Saturday 27 February 2016

यूपी चुनाव में ई टीवी और सपा सरकार का नेचुरल एलायंस है - जगदीश चन्द्रा


मैंने कभी भी ई टीवी को निराश नहीं किया - अखिलेश यादव
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27 फरवरी को लखनऊ में ई  टीवी के रिपोटर्स स्ट्रिंगर और इंफार्मर की एक मीट हुई। इस मीट में उत्तर प्रदेश में ई टीवी से जुड़े 400 से भी अधिक पत्रकारों ने भाग लिया। मीट में ई टीवी चैनल के हेड जगदीश चन्द्रा ने स्पष्ट कहा कि अगले वर्ष की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव में ई टीवी और सरकार का नेचुरल एलायंस है। आज यूपी में ई टीवी के पास जितने पत्रकार, कैमरामैन, स्टूडियो तकनीक आदि हैं उतने संसाधन किसी भी मीडिया के पास नहीं है। सीएम अखिलेश यादव जिस तरह से योजनाओं की क्रियान्विति करते हैं वैसी क्रियान्विति मैंने किसी भी राज्य में नहीं देखी है। ई टीवी न्यू चैनल नहीं, बल्कि जनआन्दोलन है। इसलिए ई टीवी उर्दू को भी देश का हर मुसलमान देखता है। आज देश भर में तीन हजार से भी ज्यादा लोग ई टीवी में कार्यरत हैं और आगामी सितम्बर माह तक देश के 22 राज्यों में ई टीवी की उपस्थिति दर्ज हो जाएगी। ई टीवी हर राज्य में अलग-न्यूज चैनल शुरू करने वाला देश का पहला मीडिया है। जगदीश चन्द्रा ने जिस प्रकार सीएम अखिलेश यादव की प्रशंसा की, उसके जवाब में अखिलेश ने कहा कि मैंने कभी भी ई टीवी को निराश नहीं किया है। मेरा मानना है कि ई टीवी पर खबर प्रसारित होने के बाद प्रदेशभर में सरकार की सूचना पहुंच जाएगी। सरकार के लिए ई टीवी सूचना एकत्रित करने का सबसे बड़ा माध्यम है। उन्होंने माना कि ई टीवी सरकार चलाने में मदद करता है। जगदीश चन्द्रा के नेचुरल एलायंस के संदर्भ में बोलते हुए अखिलेश ने कहा कि 2017 का विधानसभा चुनाव वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाईनल होगा। उन्होंने कहा कि पत्रकारों की जितनी फौज ई टीवी के पास है उतनी किसी भी मीडिया घराने के पास नहीं होगी। ई टीवी सही समय पर सही खबर देता है। अखिलेश ने ई टीवी उर्दू का जिक्र करते हुए कहा कि उर्दू और हिन्दी दोनों को मिलकर आगे बढऩा चाहिए।
 (एस.पी. मित्तल)  (27-02-2016)
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पुष्कर के 170 वर्ष पुराने रंगजी के मंदिर से खाली निकली तिजोरी।


जीर्णोद्धार में अचानक मिली थी तिजोरी।
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तीर्थ गुरु माने जाने वाले पुष्कर के ऐतिहासिक पुराने रंगजी के मंदिर से निकली तिजोरी 27 फरवरी को जब पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों, मीडियाकर्मियों और मंदिर से जुड़े लोगों के सामने खोली गई तो तिजोरी खाली थी। मंदिर से जुड़े अनंत प्रसाद गनेड़ीवाल ने बताया कि इन दिनों मंदिर के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। 26 फरवरी को एक मजदूर को मंदिर के अंदर की दीवार में खोखलापन नजर आया। जब हथौड़ा मारकर दीवार को तोड़ा गया तो सामने एक तिजोरी दिखी। तिजोरी की सूचना मिलते ही पूरे पुष्कर में हड़कंप मच गया। हर कोई जानना चाहता था कि तिजोरी में क्या मिला है, लेकिन तिजोरी के निकट जाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तिजोरी सात फीट अंदर थी। बाद में सर्वसम्मति से यह तय किया गया कि तिजोरी निकालने का काम 27 फरवरी को किया जाएगा। यही वजह रही कि सुबह से ही यज्ञ और अन्य धार्मिक रस्में संपन्न करवाई गई ताकि शांतिपूर्ण तरीके से तिजोरी को बाहर निकाला जा सके। इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों, मीडियाकर्मियों ओर पुलिस को भी मौके पर बुला लिया गया। ताकि सबके सामने तिजोरी को खोला जा सके। गनेड़ीवाल ने पहले ही यह घोषणा कर दी कि तिजोरी से जो कुछ भी प्राप्त होगा उसे मंदिर के जीर्णोद्धार के काम पर ही खर्च किया जाएगा। पूरे पुष्कर में सुबह से ही कौतूहल का माहौल बना हुआ था, लेकिन दोपहर को उस समय सभी को निराशा हाथ लगी जब तिजोरी में कुछ भी नहीं मिला।
170 वर्ष पुराना मंदिर :
पुष्कर का रंगजी का मंदिर 170 वर्ष पुराना है और यहां भगवान कृष्ण के स्वरूप में वेणुगोपाल की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के दर्शन करने के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां आते हैं। मंदिर परिसर में वर्ष भर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते है। हालांकि बाद में एक औद्योगिक घराने ने भी पुष्कर में रंगजी के मंदिर का निर्माण करवाया, लेकिन आज भी धार्मिक दृष्टि से पुराने और ऐतिहासिक मंदिर की ही मान्यता है।
 (एस.पी. मित्तल)  (27-02-2016)
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खेलकूद में मुस्लिम छात्राएं भी पीछे नहीं।


टर्निंग पाइन्ट स्कूल में दिखाई दक्षता
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बदलते समाजिक माहौल में अब मुस्लिम लड़कियां शिक्षा ही ग्रहण नहीं कर रही हैं बल्कि स्कूल में खेलकूद की गतिविधियों में भी भाग ले रही हैं। 27 फरवरी को अजमेर के वैशाली नगर स्थित द टर्निंग पॉइन्ट स्कूल का वार्षिक खेलकूद का समारोह हुआ। इस समारोह में मेरे सहित टीटी के अन्तर्राष्ट्रीय अम्पायर अतुल दुबे और भू-वैज्ञानिक राजकुमार नाहर अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे। मैंने देखा कि दौड़ से लेकर लोहे का गोला फेंकने तक की प्रतियोगिता में पांच-छह विद्यार्थियों के समूह में मुस्लिम छात्राएं और छात्र भी शामिल थे। स्कूल के निदेशक डॉ. अनंत भटनागर ने बताया कि आसपास के क्षेत्र में प्लम्बर, पेन्टर, मिस्त्री आदि का कार्य करने वाले मुस्लिम परिवार भी रहते हैं। अधिकांश मुस्लिम परिवार के मुखिया चाहते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ें। अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतिंत मुस्लिम माता-पिता का साफ कहना होता है कि हम कष्ट पाकर भी स्कूल की फीस जमा करवाएंगे। ऐसे बहुत से परिवार होंगे, जिन्हें अंग्रेजी के माध्यम के स्कूल की फीस जमा कराने में परेशानी होती होगी, लेकिन कड़ी मेहनत कर वे अपने बच्चों को खासकर लड़कियों को पढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं पब्लिक स्कूल की गतिविधियों में भी मुस्लिम परिवार के विद्यार्थी आगे रहते हैं। मैंने देखा कि मुस्लिम छात्रों के साथ छात्राएं भी खेलकूद की गतिविधियों में उत्साह के साथ भाग ले रही थीं। मुस्लिम परिवारों में शिक्षा के प्रति कितनी जागरूकता बढ़ी है, इसका अंदाजा इससे भी लगता है कि समारोह में मुस्लिम अभिभावक भी मौजूद थे। इन अभिभावकों ने भी स्कूल की खेलकूद की गतिविधियों में भाग लिया। समारोह में अतुल दुबे ने कहा कि टर्निंग पॉइन्ट स्कूल के विद्यार्थियों ने प्रतियोगिताओं में अपनी शारीरिक दक्षता का सफल प्रदर्शन किया है। इसके लिए विद्यार्थियों के साथ-साथ स्कूल स्टाफ और अभिभावक भी बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि अब शिक्षा ग्रहण के साथ-साथ खेलकूद भी जरूरी हो गया है। मेरा कहना रहा कि शिक्षा नीति में जिस तरह विद्यार्थियों पर पढ़ाई का बोझ डाला गया है, इसमें खेलकूद जरूरी हो गए है। पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भाग लेने से मानसिक तनाव कम होता है तथा शरीर भी स्वस्थ रहता है। स्कूल के निदेशक भटनागर ने कहा कि स्कूल में खेलकूद की गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विद्यार्थियों को उनकी रूचि के मुताबिक खेलों के गुर सिखाए जाते हैं। समय-समय पर खेलों के विशेषज्ञों को स्कूल में बुलाया जाता है। समारोह में भू-वैज्ञानिक नाहर ने कहा कि विद्यार्थी स्वस्थ रहेगा, तभी मन लगाकर पढ़ सकता है। समारोह में सामाजिक कार्यकर्ता संतोष गुप्ता, लेखिका पूनम पाण्डे आदि ने भी विजेता विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र और मेडल दिए।
 (एस.पी. मित्तल)  (27-02-2016)
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Friday 26 February 2016

तेलंगाना पुलिस ने भी माना रोहित वेमुला दलित नहीं था


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26 फरवरी को तेलंगाना पुलिस ने हाइकोर्ट में एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया है। इस शपथ पत्र में कहा गया कि हैदराबाद स्थित सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी में पढऩे वाला छात्र रोहित वेमुला दलित नहीं था। इसीलिए उसकी खुदकुशी के मामले को एससी/एसटी एक्ट में दर्ज नहीं किया गया। पुलिस ने अपनी जांच में रोहित को वडेरा जाति का माना है जो दलित नहीं मानी जाती है। तेलंगाना में भाजपा की सरकार नहीं है और न ही भाजपा को समर्थन देने वाली सरकार है। तेलंगाना में टीआरएस की सरकार है और इसके मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव, नरेन्द्र मोदी और भाजपा के घोर विरोधी हैं। इसलिए अब राहुल गांधी, मायावती, सीताराम यचुरी, वृंदा कराता आदि नेता यह नहीं कह सकते कि तेलंगाना की पुलिस ने नरेन्द्र मोदी के दबाव में हाईकोर्ट में झूठा शपथ पत्र दिया है। पिछले एक माह से कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बार-बार रोहित वेमुला को दलित मानकर केन्द्र सरकार पर हमला कर रहे थे। 26 फरवरी को भी संसद में बसपा प्रमुख मायावती ने एक बार फिर रोहित को दलित बताया और कहा कि यूनिवर्सिटी के वीसी ने जो जांच कमेटी बनाई थी। उसमें कोई दलित शिक्षक नहीं था। यानी मायावती का कहना रहा कि रोहित दलित था इसीलिए जांच कमेटी एक दलित शिक्षक का होना जरूरी था। चूंकि जांच कमेटी में कोई दलित शिक्षक नहीं था इसीलिए रोहित के निलम्बन का निर्णय हुआ और फिर इसीलिए रोहित ने खुदकुशी कर ली। अब जब तेलंगाना पुलिस ने ही रोहित को दलित नहीं माना है तो देखना होगा कि मायावती से लेकर राहुल गांधी क्या प्रतिक्रिया देते हैं। दो दिन पहले ही दिल्ली में कुछ छात्रों ने रोहित को दलित मानकर एक मार्च भी निकाला था। असल में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल शुरू से ही रोहित की खुदकुशी को गलत दिशा में ले गए। सवाल किसी दलित या गैर दलित का नहीं है। सवाल एक छात्र की खुदकुशी का है। बहस और जांच छात्र रोहित की खुदकुशी पर होनी चाहिए थी लेकिन राजनीतिक कारणों से दलित रोहित पर बहस होने लगी थी। देश के राजनेता अपने स्वार्थों की वजह से घटना को गलत मोड़ देते हैं।
 (एस.पी. मित्तल)  (26-02-2016)
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मुरथल गैंग रेप की सच्चाई जल्द सामने आए। जाट आंदोलनकारी भी अपनी ओर से पहल करें

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हरियाणा के जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान मुरथल में एनएच-1 पर 10 महिलाओं के साथ गैंग रेप हुआ या नहीं इसको लेकर जल्द सच्चाई सामने आनी चाहिए। जांच में जितना विलम्ब होगा, उतना लोगों में गुस्सा बढ़ेगा। एक अंग्रेजी अखबार की खबर को सही माने तो आंदोलन के दौरान जब उपद्रवी मुरथल के निकट हाइवे पर वाहनों में आग लगा रहे थे तब जान बचाने के लिए महिलाएं एवं पुरुष इधर-उधर भाग रहे थे ऐसे में उपद्रवियों ने दस महिलाओं को खेत में ले जाकर गैंग रेप की घटना को अंजाम दिया। इस घटना का शर्मनाक पहलू यह है कि जब पीडि़त महिलाएं पुलिस स्टेशन पहुंची तो पुलिस ने उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की और इज्जत का हवाला देकर महिलाओं को भगा दिया। यदि मुरथल में गैंग रेप हुआ है तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात हो ही नहीं सकती और यदि गैंग रेप नहीं हुआ है तो फिर जल्द से जल्द सच्चाई सामने आनी चाहिए। चूंकि गैंग रेप की इस घटना को जाट आरक्षण आंदोलन से जोड़ा जा रहा है इसीलिए जाट समुदाय के प्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपनी ओर से पहल कर सच्चाई को सामने लाएं। 26 फरवरी को टीवी चैनलों पर महिलाओं के वस्र मुरथल में इधर उधर बिखरे पड़े दिखाए गए हैं। हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि ये वस्र गैंग रेप की शिकार महिलाओं के ही हैं। लेकिन चैनलों पर जिस तरह बिखरे वस्रों को बार-बार दिखाया जा रहा है उससे देश में गलत संदेश जा रहा है। हालांकि हरियाणा पुलिस के डीजीपी यशपाल सिंघल चैनल वालों से आग्रह कर रहे हैं कि पीडि़त महिलाओं को सामने लाने में मदद की जाए। इसके लिए 3 महिला पुलिस अधिकारियों के नाम और टेलीफोन नम्बर भी जारी किए हैं और वहीं हाईकोर्ट ने अपने विवेक से संज्ञान लेते हुए आदेश दिया है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष सीधे पीडि़त महिलाएं बयान दर्ज करवा सकती हैं। इसके लिए पीडि़ताओं को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की जरुरत नहीं है। अब देखना है कि पुलिस और हाईकोर्ट की पहल के बाद पीडि़त महिलाएं सामने आती हैं या नहीं। लेकिन जिस तरह से प्रचार तंत्र में गैंग रेप की आशंका बताई जा रही है। उससे जाट समुदाय का आंदोलन भी बदनाम हो रहा है। इसीलिए जाट समुदाय की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अपनी ओर से पहल कर सच्चाई को जल्द से जल्द सामने लाएं। मीडिया में जो कुछ भी प्रसारित हो रहा है उसे झुठलाने के लिए जाट समुदाय के पास जो भी सबूत है उन्हें उजागर करने चाहिए। हालांकि दहशत के वर्तमान माहौल में किसी कथित पीडि़त महिला का सामने आना मुश्किल ही है और जब तक कोई पीडि़त महिला सामने नहीं आती, तब तक बलात्कारियों को पकडऩा मुश्किल होगा।
 (एस.पी. मित्तल)  (26-02-2016)
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अब अजमेर में भी सीख सकते हैं एक्टिंग के गुर। 27 व 28 फरवरी को नि:शुल्क कार्यशाला।


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अजमेर के जो युवा फिल्म, टीवी सीरियल एवं एड फिल्म आदि में अभिनय करने का सपना देख रहे हैं, वे अब अपने ही शहर अजमेर में एक्टिंग के गुर सिख सकते हैं। एस.एस.चेरिटेबल ट्रस्ट के संरक्षक आशीष सारस्वत ने बताया कि इसके लिए 27 व 28 फरवरी को अजमेर स्थित दयानंद कॉलोनी रामनगर के आवास संख्या बी-18 पर नि:शुल्क कार्यशाला रखी गई है। इस कार्यशाला में दिल्ली स्थित मूविंग इमेजेज फिल्म एकेडमी के निदेशक राजेश गौतम युवाओं को एक्टिंग के बारे में बताएंगे। कोई भी युवा इस कार्यशाला में भाग ले सकता है। सारस्वत ने बताया कि उनके संस्थान में प्रशिक्षित हुए भवानी सिंह को हाल ही में कहानी उस रात की हॉरार फिल्म में हीरो का रेाल मिला है। 
इच्छुक युवा मोबाइल नम्बर 8302080887 पर सम्पर्क कर और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सारस्वत ने बताया कि अजमेर में प्रतिभाएं छिपी हुई हैं। उपयुक्त मार्ग निर्देशन नहीं मिलने की वजह से प्रतिभाओं का निखार नहीं हो पाता है। उनकी संस्था ने पहल कर युवाओं को तराशने का काम शुरू किया है। उन्होंने माना कि एक्टिंग के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण हो गई है।

 (एस.पी. मित्तल)  (26-02-2016)
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इस बार फाल्गुन समारोह उत्साह और उमंग से मनेगा।


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अजमेर के पत्रकारों की पहल पर प्रति वर्ष होली के अवसर पर होने वाला फाल्गुन समारोह इस बार उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाएगा। आगामी 22 मार्च को जवाहर रंगमंच पर होने वाले इस समारोह को लेकर 26 फरवरी को यहां इंडोर स्टेडियम में फाल्गुन समारोह समिति की एक बैठक हुई। इस बैठक में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े प्रतिनिधियों और शहर के जागरुक नागरिकों ने भाग लिया। बैठक में निर्णय लिया गया कि समारोह अजमेर की चर्चित घटनाओं को लेकर झलकियां, अवार्ड, टाइटल,डांस, फाग समाचार जैसे रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाए। इसके लिए विभिन्न समितियों का भी गठन किया गया है। समारोह से जुड़े प्रताप सनकत अभिजीत दवे, मनवीर सिंह, गिरीश भाशानी, नवीन सोगानी, उमेश चौरसिया, सुरेश कासलीवाल, मनोज दाधीच आदि ने बताया कि आयोजन में नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिकरण की भागीदारी भी रहेगी। 

 (एस.पी. मित्तल)  (26-02-2016)
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Thursday 25 February 2016

जेएनयू पर कांग्रेस की गलती को राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद ने सुधारने की कोशिश की।



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25 फरवरी को जब बहुचर्चित जेएनयू के मुद्दे पर राज्यसभा में बहस हो रही थी, तब ऐसा लगा कि कांग्रेस ने जो गलती की उसे गुलाम नबी आजाद सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं। आजाद ने स्पष्ट  कहा कि 9 फरवरी को जेएनयू परिसर में जिन भी लोगों ने देशद्रोह के नारे लगाए हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही हो तथा इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार के साथ है, लेकिन सरकार को उन्हीं लोगों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए, जिन्होंने देशद्रोह के नारे लगाए। असल में आजाद को यह बात तब कहनी पड़ी जब राज्यसभा में भाजपा के नेता अरुण जेटली ने पूरी तरह कांग्रेस को घेर लिया था।  जेटली ने कहा कि पांच वर्ष पहले जब मैं विपक्ष की सीट पर और आप (आजाद) सत्ता की सीट पर बैठे थे, तब माओवाद की एक घटना को लेकर तब के केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने इस्तीफे का प्रस्ताव दिया था। तब सबसे पहले मैंने देशहित में कहा कि चिदम्बरम को इस्तीफा नहीं देना चाहिए। क्योंकि  इस मामले में गृहमंत्री की कोई गलती नहीं है। मैंने ऐसा देशहित मे कहा था और यह जताने की कोशिश की कि आतंकवाद माओवाद नक्सलवाद आदि पर पूरा देश एकजुट है, लेकिन अफसोस है कि जेएनयू की देशद्रोह की घटना पर कांग्रेस का रुख देशहित में नहीं है। चार दिन बाद ही राहुल गांधी के जेएनयू कैम्पस में जाने और आरोपियों का समर्थन करने के संदर्भ में जेटली ने कहा कि समझदार लोग पहले विचार करते हैं और फिर कदम उठाते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी में पहले कदम उठाया जाता है और फिर विचार होता है। मायावती की ओर इशारा करते हुए जेटली ने कहा कि आतंकी याकूब मेनन के समारोह में भीमराव अम्बेडकर का फोटो लगा लेने से समारोह अम्बेडकरवादी नहीं हो जाता। जेटली ने जिस तरह से जेएनयू के मुद्दे पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया, उसे देखते हुए ही गुलाम नबी आजाद को यह कहना पड़ा कि देशद्रोह के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी सरकार के साथ हैं। जेटली ने 1949 में अम्बेडकर के भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत तभी गुलाम हुआ था, जब अपने ही लोगों ने बगावत की। शिवाजी इसलिए हारे कि कुछ मराठा, दुश्मन से जाकर मिल गए। उन्होंने कहा कि देशद्रोह के मुद्दे पर तो कांग्रेस को सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए। 

 (एस.पी. मित्तल)  (25-02-2016)
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भारत को बर्बाद करने की धमकी देने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो।



अजमेर के प्रबुद्ध नागरिकों ने जुलूस निकालकर राष्ट्रपति से की मांग।
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25 फरवरी को अजमेर के प्रबुद्ध नागरिकों ने यहां गांधी भवन से लेकर कलेक्ट्रेट तक एक बड़ा मौन जुलूस निकाला। इस जुलूस का नेतृत्व पूर्व कुलपति प्रो. पी.के.सारस्वत, इंजीनियर वी के शर्मा, पूर्व सीएमएचओ डॉराजेश खत्री, कर्नल ए के त्यागी, राजेश पुरोहित, कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डॉ चित्रा अरोड़ा, समाज विज्ञानी रितु सारस्वत, सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय के उर्दू विभाग के डॉ. कायद अली, डॉ नारायणलाल गुप्ता, अनूप आत्रे आदि कर रहे थे। जुलूस में बड़ी संख्या में प्राध्यापक, लेखक, अधिवक्ता, चिकित्सक, सीए, व्यवसायी एवं जागरूक बुद्धिजीवी शामिल थे। जुलूस के कलेक्ट्रेट पर पहुंचने पर विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधियों ने अपनी राय प्रकट की। सभी का कहना था कि भारतीय संस्कृति में भारत को माता का दर्जा दिया गया है और कुछ लोग भारत माता के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगा रहे हैं। कोई भी देशभक्त अपनी मां के टुकड़े कैसे करवा सकता है। वक्ताओं ने इस बात पर अफसोस जताया कि जेएनयू जैसी मशहूर संस्था के अंदर इस तरह की धमकियां खुलेआम दी गई हैं। शर्मनाक बात तो यह है कि राजनीति से जुड़े अनेक लोग अपने स्वार्थो की वजह से उन तत्वों को बचा रहे हैं जिन्होंने भारत को तोडऩे की धमकी दी है। ऐसे में देश का विचारवान व्यक्ति मूकदर्शक नहीं रह सकता। आज देश के प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह उन लोगों के खिलाफ आवाज बुलन्द करे जो भारत को तोडऩे की धमकी दे रहे हैं। प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से बाद में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के नाम जिला कलेक्टर डॉ आरू षी मलिक को एक ज्ञापन दिया गया। इस ज्ञापन में  राष्ट्रपति से मांग की गई कि वे तीनों सेनाओं के कमांडर होने के नाते उन तत्वों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करवावे, जिन्होंने भारत को तोडऩे की धमकी दी है। कलेक्टर मलिक ने प्रतिनिधि मंडल को भरोसा दिलाया कि ज्ञापन को राष्ट्रपति के पास भिजवा दिया जाएगा।
महिलाएं भी शामिल :
देशद्रोहियों के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करने के लिए 25 फरवरी को मौन जुलूस में महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हुई। समाज के विभिन्न वर्गो से जुड़ी महिलाओं ने जुलूस में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई। आमतौर पर जुलूसों में महिलाओं की संख्या कम होती है। महिलाएं भी अपने हाथ में बैनर झण्डे लेकर चल रही थी।

 (एस.पी. मित्तल)  (25-02-2016)
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रायान पब्लिक स्कूल के नन्हें बच्चों की शानदार प्रस्तुति।



जिला प्रमुख वंदना नोगिया ने की प्रशंसा
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25 फरवरी को अजमेर के जवाहर रंगमंच पर कोटड़ा स्थित रायान पब्लिक इंटरनेशनल स्कूल के वार्षिक समारोह में नन्हें बच्चों ने शानदार प्रस्तुति दी। इस स्कूल को खुले अभी 2 वर्ष ही हुए है लेकिन स्कूल में करीब 1600 बच्चे अध्ययन करते हैं। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में अधिकांश बच्चे पहली और दूसरी कक्षा के ही हैं। इसलिए वार्षिक समारोह में नन्हें बच्चों ने ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति दी। समारोह में जिला प्रमुख वंदना नोगिया ने बच्चों की प्रस्तुति की प्रशंसा करते हुए कहा कि स्कूल का स्तर वाकई बहुत ऊंचा हैं। उन्होंने स्कूल की सफलता की कामना की। नोगिया के बाद अतिथि के तौर पर जब मुझे बोलने का अवसर मिला तो मैंने वंदना नोगिया से आग्रह किया कि सरकारी स्कूलों का स्तर भी सुधारा जाए। चूंकि जिला परिषद के अधीन प्राइमरी स्तर की स्कूलें आती हैं, इसलिए नोगिया को थोड़ी सीख रायान पब्लिक इंटरनेशनल स्कूल में भी लेनी चाहिए। माना कि पब्लिक स्कूलों में मोटी फीस वसूली जाती है, लेकिन वहीं सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को मोटा वेतन दिया जाता है। यदि जिला प्रमुख नोगिया थोड़ी मेहनत करें तो ग्रामीण क्षेत्र की प्राइमरी स्कूलों की दशा भी सुधर सकती है। समारोह में टीटी के इंटरनेशनल एम्पायर अतुल दुबे, बास्केटबॉल के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे विनीत लोहिया, कत्थक कलाकार सुश्री दृष्टि रॉय आदि ने भी बच्चों को पारितोषिक दिए और स्कूल की कार्यप्रणाली की प्रशंसा की। स्कूल की प्रिंसिपल श्रीमती मालिनी मलिक ने सभी अतिथियों को स्कूल की परम्परा के अनुरूप ट्री प्लांट भेंट किए। श्रीमती मलिक ने कार्यक्रम की सफलता के लिए बच्चों के साथ-साथ स्टाफ और अभिभावकों का भी आभार जताया।

(एस.पी. मित्तल)  (25-02-2016)
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प्रभु ने की नरेश की प्रशंसा।



रेल बजट में उदयपुर स्टेशन का उल्लेख। 
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25 फरवरी को रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने जो बजट पेश किया, उसमें अजमेर मंडल के अधीन आने वाले उदयपुर रेलवे स्टेशन के सौंदर्यीकरण की प्रशंसा की। प्रभु ने कहा कि राजस्थान में सवाई माधोपुर और उदयपुर रेलवे स्टेशन पर सौंदर्यीकरण के काम को जनसहयोग से किया गया है। इससे रेलवे के अन्य अधिकारियों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। उदयपुर रेलवे स्टेशन का उल्लेख कर रेलमंत्री ने अजमेर रेल मंडल के प्रबंधक नरेश सालेचा के कामकाज की प्रशंसा की। असल में सालेचा ने ही उदयपुर स्टेशन के सौंदर्यीकरण का काम जनसहयोग से किया है। सौंदर्यीकरण के अंतर्गत उदयपुर शैली की चित्रकारी की गई और साफ-सफाई पर विशेष जोर दिया गया। यात्रियों के लिए स्टेशन पर अनेक सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई गई। रेल विभाग के सीमित साधनों को देखते हुए सालेचा जनसहयोग के लिए प्रयासरत रहते हैं। अजमेर में भी गांधी भवन चौराहे के सामने रेलवे स्टेशन को जो आकर्षक द्वार बन रहा है, उसके निर्माण का खर्च ब्यावर की श्रीसीमेंट कंपनी उठा रही है। इस द्वार पर एक करोड रुपए से ज्यादा की राशि खर्च होगी। अजमेर स्टेशन पर भी सालेचा के प्रयासों से अनेक सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। यहां उल्लेखनीय है कि विदेशी निवेश के मद्देनजर सालेचा ने अजेमर रेल मंडल की जो बेलेंस शीट तैयार की उसे रेल मंत्रालय में मॉडल माना गया है। अजमेर की बेलेंसशीट की तरह ही देश भर के रेल मंडल की बेलेंसशीट तैयार होगी। अजमेर मंडल की बेलेंसशीट में सालेचा ने आय के साथ-साथ सम्पत्तियों की कीमत भी बातई है। इससे पता चलता है कि अजमेर मंडल कितना मालदार है। 

 (एस.पी. मित्तल)  (25-02-2016)
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Wednesday 24 February 2016

तो संसद में भी गूंजी राष्ट्रदोहियों के पक्ष में आवाज।


पर अफजल आतंकी था या नहीं के सवाल का जवाब नहीं दे सकी कांग्रेस।
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24 फरवरी को भारत की संसद के दोनों सदनों में 9 फरवरी की जेएनयू की घटना को लेकर बहस हुई। हो सकता है कि बहस के पीछे हमारे सांसदों का राजनीतिक नजरिया रहा हो, लेकिन संसद में जो कुछ भी हुआ उसमें सबसे ज्यादा शुकून अफजल गुरु की रूह को मिला होगा। पूरा देश जनता है कि कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने ही संसद पर हमले के आरोप में अफजल गुरु को फांसी दिलवाई थी। लेकिन 24 फरवरी को कांग्रेस के नेताओं ने जेएनयू के उन छात्रों को निर्दोष माना, जिन्होंने अफजल गुरु के समर्थन में नारे लगाए थे। इतना ही नहीं अफजल को जो फांसी दी गई, उस पर भी जेएनयू के छात्रों ने ऐतराज जताया था। खुलेआम भारत की बर्बादी,पाकिस्तान की खुशहाली और कश्मीर की आजादी के नारे लगाए। अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा है तक के नारे लगाए। इतना सब कुछ होने के बाद भी 24 फरवरी को संसद में कांग्रेस का पक्ष रखते हुए युवा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि जेएनयू में जो नारे लगाए गए, वो देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आते। नारों की तुलना ज्योतिरादित्य ने साक्षी के महाराज के एक बयान से की। ज्योतिरादित्य ने कहा कि साक्षी महाराज नाथूराम गौडसे को देशभक्त बताते हैं और हम महात्मा गांधी के हत्यारे को देशद्रोही मानते हैं। यानी साक्षी महाराज के बयान और जेएनयू में लगे राष्ट्रद्रोह के नारे को कांग्रेस ने समान कर दिया। 
इस समानता के पीछे कांग्रेस की अपनी राजनीतिक सोच रही होगी, लेकिन जब भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने अपने जवाब में सवाल पूछा कि क्या कांग्रेस अफजल गुरु को आतंकी मानती है या नहीं? इस सवाल का जवाब शायद सोनिया गांधी भी न दे सकें, क्योंकि एक ओर उन्हीं की सरकार ने अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ाने का काम किया तो दूसरी ओर उनके पुत्र राहुल गांधी खुलेआम उन छात्रों का समर्थन कर रहे हैं, जिन्होंने अफजल गुरु  के पक्ष में नारे लगाए हैं। पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा लोकतांत्रिक देश होगा, जहां संसद भवन के हमलावर के पक्ष में ही माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस इस बात की कल्पना करें कि यदि अफजल गुरु की योजना के मुताबिक आतंकवादी संसद में घुस जाते तो क्या हालात होते। यह तो हमारे सुरक्षा जवानों ने आतंकवादियों की गोलियां खाकर देश के राजनेताओं को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया। असल में चर्चा तो देश के उन जवानों की होनी चाहिए थी, जिन्होंने अपने सीने में गोली खाकर आतंकवादियों को संसद में नहीं घुसने दिया। लेकिन अफसोस की चर्चा उस अफजल गुरु को लेकर हो रही है, जो आतंकियों को संसद में जबरन घुसेडऩा चाहता था। 
गत लोक सभा चुनाव से पहले जब कांग्रेस सरकार ने अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया तो पूरे देश में कांग्रेस की वाह-वाही हुई। विपक्षी नेताओं ने भी कांग्रेस के इस कदम का स्वागत किया। कांग्रेस ने तब यह जाहिर किया कि वह आतंकवाद से सख्ती से निपटेगी, लेकिन समझ में नहीं आता कि अब जब कांग्रेस को विपक्षी की भूमिका निभानी पड़ रही है तो कांग्रेस अपने पूर्व के स्टैंड में बदलाव क्यों कर रही है? और जब जेएनयू की घटना देशद्रोह से जुड़ी है, तो फिर कांग्रेस को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसकी वजह से देश की एकता और अखंडता को खतरा उत्पन्न होता हो। संसद में भाजपा भी भले ही जेएनयू की घटना को लेकर कुछ भी कहे, लेकिन यह भी सच है कि कश्मीर में भाजपा पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए उतावली है। यह वही पीडीपी है, जिसने अलगाववादियों का खुला समर्थन किया है और आज भी कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से वार्ता की पक्षधर है। यदि अनुराग ठाकुर संसद में राष्ट्रभक्ति का दावा करते हैं तो उन्हें संसद के बाहर यह भी बताना चाहिए कि आखिर पीडीपी के साथ सरकार बनाने की भाजपा की क्या मजबूरी है। 

 (एस.पी. मित्तल)  (24-02-2016)
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केन्द्रीय मंत्री ने की अजमेर के उद्यमिता केन्द्र की प्रशंसा।



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केन्द्रीय सुक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री कलराज मिश्र ने अजमेर में एमडीएस यूनिवर्सिटी में चल रहे उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय प्रबंध केन्द्र के कामकाज की प्रशंसा की है। 23 फरवरी को अजमेर केन्द्र के निदेशक प्रो. बी.पी.सारस्वत ने दिल्ली में मिश्र से मुलाकात की। इस मुलाकात में बताया कि दस वर्ष पहले जब श्रीमती वसुंधरा राजे पहली बार राजस्थान की सीएम बनी थीं, तब श्रीमती राजे ने ही एमडीएस यूनिवर्सिटी में उद्यमिता केन्द्र खुलवाया था। इन दस वर्षों में अनेक छात्र अपने पैरों पर खड़े हुए हैं और अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं महिलाएं भी प्रशिक्षण लेकर आत्मनिर्भर बनी हैं। इस पर केन्द्रीय मंत्री मिश्र का कहना रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी चाहते हैं कि देश का युवा पढ़ाई की डिग्री के साथ-साथ रोजगार का भी प्रशिक्षण ले ताकि उसे सिर्फ सरकारी नौकरियों पर निर्भर न रहना पड़े। इसके साथ ही प्रो. सारस्वत ने मिश्र से आग्रह किया कि जिस प्रकार अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी में उद्यमिता केन्द्र चल रहा है। उसी प्रकार राजस्थान की अन्य यूनिवर्सिटीज में केन्द्र शुरू करवाए जावे। इस पर मिश्र ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिए कि उद्यमिता केन्द्र शुरू करवाने के लिए राजस्थान से जो भी प्रस्ताव प्राप्त हों, उन पर तत्काल कार्यवाही की जाए। प्रो. सारस्वत ने बताया कि केन्द्रीय मंत्री से उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पहल पर हुई थी। मुख्यमंत्री चाहती हैं कि अजमेर जैसे केन्द्र राजस्थान की सभी यूनिवर्सिटीज में शुरू किए जाएं। इसके लिए राज्य सरकार ने कुलाधिपति और राज्यपाल कल्याण सिंह को भी प्रस्ताव भेजा है। चंूकि ऐसे केन्द्रों को चलाने में केन्द्र सरकार की भी आर्थिक मदद मिलती है, इसलिए मुख्यमंत्री ने उनकी मुलाकात केन्द्रीय मंत्री मिश्र से करवाई। प्रो. सारस्वत ने उम्मीद जताई कि अब शीघ्र ही राजस्थान की सभी यूनिवर्सिटीज में उद्यमिता केन्द्र शुरू होंगे। 

 (एस.पी. मित्तल)  (24-02-2016)
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केन्द्रीय मंत्री ने की अजमेर के उद्यमिता केन्द्र की प्रशंसा।



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केन्द्रीय सुक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री कलराज मिश्र ने अजमेर में एमडीएस यूनिवर्सिटी में चल रहे उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय प्रबंध केन्द्र के कामकाज की प्रशंसा की है। 23 फरवरी को अजमेर केन्द्र के निदेशक प्रो. बी.पी.सारस्वत ने दिल्ली में मिश्र से मुलाकात की। इस मुलाकात में बताया कि दस वर्ष पहले जब श्रीमती वसुंधरा राजे पहली बार राजस्थान की सीएम बनी थीं, तब श्रीमती राजे ने ही एमडीएस यूनिवर्सिटी में उद्यमिता केन्द्र खुलवाया था। इन दस वर्षों में अनेक छात्र अपने पैरों पर खड़े हुए हैं और अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं महिलाएं भी प्रशिक्षण लेकर आत्मनिर्भर बनी हैं। इस पर केन्द्रीय मंत्री मिश्र का कहना रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी चाहते हैं कि देश का युवा पढ़ाई की डिग्री के साथ-साथ रोजगार का भी प्रशिक्षण ले ताकि उसे सिर्फ सरकारी नौकरियों पर निर्भर न रहना पड़े। इसके साथ ही प्रो. सारस्वत ने मिश्र से आग्रह किया कि जिस प्रकार अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी में उद्यमिता केन्द्र चल रहा है। उसी प्रकार राजस्थान की अन्य यूनिवर्सिटीज में केन्द्र शुरू करवाए जावे। इस पर मिश्र ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिए कि उद्यमिता केन्द्र शुरू करवाने के लिए राजस्थान से जो भी प्रस्ताव प्राप्त हों, उन पर तत्काल कार्यवाही की जाए। प्रो. सारस्वत ने बताया कि केन्द्रीय मंत्री से उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पहल पर हुई थी। मुख्यमंत्री चाहती हैं कि अजमेर जैसे केन्द्र राजस्थान की सभी यूनिवर्सिटीज में शुरू किए जाएं। इसके लिए राज्य सरकार ने कुलाधिपति और राज्यपाल कल्याण सिंह को भी प्रस्ताव भेजा है। चंूकि ऐसे केन्द्रों को चलाने में केन्द्र सरकार की भी आर्थिक मदद मिलती है, इसलिए मुख्यमंत्री ने उनकी मुलाकात केन्द्रीय मंत्री मिश्र से करवाई। प्रो. सारस्वत ने उम्मीद जताई कि अब शीघ्र ही राजस्थान की सभी यूनिवर्सिटीज में उद्यमिता केन्द्र शुरू होंगे। 

 (एस.पी. मित्तल)  (24-02-2016)
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अजमेर के प्रबुद्ध नागरिकों का मौन जुलूस 25 को निकलेगा



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जेएनयू और जादवपुर विश्वविद्यालय में हुई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के विरोध में 25 फरवरी को प्रबुद्ध नागरिकों का एक मौन जुलूस निकलेगा। यह जुलूस प्रात: 10:30 बजे स्थानीय गांधी भवन से शुरू होकर कलेक्ट्रेट पर समाप्त होगा। 24 फरवरी को प्रबुद्ध नागरिकों के समूह के प्रतिनिधि पूर्व कुलपति प्रो. सी.बी.गैना, डॉ. नारायण लाल गुप्ता, डॉ. राजेश खत्री, पूर्व प्राचार्या डॉ. चित्रा अरोड़ा, लेखक ऋतु सारस्वत, कर्नल ए.के.त्यागी, अमित राजवंशी, डॉ. अमित गर्ग आदि ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश की एकता और अखंडता को तोडऩे का काम हो रहा है। ऐसे में समाज के प्रबुद्ध नागरिकों का यह दायित्व बनता है कि वे अपनी जिम्मेदारी को निभाए। इसलिए अजमेर में सभी वर्गों के प्रतिनिधियों को जोड़कर प्रबुद्ध नागरिकों का समूह बनाया गया है। इस समुह के माध्यम से ही गुरुवार को मौन जुलूस निकाल कर राष्ट्रपति के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया जाएगा। 
इस ज्ञापन में उन तत्वों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की जाएगी, जिनकी वजह से देश को नुकसान हो रहा है। संवाददाता सम्मेलन में डॉ. गुप्ता और ऋतु भारद्वाज ने कहा कि देशद्रोह की घटना को शिक्षा से जोड़ दिया गया है, जो भारत के लिए बहुत खतरनाक स्थिति है। उन्होंने कहा कि देश का कोई नागरिक नहीं चाहता कि जेएनयू जैसी संस्था बदनाम हो, लेकिन उन तत्वों के खिलाफ तो सख्त कार्यवाही होनी चाहिए जो जेएनयू को बदनाम कर रहे हैं। 

 (एस.पी. मित्तल)  (24-02-2016)
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Tuesday 23 February 2016

सोनिया गांधी की नातिन अब अजमेर के मेयो गल्र्स स्कूल में पढ़ेगी



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कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की नातिन और श्रीमती प्रियंका वाड्रा की बेटी मारिया वाड्रा अब अजमेर के सुप्रसिद्ध मेयो गल्र्स स्कूल में पढ़ेगी। 23 फरवरी को मारिया वाड्रा के एडमिशन के सिलसिले में प्रियंका वाड्रा अजमेर के मेयो गल्र्स स्कूल में आई। प्रियंका के साथ मारिया भी थी। पियंका और मारिया ने स्कूल की प्रिंसीपल कंचन खाडके के साथ स्कूल की गतिविधियां जानी। खाडके ने बताया कि स्कूल परिसर में रहकर ही पढऩे वाली छात्राओं की दिनचर्या क्या होती है। प्रियंका और मारिया ने प्रिंसीपल के साथ ही मैस में लंच भी लिया। प्रियंका ने स्कूल के अनुशासन और गतिविधियों की प्रशंसा की। मारिया यहां 9वीं कक्षा में अध्ययन करेंगी।
कड़ी सुरक्षा :
प्रियंका वाड्रा के अजमेर दौरे में कड़ी सुरक्षा की गई। यहां तक कि मेयो कॉलेज के परिसर में मीडियाकर्मियों को भी प्रवेश नहीं दिया गया। प्रियंका जब तक स्कूल परिसर में रही तब तक एसपीजी के जवानों ने मोर्चा संभाले रखा। कॉलेज के प्रबंधन ने यह भी नहीं बताया कि प्रियंका और उनकी पुत्री मारिया क्यों आए है। प्रियंका से स्कूल स्टाफ को भी दूर ही रखा गया। प्रियंका के वाहनों का काफिला मेयो बॉयज में रोक दिया गया और फिर सिर्फ प्रियंका और मारिया को गल्र्स कॉलेज के परिसर में ले जाया गया।
देखते रह गए कांग्रेसी :
प्रियंका गांधी के अजमेर आने की सूचना को देखते हुए शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन और प्रदेश मंत्री महेन्द्र सिंह रलावता के नेतृत्व में कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जयपुर रोड स्थित अशोक उद्यान के बाहर एकत्रित हो गए। कार्यकर्ता चाहते थे कि प्रियंका को रोक कर जोरदार स्वागत किया जाए, लेकिन प्रियंका के साथ आए एसपीजी के अधिकारियों ने साफ कह दिया कि प्रियंका वाड्रा अपने निजी दौरे पर है, इसलिए किसी भी कार्यकर्ता से नहीं मिलेंगी। फलस्वरूप प्रियंका का काफिला जब अशोक उद्यान के बाहर से गुजरा तो कांग्रेस के कार्यकर्ता देखते ही रह गए।


 (एस.पी. मित्तल)  (23-02-2016)
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अभिव्यक्ति का मतलब देश की एकता, अखंडता को तोडऩा नहीं है।



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राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ राष्ट्रीय के महामंत्री डॉ. नारायण लाल गुप्ता ने कहा है कि अभिव्यक्ति का मतलब देश की एकता और अखंडता को तोडऩा नहीं है। आज जो लोग जेएनयू की घटना को लेकर देशद्रोह के आरोपी छात्रों की पैरवी कर रहे हैं। वे असल में देश की एकता और अखंडता को आघात पहुंचा रहे हैं। 
23 फरवरी को अजमेर में सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में स्थानीय ईकाई की ओर से आयोजित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय की संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए डॉ. गुप्ता ने कहा कि जब राष्ट्र और देश ही नहीं रहेगा तो फिर अभिव्यक्ति का क्या मतलब होगा। 
डॉ. गुप्ता ने राष्ट्रीयता को सर्वोच्च स्थान देते हुए कहा कि विचारधाराएं अलग हो सकती हैं, परन्तु जब देश की बात आती है तो फिर देशहित सर्वोपरि होना चाहिए। जेएनयू में लगाए गए राष्ट्रविरोधी नारे एवं ऐसे विद्यार्थियों के पक्ष में लगातार हो रहे कार्यक्रम देश विरुद्ध है। उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है एवं हम ऐसे शिक्षक संगठनों एवं विद्यार्थियों की देश को तोडऩे व बांटने वाली सोच की कठोर शब्दों में निन्दा करते है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि बुद्धिजीवी शिक्षक होने के नाते यह हमारा प्रमुख कर्तव्य है कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सही मायने समाज एवं छात्रों तक पहुंचाएं। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता उपाचार्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव ने की। विशिष्ट अतिथि उपचार्य डॉ. एस. के. देव. एवं डॉ. एल. सी. हेड़ा थे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संगोष्ठी के विषय का परिचय डॉ. सुशील कुमार बिस्सु ने कराया। डॉ. बिस्सु ने जेएनयू में हो रहे देशद्रोही कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए वर्तमान सन्दर्भ में देश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की पूर्णव्याख्या की बात कही। डॉ. बिस्सु ने कहा की अब देश की आजादी व अखंडता की सुरक्षा के लिए संकल्प लेने का समय आ गया है। भारत एक है और एक ही रहेगा।
संगोष्ठी में डॉ. मनोज अवस्थी ने भारतीय संविधान का उल्लेख करते हुए बताया कि संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी असीमित नहीं है। 16वें संशोधन के बाद भारत की सम्प्रभुता और अखंडता के हित में पर्याप्त प्रतिबंधों का प्रावधान किया गया है। डॉ. एस. डी. मिश्रा ने विचार अभिव्यक्ति में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का उल्लेख करते हुए जेएनयू के वर्तमान घटनाचक्र को पूर्णत: असंवैधानिक बताया। डॉ. सुनीता पचौरी ने कहा कि हमें परिवार, समाज एवं देश को मजबूत करने की आवश्यकता है। वर्तमान घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। डॉ. मनोज यादव ने कहा कि भारत की सैन्य सेवाओं में सेवा करना गर्व की बात है एवं जेएनयू में हो रही देशद्रोही गतिविधियां शहीदों की शहादत का अपमान है।
डॉ. कायद अली ने देश में विविधताओं में एक रहने की हमारी योग्यता की हमारी सुंदरता और हमारी सभ्यता का उदाहरण देते हुए राष्ट्र विरोधी कार्यक्रमों की कड़े शब्दों में निन्दा की। डॉ. एस. एम. चौधरी ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी भारत को बांटने की कोशिशों के लिए लाइसेन्स के रूप में प्रयोग में नहीं लायी जा सकती। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम अध्यक्ष उपाचार्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि देश की एकता व अखंडता में बाधा डालने वालों के खिलाफ एकजुट होकर जवाब देने का समय आ गया है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनूप आत्रेय ने किया। संगोष्ठी में महाविद्यालय के व्याख्याताओं के अतिरिक्त अभिभावक, अभिवक्ता, चिकित्सक, कलाकार, उद्यमी एवं शोधार्थी आदि बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

 (एस.पी. मित्तल)  (23-02-2016)
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क्या राहुल गांधी छात्रों से देशद्रोह की आवाज ही सुनना चाहते हैं।

23 फरवरी को दिल्ली में छात्रों ने एक मार्च निकाला। यह मार्च हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मृतक छात्र रोहित वेमुला के समर्थन में निकाला गया। यूं तो यह मार्च रोहित के समर्थन में था, लेकिन मार्च शामिल विद्यार्थी और युवा 9 फरवरी को जेएनयू में हुई घटना को लेकर नारेबाजी कर रहे थे। साफ लग रहा था कि यह मार्च जेएनयू के उन छात्रों को बचाने के लिए है, जिन्होंने 9 फरवरी को खुलेआम देशद्रोह के नारे लगाए। इस मार्च को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी संबोधित किया। राहुल ने पीएम नरेन्द्र मोदी पर सीधा हमला करते हुए कहा कि यह सरकार छात्रों की आवाज को दबा रही है। समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी छात्रों की आवाज को कितना बुलंद करना चाहते हैं। जेएनयू में खुलेआम भारत की बर्बादी, पाकिस्तान की खुशहाली, कश्मीर की आजादीआदि के देशद्रोह के नारे लग रहे हैं और राहुल गांधी कह रहे हैं कि छात्रों की आवाज को दबाया जा रहा है। 
अब राहुल गांधी की बताएं कि छात्रों की आवाज में क्या सुनना चाहते हैं। राहुल गांधी भी जानते हैं जिन छात्रों ने देशद्रोह के नारे लगाए, उनमें से अनेक जेएनयू के कैम्पस में छुपे हुए हैं। जिस सरकार पर छात्रों की आवाज दबाने का अरोप राहुल लगा रहे हैं, उस सरकार की पुलिस की हिम्मत नहीं कि वह जेएनयू के कैम्पस में घुस कर आरोपी छात्रों को गिरफ्तार कर ले। यह माना राहुल गांधी विपक्ष में हैं और उनका काम सरकार की आलोचना करना है, लेकिन विपक्ष के नेता के साथ-साथ राहुल गांधी भारत के नागरिक भी हैं। भारत का नागरिक होने के नाते राहुल गांधी को उन लोगों का समर्थन नहीं करना चाहिए जो देशद्रोह के आरोपी हैं। अच्छा हो कि राहुल गांधी उन छात्रों को गिरफ्तार करवाने में मदद करें, जिन्हें पुलिस तलाश रही है। राहुल गांधी को यह भी याद रखना चाहिए कि देश की एकता और अखंडता के लिए ही उनके पिता राजीव गांधी और दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्बानी दी थी। 
 (एस.पी. मित्तल)  (23-02-2016)
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Monday 22 February 2016

जाट समुदाय तो देश का अन्नदाता है। फिर क्यों हो रहे हैं अपने ही लोग परेशान।



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22 फरवरी को जाट समुदाय का आंदोलन राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर में भी फैल गया है। पिछले एक सप्ताह से हरियाणा प्रांत पूरी तरह से बर्बाद हो रहा है। जाट समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर सरकार पर हरसंभव दबाव डाल रहा है। इसके लिए रेलवे स्टेशन तक जलाए जा रहे हैं। हरियाणा में जाटों की ताकत के सामने पुलिस व सेना भी बेबस है। इसमें कोई दोराय नहीं कि जाट समुदाय के पास जबरदस्त ताकत है। किसी भी राजनीतिक दल की हिम्मत नहीं कि वह जाटों से मुकाबला कर सके। इस ताकत को देखते हुए ही हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर की सरकार और केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन जाट समुदाय को सरकार की जुबान पर भरोसा नहीं है। इसीलिए 22 फरवरी को भी आंदोलन जारी रहा। जाट समुदाय को अपनी मांग रखने का पूरा अधिकार है। लेकिन देश का आम नागरिक जाट समुदाय को देश का अन्नदाता मानता है। जाट समुदाय के अधिकांश परिवार ग्रामीण क्षेत्र में बसते हैं और मूलत: खेती का काम करते हैं। सर्दी, गर्मी, बरसात तीनों मौसम में कड़ी मेहनत करते हैं। जाट समुदाय खाद्यान्न की पैदावार करता है। एक ओर जहां जाट समुदाय अन्नदाता की भूमिका में है, वहीं दूसरी ओर अन्नदाता के कृत्य से आम लोगों को आग में झुलसना पड़े तो फिर अनेक प्रश्न उठते हैं। जाट समुदाय अपने हक के लिए आंदोलन करे, लेकिन यह भी ध्यान रखे कि आम लोग परेशान ना हों। हरियाणा में जिन बेकसूर लोगों की दुकानें जल रही है या मकानों में तोडफ़ोड़ हो रही है उनका सवाल वाजिब है कि आखिर उनका कसूर क्या है? आरक्षण का लाभ सरकार को देना है और जाट समुदाय को लेना है। ऐसे में आम व्यक्ति का क्या सरोकार है? हरियाणा में किसी की भी हिम्मत नहीं है कि वह जाटों को आरक्षण देने का विरोध करें। जब विरोध में कोई है ही नहीं तो लोगों की दुकान, मकान, वाहन आदि क्यों जलाए जा रहे हैं? अच्छा हो जाट समुदाय अन्नदाता की भूमिका निभाते हुए समाज की सभी जातियों की सुरक्षा का ख्याल रखे। जाट अन्नदाता ही नहीं है बल्कि देश का सुरक्षा प्रहरी भी है। आज बड़ी संख्या में जाट युवक सेना में कार्यरत हैं। कश्मीर के पंपोर में जो कैप्टन पवन कुमार शहीद हुए वह भी हरियाणा के जींद के जाट ही थे। अपने इकलौते पुत्र की मौत के बाद भी पवन के पिता को यह गर्व था कि उनका बेटा देश की सुरक्षा के खातिर शहीद हुआ है। एक ओर जब पवन कुमार ने देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपने सीने में गोली खाई और दूसरी ओर हरियाणा में आंदोलन की वजह से लोग परेशान हो तो दोनों घटनाओं में तालमेल नहीं बैठता है। सरकार को भी ऐसा कोई ठोस कदम उठाना चाहिए, जिससे हरियाणा में आंदोलन समाप्त किया जा सके।
 (एस.पी. मित्तल)  (22-02-2016)
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पाक आतंकियों की गोलियों के बीच पाक शायर की कैसे होती शायरी।



अजमेर में 'मुशायरा शायरी सरहद से परे का कार्यक्रम रद्द हुआ। 
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22 फरवरी को अजमेर के जवाहर रंगमंच पर 'मुशायरा शायरी सरहद से परे का कार्यक्रम होना था। इस कार्यक्रम में पाकिस्तान के शायर अब्बास शाबिस, मुम्बई के शायर ए.एम.तुराज और शीनकाफ निजाम की शायरी होने वाली थी। लेकिन 21 फरवरी को भाजपा के जिलाध्यक्ष अरविंद यादव और युवा मोर्चे के जिलाध्यक्ष विनीत पारीक ने कार्यक्रम के आयोजक रास बिहारी गौड से साफ कहा कि जब हमारी सेना के जवान कश्मीर के पम्पोर में पाकिस्तान के आतंकियों की गोलियां खा रहे हैं, तब अजमेर में पाकिस्तान के शायर की शायरी कैसे सुनी जा सकती है? भले ही यह कार्यक्रम सांस्कृतिक आदान प्रदान का हो, लेकिन देश में ऐसा माहौल नहीं है, जिसमें पाकिस्तान के शायर की शायरी सुनने के बाद भारत के नागरिक दाद दें। भाजपा के नेताओं ने गौड को सलाह दी कि वे कार्यक्रम को रद्द कर दें, क्योंकि यदि आम लोगों की भावनाओं के खिलाफ कार्यक्रम हुआ तो माहौल बिगड़ सकता है। गौड को यह भी बताया कि पम्पोर में पाकिस्तानी आतंकवादियों की भारतीय सेना से जो मुठभेड़ चल रही है, उसमें अब तक पांच से भी ज्यादा सेना के जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें दो जांबाज कैप्टन भी शामिल हैं। 
कार्यक्रम के आयोजक गौड ने समझदारी दिखाते हुए कार्यक्रम को रद्द करने की घोषणा कर दी है। मालूम हो कि गौड देश के ख्यातनाम हास्य कवि हंै। गौड लाफ्टर चैलेंज में भी भाग ले चुके हैं तथा पिछले दो वर्षों से अजेमर लिटे्ररेचर फेस्टिवल भी करवा रहे हैं। चूंकि अगले कुछ माह में लिटे्ररेचर फेस्टिवल तीसरी बार होना है। इसलिए उसी क्रम में मुशायरे का कार्यक्रम 22 फरवरी को अजमेर में रखा गया है। 
न हों पाक कलाकारों के कार्यक्रम:
विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि संगठनों से जुड़े नेता शशि प्रकाश इंदौरिया, शरद गोयल, आनंद प्रकाश अरोड़ा आदि ने कहा है कि अजेमर में किसी भी पाक कलाकार के कार्यक्रम को नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि एक ओर पाकिस्तान के आतंकी भारत की सीमा में घुसकर हमारे जवानों और निर्दोष लोगों को मार रहे हैं, तब पाकिस्तान के कलाकार हमारे ही देश में आकर कार्यक्रम कैसे कर सकते हैं। कार्यक्रमों के आयोजकों को भी सोचना चाहिए कि ऐसे कार्यक्रम क्यों करवाएं जा रहे हैं। पदाधिकारियों ने कहा कि आयोजकों को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देशहित में सोचना चाहिए। मौत का दर्द कैसा होता है यह बात पम्पोर में शहीद हुए जवानों के परिवार वालों से समझना चाहिए।
 (एस.पी. मित्तल)  (22-02-2016)
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जरुरतमंदों के लिए डे्रस एकत्रित करने का काम शुरू



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मैंने 21 फरवरी को अपने एक ब्लॉग में समाजसेवी दिनेश गर्ग की भावना प्रकट की थी। गर्ग की यह पहल रही कि सम्पन्न परिवारों से ड्रेस लेकर जरुरतमंद परिवारों तक पहुंचाई जाए। इस सकारात्मक पहल का मैंने भरपुर समर्थन किया। मुझे बेहद हर्ष है कि अजमेर शहर के अनेक सम्पन्न परिवारों ने ड्रेस देने के प्रस्ताव किए हैं। इसके लिए डे्रस एकत्रित करने का काम भी 22 फरवरी से शुरू हो गया। अनेक लोगों ने समाजसेवी दिनेश गर्ग को डे्रस के पैकेट देना आरंभ कर दिया है। मुझे अजमेर शहर के निकटवर्ती ब्यावर, किशनगढ़, नसीराबाद, पुष्कर आदि से भी प्रस्ताव मिले हैं कि ड्रेस एकत्रित करने के सेंटर यहां भी बनाए जाएं। इस पहल के अगले चरण में जिले के प्रमुख शहरी क्षेत्रों में ऐसे सेंटर बनाए जाएंगे। अजमेर शहर में निम्न स्थानों पर डे्रस एकत्रित करने का काम शुरू किया गया है। 
1. दिनेश गर्ग
जी.डी.सर्राफ, नया बाजार अजमेर मो. 9414004630
2. संजीव कुमार गर्ग
नुपुर लुब्रिकेंटस, गुजराती स्कूल के सामने, कचहरी रोड, अजमेर मो.9413570095
3. मोहिनी गुप्ता
रवि स्टूडियो, मार्टिंडल ब्रिज के पास, अजमेर मो. 9828143056
4. डेब्स फूडस ऑन लाइन फूड पैक
राम भवन के सामने रैम्बुल रोड, शास्त्री नगर अजमेर
मो. 9462604630
5. विपुल मेहता 
के.जे. मेहता एंड ब्रदर्स, मदार गेट, अजमेर मो. 9414708350
6. गणगौर पीजा पॉइंट
स्वामी कॉम्प्लेक्स के पास, इंडिया मोटर्स सर्किल, अजमेर मो. 9829070390
7. जकरिया गुर्देजी
ख्वाजा महल होटल, लंगार खाना गली, खादिम मोहल्ला, अजमेर मो. 9829073492
8. श्रीमती ज्योति जैन
निदेशक-वृंदावन पब्लिक स्कूल, माकड़वाली रोड, अजमेर, मो. 9928291590

Sunday 21 February 2016

अमीरों के मन से उतरी डे्रस गरीबों के तन से लगेगी।



समाजसेवी दिनेश गर्ग ने की सकारात्मक पहल।
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समाज में अमीर और गरीब की खाई गहरी है। एक ओर धनाढ्य परिवार हैं जो 10 हजार रुपए तक की पेंट, शर्ट खरीदते हैं और एक महीने बाद ही ऐसी डे्रस को कचरे के ढेर में पटक देते हैं। इस एक माह में भी डे्रस को तीन, चार बार ही पहना जाता है। मन से उतरने अथवा फैशन के बदलने की वजह से नई डे्रस बेकार हो जाती है। दूसरी ओर ऐसे परिवार हैं, जहां एक हजार रुपए में डे्रस खरीदी जाती है और फिर पिता के बाद जवान बेटा भी उसी पेंट और शर्ट को पहनते हैं। समाज में ऐसे भी परिवार हैं जिनके पास ड्रेस खरीदने के लिए पांच सौ अथवा एक हजार रुपए भी नहीं है। इस खाई को थोड़ा पाटने का काम अजमेर के समाजसेवी दिनेश गर्ग ने शुरू किया है। गर्ग धनाढ्य परिवार से डे्रस लेकर उन गरीब परिवारों तक पहुंचाएंगे, जिनको इसकी जरुरत हैं। 
ऐसा नहीं गर्ग पहली बार यह काम कर रहे हो, इस तरह के काम समाज में होते रहते हैं। ऐसे कामों में निरंतरता बनी रहे इसलिए गर्ग ने सकारात्मक पहल की है। मैं अपने इस ब्लॉग से गर्ग पहल को सहयोग करता रहूंगा, लेकिन मेरा एक सुझाव भी है। हम प्रचार माध्यम से उन व्यक्ति के फोटो दें, जिन्होंने अपनी कीमती डे्रस नि:शुल्क दी है, लेकिन उन गरीब व्यक्तियों की पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए, जिन्हें डे्रस दी जा रही है। मैंने यह देखा है कि कई बार जब किसी गरीब परिवार की कन्या का विवाह किसी के सहयोग से किया जाता है तो अखबारों में गरीब कन्या और उसके माता-पिता का फोटो भी छापा जाता है। मेरा ऐसा मानना है कि दानदाता को गरीब का उपहास नहीं करना चाहिए। मैं दिनेश गर्ग से भी अपील करता हंू कि वे एकत्रित डे्रस का वितरण खामोशी के साथ करें। यह पता न चले कि जरुरतमंद व्यक्ति को डे्रस दी गई है। 
इन स्थानों पर जमा करवाएं डे्रस
अजमेर शहर और आस-पास के धनाढ्य परिवारों के जो सदस्य अपनी ड्रेस जरुरतमंद व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते हैं, वे डे्रस को एक थैली में पैक कर निम्न स्थानों पर जमा करवा सकते हैं। संभव हो तो थैली पर नाम और पता अवश्य लिखा जावे। मोबाइल नम्बर भी अंकित किया जावे। डे्रस के पैकिट शनिवार और रविवार को ही लिए जाएंगे। 
1. दिनेश गर्ग
जी.डी.सर्राफ, नया बाजार अजमेर मो. 9414004630
2. संजीव कुमार गर्ग
नुपुर लुब्रिकेंटस, गुजराती स्कूल के सामने, कचहरी रोड, अजमेर
        मो.9413570095
3. मोहिनी गुप्ता
रवि स्टूडियो, मार्टिंडल ब्रिज के पास, अजमेर मो. 9828143056
4. डेब्स फूडस ऑन लाइन फूड पैक
राम भवन के सामने रैम्बुल रोड, शास्त्री नगर अजमेर
मो. 9462604630
5. विपुल मेहता 
के.जे.मेहता एंड ब्रदर्स,मदार गेट, अजमेर मो. 9414708350
6. गणगौर पीजा पॉइंट
स्वामी कॉम्प्लेक्स के पास, इंडिया मोटर्स सर्किल, अजमेर मो. 9829070390
7. जकरिया गुर्देजी
ख्वाजा महल होटल, लंगार खाना गली, खादिम मोहल्ला, अजमेर मो.                  
        9829073492
8. श्रीमती ज्योति जैन
निदेशक-वृंदावन पब्लिक स्कूल, माकड़वाली रोड, अजमेर, मो. 9829071110

(एस.पी. मित्तल)  (21-02-2016)
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पुलिस यदि रिश्वत न ले तो खत्म हो सकती है हर बुराई।



ख्वाजा साहब की दरगाह के बाजारों में दिखी पुलिस की ईमानदारी।
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अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की संसार प्रसिद्ध दरगाह से जुड़े प्रमुख बाजारों के दुकानदारों के बुलावे पर 21 फरवरी को मंैने दरगाह, धानमंडी, नला बाजार आदि का जायजा लिया। दरगाह बाजार, धानमंडी दुकानदार एसोसिएशन के अध्यक्ष जोधा टेकचंदानी, महामंत्री महेन्द्र जैन मित्तल, न्यू नला बाजार व्यापारिक एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश चौरसिया, मंत्री प्रकाश पंवार, कोषाध्यक्ष ताराचंद छपेड़ा, नारायण दास आदि ने बताया कि अब हमारे बाजारों में ठेले वाले, रिक्शा, थड़ी वाले आदि नहीं आते हैं तथा दुकानों के बाहर अस्थाई अतिक्रमण भी नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं दरगाह के बाहार जो भिखारी बैठ कर यातायात को बाधित करते थे, वे भिखारी भी अब नहीं आते हैं। यह सब पुलिस की ईमानदारी और मेहनत की वजह से हुआ है। दुकानदारों ने इस ईमानदारी का पूरा श्रेय दरगाह के डीएसपी दिलीप कुमार सैनी को दिया है। सैनी ने जब ईमानदारी दिखाई तो पुलिस महकमे की अंतिम कड़ी सिपाही के भी समझ में आ गया है कि अब न तो धानमंडी और नला बाजार की ओर से रिश्वत लेकर ठेले वाले को छूट दी जा सकती है। पुलिस की ही मेहरबानी से दुकानदार भी दुकान के बाहर 2 से 3 फुट की जगह पर अतिक्रमण कर पांच सौ से एक हजार रुपए प्रतिदिन के भाव से किराये पर देते थे। अब जब पुलिस ठेले, खोमचे, ऑटो, भिखारी वर्ग के साथ ही ईमानदारी दिखा रही है, तो फिर दुकानदारों को सरकारी भूमि किराये पर देने की छुट कैसे देती। यानि पुलिस ने रिश्वत छोड़ी तो दुकानदार भी ईमानदार हो गया। आज इसी का नतीजा है कि दरगाह से जुड़े प्रमुख बाजारों में जायरीन के लिए यातायात बहुत आसान हो गया है। पहले जहां जायरीन को बाजार में पैदल चलने में धक्के खाने पड़ते थे, वहां अब छोटे बच्चों के साथ भी सुगमता के साथ चला जा सकता है। 
अकेले दम पर 
आम तौर पर बाजारों से अस्थाई अतिक्रमण हटाने के लिए नगर निगम पुलिस की मदद लेता है, लेकिन दरगाह के बाजारों में नगर निगम की मदद के बिना ही पुलिस ने अकेले अपने दम पर बाजारों की सूरत बदल दी। यानि पुलिस ईमानदार हो तो हर बुराई को समाप्त किया जा सकता है। 
अभी भी है लालची दुकानदार
पुलिस की ईमानदारी के बावजूद भी कुछ दुकानदारों का लालच खत्म नहीं हुआ है। अभी भी कुछ दुकानदार अस्थाई अतिक्रमण करने का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। पुलिस ने साफ कहा है कि दुकान के आगे जो एक डेढ़ फीट की नाली बनी हुई है, उसी पर सामान रखा जा सकता है। इसके आगे यदि सामान नजर आया तो पुलिस एक्ट में चालान किया जाएगा। जिन दुकानदार, गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट के मालिकों ने बीच बाजार में बैनर लगा रखे हैं उन्हें भी हटवाया जा रहा है। 
वीआईपी वाहन
दुकानदारों का कहना है कि जब पुलिस ने इतनी सुंदर व्यवस्था कर दी है तो दरगाह में वीआईपी वाहन का प्रवेश भी बंद होना चाहिए। वीआईपी व्यक्ति के वाहन देहली गेट पर ही रोकें जाए। चाहे कोई कितना भी बड़ा व्यक्ति हो उसे देहली गेट से दरगाह तक पैदल ही लाया जाए। 21 फरवरी को भी पुलिस के एक आला अधिकारी के लिए वाहन जब दरगाह के बाहर तक आया तो जायरीन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। 

(एस.पी. मित्तल)  (21-02-2016)
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आतंकवादी और आरक्षण मांग रहे जाट आंदोलनकारी कुछ तो सोचें।



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हरियाणा के जींद में रहने वाले कैप्टन पवन कुमार अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। कश्मीर के पंपोर में एक सरकारी भवन में घुसे आतंकियों ने पवन कुमार को शहीद कर दिया। आतंकियों ने यह भी नहीं सोचा कि पवन के नहीं रहने पर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करेगा? आतंकियों ने एक बार फिर साबित किया है कि उनके मन में कोई भावनाएं नहीं होती और उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बंदूक से निकलने वाली गोली से कौन मर रहा है। आतंकियों को तो सिर्फ अपने आकाओं को खुश करना होता है इसीलिए पाकिस्तान से आकर कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं। 20 फरवरी को आतंकियों ने पवन कुमार को शहीद किया तो 21 फरवरी को जाट आरक्षण आंदोलन की वजह से कैप्टन पवन का शव सड़क मार्ग से जिंद नहीं पहुंच सका। जब आंदोलनकारी सेना के जिंदा जवानों को ही आगे नहीं बढऩे दे रहे हैं तो कैप्टन के शव का तो सवाल ही नहीं उठता। किसी ने भी इस बात के प्रयास नहीं किए, जिस कैप्टन ने अपने देश के नागरिकों की हिफाजत के लिए आतंकियों से गोली खाई है, कम से कम उस कैप्टन के शव को तो सम्मान मिले। कल्पना कीजिए यदि कैप्टन पवन अपने सीने में गोली खाकर आतंकवादियों को नहीं रोकता तो न जाने कितने नागरिक आतंकवादियों की गोली के शिकार होते। आतंकवादियों ने 20 फरवरी को पंपोर जिस सरकारी भवन में प्रवेश किया, उस समय इस भवन में कोई डेढ़ सौ नागरिक मौजूद थे। कैप्टन पवन और सीआपीएफ के दो जवानों की शहादत से ही डेढ़ सौ नागरिकों को सुरक्षित बचाया जा सका। जाट आंदोलनकारी चाहे कुछ भी मांग कर रहे हों। लेकिन जींद के कैप्टन पवन को तो सम्मान मिलना ही चाहिए। भले ही पूरा हरियाणा आंदोलन की चपेट में हो और दिल्ली के लोग प्यासे रहे, लेकिन शहीद कैप्टन के सम्मान में कोई कमी नहीं होनी चाहिए और फिर शहीद कैप्टन तो हरियाणा के ही रहने वाले हैं। हो सकता है कि कैप्टन के माता-पिता भी आंदोलनकारियों के साथ हों लेकिन वे भी कभी नहीं चाहेंगे कि उनके बेटे का शव जींद तक नहीं पहुंच पाए। 
सेना की मार्मिक अपील:
हरियाणा में जाट आंदोलन को देखते हुए सेना के अधिकारियों ने मार्मिक अपील की है। अधिकारियों ने आंदोलनकारियों से कहा है कि वे कैप्टन पवन कुमार के शव का अंतिम संस्कार करने में सहयोग करें। चूंकि आंदोलन की वजह से ट्रेन और सड़क यातायात बंद है इसीलिए सेना के सामने भी शव को जींद तक ले जाने में परेशानी हो रही है। इससे ज्यादा संवेदना की बात और क्या हो सकती है कि जिस जवान ने देश की रक्षा के लिए सीने में गोली खाई, उसी जवान के अंतिम संस्कार के लिए भी अपील करनी पड़ रही है।
(एस.पी. मित्तल)  (21-02-2016)
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तो दरगाह में जियारत क्यों नहीं की आईएएस उमराव खान ने



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राजस्थान का मुख्य सचिव नहीं बनाए जाने से खफा होकर हिन्दू से मुसलमान बने आईएएस उमराव सालोदिया उर्फ उमराव खान 20 फरवरी को एक विवाह समारोह में शामिल होने अजमेर आए। उमराव ने अपने दौरे को सरकारी बनाने के लिए रोडवेज बस स्टेण्ड का निरीक्षण भी किया। उमराव वर्तमान में रोडवेज के अध्यक्ष हैं। अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। दरगाह में जियारत के लिए भारत से ही नहीं, पूरी दुनिया से मुसलमान आते हैं। शायद ही कोई मुसलमान हो जो अजमेर आने के बाद दरगाह में जियारत नहीं करे। बल्कि जियारत के लिए जो भी असुविधा झेली जा सकती है उसे हंसते-हंसते स्वीकार किया जाता है। लेकिन नये-नये मुसलमान बने उमराव ने 20 फरवरी को अजमेर आने के बाद भी जियारत नहीं की। उमराव दरगाह में जाकर जियारत करें या ना करें, यह उनका निजी मामला है। लेकिन गत दिसम्बर माह में जब उमराव ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया तब प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था हिन्दू धर्म में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है। जबकि मुस्लिम धर्म में सभी को समान माना जाता है। चूंकि वे दलित वर्ग से हैं इसीलिए राजस्थान की भाजपा सरकार ने उन्हें मुख्य सचिव नहीं बनाया है। इस भेदभाव की वजह से ही अब उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर अपना नाम उमराव खान रख लिया है। इसके साथ ही उमराव ने आईएएस की नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया है। इस्तीफे के नियमों के मुताबिक उमराव के तीन माह आगामी मार्च में पूरे हो रहे हैं। यानी मार्च के अन्त में उमराव की स्वैच्छिक सेवानिवृति हो जाएगी। दिसम्बर में जब धर्म बदलने की घोषणा की थी तब भी उमराव पर आरोप लगे कि वे अपने निजी स्वार्थ के खातिर भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं। यदि ईमानदारी के साथ उमराव इस्लाम धर्म स्वीकार करते तो 20 फरवरी को अजमेर दौरे में सबसे पहले दरगाह में जियारत करते।
(एस.पी. मित्तल)  (21-02-2016)
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Saturday 20 February 2016

आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट सीख रही है स्कूली छात्राएं।



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अजमेर जिले की सरकारी स्कूलों की 7 हजार से भी ज्यादा छात्राएं आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण ले रही हैं। प्रशिक्षण देने का काम अजमेर जिला ताइक्वण्डों एसोसिएशन की ओर से किया जा रहा है। एसोसिएशन के अध्यक्ष और प्रशिक्षण शिविर के निदेशक प्रदीप वर्मा ने बताया कि सरकार ने प्रदेश भर में सरकारी स्कूलों में पढऩे वाली छात्राओं के लिए मार्शल आर्ट सिखाने के आदेश दिए हैं। इसी के अन्तर्गत जिलेभर में एसोसिएशन की ओर से शिविर लगाए जा रहे हैं। जिसमें स्कूलों की छात्राओं को मार्शल आर्ट सिखाया जा रहा है। ऐसे शिविर 25 फरवरी तक चलेंगे। छात्राओं को मार्शल आर्ट के विशेषज्ञ अतुल भाटी, राहुल माथुर, मानव गौड़, ऋतु भंडारी, दिक्षी जैन, गुनदीप, खुशबू, सपना छाबड़ा, दीपा तिलवानी आदि प्रशिक्षण दे रहे हैं। यह प्रशिक्षण सरकार द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप दिया जा रहा है।
(एस.पी. मित्तल)  (20-02-2016)
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क्या अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा को बंदर काट पाएंगे।



क्षेत्रीय नागरिकों को है इंतजार।
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अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा अजमेर के रेम्बुल रोड स्थित मेहबूब की कोठी के क्षेत्र में रहते हैं। यह इलाका वीआईपी माना जाता है। राजनेताओं के साथ-साथ उद्योगपति व्यापारी, प्रशासनिक अधिकारी एवं प्रमुख समाजसेवी इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। बड़े आलीशान बंगले, कोठी, मकान आदि का निर्माण हो रखा है। लेकिन पिछले दो वर्षो से इस क्षेत्र में बंदरों का ऐसा आतंक है कि सुख-चैन छीन गया है। घरों में घुसकर सामान बिखरने, मुख्य द्वार पर लगी फैन्सी लाइटों को तोडऩे, बगीचे उजाडऩे आदि की वारदातें तो हर घर में आए दिन हो रही हैं, लेकिन अब सबसे बड़ा खतरा छोटे बच्चों की जान पर आ गया है। बंदरों के आतंक की वजह से छोटे बच्चों को बाहर खेलने भी नहीं दिया जा रहा। महबूब की कोठी के क्षेत्र में अनेक नागरिक मिल जाएंगे, जिन्हें बंदरों ने काटा है। चूंकि बंदर के काटने का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में नहीं होता इसलिए धनाढ्य परिवारों के सदस्य को अपने इलाज के लिए सरकारी जेएलएन अस्पताल जाना पड़ता है। अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि बंदर काटने के सबसे ज्यादा रोगी महबूब की कोठी के क्षेत्र से ही आते हैं। जिस व्यक्ति को बंदर ने काटा है, उसे कई दिनों तक दो-दो इंजेक्शन लगवाने होते है।
ऐसा नहीं कि क्षेत्रीय नागरिकों ने नगर निगम, वन विभाग, जिला प्रशासन, पुलिस विभाग आदि को शिकायत न की हो। ढेरों शिकायतों के बाद भी इस क्षेत्र में बंदर पकडऩे का काम शुरू नहीं हुआ है। अब इस क्षेत्र के लोगों को आशा की किरण नजर आई है। हाल ही में महबूब की कोठी निवासी और भाजपा के वरिष्ठ नेता शिवशंकर हेड़ा को अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इसमें हेड़ा रातों रात इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली निवासी हो गए हैं। अब हेड़ा के घर के बाहर लालबत्ती लगी सरकारी कार भी खड़ी रहती है। क्षेत्रीय नागरिकों को अब इंतजार है बंदरों के हेड़ा को काटने का। नागरिकों का मानना है कि जब किसी प्रभावशाली व्यक्ति पर बंदर हमला करेंगे तब जाकर बंदरों के खिलाफ कार्यवाही होगी। आम पीडि़त नागरिक की तो किसी भी स्तर पर सुनवाई नहीं होती है। कुछ परेशान नागरिक तो अपने मकान की छत पर आएं बंदरों को हेड़ा के मकान की ओर भगाते रहते है।
(एस.पी. मित्तल)  (20-02-2016)
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स्वाभिमान जगाने वाले भाजपा नेताओं को ही गोद में उठाना पड़ा। मशक्कत से पहनाई सरदार पटेल की प्रतिमा को मालाएं।



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9 फरवरी को जेएनयू में देशद्रोह की जो घटना हुई, उसके मद्देनजर भाजपा ने देशव्यापी  जन स्वाभिमान अभियान चलाया है। इसके अन्तर्गत भाजपा के नेता आम लोगों का स्वाभिमान जगा रहे हैं। इसके लिए देशभक्ति का संकल्प भी करवाया जा रहा है। इसी के अन्तर्गत 20 फरवरी को अजमेर में पटेल मैदान परिसर में लगी सरदार पटेल की प्रतिमा पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। संकल्प के साथ-साथ पटेल की प्रतिमा को माल्यार्पण का कार्यक्रम भी रखा गया। आमतौर पर इस प्रतिमा पर जब कोई कार्यक्रम होता है तो एडवांस में तख्ते आदि लगाए जाते हैं ताकि उस पर खड़े होकर प्रतिमा को माला पहनाई जा सके, लेकिन भाजपा के जन स्वाभिमान अभियान के कार्यक्रम में तख्ते आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं थी इसीलिए भाजपा के प्रमुख नेताओं को कार्यकर्ताओं ने गोदी में उठाया और फिर प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। जिन नेताओं को गोदी में उठाया उनमें मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, शहर जिला अध्यक्ष अरविन्द यादव आदि शामिल हैं। बाद में इन्हीं प्रमुख नेताओं ने कार्यकर्ताओं को स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया।
(एस.पी. मित्तल)  (20-02-2016)
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हरियाणा के जाटों के सामने सेना भी बेबस। हर हाल में चाहिए आरक्षण।



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20 फरवरी को हरियाणा में उपद्रवी वाले जिलों में सेना भी पहुंच गई है, लेकिन इसके बावजूद भी जाट आरक्षण आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा है। बल्कि जाट समुदाय की एकजुटता और ताकत के आगे सेना भी बेबस है। कई जिलों में तो सेना को प्रवेश ही नहीं करने दिया गया है। बाजार की दुकान से लेकर रेलवे स्टेशन तक जलाए जा रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। हरियाणा की पुलिस तो कहीं भी नजर नहीं आ रही है। 21 में से 10 जिले ऐसे हैं जहां पूरी तरह जनजीवन ठप हो गया है। यदि अगले दो-तीन दिन में कोई समझौता नहीं हुआ तो जाट आरक्षण आंदोलन दिल्ली में घुस आएगा। जाट समुदाय की मांग है कि जिस प्रकार राजस्थान में जाटों को ओबीसी वर्ग का मानकर आरक्षण का लाभ दिया गया है, उसी प्रकार हरियाणा के जाट समुदाय को भी ओबीसी वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया जाए। सेना को बेबस करने वाले जाट समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि हरियाणा में जाट समुदाय दयनीय स्थिति में है और इस समुदाय के युवा बेरोजगार घूम रहे हैं जबकि अनेक सम्पन्न जातियां आरक्षण का लाभ ले रही हैं। ऐसा नहीं कि हरियाणा के जीएम मनोहरलाल खट्टर जाटों को आरक्षण नहीं देना चाहते। लेकिन खट्टर के सामने संवैधानिक मजबूरियां हैं। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने अपने अंतिम दिनों में वर्ष 2014 में हरियाणा सहित देश के 7 राज्यों के जाट समुदाय को ओबीसी की दर्जा देने की घोषणा कर दी थी। लेकिन एक जनहित याचिका पर वर्ष 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए सरकार के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर ही सीएम खट्टर बार-बार समझौते की बात कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा का जाट समुदाय राजी नहीं है। ऐसा भी नहीं कि हरियाणा के जाट समुदाय ने पहली बार आंदोलन किया है। हरियाणा राज्य के गठन के बाद से ही अधिकांश समय हरियाणा के सीएम के पद पर जाट समुदाय के नेता ही बैठे हैं। चौधरी देवीलाल हो या भजनलाल या फिर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा। सभी के कार्यकाल में जाटों को आरक्षण देने की मांग उठती रही। लेकिन यह पहला अवसर है कि जब आरक्षण को लेकर जाट समुदाय ने इतनी नाराजगी जताई है। चूंकि खट्टर गैर जाट हैं इसीलिए आंदोलनकारियों से वो तालमेल नहीं बैठ रहा जो देवीलाल, भजनलाल, हुड्डा आदि के समय बैठता था। आरक्षण के लिए सभी राजनीतिक दलों के जाट नेता एकजुट हो गए हैं। हरियाणा के जाटों के सामने पड़ौसी राज्य राजस्थान का सुनहरा उदाहरण है। राजस्थान में जब से जाट समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल किया गया, तब से ही सरकारी नौकरियों में जाट समुदाय के युवाओं का दखल बढ़ गया। राजस्थान में ओबीसी वर्ग की जातियों को 21 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा है। ओबीसी वर्ग में जितनी भी जातियां हैं, उन सबके मुकाबले आरक्षण का लाभ जाट समुदाय के युवाओं को ज्यादा मिलता है। इसका कारण यह है कि ओबीसी वर्ग की अन्य जातियों के मुकाबले जाट समुदाय के युवा ज्यादा पढ़े लिखे, मेहनती और समझदार होते हैं। राजस्थान लोकसेवा आयोग के माध्यम से होने वाली भर्तियों का रिकॉर्ड देखा जाए तो ओबीसी वर्ग में चयनित सबसे ज्यादा अभ्यर्थी जाट समुदाय के ही होते हैं। राजस्थान के मुकाबले हरियाणा में राजनीति पर जाट समुदाय की पकड़ ज्यादा मजबूत है। इसीलिए हरियाणा के जाट समुदाय के युवा चाहते हैं कि उन्हें ओबीसी वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया जाए। आज हरियाणा के जो हालात हो गए हैं उसमें खट्टर सरकार को कुछ ना कुछ ठोस निर्णय लेना ही पड़ेगा। हालांकि सीएम खट्टर लोकतंत्र की दुहाई देकर शांति की अपील कर रहे हैं लेकिन हरियाणा के जाट समुदाय को प्रतीत होता है कि मनोहरलाल खट्टर जैसी कमजोर सरकार हरियाणा में फिर कभी नहीं आएगी। ऐसे में अरक्षण की मांग को पूरा करवाने के लिए यही सबसे उपयुक्त समय है।
देश की राजधानी से लगे हरियाणा प्रांत में हो रही हिंसक वारदातों को लेकर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र की भाजपा सरकार भी चिंतित है। दिल्ली में जेएनयू में देशद्रोह की आग अभी सुलग ही रही है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले हरियाणा में तो आग सड़कों पर देखने को मिल रही है। देखना होगा कि नरेन्द्र मोदी और मनोहरलाल खट्टर की सरकार ताजा आंदोलन से किस प्रकार निपटती है।
ताजा हालात:
हरियाणा के जाट आंदोलन की वजह से 580 से भी ज्यादा ट्रेनें रद्द करनी पड़ी हैं तथा अब तक आगजनी से कोई तीन सौ करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। रेल और सड़क मार्ग जाम होने से सेना भी उपद्रवी इलाकों में नहीं पहुंच पा रही है। हो सकता है कि अब सेना को हेलीकॉप्टर के जरिए अशांत क्षेत्रों में पहुंचाया जाएगा।
(एस.पी. मित्तल)  (20-02-2016)
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Friday 19 February 2016

तो 6 हजार पात्र अभ्यर्थियों को क्यों वंचित किया जा रहा था आरएएस की मुख्य परीक्षा से।



आखिर कैसे भरोसा कायम होगा आरपीएससी पर।
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सवाल यह नहीं है कि राजस्थान लोक सेवा आयोग ने अपने संशोधित परिणाम में 18 फरवरी को 6 हजार 229 और अभ्यर्थियों को आरएएस 2013 की मुख्य परीक्षा के लिए पात्र घोषित कर दिया है। अहम सवाल यह है कि आखिर पहले इन 6 हजार 229 अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा से वंचित क्यों किया गया? यदि हाई कोर्ट का डंडा नहीं पड़ता तो यह 6 हजार229 अभ्यर्थी वंचित ही रहते। क्या आयोग ऐसे अभ्यर्थियों के साथ अन्याय नहीं कर रहा था? आयोग की हिमाकत तो देखिए  कि स्वयं के नजरिये से आरएएस प्री का परिणाम घोषित कर मुख्य परीक्षा की तिथि भी घोषित कर दी। यदि हाईकोर्ट का डंडा नहीं पड़ता तो मुख्य परीक्षा 25 फरवरी से शुरू कर दी जाती। 6 हजार 229 फेल अभ्यर्थियों को पात्र बनाने पर आयोग को शाबाशी लेने का अधिकार नहीं है। बल्कि हाईकोर्ट को यह चाहिए कि वह आयोग के उन अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करें, जिनकी वजह से 6 हजार 229 अभ्यर्थी फेेल कर दिए गए। आयोग ने अब मुख्य परीक्षा 9 से 12 अप्रैल के बीच लिए जाने की घोषणा की है। यानि 6 हजार 229 अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिए मात्र दो माह ही मिले हैं। क्या यह इन अभ्यर्थियों के साथ अन्याय नहीं है? पूर्व में आयोग ने 26 हजार से भी अधिक अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए पात्र घोषित किया था। यह 26 हजार अभ्यर्थी पिछले तीन माह से मुख्य परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए हैं। आयोग के ताजा निर्णय से कोचिंग मालिकों की भी चांदी हो गई है। अब आगामी दो माह तक कोचिंग सेंटर के मालिक  चांदी कूटते रहेंगे। हालांकि आयोग के अध्यक्ष ललित के. पंवार आयोग की छवि सुधारने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आरएएस प्री की परीक्षा भी पंवार के अध्यक्षीय कार्यकाल में ही हुई है। पंवार को चाहिए कि भविष्य में ऐसी गड़बड़ी न हो, इसके लिए पुख्ता इंतजाम हो। 
(एस.पी. मित्तल)  (19-02-2016)
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श्रीनगर में लगे थैंक्यू जेएनयू के नारे

देश के बहुचर्चित जेएनयू देशद्रोह के मामले में फरार चल रहे छात्र उमर खालिद के पिता ने 19 फरवरी को सनसनीखेज बयान दिया है। अमर के पिता सैय्यद कासीम इलियास ने कहा है कि मुसलमान होने के कारण उमर खालिद पर देश द्रोह का मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि 9 फरवरी को जेएनयू में जो कार्यक्रम हुआ था उसको लेकर एक पोस्टर छापा था। इस पोस्टर में जिन छात्रों के नाम दिए गए] उनमें उमर खालिद का नाम 7वें नम्बर पर था और अब उमर को पूरे मामले का मास्टर माइंड बताया जा रहा है।  इलियास ने कहा कि भले ही घर में भी उमर खालिद से हमारे विचार न मिलते हो,लेकिन मेरा बेटा देशद्रोही नहीं हो सकता। इसके साथ ही इलियास उमर से अपील की है कि वह फरारी काटने के बजाए सरेंडर करें, ताकि सच्चाई सामने आ सके। इसके साथ ही इलियास ने खालिद को सुरक्षा दिलाए जाने की मांग भी की। इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया का कोई भी पिता अपने बेटे का बुरा नहीं चाहेगा। भले ही अपने बेटे को बचाने के लिए उसे कुछ भी कहना पड़े। जेएनयू के मामले में सब जानते हैं कि देशद्रोह के जो नारे लगे, उसकी अगुवाई उमर खालिद ही कर रहा था।  इतना ही नहीं दस फरवरी को टीवी चैनलों के पैनल में भी उमर खालिद उपस्थित था। चैनलों पर भी उमर ने दो टूक शब्दों में कहा कि अफजल गुरु को भारत सरकार ने गलत तरीके से फांसी दी। उमर का यह भी कहना रहा कि संसद हमले में सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा गलत सुनाई है। 9 फरवरी को जेएनयू कैम्पस में देशद्रोह के नारे लगाने के बाद 10 फरवरी को भी चैनलों पर उमर खालिद को अपने कृत्य पर कोई अफसोस नहीं था। इस मामले में खुफिया एजेंसियों की भी रिपोर्ट है कि उमर खालिद ने ही देश की 18 यूनिवर्सिटीज में अफजल गुरु के समर्थन में कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई थी।  
श्रीनगर में थैंक्यू जेएनयू के नारे लगे:
इधर दिल्ली में उमर खालिद को बचाने के हर संभव प्रयास हो रहे हैं तो उधर 19 फरवरी को कश्मीर के श्रीनगर में थैंक्यू जेएनयू के नारे खुलेआम लगाए गए। प्रदर्शनकारियों ने हमेशा की तरह आतंकी संगठन आईएस के झंडे लहराए और भारत विरोधी नारे लगाए। जो लोग जेएनयू की देशद्रोह की घटना को झुठलाने में लगे हुए हैं वे अब बताए कि श्रीनगर में थैंक्यू जेएनयू के नारे कौन लगा रहा है। क्या कश्मीर अलगाववादियों के तार जेएनयू से जुड़े हुए हैं। 
4 लाख निर्वासित हिन्दुओं की चिंता नहीं
9 फरवरी को जेएनयू में जिन लोगों ने भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए, उनको बचाने के लिए अनेक लोग सामने आ गए है? यहां तक कि मीडिया का एक वर्ग भी ऐसी स्टोरी चला रहा है, जिसमें 9 फरवरी की सच्चाई को झूठलाया जा सके, लेकिन वहीं देश के उन चार लाख हिन्दुओं की किसी को भी चिंता नहीं है,जिन्हें अलगाववादियों ने कश्मीर से पीट-पीट कर भगा दिया। सब जानते हैं कि कश्मीर से हिन्दुओं को भगाने के लिए महिलाओं के साथ ज्यादती के कृत्य भी किए हैं। आज पूरा कश्मीर हिन्दू विहीन हो गया है। सवाल उठता है कि जब कुछ लोग देशद्रोहियों के समर्थन में आ सकते हैं तो फिर निर्वासित हिन्दुओं की चिंता क्यों नहीं की जा रही? आज भी कश्मीर से भगाए गए हिन्दू शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं। कहने को केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है और कश्मीर में भाजपा के सहयोग से ही दूसरी बार पीडीपी की सरकार बनाने के प्रयास हो रहे हंै। कश्मीरी पंडित तो कश्मीर को आजाद करने की मांग भी नहीं कर रहे। इसे राजनीति का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि कश्मीर पर वो लोग हावी हैं, जो उसे आजाद करवाना चाहते हैं। भाजपा की मजबूरी भी देखिए कि जेएनयू में कश्मीर की आजादी के लिए जो लोग नारे लगाते हैं, उन्हें तो देशद्रोही मानकर कार्यवाही की जाती है, तो वहीं कश्मीर में खुलेआम अलगाववादियों का समर्थन करने वाली पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने के लिए भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इतना ही नहीं कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर में बसाने के अपने वायदे से भी भाजपा पीछे हट गई है। धारा 370 हटाने की बात तो हवा हो गई है। 

(एस.पी. मित्तल)  (19-02-2016)
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डेढ़ किलो मीटर की दौड़ भी नहीं लगा सके सेना में भर्ती होने आए युवक।


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देश के युवाओं की फिटनेस कैसी है, इसका उदाहरण 19 फरवरी को अजमेर की कायड़ विश्राम स्थली के मैदान पर देखने को मिला। सेना में भर्ती के लिए 5 हजार 500 युवाओं को 1.6 किलोमीटर की दौड़ लगाने को कहा गया, लेकिन 5 हजार युवा निर्धारित समय में डेढ़ किलोमीटर की दौड़  पूरी नहीं कर सके। फलस्वरूप सेना के अधिकारियों ने पहले ही राउंड में पांच हजार युवओं को मैदान से बाहर कर दिया। अजमेर में 19 फरवरी से राज्य स्तरीय सेना भर्ती शुरू हुई है। यह भर्ती आगामी 28 फरवरी तक चलेगी। 19 फरवरी को भीलवाड़ा और राजसमंद जिले के युवाओं को बुलाया गया है। 
माकूल इंतजाम:
इस बार सेना भर्ती रैली के लिए अजमेर जिला प्रशासन के सहयोग से माकूल इंतजाम किए गए हैं। सेना के अधिकारियों ने भी एक दिन में दो या तीन जिले के युवाओं को ही बुलाया है। इससे आने जाने में भी भगदड़ नहीं हो रही है। 19 फरवरी को राजसमंद और भीलवाड़ा जिले के करीब 6 हजार युवाओं को बुलाया गया है। चूंकि दौड़ आदि का काम प्रात: 6 बजे से ही शुरू हो जाता है। इसलिए युवा एक दिन पहले ही कायड़ विश्राम स्थली पर आ रहे हैं। सैन्य प्रशासन ने यहां युवाओं के रात्रि विश्राम के माकूल इंतजाम भी किए हैं। इस बार सेना रैली को लेकर कोई अफरा तफरी भी नहीं हो रही है। 

(एस.पी. मित्तल)  (19-02-2016)
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अनिता भदेल के फ्लेक्स पर बैठकर देवनानी समर्थकों ने किया सद्बुद्धि यज्ञ।


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राजनीति में कैसे-कैसे तांडव होते हैं, इसका उदाहरण 18 फरवरी को अजमेर में भाजयूमो के सद्बुद्धि यज्ञ में देखने को मिला। हुआ यूं कि जेएनयू के मसले पर भाजयूमो की ओर से गांधी भवन परिसर में एक सद्बुद्धि यज्ञ रखा गया। अजमेर की भाजपा की राजनीति में सब जानते हैं कि स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी और महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल के बीच 36 का आंकड़ा है। खाई इतनी गहरी है कि दोनों एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते। ऐसे खींचतान के माहौल में भाजयूमो के कार्यकर्ताओं ने अनिता भदेल के फोटो वाले फ्लेक्स पर बैठकर सद्बुद्धि यज्ञ किया। युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष विनीत पारीक को देवनानी का समर्थक माना जाता है। मजे की बात यह है कि फ्लेक्स पर जहां देवनानी के समर्थक बैठे हुए है, वहीं अनिता भदेल का फोटो भी नजर आ रहा है। चर्चा है कि इस फ्लेक्स का इस्तेमाल देवनानी के समर्थकों ने जानबूझकर किया। वहीं जिला अध्यक्ष विनीत पारीक का कहना है कि जिस समय यज्ञ की शुरुआत की गई, तब बरसात की संभावना थी इसलिए फ्लेक्स को दरी के तौर पर काम में लिया गया। इसमें कोई दुर्भावना नहीं है। जहां तक फ्लेक्स पर अनिता भदेल के फोटो का सवाल है तो इसी फ्लेक्स पर देवनानी का फोटो भी अंकित है। उन्होंने माना कि मंत्रियों वाले फोटो के फ्लेक्स का उपयोग कार्यकर्ताओं के बैठने के लिए नहीं करना चाहिए था। जब उनसे पूछा गया कि फ्लेक्स पर सिर्फ अनिता भदेल का फोटो ही क्यों नजर आ रहा है तो पारीक ने कहा कि इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है, लेकिन वे देवनानी के साथ-साथ भदेल का भी सम्मान करते हैं। भविष्य में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि पार्टी के बैनरों का दुरुपयोग न हो।

(एस.पी. मित्तल)  (19-02-2016)
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Thursday 18 February 2016

प्रोपर्टी डीलर के दफ्तर से चलेगी अब अजमेर शहर कांग्रेस कमेटी


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18 फरवरी को विजय जैन ने अजमेर शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद संभाल लिया। चूंकि अजमेर में कांग्रेस का अपना कोई दफ्तर नहीं है, इसीलिए विजय जैन ने अपने प्रोपर्टी डीलर के केसरगंज स्थित बाबू मोहल्ला दफ्तर में ही कांग्रेस कमेटी का दफ्तर खोल लिया है। यानि शहर कांग्रेस कमेटी प्रोपर्टी डीलर के दफ्तर से संचालित होगी। विजय जैन अजमेर में प्रोपर्टी के कारोबार के साथ-साथ पीडब्ल्यूडी जैसे बड़े सरकारी संस्थानों में ठेकेदारी का काम भी करते हैं। यही वजह रही कि कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद प्रोपर्टी डीलर और ठेकेदार जैन के समर्थन में आ गए। ठेकेदारों ने प्रचार सामग्री में जैन के साथ अपने फोटो भी छपवाए।
खटाणा की मेहरबानी से बने अध्यक्ष
हालांकि विजय जैन कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे लेकिन शहर अध्यक्ष बनवाने में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट के विश्वासापात्र जी.आर. खटाणा की मेहरबानी रही। कहा जा रहा है कि अजमेर के ए श्रेणी के एक ठेकेदार के कार्यों में विजय जैन और खटाणा की साझेदारी है। चूंकि जैन को ऊपर से पूरा संरक्षण है इसलिए कांग्रेस का दफ्तर प्रोपर्टी डीलर के दफ्तर में खोलने पर कोई हिचक नहीं रही। अब देखना होगा कि प्रोपर्टी का कारोबार करते हुए विजय जैन अजमेर में विपक्ष की भूमिका किस प्रकार से निभाएंगे। अलबत्ता 18 फरवरी को जब जैन ने पदभार संभाला तो अजमेर के अधिकांश कांग्रेस उपस्थित थे, इसका कारण यह रहा कि कोई भी नेता प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को नाराज नहीं करना चाहता है।
किस बात का पदग्रहण
18 फरवरी के समारोह को भले ही पदग्रहण कहा जाए लेकिन सवाल उठता है कि किस बात का पदग्रहण हुआ? जब कांग्रेस का दफ्तर तक नहीं है तो पदग्रहण की बात कहां से आ गई। असल में पदग्रहण के समारोह की आड़ में शक्ति प्रदर्शन किया गया।
(एस.पी. मित्तल)  (18-02-2016)
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251 रुपए में स्मार्ट फोन देने के नाम पर धोखा? भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने की जांच की मांग।



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नोएडा की कंपनी रिंगिंग बेल्स ने मात्र 251 रुपए में स्मार्ट फोन देने का वायदा किया है। सस्ते फोन के लालच में 18 फरवरी को कई लाख लोगों ने ऑन लाइन राशि जमा करवा कर फोन बुक भी करवा दिया है, लेकिन वहीं अब धोखे की आशंका भी हो गई है।  बड़ी-बड़ी कंपनियों का भ्रष्टाचार उजागर करने वाले भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने केन्द्र सरकार से इस मामले की जांच की मांग कमी है। सोमैया ने सरकार से कहा है कि यह कंपनी मात्र 251 रुपए में किस प्रकार स्मार्टफोन दे देगी, इसकी जांच होनी चाहिए। अब तक जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार कंपनी ने भारत में स्मार्ट फोन बेचने का कोई सरकारी लाइसेंस अथवा स्वीकृति भी नहीं ली है। यह वजह रही 17 फरवरी को फोन की लॉचिंग के समारोह में केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी शामिल नहीं हुए। जबकि कंपनी ने अपने विज्ञापन में पर्रिकर के नाम का उल्लेख किया था। इस मामले में गंभीर बात यह है कि जिस दैनिक भास्कर अखबार ने कपंनी का विज्ञापन प्रथम पृष्ठ पर छापा, उसने भी 251 रुपए में स्मार्ट फोन उपलब्ध करवाने से अपना पल्ला झाड़ लिया है। भास्कर के 18 फरवरी के अंक में ही खबर छापी गई है। इस खबर में खुद भास्कर ने लिखा है कि कंपनी के प्रेसिडेंट अशोक चढ्ढा ने यह बताने से इंकार कर दिया है कि 251 रुपए में मोबाइल किस प्रकार उपलब्ध करवाया जाएगा। इतना ही नहीं कंपनी के प्रमोटर मोहित गोयल की पत्नी धारणा गोयल ने तो स्पष्ट कहा है कि माकेर्टिंग प्लान की घोषणा बाद में की जाएगी। 
मात्र 251 रुपए में स्मार्ट फोन को लेकर देशभर में चर्चा हो रही है। सवाल उठता है कि क्या देश में कोई नियम कायदा नहीं है? कोई भी कंपनी अखबार में विज्ञापन देकर लोगों से राशि वसूले और सरकार देखती रहे। क्या रिंगिंग बेल्स कंपनी से यह कोई पूछने वाला नहीं है कि 251 रुपए में स्मार्ट फोन कैसे उपलब्ध करवाएगी? ऐसा न हो कि जून माह में कपंनी फोन देने से पहले कोई और राशि की डिमांड कर दे। सरकार को चाहिए पहले इस कंपनी के मार्केटिंग प्लान की घोषणा करवाए।  सरकार को उपभोक्ता को लुटेरी कंपनियों के भरोसे नहीं छोडऩा चाहिए। 18 फरवरी को मैंने भी कंपनी के फोन नम्बरों पर सम्पर्क करने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। यहां तक कि कंपनी के सर्विस सेंटरों के फोन नम्बर भी नहीं लगे। जो लोग 251 रुपए में स्मार्ट फोन लेने का लालच कर रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि फोन के लिए किसी ऑपरेट कंपनी की सिम भी लेनी पड़ेगी। ऐसा न हो कि रिंगिंग बेल्स वाले किसी एक कंपनी की सिम ही लेने के लिए बाध्य करें। हो सकता है कि कॉल और इंटरनेट का शुल्क अधिक वसूला जाए। कंपनी अभी तथ्यों को छिपा रही है। इसलिए धोखा होने की आशंका ज्यादा है। 


(एस.पी. मित्तल)  (18-02-2016)
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तो फिर राहुल गांधी जेएनयू के कैम्पस में क्यों गए थे।



राष्ट्रपति से मिलने के बाद कहा देशद्रोहियों को मिले सजा।
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18 फरवरी को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद राहुल ने मीडिया से कहा कि जेएनयू (JNU) के मामले में दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। राहुल ने बताया कि राष्ट्रपति को जो ज्ञापन दिया गया, उसमें भी ऐसी ही मांग है। सवाल उठता है जब राहुल गांधी देशद्रोहियों को सजा दिलवाना चाहते हैं तो फिर 13 फरवरी को आरोपियों के प्रति समर्थन जताने के लिए जेएनयू (JNU) के कैम्पस में क्यों गए थे? क्या 13 फरवरी को जो राजनीतिक गलती की थी, उसे सुधारने के लिए 18 फरवरी को राष्ट्रपति से मुलाकात की गई? 
यह तो दिल्ली पुलिस के आयुक्त बस्सी ने भी कहा है कि किसी भी निर्दोष को देशद्रोह का आरोपी नहीं बनाया जाएगा। पुलिस उन्हीं विद्यार्थियों के खिलाफ कार्यवाही करेगी, जिन्होंने भारत विरोधी नारे लगाएं हैं। असल में राहुल गांधी के सलाहकार राजनीति को देर से समझते हैं। वामदलों को छोड़कर देश का कोई भी  राजनीतिक दल भारत विरोधी नारे लगाने वालों के साथ अभी तक भी नहीं आया है। सलाहकार को इस बात को समझने में छह दिन लग गए। जो सलाहकार राहुल गांधी को 13 फरवरी को जेएनयू (JNU) के कैम्पस में ले गए, उन्हीें सलहाकारों ने 18 फरवरी को राहुल गांधी को राष्ट्रपति के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। अच्छा होता कि राहुल गांधी पहले दिन ही देशद्रोहियों को सजा दिलवाने वाली बात कहते। 18 फरवरी को राहुल गांधी ने जहां दोषियों को सजा दिलवाने की बात कही, वहीं केन्द्र की भाजपा सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर भी हमला बोला। राहुल ने कहा कि भाजपा और संघ उन्हें देशभक्ति का पाठ न पढ़ाए, देशभक्ति को मेरे खून में है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी की दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी ने देश के खातिर अपनी जान दी। अब राहुल गांधी को ही यह जवाब देना है कि जो लोग उनकी दादी और उनके पिता के देश को तोडऩा चाहते हैं, उनके साथ क्या सलूक किया जावे? एक ओर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की देश के लिए शहादत है तो दूसरी ओर राहुल गांधी जेएनयू (JNU) में जाकर देशद्रोहियों का समर्थन कर रहे हैं, जिन्होंने भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए। राहुल गांधी ही बताएं यदि आज उनकी दादी और पिता जिंदा होते तो क्या भारत को तोडऩे वाले को संरक्षण देते? पूरा देश जानता है कि आतंकवादियों के खिलाफ श्रीमती इंदिरा गांधी ने ही सबसे बड़ी कार्यवाही की थी। राहुल गांधी ने सही कहा कि देशप्रेम उनके खून में है। अब राहुली गांधी को देशद्रोहियों के खिलाफ कार्यवाही करवाकर अपने देश प्रेम का परिचय भी देना चाहिए। 

(एस.पी. मित्तल)  (18-02-2016)
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Wednesday 17 February 2016

खुश है हाफिज सईद और पाकिस्तान।


जेएनयू से लेकर जादवपुर तक। 
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17 फरवरी को खुफिया एजेंसियों की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर की आजादी के लिए जिस तरह 9 फरवरी को दिल्ली के जेएनयू में नारे लगे, वैसी ही नारे देश की 18 यूनिवर्सिटी में एक साथ लगने थे। इसके लिए उमर खालिद नामक छात्र नेता ने संबंधित यूनिवर्सिटीज में सम्पर्क भी किया। खुफिया एजेंसियों की इस रिपोर्ट की पुष्टि 16 फरवरी की घटना से होती है। 16 फरवरी को पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी में जेएनयू की तर्ज पर ही विरोध प्रदर्शन हुआ। यानि दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल तक कश्मीर की आजादी को समर्थन मिल रहा है। अब केन्द्रीय सरकार ने बंगाल सरकार से जादवपुर यूनिवर्सिटी की घटना पर रिपोर्ट मांगी है। सब जानते हैं कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी हैं। ममता बनर्जी की सरकार कैसी रिपोर्ट देंगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इधर हालत ये हैं कि दिल्ली पुलिस को उन 10 युवकों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला है, जिन्होंने 9 फरवरी को भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए थे। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में देश की अन्य यूनविसॢटज में भी भारत विरोधी माहौल देखने को मिले। यह सब एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत हो रहा है। 
पिछले कुछ दिनों से भारत में जो माहौल बना है,उससे पाकिस्तान में बेठा हाफिज सईद बेहद खुश होगा। हाफिज सईद पहले भी कई बार कह चुका है कि भारत में उसके ढेरों समर्थक हैं। यह वही हाफिज सईद है, जिसने मुम्बई पर 26/11 का आतंकी हमला करवाया और आज भी भारत पर आतंकी हमलों की धमकी देता है। हाफिज सईद को भी यह उम्मीद नहीं होगी कि उसे भारत में इतना समर्थन मिलेगा। हाफिज को यह समर्थन तब मिल रहा है, जब वह भारत में लगातार आतंकी हमले करवा रहा है। इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि 9 फरवरी को जेएनयू में जो कुछ हुआ उसके तार क्या हाफिज सईद से जुड़े हुए हैं? भारत के लिए यह अफसोसनाक बात है कि देशद्रोहियों को भी राजनेताओं का समर्थन मिल रहा है। हाफिज सईद के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि देशद्रोह के आरोपी छात्र के प्रति समर्थन जताने के लिए कांग्रेस  के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू पहुंच गए। वामदलों के नेता तो शुरू से ही उन छात्रों के साथ हैं, जिन्होंने भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए। 
जिम्मेदार कौन?
जो लोग देशद्रोही युवकों का समर्थन कर रहे हंै, उनका अब यह भी कहना है कि पहले उन हालातों की जांच की जाए, जिसमें छात्रों को भारत विरोधी नारे लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा। ऐसे समर्थक यह समझे कि आजादी के बाद देश पर 60 वर्षों तक कांग्रेस और वामदल जैसों का शासन रहा। इन सत्ताधारियों की नीतियों की वजह से ही पहले कश्मीर के हालात बिगड़े और अब अनेक राज्यों में ऐसी ताकतें भारत को तोडऩा चाहती हैं। सवाल यह नहीं है कि वर्तमान हालातों से पीएम नरेन्द्र मोदी कैसे निपटेंगे? सवाल यह है कि आखिर इस देश में देशद्रोहियों की इतनी बड़ी फौज कैसे तैयार हुई। गंभीर बात तो है कि विधायक, सांसद, मंत्री बनने वाले लोग देश की एकता और अखंडता बनाए रखने को शपथ लेते हैं। लेकिन ऐसे लोग इस शपथ को तोडऩे में कोई हिचक नहीं दिखाते। यदि देशद्रोहियों पर सख्त कार्यवाही नहीं की गई तो हालात और बिगड़ेंगे। 
वकीलों में दो फाड़
जेएनयू में देशद्रोह के मामले को लेकर वकीसों में दो फाड़ हो गई है। 17 फरवरी को दिल्ली के पटियाला कोर्ट में जब गिरफ्तार छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पेश किया गया तो वकील आमने-सामने हो गए। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान विवाद की स्थिति देखने को मिली। वकीलों केआपसी झगड़े में भी प्रतीत होता है कि एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत देशद्रोह के मुद्दे पर विवाद खड़ा करवाया जा रहा है। 17 फरवरी को दिल्ली पुलिस का रवैय्या भी गैर जिम्मेदाराना नजर आया। पटियाला कोर्ट ने कन्हैया कुमार को आगामी 2 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। इस बीच कन्हैया कुमार ने एक पत्र लिखकर कहा है कि उसने जेएनयू कैम्पस में देश विरोधी नारे नहीं लगाए।
(एस.पी. मित्तल)  (17-02-2016)
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वसुंधरा राजे के राज मे लड़कियों का सीना पुरुष जवानों ने नापा।


बेशर्मी की हद हो गई।
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आमतौर पर यह माना जाता है कि जब किसी राज्य की मुख्यमंत्री कोई महिला होती है तो महिलाओं के प्रति सरकार का रवैया बेहद संवेदनशील होता है, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण  ही कहा जाएगा कि राजस्थान में वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री होने के बाद भी महिलाओं के प्रति असंवेदनशील रवैया खुलेआम दिखाया जा रहा है। 16 फरवरी को राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ जिले में वन सुरक्षा गार्ड की भर्ती के लिए युवक-युवतियों का शारीरिक दक्षता जांची गई। नियमानुसार युवतियों की शारीरिक जांच महिला जवानों के द्वारा ही की जाती है, लेकिन चित्तौड़ में महिला अभ्यर्थियों की शारीरिक दक्षता की जांच भी वन विभाग के पुरुष जवानों ने ही की। बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब जवानों ने इंचीटेप महिला अभ्यर्थी के सीने पर रखा और कहा कि अब सीना फुलाओं। कल्पना की जा सकती है कि जब कोई पुरूष किसी महिला के सीने पर हाथ रखे खड़ा हो और फिर उसे सीना फुलाने के लिए कहा जाए तो उस महिला की स्थिति क्या होगी? लेकिन चित्तौड़ में महिला अभ्यर्थियों की यह मजबूरी रही कि उन्हें पुरुष जवानों के कहने पर अपना सीना फुलाना पड़ा। शर्मनाक बात तो यह है कि इस मामले में चित्तौड़ के वन अधिकारी अपनी गलती को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इस संबंध में 17 फरवरी को जब वन मंत्री राजकुमार रिणवा का ध्यान आकर्षित किया गया तो उन्होंने कहा कि इस मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ एक घंटे में कार्यवाही कर दी जाएगी। लेकिन वन मंत्री होने के बाद भी रिणवा दोषी अधिकारियों के खिलाफ दिनभर में भी कोई कार्यवाही नहीं करवा सके। यह तब हो रहा है जब राजस्थान  की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वसुंधरा राजे विराजमान है। सार्वजनिक समारोह में वसुंधरा राजे जिस प्रकार महिलाओं को लेकर लच्छेदार भाषण देती है उसे देखकर लगता है कि सरकार की कथनी और करनी में फर्क है।


(एस.पी. मित्तल)  (17-02-2016)
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