Tuesday, 14 October 2025
अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 16 ================ स्वयंसेवकों के प्रेरणा स्रोत रहे धर्मनारायण जी। अजमेर में पहली बार 600 स्वयंसेवकों का पथ संचालन।
अजमेर में वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय रहे धर्मनारायण जी सही मायने में चलती फिरती ज्ञान और अनुशासन की पाठशाला थे। जो भी व्यक्ति एक बार संपर्क में आया वह फिर धर्मनारायण जी द्वारा दी गई शिक्षा के अनुरूप ही आचरण करता था। विगत दिनों ही 82 वर्ष की उम्र में धर्मनारायण जी निधन हुआ। जीवन के अंतिम समय में भी वे विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहे। हजारों स्वयंसेवक आज भी उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं। 70 के दशक में धर्मनारायण जी संघ के प्रचारक की भूमिका में रहे। पहले वे भीलवाड़ा के जिला प्रचारक। उस समय भंवर सिंह जी शेखावत विभाग प्रचारक थे। शिक्षा वर्ग में मुख्य शिक्षक की भूमिका के बाद धर्मनारायण जी को अजमेर में विभाग प्रचारक बनाया गया। उस समय अजमेर, भीलवाड़ा और चित्तौड़ को मिलाकर प्रांत हुआ करता था। धर्मनारायण जी ने होली के पर्व पर अजमेर में एक नई परंपरा शुरू की। सभी स्वयंसेवकों को लेकर टोली के रूप में परकोटे में भ्रमण करते थे। साथ में एक थैला जिस पर माइक लगा होता था। स्वयंसेवकों की टोली घोष की आवाज के साथ गीत गाते हुए निकलती थी। स्वयं धर्मनारायण जी भी गीत गाते थे। वरिष्ठ स्वयंसेवक भाऊ प्रभुदास जी का तब जगाया तुमको कितनी बार गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। पुष्कर में हुई एक वैचारिक गोष्ठी में स्वयंसेवकों ने निर्णय लिया कि बड़ा पथ संचलन निकाला जाए। तब अजमेर में पहली बार 600 स्वयंसेवकों का पथ संचलन निकाला। उन्हीं दिनों पटेल मैदान पर गुरुजी माधव सदाशिव गोलवरकर जी का कार्यक्रम भी हुआ। उन दिनों अजमेर में स्वयंसेवकों का खास प्रभाव था। उन्हीं दिनों भंवर सिंह जी ने तीन बुलेट गाड़ी खरीदी। चित्तौड़ और भीलवाड़ा के साथ साथ एक बुलेट अजमेर को भी दी गई। तब बुलेट से ही प्रवास होता था। तब चित्तौड़ में गुणवंत सिंह जी कोठारी तथा भीलवाड़ा में जयंती जी प्रचारक की भूमिका में थे। आपातकाल के दौरान यह बुलेट गाड़ी प्रचारकों के बहुत काम आई। आपातकाल लगने से पहले पुलिस ने संघ के हाथी भाटा कार्यालय में छापामार कार्यवाही की। चूंकि धर्मनारायण जी को पहले ही खबर लग गई थी, इसलिए वे साइकिल पर ही निकल गए। बाद में रेडियो पर सुना कि देश में आपातकाल लागू हो गया है। तब संघ पर भी प्रतिबंध लगाया गया। गिरफ्तारी से बचने के लिए धोती कुर्ता की जगह पेंट शर्ट पहनी और बांदनवाड़ा पहुंचकर ठाकुर रघुवीर सिंह जी के यहां प्रवास किया। आपातकाल के दौरान संघ योजना के अनुरूप धर्म नारायण जी 32 घरों में रहे। किसी एक स्वयंसेवक के घर ज्यादा दिन नहीं ठहरते थे। आपातकाल के दौरान जो अत्याचार हुए उसी का परिणाम रहा कि 1977 में कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी की हार पर तब गंज में मे वालों के स्थान पर भी पटाखे छोड़े गए। सरकार की ज्यादतियों के विरोध में स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह भी किया। तब अनेक स्वयंसेवकों को जेल जाना पड़ा। जो स्वयंसेवक जेल जाते थे, उनके कसे अदालतों में ओंकार सिंह जी लखावत और नानकराम जी इसराणी निशुल्क लड़ते थे। एक बार जब एक स्वयंसेवक को दो वर्ष की जेल की सजा हुई तो लखावत जी ने संबंधित न्यायाधीश के साथ असहयोग किया। न्यायाधीश के व्यवस्ािर की शिकायत राज्यपाल तक से की गई। इसका असर न्यायाधीश पर पड़ा और फिर स्वयंसेवकों के मुकदमों में न्याय पूर्ण कार्यवाही होने लगी। राम जन्मभूमि आंदोलन में धर्म नारायण जी मध्य प्रदेश महाकौशल प्रांत के सह प्रचारक के रूप में रहे, लेकिन उनका अजमेर से लगाव कभी समाप्त नहीं हुआ। उन्हें जब भी समय मिलता तब वे अजमेर आते और संघ कार्यालय में प्रवास करते। अब जब संघ के सौ वर्ष पूरे हुए हैं, तब धर्मनारायण जी जैसे स्वयंसेवकों को हर स्वयंसेवक याद कर रहा है। धर्मनारायण जी ने अपना पूरा जीवन संघ कार्यों को दिया। उनका हमेशा प्रयास रहा कि शाखा में अधिक से अधिक स्वयंसेवक आए और समाज में सकारात्मक माहौल बने। वे हमेशा नकारात्मकता के खिलाफ रहे। उनका मानना रहा कि सकारात्मकता से ही संघ के विचारों को आगे बढ़ाया जा सकता है। धर्मनारायण जी जैसे प्रचारकों की सोच के कारण ही आज संघ समाज सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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अजमेर के कांग्रेसी शोले फिल्म के किरदार असरानी की तरह व्यवहार न करें। पांच हजार कार्यकर्ताओं से मिलकर कांग्रेस के हालात समझ लिए है। अध्यक्ष के लिए नाम प्रस्तावित करने से पहले सचिन पायलट से भी विमर्श करूंगा-अशोक तंवर। पर्यवेक्षक का किसी नेता के प्रभाव में आना गलत है, यह हाईकमान की भावनाओं के खिलाफ-अशोक गहलोत।
अजमेर में नियुक्त कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षक अशोक तंवर ने कांग्रेसियों को सलाह दी है कि वे शोले फिल्म के मजाकिया किरदार असरानी की तरह व्यवहार न करे। आधे इधर जाए आधे उधर जाए और बाकी मेरे पीछे आए ऐसे हालात नेताओं को नहीं बनाने चाहिए। तंवर ने कहा कि मैं पिछले सप्ताह भर से अजमेर जिले के करीब पांच हजार कार्यकर्ताओं से मिला हंू। मैंने अच्छी तरह कांग्रेस की स्थिति को समझ लिया है। मैं कह सकता हूं कि यदि सभी नेता एकजुट रहे तो अजमेर में कांग्रेस की मजबूत स्थिति है। यदि तालमेल और बेहतर होता तो हम चुनाव भी जीत सकते थे। तंवर ने गत विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से प्रत्याशी रहे महेंद्र सिंह रलावता से कहा कि गत नगर निगम के चुनाव में किसने टिकट बांटे और क्या परिणाम रहे, अब गड़े मुर्दे उखाड़ने की जरूरत नहीं है। हमें आगे देखकर कांग्रेस को मजबूत करना है। तंवर ने रामचंदर चौधरी के संबंध में कहा कि उन्होंने अजमेर में डेयरी के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। तंवर ने कहा कि मुझे अध्यक्ष पद के लिए देहात और शहर में छह -छह नाम देने हैं। मेरा प्रयास है कि कार्यकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप अजमेर जिले की रिपोर्ट केंद्र के समक्ष प्रस्तुत की जाए। मैंने अजमेर में जो देखा और महसूस किया उसे ही अपने दस्तावेजों में शामिल करूंगा। तंवर ने कहा कि सर्किट हाउस में मेरी मुलाकात पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट से भी हुई। पायलट साहब ने मुझे कहा कि आप अजमेर में सभी से बात कर ले और फिर मुझसे बात करे। मैं अपनी रिपोर्ट देने से पहले सचिन पायलट से भी बात करूंगा। तंवर ने कहा कि मेरे संबंध सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट से भी रहे हैं। मैं सचिन को बचपन से ही जनता हंू। तंवर ने इस बात को स्वीकार किया कि अध्यक्ष के चयन के समय जातिगत समीकरण भी देखे जाते हैं। राजनीति में सभी जातियों का ख्याल रखा जाता है। किसी जिले में एक जाति का अध्यक्ष बना दिया जाए तो दूसरे जिले में उसी जाति का अध्यक्ष बनाना मुश्किल होता है। राजनीति में सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देना पड़ता है। अशोक तंवर ने जिस बैठक में यह बात कही उसमें कांग्रेस के सभी गुटों के नेता मौजूद रहे। पायलट गुट के शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन, गत विधानसभा चुनाव में अजमेर शहर से प्रत्याशी रहे महेंद्र सिंह रलावता, हेमंत भाटी के साथ साथ अशोक गहलोत गुट के देहात जिलाध्यक्ष भूपेंद्र राठौड़, डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी आदि थे। दोनों गुटों के नेताओं की एक साथ उपस्थिति को भी अशोक तंवर ने अपनी उपलब्धि बताया। यहां यह उल्लेखनीय है कि अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया है, जिसमें अध्यक्ष के चयन का अधिकार सचिन पायलट को दिया गया। यानी पायलट जिस नेता को चाहे उसे शहर जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना सकते हैं।
गहलोत का ऐतराज:
इन दिनों राजस्थान भर में केंद्रीय पर्यवेक्षक जिला स्तर पर संगठन की नब्ज टटोल रहे हैं। पर्यवेक्षकों को जिलाध्यक्ष के लिए 6 नाम प्रस्तावित करने हैं, लेकिन केंद्रीय पर्यवेक्षक संगठन सृजन अभियान के अंतर्गत जिला स्तर पर जो गतिविधियां कर रहे हैं, उससे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नाराज हैं। गहलोत ने कहा कि कई स्थानों पर जिलाध्यक्ष बनाने के लिए किसी वरिष्ठ नेता को अधिकृत करने के प्रस्ताव पास हो रहे है। यह तरीका पूरी तरह गलत है। पर्यवेक्षकों को किसी नेता के प्रभाव में आने की जरूरत नहीं है। गहलोत ने अजमेर सहित कई जिलों में शक्ति प्रदर्शन पर भी ऐतराज जताया।
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गहलोत की चुनौती के बाद भजन सरकार को 7 लाख करोड़ के निवेश की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए। तभी मुंह तोड़ जवाब मिल सकेगा। यह अमित शाह के कथन की बात भी है।
13 अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जयपुर में तीन नए आपराधिक कानूनों पर आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर राजस्थान के विकास की भी चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि निवेश के लिए जो 35 लाख करोड़ के अनुबंध हुए थे, उनमें से 7 लाख करोड़ के निवेश को ग्राउंड ब्रेकिंग कर दिया है। यानी 7 लाख करोड़ के निवेश के कार्यों की क्रियान्विति शुरू हो गई है। यानी संबंधित कंपनियों से अंतिम अनुबंध कर जमीन का आवंटन तथा कंपनियों ने जिन पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। इसके लिए अमित शाह ने राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की प्रशंसा भी की। शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत का नाम लेकर कहा कि वे भी हमारे निवेश को देख सकते हैं। अमित शाह के कथन के बाद 13 अक्टूबर को ही पूर्व सीएम गहलोत ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से आग्रह किया कि वे 7 लाख करोड़ रुपए के निवेश की सूची सार्वजनिक करें। गहलोत ने कहा कि गत विधानसभा सत्र में जब इस मुद्दे पर सवाल लगाया गया तो सरकार की ओर से जवाब आया और न ही सरकार ने आरटीआई में कोई जवाब दिया है। चूंकि अब केंद्रीय गृह मंत्री ने 7 लाख करोड़ रुपए निवेश का दावा किया है तो सरकार को संबंधित निवेशकों की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि भजनलाल शर्मा ने अपनी सरकार के पहले ही वर्ष में राइजिंग राजस्थान समिट कर निवेश के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। इसी समिट में 35 लाख करोड़ के अनुबंध (एमओयू) होने का दावा किया गया था। अब यदि 35 में से 7 लाख करोड़ के निवेश जमीन पर उतर आए हैं तो सरकार को निवेशकों की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए। इसे अन्य निवेशकों को भी प्रेरणा मिलेगी। चूंकि इस बार यह दावा अमित शाह की ओर से किया गया है, इसलिए भी सरकार को पारदर्शिता दिखानी चाहिए। यदि सरकार सूची सार्वजनिक नहीं करती है तो फिर अमित शाह के दावे पर भी सवाल उठेगा।
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Monday, 13 October 2025
पुस्तक के विमोचन समारोह में डॉ. सतीश पूनिया की लोकप्रियता देखने को मिली। प्रशंसकों को 24 अक्टूबर को जन्मदिन के अवसर पर गोवर्धन जी की परिक्रमा में आमंत्रित किया। भारत के लोकतंत्र का चेहरा है भीलवाड़ा की जिला प्रमुख बरजी बाई भील। गजादान चारण, आरजे कार्तिक, शिवांगी सिकरवाल, मनमीत सोनी, दिनेश कुमार सूत्रधारा व नीलू शेखावत का सम्मान।
12 अक्टूबर को जयपुर में विधानसभा के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के सभागार में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सतीश पूनिया की पुस्तक अग्निपथ नहीं जनपथ का विमोचन हुआ। समारोह शुरू होने से पहले ही सभागार पूरा भर गया। लोगों को सीढिय़ों पर बैठना पड़ा। भीड़ को देखते हुए क्लब के दो बड़े हॉलों में स्क्रीन लगाकर लोगों को बैठाया गया। लेकिन फिर भी अनेक लोग क्लब भवन के बाहर ही खड़े रहे। लोगों की संख्या को देखते हुए डॉ. पूनिया ने कहा कि मैंने जिन लोगों को आमंत्रित नहीं किया वे भी आए हैं, यह उनका मेरे प्रति स्नेह हैं। जिन लोगों को आज के समारोह में बैठने के लिए कुर्सी नहीं मिली है, उन सबसे मैं क्षमा मांगता हंू। मेरा सभी प्रशंसकों से आग्रह है कि 24 अक्टूबर को मेरे जन्मदिन पर गोवर्धन जी की परिक्रमा का कार्यक्रम रखा गया है, उसमें सभी प्रशंसक आमंत्रित हैं। तब मैं अपने प्रशंसकों के साथ भोजन भी ग्रहण करुंगा। डॉ. पूनिया ने कहा कि आज के समारोह में जो सांसद, विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक आदि आए हैं, उन सभी का मैं आभारी हूं। मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतना स्नेह लोगों का मिलेगा।
लोकतंत्र का चेहरा:
पूनिया की पुस्तक विमोचन समारोह की अध्यक्षता भीलवाड़ा की जिला प्रमुख बरजी बाई भील ने की। बरजी बाई ने बताया कि मैं तो गांव में बकरी चराने का काम करती थी। लेकिन पूनिया जी ने मुझे जिला परिषद सदस्य का टिकट दिया और फिर जिला प्रमुख भी बनवाया। जब मुझे सदस्य का उम्मीदवार बनाया गया, तब मैंने पूनिया जी से पूछा अब मेरी बकरियां कौन चराएगा? समारोह में डॉ. पूनिया ने कहा कि बरजी बाई का भीलवाड़ा का जिला प्रमुख बनना बताता है कि भारत के लोकतंत्र में कितना ताकत है। यहां यह उल्लेखनीय है कि भीलवाड़ा का जिला प्रमुख एसटी (अनुसूचित जनजाति) महिला के लिए आरक्षित था और बरजी बाई अकेली एसटी महिला सदस्य बनी, ऐसे में उनका चयन जिला प्रमुख के पद पर हो गया। पुस्तक विमोचन समारोह की अध्यक्षता करवाने के लिए राज्यपाल कटारिया ने भी डॉ. पूनिया की प्रशंसा की।
प्रतिभाओं का सम्मान:
विमोचन समारोह का प्रभावी तरीके से संचालन लाडनूं गवर्नमेंट कॉलेज के प्राध्यापक और विख्यात साहित्यकार गजादान चारण ने किया। इस अवसर पर चारण के साथ साथ रेडियो जॉकी कार्तिक, कवयित्री शिवांगी सिकरवाल, लेखक मनमीत सोनी, साहित्यकार दिनेश कुमार सूत्रधार, तथा लोक संस्कृति का प्रसार करने वाली नीलू शेखावत का सम्मान किया गया।
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राष्ट्र सेविका समिति की शोभायात्रा में मातृ शक्ति का प्रदर्शन।
राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना के 90 वर्ष पूरे होने पर अजमेर में 12 अक्टूबर को शोभायात्रा निकाली गई। यह शोभायात्रा रामनगर से प्रारंभ होकर पंचोली चौराहे पर संपन्न हुई। मार्ग में विभिन्न चौराहों पर शस्त्र प्रदर्शन किया गया। शोभायात्रा के बाद विजयादशमी उत्सव मनाया गया जिसमें प्रांत सेवा प्रमुख दर्शना ने कहा कि आज का दिन हमें याद दिलाता है कि श्रीराम ने रावण का वध कर अधर्म पर धर्म की विजय प्राप्त की । साथ ही साथ आज का दिन हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है क्योंकि विजयादशमी पर ही सेविका समिति की 1936 में स्थापना हुई, इस प्रकार आज हम 90 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं । उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तेे जिस प्रकार पुरुषों का संगठन है उसी प्रकार राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के बीच काम करती है । शाखा के माध्यम से यह संगठन अनुशासन] चरित्र निर्माण के साथ साथ देशभक्त सेविकाओं का निर्माण करते हुए समाज के भीतर सेवा के कई कार्य कर रही है । दर्शना ने कहा कि समाज में बदलाव के लिए कुछ बिंदुओं को लेकर उनके मध्य जायेंगे, जिसे हमने पंच परिवर्तन का नाम दिया है । जैसे सामाजिक समरसता, पर्यावरण रक्षा, नागरिक कर्तव्य, कुटुंब प्रबोधन एवं स्व का जागरण। कुटुंब प्रबोधन द्वारा परिवार में दादा दादी, ताऊ ताई चाचा चाची थे परंतु अब परिवार पति -पत्नी तक ही सीमित रहने लगा है । अब आधुनिकता के नाम पर परिवार छोटे हो रहे हैं जो गलत है । पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें जागरूकता की आवश्यकता है। आज बच्चे स्कूल में पानी की बोतल ले जाते हैं ए आने वाले दिनों में ऑक्सीजन सिलेंडर भी ले जाना होगा । हम प्रत्येक वर्ष कम से कम 2 पेड़ अवश्य लगाएं ऐसा संकल्प लें । नागरिक कर्तव्य के विषय में बताया कि अधिकार तो सबको याद रहता है किंतु हमारे कर्तव्य भी सबको याद रखना आवश्यक है । भारत माता के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है । शोभायात्रा में रानी लक्ष्मीबाई एवं विभिन्न क्रांतिकारी महिलाओं के रूप में नवयुवतियां तलवारए दंड तथा यष्टि के साथ विभिन्न साहसिक प्रदर्शन कर रही थी, समाज ने कई जगह पुष्प वर्षा कर स्वागत किया । महानगर कार्यवाहिका पूनम राणा ने बताया कि समिति के स्थापना के 90 वें वर्ष में प्रवेश के उपलक्ष्य पर इस भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया गया था । जिसमें कई महिला संगठनों ने भी भाग लिया जिनका उन्होंने आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम में लीलामणि गुप्ता मंजू लालवानी, ऋतु परिहा, रतन देवी सीमा पाराशर, दीपिका गर्ग ने भाग लिया। शोभायात्रा का नेतृत्व वर्षा लालवानी एवं सृष्टि गर्ग ने किया ।
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Sunday, 12 October 2025
अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 13 जब बम बनाते समय पिता रुची राम की दो अंगुलियां अलग हो गई। आपातकाल में जेल में नवल राय बच्चानी और उनकी पत्नी लाजवंती का मार्मिक संवाद सुनकर आंखों में आंसू आ गए। सुविधाओं के लिए जब तुलसीदास सोनी ने जब जेल में 10 दिन तक अनशन किया।
तुलसीदास सोनी जब मात्र 8 वर्ष के थे, तब अजमेर की चंद्रकुंड शाखा के स्वयंसेवक थे और आज जब 80 वर्ष की उम्र है, तो वरुण सागर रोड स्थित संत कंवरराम कॉलोनी में लगने वाली प्रौढ़ शाखा के नियमित स्वयंसेवक हैं। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव ही कहा जाएगा कि जो व्यक्ति एक बार संघ से जुड़ता है, वह जीवन के अंत तक जुड़ा रहता है। तुलसीदास सोनी तो उन स्वयंसेवकों में शामिल है जिन्होंने स्वयंसेवक होने के कारण अनेक कठिनाइयां झेली। यहां तक कि आपातकाल में जेल भी जाना पड़ा। उनके परिवार ने विभाजन की विभीषिका को भी झेला। यूं देखा जाए तो तुलसी जी का पूरा परिवार ही संघ मय रहा। देश के विभाजन से पूर्व उनके पिता रुची राम जी सिंध के शिकारपुर में सोने चांदी के जेवरात बनाने का काम करते थे। पिता के कारखाने में अधिकांश कारीगर मुस्लिम थे, जिनमें महिलाएं भी शामिल थी। 1947 में जब देश के विभाजन की चर्चा होने लगी तो सिंध में कट्टरपंथी भी हावी होने लगे। उस समय पिता रुची राम शिकारपुर की शाखा के मुख्य शिक्षक की भूमिका में थे, इसलिए परिवार को कुछ ज्यादा ही खतरा था। कट्टरपंथियों के हमले से बचने के लिए तब पिता ने बम बनाने का फैसला किया। विस्फोटक सामग्री से जब बम बनाया जा रहा था, तभी बम फट गया। इससे पिता के हाथ की दो अंगुलिया नष्ट हो गइ। जब देश के विभाजन की घोषणा हुई तो सिंधी हिंदुओं को भारत आना पड़ा। हमारा परिवार समुद्र मार्ग से मुंबई पहुंचा। सबसे पहले पिता ने मुंबई में जेवरात बनाने की दुकान लगाई, लेकिन बाद में दुकान को अपने छोटे भाई को दे दिया और 1951 में अजमेर आ गए। फिर अजमेर में सोने चांदी के जेवरात बनाने का काम नया बाजार में शुरू किया।
संघ की सक्रियता:
चूंकि मैं अजमेर में संघ में शुरू से ही सक्रिय रहा, इसलिए शाखा में मुख्य शिक्षक और कार्यवाह की भूमिका भी निभाई। मेरे पास शुरू से ही लाल बुलेट रही जो अब भी संघ में चर्चा का विषय है। इसी बुलेट पर मैंने संघ के पर्चो को वितरित किया। संघ में सक्रियता के दिनों में बुलेट पर ही मैं किशनगढ़, नसीराबाद और जयपुर तक चक्कर लगाता था। तब मैं संघ के प्रचारकों को अपनी बुलेट पर बिठाकर इधर उधर ले जाता था।
आपातकाल में जेल:
25 जून 1975 की रात को जब देश में आपातकाल की घोषणा हुई तो उस रात अजमेर में भयंकर बरसात हो रही थी। बरसात में ही स्वयंसेवकों की धरपकड़ शुरू हो गई। चूंकि मेरा चेहरा पूरे शहर में चर्चित था, इसलिए मुझे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने जला बिछाया। मैं तो निडर होकर गिरफ्तार होना चाहता था, लेकिन तब प्रचारक धर्मनारायण जी ने सूचना भिजवाई कि मैं भूमिगत हो जाऊ क्योंकि जो लोग जेल जाएंगे उनके परिवार वालों को संभालने वाला कोई चाहिए। संघ की योजना के तहत मैंने आपातकाल में दस माह तक जेल से बाहर रहकर सक्रिय भूमिका निभाई। इधर उधर से धन एकत्रित कर उन परिवारों को दिया जिन का एक दो सदस्य जेल में था। जब मेरी सक्रियता के बारे में सूचना मिली तो पुलिस ने आखिरकार 10 अप्रैल 1976 को करीब पचास जवानों के साथ मुझे घेर लिया। जब मैंने देखा कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है तो पुलिस ने समक्ष सरेंडर कर दिया। जिस वक्त मेरी गिरफ्तारी हुई, तब मैं नया बाजार की अपनी दुकान पर बैठा था। जैसे ही पुलिस ने मुझे हिरासत में लिया वैसे ही मैंने भारत माता की जय के नारे लगाना शुरू कर दिया। पुलिस वाले मुझे पैदल ही नया बाजार से कोतवाली पुलिस स्टेशन ले गए। पूरे रास्ते मैंने भारत माता की जय का उद्घोष किया। मैं जब कोतवाली पहुंचा तो वहां पहले से ही झवरी लाल चौधरी, महादेव जी घड़ी वाले, रतनलाल जी यादव, गोपीचंद जी, प्रेम सुख सुराणा जी बैठे थे। हम सभी को रात भर कोतवाली में बैठाकर रखा और फिर मीसा का कानून लगाकर अगले दिन सेंट्रल जेल में भेज दिया। जेल में मेरी मुलाकात भानु कुमार शास्त्री, भंवरलाल जी शर्मा (बाद में मंत्री बने) श्री करण शारदा, कैलाश जी मेघवाल, गुमानमल जी लोढ़ा आदि से हुई। उस समय जेल में हम जैसे बंदियों के साथ अन्याय हो रहा था। मेरे से यह अन्याय बर्दाश्त नहीं हुआ। मैंने जेल अधिकारियों से कहा कि हम किसी अपराध में नहीं आए है। हम तो राजनीतिक बंदी है। ऐसे में हमें जेल में अपराधियों की तरह नहीं रखा जा सकता। अधिकारियों ने जब मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया तो मैंने भूख हड़ताल शुरू कर दी। मैं 10 दिनों तक अनशन पर रहा। तब कलेक्टर को जेल में आना पड़ा और हमें सुविधाएं देनी पड़ी। तभी हमने खेलकूद के साथ ही जेल के अंदर शाखा लगाई। आपातकाल हटने के बाद ही हम जेल से बाहर आ सके। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हंू कि जेल से बाहर आने के लिए किसी भी स्वयंसेवक ने माफी नहीं मांगी।
आंखों में आंसू:
जेल में एक बार नवल राय जी बच्चानी की पत्नी लाजवंती मिलने आई। लाजवंती ने बच्चानी जी से कहा कि मेरे लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है। बिना किसी कमाई के चार चार बच्चों को दो समय रोटी खिलाना मुश्किल है। यह बात कहते हुए लाजवंती रोने लगी। लेकिन बच्चानी जी ने पत्नी के आंसू की परवाह किए बगैर दृढ़ता के साथ कहा कि यदि मैं मर जाता तब भी तो तुम्हे ही परिवार को पालना पड़ता। बच्चानी जी की बात सुनकर हम सभी की आंखों में आंसू आ गए। तब बाहर रह रहे स्वयंसेवकों को सूचना भिजवाई गई कि बच्चानी जी के परिवार की मदद की जाए, लेकिन बच्चानी जी की दो टूक बात सुनने के बाद पत्नी लाजवंती ने लाचारी छोड़ी और अपने परिवार को पालने के लिधर घर पर ही बच्चों के साथ कागज के लिफाफे बनाए और उन्हें बेचकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया।
चुनाव लड़ने का प्रस्ताव:
21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा और हम सभी रिहा हो गए। उन्हीं दिनों चुनाव की भी चर्चा हुई, तब हमारे प्रचारक धर्मनारायण जी ने मेरे समक्ष प्रस्ताव रखा कि मैं अजमेर पश्चिम क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ू। लेकिन मैंने चुनाव लडऩे से मना कर दिया, क्योंकि मुझे संघ का ही कार्य करना था। बाद में नवल राय बच्चानी को उम्मीदवार बनाया गया और वे विधायक बने। उन्हीं दिनों संघ ने मुझे राजनीति में जाने के निर्देश दिए। मैं पहले मंडल अध्यक्ष फिर जिला उपाध्यक्ष और महामंत्री के पद पर रहा। तुलसी जी ने अपने 80 वर्षों का वृतांत एक डायरी में लिख रखा है। वह रोजाना की घटनाओं को डायरी में लिखते हैं। तुलसी जी का मानना है कि सनातन धर्म और हिंदुओं की रक्षा के लिए संघ का मजबूत होना जरूरी है। हर सनातनी को संघ से जुड़ना चाहिए। सनातनी यदि एकजुट रहेंगे तभी देश बच सकेगा। आज हिंदुओं को एकजुट करने में संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तुलसी जी के जीवन के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829029647 पर तुलसी जी सोनी से ली जा सकती है। 80 वर्ष की उम्र में भी तुलसी जी को जीवन की हर घटना याद है।
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जब नरेश मीणा कांग्रेस में थे ही नहीं तो फिर निष्कासन क्यों? क्या अंता उपचुनाव में कांग्रेस के लिए मुसीबत बनेंगे नरेश मीणा। भाजपा का उम्मीदवार पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सलाह से तय होगा।
8 अक्टूबर को राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि नरेश मीणा कांग्रेस में है ही नहीं तो उन्हें अंता के उपचुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार कैसे बनाया जाएगा। रंधावा ने कहा कि मैं साढ़े तीन साल से प्रभारी हंू। लेकिन आज तक भी नरेश मीणा ने मुझसे मुलाकात नहीं की। यानी रंधावा ने नरेश मीणा के कांग्रेसी होने को पूरी तरह खारिज कर दिया। लेकिन दो दिन बाद 10 अक्टूबर को कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने नरेश मीणा को छह वर्ष के लिए कांग्रेस से निष्कासित कर दिया। सवाल उठता है कि जब नरेश मीणा कांग्रेस में थे ही नहीं तो फिर उनका निष्कासन कैसे किया? जानकारों की मानें तो देवली-उनियारा के उपचुनाव में भी नरेश मीणा ने कांग्रेस का टिकट मांगा था, लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव लड़ा। तब भी नरेश मीणा को 6 वर्ष के लिए कांग्रेस से निकाला गया। एक ओर कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि नरेश मीणा कांग्रेसी नहीं है, लेकिन वहीं दो दो बार नरेश मीणा को निष्कासित किया जा रहा है। नरेश मीणा ने कांग्रेस की सदस्यता कब ली इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है।
मुसीबत बनेंगे:
यह सही है कि कांग्रेसी विचारधारा होने के नाते नरेश मीणा ने अंता उपचुनाव में टिकट की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस ने नरेश मीणा के बजाए प्रमोद जैन भाया को उम्मीदवार घोषित कर दिया। इससे नरेश मीणा और उनके समर्थक कांग्रेस से बुरी तरह खफा है। देवली उनियारा के उपचुनाव में एसडीएम को सरेआम थप्पड़ मारने वाले नरेश मीणा ने धमकी दी है कि मैं देखता हंू कि अंता में कांग्रेस के नेता किस प्रकार से चुनाव प्रचार करने आते हैं। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व सीएम अशोक गहलोत जब अंता आएंगे तो जनता अपने आप सबक सिखा देगी। नरेश मीणा की इस धमकी के बाद अंता में टकराव की स्थिति हो गई है। नरेश मीणा 14 अक्टूबर को नामांकन करेंगे। हो सकता है कि उन्हें आरएलडी, आरएलपी, बीएपी जैसी पार्टियों का समर्थन मिले।
वसुंधरा की सलाह:
अंता उपचुनाव में नामांकन की अंतिम तिथि 21 अक्टूबर है, लेकिन भाजपा ने अभी तक भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। माना जा रहा है कि भाजपा उम्मीदवार की घोषणा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सलाह को तरजीह दी जाएगी। इसलिए 10 अक्टूबर को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से राजे से उनके निवास पर मुलाकात की। सूत्रों की मानें तो राजे का झुकाव पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी की और रहा है। सैनी वर्ष 2013 में अंत से चुनाव जीत चुके हैं। इस विमर्श में निवर्तमान विधायक कंवरलाल मीणा के परिवार से किसी को उम्मीदवार बनाने पर भी चर्चा हुई। मालूम हो कि एक आपराधिक मामले में तीन वर्ष की सजा होने के कारण कंवरलाल मीणा की विधायकी रद्द कर दी गई है।
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अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 14 ================ 93 वर्ष की उम्र में भी संघ की शाखा में जाते रहे सर्वेश्वर जी अग्रवाल। संघ कार्य के खातिर रेलवे की नौकरी भी छोड़ी। त्रिशूल दीक्षा के कार्यक्रम के कारण जेल भी जाना पड़ा। अजमेर नगर सुधार न्यास के मनोनीत सदस्य भी रहे।
1947 में जब देश के विभाजन को लेकर डर और भय का माहौल था, तब सनातन धर्म की रक्षार्थ सर्वेश्वर जी अग्रवाल ने अजमेर की चन्द्र कुंड शाखा में स्वयंसेवक के रूप में जाना शुरू किया। उस समय सर्वेश्वर जी की उम्र 12 वर्ष रही होगी। इसे संघ शिक्षा का प्रभाव ही कहा जाएगा कि सर्वेश्वर जी जीवन के अंतिम समय तक संघ की शाखा में जाते रहे। 93 वर्ष की उम्र में जून 2023 में जब निधन हुआ, तब सर्वेश्वर जी अजमेर के बीके कौल नगर स्थित हनुमान वाटिका में लगने वाली प्रौढ़ शाखा के सक्रिय सदस्य थे। सर्दी के मौसम में भी सर्वेश्वर जी 3 पहिए वाले स्कूटर पर घर से शाखा स्थान तक आते थे। शाखा में अन्य बुजुर्ग सदस्यों के लिए सर्वेश्वर जी प्रेरणा स्त्रोत थे। सर्दी के मौसम में प्रात: साढ़े छह बजे शाखा में आना बुजुर्गों के लिए मुश्किल रहता है, लेकिन सर्वेश्वर गर्म कपड़े पहनकर प्रतिदिन आते रहे। 1948 में जब झूठे आरोपों में संघ पर प्रतिबंध लगा, तब सर्वेश्वर जी को भूमिगत होना पड़ा। सर्वेश्वर जी ने दस वर्षों तक रेलवे में नौकरी की, लेकिन संघ के प्रचारकों का इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने संघ कार्य के खातिर रेलवे की नौकरी छोड़ दी। बाद में परिवार चलाने के लिए पट्टी कटला में किराने की दुकान खोली। संघ के सभी कार्यक्रमों में भोजन की व्यवस्था सर्वेश्वर जी के पास ही होती थी। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों का मानना था कि सर्वेश्वर जी के नियोजन के कारण भोजन की बर्बादी नहीं होती है। 1975 में जब आपातकाल लगा तो सर्वेश्वर जी जेल जाने को तैयार थे, लेकिन संघ योजना के कारण सर्वेश्वर जी गिरफ्तार नहीं हुए। उन्होंने बाहर रहकर ही संघ के कार्यों को संचालित किया। लेकिन 1998 में जब त्रिशूल दीक्षा का कार्यक्रम हुआ तो पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। तब सर्वेश्वर जी को 14 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। राम जन्मभूमि आंदोलन में भी सर्वेश्वर जी ने सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष 1990 में जब स्वयंसेवकों को अयोध्या जाना हुआ, तब सबसे पहले तोलाराम जी के नेतृत्व में अजमेर से 135 कार्यकर्ताओं का जाना तय हुआ, लेकिन किन्हीं कारणों से तोलाराम जी नहीं जा सके। जब झंवरीलाल जी ने भी असमर्थता प्रकट की तब प्रचारक उमाशंकर जी ने मुझे निर्देश दिया कि अब आपके नेतृत्व में स्वयंसेवकों का दल अयोध्या जाएगा। मेरे लिए यह गर्व की बात थी, क्योंकि उस समय अयोध्या में कार सेवा के लिए हर सनातनी जाना चाहता था। हम सभी पहले दिल्ली पहुंचे और यहां हमारी मुलाकात संघ कार्यालय में माननीय सोहन सिंह जी से हुई। स्नान और अल्पाहार के बाद हम सभी ट्रेन से लखनऊ के लिए रवाना हुए, लेकिन लखनऊ से पहले ही ट्रेन को रोक दिया गया। चूंकि ट्रेन आगे नहीं बढ़ी इसलिए सभी स्वयंसेवक निकट के एक मंदिर में चले गए। दोपहर बाद पता चला कि लखनऊ में कर्फ्यू लगा दिया गया है, इसलिए अब अयोध्या नहीं जा सकते। भले ही हमारा दल उस समय अयोध्या नहीं पहुंच सका हो, लेकिन उन दिनों राम मंदिर के पक्ष में जो माहौल बना उसी के बाद में मंदिर निर्माण मार्ग प्रशस्त हुआ। सर्वेश्वर जी ने संघ के निर्देश पर ही विश्व हिंदू परिषद में अपनी सेवाएं दी। बाद में भाजपा में भी अनेक पदों पर रहे। वर्ष 1995 में भाजपा सरकार के दौरान जब ओंकार सिंह लखावत नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष बने तो सर्वेश्वर जी का भी सदस्य के तौर पर मनोनयन हुआ। सर्वेश्वर जी चाहते तो उस समय अपने चार पुत्रों और दो पुत्रियों के लिए कोई भूखंड आसानी से ले सकते थे, लेकिन न्यास का सदस्य रहते हुए सर्वेश्वर जी ने एक इंच जमीन का भी आवंटन नहीं करवाया और न ही अपने परिवार के किसी सदस्य को नियमानुसार न्यास में भूखंड के लिए आवेदन करवाया। सर्वेश्वर जी का कहना रहा कि मैं मौजूदा समय में इस संस्था का ट्रस्टी हंू। मेरे रहते हुए मेरे परिवार का कोई सदस्य नियमानुसार भी भूखंड प्राप्त नहीं कर सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनीति में रहकर सर्वेश्वर जी ने ईमानदारी के उच्च मापदंड निर्धारित किए। सर्वेश्वर जी ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उन पर संघ शिक्षा का प्रभाव था। उन्होंने जीवन भर राष्ट्र सेवा को महत्व दिया। आजीविका चलाने के लिए परचूनी की दुकान पर बैठते थे और समय निकालकर संघ, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा का कार्य किया। सर्वेश्वर जी ने अपने जीवन में कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। कुछ लोग उनके सख्त और कड़े रुख को पसंद नहीं करते थे, लेकिन सर्वेश्वर जी ने ऐसे लोगों की कभी परवाह नहीं की। स्पष्टवादिता के कारण भी अजमेर में उनकी चर्चा हमेशा रही। अग्रवाल समाज की गतिविधियों में भी सर्वेश्वर जी ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। सर्वेश्वर जी के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9251447809 पर उनके पुत्र गोविंद बंसल से ली जा सकती है।
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हलाला के समर्थक कर रहे है महिला पत्रकारों के अधिकारों की चिंता। अफगानी विदेश मंत्री मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को रोकने का मामला। तालिबान लड़ाकों के हमले से पाकिस्तान दहला।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के नियमों का समर्थन कर हलाला, तीन तलाक जैसी प्रथाओं की वकालत करने वाले ही अब भारत में महिला पत्रकारों के हितों की चिंता कर रहे है। 10 अक्टूबर को अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने दिल्ली में जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की उस में महिला पत्रकारों को प्रवेश नहीं दिया गया। अफगानी विदेश मंत्रालय का कहना रहा कि इस्लामिक पंरपराओं के अनुरूप महिला पत्रकारों को आमंत्रित नहीं किया गया है। अफगान विदेश मंत्री के इस कृत्य पर ही अब भारत में वामपंथी विचारधारा के पत्रकार और समाजवादी पार्टी, टीएमसी, कांग्रेस आदि के नेता भारत सरकार की आलोचना कर रहे हैं। यहां तक कि पीएम नरेंद्र मोदी के नारी शक्ति अभियान की भी आलोचना की जा रही है। आरोप लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के समक्ष सरेंडर कर दिया है। मजे की बात यह है कि महिला पत्रकारों के हितों की चिंता वो लोग कर रहे हैं जो भारत में हलाला जैसी प्रथाओं के समर्थक हैं। कांग्रेस से लेकर सपा, टीएमसी और वामपंथी दल चाहते हैं कि भारत में मुसलमानों के लिए इस्लामिक कानून बने रहे। यानी मुसलमान भारत में अपने धर्म के अनुरूप आचरण कर सके। मौजूदा समय में मुसलमानों को अपने धर्म के अनुरूप रहने की पूर्ण स्वतंत्रता है, इसलिए हलाला जैसी प्रथाएं चल रही हैं। यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं को बुर्के में रहना पड़ता है। जो मुस्लिम बच्चियां स्कूल कॉलेज जाती है, उन्हें भी बुर्का हिजाब पहनना होता है। सपा, कांग्रेस टीएमसी जैसे दलों ने कभी भी इन प्रथाओं का विरोध नहीं किया, लेकिन अब जब इस्लामिक कानून के तहत अफगानी विदेश मंत्री ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को प्रवेश नहीं दिया तो हलाला के समर्थकों को महिला पत्रकारों के हितों की चिंता हो रही है। जहां तक अफगानी विदेश मंत्री के भारत आने का सवाल है तो सामरिक दृष्टि से आज अफगानिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि 11 अक्टूबर को तहरीक-ए-तालिबान के लड़ाकों ने पाकिस्तान में जो हमले किए उससे पूरा पाकिस्तान दहल उठा है। इन लड़ाकों का मुकाबला करने में पाकिस्तान की सेना भी असमर्थ नजर आ रही है। इससे पहले 10 अक्टूबर को पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर एयर स्ट्राइक की थी। अफगान लड़ाकों ने इसी एयर स्ट्राइक का बदला पाकिस्तान में घुसकर लिया। इसे एक सहयोग ही कहा जाएगा कि जब 9 अक्टूबर से अफगानी विदेश मंत्री 6 दिवसीय भारत यात्रा पर है, तब पाकिस्तान में तालिबानी लड़ाकों ने कोहराम मचा रखा है। अफगानी विदेश मंत्री मुत्ताकी ने स्पष्ट कहा है कि अफगान धरती का उपयोग भारत के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा। भारत जब बांग्लादेश, पाकिस्तान और चीन की सीमाओं से घिरा हुआ है, तब एक मुस्लिम देश अफगानिस्तान भारत के साथ खड़ा नजर आ रहा है। कांग्रेस, सपा टीएमसी और वामपंथी दल भी इस्लामिक कट्टरपंथ को अच्छी तरह समझते हैं। ये दल भारत के आंतरिक हालातों को भी जानते हैं। आज भारत को सामरिक दृष्टि से सुरक्षित करने की जरूरत है। समय के साथ विदेश नीति में भी बदलाव होता रहा है। जब पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा रहा है, तब मुस्लिम देश अफगानिस्तान भारत के साथ खड़ा है भले ही भारत ने अभी तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी हो, लेकिन अफगानिस्तान की मदद करने में भारत कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। मौजूदा समय की मांग है कि अफगानिस्तान को अपने साथ रखा जाए।
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Thursday, 9 October 2025
अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 10 ================ विभाजन के समय कट्टरपंथियों ने कांग्रेसियों को भी मौत के घाट उतारा। वाधुमल जी अमरकोट में कांग्रेस के अध्यक्ष थे, लेकिन बड़ी मुश्किल से जान बचाकर अजमेर आए। तब गांधी टोपी उतारकर संघ की काली टोपी पहनी। किशन जी टेवानी को तीन बार गुरु गोलवलकर जी से मिलने का अवसर मिला। 84 वर्ष की उम्र में भी संघ का कार्य।
देश के विभाजन की घोषणा से पहले ही उन प्रांतों में हिंदुओं का कत्लेआम शुरू हो गया था जिस पर मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने पाकिस्तान का हक जताया था। तब कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद थी कि उनका कत्लेआम नहीं होगा। ऐसे कांग्रेसी नेताओं में वाधुमल जी भी शामिल थे। उस समय वाधुमल जी सिंध प्रांत के अमरकोट में कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनका सभी मुस्लिम परिवारों से बहुत भाईचारा था, लेकिन कट्टरपंथियों ने हिंदुओं के कत्लेआम में वाधुमल जी के परिवार को भी नहीं बख्शा। जो कट्टरपंथी कुछ दिनों पहले तक वाधुमल जी को अपना भाई मानते थे वे ही घर के बाहर आकर खड़े हो गए। इस कत्लेआम में वाधुमल जी को अपने परिवार के कई सदस्यों की जान गवानी पड़ी। वाधुमल जी बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर अजमेर आए। अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने उनकी भरपूर मदद की। उन्हें व परिवार के सदस्यों को आवास उपलब्ध करवाया तथा हकीमगिरी के लिए दुकान भी दिलवाई। तब वाधुमल जी की मदद के लिए न तो सरकार ने और न ही कांग्रेस ने कोई सहयोग किया। चूंकि अजमेर में सिंध प्रांत से सिंधी हिंदू बड़ी संख्या में विस्थापित हो कर आए थे, इसलिए संघ के कार्यकर्ता ही मदद के लिए आगे आए। इसका एक कारण यह भी है कि विस्थापितों में ऐसे सिंधी हिंदुओं की संख्या ज्यादा थी, जो सिंध में भी संघ से जुड़े हुए थे। शरणार्थियों के लिए संघ की भूमिका को देखते हुए ही वाधुमल जी ने अजमेर में गांधी टोपी उतारी और संघ की काली टोपी पहन ली। उनका कहना रहा कि संकट के इस समय संघ ने ही मदद की है। यदि संघ के कार्यकर्ता सिंध में विभाजन के समय मददगार नहीं बनते तो और अधिक सिंधी हिंदू मारे जाते। वाधुमल जी पर अजमेर में संघ का इतना प्रभाव पड़ा कि वह स्वयं अपने पुत्र किशन टेवानी को संघ की शाखा में ले गए। उस समय किशन जी की उम्र मात्र 13 वर्ष थी। आज किशन जी की उम्र 84 वर्ष है और वे अभी भी अजमेर के डिग्गी चौक स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। मेडिकल विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद किशन जी ने वर्षों तक कार्यालय प्रभारी का काम किया। आपातकाल में किशन जी के जेल जाने की तैयारी थी, लेकिन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के सहयोग के कारण जेल जाने से बच गए। किशन जी इस बात को अपना सौभाग्य मानते हैं कि वह तीन बार गुरुजी माधव सदाशिव गोलवलकर से मुलाकात कर चुके हैं। किसी भी स्वयंसेवक के लिए यह महत्वपूर्ण बात है कि उसे तीन बार संघ प्रमुख से मिलने का अवसर मिले। पहली बार 1959 में जयपुर के मोती डूंगरी में संघ के शीतकालीन शिविर में गुरुजी से परिचय करने का अवसर मिला। दूसरी बार 1962 में जब अजमेर के डीएवी कॉलेज में संघ शिक्षा वर्ग में गुरुजी आए तो किशन जी को भी शिक्षा वर्ग में दायित्व मिला। अगले वर्ष 1963 में अजमेर के महाराष्ट्र मंडल में आयोजित एक कार्यक्रम में गुरुजी आए तब भी किशन जी को मुलाकात का अवसर मिला। किशन जी बताते हैं कि महाराष्ट्र मेंडल में जब परिचय में मेरा नंबर आया तो गुरुजी ने कहा कि किशन जी आप बैठ जाओ मैं आपको जानता हंू। असल में एक वर्ष पहले डीएवी कॉलेज के संघ शिक्षा वर्ग में किशन जी ने दंड का जो प्रदर्शन किया, उससे गुरुजी बहुत प्रभावित हुए। किशन जी के लिए यह बड़ी बात रही कि एक वर्ष बाद गुरुजी पहचान गए। संघ के कार्यालय प्रभारी का दायित्व संभालते हुए किशन जी के संपर्क में संघ के कई प्रचारक आए। प्रचारकों के प्रभाव के कारण ही किशन जी को वानप्रस्थ अपनाने की प्रेरणा मिली। विभाग प्रचारक ओम प्रकाश जी, प्रांत प्रचारक सुरेश जी की प्रेरणा से किशन जी वानप्रस्थी हो गए, जिसका पालन वे आज तक कर रहे है। वर्ष 2001 में मेडिकल विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद से ही किशन जी सारा समय संघ को ही दे रहे हैं। आज भी संघ कार्यालय में संचालित चिकित्सालय में निशुल्क सेवाएं देते हैं तथा कार्यालय के वस्तु भंडार का दायित्व भी संभाल रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद से ही यानी गत 24 वर्षों से किशनजी संघ कार्यालय में ही रहते हैं। इसके लिए किशन जी अपने परिवार का आभार भी जताते हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन में भी किशन जी ने सक्रिय भूमिका निभाई। किशन जी का मानना है कि देश की एकता, अखंडता के लिए संघ का मजबूत होना जरूरी है। संघ एकमात्र संगठन है जो हिंदुओं की रक्षार्थ समर्पित है। किशन जी के छोटे भाई भी विवेकानंद केंद्र में प्रचारक की भूमिका निभा रहे हैं। मोबाइल नंबर 9829168364 पर किशन जी टेवानी से संवाद किया जा सकता है। 84 वर्ष की उम्र में भी किशन जी को जीवन के सारे घटनाक्रम याद है।
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मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक से पहले नागौर के कुचामन में व्यापारी रमेश ारुलानिया को गोली मार दी। रंगदारी न देने वाले व्यापारियों का यही हाल होगा। ऐसी धमकियों से राजस्थान पुलिस की बेइज्जती हो रही है।
7 अक्टूबर को राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कानून व्यवस्था को लेकर बैठक करते इससे पहले ही सुबह पांच बजे नागौर के कुचामन शहर में बदमाशों ने व्यापारी रमेश ारुलानिया की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना के समय रुलानिया जिम में वर्कआउट कर रहे थे। तीन बदमाश एक स्कॉर्पियो कार में आए और एक बदमाश ने जिम में जाकर गोली मारी। यानी वारदात को अंजाम देने से पहले रुलानिया की पूरी रेकी की गई। इस घटना को लेकर कुचामन के लोगों में भारी रोष व्याप्त है। बदमाशों ने एक साथ कई मोर्चे पर चुनौती दी है। जिस दिन मुख्यमंत्री ने कानून व्यवस्था की समीक्षा का निर्णय लिया, उसी दिन बदमाशों ने व्यापारी को मौत के घाट उतार दिया। बदमाशों ने यह प्रदर्शित किया कि वे मुख्यमंत्री की कानून व्यवस्था की समीक्षा बैठकों से डरते नहीं है। ऐसा नहीं कि रमेश रुलानिया को अचानक मार डाला गया हो। साल भर पहले लॉरेंस विश्नोई गैंग से जुड़े रोहित गोदारा के बदमाशों ने रुलानिया से पांच करोड़ रुपए मांगे थे, लेकिन तब बदमाशों को रंगदारी देने के बजाए रुलानिया ने पुलिस की सुरक्षा ले ली। हाल ही में पुलिस ने सुरक्षा वापस ले ली। सुरक्षा के हटते ही बदमाशों ने रुलानिया की हत्या कर दी। रुलानिया के साथ कुचामन के तीन और व्यापारियों को रोहित गोदारा की गैंग ने रंगदारी का फरमान जारी कर रखा है। रुलानिया की हत्या के बाद जब बदमाशों को करोड़ों रुपए की रंगदारी आसानी से मिल जाएगी। कोई भी व्यापारी नहीं चाहेगा कि उसका हश्र रमेश रुलानिया जैसा हो। राजस्थान की पुलिस माने या नहीं लेकिन संगठित अपराधियों में पुलिस का डर खत्म हो चुका है। इसलिए रुलानिया की हत्या के बाद रोहित गोदारा गैंग के वीरेंद्र चारण ने सोशल मीडिया पर हत्या की जिम्मेदारी ली और कहा कि जो व्यापारी उन्हें इग्नोर करेगा उसका हाल भी रुलानिया जैसा होगा। पुलिस की कार्यकुशलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तीस घंटे गुजर जाने के बाद भी बदमाशों का कोई सुराग नहीं लगा है। यहां तक कि पुलिस स्कॉर्पियो कार भी बरामद नहीं कर सकी है। असल में पुलिस का खुफिया तंत्र पूरी तरह विफल हो चुका है। एक समय था जब पुलिस अधीक्षक और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों का संवाद शहर के जागरूक लोगों से होता था। तब जरूरी सूचनाएं पुलिस को मिल जाती थी। लेकिन अब पुलिस के बड़े अधिकारी राजाओं का जीवन व्यतीत करते हैं। शहर के जागरूक लोगों से अधिकारियों का कोई संपर्क नहीं होता। कुचामन शहर की घटना में भी सबूत बताते हैं कि बदमाशों ने बीस मिनट तक रमेश रुलानिया के आने का इंतजार किया। यानी बदमाश रिवाल्वर लेकर 20 मिनट तक सड़क पर खड़े रहे। पुलिस दावा करती है कि रात्रि में गश्त होती है। लेकिन इस दावे की कुचामन में पोल खुल गई। रमेश रुलानिया की हत्या एक संगठित अपराध है। मुख्यमंत्री की ओर से दावा किया जाता है कि राजस्थान में एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स बना रखी है। सवाल उठता है कि जब रोहित गोदारा की गैंग ऐलानिया धमकी दे कर हत्या कर रही है, तब एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स कहां है? जाहिर है कि ऐसी फोर्स सिर्फ वाहवाही लूटने का काम कर रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा माने या नहीं लेकिन अब राजस्थान में बदमाशों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की जरूरत है। यह कहर बचाव नहीं किया जा सकता कि पिछले कांग्रेस के शासन में अपराध ज्यादा होते थे। प्रदेश की जनता ने भाजपा को सरकार चलाने का मौका इसलिए दिया कि अपराध न हो। राजस्थान पुलिस को भी उत्तर प्रदेश पुलिस की तरह अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी होगी। दो चार गली मोहल्लों के बदमाशों को सड़क पर घुमा देने से अपराधों पर अंकुश नहीं लगेगा। राजस्थान में पड़ोसी राज्यों के बदमाशों आकर खूनी वारदात कर रहे है। राजस्थान पुलिस को रमेश रुलानिया की हत्या को एक चुनौती के तौर पर स्वीकार करना चाहिए। रुलानिया की जिस तरह हत्या हुई उससे पुलिस की बेइज्जती हो रही है।
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अंता उपचुनाव में कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं नरेश मीणा। डॉक्टर सतीश पूनिया की पुस्तक अग्निपथ नहीं, जनपथ का विमोचन 12 अक्टूबर को।
राजस्थान के अंता में विधानसभा का उपचुनाव 11 नवंबर को होना है। 21 अक्टूबर तक नामांकन होने हैं। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इसके साथ ही कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। मीणा ने कहा कि वे 14 अक्टूबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगे। कांग्रेस यदि उन पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। वे कांग्रेस विचारधारा के है, इसलिए कांग्रेस से टिकट मांगा था। यदि कांग्रेस उन्हें उम्मीदवार बनाती तो अंता में कांग्रेस की जीत तय थी। अब वे चुनाव जीतने के लिए लड़ेंगे। कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अंता में नरेश मीणा का खासा प्रभाव है। मीणा की उम्मीदवारी कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है। जहां तक घोषित कांग्रेसी उम्मीदवार प्रमोद जैन का सवाल है तो वह लगातार पांचवीं बार कांग्रेस के उम्मीदवार बने हैं। प्रमोद जैन ने वर्ष 2008 व 2018 में जीत हासिल की जबकि 2013 व 2023 में हार का सामना करना पड़ा। 2023 में प्रमोद जैन भाया भाजपा के उम्मीदवार कंवर लाल मीणा से 5811 मतों से पराजित हुए। मालूम हो कि मीणा को एक आपराधिक मामले में तीन वर्ष की सजा होने के कारण विधायक पद छोड़ना पड़ा।
इसलिए अंता में उपचुनाव हो रहे है। नरेश मीणा के द्वारा चुनाव लड़ने की घोषणा से भाजपा के नेता उत्साहित है। माना जा रहा है कि अब अंता में भाजपा की जीत हो जाएगी। मौजूदा समय में भाजपा में सबसे प्रबल दावेदारी पूर्व मंत्री प्रभु दयाल सैनी की है। वर्ष 2013 में सैनी ने ही जीत दर्ज की थी। सैनी के साथ भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष आनंद गर्ग, प्रधान प्रखर कौशल, पालिका अध्यक्ष रामेश्वर लाल खंडेलवाल आदि भी दावेदारी जता रहे हैं।
पुस्तक का विमोचन:
राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष रहे और मौजूदा समय में हरियाणा के प्रभारी डॉ. सतीश पूनिया की पुस्तक अग्निपथ नहीं जनपथ का विमोचन 12 अक्टूबर को प्रात: 11.15 बजे जयपुर में कांस्टीट्यूशन क्लब में होगा। विमोचन समारोह में मुख्यमंत्री पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया होंगे, जबकि अध्यक्षता विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी करेंगे। समारोह में प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली और पूर्व प्रतिपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ व भीलवाड़ा की जिला प्रमुख बरजी बाई भील मुख्य अतिथि होंगे। यह पुस्तक डॉ. सतीश पूनिया के विधायक कार्यकाल पर आधारित है। मालूम हो कि डॉ. पूनिया वर्ष 2018 से 2023 के कार्यकाल में आमेर से भाजपा के विधायक थे। तभी डॉ. पूनिया को विधानसभा में प्रतिपक्ष के उपनेता का पद भी मिला। उन्हीं दिनों पूनिया भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।
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आखिर ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता क्यों होने लगी?
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री मानने से इंकार करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अब नरेंद्र मोदी की चिंता होने लगी है। 8 अक्टूबर को एक बयान में ममता ने मोदी को सलाह दी है कि वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से सावधान रहे, क्योंकि अमित शाह कार्यवाहक प्रधानमंत्री की तरह व्यवहार करते हैं। ममता ने मोदी को सलाह दी कि वह शाह पर अंधा विश्वास न करे। ममता को आशंका है कि एक दिन अमित शाह मीर जाफर की तरह मोदी के खिलाफ खड़े हो सकते हैं। सवाल उठता है कि ममता बनर्जी को मोदी की चिंता क्यों हो रही है? ममता तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री ही नहीं मानती है। ममता ने ऐसा बयान सार्वजनिक तौर पर दिया है। असल में ममता बनर्जी इस तरह का बयान देकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच शक पैदा करना चाहती है, जबकि राजनीति के जानकारों का मानना है कि मोदी और शाह के बीच कभी भी गलतफहमी नहीं हो सकती। दोनों के बीच बेहतर तालमेल है। अमित शाह जो भी फैसले लेते हैं, उनमें मोदी की सहमति होती है। भले ही सरकार में अमित शाह सबसे ताकतवर मंत्री हो, लेकिन वे हमेशा मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा करते है। अमित शाह ने देश के आंतरिक हालातों को बेहतर तरीके से संभाला है। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी बेफ्रिक होकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का सम्मान बढ़ाने का काम कर रहे हैं। देश में विपरीत हालातों को नियंत्रित करने में अब अमित शाह को अच्छा अनुभव हो गया है। सब जानते हैं कि ममता बनर्जी की वजह से पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था बेहद खराब है। ऐसे में अमित शाह बड़ी समझदारी से बंगाल में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करवा रहे है। ममता और उनके कट्टरपंथी समर्थकों पर थोड़ा बहुत नियंत्रण अमित शाह की वजह से ही हो रहा है। ममता बनर्जी चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच शक पैदा नहीं कर सकती है।
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दीपिका ने हिजाब और रणवीर ने शेरवानी पहनकर आबू धाबीकी मस्जिद में शूटिंग की। दुबई में तो दीपिका गैर मर्द (शाहरुख खान) के साथ भी नहीं घूम सकती। बेशर्म अश्लीलता तो भारत में ही दिखाई जा सकती है।
फिल्मी अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने दुबई के आबूधाबी में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक विज्ञापन की शूटिंग मस्जिद में की है। इस विज्ञापन में दीपिका हिजाब पहने हुए हैं तथा उसके पति अभिनेता रणवीर सिंह शेरवानी में नजर आ रहे है। इस विज्ञापन में दोनों ने इस्लामिक परंपराओं का पूरा ख्याल रखा है। किसी भी एंगल से दोनों ने अश्लीलता प्रकट नहीं की है। हिजाब और शेरवानी के परिधान के कारण ही यह विज्ञापन चर्चा का विषय बना हुआ है। सब जानते हैं कि 2022 में जब पठान फिल्म रिलीज हुई, तब दीपिका पादुकोण और शाहरुख खान ने बेशर्म रंग वाले गाने में अश्लीलता की सभी हदें पार कर दी थी। दीपिका तो बिकनी में नजर आई ही साथ ही शाहरुख खान भी अद्र्धनग्न। दोनों ने मिलकर गाने में जो अश्लीलता दिखाई उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। शाहरुख खान ने भी सीना ठोक कर कहा कि वे दीपिका के साथ ऐसी अश्लील हरकतें करते रहेंगे। असल में दीपिका और शाहरुख खान को भारत में ही बेशर्म अश्लीलता करने की आजादी है। दुबई में तो दीपिका गैर मर्द के साथ घूम भी नहीं सकती। अबू धाबी की मस्जिद की शूटिंग में दीपिका के साथ उनके पति रणवीर सिंह को इसलिए दिखाया गया क्योंकि यहां किसी महिला का पति के अलावा दूसरे मर्द के साथ घूमना अपराध है। यानी दीपिका पादुकोण भारत में ही शाहरुख खान के साथ अश्लीलता प्रकट कर सकती है।
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अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 11 ================ संघ पर प्रतिबंध और गुरुजी की गिरफ्तारी के विरोध में मास्टर भंवरलाल जी भी जेल गए। तब शिक्षक की नौकरी भी चली गई। पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय अजमेर की हिंदू प्रवासी होटल में ठहरे। संघ, जनसंघ और भाजपा का केंद्र रहा प्रवासी होटल।
100 वर्ष पूरे होने पर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जो विशाल और मजबूत स्वरूप देखा जा रहा है, उसके पीछे अजमेर के मास्टर भंवरलाल जी शर्मा जैसे स्वयंसेवकों का परिश्रम और संघर्ष रहा है। इसी संघर्ष की वजह से सैकड़ों स्वयंसेवकों को सरकारी नौकरी भी गंवानी पड़ी। लेकिन देश के लिए स्वयंसेवकों ने संघ के कार्यों को प्राथमिकता दी। ऐसे ही स्वयंसेवक मास्टर भंवरलाल जी शर्मा रहे। अजमेर में संघ के शुरुआती दिनों से ही भंवर जी का संघ की शाखा में जाना रहा। 30 जनवरी 1948 को जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया गया और तब के संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवरकर गुरुजी को गिरफ्तार किया गया। प्रतिबंध और गुरुजी की गिरफ्तारी के विरोध में संघ ने तब देश भर में जेल भरो आंदोलन चलाया। मास्टर भंवरलाल जी तब सरकारी स्कूल में शिक्षक थे, लेकिन नौकरी की परवाह किए बगैर जेल चले गए। जेल जाने के कारण भंवर जी की नौकरी भी चली गई। संघ से प्रतिबंध हटने के बाद जब भंवर जी जेल से बाहर आए तो उन्होंने अजमरे के केसरगंज स्थित विरजानंद स्कूल में शिक्षक की नौकरी की। यह स्कूल आर्य समाज द्वारा चलाया जाता था। इसके साथ ही घर परिवार को चलाने के लिए मदार गेट पर हिंदू प्रवासी होटल का संचालन अपने हाथ में लिया। चूंकि यह होटल रेलवे स्टेशन के सामने हैं, इसलिए मुसाफिरों का होटल में आना जाना रहा। संघ से जुड़े होने के कारण ही पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय जैसे नेता भी प्रवासी होटल में रहे। तब होटल में रमन नाम का एक कर्मचारी कार्यरत था। पंडित जी जब भी अजमेर प्रवास पर आते तो रमन ही सेवा चाकरी करता था। हालांकि उस समय होटल में सुविधा के नाम पर सोने के लिए एक पलंग और साधारण भोजन मिलता था। भंवर जी ने उन कठिन दिनों में संघ के नगर संचालक का दायित्व भी निभाया और अजमेर में शाखाओं का विस्तार किया। 1951 में जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की तब भंवर जी ने अजमेर में जन संघ का कार्य भी किया। उन्हीं दिनों में भैरोसिंह शेखावत, सुंदर सिंह भंडारी, हरिशंकर भाभड़ा, ललित किशोर चतुर्वेदी जैसे बड़े नेता भी अजमेर आने पर प्रवासी होटल में ठहरते थे। तब भैरो सिंह जी का प्रवास तो कई दिनों तक रहता था। बाद में जब भैरो सिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तब कई बार भंवर जी से मिलने के लिए होटल आए। 6 अप्रैल 1980 को जब मुंबई में भारतीय जनता पार्टी बनाने की घोषणा की गई तब मुंबई के अधिवेशन में भंवर जी भी उपस्थित रहे। भंवर जी ही अजमेर भाजपा के पहले अध्यक्ष बने। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में भाजपा को दो सीटें मिली तो अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए भंवर जी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भी भंवर जी का प्रवासी होटल भाजपा की राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा। वर्षों तक जनसंघ और भाजपा की गतिविधियां इसी होटल में संचालित होती रही। भंवर जी के तीन पुत्र गोपाल शर्मा, कमल शर्मा और अशोक शर्मा भी राजनीति में सक्रिय रहे। परिवार के कई सदस्य आज भी संघ और संघ से जुड़े संगठनों में दायित्व निभा रहे हैं। पौत्री अलका गौउ गत 25 वर्षों से विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय हैं और मातृशक्ति प्रांत की संयोजिका का दायित्व भी निभाया है। स्वर्गीय अशोक जी शर्मा के पुत्र और भंवर जी के पौत्र पुनीत शर्मा मौजूदा समय में संघ में दायित्व निभा रहे हैं। भंवर जी के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829551312 पर पौत्र पुनीत शर्मा से ली जा सकती है। यहां मैं खासतौर से उल्लेख करना चाहता हूं कि भंवर जी द्वारा संचालित ऐतिहासिक हिंदू प्रवासी होटल का संचालन अब देवेश्वर प्रसाद गुप्ता और उनके पुत्र तेजस्व गुप्ता व सुमित गुप्ता कर रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भंवर जी के होटल में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। होटल के मूल स्वरूप को बनाए रखा है। आज भी इस होटल में छोटे छोटे कमरे हैं। अलबत्ता होटल का नाम प्रवासी पैलेस किया गया है।
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Tuesday, 7 October 2025
नरेंद्र मोदी के संवैधानिक पद पर रहने के चौबीस वर्ष पूरे। भारत में ऐसा दूसरा राजनेता नहीं। अब 2047 के विकसित भारत का संकल्प।
7 अक्टूबर 2001 को भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। आज जब 7 अक्टूबर 2025 का दिन है, तब मोदी को संवैधानिक पद पर रहते हुए चौबीस वर्ष पूरे हो गए हैं। किसी भी राजनेता के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। भारत में नरेंद्र मोदी जैसा दूसरा राजनेता अभी तक नहीं हुआ है। ऐसे कई नेता मिल जाएंगे जो 24 वर्ष से भी अधिक समय तक संवैधानिक पदों पर रहे हो, लेकिन मोदी ने जिस तरह संघर्ष कर सफलता हासिल की वैसा दूसरा राजनेता अभी तक देखने को नहीं मिला है। 12 वर्ष तक लगातार गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने गुजरात में जो विकास किया, उस पटरी पर आज भी गुजरात दौड़ रहा है। मोदी ने गुजरात में भाजपा की जो जाजम बिछाई उसी की वजह से भाजपा को हर चुनाव में सफलता मिल रही है। इसे मोदी की कड़ी मेहनत ही कहा जाएगा कि वर्ष 2014 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो आज तक प्रधानमंत्री बने हुए है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मजबूत विपक्ष के बावजूद लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना आसान नहीं है। भाजपा ने वर्ष 2014 में मोदी के नेतृत्व में जब लोकसभा का चुनाव लड़ा तो भाजपा को 282 सीटें मिली। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें हालस कर रिकॉर्ड दर्ज किया। लेकिन 2024 में भाजपा को 240 सीटें ही मिल सकी, लेकिन सहयोगी दलों के समर्थन के कारण मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। भले ही मोदी सहयोगी दलों के समर्थन से सरकार चला रहे हो, लेकिन प्रधानमंत्री रहते हुए मोदी ने कभी भी राजनीतिक लाचारी नहीं दिखाई। मोदी ने देश के विभिन्न राज्यों में भाजपा को जीत दिलवाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह है कि आज देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। मोदी के कार्यकाल में ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया। इससे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की कमर तोड़ने में मदद मिली। 2020 से पहले अनुच्छेद 370 को हटाने की चर्चा करने पर भी डर लगता था। लेकिन आज कश्मीर के मुसलमान भी मानते हैं कि 370 के हटने के बाद कश्मीर को सही मायने में स्वतंत्रता मिली है। इतना ही नहीं अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण करवा कर मोदी ने भारत के सनातनियों को गौरवान्वित किया। देश के लिए यह दोनों काम बड़ी उपलब्धि रहे। मोदी ने जहां वर्षो पुरानी समस्याओं का निदान किया, वहीं भारत को आर्थिक दृष्टि से मजबूत भी किया। आज भारत दुनिया में आर्थिक दृष्टि से चौथी महाशक्ति है। मोदी का प्रयास है कि भारत को दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनाया जाए। इसके लिए 2047 तक विकसित भारत का संकल्प लिया गया है। 2047 को भारत की आजादी के सौ वर्ष पूरे होंगे। मोदी का संकल्प है कि 2047 तक भारत एक विकसित देश बन जाए। मोदी की चौबीस वर्षों की यात्रा को देखा जाए तो वे हर मोर्चे पर सफल हुए हैं। भारत में मजबूत विपक्ष के बावजूद मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को एक मजबूत देश साबित किया है। मोदी को अब तक 27 देशों का सर्वोच्च सम्मान मिल चुका है। मोदी ने अभी तक 17 देशों की संसद में संबोधन दिया है। भारत में दूसरा ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ जिसे 27 देशों का सर्वोच्च सम्मान तथा 17 देशों की संसद को संबोधित करने का अवसर मिला हो। जैन आचार्य प्रज्ञा सागर ने तो 28 जून 2025 को नरेंद्र मोदी को धर्म चक्रवर्ती की उपाधि से सम्मानित किया। मोदी ने इस सम्मान को सहर्ष स्वीकार भी किया।
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कांग्रेस की गंदी राजनीति के पोस्टर गंदी जगह (मूत्रालय) पर ही लगे। अशोक गहलोत के पुत्र वैभव को लेकर अजमेर में पहले भी पर्चे वितरित हो चुके हैं। ताजा गंदी राजनीति भी उसी गैंग का काम है।
कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान में 5 अक्टूबर को अजमेर के सर्किट हाउस में कांग्रेसियों के बीच जो झगड़ा हुआ, वह शांत भी नहीं हुआ था कि 6 अक्टूबर को एक मूत्रालय में कांग्रेस की गंदी राजनीति का पोस्टर देखने को मिल गया। अब इस पोस्टर को लेकर कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। यह पोस्टर आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ को लेकर है। पोस्टर में राठौड़ पर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई है। राठौड़ के समर्थकों ने पुलिस अधीक्षक को एक ज्ञापन देकर उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की है, जिन्होंने ऐसे पोस्टर लगाए। असल में जिन लोगों ने पोस्टर लगाए उन्होंने मुश्किल से दो तीन स्थानों पर ही पोस्टर लगाए और बाद में एक दो यूट्यूबर्स को फोन कर पोस्टर की जानकारी दे दी। सोशल मीडिया के जमाने में दो तीन पोस्टरों ने ही लाखों पोस्टरों का काम कर दिया। धर्मेन्द्र राठौड़ इन पोस्टरों को भले ही भाजपा की साजिश बताए, लेकिन सवाल उठता है कि राठौड़ को अजमेर से भगाने से भाजपा को क्या फायदा होगा? असल में यह कांग्रेस का आंतरिक विवाद है। सचिन पायलट के समर्थक नहीं चाहते कि धर्मेन्द्र राठौड़ अजमरे में राजनीति करें। इसलिए पोस्टर में राठौड़ को दलाल और चोर बताते हुए अजमेर छोड़ने की सलाह दी है। मजे की बात तो यह है कि इसी पोस्टर में वोट चोर गद्दी छोड़ का भी उल्लेख किया गया है। यानी कांग्रेस खुद ही अपनी पार्टी में चोर होने की बात स्वीकार कर रही है। पांच अक्टूबर को भी केंद्रीय पर्यवेक्षक अशोक तंवर के सामने पायलट के समर्थकों ने धर्मेन्द्र राठौड़ का विरोध किया था। पायलट के समर्थक चाहे जितना विरोध करें, लेकिन पिछले तीन वर्षों से धर्मेन्द्र राठौड़ अजमेर में निरंतर सक्रिय हैं। राठौड़ को पूर्व सीएम अशोक गहलोत का पूरा संरक्षण है।
पूर्व में भी पर्चे:
अजमेर कांग्रेस की राजनीति में विवादों की जड़ हे। पूर्व में अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को लेकर भी अजमेर में पर्चे बांट चुके हैं। तब वैभव पर अजमेर के भू-कारोबारियों से दोस्ती के आरोप लगे थे। तब गहलोत प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इन पर्चो का ही असर रहा कि तब उन भू-आवंटनों को रद्द किया गया, जिसकी और पर्चों में इशारा किया गया था। तभी से वैभव गहलोत का अजमेर आना भी बंद हो यगा। माना जा रहा है कि ताजा विवाद भी अशोक गहलोत पर ही हमला है। कांग्रेस भले ही संगठन सृजन अभियान चला रही हो, लेकिन इससे अधिकांश जिलों में कांग्रेस को नुकसान ही हो रहा है। माना जा रहा है कि जिस गैंग से पूर्व में पर्चे वितरित करवाए, उसी गैंग ने राठौड़ वाले पोस्टर लगाए हैं। पुलिस चाहे जितनी भी छानबीन कर ले, लेकिन गैंग के सदस्यों का पता नहीं लगाया जा सकता। अलबत्ता कांग्रेस में सबको पता है कि पोस्टर किसने लगाए हैं।
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Sunday, 5 October 2025
विधायक रहे नवल जी की ईमानदारी और सादगी से आज के जनप्रतिनिधि प्रेरणा ले सकते हैं।
नवल राय बच्चानी का परिवार भी उन परिवारों में शामिल रहा जो 1948 में देश के विभाजन की विभीषिका को झेलकर अजमेर पहुंचा। नवल जी के पिता सेवकराम जी भी सिंध प्रांत से विस्थापित होकर अजमेर आए थे। नवल जी की सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि दो वर्ष पहले ही उनका विवाह हुआ था। नवविवाहिता पत्नी लाजवंती के साथ उस समय विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए अजमेर पहुंचे। सिंध में सब कुछ छोड़कर अजमेर में शरणार्थी बनकर रहे। लेकिन पिता सेवकराम जी और पुत्र नवल जी ने हिम्मत नहीं हारी और स्वयं को अजमेर में स्थापित किया। नवल जी और उनके पिता सिंध में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे, इसलिए अजमेर में भी संघ की गतिविधियों से जुड़ गए। नवल जी के पास वैद्य की डिग्री थी, इसलिए अजमेर के हाथी भाटा में आयुर्वेद पद्धति से मरीजों का इलाज शुरू कर दिया। यही उनकी आजीविका रही। चूंकि नवल जी संघ की शाखाओं में नियमित जाते रहे, इसलिए आपातकाल के दौरान उन्हें भी जेल जाना पड़ा। नवल जी आपातकाल के पूरे 18 माह में अजमेर की सेंट्रल जेल में बंद रहे, तब उनकी पत्नी लाजवंती के सामने परिवार को पालने की समस्या खड़ी हो गई। लेकिन तब लाजवंती ने घर पर ही कागज की थैलियां बनाई और दुकानदारों को थैलिया बेचकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ किया। इस संघर्ष का प्रतिफल नवल जी को तब मिला जब वे अजमेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन गए। आपातकाल के बाद 1977 में जब चुनाव हुए तो नवल जी को संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनने का अवसर मिला। नवल जी ढाई वर्ष ही विधायक रह पाए क्योंकि 1980 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली सरकार को भी बर्खास्त कर दिया था। चूंकि नवल जी राजनीति के दांव पेंच नहीं जानते थे, इसलिए बाद में राजनीति से अलग हो गए और पुन: संघ का कार्य शुरू कर दिया। उस समय उनके घर पर भैरो सिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभड़ा, भंवरलाल शर्मा जैसे दिग्गज नेता प्रवास करते रहे। सिंध प्रांत से आने के बाद नवलजी की रेलवे में नौकरी भी लगी, लेकिन संघ कार्य के कारण नवल जी ने नौकरी के लिए अजमेर से बाहर नहीं गए। नवल जी की 14 वर्ष की उम्र में सिंध में संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। 1970 में भारतीय जनसंघ के सचिव और फिर अध्यक्ष भी बने। 1980 में विधायक के पद से हटने के बाद दस वर्ष तक नवल जी ने निकटवर्ती खरेकड़ी गांव में विश्व हिंदू परिषद द्वारा संचालित आयुर्वेद धर्मार्थ चिकित्सालय में अपनी सेवाएं दी। इसके बाद नवल जी तीन बार अजमेर शहर भाजपा के अध्यक्ष बने। 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जब विस्थापित आए तब भी उन्हें भारत की नागरिकता दिलवाने में नवल जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चूंकि नवल जी को सिंधी भाषा का विशेष ज्ञान रहा, इसलिए वे राजस्थान सिंधी अकादमी के अध्यक्ष भी बने। नवल जी ने सिंध प्रांत के राजा दाहरसेन के जीवन पर एक पुस्तक भी लिखी। उन्होंने सिंधियों के आराध्य देव झूलेलाल जी और संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी के जीवन पर भी पुस्तक लिखी। यह सभी पुस्तकें सिंधी भाषा में लिखी गई। वैद्य होने के कारण नवल जी ने आयुर्वेद के नुस्खों पर भी एक पुस्तक लिखी है। नवल जी भारतीय सिंधी भाषा विकास परिषद के सदस्य भी रहे। संघ से जुड़े भारतीय सिंध सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। नवल जी के तीन पुत्र और तीन पुत्रियां हुई। नवल जी के सबसे छोड़े पुत्र सीताराम बच्चानी ने बताया कि बड़े भाई भगवान बच्चानी अजमेर नगर निगम के राजस्व निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। जबकि दूसरे भाई भीष्म बच्चानी दिल्ली में योगा टीचर है। वे स्वयं अजमेर के आनंद नगर में अपना निजी व्यवसाय करते हैं। मोबाइल नंबर 9461594580 पर नवल जी के बारे में उनके पुत्र सीताराम बच्चानी से और अधिक जानकारी ली जा सकती है।
प्रेरणा ले सकते हैं:
आज के जनप्रतिनिधि नवल जी के जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं। विधायक रहने के बाद भी नवल जी ने सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत किया। आमतौर पर नवल जी पैदल ही चलते थे। 2019 में निधन से पहले अजमेर के लोगों ने नवल जी को सड़क पर पैदल चलते ही देखा है। उन्होंने अजमेर में कोई बड़ीसंपत्ति अर्जित नहीं की। हाथी भाषा के जिस किराए के मकान में अपना औषधायल खोला उसे ही बाद में खरीदा। नलव जी की सादगी के कारण ही संघ में आज उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
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वृंदावन के बाहर भागवत कथा करना कोई गलत नहीं। प्रेमानंद जी महाराज ने ब्रज की प्रसिद्धि को और बढ़ाया। संत श्री रसिक महाराज ने अजमेर में फूड प्रोडक्ट के शोरूम गोयल जी का शुभारंभ किया।
वृंदावन के सुप्रसिद्ध कथावाचक संत श्री रसिक महाराज ने पांच अक्टूबर को अजमेर के वैशाली नगर में शांतिपुरा के सामने आधुनिक फूड प्रोडक्ट के शोरूम गोयल जी का शुभारंभ किया। इस अवसर पर रसिक महाराज ने शोरूम के मालिक सुनील गोयल, नितिन गोयल और विपिन गोयल को आशीर्वाद भी दिया। शोरूम के शुभारंभ पर रसिक महाराज से मुझे भी मुलाकात करने का अवसर मिला। मेरे एक सवाल पर संत श्री रसिक महाराज ने कहा कि वृंदावन के जो कथावाचक अब दूसरे शहरों में भागवत कथा कर रहे है उसमें कोई बुराई नहीं है। कुछ लोग सोचते हैं कि जिन विद्वानों ने वृंदावन में रहकर कथा वाचन सीखा है, वह वृंदावन में ही कथावाचक का काम करें, लेकिन अब जब समाज में अनेक बुराइयां आ गई है, तब भागवत के संदेश को घर घर तक पहुंचाने की जरूरत है। ऐसा तभी संभव होगा, जब वृंदावन के विद्वान देश के दूसरे शहरों में जाकर भागवत कथा करें। वे स्वयं भी वृंदावन में रहते हैं और उन पर ठाकुरजी की विशेष कृपा है। उन्होंने भी अनेक कथाएं वृंदावन से बाहर की है। विगत दिनों ही अजमेर के कोटड़ा स्थित रामदेव मंदिर में सात दिवसीय भागवत कथा की। वे अब तक 250 स्थानों पर भागवत कथा कर चुके हैं। वे पिछले बीस वर्षों से भागवत का संदेश घर घर पहुंचाने में लगे हैं। स्वामी हरिदास जी महाराज, स्वामी हित हरिवंश चंद्र जू महाराज जैसे अनेक विद्वानों ने वृंदावन से बाहर कथाएं की है। स्वामी हरिदास जी महाराज को बांके बिहारी तथा स्वामी हितहरिवंश को राधा वल्लभव को साक्षात प्रकट करने वाला माना जाता है। उन्होंने कहा कि आज भौतिक विज्ञान से सिर्फ शरीर का सुख लिया जा सकता है जबकि कथा विज्ञान से अंतकरण का सुख मिलता है। उन्होंने माना कि स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के कारण वृंदावन को और प्रसिद्धि मिली है। प्रेमानंद जी के दर्शन के लिए देश विदेश से प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग वृंदावन आ रहे हैं। प्रेमानंद जी प्रतिदिन जो प्रवचन देते हैं, उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से करोड़ों लोग सुन रहे है। वृंदावन और उसके धार्मिक महत्व के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 8533099019 पर रसिक महाराज से ली जा सकती है।
गोयल जी प्रोडक्ट का शुभारंभ:
पांच अक्टूबर को अजमेर के वैशाली नगर में आधुनिक फूड प्रोडक्ट्स के शोरूम गोयल जी का शुभारंभ हुआ। इस शोरूम पर सभी प्रकार की सुगंधित सुपारियों से लेकर गुजरात के खाद्य प्रोडक्ट उपलब्ध होंगे। ड्राई फ्रूट्स गिफ्ट बॉक्स भी उपलब्ध है। बेकरी के उत्पाद भी उपलब्ध है। इस शोरूम के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9928082525 पर नितिन गोयल से जी जा सकती है।
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पूर्व सीएम अशोक गहलोत को जिस बात का डर था, वही हुआ। आखिर अजमेर, कोटा, जयपुर में केंद्रीय पर्यवेक्षकों के सामने हंगामा हो ही गया। राजस्थान में अभी भी कांग्रेस के कार्यकर्ता गहलोत और पायलट के गुटों में बंटे हैं।
राजस्थान में जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्ष के चयन के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक चार अक्टूबर को अपने अपने जिलों में रायशुमारी कर रहे हैं। चार अक्टूबर को जब सभी तीस जिलों में पर्यवेक्षक पहुंच गए तभी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर कहा कि केंद्रीय पर्यवेक्षकों को निष्पक्षता के साथ अपना काम करना चाहिए। गहलोत ने अपनी इस पोस्ट में कार्यकर्ताओं की गुटबाजी और पर्यवेक्षक के समक्ष हंगामे की आशंका भी प्रकट की। असल में गहलोत को पहले से ही आभास था कि केंद्रीय पर्यवेक्षकों के सामने कार्यकर्ता हंगामा करेंगे। गहलोत का यह डर सही साबित हुआ। अजमेर में 5 अक्टूबर को जब केंद्रीय पर्यवेक्षक अशोक तंवर फॉयसागर रोड स्थित एक समारोह स्थल पर रायशुमारी कर रहे थे, तब शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन और आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने जोरदार हंगामा किया। राठौड़ को गहलोत और विजय जैन को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का समर्थक माना जाता है। इन दोनों गुटों के कार्यकर्ताओं ने तंवर के समक्ष भरपूर प्रदर्शन किया। तंवर को राठौड़ के समर्थकों ने बताया कि अजमेर में संगठन का असली काम हम ही कर रहे हैं। वहीं पायलट गुट के विजय जैन ने धर्मेन्द्र राठौड़ के वजूद को ही नकार दिया। कांग्रेस के जो हाल अजमेर में देखने को मिले वो ही कोटा में केंद्रीय पर्यवेक्षक के सामने नजर आए। कोटा में पूर्व मंत्री शांति धारीवाल और पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल के नेतृत्व में कार्यकर्ता विभाजित रहे। धारीवाल को गहलोत का तथा गुंजल को पायलट का समर्थक माना जाता है। अजमेर और कोटा की तरह जयपुर में भी कांग्रेस के नेताओं में खींचतान देखने को मिली है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपने पर्यवेक्षकों से कहा है कि वे कार्यकर्ताओं से विमर्श कर जिलाध्यक्ष के लिए पांच नामों का पैनल बनाए। यही वजह है कि केंद्रीय पर्यवेक्षक के सामने पांच नाम वाले पैनल में शामिल होने के लिए गहलोत और पायलट के समर्थक कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बड़े नेताओं की जोर आजमाइश में पर्यवेक्षक पैनल कैसे तैयार करेंगे, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा। सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ कार्यकर्ताओं की राय पर ही जिलाध्यक्ष का निर्णय होगा? मौजूदा समय में गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं तथा टीकाराम जूली प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका में है, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस के कार्यकर्ता अभी भी गहलोत और पायलट के गुटों में बंटे हैं।
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ऐसी घटनाओं के कारण ही राजस्थान में पांच-पांच वर्ष के लिए भाजपा-कांग्रेस का शासन।
पांच अक्टूबर की रात को साढ़े ग्यारह बजे जयपुर के सरकार एसएमएस अस्पताल के ट्रामा सेंटर के आईसीयू में अचानक आग लग गई। आग इतनी भीषण थी कि आईसीयू में भर्ती आठ मरीजों की मौत हो गई। 15 मरीज अभी भी गंभीर अवस्था में हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आग शॉट सर्किट से लगी लेकिन आग लगाने के बाद अस्पताल का कोई स्टाफ मौके पर नहीं आया। परिजनों ने ही अपने मरीजों को बाहर निकालने का काम किया। आग के कारण वार्ड में धुंआ हो गया, लेकिन धुएं को बाहर निकलने का रास्ता भी नहीं मिला। मरीजों के परिजनों ने कांच वाली दीवार तोड़कर धुएं को निकालने का प्रयास किया। आग में वार्ड के अधिकांश उपकरण भी जल गए। चूंकि घटना के समय अस्पताल का कोई स्टाफ नहीं आया, इसलिए फायर सिस्टम का उपयोग नहीं हो सका। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यदि शॉट सर्किट होते ही फायर सिस्टम का उपयोग हो जाता तो आठ मरीजों की जान बच सकती थी। घटना के समय अस्पताल का स्टाफ क्यों नहीं आया, इस सवाल का जवाब अस्पताल प्रबंधन की ओर से नहीं दिया जा रहा है अलबत्ता घटना की जांच के लिए पांच सदस्यीय उच्चस्तरीय कमेटी का गठन कर दिया गया है। आग की इस घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी दुख जताया है। घटना की जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अस्पताल पहुंच कर हालात जाने पूर्व सीएम अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने भी अस्पताल पहुंचकर मृतक मरीजों के परिजन से बात की, लेकिन छह अक्टूबर की दोपहर 12 बजे तक प्रदेश के चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर अस्पताल नहीं आ सके। जानकारों की मानें तो एसएमएस अस्पताल में आग लगने की सूचना रात को ही मंत्री खींवसर को दी गई थी, लेकिन उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र लोहावट से जयपुर आना उचित नहीं समझा। खींवसर अपनी सुविधा से दोपहर को ही जयपुर आए। सवाल उठता है कि जिस घटना पर प्रधानमंत्री मोदी दुख जता रहे हो, उस घटना पर चिकित्सा मंत्री खींवसर ने गंभीरता क्यों नहीं दिखाई। क्या चिकित्सा मंत्री की नजर में सरकारी अस्पताल में आठ लोगों की मौत का मामला गंभीर नहीं है?
निजी अस्पताल होता तो:
एसएमएस अस्पताल वाली घटना यदि किसी निजी अस्पताल में होती तो घटना के तुरंत बाद अस्पताल के मालिक और डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया जाता। लेकिन एसएमएस की घटना के 12 घंटे बाद भी किसी भी कार्मिक के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सरकार की ओर से यही कहना है कि जांच रिपोर्ट के बाद कोई कार्रवाई की जाएगी।
इसलिए पांच पांच वर्ष का शासन:
5 अक्टूबर को एसएमएस अस्पताल में हुई घटना पूर्व में कांग्रेस के शासन में भी होती रही हैं। कांग्रेस के शासन में भी सरकारी अस्पतालों में ऐसी अव्यवस्थाएं होती रही। उम्मीद की गई थी कि भाजपा के शासन में रोक लगेगे। लेकिन राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस की सरकार में ऐसी घटनाएं होना आम बात हे। असल में सरकार तो बदल जाती है, लेकिन व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होता। यही वजह है कि राजस्थान में गत पांच बार से विधानसभा चुनाव में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की जीत हो रही है।
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लंदन में जिस मकान में रहकर अंबेडकर ने पढ़ाई की उसी मकान (म्यूजियम) में बैठकर राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष देवनानी ने दुर्लभ साहित्य पढ़ा। सावरकर हाउस भी देखा।
भारत में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्ष पूरे होने पर अनेक समारोह हो रहे हैं, तब राहुल गांधी की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में संघ की विचारधारा को कायरता वाली बता रहे है, जबकि राहुल ने तो गांधी वाला सरनेम उधार ले रखा है। राहुल का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परिवार से कोई सरोकार नहीं है। फिर भी राहुल अपने नाम के साथ गांधी शब्द का उपयोग करते हैं ताकि महात्मा गांधी के नाम का फायदा उठाया जा सके। उधार का सरनेम का उपयोग करने वाले राहुल को अब संघ की विचारधारा कायरता वाली नजर आती है, जबकि अपनी विचारधारा से ही संघ आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। राहुल गांधी अपने अधूरे ज्ञान से संघ के बारे में कुछ भी कहे, लेकिन संघ की विचारधारा भारत की सनातन संस्कृति से जुड़ी हुई है। दुनिया में सनातन संस्कृति ही ऐसी संस्कृति है, जिसमें सभी धर्मों और विचारधाराओं का सम्मान होता है। जबकि राहुल गांधी तो उस संस्कृति के संरक्षक हैं, जिसने देश के विभाजन के समय 20 लाख हिंदुओं की हत्या की। इतना ही नहीं जम्मू कश्मीर से चार लाख हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। ऐसी संस्कृति को राहुल ने कभी भी आलोचना नहीं की। राहुल गांधी जब भी विदेश जाते हैं तो भारत में लोकतंत्र को खतरा बताते हैं। राहुल लोकतंत्र को खतरा बता रहे है, जब लोकसभा में 545 सांसदों में से 234 विपक्ष के सांसद है। खुद राहुल गांधी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता है। प्रतिपक्ष का नेता होने के कारण राहुल को लोकसभा में हर विषय पर बोलने का विशेषाधिकार है। लेकिन लोकसभा में राहुल विपक्षी सांसदों के साथ हंगामा करवाते हैं। संसद का बजट और मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। राहुल संसद के अंदर स्वस्थ बहस नहीं होने देते और विदेश में जाकर लोकतंत्र को खतरा बताते हैं। राहुल गांधी हमेशा उन ताकतों के साथ खड़े नजर आते हैं जो भारत विरोधी है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में प्रतिपक्ष के नेता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोकतंत्र में प्रतिपक्ष के नेता को प्रधानमंत्री के बराबर सम्मान मिलता है। लेकिन आमतौर पर देखने में आया है कि राहुल अपने नेता पद के अनुरूप आचरण नहीं करते हैं। राहुल को सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है, लेकिन राहुल गांधी सरकार की आलोचना करने के बजाए देश का विरोध करते हैं। यही वजह है कि देश भर में कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो रहा है। आज कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर निर्भर हो गई है।
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Friday, 3 October 2025
अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग - 6 पाकिस्तान से आकर अजमेर में पार्षद बने सेवकराम सोनी। आपातकाल में बेटे के साथ रहे जेल में। हिंदुओं की बहन-बेटियों को तंग करने वालों को सबक भी सिखाया।
देश के विभाजन के समय 1948 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत से जो सिंधी हिंदू परिवार किसी तरह जान बचाकर अजमेर आए, उनमें नारूमल सोनी का परिवार भी शामिल था। नारूमल अपने भरे पूरे परिवार के साथ अजमेर आए थे। उनके साथ पांच वर्षीय पुत्र सेवकराम सोनी भी था। चूंकि नारूमल स्वयं भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से जुड़े रहे इसलिए अजमेर आते ही पुत्र सेवकराम को शाखा में भेजना शुरू कर दिया। सेवकराम को बचपन से ही गीत लिखने का शौक रहा। 'यह हिमालय से उठा शीर्षक वाला गीत तो सुनने वालों के रोंगटे खड़े कर देता था। सेवकराम का संघ के प्रति समर्पण के कारण ही आपातकाल में उन्हें जेल जाना पड़ा। हालांकि विभाजन के समय पूरे परिवार ने विभाजन की त्रासदी को झेला और बड़ी मुश्किल से अजमेर में दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया। लेकिन आपातकाल में तत्कालीन सरकार का संघ के प्रति दमनात्मक रुख था, इसलिए संघ के अधिकांश स्वयंसेवकों को जेल में डाला। सेवकराम जब अजमेर की सेंट्रल जेल में थे, तभी दूसरी बैरक से गीत की आवाज सुनाई दी। यह आवाज सेवकराम के पुत्र कन्हैया की थी। सेवकराम को जेल में ही पता चला कि उनका पुत्र भी आ गया है। पिता पहले से ही जेल में थे और ऊपर से पुत्र भी आ गया। यदि सेवकराम के पास संघ की शिक्षा दीक्षा नहीं होता तो वे टूट जाते, लेकिन संघ का पक्का और मजबूत स्वयंसेवक होने के कारण सेवकराम ने इस बात पर गर्व जताया कि अत्याचारी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उनके पुत्र कन्हैया सोनी का भी योगदान शामिल हो गया है। बाद में पिता-पुत्र दोनों ने गीतों से सेंट्रल जेल का माहौल देशभक्ति पूर्ण कर दिया। जेल में ही सेवकराम, भानु कुमार शास्त्री के साथ पूजा-पाठ करते थे। आपातकाल के समय धर्मनारायण, जयंती जी, शंकरलाल जी आदि स्वयंसेवकों ने सेवक राम के परिवार की देखभाल की। वर्ष 1956-57 के समय जब अजमेर में मोती कटला क्षेत्र में हिंदू बहन-बेटियों के साथ छेड़छाड़ की जाती थी, तब सेवकराम ही अपने साथी ठाकुरमल सोनी, हरीश आदि के साथ बदमाशों को सबक सिखाते थे। इसे सेवकराम जी की कड़ी मेहनत ही कहा जाएगा कि शरणार्थी बनकर अजमेर आने के बाद इसी अजमेर शहर में नगर परिषद के पार्षद भी बने। 1990 में वैशाली नगर के वार्ड 2 से सेवकराम तब पार्षद बने जब नगर परिषद के अध्यक्ष रतनलाल यादव होते थे। इतना ही नहीं वर्ष 2005 में वैशाली नगर क्षेत्र से ही सेवकराम जी के दूसरे नंबर के पुत्र मनोहर सोनी की पत्नी रीना देवी पार्षद चुनी गई। सेवकराम जी का निधन 2 अक्टूबर 2011 को हुआ, लेकिन आज उनका पूरा भरा परिवार अजमेर में अच्छे मुकाम पर खड़ा है। सेवकराम जी के छह पुत्रों में से एक कन्हैया सोनी का स्वर्गवास हुआ है, जबकि मनोहर, लक्ष्मण, पुरुषोत्तम, मोहन, नारायण (राजाजी) अभी संघ में सक्रिय हैं। नारायण यानी राजा सोनी का एक पुत्र हिमांशु संघ में घोष प्रमुख तथा दूसरा पुत्र पार्थ शाखा प्रमुख है। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव ही कहा जाएगा कि पीढ़ी दर पीढ़ी संघ के कार्य में सक्रिय रहती है। सेवकराम जी के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9214675492 पर पुत्र राजा सोनी से ली जा सकती है।
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गाजा के शांति प्रयासों के लिए पीएम मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप की सराहना की। ट्रंप को अब मिल सकता है नोबेल शांति पुरस्कार। तबाही की धमकी के बाद सरेंडर हुआ हमास।
गाजा में सक्रिय मुस्लिम चरमपंथी संगठन हमास ने आखिरकार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्लान को स्वीकार कर लिया है। इसके अंतर्गत जल्द ही इजरायली बंधकों की रिहाई होगी। साथ ही अमेरिका की मदद से गाजा पट्टी को विकसित किया जाएगा। हमास और इजरायल के बीच शांति प्रयास सफल होने पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप की सराहना की है। मोदी ने एक्स पर लिखा है कि ट्रंप के प्रयासों से ही मध्य पूर्व में शांति की पहल हुई है। भारत शुरू से ही शांति प्रयासों का पक्षधर रहा है। मोदी ने जिस तरह ट्रंप की प्रशंसा की है उससे प्रतीत होता है कि अब ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिल ही जाएगा। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने के लिए ट्रंप लालायित है। ट्रंप का दावा है कि भारत पाकिस्तान सहित छह देशों के बीच युद्ध रुकवाने में उन्होंने पहल की है। यदि भारत और पाकिस्तान का युद्ध आगे बढ़ता तो दुनिया के हालात बिगड़ते क्योंकि दोनों देश परमाणु संपन्न हैं। हालांकि ट्रंप के इस बयान का भारत की ओर से खंडन किया गया, लेकिन अब जब ट्रंप ने इजरायली और हमास के बीच शांति की पहल की है तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप की सराहना की है। मोदी की सराहना से ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने हमास के समक्ष जो शांति का प्लान रखा था, उसे पूर्व में हमास ने मानने से इंकार कर दिया था। लेकिन 3 अक्टूबर को ट्रंप ने कहा कि यदि 5 अक्टूबर तक हमास ने शांति प्लान स्वीकार नहीं किया तो फिर हमास की तबाही शुरू हो जाएगी। ट्रंप की इस धमकी के बाद ही हमास ने शांति प्लान को स्वीकार करने की घोषणा की है। माना जा रहा है कि अब गाजा में इजरायली की बमबारी भी रुक जाएगी।
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सरस्वती की कृपा से ही कविताएं व साहित्य का सृजन संभव। विख्यात कवि बुद्धि प्रकाश दाधीच की उपस्थिति में कविता के भाव सृजन पुस्तक का विमोचन। कवयित्री मधु खंडेलवाल ने कविता के भाव कविता से जाने।
3 अक्टूबर को अजमेर के पंचशील स्थित होटल ब्रेविया में कवयित्री कविता जोशी की पुस्तक कविता के भाव सृजन का विमोचन हुआ। इस अवसर पर अतिथि के तौर पर सुविख्यात कवि बुद्धि प्रकाश दाधीच राजस्थान साहित्य अकादमी के सचिव बसंत सोलंकी, आकाशवाणी जयपुर के उद्घोषक गोपाल लखन और संपादक ब्लॉगर एसपी मित्तल उपस्थित रहे। विमोचन समारोह में कवि दाधीच ने कहा कि लेखन का कार्य सरस्वती की कृपा से ही संभव है। आज में भी सरस्वती की कृपा से ही कविताएं लिखकर मंचों पर सुना रहा हंू। कविता जोशी ने जो कविताएं लिखी है वे भी सरस्वती की कृपा से ही है। उन्होंने कहा कि साहित्य लेखन का कार्य आसान नहीं है। हालांकि अब महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं है, लेकिन फिर भी जो महिलाएं लेखन का कार्य कर रही है उन्हें समाज में सम्मान मिलना ही चाहिए। इस अवसर पर अजमेर लेखक मंच की प्रमुख और सुप्रसिद्ध कवयित्री मधु खंडेलवाल ने पुस्तक की लेखिका कविता जोशी से कुछ सवाल भी किए। कविता जोशी का कहना रहा कि कविताएं लिखने का शौक स्कूल कॉलेज के समय से ही था। अपनी डायरियों में उन्होंने आसपास के जीवन को लेकर कतिवाएं लिखी है। इस बार उनके पति चंद्र प्रकाश जोशी (राजस्थान पत्रिका के अजमेर संस्करण के संपाकद) की प्रेरणा और सहयोग से पुस्तक तैयार की है। इस पुस्तक में उन्होंने अपने भावों का सृजन किया है। पुस्तक के बारे में आकाशवाणी के उद्घोषक गोपाल लखन ने कहा कि यह पुस्तक सरल शब्दों में है, इसलिए कविता के शब्दों के भाव आसानी से समझे जा सकते हैं। साहित्य अकादमी के सचिव बसंत सोलंकी का कहना रहा कि साहित्य अकादमी युवा कवियों को प्रोत्साहित करती रहती है। इसलिए कविता के भावसृजन के प्रकाश में भी आर्थिक सहयोग किया गया है। पुस्तक का प्रकाशन जयपुर स्थित मानसरोवर विस्तार के बोधि प्रकाशन द्वारा किया गया है। 199 रुपए की कीमत वाली इस पुस्तक को मोबाइल नंबर 9660520078 व 9829018087 पर फोन कर मंगाया जा सकता है। पुस्तक की लेखक कविता जोशी मौजूदा समय में अजमेर के मित्तल कॉलेज ऑफ नर्सिंग संस्थान में पुस्तकालय अध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। पुस्तक के लेखन के लिए मोबाइल नंबर 9460041244 पर कविता जोशी को बधाई दी जा सकती है। होटल ब्रेविया में आयोजित विमोचन समारोह के अंत में सीपी जोशी ने सभी मेहमानों का स्वागत किया। समारोह में जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक भानु प्रताप गुर्जर, अजमेर दाधीच समिति के अध्यक्ष घनश्याम दाधीच, समाजसेवी अशोक पंसारी, साहित्यकार उमेश चौरसिया, राजस्थान पत्रिका के जोनल हैड बजरंग सिंह राठौड़ आदि उपस्थित रहे।
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राजीव गांधी के समय की 414 सीटों का उल्लेख कर क्या अशोक गहलोत ने राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी है? सेवादल के ट्रेनिंग प्रोग्राम में गहलोत ने कांग्रेस में गुटबाजी स्वीकारी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत इन दिनों अपने विवादित बयानों से चर्चित हैं। 3 अक्टूबर को जयपुर जिले के सामोद में कांग्रेस सेवादल के ट्रेनिंग प्रोग्राम में भी गहलोत ने ऐसी बातें कही, जिन्हें अब कांग्रेस पार्टी में विवादित माना जा रहा है। गहलोत ने अपने संबोधन में कहा कि राजीव गांधी के समय लोकसभा में कांग्रेस के 414 सांसद थे, लेकिन आज मात्र 90 सांसद हैं। इससे पहले तो 52 तथा 2014 में मात्र 44 सांसद चुने गए। कांग्रेस को इस स्थिति पर मंथन करना चाहिए। उन कारणों का पता लगाना चाहिए, जिससे हमारे सांसदों की संख्या कम हुई है। गहलोत ने इस बात को भी स्वीकारा की कांग्रेस में गुटबाजी है। कार्यकर्ता पार्टी के कार्यक्रम में जाने से डरता है। उसे लगता है कि यदि वह शामिल हुआ तो उस पर एक गुट का समर्थन करने का आरोप लग जाएगा। गुटबाजी के कारण कार्यकर्ता कन्फ्यूजन रहता है। गहलोत ने कहा कि हम सभी को मिलकर कांग्रेस को मजबूत करना है। सवाल उठता है कि गहलोत ने राजीव गांधी के समय के 414 और राहुल गांधी के समय के 98 सांसदों का उल्लेख कर क्या राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी है? पिछले 15 वर्षों से राहुल गांधी ही कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष भले ही सोनिया गांधी या मल्लिकार्जुन खड़े हों, लेकिन कांग्रेस के बड़े फैसले राहुल गांधी ही करते हैं। यह सही बात है कि पिछले पौने दो वर्ष से अशोक गहलोत को कांग्रेस में कोई पद नहीं मिला है। गहलोत के चालीस वर्ष के राजनीतिक जीवन में पहला अवसर है, जब वे कांग्रेस में किसी पद पर नहीं है। मालूम हो कि 25 दिसंबर 2022 को राजस्थान का मुख्यमंत्री रहते हुए गहलोत ने जो बगावत की उसी की वजह से गांधी परिवार गहलोत से खफा है। अशोक गहलोत अब तक कहते रहे कि कांग्रेस में गुटबाजी नहीं है। स्वयं के सचिन पायलट के साथ मतभेदों की खबरों को भी गहलोत नकारते रहे। गहलोत का कहना रहा कि मतभेद वाली खबरें मीडिया की उपज हैं। लेकिन 3 अक्टूबर को गहलोत ने स्वीकार किया कि कांग्रेस में गुटबाजी है।
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