मैं पहले भी लिख चुका हंू कि राजनीतिक दलों की चुनावी व्यवस्था में देश से आरक्षण समाप्त हो ही नहीं सकता। कोई भी राजनीतिक दल चाहे कितने भी बहुमत से सत्ता में आ जाए, लेकिन उसमें आरक्षण को समाप्त अथवा कम करने की हिम्मत नहीं होगी। इस बीच 7 अक्टूबर को राजस्थान की भाजपा सरकार के जन जाति विकास मंत्री नंदलाल मीणा ने सराहनीय बयान दिया है। मीणा ने कहा कि आरक्षण के लाभ से क्रीमीलेयर को बाहर किया जाए।
यानि जो परिवार आरक्षण का लाभ लेकर मालामाल हो गया है, उसे भविष्य में आरक्षण का लाभ न दिया जाए। नंदलाल मीणा ने आरक्षण को समाप्त करने अथवा कम करने की कोई बात नहीं कही, लेकिन उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ उन परिवारों को मिलना चाहिए, जिन्हें एक बार भी न मिला है। असल में एक ओर एक ही परिवार के सभी सदस्य आरक्षण की मलाई खा रहे हैं, तो दूसरी ओर उसी जाति के दूसरे परिवार के एक भी सदस्य को आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। यदि मालामाल हुए परिवार को आरक्षण के लाभ के दायरे से बाहर कर दिया जाए तो उसी जाति के दूसरे परिवार को आरक्षण का लाभ मिल जाएगा। नंदलाल मीणा ने क्रीमिलेयर को हटाने की जो बात कही है, उसमें बहुत दम है। संविधान बनाते समय आरक्षण का प्रावधान दस वर्ष के लिए इसलिए किया गया था कि पिछड़े वर्ग के परिवार आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत हो जाए। लेकिन 10 वर्ष बाद राजनीतिक दलों ने वोट की राजनीति के चलते आरक्षण को समाप्त नहीं किया। और आज 70 वर्ष होने पर भी आरक्षण जारी है। लेकिन गंभीर बात तो यह है कि आरक्षण का लाभ सही मायने में समाज के उस वर्ग को मिला ही नहीं जो हकीकत में पिछड़ा हुआ है। यदि विस्तृत जांच करवाई जाए तो पता चलेगा कि कुछ परिवारों के ही सदस्य आरक्षण की मलाई खा रहे हैं। नंदलाल मीणा अनुसूचित जनजाति वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। यदि मीणा जाति में ही देखा जाए तो आज भी आदिवासी इलाकों में मीणा समुदाय के लोग दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी बहुत मुश्किल से कर रहे हैं। बड़ी संख्या में मीणा समुदाय के युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। क्या ऐसे बेरोजगार युवाओं को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए? जिस तरह से ओबीसी वर्ग में समृद्ध जातियों को शामिल किया, उससे तो अति पिछड़ा वर्ग के परिवारों को आरक्षण का लाभ ही नहीं मिल रहा है। यदि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग में भी समानता के साथ आरक्षण का लाभ मिलने लगे तो देश में एक बड़ा सामाजिक बदलाव हो सकता है, जो लोग आरक्षित वर्ग के नेता बने हुए हैं, उनका यह दायित्व है कि उन्हीं की जातियों के पिछड़े परिवारों को भी आरक्षण का लाभ दिलवावे।
मायावती से लेकर लालू प्रसाद यादव तक निश्चित रहे कि आरक्षण समाप्त नहीं होगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने विगत दिनों आरक्षण पर जो बयान दिया उसको लेकर 7 अक्टूबर को भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को सफाई देनी पड़ी। बिहार की एक चुनावी सभा में शाह ने कहा कि मैं केन्द्र की सत्तारुढ़ पार्टी का अध्यक्ष हंू, इसलिए यह दावे के साथ कह रहा हंू कि आरक्षण हटाने अथवा कम करने पर कोई विचार भी नहीं हो रहा है। अमित शाह को बार-बार यह सफाई इसलिए देनी पड़ रही है, क्योंकि मायावती और लालू प्रसाद जैसे नेताओं ने भागवत के बयान को अपने नजरिए से पेश किया। भागवत ने यह कभी नहीं कहा कि आरक्षण व्यवस्था को समाप्त किया जाए। भागवत ने भी क्रीमीलेयर को हटाने की ही बात कही थी। इसके साथ ही उन्होंने मात्र सुझाव दिया था कि आरक्षण पर गैर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाई जावे। यह कमेटी इस बात की जांच करें कि आरक्षण का लाभ सही मायने में वंचित परिवारों को मिला या नहीं। लेकिन मायावती और लालू प्रसाद ने बेवजह हंगामा खड़ा कर दिया।
भागवत भी यह अच्छी तरह जानते हैं कि जब तक देश में वोट की राजनीतिक है, तब तक आरक्षण व्यवस्था को समाप्त नहीं किया जा सकता। जो लोग आरक्षण को हटाने को लेकर आंदोलन करते हैं, उन्हें देश की हकीकत को समझना होगा। अच्छा हो कि आरक्षण के दायरे में समाज के आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लोगों को भी शामिल किया जाए। भले ही ऐसा गरीब परिवार किसी भी जाति का हो।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511
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