Friday 26 February 2021

जयपुर में मोती डूंगरी के गणेश मंदिर दर्शन के बाद रॉबर्ट वाड्रा ने मोदी सरकार पर हमला बोला। लोगों की मुश्किलों को कम करने के लिए राजनीति में आऊंगा।राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की गांधी परिवार के पक्ष में एक और प्रभावी पहल।

गांधी परिवार के दामाद राबर्ट वाड्रा 26 फरवरी को दिनभर जयपुर में रहे। चूंकि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए वाड्र्रा ने सुबह जयपुर में मोती डूंगरी स्थित गणेश मंदिर में दर्शन किए। इस मौके पर मंदिर के महंत कैलानाथ शर्मा स्वयं उपस्थित रहे। मंदिर में वाड्रा को दुपट्टा ओढ़ाकर प्रसाद दिया गया। महंत कैलाश नाथ खास मौकों पर ही उपस्थित रहते हैं। गणेश जी का आशीर्वाद लेने के बाद वाड्रा ने मीडिया के समक्ष मोदी सरकार पर हमला बोला। वाड्रा ने प्रदेश स्तरीय न्यूज चैनलों को अलग अलग इंटरव्यू दिए। यहां तक कि वेब पोर्टल वाले चैनलों से भी अलग से बात की। इस मीडिया मैनेजमेंट के पीछे भी सरकार के अधिकारी सक्रिय रहे। वाड्रा ने साफ कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों की वजह से आम आदमी मुश्किल में है। उसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि 100 रुपए का एक लीटर पेट्रोल स्कूटर में डलवाऊं या फिर अपने बीमार माता पिता के लिए सौ रुपए की दवाई खरीदूं। यदि स्कूटर में पेट्रोल डलवाता है तो उसे माता पिता को कंधे पर बैठा कर अस्पताल ले जाना होगा। वाड्रा ने कहा कि हमारा परिवार आम लोगों की मुश्किलों को उजागर करता है, इसलिए परिवार के सदस्यों को राजनीतिक प्रताडऩा का सामना करना पड़ता है। लोगों की मुश्किलों को कम करने के लिए ही वे राजनीति में आएंगे। वैसे मैं समय समय पर आवाज उठाता रहता हंू। वाड्रा ने माना कि यदि मैं लोकसभा का सदस्य होता तो संसद में ज्यादा प्रभावी तरीके से अपनी बात रख सकता था। अपने साले राहुल गांधी और पत्नी प्रियंका वाड्रा की काबिलियत पर राबर्ट वाड्रा ने कहा कि इन दोनों ने ही अपनी माता जी, दादी और नानी से राजनीति सीखी है और ये दोनों जनता के मुद्दों को उठा रहे हैं।
सीएम गहलोत की पहल:
26 फरवरी को राबर्ट वाड्रा जिस तरह से मोदी सरकार पर हमलावर नजर आए उससे प्रतीत होता है कि सीएम अशोक गहलोत ने गांधी परिवार के पक्ष में एक और प्रभावी पहल की है। मौजूदा समय में गहलोत को ही गांधी परिवार का मुख्य सलाहकार माना जा रहा है। चाहे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव का मामला हो या फिर राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खडग़े को प्रति पक्ष का नेता बनाने का। सभी में गहलोत की राय को ही प्रमुखता दी गई है। 26 फरवरी को जयपुर में जिस तरह गणेश जी के दर्शन के बाद राबर्ट वाड्रा को मीडिया कर्मियों से मिलवाया गया,उसमें भी गहलोत की रणनीति रही। संभवत: गहलोत की सलाह पर ही राबर्ट वाड्रा मोदी सरकार पर इतने हमलावर हुए हैं। इससे पहले वाड्रा सिर्फ अपना बचाव ही करते थे। लेकिन 26 फरवरी को वाड्रा ने अपना बचाव करने के साथ साथ मोदी सरकार पर हमला भी किया। हर सवाल का खुल कर जवाब भी दिया। सभी प्रादेशिक न्यूज चैनल वाड्रा के स्पेशल इंटरव्यू का दावा कर खबरें प्रसारित करते रहे। और अब अखबारों में भी स्पेशल साक्षात्कार देखने को मिलेंगे। सीएम गहलोत स्वयं भी मोदी सरकार पर हमलावर रहते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि वाड्रा ने गहलोत के पिछले कार्यकाल में ही राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में जमीनें खरीदी थी। ऐसी खरीद ही अब वाड्रा के लिए मुसीबत बननी हुई है। 
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अजमेर के श्री अनादि धाम आश्रम की ओर से राम मंदिर निर्माण के लिए दो लाख 51 हजार की राशि समर्पित। अब तक 8 करोड़ रुपए एकत्रित हुए।होंडा के 54 स्कूटरों की राशि हड़पने का आरोप। अधिकृत डीलर सर्वेश्वर पाल सहगल ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई।

26 फरवरी को अजमेर के लोहागल रोड स्थित श्री अनादि धाम आश्रम की ओर से अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के लिए दो लाख 51 हजार रुपए की राशि का चैक विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारियों को दिया गया। आश्रम परिसर में आयोजित समारोह में आश्रम की प्रमुख स्वामी अनादि सरस्वती ने विहिप के राष्ट्रीय पदाधिकारी उमा शंकर शर्मा, संघ के प्रचारक धर्म राज, नगर निगम के उप महापौर नीरज जैन, एडवोकेट शशिप्रकाश इंदौरिया, लेखराज सिंह राठौड़ आदि को चैक भेंट किया। इस अवसर पर स्वामी अनादि ने कहा कि अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थल पर भव्य मंदिर बनना देश के हर नागरिक के लिए गौरवान्वित करने वाली बात है। उनके आश्रम की ओर से यह मामूली राशि है, लेकिन सभी भक्तों ने श्रद्धा और आस्था का साथ राशि दी है। इसमें से 51 हजार रुपए उन्होंने स्वयं की ओर से समर्पित किए हैं। स्वामी अनादि ने कहा कि वे स्वयं भी अयोध्या जाकर मंदिर निर्माण में सेवा का काम करेंगी। इस अवसर पर विहिप के राष्ट्रीय पदाधिकारी उमा शंकर शर्मा ने कहा कि भले ही समर्पण राशि कम हो लेकिन इसके पीछे राम भक्तों की श्रद्धा देखी जा सकती है। अपने आश्रम के माध्यम से स्वामी अनादि ने जो दो लाख 51 हजार रुपए की राशि दी है उसका धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है।
अब तक 8 करोड़ रुपए एकत्रित:
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अजमेर महानगर के संघचालक सुनील दत्त जैन ने बताया कि मंदिर निर्माण के लिए अजमेर में अभी तक 8 करोड़ रुपए की राशि एकत्रित हो चुकी है। उन्होंने बताया कि अब धन संग्रह का अभियान भी समाप्त हो गया है, जिन लोगों ने पूर्व में संकल्प लिया था उनकी राशि ली जा रही है। 20 हजार रुपए से अधिक राशि का चैक लिया गया है, जबकि घर घर से एकत्रित राशि की एवज में निर्धारित राशि के कूपन दिए गए हैं। जैन ने बताया कि एकत्रित राशि प्रतिदिन राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के बैंक खाते में जमा करवाई जाती रही। उन्होंने कहा कि अजमेर में उम्मीद से ज्यादा धन संग्रह हुआ है। हालांकि कोरोना काल और लॉकडाउन की वजह से कारोबार प्रभावी रहा, लेकिन फिर भी राम भक्तों ने मंदिर निर्माण के लिए राशि समर्पित की है।
पुलिस में रिपोर्ट:
सुप्रसिद्ध होड़ा स्कूटर कंपनी के अजमेर के अधिकृत डीलर सर्वेश्वर पाल सहगल ने स्थानीय अलवरगेट पुलिस स्टेशन पर एक रिपोर्ट दर्ज करवाई है। इस रिपोर्ट में अजमेर के फॉयसागर रोड स्थित सरोज मोटर के संचालक बृजेश सेन और भाई राजेश सेन पर 25 लाख रुपए की राशि हड़पने का आरोप लगाया है। रिपोर्ट में बताया गया कि दोनों भाईयों के पास कंपनी के 54 स्कूटर अमानत के तौर पर थे, लेकिन उन्होंने स्कूटरों को नकद बेचकर बाकी राशि कंपनी में जमा नहीं करवाई। दोनों भाइयों का कृत्य धोखाड़ीपूर्ण है। पुलिस ने सहगल की रिपोर्ट पर बृजेश सेन और राजेश सेन के विरुद्ध विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया है। 54 स्कूटरों की राशि 25 लाख रुपए बताई गई है। इस मामले में गंभीर बात ये भी है कि जिन लोगों ने सरोज मोटर से स्कूटर खरीदे उन्हें आवश्यक दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। चंूकि दोनों भाईयों ने स्कूटरों की राशि कंपनी में जमा नहीं करवाई इसलिए ट्रांसपोर्ट विभाग से रजिस्ट्रेशन आदि के कागज़ात नहीं मिल रहे हैं। पीडि़त उपभोक्ताओं ने भी इस मामले में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई है। 
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आखिर किसके निशाने पर हैं अंबानी परिवार?देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर से विस्फोट सामग्री और धमकी भरा पत्र मिला।

ये वो ही मुकेश अंबानी है जिनकी जियो मोबाइल कंपनी की सिम लेकर अधिकांश देशवासियों ने महीनों तक मुफ्त में इंटरनेट का उपयोग किया। ये वो ही मुकेश अंबानी है जिनके रिलान्यास किराना स्टोरों से करोड़ों देशवासी बाजार से सस्ती दर पर खाद्य सामग्री खरीदतें हैं। ये वो ही मुकेश अंबानी है जिनकी स्वदेशी रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल तैयार होता है। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी मुकेश अंबानी पर चाहे जितने आरोप लगाएं लेकिन भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इस औद्योगिक घराने की महत्वपूर्ण भूमिका है। अंबानी की औद्योगिक इकाईयों में तैयार माल विदेशों में भी निर्यात होता है। जिस पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर देश भर में हंगामा हो रहा है उस पेट्रोल को अंबानी की रिफ़ाइनरी 35 रुपए लीटर में ही तेल कंपनियों को बेचती है। राज्य और केन्द्र सरकार के टैक्स के बाद कीमत 100 रुपए प्रति लीटर पहुंची है। कल्पना कीजिए कि यदि मुकेश अंबानी रिफ़ाइनरी नहीं लगाते तो हमें विदेशी रिफायनरियों पर ही निर्भर रहना पड़ता। क्या अपने देश में उद्योग स्थापित करना गुनाह है? किसी भी देश को आत्म निर्भर बनाने के लिए स्वदेशी उद्योग होना जरूरी है। क्या मुकेश अंबानी ने उद्योग लगाकर गैर कानूनी काम किया है? जहां तक सरकारों से संबंध होने का सवाल है तो हर औद्योगिक घराने को सरकारी संरक्षण की जरुरत होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से दोस्ती को लेकर राहुल गांधी कुछ भी कहे लेकिन आजादी के बाद देश के औद्योगिक विकास में क्या टाटा, बिड़ला आदि को कांग्रेस का संरक्षण नहीं मिला? अब 26 फरवरी को खबर आई है कि मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित आवास के निकट एक स्कॉर्पियों कार में विस्फोट जिलेटिन और धमकी भरा पत्र मिला है। इस पत्र में मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी नीता अंबानी को संबोधित करते हुए लिखा है कि यह तो ट्रेलर है। पूरी फैमिली को उड़ाने के लिए अबकी बार पूरी तैयारी होगी। स्वभाविक है कि खुले आम ऐसी धमकी से अंबानी परिवार की मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। मुंबई के जिस इलाके में अंबानी परिवार की एंटीलिया बिल्डिंग है उसके निकट ही महाराष्ट्र विधानसभा का भवन है। वैसे भी यह इलाका सुरक्षित है और मुकेश अंबानी को पहले ही जेड प्लस की सुरक्षा मिली हुई है। लेकिन इसके बाद भी अपराधी बिल्डिंग के निकट स्कॉर्पियो कार खड़ी कर गए। यह कार भी चोरी की है। कार में 10 नम्बर प्लेटे मिली हैं। ये नम्बर प्लेटें मुकेश अंबानी के काफिले में चलने वाले वाहनों की हैं। जाहिर है कि अंबानी परिवार को डराने की साजिश हुई है। आखिर मुकेश अंबानी का परिवार किसके निशाने पर हैं? देश के औद्योगिक विकास में यदि अंबानी पीछे हटते हैं तो किसका फायदा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कोई माने या नहीं, लेकिन इन दिनों देश में राजनीतिक माहौल खराब है। राजनीतिक लड़ाई, व्यक्तिगत दुश्मनी पर आ गई है। मुकेश अंबानी को डराने की साजिश को देशहित में नहीं माना जा सकता। यदि मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपति कमजोर होंगे तो फिर विस्तारवाद को बढ़ावा देने वाले चीन को ही फायदा होगा। पहले ही चीन ने भारत में अपने पैर बहुत मजबूत कर रखे हैं। मुंबई पुलिस को चाहिए कि इस मामले की निष्पक्ष और प्रभावी जांच करें। किसी उद्योगपति को डराना देशहित में नहीं है। 
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Wednesday 24 February 2021

ख्वाजा उर्स के शांतिपूर्ण संपन्न होने पर खादिम समुदाय और प्रशासन ने एक-दूसरे का आभार जताया।अंजुमन ने अधिकारियों का इस्तकबाल किया।

ख्वाजा साहब का 809वां सालाना उर्स सुकून के साथ संपन्न हो जाने पर 24 फरवरी को दरगाह के महफिल खाने में खादिम की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैय्यद जादगान की ओर से एक समारोह आयोजित किया गया। अंजुमन की दावत पर संभागीय आयुक्त वीणा प्रधान, रेंज के आईजी एस सेंगाथिर, जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित, पुलिस अधीक्षक जगदीश चंद्र शर्मा, नगर निगम के आयुक्त खुशाल यादव आदि अधिकारियों ने शिकरत की। अंजुमन की ओर से सभी अधिकारियों का इस्तकबाल किया गया। अंजुमन के अध्यक्ष मोइन सरकार और सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने अधिकारियों की दस्तारबंदी भी की। इस अवसर पर अंजुमन के दोनों पदाधिकारियों ने कहा कि इस बार ख्वाजा साहब का उर्स कोरोना काल में हुआ, लेकिन प्रशासन के सहयोग से शांतिपूर्ण तरीके से उर्स की गतिविधियों संपन्न हुई। अंजुमन के जवाब में अधिकारियों का कहना रहा कि शांतिपूर्ण उर्स के लिए खादिम समुदाय का भी सहयोग मिला है। अंजुमन के प्रतिनिधियों और अधिकारियों का मानना रहा कि जब उर्स में जायरीन की भीड़ यदि किसी वीआईपी की चादर आती है तो आम जायरीन को थोड़ी परेशानी होती है। यदि छह दिवसीय उर्स के शुरू के दो-तीन दिन में वीआईपी व्यक्तियों की चादर मजार शरीफ पर पेश हो जाए तो आम जायरीन को परेशानी नहीं होगी। अधिकारियों ने माना कि इस बार कोरोना काल की वजह से जायरीन को थोड़ी तकलीफ़ भी हुई। लेकिन ऐसी पाबंदियां लगाना जरूरी था। यहां यह उल्लेखनीय है कि उर्स शुरू होने से दो दिन पहले ही सरकार ने गाइड लाइन जारी की और अजमेर आने वाले जायरीन को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाने की हिदायत दी। यह भी कहा गया कि जो जायरीन रजिस्ट्रेशन कराएगा उसे ही जियारत की अनुमति दी जाएगी। हालांकि उर्स के दौरान सरकार की ऐसी गाइड लाइन धरी रह गई। किसी भी स्तर पर गाइड लाइन की पालना नहीं हुई, लेकिन अब खादिम समुदाय और प्रशासनिक अधिकारियों को संतोष है कि ख्वाजा साहब का उर्स सुकून के साथ संपन्न हो गया है। समारोह में मीडिया कर्मी आरिफ कुरैशी, नवाब हिदायतउल्ला, पीके श्रीवास्तव आदि का भी सम्मान किया गया। 
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दिल्ली हिंसा की आरोपी दिशा रवि को जमानत मिलने और न्यायाधीश की सख्त टिप्पणी से देश के प्रगतिशील बुद्धिजीवी बहुत खुश हैं।लेकिन एक लाख के ईनामी लक्खा की किसान रैली में उपस्थिति और फिर फरारी तथा पश्चिम बंगाल में एक नेता की एवज में उसके दो मासूम बेटों को उठा ले जाने पर चुप हैं।

देश के प्रगतिशील माने जाने वाले बुद्धिजीवी अब सोशल मीडिया पर दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेन्द्र राणा की जमकर प्रशंसा कर रहे हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों का कहना है कि न्यायाधीश राणा ने सरकार के घमंड को सही आईना दिखाया है। इन बुद्धिजीवियों में वे भी शामिल हैं जिन्हें कभी कभी भारत की न्यायपालिका स्वतंत्र नजर नहीं आती हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को अदालतों के कई फैसले सरकारी दबाव में नजर आते हैं। 23 फरवरी को न्यायाधीश राणा ने 26 जनवरी की दिल्ली हिंसा की आरोपी दिशा रवि को न केवल जमानत पर छोडऩे के आदेश दिए, बल्कि दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर भी सख्त टिप्पणी की। न्यायाधीश राणा का कहा रहा कि लोगों को सिर्फ इसलिए जेल में नहीं डाल सकते कि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं। सब जानते हैं कि दिशा रवि ने स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के साथ मिलकर सोशल मीडिया पर भड़काने वाले संदेश प्रसारित किए। 26 जनवरी को दिल्ली में जो कुछ भी हुआ उसे न्यूज़ चैनलों पर देश की जनता ने देखा। दिल्ली पुलिस के 400 जवान जख्मी हो गए। लाल किले पर हुए तांडव को भी सबने देखा। दिल्ली पुलिस ने जो धैर्य रखा उसकी देशभर में प्रशंसा हो रही है। न्यायाधीश राणा की टिप्पणी अपनी जगह हैं, लेकिन इस टिप्पणी की आड़ में सोशल मीडिया पर केन्द्र सरकार को उपदेश और नसीहत देने वाले बुद्धिजीवी बताएं कि 23 फरवरी को ही पंजाब के बंटिडा में एक किसान रैली में भाषण करने के बाद एक लाख का ईनामी अपराधी  लक्खा सिघाना कैसे फरार हो गया? जबकि दिल्ली पुलिस ने पंजाब पुलिस को पहले ही बता दिया था कि लक्खा रैली में आएगा। रैली से फरारी के बाद पंजाब पुलिस का कहना रहा कि भीड़ में लक्खा को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था। यानि दिल्ली हिंसा का आरोप कांग्रेस शासित पंजाब में धड़ल्ले से रैलियां कर सकता है। इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल में जब भाजपा नेता राकेश सिंह अपने घर पर नहीं मिले तो कोलकाता पुलिस उनके दो मासूस बेटों को उठा लाई। बेटी चिल्लाती रह गई, लेकिन बेरहम पुलिस वाले दोनों बच्चों को जबरन जीप में डाल कर ले गए। क्या पिता की एवज में बेटों को उठाकर ले जाया जा सकता है? बंगाल पुलिस की नजर में राकेश सिंह दोषी हो सकते हैं, लेकिन उनके बेटों का क्या कसूर है? राकेश सिंह पर भी सीधा कोई आरोप नहीं है। पिछले दिनों पुलिस ने 10 ग्राम कोकीन रखने के आरोप में पामेला सिंह नाम की एक लड़की को गिरफ्तार किया था। इस लड़की का ही आरोप है कि राकेश सिंह ने साजिश कर उसे फंसाया है। पश्चिम बंगाल में किस तरह पुलिस का इस्तेमाल हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। भाजपा नेता राकेश सिंह के बेटों पर हुई कार्यवाही को बदले की भावना से प्रेरित बताया जा रहा है। 23 फरवरी को सुबह ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के सांसद भतीजे अभिषेक बनजी की पत्नी रुजिरा बनर्जी से सीबीआई के अधिकारियों ने कोयला तस्करी के प्रकरण में पूछताछ की । रुजिरा बनर्जी थाईलैंड की नागरिक हैं और आरोप है कि कोयले की ब्लैक मार्केटिंग करने वाले लोगों ने रुजिरा के विदेशी खातों में लाखों रुपया जमा करवाया है। क्या सीबीआई को ऐसे प्रकरण में पूछताछ का भी अधिकार नहीं है? सीबीआई के अधिकारियों ने पूरी शालीनता और पूर्व सूचना देकर घर पर ही रुजिरा से पूछताछ की है। लेकिन ममता बनर्जी के इशारों पर काम करने वाली बंगाल पुलिस तो राकेश सिंह के मासूम बेटों को यूं ही उठा लाई। किसान रैली से  लक्खा सिधाना   की फरारी और राकेश सिंह के बेटों को दबोचने पर प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को प्रतिक्रिया देनी चाहिए। 
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प्रेम प्रकाश आश्रम से जुड़े ओम प्रकाश की गतिविधियों को लेकर अजमेर के सिंधी समुदाय में नाराजगी।मैंने समाज विरोधी कोई काम नहीं किया, मैं आज भी स्वामी ब्रह्मानंद जी को अपना गुरु मानता हंू-ओम प्रकाश।

अजमेर के सुप्रसिद्ध प्रेम प्रकाश आश्रम की धार्मिक गतिविधियों से जुड़े सांई ओम प्रकाश की मौजूदा गतिविधियों को लेकर अब सिंधी समुदाय में नाराज़गी है। आश्रम से जुड़े अनेक श्रद्धालुओं का मानना है कि ओम प्रकाश की गतिविधियों से आश्रम की प्रतिष्ठा भी खराब हो रही है। ओम प्रकाश आज 350 वर्गगज भूखंड पर अपना हक बता रहा है, जबकि वह डेढ़ वर्ष की उम्र से ही आश्रम में स्वामी ब्रह्मानंद जी के पास पल रहा है। ऐसे में भूखंड खरीदने के लिए पैसे कहां से आए? ओम प्रकाश पर भरोसा करते हुए ही स्वामी ब्रह्मानंद ने उसे अपना शिष्य और उत्तराधिकारी बनाया था। तब ओम प्रकाश ने जीवन भर आश्रम में ही अपनी सेवाएं देने का संकल्प लिया था। लेकिन डेढ़ वर्ष पहले आश्रम में आने वाले एक श्रद्धालु लड़की के साथ ओमप्रकाश गायब हो गया। बाद में पता चला कि उसने विवाह कर लिया है। जबकि इस लड़की से ओम प्रकाश राखी बंधवाता रहा। ओम प्रकाश और उसकी पत्नी गौरांगी आश्रम में आकर माहौल खराब कर रहे हैं। स्वामी ब्रह्मानंद जी ने भी ओम प्रकाश को आश्रम की सभी गतिविधियों से अलग कर दिया है। ओम प्रकाश का अब आश्रम की धार्मिक और प्रबंधन की गतिविधियों से कोई सरोकार नहीं है। ओम प्रकाश ने जिस तरीके से गौरांगी से विवाह किया उसके बाद गौरांगी के पिता का भी निधन हो गया। श्रद्धालुओं के अनुसार चौरसियावास रोड स्थित आश्रम में किसी भी व्यक्ति ने ओम प्रकाश ओर उसकी पत्नी के साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया। ओम प्रकाश के ऐसे सभी आरोप झूठे हैं। वहीं सांई ओम प्रकाश का कहना है कि उन्होंने समाज और आश्रम की बदनामी करने वाला कोई कार्य नहीं किया है। यदि आश्रम की परंपराओं के विरुद्ध विवाह कर लिया तो अब वे आश्रम की धार्मिक और प्रबंधन से जुड़ी सभी गतिविधियों से अलग हैं। उसको लेकर अपना कोई हक भी नहीं जता रहे हैं। उन्हें प्रेम प्रकाश आश्रम की संपत्तियों से भी कोई सरोकार नहीं हैं। वे आज भी स्वामी ब्रह्मानंद जी को अपना गुरु मानते हैं। जहां तक गौरांगी से विवाह करने का सवाल है तो जब वे आश्रम की धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय थे, तब बुजुर्ग महिलाएं भी उन्हें श्रद्धा के साथ राखी बांधती थी। मैंने गौरांगी से विवाह उनके माता पिता की सहमति से किया है। गौरांगी के पिता की मृत्यु लीवर खराब होने से हुई है। ओम प्रकाश ने कहा कि आश्रम के कुछ लोग स्वामी ब्रह्मानंद जी को गुमराह कर रहे हैं। मेरे और स्वामी जी के बीच आज भी मधुर संबंध बने हुए हैं। मैं समाज के किसी भी व्यक्ति से विवाद नहीं चाहता हंू। मैंने अब आश्रम में जाना भी बंद कर दिया है। 
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उत्तर के मुकाबले दक्षिण भारत के लोग ज्यादा समझदार। केरल में आना मेरे लिए ताजगीपूर्ण रहा-राहुल गांधी।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताए कि क्या केरल के मुकाबले राजस्थानियों में समझ कम है?

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अपने विवादित बयानो से अक्सर चर्चा में रहते हैं। 23 फरवरी को केरल में एक सभा में राहुल गांधी ने कहा कि उत्तर के मुकाबले में दक्षिण भारत के लोगों में राजनीति की अलग ही समझ है। दक्षिण के लोग ज्यादा समझदार हैं। मेरा केरल आना ताजगीपूर्ण रहा है। मुझे यहां सुखद अहसास हुआ है। राहुल गांधी ने देश की जनता को उत्तर और दक्षिण में बांटने की बात क्यों कहीं और क्यों दक्षिण के लोगों को ज्यादा समझदार बताया? इस सवाल का जवाब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही दे सकते हैं, क्योंकि मौजूदा समय में गहलोत ही गांधी परिवार के सबसे बड़े सलाहकार हैं। कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कब बनेगा? यह निर्णय भी गहलोत ही करते हैं। पंजाब के नगर निकायों के परिणाम हों या पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकार गिरना, सभी मुद्दों पर गहलोत ही ट्वीट कर प्रतिक्रिया देते हैं। अब गहलोत को ही बताना होगा कि आखिर गांधी परिवार के युवराज देश की जनता को उत्तर और दक्षिण में क्यों बांट रहे हैं? राहुल गांधी लगातार 15 वर्ष से उत्तर भारत के अमेठी संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे हैं। 2019 में राहुल को अमेठी से हार का सामना करना पड़ा। अमेठी से चुनाव हारेंगे, इसका अहसास राहुल को चुनाव से पहले ही हो गया था, इसलिए उन्होंने केरल के वायनाड़ से भी चुनाव लड़ा। अब राहुल गांधी वायनाड़ से ही सांसद हैं। यह सही है कि सांसद को अपने क्षेत्र के लोगों को खुश करना पड़ता है, लेकिन यह खुशी विकास कार्यों से होती है। समझ के आधार पर अपने क्षेत्र के लोगों को खुश करने का काम सिर्फ राहुल गांधी जैसा सांसद ही कर सकता है। जिस अमेठी की जनता ने राहुल को तीन बार सांसद चुना अब वही जनता राहुल गांधी को कम समझदार लगती है। यह बात सही है कि राहुल गांधी मई 2019 में अमेठी से लोकसभा का चुनाव हार गए, लेकिन मात्र 6 माह पहले हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तसीगढ़ के विधानसभा चुनावों मे ंकांग्रेस की जीत  हुई थी। तब इन तीनों राज्यों मे ंराहुल ने धन्यवाद सभाएं कर उत्तर भारत की जनता को समझदार बताया था। सब जानते हैं कि केरल में भी अप्रैल में चुनाव होने हैं और राहुल गांधी केरल से ही सांसद हैं। अब राहुल को केरल की जनता को खुश करना है। इसलिए उत्तर भारत की जनता की समझ का मजाक उड़ा रहे हैं। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने केरल चुनाव की मुख्य ज़िम्मेदारी भी राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को ही दी है। केरल का चुनाव प्रभारी रहते हुए राहुल गांधी के ताजा बयान का अशोक गहलोत अपने गृह प्रदेश राजस्थान में कैसे बचाव करेंगे, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा। जहां तक केरल के राजनीतिक समीकरणों का सवाल है तो केरल में कम्युनिस्ट सरकार है और राहुल गांधी को कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ कर ही कांग्रेस की सरकार बनवानी है। यह बात अलग है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस, कम्युनिस्टों के साथ तालमेल कर ममता बनर्जी की सरकार को उखाडऩे में लगे हुए हैं। बंगाल में भी केरल के साथ ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। विभाजनकारी नीतियों की वजह से ही कांगे्रस की लगातार हार हो रही है। 545 सांसदों में से कांग्रेस के मात्र 52 सांसद हैं। लेकिन फिर भी राहुल गांधी देश को उत्तर और दक्षिण में विभाजित कर रहे हैं। 23 फरवरी को ही घोषित गुजरात के 6 नगर निकायों के 576 वार्डों के परिणाम में कांग्रेस को सिर्फ 45 वार्डो में ही जीत मिली है। इससे भी कांग्रेस की ताजा राजनीतिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कांग्रेस कोई क्षेत्रीय दल नहीं है। आजादी के बाद 50 वर्षों तक कांग्रेस ने ही देश पर शासन किया है। कांग्रेस के नेताओं की सोच राष्ट्रीय और देशहित में होनी चाहिए। 
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Tuesday 23 February 2021

विवाह कर लेने से क्या किसी शिष्य को मंदिर में सेवा करने से रोका जा सकता है?अजमेर में प्रेम प्रकाश आश्रम के सेवा कार्य और करोड़ों की संपत्तियों को लेकर विवाद।जीवन भर संन्यासी रहने का मैंने कभी भी संकल्प नहीं लिया-सांई ओम प्रकाश।

अजमेर में सिंधी समुदाय के अराध्य स्वामी बसंत राम जी द्वारा स्थापित प्रेम प्रकाश आश्रम के मंदिर में सेवा कार्य और करोड़ों की सम्पत्ति को लेकर अब विवाद खड़ा हो गया है। इसी संस्था का एक आश्रम गुजरात के सूरत शहर में भी है। देशभर के प्रेम प्रकाश आश्रमों में संन्यास व्यवस्था एक समान ही है और बह्मचार्य का पालन करने वाला व्यक्ति ही आश्रम के प्रमुख की गद्दी पर बैठता है। सिंधी इतिहास की जानकारी रखने वाले अजमेर के इंजीनियर भाऊ हरिचंदनानी ने बताया कि स्वामी टेऊराम के शिष्य स्वामी बसंत राम जी ने पाकिस्तान सिंध से आकर अजमेर में देहली गेट पर प्रेम प्रकाश आश्रम और मंदिर की स्थापना की। स्वामी बसंत राम जी ने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन किया। अपने जीवनकाल में ही उन्होंने स्वामी ब्रह्मानंद शास्त्री को गोद ले लिया। ब्रह्मानंद जी बचपन से ही स्वामी बसंत राम के पास रहे। आश्रम परंपरा का निर्वाह करते हुए ब्रह्मानंद जी ने भी ब्रह्मचर्य का पालन किया और स्वयं को संन्यासी माना। इसी परंपरा के अंतर्गत स्वामी ब्रह्मानंद जी ने ओम प्रकाश को गोद लिया। स्वामी ब्रह्मानंद डेढ़ वर्ष की उम्र से ही ओम प्रकाश को पाल रहे हैं। स्वामी ब्रह्मानंद ने ओम प्रकाश को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। तभी से ओम प्रकाश प्रेम प्रकाश आश्रम के मंदिरों में पूजा पाठ करता रहा। भक्तों ने भी ओम प्रकाश को स्वामी माना और चरण स्पर्श किए। महिलाओं ने भी ओम प्रकाश को अपना गुरु माना। अजमेर में होने वाले संत सम्मेलनों में ओम प्रकाश ने ही स्वामी ब्रह्मानंद की ओर से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। यह सब वर्ष 2019 तक चलता रहा। तब किसी को भी ओम प्रकाश के सेवा कार्य पर ऐतराज नहीं था, लेकिन 2019 में ही एक दिन ओम प्रकाश आश्रम से  गायब हो गया। कुछ दिनों बाद पता चला कि आश्रम में आने वाली एक युवती से ओम प्रकश ने विवाह कर लिया। विवाह के बाद कोरोना की वजह से वर्ष 2020 में लॉकडाउन में प्रेम प्रकाश आश्रम की धार्मिक गतिविधियां भी बंद हो गई। अब जब अजमेर के चौरसियावास रोड स्थित प्रेम प्रकाश आश्रम में धार्मिक गतिविधियां शुरू हुई हैं तो ओम प्रकाश के सेवा कार्य और आश्रम की संपत्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। ओम प्रकाश चाहते हैं कि वे पहले की तरह आश्रम में रहे और उनकी पत्नी गोरांगी भी मंदिर में सेवा कार्य करें। जबकि 77 वर्षीय स्वामी ब्रह्मानंद शास्त्री का कहना है कि अब ओम प्रकाश का आश्रम से कोई संबंध नहीं है। उसे बसंत राम सेवा ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया है। ओम प्रकाश की उपस्थिति में मंदिर की मर्यादा का भी उल्लंघन हो रहा है। अब यदि ओम प्रकाश के साथ कोई घटना घटित होती है तो ट्रस्ट का कोई पदाधिकारी जिम्मेदार नहीं होगा। स्वामी ब्रह्मानंद शास्त्री के इस कथन का ओम प्रकाश ने कड़ा ऐतराज किया है। ओम प्रकाश का कहना है कि सिर्फ विवाह कर लेने से उन्हें मंदिर में सेवा कार्य करने से वंचित नहीं किया जा सकता है। आज भी वे स्वामी ब्रह्मानंद को अपना गुरु मानते हैं। ओम प्रकाश ने स्पष्ट कहा कि स्वामी जी का शिष्य रहते हुए उन्होंने कभी भी संन्यास धारण करने का संकल्प नहीं लिया। ओम प्रकाश ने इस बात पर अफसोस जताया कि गत दिनों जब मेरी पत्नी गोरांगी मंदिर में सेवा कार्य कर रही थी, तब लक्ष्मण भक्तानी, रेणु जेठानी, मोहन शिवनानी, पदमा शिवनानी, दीपक निहलानी, दीपा लालवानी, वर्षा मोहनानी, किशोर रायसिंघानी आदि ने दुर्व्यवहार किया। मेरा आज भी मानना है कि स्वामी ब्रह्मानंद जी की मेरी प्रति कोई र्दुभावना नहीं है। कुछ लोग अपने स्वार्थ के खातिर स्वामी को गुमराह कर रहे हैं। मेरी प्रेम प्रकाश आश्रम के प्रति पहले की तरह आस्था है। चौरसियावास रोड स्थित जिस भूमि पर प्रेम प्रकाश आश्रम बना हुआ है उसमें 350 वर्गगज के भूखंड पर मेरा मालिकाना हक है। लेकिन मैंने कभी अपना हक नहीं जताया है। आश्रम के निर्माण के समय मैंने अपने भूखड का सिर्फ समर्पण किया था। इस सच्चाई को स्वामी जी भी जानते हैं।
देहली गेट के आश्रम का कुछ भाग बेचा गया है:
हालांकि चौरियावास रोड पर स्वामी बसंत राम द्वारा स्थापित देहली गेट के आश्रम के कुछ हिस्से का बेचान किया गया है। इस बेचान में ओम प्रकाश की भी सहमति रही थी। 
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पत्र लिखने वाले 20 भाजपा विधायकों में से 15 ने बजट सत्र में अपनी बात रखी है। काली चरण सराफ को तो स्थगन प्रस्ताव रखने का अवसर भी मिला-प्रति पक्ष नेता गुलाब चंद कटारिया।आखिर कटारिया को ही टारगेट क्यों बनाया गया?फ़र्स्ट इंडिया न्यूज़ चैनल पर हुई बिग फाइट।

राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के समर्थक माने जाने वाले 20 भाजपा विधायकों ने विधानसभा में प्रति पक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया को टारगेट कर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को जो पत्र लिखा उसे लेकर 22 फरवरी को रात 8 बजे फ़र्स्ट इंडिया न्यूज़ चैनल पर भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच बिग फाइट हुई। इस लाइव प्रोग्राम में प्रति पक्ष के नेता कटारिया, विधानसभा की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता श्रीमती सुमित्रा सिंह तथा कांग्रेस के तेज तर्रार प्रवक्ता आरसी चौधरी उपस्थित रहे। बिग फाइट में मैं एसपी मित्तल राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार की हैसियत से मौजूदा रहा। कटारिया ने जो जानकारी दी वो अभी तक किसी भी मीडिया में प्रसारित नहीं हुई। पत्र में भले ही भाजपा विधायकों ने विधानसभा में बोलने, स्थगन प्रस्ताव रखने आदि को लेकर कटारिया की कार्यशैली पर हमला किया हो, लेकिन कटारिया ने कहा कि पत्र लिखने वाले 20 विधायकों में से 14 ने इसी बजट सत्र में अपनी बात रखी है। शेष छह विधायकों ने मुझे कभी बताया ही नहीं कि वे विधानसभा में बोलना चाहते हैं। वरिष्ठ विधायक काली चरण सराफ ने स्थगन प्रस्ताव भी रखा है। मेरे पास जो भी विधायक आया है, उसे बोलने का अवसर दिया। कटारिया ने कहा कि मुझ पर ऐसे आरोप लगाना उचित नहीं है। मैं अभी सभी पत्र लिखने वाले 20 विधायकों से व्यक्तिगत मिलूंगा और उनके दर्द को समझूंगा। मुझे लगता है कि पत्र लिखने के पीछे इन विधायकों की मंशा और ही है। मैं इन्हें यह भी बताऊंगा कि अपनी मंशा को मंच पर रखे। कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति विधानसभा की कार्यवाही देख सकता है। पत्र में लिखी बातें सही नहीं है। जहां तक राजस्थान में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे का सवाल है तो अभी विधानसभा चुनाव में तीन वर्ष बकाया है। क्या तीन वर्ष पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जा सकता है? मैं हमेशा पार्टी के प्रति वफादार रहा हंू। पूर्व में जब मैंने मेवाड़़ क्षेत्र में यात्रा निकालने की घोषणा की थी तो वसुंंधरा राजे ने विरोध किया था। इस्तीफ़े तक की धमकी दी थी, तब मैंने अपनी यात्रा रद्द कर दी। मैं नहीं चाहता था कि मेरे कारण वसुंंधरा राजे इस्तीफा दें। हालांकि बिग फाइट में कटारिया ने स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा के किसी भी विधायकों को बोलने से नहीं रोका गया है, लेकिन कांग्रेस के तेज तर्रार प्रवक्ता आरसी चौधरी अपने इन आरोपों पर कायम रहे कि भाजपा में बोलने की आजादी नहीं है और विधानसभा में भी जन प्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र की समस्याओं को उठाने का अवसर नहीं दिया जाता है। चौधरी ने भाजपा को लोकतंत्र की हत्या करने वाली पार्टी बताया। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सुमित्रा सिंह ने भी कुछ इसी तरह की बातें रखी। जबकि पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर मेरा कहना रहा कि भाजपा में नेतृत्व को लेकर चल रही खींचतान में कटारिया को टारगेट किया गया है। वर्ष 2013 से 2018 की अवधि में वसुंधरा राजे ने सबसे ज्यादा भरोसा कटारिया पर ही किया था। राजे ने अपने मंत्रिमंडल में कटारिया को गृहमंत्री बनाए रखा। राजे ने पूरे पांच वर्ष कटारिया की प्रशंसा की। ऐसे में अब कटारिया को टारगेट करना भाजपा की आतंरिक कलह को उजागर करता है। भाजपा स्वयं को अनुशासित पार्टी होने का दावा करती है, जबकि 20 विधायक पत्र लिख कर पार्टी के अनुशासन की धज्जियां उड़ाते हैं। कटारिया की सफाई के बाद तो पत्र में लिखी बातें गलत प्रतीत होती हैं। बिग फाइट के इस लाइव प्रोग्राम की एकरिंग श्वेता मिश्रा ने सफलता पूर्वक की। 
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गुजरात के सभी 6 नगर निगमों में भाजपा की जीत। कांग्रेस बेहद कमजोर स्थिति में। कई जगह केजरीवाल की पार्टी से भी पीछे।पंजाब के निकाय चुनावों में कांग्रेस की जीत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हार बताया था।भूपेन्द्र यादव है गुजरात के प्रभारी महासचिव। अगले वर्ष होने हैं विधानसभा के चुनाव।

23 फरवरी को घोषित गुजरात के छह नगर निगम के चुनावों में भाजपा को भारी जीत मिली है। भाजपा सभी छह निगमों में अपना बोर्ड बनाएगी। छह निगमों के 576 वार्डों में से 325 से भी ज्यादा पर वार्डों में भाजपा की बढ़त है। गुजरात में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं ऐसे में छह निगमों के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। खास बात ये है कि ये सभी निगम गुजरात के महानगर माने जाने वाले शहरों के हैं। अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, जामनगर, और भावनगर जैसे महानगरों में भाजपा को एक तरफा जीत हासिल हुई है। इससे गुजरात की जनता के रुख का भी पता चलता है। भाजपा के लिए निगमों के चुनाव परिणाम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गुजरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह जिला है। मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले गत 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। यदि निगम चुनाव में भाजपा की हार होती तो इसे सीधे प्रधानमंत्री की हार माना जाता। हाल ही में 17 फरवरी को जब पंजाब के 8 नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस को 7 निगमों में जीत हासिल हुई तो कांग्रेस और विपक्ष की ओर से कहा गया कि यह नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली की हार है। पंजाब में कांग्रेस की जीत को तीन कृषि कानूनों के विरोध से भी जोड़ दिया गया। कहा गया कि पंजाब की जनता ने कृषि कानून के विरोध में अपना मत दिया है। चूंकि भाजपा को पंजाब के एक भी नगर निगम में सफलता नहीं मिली इसलिए भाजपा के नेताओं को बचाव की मुद्रा में रहना पड़ा। यहां यह उल्लेखनीय है कि कृषि कानूनों को लेकर ही अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था, लेकिन निगम चुनाव में अकाली दल को भी सफलता नहीं मिली। निगम का चुनाव भाजपा और अकाली दल ने अलग अलग होकर लड़ा, इसका फायदा भी कांग्रेस को हुआ। पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में ही कांग्रेस की सरकार चल रही है। दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब के किसानों को बैठाए रखने में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन अब जिस तरह गुजरात के छह निगमों के चुनाव परिणाम सामने आए हैं उससे प्रतीत होता है कि गुजरात में अभी भी नरेन्द्र मोदी का प्रभाव है। इसमें कोई दो राय नहीं कि गुजरात में लम्बे अर्सें से भाजपा की सरकार चल रही है। और स्थानीय निकायों के चुनावों में प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। माना जाता है कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार उसी पार्टी के बोर्ड शहरी निकायों में बनते हैं। गुजरात के चुनाव परिणाम बताते हैं कि सभी स्थानों पर कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से भी पीछे रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएमआई पार्टी के उम्मीदवार अहमदाबाद के पांच वार्डों में विजय हुए हैं। कई वार्डों में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है।
भूपेन्द्र यादव हैं प्रभारी महासचिव:
राजस्थान से राज्यसभा के सांसद भूपेन्द्र यादव गुजरात के प्रभारी महासचिव हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी यादव ने गुजरात में अभी से शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव की तैयारियों का लाभ भी भाजपा को नगर निगम के चुनाव में हुआ है। यादव ने प्रदेश भर में जो रणनीति बनाई, उसी का परिणाम रहा कि कई शहरों में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर हुई है। यादव बिहार के भी प्रभारी महासचिव हैं। बिहार के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जेडीयू के गठबंधन को जीत दिलवाने में भी यादव की रणनीति रही। चूंकि गुजरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह प्रदेश है, इसलिए राष्ट्रीय नेतृत्व ने भूपेन्द्र यादव के ज़िम्मेदारी दी है। छह निगमों के चुनाव को गुजरात में विधानसभा का मिनी चुनाव भी माना जा रहा था। इसमें कोई दोराय नहीं कि यादव की चुनावी रणनीति का फायदा गुजरात में भाजपा को मिला है। 
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Monday 22 February 2021

राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से जुझारू अंदाज की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रशंसा की। प्रदेश के मौजूदा हालात पर राष्ट्रीय नेताओं से चर्चा।पुदुचेरी भी कांग्रेस के हाथ से निकला। राजस्थान में वसुंधरा राजे का सहारा।

राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया 22 फरवरी को दिन भर दिल्ली में रहे। जानकार सूत्रों के अनुसार पूनिया ने प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालातों पर राष्ट्रीय नेताओं से चर्चा की। ऐसे सभी राष्ट्रीय नेता राजस्थान की राजनीति से जुड़े हुए हैं। पूनिया ने नेताओं का मार्ग दर्शन भी प्राप्त किया। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के समर्थक 20 विधायकों ने हाल ही में जो पत्र लिखा है उसको लेकर भी राष्ट्रीय नेताओं के साथ चर्चा हुई। पूनिया का कहना रहा कि विधानसभा में जनहित के मुद्दे उठाने को लेकर विधायकों का उन्हें कोई पत्र नहीं मिला, लेकिन अखबारों में खबरें छप गई है। जिन विधायकों ने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, वे पुष्टि भी कर रहे हैं। राष्ट्रीय नेताओं ने पत्र लिखने के मामले को उचित नहीं माना है। इससे पहले 21 फरवरी को दिल्ली में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के जुझारू अंदाज़ की प्रशंसा की। प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय जेपी नड्डा की उपस्थिति में पीएम ने कहा कि सतीश पूनिया कोरोना काल में दो बार संक्रमित हुए। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। दोनों बार कोरोना को मात दी। घर पर क्वारंटीन रहते हुए ही वर्चुअल तकनीक से संगठन का काम किया। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी पंचायतीराज के चुनाव में भाजपा की जीत हुई है तथा निकाय चुनावों के परिणाम उल्लेखनीय रहे हैं। इसी बातचीत के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि राजस्थान में भाजपा संगठन अच्छा कार्य कर रहा है। लंच अवकाश में पीएम मोदी काफी समय तक पूनिया के साथ खड़े रहे। इस मौके पर पूनिया ने प्रधानमंत्री से कहा कि हम तो आपसे प्रेरणा लेते हैं। आप चौबीस घंटे काम करते नजर आते हैं। आपके नेतृत्व में ही देश विकास कर रहा है। देश की जनता का भरोसा आप पर है। यहां यह उल्लेखनीय है कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के नाते पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भी भाग लिया। लंव अवकाश में पीएम मोदी और राजे का आमना सामना भी हुआ। लेकिन सतीश पूनिया की तरह राजे से कोई संवाद नहीं हो सका। फोटो में राजे पीएम के सामने हैं, तो पूनिया चाय का काप लेकर पीएम के बगल में खड़े हैं। दोनों फोटो से मुलाकात का अंदाजा लगाया जा सकता है। पीएम के साथ राजे और पूनिया के फोटो मेरे फेसबुक पर  www.facebook.com/SPMittalblog   पर देखी जा सकते हैं।
पुदुचेरी भी कांग्रेस के हाथ से निकला:
22 जनवरी को केन्द्र शासित प्रदेश पुदुचेरी भी कांग्रेस के हाथ से निकल गया है। मुख्यमंत्री वी नारायण सामी ने विधानसभा में बहुमत साबित किए बगैर ही उप राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। हालांकि इस्तीफ़े से पहले मुख्यमंत्री ने सरकार को अल्पमत में लाने के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। सामी का कहना रहा कि पुदुचेरी में तमिल और अंग्रेजी भाषा बोली जाती है, लेकिन केन्द्र सरकार हिन्दी भाषा थोपना चाहती है। उप राज्यपाल ने सामी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। 33 सदस्यों के सदन में 7 विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया। मौजूदा समय में सदन की संख्या 26 सदस्यों की है, लेकिन मुख्यमंत्री सामी 14 विधायकों का जुगाड़ नहीं कर सके। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि अप्रैल मई में तमिलनाडु में भी चुनाव हो रहे हैं और यहां कांग्रेस डीएमके मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन पुदुचेरी में कांग्रेस की सरकार को गिरवाने में डीएमके और कांग्रेस के विधायकों की भूमिका रही। मुख्यमंत्री नारायण सामी के रवैये से नाराज होकर कांग्रेस के पांच विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफ़ा दे दिया। पुदुचेरी के हाथ से निकल जाने के बाद कांग्रेस के पास अब पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सरकारें हैं, जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में कांग्रेस शामिल हैं। राजस्थान में गत वर्ष कांग्रेस में बगावत हो चुकी है। कांग्रेस के 19 विधायक एक माह तक दिल्ली में रहे। तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने की साजिश भाजपा कर रही है। मौजूदा समय में भी पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट किसान पंचायतें कर अपना शक्ति प्रदर्शन लगातार कर रहे हैं। 19 फरवरी को भी एक महापंचायत में पायलट के साथ कांग्रेस के 15 विधायक उपस्थित रहे। लेकिन राजस्थान में कांग्रेस के लिए यह खुश खबर है कि भाजपा में भी गुटबाज़ी नजर आती है। इस गुटबाज़ी को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की शह माना जा रहा है। भाजपा की गुटबाज़ी का फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस को मिलता है। 
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अजमेर के जेएलएन अस्पताल में कोविड-19 के इंतजाम यथावत है-डॉ. अनिल जैन।सरकार के स्वास्थ केंद्रों पर अभी भी कोरोना टेस्ट नि:शुल्क हो रहे हैं-डॉ. केके सोनी।

अजमेर संभाग के सबसे बड़े जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अनिता जैन ने स्पष्ट कहा है कि कोविड-19 के अंतर्गत अस्पताल में जो इंतजाम पूर्व में किए गए थे उन्हें अभी तक भी यथावत रखा गया है। आज भी 350 से ज्यादा कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। मरीज को जरूरत पडऩे पर वेंटीलेटर भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसी भी चिकित्सा व्यवस्था में कमी नहीं की गई है। संक्रमित मरीज के आने पर उसका इलाज पहले की तरह किया जा रहा है। इसी प्रकार अस्पताल में कोरोना का नि:शुल्क टेस्ट भी हो रहा है। डॉ. जैन ने कहा कि मरीजों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। अब संक्रमित मरीजों की संख्या नहीं के बराबर है। ऐसे में कोविड वार्ड के चिकित्सा कर्मियों की संख्या को घटाया गया है, लेकिन किसी भी मरीज को भर्ती करने से इंकार नहीं किया गया। यदि किसी मरीज अथवा उसके परिजन को कोई परेशानी है तो वह अस्पताल प्रबंधन से संपर्क कर सकता है।
स्वास्थ केन्द्रों पर टेस्टिंग जारी:
वहीं अजमेर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. केके सोनी ने बताया कि अजमेर के शहरी क्षेत्र के स्वास्थ केंद्रों पर कोरोना टेस्ट नि:शुल्क किया जा रहा है। हालांकि अब मरीज टेस्ट के लिए नहीं आ रहे है, लेकिन केंद्रों पर टेस्टिंग व्यवस्था को जारी रखा गया है। कोई भी व्यक्ति केन्द्रों पर जाकर कोरोना टेस्ट करवा सकता है। डॉ. सोनी ने कहा कि अजमेर में हाल ही में ख्वाजा साहब का उर्स संपन्न हुआ है। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति की कोरोना के लक्षण हो तो वह तत्काल अपने जांच स्वास्थ केंद्रों पर करवा सकता है। सोनी ने कहा कि उर्स के दौरान अजमेर का कुछ भाग ही मेले से प्रभावित हुआ है। उर्स को देखते हुए ही भी चिकित्सा विभाग ने अपनी ओर से अनेक इंतजाम किए हैं। डॉ. सोनी ने कहा कि अभी कोरोना पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है, इसलिए लोगों को मास्क आवश्यक लगाना चाहिए। 
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हरियाणा के जिंद में किसान ने अपनी ही फसल बर्बाद कर दी। रकेश टिकैत ने कहा था कि किसान फसलों को जला देंगे।किसान आंदोलन को सक्रिय रखने के लिए कांग्रेस ने ताकत झोंकी। राजस्थान के रूपनगढ़ की तर्ज पर केरल में राहुल गांधी का ट्रेक्टर मार्च।जिद से नहीं संवाद से निकलेगा हल-कृषि मंत्री तोमर।

22 फरवरी को मीडिया खबरों में बताया गया कि हरियाणा के जिंद के कुलकानी गांव में एक किसान ने गेहंू की तैयार फसल पर ट्रेक्टर चलाकर बर्बाद कर दी। पिछले दिनों भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि सरकार ने कृषि कानून वापस नहीं लिए तो खेत में खड़ी फसल को जला दिया जाएगा। जिंद के किसान ने राकेश टिकैत के कहे पर अमल कर दिया। सवाल उठता है कि आखिर विरोध का यह कौन सा तरीका है? माना कि किसान ने जिस फसल को नष्ट किया, वह उसकी संपत्ति थी, लेकिन क्या इस फसल का उपयोग अकेला किसान करता? फसल उगाने के बाद गेहंू पर देश के नागरिकों का भी हक होता है। आखिर इसलिए तो किसान को अन्नदाता कहा गया है। अब यदि अन्नदाता ही फसल को बर्बाद करेगा तो राकेश टिकैत के आह्वान पर सवाल उठेंगे ही। टिकैत भी जानते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर दिया जा रहा धरना धीरे धीरे कमजोर पड़ रहा है। यही वजह है कि स्वयं टिकैत भी दिल्ली को छोड़कर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि में सभाएँ कर रहे हैं। इसी प्रकार किसान आंदोलन को सक्रिय रखने के लिए कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में लगातार किसान सम्मेलन कर रही हैं तो भाई राहुल गांधी ने 22 फरवरी को केरल में ट्रेक्टर मार्च किया। यह ट्रेक्टर मार्च 13 फरवरी को राजस्थान के रूपनगढ़ (अजमेर) में हुए ट्रेक्टर मार्च की तर्ज पर रहा। राहुल गांधी 12 व 13 फरवरी को राजस्थान में भी किसान सम्मेलन कर चुके हैं। कांग्रेस शासित राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ही किसान आंदोलन चला रही है। सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता 19 फरवरी का जिला स्तर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अब सीएम गहलोत स्वयं महापंचायतें कर रहे हैं। 27 फरवरी को चित्तौड में सीएम की किसान पंचायत होगी। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी यूपी में किसान पंचायतें करेंगे। यानि आने वाले दिनों में किसान आंदोलन में राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वहीं 22 फरवरी को केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने एक बार फिर कहा कि जिद से कोई हल नहीं निकलेगा। हल बातचीत से ही निकल सकता है। किसान नेता और किसानों के समर्थन में खड़े राजनीतिक दल यह बताएं कि आखिर कृषि कानूनों में क्या ख़ामियाँ हंै? ऐसी ख़ामियों को दूर करने के लिए सरकार तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि यह कानून वैकल्पिक है। यदि कोई किसान इस कानून के दायरे में नहीं आना चाहता है तो वह मौजूदा व्यवस्था के तहत खेती करे और अपनी फसल मंडियों में बेचने के लिए स्वतंत्र है। प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद तो आंदोलन का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। 
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ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी भी विदेशी है। आखिर सीबीआई के नोटिस से टीएमसी में इतनी खलबली क्यों?महाराष्ट्र में संजय राउत ने भाजपा के भ्रष्ट नेताओं के नाम आज तक भी नहीं बताए हैं।

विगत दिनों जब प्रवर्तन निदेशालय ने महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना के दबंग नेता संजय राउत की पत्नी को आर्थिक घोटाले के एक मामले में नोटिस जारी किया तो राउत ने कहा कि मैं भाजपा के भ्रष्ट नेताओं के नाम उजागर करुंगा। मुझे नोटिस दिलवाकर केन्द्र सरकार ने गलत पंगा लिया है। एक माह गुजर जाने के बाद भी संजय राउत ने भाजपा के नेताओं के नाम उजागर नहीं किए हैं। अलबत्ता उनकी पत्नी अब प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों को जांच में चुपचाप सहयोग कर रही हैं। संजय राउत ने भी अब पहले जैसे तेवर नहीं है। नोटिस मिलने पर जो तेवर संजय राउत ने दिखाए थे, वैसे ही तेवर अब पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी दिखा रहे हैं। कोयले की कालाबाजारी के एक मामले में अभिषेक की पत्नी रुजिरा बनर्जी को सीबीआई ने नोटिस दिया है। कोयले की कालाबाजारी के मुख्य आरोपी विनय मिश्रा और अनूपलाला से ममता बनर्जी के परिवार के सदस्यों से कारोबारी रिश्ते रहे हैं। अभिषेक और विनय मिश्रा ने तो एक साथ विदेश यात्राएं भी की है। ममता बनर्जी के परिवार के पास जमा करोड़ों की संपत्तियों में कोयला तस्करों की भूमिका बताई जा रही है। सीबीआई के पास पुख्ता सबूत है, तभी तो ममता बनर्जी जैसी फायर ब्रांड मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्यों को नोटिस दिया गया है। ममता अब इसे मई में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देख रही हैं। ममता का आरोप है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं के इशारे पर सीबीआई कार्यवाही कर रही है। ममता का यह आरोप सही भी हो सकता है, लेकिन सवाल यह भी है कि कोयले की तस्करी करने वालों से अभिषेक बनर्जी संबंध बनाए, यह तो भाजपा के नेताओं ने नहीं कहा था। तस्करों से संबंध तो अभिषेक ने स्वयं की मर्जी से बनाए हैं। अब जब उन्हीं संबंधों के कारण सीबीआई नोटिस दे रही है तो राजनीतिक द्वेषता का मुद्दा उठाया जा रहा है। सीबीआई ने रुजिरा बनर्जी के साथ-साथ उनकी बहन को भी नोटिस जारी किया है। यानि अभिषेक बनर्जी के राजनीतिक रुतबे का फायदा साली साहिबा ने भी उठाया है। दोनों बहनों से पूछताछ करने के बाद सीबीआई अभिषेक बनर्जी से भी पूछताछ करेगी। ऐसे में ममता की मुसीबतें भी बढ़ेंगी। अब यह भी सामने आ रहा है कि अभिषेक की पत्नी रुजिरा के पास थाईलैंड की नागरिकता है। यानि अभिषेक की पत्नी विदेशी हैं। एक विदेशी महिला की उपस्थिति भी ममता के लिए सिरदर्द बन सकती है। सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में अभिषेक बनर्जी ही असली मुख्यमंत्री हैं। अभिषेक के फैसलों से नाराज़ होकर ही टीएमसी के मंत्री, सांसद, विधायक आदि भाजपा में शामिल हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल पहले ही तनावपूर्ण है। निष्पक्ष चुनाव के लिए केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैयारी की जा रही है। 
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Sunday 21 February 2021

ख्वाजा उर्स में भले ही सरकारी गाइड लाइन की पालन नहीं हुई हो, लेकिन अजमेर के कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित और एसपी जगदीश चन्द्र शर्मा को शाबाशी मिलनी चाहिए। बगैर विवाद के संपन्न हो गया उर्स।खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा की भी सकारात्मक भूमिका रही।

अजमेर में ख्वाजा साहब के 809वें सालाना उर्स में 21 फरवरी की आधी रात को बड़े कुल की रस्म भी हो जाएगी। हालांकि धार्मिक दृष्टि से छह दिवसीय उर्स 19 फरवरी को ही समाप्त हो गया, लेकिन उर्स में बड़े कुल की रस्म जुड़ जाने से अब उर्स का समापन 22 फरवरी को हो जाएगा। इस बार उर्स कोरोना काल में हुआ इसलिए राज्य सरकार ने उर्स के पहले जायरीन के लिए गाइड लाइन जारी की। दरगाह में जियारत से पहले रजिस्ट्रेशन करवाने से लेकर मास्क लगाने, सोशल डिस्टेसिंग की पालना करने, खुली चादर न ले जाने आदि को लेकर दिशा निर्देश जारी किए गए। लेकिन उर्स के दौरान सरकार की गाइड लाइन की पालना नहीं हो सकी। लेकिन उर्स को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने में जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित और पुलिस अधीक्षक जगदीश चन्द्र शर्मा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। गाइड लाइन को लेकर शक्ति किए बगैर उर्स को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवा दिया। हालांकि इन दोनों अधिकारियों के लिए ख्वाजा उर्स पहला अवसर था, लेकिन फिर भी इन दोनों अधिकारियों ने प्रशासनिक और सुरक्षा इंतजाम करने में कोई कौताही नहीं बरती। चूंकि यह दोनों अधिकारी सहजता के साथ उपलब्ध रहे और मोबाइल पर हर किसी को जवाब दिया, इसलिए अनेक समस्याओं का समाधान फटाफट हो गया। उर्स के दौरान आमतौर पर खादिम समुदाय और पुलिस प्रशासन के बीच विवाद हो जाता है। लेकिन इस बार छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कोई बड़ी समस्या सामने नहीं आई। 18 फरवरी को जब दरगाह और शहर भर में जायरीन की जबर्दस्त भीड़ थी, तब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की चादर को मजार शरीफ पर पेश करवाया गया। चूंकि इस चादर को प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं लेकर आए इसलिए चादर को चढ़वा चुनौती पूर्ण काम था। भीड़ में चादर को ले जाना और मुख्यमंत्री की सुरक्षा करवाना दोनों ही काम सफलता के साथ जिला एवं पुलिस प्रशासन ने किए। इसका श्रेय कलेक्टर और एसपी को जाता है। खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैय्यद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने भी अपनी कौम की ओर से प्रशासन को पूरा सहयोग किया। उर्स के दौरान दरगाह के अंदर खादिम समुदाय की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चूंकि दरगाह की सभी धार्मिक रस्में खादिम समुदाय करता है, इसलिए कई बार सुरक्षा इंतज़ामों को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है, लेकिन सचिन अंगाराशाह ने प्रशासन के साथ तालमेल बनाए रखा। यही वजह रही कि पुलिस को दरगाह में कोई सख्त कार्यवाही नहीं करनी पड़ी। पुलिस अधीक्षक जगदीश चन्द्र शर्मा ने स्वयं दरगाह से जुड़े प्रतिनिधियों से लगातार संपर्क बनाए रखा। खादिम समुदाय भी शर्मा की पहल का स्वागत कर रहा है।
चिकित्सा विभाग को चिंता:
ख्वाजा उर्स संपन्न हो जाने पर चिकित्सा विभाग को अब कोरोना संक्रमण की चिंता हो रही है। चूंकि उर्स में हजारों जायरीन शरीक हुए, इसलिए यह माना जा रहा है कि अब अजमेर में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या बढ़ सकती है। शहर भर में खासकर दरगाह क्षेत्र में सघन अभियान चलाकर टेस्टिंग की कार्यवाही भी शुरू की जा सकती है। चूंकि उर्स के दौरान सरकारी गाइड लाइन की पालना नहीं हुई इसलिए संक्रमण का अंदेशा ज्यादा है। सरकार की ओर से कहा गया था कि रजिस्ट्रेशन करवाने वाले जायरीन को ही दरगाह में प्रवेश दिया जाएगा, लेकिन जायरीन के रजिस्ट्रेशन की जांच करने का प्रबंधन नहीं हो सका। जिन लोगों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया, उन्होंने भी बिना किसी बाधा के दरगाह में जियारत की। उर्स के दौरान सोशल डिस्टेसिंग की तो पालना ही नहीं हो सकी। 
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भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और संगठन महामंत्री चंद्रशेखर के साथ भाग लिया।सचिन पायलट की तर्ज पर अब सीएम अशोक गहलोत भी करेंगे किसान महापंचायतें। पहली पंचायत 27 फरवरी को चित्तौड़ में।

वसुंधरा राजे के नेतृत्व को लेकर राजस्थान में भले ही राजे समर्थक एकजुट हो रहे हों, लेकिन 21 फरवरी को राजे ने दिल्ली में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में भाग लिया। राजे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है, इस नाते उन्हें आमंत्रित किया गया था। बैठक में राजे के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और संगठन महामंत्री चंद्रशेखर भी उपस्थित रहे। कार्य समिति की बैठक में राजे की उपस्थिति को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्योंकि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर राजे कभी भी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय नहीं रही। हालांकि बैठक में प्रदेश की राजनीति को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई, क्योंकि बैठक में देशभर के प्रदेशाध्यक्ष और संगठन महामंत्री उपस्थित हुए।  बैठक को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो बार संबोधित किया। मोदी के भाषण का फोकस तीन कृषि कानून, किसानों का आंदोलन, पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर था।
चित्तौड़ में सीएम की पंचायत:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट जिस प्रकार प्रदेश भर में किसान महापंचायतें कर रहे हैं, उसी तरह अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी महापंचायतें करेंगे। गहलोत की पहली महापंचायत चित्तौड़ में 27 फरवरी से होगी। गहलोत की किसान महापंचायत में सफल बनाने की ज़िम्मेदारी मंत्री उदय लाल आंजना को दी गई है। आंजना चित्तौड़ जिले और उसके आसपास जिलों में लगातार संपर्क कर रहे है ताकि ज्यादा से ज्यादा भीड़ को जुटाया जाए। आंजना ने दावा किया है कि सीएम गहलोत की पंचायत में 50 हजार से भी ज्यादा ग्रामीण भाग लेंगे। यहां यह उल्लेखनीय है कि ऐसी किसान पंचायतें सचिन पायलट दौसा, भरतपुर और चाकसू में कर चुके हैं।  
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सचिन पायलट के पास कांग्रेस के 15 विधायक हैं तो वसुंधरा राजे के पास भाजपा के 20 विधायक हैं।क्या दोनों ही नेता अपने अपने प्रदेश नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं? पायलट ने चाकसू की किसान महापंचायत में दिखाई ताकत तो वसुंधरा समर्थक विधानसभा में एकजुट हुए।

राजस्थान में सत्तारुढ़ कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के अंदर शह-मात का खेल चल रहा है। कांग्रेस में जहां पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के नेतृत्व में मौजूदा प्रदेश नेतृत्व पर दबाव डाला जा रहा है तो वहीं भाजपा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के नेतृत्व में प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया प्रति पक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया को आँखें दिखाई जा रही है। जिस प्रकार वसुंधरा राजे प्रदेश की राजनीति से अलग है, उसी प्रकार कांग्रेस में भी सचिन पायलट को पूछने वाला कोई नहीं है। यही वजह है कि ये दोनों नेता अपनी अपनी पार्टी में शक्ति प्रदर्शन करते रहते हैं। अब वसुंधरा राजे समर्थक माने जाने वाले 20 भाजपा विधायकों ने प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा में जनहित के मामलों को उठाने में हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। प्रति पक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया और उप नेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ कुछ विधायकों को ही स्थगन प्रस्ताव रखने या बोलने के लिए अधिकृत करते हैं। पूनिया से मांग की गई है कि ऐसी व्यवस्था करवाई जाए जिसमें सभी विधायकों को समान अवसर मिले। हालांकि यह मुद्दा कोई ऐसा नहीं है जिसको लेकर प्रदेशाध्यक्ष को पत्र लिखा जाए और फिर मीडिया में खबरें लीक की जाए। लेकिन सिर्फ यह दिखाने के लिए कि भाजपा के 71 विधायकों में से 20 विधायक वसुंधरा राजे के साथ है, इसलिए संयुक्त तौर पर पत्र लिखवाया गया है। वसुंधरा राजे स्वयं भी विधायक हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि राजे के पास 21 विधायकों की ताकत है। स्वभाविक है कि जिस नेता के पास 21 विधायकों की ताकत हो उसके बगैर पार्टी में कुछ कर पाना मुश्किल है। ये वो विधायक हैं जिन्हें गत विधानसभा चुनाव में राजे ने ही भाजपा के टिकिट दिए थे, इनमें से कई तो सरकार में मंत्री भी रहे। भाजपा का प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व माने या नहीं लेकिन वसुंधरा राजे ने अपनी राजनीतिक ताकत दिखा दी है। जिन विधायकों ने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं वे जरुरत पडऩे पर वसुंधरा राजे के खेमे में ही नजर आएंगे। राजे समर्थक 20 विधायकों का यह पत्र तब सामने आया है, जब 21 फरवरी को दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हुई। राजे ने हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि वह मुलाकात वसुंधरा राजे के मन मुताबिक नहीं हुई। इसलिए राष्ट्रीय कार्य समिति से पहले 20 विधायकों का लेटर बम फोड़ा गया है। पूनिया को पत्र लिखने वाले विधायक हैं 1. कैलाश मेघवाल, 2.नरपत सिंह राजवी 3.पुष्पेन्द्र सिंह 4.कालीचरण सराफ 5. प्रताप सिंह सिंघवी 6. नरेन्द्र नागर 7.कालू मेघवाल 8. गोविंद रानीपुरिया 9. रामप्रताप कसानिया 10.बाबू लाल 11. अशोक डोगरा 12.गौतम लाल 13.धर्मेन्द्र मोची 14. रामस्वरूप लाम्बा 15. शंकर सिंह रावत 16.जोगाराम कुमावत 17.शोभा चौहाान 18.छगन सिंह 19.हरेन्द्र निनामा 20.गोपी राम मीणा।
पायलट के साथ कांग्रेस के 15 विधायक:
कांग्रेस में किसान महापंचायत कर पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं। 19 फरवरी को जयपुर के निकट चाकसू में हुई महापंचायत में कांग्रेस के 15 विधायक उपस्थित रहे। पायलट ने यह शक्ति प्रदर्शन तब किया, जब 12 व 13 को राहुल गांधी प्रदेश के दौरे पर रहे। समर्थकों का मानना है कि राहुल के दौरे में पायलट की जान बूझकर उपेक्षा की गई। इस उपेक्षा का जवाब ही 19 फरवरी को चाकसू में दिया गया। गत वर्ष जुलाई में पायलट के साथ 18 विधायक दिल्ली गए थे। इन 18 विधायकों में से 14 विधायक 19 फरवरी को चाकसू में पायलट के साथ मंच पर मौजूद रहे। प्रशांत बैरवा हालांकि जुलाई-अगस्त में सीएम गहलोत के साथ होटलों में थे, लेकिन 18 फरवरी को बैरवा ने पायलट के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। चाकसू की महापंचायत में कांग्रेस के विधायक 1.विश्वेन्द्र सिंह, 2.रमेश मीणा, 3.हेमाराम चौधरी, 4.विजेन्द्र ओला, 5.मुकेश भाकर, 6.जीआर खटाणा, 7.इंद्राज सिंह, 8.सुरेश मोदी, 9.राकेश पारीक, 10.विरेन्द्र चौधरी, 11.मुरारी मीणा, 12.वेद प्रकाश सोलंकी, 13.हरीश मीणा 14. अमर सिंह जाटव, 15. प्रशांत बैरवा।
जवाबी कार्यवाही:
पालयट के साथ जब कांगे्रस के 18 विधायक दिल्ली गए थे, तब सीएम अशोक गहलोत ने आरोप लगाया था कि भाजपा उनकी सरकार को गिराने की साजिश कर रही है। गहलोत ने पायलट की कार्यवाही को लेकर सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहरा दिया। अभी यह तो नहीं कहा जा सकता कि वसुंधरा राजे के समर्थकों के पीछे कांग्रेस और अशोक गहलोत का हाथ है, लेकिन भाजपा के अंसतोष से कांग्रेस को ही फायदा होगा। भाजपा के 20 विधायकों का पत्र सचिन पायलट के 15 विधायकों का जवाब माना जा सकता है।
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Friday 19 February 2021

राहुल गांधी के दौरे में हुई उपेक्षा से सचिन पायलट के समर्थकों में गुस्सा।चाकसू की किसान महापंचायत में मौजूद रहे 15 से भी ज्यादा पायलट समर्थक विधायक। अब पार्टी में रह कर सम्मान की लड़ाई लड़ेंगे।जयपुर से चाकूस के बीच पायलट के साथ 700 वाहनों का काफिला। सीधे सीएम गहलोत को चुनौती।

गत 12 व 13 फरवरी को कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी के राजस्थान दौरे में जिस तरह पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की उपेक्षा हुई उसका गुस्सा पायलट समर्थकों ने 19 फरवरी को जयपुर के निकट चाकूस में हुई किसान पंचायत में देखने को मिला। समर्थकों ने यह दिखाने की कोशिश की कि आज भी सचिन पायलट कांग्रेस में मजबूत और लोकप्रिय नेता है। किसान महापंचायत में भीड़ तो जबर्दस्त थी ही साथ ही पायलट जब अपने जयपुर स्थित आवास से चाकसू के लिए रवाना हुए तो उनके साथ करीब 700 वाहन थे। इतनी बड़ी संख्या में वाहन होने की वजह से कई बार मार्ग जाम हो गया। इसलिए पायलट चाकसू की पंचायत में करीब एक घंटे देरी से पहुंचे। मंच पर  पायलट को देखते ही समर्थकों ने पायलट जिंदा बाद के नारे लगाए। पायलट की महापंचायत में सीएम गहलोत के जिंदाबाद के नारे लगाने वाला कोई नहीं था। मंच पर 15 से भी ज्यादा कांग्रेस के विधायक मौजूद रहे। इनमें विश्वेन्द्र सिंह हेमा राम चौधरी, विजेन्द्र ओला, मुकेश भाकर, राम निवास गवाडिय़ा, जीआर खटाणा, रमेश मीणा, इंद्राज सिंह, सुरेश मोदी, राकेश पारीक, विरेन्द्र चौधरी, मुरारी मीणा, पीआर मीणा, वेद प्रकाश सोलंकी, हरीश मीणा आदि उपस्थित थे। विधायकों और कांग्रेस के नेताओं के भाषणों से साफ जाहिर था कि राहुल गांधी के दौरे में सचिन पायलट की जिस तरह उपेक्षा की गई, उससे  भारी गुस्सा है। विधायकों और नेताओं का कहना रहा कि यदि कोई व्यक्ति यह समझता हो कि मंच पर सचिन पायलट को नहीं बोलने देने से पायलट का कद छोटा हो जाएगा, तो यह उस नेता की गलतफहमी है। प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा से सत्ता में लाने का श्रेय सचिन पायलट को ही है। यदि भाजपा राज में पायलट पांच वर्षों तक कार्यकर्ताओं के साथ संघर्ष नहीं करते तो आज राजस्थान में कांग्रेस की सरकार नहीं बनती। गुस्साए नेताओं का कहना रहा कि आज भी पायलट के समर्थन से ही राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चल रही है। विधायकों और नेताओं ने पायलट को भरोसा दिलाया कि उनके सम्मान के लिए वे हमेशा साथ हैं। हालांकि इस महापंचायत में सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस संगठन पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन अपने समर्थकों को विश्वास दिलाया कि वे हमेशा उनके साथ खड़े हैं और सरकार व संगठन में कार्यकर्ता को सम्मान मिलना ही चाहिए। पायलट का भाषण तीन कृषि कानूनों पर केंद्रित रहा। पायलट ने इन कानूनों को किसान विरोधी मानते हुए केन्द्र सरकार से आग्रह किया कि कानून को वापस लिया जाए। भले ही पायलट ने अपना भाषण कृषि कानूनों तक सीमित रखा, लेकिन चाकसू की महापंचायत का माहौल बता रहा था कि राहुल गांधी के दौरे में हुई उपेक्षा से पायलट समर्थकों में गुस्सा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी के दौरे में कई स्थानों पर पायलट को बोलने नहीं दिया तथा रूपनगढ़ की रैली में पायलट को मंच से नीचे उतार दिया गया। राहुल के दौरे ने सीएम गहलोत पूरी तरह छाए रहे।
दिल्ली वाले विधायकों का अभी समर्थन:
गत वर्ष जुलाई-अगस्त में सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए थे, उनमें से अधिकांश विधायकों का समर्थन अभी भी पायलट के साथ बना हुआ है। 19 फरवरी को चाकसू की महापंचायत में इन्हीं 18 में से अधिकांश विधायक मौजूद रहे। इससे प्रतीत होता है कि पायलट ने अपने समर्थक विधायकों पर पकड़ मजबूत कर रखी है। दिल्ली जाने के कारण ही पायलट विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि बाद में राहुल गांधी से मुलाकात करने के बाद पायलट और 18 विधायक जयपुर लौट आए थे, लेकिन मुख्यमंत्री की ओर से अभी भी पायलट और उनके विधायकों पर भरोसा नहीं किया जा रहा है। 19 फरवरी को चाकसू में पायलट ने अपना राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन कर दिया है।
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तेल मूल्यों की वृद्धि के विरोध में यदि अमिताभ और अक्षय ने ट्वीट नहीं किया तो कांग्रेस के कार्यकर्ता मुंबई में शूटिंग नहीं होने देंगे।फिर से दिल्ली कूच के लिए ट्रेक्टरों को तैयार रखें। कानून वापस नहीं हुए तो फसल भी जला देंगे-राकेश टिकैत।

स्वयं को प्रगतिशील और बुद्धिजीवी बता कर जिन लोगों ने पूर्व में अवार्ड हासिल किए उन्हें अब अक्सर देश में असहिष्णुता नजर आती है। कई बार ऐसे बुद्धिजीवी और कलाकार अपने अवार्ड वापस करने की घोषणा भी करते हैं, लेकिन अब ऐसे लोगों को ताजा बयानों पर गैर करना चाहिए। महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने धमकी दी है कि फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार ने यदि तेल मूल्यों की वृद्धि का विरोध नहीं किया तो इन दोनों अभिनेताओं की फिल्मों की शूटिंग नहीं होने दी जाएगी। यानि अमिताभ और अक्षय को फिल्मों की शूटिंग करनी है तो तेल मूल्य वृद्धि का विरोध करना ही पड़ेगा। क्या यह धमकी असहिष्णुता वाली नहीं है? क्या आप किसी कलाकार को धमका कर विरोध करवा सकते हैं? सब जानते हैं कि अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार जैसे अभिनेता हमेशा राष्ट्रहित की बात करते हैं। अमिताभ बच्चन तो सरकार के जनहित के विज्ञापनों के पैसे भी नहीं लेते हैं तथा अक्षय कुमार हमारे शहीद जवानों के परिवारों की मदद करने के लिए अभियान चलाते रहते हैं। नाना पटोले की धमकी का कितना असर होगा, आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इससे एक राजनीतिक दल की सोच का पता चलता है।
टिकैत की भी धमकी:
कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने धमकी दी है कि कानून वापस नहीं हुआ तो किसान अपनी फसलें जला देंगे। टिकैत का यह भी कहना है कि दिल्ली में दोबारा से मार्च के लिए किसानों को अपने टे्रक्टरों में डीजल भरवा कर तैयार रखना है। सब जानते हैं कि 26 जनवरी को ट्रेक्टर मार्च की आड़ में दिल्ली में कैसी हिंसा हुई थी। अभी इस हिंसा के आरोपी गिरफ्तार हो ही रहे हैं कि दोबारा से टे्रक्टर मार्च की धमकी दे दी गई है। टिकैत की ऐसी धमकियों का कितना असर होता है, यह समय ही बताएगा, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्या ऐसी धमकियां दी जा सकती है? एक तरफ कहा जा रहा है कि किसान गरीब है तो दूसरी ओर गरीब किसान की फसल ही जलवाई जा रही है। सरकार ने जब यह स्पष्ट कर दिया है कि कृषि कानून वैकल्पिक है, तब कानूनों को वापस लेने की मांग बेमानी है। यदि कोई किसान परंपरागत तरीके से ही खेती कर अपनी फसल मंडियों में बेचना चाहता है तो उसे पूरी तरह छूट है। सरकार की पहल के बाद ही दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की संख्या लगातार कम हो रही है। खुद राकेश टिकैत यूपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान आदि में किसान पंचायतें कर रहे हैं। महाराष्ट्र में तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की सरकार ने राकेश टिकैत को किसान सम्मेलन करने की अनुमति ही नहीं दी है। आंदोलन के कमजोर होने के बाद ही राकेश टिकैत धमकी भरी भाषा बोल रहे हैं। 
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बहुत फर्क है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के संदेश में।मोदी ने जहां ख्वाजा उर्स को कौमी एकता और भाईचारे की खूबसूरत मिसाल बताया तो वहीं सोनिया गांधी ने किसान आंदोलन और जम्हूरियत को कमजोर होने की बात कही। क्या किसी धार्मिक स्थल पर राजनीतिक जंग का संदेश उचित है? क्या सीएम गहलोत ने तैयार किया संदेश?ख्वाजा साहब के उर्स में सोनिया गांधी की चादर पेश करते समय खुद सीएम गहलोत ने कोविड-19 की गाइड लाइन का उल्लंघन किया।

ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में देश के प्रमुख व्यक्तियों द्वारा सूफी परंपरा के अनुरूप मजार शरीफ पर चादर पेश करने का रिवाज है। इस मौके पर प्रमुख व्यक्ति अपना संदेश भी जारी करते हैं। चूंकि ख्वाजा साहब की दरगाह एक धार्मिक स्थल है, इसलिए संदेशों को भी ख्वाजा साहब की शिक्षाओं तक सीमित रखा जाता है। यही वजह रही कि उर्स के दौरान 15 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो संदेश भिजवाया उसमें उर्स को कौमी एकता और भाईचारे की खूबसूरत मिसाल बताया। मोदी ने अपने संदेश में कहा कि अपने विचारों से समाज में अमिट छाप छोडऩे वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती हमारी महान आध्यात्मिक परंपराओं के आदर्श प्रतीक हैं। प्रेम एकता सेवा और सौहाद्र्र की भावना को बढ़ावा देते गरीब नवाज के मूल्य और विचार मानवता को हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। लेकिन वहीं कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ख्वाजा उर्स का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्य से किया। सोनिया की ओर से 18 फरवरी को चादर पेश की गई। इस मौके पर अपने संदेश में सोनिया ने कहा आज इस मुल्क के आवाम से लेकर किसान तक अपने हकूक के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। जम्हूरियत को कमजोर किया जा रहा है। अईना और अदलिया पर हमले हो रहे हैं। मुल्क में ऐसी ताकतों को कुव्वत मिली, जिन्होंने इस मुल्क के ताने बाने को मुतशिर और हमारी सदियों पुरानी कौमी एकता, भाईचारा मोहब्बत और इंसानियत के पैगाम को कमजोर करने और नफरत फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सवाल उठता है कि ख्वाजा उर्स के मौके पर एक राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ऐसा संदेश देना चाहिए? वो भी तब जब ख्वाजा साहब की दरगाह को कौमी एकता की मिसाल माना जाता है। उर्स में बड़ी संख्या में हिन्दू भी जियारत के लिए आते हैं। सामान्य दिनों में तो हिन्दुओं की संख्या ज्यादा होती है, लेकिन फिर भी सोनिया गांधी को मुल्क के हालात खराब नजर आते हैं। सोनिया गांधी की भाजपा और नरेन्द्र मोदी से राजनीतिक द्वेषता है तो उसे राजनीतिक मंचों पर ही दर्शाया जाना चाहिए। किसी भी धार्मिक स्थल पर ऐसे नकारात्मक संदेश देना देशहित में नहीं हो सकते। सोनिया गांधी को यह भी समझना चाहिए कि जिस दल की वे राष्ट्रीय अध्यक्ष है उसके मात्र 52 सांसद  हैं, जबकि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले दल के पास 545 में से 303 सांसद है। यदि सोनिया गांधी की सोच के अनुरूप देश के हालात होते तो भाजपा के 303 सांसद चुनाव नहीं जीत पाते। अच्छा होता कि श्रीमती गांधी ख्वाजा साहब के उर्स का इस्तेमाल अपने राजनीतिक नज़रिए से नहीं करतीं। सोनिया गांधी को अपने संदेश में ख्वाजा साहब की शिक्षाओं पर जोर देना चाहिए। लेकिन इसके उलट सोनिया गांधी राजनीतिक संदेश जारी कर दिया। इसी से सोच का अंदाजा लगाया जा सकता है। पीएम मोदी और सोनिया गांधी के संदेश को मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog  पर देखा जा सकता है।
क्या सीएम गहलोत ने तैयार किया संदेश:
कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के संदेश की भाषा से प्रतीत होता है कि यह संदेश राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सुझाव पर तैयार किया गया है। गहलोत अक्सर इसी भाषा का इस्तेमाल अपने भाषणों में करते हैं। यूं तो श्रीमती गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष है और सांसद भी हैं। लेकिन जिस लेटर हैड पर सोनिया गांधी का संदेश टाइप किया गया है, वह साधारण पत्र की तरह नजर आता है। इसमें श्रीमती गांधी के हस्ताक्षर तो हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इसे एक साधारण कागज पर लिखा गया है। हो सकता है कि सोनिया गांधी का यह संदेश जयपुर में मुख्यमंत्री के सचिवालय में तैयार हुआ हो।
सीएम ने किया गाइड लाइन का उल्लंघन:
ख्वाजा साहब का उर्स शुरू होने से पहले सरकार और जिला प्रशासन ने जायरीन के लिए कोविड-19 के अंतर्गत गाइड जारी की थी। इसके अंतर्गत कोई भी जायरीन दरगाह परिसर में खुली चादर नहीं ले जा सकेगा। लेकिन 18 फरवरी को स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सोनिया गांधी की चादर को खोल कर मजार शरीफ पर ले गए। हालांकि इस मौके पर प्रशासन के बड़े अधिकारी भी मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी गाइड लाइन की पालना नहीं करवाई। जब मुख्यमंत्री स्वयं ने ही गाइड लाइन की पालना नहीं की तो फिर आम जायरीन से क्या उम्मीद की जा सकती है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (19-02-2021)
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सोनिया गांधी, राजनाथ सिंह, इंदे्रश कुमार आदि की ओर से भेजी गई चादरें ख्वाजा साहब की मजार पर पेश हुई।सोनिया गांधी की चादर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत स्वयं लेकर आए।अजमेर में उर्स के जायरीन की भीड़ 18 फरवरी को रात 12 बजे से ही जायरीन की रवानगी शुरू हो जाएगी।

अजमेर में ख्वाजा साहब के छह दिवसीय सालाना उर्स का 18 फरवरी को अंतिम दिन रहा। उर्स की रस्मों के मुताबिक रात को दरगाह दीवान जैनुल ओबेदीन की सदारत में महफिल होगी और कुल की रस्म शुरू हो जाएगी। इसी के साथ कुल की रस्म में भाग लेने के बाद जायरीन का अजमेर से लौटना शुरू हो जाएगा। यही वजह रही कि 18 फरवरी को अजमेर में जायरीन की भीड़ देखी गई। कायड़ स्थित विश्राम स्थली से लेकर ख्वाजा साहब की दरगाह तक  जायरीन से खचाखच भरी हुई थी। जायरीन की भीड़ के बीच ही देश के वीआईपी व्यक्तियों की ओर से भेजी गई चादरें सूफी परंपरा के अनुरूप मजार शरीफ पर पेश की गई। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ओर से भेजी गई चादर को प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा स्वयं अजमेर लेकर पहुंचे हैं। मुख्यमंत्री के लिए दरगाह में भीड़ के बीच विशेष सुरक्षा इंतजाम किए  जा रहे हैं। सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी गांधी परिवार के खादिम हैं। 18 फरवरी को ही केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चादर भी मजार शरीफ पर पेश की गई। दरगाह कमेटी के सदस्य मुनव्वर खान ने राजनाथ सिंह की चादर को पेश किया। खादिम सैय्यद मुनव्वर चिश्ती नियाजी ने चादर पेश करने की रस्म निभाई। इस अवसर पर राजनाथ सिंह ने उर्स में आने वाले जायरीन को मुबारक बाद दी है। इसी क्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयोजक इंद्रेश कुमार की ओर से भी चादर पेश की गई। इंद्रेश कुमार की चादर मंच के प्रमुख प्रतिनिधि डॉ. इमरान चौधरी लाए। खादिम शेख दौलत चिश्ती ने चादर पेश करने की रस्म निभाई, जबकि खादिम अशफान चिश्ती ने डॉ. चौधरी का दरगाह में इस्तकबाल किया। 
S.P.MITTAL BLOGGER (18-02-2021)
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ट्रेनों को रोकने से आखिर किसी परेशानी हुई?ट्रेनों को रोकने में किसानों से ज्यादा राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सक्रिय। लेकिन राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की पार्टी सक्रिय नहीं।

दिल्ली की सीमाओं पर जब लगातार किसानों की संख्या कम हो रही है, तब 18 फरवरी को देश के अनेक स्थानों पर ट्रेने रोकी गईं। सवाल उठता है कि इन ट्रेनों के रुकने से आखिर किसी परेशानी हुई? सब जानते हैं कि ट्रेनों में आम व्यक्ति ही सफर करता है। इसमें किसानों के परिवार भी शामिल हैं। क्या आम व्यक्ति को परेशान कर सरकार पर दबाव डाला जा सकता है? 18 फरवरी को जिन स्थानों पर ट्रेने रुकी उनमें सवार यात्रियों से परेशानी के बारे में पता लगाया जा सकता है। हालांकि रेल रोकने का देशव्यापी आह्वान था, लेकिन विरोध का ज्यादा असर हरियाणा, पंजाब, यूपी, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में ही देखा गया। उत्तर पूर्व और दक्षिण के राज्यों में ज्यादा प्रभाव नहीं दिखाई दिया। हालांकि यह आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से किया गया था, लेकिन ट्रेनों को रोकने में किसानों से ज्यादा कांग्रेस, सपा, लेफ्ट आदि पार्टियों के कार्यकर्ता सक्रिय नजर आए। ट्रेनों को रुकने का आह्वान करने वाले किसान संयुक्त मोर्चा के प्रमुख राकेश टिकैत माने या नहीं लेकिन 18 फरवरी को कांग्रेस से लेकर लेफ्ट तक के कार्यकर्ता यदि सक्रिय नहीं होते तो उत्तर भारत में ट्रेनों का चक्का जाम होना मुश्किल था। टिकैत कहते रहे हैं कि किसानों के आंदोलन का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। लेकिन 18 फरवरी को रेल रोको आंदोलन राजनीति के रंग में नजर आया। बिहार में जहां पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ट्रेने रोकी तो वहीं यूपी में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता ट्रेक पर आकर खड़े हो गए। राजस्थान में कांग्रेस से भी ज्यादा लेफ्ट के कार्यकर्ता सक्रिय दिखे। रेल यूनियनों ने भी वामपंथी का प्रभाव है। ट्रेनों के ड्राइवर, गार्ड आदि स्टाफ लेफ्ट यूनियनों से जुड़े हुए हैं। उत्तर भारत में जगह जगह ट्रेनों को रोकने से लोगों का भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि आह्वान को देखते हुए रेल मंत्रालय ने अनेक ट्रेनों को पहले ही रद्द कर दिया था। इससे भी यात्रियों को ही परेशानी हुई।
बेनीवाल की पार्टी सक्रिय नहीं:
रेल रोको आंदोलन में 18 फरवरी से राजस्थान में हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली आरएलपी के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं दिखे। हालांकि बेनीवाल ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है और तीनों कृषि कानूनों के विरोध में ही एनडीए सरकार से अपना समर्थन वापस लिया है। बेनीवाल नागौर से सांसद हैं और युवा वर्ग में बेनीवाल का खास प्रभाव है। 12 और 13 फरवरी को राजस्थान में राहुल गांधी की हुई किसान पंचायतों के संबंध में बेनीवाल का कहना था कि आने वाले दिनों में उनकी ओर से किसान महापंचायतें की जाएंगी। महापंचायतों के माध्यम से ही केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया जाएगा। बेनीवाल ने राहुल गांधी की किसान पंचायतों को पूरी तरह फेल बताया था। 
S.P.MITTAL BLOGGER (18-02-2021)
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