Thursday 30 April 2015

देखते रह गए अजमेर के राजनेता और डॉक्टर मंत्री राठौड़ ने डॉ. अग्रवाल को बनाया टेम्प्रेरी प्रिंसीपल

अजमेर के भाजपा के राजनेता और चिकित्सक देखते ही रह गए और प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने डॉ. के.सी. अग्रवाल को अजमेर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का टेम्प्रेरी प्रिंसीपल बना दिया। यदि डॉ. अग्रवाल ने राठौड़ की उम्मीद के मुताबिक काम कर दिया तो डॉ. अग्रवाल को ही स्थायी प्रिंसीपल बना लिया जाएगा। यह राठौड़ का ही कारनामा रहा कि 30 अप्रैल को सुबह आदेश जारी करवाए और दोपहर को डॉ. अग्रवाल ने अजमेर में टेम्प्रेरी प्रिंसीपल का पदभार संभाल लिया। असल में डॉ. अग्रवाल को टीबी विभाग में रिक्त पड़े विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्ति दी गई है लेकिन सीधे मंत्री से संबंध होने की वजह से डॉ. अग्रवाल को प्रिंसीपल का भी चार्ज दिलवा दिया गया। डॉ. अशोक चौधरी 30 अप्रैल को ही सेवानिवृत्त हुए हैं। डॉ. अग्रवाल के नाम को स्वास्थ्य मंत्री राठौड़ ने ऐन मौके तक छिपाए रखा। अस्पताल में सबसे करीबी चिकित्सक डॉ. अशोक मेहरडा को कार्यवाहक प्रिंसीपल बनाया जाएगा। यानि डॉ. चौधरी, डॉ. मेहरडा को चार्ज देंगे। यह राठौड़ का ही कारनामा है कि पूर्व में जिन चिकित्सकों ने प्रिंसीपल पद के लिए इंटरव्यू दिए थे उन पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया। भाजपा की नेत्री कमला गोखरू के पति और अस्पताल के हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. आर.के. गोखरू के नाम को एक प्रभावशाली मंत्री की आपत्ति थी इसलिए राठौड़ को जोधपुर के एमडीएम अस्पताल के डॉ. अग्रवाल को अजमेर में फिट करने में और आसानी हो गई। डॉ. अग्रवाल की अजमेर में नियुक्ति पर न तो अजमेर के राजनेता की राय ली गई और न ही चिकित्सकों की वरिष्ठता का ख्याल रखा गया। ऐसा नहीं कि अजमेर में भाजपा के प्रभावशाली नेता नहीं है। सांसद और केन्द्रीय मंत्री सांवरलाल जाट, प्रदेश के राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रन्नोति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकारसिंह लखावत तथा भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री व राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र सिंह यादव सभी को दरकिनार करते हुए राठौड़ ने अपने चेहते डॉ. अग्रवाल की नियुक्ति कर दी। डॉ. अग्रवाल के लिए न तो अजमेर के किसी नेता ने सिफारिश की और न ही डॉ. अग्रवाल ने अजमेर का पिं्रसीपल बनने का कोई इंटरव्यू दिया। राठौड़ के दखल से जिस प्रकार डॉ. अग्रवाल की नियुक्ति हुई है उससे चिकित्सा क्षेत्र में अनेक तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
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उधर नेपाल में गौमांस मसाले की सप्लाई तो इधर नवाज का पीएम मोदी को फोन

30 अप्रैल को पाकिस्तान की करतूत उजागर करने वाली दो घटनाएं एक साथ हुई। नेपाल में भूकम्प पीडि़तों को पाकिस्तान से जो राहत सामग्री प्राप्त हुई है उसमें गौमांस मसाले के पैकेट शामिल है। जब यह पैकिट लोगों तक पहुंचे तो नेपाल में हंगामा खड़ा हो गया क्योंकि नेपाल में सर्वाधिक हिन्दू परिवार है जो मांस का सेवन नहीं करते हैं। नेपाल के नागरिक पहले से ही भूकम्प से परेशान है और उस पर पाकिस्तान ने गौ मांस मसाले के पैकिट भेजकर जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। इधर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ ने 30 अप्रैल को ही पीएम नरेन्द्र मोदी को टेलीफोन किया। नवाज ने नेपाल में भारत के प्रयासों की सराहना तो की, साथ ही सुझाव दिया कि नेपाल में सार्क देशों को संयुक्त प्रयासों से मदद का अभियान चलाया जाए। इस समय नेपाल में सबसे ज्यादा मदद भारत की ओर से की जा रही है जिसकी प्रशंसा अमेरिका और चीन जैसे देशों ने भी की है। आज की प्रशंसा से ईष्या रखते हुए नवाज ने सार्क देशों के संयुक्त अभियान का सुझाव दिया है। पाकिस्तान नहीं चाहता कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रशंसा हो।
बाबा रामदेव की दवा पर बवाल
योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि फार्मेसी द्वारा बेची जाने वाली 'पुत्र जीवक दवाÓ को लेकर 30 अप्रैल को राज्यसभा और देश भर में जोरदार हंगामा हुआ। राज्यसभा सांसद के.सी. त्यागी ने कहा कि एक और पीएम मोदी हरियाणा से बेटी बचाओ अभियान की शुरूआत करते है तो हरियाणा सरकार के योग राजदूत बाबा रामदेव द्वारा पुत्र जीवक दवा बेची जा रही है। इस दवा का पैकेट पतजंलि फार्मेसी की दुकान से उन्होंने स्वयं खरीदा है। देश में वैसे ही लड़कियों की संख्या घटती जा रही है। उस पर बाबा रामदेव यदि पुत्र जीवक दवा बेचते है तो फिर प्रधानमंत्री का बेटी बचाओ अभियान भी विफल हो जाएगा। त्यागी ने मांग की है कि बाबा रामदेव की सभी दवाओं पर तत्काल रोक लगाई जाए और बाबा को गिरफ्तार कर जेल में डाला जाए। राज्यसभा में पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाब नबी आजाद और समाजवादी पार्टी के सांसद जया बच्चन ने भी बाबा रामदेव के खिलाफ जमकर जहर उगला। वहीं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी लढ्ढा ने कहा कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाएगी। पतजंलि फार्मेसी की ओर से कहा गया है कि पुत्र जीवक दवा सिर्फ पुत्र प्राप्ति के लिए नहीं है बल्कि यह बांझपन दूर करने के लिए है। इस दवा का लिंग निर्धारण से कोई संबंध नहीं है। जिस तरह से कांग्रेस ने बाबा पर हमला बोला है उससे प्रतीत होता है कि कांग्रेस के नेताओं के मन में बाबा के प्रति बहुत गुस्सा है। यह गुस्सा इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस के शासन को उखाड़ फैंकने में बाबा रामदेव की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। कांग्रेस के शासन में बाबा को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई अब भाजपा की केन्द्र और उनके राज्यों की सरकारें कर रही है। बाबा के उत्पादों की बिक्री से होने वाले मुनाफे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सभी न्यूज चैनलों पर खबरों से पहले बाबा का विज्ञापन दिखाया जाता है। अखबारों में भी एक पेज का नहीं बल्कि दो पेज के विज्ञापन एक साथ छपते हैं। बाबा की दवाओं ने मीडिया को भी मालामाल कर दिया है।
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Wednesday 29 April 2015

तो अनिता भदेल देवनानी को क्यों नहीं लिखती सिफारिशी पत्र

राजस्थान पत्रिका के अजमेर संस्करण में 28 अप्रैल को के.आर.मुंडियार की एक स्टोरी प्रकाशित हुई है। राजनीति में महिलाओं की भूमिका पर आधारित इस स्टोरी में अजमेर उत्तर क्षेत्र के भाजपा विधायक और स्कूली शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी और दक्षिण क्षेत्र की भाजपा विधायक व महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल की भावनाएं भी लिखी गई है। देवनानी और भदेल ने बड़े गर्व के साथ कहा है कि राजनीति में महिलाओं का पूरा सम्मान है। यदि देवनानी और भदेल ने वाकई सच बोला है तो सवाल उठता है कि श्रीमती भदेल अपने विधानसभा क्षेत्र के शिक्षकों के तबादले के लिए सिफारिशी पत्र देवनानी को क्यों नहीं लिखती हैं? शिक्षकों के तबादले के लिए देवनानी के पास भाजपा के मंत्रियों और विधायकों के सिफारिशी पत्र ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के विधायकों के पत्र भी है, लेकिन पूरे राजस्थान में एक मात्र विधायक अनिता भदेल होंगी जिन्होंने देवनानी को सिफारिशी पत्र नहीं लिखा। दक्षिण विधानसभा क्षेत्र का कोई भाजपा कार्यकर्ता किसी शिक्षक को लेकर भदेल के पास जाता भी है तो श्रीमती भदेल उस कार्यकर्ता के हाथ जोड़ लेती है। श्रीमती भदेल का कहना होता है कि वे मुख्यमंत्री से तो सिफारिश कर देगी लेकिन देवनानी से नहीं करेगी। कार्यकर्ताओं की माने तो भदेल का यहां तक कहना है कि यदि मैंने किसी शिक्षक के लिए देवनानी को पत्र लिख दिया तो ऐसा शिक्षक या तो सस्पेंड हो जाएगा या फिर उसका तबादला जैसलमेर-बाड़मेर हो जाएगा। कमोबेस यही स्थिति देवनानी की अनिता भदेल के विभागों को लेकर है। देवनानी ने भी महिला एवं बाल विकास विभाग के संबंध में कोई पत्र अनिता भदेल को नहीं लिखा है। इसके बावजूद भी देवनानी और भदेल का दावा है कि राजनीति में महिलाओं का सम्मान है।
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पूर्व मंत्री नसीम अख्तर ये कैसी दिलेरी

पूर्व मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर ने 29 अप्रैल को अजमेर के निकट गेगल में बने टोल नाके पर जो दिलेरी दिखाई उस पर सवाल उठना लाजमी है। इस टोल नाके पर 29 अप्रैल से ही टोल वसूली का काम शुरू हुआ। श्रीमती अख्तर और उनके पति इंसाफ अली सैकड़ों ग्रामीणों को लेकर टोल नाके पर पहुंच गए। ग्रामीणों ने नाके के डंडों को उखाड़ फेंका और केबिन में जमकर तोडफ़ोड़ की। श्रीमती अख्तर और ग्रामीण सड़क पर बैठ गए तथा टोल वसूली का काम बंद करवा दिया। इसमें कोई दोराय नहीं कि अजमेर और किशनगढ़ के बीच बने इस टोल नाके की वजह से स्थानीय नागरिकों और ग्रामीणों को भारी परेशानी होगी।
अब अजमेर से किशनगढ़ जाने वाले सैकड़ों मार्बल व्यावसाइयों को प्रतिदिन 45 रुपए गेगल टोल नाके पर चुकाने होंगे, यानि आने जाने के 90 रुपए देने होंगे। किशनगढ़ के टोल नाके पर पहले से ही 90 रुपए एक तरफ से वसूले जा रहे हैं। यानि अजमेर से जयपुर जाने वाले वाहन मालिक को अब 135 रुपए चुकाने होंगे। सवाल उठता है कि जब गेगल में यह टोल नाका बन रहा था, तब प्रदेश और देश में किसका शासन था? राजस्थान में और केन्द्र में कांग्रेस का शासन था और श्रीमती अख्तर के पुष्कर विधानसभा क्षेत्र के गेगल में ही टोल नाका बन रहा था।
श्रीमती अख्तर ने शिक्षा राज्यमंत्री होते हुए भी तब टोल नाके के निर्माण का विरोध नहीं किया। ऐसा नहीं कि तब ग्रामीणों ने चुप्पी साधे रखी है, लेकिन श्रीमती अख्तर ने टोल नाके का विरोध करने वाले ग्रामीणों का ही मुंह बंद करवा दिया। श्रीमती अख्तर और उनके पति इंसाफ अली की मदद से ही संबंधित कंपनी टोल नाका बनाने में सफल हुई। यदि क्षेत्रीय विधायक की हैसियत से श्रीमती अख्तर का समर्थन नहीं मिलता तो कांग्रेस के शासन में भी गांव वाले इस टोल नाके का निर्माण नहीं होने देते। गेगल पर टोल वसूली कांग्रेस के शासन में ही शुरू होनी थी, लेकिन तकनीकी कारणों से कंपनी वसूली का काम शुरू नहीं कर सकी। यदि तब वसूली शुरू हो जाती तो श्रीमती अख्तर ही इस टोल नाके का उद्घाटन करती। चूंकि अब राजपाट छिन गया है, इसलिए श्रीमती अख्तर को ग्रामीणों की पीड़ा सताने लगी है। इसलिए 29 अप्रैल को श्रीमती अख्तर ग्रामीणों का हमदर्द बनकर टोल नाके पर पहुंच गई। इसमें श्रीमती अख्तर का भी कोई दोष नहीं है, यह तो राजनीति ही गंदी है। अब भाजपा के क्षेत्रीय विधायक सुरेश रावत और भाजपा के सांसद व केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट खामोश बैठे हैं। पहले नसीम अख्तर को और अब रावत और जाट को ग्रामीणों के दर्द से कोई सरोकार नहीं। 29 अप्रैल को श्रीमती अख्तर ने जो हो हल्ला किया, उसका परिणाम यह निकला कि गेगल टोल नाके की 20 किमी की परिधि में आने वाले गांवों के ग्रामीणों के वाहन टोल मुक्त हो गए हैं। समझौते के मुताबिक जो वाहन मालिक संबंधित पुलिस स्टेशन से निवास का प्रमाण पत्र लाकर देगा, उसे संबंधित कंपनी फ्री पास दे देगी।
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Tuesday 28 April 2015

कहां है अजमेर के पांच-पांच मंत्री

दो दिन में दो किसानों ने की खुदकुशी
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने 28 अप्रैल को अजमेर पहुंचकर उन दो किसानों के परिजन से मुलाकात की, जिन्होंने फसल खराबे के बाद खुदकुशी कर ली। पायलट तो पीडि़त परिजन से मिल लिए, लेकिन सवाल उठता है, जिले के वो पांच मंत्री कहा है, जो किसानों के वोट से सत्ता का सुख भोग रहे हैं। पायलट ने अपने दौरे में पीसांगन तहसील के अलीपुरा के मृतक किसान मुबारक तथा मसूदा तहसील के फतेहगढ़ के मृतक किसान महेन्द्र रावत के परिजन से मुलाकात की और कहा कि राज्य की भाजपा सरकार को दम तोड़ते किसानों की कोईचिन्ता नहीं है। अब तक प्रदेश में करीब 70 किसानों ने मौत को गले लगा लिया है। 35 प्रतिशत खराबे तक को मुआवजे की परिधि में शामिल तो कर लिया है, लेकिन पटवारियों ने 20 प्रतिशत ही खराबा दिखाया है, जिसकी वजह से किसानों को मुआवजा नहीं मिल रहा हैं। ऐसी स्थिति में किसान खुदकुशी कर रहा है। पायलट ने भले ही राजनीतिक नजरिए से मृतक किसानों के परिजन से मुलाकात की है, लेकिन सवाल उठता है कि अजमेर के क्षेत्रीय सांसद व केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट,राजस्थान धरोहर संरक्षण प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत, स्कूली शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी, महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती अनिता भदेल तथा राज्यसभा के सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव कहां है। ये पांचों दिग्गज अजमेर जिले से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनमें से एक ने भी खुदकुशी करने वाले किसानों के परिजन से मुलाकात नहीं की है। दौसा जिले के किसान गजेन्द्र सिंह ने जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की रैली में खुदकुशी कर ली तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मृतक किसान के परिजन से मिलने के लिए उसके गांव पहुंच गए। जब अमित शाह व वसुंधरा राजे गजेन्द्र सिंह के गांव पहुंच सकते हैं, तो क्या अजमेर के पांच दिग्गज नेता अपने ही जिले में मृतक किसानों के परिजन से मुलाकात नहीं कर सकते। सांवरलाल जाट तो स्वयं को किसान नेता मानते हैं। इसी प्रकार देवनानी जिले के प्रभारी मंत्री है, लेकिन इन दोनों ने अभी तक भी पीडि़त परिजनों से मुलाकात नहीं की है। अलबत्ता मसूदा की क्षेत्रीय भाजपा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा व उनके पति समाजसेवी भंवर सिंह पलाड़ा ने मृतक महेन्द्र रावत के परिजन से मुलाकात अवश्य की है।
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दबंग है दुष्कर्म का आरोपी शिक्षक

अजमेर के निकटवर्ती भांवता गांव के राजकीय सीनियर सैकंडरी स्कूल के शिक्षक सुभाष चौधरी को नवीं कक्षा की छात्रा के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। अदालत ने चौधरी को अब जेल भेज दिया है। चौधरी फिलहाल भले ही जेल में हो, लेकिन चौधरी को जानने वालों का मानना है कि अपनी दबंगता से चौधरी थोड़े ही दिनों में जेल से बाहर आ जाएगा। चौधरी का न केवल पुलिस विभाग में बल्कि शिक्षा विभाग में रोब-रुतबा है। चौधरी पहले अजमेर के निजी शिक्षण संस्थान सेंट पॉल स्कूल में कार्यरत थे, लेकिन कांग्रेस के शासन में समायोजन योजना के अंतर्गत चौधरी ने सरकारी नौकरी हासिल कर ली। चौधरी की नियुक्ति बाघसूरी स्कूल में हुई भी, लेकिन शिक्षा विभाग में अपने प्रभाव से चौधरी ने निकटवर्ती राजगढ़ की स्कूल में प्रतिनियुक्ति करवा ली। प्रतिनियुक्ति पर प्रतिनियुक्ति करवाते हुए चौधरी ने भांवता स्कूल में शिक्षण का कार्य शुरू कर दिया। चौधरी अगस्त 2014 में राजस्थान शिक्षक संघ (राधा कृष्णन) की माध्यमिक शिक्षा के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। इस नियुक्ति पर चौधरी के समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित हुए। समाज के प्रभावशाली और पुलिस के अधिकारियों तक ने चौधरी की नियुक्ति पर अपनी ओर से बधाई दी, चूंकि चौधरी जमीन के कारोबार से भी जुड़े हुए हैं, इसलिए प्रशासनिक क्षेत्रों में भी चौधरी का दबदबा है। राधाकृष्णन शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय सोनी ने स्पष्टीकरण दिया है कि चौधरी की गैर जिम्मेदाराना हरकतों को देखते हुए सितम्बर 2014 में ही माध्यमिक शिक्षा के अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया था। चौधरी का वर्तमान में राधाकृष्णन संघ से कोई सरोकार नहीं है। जानकारों का मानना है कि पुलिस व शिक्षा विभाग में चौधरी का जो दबदबा है, उसकी वजह से दुष्कर्म का मामला रफा-दफा हो जाएगा। पीडि़त छात्रा के परिजन पर दबाव डालने का काम भी शुरू हो गया है और इस मामले में पुलिस और शिक्षा विभाग के अधिकारी सहयोग भी कर रहे है। चौधरी को जब शिक्षक संघ का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तब जो विज्ञापन प्रकाशित हुए उन्हें मेरे फेसबुक अकाउंट पर देखा जा सकता है।
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Monday 27 April 2015

एबीवीपी शिक्षा बोर्ड के घोटाले और एनएसयूआई एमडीएस की शराब पार्टी पर चुप

27 अप्रैल को एबीवीपी और एनएसयूआई के कर्मकर्ताओं ने अपने-अपने नजरिए से अजमेर में विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन वहीं राजस्थान शिक्षा बोर्ड में हुए नम्बरों के घोटाले पर एबीवीपी ने जुबान नहीं खोली तो एनएसयूआई ने एमडीएस यूनिवर्सिटी में हुई शराब पार्टी पर चुप्पी साधे रखी। एबीवीपी के प्रदेश सहमंत्री चन्द्रभान गुर्जर के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने एमडीएस यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार के समक्ष प्रदर्शन किया और मांग की कि यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाऊस में छात्र संघ अध्यक्ष नरेन्द्र शर्मा और एनएसयूआई के अध्यक्ष सुरेन्द्र कीलका तथा अन्य कार्यकर्ताओं ने जो शराब पार्टी की है उस पर सख्त कार्यवाही की जाए। शिक्षा के मंदिर में एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं द्वारा शराब पार्टी करना अशोभनीय है। इसी प्रकार एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने राजस्थान शिक्षा बोर्ड के मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। कार्यकर्ताओं ने कहा कि बोर्ड प्रशासन की मिलीभगत से परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं में शिक्षकों को रिश्वत देकर नम्बर बढ़वाए जा रहे है। यानि दोनों छात्र संगठनों ने अपने-अपने नजरिए से प्रदर्शन तो किए लेकिन स्वयं पर लगे आरोपों पर चुप्पी साधे रखी। एबीवीपी की ओर से बार-बार यह दावा किया जाता है कि वह भाजपा का अग्रिम संगठन नहीं है, लेकिन भाजपा के शासन में हुए नम्बरों के घोटाले में एबीवीपी की खामोशी बताती है कि एबीवीपी किस राजनीतिक दल से जुड़ा है।
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नेपाल में पीएम मोदी की तत्परता

संघ की सक्रियता की खबरें गलत
सरकार चलाने के कामकाज को लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी की आलोचना हो सकती है, लेकिन 25 अप्रैल को नेपाल में आए भीषण भूकंप में मोदी ने जो तत्परता दिखाई है, उसकी अब सब जगह प्रशंसा भी हो रही है। इस मामले में 27 अप्रैल को केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में जो बयान दिया, वह तो और भी चौंकाने वाला है। सिंह ने कहा कि मैं देश का गृहमंत्री हंू और 25 अप्रैल को मुझे भी नेपाल में भूकंप के में जानकारी पीएम नरेन्द्र मोदी के टेलीफोन से मिली। सिंह ने बताया कि 25 अप्रैल को वे  एक कार्यक्रम में पीएम के साथ शामिल थे और जब कार्यक्रम की समाप्ति के बाद अपने घर पहुंचे तो तुरंत पीएम मोदी का फोन आया, जिसमें कहा कि नेपाल में भूकंप आया है। इसलिए अभी तीन बजे एक बैठक रखी गई है। उन्होंने कहा कि मैं देश का गृहमंत्री हंू, लेकिन मुझसे भी पहले पीएम के पास भूकंप की जानकारी पहुंच गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं पर पीएम की कितनी पैनी नजर है। इतना ही नहीं भूकंप की प्राथमिक जानकारी से ही गंभीरता का अंदाजा लगाया और दोपहर तीन बजे बैठक भी कर ली। यही वजह रही कि नेपाल की मदद करने के लिए भारत की सेना सबसे पहले पहुंच गई। इस समय एनडीआरएफ की दस टीमें नेपाल में काम कर रही है तथा छह और टीमे भेजी जा रही हैं। वायु सेना के 13 विमान राहत सामग्री लेकर नेपाल में पहुंच गए हैं। ऑपरेशन मैत्री के तहत नेपाल की हर संभव मदद की जाएगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि नेपाल की मदद के लिए पीएम मोदी ने तत्परता दिखाई है। 25 अप्रैल को दोपहर जब नेपाल में भूकंप आया तब भारत में तीन बजे उच्च स्तरीय बैठक की और फिर अगले दिन 26 अप्रैल को भी बैठक का सिलसिला जारी रखा। नेपाल में करीब चार हजार लोग मौत के शिकार हो चुके हैं तथा छह हजार लोग को अस्पतालों में भर्ती है। मकानों के मलबे में दबे लोग जब बाहर निकलेंगे, तब पता चलेगा कि कितनी मौते हुई। जागरुक लोगों को याद होगा कि गत वर्ष जब कश्मीर में बाढ़ आई थी, तब भी पीएम मोदी ने राहत के लिए जो तत्परता दिखाई, उसकी प्रशंसा तब के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी की थी। यानि किसी भी सकंट में पीडि़तों की मदद करने में पीएम मोदी आगे रहते हैं।
नेपाल में संघ नहीं है सक्रिय
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होजबोले ने 27 अप्रैल को स्पष्ट किया है कि भूकंप पीडि़तों की मदद के लिए भारत से संघ का कोई स्वयं सेवक नेपाल नहीं गया है। इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर जो खबरे चल रही हैं वे भ्रामक हैं। भूकंप पीडि़तों की मदद करते जो स्वयं सेवक दिखाए जा रहे हंै वे भी गुजरात में आए 2001 के भूकंप के समय के हैं। होजबोले ने कहा कि नेपाल के हालातों की जानकारी लेने के लिए वे स्वयं नेपाल आ गए हैं और नेपाल में संघ की नेपाली शाखा हिन्दू स्वयं सेवक संघ को सक्रिय कर रहे हैं। एचएसएस के स्वयं सेवक अब नेपाल सरकार के साथ मिलकर राहत कार्य करेंगे। होजबोले ने स्पष्ट किया फिलहाल भारत से स्वयं सेवकों को नेपाल नहीं भेजा गया है। होजबोले के इस स्पष्टीकरण के बाद भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारीणी की सदस्य साइना एन.सी. का ट्वीट भी गलत साबित हो गया है, जिसमें कहा गया था कि संघ के 20 हजार स्वयं सेवक नेपाल जा रहे हैं। साइना एन.सी. की तरह संघ के स्वयं सेवकों ने भी सोशल मीडिया पर नेपाल में राहत कार्य करने के दावे किए थे, लेकिन जिस तरह संघ ने गलत खबरों पर अपना स्पष्टीकरण दिया है, वह भी प्रशंसनीय है।
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Sunday 26 April 2015

मुसलमान हो तो दरगाह दीवान जैसा

यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं है बल्कि एक ऐसी मिसाल है जिसका अनुसरण सभी लोगों को करना चाहिए। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन  चिश्ती की दरगाह के दीवान और मुस्लिम धर्मगुरु सैयद जेनुअल आबेदीन ने 26 अप्रैल को ईटीवी के उर्दू चैनल को एक इंटरव्यू दिया है। इस इंटरव्यू में दीवान ने कहा कि ख्वाजा साहब के उर्स और अन्य दिनों में लाखों रुपए मूल्य की चादरे पवित्र मजार पर पेश की जाती है। अच्छा हो कि यदि चादर पेश करने के बजाय किसी गरीब परिवार की लड़की की शादी, बीमार व्यक्ति का इलाज, असहाय और जरुरतमंद व्यक्ति की मदद जैसे सामाजिक कार्य करने चाहिए। उन्होंने कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह में खड़े होकर दुआ करने मात्र से ही मुराद पूरी हो जाती है। जो लोग यह समझते है कि कीमती चादर या मोटा नजराना देने से मुराद पूरी होगी उन्हें धर्म और आस्था के सही मायने समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम धर्म में तो जकात का विशेष महत्व बताया गया है और फिर ख्वाजा साहब तो एक फकीर सूफी थे। ख्वाजा साहब ने इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम दिया। जो लोग ख्वाजा साहब को मानते है उन्हें उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि दरगाह दीवान का यह बयान वर्तमान हालातों में महत्वपूर्ण और साहसिक है। यदि चादर की कीमत की राशि गरीब परिवार को ही जाएगी तो उसके दिल और मन से जो दुआ निकलेगी वह ज्यादा कारगर साबित होगी।
दीवान आबेदीन ने यह बयान तब दिया है,जब इन दिनों अजमेर में ख्वाजा साहब का  803वां सालाना उर्स चल रहा है। इस समय लाखों जायरीन दरगाह में जियारत के लिए आए हुए है। उर्स के समय में ही लाखों रुपए की कीमत की चादरे भी पेश की गई है। कीमती चादरे पाकिस्तान से आए जायरीनों ने भी पेश की है। देश के पीएम और कितने ही प्रांतों के सीएम ने भी चादरे पेश कराई है। दरगाह दीवान ने राजनेताओं को संकेत दिए है कि वह चादर भेजने के बजाए दरगाह में आने वाले जायरीन की सुविधा के लिए काम करें। इसे अफसोसजनक ही कहा जाएगा कि दरगाह के आसपास जायरीन की सुविधा के लिए एक भी सुलभ कॉम्पलेक्स नहीं है। दरगाह कमेटी ने हाल ही में जो सुलभ कॉम्पलेक्स बनाया है, उसमें शुल्क वसूला जाता है। जो लोग चादरे पेश करते है क्या वह दरगाह के आसपास ऐसा सुलभ कॉम्पलेक्स नहीं बनवा सकते, जहां जायरीन को नि:शुल्क सुविधा मिले। दीवान ने 25 अप्रैल को जो मुस्लिम देशों को लेकर बयान जारी किया है, वह भी साहसिक है। इस बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, सीरिया आदि मुस्लिम देशों में जहां शिया और सुन्नी आपस में खूनी संघर्ष कर रहे हैं, वहीं भारत में मुसलमान हिन्दुओं के साथ अमन चैन के साथ रह रहे हैं। दीवान ने मुस्लिम देशों के मुसलमानों को भारत के मुसलमानों से सीख लेने की सलाह दी है। इससे पहले भी दीवान आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोलते रहे हैं।
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