बलात्कार से जन्मे बच्चोंं का कौन रखवाला होगा
17 अप्रैल को जी न्यूज के राजस्थान चैनल (मरूधरा) पर न्यूज-व्यूज का जो लाइव प्रोग्राम हुआ उसमें बलात्कार की शिकार एक युवती के मामले पर भी बहस हुई। इस लाइव प्रोग्राम में मैंने भी भाग लिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह मामला बेहद संवेदनशील है और उस मां के दर्द को समझना चाहिए जो जबरन गर्भवती हो गई है। गुजरात के भावनगर जिले के गांव में एक युवती को तीन-चार लोगों ने जबरन उठाया और बलात्कार किया। कोई 7 माह तक दरिन्दों ने युवती के साथ बलात्कार किया। युवती जब बलात्कारियों के चंगुल से छूटी तो वह गर्भवती थी। ऐसा नहीं कि युवती को लेकर उसके परिजनों ने कोई शिकायत नहीं की लेकिन किसी ने भी सुनवाई नहीं की। अपने गर्भ को गिराने के लिए युवती ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन हाईकोर्ट ने भी गर्भपात करवाने की इजाजत नहीं दी। कोर्ट ने यह तो माना कि एमपीटी एक्ट के अन्तर्गत बलात्कार की शिकार युवती का गर्भपात करवाया जा सकता है लेकिन इस मामले में अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि युवती के पेट में पल रहा गर्भ 27 सप्ताह का है। मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार 13 सप्ताह या अधिक से अधिक 18 सप्ताह तक के गर्भ को ही गिराया जा सकता है। 18 सप्ताह के बाद महिला की जान को खतरा हो जाता है। ऐसे में कोई ऐसा कोई निर्णय नहीं कर सकता जिससे युवती की जान को खतरा हो। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब संबंधित युवती को उस बच्चे को जन्म देना ही पड़ेगा जिसमें उसकी कोई रूचि नहीं है। कल्पना की जा सकती है उस मां के पीड़ा की जो दरिन्दों की पहचान लिए-लिए घूम रही है। सवाल उठता है कि जो बच्चा जन्म लेगा उसका रखवाला कौन होगा। जी न्यूज के लाइव प्रोग्राम में एडिटर पुरुषोत्तम वैष्णव ने पीडि़ता के पति को भी शामिल किया। पति ने भी लाचारी प्रकट करते हुए कहा कि बच्चे को जन्म देने के अलावा अब कोई रास्ता नहीं है। यानि पति भी मजबूरी में बच्चे का जन्म करवा रहा है। फिलहाल पति ने पत्नी को अपने पास बनाए रखा है लेकिन पति बलात्कार की शिकार पत्नी को कब छोड़ दे यह नहीं कहा जा सकता। आमतौर पर बेसहारा बच्चों को गोद लेने की परम्परा देखी गई है लेकिन किसी दम्पत्ति ने बलात्कार से पैदा हुए बच्चे को गोद लिया हो ऐसा सुनने में नहीं आया है। जो बच्चा जन्म लेगा उसका रखवाला कौन होगा यह भी अभी गर्भ में ही है। इतना तो माना जा सकता है कि यदि पीडि़ता के पास ही बच्चा रहता है तो उसे जिन्दगी भर तिल-तिल मरना होगा। मेरा ऐसा मानना है कि इस मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री आनन्दी बेन को पहल करनी चाहिए। गुजरात सरकार न केवल पीडि़ता को सरकारी नौकरी दे बल्कि जन्म लेने वाले बच्चे को सरकार स्वयं गोद ले। हालांकि पीडि़ता के दर्द की भरपाई नहीं की जा सकती है लेकिन जो जख्म हुए है उन पर मरहम तो लगाई ही जा सकती है। इसके साथ ही उन दरिन्दों के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही हो जिन्होंने बलात्कार किया है। सामूहिक बलात्कार के मामले में आजीवन कारावास तक का प्रावधान है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511
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