध्या में प्रवेश नि:शुल्क होगा। 
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धारीवाल को नहीं किया गिरफ्तार



राजस्थान के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शांति धारीवाल को 26 अक्टूबर को एसीबी ने गिरफ्तार नहीं किया। बहुचर्चित एकल पट्टा प्रकरण में धारीवाल एसीबी के मुख्यालय पर उपस्थित हुए और अपना बयान दर्ज करवाया। एसीबी ने जिस तरह नोटिस देकर धारीवाल को तलब किया था, उससे उम्मीद थी कि धारीवाल को गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन दो घंटे की पूछताछ के बाद जब धारीवाल बाहर आए तो उनका हौंसला बुलंद था। धारीवाल का कहना रहा कि राजनीतिक द्वेषतावश बुलाया गया था। एसीबी भविष्य में भी बुलाएगी तो वे जांच में सहयोग करेंगे।
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गीता के लौट आने से पाकिस्तान क्या शरीफ हो जाएगा



कोई पन्द्रह साल पहले भटक कर सीमा पार चली गई गूंगी-बहरी लड़की गीता को आखिरकार पाकिस्तान ने 26 अक्टूबर को भारत पहुंचा दिया है। गीता के लौटाने पर पाकिस्तान कुछ इस तरह प्रचारित कर रहा है जैसे भारत के मुकाबले पाकिस्तान शरीफ देश है। हमारे ही टीवी चैनलों पर पाक के डिप्लोमेट कह रहे हैं कि एक ओर भारत में पाक के गायक गुलाम अली के कार्यक्रम, क्रिकेट मैच आदि नहीं होने दिए जाते, वहीं पाकिस्तान पूरी शराफत के साथ भारतीय युवती को लौटा रहा है। जिस एनजीओ ने गीता को पाला उसके संचालक भी गीता की आड़ में भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा कि पाकिस्तान में स्वतंत्र लोकतंत्र है और देशी-विदेशी सभी के मानवाधिकार सुरक्षित है, जबकि भारत में ऐसा नहीं है। पाकिस्तानी तो ऐसा कहेंगे ही, लेकिन तरस तो हमारे टीवी चैनलों पर आता है जो हर मौके पर अपने ही देश की छवि बिगाडऩे से बाज नहीं आते। 26 अक्टूबर को जहां पाकिस्तान ने एक भारतीय युवती को जिंदा भेज दिया तो वहीं कश्मीर में सीमा पर पांच भारतीयों की जान ले ली। 26 अक्टूबर की तड़के से ही पाक की ओर से तीस भारतीय चौकियों को निशाना बनाया गया और करीब 80 मोटार्स फेंके गए। इससे पांच जनों की मौत हो गई। ऐसी नापाक हरकतें पाकिस्तान लगातार करता आ रहा है। गीता के लौट आने पर जो लोग पाक के हिमायती बने हुए हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान कभी भी भारत के साथ शराफत नहीं दिखा सकता। चाहे हमारे सैनिक हेमराज के सिर को काटने की घटना हो या 26/11 का मुंबई हमला। ऐसी घटनाएं बताती है कि पाकिस्तान का रवैया भारत के साथ सुधार वाला नहीं है। पाक की दोगली नीति तो 26 अक्टूबर को ही जाहिर हो गई जब सीमापार पर हमारे पांच लोगों को मार डाला गया। गीता को लौटा कर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सिर्फ वाहवाही लेना चाहता है। देखना है कि पाकिस्तान की इस कूटनीति का भारत किस प्रकार जवाब देता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की वजह से ही कश्मीर के हालात बद से बदतर हो गए हैं। चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर छोडऩा पड़ रहा है। पाकिस्तान की वजह से ही कश्मीरी हिन्दू अपने घरों पर वापस नहीं जा पा रहे हैं। कश्मीर में सरेआम पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते है और खूंखार आतंकी संगठन आईएस के झण्डे लहराएं जाते है। यह वही पाकिस्तान हैं जिसने भारतीय नागरिक सरबजीत को जेल में पीट-पीट कर मार डाला था।
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महिला परीक्षार्थियों का भी ख्याल रखे आरपीएससी राजस्थान लोक सेवा आयोग 31 अक्टूबर को


आरएएस प्री 2013 की परीक्षा प्रदेश भरा में आयोजित कर रहा है। इसमें करीब चार लाख अभ्यर्थी भाग लेंगे। इन अभ्यर्थियों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं। परीक्षा में नकल को रोकने के लिए आयोग ने अनेक प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन इन प्रतिबंधों में महिलाओं का ख्याल नहीं रखा गया है। आयोग ने अपने निर्देश में कहा है कि अभ्यर्थी हाफ बांह की टी-शर्ट अथवा शर्ट पहन कर ही आएंगे, लेकिन यह नहीं बताया कि महिलाएं क्या करें। क्या महिला अभ्यर्थी को हाफ बांह का कुर्ता अथवा अन्य परिधान ही पहनकर आना है। अनेक परिवारों में लड़कियों को हाफ बांह का कुर्ता पहनने की इजाजत नहीं है। लड़कियां पूरी बांह का ही परिधान पहनती हैं। इसके अतिरिक्त आयोग ने अभ्यर्थियों को जूते-मौजे के बजाए सैंडल और चप्पल पहनकर परीक्षा केन्द्र पर आने की हिदायत दी है। मोबाइल ब्लूटूथ अथवा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं लाने की हिदायत तो सामान्य बात है। यह माना कि नकल की प्रवृत्ति को देखते हुए आयोग ने संघ लोक सेवा आयोग की मापदंडों के अनुरूप निर्णय लिया है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर आयोग स्वयं की परीक्षा व्यवस्था को मजबूत क्यों नहीं करता? अभ्यर्थी चालाकी के साथ नकल करते हैं। इसको ध्यान में रखते हुए ही प्रतिबंध पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। अच्छा हो कि आयोग परीक्षा केन्द्र पर निगरानी इतनी सख्त रखे कि परीक्षार्थी नकल ही न कर पाएं, लेकिन आयोग को अपने परीक्षा तंत्र पर ही भरोसा नहीं है। पिछले दिनों परीक्षा में नकल के जो मामले सामने आए हैं, उनमें परीक्षा केन्द्र के संचालक ही नकल करवाते पकड़े गए हैं। चाहे संघ लोक सेवा आयोग हो अथवा राजस्थान लोक सेवा आयोग दोनों यह समझ लें कि किसी भी परीक्षार्थी की हिम्मत नकल करने की नहीं होती है। परीक्षर्थी तभी नकल करता है, जब परीक्षा तंत्र में लगे लोग धनराशि लेकर नकल करवाते हैं। इसलिए आयोग को अभ्यर्थियों पर प्रतिबंध लगाने की बजाए अपने तंत्र को सुधारना चाहिए। ऐसे स्कूलों में परीक्षा केन्द्र बनाए, जहां ईमानदारी के साथ परीक्षा हो सके। यदि स्कूल का संचालक ही भ्रष्ट और बेईमान होगा तो फिर कितने भी प्रतिबंध लगा लें, नकल तो होगी ही। जहां तक परीक्षा में लगे सरकारी कर्मचारियों का सवाल है तो स्कूल के संचालक सरकारी कर्मचारियों को बहुत आसानी से खरीद सकते हैं। आयोग यह भी समझे कि 95 प्रतिशत अभ्यर्थी पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ परीक्षा देते हैं। पांच प्रतिशत अभ्यर्थियों के कारण 95 प्रतिशत अभ्यर्थियों को बेवजह तंग किया जाना उचित नहीं है। इस समय राजस्थान के आयोग के अध्यक्ष ललित के.पंवार हैं। पंवार को एक संवेदनशील अध्यक्ष माना जाता है। उम्मीद है कि पंवार 95 प्रतिशत अभ्यर्थियों का ख्याल रखते हुए परीक्षा की नीति बनाएंगे। संघ आयोग जब परीक्षा की नीति बनाता है तो उसके सामने यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि प्रांत भी होते हैं, जबकि इन प्रांतों के मुकाबले राजस्थान के हालात बहुत अच्छे है। इसलिए हमें यूपीएससी की लकीर का फकीर नहीं बनना चाहिए। 
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Sunday 25 October 2015

सफाई के भुगतान में वृद्धि से शांति से हो जाएगी अजमेर नगर निगम की साधारण सभा। एक करोड़ 16 लाख रुपए तय।



स्मार्ट सिटी बनने की दौड़ में शामिल अजमेर के नगर निगम की साधारण सभा 28 अक्टूबर को होगी। इससे पहले ही निगम के आयुक्त एच.गुइटे ने सफाई के कार्य के भुगतान में वृद्धि कर दी है। पहले कचरे के परिवहन पर 26 लाख 51 हजार रुपए का भुगतान प्रतिमाह किया जाता था, लेकिन 21 सितम्बर से 32 लाख रुपए प्रतिमाह कर दिए हैं, जबकि सफाई कार्य पर पहले ही तरह 68 लाख 16 हजार 375 रुपए का भुगतान प्रतिमाह किया जाता रहेगा। यानि अब सब कुछ मिलाकर एक करोड़ 16 लाख 375 रुपए प्रतिमाह सफाई कार्य पर खर्च होंगे। बताया जाता है कि सफाई ठेकेदार के भुगतान में वृद्धि से अधिकांश पार्षद खुश हंै, इसलिए माना जा रहा है कि 28 अक्टूबर को होने वाली साधारण सभा शांति के साथ हो जाएगी। सभा में भुगतान वृद्धि का प्रस्ताव भी रखा गया है। 
पूर्व कांग्रेसी पार्षद करते हैं सफाई का कार्य
भाजपा के धर्मेन्द्र गहलोत भले ही अजमेर के मेयर बन गए हों, लेकिन सफाई का कार्य अभी भी कांग्रेस के पूर्व पार्षद हेमंत शर्मा,अशोक जैन, मनोज जैन आदि के रिश्तेदारों अथवा परिचित के द्वारा ही किया जाता है। यही वजह है कि साधारण सभा में शांति बने रहे, इसके लिए कांग्रेस के पूर्व पार्षद सक्रिय हैं। कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के पार्षदों से भी सम्पर्क साधा गया है। 
शेखावत को देनी है मात
मेयर गहलोत की रणनीति सुरेन्द्र सिंह शेखावत को मात देनी की है। शेखावत ने ही भाजपा से बगावत कर कांग्रेस के समर्थन से मेयर का चुनाव लड़ा था और 60 में से 30 पार्षदों के मत हासिल कर गहलोत से बराबरी कर ली थी। बाद पर्ची से गहलोत मेयर बन गए। गहलोत नहीं चाहते है कि निगम की पहली सभा में बराबरी की स्थिति हो। ऐसे में गहलोत को उन भाजपा और कांग्रेस के पार्षदों का भी समर्थन चाहिए, जिन्होंने चुनाव में शेखावत को वोट दिया था। अब चूंकि सत्ता गहलोत के हाथ में इसलिए सफाई कार्य में सक्रिय कांग्रेस के पूर्व पार्षद भी दोनों दलों के पार्षदों से सम्पर्क कर रहे हैं। देखना है कि गहलोत ने जो रणनीति बनाई है, उसे शेखावत कैसे छिन्न-भिन्न करते हैं। गहलोत पूर्व में भी पांच वर्ष मेयर रहे हैं, तब भी भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के पार्षद खुश रहते थे। पांच वर्ष में कभी भी कांग्रेसी पार्षदों ने हंगामा अथवा विरोध नहीं किया। असल में पार्षदों को संतुष्ट रखने के सारे तौर तरीके गहलोत को पता है। अब निगम में पांच वर्ष वो ही होगा, जो धर्मेन्द्र गहलोत चाहेंगे। 
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धारीवाल गिरफ्तार हुए तो कमजोर पड़ी कांग्रेस में जान आ जाएगी?



राजस्थान के बहुचर्चित एकल पट्टा प्रकरण में 26 अक्टूबर को नगरीय विकास के पूर्व मंत्री शांति धारीवाल को जयपुर में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के समक्ष उपस्थित होना है। यह माना जा रहा है कि प्राथमिक पूछताछ के बाद धारीवाल को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस मामले में नगरीय विकास के उपसचिव रहे निष्काम दिवाकर को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है जबकि पूर्व प्रमुख शासन सचिव जी एस संधु फरार चल रहे हंै। धारीवाल पहले ही कह चुके है कि कांग्रेस के शासन में उनके पास पांच प्रमुख विभाग थे और सैकड़ों फाइले रोजाना हस्ताक्षर के लिए आती थीं। ऐसे में फाइलों को पूरी तरह पढ़ नहीं पाते थे। यानि एकल पट्टा प्रकरण में धारीवाल अपनी गलती को स्वीकार कर रहे हंै। ऐसी स्थिति में यह माना जा रहा है कि धारीवाल 26 अक्टूबर को गिरफ्तार किए जा सकते हैं। यदि धारीवाल गिरफ्तार होते हंै तो राजस्थान में कमजोर पड़ी कांग्रेस को मजबूती मिलेगी। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को 26 अक्टूबर को जयपुर में रहने के निर्देश दिए हैं। कांग्रेस की रणनीति के मुताबिक यदि धारीवाल गिरफ्तार हुए तो बड़े नेताओं को आगे कर गिरफ्तारी के बाद जयपुर में धरना प्रदर्शन किया जाएगा। इसके बाद जिला मुख्यालयों पर भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू हो जाएंगे। यानि कांग्रेस को भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन करने का एक मुद्दा मिल जाएगा। इससे कांग्रेस के बिखरे पड़े नेता एकजुट होंगे।
सरकार में असमंजस :
एसीबी के डीजी नवदीप सिंह चाहे कितना भी दावा करें कि उनकी जांच सरकार के इशारे और दबाव में नहीं हो रही, लेकिन सब जानते हैं कि यदि सीएम वसुंधरा राजे के निर्देश होंगे तो ही धारीवाल को गिरफ्तार किया जाएगा। जानकारों के मुताबिक धारीवाल की गिरफ्तारी को लेकर सरकार में असमंजस की स्थिति है। एक वर्ग का यह मानना है कि यदि एकल पट्टा प्रकरण में भ्रष्टाचार बताकर धारीवाल को गिरफ्तार किया जाता है तो फिर बहुचर्चित खान आवंटन के भ्रष्टाचार के मामले में भी सरकार पर दबाव पड़ेगा। खान विभाग के भ्रष्टाचार के मामले में प्रमुख शासन सचिव अशोक सिंघवी सहित आठ अधिकारी और दलाल जेल में पड़े हुए हैं। खान विभाग के भ्रष्टाचार को लेकर सीधे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर अंगुली उठाई जा रही है। राजे ने खान विभाग में राज्यमंत्री की नियुक्ति कर रखी है इसलिए केबिनेट मंत्री के अधिकार खुद वसुंधरा राजे के पास हैं। खान विभाग के भ्रष्टाचार की जांच भी एसीबी ही कर रही है। यहां यह लिखना जरूरी है कि धारीवाल ने अपने कार्यकाल में ही एकल पट्टा निरस्त कर दिया था जबकि खान विभाग में तो छापामार कार्यवाही कर ढाई करोड़ नकद बरामद किए हैं। ऐसे में एसीबी को दोनों प्रकरणों में भेदभाव करना भारी पड़ सकता है।
नवदीप सिंह और कांग्रेस :
एसीबी के कामकाज के जानकारों का मानना है कि डीजी नवदीप सिंह जरूरत से ज्यादा एकल पट्टा प्रकरण में रूचि दिखा रहे हैं। नवदीप सिंह की पत्नी कांग्रेस के गत शासन में कांग्रेस की विधायक रही थी। हालाकि नवदीप सिंह पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पत्नी का कांग्रेसी विधायक होने की वजह से उनके कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ता है। एसीबी की जांच कानून के दायरे में ही होती है।
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Saturday 24 October 2015

डॉ. राजेन्द्र तेला की दो पुस्तकों का हुआ विमोचन



अजमेर के सुप्रसिद्ध दंत चिकित्सक डॉ. राजेन्द्र तेला द्वारा लिखी गई दो पुस्तकों का विमोचन 24 अक्टूबर को एमडीएस यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली, विनोद सोमानी हंस आदि ने संयुक्त रूप से किया। इंडोर स्टेडियम में आयोजित विमोचन समारोह में सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि दंत चिकित्सक होने के बाद भी जिन संवेदना और उल्लास के साथ पुस्तकों को लिखा गया, वे काबिले तारीफ है। परम्परा कहानी संग्रह और मन के गुब्बारे कविता संग्रह दोनों में ही बखूबी आम व्यक्ति के जीवन को दर्शाया गया है। कहानी संग्रह में शायद ही कोई पक्ष रहा होगा जिसमें मनुष्य के जीवन की कहानी नजर न आई हो। इसी प्रकार कविता संग्रह में गम के वातावरण से लेकर हर्षोल्लास तक का चित्र देखने को मिला। पुस्तकों की खासियत यह है कि इसमें भूमिका  नहीं लिखी गई। दोनों पुस्तकें डॉ. तेला ने अपने पिता स्वर्गीय एससी तेला व माता श्रीमती जमुना देवी तेला को समर्पित की है। पुस्तकों के आवरण पृष्ठ डॉ. तेला की पत्नी अर्चना तेला द्वारा तैयार किए गए। विमोचन समारोह में शहर के कहानीकार, साहित्यकार, पत्रकार एवं गणमान्य नागरिक शामिल थे। इनमें प्रो. नवलकिशोर भाभड़ा, सुरेन्द्र चतुर्वेदी, गोपाल गर्ग, सीताराम गोयल, मनोज मित्तल, प्यारे मोहन त्रिपाठी, धनराज चौधरी, बीना शर्मा, उमेश चौरसिया, डॉ.जेबा रशीद, कवयित्री रमासिंह आदि शामिल रही।
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यह फर्क है अशोक गहलोत और सचिन पायलट में



राजनीति में हर नेता का समर्थक अपने नेता को ही सर्वश्रेष्ठ बताता है लेकिन फिर भी ऐसे कई अवसर आते हैं जब बड़े नेताओं के आचार व्यवहार में अन्तर किया जा सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत भले ही अब राजस्थान के सीएम नहीं हो और गहलोत के मुकाबले सचिन पायलट को ज्यादा तवज्जो दी जा रही हो लेकिन आम कार्यकर्ता आज भी यह महसूस करता है कि अशोक गहलोत ज्यादा मिलनसार है। हालांकि वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस में सचिन पायलट का एक छत्र राज है। प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से पायलट कांग्रेस संगठन पर अपने समर्थकों को ही लगातार काबिज कर रहे हैं। 24 अक्टूबर को अशोक गहलोत अजमेर शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के जयपुर रोड स्थित फार्म हाऊस पर पहुंचे। रलावता की माताजी का निधन गत 25 सितम्बर को हुआ था। गहलोत ने कहा कि मैं 26 सितम्बर को अजमेर आकर अंतिम संस्कार में भाग लेता लेकिन हरिद्वार में एक सामाजिक समारोह पहले से ही निर्धारित था। इसलिए 26 सितम्बर को नहीं आ सका। इसके लिए गहलोत ने रलावता से अफसोस भी जाहिर किया। गहलोत ने 24 अक्टूबर को रलावता के प्रति आत्मीयता दिखाई। उससे रलावता अभिभूत है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस में रलावता का लम्बा राजनैतिक सफर रहा है। रलावता अपने बलबूते पर ही शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने हैं। कांग्रेस की राजनीति में रलावता को सचिन पायलट का समर्थक माना जाता है। पायलट के प्रभाव से ही रलावता अध्यक्ष बने हैं। हाल ही के नगर निगम के चुनाव में भी उत्तर विधानसभा क्षेत्र में रलावता की सिफारिश में ही कांग्रेस के उम्मीदवार तय किए गए। लेकिन रलावता की माता के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए सचिव पायलट अभी तक भी रलावता के निवास पर नहीं आए हैं। 24 अक्टूबर को गहलोत के आने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में यही चर्चा रही कि यही फर्क है अशोक गहलोत और सचिन पायलट में। ऐसा नहीं कि 25 सितम्बर के बाद पायलट जयपुर ही नहीं आए। पायलट दिल्ली में कई बार जयपुर आ चुके हैं लेकिन उन्हें अजमेर आने की फुर्सत नहीं मिली। 24 अक्टूबर को जैसे ही यह पता चला कि गहलोत रलावता के निवास पर आ रहे हैं तो बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी रलावता के निवास पर पहुंच गए। गहलोत के आने पर रलावता ने भी आभार जताया। रलावता के समर्थकों को उम्मीद थी कि गहलोत से पहले पायलट आएंगे क्योंकि रलावता को तो पायलट का ही समर्थक माना जाता है।
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इतने इंतजाम के बाद भी दिखी बदइंतजामी।



सीएम साहिबा अन्दाजा लगाओ हालातों का
राजस्थान की सीएम वसुन्धरा राजे 23 से 25 अक्टूबर तक बाड़मेर जिले के दौरे पर हैं। सीएम बाड़मेर में 3 दिन रहेंगी। इस बात की जानकारी आम लोगों को तो है ही साथ ही चपरासी से लेकर कलेक्टर तक को पता है। पहले से ही यह ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि सीएम किसी भी दफ्तर का औचक निरीक्षण भी कर सकती है। इस स्थिति को देखते हुए बाड़मेर के सभी विभाग अलर्ट थे। यहीं इस बात का पुख्ता इंतजाम किया कि सीएम के आने पर कोई बदइंतजामी नजर न आए। सार्वजनिक अवकाश के बाद भी सरकारी कर्मचारी दिनभर ड्यूटी पर मुस्तैद रहे। ऐसे पुख्ता इंतजाम वाले माहौल में 24 अक्टूबर को राजे ने शहरी सीमा से सटे नरेगा के कार्य को देखने के साथ-साथ जलदाय विभाग और विद्युत निगम के एक-एक दफ्तर को भी देखा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तीनों स्थानों पर सीएम राजे ने नाराजगी दिखाई और माना कि यह विभाग जनता के हित के लिए कार्य नहीं कर रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि सीएम को बदइंतजामी नजर आई। सवाल यह है कि इस बदइंतजामी के बाद प्रदेशभर के सरकारी दफ्तर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। सीएम माने या नहीं लेकिन सरकारी दफ्तरों के हालात इतने खराब हैं कि आम जनता का कोई कार्य होता ही नहीं है। पहली बात तो अधिकारी और कर्मचारी अपनी सीटों पर मिलते ही नहीं है और कभी मिल जाए तो टालने के अलावा कुछ नहीं करते। जो व्यक्ति ईमानदारी से अपना काम करवाना चाहता है। उसका काम इस जीवनकाल में तो हो ही नहीं सकता और जो व्यक्ति रिश्वत देता है उसके काम के आदेश घर पर भिजवा दिए जाते हैं। सीएम साहिबा को यदि अपने शासन की बदइंतजामी सही मायने में देखनी है तो उन्हें चुपचाप बिना ढिंढोरा पीटे कार्य दिवस के दिन किसी भी दफ्तर में सामान्य महिला बनकर जाना चाहिए। 24 अक्टूबर को जो अफसरशाही सीएम के सामने गिड़गिड़ाती नजर आई वही अफसरशाही आम जनता से कैसा सलूक करती है। इस बात को जानने के लिए वसुंधरा राजे को सामान्य महिला बनना पड़ेगा। यह अच्छी बात है कि सीएम स्वयं जिलास्तर पर जाकर हकीकत को देख रही है लेकिन सीएम को उस अफसरशाही में सर्तक रहना होगा जो झूठे आकड़े देकर गुमराह करती है।
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Friday 23 October 2015

स्व. भैरोसिंह शेखावत की जयंती पर प्रार्थना सभा में नहीं गईं वसुंधरा राजे



23 अक्टूबर को जयपुर में स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत की जयंती पर प्रार्थना सभा आयोजित की गई। समाधि स्थल पर आयोजित प्रार्थना सभा में प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह, भाजपा विधायक और स्वर्गीय शेखावत के दामाद नरपतसिंह राजवी, घनश्याम तिवाड़ी आदि अतिथि उपस्थित रहे, लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे नजर नहीं आईं। राजे दिन में ही जयपुर से बाड़मेर के लिए रवाना हो गईं। राजे अब तीन दिनों तक बाड़मेर में ही रहेंगी इसलिए यह कहा जा सकता है कि राजे जयपुर में नहीं थीं, इसलिए प्रार्थना सभा में नहीं आईं, लेकिन यदि राजे को स्वर्गीय शेखावत की प्रार्थना सभा में शामिल होना ही था तो वे बाड़मेर के तीन दिवसीय दौरे को 24 अक्टूबर से शुरू कर सकती थी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि स्वर्गीय शेखावत की प्रार्थना सभा से दूर रहने के लिए ही राजे ने बाड़मेर का दौरान 23 अक्टूबर से ही निर्धारित किया। राजस्थान की भाजपा की राजनीति में शेखावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विपक्षी सरकार के गठन पर शेखावत ही गैर कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री बने। इसे शेखावत का भाजपा में बड़ा राजनीतिक कद ही कहा जाएगा कि उन्हें देश का उपराष्ट्रपति तक बनाया गया। वसुंधरा राजे को राजस्थान में स्वर्गीय शेखावत का ही उत्तराधिकारी माना गया। इसलिए स्वर्गीय शेखावत की जयंती पर आयोजित प्रार्थना सभा में राजे की गैर मौजूदगी राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है।
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पुरस्कार लौटाने और प्रदर्शन करने की बजाए माहौल को सुधारने का काम करें साहित्यकार-लेखक



23 अक्टूबर को कुछ साहित्यकारों और लेखकों ने दिल्ली में केन्द्रीय साहित्य अकादमी के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का आरोप रहा कि लेखकों की हत्या और देश में सांप्रदायिक सद्भावना के माहौल के बिगडऩे पर साहित्य अकादमी प्रभावी भूमिका नहीं निभा रही है। इसमें पहले चुनिन्दा साहित्यकारों और लेखकों ने साहित्य अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार भी लौटाए। समझ में नहीं आता कि कुछ लोगों ने विरोध का यह रास्ता क्यों चुना है? जहां तक साहित्यकारों अथवा लेखकों की हत्या का सवाल है तो उसके लिए संबंधित राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। वहीं यदि माहौल बिगडऩे का अहसास हो रहा है तो क्या माहौल को सुधारने की जिम्मेदारी साहित्यकार और लेखक की नहीं है? आखिर साहित्यकार और लेखक भी तो समाज के ही अंग हैं। क्या पुरस्कार लौटाने और सड़क पर प्रदर्शन करने से माहौल सुधर जाएगा? अच्छा होता कि देशभक्ति की भावना से ऐसे साहित्यकार और पत्रकार ऐसा लेखन करते जिससे माहौल सुधरता। असल में कुछ लोग अपने राजनीतिक नजरिए से केन्द्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। सवाल उठता है कि कर्नाटक और यूपी में साहित्यकारों की जो हत्याएं हुई, उसमें केन्द्र सरकार का क्या दोष है? यह माना कि साहित्यकार और लेखक अथवा किसी भी सामान्य व्यक्ति की हत्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन इसके लिए सीधे पीएम को जिम्मेदार ठहराना भी तो उचित नहीं है। सरकार की ओर से बार-बार अपील की गई है कि कोई भी साहित्यकार अथवा लेखक अपने पुरस्कार न लौटाएं। साहित्यकारों को सरकार की इस अपील को ध्यान में रखना चाहिए। कुछ लोगों के प्रदर्शन पर न्यूज चैनल वालों को मजा आ गया है। इसलिए 23 अक्टूम्बर को चैनल वाले दिनभर राग अलापते रहे कि वामपंथी और दक्षिणपंथी में साहित्यकार विवादित हो गए हैं। साहित्यकार अथवा लेखक को यदि वामपंथी और दक्षिणपंथी में बांटा गया तो फिर देशहित में स्वतंत्र लेखन कैसे होगा।
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नफीस को पकडऩे पर अजमेर एसपी विकास कुमार की प्रशंसा होनी ही चाहिए।



ब्लैक मेल कांड, नशीले पदार्थ के कारोबार जैसे संगीन अपराधों में लिप्त रहे नफीस चिश्ती को जिस प्रकार पकड़ा गया है, उसमें अजमेर के एसपी विकास कुमार की प्रशंसा होनी ही चाहिए, एसपी की क्यूआरटी और स्पेशल टीम ने 22 अक्टूबर को छापामार कार्यवाही कर नफीस चिश्ती और उसके चार साथियों को क्रिकेट का सट्टा खिलाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया। पांच करोड़ 20 लाख के कारोबार के साथ 25 मोबाइल, 3 लैपटॉप, आदि सामग्री भी बरामद की गई। पुलिस द्वारा क्रिकेट का सट्टा पकडऩा सामान्य बात है, लेकिन 22 अक्टूबर को जिन हालातों में सट्टे को पकड़ा गया,वह खास महत्त्व रखता है। एसपी विकास कुमार ने नफीस को पकडऩे से पहले दो मजबूत मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। दरगाह से जुड़े जिस क्षेत्र की पांच मंजिला बिल्डिंग पर छापामार कार्यवाही की गई, वह पन्नीग्रान पुलिस चौकी से सटी हुई है। संबंधित पुलिस को भी पता था कि नफीस बड़े पैमाने पर सट्टे का कारोबार करता है, लेकिन मिलीभगत की वजह से पुलिस कार्यवाही नहीं करती थी। एसपी ने इससे पहले भी नफीस को पकडऩे की योजना बनाई, लेकिन हर बार खबर लीक होने की वजह से नफीस बच गया। एसपी ने पहली लड़ाई अपने ही पुलिस महकमे में लड़ी और 22 अक्टूबर के छापे की खबर को ब्लैकशिप वाले पुलिस कर्मियों से छुपाए रखा। तभी एसपी की क्यूआरटी और स्पेशल टीम नफीस जैसे अपराधी को रंगे हाथों पकड़ सकी। दूसरी लड़ाई एसपी को मजबूत अपराध जगत से लडऩी पड़ी। जो लोग नफीस चिश्ती की आपराधिक पृष्ठभूमि जानते हैं, उन्हें पता है कि नफीस को पकडऩा आसान काम नहीं था। नफीस को पकडऩे में जो हिम्मत और दिलेरी चाहिए थी, वह एसपी ने दिखाई। दरगाह क्षेत्र से जुड़े पन्नीग्रान चौक के सुरक्षित स्थान से नफीस चिश्ती जैसे अपराधी को पकडऩा वाकई दिलेरी का कार्य है। इसके लिए अजमेर एसपी की प्रशंसा होनी ही चाहिए। मुझे पता है कि कुछ लोगों को मेरी यह पोस्ट पसंद नहीं आएगी, लेकिन मेरा मानना है कि जब कोई अधिकारी अच्छा कार्य करता है तो उसकी प्रशंसा भी होनी चाहिए। समय-समय पर मैंने एसपी विकास की आलोचना की है। जब मैं आलोचना कर सकता हंू तो अच्छे कार्य पर प्रशंसा भी करनी चाहिए। मेरी इस पोस्ट को इसी नजरिए से देखा जाए।
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दालों को लेकर रिलायन्स और बिग बाजार जैसे समूहों पर क्यों नहीं पड़ रहे छापे।



देशभर में दालों के बढ़ते दामों को लेकर छोटे-मोटे व्यापारियों आदि पर छापामार कार्यवाही हो रही है, लेकिन इस छापामार कार्यवाही से रिलायन्स और बिग बाजार जैसे समूह अभी तक बचे हुए हैं। सरकार व्यापारियों को तो इसलिए पकड़ रही है कि निर्धारित स्टॉक से ज्यादा की दालें मिल रही है, लेकिन रिलायन्स और बिग बाजार पर कार्यवाही नहीं कर रही। पूरा देश जानता है कि रिलायन्स और बिग बाजार जैसे समूहों के डिपाटमेंटल स्टोरों पर कई हजार क्विंटल दाल पड़ी हुई है। इन समूहों ने ही पहले सस्ती दर पर दल खरीदी और अब महंगी दर पर दालों को बेच रहे हैं। सवाल उठता है कि सरकार का जो वस्तु अधिनियम नियंत्रण कानून है क्या वह रिलायन्स और बिग बाजार जैसे समूहों पर लागू नहीं होता? पूरा देश जानता है कि इन समूहों ने बड़ी मात्रा में दालों का स्टॉक कर रखा है। रिलायन्स के तो देश के प्रमुख शहरों में थोक स्टोर है, जहां पर बाजार से सस्ती दर पर खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाने का दावा किया जाता है। इसके अलावा रिलायन्स के अधिकांश शहरों में अनेक डिपार्टमेंटल स्टोर भी हैं। सरकार यदि अकेले रिलायन्स के गोदामों पर ही छापामार कार्यवाही करें, तो देशभर में दालों के दाम गिर सकते हैं, लेकिन देश जनता यह भी जनती है कि वर्तमान समय में रिलायन्स के स्टोरों पर छापामार कार्यवाही नहीं हो सकती है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां भी छापामार कार्यवाही करने से गुरेज किया जा रहा है, क्योंकि  रिलायन्स के प्रबंधक किसी एक राजनीतिक दल को खुश नहीं रखते, बल्कि सभी राजनीतिक दलों को दालों की मलाई खिलाते रहते हैं। 
श्रम एक्ट की पालना भी नहीं
रिलायन्स और बिग बाजार जैसे समूह श्रम एक्ट की पालना भी नहीं करते हैं। आम व्यापारी पर साप्ताहिक अवकाश और दुकानों के खुलने और बंद होने का नियम लागू होता है। लेकिन रिलायन्स और बिग बाजार  के डिपार्टमेंटल स्टोर न तो साप्ताहिक अवकाश रखते हैं और न ही श्रम कानून के तहत स्टोर को खोलते एवं बंद करते हैं।
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Thursday 22 October 2015

संघ के पथ संचलन का दरगाह पर इस्तकबाल



एमआईएम के सांसद असुबुद्दीन ओबेसी, यूपी के मंत्री आजम खान जैसे मुस्लिम नेता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ कितना भी जहर उगले, लेकिन 22 अक्टूबर को दशहरे के अवसर पर जब संघ के स्वयं सेवकों का पथ संचलन अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह के बाहर से गुजरा तो सैकड़ों मुसलमानों ने पुष्पवर्षा कर स्वयं सेवकों का इस्तकबाल किया। स्वयं सेवकों ने भारत माता की जय के नारे लगाए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में हिन्दू और मुसलमान उपस्थित थे। मुस्लिम प्रतनिधियों में शफी बख्श, फराहद सागर, सलीम भाई आदि शामिल थे। 
संघ दशहरे पर प्रतिवर्ष शहरभर में पथ संचलन का कार्यक्रम करता है और हर बार दरगाह के मुख्य द्वार के सामने से ही स्वयं सेवक कदम ताल मिलाते हुए निकलते हैं। 22 अक्टूबर को भी जब पथ संचलन दरगाह के बारह से गुजरा तो इस्तकबाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। 
शस्त्र पूजन :
परम्परा के अनुरुप पथ संचलन के समापन पर सुभाष बाग में संघ की ओर से शस्त्र पूजन का कार्यक्रम भी हुआ। यहां स्वयंसवकों ने संघ के ध्वज को प्रणाम किया और शस्त्र पूजन की रस्म में भाग लिया। इस अवसर पर संघ के महानगर संघ चालक सुनील जैन सहित वरिष्ठ पदाधिकारी भी उपस्थित थे।
भाजपाई भी नजर आए :
संघ के पथ संचलन में गुरुवार को भाजपा के मंत्री, नेता पार्षद और कार्यकर्ता भी नजर आए। स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, डिप्टी मेयर संपत सांखला, पार्षद रमेश सोनी, राजेन्द्र सिंह आदि भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी संघ की गणवेश पहनकर पथ संचलन में भाग लिया।
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आखिर कौन दे रहा है बार-बार ख्वाजा साहब की दरगाह में धमाकों की धमकी 21 अक्टूबर को एक बार फिर


 अजमेर जिला प्रशासन के उस समय हाथ-पांव फूल गए, जब यहां विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में बम धमाके करने की धमकी मिली। धमकी मिलते ही जिला और पुलिस प्रशासन के अधिकारी दरगाह में पहुंचे और चप्पे-चप्पे की जांच की। विशाल दरगाह परिसर में कोई विस्फोटक सामग्री नहीं है, यह सुनिश्चित करने के बाद अधिकारियों ने चेन की सांस ली। पिछले एक माह में यह दूसरा अवसर है, जब दरगाह में बम धमाके करने की धमकी दी गई है। खास बात यह है कि दोनों ही बार धमकी ऐसे मौके पर दी गई, जब दरगाह में सामान्य दिनों से ज्यादा जायरीन उपस्थित रहते है। इस बार दरगाह में मोहर्रम के अवसर पर जायरीन की भीड़ ज्यादा है। मोहर्रम में जियारत का खास धार्मिक महत्त्व होता है, इसलिए देश भर से जायरीन दरगाह में आए हुए हैं।  यही वजह है कि दरगाह के अंदर और आसपास के क्षेत्र में पैर रखने की भी जगह नहीं है। मोहर्रम के मेले को मिनी उर्स कहा जाता है। यानि जिस किसी भी व्यक्ति ने धमकी दी है, उसने सोच समझकर फैसला किया है। इससे पहले भी ईद के मौके पर दरगाह में धमाके करने की धमकी दी गई थी। पहली बार की धमकी को प्रशासन ने बेहद ही गंभीरता से लिया और सम्पूर्ण दरगाह परिसर को खाली करवाया। तब दरगाह से जुड़े मुस्लिम प्रतिनिधियों ने भी प्रशासन को पूरा सहयोग दिया। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर बार-बार धमकी क्यों दी जा रही है। कौन से ऐसे तत्व हैं जो दरगाह की आड़ में देश का माहौल खराब करना चाहते हैं। सब जानते हैं कि मुस्लिम समुदाय में ख्वाजा साहब की दरगाह का खास महत्त्व है। यहां होने वाली घटनाओं का असर भारत में ही नहीं बल्कि पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि के साथ-साथ दुनिया भर के मुस्लिम देशों पर पड़ेगा। इसलिए एक सुनियोजित योजना के अंतर्गत मुसलमानों के खास धार्मिक अवसरों पर ही दरगाह में धमाकों की धमकी दी जा रही है। आमतौर पर शरारती तत्व ऐसी धमकियां अन्य सार्वजनिक स्थलों के बारे में भी देते रहते हैं। लेकिन जब दरगाह को लेकर कोई धमकी मिलती है तो मामला कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो जाता है। 21 अक्टूबर को जो जिला एवं पुलिस के अधिकारी मोहर्रम के जुलूस की तैयारियों में लगे हुए थे, उहोंने तैयारियों का काम बीच में ही छोड़कर दरगाह में उपस्थिति दर्ज करवाई। हाथों-हाथ बड़ी संख्या में पुलिस बल भी दरगाह भेजा गया। 
मामून अली गिरफ्तार
गत बार ईद के अवसर पर दरगाह में धमाके को लेकर जो धमकी मिली। उस मामले में पुलिस ने कोलकाता से मामून अली नामक युवक को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि मामून अली ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर धमाके की धमकी दी थी। अब मामून अली को कोलकाता से अजमेर लाया जा रहा है। पुलिस यह पता लगाने में जुटी हुई है कि आखिर मामून अली ने किस नीयत से दरगाह में धमाके की धमकी दी। पुलिस मामून अली की पृष्ठभूमि की जानकारी भी पंश्चिम बंगाल पुलिस से ले रही है। 
तकरीर पर भी तकरार
विगत दिनों मोहर्रम के अवसर पर होने वाली धार्मिक तकरीर को लेकर भी दरगाह में तानव के हालात हो गए थे। हालात इतने बिगड़े की हैदराबाद से तकरीर करने आए मौलाना बशीर उलकादरी के साथ दरगाह में मारपीट हो गई। दरगाह के अंदर होने वाली छोटी से छोटी गतिविधि का असर अजमेर शहर पर भी पड़ता है। (एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

Wednesday 21 October 2015

टीवीचैनलों का ये कैसा ग्राउंड जीरो कवरेज।



मासूमों के शव से लाइव शर्मनाक।
21 अक्टूबर को देशभर के लेागों ने टीवी न्यूज चैनलों का ग्राउंड जीरो वाला लाइव कवरेज देखा दर्शकों ने देखा कि हरियाणा के वल्लभगढ़ और फरीदाबाद के बीच नेशनल हाइवे पर दो मासूम बच्चों के शव को लेकर जो विरोध प्रदर्शन हो रहा था, उसका लाइव कवरेज हुआ। चैनलों के रिपोर्टर मासूम बच्चों के शवों के पास खड़े होकर ही घटना के बारे में जानकारी दे रहे थे। शव के पास बैठी परिवार की महिलाएं बिलख रही थी और पूरा माहौल गमगीन था, लेकिन इस माहौल के विपरित चैनलों का लाइव कवरेज हो रहा था। मासूम बच्चों के शव सफेद कपड़े में बंधे हुए बर्फ की सिल्लाओं पर रखे हुए थे। इन दृश्यों को देखकर शरीर में कंपकपी होना लाजमी था, लेकिन इस माहौल से चैनल वालों को कोईसरोकार नहीं था, उन्हें तो सिर्फ ग्राउंड जीरो में अपनी रिपोर्ट दिखानी थी।
मैं स्वयं भी लम्बे समय तक देश के प्रमुख अखबारों का रिपोर्टर रहा हंू, लेकिन ऐसी संवेदनहीनता न तो कभी की और न देखी। सवाल उठता है कि क्या चैनल के रिपोर्टर को शवों के पास खड़े होकर कवरेज करना जरूरी था। दोनों मासूम बच्चों के माता-पिता तो जख्मी हालत में अस्पताल में भर्ती हैं और जो लोग शवों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी वो संवेदनशीलता हो ही नहीं सकती, जो माता-पिता की होगी। ऐसे में चैनलों को रोकने वाला कोई नहीं रहा। जहां तक सरकार का सवाल है तो सरकार इन चैनल वालों में कोई पंगा नहीं लेना चाहता। लेकिन देश की जनता को यह फैसला करना होगा कि आखिर ग्राउंड जीरो के नाम पर क्या परोसा जा रहा है। 21 अक्टूबर को क्या किसी चैनल वाले ने अस्पताल में जाकर उस मां की सुध ली, जिसके दोनों मासूम बच्चों के शव हाइवे पर तमाशा बने रहे।
राहुल का गुस्सा
21 अक्टूबर को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी पीडि़त परिवार से मिलने गए। जब एक पत्रकार ने राहुल गांधी के फोटो सैशन पर सवाल किया तो राहुल गांधी भड़क उठे। राहुल ने अपने आने को जायज ठहराते हुए कहा कि मैं शवों के साथ फोटो खींचाने नहीं, बल्कि गरीब परिवार की मदद करने आया हंू। राहुल गांधी राजनीतिज्ञ हैं और इस नाते राहुल गांधी का आना जरूरी भी है। इस पर किसी को नाराज होने की जरुरत नहीं है। राजनीतिज्ञ कोई भी हो, उसे अपनी राजनीति से मतलब होता है। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो भाजपा और अन्य राजनीतिज्ञ भी ऐसी ही सियासत करते थे। राजनीतिज्ञों को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि शवों की दुर्गति हो रही है। किसी भी राजनीतिज्ञ की रुचि शवों के अंतिम संस्कार में नहीं होती है। राहुल ने भी वो ही किया जो विपक्ष में रहते हुए भाजपा वाले करते थे। ऐसे विवादों से निपटने की जिम्मेदारी सत्तारुढ़ पार्टी की होती है। चूंकि हरियाणा और केन्द्र में भाजपा की सरकार है, इसलिए इस घटना से निपटने की जिम्मेदारी भी भाजपा की ही है। 
शर्मनाक घटना
हरियाणा के बल्लभगढ़ के सुनपेड़ गांव में दबंगों ने एक दलित परिवार पर जो हमला किया, वह बेहद शर्मनाक है। पेट्रोल डालकर आग लगाने से  31 वर्षीय जितेन्द्र की 10  माह की बच्ची दिव्या तथा ढाई वर्ष का पुत्र वैभव जलकर मर गए। जितेन्द्र की पत्नी रेखा झुलसी अवस्था में मौत से संघर्ष कर रही है, हालांकि हरियाणा सरकार ने इस मामले में आठ पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया है तथा चार आरोपियों को गिरफ्तर कर लिया गया है।  अब परिवार वालों की मांग पर सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी है। सरकार का कहना है कि यह जातीय संघर्ष नहीं है, बल्कि दो परिवारों का आपसी विवाद है। आरोपी परिवार के तीन जनों की गत वर्ष हत्या हो चुकी है। (एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

क्या आर.के.मार्बल के अच्छे दिन जा रहे है।


 
255 हैक्टेयर खनन भूमि का आवंटन रद्द।
किसी भी परिवार के अच्छे दिन आने और जाने के पीछे ईश्वर की ही कृपा होती है। किसी को भी इस गलत फहमी में नहीं रहना चाहिए कि उसकी वजह से दुश्मन का नुकसान हो गया है। कई बार खुले आम अपराध अथवा अनैतिक काम करने वाला भी बच जाता है और कई बार बिना अपराध किए ही सजा मिल जाती है। इसलिए अच्छे इंसान हर वक्त जाने अनजाने में हुई गलती के लिए ईश्वर से क्षमा मांगते रहते हैं। मुझे नहीं पता कि ईश्वर की निगाहें आर.के.मार्बल पर इन दिनों कैसी है। लेकिन आखों के सामने से जो गुजर रहा है उससे यह सवाल उठता है कि क्या आर.के.मार्बल के अच्छे दिन जा रहे हैं?
राजस्थान की सरकार ने हाल ही में जो 601 खान आवंटन निरस्त किए हैं, उनमें आर.के.मार्बल को 255 हैैक्टेयर खनन भूमि भी शामिल है। पूरा देश जानता है कि यह भूमि आर.के.मार्बल की वंडर सीमेंट को कौडिय़ों के भाव मिली थी। आर.के.मार्बल ने जब से सफलता की दौड़ लगाई है, तब से यह पहला अवसर होगा, जब आर.के.मार्बल को आवंटित की गई खनन भूमि को छीना गया है। इससे पहले तक तो आर.के.मार्बल के मालिक अशोक पाटनी, सुरेश पाटनी और विमल पाटनी ने जिस जमीन पर अपना पैर रख दिया, उस जमीन को कोई दूसरा व्यक्ति नहीं ले सकता था। सरकार ने कौडिय़ों के भाव जो खनन जमीने दी, उसी की वजह से पाटनी बंधु रातों रात मालामाल हो गए। आज किशनगढ़ का मार्बल उद्योग आर.के.मार्बल के रहमो करम पर ही है। आर.के.मार्बल की खानों से निकलने वाले मार्बल से ही किशनगढ़ के अधिकांश मार्बल व्यावसायियों को संजीवनी मिली हुई है। हालांकि आर.के.मार्बल ने अब अफ्रीका के जंगलों में भी खनन भूमि ले ली है। इसलिए 255 हैक्टेयर भूमि छिन जाने से आर.के.मार्बल के साम्राज्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन आर.के.मार्बल के मालिकों को यह देखना पड़ेगा कि क्या अच्छे दिन जा रहे हैं? आर.के.मार्बल ने जो साम्राज्य खड़ा किया है उसमें कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि आयकर विभाग का इतना बड़ा छापा पड़ेगा। आयकर विभाग ने आर.के.मार्बल के देशभर के ठिकानों पर गत माह एक साथ छापामार कार्यवाही की। खास बात यह रही कि छापे के दौरान सीआरपीएफ के सशस्त्र सुरक्षा बल तैनात किए गए। आमतौर पर आयकर विभाग स्थानीय पुलिस को साथ लेकर ही छापामार कार्यवाही करता है। लेकिन आर.के.मार्बल के खिलाफ सीआरपीएफ का इस्तेमाल होना बेहद ही गंभीर बात है। आयकर विभाग ने अपनी छापामार कार्यवाही को अभी तक भी गुप्त रख रखा है। विभाग के सूत्रों से जो खबर मिली है, उसके मुताबिक करीब 200 करोड़ की अघोषित आय है। आयकर विभाग की जांच पड़ताल का काम अभी भी जारी है। 20 अक्टूबर को आयकर विभाग की टीम एक बार फिर किशनगढ़ आई और पुरानी मिल चौराहा स्थित सिंडीकेट बैंक व आईडीबीआई के बैंक लॉकर्स और अन्य खातों की जानकारी ली। आयकर विभाग की ताजा कार्यवाही से प्रतीत होता है कि विभाग ने अभी आर.के.मार्बल का पीछा नहीं छोड़ा है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में आर.के.मार्बल को और नई मुसीबतों का सामना करना पड़े। 
अशोक सिंघवी से संबंध:
राजस्थान के बहुचर्चित खान आवंटन भ्रष्टाचार के मामले में खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव रहे अशोक सिंघवी इन दिनों जेल में बंद हैं। पूरा खान महकमा जानता है कि अशोक सिंघवी और आर.के.मार्बल समूह के प्रमुख अशोक पाटनी के बीच गहरी मित्रता रही है। सिंघवी ने पाटनी के हितों का हमेशा से ही ख्याल रखा है। सिंघवी के भ्रष्टाचार की जांच एसीबी कर रही है, तो राज्य सरकार ने सभी खान आवंटन के मामलों की जांच लोकायुक्त से करवाने का निर्णय लिया है। भले ही एसीबी और लोकायुक्त की जांच में लीपापोती हो जाए, लेकिन आर.के.मार्बल के लिए तो मुसीबत खड़ी हो ही सकती है। 
पीरदान की सुध ले आर.के.मार्बल:
 आर.के.मार्बल के जुल्मों के खिलाफ पीरदान सिंह राठौड़ अजमेर कलेक्ट्रेट के बाहर न जाने कितने माह से धरने पर बैठे हैं। गर्मी, सर्दी, बरसात के कई मौसम गुजर गए, लेकिन जिद्दी पीरदान कलेक्ट्रेट के बाहर से उठे नहीं है। पीरदान किसी समय आर.के.मार्बल के सहयोगी थे। पीरदान के 21 ट्रोले ही आर.के.मार्बल के पत्थरों को खानों से किशनगढ़ की फैक्ट्री में लाते हैं। अब पीरदान के सभी ट्रोले बिक गए है और पीरदान का पूरा परिवार सड़क पर है। खुद पीरदान का भाई भी आर.के.मार्बल की गोद में जाकर बैठ गया है। पीरदान ने आर.के.मार्बल के खिलाफ जो मुहिम चला रखी है, उसमें आम सहानुभूति पीरदान के साथ है। अच्छा हो कि आर.के.मार्बल के मालिक पीरदान के साथ सम्मानपूर्वक वार्ता करें। पीरदान आर.के.मार्बल को कोई ब्लैक मेल नहीं कर रहा, वह सिर्फ अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है। चूंकि एक ताकतवर संस्थान से लड़ाई है, इसलिए पीरदान की मानसिक स्थिति कई बार विचलित हो जाती है। यदि अशोक पाटनी पीरदान के स्थान पर खड़े होकर एक मिनट भी विचार करेंगे, तो यह मामला तत्काल निपट जाएगा। 
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वाट्स एप ग्रुपों के एडमिन साहब से विनम्र निवेदन


मैं देशभर के वाट्स एप ग्रुपों के एडमिन साहबों का आभारी हंू कि उन्होंने मुझे जोड़ रखा है। यही वजह है कि मेरे ब्लॉग अजमेर, राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर में पढ़े जा रहे हैं। अधिकांश ग्रुपों के मेम्बर अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं। एडमिन और मेम्बरों की रुचि की वजह से मैं वर्तमान में कोई तीन सौ ग्रुपों से जुड़ा हुआ हंू। आप कल्पना कर सकते हैं कि तीन सौ ग्रुपों में पोस्ट करने में मुझे कितना समय लगता होगा। इसके साथ ही मेरा वर्तमान फोन लगातार हेंग हो रहा है। समय और फोन हेंग होने की समस्या को देखते हुए मैंने एक और फोन का इंतजाम किया है। इस नए फोन का नम्बर 9462011211 है। मेरा सभी ग्रुप एडमिन साहबों से विनम्र निवेदन है कि नए नम्बर 9462011211 पर वाट्स एप से जोड़े। इस नए नम्बर के फोन पर सिर्फ वाट्सएप के ग्रुप ही होंगे। मेरा स्वयं का फोन नम्बर 9829071511 ही रहेगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि एडमिन साहब तत्काल ही मुझे नए नम्बर पर जोड़ेंगे। इससे मेरा कार्य सुगम होगा। मेरी पोस्ट पहले ही तरह ब्लॉग, फेसबुक आदि पर ही देखी जाती रहेंगी। मेरा इस अवसर पर ब्लॉग चोरों से एक बार फिर आग्रह है कि मुझे कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य नहीं करें। जो लोग मेरे ब्लॉग को मेरे नाम से अखबार में या वेबसाइट पर प्रदर्शित करते हैं, उनका मैं आभारी हंू। 
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Tuesday 20 October 2015

कलेक्टर मेहरबान तो अफसर पहलवान



अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ.आरूषी मलिक की मेहरबानी की वजह से आरएएस अधिकारी जगदीश चन्द हेड़ा अजमेर से लेकर नाथद्वारा तक पहलवान की भूमिका निभा रहे है। सरकार ने 15 दिन पहले हेड़ा का तबादला नाथद्वारा स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर के बोर्ड के सीईओ के पद पर कर दिया। प्रशासनिक व्यवस्था में ऐसा कम ही होता है जब कोई अधिकारी अपने वर्तमान पद से रीलिज हुए बिना ही नए पद पर ज्वाइन कर ले। चूंकि हेड़ा पर कलेक्टर मलिक की विशेष कृपा है इसलिए हेड़ा जहां नाथद्वारा में श्रीनाथजी की सेवा कर रहे है वही अजमेर में जिला प्रशासन में भी दखल बनाए रखा है। नाथद्वारा में मंदिर के सीईओ का पद ग्रहण करने के बाद भी हेड़ा अजमेर में एक नहीं बल्कि तीन पदों पर काम कर रहे है। हेड़ा की नियुक्ति वैसे तो जिला परिषद के एसीईओ पर है लेकिन सीईओ राजेश चौहान के विदेश जाने की वजह से हेड़ा के पास ही सीईओ का भी चार्ज है। इसके अलावा कलेक्टर मलिक ने हेड़ा को अतिरिक्त कलेक्टर द्वितीय के पद का भी चार्ज दे रखा है। यानि कलेक्टर की मेहरबानी में हेड़ा एक साथ चार पदों का काम कर रहे है। इसके अतिरिक्त कलेक्टर प्रथम के राजस्व विभाग का काम भी हेड़ा के पास ही है। कलेक्टर की वजह से हेड़ा अजमेर में जिला प्रशासन में सबसे ताकतवर अधिकारी है। यह बात अलग है कि हेड़ा को हटाने के लिए जिला प्रमुख वंदना नोगिया ने सीएम वसुंधरा राजे तक से गुहार की थी। हेड़ा ने ही नियमों का हवाला देते हुए जिला प्रमुख के सरकारी वाहन से लालबत्ती हटवाई और सरेआम मीडिया में बयानबाजी की। जिला प्रमुख की शिकायत के बाद सरकार ने तो हेड़ा को अजमेर से हटा दिया लेकिन कलेक्टर की मेहरबानी से हेड़ा अभी भी अजमेर में ही कार्यरत है।
और अफसरों पर भी है मेहरबानी :
कलेक्टर की मेहरबानी सिर्फ हेड़ा पर ही नहीं है बल्कि जिले के किशनगढ़ उपखंड के सब रजिस्ट्रार प्रवीण गुगरवाल पर भी है। सरकार ने किशनगढ़ में तहसीलदार के पद पर महावीर जैन की नियुक्ति की है लेकिन कलेक्टर ने सब रजिस्ट्रार गुगरवाल को ही किशनगढ़ में तहसीलदार का चार्ज दे रखा है जबकि बेचारे महावीर जैन जिला मुख्यालय पर ही इधर-उधर भटक रहे है। कलेक्टर की मेहरबानी नसीराबाद के तहसीलदार सुनील कटेवा पर भी है। कटेवा को श्रीनगर उप तहसील का भी चार्ज दे रखा है जबकि पीसांगन उप तहसील के नायब तहसीलदार रामसिंह राठौड़ फालतु बैठे हुए है। राठौड़ के यह समझ में नहीं आ रहा कि श्रीनगर की उप तहसील का चार्ज उनके बजाए सुनील कटेवा को क्यों दिया गया है।
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बेईमानी का पानी ही बिकवा रहे हैं रेल अफसर



उत्तर पश्चिम रेलवे के सभी स्टेशनों पर रेलवे के अधिकारी जबरन बेईमानी वाला 'रेल नीरÓ पानी ही बिकवा रहे हैं। यह तब हो रहा है, जब हाल ही में 'रेल नीरÓ की बिक्री करने वाली फर्म के मालिकों पर सीबीआई ने छापा मार कार्यवाही की है। सीबीआई को पता चला कि रेल अधिकारियों की मदद से दूषित रेल नीर बिक्री हो रहा है। इस काम में कंपनी के मालिक करोड़ों का मुनाफा कमा रहे थे। 
रेल नीर के मालिक और रेल अधिकारियों की इतनी मिली भगत है कि रेल स्टेशनों पर सभी स्टॉलो को एक लीटर पानी की बोतल दस रुपए में दी जाती है और स्टॉल संचालक इसे पन्द्रह रुपए में बेचता है। यानि यात्रियों को लूटने में स्टॉल संचालक भी पीछे नहीं है। हालांकि रेल प्रशासन ने रेल नीर पानी के अतिरिक्त अन्य कंपनियों का पानी बेचने की स्वीकृति दे रखी है। स्टॉल मालिक अन्य कंपनियों का पानी भी बेचते हैं। अन्य कंपनियों की एक लीटर की बोतल सात रुपए में पड़ती है, जबकि इसी बोतल को यात्रियों को 15 रुपए में बेचा जाता है। अब रेल अधिकारियों ने स्टॉल संचालकों को सख्त निर्देश दिए हैं कि रेल नीर पानी के अलावा दूसरी कंपनियोंं का पानी न बेचा जाए। एक ओर सीबीआई रेल नीर के मालिकों पर छापामार कार्यवाही कर रही है तो दूसरी ओर उत्तर पश्चिम रेलवे स्टेशनों पर बेईमान रेलनीर का पानी ही बेचने को मजबूर किया जा रहा है। यानि इस खंड के अधिकारियों से भी बेईमान कंपनी के अधिकारी शामिल हैं। 
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केन्द्रीय मंत्री सांवरलाल जाट ने अपने कांग्रेसी समधी को बनवाया सहकारी बैंक का अध्यक्ष।



आखिर कार 20 अक्टूबर को अजमेर सेंट्रल को-ऑपरेटिव  बैंक के अध्यक्ष के पद पर मदन गोपाल चौधरी निर्विरोध चुन लिए गए। गत लोकसभा चुनाव से पहले तक कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे चौधरी अजमेर के सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट के समधी हैं। जाट की पुत्री की शादी चौधरी के पुत्र से हुई है। जाट और चौधरी भले ही समधी रहे हो, लेकिन दोनों की राजनीतिक विचारधारा अलग-लग रही, जाट जहां भाजपा में सक्रिय रहे तो वहीं चौधरी कांग्रेस में सक्रिय थे। चौधरी केकड़ी ब्लाक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तथा लम्बे समय तक देहात जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रहे। चौधरी ने गत विधानसभा के चुनाव में केकड़ी से कांग्रेस के उम्मीदवार रघु शर्मा के लिए प्रचार किया। चौधरी ने भाजपा के उम्मीदवार शत्रुघ्न गौतम  को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह बात अलग है कि चुनाव परिणाम गौतम के पक्ष में रहा। गत लोकसभा का चुनाव जब जाट ने भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लड़ा, तब चौधरी ने कांग्रेस से संबंध तोड़े। क्योंकि उनके समधी चुनाव लड़ रहे थे। 
पीएम नरेन्द्र मोदी चाहे कितना भी दावा कर लें कि केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों के रिश्तेदारों को राजनीति में लाभ का पद नहीं दिया जाएगा। लेकिन अजमेर में सांवरलाल जाट ने अपने केन्द्रीय मंत्री की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा कर अपने समधी मदन गोपाल चौधरी को बैंक का अध्यक्ष चुनाव दिया। इसे जाट का प्रभाव ही कहा जाएगा कि बैंक के 12 में से 10 निदेशक निर्विराध चुने गए। यह सभी जाट के समर्थक थे, इसलिए 20अक्टूबर को जब बैंक के अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो चौधरी निर्विरोध चुन लिए गए। 
चूंकि जाट ने पिछले कई दिनों से अजमेर में ही जमे रहकर अपने समधी के लिए चुनावी चौपाल बिछाई थी, इसलिए निर्विरोध निर्वाचन के समय भी जाट ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। चौधरी ने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वे अपने समधी सांवरलाल जाट की वजह से ही अध्यक्ष बने हैं। जाट ने भले ही अपने समधी को बैंक का अध्यक्ष बनवाया हो, लेकिन साथ ही एक बार फिर ये साबित कर दिया कि अजमेर की राजनीतिक पर उनका दबदबा है। 
नसीराबाद में क्यों हारी भाजपा
सांवरलाल जाट ने जिस प्रकार से समधी को बैंक का अध्यक्ष बनवाने में सारी ताकत झौंक दी, उससे यह सवाल उठता है कि आखिर नसीराबाद के उपचुनाव में भाजपा की हार क्यों हुई? मालूम हो कि जाट ने गत विधानसभा का चुनाव करीब 30 हजार मतों से नसीराबाद से जीता था, लेकिन बाद में लोसकभा चुनाव में जाट सांसद बन गए, तो नसीराबाद में उपचुनाव करवाने पड़े, तब भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती सरिता गैना, कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर से 386 मत से पराजित हो गई। तब यह आरोप लगा कि जाट ने पूरी ईमानदारी और मेहनत केसाथ भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार नहीं किया। अजमेर की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि जाट जो तय कर लें, वही होता है। जाट ने अपने समधी मदन गोपाल चौधरी को अध्यक्ष बनवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यदि बैंक के चुनाव की तरह नसीराबाद के उपचुनाव में जाट ने मेहनत की होती तो भाजपा उम्मीदवार की हार नहीं होती। जब जाट कांग्रेस के नेता को बैंक का अध्यक्ष बनवा सकते हैं तो क्या उपचुनाव में भाजपा को जीत नहीं दिलवा सकते थे? और वह भी तब जब जाट स्वयं नसीराबाद से तीस हजार मतों से विजयी हुए। 
जिलेभर में बैंक की भूमिका
अजमेर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक की जिलेभर में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सरकार भी विभिन्न योजनाओं में इसी बैंक के माध्यम से किसानों को रियायती दर पर ऋण उपलब्ध करवाती है। ऐसे में बैंक के अध्यक्ष की पकड़ जिलेभर के ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। 
मंत्री जाट के साथ अध्यक्ष चौधरी।
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Monday 19 October 2015

ख्वाजा साहब की दरगाह में मोर्हरम

पर क्या शिया-सुन्नी का विवाद हुआ?
अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह में 18 अक्टूबर की रात्रि को जब मुस्लिम विद्वान शब्बीर उल कादरी मोर्हरम पर तकरीर करने जा रहे थे तभी हैदराबाद निवासी शेख युसूफ ने जोरदार डंडा सिर पर मार दिया। एक ही वार से कादरी लहूलुहान हो गए। कादरी को तत्काल ही यहां के नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहीं हमलावर शेख युसूफ को पकड़ कर लोगों ने जमकर धुनाई कर दी। युसूफ ने डंडा मारने से इंकार किया है। चूंकि यह हादसा दरगाह के छतरी गेट के बाहर हुआ, इसलिए दरगाह में तनावपूर्ण माहौल हो गया। बताया जा रहा है कि दरगाह से ही जुड़े खादिमों को मौलाना शब्बीर उल कादरी की मोहर्रम पर तकरीर पसंद नहीं आ रही थी। इस संबंध में कुछ खादिमों ने दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पदाधिकारियों का ध्यान भी आकर्षित कियाथा। नाराज खादिमों का कहना था कि मोर्हरम पर मौलाना कादरी जो तकरीर कर रहे हैं वह इस्लाम के अनुकूल नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया कि मौलाना कादरी शिया मान्यताओं के अनुरूप तकरीर करते हैं जिसमें छाती पीटना आदि शामिल हैं। जबकि पूर्व में ऐसी तकरीर कभी नहीं हुई। खादिमों के विरोध के बाद भी मौलाना कादरी की तकरीर जारी रही। बताया जाता है कि इसी का परिणाम रहा कि कादरी पर 18 अक्टूबर पर जानलेवा हमला हो गया। हालांकि अंजुमन कमेटी के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा ने दरगाह में शिया-सुन्नी के किसी विवाद से इंकार किया है।
दरगाह में है परम्परा:
हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोर्हरम मनाया जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में यह परम्परा है कि खादिमों की संस्था अंजुमन मोर्हरम पर किसी विद्वान को बुलाकर तकरीर करवाती है। तकरीर में इमान हुसैन की शहादत के बारे में धार्मिक जानकारियां दी जाती है और यह बताया जाता है कि किन हालातों में मोहम्मद साहब के नवासों को शहादत देनी पड़ी। असल में सुन्नी और शिया सम्प्रदायों में शहादत की तकरीर को अलग-अलग तरीके से पेश किया जाता है। सुन्नी सम्प्रदाय में भी इमाम हुसैन साहब की शहादत का बहुत महत्व है लेकिन इसको लेकर जब तकरीर की जाती है तो छाती आदि पीटने की रस्म नहीं होती है। दरगाह में पूर्व के वर्षों में सुन्नी सम्प्रदाय से जुड़े मुस्लिम विद्वानों को बुलाकर ही तकरीर कराई जाती रही है।
प्रशासन की नजर:
18 अक्टूबर की रात को दरगाह के छतरी गेट के बाहर जो हिंसक हादसा हुआ, उससे अजमेर प्रशासन भी चिंतित है। वारदात के बाद से ही दरगाह के अन्दर और आसपास के क्षेत्रों में पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई है। प्रशासन ने दरगाह से जुड़े सभी प्रतिनिधियों से आग्रह किया है कि मोर्हरम के दौरान पूर्ण शांति बनाए रखी जाए। हालांकि वारदात के बाद कुछ उत्तेजित लोगों ने दरगाह के निकट कुछ दुकानों में तोड़-फोड़ की है। प्रशासन ने यह चेतावनी दी है कि माहौल खराब करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। दरगाह से जुड़े सभी समुदायों से सद्भावना बनाए रखने के लिए प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है। इसके लिए सिटी मजिस्ट्रेट हरफूल सिंह यादव सभी समुदायों के प्रतिनिधियों से सम्पर्क बनाए हुए हैं।
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जजेज के बेटे-बेटियों की वकालत पर भी कोई नीति बनाए सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह अच्छा ही किया कि सरकारी की दखलांदाजी वाले राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द कर दिया। अब सुप्रीम की नीति से ही हाई कोर्ट के जजेज बनेंगे। पीएम नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराजगी हो, लेकिनकल्पना कीजिए कि जब केन्द्र में मुलायम सिंह यादव, ओमप्रकाश चौटाला, जयललिता, करूणानिधि चन्द्रशेखर राव, लालू प्रसाद यादव आदि छह क्षत्रपों के सहयोग से कभी केन्द्र की सरकार बनी तो हाई कोर्ट के जज कैसे बनेंगे? इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। असल में सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को जजेज बनाने से रोका है जो खुद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपराधी की तरह खड़े होते हैं, लेकिन इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट को जजेज के बेटे-बेटियों की वकालत पर भी कोई नीति बनानी चाहिए, ताकि कोर्टों में ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम हो सके। देश की जनता यह जानती है कि जजेज के बेटे और बेटियों की वकालत किस प्रकार से चलती है। देश विदेश की बड़ी-बड़ी कम्पनियां इन बेटे-बेटियों की क्लाइंट हैं। दिखाने को तो अपने रिश्तेदार वकील के कैसेज संबंधित जज सुनता नहीं है लेकिन जो दूसरा जज सुनता है उसे यह पता होता है कि किस जज का रिश्तेदार उसकी अदालत में उपस्थित हुआ है। मैं यह नहीं कहता कि अंकल जजेज एक दूसरे के बेटे-बेटियों का ध्यान रखते हैं, लेकिन आम जनता में ऐसी धारणा है कि योग्य और काबिल युवा वकील बड़ी मुश्किल से 10-20 कैसेज ले पाते हैं जबकि अंकल जजेज के रिश्तेदारों के पास कैसेज की लाइन लगी होती है। मैं यह भी नहीं कहता कि अंकल जजेज के रिश्तेदार वकील काबिल नहीं हैं। जिस किसी भी व्यक्ति ने लॉ की डिग्री ली है उसे मुंसिफ कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में वकालत करने का हक है। यदि सुप्रीम कोर्ट जजेज की नियुक्ति में राजनैतिक दखल नहीं चाहता है तो उसे जजेज के बेटे-बेटियों की वकालत पर भी कोई नीति बनानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट यह भी समझ ले कि यदि कोई अंकल जज तमिलनाडु में नियुक्त है तो उसके रिश्तेदार वकीलों के हितों की रक्षा देश के सभी हाई कोर्ट में हो सकती है। मतलब कि अपने राज्यों के वकीलों को जहां कैसेज मिलने में परेशानी होती है वहीं दूसरे राज्य का वकील आकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों की पैरवी संबंधित राज्य में करता है। सिर्फ इसलिए कि उसका रिश्तेदार कहीं न कहीं जज है। यह माना कि अदालतों में बहुत ईमानदारी से काम होता है। कोई भी न्यायाधीश किसी भी प्रकार के लालच में नहीं आता है और न ही अपने वकील बेटे-बेटियों की सिफारिश करता है, लेकिन फिर भी अंकल जजेज के रिश्तेदारों के बारे में कोई नीति बननी ही चाहिए ताकि देश की जनता का भरोसा न्यायपालिका के प्रति बना रहे।
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