Friday 31 July 2015

भगवान राम और कृष्ण भी आए थे पुष्कर


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राकेश भट्ट ने लिखी पौराणिक महत्त्व की किताब
आमतौर पर यही माना जाता है कि हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ पुष्कर में सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था और इसीलिए संसार का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर पुष्कर में ही है। लेकिन अब युवा पत्रकार राकेश भट्ट ने एक ऐसी किताब लिखी है, जिसमें पौराणिक तथ्यों के आधार पर यह साबित किया गया है कि भगवान राम और श्रीकृष्ण भी पुष्कर की धरती पर आए थे।
पौराणिक महत्त्व वाली इस पुस्तक का विमोचन 31 जुलाई को पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर के परिसर में प्रमुख साधू संतों द्वारा किया गया। पुस्तक के लेखक राकेश भट्ट ने बताया कि पुष्कर में ऐसे अनेक स्थान हैं, जो महाभारत और रामायण काल की घटनाओं से जुड़े हुए हैं। पुष्कर इस धरती पर अकेला ऐसा तीर्थ है, जो सतयुग में स्थापित किया गया था और आज भी अस्तित्व में है। सतयुग के हजारों तीर्थ लुप्त हो चुके हैं, पुष्कर के ऐतिहासिक,धार्मिक और पौराणिक महत्त्व को लेकर अब तक जो भी पुस्तकें प्रचलन में हैं, वे सभी ब्लैक एंड व्हाइट तथा बगैर फोटोग्राफ के है। जबकि मेरी पुस्तक में धार्मिक स्थलों का विस्तृत विवरण और रंगीन फोटो प्रदर्शित किए गए हैं। चौबीस कोसी परिक्रमा, आश्रम, 52 घाट आदि की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में उपलब्ध है। पुस्तक के माध्यम से देश-विदेशी से आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक पुष्कर के महत्त्व को और अच्छी तरह जान सकेंगे।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

आभार और धन्यवाद


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30 जुलाई को मैंने जो ब्लॉग पोस्ट किया, उसका शीर्षक 'क्या कलाम के शव से खास हो गया आतंकी याकूब का शवÓ यह पोस्ट अभी भी मेरे ब्लॉग (spmittal.blogspot.in)
पर प्रदर्शित हैं। मेरेी इस पोस्ट को सोशल मीडिया में जबर्दस्त समर्थन मिला। मेरे लेखन पर भी सकारात्मक टिप्पणी की गई। मैं वाट्सएप पर कोई 150 ग्रुपस से जुड़ा हुआ हंू और सभी ग्रुपस में लेखन को देशहित में बताया गया। ब्लॉग से लेकर फेसबुक पर भी अनेक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई। मेरे ब्लॉग को कोई 12 हजार से भी ज्यादा लोग फॉलो कर रहे हैं तथा फेसबुक पर करीब तीन हजार फ्रेंड्स हैं। जिन 150 ग्रुपस में जुड़ा हंू, उनके अनेक सदस्य मेरी पोस्ट को अन्य ग्रुपस में फारवर्ड करते हैं। जिन लोगों ने मेरे लेखन को देशहित में बताया है? उन सबका मैं आभारी हंू। जिन मित्रों को मैं जवाब नहीं दे सका, उनसे क्षमा प्रार्थी हंू। मैं कोशिश तो करता हंू कि सभी मित्रों को जवाब दंू, लेकिन कई बार समय का अभाव होने की वजह से संभव नहीं हो पाता, लेकिन यह सही है कि मित्रों की हर टिप्पणी मेरी हौंसला अफजाई करती हैं। मुझे बेसब्री से टिप्पणियों का इंतजार रहता है। आज मैं सोशल मीडिया पर जो कुछ भी लिख पा रहा हंू, उसके पीछे मित्रों की ताकत ही है। यह हौंसला बना रहे, इसलिए आप मुझे अपनी भावनाओं से अवगत कराते रहे।
एक निवेदन यह भी
मुझे पता है कि मेरी लिखी पोस्ट को दूसरे ग्रुपस में पोस्ट किया जाता है। ऐसे मित्रों से विनम्र आग्रह है कि पोस्ट के नीचे से नाम डिलीट नहीं करें। मूल लेखक का नाम तो जाना ही चाहिए।
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आखिर क्यों नहीं सुधर रहे गुरुओं के शिष्य।


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सिर्फ वंदना से ही काम नहीं चलेगा।
31 जुलाई को गुरु पूर्णिमा अजमेर सहित देशभर में श्रद्धा और पूजा अर्चना के साथ मनाई गई। करोड़ों शिष्यों ने अपने-अपने गुरुओं के चरण स्पर्श कर पूजा भी की। जो शिष्य उपस्थित नहीं हो सके, उन्होंने दक्षिणा आदि भेज कर गुरुजी का अशीर्वाद लिया। अनेक लोगों ने सोशल मीडिया पर ही गुरु के महत्त्व पर उपदेश देकर काम चलाया। वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर आदि देखकर तो लगा कि शिष्य बहुत आज्ञाकारी हो गए हैं। गुरुओं ने भी अपने महत्त्व को देखते हुए शानदार आयोजन किए। किसी ने सुख शांति के लिए यंत्र बांटे तो किसी गुरु ने मंत्र दिया। गुरु पूर्णिमा पर जितने शिष्यों ने अपनी श्रद्धा प्रकट की, उससे प्रतीत होता है कि अब घर-परिवार में वृद्धों का सम्मान होगा तथा कोई वृद्ध अनाथ आश्रम में नहीं रहेगा। जो मम्पी-डैडी अपने बच्चों को पांच हजार रुपए की जींस की पेंट दिलाते हैं, वे अपने पिता के लिए पांच सौ रुपए का कुर्ता-पायजामा तथा माता के लिए दो सौ रुपए की साड़ी भी ले आएंगे। जो शिष्य रोजाना शराब पीते हैं वे गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु का आशीर्वाद लेने के बाद शराब नहीं पीएंगे। गुरु और शिष्य दोनों को पता है कि शराब के सेवन से परिवार में शांति नहीं रहती है। सबसे ज्यादा पत्नी और जवान होती बिटिया दु:खी रहती है। शायद ही कोई पत्नी और बेटी होगी जो अपने पति/पिता के शराब पीने से खुश हो। गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं ने इतना तो आशीर्वाद दिया ही होगा कि उनका शिष्य शराब और मांस का सेवन छोड़ दें। जो शिष्य रोजाना पांच रुपए से लेकर पांच सौ रुपए तक के तम्बाकू वाले गुटखे खाते हैं, उन्होंने भी गुटखे न खाने का संकल्प लिया होगा। जो युवा अपने आस-पड़ौस में लड़कियों को छेडऩे का काम करते हैं, उन्होंने भी बुरा कार्य नहीं करने का वायदा अपने गुरु के समक्ष किया होगा। सरकारी कर्मचारी, अधिकारी आदि को गुरुओंं ने शपथ दिलवाई होगी कि अब रिश्वत नहीं लेंगे। सरकारी डॉक्टर ऑपरेशन टेबल पर मरीज के रिश्तेदार से जबरन वसूली नहीं करेगा। यदि शिष्यों ने ये सब बुराइयों से इंकार कर आशीर्वाद लिया है, तभी गुरु पूर्णिमा का महत्त्व है। गुरु पूर्णिमा के समारोहों में आज महिलाओं की संख्या भी अधिक थी। अधिक उम्र वाली महिलाओं ने यह संकल्प लिया होगा कि वे अपनी बहू को बेटी मानेगी तथा बहू ने भी सास को मां मानने का वायदा अपने गुरु के समक्ष किया होगा। आप कल्पना करें कि यदि गुरु की ताकत से उक्त बुराइयां खत्म हो जाएं तो घर-परिवार कैसा सुंदर होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई शिष्य दिन में तो गुरु का आशीर्वाद ले और शाम को शराब पीकर अपने घर पहुंच जाए। यदि किसी शराबी की पत्नी को साक्षात् भगवान मिल जाएं और मांगने के लिए कहे तो वह यहीं मांगेगी कि उसका पति शराब छोड़ दे। मेरा ऐसा मानना है कि गुरु वही कहलाने का हकदार है, जो अपने शिष्य को बुराइयों से बचा सके। मोटी रकम लेकर यंत्र और मंत्र देने से शिष्य का भला नहीं हो सकता। जिन परिवारों में माता-पिता का सम्मान नहीं हो रहा हैं, उनकी मदद तो गुरु क्या भगवान भी नहीं कर सकता है और जो लोग माता-पिता का सम्मान कर रहे हैं तो भगवान के पास भी जाने की जरुरत नहीं है।
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Thursday 30 July 2015

क्या कलाम के शव से खास हो गया आतंकी याकूब का शव।


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ऐसे न्यूज चैनल आखिर क्या चाहते हैं इस देश से।
इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि जिस 30 जुलाई को देश के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के शव को सुपर्दु-ए-खाक किया गया, उसी 30 जुलाई को 257 हत्याओं के आतंकी याकूब मेमन का शव भी सुपुर्द-ए-खाक हुआ। लेकिन कुछ न्यूज चैनलों पर कलाम से ज्यादा याकूब के शव को अहमियत दी गई। ऐसे प्रसारणों को देख कर लगा कि याकूब कोई बहुत बड़ा व्यक्ति है। यदि याकूब को नहीं दिखाया तो ऐसे चैनलों की टीआरपी कम हो जाएगी। हालांकि जब याकूब के शव के बारे में चैनल वाले बता रहे थे, तब रामेश्वरम् में कलाम का शव भी रखा हुआ था। इधर रामेश्वरम में कलाम की शव यात्रा निकल रही थी, तो उधर चैनल वाले याकूब के फांसी की घटना को आंखों देखा हाल सुनाने में व्यस्त थे। चैनलों के स्टूडियो में एंकर के साथ अक्लमंद प्रतिनिधि बैठे थे, तो वहीं चैनलों के रिपोर्टर नागपुर जेल, नागपुर हवाई अड्डे, मुम्बई हवाई अड्डा, मुम्बई में याकूब के घर और कब्रिस्तान आदि से लाइव जानकारी दे रहे थे। क्या इन चैनल वालों से यह पूछा जा सकता है कि जिस कलाम ने परमाणु के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाया और पांच वर्ष तक राष्ट्रपति रहे के शव के मुकाबले में याकूब के शव को क्यों अहमियत दी गई? माना कि भारत में लोकतंत्र है और चैनल वाले अपने नजरिए से कुछ भी दिखा सकते हैं, लेकिन क्या इन चैनलों की देश के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है? इन चैनलवालों ने शशि थरुर और दिग्विजय सिंह के जहरीले कथन को दिखा कर आग में घी डालने का काम किया। खुफिया एजेंसियों की सूचनाओं के अनुरूप जब सरकार सतर्कता और गोपनीयता बरत रही थी, तब इन चैनल वालों को देश का माहौल खराब करने का अधिकार किसने दिया? क्या शशि थरुर और दिग्विजय सिंह के भड़काऊ बयानों पर लाइव बहस करवाना जरूरी था? हम सब जानते हैं कि शशि थरुर अपनी तीसरी-चौथी पत्नी की हत्या के आरोपों से घिरे हुए हैं तथा दिग्विजय सिंह तो कांग्रेस का भट्टा बैठाने में लगे हुए हैं। क्या नेताओं के बयान कोई मायने रखते हैं। ऐसा लगा कि इन दो नेताओं के बयान की आड़ में कुछ चैनल हमारे देश की सर्वोच्च अदालत और निर्वाचित सरकार को दोषी मान रहे हैं। याकूब की फांसी के प्रकरण में इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट पूरी रात सुनवाई करता रहा। 257 निर्दोष लोगों की हत्या के आरोपी को बचाने के लिए देश की कई प्रमुख हस्तियां सामने आ गईं। प्रशांत भूषण जैसे वकील रात 12 बजे देश के चीफ जस्टिस के निवास पर पहुंच गए। पूरी रात ऐसा हुआ, जैसे देश पर भीषण संकट आ गया हो। जो लोग वर्षों से मामूली अपराधों में जेलों में सड़ रहे हैं,उनके बारे में प्रशांत भूषण जैसे वकीलों ने दिन में भी चिंता नहीं दिखाई। कोई माने या नहीं, लेकिन लोकतंत्र की वजह से देश को बहुत बड़ा खतरा हो गया। मानवाधिकारों की आड़ में आतंकियों तक की पैरवी की जाती है, लेकिन आतंकियों के हाथों मारे जाने वाले निर्दोष लोगों और जवानों की प्रति ऐसी साहनुभूति नहीं दिखाई जाती। देश का माहौल खराब करने वाले ऐसे चैनलों पर कुछ तो कार्यवाही होनी ही चाहिए। लोकतंत्र का यह मतलब यह नहीं कि आप अपने देश के लिए खतरा बन जाएं। ऐसे चैनलों की अनदेखी कर आम दर्शक भी सहयोग कर सकते हैं।
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Wednesday 29 July 2015

समय बढ़ाने के विरोध में एक भी विद्यार्थी और अभिभावक नहीं आया


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शिक्षा राज्यमंत्री देवनानी ने कहा
अजमेर: सरकारी स्कूलों का समय बढ़ाने के संबंध में स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि उनके पास इसके विरोध में एक भी विद्यार्थी और अभिभावक नहीं आया है, विरोध सिर्फ शिक्षकों का है।
देवनानी ने कहा कि स्कूलों का समय बढ़ाने से विद्यार्थियों की संख्या भी सरकारी स्कूलों में बढ़ी है। आज विद्यार्थी और अभिभावक यह महसूस करने लगे है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई हो रही है। उन्होंने कहा कि जब विद्यार्थी पढऩा चाहता है तो फिर शिक्षिकों को पढ़ाने में एतराज नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्कूलों में समय बढ़ाने के सरकार के निर्णय का प्रदेश भर में स्वागत हो रहा है। ऐसे में शिक्षकों को भी चाहिए कि वे सरकार की मंशा के अनुरूप काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समय बढ़ाने को लेकर शिक्षक बेवजह आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की जायज मांगों का समाधान करने के लिए सरकार तैयार है, लेकिन शिक्षकों को ऐसा कोई आंदोलन नहीं करना चाहिए जो विद्यार्थियों और अभिभावकों के खिलाफ हो। शिक्षकों का भी यह प्रयास हो कि सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़े। उन्होंने कहा कि सवाल यह नहीं है कि सरकार शिक्षकों को वेतन देती है। अहम सवाल यह है कि हमें विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा देनी है। उन्होंने कहा कि एक प्राइवेट स्कूल के मुकाबले सरकारी स्कूल के शिक्षक को न केवल ज्यादा वेतन मिलता है, बल्कि स्कूल में सुविधाएं भी अधिक होती है। ऐसे में शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ अध्यापन का कार्य करें। जब विद्यार्थी स्कूल में पढऩा चाहता है तो फिर शिक्षकों को एतराज क्यों है।
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काश! कलाम जैसी मौत हर अच्छे इंसान को मिले


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देश-दुनिया में ऐसे हजारों लोग होंगे जो मरना चाहते हैं। कोई बीमारी से दु:खी है तो कोई पारिवारिक समस्याओं से। कुछ तो दूसरों के सुख से ही दु:खी हैं। अस्पताल में भर्ती मरीज के पास जब पैसे का अभाव हो जाता है, तो वह ईश्वर से मौत ही मांगता है, लेकिन मरना भी इतना आसान नहीं है। आमतौर पर कहा जाता है, हे भगवान चलते-फिरते ही उठा लेना। यानि कोई भी व्यक्ति बीमार होकर मरना नहीं चाहता और न ही मरने से पहले किसी समस्या का सामना करना चाहता है। संसार में आए हर व्यक्ति को एक न एक दिन मरना ही होता है, लेकिन उस व्यक्ति को भाग्यशाली माना जाता है, जो काम करते-करते मर जाए। 83 वर्षीय ए.पी.जे.अब्दुल कलाम की मौत तब हुई, जब वे 27 जुलाई को शिलांग में शिक्षण संस्थान में विद्यार्थियों के बीच भाषण दे रहे थे। यानि कलाम साहब अपने पसंदीदा कार्य को करते हुए ही मरे। सब जानते हैं कि कलाम साहब को बच्चों से संवाद करना बहुत अच्छा लगता था। हमने कभी नहीं सुना कि कलाम साहब किसी अस्पताल में भर्ती हुए अथवा किसी समस्या से ग्रस्त हैं।
साधारण से परिवार में जन्म लेने के बाद देश के राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे। यूं तो देश के कई व्यक्ति राष्ट्रपति बने और अब पूर्व राष्ट्रपति का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन ऐसे व्यक्तियों का कोई नामो-निशान नहीं है। जबकि राष्ट्रपति का पद नहीं रहने के बाद भी कलाम हमेशा सक्रिय रहे। कलाम को राष्ट्रपति जब बनाया गया, जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी। तब भी यही कहा गया कि भाजपा ने अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को सुधारने के लिए कलाम को राष्ट्रपति बनाया है। लेकिन कलाम ने ऐसे लोगों को मुंह तोड़ जवाब दिया। पांच वर्ष के कार्यकाल के बाद जब राजनीतिक दलों में फिर से आम सहमति नहीं बनी तो कलाम ने स्वयं ही अपनी उम्मीदवारी नहीं जताई। आज उनके निधन पर पूरा देश गमगीन है। इसे कलाम की सादगी ही कहा जाएगा कि आज उनके परिवार के सदस्यों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। हम देखते हैं कि कोई पूर्व मुख्यमंत्री या राज्यपाल की मौत होती है, तो संबंधित प्रदेश में अवकाश होता है। भले ही ऐसे राज्यपाल का प्रदेश से कोई सरोकार नहीं रहा हो।
मौत के गम से ज्यादा परिवार के सदस्यों को इस बात की खुशी होती, सरकार ने छुट्टी की है। इसमें कोई दो राय नहीं की तिरंगे में लिपट कर कब्र पर श्मशान तक जाना हर किसी के लिए गर्व की बात होती है, लेकिन आप अपने जीवन में इस लायक तो हों। नि:संदेह कलाम देश की खातिर जिए। इसलिए आज उनको इतना सम्मान मिला रहा है। जो कुछ लोग मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हैं, उन्हें देखना चाहिए कि 30 जुलाई को किस शान के साथ पूरा देश कलाम साहब को सुपुर्दे खाक करेगा। यह सम्मान किसी हिन्दू या मुसलमान को नहीं मिला है,यह सम्मान एक देशभक्त और अच्छे इंसान को मिला है। निधन के बाद भी कलाम के कार्यों को वर्षों तक याद किया जाएगा। काश! ऐसी मौत हर अच्छे इंसान को मिले।
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Tuesday 28 July 2015

अजमेर के उम्मीदवार पायलट ही तय करेंगे


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अजमेर नगर निगम तथा जिले के किशनगढ़, केकड़ी, सरवाड़ और बिजय नगर के स्थानीय निकायों के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ही तय करेंगे। इसके लिए पायलट 29 जुलाई को अजमेर आ रहे है। पायलट ने गत लोकसभा का चुनाव अजमेर से ही लड़ा था। यह बात अलग है कि पायलट कोई पौने दो लाख मतों से चुनाव हार गए, लेकिन पायलट को अब लगता है कि स्थानीय निकाय के चुनावों में अजमेर में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत होगी। अजमेर में हो रहे चुनाव से पायलट की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। इसलिए पायलट ने अपने स्तर पर चुनाव सर्वे करवाया है, हालांकि उम्मीदवारों के चयन के लिए पुराने और नए कांग्रेसियों की एक समिति भी बनाई गई है। लेकिन माना जा रहा है कि यह समिति मात्र दिखाने के लिए है। पायलट नहीं चाहते कि उनके निर्वाचन क्षेत्र अजमेर में एक बार फिर कांग्रेस की हार हो।
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अग्रवाल समाज ने लगाया नि:शुल्क चिकित्सा शिविर


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अग्रवाल समाज अजमेर और कृष्ण गोपाल आयुर्वेद भवन धर्मार्थ ट्रस्ट की ओर से 28 जुलाई को माकड़वाली स्थित झूलेलाल मंदिर परिसर में आयुर्वेद का नि:शुल्क चिकित्सा शिविर लगाया गया। शिविर का शुभारंभ पत्रकार एस.पी.मित्तल ने दी प्रज्ज्वलित करके किया। शिविर में समाज के अध्यक्ष एस.एन.गर्ग, आर.एस.अग्रवाल, के.सी. गुप्ता, डॉ. एस.डी.राजपुरिया, श्रीमती मनोरमा आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई। शिविर में डॉ. अक्षय यादव ने करीब  150 रोगियों के स्वास्थ्य की जांच की और औषधी दी। मौसमी बीमारियों को देखते हुए इस शिविर को उपयोगी बताया है।
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1008 शिवलिंगों पर 121 पंडित करेंगे गंगाजल से सहस्त्र धारा


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आस्था का भी कोई जवाब नहीं।
29 जुलाई को फॉयसागर रोड स्थित हाथीखेड़ा क्षेत्र में बने ऐतिहासिक कोटेश्वर महादेव मंदिर में 1008 शिवलिंगों पर 121 पंडित सहस्त्रधारा करेंगे। इसके लिए हरिद्वार ऋषिकेश से गंगाजल का टेंकर मंगाया गया है। इस धार्मिक समारोह के आयोजक श्री विनायक ज्वैलर्स के नंद किशोर, राजेश और कमल सोनी ने बताया कि 29 जुलाई को प्रात: छह बजे विनायक पूजन के बाद दोपहर 12 से 3 बजे तक सहस्त्र धारा का रुद्राभिषेक होगा। सवा तीन बजे बाबा कोटेश्वर का शृंगार तथा भजन संध्या होगी। सायं 6 बजे महाआरती के बाद प्रसादी का कार्यक्रम है। राजेश सोनी ने बताया कि दिल्ली से कलाकार बुलाए गए हैं। इस मौके पर पूरे मंदिर परिसर को आकर्षण रंग से सजाया गया है।
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जब राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम से हुई मेरी मुलाकात


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मेरे पत्रकारिता के जीवन में देश विदेश के अनेक अतिविशिष्ट व्यक्तियों से मुलाकात हुई है। ऐसे मुलाकातें प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों में कार्य करते हुए अथवा अपने भभक पाक्षीक के सम्पादक रहते हुए हुई। ऐसी ही एक मुलाकात 17 नवम्बर 2005 को अजमेर के सर्किट हाऊस में राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम से हुई। यह मुलाकात आज भी मेरे लिए महत्त्व रखती है। मैं कलाम के निधन पर आज कुछ नया लिखने के बजाए पुराना ही पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हंू। आप स्वयं देखें कि राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए कलाम साहब देश के राजनेताओं और फांसी के संबंध में क्या विचार रखते थे। भभक के 1 दिसम्बर, 2005 के अंक में प्रकाशित आलेख आज भी प्रसांगिक है। खास बात ये थी कि कलाम साहब से सवाल मैंने नहीं, बल्कि मेरी बिटिया हर्षिता ने पूछे थे। बच्चों को स्नेह करने वाले कलाम साहब ने सभी सवालों का जवाब शानदार तरीके से दिया। मुलाकात की खबर को जब 1 दिसम्बर, 2005 के भभक के अंक में प्रकाशित किया तो कलाम साहब ने न केवल खबर पढ़ी बल्कि पत्र लिखकर अपनी ओर से शुभकामनाएं भी भिजवाई। कलाम साहब मेरे लेखन को निरंतर भभक में पढ़ते रहे। कभी कभार मेरी हौंसला अफजाई भी करते रहे। कलाम साहब जैसे राष्ट्रपति द्वारा भिजवाए गए पत्र मेरे लिए गर्व की बात है। कलाम साहब ने अनेक पत्र भिजवा कर यह भी प्रदर्शित किया कि सुंदर लेखन किसी बड़े अखबार का मोहताज नहीं होता। मेरे लिए इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है कि कलाम साहब स्वयं ने प्रशंसा की है।
भभक के 1 दिसम्बर 2005 के अंक में कलाम साहब पर प्रकाशित आलेख
वाकई भारत के राष्ट्रपति कमाल के हैं
अजमेर। देश के कुछ राजनेता राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को राजनीति में कम ज्ञान वाला व्यक्ति मानते हों, लेकिन ऐसा नहीं है। किसी भी समारोह में राजनेताओं से दूरी बनाकर सिर्फ बच्चों से संवाद कायम करने का यह मतलब नहीं है कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को राजनीति नहीं आती है। वे भले ही एक सीधे-सादे वैज्ञानिक से विश्व के सबसे बड़े लोक-तांत्रिक देश भारत के राष्ट्रपति बने हों, लेकिन उनकी सूझबूझ किसी भी कूटनीतिज्ञ देश के राष्ट्रपति से कम नहीं है। ऐसा मैंने व्यक्तिगत तौर पर अनुभव किया है। श्री कलाम से मुझे गत 17 नवम्बर को अजमेर के सर्किट हाऊस में मिलने का अवसर मिला। हालांकि यह मुुलाकात एक पत्रकार और राष्ट्रपति के बीच नहीं थी। लेकिन फिर भी देश के दो महत्वपूर्ण मुद्दों के सवालों का जवाब राष्ट्रपति ने ''कमाल के दिए। राष्ट्रपति को भी यह उम्मीद नहीं थी कि बच्चों से मुलाकात में ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों से जुड़े सवालों का जवाब अचानक देना पड़ेगा। मैं यहां यह बताना चाहता हूं कि हमारे यहां राष्ट्रपति का संवैधानिक पद है और राष्ट्रपति के मुंह से निकला एक-एक शब्द पत्थर की लकीर होता है। इसलिए अधिकांशत: राष्ट्रपति किसी भी  समारोह में लिखा हुआ भाषण ही पढ़ते हैं।
17 नवम्बर को जब सर्किट हाऊस में राष्ट्रपति से मुलाकात हुई तो मेरी पुत्री हर्षिता ने सवाल पूछा कि क्या बच्चों को देश के राजनेेताओं का अनुसरण करना चाहिए? किसी भी राष्ट्रपति के लिए इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं था, और जब ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे सीधे-सादे गैर राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति को जवाब देना हो तो यह और भी मुश्किल भरा काम था। यदि राष्ट्रपति यह कहते कि राजनेताओं का अनुसरण करना चाहिए तो सवाल उठता कि क्या बच्चे बंगारू लक्ष्मण, शहाबुद्दीन, राजा भैया, नटवरसिंह, लालू प्रसाद यादव, नरेन्द्र मोदी, बाल ठाकरे, जयललिता जैसे राजनेताओं का अनुसरण करें। और यदि राष्ट्रपति कहते कि बच्चों को राजनेताओं का अनुसरण नहीं करना चाहिए तो देश के राजनेता नाराज हो जाते। लेकिन इस सवाल का राष्ट्रपति ने बहुत सूझ-बूझ तरीके से जवाब दिया। उन्होंने देश के राजनेताओं पर कोई टिप्पणी किए बगैर कहा कि बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनना चाहिए। यदि बच्चे अच्छे नागरिक बन जायेंगे तो उन्हें किसी के अनुसरण की जरूरत नहीं है।
मैं ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को किसी विवाद में नहीं डालना चाहता, लेकिन इस मौके पर इतना जरूर लिखना चाहता हूं कि भारत के राजनेताओं को श्री कलाम के इस जवाब से कुछ सीख लेनी चाहिए। सवाल उठता है कि बच्चे अपने देश के राजनेताओं का अनुसरण क्यों नहीं करें? जब हम वोट देकर नेताओं को राज चलाने का अधिकार देते हैं तो यह उम्मीद भी करते हैं कि राजतन्त्र सही चलेगा। लेकिन यह हमारे लोकतन्त्र की खामी ही है कि बच्चे ऐसे राजनेताओं का अनुसरण नहीं कर सकते। देश के राजनेताओं को चाहिए कि वह ऐसे बने कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे राष्ट्रपति गर्व से कह सकें कि बच्चों को देश के राजनेताओं का अनुसरण करना चाहिए।
हर्षिता का दूसरा महत्वपूर्ण सवाल स्वयं ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की पहल से जुड़ा हुआ था। पिछले दिनों राष्ट्रपति ने केन्द्र सरकार को अपनी भावनाओं से अवगत कराया कि फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा का फैसला होने के बाद भी अभियुक्त राष्ट्रपति के पास अपील कर सकता है। देश भर की ऐसी कई अपीलें राष्ट्रपति के पास विचाराधीन हैं। राष्ट्रपति ने फांसी की सजा माफ करने की अपनी भावना से केन्द्र सरकार को अवगत तो करा दिया, लेकिन यह बात सामने नहीं आई कि इस भावना के पीछे राष्ट्रपति के तर्क क्या हैं? आखिर राष्ट्रपति फांसी की सजा क्यों माफ करना चाहते हैं। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में श्री कलाम की इस भावना पर अभी बहस छिड़ी हुई है। सब लोग राष्ट्रपति के तर्क जानने के इच्छुक हैं। राष्ट्रपति को भी यह उम्मीद नहीं थी कि जिस सवाल का जवाब दुनिया भर का मीडिया चाहता है, उसका जवाब अजमेर के सर्किट हाऊस में देना पड़ेगा। लेकिन जब राष्ट्रपति के सामने सवाल आया तो उन्होंने जवाब भी दिया।
देश में अब किसी को फांसी की सजा नहीं हो कि भावना के पीछे राष्ट्रपति ने तर्क दिया कि जिन्दगी लेने और देने का अधिकार सिर्फ भगवान के पास है। जब हमारे पास जिन्दगी देने का हक नहीं है तो हम लेेने का हक भी नहीं रखते। राष्ट्रपति का यह तर्क आंतकवाद के सामने कितना मायने रखता है, यह आने वाला वक्त ही बतायेगा। लेकिन मैं राष्ट्रपति के इस तर्क से सहमत हूं। श्री कलाम ने भगवान की जो बात कही है, उसमें बहुत दम है। इसमें कोई दो राय नहीं कि व्यक्ति अपने और दूसरे के कर्म का फैसला भगवान पर छोड़ दे तो उसका फैसला सही ही होगा। इसका मतलब यह नहीं कि देश से कानून का राज ही समाप्त कर दिया जायें। राष्ट्रपति का तर्क सिर्फ फांसी के सन्दर्भ में ही देखा जाना चाहिए। हर्षिता के सवाल पर राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि अपराधी को उम्र कैद की सजा देकर सुधरने का अवसर देना चाहिए। हमारा देश धर्म प्रदान देश है और भारत का यह सौभाग्य है कि आज देश के राष्ट्रपति के पद पर एक ऐसा इंसान विराजमान है, जो बड़े से बड़े अपराधी का फैसला भगवान के अनुरूप करने की मंशा रखता है।
मेरी इस मुद्दे पर राष्ट्रपति से कोई आध्यात्मिक चर्चा नहीं हुई है, लेकिन मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की भावनाओं के अनुरूप देश चले तो समाज में अपराध होंगे ही नहीं, क्योंकि किसी भी धर्म का भगवान गलत शिक्षा नहीं देता। जब हम अल्लाह और ईश्वर की शिक्षाओं के अनुरूप इंसानियत का पाठ पढ़ लेगें तो हम किसी के थप्पड़ तो क्या दिल दुखाने वाली बात भी नहीं कहेंगे। और यदि देश में ऐसे समाज की संरचना होगी तो धरती पर स्वर्ग होगा। मैं सोचता हूं कि राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की फांसी की सजा माफ करने के पीछे यही संवेदनाएं काम कर रही होगी। केन्द्र सरकार श्री कलाम के प्रस्ताव को माने या नहीं माने, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन इतना जरूर है कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने इंसानियत के मुकाम को और ऊँचा कर लिया है।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511