Monday, 29 September 2025
आखिर सोनम वांगचुक और मौलाना तौकीर रजा जैसे नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था को क्यों चुनौती देते हैं?
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है और आम जनता को अपने वोट से सरकार बदलने का अधिकार है। यदि कोई सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है तो पांच वर्ष बाद ऐसी सरकार को हटाया जा सकता है। ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं होती, लेकिन फिर भी पूरे देश ने देखा कि चीन की सीमा से सटे लद्दाख में जमकर हिंसा हुई। इस हिंसा में सरकारी संस्थानों को आग के हवाले कर दिया गया। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के बरेली में मुसलमानों के जुलूस में शामिल लोगों में जमकर पत्थरबाजी की जिससे अनेक पुलिस कर्मी बुरी तरह जख्मी हो गए। 25 और 26 सितंबर को हुई इन घटनाओं के पीछे सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और मौलाना तौकीर रजा खान के उत्तेजित भाषण रहे। वांगचुक ने लद्दाख में और मौलाना रजा ने बरेली में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देने वाले भाषण दिए। वांगचुक का कहना रहा कि यदि लद्दाख को राज्य का दर्जा नहीं दिया गया तो चीन का कब्जा हो जाएगा। वांगचुक की महत्वाकांक्षा किसी से भी छिपी नहीं है। लद्दाख के डीजीपी एसडी सिंह जामवाल का तो आरोप है कि वांगचुक के संबंध पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों से है। हालांकि अब वांगचुक को गिरफ्तार कर राजस्थान की जोधपुर की सेंट्रल जेल में भेज दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि जो हिंसा हुई उसका जिम्मेदार कौन होगा? वांगचुक को भी पता है कि लद्दाख एक सीमावर्ती क्षेत्र है। यहां विशेष परिस्थितियों में भारत की सीमा की रक्षा की जाती है। यदि वांगचुक अपने कुछ समर्थकों के साथ अशांति करेंगे तो चीन जैसे दुश्मन देश को फायदा होगा। क्या वांगचुक की मंशा लद्दाख पर चीन का कब्जा करवाने की है? अब समय आ गया है जब सोनम वांगचुक जैसे नेताओं को सबक सिखाया जाए। ऐसे नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जहां तक मुस्लिम नेता मौलाना तौकीर रजा खान का सवाल है तो वे भी अपने समर्थकों के दम पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देते रहते हैं। बरेली में किसी भी जुलूस के निकलने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया, लेकिन फिर भी तौकीर रजा ने धर्म की आड़ लेकर मुसलमानों को भड़काने का काम किया। तौकीर रजा के बयानों से प्रतीत होता है कि वह शासन प्रशासन को नहीं मानते हैं। उनका मकसद सिर्फ अपनी बात को मनवाना है। तौकीर रजा की भाषा भी एक मौलाना की नहीं हो सकती। लद्दाख के नेता सोनम वांगचुक की तरह तौकीर रजा भी महत्वाकांक्षी मुस्लिम नेता है। अच्छा हो कि यह दोनों नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहकर अपनी बातों को रखे। यदि व्यवस्था को चुनौती दी जाएगी तो इससे देश का ही नुकसान होगा। जब भारत के चारों तरफ अशांति का माहौल है, तब देश के नेताओं के देशहित को प्राथमिकता देनी चाहिए।
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मां कामाख्या के दर्शन-आशीर्वाद: मेघालय और भूटान यात्रा-भाग 8 भूटान में भारतीय पर्यटकों से प्रतिदिन 12 सौ रुपए शुल्क वसूली। अन्य विदेशी पर्यटकों से प्रतिदिन सौ डॉलर शुल्क।
गुवाहाटी में मां कामाख्या के दर्शन और आशीर्वाद वाली यात्रा के दौरान में अपने साथियों के साथ 15 सितंबर को आकाश एयर लाइन से पश्चिम बंगाल के बागीदौरा एयरपोर्ट पर पहुंचा। इस एयरपोर्ट का संचालन भारतीय वायुसेना के द्वारा किया जाता है। चूंकि यह क्षेत्र बांग्लादेश की सीमा से लगा हुआ है, इसलिए एयरपोर्ट पर विशेष सतर्कता बरती जाती है। एयरपोर्ट से हम भारत भूटान की सीमा पर पहुंचे। सीमा पर हम सभी के आवश्यक दस्तावेज देखे गए। कुद साथियों के पासपोर्ट तथा कुछ के पास मतदाता पहचान पत्र था। भूटान में भारतीय मतदाता पहचान पत्र के माध्यम से भी प्रवेश दे दिया जाता है। भूटान के कैम्प में हमारा अनुभव अच्छा नहीं रहा, क्योंकि हमारे दल की एक महिला सदस्य को प्रवेश देने से इंकार कर दिया। भूटान के अधिकारियों का कहना रहा कि मतदाता पहचान पत्र में ऑनलाइन सिस्टम में फोटो में बदलाव है। हालांकि हमारे पास और भी दस्तावेज थे, लेकिन अधिकारियों ने सहयोग नहीं किया। बाद में चाय पानी का मोटा खर्चा लेकर उसी मतदाता पहचान पत्र पर प्रवेश दे दिया गया। तब ऐसा लगा कि भूटान के राजतंत्र में भी भारत के लोकतंत्र की तरह भ्रष्टाचार व्याप्त है। जिस तरह भारत में बड़ी चालाकी से रिश्वत की राशि ली जाती है, उसी प्रकार भूटान के कैम्प में भी बड़ी चतुराई से चाय पानी के नाम पर मोटी राशि ली गई। चूंकि हमारी मजबूरी थी, इसलिए भूटान के अधिकारियों की बात को स्वीकार करना पड़ा। हमने रात्रि विश्राम भूटान सीमा के फुलसिलिंग के होटल पलाम में किया। भूटान के कानून के मुताबिक सीमा में प्रवेश लेने वाले पर्यटकों को परमिट भी लेना होता है। इस कानून के अंतर्गत हम सभी 13 सदस्यों 16 सितंबर को फुलसिलिंग में भूटान दूतावास पहुंचे और परमिट प्राप्त किया। यही पर हमने प्रत्येक सदस्य का प्रतिदिन का 12 सौ रुपया शुल्क भी जमा कराया। चूंकि हमें तीन दिन भूटान घूमना था, इसलिए प्रत्येक सदस्य के 36 सौ रुपए जमा कराए गए। यही पर हमें बताया गया कि भारत के अलावा अन्य विदेशी पर्यटकों से सौ डॉलर प्रतिदिन का शुल्क लिया जाता है।
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क्रिकेट के मैदान पर हुई भारत की जीत को कांग्रेस स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि टीम ने जीत वाली ट्रॉफी नहीं ली। यानी जीत का सबूत नहीं है। वहीं पीएम मोदी ने जीत को ऑपरेशन सिंदूर ही बताया है। कप्तान सूर्यकुमार यादव अपनी फीस की राशि सेना को देंगे।
28 सितंबर की रात को दुबई में एशिया कप में भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान पर पांच विकेट से जो जीत दर्ज की है, उसे भारत में कांग्रेस स्वीकार नहीं करेगी। भारतीय टीम ने भले ही क्रिकेट के मैदान पर पाकिस्तान की टीम को हरा दिया हो, लेकिन जीत के बाद भारतीय टीम के पास एशिया कप की ट्रॉफी नहीं है। असल में पाकिस्तान को हराने के बाद भारतीय टीम ने एशिया क्रिकेट परिषद और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष मोहसिन नक़वी के हाथों से ट्रॉफी लेने से इंकार कर दिया था। ऐसे में नकवी ने जीत वाली ट्रॉफी को अपने कब्जे में ले यिला। कांग्रेस कह सकती है कि भारतीय टीम के पास जीत का सबूत नहीं है। यदि भारत की टीम जीतती तो ट्रॉफी होनी चाहिए थी। सब जानते हैं कि विगत दिनों युद्ध के मैदान में भी भारत ने पाकिस्तान को हराया था। तब इस युद्ध को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर का नाम दिया था। भारतीय सेना ने पाकिस्तान में हुए नुकसान के वीडियो भी जारी किए, लेकिन फिर भी कांग्रेस पार्टी और उसके नेता युद्ध में जीत के सबूत मांगते रहे। कांग्रेस की रुचि आज भी इस बात में है कि युद्ध में भारत को कितना नुकसान हुआ। जब कांग्रेस ऑपरेशन सिंदूर में ही भारत की जीत नहीं मान रही तो अब बगैर ट्रॉफी के एशिया कप में जीत कैसे स्वीकार करेगी? यह बात अलग है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय टीम को जीत की बधाई देते हुए लिखा है कि खेल के मैदान पर ऑपरेशन सिंदूर..., नतीजा वही भारत जीत गया। यानी जिस प्रकार भारत ने युद्ध के मैदान में पाकिस्तान को हराया, उसी प्रकार खेल के मैदान पर भी भारत ने पाकिस्तान को हराया है। प्रधानमंत्री द्वारा क्रिकेट में जीत को भी ऑपरेशन सिंदूर से जोड़ने से साफ जाहिर है कि जिस प्रकार भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर विजय हासिल की, उसी प्रकार भारतीय क्रिकेट टीम ने भी पाकिस्तान पर जीत दर्ज की है। यह जीत पाकिस्तान के उन आतंकियों को भी जवाब है, जिन्होंने पहलगाम में 26 हिंदू पर्यटकें की हत्या की थी। कांग्रेस को अभी भी खेल के मैदान में भारत की जीत पच नहीं रही है, इसलिए कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने भारतीय टीम को बधाई तक नहीं दी है।
फीस की राशि सेना को:
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष और पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी के हाथों से एशिया कप की ट्रॉफी लेने से इंकार करने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान सूर्य कुमार यादव ने घोषणा की है कि एशिया कप के मैचों की जो फीस की राशि मिलेगी उसे वे सेना को देंगे। कप्तान यादव शुरू से ही भारतीय सेना के साथ खड़े हैं। एशिया कप में ब पहली बार पाकिस्तान को हराया तब यादव ने कहा था कि यह जीत सेना के शौर्य को समर्पित है। मालूम हो कि एशिया कप में भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन बार मैच खेला और तीनों बार ही पाकिस्तान को हराया।
दारा का कार्टून:
28 सितंबर को दुबई में खेले गए भारत पाकिस्तान के क्रिकेट मैच पर कार्टूनिस्ट जसवंत दारा का सटीक कार्टून मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है।
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अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाग-1 अजमेर में पहली बार 1941 में गंज में शुरू हुई संघ की शाखा। तब कार्यकर्ताओं को एकत्रित करना आसान नहीं था।
भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार ने नागपुर में 1925 में की थी। इसी के बाद देश भर में संघ का विस्तार हुआ। अब जब संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं, तब देश भर में संघ की गतिविधियों का आकलन भी हो रहा है। इसके अंतर्गत अजमेर में भी संघ की गतिविधियों का संकलन किया गया है। संघ के पुराने स्वयं सेवकों और दिवंगत स्वयं सेवकों के परिजन से जो जानकारी जुटाई गई उसके अनुसार विश्वनाथ लिमये अजमेर में संघ के प्रथम प्रचारक के रूप में सामने आए हैं। यह वह समय था, जब अजमेर में आर्य समाज की गतिविधियां अच्छी थी। तब चांद करण शारदा आर्य समाज की गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। तभी डॉ. हेडगेवार ने एक पत्र चांदकरण शारदा को लिखा और विश्वनाथ लिमये के आवास आदि की व्यवस्था करवाने का आग्रह किया। डॉ. हेडगेवार के आग्रह पर शारदा ने लिमये के रहने और भोजन आदि की व्यवस्था की। इसके बाद लिमये ने जगह-जगह भ्रमण किया और संघ के स्वयंसेवकों को तलाशने का काम शुरू किया। तभी उन्होंने देखा कि अजमेर के गंज (कुत्ता शाला) के पास चंद्र कुंड के खुले मैदान पर कुछ बच्चे खेलते हैं। रोज आने वाले बच्चों से लिमेय ने मित्रता की। धीरे-धीरे बच्चों को स्वस्थ रहने के लिए खेलकूद सिखाने का काम किया। थोड़े ही दिनों में अनेक बच्चे नियमित आने लगे और तभी अजमेर के चंद्र कुंड में संघ की प्रथम शाखा की शुरुआत हुई। उस समय रामचरण (लालाजी), छगनलाल बंसल, किशन भैयाजी, शिवनारायण मेहरा (शिब्बन जी), द्वारका दास अग्रवाल (डीडी भाई), चिरंजीलाल गर्ग (वकील साहब), मोतीचंद बैरी, संतोष सिंह मेहता (वकील), प्यारेलाल गुप्ता आदि युवा संघ की शाखा में नियमित आते रहे। हालांकि अब जब संघ अपने सौ वर्ष पूरे कर रहा है, तब अजमेर में इन प्रथम स्वयं सेवकों में से कोई भी जीवित नहीं है। लेकिन आज अजमेर के हजारों स्वयं सेवकों को अपने प्रथम स्वयं सेवकों पर गर्व है कि अजमेर के अनेक प्रथम स्वयं सेवकों के परिवारों के सदस्य आज भी संघ की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। अजमेर में 1941 में संघ का कार्य तब शुरू हुआ, जब कार्यकर्ताओं को एकत्रित करना आसान नहीं था, लेकिन विश्वनाथ लिमये जैसे प्रचारक के मन में देश को आजाद कराने की ललक थी, इसलिए अकेले दम पर युवाओं का एक संगठन खड़ा किया जो बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बदल गया। संघ के प्रथम स्वयं सेवक और बाद में संघ के विस्तार में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वयंसेवकों के बारे में आगे की किस्तों में विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
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भाजपा बोर्ड वाले अजमेर नगर निगम में अब मुख्यमंत्री को ही दखल देना होगा। पांचवें दिन भी नहीं हो सका घरों से कचरे का संग्रहण।
29 सितंबर को लगातार पांचवें दिन भी अजमेर शहर में घरों से कचरे का संग्रहण नहीं हो सका है। कचरा संग्रहण के ठेकेदारों का आरोप है कि नगर निगम प्रशासन ने ठेका कर्मी का भुगतान नहीं किया है। ठेकेदार की हड़ताल को खत्म करवाने के लिए 27 सितंबर को शहर के भाजपा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने दखल दिया था, लेकिन देवनानी के दखल के बाद भी ठेकेदार ने कचरा संग्रहण का कार्य शुरू नहीं किया। असल में ठेकेदार को भाजपा के ही एक प्रभावशाली नेता का संरक्षण है, इसलिए ठेकेदार किसी की भी नहीं सुन रहा। ऐसे में अब अजमेर नगर निगम में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को ही दखल देना पड़ेगा। पांच दिन से शहर भर से कचरा एकत्रित नहीं होने से जगह जगह गंदगी के ढेर लग गए हैं। त्यौंहारी सीजन में जब घरों से भी कचरा ज्यादा निकल रहा है, तब कचरे का संग्रहण न होना लोगों की परेशानी को और बढ़ा रहा है। निगम के अधिकारियों का कहना है कि नियमों के अनुरूप भुगतान किया गया है, लेकिन ठेकेदार अपनी मनमर्जी कर रहा है। इसे अधिकारियों की लाचारी ही कहा जाएगा कि प्रभावशाली नेता के संरक्षण के कारण ठेकेदार के खिलाफ बड़ी कार्यवाही नहीं हो रही है। चूंकि सफाई के ठेका कार्यों में जबरदस्त भ्रष्टाचार है, इसलिए इस मुद्दे पर कांग्रेस के पार्षद भी चुप हैं। पांच दिनों से कचरे का संग्रहण नहीं होने से सत्तारूढ़ भाजपा की छवि भी खराब हो रही है। भाजपा शहर जिला अध्यक्ष रमेश सोनी खुद भी पार्षद है, लेकिन फिर भी संगठन स्तर पर हड़ताल को तुड़वाने का प्रयास नहीं हो रहा है। नगर निगम से लेकर केंद्र तक भाजपा का शासन है, लेकिन फिर भी एक ठेकेदार को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है। पांच दिनों से कचरा एकत्रित न होने से आम लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
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Thursday, 11 September 2025
अब 10 दिन मां कामाख्या के दरबार में। भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक। मां कामाख्या का महाभारत में भी उल्लेख। खाटू वाले श्याम बाबा की नानी का दर्जा भी।
सब जानते हैं कि असम की राजधानी गुवाहाटी में माँ कामाख्या का दरबार है। माँ कामख्या भारत की 51 शक्तिपीठों में से एक है। सनातन संस्कृति को समझने और मानने वालों का विश्वास है कि इन 51 शक्तिपीठों में से सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठ मां कामाख्या की है। यहां कोई प्रतिमा नहीं है। बल्कि एक प्राकृतिक आकृति है। मां के शरीर की यह प्राकृति आकृति ही दुनिया की शक्ति का केंद्र है। यह प्राकृतिक आकृति, प्राकृतिक झरने से ही संचित होती है। ऐसे अद्भुत शक्ति के दरबार के दर्शन के लिए ही मैं और मेरी पत्नी श्रीमती अचला मित्तल 11 सितंबर से 10 दिवसीय प्रवास पर रहेंगे। मां कामाख्या का दरबार असम के नीलांचल पर्वत पर बना हुआ है। मां कामाख्या के दर्शन के बाद शिलांग और भूटान जाने का भी कार्यक्रम है। ऐसी स्थिति में पाठकों को मेरे ब्लॉग 20 सितंबर तक नहीं मिल पाएंगे। मां कामाख्या के दरबार में जाने से पहले मैंने मां कामाख्या के दरबार की विशेष जानकारी रखने वाली पुष्कर की ज्योतिषाचार्य ज्योति दाधीच से बात की। ज्योति दाधीच पिछले 12 वर्षों से मां कामाख्या के दरबार में नियमित जा रही है। प्रतिवर्ष 22 से 26 जून के बीच मंदिर परिसर में मां कामाख्या का रजोपर्व मनाया जाता है। ज्योति दाधीच का कहना रहा कि जब कोई मंदिर बंद होता है तो दर्शनार्थी नहीं आते हैं, लेकिन मां कामाख्या का मंदिर ऐसा है, जब प्राकृतिक आकृति के दर्शन नहीं होते, लेकिन फिर भी लाखों श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं। इन पांच दिनों में दुनिया भर के ज्योतिषाचार्य और तंत्र विद्या को मानने वाले लोग उपस्थित रहते हैं। यही वजह है कि मंदिर परिसर के निकट ही दिगम्बर दशनाम अखाड़ा भी संचालित होता है। जून में होने वाले रजो पर्व को अंबुबाची का मेला भी कहा जाता है। इसे सिद्ध काल का नाम भी दिया गया है। ज्योति दाधीच ने नवरात्र पर्व पर अष्टमी पर मंदिर परिसर का विशेष महत्व है। तंत्र विद्या की जानकारी रखने वाली ज्योति दाधीच ने बताया कि मां कामाख्या का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है। यही वजह है कि यहां पंच मठी आश्रम भी है। मां कामाख्या को राजस्थान के खाटू वाले श्याम बाबा की नानी का दर्जा भी मिला हुआ है, इसलिए श्याम बाबा के भक्त भी मां कामाख्या के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। मां कामाख्या के माध्यम से सभी 9 ग्रहों पर नियंत्रण भी पाया जा सकता है। मंदिर से मिलने वाले जल का विशेष धार्मिक महत्व है। मां कामाख्या के दरबार के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9782127445 पर ज्योति दाधीच से ली जा सकती है।
सहयात्री:
मेरे साथ इस यात्रा में अजमेर के प्रमुख इत्र कारोबारी देवेश्वर प्रसाद गुप्ता, कपड़ा कारोबारी भगवान चंदीराम, समाजसेवी सुभाष काबरा, महाकाल कुल्फी के निर्माता राजेश मालवीय तथा भीलवाड़ा के बनवारी लाल डाडा भी अपनी पत्नियों के साथ शामिल है। हमारे इस दौरे का संयोजन ट्रेवल एक्सपोलर के प्रतिनिधि देवेंद्र सिंह ने किया है। इच्छुक लोगों को सुगमतापूर्वक धार्मिक और पर्यटन यात्राएं करवाने में देवेंद्र सिंह और उनकी कंपनी को महारथ हासिल है। गत वर्ष सितंबर माह में हमारी आदि कैलाश की यात्रा का संयोजन भी देवेंद्र सिंह ने किया था। मोबाइल नंबर 9001626940 पर देवेंद्र सिंह से संपर्क किया जा सकता है और वेबसाइट www.travelnexplore.in से जानकारी ली जा सकती है
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Tuesday, 9 September 2025
पूर्व सीएम अशोक गहलोत आए इसीलिए डिप्टी सीएम दीया कुमारी को भी आजमेर आना पड़ा। एक किलो मीटर पैदल चलीं, यह भी कोई खबर है ? दिखावा रहा दौरा
राजस्थान में लगातार हो रही अतिवृष्टि को देखते हुए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सभी प्रभारी मंत्रियों और सचिवों को अपने-अपने प्रभार वाले जिलों का दौरा करने के निर्देश दिए थे। इन निर्देशों में कहा गया कि सभी मंत्री और सचिव 5 से 7 सितम्बर तक अपने-अपने जिलों का दौरा करे। मुख्यमंत्री के निर्देशों का अधिकांश मंत्रियों ने पालन किया, लेकिन डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने मुख्यमंत्री के इस निर्देशों का पातन नहीं किया। तीन दिन की निर्धारित अवधि में अजमेर जिले के दौरे पर नहीं आयी। इस बीच 6 सितम्बर को कांग्रेस के नेता और पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अजमेर का दौरा किया और सर्वाधिक प्रभावित स्वास्तिक नगर के पीडितों से 'भी मुलाकात की। गहलोत ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का भी ध्यान आकर्षित किया। पूर्व सीएम के दौरे से स्वास्तिक नगर की समस्या प्रदेश स्तर पर हाइलाइट बोराज गांव के तालाब की पाल निकटवर्ती स्वास्तिक नगर डूब गया हुई। असल मे पाल टूटने से स्वास्तिक नगर की स्थिति को लेकर पूर्व सीएम हमलावर रहे इसलिए डिप्टी सीएम और अजमेर प्रभारी को 8 सितम्बर को जिते की प्रभारी मंत्री दीया कुमारी. अजमेर जाना पड़ा। दीया कुमारी ने स्वास्तिक नगर के पीडितों से मौके पर मुलाकात की और सर्किट हाऊस में अधिकारियों की बैठक कर फसलों की खराबे की स्थिति भी जानी। यह सही है कि यदि पूर्व सीएम गहलौत नहीं आते तो दीया कुमारी भी अजमेर का दौरा नहीं करती। यदि दीया कुमारी को मुख्यमंत्री के निर्देश मानने होते तो वे अन्य मंत्रियों की तरह निर्धारित 5 से 7 सितम्बर के बीच अजमेर का दौरा करती।
दिखावा रहा दौरा :
डिप्टी सीएम 8 सितम्बर को मुश्किल से पहांटे के दौरे पर रही। यह दौरा भी दिखावा ही रहा। स्वास्तिक नगर में जहां 5 दिन बाद भी सैकड़ों पीडितों की आँखो में आंसू है वहां दीया कुमारी एक किलोमीटर पेदल चली। दीया कुमारी के पैदल चलने की खबर अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई हा पैदल चलना भी खबर है? लोकतंत्र में तो सवाल उठता है कि क्या किसी मंत्री का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं को प्रधान सेवक मानते हैं। लेकिन राजस्थान में ऐसा लोकतंत्र है, जिसमें नौकर यदि एक किलोमीटर पैदल चलता है तो उसकी खबर अखबारों में छपती है। इसे दीया। कमारी का मीडिया मैनजमेंट ही कहा जाएगा कि पैदल चलना बड़ी बात हो गई है। दीया कुमारी के दौरे पर स्वास्तिक नगर के पीडितों को कितनी राहत मिलती है यह तो भविष्य ही बताएगा; लेकिन स्वास्तिक नगर पूरी तरह बर्बाद हो गया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि दीया कुमारी ने 8 सितम्बर को जब अजमेर का दौरा किया तो भाजपा का एक भी विधायक साथ नहीं था। असल में दीया कुमारी ने विधानसभा के चलते हुए दौरा किया। सवाल यह भी है कि जब जयपुर में विधानसभा चल रही थी तो दीया कुमारी अजमेर क्यों आई ?
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राजस्थान की विवादित एसआई भर्ती परीक्षा 2021 पर हाईकोर्ट समय बर्बाद न करे। एकल पीठ के फैसले पर रोक लगने से मामला और उलझा।
लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने गत 28 अगस्त को राजस्थान की विवादित एसआई भर्ती परीक्षा 2021 को रद्द कर दिया था। लेकिन 8 सितम्बर को हाई-कोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी। खंडपीठ अब इस मामले में 8 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। यह सही है कि देश में जो न्याय व्यवस्था है उसके अन्तर्गत हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में अपील की जाती है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अंतिम माना जाता है। जब एकलपीठ के फैसले के खिलाफ अपील दायर कर खंडपीठ से विपरीत निर्णय हासिल किया गया है तो स्वाभाविक है कि जब खंडपीठ का कोई फैसला आएगा तो सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जाएगी। यानि कोई भी पक्ष हाईकोर्ट के फैसले को अंतिम नहीं मानेगा। यानि हाईकोर्ट में समय की बर्बादी हो रही है। एकल पीठ के न्यायाधीश समीर जैन ने एसआई भर्ती परीक्षा को रद्द करने का जो आधार बनाया वह मौजूदा भाजपा सरकार की जांच एजेंसियों की रिपोर्ट, मंत्रियों की कमेठी और महाअधिवक्ता का निष्कर्ष था। सभी ने वर्ष 2021 में हुई 859 पदों वाली एसआई भर्ती की परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश की थी। इतना ही नहीं न्यायाधीश समीर जैन ने भर्ती प्रक्रिया करवाने वाले राजस्थान लोक सेवा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष संजय क्षौत्रिय, सदस्य बाबूलाल कटारा, रामूराम रायका तथा मौजूदा सदस्य श्रीमति संगीता आर्य और मंजू शर्मा (अब इस्तीफा दे दिया है) को भी परीक्षा का पेपर लीक करने और अन्य गड़बदियों के लिए जिम्मेदार माना। एकलपीठ का आदेश कांच की तरह साफ था, लेकिन फिर भी जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित की खंडपीठ ने अंतरिम रोक लगा दी। स्वाभाविक है कि अब खंडपीठ में भी लम्बी कानूनी प्रक्रिया चलेगी। असल में इस विवादित र्ती परीक्षा में दो पक्ष है। एक पक्ष चाहता है कि परीक्षा रद्द हो जाए और दूसरा पक्ष चाहता है कि परीक्षा रद्द न हो और उन अभ्यर्थियों के खिलाफ ही कार्यवाही हो जिन्होनें परीक्षा से पूर्व प्रश्नपत्र हासिल किया। जो पक्ष परीक्षा रद्द करवाना चाहता है उसके भरोसे कांग्रेस और आरएलपी जैसे राजनैतिक दल खड़े है जबकि परीक्षा रद्द न हो वाले पक्ष के साथ भाजपा की सरकार खड़ी है। यही वजह रही कि 8 सितम्बर को जब खंडपीठ ने एकलपीठ के फैसले पर अंतरिम रोक लगायी तो सरकार ने अपनी और से कोई विचार नहीं रखा। असत में मुख्यमंत्री भाजनलाल शर्मा भी चाहते है कि इस मामले में पृथकीकरण की नीति अपनायी जाए। यानि जिन अभ्यर्थियों ने गड़बड़ी की है उन्हें ही चयन प्रक्रिया से अलग कर दिया जाए तथा जिन अभ्यर्थियों ने ईमानदारी और मेहनत के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की है उन्हें थानेदार पद पर नियुक्ति दे दी जाए । आयोग ने 859 अभ्यर्थियों का चयन किया था। सरकार द्वारा इन चयनित थानेदारों को ट्रेनिंग भी दे दी गई। लेकिन इस बीच पेपर लीक का कांड उजागर हो गया। एसओजी और एसआईटी ने अब तक 55 ऐसे थानेदारों को जिन अभ्यर्थियों के खिलाफ कोई आरोप सावित पकड़ा है। जिन्होनें गड़बड़ी कर परीक्षा उत्तीर्णकी। नहीं हुआ है वे की सजा उन्हें न मिले । अभी भी 8 सो से भी ज्यादा वे भी चाहते है कि बेईमान अभ्यर्थियों ऐसे अभ्यर्थी है जो स्वय को इमानदार बताते है। परीक्षा रद्द न हो इसके लिए सभी चयनित 8 सौ अभ्यर्थी एकजुट है। एसआई भर्ती का यह मामला खंडपीठ के आदेश से और उलझ गया है। सवाल यह भी है कि जब सरकार और जांच एजेंसियों ने यह मान लिया कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बडी हुई है तो अब क्यों जोर दिया जा रहा पृथकीकरण की नीति पूर क च्छा हो कि इस मामले में जल्द से जल्द सुप्रीम कोर्ट का आदेश सामने आए। रहा है?
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Monday, 8 September 2025
आखिर गहलोत को अब वसुंधरा राजे क्यों पसंद आने लगी है? गहलोत के अजमेर दौरे में पायलट समर्थकों ने दूरी बनाई। बोराज तालाब के सभी पीड़ितों को नगद राशि दिलवाएंगे देवनानी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 6 और 7 सितंबर को अजमेर दौरे पर रहे। 7 सितंबर को मीडिया से संवाद करते हुए गहलोत ने कहा कि यदि राजस्थान में भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे होती तो कांग्रेस को संघर्ष करने में ज्यादा मजा आता। गहलोत ने कहा कि भाजपा में राजे का जितना योगदान है, उसमें तो राजे को ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए। भाजपा में कौन मुख्यमंत्री बने यह भाजपा का आंतरिक मामला है, लेकिन सवाल उठता है कि अब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के तौर पर वसुंधरा राजे को क्यों पसंद कर रहे हैं? राजस्थान में गत पांच बार का इतिहास देखा जाए तो मुख्यमंत्री पद की अदला बदली वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के बीच ही हुई है। गहलोत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने इनमें से दो बार गहलोत ने वसुंधरा राजे से ही सीएम का पद लिया है। यानी वसुंधरा राजे जब जब (दो बार) मुख्यमंत्री बनी तब तब राजस्थान में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। गहलोत को लगता है कि अब जब भजनलाल शर्मा भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री है, तब अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराना मुश्किल है। ऐसे में चौथी बार उनका मुख्यमंत्री बनना संभव नहीं है, इसलिए गहलोत भाजपा में राजे को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहे हैं। यह बात अलग है कि अब कांग्रेस में भी गहलोत की पहले जैसे पकड़ नहीं रही है। गांधी परिवार का तो गहलोत पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। यही वजह है कि वर्ष 2023 में मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद गहलोत को कांग्रेस संगठन में कोई पद नहीं मिला है। गहलोत राजनीति में अपने वजूद को बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं।
पायलट समर्थकों ने दूरी बनाई :
पूर्व सीएम गहलोत दो दिनों तक अजमेर में रहे, लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट के समर्थकों ने गहलोत से पूरी तरह दूरी बनाए रखी। यहां तक कि अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन भी गहलोत के किसी भी समारोह में शामिल नहीं हुए। गत विधानसभा का चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लड़ने वाले महेंद्र सिंह रलावता और हेमंत भाटी ने तो गहलोत की शक्ल देखना भी पसंद नहीं किया। 7 सितंबर को अजमेर के सैकड़ों कांग्रेसी सचिन पायलट का जन्मदिन बनाने के लिए चित्तौड़ के सांवरिया सेठ मंदिर में तो चले गए, लेकिन गहलोत से किसी ने भी मुलाकात नहीं की। अलबत्ता गहलोत के दौरे में आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ और उनके समर्थक लगातार साथ रहे। 7 सितंबर को सर्किट हाउस में हुई गहलोत की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंदर चौधरी, देहात कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भूपेंद्र राठौड़, नगर निगम में प्रतिपक्ष की नेता द्रौपदी कोली, पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती साथ रहे। अजमेर जिले में कांग्रेस के एक मात्र किशनगढ़ के विधायक डॉ. विकास चौधरी ने अपने समर्थकों के साथ गहलोत का स्वागत किया। गहलोत विधायक चौधरी के पैतृक गांव भी पहुंचे और परिजन से मुलाकात भी की। गहलोत के दो दिवसीय दौरे में सचिन पायलट के समर्थकों का न आना यह दर्शाता है कि राजस्थान में कांग्रेस में गुटबाजी बनी हुई है।
नगद राशि मिलेगी:
अजमेर उत्तर क्षेत्र के भाजपा विधायक और विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने बोराज तालाब के टूटने से प्रभावित हुए स्वास्तिक नगर के लोगों को भरोसा दिलाया है कि उनकी हर संभव मदद की जाएगी। नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिकरण के सहयोग से टूटी सड़कें और नालियां तो जल्द ही बनाई जाएगी, साथ ही प्रभावित प्रत्येक परिवार को नगद राशि भी दी जाएगी। इसके लिए देवनानी ने अपने विधानसभा अध्यक्ष पद का एक माह का वेतन देने की घोषणा की। साथ ही भामाशाहों से 25 लाख रुपए दिलवाने का भी वादा किया। देवनानी ने कहा कि यह राशि राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली राशि से अलग होगी, उन्होंने कहा कि मैंने जिला प्रशासन को निर्देश दिए है कि प्रभावित परिवारों के नुकसान पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाए। प्रशासन की इस रिपोर्ट के आधार पर ही पीड़ितों की अतिरिक्त मदद की जाएगी। देवनानी ने कहा कि स्वास्तिक नगर उनके विधानसभा क्षेत्र में आता है, इसलिए क्षेत्र के लोगों की मदद करना उनकी जिम्मेदारी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि 6 सितंबर को पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी स्वास्तिक नगर के पीड़ितों से मुलाकात की थी।
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पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ नादान नहीं बल्कि चतुर राजनेता है, इसलिए अपनी मर्जी से चुप हैं।
जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के पद से गत 21 जुलाई को इस्तीफा दिया था। तभी से धनखड़ चुप है और किसी से भी कोई संवाद नहीं कर रहे। यहां तक कि अपने निकट के रिश्तेदारों से भी मुलाकात नहीं कर रहे हैं। नए उपराष्ट्रपति का चुनाव 9 सितंबर को होना है, लेकिन इससे पहले ही धनखड़ ने उपराष्ट्रपति का अधिकृत सरकारी बंगला छोड़ दिया और हरियाणा के राजनेता अभय चौटाला के दिल्ली के गदईपुर स्थित फार्म हाउस में रहने चले गए। इस बीच विपक्ष के नेताओं और मीडिया के खोजी पत्रकारों ने धनखड़ से मुलाकात करने की कई तरकीब लगाई, लेकिन सफलता नहीं मिली। एक पत्रकार तो अभय चोटाला के फार्म हाउस तक भी पहुंच गया, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने पत्रकार को बंगले के अंदर नहीं जाने दिया। विपक्ष और देश भर के पत्रकार कह रहे है कि सरकार ने धनखड़ को कैद कर रखा है। यह सही है कि विपक्ष के नेता और मीडिया वाले धनखड़ से मुलाकात करने को उतावले हैं, लेकिन धनखड़ कोई नादान राजनेता नहीं बल्कि एक चतुर राजनेता है। इसलिए गत 21 जुलाई से चुप है। जो लोग धनखड़ की प्रवृत्ति को जानते हैं उन्हें अच्छी तरह पता है कि धनखड़ का कोई ताकत कैद कर नहीं रख सकती। धनखड़ अपनी मर्जी से ही पहले उपराष्ट्रपति आवास और फिर अभय चोटाला के फार्म हाउस में शांति से बैठे हैं। सब जानते हैं कि केंद्र सरकार ने पांच वर्ष पहले धनखड़ को अचानक पश्चिम बंगाल का राज्यपाल और फिर तीन वर्ष पहले देश का उपराष्ट्रपति बनाया। धनखड़ जिस चौंकाने वाले अंदाज में राज्यपाल और उपराष्ट्रपति बने, उसी चौकाने वाले अंदाज में धनखड़ ने इस्तीफा भी देना पड़ा। धनखड़ को अच्छी तरह पता है कि वह किन कारणों से उपराष्ट्रपति बने और किन कारणों से उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देना पड़ा। केंद्र सरकार के किसी भी स्तर पर धनखड़ को लेकर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद के कार्यकाल की प्रशंसा की है। धनखड़ को पता है कि उन्हें दो वर्ष पहले उपराष्ट्रपति पद क्यों छोड़ना पड़ा? धनखड़ को यह भी पता है कि आने वाला भविष्य कैसा हागा। इसलिए धनखड़ अब चुप है। उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफे के बाद जो नुकसान हुआ उसे धनखड़ और बढ़ाना चाहते हैं। इस्तीफे के बाद केंद्र सरकार ही धनखड़ को सरकारी बंगले आदि की सुविधा उपलब्ध करवाएगी। धनखड़ के लिए दिल्ली में सरकारी बंगला तैयार भी करवाया जा रहा है। ऐसे में विपक्षी नेताओं और मीडिया को धनखड़ से मुलाकात करने के लिए उतावला नहीं होना चाहिए। मीडिया को इस बात का इंतजार करना चाहिए कि धनखड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कितनी तारीफ करते हैं।
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Sunday, 7 September 2025
लिव इन रिलेशनशिप से उत्पन्न संतान को भी मुआवजा मिलेगा। आखिर हमारा समाज किधर जा रहा है? ऐसे युवाओं के माता-पिता कहां है?
राजस्थान के जोधपुर के अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट संख्या-2 प्रवीण चौधरी ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पीड़ित और उसकी नाबालिग पुत्री को प्रतिमाह दस हजार रुपए का अंतरिम भरण पोषण मुआवजे के रूप में देने के आदेश दिए हैं। अदालत में पीड़िता ने बताया कि वह प्रेम सिंह नाम के युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी और तभी एक बच्ची का जन्म हो गया। लेकिन बच्ची के जन्म के बाद प्रेम सिंह ने उसके साथ रहना छोड़ दिया। अदालत को बताया गया कि लिव इन रिलेशनशिप का इकरारनामा भी हुआ है। इसी आधार पर अदालत ने पीडि़ता को प्रेम सिंह की पत्नी मानते हुए भरण पोषण की राशि दिलवाने के आदेश दिए। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हमारा समाज किधर जा रहा है। जब युवा बगैर शादी के साथ रहेंगे और संतान उत्पन्न करेंगे तो फिर समाज के हालातों का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। जोधपुर के प्रकरण में सवाल उठता है कि जो बच्ची शादी के बगैर ही उत्पन्न हो गई उसका भविष्य क्या होगा? देश के लोकतंत्र में अब लिव इन रिलेशनशिप को भी कानूनी मान्यता मिल रही है। लेकिन भारत के समाज के लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है। सवाल यह भी उठता है कि जो युवक युवती शादी से पहले एक साथ रह रहे हैं, आखिर उनके माता पिता कहां हैं? क्या माता पिता का यह दायित्व नहीं की वे लिव इन रिलेशनशिप जैसी कुप्रथा को रोके। एक माता पिता आखिर ये कैसे स्वीकार कर रहे हैं कि उनका लड़का या लड़की बिना शादी के कैसे रह रहे हैं। अदालत ने भले ही पीड़ित लड़की को भरण पोषण का खर्चा दिलवा दिया हो, लेकिन लिव इन रिलेशनशिप की प्रथा भारतीय समाज के लिए बेहद खतरनाक है। जो माता पिता अपने बच्चों को बड़े महानगर में पढ़ने या नौकरी करने के लिए भेजते हैं, उन्हें ऐसे संस्कार देने चाहिए कि विवाह से पहले बच्चों को जन्म न हो।
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पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अजमेर आकर बोराज तालाब की तबाही को हाइलाइट किया तो क्षेत्रीय भाजपा विधायक और विधानसभा के अध्यक्ष देवनानी ने तीन स्थानों पर हाई मास्क लाइट का लोकार्पण किया। लेपर्ड सफारी की स्कीम की भी बताई। अजमेर में धर्मेन्द्र राठौड़ को गहलोत ने और मजबूती दी।
6 सितंबर को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अजमेर के स्वास्तिक नगर के क्षेत्र का दौरा कर प्रभावित लोगों से मुलाकात की। चार सितंबर को स्वास्तिक नगर के निकट बोराज तालाब की पाल टूटने के बाद स्वास्तिक नगर तबाह हो गया। तीन दिन बाद भी गहलोत जब यहां पहुंचे तो घुटनों तक पानी था। इसलिए गहलोत कार में ही बैठे रहे। कार के गेट पर खड़े होकर ही गहलोत ने प्रभावित लोगों से बातचीत की। गहलोत ने कहा हम तो विपक्ष में है, इसलिए कोई सहायता नहीं कर सकते, लेकिन आपकी पीड़ा को मुख्यमंत्री और क्षेत्र के भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी तक पहुंचाएंगे। रोते हुए लोगों के सर पर हाथ रखकर गहलोत ने कहा कि मैं आपकी पीड़ा को समझ सकता हंू। मेरा प्रयास होगा कि इस क्षेत्र के जितने भी लोग प्रभावित हुए हैं, उन सबका सर्वे करवाकर उचित मुआवजा दिलवाया जाए। मुझे पता है कि यहां सैकड़ों घरों का सामान पूरी तरह बेकार हो गया है। गहलोत जब पानी से भरे स्वास्तिक नगर में आए तो लोगों की बड़ी संख्या में भीड़ जमा हो गई। घुटने तक के पानी में बड़ी मुश्किल से गहलोत की कार को चलाया गया। मौके पर पुलिस का पर्याप्त बंदोबस्त नहीं होने के कारण गहलोत को परेशानी का सामना भी करना पड़ा। देखा जाए तो पुलिस प्रशासन ने गहलोत को भीड़ के बीच अपने हाल पर छोड़ दिया। लेकिन इसके बाद भी गहलोत ने कार पर खड़े होकर ही प्रभावित लोगों से बातचीत की। दौरे के बाद गहलोत ने क्षेत्रीय विधायक देवनानी से फोन पर बात की और लोगों की पीड़ा से अवगत कराया। देवनानी ने गहलोत को भरोसा दिलाया कि प्रभावित लोगों की यथा संभव मदद की जाएगी।
हाई मास्क लाइट का लोकार्पण:
पूर्व सीएम गहलोत ने अजमेर आकर भले ही स्वास्तिक नगर की समस्या को प्रदेश स्तर पर हाई लाइट किया हो, लेकिन क्षेत्रीय विधायक और विधानसभा के अध्यक्ष देवनानी ने 6 सितंबर को ही अपने क्षेत्र के तीन स्थानों पर हाईमास्ट लाइट का लोकार्पण किया। उत्तर क्षेत्र के वरुण सागर रोड स्थित टेलीफोन एक्सचेंज, घाटी वाले बालाजी तथा सावित्री चौराहे पर हाईमास्ट लाइटों का लोकार्पण करते हुए देवनानी ने कहा कि इससे रात के समय यातायात सुगम होगा। इसी के साथ देवनानी ने 6 सितंबर को ही काजीपुरा खरेखडी अजयसर आदि गांव का दौरा कर लेपर्ड सफारी की संभावनाओं को तलाशा। देवनानी ने बताया कि इन गांवों में फैली गंगा भैरव घाटी लेपर्ड सफारी के लिए उपयुक्त है। राज्य सरकार ने इसके लिए 19 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है। देवनानी ने कहा कि लेपर्ड सफारी से अजमेर में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
राठौड़ को मजबूती:
पूर्व सीएम गहलोत के अजमेर आने से आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ को अजमेर की राजनीति में मजबूती मिली है। गहलोत का स्वास्तिक नगर का दौरा राठौड़ की पहल पर ही हुआ है। उल्लेखनीय है कि धर्मेन्द्र राठौड़ अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे को इच्छुक हैं। इसलिए पिछले कई वर्षों से राठौड़ अजमेर में कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। 6 सितंबर को पूर्व सीएम को अजमेर लाकर राठौड़ ने प्रदर्शित किया कि वे उत्तर क्षेत्र की जनसमस्याओं के समाधान के लिए तत्पर हैं। राठौड़ ने कहा कि पूर्व सीएम के दौरे से स्वास्तिक नगर की समस्या प्रदेश स्तर पर हाईलाइट हुई है। उन्होंने कहा कि गहलोत के दौरे के बाद जिला प्रशासन भी सक्रिय हुआ है और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रशासन को निर्देश भी दिए हैं। राठौड़ ने आरोप लगाया कि बोराज तालाब की पाल को टूटने से रोकने के लिए प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की। क्षेत्रीय नागरिकों ने पाल के टूटने के बारे में पहले ही जानकारी दे दी थी। लेकिन फिर भी प्रशासन ने सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए। वे लगातार स्वास्तिक नगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय हैं। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के साथ प्रभावित लोगों को भोजन सामग्री भी उपलब्ध करवाई है। राठौड़ ने कहा कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को स्वयं अजमेर आकर प्रभावित लोगों की पीड़ा को देखना चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (07-09-2025)
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Friday, 5 September 2025
बीसलपुर बांध से प्रति सेकंड 1 लाख 20 हजार क्यूसेक पानी की निकासी। 43 दिनों में जितनी निकासी हुई उससे से दो वर्ष तक जयपुर, जयपुर और टोंक सप्लाई हो सकती थी। पानी की निकासी का विहंगम वीडियो।
अजमेर, जयपुर और टोंक जिले के करीब एक करोड़ लोगों की प्यास बुझाने वाले बीसलपुर बांध से 6 सितंबर को प्रति सेकंड 1 लाख 20 हजार क्यूसेक की रफ्तार से पानी की निकासी की गई। इसके लिए बांध के 8 चैनल गेट खोले गए हैं। चार गेट दो मीटर तथा चार गेट तीन मीटर ऊंचे कर पानी की निकासी हो रही है। चूंकि बांध में लगातार पानी की आवक बनी हुई है और त्रिवेणी पर साढ़े चार मीटर ऊंची चादर चल रही है, इसलिए बांध के 8 गेट खोले गए हैं। बांध पर कुल 18 गेट हैं। बांध के पानी पर निगरानी रखने वाले जल संसाधन विभाग के अधिशासी अभियंता मनीष बंसल ने बताया कि इस वर्ष बीसलपुर बांध गत 24 जुलाई को ही ओवरफ्लो हो गया था, तभी से बांध से पानी की निकासी हो रही है। पिछले 43 दिनों से बांध में पानी की आवक बनी हुई है। चूंकि इस बार ईसरदा बांध में भी पानी एकत्रित किया जा रहा है, इसलिए बीसलपुर बांध के पानी पर विशेष सतर्कता बरती जा रही है। ईसरदा और बीसलपुर बांध के बीच 90 किलोमीटर की दूरी है। दोनों बांध बनास नदी पर बने हुए हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार पिछले 43 दिनों में जितना पानी बीसलपुर से निकाला गया है, उससे अगले दो वर्ष तक जयपुर, अजमेर और टोंक जिले में पेयजल की सप्लाई की जा सकती थी। इन तीनों जिलों में प्रतिदिन एक हजार एमएलडी पानी की सप्लाई होती है। चूंकि इस समय बांध के 8 गेट खोल कर पानी की निकासी हो रही है, इसलिए बांध का विहंगम दृश्य देखने को मिल रहा है। पानी निकासी के विहंगम दृश्य का वीडियो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है।
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श्रीनगर की हजरत बल दरगाह में लगे अशोक चिह्न को तोड़ना देश विरोधी कृत्य है। आखिर कट्टरपंथी जम्मू कश्मीर में शांति क्यों भंग करना चाहते हैं। ऐसा गुस्सा 26 हिंदुओं की हत्या पर भी दिखाना चाहिए था।
5 सितंबर को जम्मू कश्मीर के श्रीनगर की हजरत बल दरगाह में उस समय तनावपूर्ण स्थिति हो गई, जब कुछ कट्टरपंथियों ने दरगाह परिसर में लगे शिलालेख के अशोक चिह्न को पत्थरों से तोड़ दिया। असल में दरगाह परिसर में जम्मू कश्मीर वक्फ बोर्ड ने नवीनीकरण का कार्य कराया था ताकि नमाज सुगमता के साथ पढ़ी जा सके। नवीनीकरण के कार्य के मद्देनजर ही दरगाह परिसर में शिलालेख स्थापित किया गया। इस शिलालेख पर भारत सरकार के प्रतीक अशोक चिह्न को भी अंकित किया गया, लेकिन शिलालेख पर अशोक चिह्न के अंकित होने को कुछ कट्टरपंथियों ने इस्लाम विरोधी माना और गुस्से में पत्थरों से अशोक चिह्न को नष्ट कर दिया। कट्टरपंििायों की यह कार्यवाही पूरी तरह राष्ट्र विरोधी मानी जाएगी। अशोक चिह्न तो भार के शौर्य का प्रतीक है। हर भारतीय के लिए अशोक चिह्न गर्व की बात है। ऐसे शौर्य वाले चिह्न को नष्ट करना राष्ट्र विरोधी कृत्य ही माना जाएगा। अच्छा होता कि हजरत बल दरगाह जैसा गुस्सा विगत दिनों तब दिखाया जाता, जब पाकिस्तान से आए आतंकियों ने धर्म के आधार पर पहलगाम में 26 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी। सवाल उठता है कि आखिर कट्टरपंथी जम्मू कश्मीर की शांति भंग क्यों करना चाहते हैं? सब जानते हैं कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर खासकर घाटी में शांति कायम हुई है। जिस श्रीनगर में वर्ष भर कर्फ्यू लगा रहता था, उस श्रीनगर में अब हजारों कश्मीरी सुकून के साथ पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं। शांति होने की वजह से ही कश्मीर में पर्यटन भी बढ़ा है। जिसका फायदा कश्मीरी मुसलमानों को मिला है। कश्मीर के आम मुसलमानों की भी यह जिम्मेदारी है कि वह कट्टरपंथियों का विरोध करे। यदि कश्मीरी मुसलमान अब भी चुप रहा तो कश्मीर घाटी के हालात पहले जैसे हो जाएंगे।
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सचिन पायलट का 48वां जन्मदिन इस बार 7 सितंबर को सांवरिया सेठ मंदिर में मनेगा। पिता स्वर्गीय राजेश पायलट की पुण्यतिथि समारोह में कांग्रेस के 8 सांसद, 47 विधायक, 83 पूर्व मंत्री, सांसद-विधायक और हजारों कार्यकर्ता शामिल हुए थे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपना 48वां जन्मदिन चित्तौड़ के सांवलिया सेठ मंदिर परिसर में धूमधाम से मनाएंगे। तय कार्यक्रम के अनुसार प्रातः 10 बजे पायलट सांवलिया सेठ के समक्ष धार्मिक अनुष्ठान करेंगे और फिर प्रदेश भर से आए कांग्रेसी नेताओं, कार्यकर्ताओं से शुभकामनाएं ग्रहण करेंगे। समर्थकों के जन्मदिन पर बड़ी संख्या में सांवलिया सेठ मंदिर में एकत्रित होने की योजना बनाई है। पायलट प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन कार्यकर्ताओं के साथ ही मानते हैं। आमतौर पर पायलट का जन्मदिन जयपुर स्थित आवास पर मनाया जाता है, लेकिन इस बार धार्मिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए चित्तौड़ के सांवलिया सेठ के मंदिर में जन्मदिन मनाया जाएगा। अब जन्मदिन को लेकर स्वयं पायलट भी उत्साहित है। कांग्रेस की राजनीति में पायलट को राजस्थान में मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता है। राजनेताओं का जन्मदिन का समारोह शक्ति प्रदर्शन भी होता है। इसी वर्ष 11 जून को सचिन पायलट ने अपने पिता स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि का समारोह दौसा में बड़े स्तर पर आयोजित किया था। पुण्यतिथि के इस समारोह में कांग्रेस के 9 में से 8 सांसद, 55 में से 47 विधायक उपस्थित थे। इसी प्रकार 83 पूर्व मंत्री, सांसद, विधायक भी हजारों कार्यकर्ताओं के साथ समारोह में शामिल हुए। राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, पूर्व सीएम अशोक गहलोत भी दौसा पहुंचे थे। 7 सितंबर को सचिन पायलट के जन्मदिन पर कितने सांसद विधायक शामिल होंगे, इस पर सभी की नजर लगी हुई है।
प्रदेश भर में होर्डिंग:
सचिन पायलट भले ही अपना जन्मदिन चित्तौड़ के सांवलिया सेठ मंदिर में मना रहे हो, लेकिन उनके समर्थकों ने जन्मदिन के होर्डिंग राजस्ािान भर में लगाए हैं। अजमेर में भी वरिष्ठ नेता महेंद्र सिंह रलावता ने उत्तर विधानसभा क्षेत्र में होर्डिंग लगाए हैं। रलावता ने गत बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। रलावता ने बताया कि वे अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ 7 सितंबर को पायलट का जन्मदिन मनाने के लिए सांवलिया सेठ मंदिर जाएंगे। पायलट के जन्मदिन की तैयारियों के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414497073 पर महेंद्र सिंह रलावता से ली जा सकती है।
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स्कूली बच्चों की नोटबुक (कॉपी) जीएसटी से मुक्त, लेकिन नोटबुक के कागज पर जीएसटी 12 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत की। केंद्र सरकार बताए कि बच्चों की पुस्तक और कॉपी कैसे सस्ती होगी।
मीडिया में यह दावा किया जा रहा है कि जीएसटी काउंसिल ने स्कूली शिक्षा से जुड़ी सामग्री को जीएसटी से मुक्त कर दिया है। इस सामग्री में स्कूली बच्चों के काम आने वाली नोट बुक (कॉपी) भी शामिल हैं। पहले नोटबुक पर 12 प्रतिशत जीएसटी थी, लेकिन अब सरकार ने नोटबुक को पूरी तरह कर मुक्त कर दिया है, लेकिन सच्चाई इसके उलट है। राजस्थान के कागज कारोबारी और नोटबुक निर्माता गिरधारी मंगल ने बताया कि सरकार ने भले ही नोटबुक को कर मुक्त कर दिया हो, लेकिन जिस कागज से नोटबुक बनती है, उस पर जीएसटी 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दी हे। सरकार के इस निर्णय से स्कूली बच्चों को नोटबुक 6 प्रतिशत महंगी मिलेगी। पहले जब कागज पर 12 प्रतिशत जीएसटी था, तब कागज के कारोबारी टैक्स क्रेडिट ले लेते थे, लेकिन अब नोटबुक कर मुक्त हो जाने से कागज पर इनपुट भी नहीं लिया जा सकेगा। ऐसे में कॉपी निर्माता लागत मूल्य में वृद्धि करेंगे, जिसका असर नोटबुक का उपयोग करने वाले बच्चों पर पड़ेगा। मंगल ने कहा कि कागज पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाने का असर स्कूली बच्चों की पाठ्य पुस्तकों की कीमत पर भी पड़ेगा। बच्चों को अब पहले के मुकाबले में अब पाठ्य पुस्तक महंगी मिलेगी। मंगल ने कहा कि यदि सरकार को स्कूली बच्चों को पुस्तकें और नोटबुक सस्ती उपलब्ध करवानी है तो कागज को जीएसटी मुक्त करना होगा। नोटबुक को कर मुक्त और कागज पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाने के मामले में देश के जाने माने चार्टेड अकाउंटेंट सुनील गोयल का कहना है कि केंद्र सरकार के वित्त विभाग में बैठे अधिकारियों को जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है। इसलिए नोट बुक को कर मुक्त और कागज पर 18 प्रतिशत का टैक्स लगाने जैसे निर्णय होते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि अभी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस पूरे प्रकरण में मोबाइल नंबर 9829072977 पर गिरधारी मंगल तथा 9414063537 पर सीए सुनील गोयल से और अधिक जानकारी ली जा सकती है।
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Thursday, 4 September 2025
बच्चों के स्कूली बैग और जूतों पर से मोदी सरकार 18 प्रतिशत का जीएसटी हटाना भूल गई।
मोदी सरकार ने हाल ही में जीएसटी की दरों में जो संशोधन किया है उसमें शिक्षा से जुड़ी वस्तुओं को पूरी तरह कर मुक्त किया है। स्कूली बच्चों के काम आने वाली पेंसिल और नोटबुक तक को टैक्स फ्री किया है, लेकिन स्कूली बैग और जूतों पर पूर्व की तरह 18 प्रतिशत जीएसटी बरकरार रखा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार स्कूली बैग और जूतों पर जीएसटी हटाना भूल गई है। इसलिए अब राजस्थान के स्कूली बैग निर्माता और कारोबारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर आग्रह किया है कि स्कूल बैग और बच्चों के जूतों को भी कर मुक्त किया जाए। यदि स्कूली बैग पर 18 प्रतिशत जीएसटी लागू रखा गया तो शिक्षा की अन्य सामग्री को कर मुक्त करने का कोई फायदा नहीं होगा। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सबसे जरूरी वस्तु बैग ही है। ऐसे में यदि बच्चे 18 प्रतिशत टैक्स चुका कर बैग खरीदेंगे तो फिर नोटबुक और पेंसिल पर टैक्स हटाने से कोई राहत नहीं मिलेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा के प्रति आकर्षण होने के कारण स्कूलों में अब बच्चों की संख्या बढ़ी है। बच्चों की संख्या को देखते हुए हर छोटे बड़े शहर में बैग निर्माण की छोटी छोटी फ्रेक्ट्रियां खुल गई है। इन फैक्ट्रियों के माध्यम से हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। यदि स्कूली बैग कर मुक्त होता है तो इसका फायदा बच्चों, अभिभावकों के साथ साथ हजारों श्रमिकों को भी मिलेगा। जयपुर बैग एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल, महामंत्री राकेश ऐलानी, कोषाध्यक्ष सुरेश केसवानी आदि पदाधिकारियों ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द स्कूल बैग को करमुक्त या फिर पांच प्रतिशत वाली श्रेणी में लाया जाए। इस मामले में और अधिक जानकारी बैग एसोसिएशन के प्रतिनिधि अंकुर गर्ग से मोबाइल नंबर 9829890128 पर ली जा सकती है।
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तो क्या देवनानी के अध्यक्ष रहते डोटासरा विधानसभा की कार्यवाही में भाग नहीं लेंगे? अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्या मायने है?
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने 4 सितंबर को धमकी दी कि यदि विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने अपनी कार्यशैली में सुधार नहीं किया तो सदन में देवनानी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। डोटासरा की इस धमकी में कितना दम है, यह तो मानसून सत्र की समाप्ति पर ही पता चलेगा। लेकिन इस धमकी से साफ जाहिर है कि डोटासरा और देवनानी के बीच गत बजट सत्र में जो अदावत हुई, वह अभी भी खत्म नहीं हुई है। बजट सत्र में जब देवनानी और डोटासरा के बीच विवाद हुआ तब से ही डोटासरा ने विधानसभा की कार्यवाही में भाग नहीं लिया है। मानसून सत्र भी 1 सितंबर से चल रहा है, लेकिन डोटासरा ने अभी तक भ सदन में उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई है। डोटासरा लक्ष्मणगढ़ (सीकर) विधानसभा क्षेत्र से विधायक है। डोटासरा ने 4 सितंबर को देवनानी को लेकर जो बयान दिया उससे प्रतीत होता है कि देवनानी के अध्यक्ष रहते हुए डोटासरा विधानसभा में नहीं जाएंगे। इसलिए विधानसभा से बाहर बैठक कर अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दी जा रही है। जहां तक अविश्वास प्रस्ताव के स्वीकृत होने का सवाल है तो कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि देवनानी को अध्यक्ष पद से हटा सके। 200 विधायकों में से भाजपा के 120 विधायक है, जबकि कांग्रेस के विधायकों की संख्या 66 है। संभवत: निर्दलीय और बीएपी जैसे छोटे दलों के विधायकों का समर्थन भी डोटासरा को नहीं मिलेगा। सदन में बहुमत न होने के बाद भी डोटासरा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दे रहे है। जानकारों की माने तो डोटासरा चाहते थे कि देवनानी उन्हें सदन में आने के लिए विशेष तौर से आग्रह करे। लेकिन देवनानी ने अभी तक भी डोटासरा के मनमुताबिक आग्रह नहीं किया है। मानसून सत्र से पूर्व देवनानी ने जो सर्वदलीय बैठक बुलाई उसमें राजनीतिक दलों के अध्यक्षों के बजाए विधानसभा में पार्टी के नेता को आमंत्रित किया। यह बात अलग है कि डोटासरा के दबाव में कांग्रेस विधायक दल के नेता टीकाराम जूली भी सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं हुए। डोटासरा भले ही विधानसभा की कार्यवाही में भाग न ले रहे हो, लेकिन सदन में अध्यक्ष देवनानी को असहज करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इन दिनों जूली भी डोटासरा की ही भाषा बोल रहे है। जूली इस बात से खुश है कि डोटासरा सदन में नहीं आ रहे है। जब डोटासरा सदन में होते हैं तो फिर कांग्रेस के सभी विधायक डोटासरा के इशारे पर ही हंगामा करते है। ऐसा लगता है कि डोटासरा की कांग्रेस विधायक दल के नेता है। मालूम हो कि बजट सत्र में जब विवाद हुआ तब डोटासरा के समक्ष अध्यक्ष देवनानी से माफी मांगने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन तब जूली ने डोटासरा की ओर से माफी मांगी। यानी डोटासरा ने अपने कृत्य के लिए अभी तक भी देवनानी से माफी नहीं मांगी है। डोटासरा ने विधानसभा के अंदर अध्यक्ष के लिए जो अपशब्द कहे उससे देवनानी बहुत व्यथित हुए थे, यहां तक की उनकी आंखों में आंसू तक आ गए।
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सीएम भजनलाल शर्मा ने पूर्व सीएम अशोक गहलोत पर गिरफ्तारी की तलवार लटकाई। गहलोत ने पूर्व राज्यपाल मिश्र से मुलाकात की।
4 सितंबर को राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर गिरफ्तारी की तलवार लटका दी है। अपने जोधपुर दौरे में सीएम शर्मा ने कहा कि एसआई भर्ती पेपर लीक के प्रकरण में जिस पुलिसकर्मी को गिरफ्तार किया गया है, वह लंबे समय तक अशोक गहलोत का पीएसओ रहा है। इस बात की जांच होगी कि पीएसओ के पास परीक्षा से पूर्व प्रश्न पत्र कैसा पहुंचा। कांग्रेस के नेता बार बार पूछ रहे है कि मगरमच्छर कब पकड़े जाएंगे? सीएम ने कहा कि अभी हमने पूर्व मुख्यमंत्री के पीएसओ को पकड़ा है। आगे आगे क्या होता है, यह दिखना शेष है। सीएम शर्मा ने गहलोत के पीएसओ पर पहले भी टिप्पणी की है, लेकिन 4 सितंबर वाली टिप्पणी ज्यादा कठोर है। मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी इसलिए भी महत्व रखती है कि गृह विभाग भी भजनलाल शर्मा के पास ही है। ऐसे में सभी जांच एजेंसियां सीधे तौर पर सीएम के अधीन आती है। पीएसओ की गिरफ्तारी के बाद जांच एजेंसियों को पेपर लीक प्रकरण में जो जानकारी मिली उसी के आधार पर पूर्व सीएम पर गिरफ्तारी की तलवार लटकाई गई है। यह सही है कि पीएसओ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सुरक्षा में तैनात था, इसलिए एसआई भर्ती की परीक्षा का प्रश्न पत्र हासिल किया। हो सकता है कि जांच का दाराय पीएसओ से आगे बढ़े। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए विजिलेंस के आईजी संजय क्षौत्रिय को राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया था। आमतौर पर आयोग का अध्यक्ष पुलिस महानिदेशक को बनाया जाता है, लेकिन गहलोत ने अपनी राजनीतिक इच्छा पूर्तियों के लिए संजय क्षौत्रिय को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। हाल ही में हाईकोर्ट ने एसआई भर्ती परीक्षा को रद्द करते हुए संजय क्षौत्रिय की भूमिका को भी संदिग्ध माना है। हालांकि अब क्षौत्रिय आयोग से कार्यमुक्त हो चुके हैं, लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जांच एजेंसियां संजय क्षौत्रिय से भी नए सिरे से पूछताछ करेंगी। इस मामले में श्रीमती मंजू शर्मा ने हाल ही में आयोग के सदस्य के पद से इस्तीफा दिया है।
गहलोत की पूर्व राज्यपाल मिश्र से मुलाकात:
4 सितंबर को पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने राजस्थान के राज्यपाल रहे कलराज मिश्र से जयपुर में राजभवन में मुलाकात की। मिश्र इन दिनों जयपुर प्रवास पर है। यहां यह उल्लेखनीय है कि मिश्र जब राजस्थान के राज्यपाल थे, तब अशोक गहलोत कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे। मिश्र और गहलोत की मित्रता राजनीतिक क्षेत्रों में हमेशा चर्चा का विषय बनी रही। आमतौर पर कांग्रेस शासित राज्यों में राज्यपालों के साथ मुख्यमंत्री का तनाव बना रहता है। लेकिन अशोक गहलोत और कलराज मिश्र के बीच ऐसी मित्रता रही कि मिश्र के गृह राज्य उत्तर प्रदेश के शिक्षाविदें को राजस्थान में विश्वविद्यालयों का कुलपति नियुक्त किया गया। कांग्रेस के शासन में राज्यपाल की सिफारिश वाले शिक्षाविदों की नियुक्ति को लेकर तब कांग्रेस के हाईकमान ने भी चर्चा हुई। लेकिन गहलोत की वजह से ऐसी नियुक्तियां नहीं रुक पाई।
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Wednesday, 3 September 2025
गरीबों के दुखहर्ता है बाबा रामदेव-भंवरलाल जी। भगवान गणेश लोक कल्याण के प्रतीक है - पीठाधीश्वर रामाकृष्ण महाराज।
तीर्थ नगरी पुष्कर की आईडीएसएमटी कॉलोनी के मैदान पर चल रहे बाबा रामदेव भंडारे का समापन 2 सितंबर को हुआ। भंडारे की आयोजक संस्था जोगणिया धाम के उपासक भंवरलाल जी के सानिध्य में बाबा रामदेव की भव्य आरती हुई। इस आरती में मुझे भी भाग लेने का अवसर मिला। भंडारे के समापन समारोह में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए भंवरलाल जी ने कहा कि लोक देवता बाबा रामदेव गरीबों के दुखहर्ता है। यही वजह है कि पोखरण स्थित समाधि पर भादवा माह में करीब एक करोड़ लोग दर्शन करते हैं। बाबा रामदेव के प्रति लोगों की आस्था का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भादवा माह में राजस्थान भर में बाबा के जातरुओं के लिए जगह जगह भंडारे लगाए जाते हैं। जातरुओं की सेवा के लिए ही जोगणिया धाम की ओर से प्रतिवर्ष भंडारे का आयोजन किया जाता है। जोगणिया धाम की ओर से विभिन्न धार्मिक अवसरों पर आयोजित किए जाते है। चूंकि आईडीएसएमटी कॉलोनी का यह मैदान अब छोटा पड़ता हे, इसलिए अगले वर्ष पुष्कर के किस अन्य स्थान पर भंडारे का आयोजन किया जाएगा। जोगणिया धाम की धार्मिक गतिविधियों के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 8078624852 पर ज्योतिषाचार्य और उपासक भंवरलाल जी से ली जा सकती है।
लोक कल्याण के प्रतीक:
गणेश उत्सव के अंतर्गत अजमेर के रामनगर स्थित पंचोली चौराहा के निकट खुले मैदान में दगड़ सेठ महाराज की स्थापना की गई है। इसी के अंतर्गत 2 सितंबर को नौसर माता के पीठाधीश्वर देवाचार्य रामा कृष्ण महाराज के सान्निय में भव्य आरती हुई। वाटरप्रूफ आकर्षक पंडाल में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए देवाचार्य रामा कृष्ण महाराज ने कहा कि भगवान गणेश लोक कल्याण के प्रतीक है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर संघचालक खाजूवाला चौहान ने कहा कि गणेश जी से हमें कुटुंब प्रबोधन की प्रेरणा मिलती है। जब देवताओं ने स्वर्ग का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा की तो गणेश जी ने अपने माता पिता शिव-पार्वती के चारों तरफ चक्क लगा लिया और विजेता होने की बात कही। आज बदलते परिवेश में माता पिता का समान बेहद जरूरी हो गया है। यदि माता पिता का सम्मान बेहद जरूरी हो गया है। माता पिता का समान बेहद जरूरी हो गया है। यदि माता पिता का समन तो समाज में कोई बुराई नहीं रहेगी। इस अवसर पर भाजपा के शहर जिलाध्यक्ष रमेश सोनी, सामाजिक कार्यकर्ता भूपेश सांखला आदि भी उपस्थित रहे। दगडू सेठ महाराज समिति के अध्यक्ष अभिषेक पंवार ने बताया कि 6 दिसंबर को गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में संजय साहू, हिमांशु साहू, शुभम लश्कर, मुकुल साहू, हर्ष सारस्वत, मोहित गोयल आदि का सक्रिय योगदान है। अजमेर नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर संपत सांखला ने बताया कि कायस्थ मोहल्ला में प्रति वर्ष जो गणेश उत्सव मनाया जाता है, उसी के कुछ कार्यकर्ताओं ने श्रद्धालुओं की मांग पर रामनगर में भी गणेश उत्सव मनाने का निर्णय लिया। उन्हें खुशी है कि रामनगर के गणेश उत्सव में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। रामनगर के गणेश उत्सव के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414415354 पर जुगल पंवार से ली जा सकती है।
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अब 10 श्रमिकों तक के दुकानदारों को श्रम विभाग से लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं। लेकिन लाइसेंस के बगैर जीएसटी का पंजीयन बैंक में चालू खाता, लोन आदि की सुविधा नहीं मिल रही।
राज्य सरकार ने इंस्पेक्टर राज को समाप्त करने के लिए राजस्थान दुकान एवं वाणिज्यिक संस्थान अधिनियम के अंतर्गत एक आदेश जारी कर 10 श्रमिकों तक के दुकानदार को श्रम विभाग से लाइसेंस नहीं लेने की छूट दी। यानी जिन छोटे व्यापारिक संस्थानों पर दस श्रमिक काम करते हैं, उन्हें श्रम विभाग से लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं है। राजस्थान सरकार ने यह आदेश गत 19 अगस्त को जारी किया। यही सही है कि इस आदेश से छोटे दुकानदारों को अब श्रम विभाग से मुक्ति मिल गई है, लेकिन इसके साथ भी दुकानदारों के सामने अनेक नई समस्याएं खड़ी हो ई है। असल में वाणिज्यिक संस्थान के लिए जीएसटी से पंजीयन के लिए श्रम विभाग के लाइसेंस की अनिवार्यता है। इसी प्रकार बैंकों में संस्थान का चालू खाता भी श्रम विभाग के लाइसेंस से ही खुलता है। इतना ही नहीं बैंक भी उन्हीं दुकानदारों को लोन देता है जिसके संस्थान का पंजीयन श्रम विभाग में हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब दुकानदार श्रम विभाग से लाइसेंस नहीं लेंगे तो फिर उन्हें जीएसटी और बैंकिंग की सुविधाएं केसे मिलेगी? सरकार ने लाइसेंस राज से मुक्ति तो दिलाई, लेकिन नई उत्पन्न समस्याओं का समाधान नहीं किया। पीड़ित व्यापारियों के प्रतिनिधि चंद्रशेखर अग्रवाल ने कहा कि अब छोटे दुकानदारों के लिए जीएसटी का पंजीयन स्वघोषणा के आधार पर ही किया जाए। इसी प्रकार बैंकिंग सेवाओं के लिए भी श्रम विभाग का लाइसेंस की अनिवार्यता को समाप्त करवाया जाए। दुकानदारों की समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए दुकानदार एकजुट हो रहे है। व्यापारिक संस्थाओं का शिष्टमंडल जल्द ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात करेगा। दुकानदारों की समस्याओं के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9828133357 पर चंद्रशेखर अग्रवाल से ली जा सकती है।
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अगस्त माह के वेतन से आरजीएचएस की राशि काटने पर राजस्थान के कार्मिकों में गुस्सा। 12 लाख कार्मिकों के वेतन से प्रतिमाह 3 सौ से लेकर 1 हजार की कटौती होती है। आयुर्वेद चिकित्सा के लिए तो योजना बंद पड़ी है।
अगस्त माह के वेतन से आरजीएचएस (राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम) की राशि काटने से राजस्थान के सरकारी कार्मिकों में गुस्सा है। कार्मिकों का कहना है कि जब प्राइवेट अस्पतालों में इलाज बंद कर रखा है और सरकारी अस्पतालों में मरीजों को जरूरत की दवाएं उपलब्ध नहीं है तो फिर कार्मिकों के वेतन से चिकित्सा के नाम पर राशि क्यों काटी गई। सरकारी कार्मिकों अपने वेतन से इसलिए निश्चित राशि कटवाते हैं ताकि प्राइवेट अस्पतालों में समुचित इलाज हो सके। जिस कर्मचारी का बेसिक वेतन 18 हजार रुपए है उसके 265 रुपए प्रतिमाह काटे जाते हैं। इसी प्रकार 54 हजार से अधिक बेसिक वेतन वाले कर्मचारी के हजार रुपए तक काटे जाते हैं। प्रदेश में राज्य सरकार और सरकारी उपक्रमों के करीब 12 लाख कर्मचारी है। एक अनुमान के अनुसार कार्मिकों के वेतन से सरकारी प्रतिमाह सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा की कटौती चिकित्सा सुविधा देने के नाम पर करती है। यदि कार्मिकों का इलाज प्राइवेट अस्पताल में आरजीएचएस के तहत कैशलेस हो रहा हो, तो कर्मचारियों को वेतन से राशि कटवाने पर कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन सरकार और प्राइवेट अस्पतालों के बीच चल रहे झगड़े के कारण राजस्थान के पंजीकृत प्राइवेट अस्पतालों ने कार्मिकों का इलाज करने से मना कर दिया है। सरकारी कर्मचारी एक और अपने वेतन से एक हजार रुपए की कटौती करवा रहा है तो दूसरी ओर अपनी बीमारी का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में नगद पैसे देकर करवाना पड़ रहा है। यही वजह है कि जब अगस्त माह के वेतन से चिकित्सा राशि की कटौती की गई तो कार्मिकों ने गुस्से का इजहार किया है। कार्मिकों का कहना है कि जब तक प्राइवेट अस्पतालों में इलाज शुरू नहीं होता, तब तक वेतन से कटौती न की जाए। जहां तक सरकारी अस्पताल का सवाल है तो कार्मिकों को उनकी बीमारी से जुड़ी दवाएं उपलब्ध नहीं हो रही है। ऐसे में दवाएं बाजार से खरीदनी पड़ रही है। यहां उल्लेखनीय है कि करीब एक हजार करोड़ रुपए का बकाया होने के कारण प्रदेश के प्राइवेट अस्पतालों ने सरकारी कर्मचारियों का कैशलेस इलाज करना बंद कर रखा है। प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि सरकार अपने कार्मिकों का इलाज तो करवा लेती है, लेकिन इलाज की राशि का भुगतान नहीं करती।
आयुर्वेद चिकित्सा में तो इलाज बंद:
अपने कार्मिकों का इलाज एलोपैथी पद्धति से करवाने की अनुमति सरकार ने दे रखी है, लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा से इलाज को सरकार ने खुद ही बंद कर रखा है। सरकार की रोक के बाद जब कोई भी कार्मिक अपनी बीमारी का इलाज आयुर्वेद के प्राइवेट अस्पतालों में नहीं करवा पा रहा है। जबकि प्रदेश के हजारों मरीज आयुर्वेद पद्धति से अपना इलाज करवाना चाहते हैं।
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Monday, 1 September 2025
गणपति के पंडाल के माध्यम से मिल रही है महापुरुषों के बारे में जानकारी। अजमेर के कायस्थ मोहल्ले में गणेश उत्सव में श्रद्धालुओं की भीड़।
इसे भगवान गणेश जी की कृपा ही कहा जाएगा कि मुझे 31 अगस्त को अजमेर स्थित कायस्थ मोहल्ला के गुलाब प्रांगण में सजे लंबोदर राजा के दरबार में आरती करने का अवसर मिला। इस अवसर पर नगर निगम के डिप्टी मेयर नीरज जैन, बीके कौल नगर स्थित बीर बाल हनुमान मंदिर के उपासक भूपेश सांखला आदि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम से जुड़े कमल पंवार ने बताया कि लंबोदर राजा समिति राजस्थान की एकमात्र संस्था है जो रजिस्टर्ड है। इस संस्था के माध्यम से ही गत 19 वर्षों से इस स्थल पर गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। इस बार भी 27 अगस्त से शुरू हुआ उत्सव 6 सितंबर तक चलेगा। 6 सितंबर को दोपहर को शोभायात्रा निकाल कर प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा। इस बार लंबोदर राजा का दरबार शिवाजी महाराज के किले के अनुरूप तैयार किया गया है। दरबार में रानी अहिल्याबाई, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई जैसे महापुरुषों की तस्वीरें भी लगाई गई है ताकि युवा पीढ़ी को देश के महापुरुषों के बारे में जानकारी दी जा सके। तीन सौ वर्ष पहले जब प्रतिकूल हालातों में रानी अहिल्या बाई ने देश के धार्मिक स्थलों का पुनरुद्धार किया तब यह कार्य चुनौतीपूर्ण था। इतिहास गवाह है कि महाराणा प्रताप ने किस प्रकार अपनी मातृभूमि की रक्षा की। लंबोदर राजा का उत्सव मनाने के पीछे युवा पीढ़ी को महापुरुषों के जीवन से अवगत कराना भी है। उन्होंने बताया कि इस उत्सव को मनाने में समिति के अध्यक्ष उत्तम पंवार, प्रकाश ओझा, कमल वर्मा, टीकम सोनगरा सहित 45 सदस्यों का सक्रिय योगदान रहता है। इस धार्मिक आयोजन के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9358805477 पर ली जा सकती है।
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अब संगीता आर्य को भी आरपीएससी के सदस्य के पद से इस्तीफा देना चाहिए। मंजू शर्मा के इस्तीफे के लिए पति कुमार विश्वास का आभार। भजन सरकार अब नए सदस्यों की नियुक्ति जल्द करे।
29 अगस्त को ब्लॉग संख्या 11580 में मैंने लिखा था कि यदि सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास में तिनके जितनी भी नैतिकता है तो अपनी पत्नी श्रीमती मंजू शर्मा का राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) के सदस्य के पद से इस्तीफा दिलवा दें। मैंने यह बात 28 अगस्त को एसआई भर्ती के प्रकरण में हाईकोर्ट के फैसले के संदर्भ में कही। कोर्ट ने इस भर्ती परीक्षा में हुई गड़बड़ी के लिए सदस्य मंजू शर्मा को भी जिम्मेदार माना। अब 1 सितंबर को मंजू शर्मा ने नैतिकता के आधार पर अपना इस्तीफा राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े को भेज दिया। मंजू शर्मा के इस्तीफे के लिए कवि कुमार विश्वास का आभार प्रकट किया जाना चाहिए। असल में श्रीमती मंजू शर्मा की योग्यता यही थी कि वे कुमार विश्वास की पत्नी है। पिछली कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुमार विश्वास को कांग्रेस के पक्ष में कतिवाएं लिखने के लिए पत्नी मंजू शर्मा को आयोग के महत्वपूर्ण सदस्य के पद पर नियुक्ति दी थी। अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए राजस्थान के अनेक स्थानीय निकायों ने अपने कवि सम्मेलनों में कुमार विश्वास को आमंत्रित कर पांच-पांच लाख रुपए का भुगतान किया। मंजू शर्मा का इस्तीफा दिलवाने में भी पति कुमार विश्वास की सलाह रही। असल में हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद कुमार विश्वास को भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा था। अच्छा हुआ कि कुमार विश्वास ने हाईकोर्ट की टिप्पणी के तीन दिन बाद ही पत्नी मंजू शर्मा से इस्तीफा दिलवा दिया।
संगीता आर्य भी इस्तीफा दे:
हाईकोर्ट ने 28 अगस्त को अपने आदेश में एसआई भर्ती परीक्षा की गड़बडिय़ों के लिए आयोग की मौजूदा सदस्य श्रीमती संगीता आर्य को भी जिम्मेदार माना है। मंजू शर्मा के इस्तीफे के बाद अब संगीता आर्य को भी आयोग के सदस्य के पद से इस्तीफा देना चाहिए। सवाल उठता है कि जब नैतिकता के आधार पर जब मंजू शर्मा इस्तीफा दे सकती है तो फिर संगीता आर्य क्यों नहीं? पिछली कांग्रेस सरकार में संगीता आर्य की नियुक्ति भी इसलिए हुई कि वह तत्कालीन मुख्य सचिव निरंजन आर्य की पत्नी थी। सब जानते हैं कि अशोक गहलोत ने अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए राजनीति की सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया था। निरंजन आर्य मुख्य सचिव रहते हुए गहलोत के इशारे पर काम करते रहे, इसलिए संगीता आर्य को आयोग का सदस्य बना दिया। निरंजन आर्य की गहलोत के प्रति कितनी वफादारी रही, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सेवानिवृत्ति के बाद निरंजन आर्य ने गत विधानसभा का चुनाव सोजत से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लड़ा। देखना होगा कि निरंजन आर्य अपनी पत्नी संगीता से कब इस्तीफा दिलाते हैं।
नए सदस्यों की नियुक्ति जल्द हो:
आयोग में अध्यक्ष सहित 10 सदस्यों का प्रावधान है। मंजू शर्मा के इस्तीफे के बाद आयोग में अब अध्यक्ष सहित चार सदस्य रह गए है। यदि श्रीमती संगीता आर्य भी अगले एक दो दिन में इस्तीफा दे देंगी तो आयोग में अध्यक्ष सहित मात्र तीन सदस्य रह जाएंगे। ऐसे में राजस्थान की भजन सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह आयोग में जल्द से जल्द नए सदस्यों की नियुक्ति करे। आयोग में सदस्यों की कमी के कारण परीक्षाओं का काम प्रभावित होता है। आयोग में अध्यक्ष ही सदस्यों को भर्ती परीक्षाओं का प्रभारी बनाते हैं। मौजूदा समय में आयोग के माध्यम से पचास हजार से भी ज्यादा भर्तियां होनी है। आरएएस 2023 परीक्षा सहित कई प्रतियोगी परीक्षाओं के इंटरव्यूज भी चल रहे है। संगीता आर्य को छोड़ दिया जाए तो आयोग में इस समय अध्यक्ष यूआर साहू, सदस्य कर्नल केसरी सिंह राठौड़ व प्रोफेसर अयूब ही आयोग का संपूर्ण कार्य कर रहे हैं। 10 की जगह तीन सदस्यों के काम करने से आयोग में काम की गति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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मकानों को होटल मानकर सीज करने से अजमेर दरगाह के खादिमों में रोष। जायरीन को मेहमान मानकर ठहराने को घरेलू पर्यटन को बढ़ावा। जुमे की नमाज से पहले ईद मिलादुन्नबी का जुलूस संपन्न होगा। ड्रोन से निगरानी भी।
अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह के आसपास के क्षेत्रों में बने मकानों को होटल मानकर सीज करने पर दरगाह के खादिम समुदाय ने नाराजगी प्रकट की है। 1 सितंबर को नगर निगम के आयुक्त को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि निगम प्रशासन ने हाल ही में जो सर्वे करवाया है वह भेदभावपूर्ण है। इस सर्वे के बाद दरगाह क्षेत्र के मकानों को सीज करने की कार्यवाही शुरू की गई है। पांच सौ से भी ज्यादा लोगों को नोटिस देकर कहा गया है कि उनके मकान होटल के रूप में इस्तेमाल हो रहे है। जबकि नगर निगम से आवासीय नक्शा स्वीकृत है। यानी मकानों में होटल चल रही है। दरगाह क्षेत्र के पार्षद अमान चिश्ती, सैयद मुस्तफा चिश्ती, बाबर चिश्ती, फकीर चिश्ती, अनवर मुजाहिद काजमी, जावेद चिश्ती, सुल्तान अली, बकार जमाली आदि ने बताया कि दरगाह के आसपास अधिकांश मकान दरगाह के खादिमों के है। बरसों से यह परंपरा चली आ रही है कि दरगाह में जियारत के लिए आने वाले जायरीन को घर का मेहमान मानकर खादिम अपने घरों में ही ठहराते हैं। अधिकांश खादिमों के मकानों में ही जायरीनों को भोजन आदि की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाती है। इस परंपरा के अंतर्गत ही आने वाले मेहमानों का रिकॉर्ड रखने की बात सामने आई तो अनेक खादिमों ने गेस्ट हाउस का लाइसेंस ले लिया। मकान नुमा गेस्ट हाउस में जायरीन को बरसों से ठहराया जा रहा है, लेकिन अब नगर निगम ने मकान नुमा गेस्ट हाउस को होटल मान लिया है और कमर्शियल गतिविधि के नाम पर सीज किया जा रहा है। दरगाह से जुड़े खादिमों ने कहा कि खादिम समुदाय तो घरेलू पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। उत्तराखंड सरकार ने घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ही पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को अपने मकान होमस्टे में बदलने के लिए आर्थिक सहायता दी है। अब बड़ी संख्या में पर्यटक इन्हीं होमस्टे में ठहरते हैं। एक ओर उत्तराखंड में होम स्टे योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है तो दूसरी ओर अजमेर में खादिमों के मकानों को सीज किया जा रहा है। खादिम समुदाय ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मांग की है कि अजमेर में मकानों को सीज करने की कार्यवाही पर तुरंत रोक लगाई जाए। नगर निगम की सीजिंग की कार्यवाही के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9828368942 पर पार्षद अमान चिश्ती से ली जा सकती है।
ड्रोन से होगी निगरानी:
प्रतिवर्ष की तरह इस बार ईद मिलादुन्नबी का जुलूस पांच सितंबर को अजमेर में निकाला जाएगा। जुलूस की आयोजक संस्था सूफी इंटरनेशनल के सचिव नवाब हिदायतुल्ला ने बताया कि जुलूस प्रातः 9 बजे ढाई दिन के झोपड़े से रवाना होकर ऋषि घाटी बाईपास पहुंचेगा। 10 बजे ख्वाजा साहब की दरगाह के बाहर जुलूस का भव्य स्वागत होगा। चूंकि पांच सितंबर को शुक्रवार है, इसलिए जुमे की नमाज से पहले जुलूस का समापन हो जाएगा। जुलूस के सभी धार्मिक कार्यक्रम दोपहर 12:30 बजे से पहले संपन्न करा लिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि जुलूस के दौरान करीब डेढ़ हजार कार्यकर्ता विभिन्न इंतजामों को संभालेंगे। जुलूस की निगरानी ड्रोन के माध्यम से की जाएगी। जुलूस मार्ग पर कोई गंदगी न हो इसके लिए सफाई के विशेष इंतजाम किए गए हैं। जुलूस में डीजे का भी उपयोग नहीं होगा। जुलूस को कौमी एकता की भावना से निकाला जाएगा। कांग्रेस के साथ साथ भाजपा के नेताओं को भी जुलूस में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया है। जुलूस में ख्वाजा साहब की दरगाह से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधि भी भाग लेंगे। जुलूस की व्यवस्थाओं के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9214003786 पर नवाब हिदायतुल्ला से ली जा सकती है।
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मोदी, जिनपिंग और पुतिन की मित्रता वाले दृश्य ट्रंप को चिढ़ाने के लिए काफी है। चीन और रूस दोनों ने भारत को महत्व दिया। इसलिए एससीओ की बैठक से पहले जेलेंस्की ने मोदी से फोन पर बात की।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक 31 अगस्त और 1 सितंबर को चीन के तानजियान शहर में हुई। इस संगठन में एशियाई देश शामिल हैं। इसलिए दो दिवसीय बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हुए। 20 देशों में सबसे ज्यादा चर्चा इन तीनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की रही। एससीओ की बैठक तब हुई है, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ का हंटर दुनिया भर में चला रहे है। रूस से तेल खरीदने पर ट्रंप ने भारत पर भी टैरिफ का डबल हंटर चलाया, लेकिन एक सितंबर को बैठक में मोदी, जिनपिंग और पुतिन की मित्रता के जो दृश्य सामने आए, वे डोनाल्ड ट्रंप को चिढ़ाने के लिए काफी है। ट्रंप को उम्मीद थी कि पचास प्रतिशत टैरिफ लगाने से भारत डर जाएगा, लेकिन मोदी ने एससीओ की बैठक में जिस आत्मविश्वास के साथ जिनपिंग और पुतिन से मुलाकात की उससे साफ जाहिर है कि भारत ने अमेरिका के टेरिफ वाले दबाव को नकार दिया है। न्यूज चैनलों पर जो वीडियो दिखाए जा रहे हैं, उनमें मोदी, जिनपिंग और पुतिन को हंसते हुए नजर आ रहे है। जिनपिंग और पुतिन ने एक साथ मोदी के साथ मित्रता प्रकट की। ये दृश्य बताते हैं कि ट्रंप के टैरिफ वार में जिनपिंग और पुतिन मोदी के साथ खड़े हैं। दुनिया में अब अमेरिका, चीन, रूस के साथ साथ भारत को भी महाशक्ति माने जाने लगा है। एससीओ की बैठक में मोदी ने जिनपिंग और पुतिन के साथ द्विपक्षीय संवाद भी किया। स्वाभाविक है कि इस संवाद में तीनों देशों के बीच अहम मुद्दा पर विमर्श हुआ। पूरी दुनिया ने देखा कि टं्रप से मुकाबला करने के लिए मोदी, जिनपिंग और पुतिन एक साथ कैसे खड़े हैं।
जेलेंस्की ने फोन पर बात की:
एससीओ की बैठक शुरू होने से पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भारत के पीएम मोदी से फोन पर भी बात की। असल में अब जेलेंक्सी के भी समझ में आ गया है कि रूस को अमेरिका नहीं, बल्कि भारत समझा सकता है। विगत दिनों ट्रंप ने पुतिन को अमेरिका के अलास्का में बुलाकर यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध पर वार्ता की थी, लेकिन इसके बाद भी रूस ने यूक्रेन पर हमले जारी रखे। रूस के हमलों से यूक्रेन बुरी तरह पस्त है। यूक्रेन चाहता है कि कोई सम्मानजनक समाधान निकालकर युद्ध को समाप्त किया जाए। जेलेंस्की को भरोसा है कि पुतिन भात के पीएम मोदी की बात मान सकते हैं।
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मैंने तो अपने ही शासन में कहा था आरपीएससी बेईमान है-सचिन पायलट। जिन सदस्यों पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है उन्हें तत्काल हटाया जाए। ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले सदस्यों की नियुक्ति हो।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट ने कहा है कि मैंने तो अपने शासन में ही राजस्थान लोक सेवा आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। पांच वर्ष पहले मैंने जो कहा उसे ही अब हाईकोर्ट ने दोहराया है। हाईकोर्ट ने बहुचर्चित एसआई भर्ती परीक्षा के पेपर लीक में सीधे तौर पर आयोग के अध्यक्ष और चार सदस्यों को जिम्मेदार माना है। मैंने भी पांच वर्ष पहले कहा था कि पेपर लीक आयोग से ही हो रहे हैं। मैंने भी आयोग के सदस्यों की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि राजस्थान में युवाओं को अधिकांश सरकारी नौकरियों आयोग के माध्यम से ही मिलती है, लेकिन इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि आयोग के सदस्य ही पेपर बेचने का काम कर रहे है। पायलट ने कहा कि आयोग में आमूल चूल परिवर्तन की जरूरत हे। ताकि ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ भर्ती परीक्षाएं हो सके। पायलट ने कहा कि हाईकोर्ट ने आयोग के जिन दो मौजूदा सदस्यों संगीता आर्य और मंजू शर्मा पर गंभीर टिप्पणी की है उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाया जाना चाहिए। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि इन दोनों सदस्यों को किस प्रकार से हटाया जाता है। वैसे तो हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद इन दोनों सदस्यों को स्वत: ही इस्तीफा दे देना चाहिए। पायलट ने कहा कि यदि ये दोनों सदस्य इस्तीफा नहीं देते हैं तो इन्हें आयोग की सभी परीक्षाओं की प्रक्रिया से अलग रखा जाए। यहां यह उल्लेखनीय है कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए सचिन पायलट ने अजमेर से जयपुर तक पद यात्रा निकाली थी। इस पदयात्रा में जो तीन प्रमुख मांगे रखी गई उनमें पेपर लीक और आरपीएससी में बदलाव की मांग भी शामिल थी। यह बात अलग है कि तब कांग्रेस के शासन में पायलट की कोई सुनवाई नहीं हुई।
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देश भर के युवाओं को राजस्थान की तर्ज पर मिले ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ। ओबीसी आरक्षण की विसंगतियों को भी दूर करने के लिए आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के युवाओं को राजस्थान की तर्ज पर आरक्षण का लाभ देने तथा ओबीसी वर्ग में आरक्षण की विसंगतियों को दूर करने के लिए आरटीडीसी के पूर्व धर्मेंद्र राठौड़ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। राठौड़ ने पत्र में कृषक वर्ग की जाट, बिश्नोई समेत राज्य की 671 ओबीसी जातियों पर ध्यान भी केंद्रित किया, जो केंद्र स्तर पर जनरल और ईडब्ल्यूएस श्रेणी में आती हैंए लेकिन इनमें महिला प्रतिनिधित्व बेहद कम होने को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ वाले राष्ट्र के लिए चिंताजनक बताया है। राठौड़ ने बताया कि केंद्र सरकार ने 12 जनवरी 2019 को ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर सामाजिक न्याय की नई नींव रखी थी। कई राज्य सरकारों ने इसे अपनाया भी, लेकिन ईडब्ल्यूएस में मौजूद असंगतियां विशेष रूप से कृषक समुदाय और महिलाओं को पूर्ण लाभ से वंचित कर रही हैं। कठोर प्रावधानों के कारण यह आरक्षण खोखला साबित हो रहा है। उदाहरणस्वरूप संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में ईडब्ल्यूएस आवेदकों की संख्या एससी/एसटी से 2.5 से 3.5 गुना कम है, जबकि एसएससी की प्रमुख भर्तियों में यह अनुपात 4 से 4.4 गुना कम दर्ज किया गया है। यह दर्शाता है कि केंद्र की ईडब्ल्यूएस प्रमाण-पत्र जारी करने की शर्तें व्यावहारिक नहीं हैं। । इसके विपरीत, राजस्थान सरकार ने 20 अक्टूबर 2019 को ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सरलीकृत कर राहत प्रदान की, जिसके परिणामस्वरूप पिछले छह वर्षों में राज्य स्तर की भर्तियों में क्रांति आ गई। सामान्य वर्ग की राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य सहित तमाम जातियां अब सरकारी नौकरियों की ओर मुड़ रही हैं, जिससे सामाजिक पुनरुत्थान हुआ है। यह लहर जैसलमेर, बाड़मेर जैसे शैक्षणिक रूप से पिछड़े इलाकों में क्रांतिकारी साबित हुई है। राजस्थान में केवल 8 लाख रुपये की वार्षिक आय सीमा है, जबकि केंद्र में आय के साथ भूमि और भूखंड संबंधी शर्तें जोड़ी गई हैं, जो निरर्थक हैं। किसी अन्य आरक्षण प्रणाली में ऐसी शर्तें नहीं हैं, तो ईडब्ल्यूएस में क्यों? राठौड़ ने मांग की कि केंद्र सरकार राजस्थान मॉडल अपनाकर ईडब्ल्यूएस आरक्षण को प्रभावी बनाए, ताकि कृषक और महिला वर्ग को न्याय मिल सके। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मांगें नहीं मानी गई तो ईडब्ल्यूएस आंदोलन और मुखर होगा।
केंद्र सरकार में ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रावधान:
परिवार की आय 8 लाख रुपये से अधिक न हो। परिवार के पास 5 एकड़ से अधिक कृषि भूमि न हो। 1000 वर्ग फुट या इससे अधिक आवासीय फ्लैट न हो। नगरपालिका क्षेत्र में 100 वर्ग गज या इससे अधिक आवासीय प्लॉट न हो। नगरपालिका क्षेत्र से बाहर ग्रामीण क्षेत्रों में 200 वर्ग गज या इससे अधिक आवासीय प्लॉट न हो।
राजस्थान सरकार में ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रावधान:
परिवार की आय 8 लाख रुपये से अधिक न हो। भूमि और भूखंड का उल्लेख होने से केंद्र में ईडब्ल्यूएस प्रमाण.पत्र जारी करने में कठिनाई आती है। अधिकारी लाभार्थी की अन्य शहरों या जिलों में संपत्ति की जांच नहीं कर पाते जिससे लाखों पात्र व्यक्ति लाभ से वंचित रह जाते हैं। राजस्थान में कुल आय की शर्त होने से प्रक्रिया सरल और प्रभावी है। इन 6 सालों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के कारण लाखों परिवारों और कई जातियों के जीवन स्तर में आमूलचूल परिवर्तन आया है। इस पत्र से देश में शांत पड़े ईडब्ल्यूएस आरक्षण में हलचल शुरू होगी, क्योंकि धर्मेंद्र राठौड़ को क्षत्रिय समाज सहित ईडब्ल्यूएस के पात्र समाज ईडब्ल्यूएस वर्ग का चलता फिरता मंडल आयोग कहते हैं और राठौड़ के प्रयास से गहलोत ने म्ॅै का सरलीकृत किया वह पूरे देश में मिसाल बन गई। इन विसंगतियों के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9571684444 पर धर्मेन्द्र राठौड़ से ली जा सकती है।
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