Wednesday 17 August 2016

40 दिन के कफ्र्यू के बाद भी बाज नहीं आ रहे पत्थरबाज। आखिर कश्मीर घाटी के हालात किसके नियंत्रण में हैं?

#1666
40 दिन के कफ्र्यू के बाद भी बाज नहीं आ रहे पत्थरबाज। 
आखिर कश्मीर घाटी के हालात किसके नियंत्रण में हैं?
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17 अगस्त को कश्मीर घाटी में कफ्र्यू लगे हुए चालीस दिन पूरे हो गए। चालीस दिन कफ्र्यू में रहने के बाद भी 17 अगस्त को घाटी में एक बार फिर सुरक्षा बलों पर हमला किया गया। जिसमें हमारे दो जवान शहीद हो गए। देश के किसी भी हिस्से में किसी भी कारण से जब कफ्र्यू लगता है तो लोग दो-चार दिन में ही परेशान हो जाते हैं। समाज के सभी पक्षों के लोग प्रशासन से हाथ जोड़ कर आग्रह करते हैं कि कफ्र्यू को हटाया जाए। ताकि जरूरी खाद्य सामग्री बाजार से ली जा सके, लेकिन कश्मीर घाटी में चालीस दिन तक कफ्र्यू रहने के बाद भी सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं। इसलिए यह सवाल उठा है कि आखिर कश्मीर घाटी में किसका नियंत्रण है? क्या कफ्र्यू के दौरान भी अलगाववादियों को सभी  प्रकार की सुविधाएं मिल रही हैं? 17 अगस्त को ही दैनिक भास्कर में एक खोजपूर्ण स्टोरी छपी है। इस स्टोरी में बताया गया कि घाटी के युवकों को सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने और हमला करने के पैसे मिलते हैं। एक वृद्ध महिला का तो कहना था कि यदि हम भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के समर्थन में नारे नहीं लगाते हैं तो अलगाववादी थप्पड़ मारते हैं। भास्कर में जो स्टोरी छपी है उससे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान के इशारे पर सक्रिय अलगाववादी कश्मीर घाटी के आम मुसलमानों की भावनाओं को दबा रहे हैं। यदि अलगाववादियों का डर नहीं हो तो हजारों मुसलमान घरों से बाहर निकल कर कफ्र्यू हटाने का आग्रह करें। हालांकि बदली हुई परिस्थितियों में महबूबा मुफ्ती भी केन्द्र सरकार के खिलाफ बोलने लगी हैं। यानी अब अलगाववादियों का दबाव महबूबा पर भी बढ़ गया है। आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब लगातार चालीस दिनों से कफ्र्यू लगा हुआ है। सब जानते हैं कि पाकिस्तान एक सुनियोजित तरीके से घाटी पर अपना दबाव बना रहा है। पहले हिन्दुओं को पीट-पीट कर इसलिए भगाया ताकि घाटी पर नियंत्रण किया जा सके। यदि आज घाटी में हिन्दू समुदाय के लोग भी होते तो लगातार चालीस दिनों तक कफ्र्यू नहीं रहता। देश में जो लोग कश्मीर के अलाववादियों के हिमायती हैं, उन्हें अब यह बताना चाहिए कि कश्मीर के हालातों को सामान्य कैसे किया जाए? कांग्रेस और नेशनल  कॉन्फ्रेंस के नेता शांति बहाली की बात तो करते हैं, लेकिन घाटी में जाकर उन अलगाववादियों को नहीं समझाते, जो आज भी सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले कर रहे हैं। 
(एस.पी. मित्तल)  (17-08-2016)
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