Sunday 6 May 2018

तो इस बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा राजे के दबाव में नहीं आएगा। अब यह राजे के समझने की जरुरत है। दिल्ली में भी हो सकती है भाजपा विधायक दल की बैठक।
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अब यह समझना चाहिए कि दिल्ली में बैठा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके दबाव में नहीं आएगा। यदि दबाव में होता तो गत 26 अप्रैल को तीन घंटे की मुलाकात में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का मामला निपटा देेते। यानि वसुंधरा राजे जिस नेता को चाहती थीं उसे अध्यक्ष घोषित कर दिया जाता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमितशाह का शीर्ष नेतृत्व भी समझ रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा नहीं होने से राजस्थान में भाजपा को राजनीतिक दृष्टि से नुकसान हो रहा है। कुछ जानकारों का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व कर्नाटक के चुनाव में व्यस्त है, इसलिए प्रदेशाध्यक्ष का मामला टाल दिया है, लेकिन जो जानकार मोदी-शाह की कार्यशैली से वाकिफ है, उनका मानना है कि राजनीति के पिच पर वसुंधरा राजे को दौड़ने का मौका दिया जा रहा है, ताकि दमखम को देखा और समझा जा सके। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के पद से अशोक परनामी से 16 अप्रैल को इस्तीफा लेने के बाद राजे की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। नेतृत्व को यह भी पता है कि वसुंधरा राजे ने अब सार्वजनिक सभाओं में केन्द्र सरकार की योजनाओं का उल्लेख करना छोड़ दिया है तथा विकास कार्यों का स्वयं ही श्रेय ले रही हैं। मुख्य सचिव के एक्सटेंशन का मामला हो या आईएएस कैडर में वृद्धि के प्रस्ताव का। सभी में वसुंधरा राजे को सबक सीखाने की जरुरत है। यह माना कि पूर्व में राजे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को झुकाती रही हैं, लेकिन इस बार मामला उल्टा है। वैसे तो अशोक परनामी से इस्तीफा लेने के बाद ही वसुंधरा राजे को समझ लेना चाहिए था, लेकिन वसुंधरा राजे को अब भी लगता है कि भाजपा नेतृत्व झुकेगा। शायद इस बार राजे राजनीतिक स्थितियों का गलत आंकलन कर रही हैं। राजे माने या नहीं प्रदेश भर में उन्हें लेकर भारी नाराजगी है। यदि नवम्बर में होने वाले चुनाव में राजे के फेस को आगे रखा गया तो भाजपा की स्थिति और खराब होगी। हाल के उपचुनाव में सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में मिली हार से राजे को कुछ तो सबक लेना ही चाहिए। यदि राजे को यह लगता है कि उपचुनाव की हार का असर विधानसभा चुनाव पर नहीं पड़ेगा तो यह उनकी बड़ी भूल होगी। चुनाव की राजनीति समझने वालों का कहना है कि यदि राजे की जगह नरेन्द्र मोदी का चेहरा ही सामने रख कर विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो उपचुनाव की हार का असर कम होगा। यदि विजय राजे सिंधिया द्वारा खड़ी की गई पार्टी से वसुंधरा राजे को वाकई प्यार है तो शीर्ष नेतृत्व का कहना मानना चाहिए। जो लोग वसुंधरा राजे के नेतृत्व में राजस्थान में तीसरे मोर्चे के सपने देख रहे हैं वे मुंगेरीलाल ही साबित होंगे।
दिल्ली में हो सकती है भाजपा विधायक दल की बैठकः
वसुंधरा राजे की रणनीति को देखते हुए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश के भाजपा विधायकों की बैठक दिल्ली में बुला सकता है। जब वसुंधरा राजे अपने हिमायती मंत्रियों और विधायकों को दिल्ली भेज सकती हैं तो फिर विधायक दल की बैठक दिल्ली में क्यों नहीं हो सकती? आने वाले दिनों में राजस्थान की भाजपा की राजनीति में बड़ा बदलाव होगा, जिसकी केन्द्र स्वयं राजे होंगी।

गृहमंत्री का जमीन पर गिर जाना सरकार के लिए शुभ नहीं।

गृहमंत्री का जमीन पर गिर जाना सरकार के लिए शुभ नहीं। 
उदयपुर पुलिस की खुल गई पोल।
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राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया पांच मई को जब उदयपुर में अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोहा बाजार में जनसुनवाई कर रहे थे कि तभी एक बड़ा हादसा हो गया। सुनवाई के दौरान कटारिया कुर्सी से खड़े हुए तो एक कार्यकर्ता ने कुर्सी हटा ली। कुर्सी हटने से अनजान कटारिया जब बैठे तो जमीन पर धड़ाम से गिर गए। हालांकि यह पुलिस और प्रशासन की लापरवाही भी है कि गृहमंत्री की सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा गया। लेकिन इससे पहले इसे सरकार के लिए शुभ नहीं माना जा रहा है। राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे धर्म कर्म में बहुत विश्वास रखती हैं। राजस्थान के सभी प्रमुख मंदिरों और देश के प्रमुख मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान कर चुकी हैं। वे स्वयं अपनी राजनीतिक सफलता ईश्वर की कृपा को ही मानती हैं। कटारिया वसंुंधरा राजे के विश्वास पात्र मंत्रियों में से हैं। ऐसे में यदि राजस्थान के ताजा राजनीतिक हालातों में गृहमंत्री जमीन पर गिर जाते हैं तो फिर यह सरकार और मुख्यमंत्री के लिए शुभ संकेत नहीं है। 
पुलिस की पोल खुलीः
अपने गृहमंत्री की सुरक्षा की पूर्ण जिम्मेदारी पुलिस की होती है। यह माना कि जब गृहमंत्री कटारिया अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाते हैं तो कार्यकर्ताओं में उत्साह कुछ ज्यादा ही होता है। लेकिन फिर भी पुलिस का यह दायित्व है कि वह अपने विभाग के मंत्री का तो ख्याल रखे ही। जनसुनवाई के दौरान कार्यकर्ता ने जिस तरह गृहमंत्री की कुर्सी हटा ली उससे प्रतीत होता है कि पुलिस ने अपने विभाग के मंत्री की सुरक्षा का ख्याल ही नहीं रखा। यदि उदयपुर पुलिस की निगरानी कटारिया पर होतीे तो न कुर्सी खिसकती न गृहमंत्री धड़ाम से जमीन पर गिरते, गंभीर बात तो ये है कि उदयपुर पुलिस के आला अधिकारियों ने गृहमंत्री के जमीन पर गिर जाने की खबर को दबाए रखा। पुलिस को उम्मीद थी कि गृहमंत्री के जमीन पर गिरने का कोई सबूत नहीं है, इसलिए इस खबर को झुठला दिया जाए। लेकिन जनसुनवाई में मौजूद एक कार्यकर्ता ने जमीन पर गिरे गृहमंत्री का फोटो खींच ही लिया और भास्कर अखबार को दे दिया, यही वजह रही कि 6 मई को भास्कर में गृहमंत्री का जब फोटो छपा तो उदयपुर पुलिस की पोल खुल गई। सब जानते है कि कटारिया बुजुर्ग मंत्री हैं। ऐसे में जमीन पर अचानक गिर जाने से उन्हें चोट भी आई होगी। 

आखिर क्या हो गया है अजमेर के भाजपा नेताओं को।

आखिर क्या हो गया है अजमेर के भाजपा नेताओं को।
पानी बिजली की त्राहि-त्राहि पर भी चुप्पी क्यों?
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अजमेर के शहरी क्षेत्रों में तीन और चार दिनों में मात्र एक घंटे के लिए कम प्रेशर से पेयजल की सप्लाई की जा रही है। शहर की इस स्थिति से ग्रामीण क्षेत्रों के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। अजमेर जिले में पेयजल का मुख्य स्रोत 130 किलोमीटर दूर बीसलपुर बांध ही है। माना तो यही जाता है कि बीसलपुर बांध का निर्माण अजमेर की प्यास बुझाने के लिए हुआ था, लेकिन इसे अजमेर में कमजोर राजनीतिक नेतृत्व ही कहा जाएगा कि आज बीसलपुर बांध से अजमेर को मात्र 250 एमएल पानी रोजाना मिल रहा है तो जयपुर को करीब 500 एमएल पानी प्रतिदिन बीसलपुर बांध से दिया जा रहा है। अजमेर के भाजपा नेताओं ने दावा किया था कि चैबीस घंटे में पेयजल की सप्लाई होगी। अब जब साढ़े चार साल गुजर गए हैं तब मई माह में तीन चार दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई हो रही है। इतनी बुरी दशा में भी भाजपा का कोई जन प्रतिनिधि पेयजल की समस्या को नहीं उठा रहा है। हालात इतने खराब हैं कि पम्पिंग स्टेशनों पर आए दिन खाली मटके फोड़ कर प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन भाजपा नेताओं की जुबान नहीं खुल रही है। सवाल ये भी है कि अजमेर की जनता ने भाजपा को दिल खोल कर समर्थन दिया। गत विधानसभा के चुनाव में जिले के सभी आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के उम्मीदवारों की जीत करवाई। इतना ही नहीं मेयर, जिला प्रमुख, स्थानीय निकायों के अध्यक्षों, पंचायत समिति के प्रधानों आदि सभी पर भाजपा के नेताओं को बैठाया। आज हर महत्वपूर्ण पद पर भाजपा के नेता बिराजमान हैं। यूं पेयजल की समस्या के लिए भाजपा के नेता विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस को कोसते रहते थे। लेकिन पिछले साढ़े चार साल में भाजपा नेताओं ने कुछ भी नहीं किया। जबकि बीसलपुर बांध से जयपुर की सप्लाई लगातार बढ़ रही है। किसी भी भाजपा नेता में इतनी हिम्मत नहीं कि वह अजमेर की पेयजल समस्या का मुददा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समक्ष रख सके। भाजपा के सात में से चार विधायक मंत्री स्तर की सुविधाएं भोग रहे हैं। इन मंत्रियों का काम सिर्फ एसी सरकारी गाड़ियों में इधर-उधर घुमना और अभी भी फीते काटना है। समझ में नहीं आता कि भाजपा के जनप्रतिनिधि कौन सी उपलब्धियां गिना रहे हैं। जब पेयजल की समस्या का निदान नहीं हुआ तो फिर दूसरे दावों में कितनी सच्चाई है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अजमेर शहर की बिजली व्यवस्था निजी कंपनी टाटा पावर को देने का काम भी भाजपा की सरकार में ही हुआ। आज अनियमित बिजली सप्लाई की वजह से पेयजल व्यवस्था भी गड़बड़ा रही है। लेकिन इसके बाद भी भाजपा का कोई नेता टाटा पावर कंपनी के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है। टाटा पावर अपनी मनमर्जी से वितरण व्यवस्था कर रहा है। कंपनी पर कोई नियंत्रण नहीं है। 
अजमेर में नारद जयंती पर पत्रकार सम्मान समारोह और विचार गोष्ठी 8 मई को।
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विश्व संवाद केन्द्र अजयमेरु की ओर से 8 मई को अजमेर मे इंडिया मोटर सर्किल स्थित स्वामी काॅम्प्लेक्स के सभागार में प्रातः 11 बजे पत्रकार सम्मान समारोह एवं विचार गोष्ठी रखी गई है। केन्द्र के सचिव निरंजन शर्मा ने बताया कि शहर के सात प्रमुख पत्रकारों का सम्मान किया जाएगा। इसके साथ ही वर्तमान परिवेश में पत्रकारिता की भूमिका विषय पर एक विचार गोष्ठी होगी, गोष्ठी के मुख्यवक्ता यूएनआई समाचार एजेंसी के समाचार सम्पादक रहे तथा भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य गुलाब बत्रा होंगे। गोष्ठी की अध्यक्षता एमडीएस यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर विजय श्रीमाली करेंगे। शर्मा ने बताया कि प्रति वर्ष नारद जयंती के उपलक्ष में सम्मान समारोह और विचार गोष्ठी आयोजित की जाती है। देवर्षि नारद को दुनिया का प्रथम संवाददाता माना जाता है। सम्मानित होने वाले पत्रकारों को शाॅल ओढ़ा कर श्रीफल और प्रशंसा पत्र भेंट किया जाएगा। 

Saturday 5 May 2018

छुट्टी के दिन अफसरों की बैठक कर अजमेर की नई कलेक्टर आरती डोगरा ने अपनी कार्यशैली के संकेत दिए। न्याय आपके द्वार अभियान में कौताही बर्दाश्त नहीं।
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अजमेर की नवनियुक्त कलेक्टर आरती डोगरा ने छुट्टी के दिन 5 मई को जिले भर के उपखंड अधिकारियों और प्रमुख विभागाध्यक्षों की बैठक कर अपनी कार्यशैली के संकेत दे दिए हैं। 2006 के बैच की आईएएस डोगरा का कद मात्र 3 फीट 3 इंच का है। लेकिन कलेक्टर ने 5 मई को यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी कार्य क्षमता को कद से नहीं आका जाए। अधिकारियों को अब रात और दिन काम करना पड़ेगा। सरकार की जितनी भी कल्याणकारी योजनाएं हैं उन सब का लाभ जरुरतमंद व्यक्तियों को दिलवाना होगा। सरकारी कार्मिक के लिए अवकाश कोई मायने नहीं रखता है। सरकार से जब सभी प्रकार की सुविधाएं ली जाती है तो फिर छुट्टी के दिन भी काम करना चाहिए। 5 मई को सरकार के न्याय आपके द्वारा अभियान की समीक्षा के लिए कलेक्टर ने बैठक की। बैठक में उपस्थित सभी उपखंड अधिकारियों से कहा गया कि शिविरों में ग्रामीणों को सभी प्रकार की सुविधाएं दिलवानी जरूरी है। ऐसा न हो कि शिविर नाम मात्र के हो जाए। सरकार और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मंशा के अनुरूप शिविरों में काम होना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि वे स्वयं शिविरों का औचक निरीक्षण करेंगी और यदि कौताही मिली तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। हालांकि आरती डोगरा को पहले भी दो जिलों में कलेक्टर का अनुभव रहा है। लेकिन प्रदेश में अजमेर का कलेक्टर बनना अपने आप में चुनौतीपूर्ण काम है। कलेक्टर ने पहली ही बैठक में आभास करा दिया कि वे हर चुनौती को स्वीकार करेंगी। बैठक में जलदाय विभाग के इंजीनियरों से भी कलेक्टर ने कहा कि नियमित सप्लाई की जाए। जिन क्षेत्रों में पेयजल योजना नहीं है वहां टेंकरों के जािए पेयजल की सप्लाई की जावे। 
एबीपी न्यूज ने सीएम वसुंधरा राजे के ससुराल धौलपुर में विकास कार्यों खासकर पेयजल की पोल खोली। बच्चियां स्कूल जाने के बजाए 5 किलोमीटर कुए से पानी लाने को मजबूर। सीएम राज निवास से जयपुर पहुंची।
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एबीपी न्यूज चैनल ने 5 मई को राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ससुराल धौलपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की किल्लत पर एक विशेष रिपोर्ट प्रसारित की है। चैनल के संवाददाता गौरव श्रीवास्तव ने भीषण गर्मी में धौलपुर के बिनौली गांव का विस्तृत दौरा किया। ग्रामीणों ने बताया कि यहां सरकार की ओर से कोई पेयजल योजना नहीं है, इसलिए 5 किलोमीटर दूर कुए के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। चूंकि इसी कुए से आसपास के गांवों के लोग भी पानी भरते हैं। इसलिए कुए का पानी भी खत्म हो रहा है। कुए से पानी निकाल रही बच्चियों ने एबीपी चैनल के संवाददाता को बताया कि स्कूल जाने के बजाए पहले कुए पर आना पड़ता है। कोई चार किलोमीटर पैदल चल कर दिन में तीन-चार बार आना पड़ता है, तब परिवार वालों की प्यास बुझती है। गांव में लगे हैंडपम्प का पानी पीने योग्य नहीं है। जानवर भी बड़ी मुश्किल पीते हैं। कुए पर मौजूद महिलाओं ने कहा कि चुनाव में सभी दलों के नेता आकर पानी की समस्या के समाधान का आश्वासन देते हैं, लेकिन वोट लेने के बाद गांव की ओर देखते भी नहीं है। हालांकि धौलपुर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ससुराल है, लेकिन फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की भीषण किल्लत है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विकास की स्थिति क्या है। एबीपी न्यूज को उम्मीद है कि स्टोरी के प्रसारण के बाद पानी की समस्या का समाधान होगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि बरसात के पानी को संरक्षित करने के लिए सीएम राजे ने जल स्वावलम्बन योजना चला रखी है। इसके अंतर्गत सुखे कुए, ताबाल, बावड़ी आदि को पुनर्जीवित किया जा रहा है, लेकिन धौलपुर के हालात बताते हैं कि सीएम की ऐसी योजना सिर्फ कागजों में चल रही है।
धौलपुर के राज निवास से जयपुर लौटीः
5 मई को सुबह जब चैनल पर पेयजल किल्लत पर स्टोरी प्रसारित हो रही थी, तब सीएम राजे अपने ससुराल धौलपुर के राज निवास में ही मौजूद थीं। राजे ने 4 मई को भरतपुर और धौलपुर के तूफान प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था और शाम को विश्राम के लिए राज निवास महल से आई गईं। रात्रि विश्राम करने के बाद राजे 5 मई को सरकारी हैलीकाॅप्टर से धौलपुर से जयपुर आ गई।
तो क्या राजस्थान में गुर्जरों को ओबीसी कोटे से 5 प्रतिशत विशेष आरक्षण मिल सकेगा? चुनाव को देखते हुए 21 मई से आंदोलन।
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कांग्रेस और भाजपा की सरकारों की बार-बार घोषणा करने के बाद भी राजस्थान में गुर्जर समुदाय को उनकी मांग के अनुरूप 5 प्रतिशत आरक्षण अलग से भी तक नहीं मिला है। गुर्जर समुदाय के प्रतिनिधि अब समझ गए हैं कि आरक्षण का जो वर्गीकरण हो रखा है उसमें पांच प्रतिशत विशेष आरक्षण मिलना संभव नहीं है। सरकार ने जब-जब गुर्जरों को आरक्षण देने की घोषणा की तब-तब कोर्ट ने रोक लगा दी। यही वजह है कि 72 गुर्जरों की मौत हो जाने के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। राजस्थान में वर्तमान में अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत जनजाति को 12 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी को 21 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। यानि वर्तमान में 49 प्रतिशत आरक्षण है। संविधान के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सरकार ने एक प्रतिशत विशेष आरक्षण गुर्जरों को दे रखा है। लेकिन संवैधानिक अड़चन की वजह से पांच प्रतिशत आरक्षण गुर्जरों को नहीं दिया जा रहा, यानि कोर्ट का डंडा नहीं होता तो सरकार पांच क्या दस प्रतिशत आरक्षण गुर्जर और अन्य जातियों को दे देती, इसलिए अब गुर्जर नेताओं ने ओबीसी कोटे का विभाजन कर आरक्षण की मांग रखी है। हालांकि ओबीसी के 21 प्रतिशत कोटे में गुर्जर समुदाय भी शामिल है, लेकिन गुर्जरों का कहना है कि ओबीसी में कई ऐसी प्रभावशाली जातियां है, जो ओबीसी कोटे का अधिकतम लाभ ले रही है। जबकि ऐसी जातियों ने मुकाबले गुर्जर समुदाय शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है। कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने जब-जब भी सर्वे करवाएं तो गुर्जर जाति के लोग पिछड़े हुए मिले। यही वजह है कि गुर्जरों को ओबीसी कोटे का लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में 21 प्रतिशत ओबीसी कोटे में गुर्जर समुदाय को पांच प्रतिशत अलग से आरक्षण देने की मांग की रणनीति बनाई जा रही है इसके लिए 6 मई को बयाना के निकट कारवाड़ी गांव में गुर्जर आरक्षण आंदोलन से जुड़े प्रतिनिधि भाग लेंगे। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में होने वाली इस बैठक में 21 मई से शुरू होने वाले आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी। सवाल उठता है कि गुर्जरों ने ओबीसी कोटे में विभाजन का जो तर्क दिया है। उसमें क्या जाट, रावत, माली, सुनार जैसी जातियां स्वीकार करेंगी? वर्तमान व्यवस्था में ओबीसी कोटे का सर्वाधिक लाभ जाट समुदाय के युवा प्राप्त कर रहे हैं। हालांकि गुर्जर समुदाय स्वयं को ग्रामीण खास कर जंगल क्षेत्र से जुड़ा हुआ मानता है। लेकिन मीणाओं ने पहले ही जनजाति कोटे में छेड़छाड़ न करने की चेतावनी दे रखी है। सामाजिक दृष्टि से गुर्जर समुदाय भी नहीं चाहेगा कि एसटी कोटे में छेड़छाड़ की जाए। देखना है कि सरकार इस बार गुर्जरों के आंदोलन का मुकाबला कैसे करती है?

Friday 4 May 2018

तो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में एससी एसटी वर्ग को आरक्षण भी मिलना चाहिए। नहीं हटेगी जिन्ना की तस्वीर। पांच दिन के लिए बंद।
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उत्तर प्रदेश स्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के पदाधिकारियों ने स्पष्ट कह दिया है कि मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर छात्र संघ कार्यालय से नहीं हटेगी। छात्र संघ की घोषणा के बाद किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं कि जिन्ना की तस्वीर को हटा सके। हालांकि यूपी सरकार ने इस पूरे घटना क्रम पर अलीगढ़ प्रशासन से रिपोर्ट तब की है। लेकिन सब जानते है। कि इस यूनिवर्सिटी में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ भी कुछ नहीं कर पाएंगे। जब यूनिवर्सिटी परिसर में छात्र संघ के पदाधिकारी जुलूस निकाल कर जिन्ना की तस्वीर के समर्थन में सक्रिय है तो कोई सरकार क्या कर लेगी। अब जब जिन्ना की तस्वीर को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चर्चाओं में है तो संविधान इस यूनिवर्सिटी  में भी एससी एसटी और ओबीसी वर्ग को आरक्षण मिल जाना चाहिए। देश की तमाम यूनिवर्सिटीज में छात्रों के प्रवेश और शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण का लाभ मिलता है, लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऐसी शिक्षण संस्थाएं हैं, जहां एससी एसटी और ओबीसी वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। देश के विभाजन के जिम्मेदार जिन्ना के समर्थन में तर्क दिया जा रहा है कि 1936 में जिन्ना इस यूनिवर्सिटी में तंब आए थे जब देश का विभाजन नहीं हुआ था। इसलिए विभाजन से पहले की परंपरा को अभी भी निभाया जा रहा है। इसलिए यह सवाल उठा है कि इस यूनिवर्सिटी देश के संविधान के मुताबिक पिछड़े वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए जो लोग इस यूनिवर्सिटी  में जिन्ना की तस्वीर लगाने रखने के हिमायती हैं उन्हें दलित वर्ग को आरक्षण का लाभ दिलवाना चाहिए। कोई भी यूनिवर्सिटी देश के संविधान से ऊपर नहीं हो सकती।
पांच दिन के बंद यूनिवर्सिटीः
जिन्ना की तस्वीर को लेकर यूनिवर्सिटी परिसर में जो हालात उत्पन्न हुए हैं, उसे देखते हुए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पांच दिनों के लिए यूनिवर्सिटी में अवकाश घोषित कर दिया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूनिवर्सिटी परिसर के हालात कितने खराब हो गए हैं। 
पाकिस्तान में गांधी जी की तस्वीर क्यों नहीं?
विभाजन से पहले जिस प्रकार मोहम्मद अली जिन्ना अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और अन्य स्थानों पर आए उसी प्रकार भारत के राष्ट्रपिता माने जाने वाले महात्मा गांधी भी लाहौर इस्लामाबाद आदि में गए थे, लेकिन पाकिस्तान शायद ही कोई संस्थान होगा, जिसमें अभी तक महात्मा गांधी की तस्वीर लगा रखी हो, यदि पता चल जाए तो पाकिस्तान में महात्मा गांधी की तस्वीर हटवाने के लिए प्रदर्शन हो। पाकिस्तान का शायद ही कोई नागरिक होगा जो महात्मा गांधी की तस्वीर का समर्थक हो।
क्या नई कलेक्टर अजमेर की बिगड़ी बिजली व्यवस्था को सुधार पाएंगी? टाटा पावर संभाल रहा है वितरण व्यवस्था।
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इन दिनों भीषण गर्मी में अजमेर की विद्युत वितरण व्यवस्था पूरी तरह गड़बड़ाई हुई है। जलदाय विभाग ने स्पष्ट कह दिया कि बिजली की सप्लाई लगातार नहीं मिलने की वजह से जल वितरण का समय निर्धारित नहीं हो रहा है। चूंकि अजमेर शहर में बिजली वितरण की फ्रेंचाइजी टाटा पावर कम्पनी के पास है। इसलिए उपभोक्ताओं की सुनने वाला कोई नहीं है। चूंकि विद्युत वितरण निगम के अधिकारी टाटा पावर से मिलने हुए हैं इसलिए कंपनी के विरुद्ध निगम में भी कोई सुनवाई नहीं होती। अजमेर की नव नियुक्त कलेक्टर आरती डोगरा जोधपुर निगम के एमडी के पद से स्थानांतरित होकर आई है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अजमेर में बिजली वितरण में सुधार होगा। जोधपुर में एमडी के पद पर रहते हुए डोगरा ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। उम्मीद है कि डोगरा ने जोधपुर के उपभोक्ताओं को जो सुविधा उपलब्ध करवाई वह अजमेर में भी होगी। पिछले एक वर्ष से अजमेर में बिजली वितरण का काम टाटा पावर संभाल रहा है। पिछले साल भर में हर दिन किसी न किसी क्षेत्र में मरम्मत के नाम पर बिजली कटौती की गई। शर्तों के अनुरूप चैबीस घंटे में नया कनेक्शन देना है, लेकिन कंपनी के इंजीनियर मनमर्जी से कनेक्शन देते हैं। एस्टीमेंट की एक मुश्त राशि बताई जाती है, जबकि एस्टीमेंट में खर्च का पूरा विवरण होना चाहिए। साल भर पहले सवा लाख उपभोक्ता टाटा पावर को दिए गए लेकिन कंपनी ने शहर में मात्र 5 सब डिवीजन आफिस खोल रखे हैं। जबकि कम से कम 9 सब डिवीजन आॅसिफ होने चाहिए। कंपनी ने अनट्रेंड तकनीकी कर्मचारियों को रख रखा है। कई काम ठेके पर दे दिए गए हैं। संबंधित ठेकेदार अपनी मर्जी से काम करता है। नए कनेक्शन के लिए कोई रजिस्टर नहीं है। ऐसे में आवेदन की जानकारी भी नहीं होती। शर्तों के मुताबिक पहले आवेदन करने वाले को कनेक्शन मिलना चाहिए। टाटा पावर लाभ की दृष्टि से बिजली वितरण का काम कर रहा है। अधिक राशि का बिल आने पर उपभोक्ताओं की कोई सुनवाई नहीं होती। अनेक उपभोक्ताओं को शिकायत है कि पहले पुराने मीटर को बंद कर दिया जाता है और फिर उपभोक्ता से औसत यूनिट की राशि की वसूली होती है। लेकिन नया मीटर लगने पर ली गई राशि समायोजित नहीं की जाती है। यदि विस्तृत जांच करवाई जाए तो टाटा पावर बिजली वितरण की ज्यादा वसूली कर रहा है।
सफाईः
वहीं टाटा पावर कंपनी के कारपोरेट हैड आलोक श्रीवास्तव ने दावा किया है कि व्यवसायिक कनेक्शन एक दिन में और घरेलू कनेक्शन अधिकतम चार दिनों में दिया जा रहा है। कई बार फाइल में आवश्यक दस्तावेज नहीं होने अथवा मौके पर पोल आदि के कार्य की वजह से कनेक्शन देने में विलम्ब हो जाता है। एस्टीमेट में उपभोक्ता को पूरी जानकारी दी जाती है। ट्रांसफार्मर की मरम्मत की वजह से संबंधित क्षेत्र में बिजली सप्लाई बंद रहती है। जिन शर्तों पर कंपनी ने बिजली वितरण का काम लिया है, उसका पालन किया जा रहा है। पांच सब डिवीजन आॅफिस में उपभोक्ताओं की शिकायतों का समाधान किया जाता है। श्रम कानून कंपनी के अपने हैं, जिसके अंतर्गत कार्य करवाया जाता है। विद्युत निगम के श्रम कानून हमारी कंपनी पर लागू नहीं होते।
तो रामनाथ कोविंद अब बन गए हैं राष्ट्रपति। 
बरसात में नहीं टपकती राष्ट्रपति भवन की छत।
कलाकारों को पुरस्कार नहीं देने का मामला।
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गत वर्ष जब रामनाथ गोविंद ने देश के राष्ट्रपति का पद संभाला था, तब अपने पहले संबोधन में कहा कि मैं आम आदमी की पीड़ा को अच्छी तरह समझता हंू। कानपुर के गांव में जिस मकान में मैं रहता था, उस मकान की छत बरसात में टपकती थी। हम रात को सो नहीं पाते थे। इसी भाषण पर भरोसा कर देशवासियों  को लगा कि अब वाकई आम आदमी का राष्ट्रपति बना है। चूंकि कोविंद अनुसूचित जाति के रहे, इसलिए नरेन्द्र मोदी की सरकार ने भी अलग संदेश दिया, लेकिन अब प्रतीत होता है कि बरसात में ओलावृष्टि में भी कोविंद आलीशान राष्ट्रपति भवन में रात के समय आराम से सो सकते हैं। यह बात अलग है कि अब उन्हें अपने देश के कलाकारों को पुरस्कार देने की फुर्सत नहीं है। 3 मई को कोविंद ने 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरण समारोह में वर्षो पुरानी परंपरा को तोड़ दिया। 125 विजेताओं में से मात्र 11 विजेताओं को अपने हाथों से पुरस्कार दिए। कोविंद के इस व्यवहार से नाराज होकर कलाकारों ने पुरस्कार ही नहीं लिए। अब पूरा देश आम आदमी वाला राष्ट्रपति ढूंढ रहा है। सवाल उठता है कि क्या कोविंद को भी राजा-महाराजाओं की तरह जीने की चाह हो गई है। इसलिए तो हरेक विजेता को स्वयं पुरस्कार नहीं दे रहे। पुरस्कार का कितना महत्व है उतना ही राष्ट्रपति के हाथों से ग्रहण करने का है। यदि पुरस्कार को राष्ट्रपति द्वारा नहीं दिया जाता तो ऐसे पुरस्कार का महत्व भी नहीं होता। राष्ट्रपति भवन की सफाई है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पहले ही बता दिया था कि राष्ट्रपति मात्र एक घंटा ही रुकेंगे। यह सफाई कोई मायने नहीं रखती है, क्योंकि जब सभी कलाकारों को पुरस्कार देने की परंपरा है तो कोविंद को इसे निभाना चाहिए। कोविंद जिस गरीबी से निकल कर राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं उन्हें तो परंपरा निभाने के साथ-साथ नवाचार भी करने चाहिए, ताकि आम नागरिक को गे कि राष्ट्रपति भवन में उनका प्रतिनिधित्व है।
सीएम वसुंधरा राजे ने तूफान पीड़ितों के आंसू पौंछे, खुद भी हो गई भाव विभोर। अफसरों को दिए निर्देश।
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4 मई को राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने भरतपुर, धौलपुर आदि क्षेत्रों के तूफान पीड़ितों के आंसू पौंछने का काम किया। 2 मई को आए अंधड़ तूफान में इन क्षेत्रों के कोई 40 लोगों की मौत हो गई। सीएम राजे ने 4 मई को भरतपुर के उन गांवों का दौरा किया जहां ग्रामीणों की मौत हुई। जनुथर गांव में मृतकों के परिजन को हिम्मत बंधाते हुए राजे ने कहा कि दुःख की घड़ी में सरकार उनके साथ खड़ी है। मृतकों के परिजन को चार-चार लाख रुपए देने की घोषणा की गई है। धौलपुर के लबेड़ा गांव सीएम राजे ने तूफान प्रभवित लोगों को सहायता राशि के चैक हाथों हाथ दिए। गांव की कुछ महिलाएं पैरों में गिर पड़ी, हालांकि सुरक्षा कर्मियों ने जल्दी से उठाया। सीएम राजे का कहना रहा कि सरकार हर संभव मदद करेगी। मृतकों के परिजन ने सरकारी नौकरी दिलवाने की मांग की तो सीएम ने कहा कि विचार करुंगी। सीएम ने प्रशासन के अधिकारियों को निर्देश दिए कि तूफान प्रभावित क्षेत्रों में जल सेवाएं जल्द से जल्द शुरू करवाई जावे। ऐसा न हो कि प्रभावित क्षेत्रों में बीमारियां फैल जाए, बिजली पानी की सुविधा के साथ-साथ चिकित्सा सुविधा भी गांवों में प्रभावी तरीके से उपलब्ध करवाई जाए। सरकार मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। सीएम राजे जब प्रभावित लोगों की पीड़ा सुन रही थी तो उनकी आंखें नम हो गई। सीएम ने माना कि तूफान की वजह से अनेक परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। जब सीएम राजे की आंखें नम हुई तो पूरा माहौल गमगीन हो गया। सीएम ने 4 मई को जिस तरह पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई उसकी प्रशंसा सभी ग्रामीणों ने भी की।
इस स्नेह और अपने पन से भाव विभोर हैं कलेक्टर गौरव गोयल।
सम्मान देने वालों में होड़। अजमेर में आनासागर के किनारे पाथ वे और ब्रह्मा मंदिर में सुधार को मानते हैं महत्वपूर्ण उपलब्धि।
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भारतीय प्रशासनिक सेवा के युवा अधिकारी गौरव गोयल ने दो वर्ष पहले 29 अप्रैल 2016 को जब अजमेर के जिला कलेक्टर का पद संभाला था, तब उम्मीद नहीं थी कि तबादले के समय आंखों में आसंू आ जाएंगे। अफसर खास कर आईएएस के लिए तबादला एक रुटीन प्रक्रिया है। लेकिन गोयल ने अब अहसास किया कि अजमेर से तबादला रुटीन प्रक्रिया नहीं है। कोटा तबादला होने पर अजमेर के सभी वर्गों के लोग जिस तरह आत्मीयता दिखा रहे हैं उससे कलेक्टर गोयल भाव विभोर है। कलेक्टर के तौर पर पहले भी बाड़मेर, भरतपुर और जोधपुर से तबादला हो चुका है, लेकिन गोयल को अजमेर में अपने पन का जो माहौल मिला, वह कम ही लोगों को मिलता है। राजनीति, प्रशासनिक, सामाजिक, धार्मिक, खेल आदि सभी क्षेत्रों के लोगों में सम्मान देने की होड़ मची हुई है। पहले दो दिन कलेक्टर कक्ष में और अब 4 मई से कलेक्टर आवास पर लोगों का तांता लगा हुआ है। अखिल भारतीय राज्य संयुक्त कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष कांतिकुमार शर्मा जैसे अनेक लोग हैं जो अभिनंदन पत्र देकर सम्मान कर रहे हैं। वैश्य समाज से जुड़े सुभाष काबरा आदि प्रतिनिधि भी स्वागत करने में पीछे नहीं है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि गत दो वर्षों में गोयल आम आदमी के कलेक्टर हैं। किसी भी संस्था ने निमंत्रण दिया तो गोयल ने इंकार नहीं किया। मीडिया घरानों ने तो मेले-ठेलों के उद्घाटन के लिए भी कलेक्टर को बुला लिया। यानि गोयल ने हर संभव अपने जिले से जुड़ने की कोशिश की। अच्छा व्यवहार नहीं करने के कारण पूर्व कलेक्टर आरुषि मलिक पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगवाने वाले सत्यनारायण गर्ग भी गोयल से खुश हैं। अजमेर में शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसे गोयल के व्यवहार से नाराजगी रही।
मेरा भी अनुभवः
गोयल के व्यवहार को लेकर मेरा भी व्यक्तिगत अनुभव रहा है। असल में स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस पर पत्रकारों को भी सम्मानित करने की परंपरा है। इसके लिए पत्रकारों को लिखित भी आवेदन करना होता है। आम तौर पर बड़े अखबार के पत्रकार भी सम्मानित होते हैं। सम्मानित होने वालों के चयन के लिए कमेटी भी बनाई जाती है, लेकिन वर्ष 2017 में कलेक्टर गोयल ने गणतंत्र और स्वाधीनता दिवस पर उन पत्रकारों को भी सम्मानित किया, जिनके नाम मैंने अजयमेरु प्रेस क्लब के अध्यक्ष की हैसियत से भेजे थे। गोयल का कहना रहा कि प्रेस क्लब के सही और हकदार पत्रकारों के नाम प्रस्तावित कर सकता है। 
दो बड़ी उपलब्धिः
गोयल का मानना है कि अजमेर में यंू तो उन्हें कार्य करने का बहुत अवसर मिला। लेकिन आनासागर के किनारे पाथ-वे निर्माण और पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर में सुधार महत्वपूर्ण हैं। ब्रह्मा मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष रहते हुए आय कई गुना बढ़ गई।  पहले जहां 20 दिनों में चालीस हजार रुपए की आय दिखाई जाती थी, वहां अब बीस दिनों में दस लाख रुपए से भी ज्यादा की आय हो रही है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं में ब्रह्मा मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। आने वाले दिनों में पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर देश का प्रमुख पर्यटक स्थल होगा। इसी प्रकार अजमेर शहर में आने वाले पर्यटक भी ऐतिहासिक आनासागर झील के चारों ओर भ्रमण कर सकेंगे। टाॅय बैंक, कपड़ा बैंक, सेनेटरी नेपकिन, मोबाइल लाइब्रेरी जैसे नवाचार भी गोयल ने अजमेर में किए। कुल मिला कर गोयल का दो वर्ष का कार्यकाल सफल माना जा सकता है।