Saturday 30 December 2023

पुष्कर तीर्थ के महत्व की वजह से सुरेश रावत कैबिनेट मंत्री बने।अनिता भदेल के मंत्री बनने में पांच बार की विधायकी ही रोड़ा बनी।अजमेर डेयरी के अध्यक्ष चौधरी के दामाद सुमित गोदारा भी मंत्री बने।

पुष्कर से लगातार तीसरी बार के विधायक सुरेश रावत को भी 30 दिसंबर को भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। यंू तो भाजपा के कई विधायक हैं जो तीसरी बार विधायक बने, लेकिन सुरेश रावत को कैबिनेट मंत्री बनाने के पीछे पुष्कर का धार्मिक महत्व होना भी है। भाजपा की हिंदुत्ववादी छवि के मद्देनजर पुष्कर तीर्थ का खास महत्व है। यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि पुष्कर तीर्थ के विधायक को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पुष्कर में यज्ञ किया था। जिस स्थान पर यज्ञ किया उसी पर आज पवित्र सरोवर बना हुआ है। इस सरोवर में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे राजनीति का संयोग ही कहा जाएगा कि सुरेश रावत ने तीनों बार कांग्रेस की मुस्लिम प्रत्याशी श्रीमती नसीम अख्तर को हराया है। पुष्कर अजमेर जिले में आता है और जिले से श्रीमती अनिता भदेल पांचवीं बार, ब्यावर से शंकर सिंह रावत चौथी बार तथा रामस्वरूप लांबा व शत्रुघ्न गौतम दूसरी बार विधायक बने हैं। लेकिन इन सभी विधायकों की अनदेखी कर सुरेश रावत को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। सुरेश रावत की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन मंत्री बनाने के पीछे सबसे बड़ा आधार पुष्कर का धार्मिक महत्व है। मंत्री बनने के बाद रावत ने कहा भी है कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता पुष्कर का चहुंमुखी विकास करना होगा। मंत्री का दायित्व वे पुष्कर राज की सेवा कर निभाएंगे। पुष्कर राज के आशीर्वाद की वजह से ही उन्हें मंत्री बनने का अवसर मिला है।
 
मंत्री बनने में रोड़ा:
न्यूज चैनल वाले 30 दिसंबर को दोपहर तीन बजे तक अजमेर दक्षिण क्षेत्र की भाजपा विधायक अनिता भदेल के मंत्री बनने की खबर प्रसारित कर रहे थे, लेकिन जब सवा तीन बजे मंत्रियों ने एक एक कर शपथ ली तो पता चला कि भदेल को मंत्री नहीं बनाया गया है। अनिता भदेल मंत्री बनने के सभी मापदंडों पर खरी उतरती है। भदेल भाजपा में अनुसूचित जाति का चेहरा होने के साथ साथ महिला भी हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि लगातार पांचवीं बार विधायक बनना मंत्री बनने में सबसे बड़ा रोड़ा रहा। इस बार भाजपा की नौ महिला विधायक हैं। सांसद दीया कुमारी को पहले ही डिप्टी सीएम बना दिया गया। 30 दिसंबर को नागौर की जायल सीट की विधायक डॉ. मंजू बाघमार को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। यदि अनिता भदेल पांच बार की विधायक नहीं होती तो उन्हें भी मंत्री बना दिया जाता। आमतौर पर राजनीति में वरिष्ठता को महत्व मिलता है, लेकिन भाजपा में बदलती राजनीति के कारण नए चेहरों को अवसर दिया जा रहा है। अब देखना होगा कि श्रीमती भदेल की भाजपा की राजनीति में क्या भूमिका होती है।
 
चौधरी के दामाद भी मंत्री:
अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी के दामाद सुमित गोदारा को भी तीस दिसंबर को भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। गोधरा बीकानेर के लूणकरणसर से दूसरी बार विधायक बने हैं। भाजपा की राजनीति में  गोदारा   को केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का समर्थक माना जाता है।  गोदारा   ने भाजपा में जो मेहनत की उसी का परिणाम है कि उन्हें मंत्री बनाया गया है। गोदारा    के मंत्री बनने पर रामचंद्र चौधरी को भी बधाईयां मिल रही है। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 31-12-2023)
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Tuesday 26 December 2023

कांग्रेस शासित कर्नाटक में मारवाड़ी दुकानदारों को भी साइन बोर्ड पर 60 प्रतिशत लिखावट कन्नड़ भाषा में करना अनिवार्य। नहीं तो दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं होगा।

कांग्रेस अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव की रणनीति बना रही है। मौजूदा समय में लोकसभा में कांग्रेस के 52 सांसद हैं, लेकिन कांग्रेस अपने सांसदों की संख्या बढ़ाना चाहती है, इसलिए भाजपा उम्मीदवार के सामने विपक्ष का एक संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने की रणनीति बनाई जा रही है। कांग्रेस चाहती है कि उसके प्रभाव वाले राज्यों में अन्य विपक्षी दल समर्थन दें, ताकि भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा न हो। यानी कांग्रेस को हिन्दी भाषी राज्य यूपी, एमपी, दिल्ली, राजस्थान आदि में हिन्दी भाषी मतदाताओं के एकमुश्त वोट मिल सके, लेकिन वहीं कांग्रेस शासित कर्नाटक में मारवाड़ी दुकानदारों के साइन बोर्ड पर साठ प्रतिशत लिखावट कन्नड़ भाषा में होना अनिवार्य किया जा रहा है। कर्नाटक के कई संगठन तो दुकानदारों को धमकियां भी दे रहे हैं। यह धमकी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अपील के बाद शुरू हुई है। सिद्धारमैया ने हिंदी भाषी खासकर मारवाड़ी दुकानदारों से अपील की थी कि वे अपनी दुकान के साइन बोर्ड कन्नड़ भाषा में बनवाए। सीएम सिद्धरमैया ने तो अपील की, लेकिन कुछ संगठन खुले आम लाउड स्पीकर से धमकी दे रहे है। इससे कर्नाटक के मारवाडिय़ों में दशत का माहौल है। कर्नाटक के बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में राजस्थान से गए व्यापारियों का खास प्रभाव है। ईमानदार आचरण के कारण कन्नड़ लोग भी मारवाड़ी दुकानदार से ही सामान खरीदते हैं। कर्नाटक की स्थानीय निकाय संस्थाओं ने भी कहा है कि यदि साइन बोर्ड कन्नड़ भाषा में नहीं हुए तो दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया जाएगा। कहा जा सकता है कि कर्नाटक में आम लोगों पर कन्नड़ भाषा को जबरन थोपा जा रहा है। कर्नाटक में कन्नड़ भाषा को लेकर जो दबाव बनाया जा रहा है उस पर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता चुप हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 26-12-2023)

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राजस्थान में पहली बार के भाजपा विधायक उत्साहित क्योंकि मध्यप्रदेश में 28 में से 17 मंत्री पहली बार के विधायक हैं।सांसद से विधायक बनने वाले नेता भी खुश। 27 दिसंबर को मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारी।वासुदेव देवनानी भाग्यशाली रहे, जो पहले चरण में ही विधानसभा अध्यक्ष बन गए।

3 दिसंबर को चुनाव नतीजे आने के बाद मध्यप्रदेश में 13 दिसंबर को मुख्यमंत्री सहित दो डिप्टी सीएम ने शपथ ली और फिर 25 दिसंबर को मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। पहले विस्तार में जिन 28 विधायकों को मंत्री बनाया गया उनमें से 17 पहली बार चुने गए हैं। यही वजह है कि राजस्थान में भी पहली बार भाजपा विधायक बने नेता उत्साही है। अब तक यह परंपरा रही है कि तीन-चार या इससे भी अधिक बार चुने गए विधायकों को मंत्री बनाया जाता है। पूर्व में जो विधायक मंत्री रह चुके हैं उनके फिर से मंत्री बनने की गारंटी होती रही, लेकिन भाजपा में बदल रही राजनीति में अब नेताओं और विधायकों की वरिष्ठता के खास मायने नहीं है। उल्टे जो विधायक पूर्व में मंत्री रहे हैं उनके लिए यही माइनस पॉइंट है। मध्यप्रदेश में 28 में से 17 पहली बार के विधायकों के मंत्री बनने से जाहिर है कि नए चेहरों को आगे लाया जा रहा है। राजस्थान की तरह मध्यप्रदेश में भी सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाया गया। नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल जैसे सांसद तो केंद्र में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी थे। जिन सांसदों को विधायक बनाया गया उनमें से अधिकांश को अब मध्यप्रदेश में मंत्री बना दिया गया है। नरेंद्र सिंह तोमर को पहले ही विधानसभा अध्यक्ष घोषित किया गया और अब 25 दिसंबर को प्रहलाद पटेल को भी कैबिनेट मिनिस्टर बनाया गया। यही वजह है कि राजस्थान में सांसद से विधायक बने डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और बाबा बालक नाथ के मंत्री बनने की उम्मीद है। मध्यप्रदेश का मंत्रिमंडल बताता है कि पूर्व में जिन मंत्रियों और विधायकों की छवि साफ सुथरी रही, उन्हें फिर से मंत्री बनाया गया है। इस चयन में किसी प्रभावशाली नेता का दबाव नहीं देखा गया। राजस्थान में भी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से लेकर भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष सीपी जोशी और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी यह दावा नहीं कर सकते कि उनकी सिफारिश पर कोई विधायक मंत्री बन रहा है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रणनीति ही कहा जाएगा कि मंत्रियों के नाम भी लीक नहीं हो रहे हैं। मीडिया ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जो कयास लगाए वे सब गलत साबित हुए। संभवत: खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को यह पता नहीं कि कौन से विधायक मंत्री बनने जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के विस्तार को देखते हुए ही माना जा रहा है कि राजस्थान में 27 दिसंबर को मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। यदि विस्तार प्रातः: 11 बजे होगा तो 26 दिसंबर की रात को मंत्री बनने वाले विधायकों को सूचना पहुंच जाएगी, लेकिन यदि 27 दिसंबर को सायं चार बजे विस्तार होता है तो फिर 27 दिसंबर की सुबह ही विधायकों को सूचना मिलेगी। भाजपा के सभी विधायक सूचना का इंतजार कर रहे हैं। इसलिए किसी को भी तीन-चार घंटे में जयपुर पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होगी। जैसलमेर, बाड़मेर आदि जिलों के भाजपा विधायक तो जयपुर में ही टिके हुए हैं। शेष स्थानों के विधायक तीन चार घंटे में जयपुर पहुंच जाएंगे। मंत्रिमंडल के विस्तार के विलंब को लेकर कांग्रेस के नेता अब सवाल उठा रहे हैं, लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार भी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। मंत्रियों के चयन को लेकर जो मापदंड निर्धारित किए उनके पीछे लोकसभा चुनाव जीतना है।
 
देवनानी भाग्यशाली:
सीएम भजनलाल शर्मा, डिप्टी सीएम दीया कुमार और प्रेमचंद बैरवा की तरह भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी भी भाग्यशाली है। जिन्हें पहले चरण में ही विधानसभा अध्यक्ष का पद मिल गया। देवनानी अजमेर उत्तर से विधायक है। इस बार अजमेर जिले की आठ में से सात सीटों पर भाजपा की जीत हुई है। मसूदा से चुने गए वीरेंद्र सिंह कानावत एकमात्र विधायक है जो पहली बार के हैं। जबकि शेष विधायक दूसरी बार से लेकर पांचवीं बार तक के हैं। ऐसे में कानावत को भी मंत्री बनने की उम्मीद है। अजमेर दक्षिण से पांचवीं बार विधायक बनी श्रीमती अनिता भदेल को भी मंत्री बनाए जाने की उम्मीद है। चूंकि देवनानी विधानसभा अध्यक्ष बन गए हैं, इसलिए मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर उत्सुकता नहीं है। अब कोई विधायक मंत्री बने या नहीं इससे देवनानी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 26-12-2023)

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Saturday 23 December 2023

तो क्या बिना प्रशासनिक फेर बदल के सरकार चलाएंगे मुख्यमंत्री भजनलाल?गहलोत सरकार में राजनीतिक नजरिए से अफसरों की नियुक्तियां हुई थी।राजस्थान में मंत्रिमंडल का विस्तार 24 या 25 दिसंबर को संभव ।

22 दिसंबर को मुख्यमंत्री भजनलाल ने प्रदेश के बड़े प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की बैठक ली। इन बैठकों में सीएम ने अपनी सरकार के विजन के बारे में बताया। प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की बैठक से प्रतीत होता है कि सीएम भजनलाल को प्रशासनिक फेरबदल करने की कोई जल्दबाजी नहीं है। सीएम प्रशासनिक फेरबदल कब करते हैं, यह उनका विशेषाधिकार है। लेकिन हकीकत यह है कि पुरानी गहलोत सरकार में अधिकारियों की नियुक्ति राजनीतिक नजरिए से हुई थी। मुख्य सचिव से लेकर कलेक्टर और डीजी से लेकर पुलिस अधीक्षक तक किसी ने किसी कांग्रेस नेता की पसंद रहे। अशोक गहलोत ने जिन राजनीतिक हालातों में सरकार चलाई उस में मंत्रियों, विधायकों और सरकार बचाने वाले नेताओं को खुश रखना जरूरी था। आमतौर पर सत्ता परिवर्तन के साथ ही प्रशासनिक फेरबदल भी होता है। फेरबदल के बाद ही नए मुख्यमंत्री बड़े अधिकारियों की बैठक करते हैं, लेकिन सीएम भजनलाल ने फिलहाल बड़े अधिकारियों को यह भरोसा दिलाने का काम किया है कि वे तबादले से डरे बगैर अपना काम करते रहे। सीएम की इस पहल का प्रशासनिक क्षेत्र में स्वागत भी हुआ है। जहां तक आईएएस और आईपीएस कैडर के अधिकारियों का सवाल है तो जिस दल की सरकार होती है उसी दल के मुख्यमंत्री की हाजिरी बजाते हैं। लेकिन राजस्थान के आईएएस और आईपीएस को अब यह समझना चाहिए कि अशोक गहलोत और भजनलाल शर्मा में बहुत फर्क है। गहलोत को अपने दम पर सरकार चलानी थी, इसलिए अधिकारियों का इस्तेमाल किया। जिन अधिकारियों ने सरकार को बचाने में मदद की उन्हें गहलोत ने सेवानिवृत्ति के बाद उपकृत कर दिया। भजनलाल शर्मा को अपनी सरकार बचाने की कोई जरूरत नहीं है। भाजपा के पास बहुत से 20 विधायक ज्यादा है। इसलिए सरकार आईएएस और आईपीएस के भरोसे नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजस्थान में भाजपा सरकार की गारंटी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने दे रखी है। जिस सरकार के पास मोदी और शाह जैसा गारंटर हो उसे किसी आईएएस और आईपीएस की जरूरत नहीं है। संभवत यही वजह है कि सीएम भजनलाल शर्मा को प्रशासनिक फेरबदल की जल्दबाजी नहीं ंहै। सीएम को अपनी सरकार चलाने के लिए आईएएस और आईपीएस की जरूरत नहीं है। बल्कि इन दोनों वर्गों के अधिकारियों को सरकार में रहने के लिए काम करना होगा। अब किसी भी अधिकारी की नियुक्ति राजनीतिक सिफारिश से नहीं होगी। सीएम स्वयं गहलोत सरकार के अधिकारियों पर नजर रखे हुए हैं जो अधिकारी सरकार की मंशा के अनुरूप काम नहीं करेगा, उसका तबादला होगा। लेकिन जो अधिकारी अपनी आदत में सुधार कर काम करने लगेगा उसका ख्याल रखा जाएगा। सीएम की आईएएस डॉ. समित शर्मा जैसे अधिकारियों पर भी नजर है। सब जानते हैं कि कांग्रेस सरकार के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की स्वार्थपूर्ण नाराजगी का खामियाजा डॉ. शर्मा को उठाना पड़ा था। अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए कई बार डॉ. समित शर्मा की प्रशासनिक क्षमता की प्रशंसा की, लेकिन रघु शर्मा के सामने लाचार होने के कारण समित शर्मा का काई बार तबादला किया। नए सीएम भजनलाल शर्मा के सामने ऐसी कोई लाचारी नहीं है। नई सरकार में समित शर्मा जैसे अधिकारियों को अपनी कार्यकुशलता दिखाने का पूरा अवसर मिलेगा।
 
 विस्तार 25 को संभव:
राजस्थान में मंत्रिमंडल का विस्तार 24 या 25 दिसंबर को माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार 22 दिसंबर को हो चुका है। मध्यप्रदेश में 24 दिसंबर को होने की उम्मीद है। ऐसे में 25 दिसंबर को राजस्थान में भी विस्तार होने की संभावना है। भजनलाल शर्मा ने मुख्यमंत्री ओर दीया कुमारी व डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने डिप्टी सीएम की शपथ 15 दिसंबर को ली थी। यह तीनों नेता पिछले एक सप्ताह में दो बार दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व से मुलाकात कर चुके हैं। जिन विधायकों को मंत्री बनाया जाना है उनके नामों पर अंतिम चर्चा भी हो चुकी है। अब राष्ट्रीय नेतृत्व से जो सूची आएगी उसके अनुसार विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलवा दी जाएगी। छत्तीसगढ़ में जिन 9 मंत्रियों ने शपथ ली वे सभी कैबिनेट स्तर के हैं। माना जा रहा है कि राजस्थान में पहले चरण में 15 कैबिनेट मंत्रियों को शपथ दिलाई जाएगी। मंत्रिमंडल के दूसरे चरण में विस्तार लोकसभा चुनाव के बाद होगा। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 23-12-2023)
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राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाया जाए।क्योंकि 8वीं अनुसूची में शामिल करवाना आसान नहीं।यह राजस्थानियों और राजस्थानी भाषा का अपमान है-पद्मश्री सीपी देवल।

20 दिसंबर को राजस्थान विधानसभा में नवनिर्वाचित विधायकों की शपथ के समय कोई 25 से भी ज्यादा अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शपथ लेना चाहते थे, लेकिन प्रोटेम स्पीकर कालीचरण सराफ ने राजस्थानी भाषा में शपथ लेने से रोक दिया। सराफ का कहना रहा कि राजस्थानी भाषा को केंद्र सरकार की 8वीं अनुसूची में शामिल नहीं है इसलिए राजस्थानी भाषा की शपथ संवैधानिक नहीं हो सकती। हालांकि अनेक विधायकों ने राजस्थानी भाषा में शपथ ली और बाद में हिंदी में भी शपथ ली। चूंकि आठवीं अनुसूची में राजस्थानी भाषा का शामिल कठिन है, इसलिए अब आगामी लोकसभा चुनाव में राजस्थानी भाषा को मुद्दा बनाया जाना चाहिए। राजस्थानी भाषा को सरकारी मान्यता न होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। राजस्थानी भाषा के प्रबल समर्थक पद्मश्री सीपी देवल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस भाषा को पांच करोड़ राजस्थानी अपनी मातृभाषा मानते हों, वह भाषा आज सरकार की मान्यता के लिए तरस रही है। उन्होंने बताया कि गोवा की कोंकणी भाषा को मात्र 22 लाख लोग लिखते हैं, सरकार ने इस भाषा को मान्यता दे रखी है। जबकि राजस्थानी भाषा के प्रति उपेक्षा का भाव रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में जो देशभक्ति की कविताएं लिखी गई वे भी राजस्थानी भाषा में ही थी। एक लाख 80 हजार गायकों ने राजस्थानी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति की है। राजस्थान में राजस्थानी भाषा कला और संस्कृति से भी जुड़ी हुई है। गांव में आज भी शादी ब्याह या अन्य संस्कारों के समय राजस्थानी भाषा में ही गीत गाए जाते हैं। इतना ही नहीं चुनाव में भी अधिकांश प्रत्याशी राजस्थानी भाषा में प्रचार प्रसार करते हैं। हमारे त्योहार, व्रत आदि की कथाएं भी राजस्थानी भाषा में ही है। राजस्थानी भाषा किसी अन्य भाषा का अनुवाद नहीं है। बल्कि हमारी मूल भाषा है। पद्मश्री देवल ने सवाल उठाया कि आखिर मातृभाषा क्या होती है? जन्म के बाद मां सबसे पहले बच्चे से जिस भाषा में संवाद करती है उसे ही मातृभाषा कहा जाता है। राजस्थान के हर घर में राजस्थानी भाषा बोली जाती है। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हमारे विधायक विधानसभा में अपनी मातृभाषा में शपथ नहीं ले सकते। देवल ने कहा कि राजस्थानी भाषा को सरकार की मदद की जरूरत नहीं है। आठवीं अनुसूची में जो 22 भाषाएं शामिल हैं उनके संवर्धन और विकास के लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय बजट स्वीकृत करता है लेकिन राजस्थानी भाषा तो पहले से ही संरक्षित और प्रभावी है। आज भी हजारों ग्रंथ राजस्थानी भाषा में लिखे हुए हैं। हमारी लोक कथाएं और गीत भी राजस्थानी भाषा में है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा राजनीति का शिकार हुई है। यदि राजनीति को अलग रखकर विचार किया जाए तो आज पूरे देश में सबसे समृद्ध राजस्थानी भाषा है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा बनता है तो यह अच्छी बात है। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दखल देकर राजस्थानी भाषा को सरकारी मान्यता दिलवानी चाहिए। जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के लिए सारी बाधाओं को हटाया जा सकता है तो फिर राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए आने वाली बाधाओं को क्यों नहीं हटाया जा रहा। देवल ने कहा कि सरकारी मान्यता नहीं होने के कारण ग्राम पंचायत में भी राजस्थानी भाषा में लिखावट नहीं होगी। जबकि हम गुजरात में देखते हैं कि सभी सरकारी दफ्तरों में गुजराती भाषा में काम होता है। यहां तक कि स्थानीय अदालतों में भी गुजराती भाषा का उपयोग होता है। क्या राजस्थानी भाषा गुजराती से भी कमजोर है? उन्होंने कहा कि विधानसभा में विधायकों को राजस्थानी भाषा में शपथ नहीं लेने दिया तो उन्हें बेहद दुख हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि संविधान के जानकारों को सही मायने में संविधान की जानकारी है ही नहीं। संविधान के मुताबिक विधानसभा में असंसदीय भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। राजस्थानी भाषा को असंसदीय नहीं माना जा सकता। देवल ने कहा कि राजस्थान में प्रोटेम स्पीकर सराफ ने राजस्थानी भाषा में शपथ लेने दी। जबकि छत्तीसगढ़ में अनेक विधायकों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में शपथ ली। छत्तीसगढ़ी भाषा भी आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है। राजस्थानी भाषा की समृद्धि और सरकारी मान्यता को लेकर और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9928140717 पर पद्मश्री सीपी देवल से ली जा सकती है। 


S.P.MITTAL BLOGGER ( 23-12-2023)

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Friday 22 December 2023

सीएम और डिप्टी सीएम से विमर्श के बाद भी मंत्री की शपथ लेने वाले विधायकों के नाम लीक नहीं हो रहे।संभव: एमपी के बाद होगा राजस्थान के मंत्रिमंडल का विस्तार।

राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे भी 3 दिसंबर को आ गए थे। नतीजों के बाद भजनलाल शर्मा को सीएम व दीया कुमारी और डॉ. प्रेमचंद बैरवा को डिप्टी सीएम की शपथ दिलाई गई, लेकिन अब 20 दिन गुजर जाने के बाद भी मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पाया है। विस्तार नहीं होने की वजह से ही सीएम और दोनों डिप्टी सीएम को भी विभाग नहीं मिले हैं। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से दोबारा मंत्रिमंडल के विस्तार पर विमर्श हो चुका है। यह विमर्श सीएम और डिप्टी सीएम तीनों ने एक साथ मिलकर किया है, लेकिन इसके बाद भी जिन विधायकों को मंत्री बनाया जाना है, उनके नाम मीडिया में लीक नहीं हो रहे हैं। अभी जो नाम चल रहे हैं, वे सभी मीडिया की उपज है। यह सही है कि मंत्री बनने वाले विधायकों के नाम सीएम के साथ साथ दोनों डिप्टी सीएम को भी पता है। इन तीनों के मित्रों के कई बार नाम जानने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई है। यही वजह है कि किसी अखबार में कुछ नाम तो किसी अन्य अखबार में दूसरे नाम छपते रहते हैं। सोशल मीडिया तो भाजपा के सभी विधायकों को मंत्री बनवा रहा है। 21 दिसंबर को विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद विधानसभा में ही भाजपा के 24 विधायकों ने सीएम भजनलाल से मुलाकात की। एक एक कर जब यह मुलाकात हो रही थी, तब खबर फैल गई कि जिन विधायकों को मंत्री बनाया जाना है उनसे सीएम की मुलाकात हो रही है। टीवी चैनलों पर इन विधायकों के नाम और फोटो भी प्रसारित हो गए, लेकिन इस खबर की भी हवा निकल गई है। सूत्रों की माने तो सीएम और डिप्टी सीएम से नामों पर विमर्श तो हुआ है, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने अभी तक भी एक भी नाम पर स्वीकृति नहीं दी है। कहा जा रहा है कि जिस प्रकार सीएम और डिप्टी सीएम के नाम की पर्ची ऐन मौके पर केंद्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को दी उसी प्रकार मंत्रियों की सूची भी एक दिन पहले ही सीएम भजनलाल शर्मा को दी जाएगी। मंत्रिमंडल के विस्तार के बगैर ही सीएम भजनलाल गंभीरता और मेहनत के साथ अपना दायित्व निभा रहे हैं। 21 दिसंबर को सीएम ने दोपहर एक बजे तक दिल्ली में पीएम मोदी सहित कई नेताओं से विमर्श किया और फिर ढाई बजे जयपुर में विधानसभा में पहुंच गए। वासुदेव देवनानी के अध्यक्ष पद पर निर्वाचन के बाद सीएम ने विधानसभा में अपने कक्ष में विधायकों से मुलाकात की और 19 जनवरी से बजट सत्र का निर्णय लिया। रात 8 बजे बाद सीएम सचिवालय स्थित अपने दफ्तर में पहुंचे जहां देर रात तक अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए। सीएम पद की शपथ लेने के बाद से ही भजनलाल रोजाना 18 घंटे से भी ज्यादा काम कर रहे हैं।
 
एमपी के बाद विस्तार:
पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कदमों पर नजर रखने वालों का मानना है कि मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद राजस्थान में विस्तार होगा। मुख्यमंत्री की शपथ में भी देखा गया। सबसे पहले छत्तीसगढ़ और फिर मध्यप्रदेश में शपथ हुई। आखिर में 15 दिसंबर को राजस्थान में मुख्यमंत्री और दो डिप्टी सीएम की शपथ हुई। तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम की एकसी प्रक्रिया रही। अब 22 दिसंबर को छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है, इसके बाद मध्यप्रदेश और फिर राजस्थान का नंबर आएगा। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 22-12-2023)

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अजमेर में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के लिए डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी की मजबूत दावेदारी।

21 दिसंबर को दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की अध्यक्षता में कार्य समिति की बैठक हुई। इस बैठक में पांच माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चर्चा हुई। सूत्रों के अनुसार बैठक में आम राय थी कि जिन राज्यों में किसी दल के साथ समझौते की संभावना नहीं है, उन राज्यों में उम्मीदवारों की घोषणा जनवरी माह में ही कर दी जाए ताकि घोषित उम्मीदवार को प्रचार करने का पूरा अवसर मिल सके। राजस्थान में भी कांग्रेस किसी भी दल से समझौता नहीं करेंगे, इसलिए राजस्थान की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस के कुछ नेता भले ही विधानसभा चुनाव की हार से उभर नहीं पाए हो, लेकिन अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने अजमेर से कांग्रेस का उम्मीदवार बनने के लिए सक्रियता दिखाना शुरू कर दिया है। चौधरी ने इस संबंध में प्रदेश और राष्ट्रीय नेताओं से चर्चा भी की है। चौधरी का कहना है कि गत 25 वर्षों से अजमेर डेयरी का अध्यक्ष रहने के कारण उनकी संपूर्ण संसदीय क्षेत्र में अच्छी पहचान है। दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों से जुड़े ग्रामीणों और डेयरी दूध का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं से सीधा संबंध है। कांग्रेस के अधिकांश नेताओं ने हाल ही में विधानसभा चुनाव लड़ा और पराजित भी हुए। अजमेर संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभाओं में से कांग्रेस को सात में हार का सामना करना पड़ा है। दूदू के भाजपा विधायक प्रेमचंद बैरवा तो डिप्टी सीएम भी बन गए हैं। ऐसे में कांग्रेस की जीत आसान नही है। लेकिन यदि उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है तो कांग्रेस जीत के पायदान पर खड़ी हो सकती है। अजमेर संसदीय क्षेत्र में उनकी जाति के करीब साढ़े चार लाख वोट है। कांग्रेस ने 2019 में भीलवाड़ा के उद्योगपति रिजु झुनझुनवाला को उम्मीदवार बनाया। जबकि भाजपा ने जाट समुदाय के भागीरथ चौधरी को। चौधरी ने चार लाख मतों से जीत हासिल की। डेयरी अध्यक्ष के पद पर रहते हुए मैं गत 25 वर्षों से राजनीति में लगातार सक्रिय हंू। मैंने पशुपालकों के साथ साथ दुग्ध उपभोक्ताओं के हितों का भी ख्याल रखा है। यही वजह है कि आज अजमेर डेयरी देश की चुनिंदा डेयरियों में से एक है। डेयरी का तीन सौ करोड़ रुपए की लागत का जो नया प्लांट स्थापित हुआ है उसमें प्रतिदिन दस लाख लीटर दूध की प्रोसेसिंग हो सकती है। यही वजह है कि अजमेर डेयरी में अन्य जिलों की डेयरियों की दूध की प्रोसेसिंग हो रही है। दूध से बने उत्पाद भी बाजार में बेचे जा रहे हैं। आज अजमेर डेयरी के पास 90 करोड़ रुपए के घी का स्टॉक है। इसके साथ ही 10 करोड़ रुपए का पाउडर भी स्टॉक में है। चौधरी ने बताया कि जिले के सभी दूध संकलन केंद्र पर कंप्यूटर मशीनें लगी हुई है। जिन पर दूध का माप, शुद्धता आदि निर्धारित होता है। इससे पशुपालकों का भी डेयरी पर भरोसा है। अजमेर ही नहीं प्रदेश भर के पशुपालन जानते हैं कि प्रति लीटर पांच रुपए का सरकारी अनुदान दिलवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्व में यह अनुदान दो रुपए का था। जिसे गत कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पांच रुपए प्रतिलीटर करवाया गया। यही वजह है कि आज राजस्थान में दूध उत्पादन में देश में पहले स्थान पर है। चौधरी ने कहा कि जब हम ग्रामीण विकास को पहली प्राथमिकता देते हैं, तब ग्रामीण पृष्ठभूमि के व्यक्ति को ही लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। चौधरी ने कहा कि कांग्रेस के जिन नेताओं ने हाल ही में विधानसभा का चुनाव लड़ा है उन्हें लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया जाना चाहिए। चौधरी की ताजा राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी मोबाइल नंबर 9414004111 पर ली जा सकती है। 

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मसाणिया भैरव धाम के उपासक चंपालाल महाराज को सुरक्षा देने की मांग को लेकर अजमेर कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन।भरतमुनि नाट्य गोष्ठी पर लेखन प्रतियोगिता भी। संस्कार भारती की पहल।हिंदी भाषा में हुआ संगीतमय सुंदरकांड संघ के महानगर संघचालक खाजू लाल चौहान की प्रेरणादायक पहल।

अजमेर के निकट राजगढ़ स्थित मसाणिया भैरव धाम के उपासक चंपालाल महाराज को सुरक्षा देने की मांग को लेकर 21 दिसंबर को कलेक्ट्रेट पर एक बड़ा मौन प्रदर्शन किया गया। धाम के प्रतिनिधि अविनाश सैन ने बताया कि गत 10 दिसंबर को राजगढ़ स्थित पुलिस चौकी के प्रभारी को एक पत्र मिला, जिसमें चंपालाल महाराज को जान से मारने की धमकी दी गई। इस पत्र के मिलने के बाद से ही धाम से जुड़े लाखों अनुयायी चिंतित हैं। चंपालाल महाराज के ईश्वरीय चमत्कार की वजह से लाखों लोगों को कष्टों से मुक्ति मिल रही है, वही धाम के माध्यम से नशा छुड़ाने, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, जल संरक्षण, स्वच्छ वातावरण आदि के लिए अभियान भी चलाए जा रहे हैं। प्रत्येक रविवार को लगने वाले मेले में नशा न करने की शपथ भी दिलाई जाती है। महाराज के अनुयायियों का मानना है कि  महाराज के सामाजिक सरोकारों के कार्यों की वजह से जिन कारोबारियों के आर्थिक हित प्रभावित हो रहे हैं, वे ही महाराज को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। ऐसे में प्रशासन को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। आज मसाणिया भैरव धाम से लाखों लोग राहत प्राप्त कर रहे हैं। प्रशासन को जन भावनाओं को ख्याल भी रखना चाहिए। यह सही है कि चंपालाल महाराज को अपने शरीर की परवाह नहीं है, लेकिन लाखों जरूरतमंद लोगों के लिए महाराज की जरूरत है। प्रदर्शन के बाद प्रशासन के अधिकारियों को एक ज्ञापन भी दिया गया। प्रशासन ने उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया है। इस संबंध में और अधिक जानकारी धाम के प्रतिनिधि अविनाश सैन से मोबाइल नंबर 9829223268 पर ली जा सकती है।
 
लेखन प्रतियोगिता।
संस्कार भारती जयपुर प्रांत की ओर से भरतमुनि स्मृति दिवस 24 व 25 फरवरी को मनाया जाएगा। इस अवसर पर जयपुर में दो दिवसीय नाट्यशास्त्र पर गोष्ठी का आयोजन भी किया गया है। संस्कार भारती के क्षेत्र प्रमुख सुरेश बबलानी ने बताया कि भारत में नाट्य विधा की पहचान भरत मुनि से ही है। इस विधा को और अधिक लोकप्रिय बनाने और आम लोगों तक जानकारी पहुंचाने के लिए ही लेखन प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही है। यह प्रतियोगिता भरतमुनि के नाट्य विधा के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई है। प्रतियोगिता में भाग लेने वाले नाट्य प्रेमी आगामी 15 जनवरी तक अपनी प्रविष्टि भेज सकते हैं। यह प्रविष्टियां प्रतियोगिता समन्वयक संदीप लेले, 182/118 प्रताप नगर सांगानेर जयपुर 302033 पर भेजी जा सकती है। प्रतियोगिता में विजेताओं को प्रमाण पत्र और नगद राशि दी जाएगी। भरतमुनि स्मृति दिवस के कार्यक्रमों के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414314572 पर सुरेश बबलानी से ली जा सकती है।
 
हिंदी में सुंदरकांड:
अजमेर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर के संघचालक खाजू लाल चौहान ने पंचशील स्थित निवास पर 21 दिसंबर को हिंदी में संगीतमय सुंदरकांड का पाठ हुआ। आमतौर पर सुंदरकांड का पाठ अवधी भाषा में होता है, लेकिन संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता मोहनलाल खंडेलवाल ने सुंदरकांड हिंदी काव्य में अनुवाद किया है। खंडेलवाल ने अपना पहला हिंदी सुंदरकांड का पाठ खाजू लाल के निवास पर ही किया। पाठ को सुनने के बाद खाजू लाल ने कहा कि यह पहला अवसर रहा है कि जब उन्हें सुंदरकांड को सरल भाषा में समझने का अवसर मिला। अब तक पुस्तक में पढ़कर सुंदरकांड का पाठ करते रहे, लेकिन इस बार पढ़ने के साथ साथ सुंदरकांड को समझा भी गया। उन्होंने कहा कि अब धर्मप्रेमी लोगों को हिंदी भाषा वाला सुंदरकांड ही करवाना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले उनके पोते के जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने सुंदरकांड पाठ करवाया है। हिंदी के सुंदरकांड के पाठ के बारे में और अधिक जानकारी अनुवादक मोहनलाल खंडेलवाल से मोबाइल नंबर 9352008347 पर ली जा सकती है। 

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Thursday 21 December 2023

आखिर गांधी परिवार से कौनसी दुश्मनी निकाल रही हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी।पीएम मोदी ने दिया है विपक्ष को एकजुट करने का सुनहरा मौका।

सब जानते हैं कि कांग्रेस में बगावत कर ही ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में टीएमसी को खड़ा किया और अब लगातार तीसरी बार बंगाल की मुख्यमंत्री है। लगातार जीत के कारण ही विपक्षी गठबंधन में ममता का दबदबा है। कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा सांसद ममता की टीएमसी के ही है। 19 दिसंबर को दिल्ली में इंडि एलायंस की जो बैठक हुई उसमें ममता ने प्रधानमंत्री के पद के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम प्रस्तावित किया। इसी प्रकार लोकसभा चुनाव में बनारस से पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनाने का सुझाव रखा। इन दोनों प्रस्तावों के बाद ही सवाल उठता है कि आखिर ममता बनर्जी कांग्रेस से कौनसी दुश्मनी निकाल रही हैं? ममता बनर्जी माने या नहीं लेकिन इंडि एलायंस को बनाने में राहुल गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एलायंस को मजबूत करने के लिए ही राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल जैसे नेता को भी महत्व दिया। एलायंस को बनाने के पीछे राहुल गांधी और कांग्रेस की मंशा साफ है। कांग्रेस स्वयं को इंडि एलायंस में सबसे बड़ा विपक्षी दल मानता है। कांग्रेस के नेताओं ने कई बार कहा कि संयुक्त विपक्ष की सरकार में राहुल गांधी स्वभाविक प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। अब यदि ममता बनर्जी खडग़े को पीएम पद का दावेदार बता रही हैं तो फिर राहुल गांधी का क्या होगा? इसी प्रकार पीएम मोदी के सामने प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी भी जोखिम भरी है। प्रियंका ने अभी तक भी कोई चुनाव नहीं लड़ा है, अब यदि बनारस से प्रियंका चुनाव हार जाती है तो इसका असर उनकी राजनीति पर पड़ेगा। अच्छा हो कि प्रियंका गांधी को 2024 में किसी सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया जाए। 2019 में राहुल गांधी को आभास था कि इस बार वे अमेठी, से चुनाव हार जाएंगे इसलिए राहुल गांधी ने अमेठी के साथ साथ केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा। राहुल अमेठी से हारे, लेकिन मुस्लिम बाहुल्य वायनाड से चुनाव जीत गए। प्रियंका गांधी को भी वायनाड जैसे सुरक्षित क्षेत्र से ही चुनाव लड़ना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि ममता बनर्जी गांधी परिवार को नुकसान पहुंचाने वाले प्रस्ताव रख रही हैं।
 
विपक्ष के लिए सुनहरा अवसर:
देश की मौजूदा राजनीति में संपूर्ण विपक्ष और भाजपा में पीएम मोदी के बीच सीधा मुकाबला है। यह मुकाबला 2014 से शुरू हुआ और 2019 में दोबारा से मुहर लग गई। अब 2024 के आम चुनावों में भी मोदी और विपक्षी गठबंधन के बीच मुकाबला है। विपक्ष को एकजुट करने का पीएम मोदी ही अवसर दे रहे हैं। विपक्ष के अधिकांश नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों के द्वारा कार्यवाही की जा री है। राजनेताओं को लगता था कि वे जो भ्रष्टाचार कर रहे हैं, उसकी सजा उन्हें कभी नहीं मिलेगी। केंद्र की सत्ता में कोई भी दल रहे, लेकिन उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं हो सकती। राजनेताओं के इस मिथक को तोड़ते हुए मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने ममता बनर्जी से लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक के खिलाफ कार्यवाही की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो ईडी के नोटिस, से बचने के लिए दस दिवसीय विपश्यना शिविर में चले गए हैं। बिहार के लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को लगातार जांच एजेंसियों के सामने उपस्थित होना पड़ रहा है। इंडि एलायंस के अधिकांश दलों के नेताओं के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है। लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा करने वाले विपक्षी सांसदों को लगातार निलंबित किया जा रहा है। अब तक करीब 150 सांसद निलंबित हो चुके हैं। जब इतने बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों के खिलाफ कार्यवाही हो रही है तो फिर इन दलों को एकजुट होने का सुनहरा अवसर है। यह अवसर खुद पीएम मोदी ही दे रहे हैं। 

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मंत्रियों के चयन में डिप्टी सीएम दीया कुमारी की राय को प्राथमिकता।राजस्थान की राजनीति में वासुदेव देवनानी का महत्व बढ़ा।

राजस्थान के मंत्रिमंडल के विस्तार के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, उपमुख्यमंत्री दीया कुमार और डॉ. प्रेमचंद बैरवा 21 दिसंबर को दिल्ली में रहे। इन तीनों नेताओं ने तीन दिन पहले भी दिल्ली में रहकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार तब इन तीनों नेताओं को संभावित मंत्रियों की सूची तैयार करने के बारे में दिशा निर्देश दिए। प्राप्त दिशा निर्देशों के अनुसार ही इन तीनों ने संभावित मंत्रियों की सूची तैयार की है, जिस पर 21 दिसंबर को अंतिम मुहर लग जाएगी। आमतौर पर मंत्रिमंडल में मंत्रियों को शामिल करने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ साथ उपमुख्यमंत्री दीया कुमार और डॉ. प्रेमचंद बैरवा की राय को भी प्राथमिकता दी जा रही है। सूत्रों के अनुसार दीया कुमार जो राय दे रही हैं उसे प्राथमिकता दी जा रही है। असल में भाजपा के राष्ट्रीय नेता दीया कुमारी पर बहुत भरोसा कर रहे हैं। राजस्थान की राजनीति में दीया कुमारी को भविष्य का बड़ा नेता माना जा रहा है। हाल ही के विधानसभा चुनाव में दीया कुमारी जयपुर के विद्याधर नगर क्षेत्र से सर्वाधिक 73 हजार मतों से चुनाव जीती हैं। जयपुर राजघराने की प्रमुख होने के बाद भी दीया कुमारी ने अपनी छवि एक आम नागरिक की बनाई है। दीया कुमारी सभी लोगों से आत्मीयता के साथ मुलाकात करती हैं। दीया कुमारी के सरल स्वभाव से भी भाजपा के राष्ट्रीय नेता प्रभावित है। माना जा रहा है कि दीया कुमारी को भी महत्वपूर्ण विभाग का मंत्री बनाया जाएगा।
 
देवनानी का महत्व:
अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांचवीं बार चुनाव जीते वासुदेव देवनानी 21 दिसंबर को विधिवत तौर पर राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष चुने गए हैं। राजस्थान की राजनीति में देवनानी के बढ़ते महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अध्यक्ष पद पर उनके नाम का समर्थन मुख्यमंत्री भजनलाल के साथ साथ भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा आदि ने किया है। सभी ने उम्मीद जताई है कि देवनानी विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद सभी दलों के विधायकों के हितों का ख्याल रखेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी प्रदेश की राजनीति में विधानसभा अध्यक्ष का पद बहुत महत्वपूर्ण होता है। यूं तो देवनानी पिछले 20 वर्षों से विधायक के तौर पर राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हैं। लेकिन यह पहला अवसर है जब उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर एक बड़ी जिम्मेदारी मिली है। इससे प्रदेश की राजनीति में अजमेर का महत्व भी बढ़ेगा। 

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Wednesday 20 December 2023

अशोक गहलोत यदि एक वर्ष के लिए मुख्यमंत्री पद का लालच नहीं करते तो आज संयुक्त विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते।यदि मल्लिकार्जुन खडग़े प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे तो फिर राहुल गांधी का क्या होगा?

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए देश के 27 विपक्षी दलों की संयुक्त दलों की बैठक 19 दिसंबर को दिल्ली में हुई। बैठक में पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम प्रस्तावित किया। खडग़े प्रधानमंत्री बनेेंगे यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन खडग़े के लिए यह बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है कि उनका नाम पीएम पद के लिए प्रस्तावित हुआ है। यदि अशोक गहलोत एक वर्ष के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री पद का लालच नहीं रखते तो आज खडग़े की जगह प्रधानमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत का नाम होता। सब जानते हैं कि गत वर्ष अक्टूबर माह में जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव हो रहे थे, तब अशोक गहलोत ही अध्यक्ष बनने वाले थे। अशोक गहलोत पर सर्वसम्मति बन गई थी। इसलिए कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने राजस्थान के कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई ताकि नए मुख्यमंत्री का चयन हो सके। लेकिन तब गहलोत ने मुख्यमंत्री का पद त्यागने से इंकार कर दिया और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने विधायकों की जो बैठक बुलाई इसके समांतर विधायकों की बैठक बुलाकर हाईकमान के खिलाफ बगावत कर दी। इस बगावत से गहलोत एक वर्ष तक मुख्यमंत्री तो रह गए, लेकिन कांग्रेस में उनका सम्मान नहीं रहा। कांग्रेस हाईकमान खासकर गांधी परिवार का भरोसा भी खत्म हो गया। गांधी परिवार अब अशोक गहलोत का कितना सम्मान कर रहा है, इसका अंदाजा नेशनल अलायंस कमेटी के गठन से लगाया जा सकता है। इस कमेटी का संयोजक मुकुल वासनिक को बनाया गया है जो राजनीति में गहलोत से बहुत जूनियर हैं। गहलोत को इस कमेटी में सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है। यदि गांधी परिवार का भरोसा होता तो ऐसी कमेटी का अध्यक्ष गहलोत को ही बनाया जाता। गत वर्ष 25 सितंबर को गहलोत ने जो बगावत की उसी का परिणाम रहा कि मल्लिकार्जुन खडग़े को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। खडग़े गांधी परिवार के भरोसे पर खरे उतरे हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी खडग़े को राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाए रखा गया है। गांधी परिवार के भरोसे के कारण ही इंडि अलायंस में भी खडग़े महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 19 दिसंबर को भी जब विपक्षी दलों की बैठक में नाम प्रस्तावित हुआ तो बैठक के बाद खडग़े ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अभी प्रधानमंत्री पद का कोई मुद्दा ही नहीं हंै। यदि चुनाव में जीत मिलेगी तभी प्रधानमंत्री बनाने की बात होगी। यानी खडग़े ने अपनी ओर से प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया है।
 
राहुल गांधी का क्या होगा?:
विपक्षी दलों के इंडि अलायंस को बनाने में राहुल गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों या फिर बिहार में नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव, सभी के साथ तालमेल करने में राहुल गांधी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वैचारिक मतभेद होने के बाद भी राहुल गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं को एक जाजम पर बैठा ने का प्रयास किया। विपक्ष की एकजुटता के पीछे राहुल गांधी का क्या मकसद है यह सभी जानते हैं। वैसे भी देशभर में विपक्ष के किसी राजनीतिक दल पहचान है तो वह कांग्रेस ही है। आज भी तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं तथा कई राज्यों में प्रमुख विपक्ष की भूमिका में है। ऐसे में यदि मल्लिकार्जुन खडग़े को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जाता है तो फिर राहुल गांधी की मेहनत का क्या होगा? जानकार सूत्रों के अनुसार जब ममता बनर्जी और केजरीवाल ने  खडग़े का नाम प्रस्तावित किया तो सबसे पहले खडग़े ने ही ऐतराज किया। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रभावित कई छोटे दलों ने भी खडग़े के नाम पर ऐतराज किया। सभी का कहना रहा कि चुनाव में जीत के बाद ही प्रधानमंत्री के नाम पर विचार किया जाना चाहिए। यदि अभी प्रधानमंत्री पद के लिए नाम रखा गया तो इंडी अलायंस की एकता पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। हो सकता है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस में ही बिखराव हो जाए। 

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का मजाक उड़ाने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का होगा।लोकसभा चुनाव में राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक जाट बेल्ट में कांग्रेस को हो सकता है नुकसान।आखिर राहुल गांधी उड़ता तीर क्यों झेलते हैं।

एक कहावत है कि उड़ता तीर झेलना यानी बेवजह किसी समस्या को आमंत्रित करना। 19 दिसंबर को संसद भवन परिसर में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने उड़ता तीर झेलने वाली कहावत का चरितार्थ किया है। लोकसभा और राज्यसभा से सांसदों के निलंबन के विरोध में जब ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री (मजाक) कर रहे थे, तब राहुल गांधी मुस्कुराते हुए बनर्जी का वीडियो बना रहे थे। राहुल गांधी के वीडियो बनाने पर सभापति धनखड़ ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। धनखड़ का कहना है कि मैं किसान और जाट समुदाय से आता हंू इसलिए कांग्रेस भी मेरे मजाक उड़ाने की घटना में शामिल हैं। यह राजनीति की गिरावट की हद है। राहुल गांधी तो वरिष्ठ नेता है, लेकिन इसके बाद भी सभापति के मजाक उड़ाने के काम में शामिल हैं। राज्यसभा में धनखड़ ने जिस मार्मिक अंजाम में अपनी पीड़ा को रखा उससे अब राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक के जाट समुदाय में रोष है। कल्याण बनर्जी की इस हरकत से टीएमसी को तो कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की वजह से कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। हिंदी भाषी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा आदि में जाट समुदाय की बहुलता है। यदि कोई राजनीतिक दल जाट समुदाय के किसी नेता का मजाक उड़ाता है तो उसे नुकसान होगा ही। सवाल उठता है कि राहुल गांधी ने आखिर मिमिक्री का वीडियो क्यों बनाया? टीएमसी की नाराजगी समझ में आती है क्योंकि महुआ मोइत्रा की तो लोकसभा की सदस्यता ही रद्द कर दी गई। सदस्यता रद्द होना निलंबन से बड़ी सजा है। खफा होकर ही कल्याण बनर्जी ने धनखड़ की मिमिक्री की। इससे राहुल गांधी का कोई सरोकार नहीं था। लेकिन फिर भी राहुल ने वीडियो बनाकर कांग्रेस पार्टी को मुसीबत में डाल दिया है। अब चाहे कांग्रेस कितनी भी सफाई दे लेकिन टीएमसी का उड़ता तीर राहुल गांधी की जेब में आ ही गई है। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक भारत जोड़ों यात्रा निकाल कर राहुल गांधी स्वयं को देश का सबसे बड़ा और समझदार नेता बताते हैं। लेकिन जब राहुल गांधी किसी सर्कस के कलाकार का वीडियो बनाते नजर आते है तो उनकी समझदारी पर सवालिया निशान लगता है। इसमें कोई दो राय नहीं जगदीप धनखड़ का लंबा राजनीतिक और संवैधानिक सफर रहा है। धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर लोकप्रियता हासिल की। इसी प्रकार धनखड़ केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। धनखड़ ने पहले ही कहा है कि वे स्वभाव से विनम्र है, इसलिए जब वे किसी से मुलाकात करते हैं तो उनकी विनम्रता झलकती है। राज्यसभा में भी वे विनम्रता का प्रदर्शन करते हैं। 

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Monday 18 December 2023

ब्रह्मांड की कोई ताकत भी जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापसी नहीं करवा सकती।ऐसी दृढ़ता और हिम्मत नरेंद्र मोदी ही दिखा सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक इंटरव्यू 17 दिसंबर को दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ है। अखबार के एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि  ब्रह्मांड   की कोई ताकत जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापसी नहीं करवा सकती है। सरकार ने जो निर्णय लिया उसे वापस नहीं लिया जा सकता है। सभी संवैधानिक प्रक्रियाओं को अपनाते हुए ही अनुच्छेद 370 के प्रावधान को हटाया गया। इन प्रावधानों के हटने से आज जम्मू कश्मीर देश की मुख्य धारा से जुड़ गया है, जिसका फायदा सबसे ज्यादा जम्मू कश्मीर के लोगों को ही मिल रहा है। अनुच्छेद 370 को लेकर जागरण में जो बाते प्रकाशित हुई वह मोदी जैसा दृढय़ निश्चत ही प्रधान मंत्री कह सकताक है। सब जाते हैं कि एक समय था जब अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने की बात करने से भी डर लगता था। वर्ष 2014 से पहले किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि जम्मू कश्मीर से एक दिन अनुच्छेद 370 को हटा दिया जाएगा। कश्मीर में जो नेता अलगाववाद के हिमायती थे, उनका दावे के साथ कहना होता था कि जम्मू कश्मीर से 370 के प्रावधानों को किसी भी हालात में नहीं हटाया जा सकता। महबूबा मुफ्ती जैसी नेताओं ने तो यहां तक कहा कि यदि 370 के प्रावधानों को हटाने का प्रयास किया तो जम्मू कश्मीर में तिरंगे (राष्ट्रीय ध्वज) कंधा देने वाला भी नहीं मिलेगा। ऐसे डरावने माहौल में ही 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को संसद में समाप्त करवा दिया गया। यह हिम्मत वाला काम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने ही किया। लोगों को उम्मीद थी कि सरकार के इस फैसले से जम्मू कश्मीर और ज्यादा अशांत होगा, लेकिन आज साफ जाहिर है कि 370 के प्रावधानों के रहते हुए ही कश्मीर में आतंकवाद मजबूत हुआ। लेकिन जब 370 के प्रावधानों को हटा दिया गया तो न केवल आतंकवाद पर अंकुश लगा बल्कि कश्मीर में पर्यटन को भी बढ़ावा मिला। एक समय था जब कश्मीर में पर्यटन उद्योग पूरी तरह समाप्त हो गया था। लेकिन आज श्रीनगर की झीलों में नावों में बैठे पर्यटक नजर आते हैं। यहां तक कि सिनेमा घरों में फिल्में दिखाई जा रही है। श्रीनगर के जिस लाल चौक पर हमेशा कर्फ्यू लगा रहता था, वही लाल चौक आज भीड़ वाले बाजार में तब्दील हो गया है। अनुच्छेद 370 की आड़ से कश्मीर के जो नेता जमकर भ्रष्टाचार कर रहे थे, वे आज कुछ भी कहे लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज जम्मू कश्मीर के नागरिक बेहद खुश हैं। बाजारों में जिस तरह खरीददारी हो रही है उसका फायदा कश्मीर के व्यापारियों को ही मिल रहा है। असल में देश के विभाजन के बाद केंद्र सरकार ने कभी भी कश्मीर के हालातों को समझने का काम नहीं किया। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जम्मू कश्मीर में सबसे पहले महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ भाजपा ने गठबंधन की सरकार बनाई। कुछ वर्ष तक सरकार में रहने के बाद मोदी सरकार ने कश्मीर के हालातों को अच्छी तरह समझ लिया। जम्मू कश्मीर की सरकार में रहते हुए जो जानकारी एकत्रित की उसी का नतीजा रहा कि 2019 में दोबारा से प्रधानमंत्री बनने के तीन माह बाद ही नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को प्रभावहीन करवा दिया। हालांकि जम्मू कश्मीर में कुछ घटनाएं हो जाती है, लेकिन ऐसी घटनाओं से भी सख्ती के साथ निपटा जा रहा है। अब पाकिस्तान की भी हिम्मत नहीं है कि वह जम्मू कश्मीर में आतंकी वारदात करवाए। पाकिस्तान खुद कटोरा लेकर दुनिया भर में भीख मांग रहा है। जो पाकिस्तान कश्मीर पर अपना दावा करता था, उसे आज अपने कब्जे वाले कश्मीर में विपरीत हालातों का सामना करना पड़ रहा है। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 17-12-2023)

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राजस्थान में अशोक गहलोत के बगैर चलेगी कांग्रेस। राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई पद नहीं।केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी हो सकते हैं राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष।

कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने 16 दिसंबर को दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए। एक मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को हटाकर विधायक जीतू पटवारी को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। दूसरा राजस्थान में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के समर्थक अभिमन्यू सिंह पूनिया को युवक कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथ में ही थी। लेकिन चुनाव में कमलनाथ ने राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा निर्देश मानने के बजाए स्वयं की ही राय को प्राथमिकता दी, जिसकी वजह से मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो सका। इतना ही नहीं राष्ट्रीय नेतृत्व खासकर राहुल गांधी की भावनाओं के विपरीत कमलनाथ ने सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव को लेकर गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी की। अब जब एमपी में कांग्रेस की बुरी हार हो गई, तब राष्ट्रीय नेतृत्व ने कमलनाथ की भी छुट्टी कर दी है। कहा जा रहा है कि अब कमलनाथ को लोकसभा का चुनाव भी नहीं लड़वाया जाएगा। यानी मध्यप्रदेश में कांग्रेस को चलाने में कमलनाथ की कोई भूमिका नहीं होगी। मध्यप्रदेश में जो स्थिति कमलनाथ की थी, वैसी ही स्थिति राजस्थान में अशोक गहलोत की रही। गहलोत ने तो मुख्यमंत्री के पद बने रहने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के खिलाफ गत वर्ष खुली बगावत की। अब जब राजस्थान से भी कांग्रेस हार चुकी है तब अशोक गहलोत के बगैर कांग्रेस को चलाने की रणनीति बनाई गई है। 16 दिसंबर को जिस तरह अभिमंयू सिंह पूनिया को युवक कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। उस से अशोक गहलोत को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। माना जा रहा है कि अब गहलोत को राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस संगठन में कोई पद नहीं मिलेगा। सब जानते हैं कि पूर्व में जब भी राजस्थान में कांग्रेस की हार हुई तो अशोक गहलोत को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन का महासचिव नियुक्ति किया गया। हारने के बाद भी गहलोत कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे। लेकिन वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए गहलोत ने पार्टी हाईकमान के खिलाफ जो रवैया अपनाया उसी का परिणाम है कि इस बार गहलोत को राष्ट्रीय ओर प्रदेश की राजनीति से अलग रखा जाएगा। कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत अब एक विधायक के तौर पर आराम की मुद्रा में रहेंगे। हालांकि अभी कांग्रेस विधायक दल के नेता की घोषणा होनी है जो विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका निभाएगा। हो सकता है कि कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को विधायक दल का नेता बनाया जाए और सचिन पायलट को एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया जाए। वर्ष 2013 में कांग्रेस की हार के बाद सचिन पायलट को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन कांग्रेस को बहुमत मिलने पर पायलट के बजाए गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद से ही राजस्थान में कांग्रेस गहलोत और पायलट गुट में विभाजित हो गई। अब राष्ट्रीय नेतृत्व गहलोत गुट को पूरी तरह समाप्त करना चाहता है।
 
कैलाश चौधरी हो सकते हैं अध्यक्ष:
केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी राजस्थान में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है। अभी सांसद सीपी जोशी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। लेकिन भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद माना जा रहा है कि सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाया जाएगा। जहां तक कि सीपी जोशी का सवाल है कि तो भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का भरोसा सीपी जोशी पर बना हुआ है। डॉ. सतीश पूनिया के बाद सीपी जोशी को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। विधानसभा चुनाव में जोशी ने राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा निर्देश में ही अध्यक्ष पद की भूमिका निभाई। सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल के गठन में भी सीपी जोशी की राय को प्राथमिकता दी जा रही है। भजनलाल शर्मा के साथ साथ दीया कुमारी और खेमचंद बैरवा को उप मुख्यमंत्री बनाया गया है, लेकिन अभी मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 17-12-2023)

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विधानसभा के निवर्तमान अध्यक्ष सीपी जोशी ने टूटे और फटे मुढ्ढे पर बैठाया नामित अध्यक्ष वासुदेव देवनानी को।यह है दो सादगी पसंद राजनेताओं की मुलाकात।आखिर अशोक गहलोत की जादूगरी क्यों सीखना चाहते हैं गजेंद्र सिंह शेखावत।

17 दिसंबर की सुबह जयपुर में राजस्थान विधानसभा के निवर्तमान अध्यक्ष और भाजपा की ओर से नामित अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के बीच शिष्टाचार मुलाकात हुई। इस मुलाकात के लिए देवनानी स्वयं सीपी जोशी के सरकार आवास पर गए। इस मुलाकात के फोटो देवनानी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किए हैं। इन फोटोओं में जोशी और देवनानी सरकारी आवास के बरामदे में बैठे हैं। देवनानी मुढ्ढे पर तथा जोशी प्लास्टिक की कुर्सी पर हैं। शायद कमर दर्द की वजह से जोशी ने कुर्सी पर गद्दी लगा रखी है, लेकिन देवनानी का मुढ्ढा टूटा और फटा नजर आ रहा है। देवनानी जिस पुराने मुढ्ढे पर बैठे हैं उसके साथ ही एक खाली मुढ्ढा भी रखा हुआ है। टायर वाले मुढ्ढे पर जो रेगजीन चढ़ी है वह भी फटी है। इन फोटो से अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रहते हुए सीपी जोशी सादगी के साथ सरकारी आवास में रहे हैं। टूटे और फटे मुढ्ढे व प्लास्टिक की कुर्सियां बताती है कि जोशी ने पुराने फर्नीचर से ही काम चलाया है। जोशी चाहते तो बरामदे में भी नया फर्नीचर रखवा सकते थे। आमतौर पर सर्दी के दिनों में सुबह की मुलकात सरकार आवास के आलीशान बगीचे में होती है, लेकिन जोशी ने देवनानी के साथ मुलाकात बरामदे में की। नामित अध्यक्ष देवनानी को सुबह अपने घर से स्नान कर निकले, लेकिन सीपी जोशी के परिधान बताते हैं कि उन्होंने बेहद साधारण तरीके से देवनानी से मुलाकात की। जहां तक देवनानी का सवाल है तो वह स्वयं ही सादगी पसंद हैं। उनके अजमेर स्थित निजी आवास पर भी साधारण फर्नीचर लगा हुआ है। जिस एक कमरे में देवनानी पिछले 20 साल से मेहमानों से मुलाकात कर रहे हैं, उसी कमरे में आज भी मुलाकात करते हैं। कहा जा सकता है कि 17 दिसंबर की मुलाकात दो सादगी पसंद नेताओं के बीच हुई है। सब जानते हैं कि सीपी जोशी ने विधानसभा के अध्यक्ष का काम काज अपने शर्तों पर किया। विधानसभा में भी हंगामा करने वाले विधायकों के प्रति जोशी का सख्त रवैया रहा। एक बार तो सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के मंत्रियों से नाराज होकर जोशी ने सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया। यदि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हस्तक्षेप नहीं करते तो राजस्थान के विधानसभा के इतिहास में बड़ी घटना हो जाती। जोशी ने प्रयास किया कि विधानसभा नियम और कायदों के तहत ही चले। प्राप्त जानकारी के अनुसार जोशी और देवनानी के बीच विधानसभा चलाने को लेकर भी विमर्श हुआ। जोशी ने स्पष्ट तरीके से अपनी बात को रखा। जोशी ने कहा कि नियमों के तहत भले ही वे आज भी अध्यक्ष हैं, लेकिन अब वे किसी भी विषय पर अपना निर्णय नहीं देेंगे। जोशी ने देवनानी से कहा कि अब सभी मुद्दों पर आपको ही निर्णय लेना हैं। क्योंकि भाजपा के पास पूर्ण बहुमत हैं, इसलिए आपका (देवनानी) अध्यक्ष बनना तय है। जोशी ने अपनी जोर से देवनानी को शुभकामनाएं भी दी।
 
क्यों सीखना चाहते हैं जादूगरी:
जोधपुर के सांसद और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात कर उनकी राजनीतिक जादूगरी सीखना चाहते हैं। शेखावत ने यह बात तब कही है जब उन्होंने गहलोत के विरुद्ध दिल्ली की अदालत में मानहानि का मुकदमा कर रखा है। गहलोत जब कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे, तब शेखावत के साथ उनकी व्यक्तिगत दुश्मनी रही। लेकिन अब जब गहलोत मुख्यमंत्री नहीं रहे, तब शेखावत चाहते हैं कि गहलोत से उनकी राजनीतिक जादूगरी सीखी जाए। सवाल उठता है कि शेखावत गहलोत की जादूगरी क्यों सीखना चाहते हैं? सब जानते हैं कि गहलोत ने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर मुख्यमंत्री का पद अपने पास बनाए रखा। गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि मुख्यमंत्री का पद उन्हें नहीं छोड़ रहा है। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते सबसे ज्यादा आलोचना शेखावत ने की थी। यह सही है कि राजस्थान में शेखावत भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना कर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं को चौंका दिया। क्या शेखावत अब मुख्यमंत्री बनने की जादूगरी अशोक गहलोत से सीखना चाहते हैं? शेखावत को यह समझना चाहिए कि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पास है । मोदी और शाह की नजर सभी केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं पर है। जो शेखावत 25 नवंबर से पहले तक अशोक गहलोत को अपना दुश्मन मानते थे, आज वही शेखावत गहलोत से जादूगरी क्यों सीखना चाहते हैं? इस सवाल का जवाब भाजपा के नेता भी चाहते हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 18-12-2023)
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तो क्या भाजपा के शासन में भी झूठ बोलते रहेंगे अजमेर प्रशासन और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारी।जिस सेवन वंडर की इमारतों को तोड़ने के आदेश एनजीटी ने दे रखे हैं उन्हें ही अजमेर की शान बताया जा रहा है।

16 दिसंबर को कोयंबटूर में स्मार्ट सिटीज को लेकर एक राष्ट्रीय कार्यशाला हुई। इस कार्यशाला में अजमेर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारियों को भाग लेने का अवसर मिला। कार्यशाला के बाद स्मार्ट सिटी की ओर से जारी प्रेस नोट में कहा गया कि देश भर की स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने अजमेर के आनासागर और चारों तरफ बने पाथवे के साथ साथ सेवन वंडर इमारतों की भी प्रशंसा की। यह बताया कि जिस आनासागर में पहले नालों का गंदा पानी आता था, उसे रोक कर आनासागर झील को अब पर्यटन का प्रमुख केंद्र बना दिया गया है। आनासागर की तुलना उदयपुर की झीलों और कोटा के रिवर फ्रंट से की गई। यह सही है कि कांग्रेस के पिछले पांच वर्षों के शासन में स्मार्ट सिटी के कार्यों की वजह से अजमेर के हालात बिगड़े हैं। जिस आनासागर झील की दुहाई दी जा रही है, उस झील के भराव क्षेत्र में स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने न केवल अतिक्रमण करवा दिए बल्कि अतिक्रमणों टूटने से बचाने के लिए पाथवे का निर्माण भी कर दिया। पांच साल तक आनासागर को लेकर अजमेर प्रशासन और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारी झूठ बोलते रहे। इस झूठ का भाजपा नेताओं ने विरोध भी किया। उम्मीद थी कि भाजपा का शासन आने पर संबंधित अधिकारी झूठ बोलना बंद कर देंगे। लेकिन 16 दिसंबर को हुई कार्यशाला से पता चलता है कि जिला प्रशासन और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारी भाजपा शासन में भी झूठ बोल रहे हैं। यह झूठ तब बोला जा रहा है, जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सेवन वंडर की इमारतों और पाथवे को तोड़ने के आदेश दे रखे हैं। एनजीटी ने माना है कि स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने झील संरक्षण के नियमों का उल्लंघन किया है। यहां उल्लेखनीय है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर के सीईओ का पद जिला कलेक्टर और एसीईओ का पद नगर निगम आयुक्त के पास है। प्रशासन और प्रोजेक्ट के अधिकारियों की कारगुजारियों के बारे में भाजपा के नेताओं को अच्छी तरह पता है। अब देखना है कि राज में आने के बाद भाजपा के नेता और जनप्रतिनिधि इन अधिकारियों के झूठ से कैसे मुकाबला करते हैं। अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी तो विधानसभा के अध्यक्ष भी नामित हो गए हैं। ऐसे में देवनानी के पास असिमित अधिकार है।
 
आनासागर में जलकुंभी का साम्राज्य:
स्मार्ट सिटी के अधिकारी जिस आनासागर झील को पर्यटन का केंद्र बता रहे हैं, वह झील इन दिनों जलकुंभी की चपेट में है। एक ओर गंदे नालों का पानी आनासागर में समा रहा है तो दूसरी ओर जलकुंभी फैली हुई है। न केवल आनासागर में बल्कि आनासागर के जुड़े नालों में भी जलकुंभी का साम्राज्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिला प्रशासन और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारियों की आंखों पर ऐसा चश्मा चढ़ा हुआ है जिससे हकीकत नजर नहीं आती। यदि अधिकारियों को नहीं बदला गया तो कांग्रेस की तरह भाजपा की भी बदनामी होगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि आनासागर से जलकुंभी हटाने के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए की लागत की मशीन भी मंगाई थी, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि इस मशीन को नगर निगम को दूसरे शहरों में भेज रखा है ताकि किराये के तौर पर मोटी कमाई की जा सके। यानी जो मशीन आनासागर के लिए खरीदी गई उससे अब नगर निगम कमाई कर रहा है। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 18-12-2023)
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Saturday 16 December 2023

राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सामने श्रीकरणपुर चुनाव जीताने की बड़ी चुनौती।अब नजर आने लगा है पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का सकारात्मक रुख।क्या हंस कर बात कर लेने से अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच व्यक्तिगत दुश्मनी खत्म हो जाएगी।

15 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,  छह केंद्रीय मंत्रियों, छह मुख्यमंत्रियों आदि वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में भजनलाल शर्मा ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ले ली। उन्होंने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद सचिवालय में पहुंचकर मुख्यमंत्री का पद भी ग्रहण कर लिया। अधिकारियों को आवश्यक निर्देश भी दे दिए। लेकिन इसके साथ ही नए सीएम के सामने श्रीकरणपुर विधानसभा चुनाव उपचुनाव में भाजपा को जीत दिलाने की चुनौती भी खड़ी हो गए हैं। मालूम हो कि कांग्रेस प्रत्याशी गुरमीत सिंह कुन्नर के निधन के बाद श्रीकरणपुर का विधानसभा चुनाव निरस्त कर दिया गया था। लेकिन अब निर्वाचन विभाग ने इस क्षेत्र में नए सिरे से चुनाव कराने की घोषणा कर दी है। निर्वाचन विभाग के अनुसार 19 दिसंबर को नामांकन का अंतिम दिन होगा। पांच जनवरी को मतदान होना है। निर्वाचन विभाग के अनुसार भाजपा और अन्य दलों के प्रत्याशी पूर्ववर्ती ही रहेंगे सिर्फ कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार को ही नामांकन की इजाजत होगी। कांग्रेस ने यहां से पूर्व विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर के पुत्र रुपेंद्र सिंह कुन्नर को ही उम्मीदवार घोषित किया है। कहा जा सकता है कि नए सीएम को जनवरी के पहले सप्ताह में ही चुनाव की परीक्षा से गुजरना होगा। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं को नजर अंदाज कर भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री इसलिए बना की उनकी छवि एक साधारण कार्यकर्ता की थी। अब देखना होगा कि अपनी इस छवि के अनुरूप भजनलाल शर्मा किस प्रकार से श्रीकरणपुर से भाजपा को चुनाव जीतवाते हैं। इस चुनाव को जीतने के लिए कांग्रेस ने पूरा जोर लगा रखा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 19 दिसंबर को जब रुपेंद्र सिंह नामांकन दाखिल करेंगे। तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी पूर्व सीएम अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट उपस्थित रहेंगे। कांग्रेस इस चुनाव को जीत कर यह संदेश देना चाहती है कि भले ही विधानसभा चुनाव में हार हो गई हो, लेकिन आम जनता आज भी कांग्रेस को चाहती है। यदि इस चुनाव में भाजपा की हार होती है तो सीधे तौर पर नए मुख्यमंत्री की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। यही वजह है कि भाजपा भी इस चुनाव को जीतने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती। भाजपा ने भी चुनाव जीतने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। भजनलाल शर्मा की दो-तीन सभाएं भी श्रीकरणपुर में करवाने की योजना है। श्रीकरणपुर का विधानसभा चुनाव जीत कर भजनलाल शर्मा भी पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को तोहफा देना चाहते हैं।
 
राजे का सकारात्मक रुख:
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का अब भाजपा में सकारात्मक रुख नजर आने लगा है। 15 दिसंबर को राजे पहले मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित रहीं और फिर जब भजनलाल शर्मा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तब भी राजे ने सचिवालय में पहुंचकर नए सीएम को आशीर्वाद दिया। भजनलाल जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो राजे ने उन के सिर पर हाथ रखकर फोटो खींचवाया। राजे ने डिप्टी सीएम दीया कुमारी और डॉ. प्रेमचंद बैरवा के पद ग्रहण के मौके पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। राजे ने यह दिखाने का प्रयास किया कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने जो निर्णय लिए हैं उनसे वे सहमत हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि लंबे अरसे बाद वसुंधरा राजे की भाजपा में सकारात्मक भूमिका देखने को मिली है।
 
व्यक्तिगत दुश्मनी:
15 दिसंबर को जब भजनलाल शर्मा का शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पास पास बैठे थे। दोनों ने हंसते हुए एक दूसरे से बात भी की। ऐसा लगा कि दोनों ने अच्छी मित्रता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या हंसते हुए बात कर लेने से व्यक्तिगत दुश्मनी खत्म हो जाएगी? सब जानते हैं कि गहलोत ने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए शेखावत के विरुद्ध भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। बहुचर्चित संजीवनी को-ऑपरेटिव सोसायटी के घोटाले में सीएम ने शेखावत के साथ-साथ उनकी दिवंगत माताजी और पत्नी को भी आरोप बताया। यहां तक कहा कि संजीवनी घोटाले से कमाया गया पैसा शेखावत परिवार ने इथोपिया में निवेश किया है। गहलोत ने कहा कि शेखावत को थोड़ी भी शर्म है तो वे पीड़ितों का पैसा लौटाएं। गहलोत के इन आरोपों के खिलाफ ही शेखावत ने दिल्ली की अदालत में मानहानि का मुकदमा भी दर्ज करवाया। हालांकि मुकदमे को रद्द करवाने के लिए गहलोत ने बहुत प्रयास किए, लेकिन अदालत ने मुकदमे को खत्म करने से मना कर दिया। गहलोत जब मुख्यमंत्री थे, तब तक तो उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए उपस्थिति दर्ज कराने की छूट रही, लेकिन अब जब गहलोत मुख्यमंत्री नहीं है, तब उन्हें हर तारीख पर व्यक्तिगत तौर पर दिल्ली की अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा। शेखावत ने कहा था कि गहलोत मुझ पर आरोप लगाते तो मैं सहन कर लेता, लेकिन गहलोत ने मेरी दिवंगत माता जी पर भी आरोप लगाए हैं इसलिए मानहानि का मुकदमा दर्ज करना पड़ा है। गहलोत और शेखावत के बीच इस तरह व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप हुए उससे नहीं लगता की दोनों के बीच इतनी जल्द व्यक्तिगत दुश्मन खत्म हो जाएगी। यह सही है कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए गहलोत ने शब्दों की सारी सीमाएं तोड़ दी थी। 

S.P.MITTAL BLOGGER ( 16-12-2023)

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विधानसभा सत्र के लिए जल्द निर्णय होगा।पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने सीपी जोशी वाला 50 नंबर वाला बंगला मांगा। पूर्व मंत्री रघु शर्मा वाला 18 नंबर का बंगला विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की पसंद।18 दिसंबर को अजमेर में रहेंगे देवनानी।

राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष के लिए सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा घोषित अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा है कि विधानसभा सत्र के लिए जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। इसको लेकर 17 दिसंबर को जयपुर में एक बैठक हो रही है। लगातार पांचवीं बार विधायक बने और विधायी कार्यों के अनुभवी देवनानी ने बताया कि भले ही उन्हें अध्यक्ष नामित कर दिया गया हो, लेकिन अध्यक्ष का विधिवत चुनाव विधानसभा में ही होगा। नवनिर्वाचित विधायकों को पहले प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाएंगे और फिर अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया होगी। चूंकि भाजपा के 115 से भी ज्यादा विधायकों का बहुमत है, इसलिए अध्यक्ष का चयन निर्विरोध हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों से वे विधानसभा में सक्रिय हैं। मंत्री रहते हुए उन्होंने विधायकों के सवालों के जवाब दिए हैं तो वहीं विपक्ष में रहते हुए विधायक के रूप में सरकार से सवाल भी किए हैं। वे पिछले कई वर्षों में विधानसभा की अनेक महत्वपूर्ण समितियों के अध्यक्ष और सदस्य भी रहे हैं। इस नाते अध्यक्ष के तौर पर प्रभावी भूमिका निभाएंगे। देवनानी ने कहा कि वे हमेशा से ही स्वयं को विद्यार्थी समझते हैं, इसलिए हमेशा सीखने की जिज्ञासा रहती है। उन्होंने कहा कि इस बार विधानसभा में वरिष्ठ विधायक हैं। कई विधायक तो सातवीं बार चुनाव जीते हैं, कई विधायक दूसरी, तीसरी, चौथी और पांचवीं बार विधायक बने हैं। मैं सभी को साथ लेकर विधानसभा का संचालन करुंगा। देवनानी ने कहा कि नवनिर्वाचित विधायकों के लिए जयपुर में विधानसभा के सामने ही 150 फ्लैट बनकर तैयार हो गए हैं, इन फ्लैटों के आवंटन के लिए भी नीति बनाई जाएगी ताकि विधायकों की वरिष्ठता के अनुरूप फ्लैटों का आवंटन हो सके। यह पहला अवसर होगा जब विधायकों को पांच मंजिला इमारतों में बने आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित फ्लैट मिलेंगे। देवनानी ने कहा कि उनके लिए विधानसभा का अध्यक्ष बनना एक बड़ी उपलब्धि है। जब वे उदयपुर के कॉलेज में प्रोफेसर थे, तब विद्यार्थियों को नियंत्रित करते थे। लेकिन अब उनके पास राजस्थान के सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी आ गई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उन्होंने जो कुछ भी सीखा है उसके अनुरूप ही विधानसभा का संचालन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि संघ चरित्र निर्माण का काम करता है, जिससे  देश को मजबूती मिलती है।
 
गहलोत के लिए 50 नंबर का बंगला:
प्राप्त जानकारी के अनुरूप पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायक के तौर पर अपने लिए जयपुर के सिविल लाइन में 50 नंबर वाला बंगला मांगा है, यह बंगला अभी निर्वतमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के पास है। चूंकि डॉ. जोशी इस बार नाथ द्वारा से चुनाव हार चुके हैं, इसलिए उन्हें बंगला खाली करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने स्वयं के लिए सिविल लाइन में बंगला नंबर 13 पहले ही आवंटित करवा लिया था। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए राजे ने बंगले को अपने नजरिए से तैयार करवाया था। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए कैबिनेट मिनिस्टर वाले बंगले का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए नियमों की सभी बाधाओं को हटाते हुए 13 नंबर का बंगला आवंटित किया। हालांकि अब विधायकों के मकानों के आवंटन का काम विधानसभा अध्यक्ष के पास आ गया है। ऐसे में सरकारी बंगलों और फ्लैटों के आवंटन में देवनानी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस बीच पता चला है कि देवनानी ने विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर सिविल लाइन स्थित बंगला नंबर 18 पसंद किया है। अभी तक यह बंगला पूर्व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के पास है। रघु शर्मा भी इस बार केकड़ी से चुनाव हार चुके हैं, इसलिए उन्हें बंगला खाली करना पड़ेगा। बताया जा रहा है कि चिकित्सा मंत्री रहते हुए रघु शर्मा ने इस बंगले को काफी सुसज्जित करवाया था। सिविल लाइन में बंगला नंबर 18 काफी बड़ा बताया जाता है।
 
18 को देवनानी अजमेर में:
विधानसभा के मनोनीत अध्यक्ष वासुदेव देवनानी 18 दिसंबर को अजमेर में फायसागर रोड स्थित संत कंवर राम कॉलोनी के अपने आवास पर लोगों से मुलाकात करेंगे। देवनानी ने 16 दिसंबर को चूरू में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया। देवनानी 17 दिसंबर को जयपुर में आवश्यक बैठकों में व्यस्त रहेंगे। 


S.P.MITTAL BLOGGER ( 16-12-2023)

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विधानसभा सत्र के लिए जल्द निर्णय होगा।पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने सीपी जोशी वाला 50 नंबर वाला बंगला मांगा। पूर्व मंत्री रघु शर्मा वाला 18 नंबर का बंगला विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की पसंद।18 दिसंबर को अजमेर में रहेंगे देवनानी।

राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष के लिए सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा घोषित अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा है कि विधानसभा सत्र के लिए जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। इसको लेकर 17 दिसंबर को जयपुर में एक बैठक हो रही है। लगातार पांचवीं बार विधायक बने और विधायी कार्यों के अनुभवी देवनानी ने बताया कि भले ही उन्हें अध्यक्ष नामित कर दिया गया हो, लेकिन अध्यक्ष का विधिवत चुनाव विधानसभा में ही होगा। नवनिर्वाचित विधायकों को पहले प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाएंगे और फिर अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया होगी। चूंकि भाजपा के 115 से भी ज्यादा विधायकों का बहुमत है, इसलिए अध्यक्ष का चयन निर्विरोध हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों से वे विधानसभा में सक्रिय हैं। मंत्री रहते हुए उन्होंने विधायकों के सवालों के जवाब दिए हैं तो वहीं विपक्ष में रहते हुए विधायक के रूप में सरकार से सवाल भी किए हैं। वे पिछले कई वर्षों में विधानसभा की अनेक महत्वपूर्ण समितियों के अध्यक्ष और सदस्य भी रहे हैं। इस नाते अध्यक्ष के तौर पर प्रभावी भूमिका निभाएंगे। देवनानी ने कहा कि वे हमेशा से ही स्वयं को विद्यार्थी समझते हैं, इसलिए हमेशा सीखने की जिज्ञासा रहती है। उन्होंने कहा कि इस बार विधानसभा में वरिष्ठ विधायक हैं। कई विधायक तो सातवीं बार चुनाव जीते हैं, कई विधायक दूसरी, तीसरी, चौथी और पांचवीं बार विधायक बने हैं। मैं सभी को साथ लेकर विधानसभा का संचालन करुंगा। देवनानी ने कहा कि नवनिर्वाचित विधायकों के लिए जयपुर में विधानसभा के सामने ही 150 फ्लैट बनकर तैयार हो गए हैं, इन फ्लैटों के आवंटन के लिए भी नीति बनाई जाएगी ताकि विधायकों की वरिष्ठता के अनुरूप फ्लैटों का आवंटन हो सके। यह पहला अवसर होगा जब विधायकों को पांच मंजिला इमारतों में बने आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित फ्लैट मिलेंगे। देवनानी ने कहा कि उनके लिए विधानसभा का अध्यक्ष बनना एक बड़ी उपलब्धि है। जब वे उदयपुर के कॉलेज में प्रोफेसर थे, तब विद्यार्थियों को नियंत्रित करते थे। लेकिन अब उनके पास राजस्थान के सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी आ गई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उन्होंने जो कुछ भी सीखा है उसके अनुरूप ही विधानसभा का संचालन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि संघ चरित्र निर्माण का काम करता है, जिससे  देश को मजबूती मिलती है।
 
गहलोत के लिए 50 नंबर का बंगला:
प्राप्त जानकारी के अनुरूप पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायक के तौर पर अपने लिए जयपुर के सिविल लाइन में 50 नंबर वाला बंगला मांगा है, यह बंगला अभी निर्वतमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के पास है। चूंकि डॉ. जोशी इस बार नाथ द्वारा से चुनाव हार चुके हैं, इसलिए उन्हें बंगला खाली करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने स्वयं के लिए सिविल लाइन में बंगला नंबर 13 पहले ही आवंटित करवा लिया था। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए राजे ने बंगले को अपने नजरिए से तैयार करवाया था। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए कैबिनेट मिनिस्टर वाले बंगले का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए नियमों की सभी बाधाओं को हटाते हुए 13 नंबर का बंगला आवंटित किया। हालांकि अब विधायकों के मकानों के आवंटन का काम विधानसभा अध्यक्ष के पास आ गया है। ऐसे में सरकारी बंगलों और फ्लैटों के आवंटन में देवनानी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस बीच पता चला है कि देवनानी ने विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर सिविल लाइन स्थित बंगला नंबर 18 पसंद किया है। अभी तक यह बंगला पूर्व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के पास है। रघु शर्मा भी इस बार केकड़ी से चुनाव हार चुके हैं, इसलिए उन्हें बंगला खाली करना पड़ेगा। बताया जा रहा है कि चिकित्सा मंत्री रहते हुए रघु शर्मा ने इस बंगले को काफी सुसज्जित करवाया था। सिविल लाइन में बंगला नंबर 18 काफी बड़ा बताया जाता है।
 
18 को देवनानी अजमेर में:
विधानसभा के मनोनीत अध्यक्ष वासुदेव देवनानी 18 दिसंबर को अजमेर में फायसागर रोड स्थित संत कंवर राम कॉलोनी के अपने आवास पर लोगों से मुलाकात करेंगे। देवनानी ने 16 दिसंबर को चूरू में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया। देवनानी 17 दिसंबर को जयपुर में आवश्यक बैठकों में व्यस्त रहेंगे। 


S.P.MITTAL BLOGGER ( 16-12-2023)

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