Tuesday 31 May 2022

महिला सरपंच हो तो लिछमा देवी जैसी हो। अपने करीरी गांव से शराब विक्रेताओं को भगा दिया।लिछमा की इस मुहिम में जस्टिस फॉर छाबड़ा की पूनम छाबड़ा का भी भरपूर सहयोग रहा।l

30 मई को राजस्थान के करौली जिले की करीरी ग्राम पंचायत शराब मुक्त हो गई। सरकार की शराबबंदी की नीति के अंतर्गत यदि किसी गांव में 51 प्रतिशत लोग शराब की दुकान नहीं चाहते हैं तो सरकार ऐसे गांव में किसी भी विक्रेता को शराब बिक्री का लाइसेंस नहीं देगी। इस नीति के तहत ही 30 मई को करीरी ग्राम पंचायत में हुए मतदान में 97 प्रतिशत लोगों ने शराब बिक्री के विरोध में मतदान किया। अब यहां सरकार देसी अथवा विदेशी शराब की दुकान नहीं खोल सकेगी। दो वर्ष पहले जब सरकार ने इस गांव में शराब का ठेका खोला तो सरपंच लिछमा देवी ने महिलाओं के साथ विरोध किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। तब लिछमा देवी को राजस्थान में संपूर्ण शराबबंदी की मुहिम चला रहीं जस्टिस फॉर छाबड़ा की प्रमुख श्रीमती पूनम छाबड़ा का सहयोग मिला। पूनम ने लिछमा देवी को सरकार की शराबबंदी नीति की जानकारी दी। दो वर्ष संघर्ष करने के बाद आखिर प्रशासन को मतदान करना ही पड़ा। लोग शराब के खिलाफ वोट दे इसके लिए लिछमा देवी ने एक एक घर पर दस्तक दी। लिछमा देवी ने जितनी मेहनत सरपंच के चुनाव नहीं की उससे ज्यादा शराब बंदी के लिए की। लिछमा देवी का मानना है कि शराब एक सामाजिक बुराई है। चूंकि गांव गांव में ठेके खुल रहे हैं, इसलिए शराब का सेवन ज्यादा हो रहा है। लिछमा देवी नहीं चाहती कि शराब जैसी सामाजिक बुराई उनकी ग्राम पंचायत में हो। ग्रामीणों ने भी लिछमा देवी की इस पहल का स्वागत किया। गांव में पांच हजार 400 मतदाताओं में से 3 हजार 834 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। इसमें से 3 हजार 746 मतदाताओं ने शराबबंदी के पक्ष में वोट दिया। इससे लिछमा देवी और पूनम छाबड़ा की मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है। पूनम छाबड़ा ने बताया कि उनके ससुर पूर्व विधायक गुरु शरण छाबड़ा ने शराब बंदी के लिए ही अपने प्राण त्याग दिए। वे चाहती है कि अपने ससुर के सपने को पूरा करें। इसलिए प्रदेश भर में संपूर्ण शराबबंदी का आंदोलन चला रखा है। जहां भी लोग शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए आगे आते हैं वहां वे पहुंच जाती हैं। सरकार पर भी लगातार दबाव डाला जा रहा है कि शराब की बिक्री को बंद किया जाए। छाबड़ा ने कहा कि सरकार की नीति के अनुरूप यदि किसी ग्राम पंचायत अथवा शहरी क्षेत्र में स्थानीय निकाय के वार्ड में शराब की दुकान बंद करवानी है तो शराबबंदी के पक्षधर लोग उनसे संपर्क कर सकते हैं। वे स्वयं मौके पर आकर सरकारी प्रक्रिया के तहत मतदान करवाएंगी। इसके लिए मोबाइल नंबर 9958980151 पर पूनम छाबड़ा से संवाद किया जा सकता है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (31-05-2022)

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सुभाष चंद्रा की उम्मीदवारी से राजस्थान में कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार की जीत को खतरा।कांग्रेस उम्मीदवारों के सम्मान में हुई विधायकों की बैठक। बसपा वाले 6 विधायकों में से एक ही पहुंचा। 13 में 5 निर्दलीय विधायक भी नहीं आए। सीएम गहलोत ने कहा-अब मेरी इज्जत आपके हाथ में।वसुंधरा राजे भाजपा से नाराज होती तो घनश्याम तिवाड़ी को अपने घर में प्रवेश की अनुमति नहीं देतीं।

31 मई को देश के मीडिया किंग सुभाष चंद्रा ने भी राज्यसभा चुनाव के लिए राजस्थान से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। भाजपा के पास 71 विधायक हैं और भाजपा के पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी को भी उम्मीदवार बनाया है। तिवाड़ी को प्रथम वरीयता के 31 वोट दिलवाने के बाद भाजपा अपने तीस वोट सुभाष चंद्रा को दिलवाएगी। ऐसे में चंद्रा को अपने दम पर 11 विधायकों के वोट हासिल करने होंगे। यही वजह है कि चंद्रा की उम्मीदवारी से कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार की जीत को खतरा हो गया है। सांसद हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली आरएलपी के तीन विधायकों का समर्थन भी चंद्रा को मिल गया है। चंद्रा को जीतने में लगे प्रबंधकों का मानना है कि 13 में से 4 निर्दलीय और बसपा वाले 6 में से 3 विधायक संपर्क में हैं। इसी प्रकार बीटीपी के दो विधायक भी चंद्रा के समर्थन में बताए जा रहे हैं। प्रबंधकों को 11 वोटों का जुगाड़ करने में कितनी सफलता मिली है, यह तो 10 जून को मतदान वाले दिन ही पता चलेगा। लेकिन कांग्रेस की चिंता 30 मई को विधायकों की उपस्थिति ने बढ़ा दी है। सीएम अशोक गहलोत की पहल पर 30 मई को जयपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी के सम्मान में विधायकों की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में 13 निर्दलीयों में से पांच विधायक अनुपस्थित रहे। अनुपस्थित रहने वाले विधायक संयम लोढ़ा, खुशवीर सिंह, बलजीत यादव, रमिला खाडिय़ा और रामकेश मीणा बताए गए। इसी प्रकार बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 में से 5 विधायक बैठक में नहीं आए। ये विधायक हैं, राजेंद्र गुढा (राज्य मंत्री), लखन सिंह, जोगेंद्र अवाना, संदीप कुमार यादव और वाजिब अली। मात्र दीपचंद खेडिया ही बैठक में उपस्थित रहे। यहां खास तौर से उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने जो व्हीप जारी करेगी, वह बसपा वाले विधायकों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि कांग्रेस में शामिल होने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। वैसे भी इन विधायकों ने कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं जीता है। निर्दलीय विधायक तो पहले से ही अपने मताधिकार के लिए स्वतंत्र हैं। विधायकों की इस बैठक में सीएम गहलोत भी चिंतित नजर आए। उपस्थित निर्दलीय विधायकों से सीएम गहलोत ने कहा कि अब मेरी इज्जत आपके हाथों में है। गहलोत कहना रहा कि कांग्रेस हाईकमान ने जो उम्मीदवार तय कर दिए हैं, उन्हें जिताने की जिम्मेदारी अब सब विधायकों की है। कांग्रेस को अपने तीनों विधायकों को जीतने के लिए 123 वोट चाहिए। कांग्रेस के स्वयं के 102 विधायक हैं, लेकिन कांग्रेस सभी 13 निर्दलीय, 6 बसपा वाले, 1 आरएलपी के विधायकों को भी अपना मानती है। लेकिन कांग्रेस के इस जुगाड़ में अब सुभाष चंद्रा ने सेंध लगा दी है। यदि राज्यसभा चुनाव में सुभाष चंद्रा की जीत होती है तो यह सीएम गहलोत की बड़ी राजनीतिक हार होगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों को प्राथमिकता का जो क्रम तय किया है, उसमें प्रथम मुकुल वासनिक, द्वितीय रणदीप सुरजेवाला और तृतीय प्रमोद तिवारी को रखा है। यानी कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार की हार होती है तो वह प्रमोद तिवारी होंगे।
 
तो तिवाड़ी को घर में प्रवेश नहीं देती:
राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा का जो राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया है, उसमें अब उन चर्चाओं प विराम लग गया है, जिनमें यह कहा जा रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा से नाराज हैं। चर्चाओं में यह भी कहा गया कि वसुंधरा राजे की सहमति के बगैर ही घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया है। 30 मई को तिवाड़ी ने राजे के जयपुर स्थित सरकारी आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की। यह सही है कि यदि वसुंधरा राजे भाजपा और तिवाड़ी से नाराज होती तो तिवाड़ी को अपने घर में प्रवेश की अनुमति नहीं देती। इस मुलाकात के बाद तिवाड़ी ने भी कहा कि राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार होने की जानकारी मुझे सबसे पहले वसुंधरा राजे ने ही दी थी। तिवाड़ी ने कहा कि अब उनका राजे से कोई विवाद नहीं है। तिवाड़ी और राजे की इस मुलाकात का फोटो खुद राजे ने सोशल मीडिया पर किया है। इससे प्रतीत होता है कि राजे भाजपा उम्मीदवारों को जीताने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। 31 मई को भी सुभाष चंद्रा और तिवाड़ी के नामांकन के समय वसुंधरा राजे विधानसभा में उपस्थित रहीं। राजे ने विधानसभा में ही सुभाष चंद्रा से अलग से लंबी मंत्रणा की। सब जानते हैं कि राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं औ प्रदेश की राजनीति में आज भी उनका दबदबा है। वसुंधरा राजे निर्दलीय विधायकों से भी लगातार संपर्क में रही हैं। यदि बसपा वाले कांग्रेसी विधायकों और निर्दलीय विधायकों के वोट सुभाष चंद्रा को मिलते हैं तो इसमें राजे की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। राजे ने 31 मई को अपनी उपस्थिति से भाजपा में एकजुटता दिखाने का भी प्रयास किया है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (31-05-2022)

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गांधी परिवार को खुश रखने के कारण ही अशोक गहलोत बार बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनते हैं।अब 10 जून तक ताले में बंद हो जाएंगे गहलोत समर्थक 125 विधायक।

अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद पर तीसरी बार विराजमान हैं। विधानसभा चुनाव के बाद चाहे परसराम मदेरणा, सीपी जोशी या फिर सचिन पायलट की दावेदारी मुख्यमंत्री पद पर हो, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार ने हर बार अशोक गहलोत को ही तरजीह दी है। मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत ने भी गांधी परिवार को खुश रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गांधी परिवार को खुश रखने का ताजा उदाहरण राज्यसभा चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस के तीन उम्मीदवारों की घोषणा है। कांग्रेस ने राजस्थान के नेताओं की अनदेखी कर हरियाणा के रणदीप सुरजेवाला, यूपी के प्रमोद तिवारी और महाराष्ट्र के मुकुल वासनिक को उम्मीदवार बनाया है। ये तीनों ही गांधी परिवार की पसंद है। गांधी परिवार की पसंद वाले तीनों उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी भी गहलोत की ही है। सब जानते हैं कि सुरजेवाला अपने गृह प्रदेश हरियाणा में दो बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं और प्रमोद तिवारी पूरे उत्तर प्रदेश से विधायक बनने की स्थिति में नहीं है। इसी प्रकार महाराष्ट्र में मुकुल वासनिक की अब कोई राजनीतिक जमीन है। ऐसा नहीं कि महाराष्ट्र, हरियाणा और यूपी में राज्यसभा के चुनाव नहीं हो रहे। इन तीनों राज्यों में भी 10 जून को ही चुनाव है। यूपी को छोड़ कर हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस अपने एक एक उम्मीदवार को जीतने की स्थिति में है। लेकिन सुरजेवाला और वासनिक अपने अपने प्रदेशों से बेदखल है, इसलिए गांधी परिवार की मदद से राजस्थान से उम्मीदवार बनाए गए हैं। यानी जिन नेताओं को उनके प्रदेश से कांग्रेसियों ने भगा दिया, उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गले लगा लिया। प्रमोद तिवारी, रणदीप सुरजेवाला और मुकुल वासनिक अमरबेल की तरह परजीवी हैं। इन नेताओं में दम होता तो ये अपने अपने प्रदेश से ही राज्यसभा में पहुंचते। गांधी परिवार के पालने में झूल ने वाले शिशुओं को दूध पिलाने की जिम्मेदारी अशोक गहलोत की है। गहलोत को भी पता है कि कांग्रेस में गांधी परिवार को खुश रखने से ही मुख्यमंत्री का पद मिलता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तीनों प्रत्याशी बाहर के हैं। जहां तक राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों का सवाल है तो गहलोत को विधायकों को पटाए रखने के सारे तौर तरीके आते हैं। कांग्रेस के विधायक ही नहीं बल्कि सभी 13 निर्दलीय विधायक भी गहलोत की सत्ता की मलाई चाट रहे हैं। विपक्ष कितनी भी जोर आजमाइश कर ले, लेकिन गहलोत के पास 125 विधायकों का जुगाड़ है और तीनों उम्मीदवारों को जिताने के लिए 123 विधायक चाहिए। यह सही है कि राजस्थान में राज्यसभा चुनाव को 10 जून तक रौचक बनाए रखने के लिए भाजपा अपना दूसरा उम्मीदवार भी उतार रही है। भाजपा के पास 71 विधायक हैं और एक उम्मीदवार की जीत तय है, लेकिन भाजपा अपने 30 सरप्लस वोटों को लेकर एक और उम्मीदवार का नामांकन करवाएगी। लेकिन भाजपा के दूसरे उम्मीदवार के लिए 11 विधायकों के वोट एकत्रित करना मुश्किल है। गहलोत के 125 विधायकों में कोई सेंधमारी नहीं हो, इसलिए 30 मई से ही विधायकों को एकत्रित करने का काम शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि गहलोत सरकार और समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक एक बार फिर 10 जून से तालाबंदी में रहेंगे। भाजपा ने घनश्याम तिवाड़ी के नाम की घोषणा कर दी है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (30-05-2022)
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अजमेर में सचिन पायलट के समर्थकों ने पूर्व मंत्री रघु शर्मा को राजनीतिक मात दी।रघु द्वारा भेजे गए जिला निर्वाचन अधिकारी के सामने कांग्रेस के नेताओं ने कहा-अजमेर संगठन का फैसला पायलट की करेंगे।

सब जानते हैं कि राजस्थान में स्वास्थ्य मंत्री रहे रघु शर्मा को कांग्रेस ने गुजरात का प्रभारी बनाया है। गुजरात में इसी वर्ष विधानसभा का चुनाव होने हैं। रघु शर्मा अजमेर जिले के केकड़ी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। यही वजह है कि गुजरात में रहते हुए भी उनकी रुचि अजमेर जिले की राजनीति में है। जानकार सूत्रों के अनुसार रघु शर्मा के दखल से ही अहमदाबाद महानगर पालिका में कांग्रेस पार्षद दल के नेता शहजाद खान पठान को कांग्रेस संगठन चुनाव के लिए अजमेर जिले का निर्वाचन अधिकारी घोषित किया है। 29 मई को पठान ने अजमेर शहर के एक समारोह स्थल पर देहात और शहर जिला कांग्रेस के नेताओं की एक बैठक रखी। इस बैठक में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट के समर्थक नेताओं की संख्या ज्यादा रही। इसलिए मसूदा के विधायक और पायलट समर्थक राकेश पारीक ने प्रस्ताव रखा कि अजमेर देहात और शहर जिला अध्यक्ष का निर्णय सचिन पायलट पर छोड़ दिया जाए। पारीक के इस कथन का अधिकांश नेताओं ने समर्थन किया। इन नेताओं का कहना रहा कि पायलट अजमेर से सांसद रह चुके हैं इसलिए अधिकांश कार्यकर्ता और नेता पायलट को ही अपना नेता मानते हैं। पायलट दोनों जिला कमेटियों के अध्यक्षों पर जो निर्णय लेंगे उसे सभी स्वीकार करेंगे। हालांकि पठान ने कहा कि चुनाव की एक प्रक्रिया है और उसी के तहत चुनाव करवाए जाएंगे। लेकिन वे अजमेर के नेताओं की भावनाओं से प्रदेश नेतृत्व को अवगत करा देंगे। असल में रघु शर्मा ने यह सोचा था कि शहजाद खान पठान को अजमेर का निर्वाचन अधिकारी बनवाकर वे देहात और शहर के संगठन पर अपना कब्जा कर लेंगे। लेकिन पायलट के समर्थकों ने रघु शर्मा को राजनीतिक मात दे दी है। भले ही मौजूदा समय में पायलट का सरकार और संगठन में कोई महत्व न हो, लेकिन अजमेर के अधिकांश कांग्रेस नेताओं ने पायलट को ही अपना नेता माना है। इससे रघु शर्मा की राजनीति को धक्का लगा है। यह बात अलग है कि जनवरी 2018 के लोकसभा के उपचुनाव में पायलट ने ही रघु शर्मा को अजमेर से चुनाव जितवाया। लेकिन बाद में सत्ता के लालच में रघु शर्मा ने पायलट का साथ छोड़ दिया। दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी केकड़ी से रघु की जीत में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही। लेकिन मंत्री बनने के बाद रघु ने पायलट को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने वाले कार्य ही किए। केकड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में गुर्जर मतदाता भी हैं। यही वजह है कि मौजूदा समय में रघु शर्मा का उनके निर्वाचन क्षेत्र केकड़ी में भी भारी विरोध है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भले ही रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बना दिया हो, लेकिन रघु शर्मा केकड़ी से दोबारा चुनाव जीतने की स्थिति में भी नहीं है। 29 मई को जिला निर्वाचन अधिकारी शहजाद खान पठान के सामने जो कुछ भी हुआ, उससे रघु शर्मा को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। केकड़ी के मतदाता अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं। 

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Thursday 26 May 2022

राजस्थान में अब तीस हजार परिवारों को नहीं मिलेगा मुफ्त का गेंहू।उत्तर प्रदेश की ऐसी ही खबर से कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी नाराज है।

विगत दिनों उत्तर प्रदेश में अपात्र परिवारों को खाद्य सुरक्षा योजना से बाहर कर दिया गया, तो कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रियंका का कहना रहा कि चुनाव जीतने के बाद योगी सरकार ने गरीबों के साथ अन्य शुरू कर दिया है। अब गरीबों का राशन भी छीना जा रहा है। मालूम हो कि गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार ही खाद्य सुरक्षा योजना के दायरे में आते हैं। इसमें परिवार के प्रत्येक सदस्य को केंद्र और राज्य सरकार की ओर से प्रतिमाह 10 किलो अनाज मुफ्त दिया जाता है, लेकिन भौतिक सत्यापन में पता चला कि सरकारी कर्मचारी से लेकर दुकान मकान, फैक्ट्री आदि के मालिक तक योजना का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। यूपी सरकार ने ऐसे सभी अपात्र परिवारों को खाद्य सुरक्षा योजना से बाहर कर दिया। इसी से प्रियंका गांधी नाराज हैं। लेकिन अब कांग्रेस शासित राजस्थान में भी 30 हजार परिवारों को खाद्य सुरक्षा योजना से बाहर कर दिया गया है। राजस्थान में भी जांच पड़ताल के दौरान पता चला कि सरकारी कर्मचारियों तक ने अपने परिवार का नाम खाद्य सुरक्षा योजना में जुड़वा रखा है। राज्य सरकार ने न केवल ऐसे पात्र परिवारों को बाहर किया है, बल्कि सरकारी कर्मचारियों से तो वसूली की कार्यवाही भी की जा रही है। सरकारी कर्मचारियों से 27 रुपए प्रति किलो गेंहू के हिसाब से वसूली होगी। जो आंकड़ा सामने आया है, उसके अनुसार एक अपात्र परिवार से करीब 35 हजार रुपए तक की वसूली होगी। अपात्र परिवारों को लेकर जो कार्यवाही उत्तर प्रदेश में हुई है, वो ही कार्यवाही राजस्थान में भी हुई है। लेकिन राजस्थान के प्रकरण में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (26-05-2022)
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मार्बल कारोबारी अनिल भक्कड़ की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात के बाद राजस्थान में राज्यसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ी।बसपा वाले 6 विधायकों पर कांग्रेस का व्हिप लागू नहीं होगा, लेकिन कांग्रेस और भाजपा के विधायकों को दिखा कर वोट डालना होगा।

राज्यसभा का सांसद बनने के लिए राजस्थान में ताल ठोक रहे मार्बल कारोबारी अनिल भक्कड़ ने 25 मई को जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की। अब तक भक्कड़ की उम्मीदवारी को बहुत कमजोर माना जा रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद भक्कड़ की उम्मीदवारी में गंभीरता आ गई है। मुलाकात के बाद भक्कड़ ने कहा कि अशोक गहलोत से उनकी पुरानी मित्रता है। इस मित्रता के कारण ही वे गहलोत से मिले। मुलाकात में सीएम गहलोत ने भक्कड़ से उन विधायकों की जानकारी ली, जिन से समर्थन का भरोसा मिला है। भक्कड़ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन दाखिल करेंगे। भक्कड़ ने गहलोत के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि तीसरे उम्मीदवार के तौर पर उन्हें समर्थन दिया जाए। कांग्रेस को अपने दो उम्मीदवारों की जीत के लिए 82 वोट चाहिए। कांग्रेस प्रथम वरीयता के 82 वोट लेकर शेष वोट उन्हें दिलवा दे। भक्कड़ ने सीएम के समक्ष दावा किया है 13 निर्दलीय, 6 बसपा वाले तथा छोटी पार्टियों के विधायकों को वे मैनेज कर लेंगे। भक्कड़ का दावा है कि सीएम गहलोत ने उनके प्रस्ताव पर विचार करने का भरोसा दिलाया है। भक्कड़ ने एक बार फिर दावा किया है कि वे राजस्थान से चौथे उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा चुनाव में जीत हासिल करेंगे। भक्कड़ की इस मुलाकात के बाद राजस्थान में राज्यसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई है। ये वो ही अनिल भक्कड़ हैं जिन की चर्चा 23 मई को 11 निर्दलीय विधायकों के साथ सीएम गहलोत से मुलाकात में हुई थी। कई विधायकों ने सीएम को बताया था कि अनिल भक्कड़ उनसे वोट मांग रहा है, तब भी भक्कड़ के प्रति सीएम गहलोत की सकारात्मक प्रतिक्रिया थी।
 
कांग्रेस का व्हिप बसपा पर लागू नहीं:
राज्यसभा चुनाव के अवसर पर हर राजनीतिक दल अपने अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी करता है। व्हीप के जारी होने के बाद पार्टी के विधायक को पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को वोट देना अनिवार्य होता है। यदि कोई विधायक पार्टी व्हिप का उल्लंघन करता है तो उसके विधायिकी खतरे में पड़ जाती है। विधायक ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार को वोट दिया है, इसके लिए मतदान के दौरान मतपत्र को पार्टी के एजेंट को दिखाना होता है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस का व्हिप बसपा के 6 विधायकों पर लागू नहीं होगा। भले ही ये सभी छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हो, लेकिन इनकी सदस्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में माना जा रहा कि बसपा के जो छह विधायक कांग्रेस में शामिल हुए थे, वे राज्यसभा चुनाव के दौरान अपना वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं। यह विधायक हैं राजेंद्र सिंह गुढा (सैनिक कल्याण मंत्री), लखन सिंह, दीपचंद खेडिय़ा, जोगेंद्र सिंह अबाना, संदीप कुमार यादव और वाजिब अली। बसपा से आए इन विधायकों की वजह से भी कांग्रेस में चिंता की स्थिति है। हालांकि सीएम गहलोत को भरोसा है कि बसपा वाले विधायक कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार को ही वोट देंगे। कांग्रेस इन छह विधायकों के साथ ही अपने विधायकों की संख्या 108 मान रही है। कांग्रेस को सभी 13 निर्दलीय विधायकों के वोट भी मिलने की उम्मीद है। इसी प्रकार कम्युनिस्ट और बीटीपी के दो दो विधायक भी कांग्रेस के पक्ष में बताए जा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास 125 विधायकों का जुगाड़ है, जबकि तीन उम्मीदवार जीतने के लिए कांग्रेस को 123 वोट चाहिए। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस के पास तीनों उम्मीदवारों को जिताने का जुगाड़ है। लेकिन इस बीच मार्बल कारोबारी अनिल भक्कड़ की गतिविधियों से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चिंतित बताए जा रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (26-05-2022)
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कांग्रेस संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगाती रह गई और समाजवादी पार्टी कपिल सिब्बल को ले उड़ी।अब सपा और उनके नेताओं के लिए भी रात 12 बजे खुल सकेगा सुप्रीम कोर्ट।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने हर भाषण में आरोप लगाते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार देश की संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है। संवैधानिक संस्थाओं में सुप्रीम कोर्ट का नाम भी गिनाया जाता है। कांग्रेस ऐसे आरोप लगाती रह गई और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री सुप्रीम कोर्ट के दिग्गज वकील कपिल सिब्बल को ले उड़ी। सिब्बल ने 25 मई को राज्यसभा के लिए उत्तर प्रदेश से नामांकन दाखिल कर दिया है। सिब्बल ने भले ही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन किया हो, लेकिन वे सपा विधायकों के वोट से ही राज्यसभा के सांसद चुने जाएंगे। सिब्बल के नामांकन के समय अखिलेश यादव स्वयं विधानसभा में मौजूद रहे। खुला समर्थन देने के लिए सिब्बल ने अखिलेश का आभार भी जताया है। कांग्रेस भले ही मोदी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट तक के दुरुपयोग पर का आरोप लगाए, लेकिन कपिल सिब्बल में वह ताकत है जिसके तहत वे रात 12 बजे भी सुप्रीम कोर्ट को खुलवा सकते हैं। सब जानते हैं कि कपिल सिब्बल ने सपा नेता आजम खान से लेकर राम मंदिर प्रकरण तक में पैरवी की है। ये वे ही कपिल सिब्बल हैं जिन्होंने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि निर्णय को मई 2019 तक टाल दिया जाए। सिब्बल का तर्क था कि यदि फैसला लोकसभा चुनाव से पहले आता है तो इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। तब सिब्बल कांग्रेस में ही थे, इसलिए अशोक गहलोत से लेकर राहुल गांधी तक खुश थे। कांग्रेस को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए कि जो सिब्बल रात 12 बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करवा सकते हैं, वह सिब्बल कांग्रेस छोड़कर क्यों चले गए? कांग्रेस का अब क्या होगा, यह तो राहुल गांधी ही बता सकते हैं, लेकिन अब समाजवादी पार्टी को कपिल सिब्बल के तौर पर एक बहुत बड़ा कानूनी सुरक्षा कवच मिल गया है। सब जानते हैं कि समाजवादी पार्टी किन मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करती है। अब ऐसे लोगों को भी संरक्षण मिल सकेगा। पिछले दिनों दिल्ली के जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाने के मामले में भी कपिल सिब्बल ने सीधे सुप्रीम कोर्ट से निर्देश दिलवा दिए। लोगों को मुंसिफ अदालत से निर्णय करवाने में 20-20 वर्ष तक लग जाते हैं, लेकिन कपिल सिब्बल एक स्थानीय निकाय को अतिक्रमण हटाने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आदेश करवा देते हैं। आम खान पर भले ही आपराधिक प्रवृत्ति के 80 मुकदमें दर्ज हो, लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के दखल से आजम खान जेल से रिहा हो जाते हैं। कपिल सिब्बल जब सुप्रीम कोर्ट में खड़े होते हैं, तो उनकी उपस्थिति को भी चीफ जस्टिस भी गंभीरता से लेते हैं। यह भी सब जानते हैं कि आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी उलझे हुए हैं, लेकिन अब सपा को कपिल सिब्बल के तौर पर बहुत बड़ा पैरवीकार मिल गया है। कांग्रेस के कुछ नेता कह रहे है कि राज्यसभा के सांसद के लालच में सिब्बल ने कांग्रेस छोड़ी है। सवाल उठता है कि जो लोग कांग्रेस में अभी भी सत्ता सुख भोग रहे हैं क्या वे लालची नहीं है? कांग्रेस में अब वो ही नेता रह गए हैं तो सत्ता से चिपके हुए हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (26-05-2022)
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Tuesday 24 May 2022

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने निर्दलीय विधायकों से कहा-मैं अहसान फरामोश नहीं हो सकता।आखिर मार्बल कारोबारी अनिल भक्कड़ से निर्दलीय विधायकों को फोन कौन करवा रहा है?राज्यसभा की चार सीटों में से तीन पर कांग्रेस की जीत तय।भाजपा की कांग्रेस की फूट पर नजर।

राजस्थान में राज्यसभा की चार सीटों के लिए आगामी 10 जून को मतदान होना है। राजस्थान में 200 विधायकों में से 13 निर्दलीय है। 23 मई को राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर 13 में से 11 विधायकों ने जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की है। विधायक बलजीत यादव और राजकुमार गौड़ ने मुलाकात में अनुपस्थित रहने की वजह बता दी। यानी सभी 13 निर्दलीय विधायक पूरी तरह कांग्रेस के साथ है। 23 मई को मुलाकात में निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला, ओम प्रकाश हुडला, रमिला खड़िया, रामकेश मीणा, सुरेश टाक, आदि ने गहलोत से कहा कि कांग्रेस सरकार के मौजूदा कार्यालय में राज्यसभा का चुनाव अंतिम अवसर है, जब निर्दलीय विधायकों की जरूरत होगी। ऐसा न हो कि 10 जून के बाद सरकार में निर्दलीय विधायकों का महत्व खत्म हो जाए। सभी निर्दलीयों ने कहा कि हम अशोक गहलोत के साथ हमेशा खड़े हैं। राज्यसभा के चुनाव में भी हम सभी आपके (गहलोत) के निर्देश पर मताधिकार का उपयोग करेंगे। निर्दलीय विधायकों के समर्थन और आशंका पर सीएम गहलोत ने कहा- मैं अहसान फरामोश नहीं हूं। मैं आप लोगों (निर्दलीय विधायक) की वजह से ही मुख्यमंत्री हंू। मैंने पिछले साढ़े तीन साल में कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों में कोई भेद नहीं किया। 2018 में शपथ ग्रहण के बाद जब राहुल गांधी ने आभार प्रकट करने के लिए जयपुर आए थे, तब मैं चाहता था कि निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस विधायकों के साथ ही बैठे, लेकिन तब के प्रदेशाध्यक्ष इस पर सहमति नहीं जताई, इसलिए आप लोगों के लिए अलग से छोटा मंच बनाया गया। मेरी नजर में यह गलत था। मैं तो आप लोगों को कांग्रेस का ही विधायक मानता हंू। गहलोत ने इस बार पर अफसोस जताया कि हमारी ही पार्टी के कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी को हराने के लिए मैंने चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार खड़े करवाए। गहलोत ने कहा कि मैंने कभी कांग्रेस को कमजोर करने वाला कार्य नहीं किया। आप सभी 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी इसलिए लिया, ताकि प्रदेश में कांग्रेस सरकार मजबूती के साथ चल सके। गहलोत ने कहा कि जब तक मैं मुख्यमंत्री हूं, तब तक किसी भी निर्दलीय विधायक को अपने हितों की चिंता करने की जरुरत नहीं है। गहलोत ने कहा कि आम लोग तो यह बताइए कि आप अगले वर्ष दोबारा से चुनाव कैसे जीत सकते हैं? इस पर संयम लोढ़ा जैसे विधायकों ने कहा कि इस बार उन्हें कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया जाए। गहलोत ने कहा कि टिकट वितरण के समय सभी निर्दलीय विधायकों का ख्याल रखा जाएगा।
 
भक्कड़ के फोन:
मुलाकात से कुछ निर्दलीय विधायकों ने सीएम गहलोत को बताया कि उनके पास राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर दिल्ली के मार्बल कारोबारी अनिल भक्कड़ के फोन आ रहे हैं। विधायकों ने सीएम को भक्कड़ के मोबाइल नंबर भी दिए। इस पर सीएम ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरी सब पर नजर है। मुझे यह भी पता है कि अनिल भक्कड़ को किस विधायक ने क्या जवाब दिया है। सीएम गहलोत के इस कथन के बाद निर्दलीय विधायकों में यह चर्चा है कि आखिर अनिल भक्कड़ से फोन कौन करवा रहा है? क्या निर्दलीय विधायकों की ईमानदारी परखी जा रही है? विधायकों ने माना कि अशोक गहलोत जैसा चतुर राजनीतिज्ञ कांग्रेस पार्टी में और कोई नहीं है। इस चतुराई का ही परिणाम है कि राज्यसभा की चार में से तीन सीट पर कांग्रेस की जीत तय है। कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत के लिए 123 वोट चाहिए। कांग्रेस के स्वयं के 108 और 13 निर्दलीय विधायकों के वोटों की संख्या 121 होती है। कम्युनिस्ट पार्टी और बीटीबी के दो दो विधायक कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट देने के लिए तैयार बैठे हैं। ऐसे में कांग्रेस के तीनों उम्मीदवारों को प्रथम वरीयता के 41-41 वोट आसानी से मिल जाएंगे।
 
भाजपा की फूट पर नजर:
भाजपा के 71 विधायक हैं। ऐसे में एक सीट भाजपा की पक्की है, लेकिन भाजपा ने दूसरा उम्मीदवार भी खड़ा करने की घोषणा कर दी है। भाजपा की नजर कांग्रेस की फूट पर लगी हुई हे। अपने एक उम्मीदवार को प्रथम वरियता के 41 वोट दिलवाने के बाद भी भाजपा के पास शेष 30 वोट शेष रहेंगे। भाजपा को लगता है कि कांग्रेस ने जो 125 वोटों का जुगाड़ किया है, उसमें से 10-12 वोट अलग हो जाएंगे। ऐसे में भाजपा का दूसरा उम्मीदवार भी चुनाव जीत जाएगा। राज्यसभा चुनाव के लिए 24 मई से नामांकन शुरू हो गए हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (24-05-2022)
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कांग्रेस के नेता और राजस्थान के जलदाय मंत्री महेश जोशी के पुत्र रोहित जोशी के फोटो देश के सभी हवाई अड्डा व ऑर्बजन कार्यालयों पर चस्पा।क्या इससे अशोक गहलोत सरकार की छवि खराब नहीं हो रही है? महिला पत्रकार ने दिल्ली में दर्ज करवाया है बलात्कार का मुकदमा।

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और जलदाय मंत्री महेश जोशी के पुत्र रोहित जोशी के फोटो दिल्ली पुलिस ने देश के सभी हवाई अड्डों और ऑर्बजन कार्यालयों में उपलब्ध करवा दिए हैं। ताकि बलात्कार का आरोपी रोहित जोशी विदेश नहीं भाग सके। असल में जयपुर की एक महिला पत्रकार ने दिल्ली के सदर पुलिस स्टेशन पर रोहित जोशी के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया है। चूंकि रोहित जोशी खुद कांग्रेस के नेता हैं और उनके पिता राजस्थान सरकार में जलदाय मंत्री हैं इस स्थिति को देखते हुए ही दिल्ली पुलिस ने जोशी के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी कर दिया है। सवाल उठता है कि दिल्ली पुलिस ने जो ताजा कार्यवाही की है,उससे क्या अशोक गहलोत सरकार की छवि खराब नहीं हो रही? पीडि़ता ने भी आरोप लगाया है कि रोहित जोशी अपने पिता के मंत्री पद का दुरुपयोग कर अभी भी उसे धमका रहा है। यानी जो व्यक्ति जेल में होना चाहिए वह पीड़िता को ही धमकाने में लगा हुआ है। यह सही है कि यदि कोई आम आरोपी होता तो पुलिस उसके पूरे परिवार को थाने पर बैठाकर आरोपी को गिरफ्तार कर लेती, लेकिन 15 दिन गुजर जाने के बाद भी दिल्ली पुलिस को रोहित जोशी का कोई सुराग नहीं मिला है, अब दिल्ली पुलिस में रोहित जोशी की गिरफ्तारी के लिए राजस्थान के पुलिस महानिदेशक एमएल लाठर और जयपुर के पुलिस आयुक्त आनंद श्रीवास्तव से सहयोग मांगा है। राजस्थान पुलिस दिल्ली पुलिस को कितना सहयोग देती है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा, लेकिन यह वही राजस्थान पुलिस है जिसने पीड़िता की जयपुर में एफआईआर तक दर्ज नहीं की। आरोप तो यहां तक कि है कि पुलिस के अधिकारियों ने दबाव बनाकर पीड़िता से जबरन समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करवाए। जो पुलिस शुरू से ही आरोपी को बचाने में लगी रही, उस पुलिस से पीडि़ता को न्याय की उम्मीद नहीं है। इसलिए पीडि़ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक प्रार्थना पत्र दायर कर राजस्थान में सुरक्षा की मांग की है। पीडि़ता का कहना है कि जयपुर में उसके आवास पर नजर रखी जा रही है और आरोपी दूसरे के मोबाइल से लगातार धमकियां दे रहा है। हालांकि विपक्ष इस मामले में महेश जोशी के इस्तीफे की मांग कर रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले ही ऐसी मांग को खारिज कर चुके हैं। गहलोत का कहना है कि किसी बेटे ने अपराध किया है तो उसके पिता को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता है। इस मामले में सीएम गहलोत पूरी तरह अपने जलदाय मंत्री महेश जोशी के साथ खड़े हैं। इस बीच रोहित जोशी ने एफआईआर को रद्द करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जो याचिका दायर की थी,उसमें भी जोशी को कोई राहत नहीं मिल पाई है। देखना होगा कि दिल्ली पुलिस कब तक रोहित की गिरफ्तारी कर पाती है। 

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Monday 23 May 2022

जिस प्रकार रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्यवाही की, वैसा हमला चीन कभी भी भारत के लद्दाख पर कर सकता है-राहुल गांधी।राहुल गांधी की दादी जी के पिता जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में भारत का कैलाश मानसरोवर और कई गांव चीन को दे दिए। यह नरेंद्र मोदी का शासन है। चीन हमले की हिमाकत नहीं कर सकता-जयमांग सेरिंग सांसद लद्दाख।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने लंदन में आयोजित मीडिया के एक विशेष कार्यक्रम में कहा कि जिस प्रकार रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्यवाही की है, वैसी सैन्य कार्यवाही चीन कभी भी भारत के लद्दाख क्षेत्र में कर सकता है। राहुल गांधी ने दावा किया कि लद्दाख और डोकलाम में चीनी सैनिक जमे हुए हैं। एक चिंगारी लगेगी तो मुसीबत आ जाएगी। राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए। राहुल ने विदेशी मीडिया को बताया कि भारत में सत्तारूढ़ दल भाजपा को 60-70 प्रतिशत लोग वोट नहीं देते हैं। यानी भाजपा और मोदी 30-40 प्रतिशत लोगों के वोट पर ही शासन कर रहे हैं। राहुल का यह भी कहना रहा कि कांग्रेस को भाजपा के साथ साथ देश के संस्थागत ढांचे से भी लड़ाई लड़नी पड़ रही है। राहुल गांधी पहले भी विदेशी मीडिया के समक्ष देश विरोधी बयान देते रहे हैं, लेकिन इस बार राहुल ने अपने देश के लद्दाख की तुलना यूक्रेन से कर दी है। राहुल गांधी की इस समझ पर लद्दाख के भाजपा सांसद जयमांग सेरिंग ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। सांसद सेरिंग ने कहा कि राहुल गांधी को लद्दाख की जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है। इसलिए वे देश विरोधी बयान दे रहे हैं। राहुल गांधी को यह पता होना चाहिए कि उनकी दादी जी श्रीमती इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू जब देश के प्रधानमंत्री थे, तब 1961 में भारत का कैलाश मानसरोवर और कई गांव चीन को सौंप दिए गए। सेरिंग ने आरोप लगाया कि आजादी के बाद कांग्रेस के शासन में सीमाओं को मजबूत नहीं किया गया। लद्दाख और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को जो सैन्य उपकरण चाहिए थे, वे भी उपलब्ध नहीं करवाए गए। लेकिन पिछले 8 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में देश की सीमाओं को मजबूत किया गया है। लद्दाख जैसे दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को आज सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है। राहुल गांधी चाहे तो मेरे साथ लद्दाख क्षेत्र का दौरा करें और देखें कि सीमा क्षेत्र में कितनी सड़कें बनाई गई है। अब सैनिकों का आवागमन पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत सरल और सुगम हुआ है। यही वजह है कि आक्रमणकारी चीन से हमारे सैनिक लगातार मुकाबला कर रहे हैं। सांसद सेरिंग ने कहा कि मोदी के शासन में चीन की इतनी हिमाकत नहीं है कि वह भारत पर हमला कर सके। सीमा पर तैनात जवान और लद्दाख के नागरिक पूरी मुस्तैदी से चीन को जवाब देने के लिए तैयार है। सेरिंग ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से मिले हुए हैं। राहुल गांधी हमेशा से चीन और पाकिस्तान के समर्थन वाले बयान देते हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (21-05-2022)
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अजमेर के निकट ऊंटड़ा में 60 जोड़ों का सामूहिक निकाह।इदारा दावतुल हक की मुस्लिम समाज में सकारात्मक पहल।धर्मेन्द्र राठौड़ और पूर्व मंत्री नसीम अख्तर एक साथ।

22 मई को अजमेर के निकट ऊंटड़ा गांव में शैक्षिक और सामाजिक संस्था इदारा दावतुल हक संस्था की ओर से 60 जोड़ों का सामूहिक निकाह प्रोग्राम किया गया। संस्था के प्रमुख मौलाना अयूब कासमी ने बताया कि प्रतिवर्ष ऐसे प्रोग्राम किया जाता है। दूल्हा-दुल्हन को घरेलू सामान भी संस्था की ओर से दिया जाता है। दोनों पक्षों के रिश्तेदारों को भोजन भी संस्था की ओर से नि:शुल्क करवाया जाता है। सामूहिक निकाह का उद्देश्य मुस्लिम समाज में गरीब वर्ग के लोगों के निकाह अच्छे तरीके से करवाने का है। इससे समाज में फिजूलखर्ची भी रुकती है। सामूहिक निकाह के प्रोग्राम में पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर, मौलाना हुजेब बस्तानी, खादिमों की संस्था अंजुमन  शेखजादगान के अध्यक्ष अब्दुल जर्रार चिश्ती, डीएसपी शमशेर खान, एडवोकेट हाजी फैयाज उल्ला, नवाब हिदायतुल्ला, अंजुमन सैयद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा, हाजी महमूद खान, पीर नफीस मियां चिश्ती, सलावत खां, पार्षद शाकिर, सैयद सलीम चिश्ती आदि ने एक साथ 60 निकाह के प्रोग्राम की तारीफ करते हुए कहा कि यह समाज में एक सकारात्मक पहल है। सभी का मानना रहा कि महंगाई के इस दौर में सामूहिक निकाह के आयोजन होते रहने चाहिए। इस अवसर पर संस्था के प्रमुख मौलाना अयूब कासमी ने बताया कि निकाह के खर्च के लिए किसी भी परिवार से कोई राशि नहीं ली जाती है। संस्था सामूहिक निकाह के साथ-साथ शैक्षिक और अन्य सामाजिक गतिविधियां भी करती है। मुस्लिम बच्चों को शिक्षा देने के लिए संस्था की ओर से शैक्षिक संस्थान भी चलाए जाते हैं। इन संस्थानों में बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा भी दी जाती है। सामूहिक निकाह के प्रोग्राम में ऊंटड़ा के आसपास के क्षेत्रों के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। संस्था की सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों की और अधिक जानकारी के लिए मोबाइल 9950578600 पर मौलाना अयूब कासमी से संवाद किया जा सकता है।
 
राठौड़ और नसीम एक साथ:
60 जोड़ों का निकाह का प्रोग्राम पुष्कर विधानसभा क्षेत्र के मुस्लिम बाहुल्य गांव ऊंटड़ा में हुआ। इस प्रोग्राम की चर्चा अब इसलिए भी हो रही है कि राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ और पुष्कर की पूर्व विधायक श्रीमती नसीम अख्तर एक साथ नजर आए। इस प्रोग्राम में श्रीमती नसीम और उनके पति इंसाफ अली की भी सक्रिय भूमिका रही। हालांकि यह प्रोग्राम सामाजिक सरोकारों से जुड़ा था, लेकिन इसमें राजनेताओं की उपस्थिति चर्चा का विषय रही। पिछले दो वर्ष से धर्मेन्द्र राठौड़ पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष बनने के बाद भी पुष्कर पर राठौड़ की विशेष नजर रही है। राठौड़ का कहना है कि वे पुष्कर के नांद गांव के निवासी है। पुष्कर में सक्रियता की वजह से ही यह माना जा रहा है कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनाव में राठौड़ कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन वहीं पूर्व विधायक और मंत्री रही नसीम अख्तर भी पुष्कर से अपनी दावेदारी नहीं छोड़ रही है। श्रीमती अख्तर पुष्कर की विधायक रह चुकी है लेकिन पिछले दो चुनावों में उन्हें  सफलता नहीं मिली है, लेकिन श्रीमती अख्तर और उनके पति इंसाफ अली इस विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। श्रीमती अख्तर की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। सामूहिक निकाह के प्रोग्राम में धर्मेन्द्र राठौड़ की उपस्थिति को उनकी पुष्कर की राजनीति में घुसपैठ माना जा रहा है। अब यह देखना होगा कि सामूहिक निकाह में राठौड़ की उपस्थिति को श्रीमती नसीम किस तरह से देखती हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी खासी है। 

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राजस्थान में दो जैन संतों की सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत के बाद क्या सख्त परंपराओं में बदलाव पर विचार किया जा सकता है?50 डिग्री तापमान में नंगे पैर पैदल विहार करना बहुत कठिन है। आचार्य तुलसी के तेरापंथ ने बदलाव की पहल तो की है।

21 मई को राजस्थान के पाली के निकट श्वेतांबर समाज से जुड़े तपागच्छ पद्धति वाले दो जैन संत चैतन्य तिलक विजय (36) और चरण तिलक विजय (56) की दर्दनाक मौत हो गई। जबकि तीसरे जैन मुनि शाश्वत तिलक विजय घायल हो गए। ये तीनों मुनि पाली से जोधपुर की ओर जा रहे थे कि तभी मोगड़ा के निकट एक ट्रक की चपेट में आ गए। तीनों जैन संत सड़क के किनारे चल कर अपना सफर तय कर रहे थे, लेकिन लेकिन ट्रक चालक की लापरवाही के कारण हादसा हो गया। यह सही है कि जैन संत दिगंबर समाज के हों या श्वेताबंर। दोनों ही प्रमुख समाजों के संत कठिन परंपराओं का निर्वहन करते हैं। इनमें से एक पैदल विहार भी है। यानी संत को जब एक स्थान से दूसरे स्थान जाना होगा, तब वे पैदल ही अपना सफर तय करेंगे। गर्मी का तापमान चाहे 50 डिग्री हो या सर्दी का माइनस। हर मौसम में पैदल ही चलना पड़ता है। जैन धर्म के साधु संतों के लिए कुछ ज्यादा सख्त परंपराएं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि धर्म की पताका फहराने में जैन साधु संतों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हर श्रद्धालु चाहता है कि जैन साधु संतों का सानिध्य ज्यादा से ज्यादा मिले। यदि एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने के लिए मोटर वाहन का उपयोग किया जाए तो जैन संतों के प्रवचन भी ज्यादा स्थानों पर हो सकते हैं तथा सड़क दुर्घटनाओं से भी बचा जा सकता है। कई बार बुजुर्ग साधु संतों के पैर में दर्द और सूजन के बाद उन्हें पैदल चलने की परंपरा का निर्वहन करना पड़ता है। जैन संत किसी चिकित्सा पद्धति से भी परहेज करते हैं। जो परंपराएं चली आ रही है उन्हीं के तहत बीमार संतों का इलाज होता है। असल में ऐसी धार्मिक परंपराएं और नियम जैन समाज में तपस्या और त्याग से जुड़े हैं। परंपराओं और नियमों में बदलाव के लिए जैन समाज का ेही पहल करनी होगी। यदि कोई संत ज्यादा समय तक जीवित रहेगा तो धर्म का प्रचार भी ज्यादा समय तक होगा। साधु संतों के महत्व को देखते हुए ही श्वेतांबर समाज के प्रमुख संत आचार्य तुलसी ने तेरापंथ की स्थापना कर बदलाव के प्रयास भी किए। आचार्य तुलसी ने स्वयं भी विदेश यात्राएं की। तेरापंथ से जुड़े साधु संत मोटर वाहन का उपयोग जरुरत होने पर करते हैं। श्वेताम्बर समाज के खतरगछ के जैन संत चंद्रप्रभ महाराज और ललित प्रभ महाराज मोबाइल, कैमरा आदि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल भी करने लगे हैं। इससे वे अपना संदेश और विचार अधिक लोगों तक पहुंचा सकते हैं। दिवंगत रूप मुनि महाराज ने भी सार्वजनिक तौर पर मोटर वाहनों का उपयोग किया ताकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जल्द और सुरक्षित पहुंचा जा सके। जैन समाज के कई संप्रदायों में बीमार संतों के लिए व्हील चेयर की छूट दी गई है। लेकिन फिर भी बड़े स्तर पर बदलाव को लेकर विमर्श की गुंजाइश है। बदलाव का उद्देश्य जैन साधु संतों के जीवन को सुरक्षित रखना है। हालांकि जब साधु संत सड़क पर चलते हैं, तब समाज के श्रद्धालु भी होते हैं जो संतों का ख्याल रखते हैं। श्वेतांबर समाज के मुकाबले दिगंबर समाज के साधु संतों का पैदल विहार ज्यादा कठिन होता है। श्वेतांबर समाज के अनेक साधु संतों ने बदलाव की पहल की है, लेकिन दिगंबर समाज के साधु संतों की परंपराएं अभी भी बेहद कठिन बनी है। पाली में दो जैन संतों की दर्दनाक मौत के संदर्भ में परंपराओं में बदलाव के लिए पहल की जा सकती है। 

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इधर उधर की बात करने के बजाए सीएम अशोक गहलोत को राजस्थान में पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करना चाहिए।यदि राजस्थान में वैट कम होता है तो भाजपा शासित राज्यों पर भी दबाव पड़ेगा। मौजूदा समय में सर्वाधिक वेट राजस्थान में ही है।

इसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का राजनीतिक विलाप ही कहा जाएगा कि केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल पर 8 रुपए और डीजल पर 6 रुपए की एक्साइज ड्यूटी कम कर दिए जाने के बाद भी राजस्थान में पेट्रोल डीजल पर वैट कम नहीं किए जाने की बात कही जा रही है। सीएम गहलोत का कहना है कि केंद्र की एक्साइज ड्यूटी कम होने से राजस्थान में कीमत अपने आप कम हो जाती है। केंद्र की ताजा कटौती से राजस्थान को 12 हजार करोड़ रुपए का राजस्व कम मिलेगा। यानी वैट में कटौती करने के बजाए इधर उधर की बात कही जा रही है। सवाल सीधा सा है कि जब केंद्र ने एक्साइज ड्यूटी कम कर दी है तो फिर राजस्थान में वैट कम क्यों नहीं किया जा रहा है? केंद्र द्वारा एक्साइज ड्यूटी को कम किए जाने पर सीएम गहलोत का कहना है कि कांग्रेस ने आंदोलन किया, उससे मजबूर होकर केंद्र की भाजपा सरकार को एक्साइज ड्यूटी कम करनी पड़ी है। तो क्या सीएम गहलोत राजस्थान में वैट कम करने लिए भाजपा के आंदोलन का इंतजार कर रहे हैं? सीएम गहलोत को यह तो पता ही होगा कि मौजूदा समय में पूरे देश में राजस्थान में ही सबसे ज्यादा वैट हे। अभी गहलोत सरकार पेट्रोल पर 31 प्रतिशत और डीजल पर 19 प्रतिशत वैट वसूल रही है। जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, गुजरात आदि में वेट कम है, पंजाब में वैट कम होने की वजह से राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ आदि जिलों में अधिकांश पेट्रोल पंप बंद हो गए हैं। लोग खास कर किसान वर्ग अपने प्रदेश से पेट्रोल डीजल खरीदने के बजाए पंजाब से खरीद रहा है। यह स्थिति तब से चली आ रही है, जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी।
 
भाजपा सरकारों पर दबाव:
सब जानते हैं कि पूरे देश में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार है। अशोक गहलोत की राजनीतिक सक्रियता के कारण देश में चर्चा राजस्थान की सरकार की ही होती है। ऐसी स्थिति में यदि गहलोत अपने प्रदेश में वेट कम करते हैं तो भाजपा शासित राज्यों पर भी दबाव पड़ेगा। मौजूदा समय में 18 राज्यों में भाजपा की सरकार हैं। यानी कांग्रेस एक राज्य में वेट कम कर भाजपा पर 18 राज्यों में कटौती का दबाव बना सकती है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अशोक गहलोत के राजनीतिक सलाहकारों का विजन एक प्रदेश तक ही सीमित है। सीएम के सलाहकार राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विचार नहीं करते हैं। जहां तक कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व का सवाल है तो उसे यूक्रेन और लद्दाख में कोई अंतर नजर नहीं आता है। वैसे भी कांग्रेस का नेतृत्व करने वाला गांधी परिवार अशोक गहलोत को कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। 13 से 15 मई के बीच उदयपुर में चिंतन शिविर करवा कर गहलोत ने गांधी परिवार को ओब्लाइज किया है। राजस्थान में तो अशोक गहलोत ही कांग्रेस आला कमान है। गहलोत माने या नहीं लेकिन वेट कम नहीं करने की उनकी जिद कांग्रेस को भारी पड़ेगी। गहलोत के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब सर्वाधिक वेट राजस्थान में ही है तो फिर केंद्र की कटौती के बाद राजस्थान में वेट कम क्यों नहीं किया जा रहा? 12 हजार करोड़ रुपए के राजस्व की हानि का विलाप कर गहलोत सरकार अपना बचाव नहीं कर सकती है। 

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Thursday 19 May 2022

भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में राजस्थान के नेताओं को सबक सिखाया जाएगा।जयपुर में होने वाली बैठक को 20 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वर्चुअल संबोधित करेंगे।

मात्र 6 माह बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लेकिन दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस गुजरात के बजाए राजस्थान में राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय चिंतन शिविर 13 से 15 मई के बीच उदयपुर में कर लिया है। जबकि भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की तीन दिवसीय बैठक 19 मई से जयपुर में शुरू हो रही है। इस बैठक में देश भर के 150 बड़े नेता भाग लेंगे। भाजपा की इस बैठक के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 20 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठक को वर्चुअल संबोधित करेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी जयपुर के निकट उस होटल में पहुंच रहे हैं, जहां बैठक होनी है। पांच सितारा सुविधाओं वाली यह होटल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया के निर्वाचन क्षेत्र  आमेर में आती है। यही वजह है कि होटल में शानदार इंतजाम किए गए हैं। सवाल उठता है कि जब गुजरात में चुनाव होने वाले है तब भाजपा और कांग्रेस राजस्थान में अपने राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम क्यों कर रहे हैं। असल में कांग्रेस की तो मजबूरी है, क्योंकि राजस्थान कांग्रेस शासित राज्य है। कांग्रेस का शासन तो छत्तीसगढ़ में भी है, लेकिन गांधी परिवार के लिए जो इंतजाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर सकते हैं वो छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नहीं कर पाते। कांग्रेस की सरकार इन दो राज्यों में ही बची है। गुजरात में भाजपा का शासन है, लेकिन फिर भी तीन दिवसीय राष्ट्रीय बैठक राजस्थान में की जा रही है। असल में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राजस्थान के कुछ भाजपा नेताओं को सबक सिखाना चाहता है। राष्ट्रीय बैठक के माध्यम से राजस्थान के भाजपा नेताओं को यह बताया जाएगा कि संगठन ही सर्वोपरि है। कोई नेता अपने आप को संगठन से बडा नहीं समझे। हालांकि इस बैठक में राष्ट्रीय मुद्दों पर ही विमर्श होगा। लेकिन राजस्थान के नेताओं को यह समझाया जाएगा कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनाव में इस बार मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा घोषित नहीं होगा। यानी भाजपा अपने चुनाव चिन्ह कमल के फूल पर ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। संभवत: ऐसी समझाइश इसलिए की जाएगी कि पूर्व सीएम और मौजूदा समय में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के समर्थक लगातार मांग कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के लिए वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। राजे समर्थक कई विधायक सार्वजनिक मंचों से इस तरह की मांग कर चुके हैं। लेकिन अभी तक भी शीर्ष नेतृत्व ने राजे की उम्मीदवार को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि राजे ने भी अपनी उम्मीदवार के लिए अभी तक कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन कई मौकों पर राजे अपना राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन करती रही है। भले ही राजे ने अपनी उम्मीदवारी पर कुछ न कहा हो, लेकिन प्रदेश की राजनीति में उनकी रुचि को देखते हुए प्रतीत होता है कि राजे भी स्वयं को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करवाना चाहती हैं। राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना रखा है, लेकिन पिछले साढ़े तीन वर्षों में राजे की राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता देखने को नहीं मिली है। राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। जिस प्रकार कांग्रेस में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं हुई, उसी प्रकार वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा की सरकार भी रिपीट नहीं हुई है। राजे जब जब भी मुख्यमंत्री रहीं, तब तब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। चूंकि राजे दस वर्ष तक राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं है, इसलिए प्रदेश भर में उनके समर्थक उपलब्ध हैं। अभी भी यह माना जाता है कि 72 भाजपा विधायकों में से 20 पूरी तरह वसुंधरा राजे के साथ हैं। ये 20 विधायक वो हैं जिन्होंने विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया की कार्यशैली पर आपत्ति जताई थी। जयपुर में हो रही भाजपा की राष्ट्रीय बैठक में आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा चुनावों की रणनीति भी बनाई जाएगी। 

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काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी का बयान हिन्दू धर्म की उदारता ही दिखाता है। इसमें कट्टरपंथ की कोई जिद नहीं है।तिवारी ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजू खाने में शिवलिंग के होने पर सवाल उठाए हैं।

बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे के दौरान मिले हिन्दू धार्मिक प्रतीकों को लेकर इन दिनों न्यूज चैनलों पर चौबीस घंटे बहस हो रही है। बहस के कार्यक्रमों में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि भी भाग ले रहे हैं। इनमें मौलाना, मौलव, मुस्लिम स्कॉलर, विद्वान आदि भाग ले रहे हैं। सभी का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूदा स्थान पर ही कायम  रहनी चाहिए। मस्जिद के पक्ष में जो भी तर्क रखे जा सकते हैं वो रखे जा रहे हैं। एक भी मुस्लिम प्रतिनिधि ने मस्जिद में हिन्दू प्रतीक चिन्ह होना स्वीकार नहीं किया है। असदुद्दीन ओवैसी जैसे कट्टरपंथी नेता का तो कहना है कि कयामत तक ज्ञानवापी मस्जिद रहेगी। लेकिन काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार के वरिष्ठ सदस्य महंत राजेंद्र तिवारी का कहना है कि बिना प्रमाणित हुए कैसे स्वीकार कर लिया जाए कि वहां शिवलिंग है। सुना है कि वहां एक गोल खंभे नुमा आकृति मिली है। काशी के दशाश्वमेध (राजेंद्र प्रसाद घाट) पर भी गोल खंभे हैं तो क्या उन्हें भी शिवलिंग मान लिया जाएगा। तिवारी का तर्क है कि मस्जिद के वजू खाने में मिली आकृति की सत्यता प्रमाणित होनी चाहिए। राजेंद्र तिवारी का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि वे काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत की भूमिका निभा रहे हैं। असल में यही हिन्दू धर्म की उदारता है। अपने धर्म को लेकर राजेंद्र तिवारी जैसे हिन्दू अपना पक्ष रखने को स्वतंत्र हैं। ऐसा नहीं कि इस बयान के बाद राजेंद्र तिवारी को महंत परिवार से बाहर कर दिया जाएगा। राजेंद्र तिवारी पहले की तरह मंदिर में महंत का धार्मिक कार्य करते रहेंगे। ऐसी उदारता और स्वतंत्रता अन्य धर्मों में देखने को नहीं मिलती है। धर्म के विरुद्ध तर्क रखने पर सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है। इतिहास गवाह है कि मोहम्मद गौरी से लेकर औरंगजेब तक ने काशी विश्वनाथ मंदिर को लूटा और क्षतिग्रस्त किया। 1669 में औरंगजेब के शासन में ही मंदिर परिसर में मस्जिद का निर्माण करवाया गया। मस्जिद की दीवारों पर आज भी हिन्दू धर्म के चिन्ह नजर आ रहे हैं। मस्जिद के वजू खाने में शिवलिंग होने के अनेक सबूत है, लेकिन फिर भी उसे फाउंटेन बताया जा रहा है। अभी तो सभी दावे बनारस की सेशन अदालत में ही है। देश में धर्म और आस्था की लड़ाई भी सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी जाती है। जब राजेंद्र तिवारी जैसे महंत पैरवी कर रहे हों तब नंदी महाराज को अपने प्रभु (शिवलिंग) के दर्शन कब होंगे, यह भगवान शिव ही जानते हैं। 

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अशोक गहलोत की सरकार को बचाने वाले विधायकों पर कार्यवाही होगी तो राजस्थान में असंतोष बढ़ेगा ही।डूंगरपुर के कांग्रेसी विधायक गणेश घोघरा का इस्तीफा इसी सोच का है। गहलोत समर्थक कई विधायक कानून के शिकंजे में हैं।डूंगरपुर के एसडीएम मणिलाल तिरगर के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज। विधायक घोघरा ढाई घंटे तक थाने में बैठे रहे।

डूंगरपुर के कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा ने विधायक पद से जो इस्तीफा दिया है, वह कोई मायने नहीं रखता है, क्योंकि यह इस्तीफा सिर्फ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को डराने के लिए है। वैसे भी मुख्यमंत्री को लिखा पत्र तकनीकी दृष्टि से इस्तीफा नहीं माना जा सकता। इस्तीफा तभी माना जाएगा, जब बिना शर्त सीधे विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा जाए। लेकिन घोघरा की यह कार्यवाही बताती है कि गहलोत सरकार को बचाने वाला कोई विधायक नहीं चाहता है कि उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही हो। डूंगरपुर के एसडीएम को बंधक बनाने पर तहसीलदार की रिपोर्ट पर पुलिस ने विधायक घोघरा के विरुद्ध नामजद एफआईआर दर्ज कर ली। घोघरा को पुलिस और प्रशासन की इस हिमाकत पर ही नाराजगी है। स्वाभाविक है कि तहसीलदार ने जिला कलेक्टर के निर्देश पर शिकायत दी और पुलिस ने एसपी के निर्देश पर मुकदमा दर्ज किया। समर्थकों का यह तर्क सही है कि जिन गणेश घोघरा ने जुलाई 2019 में गहलोत सरकार बचाई अब उसी सरकार के कलेक्टर एसपी घोघरा के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर रहे हैं। यदि उस समय गणेश घोघरा साथ नहीं देते तो आज अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं होते। सब जानते हैं कि जुलाई 2019 के राजनीतिक संकट के समय सीएम गहलोत ने ही घोघरा को युवक कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनवाया था। तब गहलोत सरकार को बचाने में घोघरा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सीएम ने तो तब कहा था कि जो विधायक मेरे साथ हैं, उन्हें ब्याज सहित भुगतान करुंगा, लेकिन अब तो उल्टा हो रहा है। गणेश घोघरा अकेले ऐसे विधायक नहीं है जो सरकार और प्रशासन की कार्यशैली से नाराज है। धौलपुर में विद्युत निगम के एक एईएन की पिटाई के आरोप में विगत दिनों ही पुलिस ने बाडी के कांग्रेसी विधायक गिर्राज मलिंगा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। मलिंगा हाईकोर्ट से जमानत के बाद बाहर आ सके। मलिंगा भी राजनीतिक संकट में सीएम गहलोत के साथ खड़े थे। मलिंगा ने भी पुलिस की कार्यवाही का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि विद्युत निगम का एईएन ग्रामीणों को तंग करता था, इसलिए मारपीट हुई। इतना ही नहीं 16 मई को सरकार के उप मुख्य सचेतक और नागौर-नावां के कांग्रेसी विधायक महेंद्र चौधरी के सगे भाई मोती सिंह चौधरी और बहनोई कुलदीप सिंह को पुलिस ने हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इस कार्यवाही से चौधरी के समर्थक भी सरकार से खफा हैं। गहलोत सरकार को टिकाए रखने में महेंद्र चौधरी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। विधायकों के समर्थकों का कहना है कि जब जरुरत थी, तब विधायकों का इस्तेमाल कर लिया, लेकिन अब जन आंदोलनों में भी विधायकों पर मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। सवाल यह भी है कि गिर्राज मलिंगा की गिरफ्तारी के बाद क्या विधायक गणेश घोघरा की भी गिरफ्तारी होगी? विधायकों पर मुकदमे दर्ज होना, इसलिए भी गंभीर है कि गृह विभाग मुख्यमंत्री गहलोत के पास ही है। स्वाभाविक है कि सत्तारूढ़ दल के विधायक के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने से पहले गृहमंत्री से भी अनुमति ली गई होगी। पुलिस अपने स्तर पर किसी विधायक पर मुकदमा दर्ज नहीं कर सकती है। देखना होगा कि मौजूदा संतोष से सीएम गहलोत कैसे निपटते हैं। जानकारों की मानें तो इस बार अशोक गहलोत को सरकार चलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी परेशानी की बात तो यह है कि हर समस्या से गहलोत को खुद जूझना पड़ रहा है। भरोसेमंद माने जाने वो मंत्री महेश जोशी अपने पुत्र रोहित पर लगे बलात्कार के आरोप से परेशान हैं। दिल्ली पुलिस रोहित की तलाश कर रही है। विधायकों में असंतोष के समय महेश जोश अपने पुत्र को गिरफ्तारी से बचाने में लगे हुए हैं। विधायक महेंद्र चौधरी अपने भाई और बहनोई को पुलिस के शिकंजे से बाहर लाने में लगे हुए हैं।
 
एसडीएम के खिलाफ भी मुकदमा:
कांग्रेस के विधायक गणेश घोघरा की अपनी ही सरकार के प्रति नाराजगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 19 मई को डूंगरपुर जिले की सुरसुरा ग्राम पंचायत की सरपंच की ओर से एसडीएम मणिलाल तिरगर व अन्य कार्मिकों के विरुद्ध भी मुकदमा दर्ज करवा दिया है। मालूम हो कि 17 मई को एसडीएम तिरगर को बंधक बनाने पर ही विधायक घोघरा और कुछ ग्रामीणों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ था। एसडीएम के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाने के लिए विधायक घोघरा खुद ढाई घंटे तक पुलिस थाने में बेठे। सरपंच ने जब लिखित में शिकायत दी तो थानाधिकारी हरीराम ने एसडीएम के विरुद्ध मुकदमा दर्ज नहीं किया। इस पर विधायक घोघरा ने स्पष्ट कहा कि जब तक मुकदमा दर्ज नहीं होगा, तब तक वे थाने पर ही बेठे रहेंगे। विधायक की इस घोषणा के बाद थानेदार ने पुलिस अधीक्षक सहित बड़े अधिकारियों से निर्देश प्राप्त किए और फिर एसडीएम व अन्य कार्मिकों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया। यह मुकदमा 17 मई के घटनाक्रम को लेकर ही है। 

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Wednesday 18 May 2022

आखिर नागौर के जाट नेता जयपाल पूनिया के शव का अंतिम संस्कार हुआ। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दखल काम आया।कांग्रेस सरकार के उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी के भाई, बहनोई सहित पांच आरोपी गिरफ्तार। महेंद्र चौधरी भी है आरोपी।सबूत मिले तो विधायक महेंद्र चौधरी भी गिरफ्तार होंगे-डीजीपी लाठर।

18 अप्रैल को नागौर के जाट नेता जयपाल पूनिया के शव का अंतिम संस्कार हो गया। इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राजस्थान पुलिस ने राहत की सांस ली है। पूनिया का उनके चूरू जिले के राजगढ़ पैतृक गांव में अंतिम संस्कार किया जा रहा है। अंतिम संस्कार से पहले शव का मेडिकल बोर्ड द्वारा पोस्टमार्टम करवाया गया। गत 14 मई को गोली मार कर पूनिया की हत्या की गई थी। हत्या के  बाद से ही नागौर का माहौल तनावपूर्ण था। परिजन मांगे नहीं माने जाने तक अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया। हालांकि अब सीबीआई जांच की मांग स्वीकार नहीं की गई है, लेकिन जांच के बाद डीआईजी राहुल प्रकाश के नेतृत्व में एसआईटी गठित कर दी है तथा पुलिस ने 17 मई की रात को सरकार के उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी के भाई मोती सिंह चौधरी, हरियाणा के नांगल निवासी बहनोई कुलदीप सिंह, तथा नावां निवासी फिरोज कायमखानी, हारुन कायमखानी व हनुमान माली को गिरफ्तार कर लिया है। परिजन ने उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी की गिरफ्तारी की भी मांग की है। 15 मई से नावां में धना दिया जा रहा था। सरकार के खिलाफ भाजपा और सांसद हनुमान बेनीवाल की आरएलपी एक साथ आ गई थी। पूनिया के शव का अंतिम संस्कार नहीं होने तथा राजनीतिक दलों के धरने से माहौल लगातार बिगड़ रहा था। कांग्रेस के चिंतन शिविर से फ्री होकर 17 मई को सीएम अशोक गहलोत ने दखल दिया। जानकार सूत्रों के अनुसार इस मुद्दे पर गहलोत ने गृह विभाग के अधिकारियों और पुलिस महानिदेशक एमएल लाठर से संवाद किया। सीएम के दखल के बाद ही सांसद बेनीवाल और परिजन के साथ समझौता हो सका। देर रात को ही पुलिस ने महेंद्र चौधरी के रिश्तेदारों सहित पांच व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि नागौर पुलिस ने हत्या के बाद ही इन पांचों को हिरासत में ले लिया था, लेकिन राजनीतिक कारणों से गिरफ्तारी नहीं दिखाई। परिजन का आरोप है कि कांग्रेस विधायक महेंद्र चौधरी ने ही अपराधी तत्वों से पूनिया की हत्या करवाई है। सांसद बेनीवाल ने कहा कि आंदोलन स्थगित किया गया है, यदि एसआईटी ने जांच में कोताही बरती तो आंदोलन फिर से शुरू किया जाएगा। कांग्रेस विधायक महेंद्र चौधरी की गिरफ्तारी को लेकर भाजपा के पूर्व विधायक हरीश कुमावत ने भी 17 मई से अनशन शुरू कर दिया था। सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने में नागौर के पूर्व सांसद सीआर चौधरी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
 
विधायक भी गिरफ्तार होंगे:
जयपाल पूनिया हत्याकांड को जोरशोर से उठाने वाले नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने बताया कि उनकी प्रदेश के पुलिस महानिदेशक एमएल लाठर से बात हुई है। लाठर ने भरोसा दिलाया है कि यदि कांग्रेस के विधायक महेंद्र चौधरी के खिलाफ सबूत मिले तो उन्हें भी गिरफ्तार किया जाएगा। लाठर का कहना रहा कि पुलिस ने सबूतों के आधार पर ही धौलपुर के कांग्रेस विधायक गिर्राज मलिंगा को भी गिरफ्तार किया है। बेनीवाल ने कहा कि उन्हें फिलहाल लाठर के कथन पर भरोसा है, इसलिए वे आंदोलन को स्थगित कर रहे हैं।
 
एसपी राममूर्ति के प्रयास:
जयपाल पूनिया हत्याकांड में नागौर के पुलिस अधीक्षक राममूर्ति जोशी के प्रयास भी सकारात्मक रहे हैं। हत्या के बाद ही पुलिस ने पांच आरोपियों को हिरासत में ले लिया था। नावां में जब भाजपा और आरएलपी की ओर से धरना दिया गया, तब कई बार एसपी जोशी ने नेताओं से सीधा संवाद किया। कई बार तो जोशी धरना स्थल के मंच पर ही पहुंच गए। जोशी का प्रयास रहा कि पूनिया के शव का अंतिम संस्कार जल्द से जल्द करवाया जाए। जोशी मृतक पूनिया के परिजनों से लगातार संपर्क में भी रहे। यही वजह रही कि 17 मई को जब राजनीतिक समझौता हुआ तो पुलिस ने रात को ही पांच आरोपियों की गिरफ्तारी दिखा दी। हत्याकांड के बाद पांच को हिरासत में लिया जाना पुलिस की उपलब्धि माना जा रहा है। अब इस मामले की जांच सीआईडी सीबी के डीआईजी राहुल प्रकाश करेेंगे।  

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कांग्रेस में युवाओं को तरजीह देने वाले संकल्प को हार्दिक पटेल के इस्तीफे से झटका।हार्दिक का इस्तीफा गुजरात के प्रभारी रघु शर्मा की विफलता भी है।

उदयपुर में 13 से 15 मई के बीच हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय चिंतन शिविर में युवाओं को तरजीह देने का संकल्प भी लिया गया। कहा गया कि अब संगठन के पचास प्रतिशत पदों पर युवाओं की नियुक्ति होगी। इतना ही नहीं चुनाव में 50 प्रतिशत टिकट भी 50 वर्ष से कम उम्र वाले कार्यकर्ताओं को ही दिया जाएगा। लेकिन युवाओं को तरजीह देने वाले इस संकल्प को गुजरात के कार्यवाहक अध्यक्ष हार्दिक पटेल के इस्तीफे से झटका लगा है। 18 मई को हार्दिक पटेल ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अपना इस्तीफा दिया। इस इस्तीफे में पटेल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। राम मंदिर, अनुच्छेद 370, सीएए, एनआरसी, जीएसटी जैसे देशहित के मुद्दों पर भी कांग्रेस पार्टी विरोध के लिए विरोध कर रही है। पार्टी ने जनता के समक्ष विकास का कोई रोडमैप प्रस्तुत नहीं किया है। मैंने जब कभी गुजरात के लोगों के लिए पार्टी के बड़े नेताओं से संवाद किया तो ऐसे नेता या तो मोबाइल पर या अन्य चीजों पर व्यस्त रहे। कांग्रेस के बड़े नेता ऐसा बर्ताव करते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि वे गुजरातियों से नफरत करते हैं। पटेल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने युवाओं को भरोसा तोड़ा है, इसलिए आज युवा भी कांग्रेस के साथ नहीं रहना चाहता। चूंकि कांग्रेस पार्टी गुजरात के लिए कुछ भी नहीं करना चाहती इसलिए मैं अब गुजरात के लिए कुछ अलग करना चाहता हंू। असल में पिछले कई दिनों से हार्दिक पटेल कांग्रेस से नाराज चल रहे थे। उनकी नाराजगी तब और बढ़ गई, जब राजस्थान के कांग्रेसी नेता रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बनाया गया। रघु शर्मा ने गुजरात कांग्रेस में जो राजनीतिक गतिविधियां की उससे हार्दिक पटेल की नाराजगी और बढ़ी। अब यह नाराजगी इस्तीफे के रूप में सामने आई है। हार्दिक पटेल का इस्तीफा तब आया है, जब गुजरात में छह माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। हार्दिक पटेल गुजरात में पटेल समुदाय के प्रभावी नेता है। हार्दिक के नेतृत्व में ही पटेलों के लिए आरक्षण का आंदोलन भी चला था। गत विधानसभा चुनाव में हार्दिक ने कांग्रेस के लिए बहुत काम किया, इसका परिणाम रहा कि गुजरात में कांग्रेस को 77 सीटें प्राप्त हुई। लेकिन इसके बाद हार्दिक पटेल को कांग्रेस में सम्मान नहीं मिला। अपनी पीड़ा को हार्दिक ने कई बार राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष भी रखा, लेकिन गुजरात की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। हार्दिक पटेल और उनके समर्थक गुजरात के प्रभारी रघु शर्मा के व्यवहार से भी नाराज रहे। सूत्रों के अनुसार हार्दिक पटेल अब भाजपा में शामिल हो सकते हैं। यदि हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल होंगे तो यह कांग्रेस को दोहरा नुकसान होगा। 

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जो टीसीएस कंपनी सीबीआई के रडर पर है उस कंपनी से राजस्थान में पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा क्यों करवाई गई?भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने मुख्यमंत्री और गृह मंत्री अशोक गहलोत से सवाल पूछा?मीणा ने टीसीएस कंपनी की गड़बड़ियों के सबूत दिए। जुलाई में होने वाली रीट परीक्षा में गड़बड़ी की आशंका जताई।

राजस्थान में 4 हजार 500 पुलिस कांस्टेबल की भर्ती के लिए सरकार ने टीसीएस कंपनी को अधिकृत किया है। इस कंपनी के पास परीक्षा केंद्र तय करने से लेकर परीक्षा परिणाम घोषित करने तक की जिम्मेदारी है। हालांकि 16 मई तक चली परीक्षा अब संपन्न हो गई है, लेकिन 14 मई को दूसरी पारी में हुई परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो जाने के कारण इस तारीख की परीक्षा को रद्द करना पड़ा है। परीक्षा के लिए 19 लाख युवाओं ने आवेदन किया था। अब भाजपा सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने परीक्षा लेने वाली टीसीएम कंपनी पर गड़बड़ी करने के आरोप लगाए हैं। गड़बडिय़ों के सबूत के साथ मीणा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री व गृहमंत्री अशोक गहलोत से पूछा है कि जो कंपनी गड़बडिय़ों के लिए कुख्यात है उससे राजस्थान में कांस्टेबल भर्ती परीक्षा क्यों करवाई गई। मीणा ने बताया कि राजस्थान में टीसीएस के हेड कोटा के भूनेश भार्गव है। भार्गव को परीक्षाओं का बड़ा खिलाड़ी माना जाता है। इसलिए उसने कांस्टेबल परीक्षा कराने के सभी अधिकार अपने पास रखे। यहां तक कि परीक्षा केंद्रों का निर्धारण भी कंपनी के द्वारा करवाया गया। यही वजह रही कि प्रदेश में बड़ी संख्या में निजी स्कूलों में परीक्षा केंद्र बनाए गए। गली कूचों में चलने वाले छोटे छोटे स्कूलों में भी परीक्षा केंद्र बनाए गए। जयपुर के झोटवाड़ा के जिस दिवाकर पब्लिक स्कूल के परीक्षा केंद्र से 14 मई को द्वितीय पारी का प्रश्न पत्र लीक हुआ वह स्कूल भी निजी है। असल में प्राइवेट स्कूलों गड़बड़ी करना आसान होता है। राजस्थान पुलिस के पास भारी लवाजमा होते हुए भी कंपनी ने निजी क्षेत्र के लोगों से परीक्षा कार्य करवाया। मीणा ने कहा कि अभी सिर्फ एक पारी की परीक्षा रद्द की गई, लेकिन यदि विस्तृत जांच करवाई जाए तो संपूर्ण परीक्षा को ही रद्द करना पड़ेगा। मीणा ने बताया कि टीसीएस कंपनी ने ही गत वर्ष दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल भर्ती परीक्षा करवाई थी। इस परीक्षा का एक सेंटर भूनेश भार्गव ने अपने गृह शहर कोटा में बनवाया। कोटा के ओम कोठारी कॉलेज में 556 परीक्षार्थियों ने दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल पद की परीक्षा दी। परिणाम में इस सेंटर के 226 परीक्षार्थी चयनित हुए। इस पर दिल्ली पुलिस को संदेह हुआ और अब पुलिस ने कोटा के इस परीक्षा केंद्र के संपूर्ण परिणाम को ही रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं टीसीएस कंपनी की जांच सीबीआई से भी कराने का निर्णय लिया है। कोटा के इसी केंद्र पर राजस्थान पुलिस कांस्टेबल परीक्षा करवाई गई। मीणा ने बताया कि आरपीएससी और राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड ने भी कोटा के इसी कॉलेज को ब्लैक लिस्ट कर रखा है। पूर्व में टीसीएस से ही राजस्थान जेल प्रहरी परीक्षा भी करवाई गई थी, लेकिन इस परीक्षा को भी रद्द करना पड़ा। सरस डेयरी द्वारा आयोजित परीक्षा में भी टीसीएस की गड़बडिय़ा सामने आई है। मीणा ने इसके अलावा भी टीसीएस की गड़बडिय़ों की जानकारी दी। मीणा ने कहा कि सरकार की कमजोरी के कारण राजस्थान में पेपर लीक करने वाले गिरोह के हौंसले बुलंद है। इसलिए हर परीक्षा में गड़बड़ी होती है। रीट परीक्षा भी इसका उदाहरण है। चूंकि पेपर लीक करने वालों को राजनीतिक संरक्षण भी है, इसलिए हर बार परीक्षा रद्द करनी पड़ती है। रीट के प्रश्न पत्र तो 10 लाख रुपए तक में बिके हैं। खुद राजस्थान पुलिस ने अपनी जांच में माना कि रीट में बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है। मीणा ने आशंका जताई कि आगामी जुलाई माह में होने वाली रीट परीक्षा के प्रश्न पत्र भी लीक हो सकते हैं। मीणा ने कहा कि जब राजस्थान में सरकारी चयन बोर्ड और आयोग है तब निजी कंपनियों से परीक्षाएं क्यों करवाई जाती है। उन्होंने कहा कि पुलिस कांस्टेबल परीक्षा में हुई गड़बडिय़ों के लिए सीधे तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिम्मेदार है। गहलोत के पास ही गृह विभाग है। गहलोत को अब यह बताना चाहिए कि जो टीसीएस कंपनी सीबीआई के रडार पर है उससे कांस्टेबल भर्ती परीक्षा क्यों करवाई गई। 

ओवैसी ज्ञानवापी मस्जिद की तो वकालत करते हैं, लेकिन कश्मीर घाटी में हिन्दुओं की हत्याओं पर चुप रहते हैं। ऐसा क्यों?इस बार शराब की दुकान पर फेंका ग्रेनेड। सेल्समेन रंजीत सिंह की मौत, 3 जख्मी।

बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्ह मिलने के बाद भी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और देश के मुसलमानों के प्रतिनिधि नेता असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि धार्मिक स्थलों के मामलों में 1991 के वर्शिय एक्ट की पालना होनी चाहिए। ओवैसी ज्ञानवापी मस्जिद में मिले सभी सबूतों को नकारते हैं और कहते हैं कि कयामत तक ज्ञानवापी मस्जिद बनारस में ही रहेगी। ओवैसी का कहना है कि देश में जानबूझ कर मुस्लिम धर्म स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। ओवैसी देश के संविधान और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई भी देते हैं। ओवैसी संविधान और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई तो देते हैं, लेकिन कश्मीर घाटी में हिन्दुओं की हत्याओं पर चुप रहते हैं। 17 मई की रात को भी एक शराब की दुकान पर ग्रेनेड फेंका, इस से दुकान के सेल्समैन रंजीत सिंह की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीन अन्य युवक जख्मी हो गए। पिछले कुछ दिनों से कश्मीर घाटी में हिन्दुओं की हत्या का सिलसिला जारी है। चूंकि कश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्यक है, इसलिए आतंकी हत्या के बाद फरार भी हो जाते हैं। ओवैसी जब संविधान और धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं, तब कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या पर आतंकियों की निंदा क्यों नहीं करते? सब जानते हैं कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकी मुस्लिम चरमपंथी हैं जो कश्मीर को देश से अलग करना चाहते हैं। हालांकि अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद आतंकियों के खिलाफ भी बड़ी कार्यवाही हुई है, लेकिन विदेशी मदद के कारण आतंकी अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं। कश्मीर में हिन्दुओं की हत्याओं पर ओवैसी जैसे मुस्लिम नेताओं की चुप्पी को देशवासियों को समझना चाहिए। जहां तक हिन्दुओं का सवाल है तो वह शुरू से ही उदार प्रवृत्ति का रहा है। यही वजह है कि हजारों हिन्दू सूफी संतों की दरगाहों में जाकर जियारत करते हैं। जियारत के समय मुस्लिम धर्म की परंपराओं का ही निर्वहन किया जाता है। एक हिन्दू समुदाय के लाग दरगाहों में जियारत कर रहे हैं तो दूसरी ओर कश्मीर में चरमपंथी मुस्लिम हिन्दुओं की हत्या कर रहे हैं। यह बात देश के आम मुसलमान को भी समझनी चाहिए। बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच रहने पर किसी मुसलमान को खतरा नहीं है। अनेक मुस्लिम परिवार मुस्लिम आबादी वाले इलाकों को छोड़ कर हिन्दू आबादी वाली कॉलोनियों में बड़े आराम और मान सम्मान के साथ रह रहे हैं, लेकिन वहीं कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दुओं को मारा जा रहा है। सवाल उठता है कि जब आम मुसलमान हिन्दू बाहुल्य क्षेत्रों में निडर हो कर रह सकता है तो फिर कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यकों के बीच हिन्दू सुरक्षित क्यों नहीं रहता? क्या हिन्दुओं को कश्मीर में रहने का अधिकार नहीं है?

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Tuesday 17 May 2022

अजमेर जिले की नगर गांव की सरकारी स्कूल की काया पलटने में लगे हैं विकलांग प्राचार्य रामप्रसाद जांगिड़।दो माह में 3 लाख रुपए जनसहयोग से एकत्रित कर कैमरे लगाने के साथ साथ कई विकास कार्य करवाए।14 बीघा भूमि पर बना है सरकारी स्कूल।

अजमेर जिले की मसूदा पंचायत समिति के नगर गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य का पद रामप्रसाद जांगिड़ ने गत 23 मार्च को संभाला, तब स्कूल के विद्यार्थियों, अभिभावकों और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के मन में यह सवाल आया कि आखिर एक हाथ वाला यह विकलांग प्राचार्य 14 बीघा भूमि में फैले सरकारी स्कूल को कैसे संभालेगा। लेकिन एक हाथ वाले प्राचार्य जांगिड़ ने दो-तीन माह की अवधि में ही यह दर्शा दिया कि वे सौ हाथ वाले प्राचार्य हैं। भले ही एक दुर्घटना में ईश्वर ने उनका एक हाथ छीन लिया हो, लेकिन उनकी दक्षता में कोई कमी नहीं है। राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद शिक्षा विभाग में प्राध्यापक की नौकरी हासिल की। 23 मार्च को जब नगर गांव के स्कूल के प्राचार्य का पद संभाला तब जांगिड़ के समक्ष चुनौतियां भी थी। कोरोना काल के बाद स्कूल खुलने की प्रक्रिया में थे। जांगिड़ ने सबसे पहले स्कूल भवन के रंग रोगन का जिम्मा उठाया। क्षेत्रीय भामाशाहों से कोई तीन लाख रुपए की राशि एकत्रित की और संपूर्ण भवन पर रंग रोगन के साथ साथ स्कूल परिसर में सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए। इससे जांगिड़ अपने प्राचार्य के कक्ष में बैठकर संपूर्ण स्कूल परिसर में निगरानी रख पाते हैं। 250 विद्यार्थियों वाले इस स्कूल में 150 छात्राएं हैं। छात्राओं की मौजूदगी को देखते हुए ही कैमरे लगवाना जरूरी था। जांगिड़ ने सभी कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड लगवाए हैं ताकि शिक्षक स्मार्ट क्लास की तरह मार्कर पेन से बोर्ड पर लिख सके। विद्यार्थियों को गर्मी के दिनों में ठंडा पानी पिलाने के लिए प्याऊ का निर्माण कर वाटर कूलर भी लगाया गया है। चूंकि यह विद्यालय 14 बीघा भूमि पर फैला हुआ है, इसलिए स्कूल परिसर में अनेक स्थानों पर सीमेंट की सड़क बनवाने की जरूरत है ताकि विद्यार्थी खेल मैदान तक आसानी से पहुंच सके। जांगिड़ का प्रयास है कि क्षेत्रीय प्रधान मीनू कंवर राठौड़ के सहयोग से विद्यालय परिसर में सीसी रोड का निर्माण करवाया जाए। इसी प्रकार सरकार के अन्य कोष से तीन लाख रुपए के विकास कार्य भी करवाए जा रहे हैं। जांगिड़ ने यह प्रदर्शित किया है कि यदि कोई प्राचार्य ठन ले तो सरकारी स्कूल को भी प्राइवेट स्कूल के मुकाबले में खड़ा कर सकता है। प्राइवेट स्कूलों के पास तो आधा बीघा भूमि भी नहीं होती है, जबकि सरकार ने छोटे से गांव नगर में स्कूल के लिए 14 बीघा भूमि दे रखी है। जांगिड़ का कहना है कि राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप वे अपने विद्यालय को मॉडल विद्यालय के तौर पर विकसित करेंगे। यही वजह है कि अब इस स्कूल में विद्यार्थियों खास कर छात्राओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्कूल परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाने के कार्य की प्रशंसा छात्राओं के अभिभावकों ने भी की है। अब अभिभावक भी स्कूल के विकास में रुचि दिखा रहे हैं। जांगिड़ ने विकलांग होते हुए भी सरकारी स्कूल के विकास के लिए जो काम किए हैं, उनसे दो हाथ वाले प्राचार्य भी प्रेरणा ले सकते हैं। जांगिड़ की उपलब्धियों के लिए मोबाइल नंबर 9887694625 पर बधाई दी जा सकती है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-05-2022)
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गहलोत सरकार के लिए मुसीबत बनी जयपाल पूनिया की हत्या। नागौर में तनावपूर्ण हालात।उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी और उनके भाई को भी आरोपी माना।चार दिन से शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हो पाया है। सीबीआई से जांच की मांग पर भाजपा-आएलपी एकजुट।

भाजपा के नेता माने या नहीं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा की हार का एक कारण आनंदपाल सिंह की हत्या का प्रकरण भी रहा। तब इस हत्या को लेकर राजपूत और रावणा राजपूत समाज ने विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रदेशभर में मोर्चा खोला। अब वही स्थिति मौजूदा कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समक्ष नागौर के नावां में जयपाल पूनिया की हत्या को लेकर हो गई है। पूनिया की 14 मई को हत्या हुई, तभी पूरे नागौर में राजनीतिक विवाद की स्थिति है। पूनिया के परिजन ने जिन 8 लोगों के विरुद्ध नामजद एफआईआर दी है, उसमें गहलोत सरकार के उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी और उनके भाई का नाम भी शामिल है। पूनिया का शव 14 मई से ही सरकारी अस्पताल के मुर्दाघर में रखा हुआ। भीषण गर्मी के बाद भी अभी तक शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ है। हत्या को लेकर नागौर में लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। 16 मई को भी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया ने भी धरना स्थल पर आकर अपना समर्थन जताया। 17 मई को भाजपा के पूर्व विधायक हरीश कुमावत भी धरने पर बैठ गए हैं। पूनिया हत्याकांड में जहां भाजपा पूरी तरह सक्रिय हैं, वहीं नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी अपनी पार्टी आरएलपी के जरिए गहलोत सरकार पर हमला बोला है। बेनीवाल का कहना है कि कांग्रेस के विधायक महेंद्र चौधरी के इशारे पर ही पूनिया ने जयपाल पूनिया पर झूठे मुकदमे दर्ज कर उन्हें हिस्ट्रीशीटर घोषित करवाया। जबकि पूनिया तो नागौर में अपना नमक का कारोबार करते थे। बेनीवाल ने पूनिया की हत्या के लिए विधायक महेंद्र चौधरी को ही जिम्मेदार ठहराया है। अब प्रदेशभर में पूनिया की हत्या को लेकर जाट समुदाय में आक्रोश है। यही वजह है कि यह हत्याकांड अब गहलोत सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। भाजपा और बेनीवाल की आरएलपी एकजुट होकर पूनिया के परिजन के साथ खड़ी है। दोनों पार्टियों ने हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और सांसद हनुमान बेनीवाल का कहना है कि एफआईआर में सत्तारूढ़ दल के विधायक महेंद्र चौधरी का भी नाम है, इसलिए राजस्थान पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती है। सीबीआई की जांच की मांग के साथ साथ परिजन को 50 लाख रुपए का मुआवजा, परिजन के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने तथा नावां पुलिस पर बड़ी कार्यवाही करने की मांग की गई है। हालांकि नागौर के पुलिस अधीक्षक राममूर्ति जोशी परिजनों से संवाद का प्रयास कर रहे हैं, ताकि शव का पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार हो सके। लेकिन मामले की जांच सीबीआई से करवाने का निर्णय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्तर पर होना है, इसलिए नागौर प्रशासन के प्रयास विफल हो रहे हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार सीएम गहलोत उदयपुर में कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर और गांधी परिवार की आवभगत से 17 मई को ही फ्री हुए हैं, इसलिए अब जयपाल पूनिया की हत्या के प्रकरण पर ध्यान देंगे। उम्मीद है कि 18 मई तक सीएम गहलोत का दखल हो ाजए। मौजूदा राजनीतिक हालातों में सीएम गहलोत भी नहीं चाहेंगे कि सरकार के प्रति जाट समुदाय में नाराजगी बढ़े और वो भी तब जब आंदोलन में भाजपा और आरएलपी शामिल हैं। भाजपा के पूर्व विधायक हरीश कुमावत की उम्र 80 वर्ष है, लेकिन वे 17 मई से अनशन पर बैठ गए हैं। अनशन के दौरान कुमावत सिर्फ पानी ग्रहण करेंगे। इस बीच नावां के एसडीएम ने पूनिया के शव पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार के लिए परिजन को नोटिस जारी कर दिया है। इस नोटिस की अवधि भी 17 मई को प्रातः 10 बजे समाप्त हो गई है। नोटिस में विधिक कार्यवाही की चेतावनी भी दी गई है, लेकिन नागौर प्रशासन में इतनी हिम्मत नहीं है कि पूनिया के शव को जबरन अंतिम संस्कार करवा दे। नागौर और नावां के माहौल को देखते हुए पूनिया के शव को हाथ लगाने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। यह बात अलग है कि पोस्टमार्टम में जितना विलंब होगा उतने सबूत भी कमजोर होंगे। शव का अंतिम संस्कार नहीं होने से नागौर में तनावपूर्ण हालात है। 

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महबूबा साहिबा! हिन्दुओं को मस्जिद नहीं, अपने मंदिर चाहिए।तो बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद में वजू की प्रक्रिया शिवलिंग वाले पानी से होती रही।

जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की हिमायती भारतीय नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि हिन्दू पक्ष एक बार उन मस्जिदों की लिस्ट दे दें जो उन्हें चाहिए। महबूबा ने कहा कि हम जहां भी मस्जिद बनाएंगे वहीं पर खुदा आ जाएंगे। हमारी इबादत में इतनी ताकत है। महबूबा ने कहा कि एक बार मस्जिद ले लेने के बाद फिर किसी मस्जिद को लेकर विवाद नहीं होना चाहिए। महबूबा ने यह बयान मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म भूमि, बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद, आगरा में ताजमहल, दिल्ली में कुतुब मीनार आदि में हिन्दुओं के धार्मिक स्थल होने के विवादों के संदर्भ में दिया। महबूबा के बयान से प्रतीत होता है कि हिन्दू पक्ष मुस्लिम पक्ष की मस्जिदें मांग रहा है। महबूबा को यह समझना चाहिए कि हिन्दू पक्ष कोई मस्जिद नहीं मांग रहा है और न ही कोई मस्जिद जबरन छीनी जा रही है। हिन्दू पक्ष तो अपने मंदिरों और धार्मिक स्थलों की वापसी चाहता है। ये तो धार्मिक स्थल या मंदिर हैं जिन्हें आक्रांता मुगल शासकों ने समय-समय पर तोड़े और एसी परिसर में मस्जिदें बनवाई। अच्छा हो कि हिन्दुओं के ऐसे धार्मिक स्थलों की वापसी के लिए महबूबा मुफ्ती देशभर में मुहिम चलाएं। ताजा मामला बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद का है। महबूबा अच्छी तरह जानती है कि बनारस के बाबा विश्वनाथ मंदिर को आक्रांताओं ने तीन बार नष्ट किया। पहली बार 1194 में मुहम्मद गोरी ने। यह वही मोहम्मद गौरी है जो हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान से 16 बार हारा था। दूसरी बार सिकंदर लोधी ने अपने 1505 से 1515 के शासन में बाबा विश्वनाथ के मंदिर को लूटा और नुकसान पहुंचाया। अंतिम बार 1669 में अत्याचारी औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ कर मंदिर परिसर में ही मस्जिद का निर्माण करवा दिया। अब वही मस्जिद पर हिन्दू समुदाय अपना हक जता रहा है। 1947 में जब धर्म के आधार पर हिंदुस्तान को चीर कर मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान का जन्म करवा लिया गया। कायदे से तभी हिन्दुओं को उनके मंदिर और धार्मिक स्थल मिल जाने ाहिए थे। लेकिन तब तत्कालीन राजनेताओं ने हिंदुस्तान को धर्मनिरपेक्षता का चोला पहना दिया। सवाल उठता है कि हिन्दू पक्ष को अपने मंदिर और धार्मिक स्थल क्यों नहीं मिलने चाहिए?

शिवलिंग वाले पानी से वजू?:
इस्लाम में वजू की प्रक्रिया को बहुत पाक (पवित्र) माना गया है। नमाज से पहले वजू करना अनिवार्य होता है। वजू की प्रक्रिया हाथ मुंह आदि धोना होता है। इसलिए हर मस्जिद में वजू की सुविधा रहती है। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद में भी वजू की सुविधा है। लेकिन 15 से 16 मई के बीच हुए सर्वे से पता चला कि वजू के लिए जिस स्थान पर पानी भरा रहता है, उसी में विश्वेश्वर नाथ बाबा का शिवलिंग है। यानी शिवलिंग वाले पानी से ही अब तक मस्जिद में वजू की रस्म हो रही थी। शिवलिंग के महत्व को देखते हुए ही सेशन कोर्ट ने बनारस प्रशासन को सुरक्षित करने के निर्देश दिए हैं। अब इस स्थान को सुरक्षा बलों ने अपने कब्जे में ले लिया है। वैसे भी यदि किसी स्थान पर गैर इस्लामिक धर्म के प्रतीक चिन्ह होते हैं तो वहां नमाज पढ़ने की मनाही है। बनारस के लिए यह सौहार्द की बात है आम मुसलमान को इस विवाद से कोई सरोकार नहीं है। हजारों मुस्लिम परिवार बाबा विश्वनाथ के मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं पर निर्भर है। ऐसे मुस्लिम परिवारों की भी मंदिर के आसपास दुकानें हैं। 

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Monday 16 May 2022

गहलोत सरकार की हिन्दू विरोधी नीतियों के विरोध में राजस्थान भर में विहिप और बजरंग दल का प्रदर्शन।जोधपुर में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी धरने पर बैठे। अजमेर में भी कलेक्ट्रेट पर धरना।न्यूज 18 के एंकर अमन चोपड़ा बिछीवाड़ा थाने पर उपस्थित हुए।

अशोक गहलोत के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार की हिन्दू विरोधी नीतियों के विरोध में 16 मई को राजस्थान भर में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल की ओर से धरना प्रदर्शन किया गया। हिन्दूवादी संगठनों के नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार हिंदुत्ववादी संगठनों के बारे में जहर उगलते हैं। गहलोत के तुष्टीकरण वाले बयानों से ही प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव हो रहा है। अप्रैल माह में जब हिन्दू समुदाय के अनेक धार्मिक पर्व थे, तब धारा 144 के प्रावधानों के अंतर्गत अनेक पाबंदियां लगा दी गई। यहां तक कि चौराहों एवं सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक प्रतीक चिन्ह लगाने से भी रोक दिया गया। इससे हिन्दुओं के पर्व उत्साह के साथ नहीं मने। जबकि तीन मई को ईद के दिन बाजारों में खुले रूप से नमाज पढ़ने की छूट दी गई। सीएम गहलोत हिन्दूवादी संगठनों पर तो आरोप लगाते हैं, लेकिन ईद के दिन जोधपुर में जो कुछ भी हुआ उस पर एक शब्द भी नहीं बोलते। ईद के दिन जोधपुर में कोई शोभायात्रा नहीं निकली और न ही किसी ने नारे लगाए, लेकिन इसके बावजूद भी पुलिस को नमाज के बाद लाठीचार्ज करना पड़ा। जोधपुर में 3 मई को जिस तरह उपद्रव हुआ, उसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की। विहिप और बजरंग दल की ओर से 16 मई को जिला कलेक्टरों के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी दिए गए। इन ज्ञापनों में कहा गया कि सरकार को तुष्टीकरण की नीति बंद करनी चाहिए। हिन्दू समुदाय के लोगों को भी अपने पर्व स्वतंत्रता के साथ मनाने की छूट मिलनी चाहिए।
 
जोधपुर में मंत्री का धरना:
सीएम अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर में विहिप और बजरंग दल के धरने में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री व जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हुए। शेखावत कोई 20 मिनट तक धरना स्थल पर बैठे रहे। शेखावत ने कहा कि प्रदेश में इन दिनों जो साम्प्रदायिक हिंसा हो रही है उसके पीछे सीएम गहलोत के एक तरफा बयान है। सीएम हर बार हिन्दू समुदाय को कटघरे में खड़ा करते हैं। यदि करौली की हिंसा के आरोपियों पर सख्त कार्यवाही कर दी जाती तो 3 मई को जोधपुर में नमाज के बाद उपद्रव नहीं होता।
 
अजमेर में भी धरना:
विहिप और बजरंग दल की ओर से 16 मई को अजमेर के कलेक्ट्रेट पर धरना दिया गया। विहिप के नेता एडवोकेट शशि प्रकाश इंदोरिया ने बताया कि धरने में बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि प्रदेश में हो रहे साम्प्रदायिक तनाव के लिए मौजूदा कांग्रेस सरकार जिम्मेदार है। धरने में डॉ. अशोक मेघवाल, अलका गुर्जर, विनीता जैमन आदि को शामिल हुए, लेकिन अजमेर के सांसद और विधायक नदारद रहे। हालांकि विहिप की ओर से भाजपा के सांसद और सभी विधायकों को धरने में शामिल होने की विधिवत सूचना दी गई थी। विहिप के नेता एडवोकेट इंदोरिया ने कहा कि मुझे नहीं पता कि सांसद और विधायक धरने में शामिल क्यों नहीं हुए।
 
एंकर चोपड़ा थाने में उपस्थित:
न्यूज 18 चैनल के एंकर अमन चोपड़ा 16 मई को राजस्थान के डूंगरपुर स्थित बिछीबड़ा पुलिस स्टेशन पर उपस्थित हुए। यहां थानाधिकारी दिलीप दान ने चोपड़ा से गहन पूछताछ की। चोपड़ा पर साम्प्रदायिक माहौल खराब करने का आरोप है। विगत दिनों हाईकोर्ट ने चोपड़ा की अग्रिम जमानत लेने के साथ साथ ही निर्देश दिए थे कि 16 मई को प्रातः 10 बजे संबंधित थाने में पूछताछ के लिए उपलब्ध हो। हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुरूप ही चोपड़ा अपने वकीलों के साथ दिन भर थाने में रहे। यहां यह उल्लेखनीय है कि 22 अप्रैल को अमन चोपड़ा ने अपने विशेष कार्यक्रम में राजस्थान के राजगढ़ में मंदिर तोड़ने की तुलना दिल्ली के जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाने से की थी। जबकि राजगढ़ की घटना 17 अप्रैल की थी और जहांगीरपुरी में 20 अप्रैल को अतिक्रमण हटाए गए। लेकिन राजगढ़ का प्रकरण 22 अप्रैल को ही प्रकाश में आया था, इसलिए चोपड़ा ने जहांगीरपुरी का बदला राजगढ़ में लेने की बात अपने प्रसारण में कही। 

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