Saturday 31 July 2021

#8140तो क्या राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी संघ प्रचारक निंबाराम की गिरफ्तारी के लिए एसीबी पर दबाव बना रही है?गृह मंत्री के नाते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही एसीबी के प्रमुख हैं।·मैं ही दिल्ली हूं अजय माकन का यह बयान घमंड से भरा है।


 
30 जुलाई को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की एक बैठक हुई। इस बैठक में प्रदेश प्रभारी महासचिव अजय माकन भी उपस्थित रहे। हालांकि यह बैठक प्रदेश चल रही सियासी घमासान के मद्देनजर बुलाई गई थी लेकिन इस बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र के प्रचारक निंबाराम की गिरफ्तारी का प्रस्ताव भी पास किया गया सब जानते हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही कांग्रेस की सरकार चल रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस पार्टी किस से मांग कर रही है? जब कांग्रेस की ही सरकार है तो एसीबी की कार्रवाई पर भरोसा करना चाहिए। क्या सत्तारूढ़ दल को अपनी ही सरकार के अधीन कार्य करने वाली एसीबी भी पर भरोसा नहीं है? और वह भी तब जब गृहमंत्री का प्रभार ही मुखमंत्री अशोक गहलोत के पास ही है। गृह मंत्री के नाते गहलोत ही एसीबी के प्रमुख हैं। यह सही है कि जयपुर ग्रेटर की निलंबित मेयर सौम्य गुर्जर के पति राजाराम गुर्जर द्वारा कथित तौर पर दो लाख की रिश्वत मांगने के प्रकरण में एसीबी ने संघ प्रचारक निंबाराम को भी नामजद किया है। हालांकि इस मामले में संबंधित कंपनी से राशि का लेन देन भी नहीं हुआ लेकिन निलम्बित मेयर के पति और कंपनी के एक प्रतिनिधि को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया गया है। एसीबी ने संघ प्रचारक निंबाराम से प्राथमिक पूछताछ भी नहीं की है एसीबी के कमान बोल्ड छवि वाले डीजी बी॰एल॰ सोनी के हाथ में है इसी प्रकार एसीबी के ए॰डी॰जी दिनेश एन॰एम॰ है दोनों अधिकारियों की अपनी कार्यशैली है। जिस पर संदेह भी नहीं किया जाना चाहिए। सत्ता में होने के बावजूद भी कांग्रेश पार्टी कुछ भी मांग करें लेकिन बी॰एल॰ सोनी और दिनेश एन॰एम॰ को पता है कि सौम्या गुर्जर के प्रकरण मे निंबाराम की क्या भूमिका है? काग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा साहब पहले भी निंबाराम की गिरफ्तारी की मांग कर चुके हैं लेकिन एसीबी डोटासरा की मंशा के अनुरूप काम नहीं किया है। अब जब डोटासरा स्वयं रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने के आरोप से घिर गए हैं। तब निंबाराम का नाम उछालकर बचाव करना चाहते हैं। एवं सब जानते हैं कि संघ के प्रचारक अपना घर परिवार छोड़कर सामाजिक सरोकारों सरोकारों से जुड़े कार्य करते हैं। सादगी से रहते हैं। और कोई संपत्ति एकत्रित नहीं करते हैं। सौम्या गुर्जर वाले मामले में भी कंपनी के प्रतिनिधि द्वारा सी॰एस॰आर॰ फंड से राम मंदिर के लिए सहयोग राशि देने की बातचीत सामने आई है राम मंदिर के लिए सहयोग मांगना कोई अपराध नहीं है। जो लोग इस मामले को बेवजह उछाल रहे हैं उन्हें चुनाव में इसके परिणाम भुगतने होंगे।

घमंड भरा बयान - जयपुर में 28 व 29 जुलाई को कांग्रेस विधायकों से रायशुमारी के बाद जब प्रदेश प्रभारी अजय माखन से पत्रकारो ने दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के दिशा निर्देशों के बारे में सवाल पूछा तो माखन ने कहा कि मैं ही दिल्ली हूं माकन का यह बयान घमंड से भरा है सब जानते हैं कि कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार के सदस्य श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कर रहे हैं। अब यदि अजय माकन स्वयं को गांधी परिवार से बड़ा समझ रहे हैं तो आगे समय ही बताएगा की माखन की कांग्रेस में क्या स्थिति रहती है। 
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#8141पीके गोयल हो सकते है राजस्थान के अगले मुख्य सचिव। इसलिए अपने से जूनियर मुख्य सचिव के अधीन सचिवालय मे कार्य करने पर सहमति जताई है।मुख्य सचिव निरंजन आर्य 6 माह बाद सेवा निवृत होंगे, जबकि पीके गोयल का रिटायरमेंट फरवरी 2023 मे है यानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नवम्बर 2023 तक कई मुख्य सचिवों का चयन करेगें।

30 जुलाई को रात को राज्य सरकार ने जिस पांच आईएएस के तबादला सूची जारी की है, उसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव(एसिएस) पीके गोयल का नाम भी है। गोयल को स्कूली शिक्षा और पंचायती राज प्रारंभिक शिक्षा का प्रभार दिया गया है। यानी अब पीके गोयल सचिवालय में बैठेगे तथा आईएएस सेवा में अपने से जूनियर मुख्य सचिव निरंजन आर्य के अधीन काम करेगें। मालूम को कि गत वर्ष पांच छः आईएएस की वरिष्ठता लांग कर निरंजन आर्य को मुख्य सचिव बनाया गया था। जब कभी किसी जूनियर को मुख्य सचिव बनाया जाता है, तब सीनियर आईएएस सचिवालय बिल्डिंग को छोड कर अन्यत्र विभागों में नियुक्त हो जाते है। राजस्व मंडल रोडवेज आदि विभागों के अध्यक्ष के पद मुख्य सचिव के बराबर होते है और उनका कार्य भी स्वतंत्र होता है। आर्य को जब मुख्य सचिव बनाया गया, जब पीके गोयल भी सचिवालय बिल्डिंग से बाहर हो गये, लेकिन अब आर्य के मुख्य सचिव रहते हुऐ ही गोयल वापस सचिवालय में आ गये। इसमें कोई दो राय नही है की अब गोयल को आर्य के अधीन काम करना होगा। सब जानते है कि मुख्य सचिव के चयन में मुख्यमंत्री की ही राय सर्वोपरी होती है। राजस्थान में अशोक गहलोत ऐसे मुख्यमंत्री है जो कुछ भी कर सकते है। जानकार सुत्रो के अनुसार मुख्यमंत्री के भरोसे के बाद ही पीके गोयल ने निरंजन आर्य के अधीन काम करना स्वीकार किया है। आर्य छः माह बाद जनवरी 2022 में सेवानिवृत हो जायेगें। तब पीके गोयल को ही मुख्य सचिव बनाया जा सकता हैं। प्रदेश के सभी आईएएस और आईपीस जानते है की सीएम गहलोत जो वायदा करते है उसे निभाते है। पिछले ढाई वर्षो में जिन आईएएस और आईपीएस ने गहलोत के इशारे पर डांस किया, वो सेवा निवृति के बाद भी महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर बैठे है। हालांकि निरंजन आर्य से सीनियर आईएएस सुबोध अग्रवाल खाद विभाग के प्रमुख संभाग सचिव के तौर पर काम कर रहे है, लेकिन सीएम गहलोत अग्रवाल को मुख्य सचिव नहीं बनायेगे, क्योकि अग्रवाल की सेवा निवृति दिसम्बर 2025 मे है। अशोक गहलोत अभी नवम्बर 2023 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहेगे। ऐसे में अगले ढाई वर्षो में गहलोत कई मुख्य सचिव का चयन करेगें। गहलोत का प्रयास होगा कि ज्यादा से ज्यादा आईएएस को मुख्य सचिव बनाकर आब्लाईट किया जाये। वैसे गहलोत ने अपने कार्यकाल में पीएमआर को इतना शक्तिशाली कर रखा है की मुख्य सचिव का पद नाम मात्र का है। निरंजन आर्य तो मुख्य सचिव बनने से ही खुश है। भले ही मुख्य सचिव का काम सीएमआर मे हो। सीएम गहलोत ने तो आर्य की पत्नि श्रीमति संगीता को राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य भी बना दिया है। आर्य के लिए इससे ज्यादा अनुकूल परिस्थितियां और क्या हो सकती है। आर्य जिस तरह अभी कार्य कर रहे है उसे देखते हुए लगता है कि सेवा निवृति के बाद लाभ का कोई अन्य पद मिल जाये।
S.P.MITTAL BLOGGER (31-07-2021)
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#8142अजमेर डेयरी 1 अगस्त से ₹7 प्रति फैक्ट किधर से दूध की खरीद करेगी इससे डेयरी को प्रतिमाह दो करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना होगा।पशुपालकों को पशु बीमा की प्रीमियम राशि का मात्र ₹450 ही देना होगा ।नस्ल सुधार के लिए भी विशेष अभियान चलेगा। अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी की पहल पर अनेक प्रकार की सहायता।

अजमेर डेयरी 1 अगस्त से जिले के दुग्ध उत्पादक से ₹7 प्रति फैट कि दर से दूध की खरीद करेगी अब तक ₹6: 50 पैसे कि दर से दूध की खरीद की जा रही थी खरीद मूल्य में वृद्धि करने से डेयरी को प्रतिमाह 2 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना होगा। डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने बताया के संचालक मंडल की बैठक में कई सदस्यों ने दूध के खरीद मूल्य में वृद्धि का प्रस्ताव रखा था पशुपालकों की आर्थिक परेशानी को देखते हुए खरीद मूल्य में वृद्धि का निर्णय लिया गया है चौधरी ने बताया कि दूध के विक्रय मूल्य में फिलहाल कोई वृद्धि नहीं की जा रही है बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि पशुओ का बीमा यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से करवाया जाएगा यह कंपनी पशुपालकों से एक पशु के बीमे की प्रीमियम राशि अट्ठारह सौ रुपए लेगी लेकिन इस अट्ठारह सौ रुपए में से ₹900 डेयरी अनुदान के रूप में देगी तथा ₹450 की राशि दुग्ध उत्पादन सहकारी समिति वहन करेगी ऐसे में पशुपालक को ₹450 कि प्रीमियम राशि देनी होगी चौधरी ने पशुपालकों से आग्रह किया कि वे अपने समस्त पशुओं का बीमा करवाएं बछड़ों के उत्पादन को रोकने के लिए गर्भनिरोधक टीके लगवाएं जाने कभी निर्णय लिया गया ₹770 की कीमत वाले टीके के लीए पशुपालक को मात्र ₹257 का भुगतान करना होगा। इसी प्रकार बांझ पशुओं को प्रजनन योग्य बनाने के लिए भी टीका लगाया जाएगा 20000 की कीमत वाले पीके के लिए पशुपालक से मात्र ₹2500 लिए जाएंगे ₹10000 संघ तथा ₹5000 एनडीडीबी और ढाई हजार रुपे दुग्ध उत्पादन सहकारी समिति वहन करेगी पशुओं की नस्ल सुधार के लिए 100 सांड उपलब्ध करवाए जाएंगे प्रत्येक सांड पर डेयरी 40000 का अनुदान देगी बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि दुग्ध उत्पादकों का बकाया भुगतान रक्षाबंधन से पूर्व कर दिया जाएगा। बैठक में डेयरी के प्रबंध संचालक उमेश चंद्र व्यास सहित संचालक मंडल के सभी सदस्य उपस्थित रहे चौधरी ने उम्मीद जताई है कि इन निर्णय से पशुपालकों को राहत मिलेगी ।S.P.MITTAL BLOGGER (31-07-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511

Friday 30 July 2021

गांधी परिवार के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले ही अजय माकन ने विधायकों के फीडबैक की रिपोर्ट उजागर कर दी।जब सारे विधायक संतुष्ट हैं जो गांधी परिवार राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के बारे में क्या निर्देश देगा?लेकिन सचिन पायलट दिल्ली में ही जमे हुए है और गांधी परिवार के संपर्क में है।

राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने 28 व 29 जुलाई को जयपुर में प्रदेश कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों से मुलाकात की। माना तो यह जा रहा था कि विधायकों के फीडबैक के आधार पर माकन अपनी रिपोर्ट दिल्ली में गांधी परिवार के समक्ष प्रस्तुत करेंगे और फिर रिपोर्ट के आधार पर गांधी परिवार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट के बीच सुलह का रास्ता निकालेगा। लेकिन अजय माकन ने तो 29 जुलाई की रात को ही फीडबैक की रिपोर्ट उजागर कर दी। माकन ने मीडिया से कहा कि सभी विधायकों ने गहलोत सरकार की तारीफ की है। विधायकों का कहना है कि जो कार्य 70 बरस में नहीं हुए वो पिछले ढाई वर्ष में सीएम गहलोत ने करवाए है। यानी फीडबैक में विधायकों ने गहलोत सरकार पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की। सवाल उठता है कि अजय माकन ने जब फीडबैक का निष्कर्ष उजागर कर दिया, तब वे गांधी परिवार को क्या रिपोर्ट देंगे? सवाल  यह भी है कि जब सब कुछ अच्छा है तो फिर गांधी परिवार गहलोत सरकार के बारे में क्या निर्देश देगा? अजय माकन के कारण से सचिन पायलट द्वारा उठाए मुद्दों पर भी पानी फिर गया है। सब जानते हैं कि माकन के फीडबैक लेने से तीन दिन पहले ही पायलट ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि यदि वायदे पूरे नहीं हुए तो 2023 में कांग्रेस की स्थिति 2003 और 2013 वाली हो जाएगी। जब कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में क्रमश: 59 और 21 सीटें ही मिली थीं। पायलट ने जो मुद्दे उठाए उस पर अजय माकन कोई टिप्पणी नहीं की। माकन का बयान पूरी तरह गहलोत सरकार के पक्ष में है। अब माकन क्या रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे और गांधी परिवार क्या निर्णय देगा, यह आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन यह जरूर है कि अजय माकन के कथन से सचिन पायलट और उनके समर्थक खुश नहीं है। माकन जब 27 जुलाई को जयपुर आए थे, तब पायलट उसी दिन दिल्ली चले गए। तभी से पायलट दिल्ली में ही है। जानकार सूत्रों के अनुसार पायलट दिल्ली में रहकर गांधी परिवार के संपर्क में हे। सूत्रों के अनुसार विधायकों से फीडबैक लेने के निर्णय से सचिन पायलट सहमत नहीं थे। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते विधायकों से राय जानने का कोई मतलब नहीं है। ऐसी राय तो गहलोत के पिछले दो कार्यकाल में भी जानी गई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणाम एकदम विपरीत आए। पायलट का कहना है कि भाजपा के शासन में जिन कार्यकर्ताओं ने संघर्ष किया, उन्हें अभी तक भी सरकार में सम्मान नहीं मिला है। यदि फीडबैक के निर्णय पर पायलट की सहमति होती तो वे दिल्ली नहीं जाते। सूत्रों के अनुसार दिल्ली में रह कर पायलट ने राजस्थान की हकीकत से गांधी परिवार को अवगत करा दिया है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (30-07-2021)
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बेरोजगार शिक्षक यदि गोविंद सिंह डोटासरा के रिश्तेदार होते तो नौकरी मिल जाती।हाईकोर्ट का आदेश भी नहीं मान रहा है शिक्षा विभाग। प्रदेश के तीन हजार बेरोजगार तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी से वंचित।


राजस्थान के तीन हजार बेरोजगार शिक्षकों को इस बात का अफसोस है कि वे कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और ताकतवर स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के रिश्तेदार नहीं है। यदि वे डोटासरा के रिश्तेदार होते तो अब तक तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी मिल जाती। जब डोटासरा के रिश्तेदार आरएएस में चयनित हो सकते हैं तथा रातों रात जिला शिक्षा अधिकारी के पद से उपनिदेशक के पद पर पदोन्नत हो सकते हैं तो तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी तो मिल ही जाएगी। तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी दिलाने तो डोटासरा के लिए चुटकी बजाने वाला काम है। असल में तृतीय श्रेणी भर्ती परीक्षा 2016 व 2018 में उन अभ्यर्थियों को भी पात्र मान लिया जिन्होंने बीए के बाद अंग्रेजी विषय का एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स किया है। सरकार के इस निर्णय का उन अभ्यर्थियों ने विरोध किया जिन्होंने बीए की पढ़ाई में लगातार तीन वर्ष तक अंग्रेजी की वैकल्पिक विषय के तौर पर पढ़ाई की। ऐसे अभ्यर्थियों का कहना रहा कि अंग्रेजी विषय की तीन वर्ष तक पढ़ाई करने वाले और एक वर्ष में डिग्री लेने वाले में कुछ तो फर्क होना चाहिए। भेदभाव का यह मामला जब जोधपुर स्थित हाईकोर्ट की एकल पीठ के सामने आया तो कोर्ट ने एक वर्षीय सर्टिफिकेट वाले अभ्यर्थियों को सशर्त परीक्षा में शामिल करने के आदेश दिए। बाद में 25 मार्च 2021 को हाईकोर्ट की डबल बैंच ने एक वर्षीय सर्टिफिकेट वाले अभ्यर्थियों को तृतीय श्रेणी शिक्षक की परीक्षा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। यह बात सही है कि पूर्व के आदेश से जिन एक वर्षीय सर्टिफिकेट वाले अभ्यर्थियों ने नौकरी प्राप्त कर ली है उन्हें हटाया नहीं जा सकता। लेकिन सरकार के दोषपूर्ण निर्णय से जो तीन हजार बेरोजगार नौकरी से वंचित हो गए हैं, उन्हें तो नौकरी दी जा सकती है। नौकरी से वंचित रहे बेरोजगार शिक्षकों का कहना है कि यदि वे डोटासरा के रिश्तेदार होते तो उन्हें भी नौकरी मिल जाती। तृतीय श्रेणी शिक्षक की नौकरी दिलवाने में डोटासरा को ज्यादा ताकत नहीं लगानी पड़ती, क्योंकि वे सरकारी नियमों के तहत नौकरी के हकदार हैं। कायदे से तो हाईकोर्ट के आदेश के बाद तीन हजार बेरोजगार शिक्षकों को नौकरी मिल जानी चाहिए,लेकिन ऐसे बेरोजगार प्रभावशाली नहीं है, इसलिए अभी तक नौकरी से वंचित हैं। इस संबंध में अंग्रेजी विषय के बेरोजगार शिक्षकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह किया है कि उनकी समस्या पर गंभीरता से विचार किया जाए। ऐसे  शिक्षकों  ने रीट परीक्षा भी अंग्रेजी विषय से ही उत्तीर्ण की है। अभ्यर्थियों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री कोई रास्ता निकाल कर नौकरी दिलवाएंगे। ऐसे अभ्यर्थियों को एक वर्षीय सर्टिफिकेट वाले अभ्यर्थियों की नौकरी पर भी कोई एतराज नहीं है, लेकिन इनकी वजह से जो अभ्यर्थी नौकरी से वंचित हुए हैं उन्हें तो नौकरी मिलनी ही चाहिए। इस प्रकरण की ओर अधिक जानकारी बेरोजगार शिक्षक संजय कुमार  से मोबाइल नम्बर 9460732974 पर ली जा सकती है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (30-07-2021)
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अजमेर के रुद्रदत्त मिश्र जैसे क्रांतिकारियों के संघर्ष के कारण ही देश को आजादी मिली। चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ काम किया।अजमेर में बना रुद्रदत्त मिश्रा सर्किल। बेटी स्नेहलता मिश्रा को पिता के संघर्ष पर गर्व है।31 जुलाई को 110वीं जयंती पर विशेष।

अजमेर के महावीर सर्किल के निकट रहने वाली सुप्रसिद्ध गायकोनॉलोजिस्ट डॉ. स्नेहलता मिश्रा को इस बात पर गर्व है कि उनके पिता स्वर्गीय रुद्रदत्त मिश्रा की देश को आजाद करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर मिश्रा ने भी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। स्वर्गीय मिश्रा की 110वीं जयंती पर मोबाइल नम्बर 9261237999 पर डॉ. स्नेहलता मिश्रा की हौसला अफजाई की जा सकती है। रुद्रदत्त मिश्रा का जन्म 31 जुलाई 1911 को अजमेर जिले के ब्यावर में हुआ था। सात वर्ष की उम्र में ही मिश्रा के पिता का निधन हो गया। 17 साल की उम्र में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। अजमेर में रामचन्द्र, जगदीश दत्त व्यास आदि के साथ मिलकर युवा क्रांतिकारियों का एक दल बनाया और अंग्रेज सरकार के खिलाफ कार्यवाही शुरू की। अर्जुनलाल सेठी जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के बाद हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन भी किया। इस आर्मी का संपर्क तब चन्द्रशेखर आजाद, कैलाशपति, विमल प्रसाद जैन, प्रो. नंदकिशोर निगम सरीखे क्रान्तिकारियों से रहा। देश के प्रमुख क्रांतिकारी संगठन के कामकाज से जब अजमेर आते तो रुद्रदत्त मिश्रा से ही संवाद करते। मिश्रा 1930 में जब राजकीय महाविद्यालय में विद्यार्थी थे, तब उन्हें निर्देश मिले की दिल्ली आकर क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करें। मिश्रा ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर दिल्ली चले गए और अंग्रेज सरकार को भगाने के लिए पिस्तौल, गोला बारूद आदि सामग्री क्रांतिकारियों को इधर से उधर पहुंचाने लगे। चूंकि अंग्रेजों के शासन में अजमेर को क्रांतिकारियों के लिए सुरक्षित स्थल माना जाता था, इसलिए क्रांतिकारियों का आना जाना लगा रहता था। इस बीच कैलाशपति को अंग्रेजी शासन में गिरफ्तार कर सरकारी गवाह बना लिया। कैलाशपति ने जो जानकारी दी, उसके आधार पर ही 11 नवम्बर 1930 गिरफ्तार कर लिया। मिश्रा की यह पहली गिरफ्तारी थी। इस गिरफ्तारी के आद अन्य क्रांतिकारियों के साथ साथ मिश्रा पर भी दिल्ली षडय़ंत्र केस के नाम से मुकदमा चला। इस मुकदमें में मिश्रा के अलावा, धनवंतरि, सच्चिदानंद, हीरानंद वत्स्यान, बीजी वैशम्पायन, विद्याभूषण शुक्ल, प्रो. नंद किशोर निगम, विमल प्रसाद जैन, डॉ. रामबाबू राम, गजानंद शिव पोद्दार, मास्टर हरकेश, ख्यालीराम गुप्त, मास्टर हरद्वारीलाल, कपूरचंद जैन, भागीरथ आदि आरोपी बनाए गए। इस मुकदमे में चन्द्रशेखर आजाद, भवानी सहाय, भवानी सिंह, विशम्भर नाथ, सुशीला दीदी, दुर्गा भाभी, यशपाल प्रकाशवती आदि को फरार घोषित किया। इन सभी पर आरोप लगाया गया कि इन्होंने वायसराय की स्पेशल ट्रेन में बम रखने का काम किया है। इस कार्य को भारत के सम्राट के तख्त हो उलटने वाला बताया गया। मिश्रा पर दिल्ली में यह मुकदमा चल ही रहा था कि एक और मुकदमा दर्ज हो गया। इस मुकदमे में मिश्रा पर कोर्ट में पुलिस अधिकारी सरदार बहादुर बाघसिंह को जूतों और घूंसों से पीटने का आरोप लगाया गया। इस मुकदमे में मिश्रा को दो वर्ष की सजा हुई। जेल से बाहर आने के बाद मिश्रा फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। मिश्रा ने दिखाने के लिए लाहौर के डीएवी कॉलेज में प्रवेश ले लिया। लेकिन अंग्रेज सरकार को जल्द ही पता चल गया कि मिश्रा एक क्रांतिकारी हैं। पंजाब के गवर्नर ने मिश्रा को चौबीस घंटे में लाहौर छोड़ने के आदेश दिए। लाहौर से निकलने के बाद मिश्रा बनारस आ गए और यहां के विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। मिश्रा ने अपने कुछ साथियों के लिए शम्भू नारायण सक्सेना के साथ एक पिस्तौल भेजी थी, लेकिन दुर्भाग्यवश शम्भू नारायण अजमेर के रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार हो गए। इसके बाद मिश्रा को भी बनारस से गिरफ्तार कर लिया गया। अजमेर में चले मुकदमे में मिश्रा को दो वर्ष की सजा सुनाई गई। दो वर्ष की सजा भुगतने के बाद मिश्रा फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। अंग्रेज अधिकारी डोगरा को गोली मारने और खलील गोरी को जख्मी करने के आरोप में मिश्रा को फिर गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन सबूतों के अभाव में मिश्रा जमानत पाने में सफल रहे। बनारस में रहते हुए मिश्रा ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति का छह वर्षीय कोर्स भी किया। 1941 में मिश्रा ग्वालियर के राजकीय आयुर्वेद कॉलेज में प्राध्यापक बन गए, लेकिन पारिवारिक कारणों से 1942 में अलवर आना पड़ा। अलवर में राजकीय डूंगराज हाईस्कूल में शिक्षक की नौकरी की। लेकिन अंग्रेजी शासन के दबाव के कारण मिश्रा को नौकरी से निकाल दिया गया। मिश्रा एक बार फिर अपने गृह जिले अजमेर में आ गए। 1947 में देश जब आजाद हुआ तो मिश्रा को अलवर में औषद्यालय अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई। मिश्रा अजमेर में भी जिला आयुर्वेद अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे। मिश्रा 31 जुलाई 1971 तक राजकीय सेवा में रहे। लंबे संघर्ष के कारण मिश्रा हृदय रोग से पीड़ित हो गए। 4 जनवरी 1980 को मिश्रा की जीवन यात्रा समाप्त हो गई। मिश्रा ने देश की आजादी के लिए जो संघर्ष किया, उस पर पूरे देश को गर्व है। आज ऐसे क्रांतिकारियों की वजह से ही हम सब आजाद माहौल में सांस ले रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी को बोलने की आजादी है। पिछले 70 सालों में देश के चहुंमुखी विकास भी किया है। मिश्रा के संघर्ष को देखते हुए ही अजमेर नगर निगम ने मेडिकल कॉलेज के सर्किल का नाम स्वर्गीय रुद्रदत्त मिश्रा सर्किल रखा है। आज इस सर्किल को स्वर्गीय मिश्रा के नाम से ही जाना जाता है। 
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Thursday 29 July 2021

आरएएस में सलेक्शन होने के बाद अभ्यर्थी से लिए जा रहे थे 20 लाख रुपए। एसीबी ने जयपुर में बाड़मेर के सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल और दो दलालों को रंगे हाथों पकड़ा। अब राजस्थान लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का नाम भी सामने आएगा।आरएएस की इंटरव्यू प्रक्रिया पर फिर उठा सवाल।


29 जुलाई को जयपुर में एसीबी ने 20 लाख रुपए की राशि के साथ बाड़मेर के सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल और दो दलालों को गिरफ्तार किया है। एसीबी के सूत्रों के अनुसार आरएएस 2018 की भर्ती में सिलेक्शन होने के बाद 20 लाख रुपए की राशि रिश्वत के तौर पर दी जा रही थी। सूत्रों के अनुसार स्कूल प्रिंसिपल राजस्थान लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य के संपर्क में था और आयोग के सदस्य के नाम पर ही रिश्वत ली जा रही थी। हालांकि अभी प्रिंसिपल और आयोग के सदस्य के बीच संपर्क होने के सबूत सामने नहीं आए हैं। लेकिन एसीबी इस मामले में गंभीरता के साथ जांच कर रही है। एसीबी के अधिकारियों का मानना है कि आरएएस में सिलेक्शन हो जाने के बाद किसी अभ्यर्थी से इतनी बड़ी राशि लिया जाना अपने आप में गंभीर बात है। यह प्रकरण आरएएस इंटरव्यू की प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाता है। रिश्वतखोरी का यह मामला इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि आरएएस के इंटरव्यू के दौरान भी एसीबी ने आयोग के ही अकाउंटेंट सज्जन सिंह गुर्जर को 23 लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए पकड़ा था। तब सज्जन सिंह ने एसीबी को बताया था कि यह राशि आयोग की सदस्य राजकुमारी गुर्जर और उनके पति रिटायर आईपीएस भैरो सिंह गुर्जर के लिए ली जा रही थी। एसीबी अभी 23 लाख रुपए की रिश्वत के मामले में जांच कर रही है कि आरएएस के परीक्षा परिणाम में 20 लाख रुपए की रिश्वत का दूसरा मामला सामने आ गया है। पूर्व में जब एसीबी ने अकाउंटेंट को 23 लाख रुपए की राशि के साथ गिरफ्तार किया था, तब आयोग के अध्यक्ष भूपेन्द्र यादव का कहना था कि इंटरव्यू की प्रक्रिया फुलप्रूफ है और आयोग के किसी भी सदस्य का रिश्वतखोरी से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई व्यक्ति किसी सदस्य के नाम पर राशि ले रहा है तो उससे आयोग का कोई सरोकार नहीं है। लेकिन 29 जुलाई को जिस तरह से स्कूल प्रिंसिपल को 20 लाख रुपए की राशि के साथ गिरफ्तार किया गया है उससे इंटरव्यू प्रक्रिया पर सवाल उठता है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि आरएएस में उत्तीर्ण करवाने के लिए अनेक स्तरों पर रिश्वत ली जा रही है। यह रिश्वत सलेक्शन होने के बाद भी अभ्यर्थियों से वसूली जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के दो निकट रिश्तेदारों का चयन भी आरएएस 2018 की परीक्षा में हुआ है। इसको लेकर भी प्रदेशभर में सवाल उठाए जा रहे हैं। 
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अशोक गहलोत खुद मुख्यमंत्री के पद से हट सकते हैं, लेकिन धारीवाल, रघु, खाचरियावास और कल्ला को नहीं हटने देंगे।किसी मंत्री के खिलाफ कोई शिकायत नहीं। अखबारों में आयोजित तरीके से खबरें छपवाई जा रही हैं-रघु।

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन का राजस्थान के कांग्रेसी और निर्दलीय विधायकों से सरकार और संगठन के बारे में फीडबैक लेने का काम 29 जुलाई को पूरा हो गया। माकन ने करीब 115 विधायकों से मुलाकात की। अखबारों की खबरों में कहा जा रहा है कि विधायकों ने नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा, परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और ऊर्जा एवं जलदाय मंत्री बीडी कल्ला की कार्यशैली को लेकर नाराजगी जताई है। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के व्यवहार को लेकर भी कुछ विधायकों ने नाराजगी जताई। ऐसी खबरों के बाद यह चर्चा होने लगी कि संभावित मंत्रिमंडल फेरबदल में इन मंत्रियों को हटाया जाएगा या फिर इनके विभाग बदले जाएंगे। सब जानते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व अशोक गहलोत कर रहे हैं। यह गहलोत का ही करिश्मा था कि गत वर्ष जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक दिल्ली चले गए थे, तब जयपुर में गहलोत ने ही सरकार को बचाया। उस समय सरकार को बचाने में इन्हीं तीन-चार मंत्रियों ने सक्रिय भूमिका निभाई। खाचरियावास और रघु शर्मा ऐसे मंत्री थे जिन्होंने सचिन पायलट पर लगातार हमले किए। इसी प्रकार कांग्रेस विधायकों की बाड़ाबंदी करने में शांति धारीवाल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इन मंत्रियों ने सीएम गहलोत के इशारे पर ही काम किया। हालांकि अभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि कांग्रेस के कितने विधायकों ने इन मंत्रियों के खिलाफ प्रदेश प्रभारी के समक्ष नाराजगी प्रकट की है। लेकिन इतना जरूर है कि इन तीन-चार मंत्रियों को न तो हटाया जाएगा और न ही इनके विभागों में कोई फेरबदल होगा। सीएम गहलोत को भी पता है कि इन मंत्रियों की वजह से ही सरकार बची है। ऐसे में गहलोत ऐसा कोई निर्णय नहीं करेंगे, जिसमें इन मंत्रियों की प्रतिष्ठा में कोई कमी आवे। जहां तक अजय माकन की रायशुमारी का सवाल है तो इस रायशुमारी में अशोक गहलोत की स्थिति मजबूत हुई है। भले ही सचिन पायलट के समर्थक इन विधायकों ने नाराजगी जताई हो, लेकिन 100 से भी ज्यादा विधायकों ने सरकार और संगठन की प्रशंसा की है। जो लोग अशोक गहलोत की राजनीति को जानते हैं उन्हें पता है कि वे अपने समर्थकों का कभी भी नुकसान नहीं होने देते हैं। अजय माकन अपने फीडबैक की रिपोर्ट गांधी परिवार के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। यदि गांधी परिवार ने कुछ मंत्रियों को हटाने या विभागों में बदलाव के निर्देश दिए तो सीएम गहलोत शायद ऐसे निर्देशों को नहीं मानेंगे। मौजूदा राजनीतिक हालातों में गहलोत स्वयं मुख्यमंत्री के पद से हट सकते हैं, लेकिन अपने समर्थक मंत्रियों को हटने नहीं देंगे। गहलोत जब तक मुख्यमंत्री हैं, तब तक राजस्थान में शांति धारीवाल, रघु शर्मा, गोविंद सिंह डोटासरा, बीडी कल्ला जैसे मंत्रियों का दबदबा बना रहेगा।
प्रायोजित खबरें:
29 जुलाई को प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि अजय माकन के फीडबैक को लेकर अखबारों में जो खबरें छपी है वे प्रायोजित हैं। ऐसी खबरों को नियोजित तरीके से छपवाया जा रहा है। रघु ने कहा कि फीडबैक में किसी भी मंत्री के खिलाफ विधायकों ने नाराजगी प्रकट नहीं की है। उन्होंने कहा कि जो दिखता है वह होता नहीं है और नहीं दिखता है वह होता है। उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ यदि कोई प्रोपेगेंडा चल रहा है तो वह ज्यादा दिन नहीं टिकेगा। उन्होंने कहा कि डोटासरा ने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर बहुत अच्छा काम किया है। शांति धारीवाल की वजह से शहरी क्षेत्रों का तेजी से विकास हुआ है। धारीवाल कांग्रेस के वफादार कार्यकर्ता हैं। जहां तक मेरे चिकित्सा विभाग का सवाल है तो कोरोना काल में राजस्थान के चिकित्सा विभाग की प्रशंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है। 29 जुलाई को जिस आत्मविश्वास के साथ रघु शर्मा ने मीडिया और सरकार विरोधी तत्वों के खिलाफ हमला बोला उससे प्रतीत होता है कि राजस्थान में गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं है। अजय माकन का फीडबैक एक सामान्य प्रक्रिया से ज्यादा कुछ भी नहीं है। यदि फीडबैक को लेकर कोई गंभीरता होती तो रघु शर्मा इस तरह सार्वजनिक तौर पर मीडिया पर हमला नहीं बोलते। 
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अजमेर में स्मार्ट सिटी के काम एक नजर में। अजमेर वासियों के हर सवाल का जवाब मिलेगा।अजमेर के छात्र मानस रोहिल्ला का लगातार दूसरी बार क्लेट में चयन।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अजमेर शहर में चल रहे स्मार्ट सिटी के कार्यों को लेकर शहरवासियों के मन में अनेक सवाल है। कुछ लो एलिवेटेड रोड के बारे में जानना चाहते हैं तो कुछ लोग सीवरेज के बारे में। आनासागर के चारों तरफ बन रहे पाथवे और जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में हो रहे कार्यों को लेकर भी लोगों के मन में सवाल है। हालांकि अखबारों में आए दिन स्मार्ट सिटी के कार्यों के बारे में छपता है, लेकिन कई मौकों पर खबर समझ में नहीं आती है। शहरवासियों की जिज्ञासा को देखते हुए मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog  पर स्मार्ट सिटी के सभी 43 कार्यों का सचित्र फोल्डर देखा जा सकता है। कुछ सेकंड के बाद अपने आप फोल्ड कर दूसरा पृष्ठ आ जाएगा। चूंकि स्मार्ट सिटी फोल्डर 43 पृष्ठों का है, इसलिए दो पार्ट में पोस्ट किया गया है। इस फोल्डर को जागरूक पाठक अपने मोबाइल में आसानी से ट्रांसफर कर सकते है। स्मार्ट सिटी के कार्य सही है या गलत, इस पर मैं अभी कुछ नहीं लिख रहा हूं यह बताना चाहता हूं कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इसीलिए इस प्रोजेक्ट की अधिकांश राशि केन्द्र सरकार द्वारा दी जा रही है। केन्द्र सरकार की मंशा थी कि अजमेर देश के चुनिंदा शहरों में से एक हो, इसलिए 2 हजार करोड़ रुपए का आवंटन भी किया गया, लेकिन स्मार्ट सिटी के कार्यों में राज्य सरकार की स्कूलों की मरम्मत तक के कार्य शामिल कर लिए गए हैं। सर्वाधिक पैसा आनासागर पर खर्च किया जा रहा है। पाथवे निर्माण से आनासागर की भराव क्षमता भी कम हो रही है। नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन का आरोप है कि स्मार्ट सिटी के इंजीनियर अजमेर के भू माफियाओं से मिले हुए हैं, इसलिए आनासागर की भराव क्षमता को कम किया गया है। स्मार्ट सिटी के कार्य शहरवासियों के लिए कितने उपयोगी होंगे, यह वक्त बताएगा, लेकिन अभी की हकीकत यह है कि अजमेर में तीन-चार दिन में एक बार मात्र एक घंटे के लिए पेयजल की सप्लाई हो रही है। प्यासे लोग सेवन वंडर्स और म्यूजिकल फाउंटेन का लुफ्त कैसे उठाएंगे, यह स्मार्ट सिटी बनाने वाले इंजीनियर ही बता सकते हैं। फोल्डर में तो अजमेर वाकई स्मार्ट लग रहा है।
क्लेट में चयन:
अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार रजनीश रोहिल्ला के पुत्र और कोटड़ा स्थित सेंट्रल एकेडमी के छात्र मानस रोहिल्ला का क्लेट परीक्षा 2021 में लगातार दूसरी बार चयन हुआ है। देश की टॉप लॉ यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए परीक्षा प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है। मानस गत बार भी परीक्षा में सफल रहा था, लेकिन 11वीं कक्षा में अध्ययन करने के कारण लॉ की पढ़ाई नहीं कर सका। पांच वर्षीय कोर्स के लिए 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करना जरूरी है। इस बार मानस का ऑल इंडिया रैंक 646 रहा है, जबकि गत बार 2210 था।  क्लेट परीक्षा में देशभर के विद्यार्थी भाग लेते हैं। इस एंट्रेंस टेस्ट की तुलना अन्य नेशनल स्तर के टेस्ट से होती है। मानस की सफलता के लिए मोबाइल नम्बर 8741812724 पर रजनीश रोहिल्ला को बधाई दी जा सकती है। 
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नीट, यूजी और पीजी में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को संविधान सम्मत आरक्षण मिले। इस मांग को लेकर केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के नेतृत्व में ओबीसी सांसदों का एक दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला।राजस्थान में 90 जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल हैं-ओम प्रकाश भडाना।

28 जुलाई को केंद्रीय पर्यावरण एवं श्रम रोजगार मंत्री भूपेन्द्र यादव के नेतृत्व में ओबीसी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। सांसदों ने मोदी को ज्ञापन सौंपकर नीट यूजी और पीजी में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण बहाल करने की मांग की। प्रधानमंत्री को बताया कि संविधान के अनुरूप 50 प्रतिशत आरक्षण का जो प्रावधान है, उसमें ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को नियमों के अनुरूप आरक्षण नहीं मिला पा रहा है, जिससे इस वर्ग के अनेक अभ्यर्थी एमबीबीएस और एमडी की पढाई से वंचित हो रहे हैं। ज्ञापन में मांग की गई कि अखिल भारतीय कोटे के तहत ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण सुनिश्चित करवाया जाए। पीएम मोदी ने ज्ञापन पर उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया है। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद केन्द्रीय मंत्री यादव ने बताया कि यदि आरक्षण की व्यवस्था ठीक ढंग से लागू की जाती है तो नीट यूजी और पीजी में ओबीसी वर्ग के युवाओं की संख्या बढ़ जाएगी। उन्होंने बताया कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ऐसी सरकार चल रही है जिसने सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़े दलित, अनुसूचित जनजाति तथा आर्थिक तौर पर कमजोर तबके के उत्थान के लिए काम किया है। दशकों से लंबित ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने का काम भी मोदी सरकार के कार्यकाल में हुआ है। इसके साथ साथ आर्थिक रूप से कमजोर तबके को सरकारी नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय भी लिया गया है।
राजस्थान में ओबीसी में 90 जातियां:
भाजपा के ओबीसी  मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश भडाना ने बताया कि राजस्थान में ओबीसी वर्ग में 90 जातियां शामिल हैं। इन जातियों के युवा 27 प्रतिशत आरक्षण के हकदार हैं। भाजपा के पिछले शासन में सर्वे करवा कर नई जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करवाया गया था। भडाना ने कहा कि अखिल भारतीय कोटे में नीट यूजी और पीजी की प्रवेश परीक्षा में आरक्षण सही ढंग से लागू किया जाता है तो इसका लाभ राजस्थान की 90 जातियों के युवाओं को भी मिलेगा। भडाना ने बताया कि देशभर में 5 हजार जातियां हैं जो ओबीसी वर्ग में शामिल हैं। जनप्रतिनिधियों का दायित्व है कि ऐसी जातियों के युवाओं को आरक्षण का लाभ दिलवाएं। ओबीसी वर्ग की जातियों से जुड़ी जानकारी मोबाइल नम्बर 9929590191 पर ओम प्रकाश भडाना से ली जा सकती है। 
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Wednesday 28 July 2021

केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव की पहल पर अजमेर जिले में नेशनल हाइवे के विकास के लिए एक हजार करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत।

केंद्रीय पर्यावरण एवं श्रम मंत्री भूपेन्द्र यादव ने 27 जुलाई को दिल्ली में केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की। इस अवसर पर यादव के साथ अजमेर के सांसद भागीरथ चौधरी भी थे। यादव ने गडकरी को बताया कि जो स्टेट हाईवे नेशनल हाईवे को जोड़ते हैं, उनके सुदृढ़ीकरण के मामले में राज्य सरकार ने भेदभाव पूर्ण काम किया है। इस भेदभाव का अजमेर जिला भी शिकार हुआ है। इससे ग्रामीण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। यादव की बात को गंभीरता से लेते हुए गडकरी ने अजमेर जिले में नेशनल हाइवे के विकास और सुदृढ़ीकरण के लिए एक हजार करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है। इस राशि से अब अजमेर जिले के दिलवाड़ा में एनएच-79 पर एक ओवरब्रिज का निर्माण, एनएच-79 पर अजमेर-भीलवाड़ा मार्ग पर बरल द्वितीय के निकट ओवरब्रिज का निर्माण, किशनगढ़ एयरपोर्ट हाईवे पर बांदनवाड़ा फ्लाईओवर जैसा नवीन फ्लाईओवर का निर्माण, किशनगढ़ जयपुर के मध्य एनएच-8 पर पाटन, बांदरसिंदरी, दादरी, मोखमपुरा, सांवरदा व मेहला में ओवरब्रिज का निर्माण, श्रीनगर-खेड़ा चौराहा पर ओवर ब्रिज का निर्माण आदि कार्य हो सकेंगे। गडकरी ने भरोसा दिलाया कि इसके अतिरिक्त भी परिवहन मंत्रालय अजमेर जिले में सड़कों के सुदृढ़ीकरण का काम करेगा। केन्द्रीय मंत्री और अजमेर निवासी भूपेन्द्र यादव ने उम्मीद जताई है कि एक हजार करोड़ रुपए की राशि से होने वाले कार्यों की वजह से ग्रामीणों को सुविधा मिलेगी। उन्होंने कहा कि अजमेर के विकास में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। सांसद भागीरथ चौधरी ने भी यादव का आभार प्रकट किया है। 
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अजमेर में चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का जन्मदिन तो धूमधाम से मना लेकिन वार्ड चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई।

28 जुलाई को अजमेर नगर निगम और किशनगढ़ नगर परिषद के एक एक वार्ड के उपचुनाव का परिणाम घोषित हुआ। इसमें कांग्रेस उम्मीदवारों को बुरी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की यह बुरी हार तब हुई जब दो दिन पहले 26 जुलाई को ही प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का जन्मदिन जिलेभर में धूमधाम से मनाया गया। 26 जुलाई को ही इन दोनों वार्डों में मतदान हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि मतदान वाले दिन कांग्रेस के कार्यकर्ता मंत्री का जन्मदिन मनाने में व्यस्त रहे और कांग्रेस की हार हो गई। मालूम हो कि रघु शर्मा के जन्मदिन पर अजमेर सहित ब्यावर, किशनगढ़, केकड़ी, नसीराबाद में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन दिए गए। लाखों रुपए के विज्ञापन देने वालों में चिकित्सा विभाग के अधिकारी भी शामिल थे। कोरोना काल में महंगी दवाई बेचने वाले कैमिस्ट एसोसिएशनों ने भी रघु शर्मा के लिए अखबारों में शुभकामनाएं संदेश छपवाए। यानी मंत्री जी का जन्मदिन मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। लेकिन 28 जुलाई को नगर निगम के वार्ड संख्या 28 में भाजपा की उम्मीदवार गीता जांगिड़ ने 783 मतों से कांग्रेस की उम्मीदवार बेला शर्मा को हरा दिया। इसी प्रकार किशनगढ़ नगर परिषद के वार्ड संख्या 46  में भाजपा के उम्मीदवार  भैरव लाल सैनी ने कांग्रेस के उम्मीदवार पन्नालाल सांखला को 654 मतों से हरा दिया। कांग्रेस की यह बार इसलिए भी मायने रखती है कि मतदान से पहले अजमेर नगर निगम और किशनगढ़ नगर परिषद में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को मनोनीत पार्षद नियुक्त किया गया था। अजमेर जिले में सभी राजनीतिक नियुक्तियां रघु शर्मा की सिफारिश से ही होती है। जन्मदिन के अवसर पर भी समर्थकों ने यह दिखाने की कोशिश की कि रघु शर्मा अजमेर जिले के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है, लेकिन दो वार्डों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि जिले में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर है। रघु शर्मा के समर्थक भले ही जन्मदिन धूमधाम से मना ले, लेकिन वार्ड चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। 
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राजस्थान लोकसेवा आयोग के असली बॉस तो कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं।अब समधी की पदोन्नती के लिए नियम कायदे ताक में। डोटासरा को भी पता है कि ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा।आयोग की कार्यशैली के खिलाफ जयपुर में प्रदर्शन, अजमेर में ज्ञापन।

राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष और स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के समधी व चूरू के जिला शिक्षा अधिकारी रमेशचंद पूनिया आगामी 30 सितम्बर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। डोटासरा चाहते हैं कि रिटायरमेंट से पहले उनके समाधि शिक्षा विभाग में उपनिदेशक बन जाए ताकि बाद में पेंशन आदि में इजाफा होता रहे। पिछले दिनों ही आरएएस के परिणाम में  समधी  रमेश चंद पूनिया के बेटे गौरव और बेटी प्रभा सफल घोषित हुए हैं। डोटासरा का पुत्र और पुत्रवधू का चयन आरएएस में पहले ही हो चुका है। डोटासरा को भी पता है कि ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा। इसलिए जो कुछ करना है वह कर लिया जाए। समधी को उपनिदेशक बनवाने के लिए डोटासरा ने अजमेर स्थित इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोग्राम और बीकानेर स्थित राधा कृष्ण उच्च अध्ययन संस्थान के जिला शिक्षा अधिकारी के पद को रातों रात उपनिदेशक के स्तर का कर दिया। चूंकि डोटासरा स्कूली शिक्षा मंत्री है, इसलिए अपने विभाग के पद को पदोन्नत करने में कोई परेशानी नहीं हुई। जानकार सूत्रों के अनुसार शिक्षा विभाग में पदोन्नति के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग ने डीपीसी की बैठक 28 व 29 जुलाई को निर्धारित कर रखी थी, लेकिन इस बीच राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा हुई तो डोटासरा ने अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए आयोग में डीपीसी की तारीख बदलवा दी, जो बैठक 28-29 जुलाई को होनी थी, उसे 26 जुलाई को ही करवा दिया। इस बैठक के बाद  समधी  रमेश चंद पूनिया की पदोन्नति का रास्ता साफ हो गया है। सूत्रों के अनुसार डोटासरा यदि शिक्षा अधिकारी के दो पदों पदोन्नत नहीं करते तो उनके  समधी  रिटायर होने से पहले उपनिदेशक नहीं बन सकते थे। अब चूंकि पदोन्नति हो रही है, इसलिए पूनिया जल्द ही उपनिदेशक बन जाएंगे। पूनिया के बेटे और बेटी का आरएएस में चयन का मामला अभी भी विवाद में है। आरएएस के इंटरव्यू के दौरान ही एसीबी ने आयोग के जूनियर अकाउंटेंट सज्जन सिंह गुर्जर को 23 लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा था। गुर्जर का कहना रहा कि यह राशि आयोग की सदस्य राजकुमारी गुर्जर से इंटरव्यू में अच्छे अंक दिलवाने के लिए ली गई है। एसीबी की इतनी बड़ी कार्यवाही के बाद भी आयोग का कहना रहा कि इंटरव्यू की प्रक्रिया निष्पक्ष रही है। जब परिणाम घोषित हुआ तो एक बार फिर चयन प्रक्रिया को लेकर सवाल उठे। डोटासरा के रिश्तेदारों के इंटरव्यू में 80-80 अंक प्राप्त होना कई सवाल खड़े करता है। डोटासरा के समधि की पदोन्नति के लिए डीपीसी की तारीख में बदलाव से भी प्रतीत होता है कि राजस्थान लोकसेवा आयोग के असल बॉस तो डोटासरा ही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि डोटासरा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद ही आयोग में पांच सदस्यों की नियुक्ति हुई। 28 जुलाई को ही आरएएस के लिए इंटरव्यू में हुई गड़बडिय़ों को लेकर युवा मोर्चे के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि आरएएस के परिणाम को रद्द करवाकर दोबाार से इंटरव्यू की प्रक्रिया की जाए। वहीं अजमेर में भी भाजपा के नेताओं ने आयोग के मुख्यालय में एक ज्ञापन दिया और आरएएस परिणाम का रद्द करने की मांग की। आरोप लगाया गया कि इंटरव्यू की प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं रही है। 
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एमडीएस यूनिवर्सिटी में एक ही झटके में 120 करोड़ रुपए का जुगाड़।आवंटित विद्यार्थियों से अधिक को प्रवेश देने वाले कॉलेजों को प्रति विद्यार्थी 15 हजार रुपए पेनल्टी देनी होगी। अतिरिक्त विद्यार्थियों की संख्या करीब 80 हजार है।कार्यवाहक कुलपति ओम थानवी पर कोई दबाव काम नहीं आ रहा। प्राइवेट कॉलेजों में खलबली।

अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी की एकेडमिक काउंसिल की बैठक 24 जुलाई को हुई। इस बैठक में प्राइवेट कॉलेजों के अतिरिक्त विद्यार्थियों के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। अतिरिक्त विद्यार्थियों को लेकर पिछले दो तीन वर्षों से समस्या चली आ रही थी, इससे कॉलेज प्रबंधन के साथ साथ विद्यार्थी भी परेशान थे। यूनिवर्सिटी जब किसी प्राइवेट कॉलेज को संबद्धता देती है, तब कॉलेज में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों की संख्या निर्धारण भी करती है। मौजूद संसाधन और भवन को देखते ही संबंधित कॉलेजों में विद्यार्थियों की संख्या निर्धारित की जाती है, लेकिन कई कॉलेजों ने निर्धारित विद्यार्थियों से ज्यादा विद्यार्थियों को प्रवेश दे दिया। हालांकि यह यूनिवर्सिटी के नियमों के खिलाफ है, लेकिन कॉलेजों के प्रभावशाली मालिक जोड़ तोड़ कर अतिरिक्त विद्यार्थियों को परीक्षा दिलवाने में सफल हो जाते थे, लेकिन अब यूनिवर्सिटी में जोड़ तोड़ वाली परंपरा को समाप्त कर दिया गया है। एसडीएम यूनिवर्सिटी में चार जिलों के 320 कॉलेज आते हैं और इनमें करीब सवा तीन लाख विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। 320 कॉलेजों में से करीब 82 कॉलेज हैं, ऐसे रहे जिन्होंने निर्धारित विद्यार्थियों से ज्यादा को प्रवेश दे दिया। ऐसे अतिरिक्त विद्यार्थियों की संख्या करीब 80 हजार है। एकेडेमिक काउंसिल ने निर्णय लिया है कि प्रत्येक अतिरिक्त विद्यार्थी का कॉलेज प्रबंधन से 15 हजार रुपए  पेनल्टी   का लिया जाएगा। यदि किसी कॉलेज ने 10 अतिरिक्त विद्यार्थियों को प्रवेश दिया है तो उससे एक लाख 50 हजार रुपए की राशि  पेनल्टी  के तौर पर ली जाएगी। लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि  पेनल्टी  की राशि विद्यार्थी से न वसूली जाए। इसके लिए कॉलेज प्रबंधन को 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर शपथपूर्वक यह लिख कर देना होगा कि पैनेल्टी की राशि संबंधित विद्यार्थी से नहीं ली गई है। पेनल्टी का प्रावधान वर्ष 2020-21 के शिक्षा सत्र के लिए किया गया है। सत्र वर्ष 2021-22 में यदि कोई कॉलेज निर्धारित संख्या से ज्यादा प्रवेश देता है तो उसे कॉलेज की सम्बद्धता अपने आप रद्द हो जाएगी। अगले वर्ष से अतिरिक्त विद्यार्थियों की परीक्षा के लिए पैनेल्टी का कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। यूनिवर्सिटी के नियमों का कॉलेजों खास कर प्राइवेट कॉलेजों में सख्ती से पालन कराया जाएगा। एकेडेमिक काउंसिल के निर्णय से जहां कॉलेजों और अतिरिक्त विद्यार्थियों की समस्या का समाधान हो रहा है। वहीं एसडीएम यूनिवर्सिटी को भी 120 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होगी। 15 हजार रुपए के हिसाब से 80 हजार विद्यार्थियों की पैनेल्टी 120 करोड़ के हिसाब से 80 हजार विद्यार्थियों की पैनेल्टी 120 करोड़ रुपए होती है। जो कॉलेज यह पैनेल्टी जमा नहीं करवाएगा इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को स्वयंपाठी विद्यार्थी माना जाएगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार काउंसिल के इस निर्णय से अतिरिक्त विद्यार्थियों को प्रवेश देने वाले प्राइवेट कॉलेजों के मालिकों में खलबली है। अनेक प्राइवेट कॉलेजों का संचालन बड़े अधिकारियों और राजनेताओं के रिश्तेदार ही करते हैं। ऐसे में पेनल्टी को कम करने या समाप्त करने का दबाव डाला जा रहा है। लेकिन कार्यवाहक कुलपति ओम थानवी पर फिलहाल कोई दबाव काम नहीं आ रहा है। काउंसिल की बैठक में जो निर्णय हुआ है उसकी सख्ती से पालना करवाई जा रही है। कोई विद्यार्थी परीक्षा से वंचित न हो, इसलिए परीक्षा आवेदन की तिथि भी 4 अगस्त तक बढ़ा दी गई है। 100 रुपए विलंब शुल्क के साथ 6 अगस्त तक ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (28-07-2021)
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गांधी परिवार की रायशुमारी से 10 घंटे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान के 114 एसडीएम बदले। कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की सिफारिश से हुए तबादले।राजनीति में ऐसा मास्टर स्ट्रोक अशोक गहलोत ही चला सकते हैं।मंत्रिमंडल में फेरबदल की विस्फोटक खबरें फुस्स। तो सचिन पायलट नहीं देंगे। गहलोत सरकार पर राय।विधानसभा परिसर का दुरुपयोग-कटारिया।

27 जुलाई की रात 12 बजे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर राजस्थान के 283 आरएएस के तबादले कर दिए गए। इनमें से 114 एसडीएम हैं। किसी भी विधायक की अपने क्षेत्र में तभी चलती है जब क्षेत्र का एसडीएम भरोसे का हो। कांग्रेस और गहलोत सरकार को समर्थन देने वाले 13 निर्दलीय विधायकों ने अपने अपने क्षेत्र के एसडीएम बदलने की सिफारिश कर रखी थी, लेकिन ऐसी सिफारिश लम्बे समय से सीएमआर में लंबित पड़ी थीं। सवाल उठता है कि आखिर 27 जुलाई को आधी रात को एक साथ 283 आरएएस के तबादले की जरूरत क्या पड़ गई? असल में 28 जुलाई को सुबह 10 बजे से जयपुर में कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की रायशुमारी हो रही है। यह रायशुमारी कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के निर्देश पर प्रदेश प्रभारी अजय माकन कर रहे हैं। यानी रायशुमारी से 10 घंटे पहले मुख्यमंत्री गहलोत ने सभी विधायकों को खुश कर दिया। जो विधायक अपनी राय देने के लिए  माकन के समक्ष उपस्थित हो रहे हैं, वे इस बात से खुश है कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में सिफारिशी एसडीएम की नियुक्ति हो गई है। ऐसे में विधायक गहलोत सरकार को लेकर क्या राय देंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने एक एक विधायक की सिफारिश का ख्याल रखा है। राजनीति में ऐसा मास्टर स्ट्रोक अशोक गहलोत ही चला सकते हैं। कौन सा काम कब करना है यह गहलोत अच्छी तरह जानते हैं। इसे गहलोत की रणनीति ही कहा जाएगा कि कांग्रेस के विधायकों के साथ निर्दलीय विधायकों को भी माकन से मिलाया जा रहा है। माकन को 118 विधायकों की सूची दी गई है। यदि सचिन पायलट के समर्थक 18 विधायकों को अलग कर दिया जाए तो 100 विधायक ऐसे होंगे जो अशोक गहलोत के पक्ष में राय देंगे। आखिर 10 घंटे पहले प्रसाद मिलने का कुछ तो असर होगा ही।
पायलट नहीं देंगे राय:
अजय माकन कांग्रेस के सभी विधायकों की राय जान रहे हैं। सब जानते हैं कि अशोक गहलोत के प्रतिद्वंदी सचिन पायलट  भी टोंक से कांग्रेस के विधायक हैं। माकन 27 जुलाई की रात को ही दिल्ली से जयपुर आ गए थे, लेकिन माकन के जयपुर पहुंचने से पहले ही पायलट दिल्ली आ गए। ऐसी स्थिति में एक विधायक के तौर पर पायलट अपनी राय नहीं देंगे। यह बात अलग है कि 27 जुलाई को पायलट और माकन की मुलाकात दिल्ली में हो गई है। विधायकों की रायशुमारी के बारे में पायलट अच्छी तरह जानते हैं। जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर गहलोत बैठे हैं तो विधायकों की राय कैसी होगी, यह सब जानते हैं। लेकिन ऐसे विधायकों की राय उनकी क्षेत्र के मतदाताओं से मेल खाती है, यह जरूरी नहीं। पायलट दिल्ली में राजस्थान की जनता की राय से ही गांधी परिवार को अवगत करवा रहे हैं। विधायकों की राय तो 10 घंटे पहले ही प्रभावित हो गई।
फेरबदल की खबरें फुस्स:
पिछले तीन चार दिनों से मीडिया में गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल की विस्फोटक खबरें प्रकाशित हो रही थीं, लेकिन अब ऐसी खबरें फुस्स हो गई हैं। जानकारों की मानें तो अजय माकन की रायशुमारी भी एक तरफा है। इससे समस्या का हल नहीं निकलेगा। मंत्रिमंडल में फेरबदल या विस्तार तभी होगा, जब गहलोत चाहेंगे। सचिन पायलट को पता है कि किस उद्देश्य से विधायकों से फीडबैक लिया जा रहा है। अभी ऐसा कोई मौका नहीं है जिसमें विधायकों की राय जानी जाए। गहलोत को अपनी स्थिति और मजबूत दिखानी है, इसलिए रायशुमारी के बीच सुलह कराने वाला नहीं है। राजस्थान में नवम्बर-दिसम्बर 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इससे पहले जुलाई 22 में राजस्थान से राज्यसभा की चार सीटों के चुनाव होने हैं। गहलोत ने गांधी परिवार को भरोसा दिलाया है कि चार में से 3 सीटें कांग्रेस को दिलवा दी जाएगी। विधायकों से रायशुमारी करने वाले अजय माकन भी राज्यसभा का सांसद बनने के लिए लालायित हैं। माकन जयपुर में विधानसभा परिसर में 29 जुलाई तक विधायकों से फीडबैक लेंगे।
विधानसभा का दुरुपयोग:
कांग्रेस विधायकों की रायशुमारी विधानसभा परिसर में किए जाने पर प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया ने एतराज जताया है। कटारिया ने कहा कि विधानसभा का उपयोग दलगत राजनीति के लिए नहीं होना चाहिए। विधानसभा प्रदेश की जनता की है। ऐसे में किसी राजनीतिक दल की रायशुमारी नहीं होनी चाहिए। अच्छा होगा कांग्रेस अपने झगडों पर रायशुमारी किसी अन्य स्थान पर करती। उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा में रायशुमारी का कार्यक्रम रख कर सत्तारूढ़ पार्टी ने विधानसभा का दुरुपयोग किया है।  उन्होंने कहा कि हालांकि यह कांग्रेस का आंतरिक मामला है, लेकिन जब कभी एक पार्टी ने कई नेता होते हैं तो फिर सत्ता को लेकर ऐसी ही खींचतान होती है। 
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Tuesday 27 July 2021

क्या आप प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सफल पत्रकार बनना चाहते हैं?क्या आप सोशल मीडिया पर वेबपोर्टल चला कर पत्रकार बनना चाहते हैं?तो जयपुर स्थित हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय में प्रवेश लें। देश के जाने माने पत्रकार ओम थानवी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।

जब किसी न्यूज चैनल के संवाददाता को ग्राउंड जीरो से कवरेज करते देखा जाता है तो बहुत से युवाओं के मन में पत्रकार बनने की इच्छा होती है। जब किसी अखबार में प्रथम पृष्ठ पर कोई भंडाफोड़ स्टोरी प्रकाशित होती है, तब भी अनेक युवा चाहते हैं कि जीवन में ऐसा ही काम किया जाए। चूंकि अब सोशल मीडिया का जमाना है, इसलिए न्यूज पोर्टल पर चलन भी हो गया है। किसी वीडियो को न्यूज की पहचान देकर जब यूट्यूब पर पोस्ट किया जाता है तो कुछ ही घंटों में लाखों लोग देख लेते हैं। तब भी अनेक युवाओं की इच्छा होती है कि न्यूज पोर्टल बना कर पत्रकार बना जाए। ऐसे युवाओं की इच्छा की पूर्ति जयपुर स्थित हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय कर सकता है। यूं तो ऐसे विश्वविद्यालय अधिकांश शहरों में मिल जाएंगे। कुछ न्यूज चैनल वालों ने भी अपना संस्थान खोल रखा है। लेकिन जयपुर के इस विश्वविद्यालय का महत्व इसलिए है कि इसके कुलपति देश के जाने माने पत्रकार ओम थानवी हैं। थानवी ने जहां राजस्थान पत्रिका के संस्थापक संपादक कर्पूर चंद कुलिश के साथ काम किया, वहीं इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिन्दी अखबार जनसत्ता के संपादक भी रहे। ओम थानवी को पत्रकारिता के क्षेत्र में लम्बा अनुभव रहा है। थानवी से पत्रकारिता सीख कर आज अनेक युवा राष्ट्रीय मीडिया में सक्रिय हैं। इस विश्वविद्यालय का संचालन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है, इसलिए प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता है। ओम थानवी स्वयं पत्रकारिता के गुर सिखाते हैं। जयपुर में यह विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर शिक्षा संकुल में संचालित है। सत्र 2021-22 के लिए प्रवेश प्रक्रिया आरंभ हो गई है। आवेदन की अंतिम तिथि 31 अगस्त है। अधिक जानकारी वेबसाइट www.hju.ac.in पर ली जा सकती है। इसके अतिरिक्त मोबाइल नम्बर 8079051063, 8003300450, 9935914999 तथा 8003603840 पर भी जानकारी ली जा सकती है। इस विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का तीन वर्षीय स्नातक डिग्री कोर्स, दो वर्षीय स्नातकोत्तर (पीजी) डिग्री कोर्स, एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा कोर्स, छह माह के लिए सर्टिफिकेट कोर्स, पीएचडी कोर्स आदि किए जा सकते हैं। 
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आयकर विभाग के छापों के बाद समझदारी दिखा रहा है भास्कर समूह। असल में अखबार पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है।6 हजार करोड़ के कारोबार में 2200 करोड़ रुपए की गड़बड़ी से खलबली।

भास्कर समूह के अखबार के कारोबार को छोड़कर आयकर विभाग ने गत 19 जुलाई को समूह के राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों के दफ्तरों पर छापामार कार्यवाही की। भास्कर समूह के 6 हजार करोड़ रुपए के कारोबार में से 2200 करोड़ रुपए की गड़बड़ी होने की बात आयकर विभाग ने मानी है। जांच में पता चला है कि कंपनियों में करोड़ों रुपए की राशि डाली गई। इससे आयकर की चोरी भी हुई। भास्कर समूह ने भी गड़बड़ी के वो ही तरीके अपनाए जो अन्य कारोबारी कंपनियां अपनाती थी, लेकिन भास्कर को उम्मीद थी कि देश का सबसे बड़ा अखबार निकालने के कारण उनके रियल एस्टेट, कपड़ा, पावर प्लांट आदि के कारोबार की कोई जांच पड़ताल नहीं होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हालांकि अभी भी जांच के दायरे में भास्कर अखबार को शामिल नहीं किया गया है। आयकर विभाग की टीमें अखबार से होने वाली कमाई की जांच पड़ताल भी नहीं कर रही है। न ही कोई एजेंसी भास्कर का सर्कुलेशन की पड़ताल कर रही है। यहां तक कि अखबार को रियायती दरों पर मिली भूमि की भी जांच नहीं हो रही है7 चूंकि रियल एस्टेट, कपड़ा, पावर प्लांट शिक्षा आदि से जुड़ी कंपनियों के दफ्तर भास्कर अखबार वाले परिसर में ही खोल रखे हैं, इसलिए आयकर विभाग की टीमें परिसर में मौजूद हैं। भास्कर के मालिक सुधी अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल के साथ साथ विभिन्न कंपनियों के प्रमोटरों से भी पूछताछ हो रही है। 27 जुलाई को सातवें दिन भी जांच पड़ताल का काम जारी रहा है। भास्कर ने छापे के शुरू के एक दो दिन तो दबाव की रणनीति के तहत छापों के विरुद्ध खबरें प्रकाशित की। यहां तक लिखा कि भास्कर पर कार्यवाही के विरोध में संसद, ठप हो गई। विदेशी अखबारों के माध्यम से भी विरोध जताया गया, लेकिन जैसे जैसे वित्तीय अनियमितता सामने आने लगी, वैसे वैसे भास्कर के मालिकों ने समझदारी दिखाना शुरू कर दिया। अब विरोध की खबरें भी नहीं आ रही है ना भास्कर की ओर से जांच में सहयोग की बात बार बार दोहराई जा रही है। आयकर विभाग के अधिकारी ऐसे सवाल पूछ रहे हैं जिनका जवाब देना मुश्किल हो रहा है। भास्कर पर हुई इस कार्यवाही से उन धंधेबाज लोगों को सबक लेना चाहिए, जो पत्रकारिता की आड़ में कारोबार करते हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि अखबार या चैनल की आड़ में गलत कार्यों को संरक्षण मिल जाएगा। लेकिन भास्कर पर हुई कार्यवाही बताती है कि अब गलत कार्यों को पत्रकारिता की आड़ में बचना मुश्किल है। असल में पत्रकारिता और कारोबार एक साथ करना अब मुश्किल है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (27-07-2021)
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गहलोत मंत्रिमंडल फेरबदल में राजस्थान से 4 राज्यसभा सीटों का पेंच भी फंसा हुआ है।अगले साल 22 में भाजपा के ओम प्रकाश माथुर, राजकुमार वर्मा, हर्षवर्धन डूंगरपुर तथा जेके अल्फोंस का कार्यकाल पूरा हो रहा है।मंत्रिमंडल का फेरबदल है या विधायक दल के नेता का चुनाव? आखिर किस बात की रायशुमारी करेंगे अजय माकन।

अखबारों और प्रादेशिक न्यूज चैनलों पर पिछले तीन दिन से ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि राजस्थान में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा। असंतुष्ट नेता सचिन पायलट और संतुष्ट गुट के नेता अशोक गहलोत के समर्थक वाले विधायकों के फोटो भी छापे जा रहे हैं। लेकिन जो लोग अशोक गहलोत की कार्यशैली से वाकिफ है उन्हें पता है कि गहलोत राज में जो दिखता है, वह होता नहीं है। भले ही दिसम्बर 2023 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति 2013 वाली हो जाए, लेकिन अभी तो प्रदेश के विधायकों पर गहलोत की मजबूत पकड़ है। 198 में से 120 विधायक गहलोत की मुटृठी में हैं। और ये विधायक ही अगले जुलाई में होने वाले राज्यसभा की चार में से तीन सीटें कांग्रेस को दिलवाएंगे। अगले वर्ष भाजपा के सांसद ओम प्रकाश माथुर, राजकुमार वर्मा, हर्षवर्धन सिंह डूंगरपुर तथा जेके अल्फोंस का कार्यकाल पूरा हो रहा है। गहलोत ने गांधी परिवार को भरोसा दिलाया है कि चार में तीन सीटों पर कांग्रेस को जीत दिलवा दी जाएगी। राज्यसभा के लिए कांग्रेस से जो तीन सांसद बनेंगे, उनमें राजस्थान के विधायकों की रायशुमारी करने वाले प्रदेश प्रभारी अजय माकन का नाम भी शामिल हैं। अशोक गहलोत के नेतृत्व में जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार बहुत आसानी से चल रही है तथा चार में तीन राज्यसभा के सांसद चुना जाना तय है तो राजनीतिक समीकरणों को क्यों बिगाड़ा जाएगा? जो 120 विधायक गहलोत की मुटृठी में हैं उनमें कोई नहीं कह रहा कि मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल हो। गहलोत की कार्यशैली को जानने वाले जानते हैं कि इस फेरबदल की खबरें गहलोत गुट की ओर से प्लांट करवाई जा रही है। कहा जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी अजय माकन 28 व 29 जुलाई को जयपुर आकर कांग्रेस के एक एक विधायक से मिलेंगे और उनकी राय जानेंगे। सवाल उठता है कि मंत्रिमंडल का फेरबदल हो रहा है या विधायक दल के नेता का चुनाव? विधायकों की राय तो नेता के चुनाव के समय जानी जाती है। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते क्या कांग्रेस के किसी नेता की हिम्मत है जो विधायकों की राय जाने और सीधे गांधी परिवार को अपनी रिपोर्ट दे? दिखावे के लिए अजय माकन भले ही रायशुमारी कर लें, लेकिन होगा वही जो अशोक गहलोत चाहेंगे। सब जानते हैं कि अगस्त के पहले सप्ताह में ही विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो जाएगा। क्या मानसून सत्र से पहले अजय माकन की रिपोर्ट पर गांधी परिवार का निर्णय हो जाएगा? अभी तो बहुत सारे पेच हैं, जिनका समाधान होना जरूरी है। जहां तक सचिन पायलट का सवाल है तो उन्होंने इस बार धैर्य अपना रखा है। पायलट इस बार गहलोत की किसी भी चाल में फंसने वाले नहीं है। देखा जाए तो पायलट ने अपनी राजनीतिक लड़ाई अब गांधी परिवार और अशोक गहलोत के बीच करवा दी है। पायलट अब नवम्बर-दिसम्बर 2023 का इंतजार कर रहे हैं। यह सही है कि गत वर्ष कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए थे, वो अभी पायलट के साथ बने हुए हैं, लेकिन पायलट को उम्मीद है कि मंत्रिमंडल के फेरबदल के बाद कुछ नाराज विधायक उनके साथ आएंगे। कहा जा रहा है कि फेरबदल में सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, लेकिन अभी तक भी गहलोत और पायलट में सीधा संवाद नहीं हुआ है। जो अशोक गहलोत सचिन पायलट से बात करना पसंद नहीं करते, वे पायलट के कितने समर्थकों को मंत्री बनाएंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है? गांधी परिवार भी नहीं चाहेगा कि फेरबदल की वजह से राज्यसभा के चुनाव पर कोई प्रतिकूल असर पड़े। जहां तक बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों का सवाल है तो कांग्रेस के पक्ष में वोट देना अब उनकी मजबूरी है। यदि राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस को वोट नहीं देंगे तो विधायिकी चली जाएगी। लेकिन यह कानून 13 निर्दलीय विधायकों पर लागू नहीं है। बसपा वाले विधायकों की तरह पायलट वाले 18 विधायकों को भी कांग्रेस के पक्ष में वोट देने की मजबूरी है। जानकारों की मानें तो निकट भविष्य में मंत्रिमंडल का विस्तार संभव नहीं है। यदि फेरबदल नहीं होता है तो भी सचिन पायलट की स्थिति मजबूत रहेगी। क्योंकि पायलट का लक्ष्य अब 2023 का चुनाव है। 
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Friday 23 July 2021

पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के सरेंडर से राजस्थान में सचिन पायलट के समर्थक उत्साहित।पंजाब की समस्या का समाधान हो गया है-राहुल गांधी।

23 जुलाई को पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद संभाल लिया है। इससे पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने सिद्धू सहित कांग्रेस के सभी विधायकों को चाय पर आमंत्रित किया। सिद्धू ने कैप्टन के बगल में बैठकर गुफ्तगू भी की। इसे कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का राजनीतिक सरेंडर माना जा रहा है, क्योंकि सिद्धू की घोषणा के बाद अमरेन्द्र सिंह की ओर से कहा गया कि जब तक सिद्धू अपनी सरकार विरोधी बयानों पर माफी नहीं मांगेंगे तब तक सिद्धू से मुलाकात नहीं होगी। लेकिन 23 जुलाई को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने केवल सिद्धू से मुलाकात की, बल्कि पास बैठकर गुफ्तगू भ की। सब जानते हैं कि कैप्टन की मर्जी के खिलाफ गांधी परिवार ने सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है। अब कैप्टन ने भी सिद्धू के समक्ष राजनीतिक सरेंडर कर दिया है। सीएम अमरेन्द्र सिंह के सरेंडर से राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के समर्थक उत्साहित है। क्योंकि शुरू से सिद्धू को लेकर मुख्यमंत्री ने जो रुख अपनाया था, वहीं रुख राजस्थान में पायलट को लेकर सीएम अशोक गहलोत प्रकट कर रहे हैं। गहलोत भी नहीं चाहते हैं कि पायलट और उनके किसी समर्थक को सरकार और संगठन में स्थान मिले। गहलोत ने अपनी इन भावनाओं को निर्दलीय और बसपा वाले कांग्रेसी विधायकों से प्रकट करवाया है। लेकिन पंजाब के हालातों को देखते हुए पायलट समर्थकों को लगता है कि अब सीएम गहलोत को भी राजनीतिक सरेंडर करना पड़ेगा, क्योंकि गांधी परिवार में सचिन पायलट की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। पायलट के समर्थकों को लगता है कि अब जल्द ही गहलोत को दिल्ली बुलाया जाएगा और पायलट के बारे में दिशा निर्देश दिए जाएंगे। गांधी परिवार भी मानता है कि 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और 2023 में पायलट के सहयोग से दोबारा सरकार बनाई जा सकती है, इसलिए पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान सौंपी जा सकती है तथा समर्थक विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। गांधी परिवार यह भी मानता है कि दिसम्बर 2018 में पायलट के दावे को दरकिनार कर गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन पायलट को सरकार में जो महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। पायलट को डिप्टी सीएम तो बनाया, लेकिन गहलोत ने गृह, वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रख लिए और पायलट को पंचायती राज, पीडब्ल्यूडी जैसे कम महत्व वाले विभाग दिए। आईएएस अफसरों के कारण पायलट की अपने ही विभागों में नहीं चली। ऐसे में पायलट को अपने समर्थक 18 विधायकों के साथ गांधी परिवार से मिलने के लिए दिल्ली जाना पड़ा। गत वर्ष जब पायलट दिल्ली गई तब जयपुर में पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया गया। तब पायलट पर यह आरोप लगाया गया कि वे भाजपा के साथ मिलकर अपनी ही सरकार को गिराना चाहते हैं। हालांकि एक माह बाद गांधी परिवार से मिल कर पायलट और उनके समर्थक विधायक जयपुर लौट आए और तभी से गहलोत के साथ खड़े हैं। लेकिन गहलोत ने पायलट और उनके समर्थकों को अभी तक भी मान सम्मान नहीं दिया है। इस बार पायलट और उनके समर्थक कांग्रेस में रह कर ही संघर्ष कर रहे हैं। 23 जुलाई को जिस तरह पंजाब में राजनीतिक माहौल बदला है, उससे राजस्थान में पायलट के समर्थक उत्साहित हैं। समर्थकों का मानना है कि अब जल्द ही राजस्थान की समस्या का समाधान हो जाएगा। 23 जुलाई को ही दिल्ली में मीडिया के सवाल पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि अब पंजाब की समस्या का समाधान हो गया है।
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पत्रकारिता के साथ हजारों करोड़ का कारोबार करने वाले धंधेबाज लोग भास्कर अखबार पर छापे की कार्यवाही से सबक लें।धंधे में चोरी और सीनाजोरी, तो कार्यवाही होगी ही। इसे पत्रकारिता पर हमले से न जोड़ा जाए।अजमेर के मदार गेट पर पूड़ी-सब्जी खाई है, भास्कर के मालिकों ने।

जो लोग पत्रकारिता की आड़ में कारोबार करते हैं, उन्हें भास्कर अखबार समूह पर आयकर विभाग की छापामार कार्यवाही से सबक लेनाचाहिए। आज पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसे लोग सक्रिय हैं जो अपने काले कारोबार को छिपाने के लिए टीवी पर न्यूज चैनल चला रहे हैं, या फिर अखबार का प्रकाशन करते हैं। चूंकि अखबार और चैनल का लाइसेंस हर किसी को मिल जाता है, इसलिए देश में ऐसे धंधेबाजों की भरमार है। भास्कर अखबार देश का सबसे बड़ा अखबार समूह है, लेकिन भास्कर अखबार के मालिक सुधी अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल (तीनों सगे भाई) करीब 100 कंपनियों और सहायक कंपनियों से जुड़े हुए हैं। ऐसी कंपनियां अखबार के साथ साथ रियल एस्टेट, पावर प्लांट, कपड़ा, शिक्षा, खान आदि का कारोबार करती है। इन कंपनियों का कारोबार 6 हजार करोड़ रुपए का है। आयकर विभाग के अधिकारी भास्कर के सर्कुलेशन, विज्ञापन, कागज कर्मचारियों के वेतन आदि की कोई जांच नहीं कर रहे हैं। विभाग ने न ही अखबार के संपादक या किसी रिपोर्टर से पूछताछ की है। भास्कर अखबार स्वतंत्रता से प्रकाशित हो, इसमें कोई दखल नहीं दिया गया है। चूंकि 6 हजार करोड़ रुपए वाली कंपनियों के दफ्तर भास्कर अखबार के परिसर में ही संचालित होते हैं, इसीलिए आयकर विभाग भास्कर के दफ्तारों के परिसर में जांच पड़ताल कर रही है। भास्कर ने अधिकांश शहरों में सरकार से रियायती दरों पर जमीन ली है। कायदे से जमीन का उपयोग सिर्फ पत्रकारिता के कार्य के लिए ही होना चाहिए, लेकिन अखबार के दफ्तर के साथ साथ रियल एस्टेट और अन्य धंधों के दफ्तर भी लगाए गए है। आयकर विभाग जमीन के दुरुपयोग की भी जांच कर रहा है। लेकिन यदि भास्कर के पावर प्लांट में बोगस खरीद फरोख्त हुई है, तो उसकी जांच करने का अधिकार आयकर विभाग के पास है। आरोप है कि संस्कार वैली स्कूल तो वन विभाग की भूमि पर ही बनाया गया है। भास्कर समूह ने विदेशों में निवेश कर रखा है, इसलिए अब विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोपों की भी जांच होगी। भास्कर के मालिक अग्रवाल बंधुओं को पता है कि आयकर विभाग की कार्यवाही अखबार पर नहीं हुई है, इसलिए छापे की कार्यवाही पर अखबार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन केन्द्र सरकार की आलोचना के लिए भास्कर ने अमरीका के वाशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन मीडिया का सहारा लिया है। इन दोनों विदेशी मीडिया घरानों ने भास्कर पर हुई कार्यवाही को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। सब जानते हैं कि इन दोनों विदेशी मीडिया ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। जहां तक नेताओं का सवाल है तो अखबार में नाम छपने के कारण भास्कर के समर्थन में बयान दे रहे हैं। हो सकता है कि केन्द्र सरकार को भास्कर में छपी कुछ खबरें पसंद नहीं आई हों, लेकिन सरकार से कोई व्यक्ति लड़ सकता है जो खुद साफ सुथरा हो। यदि कोई चोर किस्म का व्यक्ति सरकार की कमजोरियां गिनाने लगेगा तो फिर सरकार भी चोर को पकड़ने का काम करेगी। ऐसा नहीं हो सकता कि चोरी होती रहे और चोर कलम की ताकत दिखाकर डरता रहे। कमजोर सरकार चोरों से डरती रही होंगी, लेकिन इस समय केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है और बड़े बड़े टैक्स चोर जेल में है या फिर विदेश भाग गए हैं। यदि अग्रवाल बंधु सिर्फ अखबार का प्रकाश करते और फिर आयकर विभाग की कार्यवाही होती तो पूरा देश भास्कर के साथ होता। लेकिन अग्रवाल बंधु तो कोयले से लेकर कपड़ा और जमीन से लेकर स्कूल तक के कारोबार में फंसे हुए हैं, इसलिए अखबार को आगे रख कर बचाव नहीं हो सकता। सब जानते हैं कि वाशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन जैसा विदेशी मीडिया मोदी सरकार के कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बाधाएं समाप्त करने जैसे कामों पर भी पानी फेरने में लगा हुआ है। इस कार्य में यदि भारत का कोई मीडिया टूल बनेगा तो कार्यवाही होगी ही। और फिर ऐसा मीडिया जो स्वयं चोरी कर रहा हो। अब चोरी और सीनाजोरी नहीं चलेगी। देश में ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो किसी न किसी तरह मोदी सरकार को बदनाम या गिराना चाहती है। सवाल उठता है कि क्या अनुच्छेद 370 को हटाना और अयोध्या में राम मंदिर बनवाना कोई गलत काम है? सामाजिक बुराई तीन तलाक पर कानून बनो का काम मोदी सरकार ही कर सकती है। आज देश को जनसंख्या नियंत्रण और सिविल कोड की सख्त जरुरत हे। भास्कर के मालिक यह अच्छी तरह समझ लें कि ऐसे सख्त कार्य मोदी सरकार ही कर सकती है। लोकतंत्र में यदि कोई व्यक्ति अथवा संस्थान बदनीयती से काम करेगी तो उसे परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे। भास्कर के समर्थन में विदेशी मीडिया कुछ भी कहे, लेकिन पूरा देश जानता है कि आयकर विभाग की कार्यवाही अखबार पर नहीं, बल्कि समूह से जुड़ी कंपनियों पर हुई है। कौन कितनी निष्पक्ष पत्रकारिता करता है, यह पूरा देश जानता है।
अजमेर में खाई पूड़ी सब्जी:
वर्ष 1994-95 में भास्कर अखबार राजस्थान आया और सबसे पहले जयपुर में प्रकाशन शुरू किया। जयपुर में जो सफलता मिली, उसके बाद दूसरा संस्करण अजमेर से निकाला गया। अजमेर संस्करण शुरू होने से पहले कार्यालय खोलने, मशीन लगाने आदि के कार्यों के लिए भास्कर समूह के मालिक सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल, को कई बार अजमेर आना पड़ा। तब इन अग्रवाल बंधुओं ने रेलवे स्टेशन के सामने मदार गेट स्थित आगरा मिष्ठान भंडार की दुकान में बैठकर पूड़ी सब्जी का सेवन किया। ऐसा कई बार हुआ जब रात के डिनर में पूड़ी सब्जी खाई गई। प्रिंटिंग प्रेस की यूनिट को अजमेर शहर में किस तरह लगाया गया इसकी जानकारी तत्कालीन राजस्व अधिकारी सीपी कटारिया से ली जा सकती है। कटारिया अजमेर के ही रहने वाले हैं और उन्हें पता है कि वर्ष 1996 में अग्रवाल बंधुओं की स्थिति कैसी थी। 
S.P.MITTAL BLOGGER (23-07-2021)
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Thursday 22 July 2021

भास्कर अखबार और भारत समाचार न्यूज चैनलों के दफ्तरों पर आयकर विभाग की छापामारी की कार्यवाही की राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आलोचना की। यह मीडिया की आवाज कुचलने का काम है।यह बात अलग है कि गहलोत सरकार भी भास्कर पर झूठी खबरें छापने का आरोप लगा रही है।संसद के दोनों सदनों में भी भास्कर का मुद्दा उठा।

दैनिक भास्कर अखबार समूह और यूपी के लोकप्रिय न्यूज़ चैनल भारत समाचार के कार्यालयों पर 22 जुलाई को हुई आयकर विभाग की छापामार कार्यवाही की राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आलोचना की है। गहलोत ने अपने ट्वीट में कहा कि इनकम टैक्स का छापा मीडिया को दबाने का एक प्रयास है। मोदी सरकार अपनी रत्ती भर आलोचना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती है। यह भाजपा की फासीवादी मानसिकता है जो लोकतंत्र में सच्चाई का आईना देखना भी पसंद नहीं करती है। ऐसी कार्यवाही कर मोदी सरकार मीडिया को दबाकर संदेश देना चाहती है कि यदि गोदी मीडिया नहीं बनेंगे तो आवाज कुचल दी जाएगी। सीएम गहलोत की तरह कांग्रेस के नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह आदि ने भी भास्कर समूह के कार्यालयों पर छापे की आलोचना की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आयकर चोरी की शिकायत मिलने पर विभाग ने 22 जुलाई को भास्कर के गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों के कार्यालयों में दस्तावेजों की जांच की है। भास्कर अखबार के मालिक अखबार के साथ साथ रियल एस्टेट, ऊर्जा, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में कारोबार करते हैं। ऐसे कारोबार का संचालन भास्कर अखबार के दफ्तर से ही होता है। विभिन्न क्षेत्रों में निवेश के मद्देनजर ही आयकर विभाग ने छापामार कार्यवाही की है। सीएम गहलोत भले ही अभी भास्कर के प्रति सहानुभूति जता रहे हों, लेकिन पिछले कई दिनों से राजस्थान में गहलोत सरकार भास्कर की खबरों को झूठी बता रही है। वैक्सीन की बर्बादी को लेकर भास्कर ने जो खबरें प्रकाशित की, उस पर सरकार की ओर से बाकायदा प्रेस नोट जारी कर खबरों को तथ्यहीन और भ्रामक बताया गया। इसी प्रकार ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीद में हुए करोड़ों के घोटाले की खबर भास्कर में प्रकाशित हुई तो गहलोत सरकार ने एक बार फिर खबरों को झूठी करार दिया। सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से भी गहलोत सरकार ने भास्कर की खबरों का खंडन किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि भास्कर में जिस तरह से गहलोत सरकार के काम काज को लेकर खबरें प्रकाशित की है उसके मद्देनजर ही अब मुख्यमंत्री ने भास्कर के प्रति सहानुभूति पूर्वक रुख प्रकट किया है। भास्कर ने गत 19 जुलाई को ही प्रथम पृष्ठ पर एक खबर प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया कि एक हजार करोड़ की कीमत वाली माइंस मात्र 5 करोड़ रुपए में कांग्रेस के विधायक परसराम मोरडिय़ा के परिवार को दे दी। भास्कर की इस खबर पर सरकार ने अभी तक भी कोई सफाई नहीं दी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि भास्कर समूह अखबार देश का सबसे बड़ा अखबार है। भास्कर का हिन्दू के अलावा अंग्रेजी और गुजराती भाषा में भी प्रकाशन होता है। इसके अतिरिक्त देश के प्रमुख शहरों में एफएम रेडियो का संचालन भी भास्कर समूह करता है। भास्कर पर हुई छापेमारी का मुद्दा 22 जुलाई को लोकसभा और राज्यसभा में भी उठा। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि इनकम टैक्स, ईडी और सीबीआई के माध्यम से मीडिया की आवाज दबाने का काम किया जा रहा है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (22-07-2021)
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गांधी परिवार के समर्थन के बिना सचिन पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ इतना सख्त बयान नहीं दे सकते।अजय माकन के बयान से पहले ही गहलोत सरकार परेशान थी।

कोई तीन-चार दिन के दिल्ली प्रवास के बाद 21 जुलाई को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट जयपुर लौटे। जयपुर पहुंचते ही पायलट ने अशोक गहलोत और उनके नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा। पायलट ने कहा कि आज जरूरी है कि राजस्थान में दोबारा से कांग्रेस की सरकार बने, इसके लिए जरूरी है कि जनता से जो वायदे किए हैं, उन्हें पूरा किया जाए और सभी को साथ लेकर चला जाए। पायलट ने कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो 2003 और 2013 वाली स्थिति वापस आ जाएगी। सब जानते हैं कि 2003 और 2013 में गहलोत ही मुख्यमंत्री थे और क्रमश: 56 और 21 सीटें ही कांग्रेस को मिली थीं। यानी गहलोत जब जब भी सीएम बने, तब तब कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। पायलट ने साफ कर दिया है कि 2023 में भी यदि गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तो कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ेगा। यह सही है कि 2014 से 2018 तक पायलट के नेतृत्व में भी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने संघर्ष किया था और तभी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। जानकारों के अनुसार सचिन पायलट को कांग्रेस हाईकमान यानी गांधी परिवार का समर्थन है, इसलिए इतना सख्त बयान दिया है। पायलट ने यह बयान तब दिया है, जब कांग्रेस शासित पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तलवारें खींची हुई है। गांधी परिवार सिद्धू के साथ खड़ा है। अमरेन्द्र सिंह के विरोध के बाद सिद्धू को कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। उम्मीद थी कि पंजाब का मामला शांत होने के बाद ही राजस्थान का माहौल गर्म होगा, लेकिन पंजाब में सिद्धू के पदभार संभालने से पहले ही राजस्थान में पायलट ने राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया। असल में गांधी परिवार ने यह माना कि पंजाब में सिद्धू और उनके समर्थकों के बगैर कांग्रेस दोबारा से सत्ता में नहीं आ सकती है। इसीलिए अमरेन्द्र सिंह के मुकाबले में सिद्धू को तवज्जों दी गई। राजस्थान में तो सचिन पायलट ने अपनी काबिलियत गत विधानसभा के चुनाव में भी साबित कर दी थी। गांधी परिवार भी पायलट के प्रभाव के बारे में जानता है। पायलट पिछले तीन-चार दिनों से दिल्ली में ही थे। दिल्ली में पायलट गांधी परिवार के संपर्क में भी रहे। हो सकता है कि पायलट की मुलाकात प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से भी हुई हो। 21 जुलाई को पायलट पूरे आत्मविश्वास में नजर आए। यदि पायलट को गांधी परिवार का समर्थन नहीं होता तो गहलोत सरकार पर इतना सख्त बयान नहीं देते। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों निर्दलीय और बसपा वाले विधायकों को आगे कर अशोक गहलोत ने हाईकमान और पायलट को लेकर जो बयान दिलवाए, उससे गांधी परिवार खास कर श्रीमती सोनिया गांधी खुश नहीं है। प्रदेश प्रभारी अजय माकन के गहलोत विरोधी रीट्वीट को सोनिया गांधी की नाराजगी से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। सीएम गहलोत के लिए परेशानी की बात यह है कि अजय माकन अपने रीट्वीट पर अभी भी कायम हैं। माकन ने उस ट्वीट को रीट्वीट किया जिसमें कहा गया था कि अमरेन्द्र सिंह हों या अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनते ही यह समझने लगते हैं कि कांग्रेस पार्टी की जीत उनकी वजह से हुई है। जबकि यह जीत सोनिया गांधी के नेतृत्व से मिलती है। जानकारों की माने तो अजय माकन ने गहलोत से मुलाकात कर पायलट समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का सुझाव दिया था, जिसे गहलोत ने अभी तक नहीं माना है। माकन ने गांधी परिवार की भावनाओं से भी अवगत करा दिया है, लेकिन गहलोत, माकन के सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया है, सूत्रों के अनुसार इस बार पायलट ने धैर्य दिखाया है उससे गांधी परिवार में पायलट के नंबर बढ़े हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (22-07-2021)
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जब राजनीतिक नजरिए से सदस्यों की नियुक्तियां होगी तो राजस्थान लोक सेवा आयोग की निष्पक्षता पर ऐसे ही सवाल उठंगे।मुख्य सचिव निरंजन आर्य से लेकर सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास तक की पत्नियों ने आरएएस सेलेक्ट किए हैं।गहलोत सरकार ने अध्यक्ष सहित जो चार सदस्य नियुक्ति किए हैं उनके बारे में जानना जरूरी है।

आरएएस यानी राजस्थान प्रशासनिक सेवा। इस सेवा में जिस युवक का एक बार चयन हो जाए फिर वह पीछे मुड़कर नहीं देखता है। ऐसी प्रतिष्ठित सेवा की भर्ती के लिए जब विगत दिनों राजस्थान लोक सेवा आयोग के अजमेर स्थित मुख्यालय पर इंटरव्यू हो रहे थे, तभी आयोग के एक अकाउंटेंट सज्जन सिंह गुर्जर को 23 लाख रुपए की रिश्वत लेते एसीबी ने गिरफ्तार कर लिया। यह रिश्वत आयोग की सदस्य राजकुमारी गुर्जर से इंटरव्यू में अच्छे अंक दिलवाने के लिए ली गई। अब परिणाम जारी होने के बाद प्रभावशाली नेताओं के रिश्तेदारों के चयन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा मुद्दा सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के पुत्र के साले गौरव और साली प्रभा के चयन को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। डोटासरा के इन रिश्तेदारों को इंटरव्यू में 100 में से 80-80 अंक मिले हैं, जबकि आरएएस की लिखित परीक्षा में इन दोनों को करीब पचास प्रतिशत अंक ही मिले। आरोप है कि इन भाई-बहनन के चयन में प्रभाव काम में आया है। जबकि डोटासरा का कहना है कि मेरे दोनों रिश्तेदार काबिल हैं, इसलिए सलेक्शन हुआ है। आरोपों में कितनी सच्चाई है इसका पता तो जांच से ही लगेगा, लेकिन देश और राजस्थान की जनता को यह जानना चाहिए कि राजस्थान लोक सेवा आयोग में बैठकर कैसे कैसे लोग आरएएस, इंजीनियर, डॉक्टर, कॉलेज लेक्चर आदि का चयन करते हैं। आयोग में सदस्यों की नियुक्ति हर सरकार अपने राजनीतिक नजरिए से करती है। मौजूदा समय में आयोग के तीन सदस्य डॉ. शिवसिंग राठौड़, रामूराम रायका और राजकुमारी गुर्जर की नियुक्ति भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने की थी। श्रीमती गुर्जर की कार्यशैली के बारे में अब एसीबी ज्यादा अच्छे तरीके से बता सकती है, मौजूदा कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अध्यक्ष सहित जिन चार सदस्यों की नियुक्ति की, उनके बारे में भी लोगों को जानकारी होनी चाहिए। भूपेन्द्र यादव को आयोग का अध्यक्ष गत वर्ष अक्टूबर में तब बनाया गया, जब यादव राज्य के पुलिस महानिदेशक थे। यादव से डीजीपी के पद से इस्तीफा करवाया और उन्हें आयोग का अध्यक्ष बना दिया। इतनी जल्दबाजी क्यों की गई, इसका जवाब सीएम अशोक गहलोत ही दे सकते हैं। सब जानते हैं कि तीन चार आईपएस की वरिष्ठता को लांघ कर एमएल लाठर को डीजीपी बनाया गया। गहलोत का यह बदलाव राजनीतिक नजरिए से ही हुआ। यादव को डीजपी के पद से हटने पर इसलिए कोई एतराज नहीं हुआ, क्योंकि आयोग का अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें डेढ़ दो वर्ष अधिक समय तक सरकारी सेवा में रहने का अवसर मिल गया। यह माना कि यादव की छवि साफ सुथरी है, लेकिन यादव पर गहलोत सरकार की मेहरबानी तो नजर आती ही है। गहलोत उस दल की सरकार ला रहे है जिसके मुखिया गोविंद सिंह डोटासरा हैं। गहलोत ने प्रदेश के मुख्य सचिव निरंजन आर्य की पत्नी श्रीमती संगीता आर्य को भी आयोग का सदस्य बनाया है। सब जानते हैं कि 6-7 आईएएस की वरिष्ठता को लांघ कर आर्य को मुख्य सचिव बनाया है। क्या यह सरकार और कांग्रेस पार्टी की आर्य के परिवार पर मेहरबानी नहीं है? इसी प्रकार सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास की पत्नी श्रीमती मंजू शर्मा को भी आयोग का सदस्य बनाया गया है। संगीता आर्य और मंजू शर्मा को किस मापदंड पर आयोग का सदस्य बनाया गया, इसका जवाब सीएम गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष डोटासरा ही दे सकते है। लेकिन इतना जरूर है कि अशोक गहलोत की मेहरबानी के बाद कुमार विश्वास ने अपनी कविताओं और संबोधन में गांधी परिवार और कांग्रेस का मजाक उड़ाना बंद कर दिया है। गहलोत ने तीसरे सदस्य के तौर पर स्वतंत्र पत्रकार जसवंत राठी को आयोग का सदस्य नियुक्ति किया है। कैंसर रोग को मात देने के बाद राठी ने एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक का शीर्षक है, मेरा युद्ध कैंसर के विरुद्ध। इस पुस्तक से प्रभावित होकर ही गहलोत ने राठी को आयोग में नियुक्ति दे दी। चौथी नियुक्ति बाबूलाल कटारा के तौर पर है। कटारा डूंगरपुर स्थित माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान के निदेशक रहे हैं। इस नियुक्ति के पीछे शायद आदिवासी क्षेत्रों के युवाओं के हितों का ध्यान रखना होगा। आदिवासी क्षेत्रों के युवाओं का कितना ध्यान रखा है इसका पता आरएस के परिणाम से लग सकता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आरएएस के 1051 पदों के लिए इंटरव्यू में दो हजार से ज्यादा अभ्यर्थियों को आमंत्रित किया गया था। इन दो हजार अभ्यर्थियों के इंटरव्यू लेने के लिए प्रतिदिन चार चार बोर्ड बनाए गए। परंपरा के अनुसार बोर्ड का चेयरमैन आयोग के सदस्य को ही बनाया जाता है। यानी संगीत आर्य से लेकर मंजू शर्मा तक ने आरएएस के चयन का काम किया। उम्मीद है कि सभी सदस्यों ने पूर्ण ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ इंटरव्यू में अभ्यर्थियों को अंक दिए होंगे। 
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