Saturday 30 April 2016

नरेन्द्र सालेचा ने कहा याद रहेगा अजमेर का कार्यकाल।


अजयमेरू प्रेस क्लब में हुआ विदाई समारोह
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अजमेर के रेल मंडल प्रबंधक (डीआरएम) के पद से स्थानान्तरित हुए भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी नरेश सालेचा का 30 अप्रैल को अजयमेरू प्रेस क्लब में विदाई समारोह हुआ। इस समारोह में सालेचा ने कहा कि अजमेर का कार्यकाल उन्हें हमेशा याद रहेगा क्योकि यहां राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, पत्रकारों और जागरूक लोगों का भरपूर सहयोग मिला। सभी के सहयोग से अजमेर मंडल के प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं में इजाफा किया गया। अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, फतहनगर आदि स्टेशनों की कायाकल्प भी की गई। उनका मानना है कि विकास के कार्यो में कभी भी धन की कमी नहीं आती है। यह माना कि रेल परियोजना की स्वीकृति की लम्बी प्रक्रिया है, लेकिन सरकार ने जो गाइड लाइन बना रखी है, उसमें रेल प्रबंधन के साथ-साथ सांसद और विधायक कोष से भी धनराशि ली जा सकती है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक संस्थानों का सहयोग भी लिया जा सकता है। अजमेर शहर में स्टेशन के तीसरे गेट का निर्माण श्री सीमेन्ट के सहयोग से करवाया गया तो उदयपुर में गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के विधायक कोष से काम करवाए गए। उन्होंने कहा कि मैंने अजमेर रेल मंडल में आने वाले सभी जिलों के सांसदों, विधायकों आदि से जब भी सहयोग मांगा तो मुझे भरपूर सहयोग मिला। यही वजह रही कि मात्र सवा दो वर्ष के कार्यकाल में करोड़ों रुपए के कार्य शुरू करवा दिए गए। भले ही अब मेरा स्थानान्तरण हो गया है लेकिन विकास की जो प्रक्रिया शुरू हुई है वह आगे भी जारी रहेगी।
समारोह में प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश अग्रवाल ने कहा कि अब तक यह धारणा थी कि रेल प्रशासन का अपना नजरिया होता है, लेकिन सालेचा ने अपने सवा दो वर्ष के कार्यकाल में जिस प्रकार रेल प्रशासन को अजमेर के राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, पत्रकारों और जागरूक लोगों के साथ जोड़ा, उससे यह साबित हो गया कि रेल प्रशासन भी अजमेर शहर का ही हिस्सा है। सालेचा के काम में पारदर्शिता थी इसलिए विकास के इतने काम हो पाए। सालेचा ने आगामी 40 वर्षो के बाद की स्थिति को ध्यान में रखकर योजनाओं की क्रियान्विति करवाई है। पूर्व अध्यक्ष नरेन्द्र चौहान और राजेन्द्र गुंजल ने सालेचा के उज्जवल भविष्य की कामना की। क्लब के अध्यक्ष एसपी मित्तल ने कहा कि सभी लोग चाहते थे कि सालेचा अभी अजमेर में ही रहें, लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि जब व्यक्ति सफलता के शीर्ष पर होता है तभी उसे वह पद छोड़ देना चाहिए। ताकि आने वाले अधिकारी उससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकें। समारोह का संचालन करते हुए महासचिव प्रताप सनकत ने कहा कि पत्रकार वर्ग बहुत कम अधिकारियों का सम्मान करता है। यदि अजयमेरू प्रेस क्लब में आज सालेचा का सम्मान हो रहा है तो सही मानिए की सालेचा ने उल्लेखनीय काम किए है। क्लब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरेश कासलीवाल ने बताया कि डीआरएम के पद पर आने से पूर्व ही उनके संबंध सालेचा के साथ रहे हैं। कासलीवाल ने सालेचा की कार्यप्रणाली की जमकर प्रशंसा की है। देवदास दीवाना, पी.के. शर्मा आदि ने सालेचा पर लिखी कविताएं भी सुनाई।
स्वागत :
समारोह में क्लब के सदस्य राजेन्द्र गांधी ने सालेचा का शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया। इस मौके पर क्लब की ओर से सालेचा को एक स्मृति चिन्ह भी भेंट किया गया।
मिलेगी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी :
डीआरएम के पद से स्थानान्तरण के बाद सालेचा को अभी तक भी नये पद पर नियुक्ति नहीं मिली है। माना जा रहा है कि रेल मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के स्तर पर सालेचा की नियुक्ति होगी और उन्हें एक विशेष प्रोजेक्ट का प्रभारी बनाया जाएगा। सालेचा को केन्द्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु के भरोसे का अधिकारी माना जाता है। रेलमंत्री के प्रस्ताव पर ही सालेचा को रेल मंत्रालय में नियुक्ति दी जा रही है।
(एस.पी. मित्तल)  (30-04-2016)
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भारती श्रीवास्तव की दिलेरी से शराब ठेकेदार को अदालत से नहीं मिली राहत।


ठेके के खिलाफ जारी रहेगा महिलाओं का धरना।
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अजमेर की पूर्व पार्षद भारती श्रीवास्तव ने शराब के एक ठेके के खिलाफ जो अभियान चलाया उसकी वजह से शराब ठेकेदार शाहरूख खान को 30 अप्रैल को अदालत से भी कोई राहत नहीं मिल पाई। शाहरूख ने सिविल न्यायालय में एक वाद प्रस्तुत कर मांग की कि भारती श्रीवास्तव और महिलाओं के विरुद्ध पुलिस कार्यवाही करने के आदेश दिए जाएं। अदालत को बताया गया कि भारती श्रीवास्तव के नेतृत्व में महिलाएं सरकारी ठेके के बाहर धरना प्रदर्शन कर रही हैं। जिसकी वजह से शराब की बिक्री नहीं हो पा रही है। जबकि आबकारी विभाग ने शराब बेचने के लिए लाइसेंस दिया है। वहीं अदालत में भारती श्रीवास्तव ने कहा कि वार्ड 12 में ऊसरी गेट के ठठेरा चौक में जिस स्थान पर देशी शराब की दुकान आवंटित की गई है वह ना केवल सरकारी स्कूल के निकट है बल्कि धार्मिक स्थल भी पास है। यदि ठेका खुलता है तो क्षेत्रीय नागरिकों को भारी परेशानी होगी। भारती ने अदालत में माना कि उसके नेतृत्व में ठेके के बाहर महिलाओं का धरना प्रदर्शन हो रहा है। उसने कहा कि महिलाओं का धरना प्रदर्शन उनका लोकतांत्रिक अधिकार है और यह धरना तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार ठेके का लाइसेंस निरस्त नहीं कर देती। सरकार खुद भी मानती है कि यदि आसपास की महिलाएं खिलाफ हो तो ठेका दूसरी जगह स्थानान्तरित किया जाए। सिविल न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद 30 अप्रैल को ठेकेदार शाहरूख खान को किसी भी प्रकार से कोई राहत नहीं दी और मामले की सुनवाई के लिए 6 मई निर्धारित की। अब भारती ने घोषणा की है कि ठठेरा चौक में ठेके के बाहर धरना प्रदर्शन लगातार जारी रहेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि न्यायालय के रूख को देखते हुए आबकारी विभाग दुकान का लाइसेंस निरस्त कर देगा। भारती ने कहा कि तीन मई को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अजमेर आगमन पर महिलाओं का शिष्टमंडल उनसे मुलाकात करेगा। इस मुलाकात में ठेके को हटाने की मांग की जाएगी।
(एस.पी. मित्तल)  (30-04-2016)
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आईपीएल के मैच जयपुर में नहीं करवाने के लिए सीएम राजे को मिलनी चाहिए शाबासी।



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राजस्थान के जयपुर में आईपीएल के 3 मैच हो या नहीं, इस पर हाईकोर्ट का फैसला 3 मई को आना था। लेकिन इससे पहले ही 29 अप्रैल को आईपीएल गवर्निंग काउंसिल ने यह निर्णय ले लिया कि अब जयपुर में मैच नहीं कराए जाएंगे। असल में यह फैसला गवर्निंग काउंसिल का नहीं, बल्कि राजस्थान की सीएम वसुन्धरा राजे का है। जब मुम्बई हाईकोर्ट ने मुम्बई में एक मई के बाद आईपीएल मैचों पर रोक लगा दी तो सीएम राजे ने आपीएल को अपने जयपुर में आमंत्रित कर लिया। इस पर सीएम राजे की चौतरफा आलोचना हुई। कहा गया कि सूखे के हालात राजस्थान में महाराष्ट्र से भी बदतर है। ऐसे में आईपीएल के मैच जयपुर में नहीं होने चाहिए। 28 अप्रैल को मैंने भी एक ब्लॉग लिखा था जिसमें मुख्यमंत्री राजे को सलाह दी थी कि 3 मई को हाईकोर्ट का फैसला आने से पहले ही आईपीएल के मैच नहीं करवाने की घोषणा कर दी जाए। इसी ब्लॉग में मैंने लिखा कि कार्यवाहक चीफ जस्टिस अजय रस्तोगी जनता के हित में फैसले देने के लिए मशहूर हैं। जस्टिस रस्तोगी ने 27 अप्रैल की सुनवाई में सरकार को निर्देश दिए थे कि आईपीएल के मैच कराने से पहले आगामी दो माह में प्रदेश में पेयजल की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। सरकार को भी इस बात का पता था कि भीषण गर्मी के दिनों में पूरे प्रदेश में पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। यह सही है कि यदि वसुन्धरा राजे अपनी जिद्द पर अड़ी रहती तो आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल कभी भी जयपुर में मैच रद्द नहीं करती। लेकिन चारों तरफ से घिरने के बाद सीएम राजे ने आईपीएल के मैच जयपुर में नहीं कराने का ही निर्णय लिया। सीएम राजे की सहमति के बाद ही गवर्निंग काउंसिल ने जयपुर में आईपीएल के मैच नहीं कराने का निर्णय लिया है। सरकार के किसी जनविरोधी फैसलों की जब हम आलोचना करते हैं तो हमें सरकार के उस निर्णय का भी स्वागत करना चाहिए, जिसमें गलती को सुधारा गया है। यदि जनभावनाओं का सम्मान करते हुए सीएम राजे ने आईपीएल के मैच नहीं कराने का निर्णय लिया है तो फिर राजे को शाबासी भी मिलनी चाहिए। सवाल आईपीएल के मैचों में पानी की बर्बादी का नहीं है। सवाल प्रदेश के वर्तमान हालातों का है। सब जानते हैं कि आईपीएल धनाढ्य लोगों का खेल है इसका क्रिकेट से कोई सरोकार नहीं है। राजस्थान में जब बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तब कुछ लोगों की मौज मस्ती के लिए आईपीएल को करवाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था और जब ऐसे आयोजन में सरकार की भागीदारी हो तो फिर जनता के मन में आक्रोश होगा ही।
(एस.पी. मित्तल)  (30-04-2016)
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लोकतंत्र में तो नेता को डिग्री जनता देती है। केजरीवाल ने की नरेन्द्र मोदी की डिग्री उजागर करने की मांग।


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नरेन्द्र मोदी आज पीएम की कुर्सी पर इसलिए बैठे हैं कि जनता ने उन्हें चुना है। दो वर्ष पहले लोकसभा चुनाव में जब मतदाता भाजपा उम्मीदवारों को वोट दे रहे थे तब किसी ने भी यह जानने में उत्सुकता नहीं दिखाई कि नरेन्द्र मोदी कितने पढ़े-लिखे है। मोदी के पास किसी यूनिवर्सिटी की डिग्री है या नहीं, इसमें भी मतदाताओं की रूचि नहीं थी। भारतीय संविधान के मुताबिक देश का कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़कर प्रधानमंत्री का पद हासिल कर सकता है। लेकिन अब दिल्ली के सिएम अरविन्द केजरीवाल ने मांग की है कि नरेन्द्र मोदी की डिग्री से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक किए जाए। असल में केन्द्रीय सूचना आयुक्त ने केजरीवाल से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने के बारे में केजरीवाल की राय मांगी थी। केजरीवाल ने अपने जवाब में कहा कि उनसे जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने में कोई एतराज नहीं है, लेकिन मेरे साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री से जुड़ी जानकारियां भी सार्वजनिक की जाएं। सब जानते हैं कि केजरीवाल अपने किसी भी मुद्दे में मोदी को घसीटने का कोई मौका नहीं छोड़ते। केजरीवाल अपनी जानकारियां सार्वजनिक करने के साथ-साथ मोदी की भी जानकारियां चाहते हैं। केन्द्रीय सूचना आयुक्त केजरीवाल की मांग पर कितना अमल करता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन केजरीवाल ने इस मांग से एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। जब देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया, तब मोदी की डिग्री का कितना महत्व है यह केजरीवाल ही बता सकते हैं। अब देखना होगा कि केजरीवाल की मांग पर केन्द्रीय सूचना आयुक्त मोदी से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करते है या नहीं।
(एस.पी. मित्तल)  (30-04-2016)
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आईपीएल के मैच जयपुर में नहीं करवाने के लिए सीएम राजे को मिलनी चाहिए शाबासी। --------------------------------------


राजस्थान के जयपुर में आईपीएल के 3 मैच हो या नहीं, इस पर हाईकोर्ट का फैसला 3 मई को आना था। लेकिन इससे पहले ही 29 अप्रैल को आईपीएल गवर्निंग काउंसिल ने यह निर्णय ले लिया कि अब जयपुर में मैच नहीं कराए जाएंगे। असल में यह फैसला गवर्निंग काउंसिल का नहीं, बल्कि राजस्थान की सीएम वसुन्धरा राजे का है। जब मुम्बई हाईकोर्ट ने मुम्बई में एक मई के बाद आईपीएल मैचों पर रोक लगा दी तो सीएम राजे ने आपीएल को अपने जयपुर में आमंत्रित कर लिया। इस पर सीएम राजे की चौतरफा आलोचना हुई। कहा गया कि सूखे के हालात राजस्थान में महाराष्ट्र से भी बदतर है। ऐसे में आईपीएल के मैच जयपुर में नहीं होने चाहिए। 28 अप्रैल को मैंने भी एक ब्लॉग लिखा था जिसमें मुख्यमंत्री राजे को सलाह दी थी कि 3 मई को हाईकोर्ट का फैसला आने से पहले ही आईपीएल के मैच नहीं करवाने की घोषणा कर दी जाए। इसी ब्लॉग में मैंने लिखा कि कार्यवाहक चीफ जस्टिस अजय रस्तोगी जनता के हित में फैसले देने के लिए मशहूर हैं। जस्टिस रस्तोगी ने 27 अप्रैल की सुनवाई में सरकार को निर्देश दिए थे कि आईपीएल के मैच कराने से पहले आगामी दो माह में प्रदेश में पेयजल की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। सरकार को भी इस बात का पता था कि भीषण गर्मी के दिनों में पूरे प्रदेश में पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। यह सही है कि यदि वसुन्धरा राजे अपनी जिद्द पर अड़ी रहती तो आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल कभी भी जयपुर में मैच रद्द नहीं करती। लेकिन चारों तरफ से घिरने के बाद सीएम राजे ने आईपीएल के मैच जयपुर में नहीं कराने का ही निर्णय लिया। सीएम राजे की सहमति के बाद ही गवर्निंग काउंसिल ने जयपुर में आईपीएल के मैच नहीं कराने का निर्णय लिया है। सरकार के किसी जनविरोधी फैसलों की जब हम आलोचना करते हैं तो हमें सरकार के उस निर्णय का भी स्वागत करना चाहिए, जिसमें गलती को सुधारा गया है। यदि जनभावनाओं का सम्मान करते हुए सीएम राजे ने आईपीएल के मैच नहीं कराने का निर्णय लिया है तो फिर राजे को शाबासी भी मिलनी चाहिए। सवाल आईपीएल के मैचों में पानी की बर्बादी का नहीं है। सवाल प्रदेश के वर्तमान हालातों का है। सब जानते हैं कि आईपीएल धनाढ्य लोगों का खेल है इसका क्रिकेट से कोई सरोकार नहीं है। राजस्थान में जब बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तब कुछ लोगों की मौज मस्ती के लिए आईपीएल को करवाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था और जब ऐसे आयोजन में सरकार की भागीदारी हो तो फिर जनता के मन में आक्रोश होगा ही।
(एस.पी. मित्तल)  (30-04-2016)
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Friday 29 April 2016

बुजुर्ग दम्पत्ति छोड़ गए दो करोड़ की एफडी। तंग हाल में गुजारा जीवन।


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अजमेर के नला बाजार स्थित खत्री मंदिर के परिसर में बने एक छोटे से कमरे में रहने वाली 70 वर्षीय बुुजुर्ग महिला श्रीमती कनकलता त्रिपाठी का 27 अप्रैल को निधन हो गया। चूंकि कनकलता के अपनी कोई संतान नहीं थी, इसलिए आस पड़ौस के लोगों ने ही धन राशि एकत्रित कर कनकलता का अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार के बाद जब मंदिर परिसर में रहने वाले लोगों ने कमरे की तलाशी ली, तो सभी की आंखें फटी रह गई। क्योंकि कमरे में रखे लोहे के पुराने बक्सों में गरम कपड़ों के नीचे विभिन्न बैंकों की एफडी मिली। एक अनुमान के मुताबिक अजमेर के डिग्गी चौक स्थित एसबीबीजे ब्रांच, पीआरमार्ग स्थित एसबीआई ब्रांच, कचहरी रोड स्थित आदर्श के्रडिट कॉपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की अनेक एफडी में कोई दो करोड़ रुपए की राशि पाई गई। यह सभी एफडी कनकलता के पति प्रेमनारायण त्रिपाठी ने बनवाई थी। अधिकांश एफडी में कनकलता को ही उत्तराधिकारी बताया गया है। प्रेमनारायण त्रिपाठी का निधन गत वर्ष 31 अक्टूबर को हो गया था, लेकिन इसके बाद भी कनकलता ने संबंधित बैंकों में जमा धनराशि को लेकर अपने उत्तराधिकारी का नाम दर्ज नहीं करवाया। कनकलता की मृत्यु के बाद लगभग दो करोड़ रुपए की राशि बैंकों में यूं ही पड़ी हुई है। 
तंगहाल में गुजारी जिन्दगी:
खत्री मंदिर के आसपास रहने वालों ने बताया कि बुजुर्ग दम्पत्ति ने तंग हाल में पूरा जीवन गुजार दिया। त्रिपाठी अजेमर के विद्युत निगम से सेवानिवृत्त हुए थे। जब कभी बुजुर्ग दम्पत्ति बीमार हुए तो सरकार की नि:शुल्क दवा योजना में ही अपना इलाज करवाया। बुजुर्ग दम्पत्ति ने अपने जीते जी किसी को यह अहसास नहीं होने दिया कि उनके पास करोड़ों रुपया बैंकों में जमा है। खत्री मंदिर की सम्पत्ति के एक छोटे से कमरे में जिस तरह पति पत्नी ने अपना जीवन व्यतीत किया। उसको लेकर आसपास के निवासी भी अब आश्चर्यचकित हैं। 
भतीजे ने जताया दावा
जीते जी त्रिपाठी दम्पत्ति को भले ही कोई संभालने नहीं आया, लेकिन कनकलता की मृत्यु के बाद अब उनका भतीजा अनिल कुमार त्रिपाठी, छत्तसीगढ़ दुर्ग से अजमेर आ गया है। दुर्ग जिले की पाटन तहसील में कार्यरत अनिल कुमार का कहना है कि मैं ही एकमात्र उत्तराधिकारी हंू। अनिल कुमार ने कहा है कि बैंकों में जो दो करोड़ रुपए की राशि जमा है, उससे वह अपने चाचा-चाची की स्मृति में एक मंदिर का निर्माण करवाएगा। 

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(एस.पी. मित्तल)  (29-04-2016)
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स्वर्ण जाति के गरीब लोगों को गुजरात में 10 प्रतिशत आरक्षण देना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। क्या रूक पाएगा पाटीदार आंदोलन? --------------------------------------


गुजरात में जिन स्वर्ण जाति के परिवारों की वार्षिक आय 6 लाख रुपए से कम है, उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। गुजरात की मुख्यमंत्री आनन्दी बेन पटेल ने यह निर्णय पाटीदार समुदाय के आंदोलन को देखते हुए लिया है। गुजरात में पिछड़ी जातियों के लिए पहले ही 49.5 प्रतिशत आरक्षण है। सवाल उठता है कि क्या 49.5 प्रतिशत आरक्षण देना गुजरात सरकार के लिए आसान होगा? सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कह रखा है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं दिया जा सकता। ऐसे में गुजरात सरकार के इस निर्णय को अदालत में चुनौती मिलना तय है। स्वर्ण जातियों के गरीब परिवारों को भी आरक्षण का लाभ मिले इसकी मांग लगातार हो रही है लेकिन गुजरात सरकार ने जो निर्णय लिया है उससे तो योग्य अभ्यर्थियों को और नुकसान होगा व स्पद्र्धा और बढ़ेगी। जहां तक पाटीदार समुदाय के आंदोलन का सवाल है तो पाटीदार चाहते हैं कि जिस प्रकार राजस्थान में जाट समुदाय को ओबीसी मानकर आरक्षण का लाभ दिया है उसी प्रकार गुजरात में भी पाटीदार समाज को ओबीसी का दर्जा दिया जाए? यह बात अलग है कि गुजरात में जिन पिछड़ी जातियों को वर्तमान में आरक्षण का लाभ मिल रहा है उसके साथ सरकार कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकती है इसलिए आर्थिक दृष्टि से कमजोर अगड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देने की घोषणा की गई है लेकिन इससे ना तो अगड़ी जातियों को कोई लाभ मिलेगा और ना ही पाटीदार समाज संतुष्ट होगा। आर्थिक आधार पर आरक्षण का निर्णय तब सफल हो सकता है जब आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाए यानी जाति के आधार पर नहीं आर्थिक आधार पर समाज के सभी वर्गों को आरक्षण का लाभ मिले। पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों का भी मानना है कि क्रीमीलेयर वाले पिछड़ी जातियों के परिवार ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। पिछड़ी जातियों के गरीब परिवार आज भी गरीब हैं। आरक्षण व्यवस्था से पिछड़ी जातियों के अमीर और गरीब की खाई गहरी हो गई है।
(एस.पी. मित्तल)  (29-04-2016)
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दो दूल्हे और दो दुल्हन नाबालिग मिले नायक समाज का सामूहिक विवाह सम्मेलन ------------------------------------------


अजमेर में 29 अप्रैल को नायक समाज के सामूहिक विवाह सम्मेलन में दो दूल्हे और दो दुल्हने नाबालिग मिले। प्रशासनिक अधिकारियों के पहुंचने से पहले ही नाबालिगों के विवाह सम्पन्न हो गए। आजाद पार्क में नायक समाज के सामूहिक विवाह समारोह में नाबालिगों के विवाह की जानकारी मिलने पर तहसीलदार वेद प्रकाश मौके पर पहुंचे। तहसीलदार ने जब आयोजकों से उम्र के कागजात मांगे तो पहले आवश्यक दस्तावेज देने में आनाकानी की, लेकिन बाद में प्रशासन के दबाव की वजह से आयोजकों को दूल्हा दुल्हनों की उम्र के दस्तावेज देने ही पड़े। तहसीलदार ने दस्तावेजों की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में माना कि दुल्हन आरती की उम्र 18 वर्ष के बजाए 16 वर्ष 7 माह 28 दिन ही है। इसी प्रकार एक अन्य जोड़े के दूल्हे सुनील नायक की उम्र 21 वर्ष के बजाए 20 वर्ष दस माह 17 दिन ही है। इसी तरह एक जोड़े राकेश और पूजा के मामले में तो दोनों ही नाबालिग पाए गए। राकेश की उम्र 20 वर्ष 10 माह 26 दिन तथा पूजा की उम्र 17 वर्ष 3 माह 28 दिन ही पाई गई। तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में माना कि यह चारों नाबालिग की श्रेणी में आते हैं। दस्तावेजों की जांच के समय आईसीडीएस की महिला अधिकारी भी उपस्थित थी। रिपोर्ट में इस महिला अधिकारी को निर्देश दिए गए कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए। रिपोर्ट में यह माना गया कि नायक समाज के 22 जोड़ों का विवहा पहले ही चुका था। 
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(एस.पी. मित्तल)  (29-04-2016)
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Thursday 28 April 2016

पर अजमेर में तो सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह और पवित्र मजार पर सजदा करतीं हैं महिलाएं। तो फिर मुम्बई में हाजी अली की दरगाह पर हंगामा क्यों?



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28 अप्रैल को मुम्बई के समुद्र में बनी हाजी अली की दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हंगामा हुआ। दरगाह में महिलाएं प्रवेश करें या नहीं, यह निर्णय दरगाह के ट्रस्ट को ही करना है। लेकिन अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की जो दरगाह है उसमें महिलाएं बेझिझक प्रवेश करती हैं। देशभर के मुस्लिम धर्मगुरु, विद्वान और सियासत करने वाले नेताओं का कहना है कि मुस्लिम धर्म महिलाओं को दरगाह मस्जिद आदि में प्रवेश की इजाजत नहीं देता है। इसलिए महिलाओं के अधिकारों का झंडा बुलंद करने वाली भूमाता ब्रिगेड की मुखिया तृप्ति देसाई को भी हाजीअली की दरगाह में घुसने नहीं दिया जाएगा। वहीं अजमेर की दरगाह में महिलाएं न केवल प्रवेश करती हंै बल्कि आस्ताना शरीफ में बैठकर कुरान भी पढ़ती हैं। इतना ही नहीं ख्वाजा साहब की पवित्र मजार पर सजदा भी करती हैं।
ऐसा नहीं कि यह सब सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही करती हों, यहां बिना किसी भेदभाव के हिन्दू महिलाओं को भी प्रवेश दिया जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह के खादिम बड़ी अकीदत के साथ महिला जायरीन को पवित्र मजार पर जियारत करवाते हैं। जियारत के मौके पर पुरुष जायरीन के सिर पर सूफी परंपरा के अनुरूप पगड़ी बांधी जाती है तो महिलाओं के सिर पर चुनरी ओढ़ाई जाती है। पगड़ी और चुनरी ख्वाजा साहब की मजार पर रखने के बाद जायरीन के सिर पर रखी जाती है। यहां किसी भी प्रकार से औरत और मर्द में कोई भेदभाव नहीं है। ख्वाजा साहब के सालाना उर्स के मौके पर तो महिला कव्वाल दरगाह परिसर में कव्वालियां प्रस्तुत करती हैं। हाजी अली की दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को भले ही शरीयत से जोड़ा जा रहा है, लेकिन अजमेर में महिलाओं के साथ ऐसा कोई भेदभाव नहीं है। यहां महिलाएं अपने सिर पर मखमली और फूलों की चादर रखकर पवित्र मजार पर जाती हंै। यही वजह है कि ख्वाजा साहब की दरगाह में दिन भर महिला जायरीन का तांता लगा रहता है। दरगाह में भारत से ही नहीं बल्कि दुनियाभर से मुस्लिम महिलाएं आती हैं। केटरीना कैफ, विद्या बालन, प्रियंका चौपड़, बिपाशा बसु जैसी फिल्मी हिरोइन भी अपनी फिल्मों की कामयाबी के लिए ख्वाजा साहब की दरगाह में आती है। पाकिस्तान की बहुचर्चित हिरोइन वीना मलिक दरगाह में जियारत कर चुकी हैं। 
तृप्ति के सामने झुक गया था शनि शिंगणापुर मंदिर का ट्रस्ट
महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी, लेकिन तृप्ति देसाई ने अपनी भू-माता ब्रिगेड के साथ मंदिर परिसर में लगी शनि महाराज की प्रतिमा की जबरन पूजा की और इस मंदिर की बरसों पुरानी पंरपरा को तोड़ दिया। तब हिन्दुओं के धर्मगुरु शनि मंदिर के ट्रस्टियों आदि सब ने कहा कि महिलाओं को प्रवेश न देना धर्म से जुड़ा हुआ मामला है, लेकिन किसी ने भी हिन्दू धर्म की परवाह नहीं की और आखिर में ट्रस्ट को भी महिलाएं को प्रवेश देने की घोषणा करनी पड़ी। उस समय तृप्ति के समर्थन में राजनीतिक दलों के नेता भी खड़े हो गए। लेकिन 28 अप्रैल को बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती, जेडीयू के शरद यादव, एमआईएम के हाजी रफत हुसैन आदि ने कहा कि हाजीअली की दरगाह में महिलाओं को प्रवेश देने के मामले को तूल नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह धर्म से जुड़ा हुआ मामला है। यह भी कहा गया कि इससे देश में साम्प्रदायिक तनाव होगा। 
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(एस.पी. मित्तल)  (28-04-2016)
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जयपुर में भी रोक लगनी चाहिए आईपीएल मैचों पर ।


सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करे वसुंधरा राजे सरकार। 
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जयपुर के एसएमएस स्टेडियम में आईपीएल के तीन मैच होंगे या नहीं इसका फैसला आगामी 3 मई को हाईकोर्ट के आदेश से होगा। यह मामला हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस अजय रस्तोगी के सामने विचाराधीन है। जस्टिस रस्तोगी जनहित में निर्णय देने के लिए मशहूर हैं। सब जानते हैं कि आईपीएल में होने वाले मैचों का क्रिकेट खेल से कोई सरोकार नहीं है। यह तो धनाढ्य और मौजमस्ती वाले लोगों का एक शौक है। चूंकि इसमें पैसों की बरसात होती है, इसलिए सब लोग मिलबांटकर खाने में लगे रहते हैं। इस लूट खसोट की वजह से ही आईपीएल के मैचों पर भाजपा और कांग्रेस भी एकजुट है। इस समय आईपीएल की कमान कांग्रेस के राजीव शुक्ला और भाजपा के अनुराग ठाकुर के हाथों में हैं। 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कह दिया है कि महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति को देखते हुए एक मई के बाद आईपीएल का कोई भी मैच मुम्बई में न कराया जाए। ऐसा ही फैसला मुम्बई हाईकोर्ट ने पहले दे दिया था। इसके बाद राजीव शुक्ला और अनुराग ठाकुर की टोली ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से सम्पर्क साधा और आईपीएल के तीन मैच जयपुर में कराने का फैसला किया। 
इसे बेहद अफसोसनाक कहा जाएगा कि वसुंधरा राजे की सरकार आईपीएल के मैच कराने के लिए लालायित है। जबकि राजस्थान में सूखे की स्थिति महाराष्ट्र से भी बदत्तर है। 3 मई को हाईकोर्ट का फैसला आए, उससे पहले ही वसुंधरा राजे को चाहिए कि वह आईपीएल मैच नहीं करवाने की घोषणा कर दे। शर्मनाक बात तो यह है कि आईपीएल मैच कराने के लिए हाईकोर्ट में कुतर्क दिए जा रहे है। इसलिए जस्टिस रस्तोगी ने आगामी दो माह में राजस्थान में पेयजल की स्थिति के बारे में सरकार से रिपोर्ट मांगी है। सब जानते हैं कि जो सरकार आईपीएल मैचों के लिए ललायित है, वह हाईकोर्ट में झूठी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। हकीकत यह है कि पूरे प्रदेश में भीषण गर्मी में पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। अजमेर जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शहर में तीन दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई कम प्रेशर से मात्र एक घंटे के लिए हो रही है। जब अजमेर जैसे शहर के हालात ऐसे हैं तो राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। अच्छा हो कि हाईकोर्ट की फटकार से पहले ही आईपीएल मैच नहीं कराने की घोषणा कर दी जाए। 

(एस.पी. मित्तल)  (28-04-2016)
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दलित नाथूलाल को आखिर अजमेर कलेक्टर ने ढाबे की अनुमति क्यों नहीं दी? इसलिए होता है दलालों का बोलबाला।


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सत्ता के दलाल कैसे मालामाल होते हैं, इसका ताजा और पुख्ता उदाहरण खटीक जाति के नाथूलाल को ढाबा लगाने की अनुमति नहीं मिलना है। पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम वसुंधरा राजे पूरा जोर लगा रहे हैं कि युवाओं को किसी भी तरह रोजगार उपलब्ध करवाया जाए। इसके लिए स्किल डवलमेंट का अभियान पूरे देश में जोर शोर से चालया जा रहा है, लेकिन लालफीताशाही और भ्रष्टाचार की वजह से पीएम मोदी और सीएम राजे के मनसबूों पर पानी फिर रहा है। अजमेर के निकटवर्ती रेवत (कडैल) गांव की कृषि भूमि पर ढाबा लगाने के लिए खटीक जाति के नाथूलाल ने अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया। इस आवेदन में कृषि भूमि का उपयोग वाणिज्यिक करने का आग्रह किया गया। कलेक्टर ने भू उपयोग परिवर्तन के लिए संबंधित विभागों की एनओसी लेने के आदेश जारी किए। नाथूलाल ने पूरा जोर लगाकर तहसीलदार, उपखंड अधिकारी नगर नियोजक आदि सभी से एनओसी प्राप्त कर ली और इंडिया रोड कॉन्फ्रेंस के नियमों के अनुरूप 400 मीटर भूमि सरकार को समर्पित भी कर दी। इतना ही नहीं भू-रूपांतरण शुल्क 64 हजार 223 रुपए सरकार के खजाने में जमा भी कर दिए। नाथूलाल पिछले एक वर्ष से इस प्रक्रिया में लगा हुआ था, उसे उम्मीद थी कि इतना सब कुछ होने पर उसकी 3 हजार वर्गमीटर जमीन का भूरूपांतरण हो जाएगा। और फिर वह ढाबा लगाकर आजीविका लेगा। लेकिन नाथूलाल के अरमानों पर उस समय पानी फिर गया, जब जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक ने नाथूलाल का भूरूपांतरण आवेदन निरस्त कर दिया। आवेदन को निरस्त करने का कारण भूमि पर लगा विद्युत निगम  का ट्रांसफार्मर बताया गया। ट्रांसफार्मर की आड़ लेकर आवेदन को निरस्त करने पर दलित नाथूलाल को भारी आश्चर्य हो रहा है। क्योंकि इस ट्रांसफार्मर की वजह से ही उसने चार सौ मीटर भूमि सरकार को समर्पित की थी। यह भूमि भी सरकार के नाम से राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज भी हो गई। यानि जो ट्रांसफार्मर लगा है, वह अब सरकारी भूमि पर है। ऐसी स्थिति में क्या ट्रांसफार्मर की आड़ लेकर आवेदन को निरस्त नहीं किया जा सकता? इतना ही नहीं रेवत गांव के जिस भूखंड का रूपांतरण नाथूलाल करवा रहा है, उसके समीप ही 19 बीघा कृषि भूमि का वाणिज्यिक उपयोग करने का आदेश कलेक्टर ने ही दिया है। यह आदेश स्क्रप्टंम फ्रूट कंपनी को किया गया है। ट्रांसफार्मर स्क्रप्टंम फ्रूट कंपनी और दलित नाथूलाल के भूखंड की सीमा पर लगा हुआ है। यदि ट्रांसफार्मर की वजह से नाथूलाल के भूखंड का भूउपयोग नहीं बदला जा सकता है तो फिर इसी ट्रांसफार्मर की वजह से स्क्रप्टंम कंपनी  की 19 बीघा भूमि भी वाणिज्य नहीं की जा सकती। दलित नाथूलाल को अब यह कोई समझाने वाला नहीं है कि कंपनी के धनाढ्य मालिकों और एक दलित में बहुत फर्क होता है। कंपनी के मालिकों को पता होता है कि लालफीताशाही से किस प्रकार से अनुमति ली जाती है, जबकि बेचारा नाथूलाल जिला कलेक्टर के दफ्तर के चक्कर काटता ही रह गया। नाथूलाल ने अपनी पीड़ा को रोते हुए बताया कि अपनी तीनों पुत्रियों के साथ वह कलेक्टर आरुषि मलिक के सामने गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। दलित नाथूलाल को अब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के तीन मई को अजमेर आने का इंतजार है। नाथूलाल अपनी तीनों पुत्रियों के साथ मुख्यमंत्री से मिलकर अजमेर जिला प्रशासन की करतूत के बारे में जानकारी देगा। 

(एस.पी. मित्तल)  (28-04-2016)
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Wednesday 27 April 2016

कलेक्टर की अनुमति के बगैर अजमेर में लगाया रेमन सर्कस


अब अदालत से मांगा स्टे
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आनासागर के भराव क्षेत्र रीजनल कॉलेज के सामने रिक्त भूमि पर जो रेमन सर्कस लगा हुआ है, उसकी अनुमति अभी तक भी जिला कलेक्टर से नहीं मिली है। कलेक्टर की अनुमति के अभाव में सर्कस का संचालन न रोका जाए, उसको लेकर अब न्यायालय में स्टे मांगा गया है।
रेमन सर्कस के प्रबंधक जाकिर खान ने 27 अप्रैल को स्थानीय सिविल अदालत में एक वाद प्रस्तुत किया है। इस वाद में स्वयं जाकिर खान ने यह स्वीकार किया है कि जिला कलेक्टर से सर्कस संचालन की अनुमति अभी तक नहीं मिली है। इस अनुमति के अभाव में सर्कस के संचालन को न रोका जाए इसलिए स्टे दिया जाए। वाद में बताया गया है कि सर्कस संचालन के लिए गत 28 फरवरी को भूमि के मालिक गोविन्द सिंह तेली के साथ एक अनुबंध किया गया था। इसके बाद ही सर्कस में काम करने वाले दो सौ कर्मचारी सर्कस स्थल पर आ गए। सर्कस के लिए जब जिला कलेक्टर से अनुमति मांगी तो विभिन्न विभागों से अनुमति लाने को कहा गया। इस पर पुलिस अधीक्षक, अजमेर विकास प्राधिकरण, वाणिज्य कर विभाग, उपखंड अधिकारी, विद्युत निरीक्षक, अग्निशमन विभाग आदि से अनुमति प्राप्त कर ली गई। जब इन सब अनुमतियों को कलेक्टर के सामने प्रस्तुत किया तो कलेक्टर ने कह दिया कि भूमि का विवाद राजस्व मंडल में विचाराधीन है। इसलिए सर्कस की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
वाद में कहा गया कि संबंधित विभागों की अनुमति मिलने और कलेक्टर कार्यालय से अनुमति मिलने की उम्मीद को देखते हुए सर्कस को स्थापित किया गया है, इसलिए अब आगामी 23 मई तक सर्कस के संचालन को ना रोका जाए। वाद में संबंधित विभागों के विरूद्ध स्टे देने की मांग की गई है। इस मामले में आगामी 29 अप्रैल को न्यायालय में सुनवाई होगी। सर्कस प्रबंधक की ओर से अनिल गौड, विवेक पाराशर, दिनेश राठौड़, पीयूष जैन आदि पैरवी कर रहे है।
(एस.पी. मित्तल)  (27-04-2016)
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40 हजार की रिश्वत लेते एडीए उपायुक्त के.के.गोयल गिरफ्तार।



यह रिश्वतखोरी अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के लिए भी चुनौती है। 
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27 अप्रैल को दिन दहाड़े 40 हजार रुपए की रिश्वत लेते अजमेर विकास प्राधिकरण के उपायुक्त के.के.गोयल (आरएएस) को एसीबी ने रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। एसीबी के एएसपी राममूर्ति जोशी ने बताया कि आदर्श नगर में एक भूखंड के नियमन के लिए गोयल ने 60 हजार रुपए की मांग की थी। 20 हजार रुपए लेने के बाद 27 अप्रैल को 40 हजार रुपए की दूसरी किश्त ली जा रही थी, तब गोयल को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया। जोशी ने बताया कि गोयल के दलाल रोहित जैन और विनोद जोशी ने ही पहले रिश्वत की राशि एडीए के कार्यालय में ही ली और फिर जब यह राशि गोयल को दी गई तो सभी लोग गिरफ्त में आ गए। यह रिश्वत भूखंड मलिक फहजान हसन से ली जा रही थी। एसीबी ने जिस तरह एडीए परिसर में ही रिश्वतखोर दलालो और उपायुक्त को पकड़ा है, वह अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के लिए भी चुनौती है। हेड़ा यह कह कर नहीं बच सकते कि इस रिश्वतखोरी से उनका कोई सरोकार नहीं है। घर में यदि कोई गड़बड़ी होती है तो मुखिया ही जिम्मेदार होता है। आज की घटना से साफ जाहिर है कि एडीए में खुलेआम रिश्वतखोरी हो रही है। दलालों और भ्रष्ट अफसरों का इतना नंगा नाच है कि दलाल एडीए परिसर में ही रिश्वत लेकर सरकारी कक्ष में ही अफसरों को धनराशि दे रहे हैं। यदि अध्यक्ष हेड़ा का डर होता तो के.के.गोयल उपायुक्त के कक्ष में ही रिश्वत लेने की हिम्मत नहीं करते। यह माना कि गोयल ने जो 60 हजार रुपए की रिश्वत ली, उसका हिस्सा हेड़ा तक नहीं पहुंच रहा, लेकिन यह बात तो तय है कि हेड़ा के कार्यकाल में जो प्रशासनिक व्यवस्था है उसमें रिश्वत ली जा सकती है। हेड़ा को यदि एडीए में रिश्वतखोरी रोकनी है तो उन्हें कामकाज में पारदर्शिता लानी होगी। भूखंड नियमन के नियम बने हुए हैं, लेकिन अधिकारी बेवजह लोगों को परेशान करते हैं, इसलिए परेशान व्यक्ति रिश्वत देने के लिए मजबूर होता है। यदि किसी क्षेत्र में एक भूखंड का नियमन हो गया है तो फिर उस क्षेत्र के अन्य भूखंडों का नियमन होना ही चाहिए। रिश्वतखोर अधिकारी नियमनशुदा भूखंड के पास वाले भूखंड का नियमन करने के लिए भी राशि वसूलते हैं। हेड़ा को चाहिए कि वे एडीए में ऐसा सिस्टम लागू करें, जिसमें आम लोगों के काम सरलता के साथ हो सके। हेड़ा के सामने दो पूर्ववर्ती अध्यक्ष धर्मेश जैन और नरेन शाहनी के उदाहरण हैं। दलालों की वजह से ही यह दोनों अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। धर्मेश जैन सीडी कांड में और नरेन शाहनी नियमन के मामलों में ही मात्र दो-दो वर्ष की अवधि में घर चले गए। जैन की वजह से भाजपा को और शाहनी की वजह से कांग्रेस को नीचा देखना पड़ा। आज एडीए के अंदर जो रिश्वतखोरी पकड़ी गई है, उसे हेड़ा और राज्य की भाजपा सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए। उम्मीद है कि हेड़ा धर्मेश जैन और नरेन शाहनी जैसे हालात बनने नहीं देंगे। 

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(एस.पी. मित्तल)  (27-04-2016)
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आरुषि मलिक की जगह गौरव गोयल होंगे अजमेर के कलेक्टर।



अजमेर में 10 आईएएस इधर-उधर।
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राज्य सरकार ने 27 अप्रैल को 48 आईएएस अधिकारियों की तबादला सूची जारी की है। इस सूची की अनुसार अब गौरव गोयल अजमेर के कलेक्टर होंगे, जबकि डॉ. आरुषि मलिक को जयपुर में पंचायती राज विभाग में स्वच्छता का निदेशक बनाया गया है। इसी प्रकार गोयल राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम के एमडी के पद से स्थानांतरित होकर अजमेर आ रहे हैं। डॉ. मलिक की स्वच्छता के प्रति इच्छा शक्ति को देखते हुए उन्हें अब प्रदेश भर में स्वच्छता जिम्मेदारी दी है। अजमेर में डॉ. मलिक ने नालों की सफाई और बावडिय़ों से कचरा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तबादला सूची में दस अजमेर में आईएएस इधर-उधर हुए हैं। अजमेर डिस्कॉम के एमडी हेमंत गेरा को जयपुर नगर निगम का आयुक्त, बीकानेर स्थित उपनिदेशन विभाग के आयुक्त गिरीराज सिहं कुशवाह को अजमेर विकास प्राधिकरण का आयुक्त, बाल अधिकारिता विभाग जयपुर के आयुक्त हंसा सिंह देव को अजमेर में राजस्व मंडल का सदस्य तथा राजस्व मंडल के सदस्य अशफाक हुसैन को दौसा का कलेक्टर बनाया गया है। एडीए के आयुक्त भंवर लाल मेहरा को बाल अधिकार संरक्षण आयोग का सचिव, राजस्व मंडल के सदस्य मोडूदान देथा को एचसीएम रीपा का अतिरिक्त निदेशक, आयर्वुेद विभाग की अतिरिक्त निदेशक विनीता श्रीवास्तव को अजमेर जिला परिषद का सीईओ तथा एडीए के सचिव एच.गुईटे को जयपुर स्थित राज्य वित्त आयोग का विशेष अधिकारी नियुक्त किया गया है। 

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(एस.पी. मित्तल)  (27-04-2016)
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नवज्योति ने उजागर किया तांत्रिक बाबा का निर्दयी चेहरा अब ढोंगी और तांत्रिक बाबाओं से सबक लें नासमझ लोग।



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27 अप्रैल को दैनिक नवज्योति के ग्रामीण संस्करण के पृष्ठ तीन पर एक खबर प्रकाशित हुई है। इस खबर में गांव के एक तथाकथित बाबा श्री किशन भील का निर्दयी चेहरा उजागर किया गया है। नवज्योति के केकड़ी संवाददाता सुरेन्द्र जोशी ने अपनी खबर में लिखा है कि बुखार से पीडि़त छह माह के साहिल को जब केकड़ी के निकट डोरिया गांव के बाबा श्रीकिशन के पास ले जाया गया तो उसने सूत से बनी तीन गोलियों को आग में गर्म कर मासूम साहिल के सीने पर रख दिया। इससे मासूम साहिल के सीने में फफोले हो गए। केकड़ी के सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने साहिल को अजमेर के लिए रैफर कर दिया और अब साहिल का इलाज अजमेर के जेएलएन अस्पताल में चल रहा है। दैनिक नवज्योति अखबार इस बात के लिए बधाई का हकदार है कि उसने ग्रामीण क्षेत्र में आए दिन होने वाली तांत्रिक बाबाओं की घटनाओं उजागर किया है।  आम लोगों को भी ढोंगी और तांत्रिक बाबाओं से बचना चाहिए। यह माना कि अखबारों मे ंही इन ढोंगी और तांत्रिक बाबाओं के विज्ञापन छपते हैं, लेकिन इसके साथ ही तांत्रिक बाबाओं के चेहरों को बेनकाब करने वाली खबरें भी छपती है। आज कल हर अखबार का प्रबंधन यह पहले ही कह देता है कि प्रकाशित विज्ञापनों के सच होने की जिम्मेदारी उनकी नहीं है। ऐसे में पाठकों को ही ढोंगी और तांत्रिक बाबाओं के विज्ञापनों के झांसे में नहीं आना चाहिए। 
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(एस.पी. मित्तल)  (27-04-2016)
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Tuesday 26 April 2016

देवनानी के प्रभारी मंत्री के पद से हटने से क्या अजमेर की राजनीति पर असर पड़ेगा?


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इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रभारी मंत्री होने के नाते वासुदेव देवनानी का अजमेर की भाजपा राजनीति में दबदबा था। देवनानी के साथ-साथ अजमेर शहर की ही दूसरी विधायक श्रीमती अनिता भदेल भी राज्यमंत्री हैं, लेकिन प्रभारी मंत्री होने के नाते सरकारी बैठकों में हमेशा देवनानी को ही प्रथमिकता मिलती थी। देवनानी के प्रभारी मंत्री पद से हटने के बाद श्रीमती भदेल के समर्थक और देवनानी से ईष्या रखने वाले भाजपा के नेता खुश हो सकते हैं। लेकिन इतना तो जरूर है कि अब प्रभारी मंत्री के दर्शन अजमेर में कभी कभार ही होंगे। सरकार ने खाद्य मंत्री हेमसिंह भडाणा को अजमेर का नया प्रभारी मंत्री नियुक्त किया है। ऐसा नहीं कि अकेले देवनानी को ही प्रभारी मंत्री के पद से हटाया गया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उन सभी को हटाया है जो अपने गृह जिले के प्रभारी मंत्री थे। इसमें गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया भी शामिल हैं। देवनानी के विरोधी भी इस बात को तो स्वीकार करेंगे कि देवनानी सहज और सरलता के साथ उपलब्ध रहते हैं। देवनानी के फॉयसागर रोड स्थित आवास पर हमेशा भीड़ लगी रही है। देवनानी लोगों से मिलने में भी कोई गुरेज नहीं करते हैं। अजमेर में उर्स मेला हो या चेटीचंड, महावीर जयंती आदि के जुलूस। सभी मौकों पर देवनानी प्रभारी मंत्री की हैसियत से प्रशासनिक बैठकें करते रहते थे। देवनानी स्कूली शिक्षा के स्वतंत्र प्रभार के मंत्री हैं। इस वजह से भी देवनानी का आम लोगों के साथ सीधा जुड़ाव है। प्रभारी मंत्री पद से हटने के बाद अब देवनानी जिला स्तरीय प्रशासनिक बैठकों में कम ही नजर आएंगे। अब छोटे-छोटे मुद्दों पर प्रभारी मंत्री की बैठकें भी नहीं होंगी। नवनियुक्त प्रभारी मंत्री भड़ाणा को जब सुविधा होगी तभी अजमेर आएंगे। इसका खामियाजा अजमेर के लोगों को ही उठाना पड़ेगा। 
राजनीति में प्रभाव कम होगा?
प्रभारी मंत्री वजह से अजमेर जिले की राजनीति में देवनानी का दखल था। चाहे वंदना नोगिया को जिला प्रमुख बनाने का मामला हो या धर्मेन्द्र गहलोत कीमेयर के पद पर ताजपोशी। सभी में देवनानी की एक तरफा चली। अरविंद यादव भी देवनानी की वजह से अब तक शहर भाजपा के पद पर कायम हैं। माना जा रहा है कि प्रभारी मंत्री के पद से हटने के बाद अजमेर जिले की राजनीति में देवनानी का दबदबा कम होगा। वंदना नोगिया धर्मेन्द्र गहलोत, अरविंद यादव जैसे भाजपा नेताओं को अब अपने दम पर राजनीति करनी होगी। राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकर सिंह लखावत, महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल, देहात भाजपा अध्यक्ष बी.पी.सारस्वत, मसूदा की विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, संसदीय सचिव और पुष्कर के विधायक सुरेश रावत आदि भाजपा नेता अब देवनानी को अजमेर की राजनीति में प्रभावहीन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। प्रभारी मंत्री का पद जाने के बाद अनिता भदेल भी अब देवनानी के बराबर आ गई हंै। देखना होगा कि इन सब राजनीतिक चुनौतियों से देवनानी किस प्रकार मुकाबला करते हैं। 
(एस.पी. मित्तल)  (26-04-2016)
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उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में श्मशान की राख से नहीं, गोबर की राख से होती है आरती। भस्म को लेकर विवाद छिड़ा।


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आम धारणा है कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में रखे शिवलिंग पर श्मशान की राख से आरती होती है। इस आरती को देखने के लिए भारत से ही नहीं दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं। लेकिन उज्जैन में इन दिनों चल रहे कुंभ मेले के मौके पर आरती में काम आने वाली राख को लेकर विवाद हो गया है। कुंभ मेले में आए तांत्रिक कापालिक बाबा ने कहा कि महाकालेश्वर में श्मशान की राख के बजाए गोबर की राख से आरती हो रही है। यह सरासर श्रद्धालुओं की भावनाओं के विपरित है। तांत्रिक बाबा का कहना है कि महाकाल के मंदिर में श्मशान की राख से ही आरती होनी चाहिए। वे स्वयं अपने समर्थकों के साथ श्मशान की राख लेकर जाएंगे और महाकाल की आरती करेंगे। उन्होंने कहा कि श्मशान की राख के बिना महाकाल की आरती का कोई मतलब नहीं है। वहीं महानिर्वाणी के अखाड़े के महंत प्रकाशपुरी महाराज ने कहा कि महाकाल के मंदिर में बरसों से गाय के गोबर से बने उपले से तैयार की गई भस्म से ही भस्म आरती होती है। उन्होंने कहा कि तांत्रिक कापालिक बाबा बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं। 
राख पर विवाद क्यों:
हालांकि यह पूरी तरह आस्था और श्रद्धा का मामला है, लेकिन यह बात तो सही है कि अब राख पर विवाद हो रहा है, जो राख किसी काम की नहीं होती वह भी अचानक विवाद का विषय हो गई है। हम सब ने देखा है कि श्मशान में शव को जलाने के बाद राख इधर-उधर उड़ती रहती है। शव के जलने के बाद उस राख का कोई महत्त्व नहीं होता। वैसे भी राख मानव शरीर की नहीं बल्कि शव को जलाने वाली लकडिय़ों की होती है। हो सकता है कि कुछ लोक तांत्रिक क्रियाओं में श्मशान की राख का इस्तेमाल करते हों, लेकिन जब राख हो ही गई तो उसका क्या महत्त्व होगा। यह अपने आप में महत्त्वपूर्ण सवाल है? अच्छा हो कि राख पर विवाद करने की बजाए जिंदा मनुष्य पर विवाद हो। मनुष्य का जीवन किस प्रकार कष्ट मुक्त हो इस पर विचार होना चाहिए। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में श्मशान अथवा गोबर की राख से आरती होती है, यह विवाद का मुद्दा नहीं होना चाहिए। अच्छा हो भगवान शिव आम मनुष्य का जीवन सरल और सुखमय बनाएं। देवताओं में भगवान शिव को तो भोले भंडारी कहा गया है। 

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(एस.पी. मित्तल)  (26-04-2016)
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Monday 25 April 2016

तीन मई को सीएम वसुंधरा राजे अजमेर आएंगी। कलेक्टर भी हुईं सक्रिय।


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प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे आगामी 3 मई को एक दिवसीय दौरे पर अजमेर आएंगी। तय कार्यक्रम के मुताबिक सीएम राजे अजमेर के आजाद पार्क में आयोजित एकल विद्यालय के कार्यक्रम में भाग लेंगी। एकल विद्यालय के अजमेर अंचल के प्रभारी सुभाष काबरा ने बताया कि दोपहर 1 बजे शुरू होने वाले कार्यक्रम में एकल विद्यालयों के शिक्षक और शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों के परिवारों से जुड़े सदस्य भाग लेंगे। सीएम के दौरे के संबंध में सीएम सचिवालय के अधिकारियों ने अजमेर के प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी से भी जानकारी एकत्रित की है। सीएम के दौरे के मद्देनजर कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक भी सक्रिय हो गई हैं, कलेक्टर का प्रयास हंै कि जो सरकारी योजना तैयार है, उनका उद्घाटन भी 3 मई को सीएम से करवा लिया जाए। पुष्कर के विधायक और संसदीय सचिव सुरेश रावत भी तैयार रोप वे का उद्घाटन करवाने के बहाने सीएम को पुष्कर लाने का प्रयास कर रहे हैं। रोप वे को सवित्री माता मंदिर की पहाड़ी पर बनाया गया है। रावत को लगता है कि यदि सीएम ने उद्घाटन की सहमति देती हैं तो फिर जिला प्रशासन भी रोप-वे शुरू रने की सहमति जारी कर देगा। फिलहाल रोप-वे की स्वीकृति जिला प्रशासन के मकडज़ाल में उलझी हुई है। 25 अप्रैल को पुष्कर की पूर्व विधायक और कांग्रेस नेत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ  के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन भी किया गया और जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर मांग की गई कि रोप-वे शीघ्र शुरू करवाया जाए। ताकि पुष्कर आने वाले श्रद्धालु पहाड़ी पर बने सावित्री माता मंदिर के दर्शन कर सकें। श्रीमती अख्तर ने सवाल उठाया जब रोप-वे का काम पुरा हो चुका है तो फिर उसे शुरू करने में विलम्ब क्यों किया जा रहा है? उन्होंने कहा कि पुष्कर के तीर्थ पुरोहितों और नागरिकों की मांग पर ही कांग्रेस के गत शासन में रोप-वे की मंजूरी सरकार से दिलवाई गई थी। 
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(एस.पी. मित्तल)  (25-04-2016)
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डोल्कन ईसा को आतंकी और मसूद अजहर को समाजसेवी मानता है चीन। क्या चीन से डर गया भारत? क्यों किया ईसा का वीजा रद्द?


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25 अप्रैल को भारत ने चीन के निर्वासित मुस्लिम नेता डोल्कन ईसा का वीजा रद्द कर दिया है। ईसा चीन के शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों के नेता हैं। ईसा चीन में लोकतंत्र और मुसलमानों को धार्मिक अधिकार दिलवाने की मांग कर रहे हैं। ईसा का आरोप है कि चीन के निर्दयी शासक मुसलमानों का कत्लेआम करते हैं। यहां तक मुस्लिम धर्म के अनुरूप रहने भी नहीं दिया जाता। चीन सरकार की ज्यादतियों से तंग आकर खुद ईसा को चीन छोडऩा पड़ा है और अब वे जर्मनी में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। चीन से बाहर रहने वाले उइगर मुसलमानों को एकत्रित कर ईसा दुनियाभर में चीन के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। इसी सिलसिले में ईसा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित एक समारोह में भाग लेने के लिए भारत आ रहे थे। इसके लिए भारत सरकार ने वीजा भी जारी कर दिया था, लेकिन चीन ने भारत के वीजा देने का विरोध किया तो भारत ने 25 अप्रैल को ईसा का वीजा रद्द कर दिया। कहा जा रहा है कि चीन के दबाव में ही ईसा का वीजा रद्द किया गया। यानि भारतचीन से डर गया। हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय का बचाव में कहना है कि ईसा के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने की जानकारी नहीं थी, इसलिए पहले वीजा जारी किया, लेकिन रेडकॉर्नर नोटिस की जानकारी मिलते ही वीजा रद्द कर दिया गया। यदि हमारे विदेश मंत्रालय का यह कथन सही है तो यह बेहद शर्मनाक बात है, क्योंकि चीन ने इंटरपोल पर दबाव डाल कर 1997 में ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवा दिया था। क्या हमारे विदेश मंत्रालय को 19 वर्ष में भी रेड कॉर्नर नोटिस की जानकारी नहीं हुई? जबकि ईसा तो अपनी वल्र्ड उइगर कॉन्फ्रेंस के जरिए पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। असल में चीन के दबाव के बाद हमारा विदेश मंत्रालय अब फेस सेविंग कर रहा है। यह बात जाहिर हो गईहै कि भारत चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। जहां तक डोल्कन ईसा और रेड कॉर्नर नोटिस का सवाल है तो इस नोटिस के बाद भी ईसा यूएस, जापान जैसे लोकतांत्रिक देशों की यात्रा कर आए हैं और जर्मनी में रह कर उइगर मुसलमानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 
चीन का दोहरा चरित्र:
डोल्कन ईसा का भारत का वीजा रद्द करवाकर चीन ने अपना दोहरा चरित्र उजागर किया है। हाल ही में जब भारत ने पाकिस्तान में बैठे आतंकी मसूद अजहर को प्रतिबंधित सूची में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखा तो चीन ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर भारत का प्रस्ताव रद्द करवा दिया। चीन डोल्कन ईसा को तो आतंकी मानता है लेकिन भारत में खुलेआम आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले मसूद अजहर को आतंकी नहीं समाजसेवी मानता है। यानि चीन मुसलमानों में भी फर्क करता है। चीन एक तरफ तो अपने शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों का कत्लेआम करता है तो दूसरी ओर मसूद अजहर जैसे भारत विरोधी मुसलमान की मदद करता है। भारत के नागरिकों खास कर मुसलमानों को चीन के इस दोहरे चरित्र को समझना चाहिए। असल में चीन न तो पाकिस्तान और न भात का हितैषी है। चीन को सिर्फ अपना स्वार्थ दिखता है। अच्छा हो मसूद अजहर जैसे पाकिस्तानी भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम दिलवाने के बजाए, डोल्कन ईसा के साथ मिल कर चीन में रहने वाले उइगर मुसलमानों की मदद करें। भारत में तो मुसलमान सुकून और अपने धर्म के अनुरूप रह ही रहे है। 
पीएम मोदी की स्थिति पर भी असर:
पीएम नरेन्द्र मोदी बार-बार दावा करते हैं कि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा कायम किया है। यदि भारत का रुतबा वाकई बढ़ा होता हो डोल्कन ईसा का वीजा रद्द नहीं होता। जब चीन मसूद अजहर को समाजसेवी बता सकता है, तो हम डोल्कन ईसा को मानवाधिकारों का रक्षक क्यों नहीं मानते? मेरा मानना है कि ईसा के मामले को लेकर उन  कलाकारों, साहित्यकारों,बुद्धिजीवियों आदि को सामने आना चाहिए, जिन्होंने गत वर्ष भारत में असहिष्णुता को लेकर पुरस्कार लौटाए थे। इस मामले में मुस्लिम धर्मगुरुओं को भी आगे आना चाहिए। 
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(एस.पी. मित्तल)  (25-04-2016)
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डोल्कन ईसा को आतंकी और मसूद अजहर को समाजसेवी मानता है चीन। क्या चीन से डर गया भारत? क्यों किया ईसा का वीजा रद्द?


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25 अप्रैल को भारत ने चीन के निर्वासित मुस्लिम नेता डोल्कन ईसा का वीजा रद्द कर दिया है। ईसा चीन के शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों के नेता हैं। ईसा चीन में लोकतंत्र और मुसलमानों को धार्मिक अधिकार दिलवाने की मांग कर रहे हैं। ईसा का आरोप है कि चीन के निर्दयी शासक मुसलमानों का कत्लेआम करते हैं। यहां तक मुस्लिम धर्म के अनुरूप रहने भी नहीं दिया जाता। चीन सरकार की ज्यादतियों से तंग आकर खुद ईसा को चीन छोडऩा पड़ा है और अब वे जर्मनी में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। चीन से बाहर रहने वाले उइगर मुसलमानों को एकत्रित कर ईसा दुनियाभर में चीन के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। इसी सिलसिले में ईसा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित एक समारोह में भाग लेने के लिए भारत आ रहे थे। इसके लिए भारत सरकार ने वीजा भी जारी कर दिया था, लेकिन चीन ने भारत के वीजा देने का विरोध किया तो भारत ने 25 अप्रैल को ईसा का वीजा रद्द कर दिया। कहा जा रहा है कि चीन के दबाव में ही ईसा का वीजा रद्द किया गया। यानि भारतचीन से डर गया। हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय का बचाव में कहना है कि ईसा के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने की जानकारी नहीं थी, इसलिए पहले वीजा जारी किया, लेकिन रेडकॉर्नर नोटिस की जानकारी मिलते ही वीजा रद्द कर दिया गया। यदि हमारे विदेश मंत्रालय का यह कथन सही है तो यह बेहद शर्मनाक बात है, क्योंकि चीन ने इंटरपोल पर दबाव डाल कर 1997 में ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवा दिया था। क्या हमारे विदेश मंत्रालय को 19 वर्ष में भी रेड कॉर्नर नोटिस की जानकारी नहीं हुई? जबकि ईसा तो अपनी वल्र्ड उइगर कॉन्फ्रेंस के जरिए पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। असल में चीन के दबाव के बाद हमारा विदेश मंत्रालय अब फेस सेविंग कर रहा है। यह बात जाहिर हो गईहै कि भारत चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। जहां तक डोल्कन ईसा और रेड कॉर्नर नोटिस का सवाल है तो इस नोटिस के बाद भी ईसा यूएस, जापान जैसे लोकतांत्रिक देशों की यात्रा कर आए हैं और जर्मनी में रह कर उइगर मुसलमानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 
चीन का दोहरा चरित्र:
डोल्कन ईसा का भारत का वीजा रद्द करवाकर चीन ने अपना दोहरा चरित्र उजागर किया है। हाल ही में जब भारत ने पाकिस्तान में बैठे आतंकी मसूद अजहर को प्रतिबंधित सूची में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखा तो चीन ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर भारत का प्रस्ताव रद्द करवा दिया। चीन डोल्कन ईसा को तो आतंकी मानता है लेकिन भारत में खुलेआम आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले मसूद अजहर को आतंकी नहीं समाजसेवी मानता है। यानि चीन मुसलमानों में भी फर्क करता है। चीन एक तरफ तो अपने शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों का कत्लेआम करता है तो दूसरी ओर मसूद अजहर जैसे भारत विरोधी मुसलमान की मदद करता है। भारत के नागरिकों खास कर मुसलमानों को चीन के इस दोहरे चरित्र को समझना चाहिए। असल में चीन न तो पाकिस्तान और न भात का हितैषी है। चीन को सिर्फ अपना स्वार्थ दिखता है। अच्छा हो मसूद अजहर जैसे पाकिस्तानी भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम दिलवाने के बजाए, डोल्कन ईसा के साथ मिल कर चीन में रहने वाले उइगर मुसलमानों की मदद करें। भारत में तो मुसलमान सुकून और अपने धर्म के अनुरूप रह ही रहे है। 
पीएम मोदी की स्थिति पर भी असर:
पीएम नरेन्द्र मोदी बार-बार दावा करते हैं कि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा कायम किया है। यदि भारत का रुतबा वाकई बढ़ा होता हो डोल्कन ईसा का वीजा रद्द नहीं होता। जब चीन मसूद अजहर को समाजसेवी बता सकता है, तो हम डोल्कन ईसा को मानवाधिकारों का रक्षक क्यों नहीं मानते? मेरा मानना है कि ईसा के मामले को लेकर उन  कलाकारों, साहित्यकारों,बुद्धिजीवियों आदि को सामने आना चाहिए, जिन्होंने गत वर्ष भारत में असहिष्णुता को लेकर पुरस्कार लौटाए थे। इस मामले में मुस्लिम धर्मगुरुओं को भी आगे आना चाहिए। 
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Sunday 24 April 2016

देश की रक्षा में रावत समाज की अहम भूमिका। शहीदों के परिजनों का हुआ सम्मान।


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 विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री उमाशंकर ने कहा है कि देश की सुरक्षा में रावत समाज का महत्वपूर्ण योगदान है। समाज के युवाओं ने अपनी मेहनत और ताकत के बल पर सेना में अपनी अहम जगह बनाई है। 24 अप्रैल को जिले के ब्यावर कस्बे के निकट आशापुरा माता मंदिर परिसर में आयोजित रावत समाज के प्रथम शहीद सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए उमाशंकर ने कहा कि राजस्थान से मगरा क्षेत्र के युवक बड़ी संख्या में सेना में भर्ती होते है। इस पठारी इलाके में जन्मे युवक शारीरिक दृष्टि से मजबूत होते है। सेना की किसी भी बटालियन में रावत समाज के युवा शामिल होते है। उन्होंने कहा कि कई मौको पर रावत समाज के लोगों को गुमराह किया जाता है, लेकिन समाज के प्रतिनिधियों की वजह से एकता बनी हुई है। समारोह में मगरा विकास बोर्ड के अध्यक्ष हरीसिंह रावत, संसदीय सचिव सुरेश सिंह रावत, विधायक शंकर सिंह रावत, पूर्व सांसद रासासिंह रावत आदि ने सामाजिक बुराइयों को दूर करने का आह्वान किया। इस मौके पर देश के खातिर शहीद हुए 20 वीरों की वीरांगनाओं और उनके परिजनों को सम्मानित किया गया। इनमें आजाद हिन्द फौज में छापली निवासी शहीद रूपसिंह रावत 1919 के प्रथम विश्वयुद्ध में कराची (पाकिस्तान) में कालिंजर निवासी शहीद करमसिंह रावत, ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार में ताल निवासी शहीद औंकार सिंह रावत, शहीद बलवीर सिंह, चेतन सिंह, नारायणसिंह रावत, गोरधनसिंह रावत, लालसिंह रावत, त्रिलोकसिंह रावत, पूरणसिंह रावत, लक्ष्मणसिंह रावत, बाबूसिंह रावत आदि के परिवारजनों को सम्मानित किया गया।
फोटो: मंच पर उपस्थित अतिथि। 
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(एस.पी. मित्तल)  (24-04-2016)
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सालों का कचरा घंटों में साफ। अजमेर कलेक्टर ने पहल। कर्बला बावड़ी में हुई साफाई।



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24 अप्रैल को अजमेर के ऐतिहासिक तारागढ़ दुर्ग पर बनी कर्बला बावड़ी की सफाई का काम जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक के नेतृत्व में किया गया। कलेक्टर द्वारा की गई सफाई को लेकर सरकारी प्रेस नोट में बताया गया कि इस बावड़ी में कई सालों से कचरा और गंदगी जमा थी। जिसे कुछ घंटों के श्रमदान में साफ कर दिया गया। कलेक्टर के साथ एडीएम किशोर कुमार, राधेश्याम मीणा, हीरालाल मीणा, निगम के उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता आदि  ने भी सफाई का काम किया। अधिकारियों ने गेंती फावड़ा और तगारी लेकर पूरे मनोयोग से सफाई का काम किया। 
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(एस.पी. मित्तल)  (24-04-2016)
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अंजुमन यादगार ने किया अधिकारियों एवं मीडिया कर्मियों का इस्तकबाल।



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अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा साहब के 804वें सालाना उर्स के शांतिपूर्ण सम्पन्न हो जाने पर 24 अप्रैल को खादिमों की संस्था अंजुमन यादगार चिश्तियां शेख जादगान की ओर से दरगाह के निकट यादगार गेस्ट हाउस में एक समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में अधिकारियों और मीडिया कर्मियों का इस्तकबाल किया गया। समारोह में उर्स मेले के अतिरिक्त मेला मजिस्ट्रेट राधेश्याम मीणा ने कहा जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक के नेतृत्व में प्रशासन ने मेले के इंतजामों में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्वयं उन्होंने उर्स के दौरान लगातार 18 घंटे की ड्यूटी दी। प्रशासन के इंतजामों और ख्वाजा साहब के करम से मेले में कोई अप्रिय वारदात नहीं हुई। वहीं दरगाह थाने के इंस्पेक्टर मानवेन्द्र सिंह ने कहा कि एसपी डॉ. नितिन दीप ब्लग्गन, एएसपी अवनीश शर्मा, दरागह क्षेत्र के एएसपी दिलीप सैनी आदि ने रात और दिन मेहनत की ताकि उर्स में आने वाले जायरीन को सुरक्षित रखा जा सके। 
समारोह में मैंने कहा कि सरकार और प्रशासन अपने नजरिए से इंतजाम करते हैं, लेकिन उर्स तो ख्वाजा साहब के करम से ही सम्पन्न होता है। इसलिए प्रशासनिक अमला उर्स शुरू होने से पहले पवित्र मजार पर उम्मीद की चादर बाद में शुक्राने की चादर पेश करता है। दरगाह क्षेत्र में जायरीन को और सुविधाएं मिलनी चाहिए इसके लिए खादिम समुदाय को ही पहल करनी होगी। समारोह में पूर्व मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर ने कहा कि कायड़ विश्राम स्थली से दरगाह तक जायरीन को लाने, ले जाने की व्यवस्था को और सुविधाजनक बनने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि पुष्कररोड स्थित पुरानी विश्राम स्थली पर सीमित मात्रा में जायरीन को ठहराया जा सकता है। समारोह में अंजुमन सैय्यद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने कहा कि दरगाह से जुड़े प्रतिनिधियों और प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल की जरुरत है। समारोह में अंजुमन शेख जादगान के अध्यक्ष हाजी मोहम्मद आरिफ चिश्ती, सचिव हफीर्जुररहमान चिश्ती, कनवीनर अजमद हुसैन चिश्ती आदि ने अधिकारियों और मीडिया कर्मियों की दस्तारबंदी की। इस अवसर पर अंजुमन के प्रतिनिधियों ने कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह के सामने से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पथ संचालन, महावीर जयंती, चेटीचंड, रामनवमी आदि के जुलूस निकलते हैं, तब दरगाह के प्रतिनिधि पुष्प वर्षा करते हैं। ख्वाजा साहब ने सूफीवाद का जो संदेश दिया, उसे अजमेर में निभाया जाता है। कार्यक्रम दरगाह के अतिरिक्त नाजिम हाजी मोहम्मद सिद्दीक, नवाब हिदायतउल्ला, आरिफ कुरैशी, धर्मेन्द्र प्रजापति, हाजी सरवर सिद्दीकी, आमन खान, शेखजादा जुल्फिकार, रईस खान, एम.अली, शफकत सुलतान्री, नजीर कादरी, पी.के.श्रीवास्तव, राजस्थान परिवहन निगम के मुख्य प्रबंधक तेजकरण टांक आदि मौजूद थे। 
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(एस.पी. मित्तल)  (24-04-2016)
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देश की न्यायिक व्यवस्था पर आखिर रोना पड़ा सीजेआई को।



पीएम मोदी ने कहा रोने से काम नहीं चलेगा।
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24 अप्रैल को दिल्ली में ऑल इंडिया जज कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस में देश के चीफ जस्टिस टी.एस.ठाकुर जब न्यायिक व्यवस्था की दुर्दशा बता रहे थे, तब उनकी आंखों में आसंू और नाक में पानी आ गया। भावुक होते हुए सीजेआई ठाकुर ने राज्य सरकारों और पीएम नरेन्द्र मोदी को समझाने के लिए पांवी कक्षा के गणित के एक सवाल का सहारा लिया। सवाल था कि एक सड़क पांच श्रमिक बीस दिनों में बनाते हैं तो सड़क को एक दिन में बनाने के लिए कितने श्रमिक चाहिए? सीजेआई ने जब यह सवाल रखा तो उनकी आंखों में आंसू और नाक से पानी निकला आया। जेब से रुमाल निकालकर सीजेआई ने आंख का आंसू और नाक का पानी साफ किया। जस्टिस ठाकुर ने कहा कि अमरीका में 9 जज एक वर्ष में 81 केस सुनते हैं, जबकि भारत में एक जज 2006 केस सुनता है। निचली अदालतों में 3 करोड़ केस लम्बित हैं,लेकिन कोई यह नहीं कहता 20 हजार जजेज हर साल दो करोड़ केस की सुनवाई पूरी करते हंै। लाखों लोग जेल में। ऐसे लोगों की सुनवाई नहीं होने के लिए जजों को दोष मत दीजिए। देश के हाईकोर्ट में 38 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हंै,जबकि 434 जजों की वेकेंसी है। केन्द्र सरकार कहती है कि यह राज्यों का मामला है और राज्य सरकार केन्द्र से फंड नहीं मिलने की बात कहती है। 1950 में सुप्रीम कोर्ट में जब 8 जज पे तब एक हजार केस थे। आज 31 जज हैं तो सुप्रीम कोर्ट में 81 हजार से ज्यादा केस लम्बित हंै। इस साल चार महीने में ही 12 हजार केस दाखिल हुए हैं। केन्द्र सरकार के कारपोरेट पर कॉमर्शियल कोर्ट बनाने के प्रस्ताव पर निशाना साधते हुए जस्टिस ठाकुर ने कहा कि यह पुरानी बोतल में नई शराब है। जस्टिस ठाकुर ने अपनी आंख के आंसू और अपने नाक में पानी का हवाला देते हुए कहा कि मेरी इस स्थिति का कुछ तो असर होगा। 
जज कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी को नहीं बोलना था, लेकिन जिस तरह से सीजेआई ने केन्द्र सरकार पर हमला किया, उसे देखते हुए मोदी को बोलना पड़ा। रोने से काम नहीं चलेगा, कुछ इसी अंदाज में मोदी ने कहा कि इतनी बात सुनकर मैं चुपचाप चला जाऊं, उनमें से नहीं हंू। सरकार न्यायिक व्यवस्था की दुर्दशा सुधारने के लिए तैयार हैं। दोनों को बैठाकर समाधान निकालना चाहिए। मोदी ने कहा कि जस्टिस ठाकुर और सरकार की टीम मिलकर बैठक करें। इस मौके पर मोदी ने भी न्यायपालिका से उम्मीद जताई पुराने कानूनों को खत्म करने में सहयोग देने की बात कही।
मुव्वकिल की कौन सुने:
देश की न्यायपालिका की दुर्दशा पर सीजेआई को रोना पड़ा तो इससे मुव्वकिलों की पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। दुर्दशा पर जब सीजेआई और पीएम ही आमने-सामने हैं तो फिर बेचारे मुव्वकिल का तो भगवान ही मालिक है। जब सीजेआई और पीएम ही व्यवस्था को सुधारने में लाचार है तो फिर मुव्वकिल को कोई राहत मिलने की उम्मीद नजर नहीं आती। न तो जज और सरकार के प्रतिनिधि की संयुक्त बैठक होगी न ही सुनवाई के अभाव में जेलों में सड़ रहे लोग बाहार आ पाएंगे। 
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(एस.पी. मित्तल)  (24-04-2016)
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उर्स की स्मारिका में एडीए का बहिष्कार।



उर्स संपन्न होने के बाद अजमेर प्रशासन ने निकाली स्मारिका।
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एक कहावत है, एक तो नीम कड़वा और उस पर चढ़ गया करेला। इस कहावत को ख्वाजा साहब के 804वें सालाना उर्स पर जारी जिला प्रशासन की स्मारिका चरितार्थ किया है। जो स्मारिका उर्स शुरू होने से पहले प्रकाशित हो जानी चाहिए थी वह अब उर्स संपन्न होने के बाद वितरित की जा रही है। इसलिए इस स्मारिका का विमोचन भी नहीं करवाया गया। सब जानते है कि ख्वाजा साहब के उर्स के इंतजामों में अजमेर विकास प्राधिकरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्राधिकरण की कायड़ विश्रामस्थली पर ही बड़ी संख्या में जायरीन ठहरते हंै। जायरीन को पानी, बिजली, सफाई आदि सुविधाएं प्राधिकरण ही उपलब्ध करता है। प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा उर्स के दौरान लगातार इंतजामों का जायजा लेते रहे, लेकिन इस बेहद अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि जिला प्रशासन की स्मारिका में प्राधिकरण का पूरी तरह बहिष्कार किया गया है। स्मारिका में कलेक्टर आरूषी मलिक तक का संदेश है, लेकिन प्राधिकरण के अध्यक्ष हेड़ा का संदेश नहीं छापा गया है। स्मारिका को तैयार करने वाले अधिकारियों का कहना है कि स्मारिका की संपूर्ण सामग्री को जिला कलेक्टर स्वीकृत करवाया जाता है। स्मारिका में प्राधिकरण के अध्यक्ष का उल्लेख नहीं होने को लेकर राजनीतिक क्षेत्र में अनेक चर्चाएं हैं। पिछले दिनों अध्यक्ष हेड़ा के विरोध के बाद भी प्रशासन ने प्राधिकरण में कार्यरत पटवारियों का तबादला कर दिया। यह तब हो रहा है जब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पहल पर ही हेड़ा को प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है।
उर्स के बाद स्मारिका :
राज्यपाल, मुख्यमंत्री, अजमेर के दोनों मंत्रियों, मेयर आदि के संदेशों से भरी स्मारिका में ख्वाजा साहब का 804वें सालाना उर्स की महत्वपूर्ण जानकारी हैं। कोई 125 पृष्ठों वाली इस स्मारिका में उर्स मेले में तैनात प्रमुख अधिकारियों और कर्मचारी के फोन नम्बर के साथ-साथ दरगाह की धार्मिक रस्मों की भी जानकारी है। प्रतिवर्ष यह स्मारिका उर्स शुरू होने से पहले ही प्रकाशित हो जाती है, लेकिन इसे व्यवस्थाओं का मजाक ही कहा जाएगा कि स्मारिका को उर्स के संपन्न होने के बाद अब चुपचाप वितरित किया जा रहा है।

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पीएम नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप मसाणिया भैरवधाम में चल रहा है बेटी बचाओ अभियान। डीआरएम सालेचा ने दिखाई रैली को हरी झंडी।



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24 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेडियो पर अपनी मन की बात में देश में बेटी बचाओ का भी आह्वान किया। मेादी ने उन सब कारणों को गिनाया, जिसमें समाज में बेटी को होना जरूरी है। पीएम की मंशा के अनुरूप ही अजमेर जिले के राजगढ़ गांव स्थित मसाणिया भैरवधाम पर बेटी बचाओ अभियान पिछले दो वर्ष से लगातार चल रहा है। 24 अप्रैल कोभी अजमेर के निवर्तमान डीआरएम नरेश सालेचा ने बेटी बचाओ रैली को हरी झंडी दिखाई। इस मौके पर सालेचा ने कहा कि भैरवधाम में जिस तरह से सामाजिक सरोकारों से जुड़ी जिम्मेदारियों को निभाया है, वह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। इसी प्रकार भैरवधाम पर जो नशा न करने का संकल्प करवाया जाता है, वह भी सराहनीय है। सालेचा ने भैरवधाम पर स्थित मनोकामना स्तंभ की परिक्रमा के बाद उपासक चम्पालाल महाराज से आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर सालेचा का अभिनंदन करते हुए चम्पालाल महाराज ने कहा कि भैरवधाम पर आने वाले रोगी कष्ट मुक्त तो होते ही हैं, साथ ही बेटी बचाने और नशा नहीं करने का जो संकल्प करवाया जाता है, उसमें समाज में एक सकारात्मक संदेश गया है। अब तक कोई 25 लाख लोगों को खासकर युवा को नशा न करने का संकल्प करवाया गया है। जो व्यक्ति एक बार भैरवधाम पर संकल्प ले कर भभूत (चिमटी) खा लेता है, वह फिर से शराब आदि का सेवन करता है तो उसे शारीरिक कष्ट झेलने पड़ते हैं। भैरव बाबा को सब पता होता है कि संकल्प लेने के बाद कौन सा व्यक्ति शराब पी रहा है। इसी प्रकार बेटी बचाओ अभियान में गत वर्ष कोई 800 जरुरतमंद युवतियों के विवाह करवाए गए। इस वर्ष एक हजार का लक्ष्य रखा गया है। भैरवधाम पर जिन लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है, उन्हीं से जरुरतमंद युवतियों को विवाह का खर्च दिलवाए जाता है। महाराज ने बताया कि युवतियों की मदद उसके अपने शहर में ही विवाह के मौके पर की जाती है। आर्थिक सहयोग करने वाले परिवार का एक सदस्य जाकर कन्या दान की रस्म निभाता है। महाराज ने हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सवाल पूछा जब आपको मां, बहन और पत्नी चाहिए तो फिर बेटी क्यों नहीं? जिन घरों में बेटियां हैं उन घरों में खुशहाली अपने आप आती है। बेटे के मुकाबले बेटी ही अपने माता-पिता का ज्यादा ख्याल रखती है। 
श्रद्धालु उमड़े:
प्रत्येक रविवार को भैरवधाम पर लगने वाली चौकी और उस पर विराजमान भैरव बाबा से आशीर्वाद लेने के लिए 24 अप्रैल को श्रद्धालु उमड़ पड़े। भैरवधाम पर प्रत्येक रविवार को बाबा का दरबार लगता है, जिसमें हजारों लोगों के कष्ट दूर होते हैं। 


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(एस.पी. मित्तल)  (24-04-2016)
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Saturday 23 April 2016

सिंहस्थ कुंभ में भी गुटों में बंटे रहे अजमेर भाजपा के नेता।



लखावत, देवनानी, भदेल आदि ने भी लगाई क्षिप्रा नदी में डुबकी।
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राजनीति वाकई गंदी चीज है। 12 वर्षों में एक बार भरने वाले कुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालु पहुंचकर अपने पाप धोते हैं लेकिन राजनीति में रहने वाले नेता अपने मन के मेल को भी नही धो पाते हैं। भारतीय संस्कृति के अनुरूप पुण्य प्राप्त करने के लिए ही अजमेर शहर के दोनों मंत्रियों वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल ने भी 22 और 23 अप्रैल को उज्जैन में क्षिप्रा नदी में कुंभ के अवसर पर डुबकी लगाई। इन दोनों ने सिन्धी समाज के प्रमुख संत हंसराज महाराज के महामंडलेश्वर बनाने के समारोह में भी भाग लिया। देवनानी अपने समर्थक देवेन्द्र लालवानी, तुलसी सोनी, महेन्द्र जादम तथा श्रीमती भदेल अपने पति भीमसिंह व नगर निगम के डिप्टी मेयर सम्पत सांखला के साथ मेले में पहुंचीं। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि 21 अप्रैल को यह दोनों मंत्री अजमेर से ट्रेन के एक कोच में बैठे और कुंभ स्नान के बाद भी 23 अप्रैल को एक ट्रेन से उज्जैन से रवाना हुए। लेकिन उज्जैन में दोनों दिन अपने-अपने गुटों में बंटे रहे।
लखावत ने भी लगाई डुबकी:
राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत ने भी कुंभ में डुबकी लगाई है। लखावत के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक राजेन्द्र सिंह भी थे। लखावत और सिंह ने स्वामी हंसराज महाराज के महामंडलेश्वर की उपाधि वाले समारोह में भी भाग लिया। यहां उल्लेखनीय है कि लखावत अपने प्राधिकरण से बूढ़ा पुष्कर का जो जीर्णोद्धार करवा रहे हैं, उसमें स्वामी हंसराज महाराज की महत्वपूर्ण भूमिका है।
महन्त सोमपुरी की भी निकली सवारी:
उज्जैन के कुंभ मेले में पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर के महन्त श्री श्री 1008 महन्त सोमपुरी महाराज की सवारी भी महानिर्वाणी अखाड़े के साथ धूमधाम से निकली। इस मौके पर महन्त सोमपुरी के साथ नितीन शर्मा आदि श्रद्धालु उपस्थित थे। महन्त सोमपुरी ने प्रथम शाही स्नान के जुलूस में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(एस.पी. मित्तल)  (23-04-2016)
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मिलना चाहिए हनुमान जैसा बल और तप।



ब्यावर में हुआ हनुमान जयंती पर भक्तिमय समारोह।
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हिन्दू संस्कृति के देवी-देवताओं में राम भक्त हनुमान एक ऐसे पात्र हैं जिनके बल और तप से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। 21 और 22 अप्रैल को देशभर में हनुमान जयंती के कार्यक्रम हुए। जिस तरह कार्यक्रम हुए उससे भगवान राम की भविष्यवाणी सही साबित हो गई। रामजी ने हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि इस संसार में एक समय ऐसा भी आएगा, जब राम से ज्यादा हनुमान की ख्याति होगी। राम से ज्यादा हनुमान के मंदिर होंगे। देशवासियों ने देखा कि इस बार रामनवमी से ज्यादा हनुमान जयंती की धूम रही। 21 अप्रैल को ही ब्यावर की कुमावत कॉलोनी में श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर पर एक विशाल भजन संध्या का आयोजन हुआ। मंदिर के उपासक गोपालजी कुमावत ने बताया कि इस मंदिर में विराजमान हनुमान जी ही सब कुछ करते हैं। वे तो मंदिर में साफ सफाई और हनुमान जी की सेवा का काम करते हैं। शनिवार और मंगलवार को इस मंदिर में हनुमान जी स्वयं अपने भक्तों से सीधा संवाद करते हैं। मैं किसी भी भक्त के सवाल का जवाब नहीं देता। भक्त जो सवाल करता है उसका जवाब स्वयं हनुमान जी देते हैं। ऐसे बल और तप वाले हनुमान मंदिर में जब भजन संध्या हुई तो हजारों श्रद्धालुओं ने भक्ति के सागर में डुबकी लगाई। ऐसे माहौल में ही मंदिर के उपासक गोपालजी कुमावत ने ब्यावर के विधायक शंकर सिंह रावत, नगर परिषद की सभापति श्रीमती बबीता चौहान के साथ मेरा भी सम्मान किया। मैंने भक्तों के सवालों का जवाब देने वाले हनुमान जी से आग्रह किया कि मुझे भी आपका बल और तप मिले ताकि मेरी कलम पूरी ईमानदारी के साथ लिखती रहे। भजन संध्या का संचालन कर रहे निखिल जैन ने जब मंच से मेरे ब्लॉग लेखन की प्रशंसा की तो मुझे लगा कि हनुमान जी जवाब दे रहे हैं। भजन संध्या में जब भजन गायक गजेन्द्र सिंह राव ने प्रस्तुति दी तो अनेक महिलाओं को ऐसे भाव आए कि संभालना ही मुश्किल हो गया। दो दिवसीय हनुमान जयंती के कार्यक्रम को सफल बनाने में समाजसेवी विष्णु धीमान की सक्रिय भूमिका रही।
प्राचीन बालाजी का भी लिया आशीर्वाद:
21 अप्रैल को ही ब्यावर युवा मोर्चा के अध्यक्ष मनीष बुरड अपनी टीम के साथ मुझे प्राचीन बालाजी मंदिर भी ले गए। मंदिर के महन्त उम्मेद शर्मा ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना 1838 में हुई थी। उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर में सेवा का काम कर रहा है। मंदिर स्थापना दिवस पर बड़ा कार्यक्रम यहां आयोजित किया जाता है।
(एस.पी. मित्तल)  (23-04-2016)
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अफसरों के भरोसे चल रही है शिक्षकों के पदस्थापन की काउंसलिंग।


न मेरिट सूची पूर्ण न रिक्त पदों की सही जानकारी।
मंत्री ने कहा खामियों को दूर करेंगे।
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राजस्थान भर में इन दिनों तृतीय श्रेणी से द्वितीय श्रेणी में पदोन्नत हुए शिक्षकों का पद स्थापन हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने पद स्थापना में ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए काउंसलिंग प्रणाली लागू की है, लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों की वजह से काउंसलिंग प्रणाली मंत्री की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है। प्रदेश भर के शिक्षकों की परेशानियों को देखते हुए मंत्री देवनानी ने कहा है कि काउंसलिंग प्रणाली की खामियों को दूर किया जाएगा। यदि किसी कारणवंश इस समय किसी शिक्षक का पदस्थापन पारदर्शिता के साथ नहीं हुआ है तो उसे कुछ ही दिनों में दुबारा से अवसर दिया जाएगा। 23 अप्रैल को अजमेर में भी संभाग स्तरीय पदस्थापन काउंसलिंग हुई। इस काउंसलिंग में शिक्षकों का कहना था कि पदोन्नति होने के बाद भी काउंसलिंग के समय जो मेरिट लिस्ट चस्पा की गई है उसमें नाम नहीं है। हालाकि अधिकारियों ने एक अन्य कक्ष में मेरिट लिस्ट में नाम शामिल करवाने की व्यवस्था की थी, लेकिन इस खामी की वजह से काउंसलिंग से पहले ही सारी व्यवस्था गड़बड़ा गई। पदोन्नत हुए शिक्षकों को यह भी शिकायत थी कि काउंसलिंग से पहले पदस्थापन की सूची को अपडेट नहीं किया गया है। ऐसे में वे शिक्षक भी सूची में शामिल हो गए जिन्हें तीन संतान होने अथवा विभागीय जांच विचाराधीन होने की वजह से पदोन्नति का लाभ नहीं मिल सकता। शिक्षा अधिकारियों ने अपनी इस खामी को छिपाने के लिए संबंधित शिक्षक से शपथ पत्र मांग लिया। यानि शिक्षा विभाग के स्वयं के पास जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार जिन शिक्षकों को विधवा, तलाकशुदा, विकलांग आदि होने की वजह से काउंसलिंग में जो प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी वह भी नहीं मिली। काउंसलिंग से पहले अधिकारियों के पास इस बात का कोई रिकार्ड नहीं था। इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि शिक्षकों से कहा गया था कि वे अपनी-अपनी जानकारियां संबंधित शिक्षा अधिकारियों के कार्यालय में दे। वहीं शिक्षकों ने शिक्षा अधिकारियों पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। नाराज शिक्षकों का कहना था कि शिक्षा विभाग ने किसी भी माध्यम से कोई सूचना नहीं भिजवाई। यहां तक की काउंसलिंग होने तक की जानकारी भी नहीं दी। शिक्षकों ने अपने स्तर पर ही जानकारी जुटाई है। शिक्षा विभाग में आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बाद भी अधिकारियों ने पदोन्नति और काउंसलिंग की सूची को अपडेट नहीं किया। सूचना नहीं मिलने की वजह से अनेक शिक्षक काउंसलिंग में आ ही नहीं पाए। जबकि यह पदोन्नति की काउंसलिंग संभाग मुख्यालय पर हो रही है। 23 अप्रैल को भी अजमेर के तोपदड़ा स्थित शिक्षा परिसर में अजमेर, नागौर, टोंक और भीलवाड़ा जिलों के हिन्दी और संस्कृत विषय के पदोन्नत शिक्षकों की काउंसलिंग हुई। इस काउंसलिंग में शिक्षकों की सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि सभी रिक्त पदों वाले स्कूलों को काउंसलिंग में शामिल नहीं किया गया है। जानकारी के मुताबिक अजमेर में 14 सौ संस्कृत शिक्षकों के पद रिक्त है, लेकिन काउंसलिंग में मुश्किल से चार सौ स्कूलों को ही शामिल किया गया है। इस संबंध में शिक्षा अधिकारियों का कहना रहा कि काउंसलिंग में उन्हीं स्कूलों को शामिल किया गया है जहां निर्धारित नियमों के अनुरुप विद्यार्थियों की संख्या है। जिन स्कूलों में चार विद्यार्थी ही संस्कृत के है उन स्कूलों में रिक्त पद होने के बाद भी शामिल नहीं किया गया है।
खामियां दूर करेंगे :
स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने स्वीकार किया कि पद स्थापन की काउंसलिंग में खामियां है। इसका सबसे बड़ा कारण शिक्षकों की वर्षो से पदोन्नति नहीं होना है। उन्होंने कहा कि तृतीय श्रेणी से द्वितीय श्रेणी में पदोन्नति पिछले कई वर्षो से नहीं हुई है। ऐसे में मेरिट लिस्ट बनाने में भी कुछ कमी रह सकती है। इसके लिए शिक्षकों को भी जागरूकता दिखानी चाहिए। यदि किसी शिक्षक का नाम मेरिट लिस्ट और काउंसलिंग में नहीं आया है तो उसे भी जागरूक रह कर काउंसलिंग प्रणाली का लाभ उठाना चाहिए। सरकार का प्रयास एक भी शिक्षक खासकर महिला शिक्षकों को परेशान करना नहीं है। उन्हें पता है कि शिक्षक के संतुष्ट होने पर ही विद्यालय में पढ़ाई का अच्छा वातावरण बनता है। इसलिए काउंसलिंग प्रणाली को लागू किया गया है। मेरिट के आधार पर संबंधित शिक्षक अपनी मनपसंद स्कूल का चयन कर सकता है।
(एस.पी. मित्तल)  (23-04-2016)
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Thursday 21 April 2016

अजमेर जिला परिषद की 20 दिनों से सफाई नहीं होने पर शर्म आनी चाहिए राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को।


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राजस्थान पत्रिका के 21 अप्रैल के अजमेर संस्करण में जिला परिषद के कार्यालय में गत 20 दिनों से सफाई नहीं होने को लेकर एक खबर प्रकाशित हुई। इस खबर में कहा गया है कि कमरों में झाडू नहीं लगाने और शौचालयों में सफाई नहीं होने की वजह से जिला परिषद एक बदबू घर में तब्दील हो गया है। पत्रिका की खबर में यह भी बताया गया कि जिस सफाई कर्मचारी को नरेगा के कोष से 1000 रुपए प्रति माह पारिश्रमिक मिलता है,उस भुगतान पर जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक ने रोक लगा दी है। चूंकि सफाई कर्मी को पारिश्रमिक नहीं मिला तो उसने भी गत 1 अप्रैल से सफाई का काम करना बंद कर दिया। पत्रिका की इस खोजपूर्ण खबर पर सत्तारुढ़ भाजपा के नेताओं और अजमेर के प्रशासनिक अधिकारियों को शर्म महसूस करनी चाहिए, जिस जिला परिषद का बजट एक हजार करोड़ रुपए का है, वह जिला परिषद सफाई कर्मचारी को एक हजार रुपए पारिश्रमिक नहीं दे पा रही है। इस समय जिला प्रमुख के पद पर भाजपा की युवा नेत्री वंदना नोगिया विराजमान हैं। नोगिया का कहना है कि उन्हें जिला परिषद में सफाई नहीं होने की जानकारी ही नहीं मिली। समझ में नहीं आता कि वंदना नोगिया कैसी जिला प्रमुख हंै। यदि सफाई नहीं होने की जानकारी भी नहीं मिली तो फिर वंदना नोगिया जिला प्रमुख का कार्य किस तरह से कर रही है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे यह भी जाहिर होता है कि वंदना नोगिया गत 1 अप्रैल से जिला परिषद कार्यालय गई ही नहीं, और उनकी इतनी पकड़ नहीं कि कोई कर्मचारी कार्यालय की जानकारी दे। माना वंदना नोगिया राजनीति में नई-नई हैं,लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि  वे सिर्फ लाल बत्ती की एसी कार में घूमती रहें, यदि जिला परिषद का कार्यालय बदबू के घर में बदल गया है तो सबसे पहले जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है। जानकारी नहीं मिलने की बात कहकर नोगिया अपने दायित्व से बच नहीं सकती। जहां तक जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक का सवाल है तो उनकी कार्यशैली पर जिला प्रमुख को क्या, प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी, महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती अनिता भदेल, संसदीय सचिव सुरेश सिंह रावत जैसे राजनेताओं भी कोई ऐतराज नहीं जता सकते। भाजपा के यह ताकतवर नेता भी जानते हैं कि कलेक्टर की कार्यशैली की वजह से ही अजमेर में कोई भी  प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त नहीं होना चाहता है। इस समय जिला परिषद के सीईओ और एसीईओ दोनों के पद खाली पड़े हैं। कलेक्टर ने एडीएम प्रथम किशोर कुमार को जिला परिषद अतिरिक्त कार्यभार सौंप रखा है, लेकिन किशोर कुमार की कलम में इतनी ताकत नहीं है कि वे सफाई कर्मचारी को एक हजार रुपए का भुगतान करवा सके। खुद जिला प्रशासन ने एडीएम द्वितीय, सिटी मजिस्ट्रेट, प्रोटोकॉल अधिकारी आदि के महत्त्वपूर्ण पद पिछले कई माह से खाली पड़े हैं। यूं कहने को तो अजमेर के सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत,एडीए अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा, विधायक भागीरथ चौधरी, शत्रुघ्न गौतम, श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, शंकर सिंह रावत के साथ-साथ भाजपा के देहात अध्यक्ष बी.पी.सारस्वत, शहर अध्यक्ष अरविंद यादव, आदि भी स्वयं को ताकतवर राजनेता मानते हैं, लेकिन इनमें से एक भी नेता में इतनी हिम्मत नहीं कि वे कलेक्टर की कार्यशैली की शिकायत मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कर सके। उल्टे इन ताकतवर नेताओं को यह डर रहता है कि कहीं कलेक्टर उनकी शिकायत मुख्यमंत्री से न कर दें। राजनेताओं की इस कमजोर स्थिति के कारण ही कलेक्टर सफाई कर्मचारी के भुगतान पर रोक लगा देती है। मजे की बात तो यह है कि इतनी दुदर्शा के बाद भी स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए राष्ट्रपति अवार्ड का ख्वाब देखा जा रहा है। 
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(एस.पी. मित्तल)  (21-04-2016)
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