Tuesday 30 August 2022

भारत में रह रहे कट्टरपंथी बताए कि मुस्लिम राष्ट्र इराक में हिंसा क्यों हो रही है?आखिर प्रदर्शनकारियों की नाराजगी किसके खिलाफ है? हिंसा को देखते हुए ईरान ने अपनी सीमाओं को सील कर दिया है।भारत अपनी जरूरत का 26 प्रतिशत कच्चा तेल इराक से ही खरीदता है।

इराक में भारत के कुल सात हजार नागरिक रहते हैं, इनमें से भी अधिकांश मुस्लिम समुदाय के हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की तरह इराक भी मुस्लिम राष्ट्र है। लेकिन 28 अगस्त से ही संपूर्ण इराक हिंसा की आग में जल रहा है। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है तथा सड़कों पर सेना और प्रदर्शनकारियों में झड़प हो रही है। बिगड़ते हालातों को देखते हुए सरकार ने सभी सरकारी दफ्तरों को बंद कर कर्फ्यू घोषित कर दिया है, लेकिन कर्फ्यू का कहीं भी असर देखने को नहीं मिल रहा है। हिंसा में अब तक 30 से ज्यादा इराकी मारे जा चुके हैं तथा 300 जख्मी हैं। राजधानी बगदाद के ग्रीन जोन में राकेश दागे जा रहे हैं। इराक में अराजकता का माहौल है। अराजकता तब उत्पन्न हुई, जब प्रभावशाली शिया मौलवी और राजनेता मुक्तदा  अल सदर  ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। असल में गत वर्ष हुए आम चुनावों में अल सदर की पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिली, लेकिन सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिला। सुन्नी और अन्य समुदायों से जुड़ी पार्टियों ने शिया मौलवी को समर्थन नहीं दिया।  राजनीतिक हालातों को देखते हुए  अल सदर ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। हालांकि अब  अल सदर  भी शांति की अपील कर रहे हैं। लेकिन इस अपील का कोई असर नहीं हो रहा है। इराक में एक बार फिर गृहयुद्ध के आसार हो गए हैं। यह वही इराक है जिसके राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटका दिया गया था। पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्र ईरान से तो इराक की जंग जगजाहिर है। दुनिया के किसी भी मुस्लिम राष्ट्र में कोई घटना होती है तो उसका असर भारत पर जरूर पड़ता है। भारत में करीब 25 करोड़ मुस्लिम आबादी है। भारत की बहुत संख्यक हिन्दू आबादी के साथ रहने में आम मुसलमानों को कोई परेशानी नहीं है। सौ घरों हिन्दू आबादी के बीच दो-तीन मुस्लिम परिसर आराम और सुकून के साथ रहते हैं। कभी भी किसी मुस्लिम परिवार के साथ भेदभाव नहीं होता। लेकिन इसके बावजूद भी अनेक कट्टरपंथी माहौल बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। छोटी छोटी बातों को बेवजह हिन्दू-मुस्लिम झगड़े में बदला जाता है। पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमान भी मानते हैं कि भारत में रहने वाला मुसलमान समृद्ध और सुरक्षित है। भारत में कट्टरपंथी गतिविधियों में सक्रिय लोग बताएं कि आखिर मुस्लिम राष्ट्र इराक में हिंसा क्यों हो रही है? इराक में कुल सात हजार भारतीय हैं। आखिर प्रदर्शनकारी किसके खिलाफ हिंसा कर रहे हैं। जाहिर है कि यह प्रदर्शन और नाराजगी अपने ही लोगों के खिलाफ है। भारत में रह रहे जो लोग पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं, उन्हें मुस्लिम राष्ट्र इराक की ताजा हिंसा से सबक लेना चाहिए। कट्टरपंथियों को यह समझना चाहिए कि भारत की सनातन संस्कृति ही एकमात्र ऐसी संस्कृति है जो दूसरे धर्मों का सम्मान करती है। जबकि अन्य देशों में एक ही धर्म के लोग आमने सामने हैं। वैसे भी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसमें हर व्यक्ति को अपने धर्म के अनुरूप रहने की स्वतंत्रता है, जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, ईरान जैसे देश मुस्लिम राष्ट्र हैं और यहां के नागरिक मुस्लिम धर्म के अनुरूप ही रहते हैं। इराक की ताजा घटनाओं का असर भारत पर इसलिए भी पड़ेगा कि भारत अपनी जरूरत का 26 प्रतिशत कच्चा तेल इराक से ही खरीदता है। यदि इराक के हालात ऐसे ही बने रहे तो तेल आयात पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। 

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अजमेर में आनासागर झील के सौंदर्यीकरण के नाम पर हुए कार्यों की पोल खुली।आईएएस डॉ. समित शर्मा ने एडीए और नगर निगम के अधिकारियों को फटकार लगाई।

यूं तो आईएएस डॉ. समित शर्मा राजस्थान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के शासन सचिव हैं, लेकिन राज्य सरकार ने डॉ. समित शर्मा को प्रदेश की झीलों के संरक्षण की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दी है। इस नाते डॉ. शर्मा ने 29 अगस्त को अजमेर में आनासागर झील के विकास कार्यों का जायजा लिया। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत भी झील संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए की राशि खर्च की गई है। झील में नाले का गंदा पानी न गिरे इसके लिए झील के किनारे ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाया गया है। 29 अगस्त को जब डॉ. शर्मा ने झील संरक्षण के नाम पर हुए विकास कार्यों का जायजा लिया तो ऐसे कार्यों की पोल खुल गई। अधिकारियों ने दावा किया कि नालों का पानी पहले ट्रीटमेंट प्लांट में आता है और फिर शुद्ध होकर झील में गिरता है। इस पर डॉ. शर्मा ने प्लांट पर खड़े होकर ही ये जानना चाहा कि गंदे पानी से निकलने वाला कचरा कहां हैं? लेकिन अधिकारी कचरा नहीं दिखा सके, जाहिर है कि पानी को शुद्ध किए जाने वाले दावे झूठे हैं। डॉ. शर्मा ने अजमेर विकास प्राधिकरण और नगर निगम के अधिकारियों से कहा कि वे साइंस के स्टूडेंट रहे हैं। इसके लिए गंदे पानी से निकलने वाले कचरे से अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना पानी शुद्ध हुआ है। जब प्लांट पर कचरा ही नहीं है तो फिर पानी शुद्ध होने का दावा गलत है। डॉ. शर्मा ने अपनी आंखों से देखा कि अनेक नालों का गंदा पानी आनासागर झील में गिर रहा है। असल में अभी तक भी सीवरेज का कार्य पूरा नहीं हुआ है, इसलिए घरों से निकलने वाला मल मूत्र युक्त पानी नालों से झील में ही गिरता है। इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद भी नालों का पानी झील में गिर रहा है। यदि डॉ. समित शर्मा सीवरेज कार्यों की जांच करें तो घोटाला सामने आ सकता है। निरीक्षण के दौरान डॉ. शर्मा ने नाराजगी जताई कि आनासागर के भराव क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहे हैं। डॉ. शर्मा ने कहा कि यह मान भी लिया जाए की भराव क्षेत्र की जमीन निजी खातेदारों की है, नियमों के मुताबिक निजी खातेदार पानी रहित भूमि पर सिर्फ कृषि कार्य कर सकते हैं, लेकिन मैं देख रहा हंू कि कृषि भूमि पर मॉल, रेस्टोरेंट, दुकानें, मकान बने हुए हैं। डॉ. शर्मा ने एडीए और निगम के अधिकारियों से पूछा आखिर झील के भराव क्षेत्र में इतने निर्माण कैसे हो गए? वह भी तब जब हाईकोर्ट के निर्देश पर सरकार ने भराव क्षेत्र को नो कंस्ट्रक्शन जोन घोषित कर रखा है। डॉ. शर्मा ने कहा कि आनासागर झील अजमेर के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाती है, लेकिन अतिक्रमण की वजह से झील के सौंदर्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है। अच्छा होता कि अतिक्रमण हटा कर झील के किनारे पाथवे का निर्माण करवाया जाता। अधिकारियों ने अतिक्रमण हटाए बगैर ही झील के अंदर पाथवे का निर्माण करवा दिया। अधिकारियों की कार्यवाही से अतिक्रमणकारियों को फायदा हो रहा है। झील के भराव क्षेत्र की भूमि पर खुले आम व्यावसायिक गतिविधियां हो रही है। जो किसी भी दृष्टि से न्याय पूर्ण नहीं है। डॉ. शर्मा ने एडीए और निगम के अधिकारियों को हिदायत दी है कि वे अपने कामकाज में सुधार करे नहीं तो उनके विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। डॉ. शर्मा ने अधिकारियों को हिदायत देते हुए कहा कि यह तो अच्छा है आज मेरे निरीक्षण के समय कलेक्टर साथ नहीं है। यदि कलेक्टर साथ होते तो दोषी अधिकारियों पर हाथों हाथ कार्यवाही भी हो जाती। डॉ. शर्मा के दौरे के बाद से ही एडीए और निगम में खलबली मची हुई है। डॉ. शर्मा प्रदेशभर में अपने सख्त मिजाज के लिए जाने जाते हैं। जोधपुर और जयपुर का संभागीय आयुक्त रहते हुए डॉ. शर्मा ने जब सरकारी अस्पतालों और स्कूलों का आकस्मिक निरीक्षण किया तो व्यवस्थाओं की पोल खुल गई। अब जब डॉ. शर्मा को झील संरक्षण के कार्यों पर रिपोर्ट बनाने का अवसर मिला है तो अजमेर में आनासागर झील के कार्यों की पोल खुल गई है। डॉ. शर्मा की मौका रिपोर्ट पर यदि कार्यवाही होती है तो कई अधिकारियों पर गाज गिरेगी। 

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राजस्थान में सड़कों की चौड़ाई के पुनर्निर्धारण का विचार कलेक्टर की अध्यक्षता वाली स्थानीय एम्पावर्ड कमेटी को मिला।अजमेर के वैशाली नगर वाले मार्ग की चौड़ाई फिर से 80 फिट हो सकती है, अभी 120 फिट निर्धारित है।आखिर सरकार के आदेश पर कब अमल होगा।

राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में सड़कों की चौड़ाई के निर्धारण की बड़ी समस्या है। मास्टर प्लान में यदि किसी सड़क की चौड़ाई 80 या 120 फिट है तो स्थानीय निकाय संस्थाएं इसी निर्धारण के अनुरूप भूमि का पट्टा और मानचित्र जारी करती है। जबकि मौके पर सड़क की चौड़ाई बहुत कम होती है। मार्ग निर्धारण के विपरीत सड़क के दोनों तरफ पक्के निर्माण हो जाते हैं। ऐसे निर्माण को तोडऩा भी मुश्किल होता है, लेकिन न पक्के निर्माणों का नक्शा स्वीकृत होता है और न ही खाली भूखंडों का पट्टा जारी होता है। यदि किसी मार्ग पर भूखंड का पट्टा जारी होता है तो वह निर्धारित सड़क की चौड़ाई के अनुरूप ही होता है। इस बड़ी समस्या को देखते हुए राज्य सरकार ने गत 4 जुलाई को एक आदेश जारी किया है। नगरीय विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा और स्वायत्त शासन विभाग के शासन सचिव डॉ. जोगाराम द्वारा जारी आदेश में इस बात को स्वीकार किया गया है कि शहरी क्षेत्रों में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग के बाईपास मार्ग बन जाने से मास्टर प्लान वाली सड़क की चौउ़ाई की जरुरत नहीं है। वैसे भी शहरी क्षेत्रों  मास्टर प्लान में निर्धारित सड़क की चौड़ाई के विपरीत सड़क के दोनों ओर 80 प्रतिशत तक निर्माण हो गए हैं। ऐसे सड़कों के मार्गाधिकार को लेकर ही नए आदेश जारी किए हैं। जिन सड़कों के दोनों ओर 80 प्रतिशत निर्माण हो गए हैं उनकी चौड़ाई का  पुनर्निर्धारण  स्थानीय एम्पावर्ड कमेटी द्वारा किया जा सकता है। यह कमेटी जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में बनी हुई है। यानी मास्टर प्लान में सड़क की जो चौड़ाई निर्धारित कर रखी है उसे एम्पावर्ड कमेटी कम कर सकती है। सरकार के इस आदेश पर अमल होता है तो राजस्थान भर में लोगों को राहत मिलेगी। मौजूदा समय में सड़क की चौड़ाई के निर्धारण की वजह से न तो पट्टे जारी हो रहे हैं और न ही मानचित्र।
 
वैशाली नगर सड़क की चौड़ाई कम होगी:
राज्य सरकार के चार जुलाई के आदेश का सबसे ज्यादा असर अजमेर के वैशाली नगर मार्ग पर पड़ेगा। मास्टर प्लान में सर्किट हाउस से लेकर रीजनल कॉलेज तक की सड़क की चौडाई 120 फिट निर्धारित कर रखी है। पूर्व में यह चौड़ाई 80 फिट थी, जिसे बढ़ाकर 120 फिट किया गया, जबकि इस मार्ग पर कई स्थानों पर सड़क की चौड़ाई 80 फिट भी नहीं है। चूंकि सड़क के दोनों ओर 90 प्रतिशत से भी ज्यादा पक्के निर्माण हो चुके हैं, इसलिए सड़क की चौड़ाई 120 फिट हो ही नहीं सकती है। यदि सरकार के 4 जुलाई के आदेश के अनुरूप जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली एम्पावर्ड कमेटी वैशाली नगर सड़क की चौड़ाई 80 फिट निर्धारित करती है तो हजारों लोगों को राहत मिलेगी।  लेकिन सवाल उठता है कि अजमेर प्रशासन सरकार के आदेश पर कब अमल करेगा? शायद 4 जुलाई वाला आदेश जिम्मेदार अधिकारियों ने अभी तक भी देखा नहीं है। सवाल यह भी है कि आखिर आदेश को फाइलों में दबा कर क्यों रखा गया है। क्या 120 फिट की आड़ लेकर वसूली की जा रही है? सरकार जब लोगों को राहत देना चाहती है तो फिर अफसरशाही रोड़े क्यों अटका रही है। कुंजीलाल मीणा और डॉ. जोगाराम को भी यह देखना चाहिए कि अजमेर में सरकार के आदेश पर अमल क्यों नहीं हो रहा है। 4 जुलाई 2022 वाला सरकार का आदेश मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog  पर देखा जा सकता है। 

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Monday 29 August 2022

राजस्थान की 17 यूनिवर्सिटी में से एक में भी कांग्रेस के अग्रिम संगठन एनएसयूआई की जीत नहीं हुई।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताएं कि इन हालातों में कांग्रेस की सरकार कैसे रिपीट होगी?राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित कार्टून का अर्थ भी समझने की कोशिश करें गहलोत।

राजस्थान के तीन विधानसभा उपचुनावों में से जब कांग्रेस ने 2 में जीत हासिल की तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया। गहलोत ने कहा कि एक विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार की जमानत जब्त हो जाने से अब भाजपा चुनावी मुकाबलों में नहीं रही हैै। इन परिणामों के बाद ही गहलोत लगातार दावा कर रहे हैं कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार रिपीट होगी, लेकिन गहलोत के इस दावे को प्रदेश में हुए छात्र संघों के चुनावों से तगड़ा झटका लगा है। प्रदेश में 17 सरकारी यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव हुए, इनमें से एक भी यूनिवर्सिटी में कांग्रेस के अग्रिम संगठन एनएसयूआई की जीत नहीं हुई है। कमोबेश यही स्थिति सरकारी कॉलेजों की भी है। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले विद्यार्थी 18 वर्ष से अधिक उम्र के होते हैं। विधानसभा चुनाव में भी मतदाता की उम्र 18 वर्ष की है। राजस्थान में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं, जब युवा वर्ग के बीच कांग्रेस की स्थिति ऐसी है, तब सीएम गहलोत बताएं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार कैसे रिपीट होगी? सीएम गहलोत स्वयं कहते हैं कि उनकी शुरुआत एनएसयूआई से ही हुई है। लेकिन अब गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए एक भी यूनिवर्सिटी में एनएसयूआई की जीत नहीं हुई, जिस एनएसयूआई के पीछे सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी खड़ी रही, उसके मुकाबले में नवगठित छात्रसंघ एसएफआई 2 यूनिवर्सिटी में जीत दर्ज करवाने में सफल रही है, ऐसा नहीं कि छात्रसंघ चुनावों में कांग्रेस का दखल नहीं रहा। कॉलेज और यूनिवर्सिटी के चुनावों में कांग्रेस के नेताओं की सिफारिश से ही उम्मीदवार घोषित किए गए। लेकिन इसके बाद भी एक भी यूनिवर्सिटी में एनएसयूआई जीत दर्ज नहीं कर सकी।
 
कार्टून का अर्थ समझे गहलोत:
यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव परिणाम को लेकर 29 अगस्त को देश के प्रमुख अखबार राजस्थान पत्रिका में कार्टूनिस्ट अभिषेक का एक कार्टून प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है। यह कार्टून सीएम गहलोत को केंद्रित कर बनाया गया। कार्टून का एक शीर्षक है, राजस्थान के सभी विश्वविद्यालय एनएसयूआई मुक्त, इस शीर्षक के मद्देनजर कांग्रेस के दो नेताओं का संवाद लिखा है। सबको दिल्ली भेज दीजिए.... देश भी मुक्त हो जाएगा....। पत्रिका का यह कार्टून गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावना से भी जुड़ा है। यानी अशोक गहलोत कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं तो पूरा देश कांग्रेस मुक्त हो जाएगा। पत्रिका को अखबारी दुनिया में एक विश्वसनीय अखबार माना जाता है। पत्रिका की इस विश्वसनीयता के मद्देनजर ही सीएम गहलोत को इस कार्टून का अर्थ समझना चाहिए। कार्टूनिस्ट को जनता का प्रतिनिधि माना जाता है। कार्टून के जरिए जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है। जनता की नजर में गहलोत की राजनीतिक छवि कैसी है इसका अंदाजा पत्रिका में छपे कार्टून से लगाया जा सकता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (29-08-2022)
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तो क्या गुजरात में कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गए हैं प्रभारी रघु शर्मा।रघु शर्मा जब राजस्थान में अपने विधानसभा क्षेत्र में ही असंतुष्ट है, तब गुजरात में कांग्रेस को वोट कैसे दिलवाएंगे?केकड़ी के मतदाता बेसब्री से विधानसभा चुनाव का इंतजार कर रहे हैं।अजमेर के कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन ने ग्रामीण ओलंपिक खेल समारोह का बहिष्कार किया। कलेक्टर अंशदीप पर अपमानित करने का आरोप लगाया।

राजस्थान में लम्पी स्किन डिजीज को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 28 अगस्त को समीक्षा बैठक की। इस बैठक में गुजरात में कांग्रेस के प्रभारी रघु शर्मा ने केकड़ी (अजमेर) का विधायक होने के नाते भाग लिया। सीएम गहलोत की उपस्थिति में रघु ने प्रदेश के पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया से कहा कि मेरे विधानसभा क्षेत्र में लम्पी स्किन डिजीज से गाय मर रही है और आपने केकड़ी के डॉक्टरों को हटाकर जोधपुर में नियुक्त कर दिया है। यही वज है कि अब केकड़ी में रोग ग्रस्त जानवरों का इलाज नहीं हो रहा है। रघु शर्मा की यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि जोधपुर सीएम गहलोत का गृह जिला है। देखा जाए तो रघु ने अपनी ही सरकार के कामकाज पर असंतोष व्यक्त किया है, वह भी तब जब इस उच्च स्तरीय बैठक में खुद सीएम गहलोत मौजूद थे। रघु ने अपने क्षेत्र में गायों के मरने की बात तब कही है, जब सीएम गहलोत बार बार यह दावा कर रहे हैं कि राजस्थान में रोग ग्रस्त जानवरों का इलाज उसी तरह किया जा रहा है, जिस तरह कोरोना काल में इंसानों का किया गया था। जानकारों की मानें तो रघु शर्मा अपने ही मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं। हाल ही में सीएम गहलोत ने रघु को अपना भरोसेमंद मानते हुए ही गुजरात का प्रभारी नियुक्त करवाया था। लेकिन राजनीति में भरोसे को तोड़ने वालों में सबसे अव्वल माने जाने वाले रघु शर्मा अब गुजरात में कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गए हैं। गहलोत को भी रघु शर्मा के तेवरों का आभास हो गया है, इसलिए गुजरात में गहलोत ने अपने मंत्रियों की फौज उतार दी। गहलोत स्वयं गुजरात के वरिष्ठ पर्यवेक्षक हैं। सवाल उठता है कि जब घु शर्मा राजस्थान में कांग्रेस के शासन में ही अपने विधानसभा क्षेत्र में कामकाज नहीं करवा पा रहे है, तब गुजरात में कांग्रेस को वोट कैसे दिलवाएंगे? 28 अगस्त को सीएम गहलोत की उपस्थिति में दिया गया रघु शर्मा का बयान गुजरात में राजनीतिक मुद्दा बनेगा। जहां तक केकड़ी का सवाल है तो केकड़ी के मतदाता बेसब्री से विधानसभा चुनाव का इंतजार कर रहे हैं, पहले मंत्री रहते हुए फिर गुजरात का प्रभारी बनने के बाद रघु शर्मा की ओर से राजनीतिक दादागिरी दिखाई गई हे। उससे मतदाताओं में भारी नाराजगी है। सचिन पायलट के समर्थक भी केकड़ी में रघु शर्मा से बेहद खफा है। पायलट समर्थकों ने तो रघु को खुली चुनौती दे रखी है।
 
खेल समारोह का बहिष्कार:
अजमेर शहर कांग्रेस कमेटी जिला अध्यक्ष विजय जैन ने 29 अगस्त को माकड़वाली रोड स्थित विवेकानंद मॉडल स्कूल में आयोजित राजीव गांधी ग्रामीण ओलंपिक खेल के जिला स्तरीय कार्यक्रम का बहिष्कार किया। इस समारोह में प्रभारी मंत्री महेंद्रजीत मालवीय और राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ उपस्थित थे। विजय जैन ने अपने समर्थकों के साथ समारोह में गए तो सही, लेकिन मालवीय और राठौड़ का स्वागत करने के बाद बाहर निकल आए। जैन ने कहा कि जिला प्रशासन की ओर से उन्हें ऐसे समारोह का निमंत्रण नहीं दिया जाता है। गत 11 अगस्त को कायड़ विश्राम स्थली पर आयोजित अमृत महोत्सव के कार्यक्रम में भी प्रशासन की ओर कोई निमंत्रण नहीं मिला। इसी प्रकार 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के समारोह में भी प्रशासन ने आमंत्रित नहीं किया, जबकि सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष को सरकार के कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता रहा। जैन ने आरोप लगाया कि कलेक्टर अंशदीप अजमेर कांग्रेस के नेताओं को अपमानित कर रहे हैं। जब कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार तब अंदाजा लगाया जा सकता है। जैन ने 29 अगस्त को जिस तरह अपनी नाराजगी प्रकट की उस से अजमेर की राजनीति में खलबली मच गई है। जानकारों की माने तो विजय जैन सचिन पायलट के समर्थक हैं, इसलिए प्रशासन उनका मान सम्मान नहीं कर रहा है। 29 अगस्त को जिला स्तरीय समारोह में पूर्व मंत्री नसीम अख्तर, गत विधानसभा चुनाव के दक्षिण क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल आदि भी नजर नहीं आए। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के इन नेताओं को भी प्रशासन ने आमंत्रित नहीं किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार ने ग्रामीण ओलंपिक खेलों के लिए जिला स्तर पर कलेक्टर को ही नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। 29 अगस्त को विवेकानंद मॉडल स्कूल में आयोजित समारोह की सभी तैयारियां कलेक्टर के निर्देश पर ही हुई है।

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जब राहुल गांधी या अशोक गहलोत को ही अध्यक्ष बनना है, तब कांग्रेस में किस बात के चुनाव हो रहे हैं?राहुल गांधी के लिए हरीश रावत तो मरने को तैयार हैं।

सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए कार्यक्रम घोषित कर दिया है। 22 सितंबर को अधिसूचना के बाद 30 सितंबर तक कोई भी व्यक्ति नामांकन दाखिल कर सकता है। 8 अक्टूबर तक नाम वापस लिया जा सकता है। जरूरत होने पर 17 अक्टूबर को मतदान और फिर 19 अक्टूबर को मतगणना होगी। कार्यक्रम की घोषणा से प्रतीत होता है कि कांग्रेस संगठन में लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष का चुनाव होता है। यह बात अलग है कि पिछले 24 वर्षों से सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी ही कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। मौजूदा समय में भी सोनिया गांधी ही अध्यक्ष है और गांधी परिवार से जुड़े कांग्रेसी चाहते हैं कि राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बन जाएं। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो राहुल गांधी के लिए अपनी जान भी देने को तैयार है। राहुल को मनाने के लिए हरीश रावत ने आमरण अनशन की घोषणा की है। गांधी परिवार की मेहरबानी से तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मानना है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस संगठन को चला सकते हैं। मौजूदा समय में जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, उसमें राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना तय है। यदि राहुल अपनी जिद पर कायम रहते हैं तो फिर अशोक गहलोत अध्यक्ष बनेंगे। अपने बेटे के जिद्दीपन को देखते हुए सोनिया गांधी ने भी गहलोत से कांग्रेस की कमान संभालने का आग्रह किया है। अब यह तय है कि राहुल गांधी या अशोक गहलोत ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। सवाल उठता है कि जब अध्यक्ष बनने वाले नेता का नाम जगजाहिर है, तब कांग्रेस में किस बात के चुनाव हो रहे हैं? क्या राहुल गांधी के नामांकन के बाद कांग्रेस का कोई भी नेता अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कर सकता है? या फिर गांधी परिवार की मेहरबानी से नामांकन दाखिल करने वाले अशोक गहलोत को कोई असंतुष्ट नेता चुनौती दे सकता है? कांग्रेस की ओर से दावा किया गया है कि अध्यक्ष के चुनाव में देश भर के 9 हजार मतदाता भाग लेंगे। सवाल उठता है कि आखिर ये 9 हजार मतदाता कौन से हैं? सब जानते हैं कि कांग्रेस में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से दो नेताओं को प्रदेश प्रतिनिधि चुना जाता है। देश में 4 हजार 100 विधानसभा क्षेत्र है। ये प्रदेश प्रतिनिधि ही अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। यानी देशभर में 8 हजार 200 तो प्रदेश प्रतिनिधि ही होंगे। प्रदेश प्रतिनिधि उसी कांग्रेसी को बनाया जाता है जो प्रदेश नेतृत्व के प्रति वफादारी दिखाते हैं। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति गांधी परिवार ही करता है। स्वाभाविक है कि अध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस में गांधी परिवार को कोई चुनौती नहीं है। राहुल गांधी मौजूदा समय में अध्यक्ष नहीं हैं, लेकिन संगठन के महत्वपूर्ण निर्णय राहुल ही लेते हैं। 

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Saturday 27 August 2022

तो राहुल गांधी या अशोक गहलोत का अध्यक्ष पद क्यों नहीं संभालते?अब कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के भी बगावती तेवर। लेकिन सचिन पायलट अभी कांग्रेस के साथ खड़े हैं।

गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में खलबली मची हुई है। कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के किसी सदस्य की अभी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन गांधी परिवार की ओर से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोर्चा संभाल रखा है। आजाद ने जिस तीखी भाषा में गांधी परिवार पर हमला किया है, उसी तीखी भाषा में गहलोत ने जवाब दिया है। राहुल गांधी ने पहले ही कह दिया है कि मोदी सरकार से नहीं डरने वाले ही मेरे साथ हैं, जो डरते हैं, वे कांग्रेस छोड़ कर चले जाएं। राजनीति में निडर होकर काम करना अच्छी बात है, लेकिन सवाल उठता है कि जब कांग्रेस पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है, तब राहुल गांधी या अशोक गहलोत कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने से क्यों डर रहे हैं? अध्यक्ष पद संभालने के लिए राहुल गांधी से बार बार आग्रह किया जा रहा है, लेकिन राहुल तैयार क्यों हो रहे हैं। राहुल की जिद के चलते सोनिया गांधी ने गहलोत से अध्यक्ष पद स्वीकारने की बात कही है, लेकिन गहलोत भी इंकार कर रहे हैं। सवाल उठता है कि जब राहुल और गहलोत निडरता की बात करते हैं तो फिर अध्यक्ष पद क्यों नहीं संभालते? कांग्रेस में इन दिनों जो भगदड़ मच रही है, इसका एक प्रमुख कारण पार्टी का स्थायी अध्यक्ष भी नहीं होना है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब उनकी माता जी सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया। तभी से राहुल गांधी से पुन: अध्यक्ष पद संभालने का आग्रह किया जा रहा है। लेकिन न तो राहुल और न गहलोत कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने को राजी है। सोनिया गांधी भले ही कांग्रेस की अंतिम अध्यक्ष हों, लेकिन सारे फैसले राहुल गांधी और अशोक गहलोत लेते हैं। ये दोनों नेता कांग्रेस को अपने इशारे पर तो चलाना चाहते हैं, लेकिन अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते। यही वजह है कि कांग्रेस में संवादहीनता बन गई है। यदि राहुल या गहलोत में से एक भी अध्यक्ष पद स्वीकार कर ले तो कांग्रेस में भगदड़ रुक सकती है। सवाल गांधी परिवार की चापलूसी का नहीं है, असल बात कांग्रेस को बचाने की है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का रहना जरूरी है।
 
अब तिवारी के तेवर:
गुलाम नबी आजाद के बाद अब पंजाब से लोकसभा सांसद मनीष तिवारी के बगावती तेवर सामने आए हैं। तिवारी ने कहा कि दो वर्ष पहले कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था। यह पत्र संगठन में स्थायी अध्यक्ष नियुक्त करने और संगठन को मजबूत करने से संबंधित था। लेकिन हमारे इस पत्र को गंभीरता से नहीं लिया गया। पिछले दो वर्षों में जिन राज्यों में चुनाव हुए, उन सभी में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस की हालत अब चिंताजनक हो गई है। नेताओं के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए। तिवारी के तेवर बताते हैं कि वे भी कांग्रेस से आजाद हो सकते हैं। जब पार्टी के सांसद ही हालात चिंताजनक मान रहे हैं, तब कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
 
पायलट कांग्रेस के साथ:
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत अगस्त 2019 के सियासी संकट के लिए भले ही आज भी सचिन पायलट को दोषी मानते हो, लेकिन पायलट अभी कांग्रेस के साथ खड़े हैं। गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर पायलट का कहना है कि आजाद के सारे आरोप बेबुनियाद हैं। आजाद ने इस्तीफा तब दिया है, जब 7 सितंबर को कांग्रेस दिल्ली में महंगाई और बेरोजगारी के विरोध में बड़ी रैली करने जा रही है। पायलट के ताजा बयान से जाहिर है कि वे कांग्रेस में ही बने रहेंगे, भले ही अशोक गहलोत उन्हें बार बार अपमानित करते रहे। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-08-2022)
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ग्रामीण ओलंपिक खेलों के नाम पर राजस्थान में खिलाडिय़ों के साथ मजाक।हकीकत यह है कि 2020 में हुए स्टेट गेम्स की ईनामी राशि भी खिलाडिय़ों को नहीं मिली है।खेलों के आयोजनों में सरपंचों की भी रुचि नहीं।

राजस्थान में इन दिनों सरकार की ओर से राजीव गांधी ग्रामीण ओलंपिक का आयोजन हो रहा है। ओलंपिक का उद्घाटन 23 अगस्त को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया। ओलंपिक का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों के प्रति जागरुकता पैदा करना है। सरकार ने विजेता खिलाडिय़ों को ईनामी राशि देने की घोषणा की है। ओलंपिक खेल राजस्थान खेल परिषद की देखरेख में हो रहे हैं। वहीं अजमेर ओलंपिक एसोसिएशन के महासचिव देवेंद्र सिंह शेखावत ने ग्रामीण ओलंपिक के आयोजन को प्रदेशभर के खिलाडिय़ों के साथ मजाक बताया है। शेखावत का कहना है कि गहलोत सरकार ने 2020 में स्टेट गैम्स करवाए थे। हकीकत यह है कि दो वर्ष बाद भी खिलाडिय़ों को ईनामी राशि का भुगतान नहीं हुआ है। तब अजमेर की फुटबॉल टीम ने राजस्तरीय प्रतियोगिता जीती थी। घोषणा के मुताबिक अजमेर टीम को 50 हजार रुपए की ईनामी राशि अभी तक नहीं मिली है। इसी प्रकार एथलिट में 100 मीटर की रेस में नेहा राठौड़ प्रथम स्थान पर रही। राठौड़ को भी घोषित 21 हजार ुपए की इनामी राशि नहीं मिली है। ऐसा प्रदेशभर में हुआ है। एक ओर सरकार ने 2020 की ईनामी राशि का भुगतान नहीं किया है तो दूसरी ओर ग्रामीण ओलंपिक खेलों का आयोजन किया जा रहा है। शेखावत ने कहा कि प्रदेश भर में खेलों के संसाधन नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी खेल की प्रतियोगिताएं जबरन करवाई जा रही है। अधिकारियों पर दबाव डाल कर स्कूली बच्चों को शामिल करवाया जा रहा है। सरकार ने क्रिकेट प्रतियोगिता के लिए टीमों को किट के लिए मात्र 650 रुपए की राशि का प्रावधान किया है। इस राशि में खिलाडिय़ों के लिए बेट, पेड, स्टम्प, गेंद आदि सभी सामग्री खरीदनी है। शेखावत ने कहा कि सरकार ग्रामीण ओलंपिक के नाम पर सिर्फ मजाक कर रही है। हालांकि खेल आयोजन की जिम्मेदारी खेल मंत्रालय की होती है, लेकिन राजस्थान में ग्रामीण ओलंपिक की जिम्मेदारी खेल परिषद को दी गई है। यानी ओलंपिक खेल में प्रदेश के खेल मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं है। उद्घाटन समारोह में खेल मंत्री अशोक चांदना अपनी नाराजगी जता चुके हैं। शेखावत ने बताया कि ओलंपिक खेलों के लिए सरकार ने खेल संघों की मदद भी नहीं ली है। इसलिए सरकार के खेल नियमों के अनुरूप नहीं हो रहे हैं। चूंकि ग्रामीण ओलंपिक खेल संघों की मान्यता नहीं है। इसलिए खिलाडिय़ों को मिलने वाले प्रमाण पत्र की भी कोई उपयोगिता नहीं है। राज्य सरकार भले ही कोई लाभ दे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्रमाण पत्र का कोई महत्व नहीं है। सरकार में थोड़ी सी नैतिकता है तो उसे सबसे पहले 2020 की बकाया ईनामी राशि का भुगतान करना चाहिए। ग्रामीण खेलों के प्रति जनप्रतिनिधियों खास कर सरपंचों में भी कोई रुचि नहीं है। खिलाडिय़ों से जुड़ी समस्याओं के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9740922222 पर देवेंद्र सिंह शेखावत से ली जा सकती है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-08-2022)
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Friday 26 August 2022

झारखंड-हेमंत सोरेन ने मंत्री रहते खनन का पट्टा लिया।दिल्ली-शराब ठेकेदारों का 144 करोड़ रुपए का शुल्क माफ।तेलंगाना-ओवैसी ने 90 उपद्रवियों को पुलिस थाने से आजाद करा दिया।राजस्थान-अडानी समूह को नियमों के विरुद्ध 23 हजार बीघा भूमि का आवंटन।लेकिन फिर भी कांग्रेस को लगता है, देश में लोकतंत्र खत्म हो गया है।

भारत के लगभग 12 राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार है। यानी इन राज्यों में गैर भाजपाई दलों की सरकार है। भारत के संघीय ढांचे में राज्य सरकारों के पास बहुत शक्तियां होती हैं। केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़ कर अन्य राज्यों में पुलिस भी संबंधित राजनीतिक दल की सरकार के अधीन ही होती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्षी दलों की सरकार कैसे काम कर रही है, इसके ताजा उदाहरण झारखंड, दिल्ली, तेलंगाना, राजस्थान आदि राज्यों में देखने को मिल जाएंगे। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है। मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन ने स्वयं के नाम ही खनन का पट्टा जारी करवा लिया। अब चुनाव आयोग ने सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश भी की है। नैतिकता के नाते हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। लेकिन कहा जा रहा है कि इस्तीफा देने के बजाए सोरेन विधायक दल की बैठक बुलाएंगे और फिर दोबारा से विधायक दल का नेता चुन कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेंगे। बाद में छह माह के अंदर अंदर फिर से विधायक चुन लिए जाएंगे। ऐसे में राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटाने का आदेश धरा रह जाएगा। दिल्ली में आप आदमी पार्टी  की सरकार है और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं। आप की सरकार ने दिल्ली के शराब ठेकेदारों का 144 करोड़ रुपए का शुल्क माफ कर दिया। अब जब डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी है तो भाजपा पर सरकार गिराने का आरोप लगाया जा रहा है। जबकि 70 में से 62 विधायक आप के हैं। मजे की बात तो यह है कि शराब घोटाले में फंसी दिल्ली सरकार राजघाट पर जाकर महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्प चढ़ा रहे हैं। जबकि महात्मा गांधी ने कहा था कि शराब की कमाई से स्कूल चलाने के बजाए मुझे स्कूल बंद करना मंजूर है। दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का खुला मजाक उड़ाया जा रहा है। तेलंगाना में तो ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कानून व्यवस्था को अपने पैरों तले कुचल दिया है। तेलंगाना में चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री है, चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में चले आंदोलन के कारण ही आंध्र प्रदेश को तोड़कर तेलंगाना का गठन हुआ। राजधानी हैदराबाद में पुलिस ने तेलंगाना में 90 उपद्रवियों को हिरासत में लिया, लेकिन ओवैसी ने इन सभी 90 उपद्रवियों को पुलिस थाने से छुड़वा लिया, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ओवैसी तेलंगाना की सरकार से कितने ताकतवर  हैं। गंभीर बात तो यह है कि अपने पैरों तले कानून को कुचलने वाले ओवैसी न्यूज चैनलों पर बैठ कर संविधान की दुहाई देते हैं। ओवैसी ने कृत्य किया है उससे आने वाले समय का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही है। अडानी समूह को लेकर राहुल गांधी  पीएम मोदी पर कितने भी आरोप लगाए, लेकिन यह सही है कि गहलोत ने राजस्थान के जैसलमेर जिले में अडानी समूह को 23 हजार 642 बीघा भूमि आवंटित कर दी है। यह भूमि नियमों के विरुद्ध दी गई है, इसलिए अब हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। कोर्ट ने सरकार को नोटिस भी जारी कर दिए हैं। अब इस मामले में 9 सितंबर को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। एक और लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य सरकारों काम का यह तरीका है, तो वहीं कांग्रेस को लगता है कि देश में लोकतंत्र खत्म हो गया है। कांग्रेस का मानना है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पूरे देश में भय व दहशत का माहौल बना रखा है। सवाल उठता है कि यदि लोकतंत्र खत्म हो गया होता तो राज्य सरकारें ऐसी मनमानी कैसे करती। यदि नरेंद्र मोदी ने वाकई लोकतंत्र खत्म कर दिया होता तो अशोक गहलोत राजस्थान में 23 हजार बीघा भूमि आवंटित कर पाते और न ही दिल्ली में अरविंद केजरीवाल शराब ठेकेदार का 144 करोड़ रुपया माफ कर पाते, फिर ओवैसी भी पुलिस थाने से उपद्रवियों को छोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाते। लोकतंत्र की खामियों का फायदा उठाकर ही राजनीतिक दल मनमानी कर रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (26-08-2022)
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आखिर गुलाम कांग्रेस से आजाद हुए। राहुल गांधी को बताया बचकाना हकरतें करने वाला नेता।अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनने की खबरों से भी खुश नहीं।आजाद का इस्तीफा दुखद-कांग्रेस।

26 अगस्त को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। यानी अब कांग्रेस से कोई संबंध नहीं रहा है। आजाद ने कांग्रेस तब छोड़ी है, जब कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार का कोई भी सदस्य देश में नहीं है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी 24 अगस्त को ही विदेश दौरे पर रवाना हुए है। पिछले दिनों आजाद ने जम्मू कश्मीर की प्रचार समिति के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया था। आजाद को उम्मीद थी कि  प्रचार समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर गांधी परिवार कोई गंभीरता दिखाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही वजह रही कि आजाद ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को 5 पृष्ठ का पत्र लिखकर अपने गुस्से का इजहार किया। आजाद ने लिखा कि भले ही सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष हो, लेकिन सारे फैसले राहुल गांधी लेते हैं। आजाद ने राहुल गांधी को बचकाना हरकतें करने वाला नेता बताया। पत्र में लिखा गया कि कांगेस ने अब इच्छा शक्ति और अपनी क्षमता को खो दिया है। पार्टी के अनुभवहीन और चापलुसों की दखलदांजी है, ऐसे में मेरे जैसा स्वाभिमानी व्यक्ति कांगेस में नहीं रह सकता है। मैं अब स्वयं को अपमानित समझ रहा हंू। इसलिए कांगेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हंू। आजाद के इस्तीफे से कांगे्रस को बड़ा झटका लगा है। आजाद कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल रहे जो गांधी परिवार के वफादार रहे। आजाद इंदिरा गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह के मंत्रीमंडल में भी शामिल रहे। गांधी परिवार के प्रति वफादारी के कारण ही आजाद को राज्य सभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता भी बनाया गया, लेकिन पिछले एक वर्ष से गांधी परिवार और आजाद के संबंधों में खटास आ गई। यही वजह रही कि आजाद को राज्यसभा में नहीं भेजा गया। आजाद के इस्तीफे से कांग्रेस को जम्मू कश्मीर में भी झटका लगा है। जम्मू कश्मीर में इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित है। आजाद ने अपने पत्र में राहुल गांधी को लेकर जो टिप्पणियां की है उससे कांग्रेस नेतृत्व पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। जानकारों की माने तो कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम जिस तरह सामने आया उससे भी आजाद खुश नहीं हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस में चापलूसों की दखलंदाजी की बात आजाद ने कही वह गहलोत की ओर ही इशारा है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस में पूर्व में जो 23 असंतुष्ट नेताओं का समूह बना था, उसमें भी आजाद शामिल रहे।
 
आजाद का इस्तीफा दुख:
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन ने गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को दुख बताया है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी विपक्षी की आवाज बनकर केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन आजाद विपक्षी की भूमिका में नहीं रहना चाहते, इसलिए उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया है। कांग्रेस पहले की तरह विपक्ष की भूमिका निभाती रहेगी। 

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राजस्थान के अति पिछड़ा वर्ग के 5 लाख लोग 12 सितंबर को पुष्कर तीर्थ में जुटेंगे।कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के अस्थि विसर्जन पर तीन दिवसीय कार्यक्रम होगा।यह विजय बैंसला का शक्ति प्रदर्शन भी होगा।

राजस्थान में गुर्जर समुदाय सहित पांच जातियों को अति पिछड़ा मानकर 5 प्रतिशत विशेष आरक्षण दिलवाने में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बैंसला का निधन गत 31 मार्च को हुआ। निधन के बाद झुंझुनूं से बैंसला के अस्थि कलश यात्रा शुरू हुई। इस यात्रा का समापन 12 सितंबर को पुष्कर तीर्थ में होगा। पुष्कर सरोवर के सभी 52 घाटों पर अस्थियां विसर्जित की जाएगी। इस अवसर पर पुष्कर में तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा गया। कार्यक्रम आयोजन समिति के सदस्य सेवानिवृत्त एडीजे किशन गुर्जर और गुर्जर नेता हरचन्द हांकला ने बताया कि 12 सितंबर को पुष्कर के मेला मैदान पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अति पिछड़ा वर्ग के 5 लाख लोग भाग लेंगे। इस वर्ग के जो लोग 5 प्रतिशत विशेष आरक्षण का लाभ ले रहे हैं उन्हें पता है कि कर्नल बैंसला के लंबे संघर्ष के बाद फायदा मिला है। कर्नल बैंसला का सपना था कि दूध बेचने और पशुओं को चराने का काम करने वाले लोग भी प्रशासनिक अधिकारी बने। आज भले ही कर्नल बैंसला न हो, लेकिन उनका सपना साकार हो रहा है। चूंकि बैंसला के संबंध में सभी राजनीतिक दलों से रहे इसलिए भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है। इसमें पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी शामिल हैं। राजस्थान से गुर्जर समुदाय के 9 विधायक है, ये सभी कांग्रेस पार्टी के है। गत विधानसभा के चुनाव में भाजपा का एक भी गुर्जर उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका था। गुर्जर और हांकला ने बताया कि श्रद्धांजलि सभा का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। यह सभा पूरी तरह सामाजिक स्तर पर है। आने वाले सभी लोगों को दोपहर का भोजन उपलब्ध करवाया जाएगा। इसके लिए मेला मैदान पर ही विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। श्रद्धांजलि सभा से पहले 10 और 11 सितंबर को धार्मिक भजनों के कार्यक्रम होंगे, इनमें भजनों का दंगल भी शामिल है। 3 दिवसीय कार्यक्रम के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 7727874098 पर किशन गुर्जर से ली जा सकती है।
 
विजय बैंसला का शक्ति प्रदर्शन:
इसमें कोई दो राय नहीं कि गुर्जर, बंजारा, गाड़िया लुहार, रायका और गडरिया जातियों को अति पिछड़ा मानकर 5 प्रतिशत विशेष आरक्षण दिलवाने में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने इन वर्गों के लोगों को एकजुट किया। गुर्जर समुदाय के लोगों ने बलिदान भी दिया। कर्नल बैंसला अपने जीवन काल में जनजातियों के सर्वमान्य नेता रहे। कई बार गुर्जर समुदाय की एकता को तोड़ने का प्रयास भी हुआ, लेकिन विभिन्न परिस्थितियों में भी कर्नल बैंसला अपने मकसद में कामयाब रहे। जीवन के अंतिम दिनों में कर्नल बैंसला ने अपने पुत्र विजय बैंसला को उत्तराधिकारी घोषित किया। बैंसला के रहते हुए भी सरकार से जो समझौता वार्ता हुई उसमें एमबीसी वर्ग का नेतृत्व विजय बैंसला ने ही किया। विजय बैंसला चाहते हैं कि उनके पिता ने अति पिछड़ा वर्ग के विकास के लिए जो मुहिम चलाई उसे आगे भी जारी रखा जाए। माना जा रहा है कि अस्थि कलश यात्रा के समापन पर होने वाला समारोह विजय बैंसला का शक्ति प्रदर्शन भी है। बैंसला का कहना है कि राज्य सरकार ने सरकारी नौकरियों में एमबीसी वर्ग के लिए 5 प्रतिशत का विशेष आरक्षण तो दे दिया है, लेकिन अभी भी ऐसी मांगे हैं जिन्हें सरकार ने वादे के बाद भी पूरा नहीं किया है। इन मांगों को पूरा करवाने के लिए अति पिछड़ा वर्ग को एकजुट होना जरूरी है। 

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Thursday 25 August 2022

बेटे राहुल के बाद सोनिया गांधी का अशोक गहलोत पर भरोसा।आखिर राहुल और गहलोत कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों नहीं बनना चाहते?

यदि मीडिया की खोजपूर्ण खबरों को सही माना जाए तो कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष और गांधी परिवार की मुखिया श्रीमती सोनिया गांधी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह किया है कि वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल लें। इन खबरों को इसलिए भी बल मिला है कि 24 अगस्त को विदेश दौरे से रवाना होने से पहले दिल्ली में सोनिया गांधी ने गहलोत से ही खास तौर पर मुलाकात की। सोनिया के साथ उनके पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका गांधी भी विदेश गए हैं। इसलिए गहलोत की इस मुलाकात को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। गहलोत अध्यक्ष बनते हैं या नहीं लेकिन यह साफ प्रदर्शित है कि सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल गांधी के बाद किसी पर भरोसा करती हैं तो वह अशोक गहलोत हैं। राहुल गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष न बनने की जिद पर कायम है, इसलिए सोनिया गांधी अपने सबसे भरोसेमंद गहलोत को अध्यक्ष की कमान देना चाहती हैं। राजनीतिक दृष्टि से गहलोत के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। यूं तो गांधी परिवार ने न जाने कितने कांग्रेसियों को मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बनवाया, लेकिन वफादारी की कसौटी पर अशोक गहलोत ही खरे उतरे हैं। यह कहा जा सकता है कि मौजूदा हालातों में सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल से भी ज्यादा भरोसा गहलोत पर करती है। बार बार न करने के बाद भी 24 अगस्त को ही गहलोत ने कहा है कि वे कांग्रेस के अनुशासित कार्यकर्ता हैं और कांग्रेस हाईकमान जो जिम्मेदारी देता है, उसका पालन करते हैं। अभी उन्हें गुजरात चुनाव के पर्यवेक्षक और राजस्थान के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दे रखी है तो वे उसी के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। यानी हाईकमान ने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी तो वे उसे भी स्वीकार करेंगे। असल में मौजूदा समय में खुद अशोक गहलोत ही कांग्रेस के हाईकमान हैं। यदि गहलोत के अध्यक्ष बनने से गांधी परिवार को राहत और मजबूती मिलती है तो गहलोत ही अध्यक्ष बनेंगे। जहां तक राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद का सवाल है तो गहलोत इस पद को अपने पास ही रखने की भरसक कोशिश करेंगे। वैसे भी गहलोत ने गांधी परिवार को समझा रखा है कि राजस्थान में वे ही कांग्रेस की सरकार चला सकते हैं। यदि उन्हें हटाया गया तो सरकार भी चली जाएगी। कांग्रेस की लगातार कमजोर होती स्थिति में गांधी परिवार राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिरने का जोखिम नहीं उठाएगा। कोई माने या नहीं लेकिन राजस्थान में गांधी परिवार अशोक गहलोत पर ही निर्भर है। राजस्थान में वही होगा जो गहलोत चाहेंगे। 

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17 सितंबर को तेरापंथ समाज देशभर में तीन लाख यूनिट रक्त एकत्रित करेगा। इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन भी है।लम्पी स्किन डिजीज से मरे पशुओं का मुआवजा पशुपालकों को दिलवाया जाए। स्वास्थ्य गाय अब गौशालाओं में शिफ्ट हो-ज्ञान सारस्वत।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ समाज की युवा परिषद की ओ रसे आगामी 17 सितंबर को देशभर में रक्तदान शिविर लगाए जाएंगे। एक ही दिन में तीन लाख यूनिट रक्त एकत्रित करने का लक्ष्य रखा गया है, जिस दिन शिविर लगेंगे उस दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन भी है। अजमेर के तेरापंथ के अध्यक्ष अशोक छाजेड़ और रक्तदान शिविर के संयोजक वरुण पीतलिया ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी हमारे इस अभियान का समर्थन किया है। हो सकता है कि इस दिन पीएम मोदी भी रक्तदान करे। देश भर में रक्तदान शिविर गुरुदेव आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा से लगाए जा रहे हैं। इन शिविरों में कोई भी व्यक्ति रक्त दे सकता है। तेरा पंथ समाज के युवक अधिक से अधिक रक्त दे, इसके लिए समाज के युवाओं की सूची बनाई जा रही है। वर्ष 2012 में प्रत्येक 2 वर्ष में ऐसे शिविर लगाए जा रहे हैं। वर्ष 2014 में एक ही दिन में एक लाख यूनिट से ज्यादा का रक्त एकत्रित किया गया थ। हालांकि कोरोना काल में 2020 में 55 हजार यूनिट रक्त ही एकत्रित हुआ। लेकिन इस बार तेरापंथ समाज के युवाओं में रक्तदान को लेकर जबरदस्त उत्साह है। गुरुदेव महाश्रमण  भी चाहते हैं कि समाज के युवा अधिक से अधिक संख्या में रक्तदान करे। गुरुदेव महाश्रमण का मानना है कि रक्तदान करने से अनेक व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है। यदि रक्त देकर किसी की जान बचती है तो इससे बड़ा पुण्य का काम नहीं हो सकता। छाजेड़ और पितलिया ने बताया कि अजमेर में 17 सितंबर को रक्तदान शिविर सुंदर विलास स्थित तेरापंथ भवन में प्रात: 9 बजे से शुरू होगा। शिविर के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9509306237 पर अशोक छाजेड़ और 7850067059 पर वरुण पीतलिया से ली जा सकती है।
मुआवजा मिले:
लम्पी स्किन डिजीज से मरे पशुओं खासकर गाय पालकों को मुआवजा दिलाए जाने की मांग को लेकर अजमेर के पशु पालक और पार्षद ज्ञान सारस्वत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा है। सारस्वत ने कहा कि दुधारू गायों की कीमत बहुत ज्यादा है, चूंकि लम्पी रोग से बड़ी संख्या में गायों की मौत हुई इसलिए पशु पालकों को मुआवजा मिलना चाहिए। इसके साथ ही सारस्वत ने अजमेर के जिला कलेक्टर अंशदीप से आग्रह किया है कि नगर निगम के कांजी हाउस और पशुपालन विभाग के आइसोलेशन सेंटर में स्वास्थ्य गायों को जिलेभर की गौशालाओं में शिफ्ट किया जाए। सारस्वत ने कहा कि गौशालाएं सरकार और सहयोग से संचालित होती है, इसलिए गायों को रखने का दायित्व और आइसोलेशन सेंटर की गायों को गौशालाओं में रखा जाए, जिससे सड़कों पर आवारा पशु भी देखने को नहीं मिलेंगे। कांजी हाउस की गायों को जंगलों में छोड़ा जाता है, ऐसी गाय फिर से शहरों की आरे आ जाती है। सड़कों पर गायों के बैठने से दुर्घटनाएं भी होती है। कई बार बुजुर्ग नागरिक ऐसी दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। कलेक्टर को इस मामले में सख्ती दिखाने की जरूरत है। सारस्वत ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज के दौर में उनकी टीम ने घर घर जाकर पशुपालकों को मदद की है। आज भी सूचना मिलने पर उनकी टीम के सदस्य संक्रमित पशुओं का इलाज मौके पर जाकर करते हैं। उन्होंने बताया कि जो गाय रोग मुक्त हो गई है, उन्हें पौष्टिक आहार की जरूरत है। सारस्वत ने लोगों से अपील की है कि गौ शालाओं में भी पौष्टिक आहार उपलब्ध करवाए। इस मामले में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 8058796562 पर ज्ञान सारस्वत से ली जा सकती है। 

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बीसलपुर बांध का पानी 212 किलोमीटर क्षेत्र में फैला।डेढ़ वर्ष तक जयपुर, अजमेर और टोंक के एक करोड़ लोगों को मिलेगा पीने का पानी।सिंचाई विभाग के इंजीनियरों को बांध के भरने का इंतजार।

25 अगस्त को टोंक जिले के बीसलपुर बांध में पानी की आवक कम रही यही वजह है कि बांध के पूरे भरने में विलंब हो रहा है। 25 अगस्त को दोपहर 12 बजे बांध का जल स्तर 315.32 मीटर मापा गया। बांध की भराव क्षमता 315.50 मीटर है। बांध के जल स्तर पर निगरानी रखने वाले जलदाय विभाग के एक्सईएन रामनिवास खाती ने बताया कि अब जल स्तर एक घंटे में आधा सेंटीमीटर बढ़ रहा है। यदि पानी की आवक ऐसी ही रही तो बांध के पूरा भरने में 36 घंटे और लग जाएंगे। लेकिन यदि पानी की आवक तेज हो गई तो 25 अगस्त की रात तक बांध पूरा भर सकता है। बांध का पानी 212 किलोमीटर के क्षेत्र में फैल गया है। इतने बड़े फैलाव क्षेत्र के कारण भी पानी का जल स्तर धीमी गति से बढ़ रहा है। यह सही है कि बांध के पानी से जयपुर, अजमेर और टोंक जिलों के एक करोड़ की आबादी की प्यास अगले डेढ़ वर्ष तक बुझाई जा सकती है। इस बीच सिंचाई विभाग के इंजीनियर बांध के भरने का इंतजार कर रहे हैं। 23 और 24 अगस्त को बांध में पानी की आवक को देखते हुए उम्मीद थी कि बांध पूरा भर जाएगा, इसलिए टोंक जिला प्रशासन ने बनास नदी के किनारे रहने वाले लोगों को सायरन बजाकर सतर्क कर दिया था। बीसलपुर बांध से निकलने वाला पानी बनास नदी में बह कर ही सवाई माधोपुर तक जाता है और फिर यह नदी चंबल नदी में मिल जाती है। बांध से जब पानी की निकासी से कोई हताहत न हो इसके लिए प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को सतर्क किया जाता है। यानी ग्रामीण लोग बनास नदी में आए टोंक जिले के बीसलपुर गांव के बाद इस समय बनास नदी सुखी है। बीसलपुर में बांध बनाकर ही बनास नदी को रोका गया है। बीसलपुर के बाद बनास नदी का स्वरूप तभी बनता है जब गेट खोल कर पानी को बांध से बाहर निकाला जाए। पूर्व में वर्ष 2019 में बांध के गेट खोलकर पानी निकाला गया था। वर्ष 2020 में और 21 में बरसात के दिनों में बांध भर ही नहीं सका, इसलिए पानी की निकासी नहीं हो सकी। यदि पानी की आवक ऐसी ही रही तो हो सकता है कि इस वर्ष भी बांध से पानी की निकासी होगी। अलबत्ता बांध का जल स्तर भराव क्षमता तक पहुंच गया है। 

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Wednesday 24 August 2022

चलो! अब एनडीटीवी पर देश विरोधी खबरें नहीं दिखेंगी।अडाणी समूह करेगा 500 करोड़ रुपए का निवेश। नरेंद्र मोदी से ज्यादा अशोक गहलोत के मित्र हैं गौतम अडाणी।


बात यह नहीं है कि उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी एनडीटीवी न्यूज चैनल पर मालिकाना हक प्राप्त करने जा रही है, असल बात यह है कि अब एनडीटीवी पर देश विरोधी खबरें देखने को नहीं मिलेगी। जो लोग खबरों में रुचि रखते हैं उन्हें पता है कि एनडीटीवी पर अक्सर पाकिस्तान और चीन से जुड़ी खबरें प्रसारित होती हैं। जो खबरें भारत को कमजोर दिखाने वाली होती है। उन्हें इस चैनल पर प्रमुखता से दिखाया जाता है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति व्यक्ति नाराजगी के चलते उन्हीं खबरों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे देश की छवि खराब हो। लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करना आम बात है। स्वास्थ्य आलोचना का कोई सरकार विरोध भी नहीं करती है। लेकिन जब किसी न्यूज़ चैनल पर निर्धारित एजेंडे के तहत खबरें चलाई जाती है, तब सरकार को भी आपत्ति होती है। एनडीटीवी के रवैये के बारे में पाठकों को अच्छी तरह पता है। ऐसे में अडाणी समूह द्वारा एनडीटीवी को खरीदने की खबर अच्छी है। एनडीटीवी में अडाणी समूह का 500 करोड़ रुपए का निवेश बहुत मायने रखता है। एनडीटीवी के समर्थक सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि यह चैनल पीएम नरेंद्र मोदी के मित्र गौतम अडानी ने खरीदा है। शायद ऐसे समर्थकों के पास जानकारी का अभाव है, बदली हुई परिस्थितियों में अडाणी की मोदी से ज्यादा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से दोस्ती है। गहलोत ने राजस्थान में अडानी के कारोबार पर बहुत मेहरबानी कर रखी है। रियायती दरों पर जमीन दी जा रही है तो कोयला खरीद में भी मदद की जा रही है। गहलोत सरकार की मेहरबानी से ही अडाणी समूह जयपुर के सांगानेर एयरपोर्ट का सफलतापूर्वक संचालन कर रही है। यदि गहलोत की मेहरबानी नहीं होती तो जयपुर में एयरपोर्ट का संचालन आसान नहीं होता। एनडीटीवी पर अब अशोक गहलोत से जुड़ी खबरें भी प्रमुखता से प्रसारित होंगी। गुजरात में तीन माह बाद चुनाव हो रहे हैं। गहलोत कांग्रेस की ओर से सीनियर ऑब्जर्वर है। यही वजह है कि इन दिनों गहलोत गुजरात में व्यस्त हैं। गुजरात में गहलोत की राजनीति से जुड़ी खबर एनडीटीवी पर प्रमुखता से देखने को मिलेगी। सोशल मीडिया पर एनडीटीवी के स्टार एंकर रवीश कुमार के भविष्य को लेकर भी चिंता व्यक्त की जा रही है। लेकिन माना जा रहा है कि 500 करोड़ रुपए के निवेश के बाद रवीश कुमार भी एनडीटीवी से जुड़े रहेंगे। 

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गुजरात को अरविंद केजरीवाल दिल्ली जैसा तो अशोक गहलोत राजस्थान जैसा बनाएंगे।गहलोत ने अपनी सरकार की उपलब्धियां अहमदाबाद में गिनाईं।गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनने पर राजस्थान की तरह महंगाई से भी राहत मिलेगी।गहलोत की दौड़ अब जयपुर-दिल्ली के बजाए अहमदाबाद-दिल्ली के बीच।

गुजरात चुनाव में कांग्रेस के सीनियर ऑब्जर्वर अशोक गहलोत ने 24 अगस्त को अहमदाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री भी हैं। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर गुजरात में भी राजस्थान की तरह महंगाई और बेरोजगारी से राहत मिलेगी। हालांकि महंगाई के लिए केंद्र की भाजपा सरकार जिम्मेदार हैं, लेकिन राजस्थान में हमने ऐसे उपाय किए हैं जिनसे लोगों को राहत मिल रही है। वेट की दर घटाकर पेट्रोल-डीजल सस्ता किया। राजस्थान में एक करोड़ लोगों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पेंशन मिल रही है। इतना ही नहीं अब तक एक लाख 29 हजार युवाओं को सरकारी नौकरी दी गई है, जबकि एक लाख नौकरी की प्रक्रिया चल रही है। मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में 5 लाख रुपए तक का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में भी मुफ्त में हो रहा है। नरेगा में 100 दिन काम करने वाले व्यक्ति को 25 दिन अतिरिक्त काम दिया जा रहा है। प्रदेश की एक करोड़ 35 लाख महिलाओं को स्मार्ट फोन नि:शुल्क दिए जा रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों के पेंशन की पुरानी योजना लागू की गई है। राजस्थान के हर ब्लॉक में औद्योगिक क्षेत्र बनाए गए हैं। अभिभावकों की मांग पर हिन्दी मीडियम स्कूलों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में बदला जा रहा है। अब गरीब बच्चे भी सरकार के इंग्लिश मीडियम स्कूलों में कम फीस पर पढ़ रहे हैं। राजस्थान में ऐसे अनेक उपाय किए हैं जिनसे लोगों को महंगाई और बेरोजगारी से राहत मिली है। गहलोत ने दावा किया कि गुजरात के मुकाबले में राजस्थान की सड़कें बहुत अच्छी है। कांग्रेस की सरकार बनने पर गुजरात में भी राजस्थान जैसी सड़कें बनेगी। जो गुड गवर्नेंस राजस्थान में हैं, वो ही गुजरात में भी मिलेगी। चूंकि मेरी सरकार के कामकाज से प्रदेश की नजात खुश है, इसलिए जनता ने राजस्थान में कांग्रेस को रिपीट करने का मन बना लिया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अरविंद केजरीवाल भी गुजरात को दिल्ली जैसा विकसित राज्य बनाने का दावा कर रहे हैं। 24 अगस्त को गहलोत ने केजरीवाल का नाम तो नहीं लिया, लेकिन कहा कि हम जीतने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार हमें 77 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार हम सरकार बनाने लायक सीटें जीत लेंगे। गुजरात में 182 सीटें हैं।
 
अब अहमदाबाद-दिल्ली के बीच दौड़:
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब तक जयपुर-दिल्ली के बीच राजनीतिक दौड़ लगाते रहे, लेकिन अब गहलोत अहमदाबाद दिल्ली के बीच दौड़ लगा रहे हैं। गहलोत गत 16 व 17 अगस्त को गुजरात में थे। गुजरात से ही गहलोत दिल्ली चले गए। 20 अगस्त तक दिल्ली में रुकने के बाद गहलोत जयपुर आए और फिर अगले ही दिन पुन: दिल्ली चले गए। 23 अगस्त को दिल्ली से अहमदाबाद पहुंचे और 23 अगस्त को पुन: दिल्ली पहुंच गए। यानी अब गहलोत की राजनीतिक दौड़ अहमदाबाद और दिल्ली के बीच हो रही है। 

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बीसलपुर बांध छलकने को तैयार। बांध से निकला पानी सवाई माधोपुर से होता हुआ चंबल नदी में मिलेगा।

अजमेर, जयपुर और टोंक जिले के कोई सवा करोड़ लोगों की प्यास बुझाने वाला बीसलपुर बांध अब छलकने को तैयार है। बांध के जल स्तर पर निगरानी रखने वाले जलदाय विभाग के कार्यवाहक एक्सईएन रामनिवास खाती ने बताया कि मौजूदा समय में भी बांध में प्रति घंटा पांच सेंटीमीटर की रफ्तार से पानी की आवक हो रही है। जल स्तर 315.20 मीटर के पार है। बांध की भराव क्षमता 315.50 मीटर है। बांध के भरने के साथ ही बांध के गेट भी खोल दिए जाएंगे। पानी की आवक की रफ्तार को देखते हुए ही बांध के गेट खोलने का निर्णय लिया जाएगा। यदि पानी की आवक कम होगी तो पहले एक गेट खोल कर जलस्तर को 315.50 बनाए रखा जाएगा। यानी 315.50 के जल स्तर के बाद जो भी पानी आएगा उसे बांध से निकाला जाएगा। अनुमान है कि 24 अगस्त की रात तक बांध का जलस्तर 315.50 हो जाएगा। हो सकता है कि रात के समय ही बांध के गेट खोले जाए। बांध से जुड़े बनास, खारी और डाई नदी के त्रिवेणी संगम पर गेज का स्तर कम हो रहा है। बांध से निकलने वाला पानी बनास नदी के माध्यम से सवाई माधोपुर से होता हुआ चंबल नदी में शामिल होगा। चंबल नदी पहले ही उफान पर है। चंबल की वजह से कोटा, बूंदी, झालावाड़ आदि जिलों में बाढ़ के हालात हैं। सवाई माधोपुर में जब बनास नदी भी चंबल में शामिल होगी तो चंबल का नदी का बहाव और तेज होगा।
 
तीन जिलों में राहत:
बीसलपुर बांध के भर जाने से अजमेर, जयपुर और टोंक जिले में राहत है। इन तीनों जिलों में बांध के पानी से ही पेयजल की सप्लाई होती है। सिंचाई विभाग के इंजीनियरों के अनुसार बांध में अब इतना पानी आ गया है कि आने वाले दिनों में टोंक के अनेक क्षेत्रों में बांध के पानी से सिंचाई भी हो सकेगी। 

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Tuesday 23 August 2022

तो क्या महंगाई पर कांग्रेस की बैठक जयपुर के प्रेम प्रकाश आश्रम में होती? क्या आश्रम में इंदिरा रसोई से 8 रुपए वाली भोजन की थाली मंगाई जाती?राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं तो कई नेता घर बैठ जाएंगे। सीएम अशोक गहलोत का यह कथन 100 प्रतिशत सही है।मेरा नाम मीडिया वाले चला रहे हैं-गहलोत।

आगामी 4 सितंबर को दिल्ली में महंगाई के विरोध में होने वाली कांग्रेस की रैली की तैयारियों को लेकर 22 अगस्त को जयपुर में राजस्थान कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की एक बैठक हुई। इस बैठक में सीएम अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित करीब 500 कांग्रेसियों ने भाग लिया। यह बैठक जयपुर के सबसे महंगे सेवन स्टार होटल क्लार्क्स आमेर में हुई। इस होटल में एक कप कॉफी की कीमत तीन सौ रुपए है। इसी प्रकार भोजन की एक प्लेट की एक हजार रुपए से भी ज्यादा में मिलती है। कांग्रेस की बैठक इतने महंगे होटल में होने पर कई लोगों के पेट में दर्द हो रहा है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस एक और महंगाई का विरोध कर रही है तथा दूसरी ओर खुद इतनी महंगी होटल में बैठक कर रही है। ऐसे में महंगाई का विरोध कैसे होगा। ऐसे विरोध के मद्देनजर ही सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की बैठक जयपुर के प्रेम प्रकाश आश्रम में की जाए? क्या आश्रम में इंदिरा रसोई से 8 रुपए वाली भोजन की थाली मंगवा कर कांग्रेसियों को खिलाई जाए? राजनीति करने वाले सभी दल अपनी बैठक महंगे होटल में ही करते हैं और जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गांधी वादी पहचान वाले हो तब कांग्रेस की बैठक प्रेम प्रकाश आश्रम में करने की उम्मीद बेमानी है। महात्मा गांधी तो स्वयं उद्योगपति बिड़ला परिवार मेहमान रहे। ऐसे में उनके अनुयायी अशोक गहलोत ने होटल क्लार्क्स में कांग्रेस की बैठक कर कौन सा गुनाह कर लिया? आखिर गहलोत मौजूदा समय में राजस्थान जैसे समृद्ध राज्य के मुख्यमंत्री हैं। क्या एक मुख्यमंत्री के लिए यह शोभा देता है कि वे दान दक्षिणा से चलने वाले प्रेम प्रकाश आश्रम में बैठक करे और गहलोत ने तो 35 दिनों तक सौ विधायकों को जयपुर और जैसलमेर की महंगी होटलों में रखने का अनुभव भी प्राप्त कर रखा है। भले ही महंगाई के विरोध में रैली की जा रही है, लेकिन कांग्रेसी तो गरीब नहीं है।जब राज्य में कांग्रेस की सरकार हो तो फिर बैठक प्रेम प्रकाश आश्रम जैसे स्थलों पर क्यों होगी? होटल क्लार्क्स का प्रबंधन भले ही आम आदमी से लंच के एक हजार और कॉफी के 300 रुपए वसूलता हो लेकिन इतने पैसे सत्तारूढ़ दल के नेताओं से नहीं लिए जा सकते हैं। आखिर मालिकों को जयपुर में अपना होटल भी चलाना है।
 
गहलोत सौ प्रतिशत सही:
महंगाई के विरोध में हुई बैठक में ही सीएम गहलोत ने कहा कि यदि राहुल गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनते हैं कई नेता घर बैठ जाएंगे। गहलोत ने भले ही यह बात अपने प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट के संदर्भ में कही हो, लेकिन गहलोत का यह कथन सौ प्रतिशत सही है। राहुल गांधी के अध्यक्ष नहीं बनने का मतलब है, गांधी परिवार का कमजोर होना। यह बात अशोक गहलोत भी अच्छी तरह जानते हैं कि गांधी परिवार कमजोर होगा तो कांग्रेस में किसी नेता को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। खुद गहलोत भी गांधी परिवार के कारण ही तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने हैं। यदि गांधी परिवार की मेहरबानी नहीं होती तो 2008 में सीपी जोशी, 2018 में सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री होते।
 
मीडिया वाले चला रहे हैं नाम:
23 अगस्त को सीएम गहलोत ने दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने के बाद मीडिया को बताया कि मुलाकात में कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर भी विचार विमर्श हुआ। गहलोत ने कहा कि मैंने सोनिया जी से आग्रह किया है कि वे राहुल गांधी को अध्यक्ष बनने के लिए तैयार करें। गहलोत ने कहा कि उनका नाम अध्यक्ष पद के लिए मीडिया वाले चला रहे हैं। कांग्रेस का अध्यक्ष बनने में मेरी कोई रुचि नहीं है। 

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गुजरात में अरविंद केजरीवाल की चालाकियों का मुकाबला अब अशोक गहलोत करेंगे।दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद गहलोत अहमदाबाद पहुंचे। गहलोत का पांच दिन में दूसरा दौरा।

23 अगस्त को सुबह राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद सीएम गहलोत गुजरात के अहमदाबाद पहुंच गए। पिछले पांच दिनों में गहलोत का यह दूसरा गुजरात दौरा है। माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल इन दिनों गुजरात में जो राजनीतिक चालाकियां कर रहे हैं उनका मुकाबला कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत करेंगे। यही वजह है कि गत 16 और 17 अगस्त को गुजरात दौरे पर रहने के बाद गहलोत 23 अगस्त से फिर से गुजरात दौरे पर हैं। गुजरात में तीन माह बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए केजरीवाल ने पूरी ताकत गुजरात में लगा रखी है। केजरीवाल भी 22 अगस्त से गुजरात के दौरे पर हैं। केजरीवाल को लगता है कि जिस प्रकार पंजाब में कांग्रेस से सत्ता छीनी इसी प्रकार गुजरात में भाजपा से सत्ता छीन ली जाएगी। क्योंकि गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह प्रदेश हैं इसलिए केजरीवाल का हमला मोदी और शाह पर ही होता है। केजरीवाल भाजपा से सत्ता छीनेगे या नहीं यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक चालाकियों से गुजरात में आम की स्थिति को मजबूत कर लिया है। केजरीवाल का दावा है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा और आम के बीच ही मुकाबला होगा। यानी केजरीवाल कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल रहे हैं। केजरीवाल की चालाकियों से कांग्रेस भी घबराई हुई है। सोनिया गांधी को लगता है कि केजरीवाल का मुकाबला अशोक गहलोत ही कर सकते हैं। कांग्रेस यह कभी नहीं चाहेंगी कि गुजरात में उसकी स्थिति तीसरे नंबर की हो। यदि गुजरात में केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस से आगे निकल जाती है तो इसका असर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस के हाथ से कई राज्य निकल चुके हैं। पूरे देश में कांग्रेस के पास सिर्फ दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही बचे हैं। गहलोत गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र कांग्रेसी है। सोनिया गांधी ने गहलोत को पूरी छूट देकर गुजरात भेजा है। गहलोत का भी दावा है कि गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला है। गहलोत केजरीवाल की पार्टी की उपस्थिति को गंभीर नहीं मानते हैं। देखना होगा कि केजरीवाल की चालाकियों का मुकाबला गहलोत की जादूगरी कैसे करती है। गत विधानसभा के चुनाव में गहलोत ही प्रभारी थे। तब गुजरात की 182 में से 77 सीटें मिली थी। गुजरात में पिछले 27 वर्षों से भाजपा का शासन है। गहलोत को लगता है कि इस बार गुजरात में भाजपा से सत्ता छीन जाएगी। यहां उल्लेखनीय है कि गहलोत ने राजस्थान में अपने विश्वास पात्र रघु शर्मा को पहले ही प्रभारी नियुक्त करवा दिया था। रघु शर्मा ने गहलोत को जो फीडबैक दिया उसमें गुजरात में केजरीवाल की स्थिति को भी मजबूत बताया गया। रघु शर्मा ने बताया यदि गुजरात के मुस्लिम वोटरों पर सेंध लगाई गई तो भाजपा को फायदा होगा। रघु शर्मा के फीडबैक के बाद ही अब गहलोत ने गुजरात में कांग्रेस की कमान संभाल ही है। गहलोत को उम्मीद है कि उनकी वजह से मुसलमानों के वोट कांग्रेस को ही मिलेंगे। अशोक गहलोत और अरविंद केजरीवाल के प्रचार की एक समानता यह भी है कि दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटु आलोचक हैं। दोनों के हर भाषण में मोदी ही निशाने पर होते हैं। मोदी की आलोचना गुजराती कितना बर्दाश्त करेंगे यह चुनाव परिणाम ही बताएगा। 

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25 अगस्त तक भर जाएगा बीसलपुर बांध। एक घंटे में पांच सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ रहा है जल स्तर। गेट खोलने की तैयारी।अजमेर, जयपुर और टोंक के लोग जश्न मना सकते हैं।अजमेर में टूटी सड़कों की मरम्मत के लिए कलेक्टर ने दिए निर्देश

315.50 मीटर की क्षमता वाले राजस्थान के प्रमुख बीसलपुर बांध का जलस्तर 23 अगस्त को 314.40 मीटर के पार हो गया है। बांध में प्रति घंटा पांच सेंटीमीटर की रफ्तार से पानी की आवक हो रही है। बांध के जल स्तर पर निगरानी रखने वाले जलदाय विभाग के कार्यवाहक एक्सईएन रामनिवास खाती का अनुमान है कि 25 अगस्त तक बीसलपुर बांध भर जाएगा। बनास, खारी और डाई नदी के त्रिवेणी संगम पर मौजूदा समय में पानी का गेज सात मीटर का है। यानी बांध में पानी आने की रफ्तार और बढ़ जाएगी। सब जानते हैं कि बीसलपुर बांध अजमेर, जयपुर और टोंक जिले के लोगों के लिए लाइफ लाइन है। अजमेर जिला तो पूरी तरह बीसलपुर के पानी पर निर्भर है। अजमेर में पेयजल का कोई स्थानीय स्त्रोत नहीं है। ऐसे में जिले भर में बांध पेयजल की सप्लाई बांध से ही होती है। यदि बांध में पानी की कमी रहती है तो अजमेर के लोगों को चार-पांच दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई की जाती है। चूंकि इस बार बांध पूरा भरा है, इसलिए इन तीनों जिलों में पेयजल की समस्या नहीं रहेगी। अजमेर और जयपुर से बांध की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। इन दोनों जिलों में बांध से बड़ी बड़ी पाइप लाइन के जरिए पानी पहुंचता है। बांध के भरने की स्थिति को देखते हुए सिंचाई विभाग के इंजीनियर सतर्क हो गए हैं। चूंकि कोटा और बूंदी में बाढ़ जैसे हालात हैं और बीसलपुर बांध के भराव क्षेत्र में लगातार वर्षा हो रही है, इसलिए 25 अगस्त को बांध के भरने के बाद गेट भी खोले जा सकते हैं। सिंचाई विभाग के इंजीनियरों का मानना है कि बांध के भरने के साथ ही गेट खोलने का काम शुरू हो जाएगा। यदि गेट खोलने में विलंब किया गया तो अजमेर जिले के केकड़ी और टोंक के कई गांव में पानी भर जाएगा। सिंचाई विभाग के इंजीनियर बांध का जलस्तर 315.50 मीटर बनाए रखने का प्रयास करेंगे। इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि बांध का जलस्तर भराव क्षमता से कम न हो। 

कलेक्टर ने दिए निर्देश:
अजमेर की टूटी सड़कों को लेकर मीडिया में जो खबरें प्रकाशित हो रही है उसके दबाव के मद्देनजर ही 22 अगस्त को उत्तर क्षेत्र के भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी के नेतृत्व में पार्षदों और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने जिला कलेक्टर अंशदीप के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया था। देवनानी ने आरोप लगाया कि सड़कों में गड्ढों की वजह से लोगों को चलना भी मुश्किल हो रहा है। पार्षदों ने भी कलेक्टर के समक्ष नाराजगी व्यक्त की। जनप्रतिनिधियों के दबाव को देखते हुए ही कलेक्टर ने 23 अगस्त को संबंधित विभागों के अधिकारियों को सड़कों की मरम्मत के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं। कलेक्ट्रेट में आयोजित एक बैठक में संबंधित विभागों के अधिकारियों से कहा गया कि वे सड़कों की मरम्मत के कार्यों में कोई लापरवाही नहीं बरते। बरसात के दिनों में किसी भी कार्य के लिए सड़क खुदाई का कार्य भी न किया जाए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (23-08-2022)
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Monday 22 August 2022

मुस्लिम और महिला मजिस्ट्रेट की आलोचना करने पर पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान के विरुद्ध एंटी टेरर एक्ट में गिरफ्तारी वारंट।भारत में तो सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की मौजूदगी में ऐसी आलोचना होती है।केजरीवाल दिल्ली का बदला गुजरात में लेंगे।

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान से आ रही खबरों के मुताबिक पूर्व पीएम इमरान खान कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं। इमरान पर पंजाब प्रांत के एक आईजी,डीआईजी और महिला मजिस्ट्रेट को धमकाने का आरोप है। इमरान ने इन सरकारी कारिंदों को देख लेने की बात सार्वजनिक सभा में कही। इमरान की इस धमकी पर कोर्ट ने एंटी टेरर एक्ट में वारंट जारी कर दिया है। अब पुलिस इमरान को गिरफ्तार करने के लिए इस्लामाबाद स्थित उनके घरों के बाहर खड़ी है। पुलिस घर में न घुस पाए इसके लिए इमरान के समर्थक बड़ी संख्या में एकत्रित हो गए हैं। भारत की तरह पाकिस्तान में भी लोकतंत्र है। यानी जनता जिन्हें सांसद चुनती है, वही सांसद देश के प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं। लेकिन भारत में तो इमरान से कहीं ज्यादा पुलिस और न्यायाधीशों की आलोचना होती है, अशोक गहलोत, अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्षी नेता तो सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की उपस्थिति में न्यायिक फैसलों की आलोचना करते हैं। पुलिस और न्यायिक व्यवस्था अक्सर मीडिया के निशाने पर भी रहते हैं। लेकिन आलोचकों पर इमरान जैसी कार्यवाही नहीं होती। पाकिस्तान के लोकतंत्र की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक आईजी और एक मजिस्ट्रेट की आलोचना पर पूर्व प्रधानमंत्री के विरुद्ध एंटी टेरर एक्ट में मुकदमा दर्ज हो जाता है। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत में ऐसे अनेक राजनेता है जो पाकिस्तान के समर्थक है। कुछ नेताओं को तो अपने भारत से ज्यादा अच्छा पाकिस्तान लगता है। ऐसे नेता इमरान खान पर हुई एंटी टेरर एक्ट की कार्यवाही से सबक ले सकते हैं। भारत में तो सीधे प्रधानमंत्री पर भी हमला बोला जाता है। भारत में लोकतंत्र की इतनी छूट के बाद भी अनेक राजनेताओं, कलाकारों, बुद्धिजीवियों आदि को डर लगता है।
 
गुजरात में लेंगे बदला:
दिल्ली के आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया पर सीबीआई की जो कार्यवाही हुई है, उससे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बेहद खफा हैं। केजरीवाल को लगता है कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने यह कार्यवाही करवाई है। यही वजह है कि 22 अगस्त को केजरीवाल और सिसोदिया दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह प्रांत गुजरात में पहुंच गए हैं। गुजरात में तीन माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। केजरीवाल को लगता है कि गुजरात में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को हरा कर दिल्ली का बदला लिया जाए। यही वजह है कि गुजरात में केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी है। दिल्ली और पंजाब के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में गुजरात पहुंच गए हैं। हालांकि केजरीवाल के निशाने पर भाजपा है, लेकिन केजरीवाल की गतिविधियों से कांग्रेस सबसे ज्यादा परेशान है। कांग्रेस को लगता है कि केजरीवाल उन्हीं के परंपरागत खास कर मुसलमानों के वोट दीन लेंगे। केजरीवाल ने हाल ही में पंजाब में कांग्रेस से ही सत्ता छीनी है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (22-08-2022)
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गांधी परिवार के बचाव में अशोक गहलोत जिन पुराने कांग्रेसियों को आगे लाए, उनमें से गुलाम नबी आजादी और आनंद शर्मा कांग्रेस को झटका दे चुके हैं।यानी कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में गहलोत की विफलता का दौर शुरू।

गुलाम नबी आजाद के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने भी हिमाचल प्रदेश की चुनाव समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। विगत दिनों ही आजाद ने जम्मू कश्मीर की चुनाव समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इन दोनों राज्यों में तीन माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आजाद और शर्मा की नियुक्ति की थी, लेकिन इन दोनों नेताओं ने सोनिया गांधी की नियुक्तियों को ठुकरा दिया है। यह कांग्रेस को तो झटका है ही साथ ही राजस्थान के मुख्यमंत्री और मौजूदा समय में गांधी परिवार के सलाहकार अशोक गहलोत की राजनीतिक विफलता भी है। सब जानते हैं कि पिछले दिनों जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी ने पूछताछ की तो गांधी परिवार के बचाव में अशोक गहलोत राजस्थान को छोड़कर दिल्ली में जम गए। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए गहलोत गांधी परिवार के बचाव में पुराने कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा जयराम नरेश जैसे कई नेताओं को आगे लाए। असंतोष समूह के नेताओं में गहलोत ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करवाई। गहलोत ने यह दिखाने का प्रयास भी किया कि मुसीबत के समय सभी कांग्रेसी गांधी परिवार के साथ हैं। गहलोत को उम्मीद थी कि पुराने कांग्रेसियों पर हाथ फेर देने से नाराजगी दूर हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गहलोत जिन पुराने कांग्रेसियों को आगे लाए उनमें से आजाद और आनंद शर्मा ने कांग्रेस को झटका दे दिया। यानी कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में गहलोत की विफलता का दौर शुरू हो गया है। यदि गहलोत के प्रति पुराने नेताओं के मन में कोई सम्मान होता तो आजाद और आनंद शर्मा अपने अपने गृह प्रदेश की चुनाव समिति  से इस्तीफा नहीं देते। आजाद और आनंद शर्मा को पता है कि उनकी नियुक्ति गहलोत की सिफारिश पर हुई है। यह सही है कि राजस्थान में नाराज मंत्रियों विधायकों और नेताओं से सहानुभूति की बात कर गहलोत सफल हो जाते हैं, लेकिन प्रदेश और देश की राजनीति में बहुत अंदर है। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सफल होना अब इतना आसान नहीं है। गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व कर चुके हैं। लेकिन गांधी परिवार ने अपने विश्वास पात्र मल्लिकार्जुन खडग़े को राज्य सभा में संसदीय दल का नेता बनाने के लिए आजाद और आनंद शर्मा को राजय सभा का सांसद भी नहीं बनवाया। चूंकि गहलोत इन दिनों कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं इसलिए गहलोत को अब यह समझना चाहिए कि वो ही नेता कांग्रेस और गांधी परिवार के साथ है, जिन्हें सत्ता का कोई पद मिला हुआ है। गहलोत खदु भी गांधी परिवार के प्रति इतनी वफादारी इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हैं। आज यदि गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया जाए तो गहलोत का बागी रवैया कपिल सिब्बल से ज्यादा देखने को मिलेगा। मालूम हो कि सिब्बल अब समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्य सभा के सांसद हैं। सिब्बल को कांग्रेस ने जब केंद्रीय मंत्री और फिर राज्यसभा का सांसद बनाए रखा सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस की नीति के अनुरूप राम मंदिर के निर्माण में अड़चन खड़ी की। आज वही सिब्बल कांग्रेस की कब्र खोदने में लगे हुए हैं। यहां यह खासतौर पर उल्लेखनीय है कि अगले वर्ष राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव के परिणाम का आभास गहलोत को अभी से है। देखना होगा कि 2024 में गहलोत की गांधी परिवार के प्रति कितनी वफादारी नजर आती है। 

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बीसलपुर बांध का पानी अब आगामी एक वर्ष तक अजमेर, जयपुर और टोंक के लोगों की प्यास बुझा सकेगा।बांध का जल स्तर 313.10 मीटर के पार। प्रति घंटा एक सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ रहा है जल स्तर।तो अजमेर की सड़कों पर गड्ढों के लिए जिला कलेक्टर जिम्मेदार है।

22 अगस्त का दिन अजमेर, जयपुर और टोंक जिले के लोगों के लिए खुशखबर से भरा दिन है। टोंक जिले के जिस बीसलपुर बांध से इन तीनों जिलों के लोगों को पेयजल की सप्लाई होती है। उस बांध में आगामी एक वर्ष तक का पानी आ गया है। बांध के जल स्तर पर निगरानी रखने वाले जलदाय विभाग के कार्यवाहक एक्सईएन रामनिवास खाती ने बताया कि बांध का जल स्तर 313.10 मीटर के पार हो गया है। इतने पानी से वर्ष 2023 के मानसून तक तीनों जिले के लोगों को मात्र के अनुरूप पेयजल की सप्लाई की जा सकती है। उन्होंने बताया कि बांध में पानी लाने वाली डाई और खारी नदी में पानी का बहाव तेज है, त्रिवेणी पर गेज चार मीटर से ऊपर है। इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि कुछ दिनों में बांध पूरा भर जाएगा। बांध की भराव क्षमता 315.50 मीटर है। चूंकि बांध में पर्याप्त पानी एकत्रित हो गया है, इसलिए जरूरत पड़ने पर टोंक जिले में सिंचाई के कार्य के लिए भी पानी दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगले एक वर्ष तक जयपुर, अजमेर और टोंक में पेयजल की कोई किल्लत नहीं होगी।
 
सिंचाई विभाग तैयार:
बीसलपुर बांध में पानी की आवक को देखते हुए सिंचाई विभाग के इंजीनियर बांध के गेट खोलने को लेकर तैयार है। इंजीनियरों ने बांध के सभी गेटों के परीक्षण भी कर लिए हैं। शुरुआत में बांध के दो या तीन गेट खोले जाएंगे। गेट खोलने से पहले 315 मीटर वाले जल स्तर का आकलन किया जाएगा। 315 के जलस्तर के बाद पानी आने की रफ्तार देखी जाएगी। सिंचाई विभाग के इंजीनियर भी मान रहे हैं कि इस बांध के गेट खोले जाएंगे। उल्लेखनीय है कि बांध पर सिंचाई विभाग का नियंत्रण है।
 
कलेक्टर जिम्मेदार:
केरल हाईकोर्ट के आदेश की क्रियान्विति अजमेर में होती है तो अजमेर की सड़कों पर हो रहे एक एक फीट के गड्ढों के लिए जिला कलेक्टर जिम्मेदार है। इन गड्ढों की वजह से भी कोई हादसा होता है तो कलेक्टर को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा। केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने एक आदेश में कहा है कि जिला कलेक्टर ही आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी होते हैं ऐसे में सड़कों पर गड्ढों की जिम्मेदारी भी कलेक्टर की ही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अजमेर की सड़कों पर इन दिनों चलना बहुत मुश्किल है। बुजुर्ग नगारिक तो दुपहिया वाहन पर अक्सर दुर्घटना के शिकार होते हैं। अखबारों में रोजाना टूटी सड़कों की खबरें प्रकाशित होती है। अजमेर की सड़क नगर निगम, एडीए, पीडब्ल्यू आदि विभाग के अधीन आती है। ऐसे में विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हैं। लेकिन केरल हाईकोर्ट ने विभागों की जिम्मेदारी के बजाए सिर्फ जिला कलेक्टर को जिम्मेदार मान लिया है। चूंकि किसी भी हाईकोर्ट का आदेश पूरे देश में नजीर बनता है, इसलिए अब यही अजमेर की सड़कों के गड्ढों की समस्या का समाधान नहीं होगा तो इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा। कोई भी जागरूक नागरिक केरल हाईकोर्ट के आदेश को आधार बनाकर राजस्थान हाईकोर्ट में अजमेर जिला प्रशासन के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि न्यायालय की अवमानना करने से बचने के लिए अजमेर प्रशासन तत्काल सड़कों की मरम्मत करवाएगा। 

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