यदि अखबारों में छपी खबरें सही हैं तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को खेल राज्यमंत्री अशोक चांदना को बर्खास्त कर देना चाहिए। यदि चांदना बर्खास्त नहीं होते हैं तो फिर अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री होने पर ही सवाल उठते हैं। 12 सितंबर को प्रदेश के सभी दैनिक अखबारों में छपा कि कांग्रेस की कैंपेन कमेटी की बैठक में सीएम गहलोत और मंत्री चांदना के बीच जमकर विवाद हुआ। चांदना के 10 सितंबर के धरना प्रदर्शन पर सीएम गहलोत ने नाराजगी जताई। इस पर चांदना ने कहा कि मैं मंत्री होकर बिजली का एक ट्रांसफार्मर भी नहीं बदलवा सकता तो यह मंत्री पद आप अपने पास रख लो। मुझे ऐसा मंत्री पद नहीं चाहिए। मैं जनता की भलाई के लिए आंदोलन करता रहंूगा। अशोक गहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं। गहलोत स्वयं बताएं कि चांदना ने भरी मीटिंग में मुख्यमंत्री के पद को जो चुनौती दी, उसके बाद क्या चांदना का मंत्री पद रहना चाहिए? कोई मंत्री 20 लोगों की मौजूदगी में अपने मुख्यमंत्री से कहे कि यह मंत्री पद आप अपने पास रख लो, मुझे नहीं चाहिए और तब भी ऐसा विधायक मंत्री बना रहे तो कौन जिम्मेदार हैं? क्या चांदना ने सीधे मुख्यमंत्री को चुनौती नहीं दी है? यह सही है कि चांदना को मंत्री बनाए रखना अशोक गहलोत की राजनीतिक मजबूरी है, लेकिन मुख्यमंत्री पद का कुछ तो स्वाभिमान और सम्मान होना चाहिए। कैंपेन कमेटी की बैठक में सीएम ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से कहा कि जो मंत्री अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना देता है उसे पार्टी अनुशासनहीनता का नोटिस जाए। डोटासरा चांदना को नोटिस देंगे या नहीं, यह तो अभी पता नहीं है, लेकिन चांदना ने कांग्रेस का अनुशासन नहीं बल्कि मंत्रिपरिषद में अनुशासन हीनता की है। ऐसे में कार्यवाही पार्टी अध्यक्ष को नहीं बल्कि मुख्यमंत्री को ही करनी है। खेल मंत्री चांदना पहले भी मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव कुलदीप रांका के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी कर चुके हैं। तब सीएम गहलोत ने कहा था कि अशोक चांदना पर काम का बोझ ज्यादा है, इसलिए ऐसी बातें कहीं हैं। तब गहलोत ने चांदना को कोई हिदायत देने के बाए पीठ थपथपा दी। यदि कुलदीप रांका वाले प्रकरण में सीएम गहलोत सख्त रवैया अपनाते तो आज अशोक चांदना की हिम्मत मुख्यमंत्री को आंखें दिखाने की नहीं होती। सीएम अशोक गहलोत माने या नहीं, लेकिन मंत्रियों और कुछ विधायकों की दादागिरी से प्रशासन के बड़े आईएएस और आईपीएस भी दुखी और परेशान हैं। अफसरों का गुस्सा भी कभी भी फूट सकता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (13-09-2023)
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