Saturday 30 April 2022

पंजाब में खालिस्तान स्थापना दिवस मनाने का विरोध किया तो तलवारबाजी के साथ फायरिंग। अब पटियाला में कर्फ्यू ।राजस्थान में गर्मी का पारा 46 डिग्री के पार, लेकिन जयपुर में हजारों अकीदतमंदों ने खुले में नमाज पढ़ी।महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा से ही सांसद और विधायक पर राजद्रोह का मुकदमा।आखिर हिन्दुस्तान किस दिशा में जा रहा है?


29 अप्रैल को पंजाब के पटियाला में उस समय कर्फ्यू लगाना पड़ा जब कुछ देशभक्त लोग खालिस्तान का स्थापना दिवस मनाने का विरोध कर रहे थे। लेकिन सिक्ख समुदाय के अनेक लोग स्थापना दिवस मनाने पर अड़े रहे। दो गुटों में पहले तलवारबाजी हुई और फिर फायरिंग। अब पटियाला में कर्फ्यू लगा हुआ है। सब जानते हैं कि डेढ़ माह पहले ही पंजाब विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इसमें आश्चर्यजनक तरीके से 117 में से 92 सीटें अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को मिली है। मौजूदा समय में भगवंत मान पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भी कवि कुमार विश्वास (आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य) और कांग्रेस की नेता अलका लांबा ने आप पर अलगाववादियों से मिलीभगत का आरोप लगाया था। सूत्रों की मानें तो पंजाब में आप की सरकार की मौजूदगी के कारण ही इस बार खालिस्तान स्थापना दिवस पूरे उत्साह के साथ मनाने का निर्णय लिया गया था। कवि कुमार विश्वास और अलका लांबा के आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो वही जाने, लेकिन 30 अप्रैल को पटियाला में जो कुछ भी हुआ, वह सीमावर्ती पंजाब के लिए अच्छा नहीं है। अनुच्छेद 370 को हटा कर जम्मू कश्मीर के हालात बड़ी मुश्किल से नियंत्रण में किए जा रहे हैं। अब यदि पंजाब में खालिस्तान के समर्थक मजबूत होंगे तो हालात और बिगड़ेंगे। देखना होगा कि 92 सीटें लेने के बाद गौरवान्वित हो रहे अरविंद केजरीवाल और उनके मुख्यमंत्री भगवंत मान किस तरह खालिस्तानियों से निपटते हैं। अलगाववादियों के प्रति नरम रुख देश के लिए घातक होगा। पंजाब के ताजा घटनाक्रम पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को भी अपनी पार्टी की स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि खालिस्तान आंदोलन की वजह से उनकी दादी और देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी।
 
जयपुर में सड़क पर नमाज:
29 अप्रैल को रमजान माह के आखिरी शुक्रवार को राजस्थान के जयपुर के जौहरी बाजार में खुले आसमान के नीचे हजारों मुसलमानों ने जुमे की नमाज अदा की। इसके लिए बाजार में ऊंची आवाज वाले अनेक लाउडस्पीकर लगाए गए। बाजार की सड़कों पर नमाज तब अदा की गइ्र, जब राजस्थान में गर्मी का पारा 46 डिग्री के पार है। गर्मी की वजह से सामान्य आदमी का हाल बेहाल है। रमजान माह में रोजा (व्रत) रखने वाले अधिकांश मुसलमान दिन में पानी भी नहीं पीते हैं। भीषण गर्मी में प्यासा रह कर रोजा रखने वाले यदि खुले में नमाज अदा करते हैं तो इससे धर्म के प्रति उनकी अकीदत का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब भाजपा के नेता खुले में नमाज का विरोध कर रहे हैं, लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की पुलिस और प्रशासन ने भी नमाजियों की सहूलियतों का पूरा ख्याल रखा। नमाज के लिए जौहरी बाजार का ट्रैफिक करीब चार घंटे तक बंद रखा गया। यह बात अलग है कि 8 अप्रैल को एक आदेश निकाल कर गहलोत सरकार ने ही धार्मिक आयोजन पर अनेक प्रतिबंध लगाए थे। ऐसे प्रतिबंध धारा 144 के अंतर्गत लगाए गए।
 
महाराष्ट्र में राजद्रोह:
सब जानते हैं कि महाराष्ट्र में अमरावती की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा ने मुंबई में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निवास के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा की थी। घोषणा मात्र से ही मुंबई पुलिस ने राणा दंपत्ति को राजद्रोह और अन्य आपराधिक धाराओं में गिरफ्तार कर लिया। पिछले एक सप्ताह से राणा दम्पत्ति जेल में हैं। मुंबई हाईकोर्ट ने भी पुलिस की एफआईआर को रद्द करने से इंकार कर दिया है। यानी राणा दम्पत्ति ने हनुमान चालीसा पढ़ी भी नहीं, लेकिन उन्हें जेल जाना पड़ा है। कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन से चल रही शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लगता है कि खुले में हनुमान चालीसा का पाठ करने से मुंबई की कानून व्यवस्था बिगड़ जाएगी। सत्तारूढ़ शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत तो राणा दम्पत्ति की घोषणा को चुनौती मानते हैं, इसलिए उन्होंने का कि उद्धव ठाकरे का विरोध करने वालों को जमीन के अंदर 20 फिट गाड़ दिया जाएगा।
 
आखिर किधर जा रहा है हिन्दुस्तान:
जयपुर में बाजार में नमाज पढ़ी जाती है तो यह सद्भावना का प्रतीक है और यदि महाराष्ट्र में कोई जनप्रतिनिधि हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा करता है तो उसे राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता है। पंजाब में सिक्ख संगठनों के लोग खालिस्तान का स्थापना दिवस मना रहे हैं। इन ताजा घटनाओं से देश के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल यह भी है कि जो घटनाएं देश की एकता और अखंडता से जुड़ी है क्या उनका मुकाबला मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था से किया जा सकता है? लोकतांत्रिक व्यवस्था में नियुक्त राज्यपाल की स्थिति पश्चिम बंगाल में देखी जा सकती है। 

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Thursday 28 April 2022

हिन्दी भाषा से इतना परहेज है तो फिर कन्नड़, तमिल फिल्मों को हिन्दी में क्यों डब किया जाता है?-अजय देवगन।केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो हिन्दी को भारत की सिर्फ संपर्क भाषा बनाने की बात कही थी।हिन्दी अखबार राजस्थान पत्रिका कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में धड़ल्ले से निकल रहा है।

अहिन्दी भाषी प्रदेशों के जो लोग हिन्दी का विरोध कर रहे हैं, उन्हें हिन्दी फिल्मों के सफल अभिनेता अजय देवगन ने अच्छा जवाब दिया है। हालांकि यह जवाब कन्नड़ फिल्मों के एक अभिनेता के ट्वीट के संदर्भ में दिया है। देवगन ने कहा कि यदि हिन्दी से इतना ही परहेज है तो फिर तमिल कन्नड़ आदि क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्मों को हिन्दी में डब क्यों करवाया जाता है। देवगन ने कहा कि हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और रहेगी। असल में विगत दिनों संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सिर्फ इतना कहा कि हिन्दी को भारत की संपर्क भाषा बनाना चाहिए। शाह ने न तो प्रदेश की किसी स्थानीय भाषा का महत्व कम करने और न ही अंग्रेजी को हटाने की बात कही। लेकिन इसके बाद भी कुछ अहिन्दी भाषी प्रदेशों में अमित शाह के बयान की आलोचना हो रही है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने कहा हिन्दी कभी भी भारत की राष्ट्र भाषा नहीं रही।  उन्होंने कहा कि मुझे कन्नड़ होने का गर्व है। दक्षिण के कुछ राज्यों के नेता अमित शाह पर हिन्दी को थोपने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन ऐसे नेता यह भूल रहे है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने ही नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं को महत्व दिया है। नई नीति में यह कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थानों में प्रदेश की मूल भाषा में ही परीक्षाएं और राज्य सरकार भी मूलभाषा में ही प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करें। जो केंद्र सरकार क्षेत्रीय भाषाओं को इतना महत्व दे रही है वो हिन्दी को कैसे थोप सकती है? यह माना कि देश के कई प्रदेशों में क्षेत्रीय भाषा ही बोली जाती है। जैसे तमिलनाडु में तमिल, कर्नाटक में कन्नड़, पश्चिम बंगाल में बंगाली, केरल में मलयालम, गुजरात में गुजराती। लेनिक इन प्रदेशों में भी हिन्दी बोलने वाले मिल जाएंगे। हिन्दी के महत्व को देखते ही राजस्थान पत्रिका अखबार ने गैर हिन्दी भाषी राज्य कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल से प्रकाशन शुरू किया है। इन सभी राज्यों में पत्रिका अखबार हिन्दी में ही निकल रहा है। यानी हिन्दी भारत की संपर्क भाषा बन सकती है। सब जानते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा हिन्दी ही बोली जाती है। आम देशवासियों तक संदेश पहुंचाने के लिए हिन्दी का ही प्रयोग होता है। देश के मौजूदा और पहले के प्रधानमंत्री भी राष्ट्र के नाम संबोधन हिन्दी में ही करते हैं। यदि हिन्दी संपर्क भाषा बनती है तो इसमें किसी को भी एतराज नहीं होना चाहिए। जहां तक अंग्रेजी का सवाल है तो भारत में अंग्रेजी भाषा बोलने वालों का प्रतिशत बहुत कम है। यह माना कि अब अंग्रेजी विश्व की भाषा बन रही है, लेकिन अपने कामकाज के कारण जो लोग अंग्रेजी में बोलते हैं, वे अपने घर परिवार में तो हिन्दी में ही संवाद करते हैं। भारत की पहचान तो हिन्दी से ही है। दक्षिण के राज्यों के लोग माने या नहीं, लेकिन हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसमें अन्य भाषाओं का समावेश हो सकता है। हिन्दी भाषा में आत्मीयता झलकती है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ताजा बयान पर विवाद बेमानी है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (28-04-2022)
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किसान आंदोलन में प्रधानमंत्री को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो रुख अपनाया, उस पर अब कोविड सहायकों के प्रकरण में गहलोत खुद अमल क्यों नहीं करते?कोविड सहायकों का 28वें दिन भी जयपुर में धरना जारी रहा। खून से लिखे पत्र।

28 अप्रैल को जयपुर के शहीद स्मारक पर राजस्थान भर के बर्खास्त कोविड सहायकों का धरना लगातार 28वें दिन भी जारीरहा। 28 अप्रैल को धरना स्थल पर ही सैकड़ों युवाओं ने अपना खून निकाला और उस खून से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखे। जब कोविड सहायक अपना खून निकाल कर पत्र लिख रहे थे, तब धरना स्थल का माहौल गमगीन हो गया। जगह जगह खून देखने को मिल रहा था। सवाल उठता है कि गत वर्ष हुए किसान आंदोलन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जो रुख था, उस रुख पर अब गहलोत अमल क्यों नहीं करते हैं? किसान आंदोलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों के प्रतिनिधियों से नहीं मिलने पर गहलोत आए दिन पीएम मोदी की आलोचना करते थे। तब गहलोत का कहना रहा कि मोदी घमंडी और असंवेदनशील हैं, इसलिए किसानों से मुलाकात नहीं कर रहे हैं। गहलोत ने कहा कि देश के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब लंबे समय से धरने पर बैठे किसानों से प्रधानमंत्री बात तक नहीं कर रहे हैं। गहलोत ने जो बात नरेंद्र मोदी के लिए कही वह अब उन पर लागू हो रही है। प्रदेशभर के 28 हजार कोविड सहायकों को गत 31 मार्च को हटाया गया। कोविड सहायक एक अप्रैल से ही जयपुर में शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं, लेकिन 28 दिन गुजर जाने के बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोविड सहायकों से बात नहीं की है। क्या सीएम गहलोत घमंडी और असंवेदनशील नहीं हैं? किसान तो दिल्ली की सीमाओं पर बैठे थे, जबकि कोविड सहायक तो मुख्यमंत्री गहलोत की नाक के नीचे बैठे हैं। कोविड सहायकों की बहाली हो या नहीं लेकिन सीएम गहलोत कम से कम बात तो कर सकते हैं। सीएम की बेरुखी से 28 हजार कोविड सहायकों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। कोविड सहायक तब धरना दे रहे हैं, जब जयपुर का तापमान 45 डिग्री है। धरना स्थल पर महिलाएं भी है। कुछ महिलाएं तो अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ मौजूद है। यदि किसी महिला या बच्चे की स्थिति खराब हो जाएगी तो कौन जिम्मेदार होगा? मालूम हो कि कोरोना काल में तो सरकार ने 8 हजार रुपए प्रतिमाह के पारिश्रमिक पर प्रशिक्षित नर्सिंग कर्मियों को कोविड सहायक के तौर पर अनुबंध के आधार पर नियुक्ति दी थी। लेकिन ऐसे स्वास्थ्य कर्मियों को 31 मार्च को अचानक हटा दिया। 

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चलती कार पर क्रेन का डेरिक गिरने के बाद भी कोई जनहानि नहीं हुई। तो क्या मारुति कंपनी की कार इतनी मजबूत है।हादसे का कारण स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों और ठेकेदार के कार्मिकों की लापरवाही है।

28 अप्रैल को प्रात: 8 बजे अजमेर के गांधी भवन चौराहे से जब पंजाब की कार संख्या पीबीओ-3एजेड-9988 (मारुति डिजायर) गुजर रही थी कि तभी निर्माणाधीन एलिवेटेड रोड का कार्य कर रही क्रेन का डेरिक कार पर गिर गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार क्रेन के माध्यम से एलिवेटेड रोड पर काम आने वाले बड़े गर्डरों को इधर से उधर शिफ्ट किया जा रहा था। क्रेन के डेरिक (भारी वजन उठाने वाला यंत्र) हादसे के समय गर्डर नहीं था। चूंकि प्रात: 8 बजे ट्रैफिक को नहीं रोका गया, इसलिए वाहनों का आवागमन हो रहा था। सामने से आती कार को देखकर क्रेन चालक घबरा गया और इसलिए संतुलन बिगड़ने पर क्रेन लुढ़क गई इसी के साथ क्रेन का डेरिक चलती कार पर गिर गया। कार में पंजाब के तीन व्यक्ति सवार थे। कार में सवार संतोक सिंह ने बताया कि सुबह सुबह ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत के बाद वे लोग जोधपुर की ओर जा रहे थे, लेकिन अजमेर में गांधी भवन के चौराहे पर दुर्घटना के शिकार हो गए। हालांकि इस हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई। कार में सवार एक युवक को प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मारुति कंपनी की कार ने सैकड़ों किलो वजन के डेरिक का बोझ सहन कर लिया। इसलिए कार के अंदर बैठे व्यक्ति बच गए। यदि भार भरकम डेरिक कार को तोड़कर अंदर घुस जाता तो बड़ा हादसा हो सकता था। इस मामले में स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों और एलिवेटेड रोड का निर्माण करने वाले ठेकेदार के कार्मिकों की लापरवाही सामने आई है। स्मार्ट सिटी के इंजीनियर यह कहकर अपनी जिम्मेदार नहीं बच सकते कि उन्होंने एलिवेटेड रोड का कार्य आरएसआरटीसी को दे दिया है। कोई भी संस्था निर्माण कार्य करे, लेकिन जिम्मेदारी स्मार्ट सिटी की है क्योंकि एलिवेटेड रोड बनाने की जिम्मेदार स्मार्ट सिटी ने ली है। स्मार्ट सिटी के सीईओ जिला कलेक्टर होते हैं, जबकि एसीईओ नगर निगम के आयुक्त हैं। इन अधिकारियों की भूमिका इसलिए रखी है ताकि प्रशासन के साथ तालमेल बना रहे, लेकिन इसके बावजूद भी 28 अप्रैल को गर्डरों की शिफ्टिंग के समय यातायात को नहीं रोका गया। इससे पहले भी कई मौकों पर ठेकेदार के कार्मिकों की लापरवाही देखने को मिली है। असल में जब ठेकेदार के लोग काम करते हैं तो स्मार्ट सिटी अथवा संबंधित संस्था के इंजीनियर मौजूद नहीं रहते हैं। एलिवेटेड रोड का कार्य धीमी गति से होने के कारण भी अजमेर के नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

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तो क्या उत्तर प्रदेश की मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए मुसलमान नहीं आएंगे?10 हजार मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाए तथा 35 हजार मस्जिदों के लाउडस्पीकरों की आवाज धीमी की गई।अजान का मतलब नमाज के लिए बुलाना है। अब तो पांचों वक्त की नमाज के लिए अजान का मोबाइल एप भी आ गया है।

आपसी सहमति के बाद उत्तर प्रदेश की 10 हजार मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटा दिए गए हैं तथा 35 हजार मस्जिदों के मौलानाओं ने स्वेच्छा से लाउडस्पीकर की आवाज को धीमा कर दिया है। उत्तर प्रदेश में यह सिलसिला लगातार जारी है। सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने की परंपरा भी उत्तर प्रदेश में समाप्त हो रही है। सब जानते हैं कि मस्जिदों में नमाज के लिए अजान की परंपरा है। अजान का मतलब लोगों को नमाज के लिए आमंत्रित करना है। इसीलिए मस्जिदों पर ऊंची आवाज वाले लाउडस्पीकर लगाकर अजान दी जाती है। लेकिन लाउडस्पीकर की आवाज से किसी अन्य को परेशान न हो इसलिए अब उत्तर प्रदेश की मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाए जा रहे हैं या फिर आवाज को धीमा किया जा रहा है। सवाल उठता है कि इस व्यवस्था के बाद क्या मुसलमान मस्जिदों में नमाज पढ़ने नहीं आएंगे? असल में अजान एक सुविधा है। आमतौर पर किसी भी मस्जिद से नमाज लाउडस्पीकर के माध्यम से नहीं होती है। कई बार बिजली बंद होने अथवा अन्य कारणों से लाउडस्पीकर के जरिए अजान का ऐलान नहीं हो पाता है। जो लोग नमाज के प्रति पाबंद हैं, वे निश्चित समय पर मस्जिद में पहुंचकर नमाज अदा करते हैं। अजान हो या नहीं लेकिन फिर भी आसपास के लोग नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में आ ही जाते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश की मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने या फिर आवाज को कम करने के बाद मस्जिदों में नमाज पढ़ने पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बहुत से लोग अजान को सुनने के बाद भी नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में नहीं जाते हैं, लेकिन जिन्हें नमाज पढ़नी होती है वे अजान के बगैर भी नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में पहुंच जाते हैं। अब तो पांच वक्त की नमाज के लिए अजान का मोबाइल एप भी आ गया है, इस एप के माध्यम से निश्चित समय पर अजान को सुना जा सकता है। ऐसे बहुत से मुसलमान हैं जो अपने घरों पर ही नमाज अदा करते हैं। आमतौर पर मुसलमान नमाज के प्रति पाबंद रहता है। घर पर भी निश्चित समय पर नमाज पढ़ ली जाती है। लेकिन अब मोबाइल एप की वजह से नमाज पढ़ना और सुविधाजनक हो गया है। उत्तर प्रदेश के हाल ही के चुनाव में कई मौकों पर हिन्दू मुस्लिम विवाद देखने को मिला, लेकिन मौजूदा समय में मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने और आवाज को कम करने को लेकर कोई विवाद नहीं हो रहा है। उत्तर प्रदेश का प्रशासन भी लाउडस्पीकर को हटाने अथवा आवाज को कम करने के लिए कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर रहा है। आपसी समझाइश और सहमति के बाद लाउडस्पीकर की आवाज पर नियंत्रण किया जा रहा है। जिस लाउडस्पीकर को लेकर महाराष्ट्र में घमासान मचा हुआ है, वही लाउडस्पीकर उत्तर प्रदेश में नियंत्रित हो रहे हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी पालन किया जा रहा है। ऐसा नहीं कि उत्तर प्रदेश में ध्वनि प्रसारण नियंत्रण कानून सिर्फ मस्जिदों पर ही लागू हो रहा है। मंदिरों पर लगे लाउडस्पीकर पर भी ऐसा कानून लागू किया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जुड़े गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के लाउडस्पीकर को भी नियंत्रित किया गया है। मंदिरों के पुजारी भी स्वेच्छा से माइक हटा रहे हैं या फिर आवाज को काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र में जो लोग लाउडस्पीकर को लेकर हंगामा कर रहे हैं उन्हें उत्तर प्रदेश से सबक लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश ने यह दर्शा दिया है कि धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर समाज में कोई मुद्दा ही नहीं है। 

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Monday 25 April 2022

महाराष्ट्र में राणा दम्पत्ति की गिरफ्तारी राज ठाकरे को चेतावनी है।भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सौमेया की पिटाई की घटना के बाद शिवसेना के सांसद संजय राउत ने कहा-उद्धव ठाकरे का विरोध करने वालों को 20 फिट नीचे गाड़ दिया जाएगा।आखिर शिव सैनिकों के भेष में कौन हैं जो हनुमान चालीसा का विरोध कर रहे हैं?

महाराष्ट्र के अमरावती की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है। राणा दम्पत्ति ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने का ऐलान किया था, लेकिन उद्धव ठाकरे के राजनीतिक दल शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने 23 अप्रैल को राणा दम्पत्ति को उनके मुंबई स्थित आवास से बाहर नहीं निकलने दिया। घर के बाहर बैठे शिव सैनिकों का कहना रहा कि नवनीत राणा को पहले हमसे प्रसाद लेना पड़ेगा। शिव सैनिकों के झगड़े वाले तेवर को देखते हुए राणा दम्पत्ति ने हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा वापस ले ली, लेकिन शाम होते होते मुंबई पुलिस ने घर में घुसकर राणा दम्पत्ति को गिरफ्तार कर लिया। दोनों पर मुंबई की कानून व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया है। इधर राणा दम्पत्ति को लॉकअप में बंद कर दिया गया तो उधर रात को कुछ शिव सैनिकों ने भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सौमेया को पीट डाला। सौमेया अब प्रेस वालों को अपने जख्म दिखा रहे हैं। राणा दम्पत्ति की गिरफ्तार और किरिट सौमेया की पिटाई, असल में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे को चेतावनी दी है। राज ठाकरे ने घोषणा का रखी है कि यदि तीन मई तक महाराष्ट्र की मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर नहीं हटाए गए तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता मस्जिदों के सामने माइक लगाकर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। राज ठाकरे की कार्यशैली भी शिव सैनिकों जैसी ही है। जब हनुमान चालिसा पढ़ने की घोषणा मात्र से राणा दम्पत्ति को जेल में डाला जा सकता है, जब राज ठाकरे द्वारा मस्जिदों के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने पर उत्पन्न होने वाले हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर कार्यवाही करने के परिणाम गंभीर होंगे। उद्धव ठाकरे की पुलिस ने राणा दम्पत्ति को तो जेल में डाल दिया, लेकिन देखना होगा कि तीन मई के बाद राज ठाकरे का एक्शन पर क्या रिएक्शन होता है।
 
20 फिट नीचे गाड़ देंगे:
राणा दम्पत्ति की गिरफ्तारी और भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सौमेया की पिटाई के बाद शिवसेना के प्रवक्ता और राज्यसभा के सांसद संजय राउत ने कहा कि जो भी व्यक्ति मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का विरोध करेगा उसे जमीन में 20 फिट नीचे गाड़ दिया जाएगा।
 
शिव सैनिकों के भेष में कौन:
सब जानते हैं कि बाला साहब ठाकरे ने महाराष्ट्र में शिवसेना की स्थापना हिन्दुओं की रक्षा के लिए की थी। बाला साहब के प्रति आस्था रखने वाला कोई भी शिव सैनिक हनुमान चालीसा के पढऩे का विरोधी नहीं हो सकता। यदि राणा दम्पत्ति मुंबई में मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करते तो इससे असली शिव सैनिकों को खुशी ही होती। लेकिन 23 अप्रैल को पूरे महाराष्ट्र ने देखा कि राणा दम्पत्ति को शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने घर से बाहर निकलने ही नहीं दिया। शिव सैनिक जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे, उससे यह सवाल उठता है कि आखिर शिव सैनिकों के भेष में कौन हैं जो इस तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शिवसेना में ऐसे लोग शामिल हो गए हैं जिन्हें हनुमान चालीसा के पढ़ने पर एतराज है। सब जानते हैं कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से शिवसेना की सरकार चला रहे हैं।  आज यदि कांग्रेस समर्थन वापस ले ले तो उद्धव ठाकरे की सरकार गिर जाएगी। शायद कांग्रेस और एनसीपी को खुश करने के लिए उद्धव ठाकरे ने इन दिनों सनातन संस्कृति विरोधी रुख अपना रखा है। 

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राजगढ़ में मंदिर तोडऩे और गेर मानवीय कृत्य करने की सजा मिली अलवर के पूर्व कलेक्टर नन्नूमल पहाडिय़ा को। पांच लाख रुपए की रिश्वतखोरी में फंसे।सरकार के इशारे पर नाचने वाले प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबक ले सकते हैं।


राजस्थान के अलवर के राजगढ़ कस्बे में जब 17 अप्रैल को तीन शिव मंदिर और 50-50 वर्ष पुराने मकान-दुकान तोड़े जा रहे थे, तब अलवर के कलेक्टर के पद पर नन्नूमल पहाडिय़ा विराजमान थे। कलेक्टर की हैसियत से ही पहाडिय़ा ने राजगढ़ में मंदिर तोडऩे और पुराने मकान दुकान को हटाने के आदेश जारी किए। इतना ही नहीं बुलडोजरों के साथ पुलिस फोर्स भी भिजवाई ताकि कोई झगड़ा फसाद न हो। तीन मंदिरों को तोडऩे से जहां लोगों की धार्मिक भावनाओं आहत हुई, वहीं मकान और दुकानों के मालिकों ने प्रशासन और सरकार को बददुओं दी। शायद इसी का नतीजा रहा कि 23 अप्रैल को पांच लाख रुपए की रिश्वतखोरी के आरोप में एसीबी ने नन्नमूल पहाडिय़ा को गिरफ्तार कर लिया। पहाडिय़ा के साथ अलवर के राजस्व अपील अधिकारी अशोक सांखला और दलाल नितिन शर्मा को भी गिरफ्तार किया गया है। इसे पहाडिय़ा की दिलेरी ही कहा जाएगा कि अलवर के कलेक्टर के पद से तबादला हो जाने के बाद भी वे कलेक्टर के सरकारी आवास में ही रिश्वतखोरी की साजिश कर रहे थे। सब जानते हैं कि पहाडिय़ा अलवर के वो ही कलेक्टर हैं, जिन्होंने एक मूक बधीर बालिका के साथ हुई ज्यादती के मामले में गैर मानवीय कृत्य किया। इतना ही नहीं जब स्कूल की कुछ छात्राएं कलेक्टर के समक्ष विरोध करने पहुंची तब भी कलेक्टर ने बालिका विरोधी रवैया अपनाया। दोनों अवसरों पर पहाडिय़ा ने जो व्यवहार किया उसकी सर्वत्र आलोचना हुई। 23 अप्रैल को भले ही पहाडिय़ा ने पांच लाख रुपए की रिश्वत की राशि अपने हाथों में नहीं ली, लेकिन एसीबी ने पहाडिय़ा को मुख्य आरोपी बनाया है। क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे के निर्माणकर्ता ठेकेदार ने कलेक्टर के नाम पर ही पांच लाख रुपए की रिश्वत आरएएस अधिकारी अशोक सांखला को दी। अब पहाडिय़ा कितनी भी सफाई दें, लेकिन वे एसीबी के जाल में फंस गए हैं। पहाडिय़ा माने या नहीं लेकिन उन्हें मंदिर तोडऩे और लोगों के घर उजाडऩे की सजा मिली है। भले ही यह सजा किसी कानून ने न दी हो, लेकिन सनातन संस्कृति में विश्वास रखने वालों का मानना है कि ईश्वर का न्याय ही सबसे अंतिम होता है। राजगढ़ के धर्मप्रेमियों और पीडि़तों के मुंह से जो बददुआएं निकली उसी का परिणाम रहा कि नन्नूमल पहाडिय़ा एसीबी के शिकंजे में फंस गए। जो प्रशासनिक और पुलिस के अधिकारी सरकार के इशारे पर नाचते हैं, उन्हें पहाडिय़ा की गिरफ्तारी से सबक लेना चाहिए। प्रशासनिक क्षेत्रों में यह चर्चा रही कि पहाडिय़ा मौजूदा सरकार के अंधभक्त हैं। पहाडिय़ा अगले तीन माह बाद ही आईएएस की सेवा से रिटायर हो रहे हैं। कांग्रेस सरकार के प्रति पहाडिय़ा ने जो अंधभक्ति दिखाई उसी को देखते हुए राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा रही कि पहाडिय़ा भरतपुर के कटुमर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। प्रशासन में ऐसे कई अधिकारी हैं, जो  सेवानिवृत्ति के बाद किसी लाभ के पद पर नियुक्त होना चाहते हैं। इसी प्रकार पहाडिय़ा जैसे अधिकारी राजनीति में आना चाहते हैं। लेकिन सरकार के इशारे पर नाचने के बाद भी पहाडिय़ा एसीबी के शिकंजे में उलझ गए। विगत दिनों ही पहाडिय़ा का तबादला जयपुर स्थित सचिवालय में विभागीय जांच के आयुक्त के पद पर हुआ था। लेकिन नए पद पर काम करने के बजाए पहाडिय़ा अलवर में कलेक्टर के सरकारी आवास में बैठकर रिश्वतखोरी की साजिश करने में लगे हुए थे। एसीबी के डीजी बीएल सोनी और एडीजी दिनेश एनएम को शाबाशी मिलनी चाहिए कि उन्होंने सरकार के इशारे पर नाचने वाले आईएएस को भी नहीं बक्शा है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (24-04-2022)
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अजमेर नगर निगम के अधिकारी व्यावसायिक निर्माण के समय कार्यवाही क्यों नहीं करते?मेयर ब्रजलता हाड़ा को भी प्रभावी और पारदर्शी कार्यवाही करवानी चाहिए। सीजिंग से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।

नगर निगम के पिछले कार्यकाल में जब धर्मेन्द्र गहलोत मेयर थे तब यह आरोप लगते रहे कि निगम की मिलीभगत से आवासीय भूखंडों पर व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बन रहे हैं। हालांकि ऐसे आरोपों का गहलोत ने तकनीकी आधार पर जवाब भी दिया। लेकिन पिछले एक वर्ष से नगर निगम में नया बोर्ड है और ब्रज लता हाड़ा इस बोर्ड की अध्यक्ष हैं। लेकिन आवासीय भूखंडों पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनने का काम बदस्तूर अभी भी जारी है। सवाल उठता है कि जब आवासीय भूखंड पर व्यवसायिक निर्माण हो रहा होता है तब निगम के अधिकारी कार्यवाही क्यों नहीं करते? कोई भी कमर्शियल कॉम्प्लेक्स दो वर्ष से काम अवधि में नहीं बनता है। निगम के अधिकारी दो वर्ष तक तो आंखें बंद कर बैठे रहते हैं, लेकिन जब कॉम्प्लेक्स में कारोबार शुरू हो जाता है तब नोटिस देकर सीज करने की कार्यवाही करते हैं। अच्छा हो कि निगम के अधिकारी आवासीय भूखंड पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनने ही नहीं दें, लेकिन जानकारों की माने तो निगम के अधिकारी अपने संरक्षण में ही व्यवसायिक निर्माण होने देते हैं। स्वभाविक है कि जब गैर कानूनी निर्माण होता है तो अधिकारियों को नजरा भी मिलता रहता है। कॉम्प्लेक्स सीज होने के बाद संबंधित व्यक्तियों को अनेक परेशानी से गुजरना पड़ता है। कॉम्प्लैक्स को सीज मुक्त करने का काम अब स्वायत्त शासन विभाग ने अपने पास ले लिया है। अजमेर के जिन लोगों ने अपने कॉम्प्लेक्स सीज मुक्त करवाए हैं उन्हें पता है कि सरकार में किस तरीके से सीज मुक्त की कार्यवाही होती है। यानी एक भूखंडधारी पहले निर्माण की एवज में नजरा दे और फिर सीज मुक्ति के लिए थैला भरकर जयपुर पहुंचे। असल में अजमेर में तथा कथित मास्टर प्लान के नाम पर आवासीय भूखंड का भू-रूपांतरण कमर्शियल हो ही नहीं रहा है। यदि आवासीय भूखंडों को सरलता के साथ कमर्शियल भूखंड में बदल दिया जाए तो किसी भी मालिक को अवैध निर्माण करने की जरूरत ही नहीं होगी। मौजूदा समय में राज्य में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस के पार्षदों का भी यह दायित्व है कि आवासीय भूखंडों को कमर्शियल भूखंडों में बदलने की प्रक्रिया को सरल कराए। इससे भ्रष्टाचार से भी मुक्ति मिली सकती है। यह माना जाता है कि कोई भी महिला अधिकारी अथवा जनप्रतिनिधि ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम करती हैं। अजमेर नगर निगम में मेयर के पद पर श्रीमती ब्रज लता हाड़ा विरामान हैं और निगम के कई महत्वपूर्ण पदों पर महिला अधिकारी नियुक्त हैं। श्रीमती हाड़ा के नेतृत्व में चल रहे नगर निगम से यह अपेक्षा की जाती है कि उसमें भ्रष्टाचार नहीं होना चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (25-04-2022)
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60 हजार रुपए वाली (750 एमएल) शराब पीने के बाद भी नन्नूमल पहाडिय़ा (आईएएस) और अशोक सांखला (आरएएस) दलितों के प्रतिनिधि बने हुए हैं।प्रभावी पदों पर रहते हुए अपने समाज का भला क्यों नहीं करते?

पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का उद्देश्य यही है कि प्रभावी पदों पर आसीन होने के बाद अपने समाज के लोगों के लिए भलाई का काम करें। यानी किसी गरीब परिवार को शिक्षित करने में सहयोग करें तथा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अपने वर्ग को प्राथमिकता से दिलवाएं। आरक्षण का लाभ लेकर ही नन्नूमल पहाडिय़ा आईएएस और अशोक सांखला आरएएस बने। अब ये दोनों अधिकारी अलवर की सेंट्रल जेल में बंद हैं, क्योंकि राजस्थान के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 23 अप्रैल को इन दोनों को पांच लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है। गिरफ्तारी के बाद जब दोनों अधिकारियों के घरों की तलाशी ली गई तो करोड़ों रुपए की सम्पत्तियों के कागजातों के साथ साथ 35 बोतल महंगी शराब की भी मिली। एसीबी के अधिकारी उस समय चकित रह गए जब शराब की बोतलों की कीमत आंकी गई। एक बोतल की न्यूनतम कीमत 16 हजार और अधिकतम 60 हजार रुपए प्रति बोतल थी। एक बोलत में मात्र 750 एमएल शराब यानी पौन लीटर ही आती है। जानकारों के अनुसार भारत में बनने वाली शराब की अधिकतम कीमत 25 हजार रुपए प्रति बोतल है। स्वभाविक है कि पहाडिय़ा और सांखला 60 हजार रुपए वाली विदेशी शराब भी पी रहे थे। जब इन दोनों अधिकारियों के पास से 60 हजार रुपए की कीमत वाली शराब मिली है तो इनके रईसी ठाट का अंदाजा लगाया जा सकता है। यानी आरक्षण का लाभ लेने के बाद इन दोनों अधिकारियों ने अपने वर्ग का भला करने के बजाए स्वयं का उत्थान किया। उत्थान भी ऐसा जिसमें 60 हजार रुपए वाली शराब भी शामिल है। अच्छा होता कि आरक्षण के नाम पर सरकारी नौकरी लेने वाले ये अधिकारी आईएएस और आरएएस बनने पर अपने वर्ग के कुछ परिवारों को मजबूत करते। अफसोसनाक बात यह है कि इतनी लग्जरी लाइफ के बाद भी ऐसे लोग पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि बने रहते हैं। यह सही है कि मौजूदा समय में भी आरक्षण की आवश्यकता है, लेकिन अच्छा हो कि आरक्षण का लाभ लेने वाले अपने वर्ग को मजबूत करें। यदि 60 हजार रुपए वाली शराब पीने और प्रतिमाह पांच लाख रुपए की रिश्वत लेने का काम करेंगे, तो फिर अपने वर्ग के लोगों की भलाई कैसे करेंगे? नन्नूमल पहाडिय़ा करीब डेढ़ वर्ष तक अलवर के कलेक्टर रहे। यदि पहाडिय़ा के कार्यकाल की जांच करवाई जाए तो पता चलेगा कि पिछले वर्ग के लोगों की जमीनें भी जबरन छीनी गई। पहाडिय़ा के अनेक रिश्तेदार अलवर में ही तैनात हैं। पहाडिय़ा जिस मामले में गिरफ्तार हुए हैं, वह तो सिर्फ एक कंपनी है। अलवर में न जाने ऐसी कितनी कंपनियां अथवा व्यक्ति होंगे, जिनसे प्रतिमाह राशि वसूली जा रही थी। यह एक कंपनी से प्रतिमाह पांच लाख की वसूली हो रही थी, तो प्रतिमाह वसूली का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं कि भ्रष्ट अधिकारी सामान्य वर्ग में नहीं होते। एसीबी सामान्य वर्ग के अधिकारियों को भी पकड़ती है। सामान्य वर्ग के अधिकारियों के पास से भी महंगी शराब की बोतलें बरामद होती है। सामान्य वर्ग के अधिकारियों के पास से करोड़ों रुपए की संपत्तियों के दस्तावेज भी बरामद होते हैं। यानी अफसर बनने के बाद जाति का भेद समाप्त हो जाता है। अफसर सामान्य वर्ग का हो या पिछड़े वर्ग का। दोनों के शोक और मौज एक जैसे होते हैं। ऐसा नहीं कि सामान्य वर्ग  गरीब लोग नहीं होते। सामान्य वर्ग के कई परिवारों की स्थिति पिछड़े वर्ग के परिवारों से भी बदतर है। लेकिन उसे न तो आरक्षण का लाभ मिलता है और न ही प्रतिमाह पांच किलो अनाज फ्री। सामान्य वर्ग का होने के नाते गरीब परिवार सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पाता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (25-04-2022)
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पड़ोसी राज्यों द्वारा चारे की निकासी पर रोक के कारण राजस्थान में चारा माफिया सक्रिय।अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ध्यान आकर्षित किया।

भाजपा शासित पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा ने अपनी सीमा से पशु आहार (भूसा) की निकासी पर रोक लगा दी है। इस रोक की वजह से ही राजस्थान में पशुओं के लिए चारे का संकट हो गया है। अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ध्यान प्रदेश में चल रहे चारे संकट की ओर दिलाया है। चौधरी ने कहा कि पड़ोसी राज्यों से पशु आहार नहीं आने की वजह से राजस्थान में प्रति क्विंटल भूसे का मूल्य चार सौ रुपए तक बढ़ गया है। जो चारा पहले 800 रुपए प्रति क्विंटल पशुपालकों को उपलब्ध हो रहा था, वह अब 12 सौ रुपए प्रति क्विंटल में उपलब्ध हो रहा है। चारे के संकट के इस दौर में ही चारा माफिया भी सक्रिय हो गए हैं। दबंग लोगों ने चारे का स्टॉक कर लिया है और मन माने दाम पर बेच रहे हैं। इतना ही नहीं कई दबंग तो चारे के ट्रकों को रास्ते में ही रोक रहे हैं। चौधरी ने सीएम गहलोत से आग्रह किया कि वे जिला कलेक्टरों को निर्देश देकर चारा माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही करवाए और पड़ोसी राज्यों से चारा मंगाने के लिए उच्च स्तर पर बात करें। चौधरी ने आरोप लगाया कि पूर्व में केंद्र सरकार चारे व भूसे पर अनुदान देती थी, लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार ने इस अनुदान को बंद कर दिया है। चौधरी ने कहा कि यदि केंद्र सरकार ने पशु पालकों को राहत देने वाले निर्णय नहीं लिए तो 15 मई के बाद दिल्ली के जंतर मंतर पर राजस्थान के किसान और पशु पालक धरना प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने बताया कि एक पशु को रोजाना 10 किलो भूसे की जरुरत होती है। लेकिन इस मात्रा में पशुओं को भूसा उपलब्ध नहीं हो रहा है। भीषण गर्मी में पानी के अभाव में हरा चारा भी नहीं हो रहा है। इसलिए पशु पालक सूखे चारे पर ही निर्भर रहते हैं। यह ऐसा समय है जब पशु पालकों के सामने चारे की विकट समस्या है। चौधरी ने कहा कि राजस्थान की मरु स्थलीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को पशुपालकों के लिए विशेष योजनाएं शुरू करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की आर्थिक स्थिति में पशुपालकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। ऐसे में केंद्र सरकार को पशुपालकों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए। इसके साथ ही चौधरी ने पशु पालकों से आग्रह किया कि वे भूसे का संकट से निपटने के लिए नेपियर घास का विकल्प अपनाए। ये घास अन्य चारे रिजका, कूरा आदि के मुकाबले में वर्ष भर उगती है। मौजूदा चारा संकट की ओर अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414004111 पर अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी से ली जा सकती है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (25-04-2022)
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लाखों पक्षियों की प्यास बुझाएंगे 1200 परिंडे।अजमेर के जैन परिवार ने पारिवारिक समारोह में अनुकरणीय पहल की।जन्मदिन समारोह पर लिफाफा (उपहार) लेने वाले भी सबक ले सकते हैं।

24 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अजमेर महानगर के संघ चालक सुनील दत्त जैन के परिवार की ओर से मेरवाड़ा एस्टेट होटल में एक भव्य पारिवारिक समारोह किया गया। हालांकि यह समारोह दो छोटे बच्चों के जन्म पर आयोजित था, लेकिन इस समारोह को अनुकरणीय बना दिया गया। स्नेह भोज में शामिल सभी मेहमानों को पक्षियों के लिए परिंडे और चिडिय़ाओं के लिए घौंसले दिए गए। कोई 12 सौ परिंडे और घोंसले मेहमानों को दिए। स्वाभाविक है कि इन 12 सौ परिंडो से लाखों पक्षियों की प्यास बुझेगी। इन दिनों भीषण गर्मी में पक्षियों के सामने भी पानी का संकट खड़ा हो गया है। छोटे बड़े तालाब, बावड़ी आदि जल स्रोत सूख गए हैं। घरों के बाहर जानवरों के लिए पानी की टंकी रखने की परंपरा भी समाप्त हो रही है। प्यास लगने पर जुबान वाले इंसान को यदि एक घंटे विलंब से पानी मिले, उस एक घंटे में उसकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन बेजुबान पक्षी तो बोल भी नहीं सकता। उसे दो चार बूंद पानी के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है। कई बार पानी के अभाव में बेजुबान पक्षी मर भी जाता है। ऐसे में घरों के बाहर रखे परिंडे ही पक्षियों की प्यास बुझाएंगे। जैन परिवार ने जो परिंडे दिए हैं उनमें प्लास्टिक की डोरी भी हैं। परिंडे प्लास्टिक की डोरी से बंधे हैं। इसलिए कहीं पर भी आसानी से लटकाए जा सकते हैं। घोंसलों में अनाज के दाने रखकर चिडिय़ाओं का भी पेट भरा जा सकता है। 12 सौ परिंडे लाखों पक्षियों के काम आएंगे। उम्मीद है कि जिन मेहमानों ने जैन परिवार से परिंडे प्राप्त किए हैं वे अपने घरों पर अवश्य लगाएंगे। समारोह में सामाजिक सरोकार निभाते हुए लाड़ली घर के नेत्रहीन बच्चों को भी मेहमान बनाया गया। लाडली घर के संचालक स्वामी कृष्णानंद महाराज के नेतृत्व में नेत्रहीन बच्चों ने भजनों की प्रस्तुति भी दी। समारोह में समाज के विभिन्न वर्गों के लोग उपस्थित रहे। भाजपा नेताओं के साथ कांग्रेस के नेता भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। जो लोग शादी की सालगिरह और जन्मदिन के अवसर लिफाफे लेते हैं, उन्हें भी जैन परिवार के समारोह से सबक लेना चाहिए। जैन परिवार ने किसी भी रूप में उपहार स्वीकार नहीं किए। कमल जैन का कहना रहा कि यह समारोह हमने अपनी खुशी के लिए किया है। ऐसे में मेहमानों से पांच सौ ग्यारह सौ का लिफाफा कैसे ले सकते हैं? निमंत्रण देकर जिन लोगों को बुलाया है उनसे लिफाफा लेना उचित नहीं है। असल में मेहमानों की उपस्थिति ही सबसे बड़ा उपहार और आशीर्वाद है। सुनील दत्त जैन ने बताया कि निमंत्रण भी वाट्सएप पर भेजे गए थे। मेहमानों ने वाट्सएप पर वाइस मैसेज को ही निमंत्रण के तौर पर स्वीकार किया। उन्होंने निमंत्रण देने का जो नया प्रयोग किया, वह भी सफल रहा है। पारिवारिक समारोह में किए नए प्रयोगों की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829147270 पर सुनील दत्त जैन से ली जा सकती है। 

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Saturday 23 April 2022

वानप्रस्थ की ओर अग्रसर हो रहे अजमेर के सुप्रसिद्ध चार्टेड अकाउंटेंट अजय सोमानी की सौ लघु कविताओं का संग्रह साधक चिंतक जारी।जैन मुनि प्रमाण सागर और संत मनीषा नंद गिरि ने साधक चिंतक को पढ़कर प्रेरणादायक टिप्पणी की।विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष।

23 अप्रैल को विश्व भर में पुस्तक दिवस मनाया गया है। सोशल मीडिया के इस युग में पुस्तक दिवस मनाना अपने आप में चुनौती पूर्ण काम है। अब तो पुस्तकें भी इंटरनेट तकनीक से सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर नजर आने लगी है। लेकिन फिर भी पुस्तकों का अपना महत्व है। एंड्रॉयड फोन का इस्तेमाल करने वाले भी शोक से पुस्तकों को पढ़ते हैं। मुझे खुशी है कि विश्व पुस्तक दिवस पर अजमेर के सुप्रसिद्ध चार्टेड अकाउंटेंट अजय सोमानी द्वारा लिखित सौ कविताओं पर प्रकाशित पुस्तक साधक चिंतक पर लिखने का अवसर मिल रहा है। मैं यह ब्लॉग इसलिए भी लिख रहा हंू कि अजय सोमानी चार्टेड अकाउंटेंट का बड़ा कामकाज छोड़कर वानप्रस्थ की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यदि किसी व्यक्ति का इतना बड़ा कारोबार हो तो उसका मोह माया से ध्यान नहीं हटा पाता है, लेकिन अजय सोमानी आध्यात्मिक पर चिंतन करते रहे इसलिए उनका मन वानप्रस्थ की ओर जा रहा है। अपनी साधक चिंतक पुस्तक में भी कविताओं के माध्यम से घर परिवार और समाज की स्थिति का भी उल्लेख किया है। कोरोना काल में सोमानी ने करीब एक हजार कविताएं लिख डाली। इनमें से सौ कविताओं पर ही पुस्तक प्रकाशित की गई है। सोमानी का कहना है कि यह कविताएं नहीं है बल्कि उनके चिंतन की साधना है। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से शब्दों को लिखा है। शब्द भी सरल और आसानी से समझने वाले हैं। चूंकि अजय सोमानी सुप्रसिद्ध जैन संत प्रमाण सागर और आध्यात्मिक संत मनीषा नंद गिरि के संपर्क में आए इसलिए इन दोनों संतों ने अपनी टिप्पणी की है। जैन संत ने लिखा है कि वर्ष 2014 से सोमानी मेरे संपर्क में आए और आज मैं उन्हें कवि के रूप में देख रहा हंू। सोमानी एक अच्छे चिंतक, साधक और सर्वधर्म सद्भाव रखने वाले व्यक्ति हैं। उनकी रचनाओं को पढ़कर इनके स्वाध्याय और चिंतन की गहराई का आभास होता है। जैन संत ने उम्मीद जताई कि अजय सोमानी का यह चिंतन सभी के लिए प्रेरणादायी बनेगा। वहीं आध्यात्मिक संत मनीषा नंद गिरि ने कहा कि अजय सोमानी ने सत्संग का आधार लेकर अपनी भावांजलि कविताओं के माध्यम से पाठकों के सामने रखी है। जीवन के परम पुरुषार्थ के साथ जीवन मूल्यों को भी विशेष स्थान दिया है। भगवान उमा रमण से प्रार्थना है कि भाई अजय का यह पुरुषार्थ सर्वजन हिताय हो। इस पुस्तक का प्रकाशन अजमेर के आर्य इंटर की ओर से किया गया है। इस पुस्तक के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829071570 पर अजय सोमानी से ली जा सकती है।
पूछेंगे आज, गुरु को शिविर में:
पूछेंगे आज, गुरु को शिविर में
समाधान मिलेगा, तत्व चर्चा में
लाजवाब है शंका समाधान में
प्रोत्साहित करते हैं भरे पंडाल में
एक चैतन्य ही व्याप्त समष्टि में,
तत्व अनसुलझा रहा, भेजे में,
भेद नहीं, शक्ति, शक्तिमान में,
पढ़ते सुनते ही रहे सब ग्रंथों में,
उत्पत्ति, स्थित, प्रलय, भ्रम में,
समझ न आई बुद्धू बुद्धि में,
अद्वैत विचार, निश्चय, ज्ञान में,
यर्थात है नहीं, मेरे व्यवहार में
श्रद्धा-विश्वास, ओत प्रोत मन में
फिर भी संशय, स्थित है चित में
- अजय सोमानी। 

S.P.MITTAL BLOGGER (23-04-2022)
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आखिर राजस्थान में सरकार एक पालिका अध्यक्ष चला रहे हैं या फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।अलवर के राजगढ़ में तीन मंदिर और 86 दुकान व मकान तोड़ने का मामला।

राजस्थान के अलवर के राजगढ़ में सड़क चौड़ी करने को लेकर तीन मंदिर और 86 दुकान व मकान बुलडोजर से तोड़ दिए गए। इस संबंध में नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का कहना है कि इस कार्यवाही के लिए राजगढ़ नगर पालिका पर काबिज भाजपा बोर्ड के अध्यक्ष सतीश दुहारिया जिम्मेदार हैं। पूर्व में दुहारिया की अध्यक्षता में हुई पालिका की बैठक में ही सड़क चौड़ी करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था। हालांकि इस पर दुहारिया ने अपनी ओर से सफाई दे दी है, लेकिन सवाल उठता है कि राजस्थान में सरकार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चला रहे हैं या नगर पालिका का एक अध्यक्ष। सब जानते हैं कि एक प्रकरण में अदालत ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अन्य आरोपियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं, लेकिन पीड़ितों की लाख कोशिश के बाद भी आरोपियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज नहीं हो सकी है। क्योंकि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि एक नगर पालिका के प्रस्ताव पर इतनी बड़ी कार्यवाही कैसे हो गई? क्या राजगढ़ के उपखंड अधिकारी पुलिस उप अधीक्षक, तहसीलदार तथा अलवर के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया? क्या पालिका अध्यक्ष दुहारिया इतनी शक्ति शाली थे कि उन्होंने बुलडोजर मंगवाए और तीन मंदिरों और 86 मकान निर्माणों को तोड़ दिया। यह भी तब जब राजगढ़ नगर पालिका का ईओ बनवारीलाल मीणा, एसडीएम केशव कुमार मीणा और विधायक जौहरी लाल मीणा (कांग्रेस) हैं। जो 86 पक्के निर्माण तोड़े गए वे पचास पचास वर्ष पुरानी हैं, जबकि एक मंदिर तो तीन सौ वर्ष पुराना बताया जा रहा है। राजगढ़ पालिका अध्यक्ष को तो अपनी गलती की सजा भुगतनी ही पड़ेगी, लेकिन सवाल उठता है कि मामूली सी पालिका के प्रस्ताव पर कलेक्टर और एसपी ने अपने विवेक का इस्तेमाल क्यों नहीं किया। राजगढ़ बाजार में बुलडोजर चलाने पर कलेक्टर और एसपी ने भी अपनी सहमति दी है। सवाल यह भी है कि क्या इतनी बड़ी कार्यवाही से पूर्व अलवर प्रशासन ने सरकार को कोई राय ली। विगत दिनों जब मध्यप्रदेश में बुलडोजर से एक अपराधी का मकान गिराया गया तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तीखी प्रतिक्रिया दी। गहलोत का कहना रहा कि मध्यप्रदेश में की भाजपा सरकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुलडोजर चलाने से पहले मकान मालिक के दर्द को समझना चाहिए था। यानी अशोक गहलोत को मध्यप्रदेश में बुलडोजर से टूटे मकान की चिंता है कि अपने प्रदेश के राजगढ़ में 86 मकान और दुकान टूटने का कोई अफसोस नहीं है। सरकार के मंत्री अपनी जिम्मेदारी को एक मालूम से पालिका अध्यक्ष पर डाल रहे हैं। इस मामले में सरकार को चाहिए कि राजगढ़ पालिका के अधिकारियों के साथ साथ अलवर के जिला प्रशासन के खिलाफ भी कार्यवाही करे। सरकार को उन व्यक्तियों को मुआवजा देना चाहिए जिनके मकान और दुकान तोड़े गए हैं। 

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यदि अशोक गहलोत सरकार के आदेशों की क्रियान्विति ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ हो जाए तो राजस्थान में हर किस्म की भूमि पर बने मकानों-दुकानों के पट्टे जारी हो सकते हैं।31 मार्च 2023 तक चलने वाले अभियान में पट्टे जारी करने का काम और सरल किया। 21 अप्रैल को सरकार ने नए दिशा निर्देश जारी किए हैं।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर नगरीय विकास आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा और शासन सचिव डॉ. जोगाराम ने 21 अप्रैल को कृषि भूमि, वन भूमि, सरकारी भूमि आदि किस्मों की जमीनों पर बने मकानों और बसी हुई कॉलोनियों तथा धारा 69ए के संबंध में तीन स्पष्टीकरण और चार पांच नए आदेश जारी किए हैं। अब इन स्पष्टीकरण और आदेशों की पालना में ही प्रशासन शहरों एवं गांव के संग अभियान में पट्टे जारी होंगे। सरकार ने अभियान को 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया है पिछले लंबे समय से इन स्पष्टीकरणों का इंतजार किया जा रहा था। इसलिए प्रदेश भर में अभियान के कैम्प भी नहीं लग रहे थे। लेकिन 21 अप्रैल के आदेशों के बाद अब फिर से कैंप लगेंगे और लोगों को राहत मिल सकेगी। सरकार ने पट्टे जारी करने का काम और सरल कर दिया है। यदि इन आदेशों के अनुरूप ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम होता है तो राजस्थान में हर किस्म की भूमि पर बने मकानों, दुकानों के पट्टे जारी हो सकते हैं। सरकार ने अधिकारियों की सभी बहाने बाजी पर स्पष्ट निर्देश जारी कर दिए हैं। जिन प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा और शासन सचिव डॉ. जोगाराम ने यह आदेश जारी किए हैं उनकी भी यह जिम्मेदारी है कि सरकार में ईमानदारी के साथ काम हो। यदि कोई व्यक्ति काम न होने की शिकायत मीणा या जोगाराम से करता है तो इन दोनों अधिकारियों को तत्परता दिखाने की जरूरत है। ऐसा न हो कि इतनी सरलीकरण के बाद भी भ्रष्टाचार कायम रहे। 21 अप्रैल को सरकार ने जो स्पष्टीकरण और आदेश जारी किए हैं, उन सभी को मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है। सरकार ने जो आदेश जारी किए हैं उसके अनुसार स्थानीय निकायों के योजना क्षेत्र से बाहर पेराफेरी में कृषि भूमि पर बने मकान, अथवा बसी आवासीय कॉलोनी के पट्टे जारी हो सके। यदि किसी कॉलोनी में तीस प्रतिशत सुविधा क्षेत्र वाली भूमि नहीं बची है तो पड़ौसी की भूमि का शामिल कर पट्टे जारी किए जा सकते हैं। सरकार के इस स्पष्ट आदेश के बाद अब अधिकारियों के पास कृषि भूमि पर बने मकानों अथवा दुकानों के पट्टे जारी नहीं करने का कोई बहाना नहीं बचा है। इतना ही नहीं योजना के लिए अधिग्रहण की गई भूमि पर भी बने मकानों अथवा भूखंडों के पट्टे जारी हो सकते हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि योजना क्षेत्र की जिस भूमि पर अभी भी खातेदार का कब्जा है वह खातेदार अपने वैधानिक दस्तावेज दिखाकर पट्टे जारी करवा सकता है। भले ही भूमिका का मुआवजा कोर्ट में जमा करा दिया हो। यानी अवाप्ति के बाद मुआवजा जमा होने के बाद भी कब्जे के आधार पर खातेदार को पट्टा जारी हो सकता है। यह आदेश इतना स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है। इन्हीं आदेशों में वन भूमि पर बने मकानों के संबंध में भी कहा गया है। राजस्व रिकॉर्ड में यदि वन विभाग की भूमि दर्ज है और उस पर लंबे समय से आवास बना हुआ है तो कलेक्टर के माध्यम से वन विभाग को अन्यत्र भूमि दी जाकर कब्जाधारी को पट्टा जारी करने के आदेश दिए गए हैं। यानी अब वन भूमि पर किया गया कब्जा भी वैध हो जाएगा। अवाप्त भूमि मंदिर बना हुआ है और मंदिर परिसर में कोई व्यक्ति रह रहा है तो शपथ पत्र के आधार पर संबंधित भूमि का पट्टा जारी हो सकता है। इसी प्रकार राजस्व रिकॉर्ड में भूमि को सिवायचक दर्ज किया है, लेकिन उस पर मकान बना हुआ है तो भी वैधानिक दस्तावेज प्रस्तुत कर पट्टा जारी किया जा सकता है। 21 अप्रैल को जारी आदेशों में आवाप्तशुद्ध भूमि पर पट्टे जारी करने के काम को बहुत सरल कर दिया है। यह कहा जा सकता है कि अधिग्रहण के बाद जिस भूमि का कब्जा ले लिया गया है सिर्फ उसी पर पट्टा जारी नहीं हो सकता। लेकिन यदि खातेदार का कब्जा ही है ऐसी अवाप्ति की कार्यवाही भी निष्प्रभावी हो सकती है। कुछ लोग इन आदेशों को गहलोत सरकार का चुनावी आदेश मान सकते हैं। लेकिन इससे कृषि, सरकारी, अवाप्त शुद्ध सभी किस्म की भूमि पर बने मकानों अथवा कब्जे पर पट्टे जारी हो सकते हैं देखना होगा कि सरकार के इन आदेशों की कितनी ईमानदारी के साथ पालना होती है। सरकार ने अपनी ओर से रिश्वत मांगने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। यानी संबंधित अधिकारियों को रिश्वत के बिना भूखंडों के पट्टे जारी करने ही होंगे। अब कोई भी अधिकारी किसी भी प्रकार की अड़ंगेबाजी नहीं कर सकता है। अच्छा हो कि सरकार इन आदेशों की क्रियान्विति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की भी नजर रहे। इतने स्पष्ट आदेश के बाद भी यदि कोई अधिकारी पट्टे वाली फाइल को रोकता है तो उस पर तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए। एससीबी सिर्फ रिश्वत मांगने पर सक्रिय न हो, बल्कि फाइल रोकने पर भी कार्यवाही करे, क्योंकि अधिकारी जब फाइल रोकता है तो संबंधित व्यक्ति मजबूरी में रिश्वत देता है। यदि फाइल का निपटारा एक दो दिन में हो जाए तो फिर रिश्वत देने की नहीं पड़ेगी। 

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Friday 22 April 2022

राजस्थान के अलवर के राजगढ़ में पूरा बाजार ही बुलडोजर से उजाड़ दिया। बरसों पुराने तीन मंदिर भी मिट्टी के ढेर में तब्दील।क्या कांग्रेस सरकार के इस कृत्य पर सुप्रीम कोर्ट कोई संज्ञान लेगा?क्या कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन राजगढ़ आकर पीड़ितों की मदद करेंगे।राजगढ़ में चले बुलडोजर पर आखिर क्यों चुप है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत?

राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे में बुलडोजर से करीब 15 दुकानों को तोड़ दिया है तथा सराय बाजार स्थित तीन मंदिरों को भी मिट्टी के ढेर में तब्दील कर दिया है। राजगढ़ नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी बनवारी लाल मीणा, उपखंड अधिकारी केशव कुमार मीणा और कांग्रेस के विधायक जौहरी लाल मीणा का कहना है कि बुलडोजर नियमानुसार चलाया है। प्रशासन को नए मास्टर प्लान के मुताबिक राजगढ़ का निर्माण करना है, इसलिए यह सब कार्यवाही की जा रही है। प्रशासन के इस कथन में कितनी सत्यता है इसका पता तो जांच के बाद भी चलेगा, लेकिन राजगढ़ के निवासियों का कहना है कि नए मास्टर प्लान के नाम पर ज्यादती की जा रही है। पचास वर्ष पुरानी दुकानों को तोड़ा गया है। जिन व्यक्तियों की दुकानें टूटी हैं, उनके सामने अब भूखों मरने की स्थिति आ जाएगी। चूंकि सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक की सहमति है, इसलिए पीड़ितों की सुनने वाला कोई नहीं है। टूटे मंदिरों की मूर्तियां इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। बुलडोजर और सरकारी कार्मिकों ने लोगों की धार्मिक भावनाओं का भी ख्याल नहीं रखा है। अलवर के राजगढ़ का मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि विगत 20 अप्रैल को जब दिल्ली के जहांगीरपुरी क्षेत्र में एमसीडी के कार्मिक सरकारी सड़क पर हुए अस्थाई अतिक्रमण को हटा रहे थे, तब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर एमसीडी की कार्यवाही पर रोक लगा दी। जहांगीरपुरी में तो सरकारी सड़क के अस्थाई अतिक्रमण हटाए जा रहे थे, जबकि राजस्थान के राजगढ़ में तो पचास वर्ष पुरानी दुकानें और 200 वर्ष पुराने शिव, हनुमान के मंदिर तोड़े गए हैं। सवाल उठता है कि क्या राजगढ़ की इस कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेगा? जब अस्थाई अतिक्रमण हटाने पर रोक लगाई जा सकती है तो फिर राजगढ़ में पक्के निर्माणों को तोड़ने पर रोक क्यों नहीं लगाई जा सकती? जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाने के मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन भी मौके पर पहुंचे थे। माकन ने एमसीडी की कार्यवाही को गैर संवैधानिक बताया। माकन का कहना रहा कि अतिक्रमण हटाने से पहले संबंधित व्यक्तियों को नोटिस दिया जाना चाहिए था। लेकिन एमसीडी ने अतिक्रमण कारियों को नोटिस दिए बिना ही बुलडोजर चला दिया। सब जानते हैं कि अजय माकन राजस्थान के प्रभारी महासचिव हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या माकन अलवर के राजगढ़ में आकर पीड़ितों से मुलाकात करेंगे? जिन गरीब लोगों की दुकानें टूटी हैं, उनके हालात बहुत खराब है। एक ही बाजार में तीन-तीन मंदिरों को तोड़ने से भी लोगों में आक्रोश है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और प्रभारी महासचिव होने के नाते अजय माकन की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
 
मुख्यमंत्री चुप:
जहांगीरपुरी में जब अस्थाई अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोजर चलाया गया, तब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बुलडोजर चलाने के तरीके की निंदा की, लेकिन अलवर के राजगढ़ में बुलडोजर चलने पर सीएम गहलोत अभी तक चुप हैं। राजगढ़ में जो तोडफ़ोड़ की कार्यवाही हुई है, उसके विरोध में ब्रजभूमि कल्याण परिषद के संयोजक डॉ. पवन गुप्ता, नरेश धानावत, अश्विनी, संजय पंडित, यशवंत गुप्ता आदि ने राजगढ़ पुलिस स्टेशन पर एक रिपोर्ट भी दर्ज करवाई है। इस रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि क्षेत्रीय विधायक जौहरीलाल मीणा, एसडीएम केशव कुमार मीणा और नगर पालिका के सीईओ बनवारीलाल मीणा की साजिश की वजह से मंदिरों और बरसों पुरानी दुकानों को तोड़ा गया है। एफआईआर में आरोपियों व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग की है। इसके साथ ही मंदिरों के पुनर्निर्माण और प्रतिमाओं की पुन:स्थापना का आग्रह भी किया गया है। 

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तो भगवान के काम में रिश्वत मांगते सरकारी अधिकारी। लोक सेवा दिवस के अवसर राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस डॉ. समित शर्मा ने प्रेरणादायक ब्लॉग लिखा।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की उपस्थिति में हुए समारोह में छोड़ो कल की बातें... गीत भी सुनाया।l

21 अप्रैल को देशभर में लोक सेवा दिवस मनाया गया। इस अवसर पर राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सचिव डॉ. समित शर्मा ने सोशल मीडिया पर एक प्रेरणादायक ब्लॉग पोस्ट किया है। इस ब्लॉग में डॉ. शर्मा ने बताया कि देश में कर्नाटक विधानसभा का भवन सबसे बड़ा है। इस भवन के मुख्य द्वार पर लिखा है-राजकीय कार्य भगवान का कार्य है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आम जनता से जुड़ा कार्य भगवान का ही होता है, लेकिन इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि भगवान के इस कार्य में अधिकांश सरकारी कार्मिक रिश्वत लेते हैं। जो कार्मिक भगवान के कार्य में रिश्वत लेता है उसके परिणाम का अंदाजा लगाया जा सकता है। आमतौर पर देखा गया है कि जो अधिकारी जितनी रिश्वत लेता है, उसी अनुपात में उसके घर परिवार में समस्याएं रहती हैं। डॉ. समित शर्मा ने अपने ब्लॉग में सरकारी कर्मियों की जिम्मेदारी को विस्तृत रूप से लिखा है। मैं यहां डॉ शर्मा का ब्लॉग ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हंू। लोक सेवा दिवस के अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई। आज ही के दिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्र भारत के प्रथम लोक सेवा सत्र को मेटकाफ हाउस में संबोधित किया था जहां उन्होंने लोक सेवकों को 'स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया कहकर सम्मानित किया था। आज का दिन यह विचार करने का है कि किस प्रकार अधिकारी लोक सेवा में अपना बेहतर योगदान देने के लिए अपनी कार्य क्षमता में अभिवृद्धि कर सकते हैं, क्या-क्या चुनौतियां प्रशासन के सामने हैं और उन्हें दूर करने के लिए क्या नीतियां बनानी चाहिए। भारत भूमि पर जन्म लेना गर्व की बात है बहुत सम्मान की बात है। ना सिर्फ देश में जन्म लेना गौरव की बात है, बल्कि एक लोक सेवक के रूप में हमें जो भूमिका निभाने का अवसर मिला है वह भी फख्र की, सम्मान की बात है।  परम पिता परमेश्वर ने हमारे इस जीवन काल के लिए हमें लोक सेवक की भूमिका के लिए चुना हैं। ये उसकी युक्ति है, उसकी रचना है। उसने तय किया है कि इस जीवन काल में हमें किस किस भूमिका में क्या क्या कार्य करना है। हम जो यह कार्य कर रहे है ये ईश्वर की युक्ति है तो हम जो कार्य कर रहे है वो ईश्वरीय कार्य है।
भारत में सबसे बड़ा विधानसभा भवन कर्नाटक राज्य में है, वहां पर एक पंक्ति लिखी है राजकीय कार्य भगवान का कार्य है और अगर मानें तो यह बिल्कुल सही है। हम अपनी ड्यूटी करते हुए जो कार्य कर सकते है जितने भूखे व्यक्तियों का आप पेट भर सकते हो या जितने प्यासे लोगों को पानी पिला सकते हो या नरेगा योजना में जितने लोगो को रोजगार दे सकते हो या बच्चों को पढा सकते है] उनका अच्छा भविष्य बना सकते हैं हमें अवसर है कि एक बेहतर देश बना सकते हैं है। यह जो अवसर ईश्वर ने हमें दिया है यह वाकई दैवीय कार्य है। सभी लोग सेवक यदि मिलकर यह प्रयास करें और बेहतर लोक सेवाऐं अर्थात पब्लिक सर्विस डिलीवरी को सुनिश्चित करेंए ऐसा संभव है।Ó क्योंकि सब लोग मिल कर एक समर्पित टीम के रूप में जब कार्य करेंगे तो कुछ भी असंभव नहीं है। जैसा कि रामधारी सिंह दिनकर जी ने कविता के माध्यम से कहा है-
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके वीर नर के मग में,
खम ठोंक ठेलता है जब नरए,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
अनेक चुनौतियों के बावजूद गुड गवर्नेंस, बेस्ट पब्लिक सर्विस डिलीवरी दी जा सकती है ये लोक सेवक के संकल्प और सामर्थ्य पर  निर्भर करता है। उसके  devotion, dedication,  commitment, honesty  व sensitivity  पर। अगर प्रत्येक अधिकारी व राज्यकर्मी यह तय कर ले कि दफ्तर में जो भी व्यक्ति अपने कार्य के लिए आता है हम उसका काम बिना कोई अपेक्षा किये बिना किसी सिफारिश के बिना रिश्वत के बिना किसी स्वार्थ के पूरा कर दें। प्रत्येक पुलिस अधिकारी व कर्मी यह तय कर ले कि हमे अपराध की रोकथाम और कानून की पालना बिना किसी दबाव के बिना किसी प्रलोभन के बिना किसी लालच के करना है। अगर ऐसा होगा तो हम पाएंगे कि हमारा भारत शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया चिकित्सा सेवाएं बेहतर मिलने लग गयी है। अगर इंजीनियर अपना काम अच्छी तरह से कर रहे है तो हम पाएंगे कि घर.घर तक पानी, बिजली, सड़क पहुंच गई है। और प्रशासनिक अधिकारी अगर यह निश्चय कर ले तो बिल्कुल यह बात तय है कि हम सब बेहतर गर्वनेन्स दे पाएंगे सुशासन दे पायेगें। राज्य सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतार पायेगें। जो संवेदनशील पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन की बात की जाती है वो कागज पर न रहकर धरातल पर उतर पाएगी। आज का दिन यह संकल्प लेने का है। देश के निर्माण में नेशन बिल्डिंग में अपना योगदान देने का। लोक सेवक के रूप में यह हमारी पब्लिक ड्यूटी भी है अगर उसको भली भांति कर ले तो नेशन बिल्डिंग अपने आप हो जाएगी यदि जो भी हमारी ड्यूटी है उसको हम पूरे मन से पूरे कर्तव्यनिष्ठा से और पूरी ईमानदारी से अंजाम दे। जब शासन का प्रत्येक लोकसेवक सुशासन देने के लिए कृत संकल्पित होगा और शासन के कार्य में दक्षता, गुणवत्ता, परिश्रम, सत्य निष्ठा, कर्तव्य परायणता व सेवा भावना जैसे गुण समाहित होंगे तब समस्त राजकीय योजनाएं धरातल पर क्रियान्वित हो पाएंगी और गांधी जी का रामराज्य का सपना साकार हो सकेगा और हर आंख से हर आंसू को दूर किया जा सकेगा।

गीत भी सुनाया:
21 अप्रैल को लोक सेवा दिवस पर जयपुर में भी प्रशासनिक अधिकारियों का एक समारोह हुआ। इस समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उपस्थित रहे। समारोह में सीएम की उपस्थिति में समित शर्मा ने छोड़ो कल की बातें... कल की बात पुरानी... नए दौर में लिखेंगे, हम सब मिलकर नहीं कहानी, हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी गीत भी मधुर आवाज में सुनाया। इस गीत का वीडियो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है। 

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अजमेर के कांग्रेसी पार्षदों ने नगर निगम के आयुक्त देवेंद्र कुमार की शिकायत कलेक्टर अंशदीप से की।साधारण सभा में आयुक्त पर संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और भाजपा बोर्ड से मिलीभगत करने का आरोप लगाया।

22 अप्रैल को अजमेर के कांग्रेसी पार्षदों ने जिला कलेक्टर अंशदीप से मुलाकात कर नगर निगम के आयुक्त देवेंद्र कुमार (आईएएस) रवैये की शिकायत की। पार्षदों ने कहा कि 21 अप्रैल को नगर निगम की जो साधारण सभा की बैठक हुई, उसमें आयुक्त देवेंद्र कुमार ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाई। मुश्किल से 10 मिनट में साधारण सभा समाप्त हो जाने से प्रतीत होता है कि आयुक्त और निगम के भाजपा बोर्ड में मिली भगत है। पार्षदों ने कलेक्टर को बताया कि 13 माह में पहली बार निगम की साधारण सभा हुई। इस सभा में पार्षद अपने अपने वार्डों की समस्या रखना चाहते थे, लेकिन निगम की मेयर ब्रज लता हाड़ा ने प्रस्तावों पर चर्चा कराए बिना ही साधारण सभा को समाप्त कर दिया। नियमों के मुताबिक सभी प्रस्तावों को एक एक कर आयुक्त को पढ़ना चाहिए था, हर प्रस्ताव पर चर्चा भी होनी चाहिए थी, लेकिन भाजपा बोर्ड ने अपने बहुमत के बल पर बिना चर्चा कराए प्रस्तावों को स्वीकृत कर दिया। साधारण सभा में आयुक्त मूकदर्शक बने रहे। कांग्रेस के पार्षदों ने कलेक्टर से आग्रह किया 21 अप्रैल को हुई साधारण सभा की कार्यवाही को निरस्त किया जाए। पार्षदों ने कलेक्टर ने भरोसा दिलाया कि उनके ज्ञापन पर जांच करवाई जाएगी और जो भी उचित निर्णय होगा, उसे लिया जाएगा।
 
पार्षदों में नाराजगी:
कलेक्टर से मुलाकात के बाद कांग्रेस के पार्षदों कहना रहा कि प्रदेश में कांग्रेस का शासन हैं, लेकिन आयुक्त देवेंद्र कुमार भाजपा बोर्ड से मिली भगत का प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि कलेक्टर के द्वारा न्याय नहीं मिला तो वे नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात करेंगे। कांग्रेस के पार्षदों का आरोप रहा कि भाजपा बोर्ड की मेयर श्रीमती ब्रजलता हाड़ा साधारण सभा का सामना नहीं कर सकती हैं, इसलिए 10 मिनट में साधारण सभा को समाप्त कर दिया गया। कांग्रेस के पार्षदों ने भाजपा में आपसी गुटबाजी का भी आरोप लगाया। 21 अप्रैल को साधारण सभा समाप्त होने के बाद भी कांग्रेस के पार्षदों ने सभा स्थल जवाहर रंगमंच पर रात 8 बजे तक धरना दिया। इस धरने में नौरत गुर्जर, द्रोपदी कोली, नरेश सत्यावना,गजेंद्र सिंह रलावता, सर्वेश पारीक, विपिन बेंसिल, श्याम प्रजापति, हेमंत शर्मा, पिंकी बालोटिया, हमीद चीता, नितिन जैन, रश्मि हिंगोरानी, मनीष सेठी, कपित सारस्वत भारत यादव, हेमंत जोधा, मुनव्वर कायमखानी आदि मौजूद रहे। इन्हीं पार्षदों ने 22 अप्रैल को कलेक्टर से मुलाकात की। 

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सचिन पायलट दिल्ली में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से तो मुलाकात करते हैं, लेकिन जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात नहीं कर पाते।सीएम गहलोत की सहमति होने पर ही पायलट राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में भाग ले सकते हैं।आखिर राजस्थान के कोविड सहायक दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय पर पहुंचे।

पूर्व डिप्टी सीएम और सात वर्ष तक राजस्थान में कांग्रेस की कमान संभालने वाले सचिन पायलट यदि यह समझते हों कि दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके दोनों बच्चे राहुल और प्रियंका से मुलाकात कर लेने से वे राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति करने लगेंगे तो यह उनकी गलतफहमी है। पायलट माने या नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सहमति के बगैर पायलट को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय होने का अवसर नहीं मिलेगा। 22 अप्रैल को अखबारों में छपा है कि पायलट ने पिछले 12 दिनों में दूसरी बार दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की है। राहुल और प्रियंका से भी मुलाकात होने की खबरें छपती रही हैं। कहा जा रहा है कि पायलट ने सोनिया गांधी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार के रिपीट होने का फार्मूला भी दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पायलट की लोकप्रियता आज भी प्रदेशभर में बनी हुई है। यह लोकप्रियता तब है, जब पिछले साढ़े तीन वर्ष में सीएम गहलोत ने पायलट को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गहलोत आज भी पायलट पर उनकी सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाते हैं। पायलट और उनके समर्थकों को अब यह भी समझना होगा कि कांग्रेस में असली हाईकमान अशोक गहलोत ही हैं। सोनिया गांधी तो खुद अशोक गहलोत से राय लेकर कांग्रेस को चला रही हैं। प्रशांत किशोर जैसे धंधेबाज लोग कांग्रेस को मजबूत करने की कितनी भी राय दे दें, लेकिन इन सभी रायों पर गहलोत की राय भारी है। सचिन पायलट यदि राजस्थान कांग्रेस में सक्रिय होने की इच्छा रखते हैं तो दिल्ली के बजाए जयपुर में अशोक गहलोत से ही बात करनी होगी और यदि अशोक गहलोत से बात नहीं करना चाहते हैं तो पायलट को 2023 के विधानसभा चुनाव के परिणाम का इंतजार करना होगा, क्योंकि चुनाव से पहले तक गहलोत को कोई नहीं हटा सकता। अशोक गहलोत अपना रिकॉर्ड खुद तोड़ते हैं। 2008 में 57 विधायक बने तो 2013 में कांग्रेस विधायकों की संख्या 21 थी। इस रिकॉर्ड को अब 2023 में गहलोत ही तोड़ेंगे। लेकिन यदि पायलट को विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान की राजनीति में सक्रिय होना है तो फिर उन्हें नया रास्ता चुनना पड़ेगा। मौजूदा राजनीतिक माहौल में पायलट के पास कई विकल्प हैं। लेकिन नए विकल्पों पर विचार करते हुए पायलट को यह ध्यान रखना होगा कि गहलोत की खुफिया एजेंसियों की नजर उन पर लगी है। गहलोत को सब पता है कि पायलट की लोगों से मिल रहे हैं। सचिन पायलट की हर गतिविधि पर गहलोत सरकार की नजर है।
 
कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे कोविड सहायक:
पिछले 22 दिनों से कोविड स्वास्थ्य सहायक अपनी बर्खास्तगी के विरोध में जयपुर के शहीद स्मारक पर बेमियादी धरना दे रहे हैं। 22 अप्रैल को अनेक कोविड सहायक दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर पहुंच गए। कोविड सहायकों का कहना रहा कि यदि कांग्रेस मुख्यालय पर किसी बड़े नेता से मुलाकात नहीं हुई तो वे कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से दस जनपथ स्थित निवास स्थान पर धरना देंगे। प्रतिनिधियों ने कहा कि अपनी बहाली को लेकर वे पिछले 22 दिनों से जयपुर में धरना दे रहे हैं। लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर कोई असर नहीं हुआ है। इसलिए मजबूरी में उन्हें दिल्ली आना पड़ा है। प्रदेश में कोरोना काल में राज्य सरकार ने 28 हजार कोविड सहायकों की भर्ती की थी। हालांकि यह भर्ती अनुबंध पर आधारित थी, लेकिन अब उन्हें अचानक हटा दिया गया है। कोविड सहायकों को पिछले चार माह का वेतन भी नहीं मिला है। जयपुर के धरना स्थल पर बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं। कई महिलाएं तो गर्भवती हैं, लेकिन 45 डिग्री के तापमान में भी कोविड सहायक 22 दिनों से धरना दे रहे हैं। प्रतिनिधियों ने कहा कि 23 अप्रैल तक एक हजार कोविड सहायक दिल्ली में एकत्रित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को संवेदनशील माना जाता है। लेकिन 28 हजार कोविड सहायक पिछले 22 दिनों से धरना दे रहे हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। 

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Thursday 21 April 2022

विवादित बयान देकर गुलाबचंद कटारिया अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कटारिया को मेंटल डिस्टर्ब तक कह दिया।

राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। यह कहा जा सकता है कि भाजपा के प्रदेश नेताओं में कटारिया सबसे वरिष्ठ हैं, इसलिए संगठन ने उन्हें प्रतिपक्ष का नेता बना रखा है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री की सुविधाएं मिलती है। कटारिया की योग्यता में भी कोई कमी नहीं है, लेकिन कटारिया अपने विवादित बयानों से अक्सर स्वयं का नुकसान कर लेते हैं। इसलिए जब मुख्यमंत्री पद की बात आती है तो कटारिया का नाम पिछड़ जाता है। कटारिया ने सीता माता के अपहरण को लेकर रावण पर जो बयान दिया है उससे तो कटारिया ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी ही मार ली हे। एक सभा में कटारिया का कहना रहा कि सीता का अपहरण कर रावण ने कोई बड़ा पाप नहीं किया, क्योंकि अपहरण के बाद रावण ने सीता को छुआ तक नहीं। जो भाजपा अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनवा रही है, उस भाजपा का जिम्मेदार नेता सीता के अपहरण को रावण का बड़ा पाप नहीं मानता हो तो फिर कांग्रेस को हमला करने का अवसर मिलता ही है। 20 अप्रैल को दिल्ली प्रवास में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कटारिया को मेंटल डिस्टर्ब व्यक्ति बता दिया। गहलोत ने दिल्ली में जानबूझकर बयान दिया ताकि भाजपा हाईकमान कटारिया के खिलाफ कार्यवाही करे। कटारिया अब अपने बयान पर कितनी भी सफाई दें, लेकिन कटारिया ने कांग्रेस को भाजपा पर हमला करने का अवसर दे दिया है। यदि मामले ने तूल पकड़ा तो कटारिया का नेता प्रतिपक्ष का पद भी छीना जा सकता है। यह पहला अवसर नहीं है, जब  कटारिया  ने विवादित बयान दिया है। इससे पहले महाराणा प्रताप की वीरता को लेकर भी कटारिया ने गैर जिम्मेदाराना बयान दिया था, तब उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी। कटारिया अपने बयानों से भाजपा के सामने तो समस्या खड़ी करते ही है, साथ ही स्वयं के लिए परेशानी भी पैदा करते हैं। ऐसे विवादित बयानों से कटारिया की एक गंभीर राजनेता की इमेज नहीं बन पाती है। अन्य भाजपा नेताओं की तरह कटारिया भी चाहते हैं कि वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, लेकिन सीता के अपहरण को रावण बड़ा पाप नहीं मानने की बात कह कर क्या कटारिया मुख्यमंत्री बन सकते हैं? यदि ऐसा बयान कांग्रेस के नेता दिया होता तो भाजपा वाले अब तक तूफान खड़ा कर देते। 

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अजमेर के निकट घूघरा गांव में दो श्मशान और एक कब्रिस्तान होने के बाद भी एडीए की भूमि को श्मशान में बदला जा रहा है।पहले वाले श्मशान की भूमि पर भी दबंगों का कब्जा।

अजमेर शहर की सीमा से सटे घूघरा गांव में पहले से ही दो श्मशान और एक कब्रिस्तान है, लेकिन इसके बाद भी अजमेर विकास प्राधिकरण की करोड़ों रुपए की कीमत वाली दो बीघा भूमि को जबरन श्मशान में बदला जा रहा है। दबंगों ने एडीए की भूमि पर चारदीवारी भी कर ली है। हालांकि तहसीलदार ने क्षेत्रीय पटवारी की रिपोर्ट पर चारदीवारी को हटाने के आदेश दे दिए हैं। लेकिन प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव के कारण चारदीवारी को अभी तक नहीं हटाया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार घूघरा गांव में पहले से ही दो श्मशान और कब्रिस्तान है। लेकिन लाड़पुरा रोड वाले पांच बीघा वाले श्मशान पर भी दबंगों ने अतिक्रमण कर लिया है। यदि अतिक्रमणकारियों की पहचान की जाए तो पता चलेगा कि जिन लोगों ने पहले वाले श्मशान की भूमि पर मकान बनाए हैं, वही लोग अब एमडीएस यूनिवर्सिटी चौराहे के निकट संस्कृति द स्कूल के सामने एडीए की भूमि पर कब्जा कर श्मशान बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यानी श्मशान की आड़ में करोड़ों रुपए की भूमि को कब्जाने का प्रयास हो रहा है। होना तो यह चाहिए कि लाड़पुरा रोड वाले श्मशान की भूमि पर से अतिक्रमण को हटाया जाए, लेकिन उल्टे एडीए की बेशकीमती भूमि पर कब्जा किया जा रहा है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे घूघरा के एक भूमाफिया परिवार की भूमिका है। इस परिवार पर सरकारी भूमि को बेचने के आरोप भी लगते रहे हैं। चूंकि इस परिवार का राजनीति में भी दखल है, इसलिए कई प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण रहता है। यदि बेची गई जमीनों की जांच पड़ताल हो तो बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। एमडीएस यूनिवर्सिटी चौराहे के निकट संस्कृति स्कूल के सामने आबादी क्षेत्र हैं। आबादी क्षेत्र में श्मशान के भूमि का आवंटन हो ही नहीं सकता। यदि श्मशान के लिए भूमि लेनी भी है तो विधिवत तौर पर ग्राम पंचायत के जरिए प्रस्ताव पास कर जिला प्रशासन से आवंटन करवाया जा सकता है। लेकिन घूघरा में तो दबंगों ने पहले एडीए की बेशकीमती भूमि पर कब्जा कर लिया और अब श्मशान के लिए आवंटन की मांग कर रहे हैं। यदि घूघरा के श्मशान के लिए भूमि चाहिए तो लाड़पुरा रोड वाले श्मशान को अतिक्रमण मुक्त करवाया जाए। इस बात की क्या गारंटी है कि एडीए की मौजूदा भूमि का श्मशान की आड़ में दुरुपयोग नहीं होगा? प्रशासन को चाहिए कि संस्कृति स्कूल के सामने वाली बेशकीमती भूमि को तुरंत प्रभाव से अपने कब्जे में ले तथा लाड़पुरा रोड वाले श्मशान पर से अतिक्रमण हटाए। लाड़पुरा रोड वाले श्मशान की पांच बीघा भूमि में से तीन बीघा भूमि पर कब्जा हो चुका है। जिला कलेक्टर और एडीए के चेयरमैन अंश दीप को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए।

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तो क्या सुप्रीम कोर्ट देशभर में अतिक्रमण हटाने के मामलों में दिल्ली के जहांगीरपुरी जैसे तत्परता दिखाएगा।

21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बहुचर्चित जहांगीरपुरी क्षेत्र में सड़क पर हो रहे अतिक्रमणों को हटाने पर आगामी दो सप्ताह तक रोक लगा दी है। साथ ही दिल्ली की सरकार, पुलिस, एमसीडी और केंद्र सरकार को नोटिस देकर तलब किया है। यानी अब दिल्ली की जहांगीरपुरी में अस्थाई अतिक्रमणों को भी नहीं हटाया जा सकेगा। जो लोग 200 फिट की सड़क पर अतिक्रमण कर बैठे हैं, उन पर एमसीडी के कर्मचारी कोई कार्यवाही नहीं कर सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के सवाल उठता है कि देश भर में अतिक्रमण हटाने के मामलों में क्या सुप्रीम कोर्ट जहांगीरपुरी जैसे तत्परता दिखाएगा। क्या किसी शहर के अतिक्रमण हटाने के मामले में अतिक्रमणकारी के प्रार्थना पत्र पर मात्र एक घंटे में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जो जाएगी? सब जानते हैं कि स्थानीय निकाय की कार्यवाही के विरुद्ध मुंसिफ अदालत से स्टे लेने में प्रार्थी को बहुत भाग दौड़ करनी पड़ती है। आमतौर पर सरकारी कार्यवाही के खिलाफ स्टे भी नहीं मिलता है। कोई भी अदालत स्थानीय निकाय संस्था जिला प्रशासन और राज्य सरकार का पक्ष सुने बगैर स्टे नहीं देती है। भले ही तब तक अतिक्रमण हटाया जा चुका हो। यह भी सब जानते हैं कि दिल्ली में जहांगीरपुरी में सड़क पर हो रहे अतिक्रमण को ही हटाया जा रहा था, लेकिन 20 अप्रैल को अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही शुरू होते ही अतिक्रमणकारियों के पैरवीकार मुंसिफ कोर्ट, जिला न्यायालय, हाई कोर्ट को लांघ कर सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। मात्र एक घंटे में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर ली और 20 अप्रैल को ही अतिक्रमण हटाने पर रोक लगा दी। जो एमसीडी पूरी तैयारी के साथ अतिक्रमण हटाने पहुंची थी, उस पर ब्रेक लग गया। सुप्रीम कोर्ट ने 20 अप्रैल के स्टे आदेश को 21 अप्रैल की सुनवाई में दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया। सवाल यह भी है कि अतिक्रमण कारियों के प्रार्थना पत्र पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में कैसे सुनवाई होगी? यह माना कि सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च अदालत है और सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में सुनवाई करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। लेकिन सवाल उठता है कि किसी शहर के अतिक्रमण को हटाने के मामले में क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसी ही तत्परता दिखाएगी? अब जब जहांगीरपुरी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में नजीर कायम कर दी है तो देश भर के अतिक्रमणकारियों के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट आने का रास्ता खुल गया है। जो लोग सरकारी सड़क पर अतिक्रमण कर बैठे हुए हैं, उन्हें स्थानीय निकाय की कार्यवाही से बचने के लिए किसी मुंसिफ अथवा जिला अदालत में जाने की जरूरत नहीं है। ऐसे अतिक्रमणकारी सीधे सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दायर कर अपना बचाव कर सकते हैं। जब जहांगीरपुरी के मामले में सुनवाई हो सकती है तो फिर देश के किसी भी गली मोहल्ले के अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट इंकार नहीं कर सकता है।

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राजस्थान के 28 हजार कोविड स्वास्थ्य सहायकों ने फिर दिल्ली कूच का ऐलान किया।पिछले 21 दिनों से जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं। धरना स्थल पर छोटे बच्चों के साथ महिलाएं भी शामिल।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताएं कि कोविड सहायक और कितना हो हल्ला करें? वैसे महिलाएं धरना स्थल पर ही आत्महत्या की धमकी दे रही हैं।

21 अप्रैल को राजस्थान के 28 हजार कोविड स्वास्थ्य सहायकों ने जयपुर में धरना देते हुए पूरे 21 दिन हो गए हैं। अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कोविड सहायकों की सेवाएं 31 मार्च को समाप्त कर दी थी, तभी से ये स्वास्थ्य कर्मी जयपुर में शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं। चूंकि इस धरने का गहलोत सरकार पर कोई असर नहीं हो रहा है, इसलिए स्वास्थ्य कर्मियों ने दिल्ली कूच का ऐलान किया था। दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात करने की योजना थी, लेकिन 20 अप्रैल को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री हरीश चौधरी धरना स्थल पहुंच गए। चौधरी के आश्वासन के बाद स्वास्थ्य कर्मियों ने दिल्ली कूच स्थगित कर दिया, लेकिन 21 अप्रैल को चौधरी ने एक न्यूज चैनल पर कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों को धैर्य रखना होगा। अभी 50 हजार संविदा कर्मियों को स्थाई करने का मामला ही अटका हुआ है, ऐसे में  28 हजार कोविड स्वास्थ्य सहायकों की बहाली कैसे की जा सकती है? चौधरी ने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर पर इन स्वास्थ्य कर्मियों की बहाली के पक्ष में हंू, लेकिन मैं सरकार का हिस्सा नहीं हंू। मैंने स्वास्थ्य कर्मियों की मांग सरकार तक पहुंचा दी है। अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निर्णय लेना है। चौधरी द्वारा टीवी चैनल पर दिए, इस बयान से जयपुर में धरना दे रहे स्वास्थ्य कर्मी भड़क गए। धरने पर बैठे स्वास्थ्यकर्मी खासकर महिलाओं ने कहा कि उनका तो 20 अप्रैल को ही दिल्ली पहुंचाने का कार्यक्रम था, लेकिन उन्होंने हरीश चौधरी पर भरोसा किया। अब चौधरी भी असमर्थता प्रकट कर रहे हैं तो वे 22 अप्रैल को दिल्ली पहुंच जाएंगे। जरूरत पड़ी तो सोनिया गांधी के निवास स्थान  10 जनपथ का घेराव भी किया जाएगा। स्वास्थ्य कर्मियों ने बताया कि 100 से भी ज्यादा विधायकों ने हमारी बहाली के समर्थन में पत्र लिखे हैं, लेकिन सीएम गहलोत पर कोई असर नहीं हो रहा है। संविदा कर्मी तो नियमित करने की मांग कर रहे हैं, जबकि हमारी मांग को सिर्फ बहाली की है। सरकार हमें 7 हजार 900 रुपए प्रतिमाह मानदेय दे रही थी। हम इसी मानदेय पर काम करने को तैयार है। धरना स्थल पर बड़ी संख्या में महिला स्वास्थ्य कर्मी भी अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ बेठी हैं। भीषण गर्मी में बच्चों को भी भारी परेशानी हो रही है। इसे ईश्वर की कृपा ही कहा जाएगा कि हजारों की भीड़ के बाद भी अभी तक कोई जनहानि नहीं हुई है। शायद सरकार जनहानि का इंतजार कर रही है।  स्वास्थ्य कर्मियों का कहना है कि कोरोना की मुसीबत के समय सरकार ने हमें काम पर रखा था, लेकिन अब हमें बर्खास्त कर दिया है, जबकि कोरोना एक बार फिर दस्तक दे रहा है। दिल्ली सहित देश के कई शहरों में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या को देखते हुए मास्क अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में राजस्थान अछूता नहीं रहेगा। सीएम गहलोत भी कोरोना संक्रमण के प्रति चेतावनी दे चुके हैं। यदि कोविड स्वास्थ्य सहायकों की बहाली होती है तो प्रदेश के 28 हजार परिवारों में दो वक्त की रोटी का इंतजाम होगा।
 
आखिर कितना हो हल्ला मचाए:
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई बार कह चुके हैं कि विधानसभा के बाहर, जयपुर के शहीद स्मारक या अन्य स्थानों पर जब कभी धरना प्रदर्शन होता है तो उसका असर सरकार पर पड़ता है। ऐसे धरना प्रदर्शन करने वालों की समस्याओं का समाधान भी जल्द हो जाता है। कोविड स्वास्थ्य सहायक अपनी बर्खास्तगी के बाद से ही एक अप्रैल से हजारों की संख्या में जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं। इनमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं। अब तो स्वास्थ्य कर्मियों ने दिल्ली जाकर सोनिया गांधी के सरकार निवास का घेराव करने की भी घोषणा कर दी है। सीएम गहलोत बताए कि अब स्वास्थ्य कर्मी कितना हो हल्ला करे ताकि सरकार पर असर हो सके। 

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