Sunday 30 January 2022

जोधपुर में स्वच्छता के प्रतीक बने हुए मोहम्मद यूसुफ।

29 जनवरी को मुझे पारिवारिक समारोह में भाग लेने के लिए जोधपुर में रहना पड़ा। जोधपुर के भी अनेक वाट्सएप ग्रुपस में प्रति दिन मेरे ब्लॉग पढ़े जाते हैं। यही वजह रही कि जोधपुर प्रवास के दौरान मेरी मुलाकात स्वच्छता के प्रतीक मोहम्मद यूसुफ और सामाजिक कार्यकर्ता बसंत जोशी से हुई। भारत की सनातन संस्कृति के अनुरूप मेरा मान सम्मान भी किया गया। मुझे बताया गया कि मोहम्मद यूसुफ जोधपुर में स्वच्छता के प्रतीक बने हुए हैं। जोधपुर के उत्तर नगर निगम में तो यूसुफ को ब्रांड एम्बेसडर भी घोषित कर रखा है। जोधपुर में स्वच्छता से जुड़ा कोई भी कार्य होता है तो उसमें मोहम्मद यूसुफ की सक्रिय भागीदारी होती है। यूसुफ का मानना है कि किसी भी शहर की पहचान स्वच्छता की वजह से ही होती है। चूंकि जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह नगर है, इसलिए जोधपुर में स्वच्छता का ज्यादा महत्व है। जोधपुर शहर स्वच्छ रहे इसके लिए यूसुफ दिन भर सक्रिय रहते हैं। इसके लिए लोगों में जागरूकता भी करते रहते हैं। यूसुफ का कहना है कि जब सरकार ने घर घर से कचरा संग्रहण का अभियान चला रखा है तो फिर कचरा गली मोहल्लों से लेकर बाजारों की सड़कों तक नजर नहीं आना चाहिए। यूसुफ ने इस बात पर संतोष जताया कि जोधपुर का जिला प्रशासन और दोनों नगर निगमों का प्रबंधन स्वच्छता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जोधपुर में स्वच्छता के लिए जो कुछ भी हो सकता है, उसके लिए मोहम्मद यूसुफ हमेशा तैयार रहते हैं। हालांकि यूसुफ के परिवार का परंपरागत कार्य शाही शादी समारोह में मेहमानों के साफे बांधने का काम है। यूसुफ परिवार की इस परंपरा को भी निभा रहे हैं। यूसुफ का कहना है कि यह राजस्थान की संस्कृति की खूबसूरती है कि अलग अलग क्षेत्रों में साफे बांधने की अलग अलग कला है। उदयपुर के मेवाड़ में साफा अलग तरीके से बांधा जाता है, जबकि जोधपुर के मेवाड़ में साफे बांधने की कला अलग है। उनके परिवार के सदस्य बांधने की हर कला में परंपरागत है। परंपरागत कार्य के साथ ही यूसुफ जोधपुर में स्वच्छता के प्रतीक बने हुए हैं। मोबाइल नंबर 7297836979 पर मोहम्मद यूसुफ से संवाद किया जा सकता है। जोधपुर प्रवास में मेरी मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता बसंत जोशी से भी हुई। जोशी ने मुझे बताया कि मेरे ब्लॉग वे प्रतिदिन देशभर के वाट्सएप ग्रुप में फॉरवर्ड करते हैं। चूंकि उनका संपर्क छत्तीसगढ़ में है इसलिए वे ब्लॉग को छत्तीसगढ़ के ग्रुप में भी भेजे हैं। जोशी ने बताया कि ब्लॉग की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन ग्रुप में ब्लॉग नहीं आते हैं उनके एडमिन और मेंबर अन्य स्थानों से ब्लॉग को लेकर अपने ग्रुप में पोस्ट करते हैं। जोशी ने ब्लॉग लेखन को लेकर मेरी हौसला अफजाई की और उम्मीद जताई की राष्ट्रहित में ब्लॉग लेखन का कार्य निरंतर जारी रहेगा। 

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रीट परीक्षा घोटाला: राजस्थान में कांग्रेस सरकार चलाने की मजबूरी है। बर्खास्त अध्यक्ष जारोली का बयान सरकार की यह मजबूरी जाहिर करता है।राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े पदाधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।सीबीआई जांच कराने के लिए राष्ट्रीय रोजगार संघ भी हाईकोर्ट में याचिका दायर करेगा।रीट परीक्षा को रद्द करना आसान काम नहीं है-अशोक गहलोत व गोविंद सिंह डोटासरा।

सब जानते हैं कि राजस्थान में राज्य स्तरीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) 2021 प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के कितनी महत्वपूर्ण थी। दो लेवल की परीक्षा के लिए प्रदेश में करीब 16 लाख डिग्री धारकों ने परीक्षा दी। अब यह साफ हो गया है कि परीक्षा से पहले प्रश्न पत्र आउट हो गया। राज्य सरकार ने परीक्षा करवाने वाली एजेंसी राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारोली को बर्खास्त कर कर तीन अधिकारियों को निलंबित भी किया है। बर्खास्तगी के बाद जारोली ने चौंकाने वाला बयान दिया है। जारोली का कहना है कि प्रश्न पत्र उन लोगों ने आउट किया, जिन्हें राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था। उन्हें भी राजनीतिक षडय़ंत्र का शिकार बनाया गया है। जारोली के इस बयान से जाहिर है कि परीक्षा के इंतजामों की ऐसी लोगों को जिम्मेदारी दी गई, जिन्हें सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के प्रभावशाली नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। सब जानते हैं कि रीट परीक्षा की व्यवस्था में राज्य मंत्री सुभाष गर्ग का जबर्दस्त दखल रहा। परीक्षा के समय प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के पास स्कूली शिक्षा का मंत्री पद का प्रभार भी था। जारोली के बयान का अर्थ निकाला जाए तो रीट परीक्षा के लिए रिटायर्ड लेक्चरर प्रदीप पाराशर को जयपुर जिले का समन्वयक राजनीतिक दबाव से ही बनाया गया और प्रश्न पत्र भी जयपुर के शिक्षा संकुल से ही आउट हुआ। इसी प्रकार सरकार ने कॉलेज शिक्षा के जिन दो अधिकारी डॉ. सुभाष यादव और डॉ. बीएस बैरवा को निलंबित किया गया है, वे राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े हुए हैं और राजस्थ्ज्ञान में इस संस्थान की कमान राज्यमंत्री सुभाष गर्ग के पास है। इस संस्था में सभी पदाधिकारी कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े हैं। राजस्थान की राजनीति में रुचि रखने वालों को पता है कि जुलाई 2020 में जब कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक संकट आया था, तब डोटासरा और सुभाष गर्ग ने भी सरकार बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि जो मंत्री-विधायक मेरे साथ है, उन्हें मैं ब्याज सहित भुगतान करुंगा। तब मुख्यमंत्री का यह आशय नहीं था कि रीट परीक्षा का प्रश्न पत्र बेचकर करोड़ों रुपए की वसूली कर ली जाए। लेकिन जारोली के बयान से लगता है कि कुछ लोग रीट परीक्षा का प्रश्न पत्र बेचकर करोड़ों रुपया कमाने में लग गए। राज्य सरकार की जांच एजेंसी एसओजी ने रीट परीक्षा का घोटाला उजागर कर दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि जिन लोगों ने संकट के समय सरकार को बचाया, क्या उन पर कोई कार्यवाही होगी? कांग्रेस के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि रीट परीक्षा घोटाले के उजागर होने के साथ सीएम गहलोत असमंजस की स्थिति में है। बोर्ड अध्यक्ष की बर्खास्तगी और अधिकारियों के निलंबन से सरकार कोई खतरा नहीं है, लेकिन यदि और आगे कार्यवाही की गई तो सरकार के सामने संकट खड़ा हो जाएगा। अब जब विधानसभा चुनाव में डेढ़ वर्ष रह गया है, तब गहलोत ऐसी कोई कार्यवाही नहीं करेंगे, जिससे सरकार कमजोर होती हो। गहलोत ने ब्याज का भुगतान खुद करने की बात की थी, लेकिन कुछ लोग स्वयं ही वसूली में लग गए। सीएम गहलोत यदि शिक्षा विभाग में राजीव गांधी स्टडी सर्किल के पदाधिकारियों की भूमिका की जांच करवाएं तो वसूली को देखकर उनकी आंखें चकरा जाएंगी।
 
परीक्षा रद्द करना आसान नहीं:
30 जनवरी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि रीट की परीक्षा को रद्द करना आसान नहीं है। रीट परीक्षा के परिणाम से ही 30 हजार से भी ज्यादा युवाओं को शिक्षक की नौकरी मिलती है। परीक्षा के महत्व को देखते हुए ही मई में रीट की परीक्षा को लेने की घोषणा की गई है। मई की परीक्षा के बाद 30 हजार युवाओं को और नौकरी मिलेगी। दोनों ने कहा कि रीट परीक्षा में जो गड़बड़ी हुई है, उसकी जांच एसओजी पूरी निष्पक्षता के साथ कर रही है। एसओजी की जांच के आधार पर ही शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष को बर्खास्त और कई अधिकारियों को निलंबित किया गया है। सरकार पूरी तरह गंभीर है,इस मामले में किसी भी दोषी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम गहलोत ने कहा कि परीक्षा को निरस्त करने का निर्णय लेना तो एक मिनट का काम है, लेकिन सरकार को निर्णय के परिणामों को भी देखना पड़ता है। वहीं डोटासरा ने कहा कि रीट परीक्षा को लेकर यदि सरकार को निर्देश देने की जरुरत ही पड़ी तो कांग्रेस संगठन ऐसे निर्देश देगा। डोटासरा ने कहा कि सरकार पूरी ईमानदारी के साथ रीट परीक्षा में हुई गड़बडिय़ों की जांच करवा रही है। गहलोत और डोटासरा ने कहा कि रीट को लेकर भाजपा में एक राय नहीं है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया जांच को लेकर एसओजी की प्रशंसा कर रहे हैं, तो वहीं पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया अलग ही राग अलाप रहे हैं। डोटासरा ने कहा कि जब सरकार इतनी गंभीर है तो फिर विपक्ष को भी एक राय का होना चाहिए।
 
सीबीआई जांच के लिए याचिका:
राष्ट्रीय बेरोजगार संघ के संरक्षक भरत बेनीवाल ने बताया कि रीट परीक्षा की गड़बडिय़ों की जांच सीबीआई से कराने के लिए अगले एक दो दिन में हाईकोर्ट में एक याचिका प्रस्तुत की जाएगी। बेनीवाल ने कहा कि पूर्व में जो याचिकाएं प्रस्तुत की गई है, उनमें सबूतों का अभाव है। अब चूंकि एसओजी ने नए सबूत जुटा लिए हैं, इसलिए नए सबूतों के आधार पर नए सिरे से याचिका प्रस्तुत की जाएगी। बेनीवाल ने कहा कि रीट परीक्षा का प्रश्न पत्र आउट करने में सरकार के बड़े लोगों की भी भूमिका है, इसलिए जांच सीबीआई से ही होनी चाहिए। बेनीवाल ने कहा कि परीक्षा की गड़बडिय़ों को लेकर यदि कोई तथ्य किसी के पास हों तो वे मोबाइल नंबर 8058216422 पर संपर्क कर सकते हैं। 

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अजमेर में सरस डेयरी को दूध देकर अनेक सामाजिक और आर्थिक योजनाओं का लाभ उठाएं पशुपालक-अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी।अमूल डेयरी का लाभ राजस्थान को नहीं मिलता है।

राज्य सरकार के नियम कायदों के तहत सहकारिता क्षेत्र में चलने वाली अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी जिले भर के पशुपालकों से अपील की है कि वे अपने पशुओं का दूध सरस डेयरी के संकलन केंद्रों पर ही जमा करवाए। निजी क्षेत्र की डेयरियां पशु पालकों को सामाजिक सुरक्षा का कोई गारंटी नहीं देती है, जबकि सहकारी के क्षेत्र में चलने वाली सरस डेयरी आर्थिक योजना के साथ साथ सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी देती है। चौधरी ने कहा कि निजी क्षेत्र की डेयरी का लाभ एक दो परिवारों को ही मिलता है। जबकि सरस डेयरी के मुनाफे का लाभ आम पशुपालक को मिलता है। चौधरी ने कहा कि निजी क्षेत्र की अमूल डेयरी का लाभ सिर्फ गुजरात के लोगों को ही मिलता है। उन्होंने पशु पालकों से अपील की कि वे अपने पशुओं का दूध सरस डेयरी के संकलन केंद्रों पर जमा करवा कर अनेक आर्थिक और सामाजिक योजनाओं का लाभ प्राप्त करें। चौधरी ने बताया कि जो पशु पालक पिछले तीन वर्ष से सरस डेयरी के केंद्रों पर दूध जमा करवा रहा है उसकी उम्र यदि 65 वर्ष है तो उसे पांच सौ रुपये प्रतिमाह पेंशन देने का प्रावधान किया जा रहा है। इसी प्रकार पशु पालक की मृत्यु पर 10 हजार रुपए की नगद राशि दी जा रही है। पशुपालक के परिवार में प्रसूता महिला को 7 लीटर घी भी नि:शुल्क दिया जा रहा है। चौधरी ने कहा कि पशु पालकों को उनके दूध का भुगतान नियमित किए जाने के साथ साथ अनेक सामाजिक सुरक्षा दी जाती है। पशुपालकों को इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। राज्य सरकार दो रुपए लीटर का अनुदान भी देती है। मेरा प्रयास है कि इस अनुदान को 3 रुपए करवाया जावे। आगामी एक अप्रैल से पशु पालकों को 7 रुपए प्रति फेट के हिसाब से दूध का भुगतान किया जाएगा। चौधरी ने कहा कि सरस डेयरी में दूध जमा कराने पर जो लाभ पशुपालकों को मिलता है वह निजी डेयरियों को दूध देने पर नहीं मिलता है। चौधरी ने कहा कि अजमेर डेयरी के सभी दूध संकलन केंद्र अत्याधुनिक तकनीक वाले हैं। यहां कम्प्यूटर से ही दूध की गुणवत्ता की जांच होती है। दूध का माप भी कंप्यूटर पर ही होता है। पशुपालक को जमा दूध की कम्प्यूटराइज्ड पर्ची दी जाती है, जिसमें प्रति लीटर दूध में फैट का उल्लेख भी होता है। सभी संग्रहण केंद्र कोल्ड स्टोर चेन से बंधे हुए हैं। चौधरी ने बताया कि अजमेर डेयरी देश के उन चुनिंदा डेयरियों में से एक हैं, जहां प्रतिदिन 10 लाख लीटर दूध की प्रोसेसिंग की क्षमता वाला प्लांट लगा हुआ है। मौजूदा समय में रोजाना साढ़े चार लाख लीटर दूध का संकलन जिले भर में होता है। अजमेर डेयरी के नए प्लांट में अन्य डेयरियों का दूध भी प्रोसेसिंग के लिए प्राप्त होता है। डेयरी में ही दूध का पाउडर और अन्य उत्पाद भी बनाए जाते हैं। गुणवत्ता की वजह से डेयरी के उत्पाद अब ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी डेयरी का उद्देश्य पशुपालक से सिर्फ दूध खरीदना नहीं होता है, बल्कि पशु पालकों के परिवार के सदस्यों का ख्याल भी रखना होता है। प्रति वर्ष पशुपालकों को बोनस भी दिया जाता है। पशुपालकों के हित में चलने वाली योजनाओं की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414004111 पर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी से ली जा सकती है। 

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Thursday 27 January 2022

अखबारों के बोझ से दबे हॉकर की मोटर साइकिल को डाक विभाग के ट्रक ने टक्कर मारी।अब अजमेर का गरीब हॉकर प्रेम प्रकाश सरकारी अस्पताल में बेहोश होकर जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। बेहद कठिन है हॉकर का जीवन।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर दैनिक समाचार पत्रों में 40-50 पृष्ठ के विशेषांक प्रकाशित किए। अखबारों के संपादकों ने पाठकों के लिए प्रथम पृष्ठ पर सूचना भी प्रकाशित की कि गणतंत्र दिवस के अतिरिक्त अंक अपने हॉकर से लेना न भूले। आम दिनों में अखबार अधिकतम 20 पृष्ठों का होता है, लेकिन 26 जनवरी को 40-50 पृष्ठों का रहा। यानी हॉकरों के लिए दोगुना वजन हो गया। 26 जनवरी को प्रातः 6 बजे अखबारों का बोझ लेकर ही अजमेर का हॉकर प्रेम प्रकाश नसीराबाद रोड स्थित 9 नंबर पेट्रोल पंप के सामने से गुजर रहा था कि तभी आदर्श नगर की ओर से आ रहे डाक विभाग के ट्रक ने जोरदार टक्कर मार दी। हॉकर प्रेम प्रकाश मौके पर ही जख्मी हो गया। उसके सिर से बड़ी मात्रा में खून भी निकल गया। टक्कर इतनी तेज थी कि प्रेम प्रकाश के सिर में कई जगह चोटें आई हैं तथा उसका पैर टूट चुका है। दुर्घटना के बाद हॉकर को जख्मी अवस्था में अजमेर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भर्ती करवाया गया। दो दिन गुजर जाने के बाद भी प्रेम प्रकाश को होश नहीं आया है। इसलिए डॉक्टरों ने आईसीयू में अपनी निगरानी में रखा हुआ है। पैर में गंभीर चोट लगने के कारण हॉकर का पैर भी सूज गया है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि होश में आने पर ही प्रेम प्रकाश के पैर का इलाज किया जाएगा। डॉक्टरों का कहना है कि अभी प्रेम प्रकाश का जीवन खतरे में है। अस्पताल के प्राचार्य डॉ. वीर बहादुर सिंह ने भी उचित इलाज का भरोसा दिलाया है, लेकिन प्रेम प्रकाश के परिवार के सामने अनेक समस्याएं खड़ी हो गई है। हॉकर के परिवार की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 50 वर्षीय प्रेम प्रकाश के अखबार बांटने के काम में 25 वर्षीय बेटा भी सहयोग करता है। यानी परिवार की आजीविका अखबार बांटने के काम पर निर्भर है। अब यदि प्रेम प्रकाश के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो परिवार के सामने भीषण आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा। प्रेम प्रकाश पिछले 20 वर्षों से अखबार बांटने का काम कर रहा हो, लेकिन उसका जीवन सुरक्षित नहीं रहा। सरकार की ओर से भी हॉकरों के लिए सुरक्षा की कोई योजना नहीं है। अखबार प्रबंधन हॉकरों से कमीशन पद्धति के जरिए अखबारों का वितरण करता है। घर घर अखबार पहुंचाने के लिए हॉकर को सुबह तीन चार बजे वितरण केंद्र पर पहुंचना पड़ता है। हालांकि पुलिस ने डाक विभाग के ट्रक को जब्त कर लिया है, लेकिन ट्रक का ड्राइवर अभी भी फरार है। प्रेम प्रकाश गंभीर हालत से अजमेर के हॉकरों में मायूसी का माहौल है। प्रेम प्रकाश के स्वास्थ्य के बारे में और अधिक जानकारी हॉकरों के प्रतिनिधि अश्विनी वाजपेयी (9269973163) और ओम प्रकाश (8233437251) पर ली जा सकती है। 

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अजमेर के मानपुरा गांव में गौ सेवा की भावना से 90 गिर नस्ल की गायों को पाल रही हैं जुझारू महिला सुनीता माहेश्वरी।गाय के गोबर और मूत्र से बनाई जाती है जैविक खाद। गौशालाओं को उन्नत नस्ल के नंदी नि:शुल्क दिए जाते हैं।

काम करने का अपना अपना जुनून है, अब इस जुनून में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रही है, जुनून के तहत ही श्रीमती सुनीता माहेश्वरी अजमेर की रूपनगढ़ तहसील के मानपुरा गांव में 15 बीघा भूमि पर श्री चारभुजा गिर गाय संरक्षण एवं संवर्धन केंद्र का संचालन कर रही हैं। इस गौशाला में भले ही मुनाफा न हो, लेकिन 90 गिर नस्ल की गायों को पाला जा रहा है। सुनीता का कहना है कि उनका उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं बल्कि गौ पालन और जैविक खेती के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। गायों के मूत्र और गोबर से ही खाद बनाई जाती है। इस खाद से ही गायों के लिए हरा चारा उगाया जाता है। गाय एक ऐसा पशु है जो मनुष्य के जीवन से जुड़ा हुआ है। यूं तो प्रत्येक गाय का दूध लाभ कारी है। लेकिन गिर नस्ल की गाय का दूध तो मनुष्य के शरीर के लिए अमृत के समान है। कोरोना काल में देशी विदेशी कंपनियां इम्यूनिटी बढ़ाने के नाम पर अपने उत्पाद बेचकर करोड़ों रुपया कमा रही है, जबकि गाय खास कर गिर नस्ल की गाय का दूध पीने से इम्यूनिटी पावर अपने आप बढ़ जाती है। हम यदि गायों के बीच रहते हैं तो हमें कोई रोग नहीं लगेगा। गौ माता में इतनी ताकत है कि वह हमें सभी रोगों से दूर रखती है। यही वजह है कि गाय के गोबर और मूत्र से जो खाद बनाई जाती है उसमें किसी भी रासायन की जरुरत नहीं होती। हमारी सनातन संस्कृति में तो प्रत्येक घर में कम से कम एक गाय पालन की सीख दी गई है। जिस स्थान पर गाय बांधी जाती है वह स्थान भी पवित्र हो जाता है। हमारी तो परंपरा भी यही रही है कि गाय के गोबर से घर आंगन को पवित्र किया जाता है। श्रीमती माहेश्वरी ने बताया कि उनकी गौशाला ग्रामीण क्षेत्र में है इसलिए दूध की बिक्री नहीं हो पाती है। लेकिन बिलोना पद्धति से घी का उत्पादन किया जाता है। उनकी गौशाला में तैयार घी पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है। गौशाला चलाने और फिर गाय के दूध के प्रोडक्ट बनाने को लेकर वह स्वयं समय समय पर प्रशिक्षण लेती हैं। उनकी गौशाला में आकर कोई भी व्यक्ति जैविक खाद और गोपालक के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है। उन्होंने बताया कि गौशाला में जो नंदी जन्म लेते हैं उन्हें आज तक बेचा नहीं गया है। उन्नति किस्म के नंदियों को गौशालाओं को निशुल्क दिया जाता है। यदि किसी गौ शाला को उन्नति किस्म के नंदी की आवश्यकता है तो वह उनकी गौशाला से ले सकते हैं। श्रीमती माहेश्वरी ने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि जब गौशाला का माहौल खुशनुमा होता है, तब गाय भी ज्यादा दूध देती है। लेकिन जब कभी किन्हीं कारणों से माहौल तनावयुक्त होता है तो गायों के दूध में गिरावट हो जाती है। लोगों में अब जिस तरह से गाय के दूध के प्रति जागरूकता बढ़ रही है उससे गौशालाओं की आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी है। श्रीमती माहेश्वरी के सेवा भाव और गायों के संरक्षण एवं संवर्धन को देखते हुए ही पशुपालन विभाग ने उन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया। इसी प्रकार 26 जनवरी को जिला स्तर पर भी श्रीमती माहेश्वरी को सम्मानित किया गया। गौशाला के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 8302213859 पर सुनीता माहेश्वरी से ली जा सकती है। 

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परीक्षा से पहले रीट का पेपर बिकने के प्रकरण में अब तक एक करोड़ 22 लाख रुपए की वसूली सामने आई।एसओजी के एडीजी अशोक राठौड़ ने पेपर बेचने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया।क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रीट परीक्षा करवाने वाले माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारोली को बचाते रहेंगे?बोर्ड अध्यक्ष जारोली ने ही रिटायर लेक्चरर प्रदीप पाराशर और गिरफ्तार रामकृपाल मीणा को जयपुर को-ऑर्डिनेटर बनाया था।एसओजी की अजमेर के रीट कार्यालय में दस्तक।

राजस्थान एसओजी के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक राठौड़ ने साफ कर दिया है कि प्रदेश भर में गत 26 सितंबर को हुई राज्य स्तरीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) का प्रश्न पत्र परीक्षा से एक दिन पहले ही आउट हो गया। गिरोह के सदस्यों ने पेपर को जमकर बेचा। अब तक एक करोड़ 22 लाख रुपए की वसूली का पता चल चुका है। पेपर बेचने और खरीदने वाले 32 व्यक्ति एसओजी की गिरफ्त में है। जांच अभी जारी है। जिन परीक्षार्थियों ने प्रश्न पत्र खरीदा उनकी सूची रीट परीक्षा लेने वाले राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को भेजी जा रही है, ताकि ऐसे परीक्षार्थियों को डिबार किया जा सके। राठौड़ ने बताया कि अब यह साफ हो गया है कि रीट का पेपर परीक्षा से पहले ही आउट हो गया। एसओजी ने गत दिनों गिरोह के प्रमुख सदस्य भजनलाल विश्नोई को गिरफ्तार किया। भजनलाल ने बताया कि प्रश्न पत्र उसे उदाराम बिश्नोई ने दिया। जालौर निवासी उदाराम विश्नोई ने बताया कि एक प्रश्न पत्र से उसे 25 सितंबर की रात को रीट परीक्षा के जयपुर स्थित को ऑर्डिनेटर रामकृपाल मीणा ने दिया था। मीणा जयुपर में ही गोपालपुरा त्रिवेणी नगर में संचालित एसएम कॉलेज का मालिक है। इस प्राइवेट शिक्षण संस्था में भी रीट का परीक्षा केंद्र बनाया गया। मीणा की पत्नी ने भी रीट की परीक्षा दी। रामकृपाल मीणा के पास ही जयपुर जिले के परीक्षा केंद्रों पर प्रश्न पत्र भिजवाने की जिम्मेदारी दी। प्रश्न पत्रों के बंडल परीक्षा केंद्रों पर भिजवाने के समय ही मीणा ने एक बंडल से एक पेपर निकाल लिया और उसे ही रात भर में उन लोगों को भेजा, जिनसे राशि ली गई थी।
 
जारौली भी जांच के दायरे में :

एडीजी राठौड़ के खुलासे के बाद रीट परीक्षा करवाने वाले राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारौली भी जांच के दायरे में आ गए हैं, क्योंकि प्रदीप पाराशर और रामकृपाल मीणा को जयपुर जिले की जिम्मेदारी जारौली ने ही दी। सवाल उठता है कि जब प्रदेश के अन्य जिलों में सरकारी अधिकारियों को परीक्षा का को-ऑर्डिनेटर बनाया गया, तब अकेले जयपुर में गैर सरकारी व्यक्तियों को परीक्षा की जिम्मेदारी क्यों दी गई? जबकि जयपुर में सबसे अधिक परीक्षा केंद्र थे। अन्य जिलों में प्रश्न पत्र सरकारी ट्रेजरी या पुलिस स्टेशनों पर रखवाए गए, जबकि जयपुर में जारौली के निर्देश पर शिक्षा संकुल स्थित शिक्षा बोर्ड के कार्यालय में रखवाए गए। इतना ही नहीं 24 सितंबर की रात को खुद जारौली ने जयपुर में शिक्षा संकुल के उस स्थान का जायजा लिया, जहां प्रश्न पत्रों के बंडल रखे हुए थे। एसओजी की अब तक की जांच से पता चलता है कि शिक्षा बोर्ड रीट परीक्षा को लेकर बेहद लापरवाही बरती। लापरवाही बरतने में बोर्ड के पदाधिकारियों के स्वार्थ की जांच भी होनी जरूरी है। हो सकता है कि राजनीतिक कारणों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एसओजी की जांच का मुंह शिक्षा बोर्ड की ओर नहीं करवाएं, क्योंकि यदि एसओजी शिक्षा बोर्ड की जांच करती है तो फिर मामला राज्य सरकार तक पहुंच सकता है। रीट की परीक्षा के समय प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा थे। डोटासरा मौजूदा समय में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। एसओजी के खुलासे के बाद अब विपक्ष भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर हमलावर हो गया है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, प्रतिपक्ष के नेता राजेंद्र सिंह राठौड़, पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी, पूर्व मंत्री मदन दिलावर आदि ने रीट परीक्षा प्रश्न पत्र आउट होने की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। गहलोत पर अब डीपी जारोली को अध्यक्ष पद से हटाने का दबाव भी बढ़ गया है। देखना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष जारोली को कब तक बचाते हैं।

जल्दबाजी में परिणाम:

इसे शिक्षा बोर्ड का डर ही कहा जाएगा कि परीक्षा के मात्र 35 दिनों बाद ही रीट का परिणाम घोषित कर दिया गया। जबकि प्रदेश के 16 लाख युवाओं ने रीट की परीक्षा दी थी। जल्दबाजी की वजह से परिणाम में अनेक गड़बड़ी से भी हुई। जोधपुर और जयपुर हाईकोर्ट में सैकड़ों याचिकाएं लंबित पड़ी है। शिकायतें मिलने के बाद बोर्ड ने अब तक 31 हजार अभ्यर्थियों को बाहर कर दिया है। एसओजी के खुलासे के बाद ही संपूर्ण रीट परीक्षा पर सवालिया निशान लग गया है। जो अभ्यर्थियों पात्र घोषित नहीं हुए हैं, वे स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन अभ्यर्थियों ने प्रश्न पत्र खरीद लिया, सिर्फ वे ही परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं। उल्लेखनीय है कि रीट परीक्षा परिणाम की मेरिट के अनुसार युवाओं को शिक्षक की नौकरी मिलेगी। बोर्ड ने इससे पहले भी कई बार रीट की परीक्षा का आयोजन किया, लेकिन बोर्ड की ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई। वरिष्ठ आरएएस श्रीमती मेघना चौधरी जब बोर्ड की सचिव रहीं तब भी दो बार रीट की परीक्षा हुई, लेकिन तब पेपर आउट होने की एक भी शिकायत नहीं आई। परीक्षार्थियों ने जो आपत्तियां दर्ज करवाई तब उनका समाधान भी संतोषजनक तरीके से किया गया।
 
एसओजी रीट कार्यालय में:

पेपर लीक प्रकरण में गिरफ्तार आरोपियों से जो जानकारी मिली है, उसके अनुरूप ही 27 जनवरी को एसओजी की टीम रीट के अजमेर स्थित कार्यालय में पहुंच गई है। रीट का कार्यालय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के परिसर में ही है। एसओजी की टीम के रीट दफ्तर में पहुंचने के साथ ही शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारोली ने मीडिया से दूरी बना ली है। जानकार सूत्रों के अनुसार एसओजी के अधिकारी बोर्ड अध्यक्ष जारोली और सचिव अरविंद कुमार सेंगवा से भी पूछताछ कर सकते हैं। 

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Wednesday 26 January 2022

संविधान पार्क बनाने से पहले किसानों की भूमि की नीलामी रुकना जरूरी है।राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले नीलाम रोक वाले बिल पर स्थिति स्पष्ट करें।आखिर राजभवन में क्यों चुप रहे अशोक गहलोत।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर जयपुर स्थित राजभवन (राज्यपाल का सरकारी आवास) में संविधान पार्क का शिलान्यास हुआ। यदि राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच दोस्ताना संबंध नहीं होते तो राजभवन परिसर में संविधान पार्क नहीं बनता। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही जयपुर विकास प्राधिकरण करोड़ों रुपए खर्च कर राजभवन में इस पार्क का निर्माण करवा रहा है। इस तरह का संविधान पार्क देश में पहला है। स्वाभाविक है कि इसका श्रेय कलराज मिश्र को मिलेगा। संविधान पार्क का निर्माण करवाए जाने पर राज्यपाल मिश्र ने मुख्यमंत्री गहलोत का आभार जताया है। शिलान्यास समारोह में राज्यपाल के साथ सीएम गहलोत भी उपस्थित रहे। इस पार्क में विभिन्न कलाकृतियों के माध्यम से संविधान के महत्व के बारे में बताया जाएगा। कलराज मिश्र राजस्थान के राजभवन में रहकर अपनी हर ख्वाहिश पूरी करें और मुख्यमंत्री गहलोत मिश्र को भरपूर तरीके से अब्लाइज करे, इस पर किसी को एतराज नहीं है। लेकिन संविधान पार्क से पहले राजस्थान में किसानों की कृषि भूमि की नीलामी रुकनी चाहिए। 26 जनवरी को कलराज मिश्र और अशोक गहलोत भले ही एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे हो, लेकिन 24 जनवरी को उनके कार्यालय एक-दूसरे को झूठा बता रहे थे। मुख्यमंत्री कार्यालय का कहना रहा कि पिछले दो वर्ष से किसानों की भूमि नीलामी को रोकने वाला बिल राजभवन में लंबित पड़ा है, जबकि राजभवन का कहना रहा कि हमारे पास ऐसा कोई बिल लंबित नहीं है। सवाल उठता है कि जब दो संवैधानिक संस्थाओं के बीच झूठ-फरेब है,तब संविधान पार्क क्यों बनवाया जा रहा है। जब संस्थाएं संविधान की पवित्र भावनाओं के अनुरूप काम नहीं कर रही है, तब संविधान पार्क से क्या शिक्षा ली जाएगी। सवाल यह भी है कि 26 जनवरी को राजभवन परिसर में कलराज मिश्र और अशोक गहलोत मिले तब क्या किसानों की भूमि की नीलामी पर रोक के बिल को लेकर कोई बात हुई। जब कृषि भूमि की नीलामी से परेशान किसान आत्महत्या कर रहा है, तब राज्यपाल और मुख्यमंत्री मिलकर संविधान पार्क बनवा रहे हैं। अच्छा होता कि संविधान पार्क से पहले कृषि भूमि की नीलामी रुकवाई जाती। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत बार बार देश में तनाव की बात करते है, जबकि उनके प्रदेश में किसानों की भूमि की नीलामी हो रही है, यह हमारे अन्नदाता के परिवार में तनाव नहीं है? सीएम गहलोत बताए कि राजस्थान में कृषि भूमि की नीलामी होती है, तो कौन जिम्मेदार है? इसे राजनीति का दोगला चरित्र ही कहा जाएगा कि दो दिन पहले जो संवैधानिक संस्थाएं एक दूसरे को झूठा बता रही थी, वो ही 26 जनवरी को संविधान पार्क का शिलान्यास करवा रही हैं। धिक्कार है ऐसी राजनीति?

राजभवन में चुप्पी क्यों?:
26 जनवरी को जयपुर में कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में गणतंत्र दिवस के समारोह के दौरान सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि यदि राज्यपाल रोड़ा एक्ट के संशोधन के बिल को मंजूरी दे दे तो कृषि भूमि की नीलामी रुक सकती है। लेकिन इस समारोह के बाद जब सीएम गहलोत संविधान पार्क के शिलान्यास के लिए राजभवन पहुंचे तो बिल पर कोई बात नहीं हुई। सवाल उठता है कि आखिर सीएम गहलोत ने राजभवन में बिल को लेकर चुप्पी क्यों साधी। 

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सोशल मीडिया पर आरपीएन सिंह से ज्यादा सचिन पायलट की चर्चा।आखिर राहुल गांधी के मित्र माने जाने वाले युवाओं का कांग्रेस से मोह भंग क्यों हो रहा है?नुकसान पहुंचाने से तो अच्छा है कि ऐसे नेता कांग्रेस छोड़ कर चले जाए-अशोक गहलोत।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और झारखंड के प्रभारी आरपीएन सिंह ने 25 जनवरी को कांग्रेस की प्राथमिकता सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। सिंह ने कांग्रेस तब छोड़ी, जब उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होना है। सिंह उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता है और माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य से मुकाबला करने के लिए सिंह को भाजपा में लाया गया है। मौर्य ने हाल ही में भाजपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी का दामन थामा है। आरपीएन सिंह उत्तर प्रदेश में भाजपा को कितना फायदा पहुंचाते हैं यह तो 10 मार्च को परिणाम वाले दिन ही पता चलेगा, लेकिन सोशल मीडिया में आरपीएन सिंह से ज्यादा राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को लेकर हो रही है। एक फोटो वायरल हो रहा है, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद और सचिन पायलट नजर आ रहे है। यह फोटो कांग्रेस के किसी अधिवेशन का है और तब चे चारों युवा नेता कांग्रेस में रह कर राहुल गांधी के मित्र माने जाते थे। इनमें से तीन नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। अकेले सचिन पायलट हैं जो अभी भी कांग्रेस में बने हुए हैं, इसलिए आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने पर सचिन पायलट की चर्चा ज्यादा हो रही है। हालांकि पायलट भी जुलाई 2020 में कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर जयपुर से दिल्ली चले गए थे, लेकिन पायलट ने अभी तक भी कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है। यह बात अलग है कि दिल्ली जाने पर पायलट से डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छीन लिया गया था। सचिन पायलट किसी पद पर न रहते हुए भी कांग्रेस में बने हुए हैं, जबकि आरपीएन सिंह राष्ट्रीय महासचिव के पद पर रहते हुए भाजपा में शामिल हो गए। सचिन पायलट मौजूदा समय में कांग्रेस में रह कर जिन विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, उससे राजस्थान में पायलट के समर्थक खुश नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बाद पायलट को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल रहा है। डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष का पद छीन लिए जाने के बाद भी पायलट कांग्रेस के समर्थन में प्रचार प्रसार कर रहे हैं। 24 जनवरी को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है उसमें पायलट का नाम भी शामिल है। यानी पायलट अपनी ओर से कांग्रेस के साथ खड़े होने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में पायलट कितने दिनों तक कांग्रेस के साथ खड़े रहेंगे? यह सवाल कांग्रेस में ही चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां तक सचिन पायलट का अपने गृह प्रदेश राजस्थान में लोकप्रियता का सवाल है तो 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने पायलट के चेहरे पर ही लड़ा था और तब कांग्रेस को सरकार बनाने लायक बहुमत मिला, लेकिन एनमौके पर पायलट को पीछे धकेल कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। गुर्जर बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में तो पायलट का दबदबा है ही साथ ही प्रदेशभर में पायलट की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। पायलट जब भी सड़क मार्ग से दौरे पर निकले हैं तो रास्ते में समर्थकों की जबरदस्त भीड़ होती है।
 
युवा नेताओं का मोह भंग क्यों?
राजनीति में नेताओं का आना जाना लगा रहता है, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार को इस बात पर मंथन करना होगा कि युवा नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कांग्रेस छोड़ी तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार चली गई। उत्तर प्रदेश में पहले ही कांग्रेस का प्रभाव बहुत कम है। ऐसी स्थिति में भी जतिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेताओं कांग्रेस छोड़ दी है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली से कांग्रेस की एक मात्र सांसद राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी है। रायबरेली से कांग्रेस के दो विधायक बने लेकिन दोनों ही विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी। जो बड़े नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं, वे गांधी परिवार खास कर राहुल गांधी के निकट रहे हैं। राहुल गांधी में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि उनके मित्र भी साथ छोड़ रहे हैं। राजनीति में मतभेद होने के बावजूद भी कुछ लोग मित्रता के नाते साथ रहते हैं, लेकिन राहुल गांधी के साथ तो मित्रता भी नहीं निभाई जा रही। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस का केंद्र में सत्ता से बाहर होने के बाद राहुल गांधी ने पार्टी के नेताओं से दूरी बना ली है। इससे संवाद में कमी हो गई है। राहुल गांधी साल में तीन चार बार एक-एक माह के विदेश भी चले जाते हैं। जबकि पार्टी के सारे महत्त्वपूर्ण निर्णय गांधी परिवार ही करता है। आरपीएन सिंह और जतिन प्रसाद ने कांग्रेस तब छोड़ी, जब उत्तर प्रदेश का प्रभार खुद राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के पास है। प्रियंका गांधी लगातार भाग दौड़ भी कर रही हैं। प्रियंका गांधी की इतनी सक्रियता के बाद भी आरपीएन सिंह का भाजपा में चले जाना कांग्रेस के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष का अपना महत्व होता है और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही प्रमुख विपक्षी दल है। लेकिन कांग्रेस को अपने कुनबे को संभाल कर रखने की जरूरत है।

कोई फर्क नहीं पड़ता-गहलोत:
26 जनवरी को मीडिया से संवाद करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि जो नेता कांग्रेस में रहकर नुकसान पहुंचा रहे हैं अच्छा हो कि वे कांग्रेस छोड़कर चले जाए। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोडऩे पर गहलोत ने कहा कि कांग्रेस एक समंदर है किसी नेता के छोड़ कर चले जाने से कांग्रेस की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पहले भी कई नेता जा चुके हैं, लेकिन अनेक नेताओं को वापस कांग्रेस में आना पड़ा है। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी है। 

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अजमेर में ख्वाजा साहब के उर्स को लेकर असमंजस की स्थिति।29 जनवरी को झंडे की रस्म के साथ ही उर्स का आगाज हो जाएगा। ऐसे में 30 जनवरी को वीकेंड कर्फ्यू का क्या होगा?ट्रेन और बसों के चलते देशभर से जायरीन को अजमेर आने से रोकना मुश्किल।

कोरोना संक्रमण को देखते हुए राजस्थान में वीकेंड कर्फ्यू लगा हुआ है। रोजाना रात 8 बजे से सुबह 5 बजे तक कर्फ्यू जैसी अनेक पाबंदियां भी लगी हुई है। इतनी पाबंदियों के बीच ही अजमेर में ख्वाजा साहब का सालाना उर्स भरने जा रहा है। हालांकि धार्मिक दृष्टि से 6 दिवसीय उर्स की शुरुआत चांद दिखने पर दो फरवरी से होगी, लेकिन उर्स का आगाज 29 जनवरी से झंडे की रस्म के साथ हो जाएगा। उर्स में भाग लेने के लिए देशभर से बड़ी संख्या में जायरीन आते हैं। लेकिन अभी तक भी राज्य सरकार ने उर्स को लेकर कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किए हैं। इससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है। प्रशासन से लेकर दरगाह के खादिम तक चिंतित हैं। जिला कलेक्टर अंशदीप ने 25 जनवरी को ही दरगाह का दौरा कर उर्स के बारे में जानकारी ली है। खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने एक सप्ताह पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर उर्स की रस्मों और सरकारी पाबंदियों के बारे में जानकारी दी थी, लेकिन इस पत्र का भी कोई जवाब नहीं आया है। अंगारा शाह ने कहा कि जब ट्रेनों और बसों का संचालन हो रहा है, तब जायरीन को उर्स में अजमेर आने से नहीं रोका जा सकता है। जब बड़ी संख्या में जायरीन अजमेर आ जाएंगे, तब पाबंदियों की पालना मुश्किल होगी। उन्होंने कहा कि सरकार को ख्वाजा साहब के उर्स की गंभीरता को समझना चाहिए। उर्स की रस्मों से जायरीन की धार्मिक भावनाएं जुड़ी होती है। ऐसे में अजमेर आने के बाद जायरीन दरगाह आने से नहीं रोका जा सकता। उर्स की अधिकांश रस्में रात को ही होती है। महफिल खाने में धार्मिक कव्वालियों से लेकर पवित्र मजार पर गुस्ल की रस्म रात की ही है। उर्स की अवधि ही जन्नती दरवाजा खोला जाता है। उर्स में आने वाला हर जायरीन जन्नती दरवाजे से गुजरता है। झंडे की रस्म के अगले दिन ही रविवार है और चांद दिखने पर जब 2 फरवरी से 6 दिवसीय उर्स शुरू होगा, तब 6 फरवरी को भी रविवार है। ऐसे में वीकेंड कर्फ्यू से भारी परेशानी होगी। अंगारा शाह ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह किया है कि अजमेर में वीकेंड कर्फ्यू समाप्त कर रात की पाबंदियों को भी हटाया जाए। इस मामले में सरकार को जल्द निर्णय लेना चाहिए। 29 जनवरी को झंडे की रस्म में भी बड़ी संख्या में जायरीन और खादिम समुदाय के लोग दरगाह के अंदर उपस्थित रहेंगे। छोटे-बड़े कारोबारी भी उर्स का इंतजार करते हैं। उर्स से हजारों लोगों का रोजगार भी जुड़ा है।  
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Tuesday 25 January 2022

अजमेर में पुष्कर रोड पर नवग्रह कॉलोनी के सामने 20 दुकानों पर नगर निगम ने जेसीबी चलाई।अवैध निर्माण कर्ताओं को चेतावनी देने के लिए सीज के बजाए तोड़ने की कार्यवाही की।निगम प्रशासन अवैध निर्माणों पर समान रूप से कार्यवाही करें-डिप्टी मेयर।

25 जनवरी को अजमेर में एक बड़ी कार्यवाही करते हुए नगर निगम ने 20 दुकानों पर जेसीबी चला कर दुकानों को मिट्टी के ढेर में तब्दील कर दिया। ये दुकानें पुष्कर रोड पर नवग्रह कॉलोनी के सामने एक आवासीय भूखंड पर बनाई गई थी। दुकान तोड़ने से पहले निगम ने संबंधित दुकानों के मालिक विष्णुदत्त गोयल, राम जेठानी, मोनिका जैन और विकास लोढ़ा को नोटिस भी दिए। लेकिन इन निर्माण कर्ताओं ने निगम के नोटिसों का संतोषजनक जवाब नहीं दिया। आमतौर पर निगम अवैध निर्माणों को सीज करता है। लेकिन 25 जनवरी को निगम ने सीज की कार्यवाही करने के बजाए सीधे तोडऩे की कार्यवाही की। निगम के अधिकारियों का कहना है कि इससे अवैध निर्माणकर्ताओं को सबक लेना चाहिए। जो लोग आवासीय भूखंड पर कॉमर्शियल निर्माण कर रहे हैं, उनके विरुद्ध अब ऐसी ही सख्त कार्यवाही की जाएगी। एक साथ बीस दुकानों को तोड़ने की कार्यवाही से शहरभर में दहशत का माहौल हो गया है। वहीं डिप्टी मेयर नीरज जैन ने अवैध रूप से निर्मित दुकानों को तोड़ने की कार्यवाही का तो स्वागत किया लेकिन साथ ही निगम अधिकारियों से कहा कि वे शहरभर में समान रूप से कार्यवाही करें। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां आवासीय भूखंड पर कमर्शियल निर्माण किया गया है। निगम प्रशासन को ऐसे सभी मामलों में सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। जैन ने शहरवासियों से भी अपील की कि नियमानुसार मानचित्र स्वीकृत करवाकर ही निर्माण कार्य करें। यदि किसी व्यक्ति को मानचित्र स्वीकृत करवाने में निगम स्तर पर कोई परेशानी हो रही है, तो वे सीधे उनसे (डिप्टी मेयर) से संपर्क कर सकते हैं। 

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राजस्थान में जब यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को नौकरी से इस्तीफा दिए बगैर चुनाव लड़ने की छूट है, तब राज्य कर्मचारियों को क्यों नहीं?राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर विशेष।

25 जनवरी को देश भर में राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया गया। राजस्थान देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हैं, जहां यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को नौकरी से इस्तीफा दिए बगैर ही चुनाव लड़ने की छूट है। यदि कोई शिक्षक चुनाव हार जाए तो वह पुनः अपने यूनिवर्सिटी में नौकरी जॉइन कर सकता है। यदि कोई शिक्षक चुनाव जीत कर सांसद या विधायक बन जाए तो वह सांसद-विधायक के पद पर रहने तक यूनिवर्सिटी से अवकाश ले सकता है। सांसद-विधायक का कार्यकाल पूरा होने पर फिर से अपनी यूनिवर्सिटी में जॉइन कर सकता है। राजस्थान विधानसभा के मौजूदा अध्यक्ष सीपी जोशी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। उदयपुर की सुखाडिय़ा यूनिवर्सिटी में शिक्षक रहते हुए सीपी ने ऐसा ही किया। यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को सिर्फ चुनाव लडऩे में ही छूट नहीं है बल्कि शिक्षक के पद पर रहते हुए दलगत राजनीति करने की भी छूट है। अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष प्रो. बीपी सारस्वत रिटायरमेंट से पहले अजमेर देहात भाजपा के छह वर्ष तक अध्यक्ष रहे। यानी दिन में यूनिवर्सिटी में बच्चों को पढ़ाया और शाम को चुनाव सभा को संबोधित किया। यानी यूनिवर्सिटी के शिक्षक की नौकरी और राजनीति में कोई फर्क नहीं है। चूंकि आज मतदाता दिवस है, इसलिए यह सवाल उठता रहा है कि राजनीति करने के लिए जो छूट यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को मिली हुई है वैसी छूट राजस्थान में राज्य कर्मचारियों को क्यों नहीं है। राजस्थान शिक्षक संघ (राधाकृष्णन) के प्रदेश अध्यक्ष विजय सोनी ने कहा कि मौजूदा नियम राज्य कर्मचारियों के साथ भेदभाव करते हैं। यूनिवर्सिटी के शिक्षकों की नियुक्ति भी राज्य सरकार के सेवा नियमों के तहत होती है और राज्य कर्मचारी भी इन्हीं सेवा नियमों के तहत काम करते हैं। राजस्थान में सात लाख राज्य कर्मचारी हैं। यदि राज्य कर्मचारियों को भी इस्तीफा दिए बगैर चुनाव लड़ने की छूट मिले तो अच्छे जनप्रतिनिधियों का चयन हो सकता है। सरकार ने बेवजह राज्य कर्मचारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर रखा है। राज्य सरकार के अधिकारी और कर्मचारी ही राजनीतिक दलों की सरकार चलाते हैं। ऐसे में उन्हें अनुभव भी होता है। सोनी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मांग की कि राज्य कर्मचारियों को भी यूनिवर्सिटी के शिक्षकों की तरह राजनीति में भाग लेने की छूट मिलनी चाहिए। सोनी ने कहा कि अपनी इस मांग को लेकर प्रदेश भर के राज्य कर्मचारियों को एकजुट किया जा रहा है, इसको लेकर यदि आंदोलन की जरूरत पड़ी तो प्रदेशभर में आंदोलन भी किया जाएगा। इसको लेकर जो अभियान चलाया जा रहा है उसकी जानकारी मोबाइल नंबर 9829087912 पर विजय सोनी से ली जा सकती है। 

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कलराज मिश्र और अशोक गहलोत के बीच इतने मधुर संबंध होने के बाद भी राजभवन और सीएमओ में इतना झूठ-फरेब!कृषि भूमि की नीलामी बिल को लेकर राजस्थान में टकराव।

राजस्थान के राजभवन का कहना है कि किसानों की कृषि भूमि की नीलामी पर रोक से संबंधित कोई भी बिल राजभवन में लंबित नहीं है, जबकि मुख्यमंत्री कार्यालय का दावा है कि ऐसा बिल पिछले दो वर्ष से राजभवन में लंबित पड़ा है। राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय दोनों ही संविधान के संरक्षक है और दोनों की स्थिति कानून के पवित्र मंदिर की तरह है। एक मंदिर के पुजारी राज्यपाल कलराज मिश्र हैं तो दूसरे मंदिर के पुजारी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। सब जानते हैं कि मिश्र और गहलोत के बीच बेहद मधुर संबंध हैं। मिश्र द्वारा लिखी पुस्तक का विमोचन अशोक गहलोत ही करते हैं तथा जब गहलोत अस्वस्थ्य होते हैं तो कलराज मिश्र उत्तर प्रदेश की यात्रा बीच में छोड़कर जयपुर आ जाते हैं। सार्वजनिक समारोह में दोनों को एक दूसरे की तारीफ करने से कोई गुरेज नहीं है। सीएम गहलोत जब चाहें तब राज्यपाल से मुलाकात कर लेते हैं। मुख्यमंत्री को सिर्फ राजभवन में आने की सूचना देनी होती है। सीएम गहलोत ने कहा कि कलराज मिश्र मुझ से ज्यादा शिष्टाचार निभाते हैं। मिश्र और गहलोत के बीच इतने मधुर संबंध होने के बाद भी राजभवन और सीएमओ के बीच झूठ और फरेब की खबरें आ रही है। दोनों संस्थाओं के अलग अलग कथनों से जाहिर है कि एक संस्थान झूठ बोल रहा है। सवाल यह भी है कि लंबित बिल के बारे में सीएम गहलोत ने आखिर अपने मित्र राज्यपाल मिश्र से दो वर्ष की अवधि में बात क्यों नहीं की? क्या सरकार की नजर में किसानों की भूमि की नीलामी का मामला कोई महत्व नहीं रखता? विधानसभा में बिल स्वीकृत करने के बाद भी अशोक गहलोत की सरकार के अधीन काम करने वाले एडीएम और एसडीएम स्तर के अधिकारियों ने कमर्शियल बैंकों को किसानों की भूमि नीलाम करने के आदेश जारी कर दिए। क्या गहलोत सरकार की जिम्मेदार सिर्फ बिल स्वीकृत करने की थी? सरकार जब विधानसभा में बिल स्वीकृत करवा सकती है, तब बिल की भावना के अनुरूप एसडीएम और एडीएम को निर्देश देकर नीलामी की अनुमति देने से रोका जा सकता था, लेकिन सरकार ने अपना दायित्व नहीं निभाया और अब अपनी गलती को राजभवन पर डाला जा रहा है। एक बार यह मान भी लिया जाए कि सरकार का बिल राजभवन में लंबित है तो क्या राज्यपाल को दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं में संशोधन का अधिकार है? सीएम गहलोत इस संवैधानिक प्रक्रिया को समझते हैं। आखिर गहलोत तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं। तीन बार केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं और तीन बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, सत्ता और राजनीति के सारे गुर जानते हैं, इसलिए जब राजस्थान में किसानों की भूमि की नीलामी के विरोध में आवाज उठने लगी तो बुराई का ठीकरा अपने मित्र कलराज मिश्र पर फोड़ दिया। इससे कलराज मिश्र को भी मित्रता का अर्थ समझ में आ जाना चाहिए। राजभवन और सीएमओ के बीच जो झूठ फरेब सामने आया है, उससे किसानों को भी सबक लेना चाहिए। तीन कृषि कानूनों की वापसी तो कांग्रेस ने साथ दिया, लेकिन कांग्रेस शासित राज्य में किसानों की भूमि की नीलामी को नहीं रोका जा रहा है। राजस्थान के प्रकरण में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी चुप है। ऐसी स्थिति यदि भाजपा शासित राज्य में होती तो राकेश टिकैत नेशनल हाइवे पर तंबू तान कर बैठ जाते। 

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Saturday 22 January 2022

तो क्या राजस्थान की 7 लाख बेटियां गार्गी पुरस्कार से वंचित हो जाएंगी? 383 करोड़ रुपए बांटने हैं बेटियों को।पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कांग्रेस सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई।

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की वार्षिक परीक्षा में जो छात्राएं 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करती हैं, उन्हें प्रति वर्ष बसंत पंचमी के दिन गार्गी पुरस्कार देने की घोषणा की जाती है। इसके पीछे राज्य सरकार का मकसद बेटियों को उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित करना होता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत 10वीं की पात्र छात्रा को 6 हजार रुपए और 12वीं की छात्रा को 5 हजार रुपए की राशि दी जाती है। इस बार बसंत पंचमी 5 फरवरी की है। लेकिन सरकार की ओर से अभी तक भी गार्गी पुरस्कार के लिए कोई सक्रियता नहीं दिखाई गई है। इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या राजस्थान की सात लाख बेटियां पुरस्कार और प्रोत्साहन राशि से वंचित हो जाएंगी। सरकार के इस लापरवाही पूर्ण रवैये पर पूर्व शिक्षा मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ विधायक वासुदेव देवनानी ने नाराजगी जताई है। देवनानी ने बताया कि शिक्षा बोर्ड ने जो परिणाम घोषित किया उसके अनुसार प्रदेश भर में 10वीं की 3 लाख 83 हजार 931 छात्राएं गार्गी पुरस्कार के लिए पात्र हैं। इसी प्रकार 12वीं कक्षा के लिए 3 लाख 22 हजार 333 छात्राओं ने 75 प्रतिशत से ज्यादा अंक प्राप्त किए हैं। यानी प्रदेश की 7 लाख बेटियों को पुरस्कार राशि मिलनी चाहिए। सरकार को इसके लिए 383 करोड़ रुपए वितरित करने हैं। देवनानी ने कहा कि अब जब बसंत पंचमी में दो सप्ताह शेष है, तब गार्गी पुरस्कार के लिए कोई तैयारियां नहीं होना बेहद ही गैर जिम्मेदाराना कृत्य है। देवनानी ने कहा कि यह पुरस्कार बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार बेटियों की उच्च शिक्षा में रुचि नहीं रखती है। देवनानी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह किया कि वे गार्गी पुरस्कार के लिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को दिशा निर्देश जारी करे। देवनानी ने बताया कि शिक्षा बोर्ड से संबद्ध स्कूलों की जो एफडी बोर्ड में जमा होती है उसके ब्याज से ही बेटियों को पुरस्कार राशि वितरित की जाती है। इसको लेकर बालिका फाउंडेशन भी बना हुआ है। लेकिन इसके बावजूद भी सरकार द्वारा इस वर्ष गार्गी पुरस्कार देने की कोई तैयार नहीं की गई है। देवनानी ने कहा कि यदि राज्य सरकार ने तत्काल कोई निर्णय नहीं लिया तो वे विधानसभा के बजट सत्र में इस मामले को जोर शोर से उठाएंगे। इस मामले में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414155744 पर विधायक वासुदेव देवनानी से ली जा सकती है। 

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उत्तर प्रदेश में ही क्यों पूरे देश में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस में कोई चेहरा नहीं है।लेकिन सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी। अभी 403 में से मात्र 6 सीटें हैं।

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने 21 जनवरी को उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी किया। इस अवसर पर एक पत्रकार ने पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस आपके (प्रियंका गांधी) चेहरे पर चुनाव लड़ रही है? इस पर प्रियंका ने उल्टा सवाल किया क्या आपको दूसरा चेहरा नजर आ रहा है? पत्रकार ने कहा नहीं। प्रियंका ने कहा कि आपको सवाल का जवाब मिल गया है। यानी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस प्रियंका गांधी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। सवाल सिर्फ उत्तर प्रदेश का नहीं है बल्कि पूरे देश में कांग्रेस के पास राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा कोई चेहरा नहीं है। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम आदि ने आवाज उठाई तो इन्हें भी किनारे कर दिया गया। अब केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेता फ्रंट लाइन में है, जो राहुल-प्रियंका की पालकी उठाकर चल रहे हैं। विपक्ष में भले ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रही हों, लेकिन कांग्रेस में गांधी परिवार के दोनों सदस्यों को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस का नेतृत्व ही राहुल और प्रियंका कर रहे हैं। कोई माने या नहीं, लेकिन 125 वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व गांधी परिवार के आसपास सिमट कर रह गया है। यदि कांग्रेस से गांधी परिवार को अलग कर दिया जाता है तो कांग्रेस का विसर्जन हो जाएगा। देश में कांग्रेस की थोड़ी बहुत स्थिति सिर्फ गांधी परिवार के कारण ही है। राहुल गांधी भले निजी यात्रा पर एक एक माह तक विदेश में रहे, लेकिन कांग्रेस तो उन्हीं के चेहरे से जानी जाएगी। गत लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि वे फिर से अध्यक्ष नहीं बनेंगे। इसे कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा ही कहा जाएगा कि कांग्रेस का कोई दूसरा नेता अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि पिछले ढाई वर्ष से राहुल गांधी की माताजी श्रीमती सोनिया गांधी को ही कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बना रखा है। पूर्व में भी सोनिया गांधी ने ही राहुल गांधी को अध्यक्ष पद सौंपा था। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का प्रयास है कि राहुल गांधी ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाले। गहलोत का मानना है कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद राहुल गांधी फिर से कांग्रेस की कमान संभाल लेंगे। वैसे अध्यक्ष नहीं होते हुए भी राहुल गांधी ही अध्यक्ष की भूमिका में है। राहुल गांधी की पसंद से ही पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया है। कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने में भी राहुल गांधी की भूमिका रही।
 
यूपी में कितनी सीटें?
कांग्रेस भले ही प्रियंका गांधी के चेहरे पर चुनाव लड़े, लेकिन सवाल उठता है कि मौजूदा समय में 403 में से कांग्रेस के मात्र 6 विधायक हैं। इस बार गांधी परिवार ने अपने सबसे प्रमुख सदस्य प्रियंका गांधी के चेहरे को उत्तर प्रदेश की जनता के समक्ष रखा है तो देखना होगा कि कांग्रेस के कितने उम्मीदवार चुनाव जीतते हैं। लोकसभा में भी उत्तर प्रदेश से श्रीमती सोनिया गांधी के तौर पर एकमात्र सांसद है। राहुल गांधी खुद अमेठी से चुनाव हार गए। इससे कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन यह सही है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में प्रियंका गांधी ने बहुत मेहनत की है।

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Friday 21 January 2022

आखिर राजस्थान में किसानों के कर्ज माफ नहीं करने के लिए कौन जिम्मेदार है?कांग्रेस सरकार चाहे, जितना दावा करे लेकिन सभी किसानों का 2 लाख रुपए का कर्ज भी माफ नहीं हुआ है।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हर काम की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डालते हैं।अब कोई भी किसान कर्ज का भुगतान नहीं करना चाहता है।

राजस्थान में किसानों की कर्ज माफी को लेकर 20 जनवरी को रात 8 बजे जी न्यूज के राजस्थान चैनल पर एक लाइव प्रोग्राम हुआ। इस प्रोग्राम में मैंने एक पत्रकार के तौर पर भाग लिया, जबकि मेरे साथ भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, कांग्रेस के विधायक जनाब रफीक खान और कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक बलवान पूनिया थे। आज का अटैक प्रोग्राम के एंकर संजय यादव रहे। हम सभी का यह मानना रहा कि राजस्थान में किसानों के कर्ज माफ होने चाहिए। कर्ज वसूली के लिए बैंक जो कृषि भूमि नीलाम कर रही है, उस पर भी रोक लगाने पर सहमति जताई गई। कांग्रेस विधायक रफीक खान ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनावी वादे के अनुरूप किसानों के कोऑपरेटिव सेक्टर के दो लाख रुपए तक के लोन माफ कर दिए हैं। इस पर सरकार ने 12 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। जबकि भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा का कहना रहा कि सम्पूर्ण कर्जमाफी का वादा कर कांग्रेस सत्ता में आई थी, इसलिए किसानों के सभी बैंकों के कर्ज माफ होने चाहिए। सीएम गहलोत ने एक और किसानों के कर्ज माफ नहीं किए, वहीं सरकार के आदेशों पर किसानों की कृषि भूमि नीलाम की जा रही है। भाजपा और कांग्रेस के अपने अपने तर्क हैं, लेकिन सवाल उठता है कि कर्ज माफी नहीं होने के लिए कौन जिम्मेदार है? कांग्रेस सरकार ने अब तक सिर्फ सेंट्रल को-ऑपरेटिव और भूमि विकास बैंक से जुड़े किसानों के दो लाख रुपए के लोन माफ किए हैं। लेकिन इन बैंकों से जुड़े सभी किसानों के लोन माफ नहीं हुए हैं। जिस किसान के कर्ज की राशि 2 लाख 5 हजार रुपए है, उस किसान का 2 लाख रुपए का कर्ज माफ नहीं हुआ है। यानी उन्हीं किसानों को फायदा मिला है, जिनके कर्ज की राशि दो लाख रुपए से कम हे। सवाल उठता है कि दस तक गिनती बोल कर राहुल गांधी ने क्या यही वादा किया था? राष्ट्रीयकृत बैंकों से लोन लेने वाले किसानों का तो दो लाख रुपए का लोन भी माफ नहीं हुआ है। सवाल उठता है कि जब राष्ट्रीयकृत बैंकों का लोन माफ करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है तो फिर कांग्रेस ने वादा क्यों किया? राष्ट्रीयकृत बैंकों के लोन माफ नहीं होने के लिए अब मुख्यमंत्री गहलोत केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। वायदा कांग्रेस ने किया था, इसलिए किसानों लोन माफ करने की जिम्मेदारी भी कांग्रेस की ही है। जहां तक कृषि भूमि नीलामी पर रोक से संबंधित बिल का मामला है तो राज्यपाल कलराज मिश्र को राज्य सरकार के बिल पर निर्णय लेना चाहिए। दो वर्ष तक बिल को लंबित रखना राजभवन के कामकाज पर सवाल उठता है। इस मुद्दे पर सीएम गहलोत के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन यह सही है कि अलवर और दौसा के किसानों की कृषि भूमि की नीलामी के आदेश गहलोत सरकार के उपखंड अधिकारियों ने ही बैंकों को दिए हैं। भाजपा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के हंगामे के बाद 20 जनवरी को जिस प्रकार सीएम गहलोत ने नीलामी रोकने और भविष्य में अनुमति नहीं देने के जो आदेश दिए, वे पहले भी दिए जा सकते थे। असल में सीएम गहलोत बड़ी चतुराई से सभी कार्यों का उत्तरदायित्व केंद्र सरकार पर डाल देते हैं। जब सभी काम केंद्र सरकार को करने है तो फिर राज्य सरकार की क्या जिम्मेदारी है? क्या उपखंड अधिकारियों को किसानों की कृषि भूमि नीलाम करने के आदेश केंद्र सरकार ने दिए थे।
 
अब कोई किसान लोन नहीं चुकाना चाहता:
राजनीतिक दल चुनाव में जो वादे करते हैं, उसे देखते हुए अब कोई भी किसान बैंकों का कर्ज नहीं चुकाना चाहता है। किसान को लगता है कि सत्ता के भूखे राजनीतिक दल आज नहीं तो कल लोन माफ कर ही देंगे। सरकार जब लोन माफ करने के लिए उतावली रहती हैं, तब किसान लोन का भुगतान क्यों करेगा? वर्ष 2018 में विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने जब किसानों के संपूर्ण कर्ज माफी की घोषणा की तो भाजपा सरकार की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने भी सरकार के अंतिम दिनों में 50 हजार रुपए तक कृषि लोन माफ करने की घोषणा कर दी। चूंकि 50 हजार रुपए कांग्रेस के दो लाख रुपए से कम थे,इसलिए भाजपा दोबारा से सत्ता में नहीं आ सकी। सवाल उठता है कि जब किसान कर्ज ही नहीं चुकाएगा, तब बैंकों का क्या होगा? 

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दिल्ली में अब नहीं रहेगा वीकेंड कफ्र्यू। राजस्थान में भी हटना चाहिए वीकेंड कर्फ्यू ।रविवार को सिफ बाजार बंद रहने से कोई मकसद हल नहीं हो रहा।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रदेश भर में कक्षा एक से 12वीं तक के स्कूल खोलने का निर्णय लिया है। इसी प्रकार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू हटाने की सिफारिश उपराज्यपाल को कर दी है। अन्य राज्य भी पाबंदियों को हटा रहे हैं। सभी राज्य कोरोना संक्रमण की स्थिति का अध्ययन कर आम लोगों को राहत दे रहे हैं। हालांकि पूरे देश में अभी कोरोना संक्रमण के केस आ रहे हैं, लेकिन तीसरी लहर में संक्रमित व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ रहा है। यानी संक्रमित व्यक्ति अपने घर पर ही क्वारंटाइन होकर स्वस्थ हो रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह वैक्सीनेशन के कारण है। देश में वैक्सीन की 150 करोड़ डोज लग चुकी है। इस स्थिति को देखे हुए राज्यों के मुख्यमंत्री पाबंदियों को हटा रहे हैं। राजस्थान में भी 20 जनवरी को ग्रामीण क्षेत्रों से वीकेंड कर्फ्यू समाप्त कर दिया गया तथा विवाह समारोह में भी मेहमानों की संख्या 50 से बढ़ाकर 100 कर दी गई है। लेकिन अभी शहरी क्षेत्रों में रविवार के दिन कर्फ्यू को लागू रखा गया है। सरकार ने रविवार के कर्फ्यू में भी फल-सब्जी से लेकर पेट्रोल पंप तक को छूट दे रखी है। यानी कर्फ्यू के नाम पर सिर्फ बाजार बंद रखे जा रहे हैं, इससे छोटे कारोबारियों को भारी परेशानी हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि पाबंदियों का खामियाजा सिर्फ शहरी क्षेत्र के दुकानदार ही उठा रहे हैं। रविवार को बाजार बंद रखने से संक्रमण नियंत्रण का कोई मकसद भी पूरा नहीं हो रहा है। जब कर्फ्यू के दौरान आवागमन है तो फिर बाजार बंद क्यों करवाए जा रहे हैं? रविवार के दिन बाजार बंद होने से दुकानदारों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। इन दिनों शादी-ब्याह का सीजन चल रहा है, ऐसे में बाजारों में खरीददारी बढ़ी हुई है। प्रदेश के लाखों दुकानदार चाहते हैं कि रविवार को का कर्फ्यू तुरंत प्रभाव से समाप्त किया जाए। दुकानदारों का कहना है कि जब ट्रेन और रोडवेज की बसें क्षमता के अनुरूप चल रही है, तब सिर्फ दुकानों को बंद रखने का कोई मतलब नहीं है। कोरोना काल में व्यापारियों के सामने पहले ही अनेक समस्याएं हैं। ऐसे में रविवार के दिन बाजार बंद होने से परेशानियां और बढ़ रही हैं। दिल्ली की तरह राजस्थान में भी वीकेंड कर्फ्यू को समाप्त करना चाहिए। 

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करीब एक माह की विदेश यात्रा से लौटते ही राहुल गांधी ने बहन प्रियंका के साथ यूपी का चुनावी घोषणा पत्र जारी किया।20 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दिलवाने का वादा। फूलप्रूफ होगी परीक्षा प्रणाली।राजस्थान में संविदा कर्मियों को अभी भी स्थाई नौकरी की आस।

उत्तर प्रदेश में जब पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होना है, तब राहुल गांधी करीब एक माह की विदेश यात्रा से लौट आए हैं। राहुल गांधी दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अपने ननिहाल इटली गए थे। राहुल ने नववर्ष भी विदेश में ही मनाया। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना रहा कि राहुल गांधी निजी यात्रा पर विदेश गए हैं। चुनाव आयोग ने जब पांच राज्यों में मतदान की तिथियां घोषित की तब भी राहुल गांधी विदेश में ही थे। अब अपने देश लौटते ही 21 जनवरी को राहुल गांधी ने अपनी बहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के साथ उत्तर प्रदेश का चुनावी घोषणा पत्र जारी किया। राहुल ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। इसलिए हमने घोषणा पत्र को रोजगार पर फोकस किया है। आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन 880 युवा बेरोजगार हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो नीतियां बनाई है उसका फायदा देश के दो-तीन उद्योगपतियों को मिल रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि हमारे घोषणा पत्र के अनुसार कांग्रेस की सरकार बनने पर 20 लाख युवाओं को सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद प्रियंका गांधी ने बताया कि 20 लाख नौकरियां किन किन विभागों में दी जाएगी। प्रियंका ने शिक्षा विभाग से लेकर आंगनबाड़ी में रिक्त पदों के बारे में जानकारी दी। प्रियंका ने उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति का भी वादा किया। उन्होंने कहा कि भाजपा के शासन में परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक हो रहे हैं, जिसकी वजह से युवाओं का भरोसा परीक्षा प्रणाली पर से समाप्त हो गया है। कांग्रेस की सरकार बनने पर फूलप्रूफ परीक्षा प्रणाली विकसित की जाएगी।
 
राजस्थान में संविदा कर्मी स्थाई नौकरी की आस में:
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भले ही उत्तर प्रदेश में 20 लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा किया हो, लेकिन कांग्रेस शासित राजस्थान में हजारों संविदा कर्मियों को अभी भी स्थाई नौकरी की आस है। गत विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि संविदा कर्मियों को स्थाई किया जाएगा। लेकिन तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी संविदा कर्मियों को स्थाई नहीं किया गया है। प्रदेश भर के संविदा कर्मी जयपुर में बेमियादी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से लेकर पंचायत सहायक तक शामिल है। राजस्थान में युवाओं को सरकारी नौकरियां दिलवाने के लिए ही प्रदेश के युवाओं ने लखनऊ में कांग्रेस कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन भी किया था। राजस्थान एकत्रित बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव का कहना है कि भर्तियां निकाली ही नहीं जा रही है। राजस्थान में परीक्षा सिस्टम भी बुरी तरह प्रभावित है। रीट परीक्षा का प्रश्न पत्र आउट करने वाले गिरोह के सदस्य अभी तक गिरफ्तार हो रहे हैं। अधिकांश भर्तियां अदालतों में अटकी पड़ी हैं, तो वहीं सभी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र आउट होने की शिकायतें मिलती हैं। अच्छा हो कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने युवाओं को नौकरी देने के लिए जो वादे उत्तर प्रदेश में किए हैं, उनकी क्रियान्विति कांग्रेस शासित राजस्थान में कराई जाए।

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दिल्ली के इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विशालकाय प्रतिमा लगेगी।26 जनवरी को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि इंडिया गेट के बजाए नेशनल वॉर मेमोरियल परिसर में शहीदों को नमन करेंगे।

21 जनवरी को दिल्ली में इंडिया गेट पर लगातार प्रज्वलित होने वाली ज्योति का विलय नेशनल वॉर मेमोरियल की ज्योति में कर दिया गया। यानी अब इंडिया गेट के नीचे ज्योति प्रज्ज्वलित नजर नहीं आएगी। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि इंडिया गेट पर अब नेता जी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाई जाएगी। प्रतिमा का होलोग्राम 23 जनवरी को लगाया जाएगा। नेता जी की प्रतिमा जब तक तैयार होगी, तब तक होलोग्राम इंडिया गेट पर देखने को मिलेगा। दिल्ली देश की राजधानी है और 21 जनवरी 2022 का दिन दिल्ली के लिए ऐतिहासिक माना जाएगा, जो इंडिया गेट पर्यटकों को आकर्षित करता है, उस पर देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा होगी। इंडिया गेट को अमर जवान ज्योति के रूप में भी जाना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना के रूप में जिन भारतीय जवानों को शहादत मिली उनके नाम इंडिया गेट पर लिखे गए हैं। इसी प्रकार 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान शहीद हुए कुछ जवानों के नाम भी भी अंकित हैं। लेकिन स्थान उपलब्ध नहीं होने के कारण शहीद जवानों के नाम इंडिया गेट पर नहीं लिखे जा सके। दो वर्ष पहले नेशनल वॉर मेमोरियल की शुरुआत की गई और तभी से सभी शहीदों के नाम एक साथ लिखे जा रहे हैं। परंपरा है कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड से पहले राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि अतिविशिष्ट व्यक्ति इंडिया गेट पर पहुंचकर अमर जवान ज्योति के समक्ष शहीदों को नमन करते हैं, लेकिन आगामी 26 जनवरी को यह परंपरा नेशनल वॉर मेमोरियल के परिसर में निभाई जाएग। इंडिया गेट की ज्योति का विलय नेशनल वॉर मेमोरियल की ज्योति में हो गया है। 

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Thursday 20 January 2022

कर्ज में डूबे किसान जब घर पर पहुंचे तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान भर में कृषि भूमि की नीलामी पर रोक के आदेश दिए।भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा हिरासत में।वादे के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने किसानों के कर्ज माफ नहीं किए-भाजपा अध्यक्ष पूनिया।

20 जनवरी को दौसा और अलवर क्षेत्र के कर्ज में डूबे सैकड़ों किसान जब जयपुर में सिविल लाइन स्थित मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के निकट जमा हो गए तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि प्रदेश भर में कृषि भूमि की नीलामी पर रोक लगा दी जाए। यानी अब बैंक अपने कर्ज वसूली के लिए किसान की कृषि भूमि की नीलामी नहीं कर सकेंगी। इससे पहले किसानों के साथ प्रदर्शन में पहुंचे भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि यह किसान अलवर और दौसा जिलों के हैं, ये वे किसान है जिनकी कृषि भूमि की नीलामी के लिए बैंकों ने सार्वजनिक सूचना चस्पा कर दी है। बैंकों के अधिकारी किसानों के घर जाकर उन्हें अपमानित कर रहे हैं। ऐसे अपमान से दुखी एक किसान ने तो आत्महत्या भी कर ली है। अलवर और दौसा में ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में किसानों में भय और दहशत का माहौल है। जिस किसान ने तीन लाख रुपए का कर्ज लिया था, उस पर अब चालीस लाख रुपए का कर्जा हो गया है। यदि किसान की भूमि की नीलामी हो जाएगी तो किसान क्या करेंगे। मीणा ने कहा कि राज्य सरकार ने दो वर्ष पहले विधानसभा में यह बिल स्वीकृत करवाया था कि पांच एकड़ वाले किसान की भूमि की नीलामी नहीं होगी, लेकिन आज मेरे साथ जो किसान आए हैं, वे सब पांच एकड़ भूमि से कम वाले किसान हैं। मीणा ने कहा कि सरकार की नीति से आज किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी रही है। वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से कहा गया कि मौजूदा स्थिति के लिए राज्यपाल कलराज मिश्र जिम्मेदार हैं। गहलोत ने कहा कि दो वर्ष पहले विधानसभा में जो बिल स्वीकृत कर राज्यपाल के पास भेजा गया, उसे अभी तक भी मंजूरी नहीं मिली है। यदि राज्यपाल मंजूरी दे देते तो कृषि भूमि की नीलामी नहीं हो पाती। गहलोत ने कहा कि राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्ज माफ करने के लिए भी केंद्र सरकार को वन टाइम सेटलमेंट करना चाहिए। राज्य सरकार अपने हिस्से की राशि देने को तैयार है।
 
मीणा हिरासत में:
मुख्यमंत्री आवास के निकट जब हंगामा ज्यादा होने लगा तब पुलिस ने भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा को हिरासत में ले लिया। मीणा को पुलिस वाहन में बैठकर अन्यत्र ले जाया गया। मीणा ने उसे पुलिस की दमनकारी नीति बताया।
 
कर्ज माफी नहीं हुई-पूनिया:
वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया ने कहा कि प्रदेश के किसानों की मौजूदा स्थिति के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिम्मेदार हैं। विधानसभा चुनाव के समय राहुल गांधी ने चुनावी सभाओं में वादा किया था कि किसानों की संपूर्ण कर्ज माफी की जाएगी। लेकिन तीन वर्ष से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद किसानों की कर्ज माफी नहीं हुई है। अलवर, दौसा और अन्य जिलों में कृषि भूमि की नीलामी को लेकर बैंकों ने जो सार्वजनिक सूचनाएं चस्पा की है, वे सभी बैंक सहकारी क्षेत्र की हैं। इससे प्रतीत होता है कि अभी सहकारी क्षेत्र की बैंकों के कर्ज भी माफ नहीं हुए हैं। डॉ. पूनिया ने कहा कि अशोक गहलोत राज्यपाल का उल्लेख कर मुद्दे को भटका रहे हैं। यदि वादे के मुताबिक किसानों की कर्ज माफी हो जाती तो बैंकों को वसूली के लिए नीलामी नहीं करनी पड़ती। 

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देश को तनाव के माहौल से छुटकारा मिले- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।कुछ लोग भारत की छवि को धूमिल कर रहे हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।ब्रह्माकुमारी संस्थान के स्वर्णिम भारत कार्यक्रम में अलग अलग विचार।

देश विदेश में सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली ब्रह्माकुमारी संस्थान का स्वर्णिम भारत का कार्यक्रम 20 जनवरी को बडे स्तर पर आयोजित किया गया। संस्थान के आबू रोड स्थित मुख्यालय पर हजारों कार्यकर्ता उपस्थित रहे।  तो संस्थान की प्रमुख दादी मोहिनी बहन न्यूयॉर्क से वीसी के जरिए जुड़ी। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आदि ने भी वीसी के जरिए ही भव्य कार्यक्रम को संबोधित किया। समारोह में मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आव्हान पर इन दिनों देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इसके अंतर्गत ब्रह्माकुमारी संस्थान भी स्वर्णिम भारत अभियान का आगाज कर रहा है। इससे युवा पीढ़ी को यह पता चलेगा कि हमें कितने बलिदान के बाद आजादी मिली है। लेकिन इन दिनों देश में भय और तनाव का माहौल है। जिससे छुटकारा मिलना चाहिए। गहलोत ने कहा कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही देश का विकास किया जा सकता है। समारोह में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएम गहलोत के कथन का तो उल्लेख नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि कुछ लोग देश की छवि धूमिल कर रहे हैं। मैं चाहता हंू कि ब्रह्मा कुमारी जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं अपनी अपनी विदेशी ब्रांच के जरिए उस देश के पांच पांच सौ लोगों को भारत लाए और देश की हकीकत से अवगत कराए। जब विदेशी लोग भारत के विकास को देखेंगे तो उन्हें सच्चाई का पता चलेगा। मोदी ने कहा कि अमृत महोत्सव का समय सोते हुए सपने देखने का नहीं है बल्कि आगामी 25 वर्षों के लिए संकल्प लेने का समय है। उन्होंने कहा कि अच्छे लोग समाज के भीतर से ही तैयार होते हैं। पिछले 75 वर्षों में लोगों को कर्तव्यों के प्रति जागरूक नहीं किया गया। हमेशा अधिकार देने की बात की गई। जबकि लोगों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी करना चाहिए। ब्रह्माकुमारी से जुड़े लाखों युवक-युवतियां लोगों को कर्तव्यों के प्रति जागरूक कर सकती है। मोदी ने इस बात पर खुशी जताई कि आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर स्वर्णिम भारत अभियान चलाकर ब्रह्माकुमारी संस्थान ने एक अच्छी शुरुआत की है। मैं भारत के निर्माण में हर भारतवासी की भूमिका होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज भारत समानता और सामाजिक न्याय की बुनियाद पर खड़ा है। आज लड़कियां सैनिक स्कूल में पढ़  रही हैं। लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभागों में जिम्मेदारी महिला मंत्री संभाल रही है बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं जैसे अभियान से लड़कियों की जन्म दर में वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम हो रहे हैं देश में ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़े अभियान चलाए जा रहे हैं। समारोह में संस्थान की प्रमुख मोहिनी बहन ने कहा कि स्वर्णिम भारत अभियान के अंतर्गत एक रैली आबू रोड से दिल्ली के बीच निकाली जा रही है। रैली में शामिल भाई-बहन जगह जगह लोगों को स्वास्थ्य, कृषि आदि के बारे में जानकारी देंगे। संस्थान का उद्देश्य सेवा और त्याग की भावना को बढ़ाना है। 

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गैंगरेप की पीडिताएं अब कानूनी कार्यवाही नहीं चाहती हैं। सवाल अब अंधा कानून क्या करेगा?प्रियंका जी! राजस्थान में नहीं लड़ सकती है लड़की।प्रतापगढ़ के धरियावद की घिनौनी घटना को देखते हुए कानून में बदलाव हो-एडवोकेट उमरदान लखावत।

राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य प्रतापगढ़ जिले के धरियावद क्षेत्र में 18 जनवरी को पुलिस ने ऐसे बदमाश गिरोह को पकड़ा है जो सुनसान इलाकों में वाहनों को रोककर लूटपाट करते थे। यदि किसी वाहन में महिला होती थी तो उसके साथ गिरोह के सदस्य बलात्कार भी करते थे। गैंगरेप का वीडियो बना कर धमकाया जाता था कि यदि पुलिस में शिकायत की तो वीडियो को वायरल कर दिया जाएगा। बदनामी से बचने के लिए पीड़ित परिवार पुलिस में शिकायत भी नहीं करता था। 18 जनवरी को गिरफ्तार चार युवकों के मोबाइल फोन से पुलिस ने गैंगरेप के कई वीडियो जब्त किए। पुलिस ने वीडियो देखकर जब पीड़ित महिलाओं से संपर्क किया तो उन्होंने एक बार फिर कानूनी कार्यवाही से इंकार कर दिया। पीड़िता और उनके परिजनों ने पुलिस से भी आग्रह किया कि उनकी पहचान को उजागर नहीं किया जाए। पुलिस यदि कोई कानूनी कार्यवाही करेगी तो परिवार की बदनामी होगी। कोई भी पीड़ित महिला अब अदालत के चक्कर नहीं काटना चाहती। समाज में इससे ज्यादा कोई घिनौनी घटना नहीं हो सकती। टीवी चैनलों पर नारी सशक्तिकरण का उपदेश देने वाली महिलाएं कह सकती है कि बदमाशों को सजा दिलाने के लिए पीड़िताओं को आगे आना चाहिए। कहना आसान है, लेकिन करना बहुत मुश्किल है। जो बदमाश पकड़े गए हैं, उनका सामाजिक स्तर कुछ नहीं है, जबकि पीड़ित महिलाएं सभ्य परिवारों की हैं। उल्टे यह मामला उजागर होने के बाद पीड़ित महिलाओं को बदनामी का डर हो गया है। सवाल उठता है कि जब महिलाएं शिकायत नहीं करेगी तो फिर बदमाशों को सजा कैसे मिलेगी? इस सवाल का जवाब देश के अंधे कानून को देना होगेा। न्याय की मूर्ति की आंखों पर तो पट्टी बंधी है। जो सबूत होंगे, उसी आधार पर सजा मिलेगी। राजस्थान के प्रतापगढ़ के धरियावद की घटना को देखते हुए क्या कानून में बदलाव नहीं होना चाहिए? सवाल यह भी है कि आखिर राजस्थान में यह क्या हो रहा है? बेबस, लाचार परिवारों की मजबूरी देखिए कि गैंगरेप जैसी वारदात हो के बाद भी चुप बैठना पड़ रहा है। क्या ऐसे अपराधियों के साथ हैदराबाद जैसी कार्यवाही नहीं होने चाहिए? जब धरियावद के अपराधी कानून की आड़ लेकर बच रहे हैं, तब हैदराबाद जैसा सलूक ही होना चाहिए। ऐसे अपराधी एक प्रतिशत भी रहने के लायक नहीं है। यदि धरियावद के अपराधियों को सजा नहीं मिलती है तो समाज में अपराधों को बढ़ावा मिलेगा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए। यह कोई सामान्य घटना नहीं है। राजस्थान में चल रही कांग्रेस की सरकार माने या नहीं लेकिन इससे पूरे देश में राजस्थान की बदनामी हो रही है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में नारा दिया है, लड़की हंू, लड़ सकती हंू। लेकिन कांग्रेस शासित राजस्थान में तो लड़की लड़ भी नहीं सकती है। प्रतापगढ़ के धरियावद की घटना ने तो प्रदेश में कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रखी दी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि धरियावद की इस घटना पर प्रियंका गांधी राजस्थान की कांग्रेस सरकार से जवाब तलब करेगी। लड़की हंू लड़ सकती हंू का नारा सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
 
कानून में बदलाव हो-लखावत:
राजस्थान के सुविख्यात कानूनविद और मशहूर एडवोकेट उमरदान लखावत ने माना कि शिकायतकर्ता के अभाव में अपराधी को सजा नहीं मिल सकती। धरियावद के प्रकरण में यदि पीडि़ताएं शिकायत दर्ज नहीं करा रही है तो इसका फायदा अपराधियों को मिलेगा, लेकिन उनका मानना है कि यह घिनौना कृत्य शरीर पर हमला नहीं, बल्कि आत्मा पर हमला है। जो महिलाएं धरियावद में गैंगरेप की शिकार हुई है, उनकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसे भारतीय कानून की मजबूरी ही कहा जाएगा कि घटना की पुष्टि होने के बाद भी अपराधी कानून के शिकंजे से बच रहे हैं। लखावत ने कहा कि विदेशों में ऐसे कई उदाहरण है जिनमें घटना विशेष को लेकर कानून से हटकर कार्यवाही की गई है। धरियावद का मामला भी ऐसा ही है जिसमें कानून से हटकर कार्यवाही किए जाने की जरूरत है। लखावत ने माना कि जब हमारे संविधान विशेषज्ञों ने अपराधों को लेकर कानून बनाए, तब प्रतापगढ़ के धरियावद के अपराध की कल्पना भी नहीं की होगी। लेकिन अब जब ऐसे अपराध सामने आ रहे हैं, तब कानून में बदलाव की जरूरत है। जहां तक धरियावद प्रकरण में पीडि़ताओं की मजबूरी का सवाल है तो पूरे समाज को इससे सबक लेना चाहिए। आखिर हम अपनी युवा पीढ़ी को संभाल क्यों नहीं पा रहे हैं? क्यों परिवारों के लड़के गिरोह बनाकर लूटपाट और रेप जैसी वारदात कर रहे हैं? समाज को ऐसे सवालों पर भी मंथन करना होगा। धरियावद के प्रकरण में भले ही पीडि़त महिलाएं शिकायत नहीं कर रही हों, लेकिन पुलिस के पर्याप्त सबूत हैं। इन सबूतों को देखते हुए ही कानून में बदलाव की जरूरत है। 

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Wednesday 19 January 2022

आखिर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में अजमेर के एस्केप चैनल को शामिल क्यों नहीं किया जाता? गंदे नाले में तब्दील चैनल के किनारे रहने वालों का जीवन नारकीय है।पाल बीसला तालाब की भी सुध ली जाए-विधायक अनिता भदेल।दौराई रेलवे पुलिया के नीचे साल भर भरा रहता है पानी। लोग परेशान।

अजमेर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के शुरुआत दौर में शहर के बीच में से गुजरने वाले आनासागर एस्केप चैनल को विकसित करने का काम भी शामिल किया गया था। लेकिन अब स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में इस चैनल की कोई सुध नहीं ली जा रही है। हालत इतनी खराब है कि नगरा क्षेत्र में इस गंदे नाले के आसपास रहने वालों का जीवन नारकीय बना हुआ है। नाले में मल-मूत्र युक्त पानी बहता रहता है और लोग इसके आसपास ही रहने को मजबूर है। कुछ लोगों ने तो नाले की दीवार ही अपने मकान की दीवार बना ली है। इस से कभी भी हादसा होने का अंदेशा बना रहता है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में आनासागर के किनारे सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च किया गया है। लेकिन इस आनासागर से जुड़े एस्केप चैनल की मरम्मत और जीर्णोद्धार के लिए कोई राशि खर्च नहीं की जा रही है। पहले तो बरसात के दौरान ओवर फ्लो होने पर ही आनासागर का पानी इस चैनल से गुजरता था। लेकिन अब साल भर आनासागर का ओवरफ्लो पानी इस चैनल से गुजरता है। असल में आनासागर में आसपास की आबादी का जो गंदा पानी गिरता है उससे आनासागर साल भर भरा रहता है। सीवरेज के पानी को भी शुद्ध कर रोजाना आनासागर में डाला जाता है। यानी आनासागर के पानी के लिए एस्केप चैनल का उपयोग तो हो रहा है, लेकिन चैनल को विकसित करने के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में कोई काम नहीं हो रहा। अजमेर दक्षिण क्षेत्र की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने बताया कि शुरू में 10 किलोमीटर लंबी इस एस्केप चैनल की दीवारों को मजबूत करने, रेप बनाने, जालियां लगाने आदि के काम पर विचार किया गया था। भदेल ने बताया कि यह चैनल अब गंदे नाले में तब्दील हो गया है। लाखों की आबादी का कचरा भी इसी नाले में फेंका जाता है। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में यह भी विचार हुआ था कि नाले के अंदर एक छोटी नाली का निर्माण किया जाए ताकि पानी नाली में ही बहे। लोग कचरा न डाल सके इसके लिए दीवारों को ऊंचा कर जालियां लगाई जाए। साथ ही इस गंदे नाले के आसपास रहने वाले लोगों को प्राथमिक सुविधाएं दिलवाने की बात भी कही गई थी, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में एस्केप चैनल के कामों को शामिल नहीं किया गया। भले ही आनासागर का सौंदर्यीकरण किया जा रहा हो, लेकिन स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों को एक बार एस्केप चैनल के किनारे रहने वाले लोगों का जीवन भी देखना चाहिए। भदेल ने बताया कि पाल बीसला के तालाब को संरक्षित करने के लिए ही पूर्व में सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर इसे नौ कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया था। लेकिन अब इस तालाब की कोई सुध नहीं ली जा रही है। सरकार को यह देखना चाहिए कि हाईकोर्ट के आदेश की कितनी क्रियान्विति हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पाल बीसला क्षेत्र में भू माफिया सक्रिय हैं, जो तालाब की भूमि को खुर्दबुर्द कर रहे हैं। भदेल ने बताया कि एस्केप चैनल की सफाई करने के लिए प्रतिवर्ष बरसात से पहले दीवारों को तोड़ा जाता है ताकि जेसीबी नाले में उतर सके। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में एस्केप चैनल में रैम्प बनाने का भी प्रस्ताव था, ताकि चैनल की दीवार को बार बार न तोड़ा जाए।
 
रेलवे पुलिस के नीचे पानी भरा रहने से लोग परेशान:

अजमेर के निकटवर्ती दौराई क्षेत्र के लोगों के सुगम आवागमन के लिए रेलवे ने अंडरपास का निर्माण दो वर्ष पहले किया था। निर्माण के समय भी दौराई के निवासियों ने पानी भरे रहने की आशंका जताई थी। लेकिन तब रेलवे और डीएफसीसी के इंजीनियरों ने भरोसा दिलाया कि पुलिस के नीचे पानी नहीं भरेगा, लेकिन साल भर इस अंडर पास में पानी भरा रहता है, जिसकी वजह से लोगों को आवागमन में परेशानी होती है। क्षेत्रीय विकास समिति के अध्यक्ष नीरज तोषनीवाल और पूर्व सरपंच चंद्रभान गुर्जर ने बताया कि रेलवे के अधिकारियों का कई बार ध्यान आर्षित किया गया है, लेकिन आज तक भी पानी की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। पानी भरा रहने से दुपहिया वाहन आए दिन गिर जाते हैं। यह अंडर पास लोगों के मुसीबत बन गया है। एक और अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाया जा रहा है तो दूसरी ओर  दौराई के लोग अंडर पास की समस्या से जूझ रहे हैं। इस दोषपूर्ण अंडरपास के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 7728062892 पर नीरज तोषनीवाल से ली जा सकती है। 

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क्या प्रतीक यादव वाकई मुलायम सिंह के बेटे हैं?भाजपा में शामिल होने वाली अपर्णा यादव 6 करोड़ रुपए की कीमत वाली लेम्बोर्गिनी कार में सफर करती हैं।

19 जनवरी को श्रीमती अपर्णा यादव भाजपा में शामिल हो गई। अपर्णा यादव का भाजपा में कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सदस्यता ग्रहण का समारोह भाजपा के दिल्ली स्थित मुख्यालय पर किया गया। समारोह में अपर्णा के साथ उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, प्रभारी महासचिव अनिल बलूनी आदि मौजूद रहे। सभी नेताओं ने इसे उपलब्धि बताया कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के छोटे भाई प्रतीक यादव की पत्नी और मुलायम सिंह यादव की छोटी बहु अपर्णा यादव के शामिल होने से भाजपा मजबूत होगी। मीडिया में भी लगातार गाया जा रहा है कि मुलायम सिंह की बहू भाजपा में शामिल हो गई। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने भाजपा सरकार के तीन मंत्रियों को तोड़ा, उसी का जवाब भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के परिवार को तोड़कर दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपर्णा यादव के पति प्रतीक यादव वाकई मुलायम सिंह के पुत्र हैं? सब जानते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने अपनी पत्नी और अखिलेश यादव की माताजी श्रीमती मालती देवी के 2003 में निधन के बाद साधना गुप्ता को अपनी दूसरी पत्नी घोषित किया था। साधना का पहला विवाह एक छोटे कारोबारी चंद्रप्रकाश गुप्ता से हुआ लेकिन साधना के मुलायम सिंह के संपर्क में आने के ाद चंद्रप्रकाश को तलाक देना पड़ा। लेकिन तब तक एक पुत्र का जन्म हो गया। तलाक के बाद साधना गुप्ता अपने पुत्र के साथ ही मुलायम सिंह के साथ रहीं। लेकिन साधना गुप्ता ने कभी भी अपने पुत्र प्रतीक और अखिलेश यादव के बीच फर्क नहीं किया। सौतेली मां होने के बाद भी साधना ने ज्यादा ख्याल अखिलेश का रखा। साधना का मानना रहा कि जब मुलायम सिंह यादव उनका इतना ख्याल रख रहे हें, तब अखिलेश का ख्याल रखना उनकी जिम्मेदारी है। मुलायम सिंह ने प्रतीक को करोड़ों रुपए की जायदाद का मालिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुलायम ने वर्ष 2011 में प्रतीक का विवाह भी धूमधाम से किया। तब अमिताभ बच्चन जैसे सुपर स्टर ने भी उपस्थित होकर विवाह में चाद चांद लगाए। प्रतीक यादव ने तो राजनीति में रुचि नहीं दिखाई, लेकिन अपर्णा यादव हमेशा से ही राजनीति में सक्रिय रहीं। 2017 में अपर्णा ने लखनऊ कैंट से सपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन तब वे भाजपा की रीता बहुगुणा से हार गई। नामांकन में तब अपर्णा ने स्वयं को 23 करोड़ रुपए की चल और अचल सम्पत्ति का मालिक बताया था। इस संपत्ति में 6 करोड़ रुपए की कीमत वाली लेम्बोर्गिनी कार भी शामिल है। 19 जनवरी को भाजपा में शामिल होने पर अपर्णा ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीतियों से प्रभावित होकर ही सदस्यता ग्रहण कर रही है और अब वे उत्तर प्रदेश में भाजपा में मजबूती के लिए काम करेंगी। मौजूदा समय में मुलायम सिंह यादव किस स्थिति में है, यह तो पता नहीं लेकिन अपर्णा के भाजपा में शामिल होने से अखिलेश यादव को मानसिक तनाव जरूर होगा, क्योंकि अब सपा और मुलायम सिंह के घर में भाजपा की सीधी एप्रोच हो गई है। अब मुलायम सिंह के घर में भाजपा की बैठकें भी हो सकेंगी। जानकार सूत्रों के अनुसार अपर्णा के भाजपा में शामिल होने पर मुलायम सिंह की पत्नी साधना गुप्ता की सहमति भी रही है। 

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कांग्रेस में शामिल होने के बाद मौलाना तौकीर रजा की हिन्दू विरोधी सोच में बदलाव होना चाहिए।

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने 18 जनवरी को अपने ट्विटर हैंडल पर एक फोटो पोस्ट किया। इस फोटो में उत्तर प्रदेश के मुस्लिम नेता मौलाना तौकीर रजा भी दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस को समर्थन देने पर प्रियंका ने तौकीर रजा का शुक्रिया किया है। कांग्रेस को लगता है कि तौकीर रजा के साथ आ जाने से उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी की स्थिति मजबूत होगी। सब जानते हैं कि मुस्लिम सियासत में मौलाना रजा की पहचान एक कट्टरपंथी नेता की हे। हिन्दुओं के विरोध में मौलाना रजा का एक वीडियो भी वायरल हो चुका है। लेकिन अब जब मौलाना रजा के समर्थन मं आ गए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी सोच में भी बदलाव आएगा। अब यदि उनके मुस्लिम जवानों के पास व्यवस्था की कमान आएगी तो हिन्दुओं को भी हिंदुस्तान में रहने की जगह मिलेगी। मौलाना तौकीर रजा की मदद से यदि कांग्रेस उत्तर प्रदेश और देश में सरकार बनाती है तो मौलाना रजा खून की नदियां भी बहाएंगे। हिन्दुओं को लेकर उनके मेन में जो घृणा और नफरत है, वह भी समाप्ति हो जाएगी। मौलाना तौकीर रजा और उनकी पार्टी इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल के कार्यकर्ता भी कट्टर सोच को छोड़कर धर्मनिरपेक्षता की बात करेंगे। प्रियंका गांधी और उनके भाई राहुल गांधी स्वयं को हिन्दू बता रहे हैं तथा गंगा घाट से लेकर मंदिरों तक में पूजा अर्चना कर रहे हैं। गांधी परिवार के सदस्यों के साथ कुछ वक्त बिताने का असर मौलाना तौकीर रजा पर पड़ेगा ही। प्रियंका गांधी ने भी सोच समझ कर आला हजरत बरेली शरीफ के मौलाना तौकीर रजा साहब का समर्थन हासिल किया होगा। समर्थन लेने से पहले प्रियंका गांधी ने उनकी पार्टी इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल की सोच के बारे में जानकारी हासिल की होगी। प्रियंका गांधी कभी नहीं चाहेंगी कि हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को रहने की जगह भी नहीं मिले। प्रियंका गांधी हिन्दुस्तान में खून की नदियां भी बहाना नहीं चाहेंगी। प्रियंका गांधी को इस बात का भी पता होगा कि मौलाना तौकीर रजा ने पहले समाजवादी पार्टी से गठबंधन की इच्छा जताई थी, लेकिन अखिलेश द्वारा इंकार कर दिए जाने के बाद तौकीर रजा ने कांग्रेस को समर्थन देने का निर्णय लिया। यानी यदि अखिलेश यादव गले लगा लेते तो मौलाना तौकीर रजा प्रियंका गांधी के साथ खड़े नजर नहीं आते। कांग्रेस किस कट्टरपंथी नेता को गले लगाए यह प्रियंका और राहुल गांधी पर निर्भर करता है, लेकिन यह उम्मीद की जानी चाहिए कि जिन कट्टरपंथियों को कांग्रेस गले लगा रही है वे कांग्रेस में आने के बाद धर्मनिरपेक्षता की सोच दिखाएंगे। 

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Monday 17 January 2022

अनुच्छेद 370 को हटाने, अयोध्या में राम मंदिर बनवाने, हर ग्रामीण के घर शौचालय व नल से जल पहुंचाने के कामों से जो लोग खुश नहीं है उन्हें उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को हराना चाहिए।उत्तर प्रदेश में योगी हारे तो 2024 में मोदी को हराना भी आसान होगा। लेकिन सीएए, कृषि कानूनों के विरोध को लेकर रास्ते जाम नहीं होने चाहिए।

लोकतंत्र का यही मतलब होता है कि आम किसी दल की सरकार से न खुश हैं तो चुनाव में उस दल की सरकार को हरा दें। इन दिनों जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, इनमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं। राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 403 सीटें हैं। इसी से यूपी के चुनावों का महत्व समझा जा सकता है। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की अनेक पुरानी समस्याओं का समाधान हुआ है। इनमें जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के फैसले सबसे महत्वपूर्ण है। 370 की वजह से जहां जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पनपा, वहीं राम मंदिर के लिए हजारों लोगों ने बलिदान दिया। हो सकता है कि इन फैसलों से कुछ लोग खुश नहीं हो। ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर में शौचालय बनवाने और नल से जल पहुंचाने का कार्य भी मोदी सरकार ने किया है। विकास के ऐसे कार्यों से भी कुछ लोग नादान हो सकते हैं। मोदी सरकार की नीतियों से नाराज लोगों को अब एकजुट होकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को हराना चाहिए। पहले दिल्ली में सीएए और फिर कृषि कानूनों के विरोध में कुछ लोगों ने रास्ते जाम किए। इससे आम लोगों को भारी परेशानी हुई। लेकिन मोदी सरकार से नाराज लोगों ने आम लोगों की परेशानियों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसे लोगों का मकसद सिर्फ मोदी सरकार का विरोध करना था। जबकि लोकतंत्र में रास्ते जाम करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है, क्योंकि लोकतंत्र में चुनाव प्रणाली से सरकारों को हटाया जा सकता है। जनविरोधी नीतियों के कारण ही कांग्रेस को केंद्र की सरकार गंवानी पड़ी है। मोदी सरकार की नीतियों से न खुश लोगों के पास उत्तर प्रदेश का चुनाव एक सुनहरा अवसर है। यूपी चुनाव में भाजपा को हरा कर योगी आदित्यनाथ को तो मुख्यमंत्री के पद से हटाया ही जा सकता है, साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को हराना आसान होगा। न खुश लोगों को लोकतंत्र में चुनाव का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए। जो लोग चुनाव में हार जाते हैं और सड़क पर बैठ कर  धरना प्रदर्शन करते हैं वे एक तरह से लोकतंत्र विरोधी कार्य ही करते हैं। लोकतंत्र का मतलब यही है कि जनता जिसे चाहती है उस दल की सरकार बनती है। अब यदि उत्तर प्रदेश में जनता फिर से भाजपा को वोट देकर योगी आदित्यनाथ को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है तो फिर धरना प्रदर्शन करने वालों को अपनी स्थिति पर विचार करना चाहिए। हालांकि अखिलेश यादव इस बात का पूरा प्रयास कर रहे हैं कि मोदी विरोधियों को एकजुट कर विधानसभा का चुनाव जीत लिया जाए। इसके लिए वे सीएए और दिवंगत हो चुके कृषि कानूनों के विरोधियों का पूरा सहारा ले रहे हैं। यह बात अलग है कि ऐसे गठबंधन अखिलेश ने 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी किए थे, लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता ने नरेंद्र मोदी की नीतियों का ही समर्थन किया। उत्तर प्रदेश की जनता क्या चाहती है, इसका पता 10 मार्च को लग जाएगा। 

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अजमेर के महावीर सर्किल की तरह बजरंगगढ़ चौराहे को विकसित कर सुंदर बनाया जाएगा।सुभाष उद्यान की भूमि आम रास्ते में बदलना स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की बड़ी सफलता। 12 सौ वर्ग गज भूमि पर बनेगा आमरास्ता।

सरकारी विभागों में आपसी तालमेल के अभाव में बडे बड़े विकास कार्य नहीं हो पाते हैं, लेकिन अजमेर में स्मार्ट सिटी के अधिकारियों के समन्वय की वजह से न केवल महावीर सर्किल का सौंदर्यीकरण हो रहा है बल्कि सुभाष उद्यान की भूमि का उपयोग भी आम रास्ते के लिए हो सकेगा। इस सकारात्मक कार्य में कोई बाधा न हो, इसके लिए शनि महाराज और भैरो जी के मंदिरों को डिवाइडर की परिधि में शामिल किया गया है। यानी इन दोनों मंदिरों से छेड़छाड़ किए बिना ही रास्ते को चौड़ा किया जा रहा है। चूंकि इस सर्किल से ही ख्वाजा साहब की दरगाह की ओर आवागमन होता है,इसलिए शहर भर के यातायात में इस सर्किल की महत्वपूर्ण भूमिका है। अब जब सुभाष उद्यान में बने पीएचईडी के स्टोर रूम को हटा दिया गया है तथा उद्यान के मुख्य द्वार को भी पीछे कर दिया गया है। तब सर्किल के निकट यातायात बेहद सुगम हो जाएगा। सर्किल के निकट सुभाष उद्यान की करीब 12 सौ वर्ग गज भूमि पर आम रास्ता बनाया जा रहा है। यह तभी संभव हो पाया है, जब सरकारी विभागों में समन्वय स्थापित किया गया। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर अविनाश शर्मा ने बताया कि महावीर सर्किल की तरह ही बजरंगगढ़ चौराहे को भी विकसित किया जाएगा। जिस प्रकार महावीर सर्किल के निकट सुभाष उद्यान की भूमिका का उपयोग आम रास्ते के लिए किया गया है, उसी प्रकार बजरंगगढ़ चौराहे के निकट सुभाष उद्यान के दूसरे द्वार की भूमि भी आम रास्ते के उपयोग में लाई जाएगी। यहां जो शौचालय बने हुए हैं उन्हें हटा कर आम रास्ता बनाया जाएगा। शर्मा ने बताया कि बजरंगगढ़ चौराहा मौजूदा समय में अंडाकार आकृति का है जिसे गोलाकार बनाया जाता है। चूंकि इस चौराहे से होकर ही सर्किट हाउस जाना होता है इसलिए वीआईपी का आवागमन हमेशा बना रहता है। शहर की आबादी लगातार बढ़ने के कारण ही चौराहे पर यातायात का दबाव बना रहता है। चौराहे के निकट ही संभाग का सबसे बड़ा सरकारी जवाहर लाल नेहरू अस्पताल है। इसलिए इस चौराहे पर यातायात का दबाव रहता है। शर्मा ने बताया कि स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में नगर निगम की मेयर श्रीमती बृजलता हाड़ा का सकारात्मक रुख है। श्रीमती हाड़ा भी चाहती हैं कि शहर में जिन स्थानों पर ट्रैफिक जाम होता है, वहां आसपास की भूमि लेकर रास्तों को चौड़ा किया जाए। शहर में शहरवासियों से भी अपील की है कि वे यातायात को सुगम बनाने में सहयोग करें। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-01-2022)
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