Sunday 31 May 2015

डांगावास हत्याकांड में क्या विधानसभा अध्यक्ष के भाई पीडि़तों के हितैषी हैं

राजस्थान के बहुचर्चित डांगावास हत्याकांड के आंदोलन में डॉ.अशोक मेघवाल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। प्रशासन और सरकार के साथ होने वाली समझौता वार्ताओं में भी डॉ.मेघवाल पीडि़तों के प्रतिनिधि बने हुए है। अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में जब भी किसी जख्मी की मौत होती है तो मुर्दाघर के बाहर सबसे पहले डॉ.मेघवाल ही पहुंचते है। फटाफट टेंट आदि लगाकर  धरना शुरू कर दिया जाता है। पिछले दिनों गणपतराम और गणेशराम की उपचार के दौरान जब मौत हुई तो आंदोलन की कमान डॉ.मेघवाल ने ही संभाली, लेकिन इसे डॉ. मेघवाल की समझदारी ही कहा जाएगा कि आंदोलन को कभी भी बिगडऩे नहीं दिया। डॉ.मेघवाल ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि हालात नियंत्रण से बाहर नहीं है। गणपतराम ओर गणेशराम के शव तीन-तीन दिन तक मुर्दाघर में पड़े रहे और शहर भर में आंदोलन होता रहा, लेकिन किसी भी मौके पर हालात बेकाबू नहीं हुए। डॉ.मेघवाल ने अभी तक जो भूमिका निभाई है उसको लेकर ही मेघवाल समाज में यह चर्चा हो रही है कि डॉ.अशोक मेघवाल वाकई पीडि़तों के हितैषी है? डांगावास के खूनी संघर्ष में मेघवाल समाज के अब तक पांच जनों की मौत हो गई है और अभी भी अस्पताल में एक दर्जन महिला पुरुष भर्ती हैं।  दबंगो ने मेघवालों को भूमि विवाद में ट्रेक्टर से कुचल दिया। आज भी पीडि़त परिवार और मेघवाल समाज के लोग डांगावाास गांव नहीं जा पा रहे है। सब जानते है कि डॉ.अशोक मेघवाल राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के चचेरे भाई है। ऐसे में माना जा रहा है कि डॉ.मेघवाल एक योजना के अन्तर्गत आंदोलन में भूमिका निभा रहे है। डॉ.मेघवाल ने गत विधानसभा के चुनाव में अजमेर दक्षिण क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर अपनी सशक्त दावेदारी प्रस्तुत की थी। डॉ.मेघवाल की उम्मीदवारी के लिए कैलाश मेघवाल ने भी पूरा जोर लगाया। यह बात अलग रही कि डॉ.मेघवाल भाजपा का टिकट नहीं ले सके, लेकिन भाजपा की सभी राजनैतिक गतिविधियों में डॉ.मेघवाल सक्रिय रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद के जिला उपाध्यक्ष होने के नाते भी डॉ.मेघवाल भाजपा की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं, हालांकि इस आंदोलन से जुडऩे पर डॉ.मेघवाल ने कहा है कि डांगावास के दबंगों ने दलितों पर अत्याचार किए हैं।
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कारोबारी की तरह ही आए अमेरिकी और इंडियन

मुफ्त की नीयत से मार्बल लेने आर.के. पर पहुंचे
अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए यूएस इंडो बिजनेस  काउंसिल और फिक्की से जुड़े प्रतिनिधि कारोबारियों की तरह ही अजमेर आएं। दिखाने को इन कारोबारियों ने सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठकें भी की, लेकिन दौरे का मकसद कारोबार ही रहा। दिलचस्प बात यह है कि न्यूयार्क स्थित सीवी एसोसिएट के प्रतिनिधि तो किशनगढ़ स्थित आर के मार्बल संस्थान पर ही पहुंच गया। इस प्रतिनिधि को न्यूयार्क में बनने वाले अपने घर के लिए मार्बल चाहिए था। चूंकि यह प्रतिनिधि सरकारी स्तर पर आया था, इसलिए उम्मीद रही होगी कि आर के संस्थान के मालिक दानवीर अशोक पाटनी मुफ्त में मार्बल दे देंगे। संस्थान के कर्मचारियों ने जब इस अमरीकी कारोबारी को बताया कि 50 रुपए से लेकर 500 रुपए वर्ग फीट मूल्य का मार्बल उपलब्ध है तो इस कारोबारी ने अपने हाथ खींच लिए कहा, मुझे तो 70-75 रुपए वर्ग फीट वाला घटिया मार्बल चाहिए। इस कारोबारी की नीयत से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका के कैसे-कैसे कारोबारी अजमेर को स्मार्ट बनाएंगे। ऐसा नहीं कि अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल में ही मुफ्त की नीयत वाले कारोबारी शामिल थे, हमारे देश के कारोबारी भी कुछ ऐसी ही नीयत से अजमेर आए। इस प्रतिनिधि मंडल में रणधीर सिंह मंडावा भी शामिल थे। मंडावा प्रदेश की सीएम वसुंंधरा राजे के भरोसेमंद कारोबारी है। मंडावा उस संस्था से जुड़े हुए है जो देश के ऐतिहासिक भवनों को हैरिटेज घोषित करते हैं। ऐसी सम्पत्तियां निजी भी होती हैं। पुराने राजघरानों की टूटी-फूटी किसी ऐतिहासिक इमारत को यदि हैरिटेज मान लिया जाए तो उसकी कीमत रातोंरात बढ़ जाती है। मण्डावा ने अजमेर का दौरान अपने नजरिए से ही किया। मंडावा यहां मेयो शिक्षण संस्थान द्वारा संचालित मेयो गल्र्स स्कूल की स्टेट एंड लीगल कमेटी के प्रमुख भी हैं। अमरीकी कारोबारियों के साथ सरकारी स्तर पर मंडावा का अजमेर आना खास महत्व रखता है।
अनूप भृतरिया बनाएंगे डिजाइन :
राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के विख्यात आर्किटेक्ट अनूप भृतरिया अजमेर के लिए स्मार्ट सिटी का डिजाइन बनाएंगे। पिछले दिनों केन्द्रीय शहर विकास मंत्रालय ने अपनी 'हृदय योजनाÓ के अन्तर्गत देश में 12 शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए आर्किटेक्ट संस्थानों से टेंडर आमंत्रित किए थे। इस प्रक्रिया में जयपुर के अनूप भृतरिया की स्काई लाइन बिल्ड वे प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी ने भी भाग लिया। जयपुर के आधुनिक विकास में भृतरिया की खास भूमिका है। मल्टी स्टोरी और कम स्पेस में अच्छे निर्माण की तकनीक से भृतरिया ने अपनी योग्यता न केवल पूर्व सीएम अशोक गहलोत को दिखाई बल्कि वर्तमान सीएम वसुंधरा राजे को भी प्रभावित कर रखा है। जानकारों की माने तो सीएम राजे की सलाह पर ही भृतरिया ने टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया। आने वाले दिनों में भृतरिया की कम्पनी के योग्य एवं अनुभवी इंजीनियर अजमेर आएंगे और स्मार्ट सिटी का मास्टर प्लान तैयार करेंगे।
डीसी की टीम हुई मायूस :
स्मार्ट सिटी के लिए अजमेर के संभागीय आयुक्त धर्मेन्द्र भटनागर ने विभिन्न समितियों का गठन कर शहर के जागरुक लोगों की टीम तैयार की थी। उसे 29-30 मई के यूएस इंडो बिजनेस काउंसिल और फिक्की के कारोबारियों के दौरे से मायूस होना पड़ा। इस टीम के सदस्यों को पुष्कर के निकट अनन्ता रिसोर्ट में तो बुलाया ही नहीं गया, लेकिन 30 मई को शहर के होटल मानसिंह में आमंत्रित किया गया। भटनागर ने अपनी टीम के सदस्यों से कहा कि वे अपनी फाइले आदि लेकर आएं और विदेशी प्रतिनिधियों को अब तक की तैयारियों से अवगत कराएं। टीम के सदस्य प्रेस की हुई यूनिफार्म और बगल में फाइल लेकर होटल मानसिंह पहुंच गए। सदस्य इस बात से उत्साहित थे कि उन्हें स्कीम के मुताबिक डीसी भटनागर की प्रशंसा करने का अवसर मिलेगा, लेकिन सदस्य न तो फाइल दिखा सके और न भटनागर की प्रशंसा कर सके। सदस्यों से कहा गया कि अमेरिकी प्रतिनिधियों को शाम तक जयपुर पहुंचना है,इसलिए आप लोग होटल मानसिंह का स्वादिष्ट खाना खाएं और मजे करें। डी.एल. त्रिपाठी, उमेश चौरसिया, प्रकाश जैन, कमलेन्द्र झा, पी. आर.राठी, संजय सेठी जैसे शहर के प्रतिष्ठित और अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने वालों को हैरानी हुई, लेकिन डॉ.संदीप अवस्थी जैसे सदस्य इस बात से खुश थे कि उन्हें कम से कम विदेशी प्रतिनिधियों से मिलने का अवसर तो मिल गया। अब यह देखना है कि डीसी भटनागर ने अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष की हैसियत से देशी-विदेशी कारोबारियों के दो दिन के दौरे पर कितने लाख रुपए प्राधिकरण के खर्च करवा दिए।
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Saturday 30 May 2015

खुलने वाली है शिक्षा राज्यमंत्री देवनानी की लॉटरी

प्रदेश के शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी की लॉटरी खुलने ही वाली है। सीएम वसुंधरा राजे इस बात से सहमत हैं कि तृतीय श्रेणी के शिक्षकों के स्थानान्तरण का अधिकार देवनानी के विभाग को ही दिया जाए। तृतीय श्रेणी के शिक्षक पंचायती राज के अधीन रहेंगे। शिक्षा विभाग में इसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पिछले कई वर्षों से इसी वजह से तृतीय श्रेणी के शिक्षकों के स्थानान्तरण नहीं हो रहे थे लेकिन अब अगले दो तीन दिन में सीएम सचिवालय से देवनानी के पक्ष में फैसला होने वाला है। 2 जून को सीएम राजे ने देवनानी को अपनी कार्ययोजना के साथ बुलाया है। इस दिन देवनानी सीएम के समक्ष शिक्षा विभाग की कार्ययोजना प्रस्तुत करेंगे। जानकारों की माने तो देवनानी ने सीएम को खुश करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। हो सकता है कि देवनानी को उच्च शिक्षा का प्रभार भी मिल जाए। कालीचरण सराफ के बड़बोले रवैये की वजह से सीएम नाराज बताई जा रही हैं। इसका पूरा फायदा देवनानी उठाने में लगे हुए हैं। असल में इन दिनों देवनानी सीएम का इशारा समझकर ही मंत्री की भूमिका निभा रहे हैं। देवनानी ने प्रथम और द्वितीय श्रेणी के शिक्षकों के तबादले के कार्य को भी शांतिपूर्ण तरीके से किया है। 2 जून को सीएम राजे को भरोसे में लेकर तैयार तबादला सूची को जारी कर दिया जाएगा। इसके बाद ही तृतीय श्रेणी की रणनीति बनाई जाएगी। देवनानी अजमेर जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं। वंदना नोगिया को जिला प्रमुख बनवाने में देवनानी की भी भूमिका रही। देवनानी ने 29 मई को नोगिया की अब तक की कार्यशैली पर असंतोष प्रकट करते हुए बताया कि जिला परिषद के सदस्यों, पंचायत समिति के प्रधानों तथा विधायकों को किस प्रकार से संतुष्ट किया जा सकता है। देवनानी ने जो शिक्षा दी उस पर अमल करते हुए वंदना नोगिया ने 29 मई को ही दिनेश यादव नाम के व्यक्ति को अपने निजी सहायक के पद से हटा दिया। नोगिया ने यादव को साफ कहा कि अब जिला परिषद में नजर नहीं आने चाहिए। हालांकि नोगिया के इस रवैये से उनके पिता और दादा नाखुश थे, लेकिन अब जिला परिषद में देवनानी की शिक्षा के अनुरुप ही काम होगा। आने वाले दिनों में एपीईओ जगदीश हेडा की छुट्टी होने वाली है। सीईओ राजेश चौहान से भी कहा गया है कि वह राजनीति की नई खिलाड़ी जिला प्रमुख को पूरा सहयोग करें। देवनानी ने अपने उत्तर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा मंडल अध्यक्षों से भी कहा है कि वह वार्ड स्तर पर महासम्पर्क अभियान एक जून से हर हाल में शुरू करें।
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तो अमेरिका के उद्योगपति बनाएंगे अजमेर को स्मार्ट

कोई छह माह पहले पीएम नरेन्द्र मोदी ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी तभी से शहर के लाखों नागरिक स्मार्ट सिटी का सपना देख रहे थे, लेकिन अब नागरिकों का यह सपना टूट गया हैं क्योंकि न तो अमेरिका की सरकार ना हमारी सरकार अजमेर को स्मार्ट बनाने जा रही है। बल्कि अमेरिका के उद्योगपति भारतीय कम्पनियों से मिलकर अजमेर में अपना कारोबार करेंगे। इसीलिए पुष्कर के निकट अनन्ता रिसोर्ट में अमेरिका के उद्योगपतियों और भारत के उद्योग जगत से जुड़े प्रतिनिधियों की एक कांफे्रंस 29 और 30 मई को हुई। इस कांफ्रेंस का मकसद भी यही रहा कि अजमेर में किस प्रकार से उद्योग लगाए जा सकते हंै। सब जानते हैं कि जब कोई उद्योगपति अपना उद्योग लगता है तो उसका मकसद सेवा का नहीं कमाई का होता है। अब जब अमेरिका के उद्योगपति हमारी कम्पनियों के साथ मिलकर कोई कारोबार करेंगे तो उन्हें रियायती दर पर जमीन भी चाहिए होगी और सरकार से टैक्स आदि में रियायत भी लेंगे। यानि अजमेर के नागरिक स्मार्ट सिटी का जो सपना देख रहे थे उसके विपरीत अजमेर के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होगा। माना कि अमेरिका का कोई उद्योगपति अजमेर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम लागू करेगा। इसका यह मतलब नहीं कि रोडवेज की बसों की तरह समाज के विभिन्न वर्गो को रियायत मिलेगी। अमेरिकी उद्योगपति की बसों में तो मोटा शुल्क चुकाना ही पड़ेगा। यह बात अलग है कि अमेरिका की बसें साफ सुथरी वातानुकूलित होगी। इसी प्रकार आईटी हब बना तो यहां प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों को भी मोटी फीस देनी होगी। अब तक की जानकारी के मुताबिक अमेरिका और भारत के कारोबारी धर्मार्थ का कोई काम नहीं करेंगे। यदि सरकार ने कम्पनियों की शर्तों को माना तभी औद्योगिक इकाइयां लगाई जाएगी। जहां तक शहर के दरगाह क्षेत्र, मदारगेट, नला बाजार,नया बाजार, कचहरी रोड, स्टेशन रोड, केसरगंज आदि बाजारों का सवाल है तो इनकी दशा सुधारने का फिलहाल कोई कार्यक्रम नहीं है। यह बिगड़े इलाके तो ऐसे ही रहेंगे। इसके विपरीत अजमेर, किशनगढ़ और पुष्कर क्षेत्रों में खाली पड़ी भूमि पर औद्योगिक इकाई भर लगाई जाएगी। अजमेर के संभागीय आयुक्त डॉ. धर्मेन्द्र भटनागर पिछले चार माह से स्मार्ट सिटी को लेकर जो योजना बना रहे थे वह भी कचरे के ढेर में चली गई है। जिस तरह से यूएस इंडिया बिजनेस काउंसिल और फिक्की की गतिविधियां सामने आई है। उससे भटनागर द्वारा बनाई गई उप समितियां भी पानी में बह गई है। अजमेर के जो लोग उप समितियों में शामिल होकर बहुत बड़ा आदमी समझ रहे थे उनके सपने भी चूर हो गए है। ऐसे लोगों को काउंसिल के प्रतिनिधियों तक से मिलने नहीं दिया गया। समिति के सदस्य इधर-उधर जुगाड़ कर बैठकें कर रहे थे जबकि काउंसिल की बैठक पांच सितारा सुविधायुक्त अनन्ता रिसोर्ट में हुई। काउंसिल के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट कर दिया है कि हमारे पास पुराने ढर्रे को सुधारने की कोई योजना नहीं है। इस बीच अजमेर में जमीनों का कारोबार करने वाले खुश है क्योंकि विदेशी संस्थानों के आने से जमीनों के भाव बढ़ेंगे।
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Friday 29 May 2015

तो, अजमेर को स्मार्ट बनाने के लिए रिसोर्ट में हो रही कॉन्फ्रेंस

पीएम नरेन्द्र मोदी की पहल पर अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए जो प्रक्रिया चल रही है, उसके अंतर्गत 29 व 30 मई को पुष्कर के निकट एक पांच सितारा सुविधायुक्त रिसोर्ट में कॉन्फ्रेंस हो रही है। इस कॉन्फ्रेंस में अमरीका की संस्था के प्रतिनिधि और प्रदेश की सरकार के मंत्री और अधिकारी भी भाग ले रहे हैं। रिसोर्ट में बैठकर क्या विचार हो रहा होगा, यह भगवान ही जानता है, क्योंकि अजमेर के जो हालात हैं, उन्हें जब तक मौके पर जाकर नहीं देखा जाएगा, तब तक शहर को स्मार्ट बनाना मुश्किल है।
ख्वाजा साहब की दरगाह के आसपास ऐसी गलियां हैं, जिसमें सिर्फ एक आदमी निकल सकता है। इसके अतिरिक्त अजमेर में तैनात रहे अफसरों ने जिस तरह से अवैध निर्माण करवाए हैं, उससे पूरे शहर का ढर्रा बिगड़ा पड़ा है। कॉन्फ्रेंस में इस बात का तो प्रजेंटेशन दिया गया कि स्मार्ट सिटी में क्या-क्या होगा, लेकिन यह किसी ने भी नहीं बताया कि अजमेर की परिस्थितियों में योजनाओं की क्रियान्विति किस प्रकार होगी। क्या अमरीका में भी इतनी हिम्मत है कि दरगाह क्षेत्र में हुए अवैध निर्मार्णों को तोड़ा जा सके। जिला प्रशासन के अधिकारियों की तो इन अतिक्रमणों की ओर देखने की हिम्मत तक नहीं है।
गत वर्ष एक अधिकारी अवैध निर्माण को तोडऩे गए थे तो उन्हें अपमानित होकर लौटना पड़ा। रिसोर्ट में कॉन्फ्रेंस कर लेने से कोई निर्णय होने वाला नहीं है। बड़ी हास्यास्पद बात है कि एक ओर अमरीका के प्रतिनिधि ही रिसोर्ट में कॉन्फ्रेंस कर रहे तो दूसरी ओर 2 जून को होने वाली अजमेर नगर निगम की साधारण सभा में सभी पार्षद यह चाहते हैं कि अवैध निर्माणों को जुर्माना लेकर नियमित कर दिया जाए। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के पार्षद एक जुट हैं। इतना ही नहीं हाईकोर्ट भी अवैध निर्माण तोडऩे के लिए निगम के अधिकारियों को लगातार फटकार लगा रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी प्रभावशाली व्यक्तियों के अवैध निर्माण नहीं टूट रहे हैं। देखना है कि रिसोर्ट में कॉन्फ्रेंस कि योजनाओं को किस प्रकार से पूरा किया जाता हैं।

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अजमेर के अस्पताल में क्यों आते रहे भाजपा-कांग्रेस के नेता। गणेशराम की मौत से उठा सवाल

राजस्थान के नागौर जिले के डांगावास में गत 14 मई को जो खूनी संघर्ष हुआ, उसमें 28 मई की रात को छठें व्यक्ति की भी मौत हो गई। मृतक गणेशराम मेघवाल जख्मी हालत में 14 मई से ही अस्पताल में भर्ती था। इस दौरान कांग्रेस और भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं ने अस्पताल आकर पीडि़तों के हालत जाने और अच्छे इलाज का भरोसा दिलाया। कांग्रेस के नेताओं ने तो यहां तक कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी चिंतित है। इसलिए सोनिया गांधी ने बड़े नेताओं की एक टीम बनाकर अजमेर भेजी है। प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विश्वास पात्र मंत्री और नागौर से विधायक युनूस खान दो बार मरीजों से मिले और कहा कि जरुरत पड़ेगी। तो पीडि़तों का इलाज दिल्ली के एम्स में कराया जाएगा। उन्होंने ने यह भी कहा कि एयर एम्बुलैंस से मरीजों को दिल्ली ले जाने का इंतजाम कर लिया गया है। अजेमर के मंत्री वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल जैसे भाजपा नेता तो न जाने कितनी बार मरीजों से मिलने अस्पताल चले गए। भाजपा के सभी मंत्रियों और नेताओं ने मीडिया के सामने यह दावा किया कि सभी पीडि़तों का इलाज बहुत अच्छी तरह से हो रहा है। इतना जब कुछ होने के बाद भी 28 मई की रात को गणेशराम मेघवाल की मौत हो गई। इसलिए यह सवाल उठता है कि आखिर इन नेताओं ने अजमेर आकर क्या किया? जाहिर है कि ऐसे नेता अखबारों में अपने फोटो छपवाते रहे और हकीकत में पीडि़तों के इलाज की किसी ने भी चिंता नहीं की। गणेशराम मात्र 23 वर्ष का युवक था और गत 14 मई को जब उसे अस्पताल लाया गया, तो उसकी हालत सामान्य थी, लेकिन गणेशराम पहले दिन से ही यह कह रहा था कि उसके सिर में अंदरुनी चोट लगी है, लेकिन न तो चिकित्सकों  ने और न बड़बोले नेताओं ने गणेशराम की बात को सुना। कुछ दिन पहले ही तबीयत बिगडऩे पर गणेशराम को अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। असल में गणेशराम का इलाज अस्पताल में ढंग से हुआ ही नहीं। कांग्रेस और भाजपा के जो नेता मरीजों को देखने के लिए अस्पताल गए उन्हें गणेशराम की मौत पर शर्म आनी चाहिए। गणेश की मौत से सरकार को भी सबक लेना चाहिए कि आगे किसी और मरीज की मौत न हो। अभी भी ऐसे कई मरीज हंै, जिनको अच्छे इलाज की जरुरत है। बड़े बोले मंत्री युनूस खान को चाहिए कि ऐसे मरीजों को एयर एम्बुलैंस से दिल्ली के एम्स अस्पताल में ले जाए। गणेश की मौत से सरकार की पोल पूरी तरह खुल गई है।
लाश को लेकर धरना प्रदर्शन
गणेश की मौत से मेघवाल समाज में रोष है। यही वजह है कि एक बार फिर अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर धरना प्रदर्शन शुरू हो गया है। समाज के लोग मांग कर रहे हैं कि सीबीआई से जांच को शुरू करवाया जाए और मृतकों के परिजन को 25-25 लाख का मुआवजा व एक सदस्य को नौकरी दी जाए, जब तक ये मांगें पूरी नहीं होंगी, तब तक गणेश का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा। मालूम हो कि तीन दिन पहले भी उपचार के दौरान जब गणपतराम की मौत हुई थी, तो इसी तरह शव को रखा गया था, तब सीबीआई से जांच कराने की मांग रखी गईथी। सरकार ने सिफारिश तो कर दी, लेकिन जांच का काम अभी तक भी शुरू नहीं हुआ।
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Thursday 28 May 2015

हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग : ऐसा ही है राष्ट्रपति मुखर्जी का कथन

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी स्विटजरलैंड यात्रा से पहले स्वीडिस अखबार को एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में मुखर्जी ने कहा कि 1989 में बोफोर्स तोप की खरीद पर मीडिया में घोटाले और कमीशनखोरी की जो खबरें छपी वे झूठी थीं। उस समय वे स्वयं भारत के रक्षामंत्री थे और दावे के साथ कह सकते हंै कि तब मीडिया ट्रायल हो रहा था। मुखर्जी का यह इंटरव्यू दो दिन पहले जब स्वीडस अखबार में छपा तो राष्ट्रपति भवन की ओर से एतराज जता दिया गया। मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने ऑफ द रिकॉर्उ जो बातें कही उन्हें भी अखबार में छापा गया है। मुखर्जी ने यह नहीं कहा कि उन्होंने छपी हुई बात कही ही नहीं, लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड कहा। 'अरे भई मुखर्जी कोई मुलायम सिंह यादव व लालू प्रसाद सरीखे नेता तो है नहीं जो टीवी पर कहने के बाद भी मुकर जाए। मुखर्जी भारत के राष्ट्रपति हंै। क्या किसी राष्ट्रपति को विदेशी अखबार के सामने भी ऑफ द रिकॉर्ड बात करनी चाहिए? यानि हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग। असल में अखबार में जो कुछ छपा है, उसे राष्ट्रपति ने कहा है। यह सही भी है कि रक्षामंत्री के पद पर रहते हुए प्रणव मुखर्जी किसी घोटाले और कमीशनखोरी के आरोप को सही कैसे मान लेते? अच्छा होगा कि भविष्य में प्रणव मुखर्जी सोच समझकर इंटरव्यू दें।
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सीबीएसई ने दिया एमपीएस को नोटिस

अजमेर की प्रमुख शिक्षण संस्थान माहेश्वरी पब्लिक स्कूल की प्रबंध कमेटी को सीबीएसई ने नोटिस दिया है। यह नोटिस श्रीमती रानी गुप्ता को स्कूल से हटाए जाने के संबंध में दिया गया। श्रीमती गुप्ता ने स्कूल के खिलाफ सीबीएसई को शिकायत की थी। इस शिकायत में कहा गया कि वह गत 21 वर्ष से स्कूल में हिन्दी विभाग में शिक्षिका के पद पर कार्यकर रही थी, लेकिन प्रबंध कमेटी ने स्कूल में हिन्दी विभाग को बंद कर उन्हें नौकरी से ही हटा दिया, जबकि प्रबंध कमेटी ने सीबीएसई से हिन्दी विभाग की भी मान्यता ले रखी है। शिकायत की गंभीरता को देखते हुए ही सीबीएसई के सहायक सचिव ने एमपीएस को नोटिस जारी कर पन्द्रह दिन में जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा है। असल में स्कूल में इन दिनों जो अनियमितताएं हो रही है, उससे माहेश्वरी समाज में भी नाराजगी है। सरकार  से रियायती दर पर जमीन लेने के बाद भी स्कूल में सरकारी मापदंडों के अनुरूप काम नहीं हो रहा है। एमपीएस से जुड़े अनेक प्रतिनिधि वर्तमान पदाधिकारियों के रवैये से बेहद खफा हैं।

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मजाक बन गई है अजमेर पुलिस

राजनेताओं और अफसरों के गठजोड़ से लूट ही लूट
केन्द्र की भाजपा सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता जश्न में डूबे हुए हैं। ऐसे नेताओं को अजमेर पुलिस के बिगड़े ढांचे की ओर भी देखना चाहिए। गठजोड़ ऐसा हुआ है, जिसमें चारों तरफ लूट ही लूट हो रही है। सबसे पहले एसपी महेन्द्र सिंह चौधरी का किस्सा जानिए। चौधरी को गत 31 दिसम्बर 2014 को एसपी से डीआईजी बनाया गया, लेकिन छह माह गुजर जाने के बाद भी चौधरी एसपी का काम कर रहे हैं। हालांकि डीआईजी के पद पर नियुक्ति सीएम वसुंधरा राजे को करनी है, लेकिन चौधरी को भी पता है कि डीआईजी के पद पर नियुक्त होने से कोई फायदा नहीं है, जिस प्रकार अपने इलाके में थानेदार पावरफुल होता है, उसी प्रकार पुलिस की सेवा में एसपी ही जिले का मालिक होता है। चूंकि पदोन्नति होने के बाद भी चौधरी एसपी का ही काम कर रहे हैं, इसलिए शहर के चार थानों पर डीएसपी बने इंस्पेक्टर अभी तक कार्य कर रहे हैं। क्रिश्चियनगंज में नेम सिंह, रामगंज में नेनूराम मीणा, अलवरगेट में विजय सिंह और महिला थाने में रामेश्वर लाल अभी तक इंस्पेक्टर का ही काम कर रहे हैं। जिस प्रकार चौधरी की एसपीगिरी छोडऩे में रुचि नहीं है, उसी प्रकार से डीएसपी भी इंस्पेक्टरगिरी ही करना चाहते हैं। मजाक की हद तो तब है, जब स्मार्ट सिटी बनने वाले अजमेर शहर के कई थानों पर इंस्पेक्टर की जगह एसआई ही काम कर रहे हैं। कोतवाली में जितेन्द्र गंगवानी, सिविल लाइन में हनुमानाराम विश्नोई, गंज में करण सिंह तथा दरगाह जैसे पुलिस थाने में एसआई भूपेन्द्र सिंह ही इंस्पेक्टर का काम कर रहे हैं। जबकि भरत सिंह, राधा किशन, बाबूलाल मीणा, राजेन्द्र सिंह, हस्तीमल जैसे इंस्पेक्टर कबाड़ में लगे हुए हैं। यानी इंस्पेक्टर तो ठाले बैठे हैं और एसआई थानों में इंस्पेक्टरगिरी कर रहे हैं। बिजयनगर थाने के एसआई रविन्द्र सिंह ने टाइगर साहब से कहा कि मैं आपके हिसाब से काम नहीं कर पा रहा हंू, इसलिए एक सैकंड अफसर नियुक्त किया जाए। बस फिर क्या था कान सिंह को सैकंड अफसर नियुक्त कर दिया। सिविल लाइन थाने पर कनिष्ठ एसआई हनुमानाराम विश्नोई नियुक्त हैं, तो उनके अधीन आने वाली रोडवेज बस स्टैंड चौकी पर सीनियर एसआई लक्ष्मण सिंह राठौड़ काम कर रहे हैं। राठौड़ किन हालातों में काम कर रहे होंगे, यह वे ही बता सकते हैं। मजाक तो यह भी है कि रेंज के आईजी दफ्तर में चार-चार महिला एसआई अटेचमेंट में है। अरे जब थानों पर एसआई से ही काम चलाना है तो फिर इन चार महिला एसआई में से किसी को नियुक्ति दे दी जानी चाहिए। बहती गंगा में हाथ धोने के लिए महिला एसआई के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है।
आईजी तो बादशाह से कम नहीं
रेंज के आईजी अमृत कलश तो बादशाह अकबर से कम नहीं है। गत 14 मई को जब रेंज के नागौर जिले के डांगावास में दबंग लोग मेघवाल परिवार की महिलाओं और पुरुषों को ट्रेक्टर से कुचल रहे थे, तब बादशाह अकबर बड़े आराम से हैड कांस्टेबल से एएसआई बनाने के काम में लगे हुए थे। 15 व 16 मई लगातार दोनों दिन पदोन्नति के लिए इंटरव्यू का काम चलता रहा। कोई 37 हैड कांस्टेबलों को एएसआई बना दिया। इन दोनों दिनों में बादशाह का कलश चमक उठा। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जिस हत्याकांड में चार-पांच लोगों की मौत हो गई और 20 से भी ज्यादा महिला व पुरुषों के हाथ-पांव तोड़ दिए गए। उस वारदात में आईजी चार दिन बाद मौके पर गए। खबर तो यहां तक है कि मेड़ता थाना प्रभारी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का रिश्तेदार है। इसीलिए आईजी घटना के तुरंत बाद मौके पर नहीं गए। पदोन्नत हुए अधिकारी कह सकते हैं कि नए पद पर सरकार नियुक्ति देगी, तब ही जाएंगे। असल में अजमेर में राजनेताओं और अधिकारियों का ऐसा गठजोड़ बन गया है, जिसमें पद से ज्यादा लूट का महत्त्व है।
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