Tuesday 30 November 2021

अजमेर के विनोद चौहान अहमदाबाद में निभा रहे हैं सेवक की भूमिका।सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में जरूरतमंदों को चिकित्सा सुविधा निशुल्क उपलब्ध करवाते हैं।

राजस्थान के बहुत से लोग गुजरात के अहमदाबाद में जाकर अपना इलाज करवाते हैं। धनाढय़ लोग तो पैसे के दम पर अपना इलाज करवा लेते हैं, लेकिन जो लोग गरीब हैं और उनके पास कोई मेडिक्लेम पॉलिसी भी नहीं है, उन्हें अहमदाबाद जैसे महानगर में अने परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन यदि आपके साथ विनोद चौहान खड़े हैं तो फिर आपको न डॉक्टर और न इलाज की चिंता करनी चाहिए। आप यदि महंगे प्राइवेट अस्पताल में भी भर्ती हैं तो अस्पताल का खर्च भी विनोद चौहान गुजरात सरकार से भरपाई करवाएंगे। आप यदि सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं तो डॉक्टरकी उपलब्धता से लेकर दवाइयों तक का इंतजाम विनोद चौहान ही करेंगे। गुजरात के राजभवन से जुड़े होने के कारण विनोद का अहमदाबाद में खासा प्रभाव है। चूंकि वे सेवा की भावना से काम करते हैं, इसलिए सरकार में भी विनोद के सुझावों को गंभीरता से लिया जाता है। भले ही मन में हिन्दुत्व के प्रति गहरी आस्था है, लेकिन जब मानव सेवा की बात आती है तो धर्म कोई मायने नहीं रखता है। अहमदाबाद और गुजरात में ऐसे बहुत से मुस्लिम परिवार हैं, जिनके विनोद चौहान मददगार बने हैं। विनोद स्वाभिमान ग्रुप से ही जुड़े हैं, यह ग्रुप जरूरतमंद की मदद के लिए तत्पर रहता है। विनोद ने बताया कि कोरोना काल में लोगों को चिकित्सा सुविधा के अलावा राशन की सामग्री तक घर पर ही पहुंचाई गई। सेवा का ऐसा जज्बा है कि रात दिन सेवा की भावना से ही काम करते हैं। विनोद अजमेर के रहने वाले हैं। लेकिन पिछले 15 वर्ष से अहमदाबाद में ही रह रहे हैं। अजमरे नगर परिषद के सभापति रहे स्वर्गीय वीर कुमार को अपना आदर्श मानने वाले विनोद चौहान को तब और संतुष्टी मिलती है, जब वे अहमदाबाद में अजमेर के किसी नागरिक के मददगार बनते हैं। अजमेर के लोगों को तो अहमदाबाद में आवास की सुविधा भी नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाती है। ऐसे सेवाभावी विनोद चौहान से मोबाइल नम्बर 9537032500 पर संपर्क किया जा सकता है। 
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दिल्ली की सीमाओं को अब जाम रखने की जरुरत नहीं। एमएसपी के लिए किसानों को तपस्या करने की जरुरत-रामपाल जाट किसान नेता।एक अनाज की कई किस्म, एमएसपी की गारंटी कैसे संभव-अमित गोयलन्यूज 18 चैनल पर हुई सार्थक बहस।

29 नवंबर को रात 8 बजे न्यूज-18 (राजस्थान) न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम लाव डिबेट के प्रोग्राम में जर्नलिस्ट ब्लॉगर के तौर पर मैं भी शामिल हुआ। प्रोग्राम के एंकर वरिष्ठ पत्रकार जेपी शर्मा चाहते थे कि डिबेट में भाग लेने वाले वक्ता कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसान आंदोलन पर अपनी राय रखें। सबसे पहले राजस्थान के प्रमुख किसान नेता और किसान संयुक्त मोर्चा के प्रतिनिधि रामपाल जाट को बोलने का अवसर दिया। मुझे पता है कि जाट पिछले लंबे अर्से से किसानों की मांगों के लिए राजस्थान में संघर्ष कर रहे हैं। जाट ने भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की किसान विरोधी नीतियों की भी आलोचना की है। एक वर्ष पहले जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कृषि सुधार कानून बनाए तो कानूनों का विरोध करने वालों में रामपाल जाट सबसे आगे थे। राजस्थान से जुड़ी दिल्ली की सीमा पर जाट ने जाम लगाया। जाट ने अपने किसान साथियों के साथ जो संघर्ष किया उसी का परिणाम रहा कि केंद्र सरकार को कानून वापस लेने पड़े। यही वजह रही कि जेपी शर्मा के प्रोग्राम में सभी की नजरें जाट की प्रतिक्रिया पर थी। जाट ने बेबाकी के साथ कहा कि जब कानून वापस हो गए हैं, तब दिल्ली की सीमाओं को जाम रखने की कोई जरूरत नहीं है। कानून वापसी को लेकर ही आंदोलन शुरू किया गया था और मांग पूरी हो गई है तो फिर आंदोलन जारी रखना उचित नहीं है। कोई किसान नहीं चाहता कि उसकी वजह से आम लोगों को परेशानी हो। मौजूदा समय में दिल्ली की सीमाओं पर जाम लगाए रखने से लाखों लोग परेशान हो रहे हैं। जहां तक एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर गारंटी का सवाल है तो इसके लिए हम लंबे अर्से से संघर्ष कर रहे हैं। पिछले 11 वर्षों से तो मैं स्वयं ही मांग करता आ रहा हंू। यह मांग यूपीए सरकार के समय से ही हो रही है। यह मांग किसानों के हित से जुड़ी है, इसलिए किसानों को तपस्या करनी होगी। और किसान में इतना सामर्थ्य है कि वह अपनी तपस्या से सरकार को झुका सकता है। जाट ने कहा कि एमएसपी पर गारंटी के लिए हमें अलग तरीके से आंदोलन करना पड़ेगा। रामपाल जाट के इस कथन के बाद बहस की कोई गुंजाइश नहीं थी क्योंकि जेपी शर्मा ने जो सवाल उठाया था उसका सही जवाब मिल गया। लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता आरआर तिवारी को तो पार्टी लाइन पर ही बोलना था, इसलिए उन्होंने अपनी ऊंची आवाज में वो ही कहा जो राहुल गांधी और अशोक गहलोत कह रहे हैं। यानी राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठा रहे। वही इस प्रोग्राम में भाजपा के तेज तर्रार प्रवक्ता अमित गोयल ने महत्त्वपूर्ण मुद्दा रखा। गोपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चाहते हैं कि किसानों को उनकी लागत से ज्यादा का भुगतान मिले। इसलिए मोदी सरकार ने 22 प्रकार के खाद्यानों पर एमएसपी को बढाया है। सरकार अपने स्तर पर खाद्यानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रक्रिया को अपने स्तर पर मजबूत कर रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि एमएसपी पर गारंटी कैसे दी जा सकती है। गारंटी देने का मतलब है कि निर्धारित मूल्य से कम में खरीद नहीं होगी। सरकार अच्छी क्वालिटी पर एमएसपी निर्धारित करती है, लेकिन हम देखते हैं कि बाजार में गेहूं की कई किस्म होती है। खुले बाजार में गेहूं 15 रुपए किलो भी मिलता है तो एमएसपी से अधिक 25 रुपए किलो में भी मिल रहा है। अच्छी क्वालिटी वाले गेहूं का मूल्य जब 25 रुपए मिल रहा है तो वह एमएसपी पर सस्ती दर में क्यों बेचेगा? इसी प्रकार 15 रुपए वाला गेहूं 22 रुपए में क्यों खरीदा जाएगा? गोयल ने कहा कि एमएसपी पर गारंटी देने से पहले ऐसे मुद्दों पर विचार विमर्श की जरूरत है। इस प्रोग्राम में मैंने किसान नेता रामपाल जाट की बात को ही आगे बढ़ाया। किसान आंदोलन के पीछे अनेक राजनीतिक दल हैं जो किसानों के कंधे पर बंदूक रख कर अपने स्वार्थ पूरे करने में लगे हुए हैं। 
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छह महिला सांसदों की फोटो ट्विटर पर पोस्ट कर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने लोकसभा को बताया आकर्षक जगह।इसमें एनसीपी के प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी शामिल।65 वर्ष की उम्र में भी आदत से मजबूर है शशि थरूर।

कहा तो यही जाता है कि उम्र के हिसाब से व्यक्ति सीखता भी है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि 65 वर्ष की उम्र पार करने के बाद भी कांग्रेस सांसद शशि थरूर अपनी आदतों से मजबूर हैं। 29 नवंबर को शशि थरूर ने 6 महिला सांसदों के साथ स्वयं का सेल्फी नुमा फोटो ट्विटर पर पोस्ट किया है। इसका फोटो कैप्शन है-कौन कहता है कि लोकसभा काम करने के लिए आकर्षक जगह नहीं है? शशि थरूर ने किस मानसिकता से इस फोटो को पोस्ट किया है, यह तो वे ही जाने, लेकिन इन 6 महिला सांसदों में राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी शामिल हैं। इसके अलावा परनीत कौर, थमीजाची थंगापंडियन, मिमी चक्रवर्ती, नुसरत जहां और ज्योतिमणि भी हैं। हालांकि अभी शरद पवार से लेकर सभी 6 महिलाओं की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद शशि थरूर ने यह फोटो हटा लिया है। थरूर ने भले ही यह फोटो हटा लिया हो, लेकिन फोटो को पोस्ट करने से थरूर की मानसिकता तो जाहिर होती ही है। सब जानते हैं कि थरूर पर अपनी तीसरी पत्नी सुनंदा पुष्कर की हत्या का आरोप भी लग चुका है। शशि थरूर की रंगीन मिजाजी के किस्से आम हैं, लेकिन इसके बावजूद भी 6 महिला सांसदों ने सेल्फी वाली फोटो खिंचवाने की हिम्मत दिखाई। संभवत: महिला सांसदों की हिम्मत को देखते हुए ही शशि थरूर ने लोकसभा को आकर्षक जगह बता दिया। जबकि संसद को तो लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है। शशि थरूर की सोच लोकतंत्र के मंदिर को लेकर कैसी है, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। एक तरफ नरेंद्र मोदी हैं जो लोकतंत्र के मंदिर की सीढिय़ों पर सिर झुकाते हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस के सांसद शशि थरूर है जो लोकसभा को काम करने के लिए आकर्षक जगह मानते हैं। यदि शशि थरूर कांग्रेस के सांसद नहीं होते तो ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले राहुल गांधी अब तक तीखी प्रतिक्रिया दे देते। राहुल गांधी प्रतिक्रिया दे या नहीं, लेकिन शशि थरूर को अपनी आदतों में सुधार करने की जरूरत है। यह माना कि थरूर शुरू से ही पश्चिमी संस्कृति में पले बढ़े हैं, लेकिन अब थरूर भारत की राजनीति में सक्रिय हैं। थरूर की बुद्धिमता में कोई कमी नहीं है, इस लिए तिरुवनंतपुरम संसदीय क्षेत्र की जनता दो बार से थरूर को ही अपना सांसद चुन रही है। सवाल यह भी ऐसी मानसिकता का प्रदर्शन कर थरूर तिरुवनंतपुरम की जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहे हैं?
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ट्विटर के सीईओ बने पराग अग्रवाल का जन्म अजमेर के सरकारी जेएलएन अस्पताल में हुआ। तब परिवार वाले किराये के मकान में रहते थे।

इसे संघर्ष की सफल कहानी ही कहा जाएगा कि जो पराग अग्रवाल ट्विटर के सीईओ उनका जन्म 21 मई 1984 को राजस्थान के अजमेर शहर के सरकारी जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में हुआ था। तब पराग के पिता रामगोपाल अग्रवाल मुंबई में बीएमआरसी में कार्यरत थे। लेकिन तब उनके माता-पिता यानी पराग के दादा-दादी अजमेर के धान मंडी क्षेत्र में किराये के मकान में रहते थे। तब रामगोपाल अग्रवाल की ऐसी स्थिति नहीं थी कि वे मुंबई के किसी प्राइवेट अस्पताल में पत्नी की डिलीवरी करवाएं। यही वजह रही कि अग्रवाल ने पत्नी को अपने माता-पिता के पास अजमेर भेजा और डिलीवरी के लिए जेएलएन अस्पताल में भर्ती करवाया। तब किसी को पता नहीं था कि सरकारी अस्पताल में जन्म लेने वाला यह शिशु एक दिन दुनिया की सबसे ताकत संस्था ट्विटर का सीईओ बनेगा। पराग अग्रवाल ने अपनी बुद्धिमता से भारत का ही नहीं बल्कि अजमेर का नाम भी दुनिया भर में किया है। अग्रवाल समाज अजमेर के अध्यक्ष शैलेंद्र अग्रवाल और महासचिव प्रवीण अग्रवाल ने बताया कि पराग के माता-पिता रामगोपाल अग्रवाल और शशि अग्रवाल 4 दिसंबर को अजमेर आ रहे हैं। अजमेर आगमन पर अग्रवाल दम्पत्ति का भव्य स्वागत किया जाएगा। मालूम हो कि पराग अग्रवाल आई आई टी बॉम्बे में कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में बी टेक की पढ़ाई की और इसके बाद स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरी की। पराग अग्रवाल लगभग 10 वर्षों से ट्विटर कंपनी से जुड़े हुए हैं उन्होंने एक विशेष सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में ट्विटर ज्वाइन किया था ट्विटर ने उन्हें 2018 में चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर बनाया था। ट्विटर से पहले पराग अग्रवाल माइक्रोसॉफ्ट याहू और एटीएंडटी लैब्स के साथ काम कर चुके हैं। पराग अग्रवाल के परिवार के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414280962 पर शैलेंद्र अग्रवाल से ली जा सकती है। 
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Monday 29 November 2021

राजस्थान लोक सेवा आयोग सूचना आयोग जैसे संस्थानों के सदस्यों को भी अब पेंशन मिलेगी।परीक्षा से पहले प्रश्न पत्र आउट होने से सरकार की छवि भी खराब होती है-सीएम अशोक गहलोत।कार्यकाल समाप्त होने से तीन दिन पहले सरकारी भर्तियों की प्रक्रिया में सुधार के सुझाव दिए-भूपेंद्र यादव ने।

29 नवंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अजमेर स्थित राजस्थान लोक सेवा आयोग के नए ब्लॉक का शिलान्यास किया। इस नए ब्लॉक पर 3 करोड़ 73 लाख की राशि खर्च की जाएगी। इससे आयोग के कामकाज को और गति मिलेगी। सीएम ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए शिलान्यास किया और शिलान्यास समारोह को संबोधित भी किया। सीएम ने अपने अंदाज में कहा कि यह शिलान्यास समारोह नहीं बल्कि आयोग के अध्यक्ष डॉ. भूपेंद्र यादव का विदाई समारोह भी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि डॉ. यादव करीब 14 माह तक आयोग में काम करने के बाद 2 दिसंबर को अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। सीएम गहलोत ने डॉ. यादव के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। समारोह में गहलोत ने कहा कि राजस्थान लोक सेवा आयोग सूचना आयोग जैसे संस्थानों में सदस्य के तौर पर सेवाएं देने वालों को पेंशन देने को लेकर बार बार आग्रह आ रहे हैं। उन्होंने माना कि सरकारी अधिकारी जब आयोग में सदस्य बनते हैं तो उन्हें सरकार की पेंशन मिलती है। लेकिन जब गैर सरकारी सदस्य मुक्त होते हैं तो उन्हें पेंशन नहीं मिलती। आयोग ने नियुक्त होने के बाद दूसरी नौकरी भी संभव नहीं होती है। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे सदस्यों को पेंशन देने के प्रस्ताव पर सहमत हंू। सरकार जल्द ही पेंशन की राशि का निर्धारण करेगी। सीएम ने कहा कि कि राज्य लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ कर्मचारी चयन बोर्ड की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकारी नौकरियां देने में इन दोनों ही संस्थानों को ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम करने की जरूरत है। जब कभी परीक्षा से पूर्व प्रश्न पत्र लीक होने की खबरें आती हैं तो इससे सरकार की छवि भी खराब होती है। गहलोत ने कहा कि परीक्षा की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि ताकि परीक्षार्थी को विश्वास हो सके। गहलोत ने माना कि आयोग की भर्तियों का वार्षिक कैलेंडर होना चाहिए, लेकिन यह तभी संभव है जब राज्य सरकार भी भर्तियों के बारे में सही समय पर आवेदन भेजे। इस विषय पर विचार विमर्श करने की जरूरत है। गहलोत ने बताया कि उनके कार्यकाल में अब तक एक लाख 92 हजार नौकरियां दी जा चुकी हैं। गहलोत ने कहा कि सरकारी कार्मिकों की पदोन्नति को लेकर होने वाली डीपीसी पर कई  बार विवाद की स्थिति होती है। उन्होंने कहा कि यह कोई अहम का मुद्दा नहीं है। अब तक डीपीसी आयोग के अजमेर स्थित मुख्यालय पर ही होती रही हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि आयोग का एक स्थान जयपुर स्थित सचिवालय परिसर में निर्धारित हो, क्योंकि डीपीसी में सरकार के बड़े अधिकारियों को भी शामिल होना होता है, इसलिए यदि सचिवालय परिसर में आयोग का दफ्तर होगा तो डीपीसी की बैठकें आसानी से हो सकेगी। इसके लिए जयपुर में आयोग का स्थाई स्टाफ भी नियुक्त किया जा सकता है। इससे पहले समारोह में मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने कहा कि आयोग में परीक्षार्थी का मूल्यांकन मौलिक आधार पर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक ही विषय पर दो जांचकर्ताओं का नजरिया अलग अलग हो सकता है। एक जांचकर्ता परीक्षार्थी को दस में से 6 नंबर जबकि दूसरा जांचकर्ता 8 नंबर देता है। आयोग में ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि जांच का दायरा एक समान हो। आर्य ने कहा कि कई बार साक्षात्कार के समय अभ्यर्थी अपनी योग्यता के अनुरूप जवाब नहीं दे पाता है। उसे साक्षात्कार का माहौल  भय वाला लगता है। ऐसे में आयोग को चाहिए कि साक्षात्कार की  प्रक्रिया  को अभ्यर्थी के अनुकूल बनाया जाए। आर्य ने कहा कि आयोग के सदस्य कई बार यह मांग कर चुके हैं कि उनका स्तर हाईकोर्ट के जज के बराबर किए जाए। उन्होंने कहा कि इस मामले में सरकार को निर्णय लेना है।  
यादव ने दिए सुझाव:
आयोग के अध्यक्ष डॉ. भूपेंद्र यादव ने आयोग के कामकाज की जानकारी देते हुए भर्ती प्रक्रिया में सुझाव भी दिए। उन्होंने बताया कि अभी आयोग में तीन प्रकार से चयन होता है। प्रथम मेरिट, द्वितीय लिखित परीक्षा और साक्षात्कार तथा तृतीय सिर्फ साक्षात्कार। यादव ने कहा कि इन तीनों प्रक्रियाओं में सुधार की जरूरत है। ताकि अधिक से अधिक योग्य व्यक्ति का चयन हो सके। उन्होंने कहा कि यूपीएससी की तरह आयोग का वार्षिक कैलेंडर तभी बन सकता है, जब सरकार से निर्धारित समय पर भर्तियों की स्वीकृति प्राप्त हो। 
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कृषि कानूनों की वापसी के समय संसद में हंगामा क्यों। किसान विपक्षी दलों की इस राजनीति को समझें।

29 नवंबर को लोकसभा में जब सरकार की ओर से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया हो रही थी, तब कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने जमकर हंगामा किया। इससे कानून वापसी के समय लोकसभा में चर्चा नहीं हो सकी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बार बार कहा कि वे कानून वापसी के प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी विपक्षी दलों के सांसद जोर जोर से चिल्लाते रहे। सवाल उठता है कि कृषि कानूनों की वापसी के समय विपक्षी सांसदों ने हंगामा क्यों किया? विपक्षी दलों की इस राजनीति को किसानों को समझना चाहिए। आखिर कौन लोग हैं जो किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपने स्वार्थ पूरे कर रहे हैं। पिछले एक वर्ष से मांग की जा रही थी कि सरकार कृषि कानूनों को वापस लें, लेकिन जब कानूनों को वापस लेने का प्रस्ताव रखा गया तो विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया। देश को यह जानने का अधिकार है कि सरकार ने किन कारणों से कानूनों को वापस लिया। लेकिन विपक्षी दल के सांसद देशवासियों को अपने अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। पिछले दिनों जब गुरु नानक देव जी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी, तब दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के नेताओं ने कहा कि संसद में कानून वापसी के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा। ऐसे नेताओं का कहना रहा कि हमें प्रधानमंत्री की घोषणा पर भरोसा नहीं है। किसानों के नेताओं ने कुछ भी कहा हो, लेकिन सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही कृषि कानूनों को वापस लेने का प्रस्ताव रख दिया। सांसदों के हंगामे के बीच लोकसभा में कानून वापसी का प्रस्ताव मंजूर भी हो गया। यानी प्रधानमंत्री ने जो घोषणा की थी उस पर सरकार ने अमल कर दिया है। दिल्ली की सीमाओं पर जो किसान अभी भी जाम लगा कर बैठे हैं, वे माने या नहीं लेकिन कुछ लोग किसानों की आड़ में राजनीति कर रहे हैं। सब जानते हैं कि एक वर्ष पहले जब कृषि कानूनों को संसद में मंजूर किया गया, तब भी सांसदों ने हंगामा किया था। इसलिए मंजूरी के समय भी चर्चा नहीं हो सकी और अब जब कानून को वापस लिया जा रहा है, तब भी विपक्ष ने चर्चा नहीं होने दी है। असल में विपक्षी दलों का मकसद किसानों की मदद करना नहीं है। विपक्षी दलों का मकसद किसानों की आड़ में अपनी राजनीति करना है। सवाल यह भी है कि जब संसद से कृषि कानून रद्द हो गए हैं, तब दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन क्यों किया जा रहा है। देश का आम किसान और नागरिक अब आंदोलन को चलाने वालों के बारे में अच्छी तरह समझ गया है। 
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तो मुख्यमंत्री के सलाहकारों की स्थिति फारुख अफरीदी और लोकेंद्र शर्मा जैसी ही होगी। इसलिए सलाहकार बनने में विधायकों की रुचि नहीं है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि उन्होंने भले ही 6 विधायकों को अपना सलाहकार घोषित कर दिया हो, लेकिन ऐसे विधायकों के कोई सरकारी आदेश नहीं निकाले हैं। मैं मुख्यमंत्री हूं और किसी भी व्यक्ति का अपना सलाहकार नियुक्त कर सकता हंू। मैं सरकार चला रहा हूं और मुझे भी नियम कायदों की जानकारी है। मंत्रिमंडल में तीन मंत्रियों की नियुक्ति के बाद किसी भी विधायक को लाभ का पद नहीं दिया जा सकता। इसमें कोई दो राय नहीं कि अशोक गहलोत बहुत चतुर मुख्यमंत्री हैं, तभी तो मंत्रिमंडल फेरबदल वाले दिन ही 6 विधायकों को मुख्यमंत्री का सलाहकार बनाने की घोषणा भी कर दी। इन विधायकों ने अखबारों में छपी खबर के आधार पर ही स्वयं को मंत्री मान लिया। सलाहकार बने विधायकों के अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मंत्री के तौर पर स्वागत समारोह भी होने लगे। अखबारों में खबरें भी छपी, लेकिन तब किसी ने नहीं कहा कि सलाहकारों को मंत्री का दर्जा नहीं मिलेगा। वाकई ऐसी चतुराई अशोक गहलोत ही कर सकते हैं। लेकिन जब राज्यपाल ने सलाहकारों की नियुक्ति का जवाब तलब किया तो 28 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गहलोत का कहना पड़ा कि सलाहकारों के कोई सरकारी आदेश नहीं है। यानी जिन 6 विधायकों को मुख्यमंत्री का सलाहकार घोषित किया गया, उन्हें वे ही सुविधाएं मिलेंगी जो एक विधायक को मिलती है। यानी मंत्री वाली सुविधा सलाहकारों को नहीं मिलेंगी। सवाल उठता है कि फिर सलाहकार बनने का क्या फायदा? सीएम गहलोत ने इससे पहले जनसंपर्क सेवा के रिटायर्ड अधिकारी फारुख अफरीदी और सोशल मीडिया के जानकार लोकेंद्र शर्मा को भी अपना ओएसडी घोषित कर रखा है। इन दोनों ओएसडी को भी सरकार से कोई सुविधा नहीं मिलती, लेकिन मुख्यमंत्री का ओएसडी होने का रुतबा तो है ही। जबकि विधायकों का रुतबा तो पहले ही बहुत होता है। अब देखना होगा कि सलाहकार बने विधायकों की क्या प्रतिक्रिया होती है। 28 नवंबर तक तो ऐसे सलाहकार स्वयं को मंत्री ही मान रहे थे। अच्छा हुआ कि सीएम ने जल्द ही गलतफहमी दूर कर दी। अब संसदीय सचिव का आकर्षण भी खत्म हो गया है। क्योंकि संसदीय सचिवों को भी सरकार से कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं दी जा सकती है। ऐसे में देखना होगा कि जिन विधायकों को मंत्री नहीं बनाया गया है, उन्हें किस प्रकार संतुष्ट किया जाता है। सीएम गहलोत को विधायकों को संतुष्ट करने की सब तरकीब आती है। राज्यमंत्री की शपथ लेने के बाद भी संतुष्ट नहीं होने वाले विधायक राजेंद्र सिंह गुढा की कड़वी बातों का भी गहलोत बुरा नहीं मान रहे हैं। मालूम हो कि गुढा ने अभी तक भी आवंटित विभागों का कार्यग्रहण नहीं किया है। 
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प्रियंका गांधी रणथम्भौर में कर रही है जंगल सफारी और राजस्थान के बेरोजगार मुलाकात करने के लिए लखनऊ में कांग्रेस दफ्तर के बाहर बैठे हैं।अच्छा हुआ कांग्रेसी होने का टैग मिट गया-उपेन यादव।मदरसा पैराटीचर्स भी प्रियंका गांधी के पीछे।

29 नवंबर को लगातार तीसरा दिन रहा, अब राजस्थान के बेरोजगार युवक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कांग्रेस दफ्तर के बाहर धरने पर बैठे रहे। ये युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी से मुलाकात करना चाहते हैं। 27 नवंबर को प्रियंका गांधी लखनऊ में ही थीं, लेकिन उन्होंने राजस्थान के बेरोजगारों से बात नहीं की। अब प्रियंका गांधी और उनका परिवार राजस्थान के रणथंभौर में जंगल सफारी का आनंद लेने के लिए आ गया है। तय कार्यक्रम के अनुसार प्रियंका गांधी 30 नवंबर को रणथम्भौर से लौटेंगी। यानी लखनऊ में बैठे बेरोजगारों का 30 नवंबर तक प्रियंका गांधी से मिलने का कोई चांस नहीं है। वहीं बेरोजगार युवकों का नेतृत्व कर रहे राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव ने 29 नवंबर को बताया कि प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद ही लखनऊ से वापसी होगी। यादव ने कहा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री बेरोजगारों की समस्याओं का समाधान नहीं कर रहे हैं, इसलिए उन्हें प्रियंका गांधी से मिलने के लिए लखनऊ आना पड़ा है। जयपुर में भी पिछले डेढ़ माह से बेमियादी धरना दिया जा रहा है। युवकों के पास पैसा नहीं है, इसलिए वे रात भी खुले में गुजारते हैं। दिन में लखनऊ के कांग्रेस दफ्तर के बाहर धरना देते हैं। उन्हें उम्मीद है कि प्रियंका गांधी उनकी मांगों को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निर्देश देंगी। उपेन यादव ने कहा कि गत विधानसभा के चुनाव में हमने कांग्रेस का खुलकर समर्थन किया था, तब भाजपा नेताओं ने हम पर राजनीति करने का आरोप लगाया और अब जब प्रियंका गांधी से मिलने के लिए आए हैं तो सीएम गहलोत हमें भाजपा का समर्थक बता रहे हैं। 28 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम ने हमारे लिए जो कुछ भी कहा उससे कांग्रेसी होने का टैग मिट गया है। मैं हमेशा बेरोजगारों के लिए संघर्ष करता हंू। गत विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सचिन पायलट ने भरोसा दिलाया था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर सरकारी भर्तियों में विसंगतियों को हटाया जाएगा तथा भर्ती प्रक्रिया को तेज किया जाएगा। लेकिन कांग्रेस की सरकार को तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी बेरोजगारों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। हम तीन वर्ष से लगातार संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन गहलोत सरकार में सुनवाई नहीं हो रही है। उन्हें मजबूरन प्रियंका गांधी से मिलने के लिए लखनऊ आना पड़ा। लखनऊ आने का इतना असर तो हुआ ही है कि सीएम गहलोत ने हमारे आंदोलन का जिक्र तो किया। उपेन ने कहा कि सैकड़ों युवा लखनऊ की सड़कों पर है। सर्द रात में खुले में सोना पड़ रहा है, सीएम गहलोत को यह नहीं भूलना चाहिए कि दो वर्ष बाद विधानसभा के चुनाव हैं। युवाओं के दम पर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी, अब यदि युवाओं के साथ विश्वासघात किया जाएगा तो कांग्रेस का भी वही हश्र होगा तो भाजपा का हुआ था।
रणथम्भौर में मदरसा पैराटीचर्स भी सक्रिय:
प्रियंका गांधी 28 नवंबर को जब राजस्थान के रणथंभौर में जंगल सफारी के लिए आई तो प्रदेश के मदरसा पैराटीचर्स भी सक्रिय हो गए। ऐसे शिक्षक प्रियंका से मिलने के लिए रणथम्भौर के आसपास ही मंडरा रहे हैं। प्रियंका और शिक्षक के बीच लुका छिपी का खेल चल रहा है। शिक्षकों को प्रियंका के आने की सूचना मिलती है तो जंगल के उसी क्षेत्र में पहुंच जाते हैं। पैराटीचर्स भी गहलोत सरकार की नीतियों के बारे में प्रियंका को बताना चाहते हैं। 
S.P.MITTAL BLOGGER (29-11-2021)
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अखबार में विज्ञापन देकर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पूनिया के खिलाफ टिप्पणी करने से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का अजमेर दौरा विवादों में।भाजपा संगठन राजे के दौरे को लेकर प्रदेश नेतृत्व को रिपोर्ट भी भेजेगा।

अजमेर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के पूर्व अध्यक्ष और नसीराबाद से भाजपा विधायक रामस्वरूप लांबा के समर्थक माने जाने वाले गणेश चौधरी द्वारा एक अखबार में विज्ञापन देकर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के विरुद्ध प्रतिकूल टिप्पणी करने से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का अजमेर दौरा विवादों में आ गया है। गंभीर बात यह है कि गणेश चौधरी अपने विज्ञापन पर कायम हैं। चौधरी ने यह विज्ञापन 26 नवंबर को वसुंधरा राजे के अजमेर आगमन पर दिया। इस विज्ञापन में सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाकर वसुंधरा राजे को भाजपा की कमान सौंपने की मांग की गई। चौधरी ने कहा कि राजस्थान में वसुंधरा राजे भाजपा को जीत दिलवा सकती है। चौधरी ने बताया कि वे वर्ष 2010 से 2012 तक अजमेर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष रहे। पदभार संभालने पर बैंक 10 करोड़ रुपए के घाटे में था, लेकिन उन्होंने दो करोड़ रुपए के मुनाफे में बैंक को ला दिया। चौधरी ने माना कि भूमि से जुड़े धोखाधड़ी के एक प्रकरण में उन्हें छह माह तक अजमेर की सेंट्रल जेल में भी रहना पड़ा था। राजनीतिक कारणों के कारण  उन पर धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया। ऐसे और भी मुकदमें उन पर हुए हैं। राजनीति में ऐसा चलता रहता है, लेकिन वे पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को अपना नेता मानते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार गणेश चौधरी के विज्ञापन को भाजपा संगठन ने गंभीरता से लिया है। राजे के अजमेर दौरे में ऐसे कार्यकर्ता भी सक्रिय रहे, जिन पर अनुशासनहीनता की कार्यवाही हुई है। यही वजह है कि अब राजे के अजमेर दौरे को लेकर भाजपा संगठन एक रिपोर्ट प्रदेश नेतृत्व को भेजेगा। इस रिपोर्ट में सोशल मीडिया पर पोस्ट फोटोज और अखबारों में छपी खबरों का समावेश भी किया जाएगा। हालांकि राजे ने अपने दौरे को शोक संतप्त परिवारों के संवेदना प्रकट करने वाला बताया था, लेकिन समर्थकों ने जमकर जश्न मनाया। जिन भाजपा नेताओं ने वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए राजनीतिक लाभ प्राप्त किया, उन्होंने राजे का जगह जगह शानदार स्वागत किया। इसलिए राजे के दौरे को शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है। राजे इससे पहले भी अपने जन्म दिन पर शक्ति प्रदर्शन कर चुकी हैं।
राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देशों की अवहेलना:
प्राप्त जानकारी के अनुसार वसुंधरा राजे भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की लगातार अवहेलना कर रही हैं। राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना रखा है, लेकिन राजे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय नहीं है। राजे की रुचि राजस्थान की राजनीति में है। राजे दो बार मुख्यमंत्री रही हैं, लेकिन वे दोनों बार भाजपा की सरकार रिपीट नहीं करवा सकी। यानी राजे जब जब भी मुख्यमंत्री बनी तब तब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। राजस्थान में गत 25 वर्षों से एक बार भाजपा और कांग्रेस सरकार बनने की परंपरा रही है। राजे को पता है कि इस बार भाजपा की बारी है, इसलिए वे चुनाव से पूर्व सक्रिय हो गई है। कभी जन्मदिन के बहाने तो कभी शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करने की आड़ में। शक्ति प्रदर्शन कर रही हैं। राजे केंद्रीय मंत्री और 10 वर्ष तक मुख्यमंत्री रही हैं, इसलिए भाजपा में समर्थकों की भरमार है।
S.P.MITTAL BLOGGER (28-11-2021)
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लखनऊ की सड़कों पर रह कर अशोक गहलोत सरकार का विरोध कर रहे हैं राजस्थान के बेरोजगार युवक।प्रियंका गांधी से मिलने तक लखनऊ में ही रहेंगे। भर्तियों में विसंगतियां और नई भर्ती नहीं होने से युवा वर्ग परेशान-उपेन यादव।

राजस्थान बेरोजगार एकीकृत महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव के नेतृत्व में दो सौ से भी ज्यादा बेरोजगार युवक 28 नवंबर को भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डेरा डाले रहे। यादव ने बताया कि 27 नवंबर को युवाओं ने कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन लखनऊ के कांग्रेस कार्यालय में उन्हें प्रवेश नहीं दिया। कार्यालय के बाहर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने राजस्थान के युवाओं के साथ बदसलूकी भी की। यादव ने कहा कि वे प्रियंका गांधी को कांग्रेस शासित राजस्थान में बेरोजगारों की स्थिति से अवगत करवाना चाहते हैं। महासंघ ने बेरोजगार की समस्याओं को कई बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत   के समक्ष रखा है। अभी डेढ़ माह से जयपुर में धरना दिया जा रहा है, लेकिन हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बेरोजगारों ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी। तब राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर बेरोजगारों की समस्याओं का समाधान कर दिया जाएगा। राहुल के आश्वासन के बाद ही विधानसभा चुनावों में बेरोजगारों ने कांग्रेस की सरकार का समर्थन किया, लेकिन कांग्रेस की सरकार बने तीन वर्ष गुजर जाने के आद अधिकांश मांगे पूरी नहीं हुई है। प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के बेरोजगारों के लिए जो मांग कर रही हैं, वे ही मांग राजस्थान के बेरोजगारों की है। चूंकि राजस्थान में अशोक  गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार बेरोजगारों की नहीं सुन रही है, इसलिए हमें प्रियंका गांधी से मिलने के लिए लखनऊ आना पड़ा है। प्रियंका गांधी से मिलने तक हम लखनऊ में ही रहेंगे। यादव ने बताया कि राजस्थान से आए सैकड़ों युवा बेरोजगार हैं, इसलिए लखनऊ की सड़कों पर ही ठहरे हुए हैं। रात भी खुले में गुजार रहे हैं। सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग कर स्नान आदि कर रहे हैं। हम अपने साधनों से लखनऊ आए हैं। राजस्थान के बेरोजगारों के सामने भूखों मरने की स्थिति है।
ये हैं प्रमुख मांगे:
नर्सिंग भर्ती 2013 के वंचित अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने, प्रयोगशाला सहायक भर्ती 2018 चिकित्सा विभाग की चयन सूची जारी करने, स्कूल व्याख्याता भर्ती 2018 में कम किए गए 689 पद जल्द से जल्द जोड़कर सूची जारी करने, रीट शिक्षक भर्ती 2021 में 5000 पदों पर विशेष शिक्षकों के पद निकालने, रीट शिक्षक भर्ती 2021 में 31 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने, शिक्षक भर्ती 2012 मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में प्रार्थना पत्र देने,  रीट शिक्षक भर्ती 2018 को पूरी करने, पंचायती राज एलडीसी भर्ती 2013 का नियुक्ति प्रक्रिया का कैलेंडर जारी, टेक्निकल हेल्पर, पंचायतराज जेईएन, कंप्यूटर अनुदेशक भर्ती, फस्र्ट ग्रेडएसेकंड ग्रेड (पीटीआई भर्ती के 461 पदों की संख्या बढ़ाकर 2000 पदों पर) की विज्ञप्तियां जारी करने, नीमराणा कमलादेवी परीक्षा केंद्र पर दर्ज 6 बेरोजगार अभ्यर्थियों के मुकदमे वापस लेने,  प्रतियोगी परीक्षा में गैर जमानती कानून का अध्यादेश लाने, चिकित्सा विभाग में नई भर्तियों की विज्ञप्तियां जारी करने, बाहरी राज्यों का कोटा कम करके प्रदेश के बेरोजगारों को प्राथमिकता देने, प्रतियोगी भर्ती परीक्षाओं में अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र गृह जिले में एवं परीक्षा केंद्र सरकारी स्कूलों में दिया जाए और सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई लगाने सहित प्रतियोगी भर्ती परीक्षाओं में बायोमेट्रिक वीडियोग्राफी अनिवार्य रूप से करवाने की मांग की है।
S.P.MITTAL BLOGGER (28-11-2021)
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जरूरतमंद लोगों का मददगार बन कर जीवन का आनंद ले रहे हैं बुजुर्ग गुप्ता दम्पत्ति, इसीलिए भोपाल नगर निगम के ब्रांड एम्बेसडर हैं।अनिल गुप्ता के मोबाइल नंबर 9406906373 और उर्मिला गुप्ता के 8989792158 पर संवाद कर आम भी प्रेरणा ले सकते हैं।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जब भी स्वच्छता अभियान और सफल जीवन की बात होतीे है तो नगर निगम के अधिकारी इच्छुक लोगों को न्यू मिनाल रेजीडेंसी में रहने वाले अनिल गुप्ता और उनकी पत्नी उर्मिला गुप्ता के पास भेज देते हैं। भोपाल नगर निगम के ब्रांड एम्बेसडर के रूप में पहचान बनाने वाले गुप्ता दम्पत्ति का 27 नवंबर को अजमेर में प्रवास रहा। इसी दौरान गुप्ता दम्पत्ति मेरे पुष्कर रोड स्थित निवास पर भी आए। भारत सरकार के उपक्रम भेल से सेवा निवृत्त 66 वर्षीय अनिल गुप्ता ने बताया कि वे देश के अनेक स्वयं सेवी संगठनों से जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि जब भी किसी व्यक्ति को किसी भी स्थान पर ब्लड, चिकित्सा उपकरण आदि की जरुरत होती है तो वे उपलब्ध करवा देते हैं। गुप्ता ने माना कि स्वार्थ के इस दौर में भी सेवार्थियों की संख्या ज्यादा है। कोरोना काल में उन्होंने देश में अपने संपर्कों से लोगों को राहत पहुंचाई है। इसी प्रकार 63 वर्षीय उर्मिला गुप्ता ने बताया कि वे घर का कोई सामान बाहर नहीं फेंकती है। यहां तक कि सब्जियों के छिलके अथवा बेकार की चाय की पत्ती भी नगर निगम के कचरा वाहन में नहीं डालती। सब्जी आदि के कचरे का उपयोग गमलों में करती है तो प्लास्टिक की केन, बोतल आदि से घर में ही गमले बना लेती हैं। घर आने वाले मेहमानों को भी उपहार में हाथ से बनाई खूबसूरत सामग्री ही देते हैं। वे सामुदायिक केंद्रों पर जाकर महिलाओं को प्रेरित भी करती हैं। महिलाओं के अधिकारों के लिए भ जागरुकता अभियान चलाती हैं। गुप्ता दम्पत्ति ने बताया कि जरुरतमंद लोगों की मदद कर वे जीवन का पूरा आनंद ले रहे हैं। ईश्वर जब तक स्वास्थ्य बनाए रखेगा, तब तक वे जरुरतमंद लोगों की मदद करते रहेंगे। बदलते हुए सामाजिक परिवेश में बुजुर्ग दम्पत्तियों को अनेक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन गुप्ता दम्पत्ति का मानना है कि संचार क्रांति का लाभ उठाकर आप स्वयं मुसीबत से बाहर निकल सकते हैं और जरूरत पड़ने पर लोगों की मदद भी कर सकते हैं। उर्मिला गुप्ता भी चिकित्सा विभाग से सेवानिवृत्त है। गुप्ता दम्पत्ति अपनी पेंशन से लोगों की मदद करते हैं। अनिल गुप्ता के हौंसले का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे भोपाल से कार ड्राइव कर अजमेर तक आ गए। गुप्ता दम्पत्ति के जीवन का यही तो आनंद है कि वे हर रंग का मजा ले रहे हैं। उन्हें तो बहुत आनंद आता है, जब कोई मदद प्राप्त करने वाला व्यक्ति धन्यवाद देने के लिए फोन करता है। गुप्ता दम्पत्ति चाहते हें कि अंतिम सांस तक लोगों के काम आए। घर परिवार की स्वच्छता को समझने के लिए मोबाइल नंबर 8989792158 पर उर्मिला गुप्ता तथा देशभर में किसी स्थान पर सहायता देने के लिए मोबाइल नम्बर 9406906373 पर अनिल गुप्ता से संपर्क किया जा सकता है। जिन लोगों का कभी भोपाल जाना हो तो वे गुप्ता दम्पत्ति से जरूर मिले। गुप्ता दम्पत्ति धीरे धीरे भोपाल की पहचान बनते जा रहे हैं। भोपाल का नगर निगम तो गुप्ता दम्पत्ति की लोकप्रियता का पूरा फायदा उठा रहा है। गुप्ता दम्पत्ति उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो बुजुर्ग अवस्था में निराश और हताश हो जाते हैं। 
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Sunday 28 November 2021

मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा के बयान से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और बसपा प्रमुख मायावती को अपनी राजनीतिक हैसियत का अंदाजा लगा लेना चाहिए।

राजस्थान मंत्रिमंडल का फेरबदल 21 नवंबर को हुआ। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजेंद्र सिंह गुढा को राज्यमंत्री की शपथ दिलवा कर सैनिक कल्याण सिविल डिफेंस और होमगार्ड का स्वतंत्र प्रभार का मंत्री बनाया। मंत्री बनने के बाद गुढा अपने गृह जिले झुंझुनूं के दौरे पर हैं। 25 नवंबर को एक स्वागत समारोह में गुढा ने कहा कि मैं बसपा से चुनाव जीतता हंू और फिर कांग्रेस में शामिल होकर मंत्री बन जाता हंू। कांग्रेस में जब दरी उठाने का समय आता है तो मैं कांग्रेस को छोड़ देता हंू। मैं दूसरी बार बहन जी (बसपा प्रमुख मायावती) से टिकट ले आया। क्या मेरे इस खेल में कोई कमी है? स्वागत समारोह में उपस्थित लोगों ने गुढा के इस कथन पर खूब ठहाके लगाए। लेकिन गुढा के इस कथन से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और बसपा प्रमुख मायावती को अपनी राजनीतिक हैसियत का अंदाजा लगा लेना चाहिए। इस कथन से पता चलता है कि गुढा जैसे राजनीतिज्ञ के सामने गहलोत और मायावती की क्या हैसियत है? सब जानते हैं कि 2008 में भी गुढ़ा बसपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ कर विधायक बने। तब भी गुढा ने मायावती को राजनीतिक धोखा दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। बसपा को धोखा देने के बाद 2018 में मायावती से दोबारा से टिकट हासिल कर लिया। अब मायावती बताएं कि बसपा को धोखा देने वाले को दोबारा से टिकट क्यों दिया? शायद मायावती तो इस सवाल का जवाब नहीं दे सकें, लेकिन गुढा और उनके समर्थकों की ओर से पूर्व में कहा गया है कि बसपा में पैसे देकर टिकट मिलते हैं। जब पैसे देकर टिकट लिए जाएंगे, तब गुढा जैसे विधायक कांग्रेस में शामिल होकर कीमत तो वसूलेंगे ही। गुढा ने अपने कथन से कांग्रेस को भी आईना दिखा दिया है। गुढा ने 21 नवंबर को मंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन अभी तक कार्यभार ग्रहण नहीं किया है। गुढा चाहते हैं कि उनके साथ जो पांच विधायक कांग्रेस में शामिल हुए हैं, उन्हें भी संसदीय सचिव या किसी निगम बोर्ड आदि का अध्यक्ष बना कर मंत्री का दर्जा दिया जाए। मालूम हो कि गुढा के साथ जोगिंदर सिंह अबाना, संदीप यादव, वाजिब अली, लाखन सिंह और दीपचंद खेडिय़ा ने भी बसपा छोड़ कर कांगे्रस की सदस्यता ग्रहण की थी। गुढा मंत्री का पद न संभाल कर सीएम गहलोत पर दबाव बना रहे हैं। गहलोत को इस बात का अहसास होगा चाहिए कि उन्होंने किस प्रवृत्ति के विधायकों को मंत्री बनाया है। अशोक गहलोत और मायावती को राजनीतिक हैसियत बताने वाला गुढा का वीडियो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है। 
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पूर्व सीएम वसुंधरा राजे किशनगढ़ में आरके मार्बल समूह की मेहमान बनी।मैं किसी यात्रा पर नहीं बल्कि शोक संतप्त परिवारों के यहां संवेदना प्रकट करने निकली हूं।

27 नवंबर को भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अजमेर के किशनगढ़ स्थित आरके मार्बल समूह की ग्रेनाइट कटर फैक्ट्री का अवलोकन किया। इस मौके पर उनके साथ समूह के अध्यक्ष अशोक पाटनी, उनके भाई सुरेश पाटनी और महावीर कोठारी आदि साथ थे। राजे ने ई रिक्शा में बैठकर लंबी चौड़ी फैक्ट्री का जायजा लिया। राजे ने माना कि आरके मार्बल समूह ने देश दुनिया में नाम कमाया है। इस समूह की वंडर सीमेंट भी देशभर में खूब बिक रही है। समूह की सफलता पर राजे ने पाटनी बंधुओं को बधाई दी। राजे 26 नवंबर की रात को ही किशनगढ़ पहुंच गई थी। राजे ने रात्रि विश्राम आरके समूह के गेस्ट हाउस में ही किया। रात्रि के समय ही राजे ने किशनगढ़ के निर्दलीय विधायक सुरेश टाक के निवास पर जाकर उनके पुत्र राहुल के विवाह पर बधाई भी दी। टाक के निवास पर भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे। उल्लेखनीय है कि टाक पूर्व में भाजपा में ही थे। भाजपा में रहते हुए टाक के राजे से आत्मीय संबंध रहे। आरके मार्बल समूह परिवार के साथ ब्रेकफास्ट करने के बाद राजे हेलीकॉप्टर से सलेमाबाद स्थित निंबार्क पीठ पहुंची। यहां पीठ के आचार्य श्याम शरण महाराज से आशीर्वाद ग्रहण किया। किशनगढ़ में मीडिया से संवाद करते हुए राजे ने कहा कि वे किसी यात्रा पर नहीं निकली हैं। वे तो शोक संतप्त परिवारों के यहां संवेदना प्रकट करने जा रही हैं। राजे ने कहा कि मुझे पिछले 20-25 वर्षों से राजस्थान की जनता प्यार दे रही है। कई लोग मेरे सामने बड़े हुए हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि राजे की इस यात्रा को शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है। राजे के समर्थक जगह जगह भव्य स्वागत कर रहे हैं। सवाल उठता है कि जब राजे शोक संतप्त परिवारों के यहां संवेदनाएं प्रकट करने जा रही हैं तो फिर जश्न जैसा माहौल क्यों है? असल में राजे भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष अपनी ताकत दिखा रही हैं। इस बार धार्मिक स्थलों के दर्शन और शोक संतप्त परिवारों की आड़ ली गई है। तो पिछली बार अपने जन्मदिन के अवसर पर गिरिराज जी में शक्ति प्रदर्शन किया था। हालांकि जन्मदिन वाले शक्ति प्रदर्शन का राष्ट्रीय नेतृत्व पर कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन अब देखना होगा कि इस धार्मिक यात्रा के शक्ति प्रदर्शन का कितना असर होता है। राजे ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वे राजस्थान भाजपा में सबसे लोकप्रिय और प्रभावी नेता हैं। इस यात्रा में राजे ने उन नेताओं को भी अपनी कार में बैठाया जिन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए पसंद नहीं करती थी। 
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प्रोफेसर अनिल कुमार शुक्ला ने अजमेर में एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का पद संभाला।राज्यपाल कलराज मिश्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से ओब्लाइज हुए।प्रो. शुक्ला का लखनऊ के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में अभी दो वर्ष का कार्यकाल शेष था।

27 नवंबर को प्रोफेसर अनिल कुमार शुक्ला ने अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का पद संभाल लिया है। इसी के साथ राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र भी कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से ओब्लाइज हो गए हैं। प्रो. शुक्ला उत्तर प्रदेश के शिक्षाविद हैं और वे बरेली स्थित रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के वीसी भी रह चुके हैं। मौजूदा समय में भी प्रो. शुक्ला लखनऊ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के वीसी के पद से इस्तीफा देकर आए हैं। जबकि प्रो. शुक्ला का अभी दो वर्ष कार्यकाल शेष है। सवाल उठता है कि क्या राजस्थान में शिक्षाविदों की कमी है जो उत्तर प्रदेश के शिक्षाविद की नियुक्ति एमडीएस में की गई है? असल में प्रो. शुक्ला की नियुक्ति कर मुख्यमंत्री गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र को ओब्लाइज किया है। प्रो. शुक्ला उत्तर प्रदेश की राजनीति में कलराज मिश्र के मित्र हैं। मिश्र की वजह से ही राज्य सरकार ने प्रो. शुक्ला को एमडीएस का वीसी बनाने का निर्णय लिया है। सब जानते हैं कि सीएम गहलोत रिश्तों को अच्छी तरह निभाते हैं। केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा नियुक्ति कोई राज्यपाल यदि एक वीसी की नियुक्ति से खुश हो जाए तो अशोक गहलोत का क्या नुकसान है? ये वहीं कलराज मिश्र है जिन पर कांग्रेस के नेताओं ने गत वर्ष सियासी संकट के समय आरोप लगाया था। खुद मुख्यमंत्री गहलोत ने मिश्र के खिलाफ राजभवन में धरना दिया। लेकिन आज उन्हीं मिश्र की सिफारिश पर प्रो. शुक्ला को राजस्थान की प्रमुख यूनिवर्सिटी का वीसी बनाया जा रहा है। सवाल यह भी है कि आखिर प्रो. शुक्ला लखनऊ की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती यूनिवर्सिटी के वीसी पद से इस्तीफा देकर राजस्थान के अजमेर क्यों आए। असल में इस यूनिवर्सिटी की स्थापना समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में हुई थी। यूनिवर्सिटी का उद्देश्य उर्दू, फारसी और अरबी भाषा का विकास करना था, लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यूनिवर्सिटी के स्वरूप को बदल दिया गया। ऐसे में यूनिवर्सिटी का पहले वाला बजट भी नहीं रहा, जबकि एमडीएस यूनिवर्सिटी का करोड़ों रुपए का बजट है। अजमेर, नागौर, भीलवाड़ा और टोंक चार जिलों के कॉलेज इस यूनिवर्सिटी के अधीन आते हैं। यूनिवर्सिटी का विशाल कैम्पस है। वाइस चांसलर का महलनुमा सरकारी आवास है। ऐसे में लखनऊ के मुकाबले एमडीएस यूनिवर्सिटी माला माल है। लेकिन कलराज मिश्र और प्रो. अनिल शुक्ला को यह ध्यान रखना होगा कि सीएम गहलोत ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की कमान बीएल सोनी और बजरंग सिंह शेखावत जैसे तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को दे रखी है। उत्तर प्रदेश से वाइस चांसलरों पर एसीबी की विशेष नजर रहती है। अलबत्ता प्रो. अनिल शुक्ला के लिए अजमेर एक बेहतरीन शहर है। राजस्थान की संस्कृति की प्रो. शुक्ला को पहले भी पहचान है। वे कोटा में सहायक आचार्य के पद पर काम कर चुके हैं। प्रो. शुक्ला राज्यपाल कलराज मिश्र के संपर्क में तभी से हैं, जब मिश्र उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति में सक्रिय थे। जहां तक सीएम गहलोत का सवाल है तो वे आम आदमी पार्टी के नेता रहे सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास की पत्नी मंजू शर्मा को राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बना चुके है।
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Friday 26 November 2021

पूर्व उपराष्ट्रपति शेखावत के बगावती तेवर जैसी रही पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की अजमेर यात्रा।शेखावत ने राजे के नेतृत्व को चुनौती दी थी, तो राजे भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बना रही हैं।

राजनीति भी अजीब है, एक समय था जब भैरो सिंह शेखावत जैसे दिग्गज नेता को तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व को चुनौती देनी पड़ी, तो वहीं आज शेखावत की तरह ही भाजपा की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे  धार्मिक यात्रा कर रही हैं। तब राजे ने भाजपा के कार्यकर्ताओं को शेखावत की यात्रा से दूर रहने के निर्देश दिए थे, लेकिन आज उन्हीं भाजपा कार्यकर्ताओं के सहयोग की जरूरत वसुंधरा राजे को पड़ रही है। 26 नवंबर को राजे ने अजमेर और पुष्कर तीर्थ की यात्रा की। राजे के समर्थकों ने जगह जगह शानदार स्वागत किया। हालांकि वसुंधरा राजे की यह यात्रा भाजपा की ओर से अधिकृत नहीं है, लेकिन फिर भी राजे की यात्रा को लेकर कार्यकर्ताओं ने जोश दिखाया है। राजे के दस वर्ष के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में जिन नेताओं ने लाभ का पद अथवा संगठन में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई उन्होंने राजे की यात्रा को कामयाब बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि भाजपा संगठन के प्रमुख पदाधिकारी राजे की अजमेर यात्रा से दूर रहे। पूर्व मंत्री और भाजपा के विधायक कालीचरण सराफ, वरिष्ठ नेता श्याम सुंदर शर्मा, बीपी सारस्वत, शिवशंकर हेड़ा आदि ने राजे की यात्रा को लेकर जोरदार तैयारी की। श्याम सुंदर शर्मा को राजे ने राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष तो हेड़ा को अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया था। इसी प्रकार सराफ को चिकित्सा विभाग से हटाए जाने के बाद उच्च शिक्षा मंत्री के पद पर बनाए रखा। सारस्वत एमडीएस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, लेकिन फिर भी उन्हें छह वर्ष तक अजमेर देहात भाजपा का अध्यक्ष बनाए रखा गया। राजे के दिशा निर्देशों पर ही सारस्वत को पीटीईटी जैसी राज्य स्तरीय परीक्षाओं का समन्वयक भी बनाया गया।  यानी राजे के कार्यकाल में जो नेता ओबलाइज हुए उन्होंने राजे की यात्रा को पूरी निष्ठा के साथ सफल बनाया। राजे का कहना है कि यह उनकी व्यक्तिगत धार्मिक यात्रा है, लेकिन राजे की यात्रा का पूरा माहौल राजनीतिक रहा। राजे ने भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने शक्ति प्रदर्शन की कोई कसर नहीं छोड़ी। राजे पुष्कर से सड़क मार्ग से अजमेर तक आई इस दौरान जगह जगह उनका स्वागत किया गया। पुष्कर में राजे का शानदार स्वागत करने में पालिका अध्यक्ष कमल पाठक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। पाठक ने भी पुष्कर में राजे का शानदार स्वागत करवाया। राजे के समर्थक कह सकते हैं कि उन्होंने यात्रा को सफल कराया है। लेकिन इससे अनुशासित कही जाने वाली भाजपा की  गुटबाजी उजागर हुई है। सब जानते हैं कि राजे मौजूदा समय में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राजे ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई है। अलबत्ता समय समय पर राजस्थान में शक्ति प्रदर्शन करने में राजे ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। 
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आखिर कांग्रेस को नुकसान क्यों पहुंचा रही हैं ममता बनर्जी। संकट के समय कहां है राहुल गांधी?

राहुल गांधी भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और अभी भी जब चाहेंगे तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे। इस समय कांग्रेस पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है। लेकिन राहुल गांधी देश में नहीं है। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी अपनी स्मरण शक्ति बढ़ाने और मन को नियंत्रित रखने के लिए विदेश के किसी योग साधना कैम्प में है। राहुल गांधी पिछले 20 दिनों से विदेश में बताए जा रहे हैं। योग साधना कैम्प से ही राहुल गांधी भारत की घटनाओं पर ट्वीट कर रहे हैं। राहुल गांधी अपने दिमाग को नियंत्रण में रखने के लिए योग साधना पद्धति का उपयोग करें, यह अच्छी बात है, लेकिन राहुल गांधी को अपनी कांग्रेस पार्टी का भी ख्याल रखना चाहिए। पिछले तीन दिनों में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। राहुल गांधी की माताजी और मौजूदा समय में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली (उत्तर प्रदेश) की कांग्रेस विधायक अदिति सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ले ली है। यह स्थिति तब है जब राहुल गांधी की बहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में महिलाओं को चालीस प्रतिशत टिकट दे रही है। प्रियंका ने नारा भी दिया है मैं लड़की हूं, लडूंगी। लेकिन विधायक अदिति सिंह ने भाजपा में जाने से प्रियंका के इस नारे की धार कम हुई है। इन्हीं दिनों में मेघालय में कांग्रेस के 12 विधायक ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी में शामिल हो गए। 12 विधायकों के एक साथ टीएमसी में जाने से कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ममता ने पहले ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर रखा है। बंगाल में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर भी टीएमसी में शामिल हो गए हैं। ममता बनर्जी की ओर से कहा भी गया है कि अब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में संयुक्त विपक्ष का चेहरा ममता बनर्जी को बनाया जाना चाहिए। भाजपा की लाख कोशिश के बाद भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को हराया नहीं जा सका। भाजपा से मुकाबला करने के लिए ममता बनर्जी जैसी फायर ब्रांड नेता ही चाहिए। यानी अब विपक्ष में राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती मिल रही है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना ही चाहिए। मौजूदा समय में विपक्ष का नेतृत्व राहुल गांधी ही कर रहे हैं। विपक्ष में कांग्रेस एक मात्र दल है, जिसकी तीन राज्यों में सरकार चल रही है। यदि राहुल गांधी को प्रभावी तरीके से राजनीति करनी है तो सबसे पहले अपनी बिखरती पार्टी को संभालना होगा। राहुल गांधी ने अधीन रंजन चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस का नेता बना रखा है। चौधरी का कहना है कि भाजपा और टीएमसी में मिली भगत है, इसलिए कांग्रेस के विधायक टीएमसी में जा रहे है। राहुल गांधी का अधीर रंजन चौधरी की राजनीतिक समझ को परखना होगा। चौधरी का यह बयान पूरी तरह बेवकूफी भरा है। जो टीएमसी आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या करवा रही हो, उससे भाजपा की मिली भगत कैसे हो सकती है? गत विधानसभा चुनाव में चौधरी को ही कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में प्रभारी बनाया था। चौधरी अपनी राजनीतिक नाकामी भाजपा पर मढ़ रहे हैं। 
S.P.MITTAL BLOGGER (26-11-2021)
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कांग्रेस विधायक राकेश पारीक के पुत्र के विवाह समारोह में हमारा सीएम कैसा हो, सचिन पायलट जैसा हो, के नारे लगे। पायलट ने हाथ जोड़ कर अभिवादन किया।विधायक सुरेश टाक ने भी पुत्र के विवाह पर किशनगढ़ वासियों को स्वादिष्ट भोजन कराया।

25 नवंबर को अजमेर जिले के विधायक राकेश पारीक (कांग्रेस) और सुरेश टांक (निर्दलीय) ने अपने अपने पुत्रों के विवाह के उपलक्ष में बड़े समारोह आयोजित किए। मसूदा के लोकप्रिय विधायक राकेश पारीक ने सरवाड़ में समारोह आयोजित किया। इस समारोह में हजारों ग्रामीणों ने भाग लिया। ग्रामीणों की भीड़ के बीच जब पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट समारोह में पहुंचे तो उत्साही युवकों ने हमारा सीएम कैसा हो, सचिन पायलट जैसा हो के नारे लगाए। इन नारों से पायलट भी प्रफुल्लित नजर आए। अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में 21 नवंबर को हुए फेरबदल के बाद यह पहला अवसर रहा, जब पायलट किसी बड़े समारोह में नजर आए। पायलट ने राजगढ़ स्थित मसाणिया भैरव धाम के उपासक चंपालाल महाराज से आशीर्वाद भी प्राप्त किया। ग्रामीणों ने जो उत्साह और समर्थन दिखाया, उसके मद्देनजर ही पायलट ने सोशल मीडिया पर सभी का आभार जताया। पायलट की उपस्थिति से विधायक राकेश पारीक भी गदगद नजर आए। हालांकि पायलट की लोकप्रियता पहले भी थी, लेकिन गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल में जिस तरह पायलट समर्थक विधायकों को तरजीह दी गई उससे उनका प्रभाव और बढ़ा है। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन, देहात अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़, प्रदेश सचिव महेंद्र सिंह रलावता, इंसाफ अली, हेमंत भाटी, अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया आदि के साथ साथ बड़ी संख्या में ग्रामीण जनप्रतिनिधि भी उपस्थित थे। यहां यह उल्लेखनीय है कि विधायक पारीक के पिता स्वर्गीय रामेश्वर लाल पारीक भी कांग्रेस के लोकप्रिय नेता रहे, लेकिन रामेश्वर पारीक को कभी भी विधायक बनने का अवसर नहीं मिला। 2018 में राकेश पारीक को सचिन पायलट की वजह से ही मसूदा से टिकट मिला और वे विधायक बने। अजमेर जिले में 8 में से कांग्रेस के दो उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए। राकेश पारीक के दो उम्मीदवार ही चुनाव जीत। राकेश पारीक और रघु शर्मा।
विधायक टाक का भी समारोह:
25 नवंबर को ही किशनगढ़ से निर्दलीय विधायक सुरेश टाक के पुत्र के विवाह का समारोह भी रखा गया। अग्रसेन भवन में आयोजित इस समारोह में किशनगढ़ शहर के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। अपने विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए सुरेश टाक अलग से समारोह आयोजित करेंगे। दोनों विधायकों ने अपने अपने क्षेत्रों में समारोह आयोजित किए हैं, जबकि विवाह 30 नवंबर को हैं। दोनों ने जयपुर में अलग से विवाह समारोह रखे हैं। दोनों ही विधायकों ने जयपुर के समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को व्यक्तिगत तौर पर आमंत्रित किया है। उम्मीद है कि सीएम गहलोत दोनों ही समारोह में वर वधु को आशीर्वाद देने जाएंगे। 
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Thursday 25 November 2021

कवि कुमार विश्वास यदि समाजवादी पार्टी में जाएंगे तो कांग्रेस का क्या होगा?राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ने विश्वास की पत्नी मंजू शर्मा को राज्य लोक सेवा आयोग का सदस्य बना रखा है।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर 23 नवंबर को लखनऊ में एक राजनीतिक समारोह हुआ। इस समारोह में मुलायम सिंह के साथ उनके पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी मौजूद थे। समारोह में पिता पुत्र के बीच देश के जाने माने कवि कुमार विश्वास भी बैठे हुए थे। विश्वास ने अपने संबोधन में पिता पुत्र की प्रशंसा की। इस पर मुलायम सिंह ने कुमार विश्वास को सपा में शामिल होने का प्रस्ताव दे दिया। सब जानते हैं कि  उत्तर प्रदेश में पांच माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और सपा को ही भाजपा का प्रमुख प्रतिद्वंदी दल माना जा रहा रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव छोटे दलों के साथ भी गठबंधन कर रहे हैं। ऐसे में कवि कुमार विश्वास का सपा के समारोह में उपस्थित होना महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि अभी कुमार विश्वास ने सपा में शामिल होने के संकेत नहीं दिए हैं, लेकिन सब जानते हैं कि विश्वास पहले आम आदमी पार्टी में रह चुके हैं। लेकिन राज्यसभा में न भेजे जाने से नाराज विश्वास ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कुमार विश्वास की नजदीकियां कांग्रेस के साथ बढ़ी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाथों हाथ विश्वास को लपक लिया और उनकी पत्नी मंजू शर्मा को राज्य लोक सेवा आयोग का सदस्य नियुक्त कर दिया। मंजू शर्मा अब राजस्थान में प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों के साथ साथ इंजीनियर, डॉक्टर, लेक्चरर सलेक्ट कर रही हैं। अब यदि कुमार विश्वास उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर समाजवादी पार्टी में शामिल होते हैं तो राजस्थान में कांग्रेस का क्या होगा? क्या सपा में शामिल होने से पहले कुमार विश्वास अपनी पत्नी से आयोग के सदस्य के पद से इस्तीफा दिलाएंगे या फिर पत्नी के महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्ति की वजह से कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ेंगे? जानकारों के अनुसार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इतनी आसानी से कुमार विश्वास को सपा में नहीं जाने देंगे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने संभाल रखी है और अशोक गहलोत कभी नहीं चाहेंगे कि कुमार विश्वास उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के खिलाफ काम करें। गहलोत ने जब से श्रीमती मंजू शर्मा को आयोग का सदस्य नियुक्त किया है, तब से कुमार विश्वास ने कवि सम्मेलन के मंचों से कांग्रेस पर कटाक्ष करना बंद कर दिया है। 
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दिल्ली की सीमाओं पर अब किसानों का नहीं मोदी विरोधियों का जमावड़ा है।मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने की मांग भी की जा सकती है। आंदोलन की कमान अब चरणजीत सिंह चन्नी ने संभाली।

19 नवंबर को गुरु नानक देव जी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की जो घोषणा की थी, उसी के अनुरूप 24 नवंबर को कैबिनेट की बैठक में कानूनों को वापस लेने के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया। अब जब 29 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होगा, तब संसद से भी कानून वापसी पर मुहर लग जाएगी। सवाल उठता है कि जब कानून विधिवत तौर पर वापस हो रहे हैं, तब दिल्ली की सीमाओं को जाम क्यों रखा है? जिन किसान संगठनों ने कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था उनमें से अभी अनेक संगठनों ने आंदोलन समाप्ति की घोषणा नहीं की है। कहा जा रहा है कि संसद सत्र के दौरान भी संसद के बाहर प्रदर्शन जारी रहेगा। असल में यह आंदोलन किसानों का नहीं बल्कि मोदी विरोधियों का हो गया है और इस आंदोलन के पीछे वे राजनीतिक दल खड़े हैं जो हर कीमत पर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते हैं। चूंकि ऐसे राजनीतिक दल लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत तो मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने में सफल नहीं हो रहे हैं, इसलिए आंदोलन का सहारा लिया जा रहा है। आंदोलन भी ऐसा जिसमें मांग पूरी हो गई है। कृषि सुधार कानूनों की वापसी के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग बेमानी हो गई है। अब जो मांग रखी जा रही है, उनके लिए किसी आंदोलन की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार पहले ही कह चुकी है कि अन्य समस्याओं के समाधान के लिए कमेटी बनाई जाएगी। यदि यह वाकई किसानों का आंदोलन होता तो प्रधानमंत्री की घोषणा के साथ ही वापस हो जाता, लेकिन यह आंदोलन मोदी विरोधियों का है, इसलिए न जाने कब तक चलेगा? इससे दिल्ली के करोड़ों लोगों को भारी परेशानी हो रही है। पिछले एक वर्ष से देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर यातायात बाधित है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने की मांग भी शुरू कर दी जाए। भारत में ऐसे अनेक लोग हैं जिन्हें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पसंद नहीं आ रहा है और न ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने से खुश हैं। जिन राजनीतिक दलों के नेताओं के आर्थिक हितों पर गहरी चोट पहुंची है, वह भी चाहते हैं कि मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाए। पांच माह बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब,उत्तराखंड सहित पांच राज्यों के चुनाव होने हैं। इन चुनावों में भाजपा को हराकर मोदी को राजनीतिक दृष्टि से कमजोर किया जा सकता है, लेकिन विरोधियों को पता है कि इन चुनाव में भाजपा को हराना कठिन होगा, इसलिए आंदोलन के बल पर ही मोदी को हटाने की कार्यवाही की जा रही है। दिल्ली की सीमाओं पर जाम को मजबूत बनाए रखने  के लिए अब आंदोलन की कमान कांग्रेस शासित पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने संभाल ली है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू दुश्मन देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को पहले ही अपना बड़ा भाई घोषित कर चुके हैं और अब सीएम चन्नी ने आंदोलन की कमान संभाल ली है। इससे आंदोलन के हालातों को समझा जा सकता है। 
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Wednesday 24 November 2021

झुंझुनूं में फिल्म अभिनेत्री कैटरीना कैफ के गालों जैसी सड़कें बनाएंगे कांग्रेस सरकार के मंत्री राजेंद्र गुढा।अजमेर की सड़कों पर से तो कचरा भी नहीं उठ रहा।

मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog पर मैंने कचरे के ढेर का एक फोटो पोस्ट किया है। यह अजमेर के आगरा गेट स्थित सब्जी मंडी के मुख्य द्वार का है। मुख्य द्वार पर ही कमरे का ढेर है और इस ढेर के पास भूमिगत कचरा पात्र भी लगा हुआ है। इस भूमिगत कचरा पात्र के आगे फल फ्रूट का ठेला लगा हुआ है और कचरा पात्र का उपयोग बंद हो गया है। मंडी में सब्जी बेचने वाले अपनी दुकानों का कचरा भूमिगत पात्र में डालने के बजाए सड़क पर ही डाल रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब 2 हजार करोड़ रुपया खर्च कर अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाया जा रहा है। भूमिगत पात्र का रख रखाव करने वाले कहां चले गए, यह कोई नहीं जानता। नगर निगम के सफाई ठेकेदारों का तो भगवान ही मालिक है। शहर के बीचों बीच बनी सब्जी मंडी के मुख्य द्वार पर लगे कचरे के ढेर से शहरभर की सफाई व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। कचरे के ढेर का फोटो 24 नवंबर को सुबह 9 बजे मैंने स्वयं अपने मोबाइल से खींचा है। एक अजमेर में सड़कों की ऐसी स्थिति है तो दूसरी ओर राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के मंत्री राजेंद्र गुढ़ा का कहना है कि झुंझुनूं जिले की सड़के फिल्म अभिनेत्री कैटरीना कैफ के गालों जैसी होंगी। मुख्यमंत्री गहलोत ने गुढा की योग्यता को देखते हुए ही 21 नवंबर को मंत्री बनाया है। गुढा को सैनिक कल्याण और होमगार्ड का स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया है। मंत्री बनने के बाद 23 नवंबर को जब गुढा अपने गृह जिले झुंझुनूं में गए तो लोगों ने टूटी फूटी सड़कों की शिकायत की। इस शिकायत पर ही गुढा ने कहा कि अब मैं मंत्री बन गया हंू। आम लोग चिंता नहीं करें। यहां की सड़के फिल्म अभिनेत्री कैटरीना कैफ के गालों जैसी बनवा दी जाएगी। गुढा के इस कथन को सुनकर स्वागत समारोह में उपस्थित युवाओं ने जमकर ठहाके लगाए और तालियां बजाई। यहां यह उल्लेखनीय है कि बिहार का मुख्यमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव ने भी फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी के गालों जैसी सड़कें बनवाने की बात कही थी। बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गालों जैसी बनीं या नहीं यह बिहार के लोग ही जानते हैं। अब देखना है कि झुंझुनूं की सड़कें कैटरीना के गालो जैसी कब बनती है। 

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Tuesday 23 November 2021

मुख्यमंत्री के सलाहकार रामकेश मीणा के बयान पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा ने चुप्पी साधी। मीणा ने सीएम गहलोत से मुलाकात की।2023 में अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही दोबारा से कांग्रेस की सरकार बनेगी-चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा।पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सांवलिया सेठ से धार्मिक यात्रा शुरू की। 26 नवंबर को अजमेर आएंगी।

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा 23 नवंबर को दिल्ली प्रवास पर रहे। डोटासरा ने सुबह कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात भी की। सोनिया से मुलाकात के बाद डोटासरा ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस के जिला अध्यक्षों के पदों पर जल्द निर्णय लिया जाएगा। प्रदेश की राजनीति पर सोनिया गांधी से विचार विमर्श हुआ है। लेकिन जब डोटासरा से मुख्यमंत्री के सलाहकार निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा के बयान पर प्रतिक्रिया चाही तो डोटासरा कार में बैठकर रवाना हो गए। मालूम हो कि मीणा ने 22 नवंबर को कहा, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के विरोध की वजह से उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। मीणा ने कहा कि यदि 2023 का चुनाव पायलट को आगे रखकर लड़ा जाता है तो कांग्रेस को नुकसान होगा। मीणा ने यह भी कहा कि वे जल्द ही दिल्ली जाकर हाईकमान से मुलाकात करेंगे। मीणा ने पायलट पर कांग्रेस हाईकमान को गुमराह करने का आरोप भी लगाया। सूत्रों के अनुसार मीणा के बयान के बाद सीएम गहलोत ने उनसे फोन पर बात की और मिलने के लिए जयपुर बुलाया। 23 नवंबर को रामकेश मीणा अपने क्षेत्र के लोगों के साथ मुख्यमंत्री से मिलने के लिए सरकारी आवास पर पहुंचे। सीएमआर में दोनों के बीच अकेले में संवाद भी हुआ। सीएम गहलोत ने इस बात का अहसास कराया कि रामकेश मीणा अब सरकार और मुख्यमंत्री के सलाहकार की भूमिका में है। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इस बीच नवनियुक्त चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने कहा, 2023 के चुनाव के अशोक गहलोत के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी। मीणा ने कहा कि गहलोत के नेतृत्व में ही चुनाव जीता जा सकता है। गहलोत कांग्रेस के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं के मान सम्मान का ख्याल रखते हैं।
वसुंधरा की धार्मिक यात्रा:
भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 23 नवंबर से अपने चार दिवसीय धार्मिक यात्रा शुरू कर दी है। हालांकि इस यात्रा का भाजपा संगठन से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन राजे की इस यात्रा से भाजपा में खलबली मच गई है। 23 नवंबर को राजे ने चित्तौड़ स्थित सांवलिया सेठ के मंदिर में दर्शन किए और एक जनसभा को संबोधित भी किया। राजे ने कहा कि वे समय समय पर मंदिरों में जाकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करती रहती हैं। राजे की जनसभा में चित्तौड़ और उसके आसपास के क्षेत्रों के भाजपा विधायक भी उपस्थित रहे। पूर्व मंत्री श्रीचंद कृपलानी भी राजे की सभा में मौजूद थे। चार दिवसीय यात्रा का समापन 26 नवंबर को अजमेर में पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर के दर्शन के साथ समाप्त होगा। राजे अपनी इस यात्रा में उन भाजपा नेताओं के निवास पर भी जा रही है, जिनके परिवार में पिछले दिनों किसी सदस्य का निधन हुआ था। 
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मध्यप्रदेश के आनंद प्रकाश चौकसी ने अपनी पत्नी के लिए ताजमहल जैसा आलीशान घर (मकबरा) बनवाया। आगरा में असली ताजमहल बनवाने वाले चार बेगमों के शोहर मुगल बादशाह शाहजहां को बेटे ने ही कैद में डाल दिया था।आखिर भारतीय अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और अमरीकी सिंगर निक जोनस से शादी टूट गई।

मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में रहने वाले आनंद प्रकाश चौकसी ने अपनी पत्नी के लिए ताजमहल जैसा घर बनवाया है। चौकसी ने ताज महल जैसा घर क्यों बनवाया यह तो वे ही जाने, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि चौकसी एक ही पत्नी के पति होंगे और ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके बेटे उन्हें कैद में नहीं रखेंगे। सब जानते हैं कि आगरा स्थित ताजमहल एक खूबसूरत इमारत है, लेकिन इसमें मुगल बादशाह शाहजहां की चार चार बेगमें दफन हैं, इसलिए ताजमहल को मकबरा कहा जाता है। इस मकबरे को देखने के लिए ही देश विदेश से लोग आते हैं। बुरहानपुर में ताजमहल जैसा घर बनवाने के बाद चौकसी के परिवार में कितनी शांति रहेगी, यह ईश्वर ही जानता है, लेकिन शाहजहां को तो उसके बेटे औरंगजेब ने ही कैद में डाल दिया था। इतिहास में लिखा है कि औरंगजेब ने पहले अपने भाई की हत्या की और फिर शाहजहां को मकबरा वाले ताजमहल के सामने बने शाहबुर्ज किले में 8 वर्ष तक कैद रखा। इसी किले में 5 जनवरी 166 में शाहजहां का इंतकाल हो गया। चौकसी ने तो ताज महल जैसा घर तीन वर्ष में तैयार कर लिया, लेकिन शाहजहां ताजमहल बनवाने में 22 वर्ष लगे। ताज महल के निर्माण की शुरुआत 1630 ईसवी में हुई थी। चौकसी अपने ताज महल का उपयोग क्या करेंगे, यह वही जाने, लेकिन आगरा के ताजमहल में शाहजहां की बेगमें मुमताज, इज्जुनिशां, फतेहपुरी और खंदारी दफन हैं। मुमताज की ख्वाइश पर ही शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण करवाया था। हमारे आनंद प्रकाश चौकसी ने ताज महल जैसा घर बनवाकर बहुत खुश हो रहे हैं। अखबारों में उनके घर के फोटो भी छप रहे हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि आगरा में ताजमहल बनवाने वाला शाहजहां अपने धर्म के प्रति कट्टर था। मुसलमानों में भी उसका झुकाव शियाओं के प्रति रहा। शाहजहां को सुन्नियों के प्रति पक्षपाती माना जाता था। भारत की सनातन संस्कृति अपने आप में बहुत समृद्ध है और हमारे यहां आश्रम व्यवस्था भी स्वर्ग जैसी है। इसे सनातन संस्कृति का बड़प्पन ही कहा जाएगा कि आनंद प्रकाश चोकसी मकबरा जैसा घर बनवाने के बाद भी स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
प्रियंका और निक की शादी टूटी:
भारत की फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने तीन वर्ष पहले अमरीकी सिंगर निक जोनस के साथ धूमधाम से शादी की। पश्चिम की संस्कृति के अनुरूप दोनों के किस वाले फोटो भी खूब वायरल हुए। प्रियंका ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह भी पश्चिम की खुली संस्कृति में रंग गई है, लेकिन इस संस्कृति के रंग का असर तीन वर्ष में ही खत्म हो गया। अब प्रियंका ने अपने ट्विटर और इंस्टाग्राम से जोनस सरनेम हटा दिया है। यानी अब प्रियंका फिर से प्रियंका चौपड़ा हो गई है। प्रियंका को उम्मीद होगी कि विवाह के बाद निक उन्हें ही पत्नी मानेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सब जानते हैं कि निक और प्रियंका की उम्र में भी करीब 10 वर्ष का अंतर है। प्रियंका 10 वर्ष बड़ी है। प्रियंका पश्चिम की खुली संस्कृति में कितनी रंगी, वह तो वही जाने, लेकिन निक ने पूरब की संस्कृति स्वीकारने से मना कर दिया। निक के चाल चलन को देखते हुए ही प्रियंका ने शादी को समाप्त करने का निर्णय लिया है। वैसे प्रियंका के लिए यह उपलब्धि है कि निक उन्हें तीन वर्ष तक पत्नी मानता रहा। असल में सनातन संस्कृति में शादी के अपने मायने हैं। यहां तो पति के लिए करवा चौथ का व्रत भी किया जाता है, जबकि पश्मिच की संस्कृति में तो करवे (मिट्टी का पात्र) का उपयोग नशीले पदार्थ के सेवन के लिए होता है। शादी जैसे पवित्र बंधन में दो अलग अलग संस्कृतियों का मेल होना बहुत मुश्किल होता है। आखिर प्रियंका भी तो भारत की सनातन संस्कृति में पली हैं। कोई फिल्म अभिनेत्री बन जाने से अपनी संस्कृति भूली नहीं जाती। यह माना कि इस समय प्रियंका बहुत दुखी होंगी, लेकिन प्रियंका को इस घटना से सबक लेना चाहिए। अब देखना है कि तलाक में प्रियंका को निक से क्या मिलता है। अमरीका में तो तलाक आम बात है।
S.P.MITTAL BLOGGER (23-11-2021)
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अलवर नगर परिषद की सभापति बीना गुप्ता के ट्रेप होने से कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष भंवर जितेंद्र सिंह की राजनीति को झटका।वाकई एसीबी की इस कार्यवाही पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शाबाशी मिलनी चाहिए।

22 नवंबर को जब जयपुर में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा हो रहा था, तब अलवर नगर परिषद की कांग्रेसी सभापति बीना गुप्ता को रंगे हाथों पकडऩे की कार्यवाही हो रही थी। एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बजरंग सिंह शेखावत के नेतृत्व में हुई कार्यवाही में बीना गुप्ता को और उनके पुत्र कुलदीप को 80 हजार रुपए की रिश्वत लेते गिरफ्तार कर लिया गया। यह रिश्वत नगर परिषद में ही ई नीलामी प्रक्रिया के कम्प्यूटर ऑपरेटर से ली जा रही थी। नीलामी की प्रक्रिया का काम ठेके पर है। ठेके का कमीशन राशि के भुगतान के एवज में ही रिश्वत ली जा री थी। वैसे तो सरकारी भुगतान और परिष्ज्ञद के कामकाज में आयुक्त की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन बीना गुप्ता के राजनीतिक दबदबे के कारण अलवर नगर परिषद में सभापति की सहमति के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता है। बीना गुप्ता की सिफारिश से ही परिषद में अधिकारियों की नियुक्ति होती है। जो अधिकारी इशारा नहीं समझता है उसका तबादला करवा दिया जाता है। सवाल उठता है कि बीना गुप्ता के पास इतनी ताकत कहां से आई? सब जानते हैं कि बीना गुप्ता की सभापति के पद पर ताजपोशी में अलवर के पूर्व सांसद और मौजूदा समय में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। कांग्रेस के भंवर सिंह जितेंद्र सिंह के रुतबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि असम व उड़ीसा के प्रभारी होते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। यानी भंवर जितेंद्र सिंह कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के भी निकट है। इतने रौब रुतबे के बाद भी यदि एसीबी सभापति बीना गुप्ता को रंगे हाथों पकड़ ले तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शाबाशी मिलनी ही चाहिए। एसीबी मुख्यमंत्री गहलोत के अधीन ही काम करती है। गहलोत ने मंत्रिमंडल के ताजा पुनर्गठन में भी गृह विभाग अपने पास रखा है। एसीबी के पुलिस महानिदेशक बीएल सोनी सीधे अशोक गहलोत को ही रिपोर्ट करते हैं। बीना गुप्ता पर हुई कार्यवाही से जाहिर है कि मुख्यमंत्री ने भ्रष्ट राजनेताओं को पकडऩे की पूरी छूट एसीबी को दे रखी है। इसमें सत्तारूढ़ पार्टी के जनप्रतिनिधियों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। बीना गुप्ता को पकडऩे के लिए एसीबी ने यह कार्यवाही एक दिन में नहीं की बल्कि पिछले छह माह से निगरानी की जा रही थी। एसीबी के अधिकारियों को भी पता था कि बीना गुप्ता का राजनीतिक प्रभाव जबर्दस्त है। इसीलिए सभी सबूत एकत्रित करने के बाद प्रभावी कार्यवाही की गई। छह माह तक सूचनाओं को गोपनीय रखने के लिए एसीबी के डीजी बीएल सोनी और एसपी बजरंग सिंह शेखावत को भी शाबाशी मिलनी चाहिए। एसीबी की इस कार्यवाही से कांग्रेस की राजनीति दिल्ली तक हिल गई है। इससे कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भंवर जितेंद्र सिंह की राजनीति को झटका लगा है। अलबत्ता बीना गुप्ता के ट्रेन होने से अलवर शहर में खुशी का माहौल है, क्योंकि कांग्रेस पार्षदों के कार्य भी लेन-देन के बगैर नहीं हो रहे थे। प्रभावी राजनीतिक संरक्षण के कारण बीना गुप्ता के खिलाफ कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। 
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Monday 22 November 2021

विधायकों को कैसे खुश रखा जाता है, यह तरकीब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आती है।* क्या विधायकों मुख्यमंत्री का सलाहकार बनाया जा सकता है? वसुंधरा राजे ने 2018 में पहली बार विश्वेन्द्र सिंह को सलाहकार नियुक्त किया था।

21 नवम्बर को राजस्थान में कांग्रेस मंत्रिमंडल का प्रनर्गठन हो गया। अब मंत्रिमंडल में कोई पद खाली नहीं है कुछ लोगों का मानना है कि मंत्री नही बनाए जाने से अनेक निर्दलीय विधायक नाराज है। राजस्थान मंे 200 में 13 निर्दलीय विधायक है और ये सभी कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहें हैं। मंत्रिमण्डल के पुनर्गठन के तुरन्त बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 6 विधायकों को अपना सलाहकार नियुक्त कर मंत्री पद का दर्जा दे दिया। इनमें से 3 निर्दलीय विधायक है इसल में मुख्यमंत्री गहलोत को विधायकों को खुश रखने की तरकीब आती है। मंत्रीमंडल का पुनर्गठन तो तीन वर्ष बाद हुआ है। यानी तीन वर्ष तक निर्दलीय विधायकेां के साथ बसपा छोड कर आज 6 विधायक भी संतुष्ठ थे। गहलोत ने अपनी चतुराई से बीटीपी कम्युनिस्ट आदि छोटी पार्टियों के पांच-सात विधायकों का समर्थन भी हासिल कर रखा है। असल में निर्दलीय विधायकों के लिए मंत्रीपद से ज्यादा महत्व अपने निर्वाचन क्षेत्र मंे अधिकारियों की पोस्टिंग होती है। सीएम गहलोत ने निर्दलीय विधायकों की सिफारिश से ही उनके क्षेत्र में एसडीओ, डीएसपी, थानेदार, तहसीलदार, डाक्टर, इंजीनियर, आदि नियुक्त किए है इन नियुक्तियों का निर्दलीय विधायक पूरा फायदा उठा रहे है। कांग्रेस के विधायक भले ही अपने क्षेत्रों मंे पसन्दीदा अधिकारी नियुक्ति नहीं करवा पा रहे हों लेकिन निर्दलीय विधायकों का रुतबा कांग्रेस विधायकों से भी ज्यादा है कौन सा निर्दलीय विधायक क्या चाहता है, यह सीएम गहलोत को पता है पिछले तीन वर्षाे में सीए गहलोत निर्दलीय विधायकों की इच्छाओं से वाकिफ हो गए है यही स्थिति बसपा से आए 6 विधायकों की है भले ही 6 विधायकों में से 1 विधायक को मंत्री बनाया हो, लेकिन शेष पांच भी अपनी अपनी इच्छाओं की वजय से गहलोत के साथ चिपके रहेंगे। अभी तो संसदीय सचिवों और निगम बोर्ड प्राधिकरण आदि में भी नियुक्ति होती है जिन विधायकों को मंत्री नही बनाया गया है उन्हे लाभ का पद देकर खुश रखा जाऐगा। गहलोत के शासन में सरकार को समर्थन देने वाला कोई भी विधायक नाराज नही हो सकता। हालांकि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के संतुष्ठ हो जाने के बाद कांग्रेस को निर्दलीय और बसपा वाले विधायकों के समर्थन की जरूरत नहीं है लेकिन फिर भी सीएम गहलोत ऐसे विधायकों को अपने सीने से चिपकाए रखेगें, क्योंकि अगले वर्ष जुलाई में राज्य सभा की चार सीटों के लिए चुनाव होने है।
विधायक बने मुख्यमंत्री के सलाहकार:-
हालांकि 6 विधायकों को मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्त कर दिया है लेकिन सवाल उठता है कि क्या विधायकों को मुख्यमंत्री की सलाहकार नियुक्त किया जा सकता है? जानकारों के अनुसार राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विश्वेन्द्र सिंह को अपना सलाहकार नियुक्त कर मंत्री पद का दर्जा दिया था, तब विश्वेन्द्र सिंह विधायक नहंी थें। यानी गैर विधायक को सलाहकार बनाया गया था। कहा जा रहा है कि जो विभाग मुख्यमंत्री के पास होगें, उनका कुछ काम सलाहकार बने विधायकों को सौंप दिया जाएगा, इससे ऐसे विधायकों के मंत्री बनने की ईच्छा भी पूरी हो जाएगी। सीएम गहलोत ने कहा भी है कि धैर्य रखने वालों को फल मिलता है और जब देने वाला अशोक गहलोत जैसा सीएम हो तो धैय रखना ही चाहिए गहलोत तो मुख्यमंत्री हो तो फिर विधायकों का धैर्य रखना ही चाहिए। गहलोत जो भाजपा विधायकों को भी मालामाल करने मंे पीछे नही है जयपुर के मान सरोवर में प्राईम लोकेशन पर 60 लाख रूपये की कीमत वाला फ्लैट 180 विधायकों को मात्र 30 लाख रूपयें में दिया है यानी तीन साल मंे 10 लाख रूपयें प्रति माह के हिसाब से भुगतान। राजस्थान मंे 200 विधायक है और 180 विधायकों ने फ्लैट प्राप्त किया है इससे मुख्यमंत्री की क्रय शक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है गत वर्षे जुलाई मंे सचिन पायलट के पास जाने वाले 18 विधायक 30 30 करोड रूपये मे बिके या नही इसका कोई सबूत नही है लेकिन विधायकों को 60 लाख रूपयो का फ्लैट 30 लाख रूपये में दिया गया है इसका सबूत जग जाहिर है। विधायकों को सलाहकार नियुक्त किये जाने को लेकर अदालत में याचिका दायर करने की तैयारी भी हो रही है।
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