5 अगस्त को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी इलाज के लिए विदेश चलीं गईं और इधर राजस्थान में चुनाव आयोग ने 6 जिलों में पंचायती राज के चुनाव की घोषणा कर दी। अभी विधानसभा के मानसून सत्र और दो उपचुनावों की घोषणा भी होनी है। ऐसे में प्रदेश में मंत्रिमंडल फेरबदल या विस्तार और प्रमुख पदों पर राजनीतिक नियुक्तियों का मामला फिर टल गया हे। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन ने गत 28 व 29 जुलाई को जयपुर में बैठ कर कांग्रेस और 13 निर्दलीय विधायकों से मुलाकात कर फीडबैक लिया था, तभी से मंत्रिमंडल में फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियों का शोर होने लगा, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर दर्शाया है कि वे किसी दबाव में काम नहीं करेंगे। गत वर्ष जुलाई अगस्त की बगावत के बाद उन्होंने जो राजनीतिक जाजम बिछाई है अब उसी के अनुरूप राजस्थान में सरकार और कांग्रेस पार्टी चलेगी। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने शिक्षा मंत्री के तौर पर स्वयं को भले ही पांच दिन का मेहमान बताया हो, लेकिन 10 दिन गुजर जाने के बाद भी गहलोत ने बताया दिया है कि डोटासरा भी दोनों ही पदों पर बने रहेंगे। प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट भले ही 9 दिनों तक दिल्ली में रह गांधी परिवार के संपर्क में हों, लेकिन राजस्थान में तो वो ही होगा, जो अशोक गहलोत चाहेंगे। दिल्ली या बेंगलुरु से कोई भी नेता आए, लेकिन गहलोत पर कोई दबाव काम नहीं आएगा। मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा या विस्तार, इसका निर्णय भी गहलोत स्वयं करेंगे। गहलोत ने सभी चर्चाओं और अटकलों पर फिलहाल विराम लगा दिया है।
पायलट का धैर्य:
प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट ने भी अब अशोक गहलोत की राजनीति को समझ गए हैं, इसलिए लगातार धैर्य दिखा रहे हैं। पायलट ने भी अब कांग्रेस में रह कर ही मुकाबला करने की रणनीति बनाई है। पायलट भी समझते हैं कि गहलोत के पास 100 से भी ज्यादा विधायकों का समर्थन है, ऐसे में सरकार को कोई खतरा नहीं है। मौजूदा राजनीतिक हालात में पायलट पूरी तरह गांधी परिवार के भरोसे पर निर्भर हैं। अब पायलट की ओर से गांधी परिवार ही अशोक गहलोत से संवाद कर रहा है। पायलट को लगता है कि बदली हुई परिस्थितियों में गांधी परिवार और गहलोत के बीच खिंचाव हो गया है। यदि पहले वाले संबंध होते तो गहलोत अब तक कई बार दिल्ली के चक्कर लगा लेते। चूंकि अब गहलोत की दिल्ली जाने में कोई रुचि नहीं है, इसलिए कुमारी शैलजा और डीके शिवकुमार जैसे दिग्गज नेताओं को गहलोत से मिलने के लिए जयपुर आना पड़ रहा है। पायलट भी समझते हैं कि अब मंत्रिमंडल का फेरबदल टल गया है, लेकिन इससे पायलट और उनके समर्थक निराश नहीं है, क्योंकि उन्हें गांधी परिवार पर भरोसा है। वर्ष 2021 के जुलाई अगस्त माह में सचिन पायलट गांधी परिवार के साथ है, जबकि 2020 के जुलाई अगस्त में अशोक गहलोत गांधी परिवार के साथ थे। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई अगस्त में पायलट से प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद छीन लिया गया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्ष 2018 में कांग्रेस की सरकार बनवाने में पायलट की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। फिलहाल अशोक गहलोत के समर्थक खुश हैं।
पायलट का धैर्य:
प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट ने भी अब अशोक गहलोत की राजनीति को समझ गए हैं, इसलिए लगातार धैर्य दिखा रहे हैं। पायलट ने भी अब कांग्रेस में रह कर ही मुकाबला करने की रणनीति बनाई है। पायलट भी समझते हैं कि गहलोत के पास 100 से भी ज्यादा विधायकों का समर्थन है, ऐसे में सरकार को कोई खतरा नहीं है। मौजूदा राजनीतिक हालात में पायलट पूरी तरह गांधी परिवार के भरोसे पर निर्भर हैं। अब पायलट की ओर से गांधी परिवार ही अशोक गहलोत से संवाद कर रहा है। पायलट को लगता है कि बदली हुई परिस्थितियों में गांधी परिवार और गहलोत के बीच खिंचाव हो गया है। यदि पहले वाले संबंध होते तो गहलोत अब तक कई बार दिल्ली के चक्कर लगा लेते। चूंकि अब गहलोत की दिल्ली जाने में कोई रुचि नहीं है, इसलिए कुमारी शैलजा और डीके शिवकुमार जैसे दिग्गज नेताओं को गहलोत से मिलने के लिए जयपुर आना पड़ रहा है। पायलट भी समझते हैं कि अब मंत्रिमंडल का फेरबदल टल गया है, लेकिन इससे पायलट और उनके समर्थक निराश नहीं है, क्योंकि उन्हें गांधी परिवार पर भरोसा है। वर्ष 2021 के जुलाई अगस्त माह में सचिन पायलट गांधी परिवार के साथ है, जबकि 2020 के जुलाई अगस्त में अशोक गहलोत गांधी परिवार के साथ थे। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई अगस्त में पायलट से प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद छीन लिया गया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्ष 2018 में कांग्रेस की सरकार बनवाने में पायलट की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। फिलहाल अशोक गहलोत के समर्थक खुश हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-08-2021)
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