Wednesday, 25 June 2025
पिता कृष्ण गोपाल जी गुप्ता ने भी आपातकाल के जख्म सहे थे। भभक देश के उन चुनिंदा अखबारों में शामिल है जिसका आपातकाल में ही प्रकाशन शुरू हुआ। संसद तक में गूंजा मामला। एक करोड़ की नसबंदी कर सवा लाख लोगों को जेल में डाला गया।
देश में आपातकाल लागू होने के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर पर 24 जून को न्यूज 18 (राजस्थान) चैनल पर रात 8 बजे लाइव प्रोग्राम प्रसारित हुआ। इस प्रोग्राम में पत्रकार के नाते मैंने भी भाग लिया। न्यूज 18 के इस प्रोग्राम की खास बात यह रही कि कांग्रेस और भाजपा के प्रवक्ताओं के साथ साथ करीब 100 वर्ष की उम्र वाले पूर्व सांसद पंडित रामकिशन जी ने भी भाग लिया। चैनल के एंकर हेमंत कुमार के सवाल पर पंडित रामकिशन ने बताया कि 25 जून 1975 को जब आपातकाल लागू हुआ तो अगले ही दिन उन्हें जेल में डाल दिया गया। आरोप लगाया कि मैं सरकार के खिलाफ साजिश कर रहा हंू। जेल में हमें परिजन से भी नहीं मिलने दिया गया। पंडित रामकिशन ने आपातकाल का आंखों देखा हाल सुनाया। कोई 21 माह के आपातकाल में देश में एक करोड़ लोगों की नसबंदी की गई और सवा लाख लोगों को जेल में डाला गया। अखबारों पर सेंसरशिप लागू की कगइ्र। इस सेंसरशिप का जख्म मेरे पिता कृष्ण गोपाल जी गुप्ता ने भी झेला। तब एक ही आदेश में देश के अनेक अखबारों का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। इसमें अजमेर से प्रकाशित भभक पाकिक्षक समाचार पत्र भी रहा। सरकार के इस आदेश को मेरे पिता और भभक के संपादक कृष्ण गोपाल जी गुप्ता ने प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया में चुनौती दी। कौंसिल ने यह माना कि भभक का प्रकाश नियमित होते हुए भी सरकार ने गलत तरीके से रोक लगाई हे। सरकार के आदेश को निरस्त कर कौंसिल ने आपातकाल में ही भभक का प्रकाशन शुरू करवाया। आपातकाल में सरकार के सिकी आदेश को चुनौती देना कठिन काम था, लेकिन मेरे पिता ने इस कठिन काम को करने की हिम्मत दिखाई। एक पैर खराब होने के बाद भी पिता ने कौंसिल के समक्ष भभक की नियमितता के जो सबूत दिखाए उसकी प्रशंसा काउंसिल के सदस्यों ने भी की। 1977 में सत्ता परिवर्तन के बाद जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में संयुक्त सरकार बनी तब तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में आपातकाल की ज्यादतियों के संबंध में भभक अखबार का भी उल्लेख किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि आपातकाल में जिन अखबारों को बंद किया गया, उन्हें सत्ता परिवर्तन के बाद एक ही आदेश में पुन: शुरू किया गया। लेकिन भभक देश के उन चुनिंदा अखबारों में शामिल हैं, जिसका प्रकाशन आपातकाल में ही शुरू हुआ। इसमें कोई दो राय नहीं कि आपातकाल में लोकतंत्र की हत्या की गई। लोगों से अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली गई। तमिलनाडु सहित कई राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया। यहां तक कि संविधान में कई बदलाव किए गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने फैसले को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर करवा दिया। चार चार जजों की वरिष्ठता को लांघकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए। यह सब इसलिए किया गया ताकि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रहे। यह बात अलग है कि आपातकाल के हटने और चुनाव होने पर खुद इंदिरा गांधी लोकसभा का चुनाव हार गई। आज कांग्रेस मौजूदा मोदी सरकार पर संविधान की हत्या करने का आरोप लगाती है। लेकिन आपातकाल बताता है कि लोकतंत्र की हत्या किस दल ने की है। आज भले ही समाजवादी पार्टी, राजद, डीएमके जैसे दल अपने राजनीतिक स्वार्थों की खातिर कांग्रेस का समर्थन कर रहे हो, लेकिन आपातकाल में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, करुणानिधि जैसे नेताओं को भी जेल में डाला गया।
S.P.MITTAL BLOGGER (25-06-2025)
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