Thursday 27 June 2019

अमित शाह का कश्मीर दौरा शांतिपूर्ण सम्पन्न।



अमित शाह का कश्मीर दौरा शांतिपूर्ण सम्पन्न। 
स्वीटजरलैंड में भगौड़े नीरव मोदी के छह लाख मिलियन डॉलर सीज। 
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27 जून को केन्द्रीय गृह मंत्री अमितशाह का दो दिवसीय जम्मू कश्मीर दौरान शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गया। यह पहला अवसर रहा जब केन्द्र के किसी बड़े मंत्री के पहुंचने पर कश्मीर घाटी में शांति रही है। इससे पहले जब भी कोई केन्द्रीय मंत्री, प्रतिनिधि मंडल कश्मीर गया तो अलगाववादियों ने न केवल बंद कराया, बल्कि पत्थरबाजी भी की। गृहमंत्री का पदभार संभालने के बाद अमितशाह पहली बार कश्मीर दौरे पर रहे। ऐसा नहीं की अमितशाह ने जम्मू या श्रीनगर के सराकारी दफ्तरों में बैठकें कर दौरा पूरा कर लिया। अमितशाह आतंकवाद से प्रभावित अनंतनाग क्षेत्र में भी गए। जहां उन्होंने कश्मीर पुलिस के शहीद हुए जवान अरशद खान के परिजन से मुलाकात की। अमितशाह ने भरोसा दिलाया कि जो लोग कश्मीर का अमन चैन बिगाड़ रहे हैं उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी। जानकार सूत्रों की माने तो घाटी के अनेक अलगाववादी नेता इन दिनों या तो जेलों में बंद हैं या फिर दिल्ली में एनआईए के चक्कर लगा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से अलगाववादी नेताओं के विरुद्ध भी फडिंग को लेकर कार्यवाही हो रही है। अमितशाह ने अपने दौरे में यह भी स्पष्ट कर दिया कि अलगाववादियों से वार्ता करने का कोई इरादा सरकार का नहीं है। कहा जा रहा था कि शाह अपने दौरे में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं से संवाद कर सकते हैं। इसके विपरीत शाह ने सुरक्षाबलों के अधिकारियों को हिदायत दी कि 1 जुलाई से शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा को लेकर कोईं कौताही नहीं बरती जाए। शाह ने कहा कि यात्रियों की सुरक्षा को लेकर जो भी इंतजाम किए जा सकते हैं वो सब किए जाने चाहिए। कश्मीर की राजनीति को समझने वालों का मानना है कि राजनीति और कूटनीति की दृष्टि से अमितशाह का कश्मीर दौरान सफल रहा है। 
नीरव मोदी के बैंक खाते सीज:
27 जून को केन्द्र सरकार के लिए जहां केन्द्रीय गृहमंत्री अमितशाह का कश्मीर दौरा सफल रहा वहीं एक उपलब्धि भगौड़े नीरव मोदी को लेकर भी हुई। नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक के 9 हजार करोड़ रुपए लेकर भाग जाने का आरोप है, हालांकि नीरव  मोदी इन दिनों लंदन की जेल में बंद हैं और उसे कभी भी भारत लाया जा सकता है, लेकिन 27 जून को प्रवर्तन निदेशालय के प्रयासों से नीरव मोदी और उसकी बहन अपूर्वा मोदी के स्विटजरलैंड के चार बैंक खातों को सीज कर दिया गया। इन खातों में कोई छह मिलियन डॉलर जमा है। इसमें पहले भारत में भी नीरव मोदी की सम्पत्तियों को जब्त कर लिया गया है जो लोग नीरव मोदी की आड़ में नरेन्द्र मोदी पर हमला कर रहे थे, उन्हें अब समझ में आ जाना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी और नीरव मोदी में फर्क है। भगौड़े विजय माल्या पहले ही कह चुके हैं कि बैंकों का जितना पैसा बकाया है उससे ज्यादा की सम्पत्तियां भारत सरकार ने जब्त कर ली है। विजय माल्या कई बार कह चुका हैं कि मैं बैंकों का एक एक रुपया चुकाना चाहता है। 
एस.पी.मित्तल) (27-06-19)
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आप को कुत्ते ने काटा तो आप कुत्ते को काट लेते।



आप को कुत्ते ने काटा तो आप कुत्ते को काट लेते। 
इस प्रकरण में अब वीडियो बनाने वाले चिकित्सा कर्मी की शामत।
आरोपी चिकित्सक भी अनुबंध पर है। 
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अजमेर के मदार क्षेत्र स्थित जेपी नगर में सरकार डिस्पेंसरी में 25 जून को एक महिला मरीज के साथ जो शर्मनाक घटनाक्रम हुआ उसमें अब वीडियो बनाने वाले चिकित्सा कर्मी बसंत राजोरिया की शामत आ गई है। वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने को लेकर सरकार और चिकित्सा महकमे की छवि  खराब करने का आरोप राजोरिया पर लग गया है। राजोरिया को नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है। 25 जून को जब एक महिला कुत्ते के काटने का इलाज करवाने डिस्पेंसरी पहुंची तो मौजूद चिकित्सक प्रवीण कुमार बालोटिया ने कहा कि यदि आपको कुत्ते ने काटा है तो आप कुत्ते को काट लेते। महिला ने जब चिकित्सक की इस अभद्र टिप्पणी का विरोध किया तो चिकित्सक ने धमकी दी कि महिला के विरुद्ध एससी एसटी का मुकदमा दर्ज करवा दिया जाएगा। इस पर महिला ने कहा कि डॉक्टर साहब मैं तो आपकी जाति के बारे में भी नहीं जानती हंू तो आपको जाति सूचक शब्द कैसे बोल सकती हंू। मैं तो अपना इलाज करवाने आई हूं। चिकित्सक और महिला मरीज के बीच जो संवाद और हंगामा हुआ उसे डिस्पेंसरी के ही पीएमएच बसंत राजोरिया ने अपने मोबाइल में कैद कर लिया। बाद में राजोरिया ने ही वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट होते ही चिकित्सक बालोटिया के विरुद्ध लोगों का गुस्सा भड़क उठा। मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. केके सोनी ने पांच सदस्यीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है। गंभीर बात ये है कि चिकित्सक और पीएमएच कर्मी दोनों ही एनएचएम के अंतर्गत अनुबंध पर कार्यरत हैं। सवाल उठता है कि अनुबंध वाले चिकित्सक भी ऐसा व्यवहार करेंगे तो पूरी चिकित्सा सेवा पर सवालिया निशान लगेगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस प्रकरण में अभी तक भी पीडि़त महिला ने कोई शिकायत दर्ज नहीं करवाई है। चिकित्सा विभाग सिर्फ वीडियो के आधार पर ही जांच कर रहा है। डॉक्टर सोनी का कहना है कि जांच रिपोर्ट के बाद ही दोषी कर्मियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही की जाएगी। 
एस.पी.मित्तल) (27-06-19)
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राजस्थान विधानसभा में पत्रकारों के लिए इमरजेंसी जैसे हालात।



राजस्थान विधानसभा में पत्रकारों के लिए इमरजेंसी जैसे हालात।
सदन की कार्यवाही का बहिष्कार। 
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27 जून को राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत हुई, लेकिन दिवंगत सदस्यों, पुलवामा के शहीद जवानों, बाड़मेर के जसोल में रामकथा की दुखान्तिका आदि को लेकर शोकाभिव्यक्ति के बाद सदन की कार्यवाही को 28 जून तक के लिए स्थगित कर दी, लेकिन प्रात: 11 बजे जैसे ही सदन की कार्यवाही हुई तो मीडिया कर्मियों को अनेक पाबंदियों का सामना करना पड़ा। मीडिया कर्मियों को हिदायत दी गई कि वे विधानसभा में प्रेस गैलरी तक ही सीमित रहे। कोई पत्रकार किसी मंत्री अथवा विधायक से न मिले। इसके साथ ही विधानसभा की केंटिन तक में जाने पर रोक लगा दी। पिछले चालीस वर्षों में विधानसभा की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों का कहना रहा कि यह पहला अवसर है जब ऐसी पाबंदिया लगाई गई है। भाजपा के विधायक और पूर्व मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि पत्रकारों के लिए यह इमरजेंसी जैसे हालात हैं। वरिष्ठ पत्रकार और पिंकसिटी पे्रस क्लब के पूर्व अध्यक्ष एलएल शर्मा ने कहा कि ऐसी पाबंदियां संसद में भी नहीं है। संसद को कवर करने वाले मीडियाकर्मी राज्यसभा और लोकसभा में आ जा सकते हैं। जब संसद में इस तरह की पाबंदियां नहीं है तो फिर राजस्थान विधानसभा में क्यों लगाई गई है। पाबंदियों को लेकर ही मीडिया कर्मी 27 जून को प्रेस गैलरी में नहीं गए। जब पत्रकारों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ध्यान आकर्षित किया तो गहलोत का कहना रहा कि वे इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष से संवाद करें। जब पत्रकारों के प्रतिनिधि अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी से मिलने गए तो कक्ष के बाहार ऐसे हालात उत्पन्न हुए कि पत्रकारों को धरने पर बैठना पड़ा। सीएम गहलोत के निर्देश पर विधायक महेश जोशी भी विवाद को सुलझाने में लगे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान के जनसम्पर्क विभाग का जिम्मा चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के पास है। रघु शर्मा और पत्रकारों के बीच इन दिनों 36 का आंकड़ा बना हुआ है। एनएचएम भर्ती घोटाले और चिकित्सा विभाग में हो रही लापरवाहियों की खबरें प्रदेश के समाचार पत्रों में और न्यूज चैनलों में प्रमुखता के साथ प्रकाशित एवं प्रसारित हो रही है। 
एस.पी.मित्तल) (27-06-19)
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अजमेर की महिला सरपंच को हटाने में जूटी कांग्रेस सरकार।



अजमेर की महिला सरपंच को हटाने में जूटी कांग्रेस सरकार। 
प्रभावशाली व्यक्ति का अतिक्रमण हटाने पर दिया है नोटिस। 
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27 जून को अजमेर की जिला परिषद के सीईओ गजेन्द्र सिंह राठौड़ ने पूरे लाव लश्कर के साथ जवाबा पंचायत समिति की ग्राम पंचायत टॉटगढ़ के कामकाज की जांच की। राठौड़  यह जानना चाहते थे कि सरपंच श्रीमती रेखा कंवर और टॉटगढ़ के ही प्रभावशाली पदमचंद कोठारी के बीच क्या विवाद है? जांच पड़ताल के दौरान ही ग्रामीणों ने एक स्वर से कहा कि कोठारी ने गांव के तालाब की पाल पर बंगला बना लिया है। इसी प्रकार कई स्थानों पर कथित तौर पर अतिक्रमण भी कर रखे हैं। कोठारी चाहते हैं कि पाल पर बने बंगले का ग्राम पंचायत पट्टा जारी कर दे। लेकिन सरपंच की यह मजबूरी है कि पाल की जिस भूमि पर बंगला बना है, वह वन विभाग के अधीन आती है। ऐसे में ग्राम पंचायत किसी भी स्तर पर पट्टा जारी नहीं कर सकती है। बंगले को अतिक्रमण मानते हुए ही ग्राम पंचायत ने कोठारी को नोटिस भी जारी किया है। अब यह नोटिस सरपंच रेखा कंवर के लिए मुसीबत बन गया है। ऐसा बहुत कम होता है, जब भीषण गर्मी में जिला परिषद के सीईओ पूरे लाव लश्कर के साथ किसी ग्राम पंचायत की जांच पड़ताल करने पहुंच गए। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि टॉटगढ़ ग्राम पंचायत अजमेर शहर से करीब 150 किलोमीटर दूर है। सवाल उठता है कि ऐसी क्या आफत आ गई जिसकी वजह से सीईओ को जिला परिषद का साराकाम काज छोड़कर एक ग्राम पंचायत पर जाना पड़ा? सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री सचिवालय के एक ताकतवर आईएएस ने अजमेर जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं कि रेखा कंवर को सरपंच के पद से किसी भी स्थिति में हटाया जाए। बताया जा रहा है कि कथित अतिक्रमणकारी पदम कोठारी और सीएमओ में तैनात वरिष्ठ आईएएस के पारिवारिक संबंध है। अब यदि अजमेर प्रशासन के अधिकारियों को शांतिपूर्ण तरीके से नौकरी करनी है तो निर्दोष महिला सरपंच के खिलाफ कार्यवाही करनी ही पड़ेगी। जिला परिषद व जिला प्रशासन किस नजरिए से महिला सरपंच के खिलाफ कार्यवाही कर रहा है, इसका अंदाजा सरपंच के तीन संतान वाले प्रकरण से लगाया जा सकता है। हाईकोर्ट ने इस प्रकरण में सरपंच को राहत दे दी है। लेकिन फिर भी जिला प्रशासन इसी प्रकरण की जांच करवा रहा है। इतना ही नहीं अब तो सरपंच के छोटे-छोटे निर्णयों में भी खामियां निकाली जा रही है यानि एक महिला सरपंच को हटाने के लिए पूरी कांग्रेस सरकार लगी हुई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार बार महिलाओं को सम्मान देने की बात करते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की नाक के नीचे ही एक महिला सरपंच को हटाने की साजिश की जा रही है। यह तब हो रहा है जब टॉटगढ़ के ग्रामीण अपनी सरपंच के साथ खड़े हैं। अब देखना है कि बोल्ड और ईमानदार माने जाने वाले सीईओ राठौड़ सीएमओ का दबाव कितना बर्दाश्त करते हैं। 
एस.पी.मित्तल) (27-06-19)
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Saturday 22 June 2019

राहुल गांधी खुद देख लें कि राजस्थान के चिकित्सा महकमे में भ्रष्टाचार के कैसे हालात हैं?

राहुल गांधी खुद देख लें कि राजस्थान के चिकित्सा महकमे में भ्रष्टाचार के कैसे हालात हैं?
सीएम गहलोत बेबस। 2500 भर्तियों में वसूले जा रहे थे डेढ़-डेढ़ लाख रुपए।
मंत्री जी कहते हैं उन्हें जानकारी नहीं। दोषियों पर कार्यवाही होगी।

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22 जून के दैनिक भास्कर में प्रथम पृष्ठ पर आठ कॉलम में राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार की एक खबर प्रकाशित हुई। यदि इस खबर को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पढ़ेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि प्रदेश के चिकित्सा विभाग के हालात कैसे हैं? राहुल गांधी कहते हैं कि कांगे्रस शासित राज्यों में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे, जबकि राजस्थान में चिकित्सा महकमे में भास्कर ने भ्रष्टाचार के सबूत दिए हैं। क्या अब राहुल गांधी कांग्रेस सरकार के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा से कोई जवाब तलब करेंगे? जहां तक सीएम अशोक गहलोत का सवाल है तो प्रदेश की आतंरिक राजनीति की वजह से वे अपने चिकित्सा मंत्री से जवाब नहीं मांग सकते हैं। रघु शर्मा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के खेमे के हैं। भास्कर की खबर के अनुसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 2500 कम्युनिटी हैल्थ ऑफिसर के पदों पर भर्ती के लिए 22 जून को परीक्षा होनी थी। एक दिन पहले 21 जून को चिकित्सा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रोहित कुमार ने रोक लगा दी। आरोप है कि नियुक्ति होने वाले एक अभ्यर्थी से डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत वसूली जा रही है। ऐसा नहीं कि यह परीक्षा गुपचुप में ली जा रही थी, इसके लिए बकायदा आवेदन मांगे गए। कोई तीस हजार पात्र अभ्यर्थियों ने आवेदन भी किया। यदि 21 जून को रोक नहीं लगती तो भ्रष्टाचारी सफल हो जाते। गंभीर बात यह है कि प्रदेश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि उन्हें 2500 पदों की भर्तियों की जानकारी नहीं है। सवाल उठता है कि जब इतनी बड़ी प्रक्रिया की जानकारी नहीं है तो फिर रघु शर्मा किस बात के चिकित्सा मंत्री हैं। विभाग के अधिकारियों की माने तो एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तबादले में भी मंत्री का दखल रहता है और रघु शर्मा तो दबंग मंत्रियों में से हैं। उनके महकमे में 2500 पदों पर भर्ती हो रही हो और शर्मा को पता ही नहीं चले, यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। 
केन्द्र सरकार की योजना:
असल में कम्युनिटी हैल्थ ऑफिसर की नियुक्ति केन्द्र सरकार की योजना है। इसके अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर कम्पाउंडर से अधिक ज्ञान रखने वाले पात्र व्यक्ति को नियुक्ति दी जाती है। इस कर्मचारी के वेतन का 60 प्रतिशत केन्द्र सरकार देती है, जबकि 40 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है। जानकारों के अनुसार चिकित्सा विभाग को राज्य के वित्त विभाग से भी अनुमति लेनी थी, लेकिन जब भर्ती की फाइल चिकित्सा विभाग के सचिव तक ही नहीं पहुंची तो फिर वित्त विभाग की अनुमति का सवाल ही नहीं उठता। मालूम हो कि इस समय वित्त विभाग का दायित्व भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास है। सवाल यह भी है कि क्या चिकित्सा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रोहित कुमार को दर किनार कर 2500 पदों पर भर्ती हो रही थी? भर्तियों की सारी जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एमडी डॉ. समित शर्मा के हाथों में थी। क्या ऐसा संभव है कि डॉ. समित शर्मा जैसा तेज तर्रार आईएएस अपने मंत्री को बताए बगैर इतनी बड़ा काम अकेले दम पर कर रहा हो? इस पूरे प्रकरण में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग की भूमिका की भी पड़ताल होनी चाहिए। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष रहे डॉ. गर्ग की राजनीति के बारे में सब जानते हैं। डॉ. गर्ग अजीत सिंह चौधरी वाली आरएलडी के विधायक हैं और राजस्थान में कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रखा है। 2500 पदों पर भर्ती की जानकारी डॉ. सुभाष गर्ग को भी न हो, यह आश्चर्य वाली बात है। 
सख्त कार्यवाही करेंगे-रघु शर्मा:
वहीं पूरे प्रकरण में चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही होगी। यदि उन्हें पूर्व में पता होता तो ऐसी गलती होने ही नहीं देता। यदि भाजपा इस मुद्दे को विधानसभा में उठा कर कांग्रेस सरकार पर हमला करेगी तो मैंने भी पूरी तैयारी कर ली है। भाजपा के पांच वर्ष के शासन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में क्या क्या हुआ इस बारे में विधानसभा में बताया जाएगा। कम्युनिटी हैल्थ ऑफिसर की भर्ती के प्रकरण में देखा जाएगा कि कहीं तार पुराने अफसरों से तो नहीं जुड़े हैं? इस मामले में किसी भी दोषी अधिकारी को बख्शा नहीं जाएगा। मैं स्वयं इस मामले को देख रहा हंू। विपक्ष को आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबंा में झांकना चाहिए। 
सीबीआई जांच की मांग:
भाजपा के विधायक और पूर्व चिकित्सामंत्री कालीचरण सराफ ने भर्ती घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। सराफ ने कहा कि रघु शर्मा की अपने विभाग पर कोई पकड़ नहीं है। जब एनएचएम के एमडी समित शर्मा ने गलती स्वीकार कर ली है तो फिर अब कार्यवाही क्यों नहीं की गई। सराफ ने कहा कि इस घोटाले को विधानसभा में उठाया जाएगा। 
एस.पी.मित्तल) (22-06-19)
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सरकार से आठ रुपए में भोजन खरीद कर दो लाख लोगों को नि:शुल्क खिलाया।



सरकार से आठ रुपए में भोजन खरीद कर दो लाख लोगों को नि:शुल्क खिलाया।
अजमेर में सेवा का एक तरीका यह भी।
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22 जून को अजमेर में दो लाख एक हजार वें व्यक्ति को नि:शुल्क भोजन करा कर जैन सोशल ग्रुप ने  मानव सेवा की मिसाल कायम की है। यदि इच्छा शक्ति हो तो हर तरीके से सेवा का काम किया जा सकता है। 22 जून को जेएलएन अस्पताल के बाहर एक सादे समारोह में ग्रुप के सदस्यों ने अब तक की सेवा पर संतोष जाहिर किया। अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अनिल जैन ने ग्रुप के सभी सदस्यों को सेवा के इस कार्य के लिए बधाई दी। ग्रुप के संस्थापक मुकेश कर्नावट ने बताया कि गत भाजपा सरकार ने जरुरतमंद व्यक्तियों को रियायती दर पर भोजन उपलब्ध करवाने के लिए अन्नपूर्णा योजना की शुरुआत की थी। सरकार की इस योजना से प्रेरणा लेते हुए ही ग्रुप ने यह तय किया कि अजमेर के जेएलएन अस्पताल के बाहर अन्नपूर्णा वाहन से जो भी व्यक्ति भोजन लेगा उसे प्रति भोजन आठ रुपए का शुल्क नहीं देना होगा। यानि अस्पताल के बाहर खड़े रहने वाले वाहन से हर व्यक्ति को नि:शुल्क भोजन मिलेगा। सेवा के इस काम को गत वर्ष 2 सितम्बर को तत्कालीन जिला कलेक्टर आरती डोगरा से शुभारंभ करवाया गया था। तब से अब तक दो लाख से भी ज्यादा व्यक्ति को नि:शुल्क भोजन कराया जा चुका है। यह योजना जैन समाज में इतनी लोकप्रिय हुई है कि अब 2020 तक की बुकिंग हो गई है। समाजसेवी  उगमराज ने 31 दिसम्बर 2019 तक के लिए बुकिंग करा दी है। इसके बाद भी लोगों के प्रस्ताव आ गए हैं। कर्नावट ने बताया कि जेएलएन अस्पताल के बाहर खड़े रहने वाले अन्नपूर्णा वाहन से जो भी जरुरतमंद व्यक्ति भोजन लेगा उसे सरकार की आठ रुपए की निर्धारित शुल्क का भुगतान करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने माना कि सरकार ने आठ रुपए का शुल्क रखकर जरुरतमंद व्यक्तियों को सुविधा दी है, लेकिन समाज में ऐसे भी व्यक्ति है जो 8 रुपए का शुल्क भी जमा नहीं करवा सकते। ऐसे व्यक्तियों की मदद के लिए ही ग्रुप ने पहल की है। सेवा के इस काम को सफल बनाने में विमलचंद भंडारी, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन प्रदीप कोठारी, अजीत लोढा, विपिन जैन, मनोज कांस्ट्रीया, सुनील कोठारी, मुकेश ओसवाल आदि का सहयोग रहा है। सेवा के इस काम से जुडऩे के लिए मोबाइल नम्बर 9414002779 पर मुकेश कर्नावट से सम्पर्क किया जा सकता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा शुरू की गई अन्नपूर्णा येाजना के वाहन प्रदेशभर में उपलब्ध हैं। अजमेर के जैन सोशल ग्रुप की तरह अन्य शहरों में भी आठ रुपए का भोजन खरीद कर जरुरतमंद व्यक्तियों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जा सकता है। 
एस.पी.मित्तल) (22-06-19)
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क्या जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को कोई राजनीतिक फायदा होगा?

क्या जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को कोई राजनीतिक फायदा होगा?
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22 जून को दिल्ली में राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। राजे ने नड्डा को गुलदस्ता भेंट करते हुए उम्मीद जताई की उनके अनुभव का लाभ संगठन को मिलेगा। दोनों के बीच राजनीतिक मंत्रणा भी हुई। इस मुलाकात के बाद सवाल उठता है कि क्या अब राजे को कोई राजनीतिक लाभ होगा। असल में विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया था। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह के निर्णय के बाद हुआ, लेकिन राजे ने राष्ट्रीय राजनीति में रुचि नहीं दिखाई। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की हैसियत से राजे को राजस्थान से बाहर जो जिम्मेदारियां दी गई उनका निर्वाह भी राजे ने नहीं किया। राजे को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में उन्हें कोई जिम्मेदारी दी जाएगी। लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने लोकसभा के चुनाव में कोई बड़ी जिम्मेदारी राजे को नहीं दी। उल्टे राजे के विरोधियों को भाजपा में शामिल कर जता दिया कि अब राजस्थान में भाजपा अपने बूते पर चलेगी। कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला, हनुमान बेनीवाल ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि राजे के विचारों के विपरीत निर्णय लिए गए हैं। यही वजह रही कि लोकसभा के चुनाव में राजे का अधिकांश समय अपने पुत्र दुष्यंत सिंह के झालावाड़ संसदीय क्षेत्र में ही व्यतीत हुआ। सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत ने दर्शा दिया कि अब राजस्थान भाजपा की राजनीति में वसुंधरा राजे का पहले जैसा महत्व नहीं है। आने वाले दिनों में राजे की राजनीति में क्या भूमिका होगी, इसको लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अब प्रदेश की राजनीति में गजेन्द्र सिंह शेखावत और ओम बिरला जैसे सांसदों का दखल बढ़ गया है। शेखावत को जहां केन्द्रीय मंत्री बनाया गया, वहीं बिरला को लोकसभा का अध्यक्ष बनाया गया है। देखना होगा कि कार्यकारी अध्यक्ष से मुलाकात के बाद राजे भविष्य कैसे निर्धारित होता है। 
एस.पी.मित्तल) (22-06-19)
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Tuesday 18 June 2019

अजमेर के भाजपा नेताओं में तालमेल होता तो 18 करोड़ के ब्रह्मपुरी नाले को कवर करने का काम रद्द नहीं होता।

अजमेर के भाजपा नेताओं में तालमेल होता तो 18 करोड़ के ब्रह्मपुरी नाले को कवर करने का काम रद्द नहीं होता। कांग्रेस से ज्यादा भाजपा दोषी। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में अभी और झटके लगेंगे।
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स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत अजमेर के ब्रह्मपुरी नाले को कवर करने का काम अब राज्य की कांग्रेस सरकार ने रोक दिया है। यानि जयपुर रोड से लेकर तोपदड़ा फाटक तक का नाला कवर नहीं होगा। गत वर्ष 25 सितम्बर को भाजपा सरकार के तत्कालीन मंत्री वासुदेव देवनानी, श्रीमती अनिता भदेल, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा आदि ने नाला कवर के कार्य का शिलान्यास किया था। इस कार्य पर 18 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि खर्च होनी थी। यह सही है कि कोई एक किलोमीटर के नाले पर नागरिकों को यातायात का विकल्प मिलता। ब्रह्मपुरी क्षेत्र के नागरिक दुर्गंध से भी बचते। चूंकि यह कार्य भाजपा के शासन में तय हुआ था, इसलिए अब कांगे्रस के शासन में इस कार्य को नामंजूर कर दिया गया है। जो इंजीनियर भाजपा के शासन में नाला कवर को उपयोगी बता रहे थे वो ही इंजीनियर और अधिकारी कांग्रेस के राज में कह रहे हैं कि यह तकनीकी और कानूनी दृष्टि से सही नहीं है। जहां तक इंजीनियरों और अफसरों की राय का सवाल है तो सरकार बदलने के साथ ये लोग भी गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं, लेकिन इसमें कांग्रेस से ज्यादा अजमेर के भाजपा नेता दोषी हैं। वर्ष 2015 से 2018 तक का चार वर्ष का समय भाजपा का स्वर्णकाल रहा। आजादी के बाद पहला अवसर रहा, जब भाजपा का अजमेर से लेकर दिल्ली तक एक छत्र राज रहा। नगर निगम से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भाजपा का शासन था। अजमेर जिले के सात भाजपा विधायकों में से चार मंत्री पद की सुविधा भोग रहे थे। अजमेर के विकास को गति देने के उद्देश्य से ही एडीए के अध्यक्ष हेड़ा को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया। नरेन्द्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अजमेर को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल कर लिया। स्मार्ट सिटी के विभिन्न कार्यों के लिए दो हजार करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए। लेकिन अजमेर के भाजपा नेताओं में तालमेल नहीं था, इसलिए स्मार्ट सिटी के कार्य शुरू ही नहीं हो पाए। आनासागर के किनारे पथ-वे आदि के कार्य पूर्व कलेक्टर गौरव गोयल की वजह से हो गए। सब जानते हैं कि मंत्री देवनानी और भदेल के बीच कितने मधुर संबंध थे। यह भी सब जानते हैं कि एडीए का अध्यक्ष रहते हुए हेड़ा ने भाजपा के विधायकों एवं मेयर को कितना सहयोग किया। यदि भाजपा के नेताओं में तालमेल होता तो ब्रह्मपुरी नाला कवर का काम भाजपा शासन में ही हो जाता। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में मुश्किल से 500 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। इसमें से 250 करोड़ रुपए का ऐलीवेटेड रोड बन रहा है। यह तो अच्छा हुआ कि ऐलीवेटेड रोड का काम शुरू हो गया, नहीं तो कांग्रेस के शासन में इसे भी रद्द कर दिया जाता। 
भाजपा ने लगाई थी स्लम फ्री सिटी योजना पर रोक:
वर्ष 2009 से 2014 के बीच जब सचिन पायलट अजमेर के सांसद और केन्द्रीय मंत्री थे, तब अजमेर की कच्ची और पिछड़ी बस्तियों के विकास के लिए स्लम फ्री सिटी योजना लागू की गई, लेकिन प्रदेश में भाजपा का शासन आते ही पायलट की इस योजना को रोक दिया गया। जो काम भाजपा ने पांच वर्ष पहले किया था वो ही काम अब कांग्रेस की सरकार ने किया है। 
एस.पी.मित्तल) (18-06-19)
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कचहरी रोड से आने वाले ट्रेफिक को मदार गेट बाजार में प्रवेश नहीं देने का कोई तुक नहीं।

कचहरी रोड से आने वाले ट्रेफिक को मदार गेट बाजार में प्रवेश नहीं देने का कोई तुक नहीं।
जब जन प्रतिनिधि जागरुक नहीं होते हैं तब अफसरशाही ऐसे ही फैसले करती है।
अजमेर में यातायात व्यवस्था का बुरा हाल।

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अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अजमेर शहर में इन दिनों ऐलीवेटेड रोड निर्माण का कार्य चल रहा है। बीच सड़क बाधा उत्पन्न न हो, इसलिए 17 जून से प्रशासन ने यातायात की विशेष व्यवस्था की है। कचहरी रोड के ट्रेफिक को गांधी भवन चौराहे से मुडऩे पर रोक लगा दी है। अब कचहरी रोड की ओर से आने वाले चौपहिया वाहनों को एक किलोमीटर दूर मार्टिंडल ब्रिज से घूमना पड़ेगा। इसी प्रकार दोपहिया वाहनों को क्लॉक टावर चौराहे से मदार गेट बाजार में आना होगा। यानि कचहरी रोड से आना वाला दुपहिया वाहन चालक गांधी भवन चौराहे से मदार गेट में प्रवेश नहीं कर सकता है। पीआर मार्ग पर पहले ही एक तरफा यातायात व्यवस्था लागू कर दी गई है। असल में अब गांधी भवन चौराहे पर ट्रेफिक प्रबंधन की जरुरत ही नहीं रहती है। एक तरफा यातायात होने की वजह से ट्रेफिक अपने आप चलता रहेगा। नि:संदेह इससे अजमेर की यातायात पुलिस को सुविधा होगी। सब जानते हैं कि मदार गेट अजमेर का हृदय स्थल है। आम नागरिक मदार गेट बाजार से ही सामान खरीदने में रुचि रखता है। यदि कचहरी रोड से गांधी भवन चौराहे पर आने वाले ट्रेफि को मदार गेट बाजार में प्रवेश दिया जाता है तो गांधी भवन चौराहे पर पुलिस को ट्रेफिक के प्रबंधन करने होंगे। हालांकि इससे शहरवासियों को सुविधा होगी।  यातायात पुलिस ने पहले अपनी सुविधा का ख्याल रखा है। असल में जब जनप्रतिनिधि जागरुक नहीं होते हैं तब अफसरशाही ऐसे ही जन विरोधी फैसले करते हैं। गत चार बार से अजेमर की जनता भाजपा के वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल को ही अपना विधायक चुनती आ रही है। दोनों विधायक एक बार सरकार में पक्ष में रहते है। इस बार विपक्ष में रहने की बारी है। जब विपक्ष में होते हैं तो हर बुराई के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। यह माना कि अब कांग्रेस के शासन में अफसरशाही की ही चलेगी, लेकिन दोनों विधायक अपना जनप्रतिनिधि होने का दायित्व तो निभा ही सकते हैं। अजमेर शहर में ट्रेफिक की नई व्यवस्था से नागरिकों को जो परेशानी हो रही है उसमें दोनों भाजपा विधायकों को एक साथ आकर लोगों को राहत दिलवानी चाहिए। 
एस.पी.मित्तल) (18-06-19)
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लोकसभा में हूड़दंग करना अब विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।



लोकसभा में हूड़दंग करना अब विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। 
ओम बिड़ला को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित कर मोदी-शाह की जोड़ी ने फिर चौंकाया। 
राजस्थान की राजनीति पर पड़ेगा असर। कोटा से ही गुजर रही है चम्बल नदी।
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18 जून को राजस्थान के कोटा के सांसद ओम बिड़ला को भाजपा ने लोकसभा अध्यक्ष का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। चूंकि लोकसभा में 542 में से 303 भाजपा के सदस्य हैं, इसलिए बिड़ला के अध्यक्ष चुनने में कोई संशय नहीं है। सर्वसम्मति से चयन के लिए आंध प्रदेश की वाईएसआर और उड़ीसा की बीजेडी ने भाजपा उम्मीदवार को समर्थन दे दिया है। बिड़ला को उम्मीदवार बना कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है। 17 जून की रात तक कहा जा रहा था कि आठ बार के सांसद संतोष गंगवार और श्रीमती मेनका गांधी में से किसी एक को लोकसभा का अध्यक्ष बनाया जाएगा लेकिन मोदी शाह की जोड़ी ने दूसरी बार के सांसद बिड़ला को उम्मीदवार घोषित कर दिया। इतने जूनियर सांसद को लोकसभा का अध्यक्ष बनाने के पीछे क्या मापदंड रहे, यह तो मोदी-शाह ही बता सकते हैं। लेकिन इतना जरूर है कि अब लोकसभा में हूड़दंग करना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। बिड़ला भले ही दूसरी बार सांसद बने हों, लेकिन बहुत सख्त मिजाज के हैं। जिन लोगों ने कोटा में बिड़ला की राजनीति देखी है उन्हें पता है कि कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले हाड़ौती क्षेत्र में राजनीति करना आसान नहीं है। कोटा के हाड़ौती क्षेत्र से ही चम्बल नदी गुजरती है। चम्बल के किनारे बीहड़ों के किस्से किसी से छिपे नहीं है। बिड़ला तीन बार विधायक भी रहे हैं और एक बार तो कांग्रेस के दिग्गज शांति धारीवाल को हराया है। धारीवाल वर्तमान में राजस्थान के नगरीय विकास मंत्री हैं। यानि लोकसभा में विपक्ष के किसी सांसद ने माहौल खराब करने की कोशिश की तो नियमों के तहत मार्शल का इस्तेमाल करने में कोई देरी नहीं होगी। यह लिखने की जरुरत नहीं कि बिड़ला की वफादारी किसके प्रति होगी। वैसे भी मौजूदा सत्र बहुत महत्वपूर्ण होगा। तीन तलाक का बिल इसी सत्र में पेश होना है। आने वाले समय में संवैधानिक दृष्टि से लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका देश की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण होगी। बिड़ला की नियुक्ति के दूरगामी परिणाम होंगे। 
राजस्थान पर असर:
ओम बिड़ला के लोकसभा अध्यक्ष बनने का असर राजस्थान की राजनीति  पर भी पड़ेगा। दिसम्बर 2018 तक राजस्थान में भाजपा की राजनीति में वसुंधरा राजे एक मात्र नेता थीं। राजे की सिफारिश से ही केन्द्र में मंत्री बनते थे। राजस्थान के भाजपा नेताओं का राजनीतिक भविष्य राजे के हाथ में ही था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। जिन गजेन्द्र सिंह शेखावत को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनने से रोका गया, वहीं शेखावत आज केन्द्र में जल शक्ति मंत्रालय के केबिनेट मंत्री हैं। कैलाश चौधरी जैसे प्रथम बार के सांसद को राज्यमंत्री बना दिया गया है। अब ओम बिड़ला जैसे जूनियर सांसद को लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया गया है। यानि अब राजस्थान में कई नेता राष्ट्रीय स्तर के हो गए हैं। अब मुख्यमंत्री पद के एक नहीं बल्कि कई दावेदार हैं। दावेदार भी ऐसे जो संगठन को महत्व देते हैं। जिन नेताओं ने स्वयं को संगठन से बड़ा माना, अब वो बौने हो गए हैं। बदली हुई परिस्थितियों में अब उनकी कोई पूछ नहीं है। शायद इन हालातों को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी समझ रही होंगी। 
एस.पी.मित्तल) (18-06-19)
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फिर नींव का पत्थर साबित हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव।



फिर नींव का पत्थर साबित हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव। 
नड्डा बने कार्यकारी अध्यक्ष।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह के भरोसेमंद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव भाजपा की राजनीति में एक बार फिर नींव के पत्थर साबित हुए हैं। अमितशाह के केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद से ही कार्यवाहक अध्यक्ष की चर्चा शुरू हो गई थी। तब जेपी नड्डा और भूपेन्द्र यादव के नाम ही उभर कर सामने आए। लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष बनने का अवसर नड्डा को मिला। नड्डा के नाम की घोषणा होते ही बधाई देने वालों में भूपेन्द्र यादव सबसे आगे थे। असल में यादव अपने तरीके से राजनीति करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर भी अपनी मेहनत और योग्यता से पहुंचे हैं। उन्हें पार्टी की ओर से जो भी कार्य मिलता है उसे बाखूबी निभाते हैं। हाल के लोकसभा चुनाव में यादव को बिहार का प्रभारी बनाया गया था। परिणाम बताते हैं  कि बिहार की 40 में 39 सीटों पर भाजपा-जेडीयू गठबंधन की जीत हुई। भाजपा तो सभी 17 सीटों पर जीती। 2014 के चुनाव में यादव के पास नरेन्द्र मोदी के बनारस की जिम्मेदारी थी। यादव राजस्थान की राजनीति में भी सक्रिय रहे। यादव राजनीति में विवादों से दूर रहते हैं। इसलिए राजस्थान की राजनीति से स्वयं को दूर कर लिया। हालांकि पार्टी अध्यक्ष अमितशाह ने यादव को दिल्ली में बड़ी जिम्मेदारी दे रखी हैं। यादव राजस्थान से ही राज्यसभा के सांसद हैं और उन्होंने अपना स्थायी निवास अजमेर में  बना रखा है। इस नाते मेरा भी यादव से संवाद बना रहता है। मैंने यह महसूस किया है कि यादव धैर्यवान राजनेता के साथ साथ बहुत गंभीर प्रकृति के हैं। उन्हें राजनीति में कभी भी मौकों की तलाश नहीं रहती है। और न ही कभी वे किसी पद के लिए लॉबिंग करते हैं। यादव शायद इसे ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं कि उन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमितशाह का भरोसा बना हुआ है। देश के महत्वपूर्ण फैसलों में यादव की भूमिका होती है, लेकिन वे कभी लाइम लाइट में नहीं आते। वे भाजपा संगठन और सरकार में नींव का पत्थर ही बने रहने चाहते हैं। माना जा रहा है कि नड्डा के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद संगठन में यादव की सक्रियता और प्रभावी हो जाएगी। 18 जून को कोटा के सांसद ओम बिड़ला का लोकसभा अध्यक्ष पद का नामांकन करवाने में भी यादव की भूमिका महत्वपूर्ण रही। यादव की राजनीति की एक खासियत यह भी है कि वे सफलता पाने के लिए दूसरे की लाइन को छोटा नहीं करते हैं। बल्कि स्वयं की लाइन को बड़ा करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। 
एस.पी.मित्तल) (18-06-19)
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Sunday 16 June 2019

तो अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए शिवसेना संसद में कानून बनाने का प्रस्ताव क्यों नहीं लाती?

तो अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए शिवसेना संसद में कानून बनाने का प्रस्ताव क्यों नहीं लाती? सिर्फ मांग करने से क्या होगा?
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16 जून को शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी के सभी 18 सांसदों के साथ अयोध्या में रामलला के दर्शन किए। दर्शन के बाद ठाकरे ने मीडिया से कहा कि भगवान राम का भव्य मंदिर बनवाने के लिए केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को संसद में कानून बनाना चाहिए। इस कानून के प्रस्ताव का शिव सेना सहयोग करेगी। 18 सांसदों के साथ अयोध्या आकर उद्धव ठाकरे राजनीति कर रहे हैं के सवाल पर ठाकरे ने कहा कि मैं राजनीति में हंू इसमें राजनीति करने की क्या बात है। ठाकरे ने कहा कि अयोध्या में राममंदिर के लिए देश भर के हिन्दुओं को एकजुट होना चाहिए। सवाल उठता है कि जो शिवसेना केन्द्र सरकार से कानून बनाने की मांग कर रही है वह संसद में कानून बनाने का प्रस्ताव पेश क्यों नहीं करती? जब लोकसभा में शिवसेना के 18 सांसद हैं तो फिर शिवसेना अपनी ओर से प्रस्ताव पेश कर सकती है। चूंकि शिवसेना भाजपा का सहयोगी संगठन है इसलिए शिवसेना का प्रस्ताव अपने आप में महत्वपूर्ण होगी। इस प्रस्ताव के माध्यम से यह पता चल जाएगा कि मंदिर बनाने के खिलाफ कौन कौन से दल हैं। जहां तक मंदिर निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने का सवाल है तो यह मामला पिछले कई दशकों से न्यायालयों में लम्बित पड़ा हुआ है। इलाहबाद हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया उसे किसी भी पक्ष ने स्वीकार नहीं किया। ऐसे में अब सरकार का ही दायित्व बनता है कि वह कानून लाकर अयोध्या में मंदिर निर्माण करवावे। इस मामले में शिवसेना अहम भूमिका निभा सकती है। यदि शिवसेना सिर्फ मांग करती रही तो यह मामला न्यायालयों में ही लम्बित रहेगा। जहां तक आपसी सहमति का सवाल है तो इस पर पहले भी बहुत मशक्कत हो चुकी है, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। लोकसभा के हाल ही के चुनावों में जिस तरह भाजपा को सफलता मिली है उससे भाजपा पर मंदिर निर्माण का दबाव और बढ़ गया है। 
एस.पी.मित्तल) (16-06-19)
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राजस्थान में लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 80 लाख वोट ज्यादा मिले।



राजस्थान में लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 80 लाख वोट ज्यादा मिले। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले थे। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की दर्शनीय उपस्थिति।
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16 जून को राजस्थान भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक जयपुर में तोतुका भवन में सम्पन्न हुई। इस बैठक में भाजपा के नवनिर्वाचित सांसद भी उपस्थित रहे। केन्द्रीय संसदीय राज्यमंत्री अर्जुन मेघवाल दिल्ली में व्यस्त रहने की वजह से नहीं आए, लेकिन केबिनेट मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और राज्यमंत्री कैलाश चौधरी पूरे उत्साह और उमंग के साथ उपस्थित रहे। बैठक की कमान प्रदेश संगठन मंत्री चन्द्रशेखर के हाथों में थी। लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर जीत से चन्द्रशेखर भी उत्साहित थे। बैठक में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि लोकसभा का यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आजादी के बाद यह पहला अवसर रहा जब राजस्थान में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले में 80 लाख वोट ज्याद मिले हैं। इसका श्रेय कार्यकर्ताओं की मेहनत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा है। 80 लाख वोटों की जीत बताती है कि राजस्थान में भाजपा कितनी मजबूती के साथ खड़ी है। आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को 200 में से 150 विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली है। कटारिया जब पूरे उत्साह के साथ लोकसभा चुनाव के आंकड़े बता रहे थे, तब बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी उपस्थित थीं, लेकिन उनके चेहरे पर खुशी का कोईभाव नहीं था। सब जानते हैं कि पांच माह पहले विधानसभा का चुनाव भाजपा ने राजे के नेतृत्व में ही लड़ा था और भाजपा को हार का समना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले कांगे्रस को मात्र डेढ़ लाख मत ज्यादा मिले थे। विधानसभा चुनाव में डेढ़ लाख मतों की हार और लोकसभा चुनाव में 80 लाख मतों की जीत राजस्थान की राजनीति को बयां करती है। सवाल उठता है कि पांच माह में ऐसा क्या हो गया जो हार और जीत का इतना बड़ा अंतर रहा। असल में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वसुंधरा राजे का और लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखा। यदि विधानसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखा। यदि विधानसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखा जाता वो आज राजस्थान में भाजपा की सरकार होती। भाजपा के नेता माने या नहीं लेकिन विधानसभा चुनाव में सिर्फ वसुंधरा राजे की वजह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश की जनता ने तो जनवरी 2018 में हुए अजमेर और अलवर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में ही इशारा कर दिया था, लेकिन वसुंधरा राजे और भाजपा के नेताओं के बुरी तरह हारने के बाद भी मतदाताओं का इशारा नहीं समझा। उल्लेखनीय है कि लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा को दोनों संसदीय क्षेत्रों के सभी 16 विधानसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा था। 
राजे की दर्शनीय उपस्थिति:
इसे राजनीति और समय का चक्र ही कहा जाएगा कि जिन वसुंधरा राजे के बगैर राजस्थान में सरकार और संगठन में पत्ता भी नहीं हिलता था, उन्हीं वसुंधरा राजे की 16 जून को भाजपा को प्रदेश कार्य समिति की बैठक में दर्शनीय उपस्थिति रही। हालांकि विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था, लेकिन राजे को मोह अभी भी प्रदेश की राजनीति से कम नहीं हुआ है। यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव में राजे की कोई प्रभावी भूमिका नहीं थी। कुछ स्थानों को छोड़ कर राजे ने प्रदेशव्यापी दौरा भी नहीं किया। यदि 16 जून जैसे ही हालात रहे तो भाजपा की बैठकों में भी राजे की कोई प्रांसगिता नहीं रहेगी। जोधपुर से गजेन्द्र सिंह शेखावत, बाड़मेर से कैलाश चौधरी, बीकानेर से अर्जुन मेघवाल, राजसमंद से दीयाकुमारी आदि भाजपा उम्मीदवारों ने राजे की भूमिका के बारे में भाजपा के बड़े नेताओं को कई महत्वपूर्ण जानकारी दी है। 
एस.पी.मित्तल) (16-06-19)
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रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया की कहावत को चरितार्थ कर रही है ममता बनर्जी।

रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया की कहावत को चरितार्थ कर रही है ममता बनर्जी।
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उम्मीद की जानी चाहिए कि 16 जून को पश्चिम बंगाल के हड़ताली डॉक्टरों और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच सुलह हो जाए। यदि सुलह नहीं होती है तो 17 जून से देशभर के एम्स अस्पतालों के डॉक्टर हड़ताल पर चले जाएंगे। इससे देश के मरीजों को भारी परेशानी होगी। एम्स में डॉक्टरों को दिखाने के लिए मरीजों को 6 माह से लेकर 12 माह तक का इंतजार करना पड़ता है। एक सप्ताह पहले कोलकाता के अस्पताल में जिस तरीके से जूनियर डॉक्टरों की पिटाई की उससे बंगाल के साथ-साथ देश के प्रमुख शहरों की चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुख्यमंत्री का काम हालात को सुधारना होता है, लेकिन ममता के बयानों से हालात और बिगाड़ गए। हड़ताल में जो ममता डॉक्टरों पर मुस्लिम मरीजों के इलाज  नहीं करने का इल्जाम लगा रही थीं, वहीं ममता अब हड़ताली डॉक्टरों की मांग पर माफी मांगने को तैयार नहीं है। ममता का कहना है कि जब डॉक्टरों की मांगे मान ली गई है तो माफी किस बात की? डॉक्टरों को भी ममता के व्यवहार के बारे में पता है इसलिए माफी को मुद्दा नहीं बनाया जा रहा है। असल में ममता बनर्जी रस्सी जल गई, लेकिन बल नहीं गया की कहावत को चरितार्थ कर रही है। लोकसभा चुनाव में बंगाल में मात्र 22 सीटें मिलने के बाद भी ममता राजनीतिक सबक नहीं ले रही हैं। 2014 में जिस भाजपा के पास दो सीटें थीं वहां 2019 में भाजपा को बगाल में 18 सीटें मिली हैं। असल में बंगाल के मूल बंगाली भी समझ गए हैं कि ममता बनर्जी मोह की खातिर पश्चिम बंगाल को किस दिशा में ले जा रही है। लेकिन ममता बनर्जी अभी स्वयं को बंगाल का सबसे बड़ा नेता समझ रही हैं। जबकि मौजूदा हालातों में ममता की पकड़ ढीली होती जा रही है। यदि मूल बंगालियों पर पकड़ होती तो बंगाल के डॉक्टर हड़ताल पर नहीं जाते। ममता बार बार कह रही है कि भाजपा के इशारे पर हड़ताल हो रही है। यानि बंगाल के डॉक्टर ममता का नहीं बल्कि भाजपा का कहना मानते हैं। देखा जाए तो ममता स्वयं भाजपा का राजनीतिक कद बढ़ा रही है। आठ वर्ष पहले बंंगाल में वामपंथी सरकार को उखाडऩे पर ममता को परिपक्व नेता माना गया, लेकिन लोकसभा चुनाव में हार के बाद तो ममता बनर्जी बचकानी हरकतें कर रही हैं। 
एस.पी.मित्तल) (16-06-19)
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Sunday 9 June 2019

आखिर अजमेर क्यों नहीं आते प्रभारी मंत्री प्रमोद जैन?



आखिर अजमेर क्यों नहीं आते प्रभारी मंत्री प्रमोद जैन?
रघु शर्मा तो हार की वजह से पहले ही रुठे हुए हैं। 
अब प्रभारी सचिन हेमंत गेरा पर आस।
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45 डिग्री के तापमान में अजमेर के शहरी क्षेत्र में तीन दिन तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 7 दिन में एक बार मात्र 45 मिनट के लिए पेयजल की सप्लाई। पानी के अभाव में पुष्कर का पवित्र सरोवर सूखने के कगार पर है। ऐलीवेटेड रोड के निर्माण से बिगड़ी ट्रेफिक व्यवस्था। पुलिस के सुस्त रवैए से अपराधों में वृद्धि, सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार आदि की समस्याओं को लेकर अजमेर में त्राहि त्राहि मची हुई है। लोगों को पीने के पानी के लिए एक टेंकर की कीमत एक हजार रुपए तक चुकानी पड़ रही है, लेकिन अजमेर में लोगों की समस्याओं का समाधान करने वाला कोई नहीं है। पांच माह पहले अशोक गहलोत के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार ने खान मंत्री प्रमोद जैन को अजमेर का प्रभारी मंत्री बनाया था। प्रभारी मंत्री इसलिए बनाया जाता है कि वह सरकार के कार्यों की समीक्षा कर लोगों को राहत पहुंचाए, लेकिन मंत्री जैन लम्बे अर्से से अजमेर नहीं आए हैं। प्रभारी मंत्री के नहीं आने से प्रशासन पर कोई नियंत्रण नहीं है। हालांकि प्रमोद जैन अपने खान विभाग को लेकर दु:खी और परेशान चल रहे हैं। खान विभाग के अफसर जैन की सुनते नहीं है। यह आरोप खुद जैन ने ही लगाया है। लेकिन फिर भी अजमेर की जनता अपने प्रभारी मंत्री का इंतजार कर रही है। लोगों को भरोसा है कि प्रभारी मंत्री के आने से कम से कम पेयजल सप्लाई में तो थोड़ा सुधार होगा। फिलहाल अजमेर के लोग जलदाय विभाग के इंजीनियरों के रहमो करम पर हैं। यूं अजमेर के लोगों की समस्याओं के समाधान की जिम्मेदारी केकड़ी के विधायक और प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की भी है, लेकिन रघु शर्मा अब अजमेर के लोगों से खफा बताए जाते हैं। अजमेर खास कर अपने विधानसभा क्षेत्र के केकड़ी के नागरिकों को देखते ही रघु शर्मा चिढ़ जाते हैं। हाल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी आठ विधानसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। रघु शर्मा के केकड़ी क्षेत्र से 39 हजार मतों की हार हो गई, जबकि रघु ने पांच माह पहले केकड़ी से 17 हजार मतों से जीत हासिल की थी। हालांकि लोकतंत्र में हार जीत चलती रहती है, लेकिन रघु शर्मा कुछ ज्यादा ही खफा है। केकड़ी में तो राजनीतिक द्वेषता से काम कर रहे हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार रघु के रुखे व्यवहार से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी परेशान है। चिकित्सा विभाग में आए दिन हो रहे विवादों की वजह से कांग्रेस की सरकार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। चूंकि रघु को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट का संरक्षण है, इसलिए मुख्यमंत्री भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। यही वजह है कि रघु शर्मा खुले तौर पर राजनीतिक दादागिरी कर रहे हैं। लोग अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के सक्रिय होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि रघु की राजनीतिक गतिविधियों के बारे में जानकार दी जा सके। सूत्रों की माने तो प्रभारी मंत्री प्रमोद जैन भी रघु के व्यवहार की वजह से ही अजमेर नहीं आ रहे हैं। रघु के रुखे व्यवहार के विरोध में गत तीन जून को केकड़ी भी बंद रहा। लोकसभा चुनाव में बुरी हार और बढ़ते विरोध के बाद भी रघु शर्मा अपने व्यवहार में सुधार नहीं कर रहे हैं। 
प्रभारी सचिव पर आस :
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 7 जून को ही वरिष्ठ आईएएस को जिला प्रभारी सचिव नियुक्त किया है। इससे प्रदेश के चिकित्सा (शिक्षा) सचिव हेमंत गेरा को अजमेर का प्रभारी सचिव बनाया है। गेरा अजमेर में डिस्कॉम के एमडी के पद पर कार्य कर चुके हैं। गेरा का कार्यकाल उल्लेखनीय रहा। गेरा कुछ दिनों के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त भी रहे। गेरा न ही प्राधिकरण और डिस्कॉम में जनसुनवाई की शुरुआत की थी। हो सकता है कि गेरा अजमेर में प्रभारी सचिव की हैसियत से जनसुनवाई करें, यदि गेरा ऐसा करते हैं तो लोगों को राहत मिलेगी। 
एस.पी.मित्तल) (09-06-19)
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अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को खुश करने में जुटे।

अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को खुश करने में जुटे। गहलोत ने दिल्ली में डेरा जमाया तो पायलट सरकारी दौरे पर। राहुल गांधी का हर बदलाव मंजूर-पायलट।
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लोकसभा चुनाव में मिली हार से नाराज चल रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को खुश करने के लिए अब राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने दिल्ली में डेरा जमा लिया है तो डिप्टी सीएम सचिन पायलट दो दिन के सरकारी दौरे पर निकले हैं। राजस्थान में तापमान जब 45 डिग्री के पार है तब पायलट 9 जून को सिरोही के दौरे पर रहे। पायलट 10 जून को जालौर में विभिन्न सरकारी बैठकें लेंगे। डिप्टी सीएम के पांच माह में पहला अवसर है, जब पायलट जिला स्तर पर प्रशासनिक बैठकें ले रहे हैं। इससे पहले पायलट ने अपने पंचायतीराज, पीडब्ल्यूडी और ग्रामीण विकास आदि विभागों की समीक्षा की। पायलट अब यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें गहलोत सरकार में काम करने पर कोई एतराज नहीं है। छोटे से सिरोही जिले के कलेक्ट्रेट के सभागार में पायलट के द्वारा जिला स्तरीय बैठक करना अपने आप में महत्वपूर्ण है। असल में पायलट ने ऐसा निर्णय वर्तमान हालातों को देखते हुए लिया है। पायलट फिलहाल ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहते जिससे गहलोत के साथ मतभेद नजर आते हों।
गहलोत दिल्ली में सक्रिय :
इधर पायलट स्वयं को गहलोत सरकार का हिस्सेदार दिखा रहे हैं तो उधर दिल्ली में सीएम गहलोत ने डेरा जमा लिया है। गहलोत 8 जून को ही दिल्ली पहुंच गए थे। 9 जून को दिल्ली के जोधपुर हाउस में गहलोत ने हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा से मुलाकात की। गहलोत शाम तक गांधी परिवार के सलाहकार अहमद पटेल से भी मिलेंगे। दिल्ली में गहलोत की सारी कवायद राहुल गांधी को खुश करने के लिए हो रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता का मानना है कि गहलोत पर राहुल गांधी का आज भी भरोसा है। 26 मई को सीडब्ल्यूसी की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी ने कांगे्रस के किसी भी नेता से मुलाकात नहीं की  है। लेकिन माना जा रहा है कि 10 जून को गहलोत की राहुल गांधी से मुलाकात हो जाएगी। राहुल गांधी 8 व 9 जून को अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे पर हैं। 9 जून की रात को राहुल गांधी दिल्ली लौटेंगे। राहुल गांधी से मुलाकात से पहले गहलोत का कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात मायने रखती है। गहलोत श्रीमती सोनिया गांधी से भी मिल सकते हैं। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी अभी भी अपने इस्तीफे पर अड़े हुए हैं। राहुल का कहना है कि गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाए। कांग्रेस में जो संकट चल रहा है उसके समाधान के लिए ही गहलोत दिल्ली पहुंचे हैं। राहुल गांधी की जिद ने कांग्रेस के उन युवा नेताओं का भी भ्रम दूर कर दिया है जो राहुल से दोस्ती होने का दावा करते थे। यदि 10 मई को गहलोत की राहुल गांधी से मुलाकात करने में सफलता मिली है तो इसका असर राजस्थान की राजनीति पर भी पड़ेगा।
राहुल का हर बदलाव मंजूर-पायलट:
9 जून को उदयपुर के डबोक हवाई अड्डें पर मीडिया से संवाद करते हुए पायलट ने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांशी जो भी बदलाव करेंगे वह मुझे मंजूर है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने तो पहले ही प्रस्ताव पास कर रखा है। उन्होंने कहा कि कांगे्रस का हर कार्यकर्ता चाहता है कि राहुल गांधी ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे। पायलट ने कहा कि आम लोगों को राहल देने के लिए ही वे जिला स्तर पर प्रशासनिक बैठकें कर रहे हैं। 
एस.पी.मित्तल) (09-06-19)
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बूंद-बूंद पानी को तरस रहा है अजमेर और हजारों गेलन अमृत नाले में बह गया।
जलदाय विभाग ने कहा टाटा पावर कंपनी ने तोड़ी पाइप लाइन।
क्या दोषी अफसरों पर कार्यवाही होगी? लापरवाही की हद है। 

भीषण गर्मी में अजमेर के नागरिक जब बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं तब 9 जून को अमृत समान हजारों गेलन पानी नाले में बह गया। शर्मनाक बात तो यह है कि इस लापरवाही की जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा है। शहर के जागरुक नागरिक शैलेन्द्र गुप्ता ने जलदाय विभाग के इंजीनियरों को सुबह ही सूचना दे दी कि सुभाष बाग के सामने सुंदर विलास के नाले से गुजर रही पाइप लाइन टूट गई है और भारी मात्रा में पानी नाले और सड़क पर बह रहा है। लेकिन गुप्ता की सूचना पर जलदाय विभाग का कोई भी इंजीनियर मौके पर नहीं आया। कोई एक घंटे तक 8 इंच मोटी पाइप लाइन से पानी बहता रहा। जो अजमेर वासी बूंद बंूंद पानी को तरस रहे हैं उन्होंने जब अमृत नाले में बहता देखा तो आंखों से आंसू निकल गए। जलदाय विभाग के एक्सईएन राजेश सुबोत्रा और क्षेत्र के एईएन एसके बाकलीवाल ने कहा कि हजारों गेलन पानी बह जाने से हमारा कोई कसूर नहीं है। टाटा पावर कंपनी ने केबल बिछाते समय हमारी पाइप लाइन तोड़ दी। पाइप लाइन तोडऩे की जानकारी विभाग को नहीं दी। यही वजह रही कि जब 9 जून को सप्लाई दी गई तो पानी व्यर्थ हो गया। अब जलदाय विभाग टाटा पावर कंपनी के खिलाफ कार्यवाही करेगा। जहां तक सूचना मिलने पर सप्लाई बंद नहीं करने का सवाल है तो क्षतिग्रस्त पाइप लाइन में बाबूगढ़ की टंकी से सप्लाई होती है, यह टंकी दस किलोमीटर दूर है। एक बार सप्लाई शुरू हो जाने के बाद पाइप लाइन के पानी को रोकना मुश्किल होता है। उल्लेखनीय है कि अजमेर शहर में टाटा पावर कंपनी ही विद्युत वितरण का कार्य कर रही है। वहीं टाटा पावर ने पाइप लाइन तोड़े जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन होगा? विभागों के अधिकारी एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपने दायित्व से बच नहीं सकते हैं। सरकार को उन अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करनी ही चाहिए जो दोषी हैं। जहां तक पेयजल की पाइप लाइन तोडऩे का सवाल है तो सब जानते हैं कि केबल बिछाने या अन्य कोई कार्य ठेकेदार के द्वारा किया जाता  है। मौके पर संबंधित विभाग के  इंजीनियर अथवा अधिकारी नहीं होते हैं। ठेकेदार भी अकुशल श्रमिकों से यह कार्य करवाता है। इसी का नतीजा होता है कि आए दिन जलदाय विभाग, टेलीफोन, बिजली आदि की केबल टूट जाती है। लेकिन आज तक भी दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई इसलिए ऐसी लापरवाही पर अंकुश नहीं लगता है। पाइप लाइन से पानी बहने का वीडियो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog   पर देखा जा सकता है।

एस.पी.मित्तल) (09-06-19)
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