Saturday 16 January 2021

तो कांग्रेस पार्टी का बोझ सीएम अशोक गहलोत ने अपने कंधों से उतार कर गोविंद सिंह डोटासरा पर लाद दिया है।घोषणा के बाद भी न नव गठित प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पहली बैठक में आए और न कृषि कानूनों के विरोधी धरने में शामिल हुए।सचिन पायलट अभी भी निशाने पर हैं।

15 जनवरी को जयपुर में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से केन्द्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में धरना दिया गया। कांग्रेस की ओर से अधिकृत तौर पर घोषणा की गई कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी धरने में शामिल होंगे। यही वजह रही कि धरने में प्रदेश के अधिकांश मंत्री और संगठन के पदाधिकारी शामिल हुए। लेकिन सीएम अशोक गहलोत इस धरने में शामिल नहीं हुए। ऐसी स्थिति में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ही सबसे बड़े नेता के तौर पर उपस्थित रहे। पिछले पांच दिनों में यह दूसरा अवसर रहा, जब घोषणा के बाद भी सीएम गहलोत कांग्रेस के कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हुए। इससे पहले 10 जनवरी को नव गठित प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पहली बैठक में भी गहलोत उपस्थित नहीं रहे। चूंकि यह पहली बैठक थी, इसलिए घोषणा की गई कि सीएम गहलोत और प्रदेश प्रभारी अजय माकन भी उपस्थित रहेंगे। इस बैठक में माकन तो आए लेकिन सीएम गहलोत नहीं आए। जानकार सूत्रों के अनुसार बदली हुई परिस्थितियों में सीएम गहलोत ने प्रदेश कांग्रेस का बोझ अपने कंधों से उतार कर डोटासरा के कंधों पर लाद दिया है। अब सीएम गहलोत यह दिखाना चाहते हैं कि डोटासरा अपने दम पर प्रदेश कांग्रेस चलाने में समक्ष है। सब जानते हैं कि गत वर्ष 10 जुलाई को बगावत करने पर सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। तब से प्रदेश की राजनीति में पायलट का कद बहुत बड़ा था। हालांकि पायलट की बर्ख़ास्तगी के साथ ही गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था, लेकिन सीएम गहलोत ने कांग्रेस संगठन का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया। कांग्रेस संगठन का हर छोटा बड़ा काम सीएम गहलोत के माध्यम से ही होता था। जुलाई से लेकर दिसम्बर तक प्रदेश कार्यकारिणी का गठन ही नहीं हुआ। कांग्रेस के नेताओं को दिशा निर्देश भी सीएमआर से ही जा रहे थे। केन्द्र सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन की अगुवाई भी सीएम गहलोत ने ही की। सीएम गहलोत ने जुलाई में कांग्रेस संगठन का जो बोझ अपने कंधों पर डाला, उसे ही अब उतार रहे हैं। गहलोत जब दिखाना चाहते हैं कि डोटासरा के नेतृत्व में राजस्थान में कांग्रेस संगठन गतिशील है। सूत्रों के अनुसार सचिन पायलट अब भी गहलोत के निशाने पर हैं। गत जुलाई से पहले तक जो पायलट प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने का दावा करते थे, आज वो ही पायलट कांग्रेस के प्रदर्शनों में डोटासरा के नेतृत्व में शामिल होते हैं। 15 जनवरी को जयपुर में जो धरना हुआ, उसमें पायलट भी उपस्थित रहे। डोटासरा के सामने पायलट की स्थिति एक विधायक की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि सीएम गहलोत ने बड़ी चतुराई से पायलट के स्थान पर डोटासरा को कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर स्थापित कर दिया है। सचिन पायलट को जिस प्रकार भाजपा के शासन में संघर्ष करना पड़ रहा था, उसी प्रकार अब कांग्रेस के शासन में भी अपने राजनीतिक वजूद को कायम करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। भाजपा के शासन में तो कांग्रेस की बागडोर पायलट के पास  थी, लेकिन अब तो पायलट को अपने अकेले दम पर ही आगे बढऩा पड़ रहा है। अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते पायलट कितना आगे बढ़ते हैं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन पायलट फिलहाल अपनी शुरुआत बहुत नीचे स्तर से करनी पड़ रही है। पायलट आज कांग्रेस में किसी भी पद पर नहीं है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (16-01-2021)
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