Saturday 31 December 2022

परबतसर की लोकल पॉलिटिक्स के शिकार हुए भाजपा की केंद्रीय चुनाव सलाहकार कमेटी के सदस्य ओम प्रकाश माथुर।पूर्व विधायक मानसिंह किनसरिया को फिर उम्मीदवार बनाने की घोषणा पर हुआ विवाद।

राजस्थान भाजपा के लंबे समय तक प्रदेशाध्यक्ष रहे और मौजूदा समय में भाजपा की केंद्रीय चुनाव सलाहकार कमेटी के सदस्य ओम माथुर ने 27 दिसंबर को नागौर के परबतसर में एक सभा को संबोधित किया। इस सभा में माथुर ने कहा कि वे राजस्थान की नस नस से वाकिफ है। जयपुर वाले कुछ भी सूची भेजे, लेकिन मैंने यदि खूंटा गाड़ दिया तो फिर मोदी जी भी नहीं हिला सकते। हालांकि पीएम मोदी को चुनौती देने वाले इस बयान पर ओम माथुर ने अपनी सफाई दे दी है। इस सफाई में भी माथुर ने कहा कि उनके विरुद्ध कहां से प्रोपेगंडा चला, यह उन्हें पता है। इसका जवाब सही समय पर दिया जाएगा। राजस्थान में भाजपा की राजनीति को जानने वाले समझते हैं कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से ओम माथुर का छत्तीस का आंकड़ा है। वसुंधरा राजे के विरोध के चलते ही माथुर को राजस्थान से दूर कर गुजरात भेजा गया। गुजरात में मोदी के साथ माथुर का अच्छा तालमेल रहा। ओम माथुर भले ही स्वयं के विरुद्ध हुए प्रचार की बड़ी साजिश बताएं लेकिन अभी तो ओम माथुर परबतसर की लोकल पॉलिटिक्स के शिकार हुए हैं। माथुर ने अपने संबोधन में कहा कि मानसिंह किनसरिया पहले भी दो बार यहां के विधायक रहे हैं, मैं तो उन्हें अभी भी विधायक मानता हूं और आगे भी किनसरिया ही विधायक बनेंगे। यानी ओम माथुर ने किनसरिया को भाजपा का भावी उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। अब जब भाजपा उम्मीदवार बनने के लिए प्रदेश भर में भाजपा के नेताओं में होड़ मची हुई, तब ओम माथुर जैसा ताकतवर नेता  किसी पूर्व विधायक को दोबारा से उम्मीदवार बनाने की घोषणा करेगा तो लोकल पॉलिटिक्स में बवाल तो होगा ही। यह माना कि किनसरिया भी परबतसर से मजबूत दावेदार हैं, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अमर चंद जाजड़ा जैसे युवा भाजपाई भी अपनी मजबूत दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं। जाजड़ा ने परबतसर में गौशाला के लिए 31 बीघा भूमि का दान कर प्रदेश भर में ख्याति प्राप्त की है। जाजड़ा और उनके समर्थक भाजपा के हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। जाजड़ा और अन्य भाजपा नेताओं की इतनी सक्रियता के बाद भी यदि ओम माथुर किसी एक नेता के नाम की घोषणा करेंगे तो हंगामा तो होगा ही। अच्छा हो कि ओम माथुर जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता संयम और लोकल पॉलिटिक्स का ध्यान रखते हुए अपने विचार रखें। यह माना कि भाजपा का टिकट मिलना ही विधायक बनने की गारंटी माना जा रहा है, लेकिन फिर भी मेरा खूंटा मोदी जी भी नहीं हिला सकते, जैसे शब्दों से बचना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि ओम माथुर भाजपा के अच्छे रणनीतिकार हैं और उन्हें मोदी शाह की टीम का सदस्य भी माना जाता है। मानसिंह किनसरिया को परबतसर से भाजपा का उम्मीदवार बनाने वाली घोषणा का वीडियो मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog  पर देखा जा सकता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (30-12-2022)
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जय श्रीराम के नारे से इतनी चिढ़ के बाद भी ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं।इससे ज्यादा धर्म निरपेक्षता की बात और क्या हो सकती है?

30 दिसंबर को जब हावड़ा रेलवे स्टेशन पर वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन के शुभारंभ का कार्यक्रम हो रहा था, तब समारोह के मंच पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। लेकिन तभी हावड़ा के लोगों ने जय श्रीराम के नारे लगाना शुरू कर दिया। इससे ममता बनर्जी नाराज हो गई और मंच को छोड़ कर अतिथियों के साथ बैठ गईं। ममता को यह लगा कि जय श्रीराम के नारे रेल मंत्री वैष्णव की शह पर लगाए जा रहे हैं। हालांकि वैष्णव ने स्वयं ममता से मंच पर चलने का आग्रह किया, लेकिन ममता नहीं मानी। ममता ने यह नाराजगी का रवैया तब दिखाया, जब इस समारोह से वीडियो कॉन्फ्रेंस तकनीक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जुड़े हुए थे। ममता बनर्जी प्रधानमंत्री और रेल मंत्री का सम्मान नहीं करें, यह उनका व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ममता बनर्जी को जय श्रीराम के नारे से इतनी चिढ़ क्यों हैं? क्या जय श्री राम का नाम देश विरोधी और ममता विरोधी है? या फिर यह नारा ममता की टीएमसी के खिलाफ है? बंगाल के अधिकांश लोगों के मन में भी भगवान राम के प्रति श्रद्धा है। ममता बनर्जी माने या नहीं लेकिन जय श्रीराम का नारा लगाने से शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त होती है। हावड़ा पश्चिम बंगाल का ही जिला है और यदि पश्चिम बंगाल में लोग जय श्रीराम का नारा लगा रहे हैं तो ममता बनर्जी को राजनीतिक दृष्टि से विचार करना चाहिए। सब जानते हैं कि पूर्व में भी जय श्री राम का नारा लगाने वाले लोगों को जेल भिजवा दिया था। विपक्षी दलों के नेता आए दिन देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की परंपरा को खतरा बताते है। ऐसे में लोगों का मानना है कि भारत के धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप को नष्ट किया जा रहा है। लेकिन ऐसे नेता जब कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या होती है तो चुप रहते हैं। जब आतंकी प्रवृत्ति के कुछ कश्मीरी युवक टारगेट कर हिन्दुओं की हत्या करते हैं, तब ऐसे नेताओं को लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को खतरा नजर नहीं आता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता होने की इससे बड़ी बात और क्या होगी कि जय श्रीराम के नारे से इतनी चिढ़ होने के बाद भी ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री भी लगातार तीसरी बार बनी है। भारत के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की यही खूबसूरती है कि जय श्रीराम के नारे से चिढऩे वाली ममता बनर्जी लगातार चुनाव जीत रही है। ममता को भले ही जय श्रीराम का नारा अच्छा न लगे, लेकिन उन्हें सरकारी समारोह की गरिमा का तो ख्याल रखना ही चाहिए। हावड़ा रेलवे स्टेशन पर समारोह में भले ही केंद्र सरकार का हो, लेकिन हावड़ा के लोग तो पश्चिम बंगाल के हैं। नई ट्रेनों के चलने, स्टेशनों का सौंदर्यीकरण होने, गंगा नदी के साफ होने आदि कार्यों का लाभ पश्चिम बंगाल के लोगों को ही मिलेगा। ऐसे महत्वपूर्ण समारोह में ममता की नाराजगी उचित नहीं है। ममता को पश्चिम बंगाल के विकास के मुद्दे पर राजनीति करने से बचना चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (31-12-2022)
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कांग्रेस के 91 विधायकों के इस्तीफे चुपचाप वापस होने पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी भारत के संसदीय इतिहास की मिसाल कैसे कायम करेंगे?तो क्या राज्यपाल कलराज मिश्र की सलाह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधायकों के इस्तीफे वापस करवा रहे हैं?

किसी भी राज्य में जब कोई विधायक मुख्यमंत्री बन जाता है तो उसका पहला प्रयास यही होता है कि विधानसभा का अध्यक्ष उसके ही भरोसे का बने। हालांकि अध्यक्ष का पद निष्पक्ष और संवैधानिक होता है, लेकिन मुख्यमंत्री की सरकार को टिकाए रखने और मजबूती देने में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका कई बार देखी गई है। सब जानते हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए गत 25 सितंबर को कांग्रेस के 91 विधायकों ने सामूहिक इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंप दिया था। यदि सीपी जोशी भरोसे के नहीं होते तो अब तक अशोक गहलोत सरकार गिर जाती। इस्तीफे स्वीकार करने का मतलब भी सरकार का गिर जाना है। लेकिन सामूहिक इस्तीफे वाला पत्र कहां है तथा उस पर अब तक क्या कार्यवाही हुई, यह बात सिर्फ सीपी जोशी ही जानते हैं। अब कहा जा रहा है कि विधायकों ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है। इस्तीफा देना और फिर चुपचाप वापस लेना, तभी संभव है जब अध्यक्ष अपने भरोसे का हो। यदि सचिन पायलट के भरोसे वाले विधायक राकेश पारीक विधानसभा अध्यक्ष होते तो 25 सितंबर की रात को ही इस्तीफा मंजूर हो जाते। लेकिन सीपी जोशी अध्यक्ष है, इसलिए इस्तीफो को संभाल कर रखा गया। 25 सितंबर को जिस प्रकार पत्र सौंपा, उसी प्रकार तीन माह बाद इस्तीफे वाला पत्र वापस भी लिया जा रहा है। विधानसभा सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि किसी भी विधायक का इस्तीफा प्राप्त नहीं हुआ है। विधानसभा अध्यक्ष के पास इतने विशेषाधिकार हैं कि कोई भी व्यक्ति उनसे सवाल जवाब नहीं कर सकता है। वैसे भी अब जब मुख्यमंत्री पद का संकट टल गया है और अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से भी बच गए हैं, तब इस्तीफे वाला पत्र कोई मायने नहीं रखता है। ऐसा पत्र तो अब रद्दी की टोकरी में ही फेंका जाना चाहिए। लेकिन यदि 91 विधायकों के इस्तीफे वाला पत्र चुपचाप वापस हो जाता है तो विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के उस कथन का क्या होगा, जिसमें उन्होंने कहा कि मेरा फैसला भारत के संसदीय इतिहास में मिसाल बनेगा। जोशी ने यह बात भाजपा विधायकों के प्रतिनिधिमंडल से कही थी। सूत्रों की मानें तो अध्यक्ष के बिना किसी फैसले या निर्णय के ही इस्तीफे का पत्र वापस हो रहा है।
 
राज्यपाल की सलाह पर हुआ:
जनवरी में शुरू होने वाले बजट सत्र को लेकर 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात की थी। सूत्रों के अनुसार मुलाकात में मिश्र ने 91 विधायकों के इस्तीफे के बारे में गहलोत को सलाह दी। इस सलाह पर ही इस्तीफे चुपचाप वापस लेने की रणनीति बनी। ताकि विधानसभा सत्र में कोई हंगामा नहीं हो। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस्तीफों को लेकर भाजपा विधायक राजेंद्र सिंह राठौड़ ने जो याचिका दायर की है उस पर दो जनवरी को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है। हाईकोर्ट कोई टिप्पणी करें, उससे पहले ही इस्तीफे वापस हो रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (31-12-2022)
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Friday 30 December 2022

अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री बने रहना ही राजस्थान में कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि।मुख्यमंत्री बने रहने के लिए अशोक गहलोत का इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को भी ठुकरा दिया।कांग्रेस की दुर्दशा पर अब चिंता जताई गई।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तो राजस्थान से सफलता और शांतिपूर्वक निकल गई, लेकिन अब जब 29 दिसंबर को प्रदेश प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने कांग्रेस के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं से वन टू वन संवाद किया तो प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब सुनने को मिली। 2018 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव हारे नेताओं ने कहा कि निर्दलीय और बसपा वाले विधायकों ने अपने अपने क्षेत्र में कांग्रेस को गर्त में पहुंचा दिया है। चूंकि ये विधायक अशोक गहलोत की सरकार को समर्थन दे रहे हैं, इसलिए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार को समर्थन देने वाले इन विधायकों ने लूट मचा रखी है। संवाद में शामिल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी रंधावा के समक्ष स्वीकार किया कि हम पराजित उम्मीदवारों के साथ न्याय नहीं कर सके हैं। रंधावा ने भी ऐसी स्थिति को चिंताजनक बताया। हो सकता है कि कांग्रेस के नेताओं की चिंता वाजिब हो, लेकिन यह सही है कि राजस्थान में कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री बने रहना है। गहलोत चार साल पहले जब सीएम बने तभी से कुर्सी बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी में आंतरिक खींचतान को देखते हुए ही बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाया। जुलाई 2020 में जब कांग्रेस के 19 विधायक एक माह के लिए दिल्ली गए, तब भी 100 विधायकों को होटलों में रखकर गहलोत ने अपनी सरकार को बचाए रखा। गहलोत ने तभी कहा था कि सरकार बचाने वाले विधायकों को ब्याज सहित भुगतान करुंगा। राजस्थान में 13 निर्दलीय विधायक हैं। ये सभी गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे हैं। सभी 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर कितनी कीमत चुकानी पड़ रही होगी, यह गहलोत ही बता सकते हैं। जब बसपा और निर्दलीय विधायकों से सरकार चल रही है, तब संगठन के कार्यकर्ताओं की परवाह किसे होगी? गहलोत ने मुख्यमंत्री बने रहने का सबसे बड़ा त्याग तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ठुकरा कर किया है। गहलोत ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे यह तय हो गया था, लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने के लिए गहलोत ने अध्यक्ष पद भी ठुकरा दिया। जब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हों, तब संगठन और उसके कार्यकर्ता गौण हो जाते हैं। गहलोत ने 2008 से 2013 के बीच भी कांग्रेस की अल्पमत सरकार को जोड़ तोड़ कर ही चलाया था। इसी का नतीजा रहा कि विधानसभा चुनाव में 200 में से कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिलीं। गंभीर बात तो यह है कि बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए मंत्री राजेंद्र गुढ़ा कह रहे हैं कि यदि अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री रहते हैं तो 2023 के चुनाव में कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। सरकार में मंत्री रहते हुए भी राजेंद्र गुढ़ा कुछ भी कहें लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के तौर पर पांच वर्ष पूरे कर लेंगे। जिन तौर तरीकों से सरकार चलाई गई उन तरीकों का उपयोग सिर्फ अशोक गहलोत ही कर सकते हैं। अभी विधानसभा चुनाव में 10 माह शेष हैं। आने वाले दिनों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी और बढ़ेगी। जब उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया शुरू होगी, तब ज्यादा विवाद देखने को मिलेगा। 

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सनातन संस्कृति के अनुरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी माताजी का अंतिम संस्कार किया।अर्थी को कंधा दिया, शव वाहन में बैठे और चिता से निकलने वाली ऊर्जा भी ग्रहण की।

नरेंद्र मोदी आज जिस पद पर आसीन है, उसे दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। देश में प्रधानमंत्री का पद सबसे बड़ा होता है। यदि प्रधानमंत्री के परिवार में कोई कार्यक्रम हो तो बड़े बड़े लोग शामिल होने के लिए उत्सुक रहते हैं। लेकिन मोदी ने 30 दिसंबर को सादगी के साथ अपनी 100 वर्षीय माताजी हीराबेन का अंतिम संस्कार गुजरात के गांधी नगर स्थित सार्वजनिक श्मशान स्थल पर कर दिया। 30 दिसंबर को बहुत से राज्यपाल, मुख्यमंत्री और बड़े अफसर जब सुबह 9 बजे सो कर उठे होंगे, तब मोदी अपनी माताजी का अंतिम संस्कार कर रहे थे। हीराबेन का निधन 30 दिसंबर सुबह तीन बजे हुआ। सात बजे मोदी ने ट्वीटर पर खुद सूचना दी और तुरंत दिल्ली से गांधी नगर पहुंच गए। गांधी नगर के घर से जब शव यात्रा निकली तो मोदी ने स्वयं कंधा दिया और उस वाहन में बैठे जिसमें शव रखा गया था। सनातन संस्कृति में माना जाता है कि शरीर से आत्मा निकलने के बाद शरीर तभी पंचतत्व में विलीन होता है, जब शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाए। अंतिम संस्कार में मोदी ने सनातन संस्कृति का पूरी तरह पालन किया। जब श्मशान स्थल पर हीराबेन के शरीर से आग की लपटें निकल रही थीं, तब भी मोदी सामने खड़े थे। मोदी शायद उस ऊर्जा को ग्रहण कर रहे थे जो एक मां के शरीर से निकल रही थी। खुद मोदी ने कई बार भावुक होकर अपनी मां हीराबेन की तकलीफों के बारे में बताया है। हीराबेन ने दूसरों के घरों में बर्तन साफ कर परिवार को पाला। कहा जा सकता है कि हीराबेन का जीवन संघर्षपूर्ण रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि देशा की मौजूदा विपरीत परिस्थितियों में भी मोदी सफलतापूर्वक प्रधानमंत्री के पद पर काम कर रहे हैं। लेकिन मोदी ने भारत की सनातन संस्कृति का हमेशा ख्याल रखा है। यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात होनी चाहिए।
 
सरकारी कार्यक्रमों में भी भाग लिया:
मां के निधन के बाद भी पीएम मोदी ने 30 दिसंबर को पूर्व निर्धारित सभी सरकारी कार्यक्रमों में भाग लिया। इसमें पश्चिम बंगाल में विभिन्न परियोजनाओं के शुभारंभ और राष्ट्रीय गंगा परियोजना परिषद की बैठक के कार्यक्रम शामिल हैं। पीएम मोदी ने प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों राज्यपालों आदि को भी संदेश भिजवाया है कि वे पूर्व निर्धारित कार्यक्रम यथावत रखे। मोदी नहीं चाहते हैं कि उनकी माताजी के निधन की वजह से सरकार का कोई कार्य प्रभावित हो। यही वजह है कि देश के वीआईपी लोग ट्वीटर पर ही अपनी संवेदनाएं प्रकट कर रहे हैं। 30 दिसंबर को माताजी के अंतिम संस्कार के बाद मोदी गांधी नगर में ही राजभवन गए और स्नान आदि के बाद कर्तव्य पथ पर चलना शुरू कर दिया। 

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Thursday 29 December 2022

आखिर भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी की सुरक्षा का जिम्मेदार कौन है?राहुल गांधी सीआरपीएफ के अधिकारियों के निर्देशों का पालन क्यों नहीं करते?

29 दिसंबर को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की ओर से स्पष्ट किया गया है कि भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सुरक्षा नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। राहुल ने अपनी यात्रा में तब तक 113 बार सुरक्षा नियमों को तोड़ा है। सीआरपीएफ ने अपनी एक रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी है। सीआरपीएफ का बयान तब आया है, जब 27 दिसंबर को ही कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था। कांग्रेस का कहना रहा कि राहुल की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, इसलिए भारत जोड़ो यात्रा में राहुल की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए। सबने देखा है कि भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी स्वतंत्र होकर पैदल चलते हैं। कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ता यात्रा में साथ होते हैं। हालांकि भीड़ में भी सीआरपीएफ के अधिकारी राहुल के लिए घेरा बनाते हैं, लेकिन अनेक बार राहुल गांधी सुरक्षा घेरे को तोड़ कर अनजान लोगों से मिलते हैं। ऐसे में राहुल की सुरक्षा को खतरा हो जाता है। इसलिए कांग्रेस की आशंका जायजा है। खुद कांग्रेस मानती है कि जब यात्रा उत्तर प्रदेश, पंजाब और जम्मू कश्मीर से गुजरेगी, तब राहुल को ज्यादा खतरा है। हालांकि राज्यों में सुरक्षा देने का काम राज्य पुलिस का होता है, लेकिन गांधी परिवार का सदस्य होने के नाते राहुल को केंद्रीय सुरक्षा बलों की विशेष सुरक्षा मिली हुई है। पूर्व में तो गांधी परिवार के सदस्यों को प्रधानमंत्री को मिलने वाली एसपीजी कमांडो की सुविधा थी, लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने एसपीजी की सुविधा की जगह सीआरपीएफ की सुरक्षा उपलब्ध करवाई। राहुल गांधी के अपास पार सीआरपीएफ के भी वही अधिकारी रहते हैं जो एसपीजी में काम कर चुके हैं। आमतौर पर सुरक्षा प्राप्त नेता या अन्य कोई व्यक्ति अपने सुरक्षा अधिकारियों के दिशा निर्देशों का पालन करता है, लेकिन राहुल गांधी उन नेताओं में शामिल हैं जो सुरक्षा नियमों का बार बार उल्लंघन करते हैं। ऐसे में सुरक्षा संभव नहीं होती। 100 दिनों की भारत जोड़ों यात्रा में यदि राहुल ने 113 बार सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया है तो इससे सुरक्षा के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि राहुल गांधी स्वयं ही सुरक्षा चक्र को तोड़ेंगे तो फिर सुरक्षा का जिम्मेदार कौन होगा? राहुल गांधी को चाहिए कि वे पद यात्रा में सीआरपीएफ के दिशा निर्देशों का पालन करें। क्योंकि भीड़ में कोई भी शरारती तत्व राहुल को नुकसान पहुंचा सकता है। राहुल को यह भी समझना चाहिए कि उनकी दादीजी श्रीमती इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी भी हिंसा के शिकार हुए थे। 

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कांग्रेस के अधिवेशन में सचिन पायलट का भाषण तक नहीं हुआ।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताएं कि पायलट के मौन रहने पर क्या राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट हो जाएगी?सिर्फ अल्पसंख्यकों के वोट से ही कांग्रेस की जीत नहीं होगी-एके एंथोनी।

28 दिसंबर को जयपुर में राजस्थान कांग्रेस का दो दिवसीय अधिवेशन हुआ। 10 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए ही यह अधिवेशन बुलाया गया था। इस अधिवेशन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के कारण इस बार राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट होगी। वहीं प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि सरकार की योजनाओं का प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है। अधिवेशन में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने गुटबाजी को दरकिनार कर संगठन को मजबूत करने की सीख कार्यकर्ताओं को दी। अधिवेशन में सीएम गहलोत अपनी सरकार के रिपीट होने को लेकर उत्साहित दिखे। लेकिन इस अधिवेशन की खास बात यह रही कि मंच पर मौजूद पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को बोलने का अवसर नहीं दिया गया। सब जानते हैं कि 2018 में पायलट के नेतृत्व की बदौलत ही कांग्रेस को बहुमत मिला था। यह बात अलग है कि कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन प्रदेश में पायलट का प्रभाव बना रहा। आज भी प्रदेशभर में पायलट की लोकप्रियता है। अधिवेशन में पायलट का भाषण नहीं होने को लेकर अब कांग्रेस संगठन में ही चर्चा हो रही है। सीएम गहलोत अपनी सरकार की वापसी पर उत्साहित तो हैं, लेकिन उन्हें यह बताना चाहिए कि क्या सचिन पायलट के मौन रहने से कांग्रेस सरकार रिपीट हो जाएगी? गहलोत का जवाब इसलिए भी चाहिए कि उनके (अशोक गहलोत) मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस कभी भी चुनाव नहीं जीता है। 2003 में गहलोत जब सीएम थे, तब कांग्रेस को 56 सीटें मिली और 2008 में कांग्रेस को 200 में से मात्र 21 सीटें मिली। कांग्रेस की करारी हार के बाद ही पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा शासन में पांच वर्षों तक पायलट और उनकी टीम ने जो संघर्ष किया, उसी का परिणाम रहा कि 2018 में कांग्रेस को सरकार बनाने लायक बहुमत मिला। अब जब सचिन पायलट को कांग्रेस के अधिवेशन में भी बोलने नहीं दिया जाएगा, तब कांग्रेस की सरकार कैसे रिपीट होगी? सवाल उठता है कि आखिर अधिवेशन में पायलट को बोलने क्यों नहीं दिया गया? क्या सीएम गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा को पायलट के भाषण से डर लग रहा था? भारत जोड़ो यात्रा में पायलट ने राहुल गांधी की उपस्थिति में भाषण दिए। पायलट ने अपने संबोधन में ऐसी कोई बात नहीं कही, जिसमें कांग्रेस को नुकसान हो। यह बात सही है कि पार्टी मंचों पर पायलट ने यह बात कही है कि क्या कारण है कि हम सत्ता में होते हुए चुनाव हार जाते हैं। पायलट अपने इस कथन पर अभी भी कायम है। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता भी पायलट के महत्व को स्वीकारता है। गहलोत और डोटासरा चाहे कितने भी दावे कर लें, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले ढाई वर्षों से प्रदेशभर में कांग्रेस की जिला और ब्लॉक कमेटियां भंग पड़ी है। यानी सचिन पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष रहते जो कमेटियां बनाई थीं, उन्हीं से गहलोत और डोटासरा काम चला रहे हैं। डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष के नाते यह बताना चाहिए कि जिला और ब्लॉक कमेटियों का पुनर्गठन क्यों नहीं हुआ? अशोक गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा माने या नहीं, लेकिन यह सही है कि सचिन पायलट ने सत्ता और संगठन की जो जाजम बिछाई उसी पर गहलोत और डोटासरा काबिज हैं।
 
एंथोनी का बयान:
28 दिसंबर को ही कांग्रेस ने अपना स्थापना दिवस मनाया। इस अवसर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री एके एंथोनी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को हिन्दू मतदाताओं का भी समर्थन चाहिए, क्योंकि चुनाव सिर्फ अल्पसंख्यकों के वोटो से नहीं जीता जा सकता। एंथोनी ने जो बात कही है उस पर राजस्थान के सीएम गहलोत को भी विचार करना चाहिए, क्योंकि तुष्टीकरण के मामले में ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से भी ज्यादा सख्त छवि अशोक गहलोत की है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (29-12-2022)
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Tuesday 27 December 2022

काश! राहुल गांधी का जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह हो।अब सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेसी नेता भी राम पर भरोसा करने लगे हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल रहे हैं जो समय समय पर भारत की सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाते रहे हैं। लेकिन इसे आठ वर्ष का राम राज ही कहा जाएगा कि अब भारत की सनातन संस्कृति के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन सलमान खुर्शीद को अच्छा लगने लगा है। यही वजह है कि खुर्शीद अपने नेता राहुल गांधी की तुलना राम से करने लगे हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तीन जनवरी को उत्तर प्रदेश में प्रवेश करेगी। सब जानते हैं कि भगवान राम का जन्म भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में हुआ था। 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम जब अयोध्या आए, तब अयोध्या में जश्न मनाया गया। राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश आगमन को भी खुर्शीद राम के आगमन की तरह देख रहे हैं। कुछ हिन्दूवादी संगठन राहुल की राम से तुलना करने पर नाराज हैं। लेकिन इस तुलना की सकारात्मकता देखी जाए तो यह कांग्रेस पार्टी और उनके नेताओं के संदर्भ में अच्छा संकेत है। विरोध करने वालों के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि सलमान खुर्शीद जैसी सोच वाला कांग्रेसी भी राहुल गांधी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुण देखना चाहता है। कल्पना कीजिए कि यदि राहुल गांधी, राम के जीवन का अनुसरण करते हैं, तब क्या होगा? तब राहुल गांधी चीन की ताकत की प्रशंसा करने के बजाए अपने देश भारत और उसकी सेनाओं की प्रशंसा करेंगे। तब राहुल गांधी और उनकी पार्टी के नेता पाकिस्तान पर होने वाली सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत भी नहीं मांगेंगे, क्योंकि उन्हें भारत की सेना के कथन पर भरोसा होगा। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम इसीलिए कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर मर्यादा का पालन किया। रावण से युद्ध के समय भी मर्यादाओं का ख्याल रखा। अब यदि राहुल गांधी भी मर्यादाओं का पालन करेंगे तो देश की अनेक समस्याओं का समाधान हो जाएगा।   राहुल गांधी उन लोगों को भी समझाने में सफल होंगे जो एनआरसी, सीएए जैसे कानूनों का विरोध करते हैं। राहुल गांधी में यदि राम जैसे गुण आएंगे तो फिर कश्मीर में टारगेट किलिंग भी नहीं होगी। सलमान  खुर्शीद के बयान का विरोध करने के बजाए खुर्शीद की बदलती सोच का स्वागत किया जाना चाहिए, साथ ही ईश्वर से प्रार्थना की जानी चाहिए कि राहुल गांधी भी राम के जीवन को आत्मसात करें। भारत जोड़ो यात्रा में यदि राहुल गांधी अयोध्या में जाकर भगवान राम के चारणों में सिर झुकाते हैं तो यह देश के लिए अच्छी बात होगी। जिस कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु के समुद्र में राम सेतु के प्रकरण में राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था, उसी सरकार के मंत्री खुर्शीद अब अपने नेता को राम के रूप में देखना चाहते हैं। सनातन संस्कृति को मानने वालों को तो खुश होना चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (28-12-2022)
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रीट पेपर आउट प्रकरण में शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष डीपी जारौली का मुंह बंद क्यों कराया?इसीलिए अब पेपर आउट मामलों की जांच सीबीआई से कराने की मांग को रही है।

राजस्थान में कांग्रेस के चार वर्ष के 16 बार भर्ती परीक्षाओं के पेपर आउट हुए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं कि पेपर आउट करने वालों को पकड़ा गया है। गहलोत का कहना है कि भाजपा शासित राज्यों में भी पेपर आउट होते हैं, लेकिन वहां आरोपियों के खिलाफ राजस्थान जैसी प्रभावी कार्यवाही नहीं होती है। गहलोत के दावे में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा, लेकिन अभी हकीकत यह है कि रीट परीक्षा के पेपर आउट मामले में यदि शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष डीपी जारौली का मुंह बंद नहीं करवाया जाता तो पेपर आउट गिरोह को संरक्षण देने वालों को पकड़ लिया जाता। सब जानते हैं कि रीट का पेपर आउट होने के बाद अजमेर स्थित माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारौली को बर्खास्त कर दिया गया। अपनी बर्खास्तगी पर जारौली ने कहा था कि रीट पेपर के प्रकरण में राजनीतिक संरक्षण की भी जांच होनी चाहिए। जारौली का इशारा गहलोत सरकार के एक मंत्री के दखल की ओर था। लेकिन तब जारौली का मुंह बंद करवा दिया और फिर जारौली को क्लीन चिट भी दे दी गई। लेकिन जांच तक भी यह पता नहीं चला कि जयपुर के शिक्षा संकुल में बनाए गए स्ट्रॉंग रूप (रीट के पेपर रखने का स्थान) में गड़बडिय़ां किसने करवाई। रीट का पेपर इसी स्ट्राँग रूम से बाहर निकला था। तब जांच में यह सामने आया कि प्रदेश भर में रीट के पेपर सरकारी ट्रेजरी में रखे गए, लेकिन जयपुर में ट्रेजरी के स्थान पर शिक्षा संकुल में रखे गए। इतना ही नहीं जयपुर में रीट परीक्षा का समन्वयक भी गैर सरकारी व्यक्तियों को बना दिया। कुछ लोग तो कोचिंग कारोबार से जुड़े थे। जांच में यह भी सामने आया कि सुभाष गर्ग (अभी राज्यमंत्री) जब शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष थे, तब हुई रीट परीक्षा में जिस कम्प्यूटर फर्म और प्रिंटिंग प्रेस को काम दिया उन्हीं फार्मों को फिर से काम दे दिया गया। रीट परीक्षा की जिम्मेदारी राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े कॉलेज व्याख्याताओं को दी गई। यानी रीट परीक्षा की तैयारियां पूरी तरह राजनीतिक शिकंजे में थीं। लेकिन जांच में असली गुनाहगारों को बचाया गया। तब यदि असली गुनहगारों पर कार्यवाही हो जाती तो पुलिस कांस्टेबल, सैकंड ग्रेड अध्यापक परीक्षा के प्रश्न पत्र आउट नहीं होते। सब जानते हैं कि गहलोत सरकार को बनाए खन में मंत्री सुभाष गर्ग की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सीएम गहलोत पेपर आउट प्रकरणों में आरोपियों को पकडऩे का दावा करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले चार वर्ष में एक भी आरोपी को सजा नहीं मिली है। गंभीर बात तो यह है कि बदमाश पुलिस कांस्टेबल परीक्षा के आरोपी रहे उन्होंने राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा जी जाने वाली सैकंड ग्रेड अध्यापक परीक्षा का पेपर आउट करवाया। यानी पेपर आउट करने वालों को कानून का कोई डर नहीं है। राज्यसभा के सांसद किरोडीलाल मीणा ने ही सबसे पहले बताया था कि रीट का पेपर जयपुर के शिक्षा संकुल से आउट हुआ है। इस बार मीणा ने ही सबसे पहले कहा है कि सैकंड ग्रेड अध्यापक भर्ती परीक्षा का सामान्य ज्ञान के प्रश्न अजमेर स्थित आयोग की गोपनीय शाखा से बाहर निकले हैं। यह सही है कि आयोग की गोपनीय शाखा में ही कई शिक्षाविदों से प्रश्न मंगाए जाते हैं और एक प्रश्न पत्र तैयार कर प्रिंटिंग प्रेस में भेजा जाता है। प्रश्न पत्र को तैयार करने का कार्य आयोग के अध्यक्ष की देखरेख में होता है। जालोर में किसी गिरोह या परीक्षार्थियों के पास प्रिंटिंग प्रेस वाला पेपर नहीं मिला है, जबकि आयोग में तैयार होने वाले प्रश्न प्राप्त हुए हैं। ये प्रश्न प्रिंटिंग प्रेस वाले पेपर के प्रश्नों से मिलते हैं। यानी आयोग में जो कार्मिक प्रश्नों को तैयार करते हैं उनका संबंध पेपर आउट गिरोह से है। इनमें कोचिंग सेंटरों के संचालक भी शामिल हैं। सामान्य ज्ञान का पेपर लीक होने के प्रकरण में आयोग अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है। चूंकि पिछले प्रकरणों में जांच में खामियां रही, इसलिए अब विपक्ष सीबीआई की मांग कर रहा है। विपक्ष कितना भी हो हल्ला मचा ले, लेकिन सीएम गहलोत पेपर घोटालों की जांच सीबीआई से नहीं करवाएंगे। गहलोत की प्राथमिकता अपनी सरकार को बचाए रखने की है। वैसे भी राजनीतिक कारणों से गहलोत सीबीआई जांच की सिफारिश नहीं करेंगे। गहलोत तो पहले ही सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं। गहलोत का मानना है कि उनके अधीन काम करने वाली जांच एजेंसियां तो निष्पक्ष है और केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी आदि जांच एजेंसियां स्वतंत्र नहीं है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (28-12-2022)
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अब फोन रिसीव न करने पर आदिवासी छात्रा नील कुसुम की हत्या शाहबाज ने कर दी।आखिर किसे सबक लेने की जरूरत है?

27 दिसंबर को प्रसारित मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी छात्रा नील कुसुम की हत्या शाहबाज नामक युवक ने कर दी है। नील कुसुम का कसूर इतना ही था कि उसने शाहबाज का फोन रिसीव नहीं किया। गुस्से में शाहबाज ने कुसुम के मुंह पर धारदार हथियार से ऐसा बार किया उसकी मौत हो गई। हमले के बाद शाहबाज फरार हो गया। आदिवासी छात्रा कुसुम की हत्या की खबर तब आई है, जब टीवी एक्ट्रेस तुनिषा शर्मा की मौत की खबर सुर्खियों में है। तुनिषा की मौत का कारण उसके प्रेमी जीशान खान को बताया जा रहा है। तुनिषा की मौत के बाद जीशान को गिरफ्तार कर लिया है। पिछले दिनों जब दिल्ली में श्रद्धा के 35 टुकड़े वाली खबर आई थी, तब एक बार फिर लव जिहाद का मुद्दा उछला था, क्योंकि श्रद्धा को भी उसके प्रेमी आफताब ने बड़ी बेरहमी से मारा था। ये घटनाएं तो वे हैं जो अभी सुर्खियों में हैं, लेकिन ऐसी सैकड़ों घटनाएं होती है, जिनके बारे में पता ही नहीं चलता। सवाल उठता है कि ऐसी घटनाओं से सबक कौन लेगा? जिस बेरहमी से आदिवासी छात्रा नील कुसुम को मारा गया, उससे प्रतीत होता है कि शाहबाज के दिल में मोहब्बत की कोई बात नहीं थी। यदि शाहबाज, कुसुम को प्यार करता तो उसके मुंह पर हथियार से वार नहीं करता। इसी प्रकार आफताब भी अपनी प्रेमिका श्रद्धा के 35 टुकड़े नहीं करता जबकि श्रद्धा ने तो अपने परिवारों वालों के खिलाफ जाकर आफताब के साथ रहने का फैसला किया था। अब एक्टे्रस तुनिषा शर्मा की माताजी भी टीवी न्यूज चैनलों पर रोते हुए जीशान खान को हत्यारा बता रही हैं। जिन लड़कियों को लगता है कि ऐसे युवकों से प्यार मोहब्बत करना गलत नहीं है, नील कुसुम, तुनिषा शर्मा और श्रद्धा की हत्याओं से कुछ तो सबक लेना चाहिए। कोई युवक सही मायने में प्रेम करेगा तो अपनी प्रेमिका को कभी भी बेरहमी से नहीं मारेगा। आधी आबादी पर कोई अंकुश लगाने की बात अब बेमानी है। अब तो लड़कियों को ही समझने की जरूरत है। समझना तो यह भी जरूरी है कि माता पिता ने कितनी कठिनाइयों के बाद लड़की का पाला और उच्च शिक्षा के लिए किसी महानगर में भेजा। आमतौर पर देखा गया है कि जो लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए घर से निकलती है फिर वे लौट कर नहीं आती। उच्च शिक्षा लेने के बाद महानगरों में ही नौकरी करने लग जाती हैं। ऐसी लड़कियों को अपने आप पर ज्यादा नियंत्रण की जरूरत है। उन माता पिता की पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन की बेटियों की हत्या शाहबाज, आफताब जैसे युवकों ने कर दी। अच्छा हो कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने और फिर नौकरी प्राप्त करने वाली लड़कियां अपने माता-पिता की पसंद के लड़के से ही विवाह करें। कोई माता-पिता नहीं चाहेगा कि विवाह के बाद उनकी बेटी को परेशानी हो। अब जमाना भी बदल गया है। मध्यम वर्गीय परिवार के माता-पिता भी अपनी बच्ची की पसंद को प्राथमिकता देते हैं। माता-पिता को लड़का पसंद आ जाने के बाद भी यही कहा जाता है कि लड़की को लड़का पसंद आने पर रिश्ता पक्का होगा। यानी कोई भी माता-पिता अपनी पसंद को बच्ची पर नहीं थोपता है। यह सोच शाहबाज, आफताब, जीशान खान जैसे युवकों के मामलों में ही नहीं होती, बल्कि अधिकांश तौर पर होती है। उच्च शिक्षा तो बहुत आगे की बात 10वीं और 12वीं उत्तीर्ण करने वाली लड़कियों को भी अपनी पसंद का वर चुनने की स्वतंत्रता हो गई है। सवाल उठता है कि जब वर चुनने की स्वतंत्रता है फिर ऐसे युवकों को चयन क्यों किया जाता है जो शरीर के 35 टुकड़े कर दे या फिर मुंह पर हमला कर हत्या कर दें। सवाल शाहबाज, आफताब और जीशान खान का ही नहीं है बल्कि युवक के चयन में सतर्कता बरतने की है। बेटियां महफूज रहें यह हर माता पिता चाहता है। मुस्लिम धर्म में तो लड़कियों को बहुत संभाल कर रखा जाता है। तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान में तो लड़कियों को शिक्षा लेने पर ही प्रतिबंध रखा है। अफगानिस्तान के शासन में लड़कियों के शिक्षा ग्रहण के खिलाफ है। हालांकि भारत में मुस्लिम लड़कियों को भी शिक्षा ग्रहण की स्वतंत्रता है, लेकिन भारत में ऐसी संस्थाएं हैं जो तालिबान की नीतियों की पक्षधर है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-12-2022)
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राहुल गांधी को प्रकृति से तो डरना ही चाहिए। नरेंद्र मोदी तो डरते हैं।

26 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित सिक्ख समुदाय के एक धार्मिक समारोह में भाग लिया। चूंकि सर्दी के मौसम में दिल्ली का तापमान 5 डिग्री से भी नीचे है इसलिए पीएम मोदी ने प्रकृति से डरते हुए गरम कोट भी पहना। लेकिन 26 दिसंबर को दिल्ली में ही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक की समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि दी। लेकिन दिल्ली के पांच डिग्री तापमान में राहुल गांधी ने हाफ बांह की टी शर्ट पहन रखी थी। यानी टी शर्ट पर कोई गर्म परिधान नहीं था। राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ों यात्रा निकाल रहे हैं। यात्रा के दौरान राहुल ने कई बार कहा है कि वे किसी से डरते नहीं है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार उन पर कितना भी हमला करवाए, लेकिन वे लोगों की आवाज को बुलंद करते रहेंगे। यह सही है कि राहुल गांधी को किसी सरकार से डरना नहीं चाहिए, लेकिन राहुल को प्रकृति से डरना ही पड़ेगा। जब दिल्ली में हाड कंपकपाने वाली ठंड हो, तब हाफ टी शर्ट में घूमना कोई अक्लमंदी नहीं है। यह माना कि पीएम मोदी के मुकाबले में राहुल की उम्र कम है, लेकिन फिर भी राहुल गांधी को प्रकृति के अनुरूप आचरण करना चाहिए। न जाने किस मन्नत की वजह से राहुल ने पांच डिग्री तापमान में हाफ बांह वाली टी शर्ट पहनी है, लेकिन उनकी माताजी सोनिया गांधी भी नहीं चाहेंगी कि उनका पुत्र सर्दी में टी शर्ट पहन कर घूमे। राहुल गांधी की यात्रा को जनवरी तक ब्रेक दिया गया है। भारत जोड़ों यात्रा 3 जनवरी से उत्तर प्रदेश से शुरू होगी। यात्रा को 26 जनवरी तक जम्मू कश्मीर के श्रीनगर तक पहुंचना है। श्रीनगर का तापमान तो माइनस में चल रहा है। उत्तर प्रदेश में आगे भी बर्फ जमा देने वाली सर्दी है। राहुल ने अपनी यात्रा 110 दिन पहले केरल के कन्याकुमारी से शुरू की थी, तब से दिल्ली तक राहुल गांधी सफेद रंग की हाफ बांह की टी शर्ट में ही नजर आ रहे हैं। सवाल उठता है कि जब 3 जनवरी को भारत जोड़ो यात्रा पुन: शुरू होगी, क्या तब भी राहुल गांधी टी शर्ट में ही नजर आएंगे? यदि ऐसा होगा तो माना जाएगा कि राहुल गांधी अब प्रकृति से भी लड़ने के मूड में हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि राहुल की यात्रा किसी वाहन में नहीं बल्कि पद यात्रा है। राहुल प्रतिदिन 25 किलोमीटर पैदल चलते हैं। राहुल ने कांग्रेस शासित राजस्थान में भी मंत्रियों को अपने प्रभाव वाले जिलों में 15 किलोमीटर की पदयात्रा करने की सलाह दी है।

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Monday 26 December 2022

स्वामी विवेकानंद संदेश यात्रा 1 को तथा महालक्ष्मी जन आशीर्वाद यात्रा 2 जनवरी को अजमेर आएगी।अग्रोहा में बन रहा है महालक्ष्मी का भव्य मंदिर।

स्वामी विवेकानंद संदेश यात्रा अजमेर में 1 जनवरी को प्रवेश करेगी। यह यात्रा करीब पांच दिनों तक जिले भर में भ्रमण कर स्वामी विवेकानंद के विचारों का प्रचार प्रसार करेगी। यात्रा के साथ ही साहित्य रथ भी होगा, जिसमें विवेकानंद की पुस्तकें उपलब्ध होंगी। अजमेर में आयोजन समिति के संयोजक सुनील दत्त जैन ने बताया कि 1 जनवरी को शाम पांच बजे विजय लक्ष्मी पार्क में नागरिक सम्मेलन रखा गया है। इस सम्मेलन में केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मुख्य अतिथि होंगे, जबकि निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर श्री श्याम शरण देवाचार्य भी सम्मेलन की शोभा बढ़ाएंगे। जैन ने बताया कि इस दिन प्रात: 7 बजे से विवेकानंद संदेश साइकिल रैली आनासागर चौपाटी से रीजनल कॉलेज तक निकलेगी। दोपहर दो बजे परबतपुरा बायपास से वाहन रैली के जरिए संदेश यात्रा को महावीर सर्किल तक लाया जाएगा। महावीर सर्किल से यात्रा विजय लक्ष्मी पार्क पहुंचेगी। इस दौरान युवा स्वामी विवेकानंद के भेष में चलेंगी। यात्रा के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829147270 पर सुनील दत्त जैन से ली जा सकती है।
 
महालक्ष्मी रथ यात्रा:
भारतीय अग्रवाल सम्मेलन की जिला शाखा के अध्यक्ष गिरधारी लाल मंगल और शैलेंद्र अग्रवाल ने बताया कि महालक्ष्मी जन आशीर्वाद यात्रा 2 जनवरी को अजमेर पहुंचेगी। यह यात्रा 8 जनवरी तक अजमेर जिले में भ्रमण करेगी। उन्होंने बताया कि हरियाणा के अग्रोहा धाम में महालक्ष्मी का भव्य मंदिर बन रहा है। इस मंदिर में 108 किलो ठोस चांदी की महालक्ष्मी की प्रतिमा बनेगी और 108 किलो चांदी का ही सिंहासन स्थापित किया जाएगा। यह मंदिर 108 फिट ऊंचा तथा 108 फिट लंबा एवं चौड़ा होगा। मंदिर की व्यापक प्रचार प्रसार के लिए ही जनआशीर्वाद यात्रा देशभर में निकाली जा रही है। इस यात्रा को लेकर अजमेर के अग्रवाल समाज में उत्साह है। यात्रा के दौरान विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। यात्रा की तैयारियों के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414280962 पर शैलेंद्र अग्रवाल तथा मोबाइल नंबर 9829072977 गिरधारी मंगल से ली जा सकती है। 

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राजस्थान में अध्यापक भर्ती परीक्षा का एक पेपर लीक होने पर गहलोत सरकार की फिर देशभर में चर्चा।कवि कुमार विश्वास और पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य की पत्नियां हैं परीक्षा करवाने वाले राजस्थान लोक सेवा आयोग की सदस्य।मुख्यमंत्री! आयोग का कुछ तो सम्मान बरकरार रखो।

राजस्थान में वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा का सामान्य ज्ञान का पेपर लीक होने पर एक बार फिर अशोक गहलोत सरकार की विफलता ही देश भर में चर्चा हो रही है। गहलोत के पिछले चार साल में 16 बार परीक्षा के पेपर लीक हुए हैं। गंभीर बात तो यह है कि पेपर लीक में सरकार के कुछ मंत्रियों पर भी अंगुलियां उठी है। यह भी गंभीर बात है कि पेपर लीक में पकड़े गए किसी भी आरोपी को अभी तक सजा नहीं मिली है। इसीलिए अब पेपर लीक मामलों की जांच सीबीआई से करवाने की मांग हो रही है। यह सही है कि पेपर लीग करवाने में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन अपनी सरकार को चलाने के लिए कई बार समझौते करने पड़ते हैं। प्रदेश में अधिकांश परीक्षाएं राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है। वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा भी आयोग द्वारा ली जा रही हैं। यही आयोग राज्य की प्रशासनिक और पुलिस सेवा के अधिकारियों की परीक्षा भी आयोजित करता है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि आयोग में नियुक्त होने वाले सदस्य ईमानदार छवि के साथ साथ शिक्षाविद् और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी हों। मौजूदा समय में अध्यक्ष सहित जो चार सदस्य हैं उन पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण कैसे कैसे व्यक्तियों को आयोग के महत्वपूर्ण सदस्य के पद पर नियुक्त किया है। अध्यक्ष सहित चार सदस्यों में दो महिलाएं हैं। ऐसा नहीं कि पुरुषों के मुकाबले में महिलाएं योग्य नहीं होती है। कई बार तो महिलाओं की योग्यता ज्यादा अच्छी होती है। लेकिन आयोग में नियुक्त दोनों महिला सदस्यों की नियुक्ति का आधार स्वयं की योग्यता से ज्यादा पतियों की योग्यता है। सब जानते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी को पप्पू की संज्ञा सबसे पहले सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास ने ही दी थी। कवि मंचों पर कुमार विश्वास सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी का मजाक उड़ाते थे, लेकिन जब से कुमार विश्वास की पत्नी श्रीमती मंजू शर्मा को राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाया है, तब से कुमार विश्वास ने राहुल गांधी को पप्पू कहना छोड़ दिया है। अब कवि मंचों से कांग्रेस की आलोचना भी नहीं की जाती। कुमार विश्वास का यह बदला रुख इसलिए कि उनकी पत्नी राजस्थान में भर्ती परीक्षा लेने वाली सबसे बड़ी संस्था की सम्मानित सदस्य हैं। सरकार की ओर से कवि की पत्नी को सरकारी बंगले से लेकर मोटी तनख्वाह तक दी जाती है। इसी प्रकार श्रीमती संगीता आर्य को आयोग का सदस्य तब बनाया गया, जब उनके पति निरंजन आर्य प्रदेश के मुख्य सचिव थे। प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र में सबसे बड़ा पद मुख्य सचिव का होता है। मुख्य सचिव की पत्नी को आयोग का सदस्य क्यों बनाया यह तो सीएम अशोक गहलोत ही बता सकते हैं। सीएम गहलोत आईएएस निरंजन आर्य पर भी इतने मेहरबान रहे कि 10 आईएएस की वरिष्ठता को लांघ कर पहले मुख्य सचिव बनाया और रिटायरमेंट के बाद अब अपना सलाहकार भी बना रखा है। इतनी मेहरबानियों के बाद निरंजन आर्य ने किस नजरिए के साथ मुख्य सचिव के पद पर कार्य किया होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। किसी शिक्षाविद् और विषय विशेषज्ञ के मुकाबले में कुमार विश्वास और निरंजन आर्य की पत्नियों की योग्यता के बारे में सरकार की जवाबदेह है। गत वर्ष ही गहलोत सरकार ने एक मात्र पुस्तक के लेखक जसवंत राठी को भी आयोग का सदस्य नियुक्त किया। कहा जा रहा है कि राठी की नियुक्ति भी राजनीतिक मजबूरियों के चलते ही हुई है। अलबत्ता आईपीएस संजय श्रोत्रिय अपने दम पर आयोग का संचालन करने के लिए संघर्षरत हैं। सीएम गहलोत को सदस्य की नियुक्ति करने में आयोग की गरिमा का कुछ तो ख्याल रखना ही चाहिए। राजस्थान लोक सेवा आयोग जैसी संवैधानिक संस्थान का मान सम्मान भी आयोग में नियुक्त होने वाले सदस्यों से ही होता है। 


S.P.MITTAL BLOGGER (26-12-2022)

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डिंगल भाषा के कवि और विद्वान शक्तिदान कविया के लेखन को संरक्षित करेगा अजमेर का चारण शोध संस्थान।लेकिन अफसोस महाकवि कविया जोधपुर यूनिवर्सिटी की राजनीति के कारण प्रोफेसर नहीं बन सके-डॉ. गजादान।चारणों की सभा में आकर मुझे मेरी विद्वता का भ्रम दूर हो गया-प्रो. अनिल शुक्ला।मंदिर का पुजारी हो तो ओंकार सिंह लखावत जैसा।

25 दिसंबर का दिन देश के राजस्थानी खास कर चारण साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाएगा। राजस्थान के अजमेर में चारण शोध संस्थान के परिसर में एक ऐसा साहित्यिक समारोह हुआ, जिसे देश का इतिहास याद रखेगा। यह समारोह डिंगल भाषा के महाकवि और विद्वान शक्तिदान कविया की स्मृति में रखा गया। इस समारोह में राजस्थान भर के चारण कवि और विद्वानों ने भाग लिया। कोई चार घंटे तक चले इस समारोह में डिंगल भाषा की कविताओं का जो पाठ हुआ, वह वाकई अद्वितीय रहा। जोधपुर यूनिवर्सिटी में व्याख्याता रहे शक्तिदान कविया के परिवार वालों ने वे सभी हस्तलिखित गीत और कविताएं चारण शोध संस्थान को दी है, जिस पर राजस्थान की संस्कृति देखी जा सकती है। संस्थान के अध्यक्ष भंवर सिंह चारण और डॉ. सरला लखावत ने बताया कि कवियाजी के गीतों और कविताओं को ज्यों का त्यों 15 हजार पृष्ठों पर कंप्यूटर से स्कैन किया गया है। डिंगल भाषा का यह साहित्य अब शोधार्थियों के लिए उपलब्ध रहेगा। उन्होंने बताया कि कवियाजी ने अपने गीत और कविताएं तो लिखी ही हैं, साथ ही दूसरे कवियों की कविताओं को डिंगल भाषा में लिखा है जो अपने आप में ऐतिहासिक है। कई  कविताएं तो एक हजार साल पुरानी हैं। कवियाजी 1952 में जब सातवीं कथा के विद्यार्थी थे, तभी कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उनकी विद्वता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साधारण से कागज पर भी कविताएं लिखी गई है। चारण शोध संस्थान के लिए यह गर्व और सम्मान की बात है कि परिवार वालों ने कविया जी का लेखन हमें दिया है। यह लेखन न केवल संरक्षित किया जाएगा, बल्कि इसे प्रकाशित भी किया जाएगा।
 
लेकिन प्रोफेसर नहीं बन सके:
दिवंगत शक्तिदान कविया पर पुस्तक लिखने वाले डॉ. गजादान सुक्तिसुत ने समारोह में कहा कि जिस महाकवि के लेखन पर आज युवा वर्ग शोध कर रहा है, वे अपने जीवन काल में जोधपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर नहीं बन सके। प्रोफेसर बनने की सारी योग्यताएं कवियाजी में थी, लेकिन यूनिवर्सिटी की राजनीति के कारण प्रोफेसर का पद नहीं मिला। गजादान ने युवा पीढ़ी से आव्हान किया है कि वे अजमेर में माकड़वाली रोड स्थित चारण शोध संस्थान पर आएं और कवियाजी के लेखन को समझें। कवियाजी ने डिंगल भाषा में जो लिखा है, वह देश दुनिया के लिए साहित्य अमृत है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि कवियाजी के जीवनकाल में ही उन पर पुस्तक लिखने का अवसर मिला।
 
भ्रम दूर हो गया:
समारोह में एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. अनिल शुक्ला ने कहा कि उन्हें अपनी विद्वता पर बड़ा गर्व था। उन्हें लगता था कि ब्रजभाषा का उन्हें बहुत जानकारी है, लेकिन आज चारणों की इस सभा में आकर मेरी विद्वता का भ्रम दूर हो गया है। चारण विद्वानों ने जिस तरह डिंगल भाषा में कविताएं पढ़ी हैं, वह वाकई काबिले तारीफ है। मुझे अभी चारणों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। प्रो. शुक्ला ने कहा कि चारण साहित्य को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने में एमडीएस यूनिवर्सिटी भरपूर प्रयास करेगी। प्रो. शुक्ला ने लेखन को लिखने और समझने का एक उदाहरण भी दिया। प्रो. शुक्ला ने बताया कि भारत के इतिहास और संस्कृति को पंडित जवाहरलाल नेहरू और मदन मोहन मालवीय ने भी लिखा है। लेकिन पंडित नेहरू ने साहित्य अंग्रेजी में पढ़ा, जबकि मालवीय ने संस्कृत भाषा में साहित्य को पढ़ कर भारत के बारे में लिखा है। यही वजह है कि आज मालवीय जी की पुस्तकों को ज्यादा पढ़ा जाता है। प्रो. शुक्ला ने कहा कि शक्तिदान कविया भले ही यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नहीं बन सके हों, लेकिन आज उनका सम्मान किसी चांसलर से भी ज्यादा है। उनके लेखन से युवा पीढ़ी अमृत्व प्राप्त करेगी। समारोह में आईएएस राजेंद्र सिंह रत्नू, डीएवी कॉलेज के प्राचार्य लक्ष्मीकांत शर्मा आदि ने भी विचार रखे।
 
मंदिर के पुजारी:
राज्यसभा के सांसद और दो बार भाजपा सरकार में राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे ओंकार सिंह लखावत ने 1985 में अजमेर में चारण शोध संस्थान की स्थापना की थी। तब लखावत ने राजस्थान और देशभर में घूम कर चारण कवियों और विद्वानों का साहित्य एकत्रित किया। आज यह संकलन ऐतिहासिक हो गया है। लखावत ने बताया कि आज भी हमारा संस्थान राजस्थानी भाषा के कवियों और विद्वानों का साहित्य एकत्रित करने के लिए तत्पर रहता है। अब तो डिजिटलाइजेशन का कार्य भी शुरू कर दिया है ताकि दुनिया भर में लोग चारणों की संस्कृति और विचारों को समझ सके। चारण साहित्य में देश का इतिहास और संस्कृति समाहित है। आज हमारे संस्थान में महाकवि सूर्यमल्ल मीसण के महाकाव्य और केसरी सिंह बारहठ का साहित्य भी उपलब्ध है। चारण साहित्य को एकत्रित और संरक्षित करने में पद्मश्री चंद्र प्रकाश देवल का विशेष योगदान है। मुझे इस बात का गर्व है कि आज हमारे शोधार्थी हमारे संस्थान में आकर शोध कार्य कर रहे हैं। संस्थान परिसर में साहित्य की समृद्ध लाइब्रेरी के साथ साथ हॉस्टल भी है, जहां शोधार्थी कुछ समय के लिए रह सकते हैं। चारण कवियों द्वारा लिखी कविताओं को पढ़ कर कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान भी कर सकता है। मुगल काल से पहले से लेकर आज तक चारण कवियों ने जो साहित्य लिखा है, उसमें इतिहास की सभी घटनाओं का उल्लेख है। यानी हजारों साल पहले की घटनाओं की जानकारियां भी राजस्थानी, डिंगल, पिंगल आदि भाषाओं में लिखी कविताओं से हो सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि संस्थान का संस्थापक पुजारी बनकर लखावत ने इसे सर्वोच्च मुकाम पर पहुंचा दिया है। संस्था की गतिविधियों की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414007610 पर ओंकार सिंह लखावत से ली जा सकती है। 

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Friday 23 December 2022

प्रभारी मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने अजमेर में व्यापारियों से यूजर चार्ज वसूली पर रोक लगाने के निर्देश दिए।

अजमेर के प्रभारी मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने शहर के व्यापारियों से कचरा संग्रहण के तहत यूजर चार्ज की वसूली नहीं करने के निर्देश दिए हैं। मालवीय 23 दिसंबर को जब अजमेर के नया बाजार स्थित राजकीय संग्रहालय परिसर में आयोजित एक सरकारी समारोह में उपस्थित थे, तभी श्री अजमेर व्यापारिक महासंघ के अध्यक्ष महेंद्र बंसल ने मालवीय का ध्यान यूजर चार्ज वसूली की ओर दिलाया। बंसल ने कहा कि प्रदेश के किसी भी नगर निगम द्वारा यूजर चार्ज नहीं वसूला जा रहा है। अजमेर एकमात्र शहर है जहां नगर निगम जबरन वसूली कर रहा है। बंसल की इस बात का कांग्रेस के नेता महेंद्र सिंह रलावता, विधायक राकेश पारीक, पूर्व विधायक नसीम अख्तर आदि ने भी समर्थन किया। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि कचरा संग्रहण शुल्क के वर्गीकरण का प्रस्ताव नगर निगम की ओर से राज्य सरकार को भेज रखा है। इस पर मालवीय ने समारोह में उपस्थित जिला कलेक्टर अंशदीप से कहा कि जब तक राज्य सरकार के दिशा निर्देश प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक यूजर चार्ज वसूली को स्थगित कर दिया जाए। मालवीय ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि जब प्रदेश के किसी भी नगर निगम द्वारा यूजर चार्ज नहीं वसूला जा रहा है, तब यह वसूली अजमेर में क्यों की जा रही है। मालवीय ने कहा कि अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार जनसेवा के कार्य में जुटी हुई है। ऐसे में छोटे व्यापारियों से जबरन यूजर चार्ज वसूलना उचित नहीं है। व्यापारिक महासंघ के अध्यक्ष बसंल ने मंत्री को बताया कि उनका 70 साल पुराना है, लेकिन फिर भी नगर निगम ने मकान को अवैध मानते हुए तोड़ने के पांच नोटिस दे दिए हैं। यह नोटिस इसलिए दिए गए है ताकि यूजर चार्ज वसूली का विरोध बंद हो जाए। बंसल ने मंत्री को बताया कि गत 20 दिसंबर को अजमेर के सभी व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान स्वेच्छा से बंद रखे। जिन व्यापारिक प्रतिनिधियों ने बंद का समर्थन किया, उन्हें भी नोटिस दिए जा रहे हैं। बंसल ने कहा कि नगर निगम का प्रशासन व्यापारियों को डरा रहा है। 

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राजनीति में तकदीर हो तो विधायक अनिता भदेल जैसी हो।25 वर्षों में कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा। शादी के बाद पलटी तकदीर।पुष्कर घाटी में बंदरों को केले भी खिलाए।

राजस्थान की पूर्व मंत्री और मौजूदा समय में प्रदेश भाजपा की तेज तर्रार प्रवक्ता तथा लगातार चार बार की विधायक अनिता भदेल ने 23 दिसंबर को अपना 51वां जन्मदिन मनाया। निर्वाचन क्षेत्र अजमेर दक्षिण में जगह जगह स्वागत समारोह हुए तथा क्षेत्र के लोगों ने भदेल के स्वस्थ रहने और लंबी उम्र की कामना के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। भदेल ने भी दक्षिण क्षेत्र के मतदाताओं को भरोसा दिलाया कि वे सेवा का कार्य करती रहेंगी। आमतौर पर राजनीति में लंबी जद्दोजहद के बाद एक बार विधायक बनने का अवसर मिलता है। कई कार्यकर्ता तो दरिया बिछाते हुए ही अपना जीवन पूरा कर लेते हैं। कई कार्यकर्ता संगठन में तो ऊंचे पद पर पहुंच जाते हैं, लेकिन विधायक या सांसद बनने का सुख प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन इसके उलट अनिता भदेल राजस्थान में ऐसी राजनीतिज्ञ हैं, जिन्हें एक बार अवसर मिला तो उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। करीब 24 वर्षों के राजनीतिक सफर में भदेल ने कभी भी हार का सामना नहीं किया। वर्ष 2000 से पहले तक भदेल का परिवार भी सामान्य ही था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक द्वारा संचालित सेवा कार्यों से जुड़ कर ही जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने का कार्य करती थी। वर्ष 2000 में ही जब सरकारी कार्मिक भीमसेन से विवाह हुआ, तब भी अनिता भदेल की कोई खास पहचान नहीं थी, लेकिन विवाह के तुरंत बाद ग्रहों ने ऐसा पलटा खाया कि भदेल को भजन गंज क्षेत्र से ही वार्ड पार्षद का चुनाव लड़ने का अवसर मिला और पार्षद बनते ही अजमेर नगर परिषद की सभापति बन गई। चूंकि अजमेर दक्षिण क्षेत्र एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, इसलिए 2003 के चुनाव में भदेल को भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का अवसर मिल गया। 2003 में विधायक बनीं तो आज 2023 तक विधायक पद पर बरकरार हैं। भदेल ने राजनीति के हर हालातों में चुनाव जीत कर अपनी काबिलियत प्रदर्शित की है। जो लोग राजनीति में हैं, उन्हें पता है कि एक ही क्षेत्र से लगातार चार बार चुनाव जीतना कितना मुश्किल भरा काम है। मतदाताओं से ज्यादा तो अपनी पार्टी के नेता ही नाखुश हो जाते हैं। लेकिन भदेल अब राजनीति में मंजी खिलाड़ी हो गई हैं, इसलिए उन्हें भी चुनाव जीतने के सारे तौर तरीके आते हैं। उन्हें यह भी पता है कि राजनीति में अपने प्रतिद्वंदी को किस तरह मात दी जाती है। भदेल भाजपा की राजनीति में बड़े नेताओं के साथ संतुलन बनाने में भी माहिर हो गई है। कुछ लोग भदेल को गुस्से वाली राजनेता मानते हैं, लेकिन फिर भी यह कहा जा सकता है कि चार बार विधायक का चुनाव जीतने और एक बार स्वतंत्र प्रभार का मंत्री रहने पर जो घमंड किसी नेता में आ जाता है, वैसा घमंड अनिता भदेल में देखने को नहीं मिलता। दक्षिण क्षेत्र में ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जिनके कार्य भदेल ने घर बैठे करवाए हैं। अपने क्षेत्र में पेयजल के लिए पाइप लाइन बिछाने का कार्य हो या फिर सड़क निर्माण का, सभी विकास कार्य करवाने में भदेल हमेशा सक्रिय रहती हैं। भजन गंज वाले आवास पर कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति आकर मदद प्राप्त कर सकता है। भदेल की राजनीति की एक खासियत यह भी है कि उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को उत्तराधिकारी नहीं बनाया है। पति भीमसेन ने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति भी ले ली है, लेकिन पत्नी की राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। भीमसेन खुद भी राजनीति से दूर रहना चाहते हैं। अनिता भदेल के एक पुत्र हैं जो अजमेर बांदरसिंदरी स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा है। पुत्र यश को भी माताजी की राजनीति में कोई रुचि नहीं है। मोबाइल नंबर 9829270288 पर भदेल को 51वें जन्मदिन की बधाई दी जा सकती है।
 
बंदरों को केले:
विधायक भदेल ने 23 दिसंबर को अपने 51वें जन्मदिन पर गौशालाओं में गायों को चारा वितरित किया, वहीं पुष्कर घाटी स्थित डियर पार्क में बंदरों को केले भी खिलाए। इसी दिन नगरा स्थित टोरेंटो समारोह स्थल पर समर्थकों ने भदेल का फूल मालाओं से जबरदस्त स्वागत किया। 

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राजस्थान विधानसभा के 2022 के विधानसभा सत्र का सत्रावसान (समापन) हुआ तो बजट सत्र बुलाने से पहले राज्यपाल कलराज मिश्र कांग्रेस के 91 विधायकों के इस्तीफे पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से सवाल पूछ सकते हैं।भारत के संसदीय इतिहास में पहला अवसर होगा, जब किसी विधानसभा के सत्र का सत्रावसान 10 माह तक नहीं हुआ है-चार दफा के विधायक वासुदेव देवनानी।

वर्ष 2022 में राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र फरवरी में हुआ था। लेकिन सत्र का सत्रावसान किए बगैर ही सितंबर माह में विधानसभा फिर से आयोजित कर ली। चूंकि पहले सत्र का सत्रावसान (समापन) नहीं हुआ, इसलिए सितंबर के सत्र को दूसरा चरण माना गया। अब 10 माह गुजर गए हैं,लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2022 वाले बजट सत्र के समापन (सत्रावसान) की सिफारिश विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने नहीं की है। जबकि सरकार ने 2023 के बजट सत्र की तैयारियां शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि 15 जनवरी के बाद बजट सत्र बुला लिया जाएगा। संवैधानिक नियम और परंपराओं के अनुसार बजट सत्र शुरू होने से पहले राज्यपाल का अभिभाषण होता है। सदन में राज्यपाल का अभिभाषण तभी होगा, जब पिछले वर्ष के सत्र का सत्रावसान हो चुका हो। सवाल उठता है कि कांग्रेस सरकार संसदीय नियमों और परंपरा के अनुरूप 2022 के विधानसभा सत्र का समापन क्यों नहीं कर रही है? जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अभी भी अपनी सरकार गिरने का डर है। यदि सत्र का सत्रावसान किया जाता है तो फिर नए सत्र के राज्यपाल से अनुमति लेनी पड़ेगी। यानी विधानसभा सत्र राज्यपाल के निर्णय पर निर्भर हो जाएगा। राज्यपाल की अनुमति के बगैर सरकार या विधानसभा अध्यक्ष अपने स्तर पर विधानसभा का सत्र नहीं बुला सकते। सब जानते हैं कि राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के 91 विधायकों के सामूहिक इस्तीफे का मामला विधानसभा अध्यक्ष जोशी के पास लंबित है। इन 91 विधायकों ने अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए 25 सितंबर 2022 को इस्तीफा दिया था। तीन माह बाद भी अध्यक्ष जोशी ने विधायकों के इस्तीफे पर कोई निर्णय नहीं लिया है। ऐसे में राज्यपाल कलराज मिश्र विधानसभा का बजट सत्र बुलाने से पहले अध्यक्ष सीपी जोशी से 91 विधायकों के इस्तीफे पर स्पष्टीकरण मांग सकते हैं और तब राजस्थान में कोई संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। हालांकि कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के मामले में भाजपा विधायक दल के उप नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है और कोर्ट विधानसभा अध्यक्ष जोशी को नोटिस भी जारी कर दिए हैं, लेकिन कोर्ट की अपनी प्रक्रिया है, जबकि राज्यपाल का स्पष्टीकरण मांगना विधानसभा सत्र को बुलाने से जुड़ जाएगा। यदि राज्यपाल सत्र की अनुमति से पहले 91 विधायकों के इस्तीफे पर स्पष्टीकरण अनिवार्यता लगा देते हैं तो फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के महत्वाकांक्षी बजट सत्र का क्या होगा? यह बजट सत्र गहलोत सरकार का अंतिम बजट सत्र होगा, क्योंकि राजस्थान में नवंबर 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। संवैधानिक उलझनों को देखते हुए ही 2022 के विधानसभा सत्र का समापन अभी तक नहीं किया गया है। हो सकता है कि 2022 के सत्र का तीसरा चरण बुलाकर 2023 का बजट सत्र बुला लिया जाए। अलबत्त संविधान के विशेषज्ञ माने जाने वाले राज्यपाल कलराज मिश्र इन दिनों सरकार और विधानसभा की गतिविधियों पर नजर रखते हुए हैं। युवा पीढ़ी को देश का संविधान पढ़ाने और समझाने के लिए मिश्र ने जयपुर में अपने सरकारी आवास राजभवन में संविधान पार्क का निर्माण भी करवाया है।
 
इतिहास में पहला अवसर:
लगातार चार दफा के भाजपा विधायक और विधानसभा की प्रक्रिया के जानकार वासुदेव देवनानी ने कहा है कि यह भारत के संसदीय इतिहास में पहला अवसर है, जब किसी विधानसभा सत्र का 10 माह तक सत्रावसान नहीं किया गया है। देवनानी ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए संविधान के नियम कायदों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कांग्रेस में चल रही गुटबाजी का ही नतीजा है कि गहलोत विधानसभा सत्र का समापन नहीं कर रही है। इससे प्रदेश के विधायकों के अधिकारों का भी हनन हो रहा है। एक सत्र में एक विधायक को 100 सवाल पूछने का अधिकार है, लेकिन एक ही सत्र को दो बार बुलाने से विधायकों को नए सवाल पूछने का अवसर नहीं मिला। सत्र का समापन नहीं होने से तारांकित प्रश्न भी गहलोत से मांग की कि 2022 के सत्र का सत्रावसान कर 2023 के लिए नए सत्र की प्रक्रिया शुरू की जाए, ताकि विधायकों को नए प्रश्न पूछने का अधिकार मिले। 

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Wednesday 21 December 2022

भाजपा के संदर्भ में कुत्ता शब्द का इस्तेमाल करने के बाद भी मल्लिकार्जुन खड़गे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंच कर रहे है। लेकिन फिर भी राहुल गांधी को देश में नफरत और डर का माहौल लगता है। खडके का बयान स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान भी हैं।

19 दिसम्बर को राजस्थान के अलवर मे एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केन्द्र की सत्तारूढ़ भाजपा के संदर्भ में कुत्ता शब्द का इस्तेमाल किया। खडगे ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व में भारत को आजादी मिली और बाद में देश के खातिर श्रीमति इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने बलिदान दिया, जबकि भाजपा का कुत्ता भी नहीं मरा। खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ साथ राज्य सभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी हैं। उनसे उम्मीद की जाती है कि भाषा का संयम बरतें, लेकिन ऐसा लगता है कि गांधी परिवार को खुश करने के लिए खड़गे भाषा की मर्यादा भी तोड़ रहे है। खडगे ने जिस सभा में भाजपा के संदर्भ में कुत्ता शब्द का इस्तेमाल किया, उसमें राहुल गांधी भी उपस्थित थे। इसी सभा में राहुल गांधी ने भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर देश में नफरत और डर का माहौल बनाने का आरोप लगाया। लेकिन राहुल के इस बयान के अगले ही दिन संसद भवन में खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठ कर दोपहर का लंच किया। मोदी के साथ खड़गे वे हर प्रसन्न मुद्रा में नजर आए। यदि राहुल के अनुरूप नफरत और डर का माहौल होता तो मल्लिकार्जुन खड़गे पीएम मोदी के साथ लंच करते नजर नहीं आते। क्या यह देश में अभिव्यक्ति की आजादी का उदाहरण नहीं है कि जिस नेता ने कुत्ता शब्द का इस्तेमाल किया, वही नेता अगले दिन प्रधानमंत्री के साथ लंच कर रहा हैं। राहुल गांधी माने या नहीं, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में नफरत और डर का कोई माहौल नहीं हैं। उल्टे खड़गे ने देश के स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया है। खड़गे ने आजादी का श्रेय पूरी तरह कांग्रेस को दिया, जबकि इतिहास गवाह है कि कांग्रेस की स्थापना से पहले ही संथाल आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। इतना ही नहीं अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा भी पहली बार संथाल आदिवासियों ने ही लगाया था। चूंकि आजादी के बाद इतिहास को कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के लेखकों ने लिखा, इसलिए कांग्रेस की स्थापना से पूर्व स्वतंत्रता आंदोलन का उल्लेख नही किया। जहां तक मल्लिकार्जुन खड़गे का सवाल हैं तो उनकी गांधी परिवार की मिजाज पोशी ही हैं सब जानते है कि गांधी परिवार की मेहरबानी से ही खड़गे अभी तक राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता बने हुए हैं। इस नाते उन्हें प्रतिपक्ष के नेता का पद भी मिला हुआ है। यानी एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत खड़गे पर लागू नहीं किया जा रहा। जबकि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर खड़गे को प्रतिपक्ष के नेता का पद छोडना चाहिए था। लेकिन इसे गांधी परिवार की मिजाजपोशी करना ही कहा जाएगा कि खड़गे के पास दोनों पद है। सब जानते हैं कि खड़गे 2014 से 2019 तक लोकसभा में भी कांग्रेस संसदीय दल के नेता थे। लेकिन खड़गे 2019 में लोकसभा का चुनाव हार गए। गांधी परिवार की पसंद होने के कारण खड़गे को राज्यसभा का सांसद बनाया गया था और गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को हटा कर खड़गे को राज्यसभा में भी कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया गया। यहां पर उल्लेखनीय है कि लोकसभा और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री की सुविधाएं मिलती हैं।


Tuesday 20 December 2022

यूजर चार्ज के विरोध में अजमेर के बाजार बंद रहे।घर घर कचरा संग्रहण पर 14 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। 100 करोड़ रुपए स्मार्ट सिटी लिमिटेड को भी दिए।यूजर चार्ज नहीं वसूला तो नगर निगम के कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिलेगा।कांग्रेस के नेता अपनी सरकार से वसूली को रुकवा दें-मेयर ब्रज लता हाड़ा।

कचरा संग्रहण शुल्क (यूजर चार्ज) वसूलने के विरोध में 20 दिसंबर को अजमेर के प्रमुख बाजार बंद रहे बंद का आह्वान महेंद्र बसंल के नेतृत्व वाले श्री अजमेर व्यापारिक महासंघ की ओर से किया गया था। महासंघ के महासचिव रमेश लालवानी ने बताया कि बंद को कांग्रेस के साथ साथ किशन गुप्ता के नेतृत्व वाले अजमेर व्यापार महासंघ का भी समर्थन मिला है। शैक्षिक संस्थानों, पेट्रोल पंप, नगरीय परिवहन सेवा के साथ साथ आवश्यक सेवाओं को बंद से मुक्त रखा गया। छोटे दुकानदारों से भी 250 रुपए मासिक वसूली का अजमेर में लगातार विरोध हो रहा है। वहीं भाजपा शासित नगर निगम के जन्म मृत्यु प्रमाण प और अन्य प्रमाण पत्रों को जारी करने से पहले यूजर शुल्क चुकाने की अनिवार्यता कर दी है। इससे व्यापारी वर्ग में रोष हे। एक और व्यापारी वर्ग यूजर चार्ज का विरोध कर रहा है तो वहीं भाजपा शासित नगर निगम की मेयर श्रीमती ब्रज लता हाड़ा का कहना है कि यह वसूली राज्य में कांग्रेस सरकार के निर्देश पर हो रही है। कांग्रेस के नेताओं और पार्षदों को एतराज है तो वे अपनी सरकार से वसूली पर रोक लगवा दें। हाड़ा ने बताया कि घर घर कचरा संग्रहण पर निगम को 14 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। पिछले एक डेढ़ वर्ष से यह राशि निगम अपने कोष से ही खर्च कर रहा है। निगम की आय सीमित है, ऐसे में लंबे समय तक निगम अपने स्तर पर इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं कर सकता है। यदि यूजर चार्ज नहीं वसूला गया तो कचरा संग्रहण प्रभावित होगा। जबकि डोर टू डोर कचरा संग्रहण से अजमेर शहर की सफाई व्यवस्था में जबरदस्त सुधार हुआ है। अब बाजारों में जगह जगह कचरा नजर नहीं आता है। हाड़ा ने बताया कि व्यापारियों की मांग पर ही 250 रुपए को तीन भागों में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है। जो कांग्रेसी अजमेर बंद करवा रहे हैं, वे जयपुर जाकर वर्गीकरण के प्रस्ताव को मंजूर क्यों नहीं करवाते? उनके प्रयास शहर वासी और नगर निगम के हित में है। यदि यूजर चार्ज नहीं वसूला गया तो केंद्र और राज्य से मिलने वाला अनुदान भी बंद हो जाएगा। मैं यूजर चार्ज के मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं करना चाहती हंू। लोगों की कुछ परेशानियों को देखते हुए फिलहाल घरेलू उपभोक्ताओं से वसूली स्थगित कर दी है। अभी सिर्फ वाणिज्यिक संस्थानों से यूजर चार्ज लिया जा रहा है। हाड़ा ने कहा कि अधिकांश दुकान यूजर चार्ज देने के पक्ष में है, लेकिन कुछ बेवजह विरोध कर रहे हैं। यूजर चार्ज की वसूली पर वे बात करने को तत्पर है।
 
100 करोड़ रुपए स्मार्ट सिटी को:
भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी द्वारा यूजर चार्ज वसूली को रोकने की मांग पर श्रीमती हाड़ा ने कहा कि शहर में चल रहे स्मार्ट सिटी के कार्यों में भी नगर निगम का योगदान है। सब जानते हैं कि स्मार्ट सिटी के अधिकांश कार्य अजमेर के उत्तर क्षेत्र में हुए हैं। स्मार्ट सिटी के कार्यों में खर्च होने वाली राशि में नगर निगम का भी हिस्सा है। निगम ने हाल ही में 100 करोड़ रुपए स्मार्ट सिटी लिमिटेड को दिए हैं। यदि निगम की आय नहीं होगी तो निगम स्मार्ट सिटी को भुगतान कहां से करेगा? जहां प्रदेश के अन्य निगमों में यूजर चार्ज की वसूली नहीं होने का सवाल है तो उन निगमों की आर्थिक स्थिति अच्छी है। अजमेर नगर निगम की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि लंबे समय तक अपने खर्चे पर कचरा संग्रहण का बोझ उठाए। हाड़ा ने सभी व्यापारियों से शहर हित में सहयोग की अपील की है। 

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अशोक गहलोत को हिदायत! सचिन पायलट को साथ लेकर चलें।अलवर के सर्किट हाउस में राहुल गांधी ने गहलोत और पायलट को साथ बैठा कर बात की।एप बेस ट्रांसपोर्ट वर्कर के लिए राजस्थान में सोशल सिक्योरिटी स्कीम लागू होगी-सीएम अशोक गहलोत।

20 दिसंबर को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का राजस्थान में अंतिम दिन रहा। यह यात्रा 21 दिसंबर को हरियाणा में प्रवेश कर 24 दिसंबर को दिल्ली पहुंचेगी। दिल्ली में 9 दिन का ब्रेक होने के बाद राहुल की यात्रा 3 जनवरी को दिल्ली से ही शुरू होगी। राजस्थान में यात्रा के समाप्त होने से एक दिन पहले 19 दिसंबर की रात को अलवर के सर्किट हाउस में राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के साथ लंबी बात की। यह बैठक गहलोत और पायलट में चल रही प्रतिद्वंदिता को समाप्त करने के लिए थी। जानकार सूत्रों के अनुसार इस बैठक में सीएम गहलोत को हिदायत दी गई कि सचिन पायलट को साथ लेकर चला जाए। बैठक में राहुल गांधी का यह मानना रहा कि अगले विधानसभा चुनाव में पायलट के सहयोग के बिना कांग्रेस सरकार रिपीट नहीं होगी। राहुल की ओर से कहा गया कि कांग्रेस सरकार और संगठन में पायलट की पूरी भागीदारी होनी चाहिए। सूत्रों के अनुसार यात्रा के अंतिम मौके पर राहुल गांधी ने अपनी भावनाओं और निष्कर्ष से गहलोत को अवगत करा दिया है7 लेकिन राहुल की हिदायत पर अशोक गहलोत कितना अमल करते हैं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, क्योंकि गत 25 सितंबर को भी अशोक गहलोत कांग्रेस हाईकमान के निर्देशों की अवहेलना कर चुके हैं। 25 सितंबर को जब हाईकमान ने दो पर्यवेक्षक भेजकर जयपुर में विधायक दल की बैठक बुलाई थी, तब गहलोत ने इस बैठक को होने नहीं दिया। इतना ही नहीं गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए कांग्रेस के 91 विधायकों के इस्तीफे भी दिलवा दिए गए। इतनी बगावत के बाद भी गहलोत ने सचिन पायलट को भाजपा से पैसे लेने वाला गद्दार बताया। जानकारों के अनुसार राहुल ने यात्रा के 15 दिनों के प्रवास में राजस्थान की राजनीति को अच्छी तरह समझ लिया है। अपनी समझ के अनुरूप ही राहुल गांधी ने 19 दिसंबर को गहलोत को हिदायत दी। हो सकता है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई बदलाव न हो, लेकिन आने वाले दिनों में सत्ता और संगठन में पायलट की भूमिका देखने को मिलेगी। अब सत्ता और संगठन में अकेले अशोक गहलोत का चेहरा देखने को नहीं मिलेगा। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में पायलट शांति और धैर्यवान नजर आए हैं। इसका भी राहुल गांधी पर असर नजर आया है। सूत्रों के 19 दिसंबर की अलवर बैठक में पायलट बहुत कम बोले, क्योंकि उनका पक्ष राहुल गांधी स्वयं रख रहे थे।
 
सोशल सिक्योरिटी स्कीम:
भारत जोड़ो यात्रा के अंतिम दिन 20 दिसंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अलवर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। गहलोत ने कहा कि यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने ओला, उबर, अमेजन, जमेटो जैसी एप बेस कंपनियों में काम करने वाले डिलीवरी बॉय की समस्याओं को लेकर चिंता जताई। मेरी सरकार ने ऐसे ट्रांसपोर्ट वर्कर की समस्याओं को गंभीरता से लिया है। राजस्थान में जल्द ही ऐसे वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी स्कीम लागू होगी। गहलोत ने माना कि ऐप बेस कंपनियां अपने वर्कर के साथ शोषण करती है। उन्होंने कहा कि ऐसे डिलेवरी बॉय पिछड़े वर्ग के होते हैं। हम ऐसे वर्कर को एक निश्चित राशि देने का भी प्रयास करेंगे। गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी की यात्रा राजस्थान के लिए वरदान साबित हुई है। हमें इस यात्रा से बहुत कुछ सीखने को मिला है। गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भारत जोड़ो यात्रा का फीडबैक लेना चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (20-12-2022)
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राहुल गांधी, मोहब्बत की दुकान कश्मीर में खोलें, ताकि हिन्दुओं की हत्या न हो।सर तन से जुदा के नारे लगाने वालों को भी मोहब्बत का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए।

19 दिसंबर को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने राजस्थान के अलवर जिले के मालाखेड़ा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं नफरत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोल रहा हंू। वाकई राहुल गांधी का यह कथन सही है, क्योंकि कश्मीर घाटी में हिन्दुओं की हत्याएं हो रही है। कट्टरपंथी तत्व चुन चुन कर हिन्दुओं को मार रहे हैं। राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा को कश्मीर के श्रीनगर तक ले जाएंगे। तब कुछ दिनों राहुल को कश्मीर में भ्रमण करना चाहिए और जो लोग हिन्दुओं की हत्या कर रहे हैं उन्हें मोहब्बत का पाठ पढ़ाना चाहिए। यदि राहुल गांधी सच्चे मन और दिल से कट्टरपंथियों को मोहब्बत का पाठ पढ़ाएंगे तो असर भी होगा हो सकता है कि हिन्दुओं की हत्या होना बंद हो जाए। यदि राहुल की वजह से हिन्दुओं की हत्या रुकती है तो यह राहुल का संपूर्ण हिन्दू समुदाय पर बहुत बड़ा अहसास होगा। कश्मीर में यदि अमन चैन होता है तो इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। राहुल गांधी ने यह भी अच्छा किया कि मोहब्बत की दुकान खोलने वाली बात राजस्थान में कही। सब जानते हैं कि  सर तन से जुदा अभियान में सबसे पहली गर्दन राजस्थान के उदयपुर में ही दर्जी कन्हैयालाल की कटी थी। ऐसे में मोहब्बत की एक दुकान राजस्थान में भी खुलनी चाहिए, ताकि सर तन से जुदा के नारे लगाने वालों को भी मोहब्बत का पाठ पढ़ाया जा सके। यह सही है कि कोई भी धर्म हिंसा नहीं सीखता है। कुछ कट्टरपंथी होते हैं जो धर्म की गलत व्याख्या कर हिंसा के लिए उकसाते हैं। कश्मीर घाटी में ऐसा ही हो रहा है। अब जब राहुल गांधी ने मोहब्बत की दुकान खोल ही दी है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि नफरत के बाजार में बदलाव होगा। जहां तक भारत के सनातन धर्म का सवाल है तो पूरे विश्व में यह धर्म सहिष्णुता और सद्भाव की सीख देता है। सनातन धर्म में ही भूमि से लेकर आसमान में सूरज और चांद तक की पूजा होती है। वातावरण को शुद्ध रखने और मन में अच्छे विचारों के लिए प्रकृति को भी पूजा जाता है। सांस से भी किसी अदृश्य जीव की हत्या न हो, इसके लिए मुंह पर पट्टी भी बांधी जाती है। राहुल गांधी खुद भी सनातन संस्कृति में भरोसा करते हैं, इसलिए अपनी भारत जोड़ो यात्रा में उज्जैन के महाकाल मंदिर में धोती पहन कर शिवलिंग की पूजा अर्चना की। देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना के बाद राहुल गांधी भी नहीं चाहेंगे कि सनातन धर्म को मानने वाले किसी व्यक्ति की गर्दन कटे या हत्या हो। राहुल गांधी को मोहब्बत की दुकान देशभर में खोलनी चाहिए। 

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Monday 19 December 2022

केकड़ी में कांग्रेस से ज्यादा विधायक रघु शर्मा के खिलाफ आक्रोश।इसलिए भाजपा की जन आक्रोश रैली में भीड़ जुटी।

18 दिसंबर को अजमेर के केकड़ी कस्बे में भाजपा की जन आक्रोश रैली हुई। इस रैली में जबरदस्त भीड़ को देखते हुए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया ने कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की शुरुआत केकड़ी से होगी। पूनिया ने चुनाव में भाजपा को 200 में से 175 सीट मिलने का दावा किया है। जानकारों के अनुसार केकड़ी में कांग्रेस से ज्यादा गुस्सा क्षेत्रीय विधायक रघु शर्मा के व्यवहार को लेकर है। पिछले चार साल में रघु ने केकड़ी में जो राजनीतिक दादागिरी दिखाई है, उससे लोगों को काफी नुकसान हुआ है। रघु जब प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री थे, तब केकड़ी में गुड़ की गजक बनाने वाले गली मोहल्लों के छोटे व्यापारियों पर भी विभाग ने छापे मारे। सरकारी तंत्र से लोगों को जितना डराया धमकाया जा सकता था, उतना किया गया। गुजरात का प्रभारी बनाए जाने पर रघु से मंत्री पद ले लिया गया। गुजरात में कांग्रेस की शर्मनाक हार के बाद रघु ने प्रभारी पद से भी इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में रघु शर्मा अब सिर्फ साधारण विधायक हैं। रघु चाहते हैं कि उन्हें फिर से मंत्री बनाया जाए। रघु को मंत्री बनाने का निर्णय सीएम अशोक गहलोत को करना है, लेकिन केकड़ी में जिस तरह आक्रोश बढ़ रहा है, उसे देखते हुए रघु का फिर से मंत्री बनना मुश्किल है। 18 दिसंबर को जन आक्रोश रैली में भीड़ को देख कर भाजपाई उत्साहित हैं, लेकिन यह भीड़ रघु शर्मा के खिलाफ आक्रोश प्रकट करने जुटी। पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के समर्थक भी केकड़ी में रघु शर्मा से बेहद खफा है। रघु ने मंत्री रहते हुए पायलट के समर्थकों को भी कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पायलट समर्थक भी विधानसभा चुनाव का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। गुजरात प्रभारी बनने के बाद रघु शर्मा स्वयं राज्यसभा सांसद बनने और पुत्र को केकड़ी का विधायक बनाने का ख्वाब देख रहे थे, लेकिन बदले हुए हालातों में रघु का केकड़ी से विधायक बनना भी मुश्किल हो रहा है। यह बात भाजपा की रैली में जुटी भीड़ से पता चलती है। मंत्री रहते जो लोग केकड़ी में पुत्र की मिजाजपुर्सी में लगे रहते थे, वे भी भाग गए हैं।
 
भाजपाई एकजुट:
रघु शर्मा से मुकाबला करने के लिए केकड़ी के भाजपा नेता भी एकजुट हो गए हैं। 18 दिसंबर को रैली के मंच पर पूर्व विधायक शत्रुघ्न गौतम, नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष अनिल मित्तल, प्रधान होनहार सिंह, पूर्व विधायक गोपाल लाल धोबी, पूर्व प्रधान भूपेंद्र सिंह शक्तावत, गत विधानसभा के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे राजेंद्र विनायका, सरपंच गोविंद जैन, मिथिलेश गौतम, विजय प्रताप सिंह, वीरभद्र सिंह, सत्यनारायण चौधरी, रामदेव माली, बलराज, अनिल राठी, रायचंद बागड़ी, इंदू शेखर शर्मा के साथ साथ अजमेर के सांसद भागीरथ चौधरी, मालपुरा के विधायक कन्हैयालाल चौधरी भी उपस्थित रहे। 

S.P.MITTAL BLOGGER (19-12-2022)

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