Sunday 19 May 2019

देश के लिए खतरे की घंटी है पश्चिम बंगाल की हिंसक घटनाएं। सेंट्रल फोर्स की मौजूदगी और चुनाव आयोग की सख्ती के बाद भी मतदान के दौरान बमबारी।
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19 मई को लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में पश्चिम बंगाल की नौ सीटों पर भी मतदान हुआ। डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले अभिषेक बनर्जी टीएमएसी के उम्मीदवार है। भतीजे को हर हाल में चुनाव जितवाने के लिए ममता सरकार ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह की सभा पर रोक लगा दी थी। 19 मई को इस्लामपुर, मथुरापुर आदि में खुलेआम बमबारी हुई। यहां तक की मीडिया कर्मियों को भी पीटा गया, ताकि हिंसक घटनाएं कैमरे में कैद नहीं हो। टीएमसी के विरोधी मतदाताओं को तो मतदान केन्द्र तक पहुंचने ही नहीं दिया गया।
लोगों को पकड़ कर मारपीट की घटनाएं तो सामान्य मानी गई। यह तब हुआ जब चुनाव आयोग ने इन नौ सीटों पर बीस घंटे पहले प्रचार पर रोक लगा दी थी। प्रदेश के गृह सचिव तक को बदल दिया गया। इतना ही नहीं मतदान केन्द्र पर बंगाल पुलिस के बजाए सेंट्रल फोर्स के जवानों की तैनाती की गई।  यदि इतनी सख्ती के बाद भी बमबारी की वारदातें हों तो बंगाल के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री होने या न होने का नहीं है, अहम सवाल बंगाल के उन आपराधिक तत्वों का है जो सेंट्रल फोर्स के सशस्त्र जवानों से भी नहीं डर रहे हैं। यदि ऐसे तत्व टीएमसी के राजनीतिक कार्यकर्ता होते तो कभी ऐसी बमबारी नहीं करते। ऐसे तत्व देश को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, जिनका मकसद भारत की एकता और अखंडता को क्षति पहुंचाना है। ऐसे तत्वों के लिए ममता बनर्जी तो सिर्फ एक मुखौटा है। ममता फिलहाल इस बात से खुश हो सकती हैं कि आपराधिक तत्व उनकी टीएमसी को जितवाने का कार्य कर रहे हैं। जब हालात नियंत्रण से बाहर जाएंगे तो ममता को भी पछताना पड़ेेगा। पश्चिम बंगाल में किन परिस्थितियों में चुनाव हुए हैं, यह बात ममता भी जानती हैं। ममता ने पूरे प्रशासनिक ढांचे का उपयोग अपनी पार्टी के लिए किया। यही वजह है कि आपराधिक तत्वों को सरकार का संरक्षण मिला हुआ है। ममता खुले आम कह रही है कि वे नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री नहीं बल्कि गुंडा मानती है। ममता के इस बयान से बंगाल के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। ममता ने प्रधानमंत्री के लिए जिस भाषा का इस्तेमाल किया है, उससे सबसे ज्यादा खुशी बंगाल के आपराधिक तत्वों को हो रही है। 
एस.पी.मित्तल) (19-05-19)
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ईवीएम में दर्ज मतों की गणना के बाद होगा वीपीपेट की पर्चियों से मिलान।
तब तक परिणाम की अधिकृत घोषणा नहीं।
चुनाव आयोग ने जारी किए मतगणना के आवश्यक निर्देश।
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19 मई को देशभर में लोकसभा चुनाव के मतदान की प्रक्रिया पूरी हो रही है। अब सबकी निगाहें 23 मई को होने वाली मतगणना पर लगी हुई है। देश के चुनावी इतिहास में यह पहला अवसर होगा, तब एक विधानसभा क्षेत्र के पांच मतदान केन्द्र की ईवीएम मशीन में दर्ज वोटों का मिलान वीवीपेट की पॢचयों से होगा। हालांकि चुनाव आयोग ने इस बार ईवीएम को वीपीपेट से जोड़ा है। वीवीपेट पर देख कर सभी मतदाताओं ने यह सुनिश्चित किया है कि उसका वोट सही तरीके से दर्ज हुआ है। विपक्षी दलों की मांग और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुरूप चुनाव आयोग ने फैसला किया है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच वीपीपेट की पॢचयों का मिलान ईवीएम में दर्ज मतों से होगा। अजमेर संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र है तो चालीस मतदान केन्द्रों पर मतों की गणना के लिए यह पक्रिया अपनाई जाएगी। राजस्थान के निर्वाचन विभाग के विशेषाधिकारी हरिशंकर गोयल ने बताया कि 23 मई को पहले संबंधित संसदीय क्षेत्र की मतगणना विधानसभा वार होगी। ईवीएम में दर्ज मतों की गणना पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के पांच मतदान केन्द्र का रेंडम पद्धति से चयन होगा। चयन की प्रक्रिया भी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने होगी। इन पांच केन्द्रों की ईवीएम के मतों का मिलान वीवीपेट की पॢचयों से होगा। वैसे तो सभी केन्द्रों पर वीवीपेट की पॢचयों के अनुरूप ही ईवीएम के वोट होंगे, लेकिन यदि किसी ईवीएम के वोटों में अंतर सामने आया तो वीवीपेट की पॢचयों के अनुरूप ही उम्मीदवारों के वोट दर्ज किए जाएंगे। जब तक वीवीपेट की पॢचयों का मिलान का का र्य पूरा नहीं होगा, तब तक परिणाम की अधिकृत घोषणा नहीं होगी। हालांकि ईवीएम के मतों की गणना की जानकारी आयोग के निर्देश के अनुरूप सार्वजनिक की जाती रहेगी। वीवीपेट की पॢचयों के 25-25 के बंडल बनाए जाएंगे, ताकि मिलान की प्रक्रिया जल्द और सरलता से पूरी हो सके। यदि किसी केन्द्र पर वोटों की संख्या ज्यादा है तो मिलान की प्रक्रिया में भी ज्यादा समय लगेगा। आयोग ने इस संबंध में निर्वाचन अधिकारियों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवा दी है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वीवीपेट की पॢचयों के अनुरूप ही ईवीएम में वोट दर्ज हुए हैं। गोयल ने कहा कि ईवीएम पर सवाल उठाना बकवास है। ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे ईवीएम में दर्ज मतों में फेरबदल किया जा सके। जिन मतदान केन्द्रों पर लापरवाही की वजह से मॉकपोल के वोट भी ईवीएम में दर्ज हो गए हैं, वहां पर वीवीपेट की पॢचयों से मतों की गणना होगी। 
एस.पी.मित्तल) (19-05-19)
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दूसरे दिन भी भोले बाबा की शरण में रहे प्रधानमंत्री मोदी।

दूसरे दिन भी भोले बाबा की शरण में रहे प्रधानमंत्री मोदी।
आलोचना करने वाले भी ऐसी पहल कर सकते थे।

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19 मई को जब बनारस संसदीय क्षेत्र में मतदान हो रहा था, तब यहां से भाजपा के उम्मीदवार और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भोले बाबा की शरण में थे। चूंकि मोदी ने गुजरात के अहमदाबाद में अपने मताधिकार का उपयोग कर लिया था, इसलिए 19 मई को बनारस में वोट नहीं डाला। मोदी 18 मई को ही केदारनाथ धाम पहुंच गए थे। रात भर गुफा में ध्यान करने के बाद मोदी ने सुबह एक बार फिर केदारनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की। इसके बाद मोदी बद्रीनाथ धाम आ गए। मोदी ने केदारनाथ मंदिर परिसर में पत्रकारों से संवाद भी किया। एक पत्रकार का सवाल था कि आपने भोले बाबा से क्या मांगा? इस पर मोदी ने कहा कि मैं यहां कुछ मांगने नहीं आया हंू। बाबा ने मुझे देने लायक बना दिया है अब देश के लिए कुछ करने का मेरा दायित्व है। मोदी का यह जवाब दर्शाता है कि वे लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर आश्वस्त है। जहां विपक्षी दलों के नेता जोड़ तोड़ की राजनीति में लगे हुए हैं, वहीं मोदी भोले बाबा की शरण में हैं। मोदी की इस धार्मिक यात्रा को लेकर कुछ राजनेता आलोचना कर रहे हैं। आलोचना करने वालों का कहना है कि मोदी धार्मिक यात्रा की आड़ में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। चूंकि लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर का मतदान 19 मई को होना था, इसलिए मोदी ने धार्मिक यात्रा कर प्रचार पाने का प्रयास किया है। यह सही भी है कि जब मोदी 18 मई को केदारनाथ धाम गए और रात को गुफा में ध्यान लगाया तो सभी प्रचार माध्यमों पर मोदी छाए रहे। मोदी ने जिस तरह से सनातन संस्कृति के अनुरूप पूजा अर्चना की उसका असर निसंदेह 59 संसदीय क्षेत्रों के मतदाताओं पर हुआ होगा। लेकिन सवाल उठता है कि मोदी ने जो धार्मिक यात्रा की वैसी यात्रा आलोचना करने वाले राजनेता भी कर सकते थे। यदि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी किसी धार्मिक स्थल पर जाकर पूजा पाठ करते तो उन्हें कौन रोका रहा था? असल में नरेन्द्र मोदी की रणनीति का मुकाबला करने में विपक्ष विफल रहा है। जब मोदी कोई कार्य कर देते हैं तब विपक्षी दल चेतता है। लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान 17 मई को सायं पांच बजे समाप्त हुआ। मोदी 18 मई को केदारनाथ धाम जाएंगे इसकी रणनीति बहुत पहले से बन गई थी। चुनाव आयोग ने भले ही 17 मई की शाम को प्रचार पर रोक लगा दी हो, लेकिन केदारनाथ धाम जाने की वजह से सभी मीडिया माध्यमों पर मोदी छाए रहे। यह कहा जा सकता है कि कि रोक के बाद भी मोदी का प्रचार अभियान जारी रहा। ऐसी पहल विपक्षी दलों के नेता भी कर सकते थे। लेकिन आम चुनाव को लेकर मोदी और भाजपा ने जो रणनीति बनाई वैसी रणनीति विपक्षी दलों के नेता नहीं बना पाए। असल में गत वर्ष विपक्षी दलों ने भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने की घोषणा की थी, लेकिन लोकसभा चुनाव आते आते विपक्ष का महागठबंधन टुकड़े टुकड़े हो गया। यूपी में जहां सपा-बसपा के गठबंधन में कांगे्रस शामिल नहीं हुई वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एकला चलो की नीति पर कायम रही। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी लेकिन बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर रही। जो राजनीतिक दल दिल्ली में राहुल गांधी के साथ मंच सांझा करते रहे, उन्होंने अपने प्रभाव वाले प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया। विपक्ष के टुकड़े टुकड़े हो जाने का लाभ लोकसभा के चुनाव में भाजपा को मिला है। 
एस.पी.मित्तल) (19-05-19)
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Saturday 11 May 2019

तो क्या पाकिस्तान का पत्रकार भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ करेगा?



तो क्या पाकिस्तान का पत्रकार भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ करेगा?
अमरीका की टाइम मैगजीन में मोदी पर प्रतिकूल टिप्पणी।
राहुल गांधी ने ट्वीट किया। 
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अमरीका की टाइल मैगजीन ने अपने एशिया संस्करण में भारत के लोकसभा चुनाव को लेकर एक स्टोरी प्रकाशित की है। मैगजीन के कवर पेज पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का फोटो छापा है और लिखा है कि मोदी भारत का प्रमुख विभाजनकारी है। यह मैगजीन भले ही अमरीका से निकलती हो, लेकिन इस स्टोरी को पाकिस्तान के पत्रकार आतिश तासीर ने लिखा है। चूंकि पाकिस्तान के पत्रकार ने कांग्रेस के नेताओं की मन की बात लिखी है, इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर दिया है। राहुल गांधी अपने भाषणों में आरएसएस और मोदी की विचारधारा को देश से खत्म करने की बात कहते हैं। नरेन्द्र मोदी भारत के विभाजनकारी है या  नहीं, इसका पता तो 23 मई को चलेगा। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान का पत्रकार भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ करेगा? क्या आतिश तासीर से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ करें? यदि कोई पाकिस्तानी पत्रकार मोदी की तारीफ कर दे, उसका पाकिस्तान में रहना मुश्किल हो जाएगा। असल में पाकिस्तान के लोगों में देशभक्ति है और वहां के पत्रकार कभी भी उस देश के प्रधानमंत्री की तारीफ  नहीं कर सकते, जिसने हाल ही में बालाकोट पर एयर स्ट्राइक की हो। जो प्रधानमंत्री पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मारने की बात कर रहा हो, उस प्रधानमंत्री की तारीफ पाकिस्तान का पत्रकार कैसे कर सकता है? जब मोदी अपने देश को मजबूत करने में लगे हुए तो तब पाकिस्तान का पत्रकार तो मोदी को विभाजनकारी ही कहेगा। पाकिस्तान के पत्रकार तो भारत के उन्हीं प्रधानमंत्रियों की तारीफ करेंगे, जिनके कार्यकाल में कश्मीर से चार लाख हिन्दुओं को प्रताडि़त कर भगा दिया गया। भारत का जो प्रधानमंत्री कश्मीर के अलगाववादियों से दिल्ली और लाहौर में तर्क करे उसकी तारीफ तो पाकिस्तान के पत्रकार कर सकते हैं। 
मोदी जब कश्मीर के अलगाववादियों और उनके हिमायतियों को जेल में डाल रहे है तब पाकिस्तान का कोई पत्रकार कैसे प्रशंसा कर सकता है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का टाइम मैगजीन की स्टोरी पर ट्वीट किया जाना भी गलत नहीं है। क्योंकि नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि पिछले पांच वर्ष में भ्रष्टाचारियों को वे जेल के दरवाजे तक ले आए हैं। अगले पांच वर्ष में ऐसे भ्रष्टाचारी जेल के अंदर होंगे। टाइम मैगजीन के पाकिस्तानी पत्रकार का आरोप है कि मोदी ने अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में विकास और जनता की भलाई का कोई कार्य नहीं किया। शायद पाकिस्तानी पत्रकार आतिश तासीर को प्रधानमंत्री की मुद्रा योजना में बेरोजगारों को कम ब्याज दर पर ऋण, ग्रामीण महिलाओं को रसोई गैस का सिलेंडर, गरीब परिवारों में नि:शुल्क बिजली कनेक्शन, आयुषमान भारत योजना में गरीबों को पांच लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा योजना, घर घर में शौचालय आदि योजनाओं की जानकारी नहीं होगी। ये ऐसी योजनाएं हैं जिनका लाभ पिछले पांच वर्षों में गांव ढाणी के ग्रामीणों तक पहुंचा है। चूंकि पत्रकार आतिश तासीर पाकिस्तानी सोच के पत्रकार हैं इसलिए नरेन्द्र मोदी को विभाजनकारी ही बताएंगे। 
एस.पी.मित्तल) (11-05-19)
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भीम आर्मी के प्रदर्शन के बाद मायावती भी चेती।

भीम आर्मी के प्रदर्शन के बाद मायावती भी चेती। 
अलवर गैंगरेप कांड में राजस्थान की कांग्रेस सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले। 
सरकार की नीयत पर शक। भाजपा सांसद किरोड़ी मीणा हिरासत में।
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11 मई को बसपा प्रमुख मायावती ने अलवर के बहुचर्चित गैंगरेप कांड में सुप्रीम कोर्ट से संज्ञान लेने की मांग की है। मायावती तब जागी है जब 10 मई को भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर के नेतृत्व में हजारों कार्यकर्ताओं ने जयपुर में प्रदर्शन किया। भीम आर्मी को बसपा का प्रतिद्वदी माना जाता है। चूंकि गैंगरेप की शिकार युवती दलित परिवार से है, इसलिए मायावती ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर बड़ा हमला बोला है। मायावती ने आरोप लगाया कि 26 अप्रैल की घटना की रिपोर्ट पुलिस ने 4 मई तक नहीं लिखी और 6 मई को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के दिन मामला उजागर हुआ। राजस्थान में 29 अप्रैल और 6 मई को दो चरणों में चुनाव हुए हैं। मायावती ने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेकर पुलिस और कांग्रेस सरकार पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। चुनाव को देखते हुए मामले को दबाए रखने से प्रतीत होता है कि अशोक गहलोत के नेतृत्व में चलने वाली कांग्रेस सरकार दोषियों को बचा रही है। यह मामला एक दलित महिला का नहीं है, बल्कि समाज की सभी महिलाओं के सम्मान से जुड़ा हुआ है। मायावती ने कहा कि अलवर गैंगरेप केस को लेकर सम्पूर्ण समाज में रोष व्याप्त है। 
अब तक सिर्फ एक थानेदार संस्पेंड:
जिस अलवर गैंगरेप कांड की गूंज पूरे देश में हो रही है, उसमें अब तक एक थानेदार को ही सस्पेंड किया गया है। एसपी राजीव पचार को सिर्फ अलवर से हटाया है, जबकि पूरे प्रकरण में पुलिस की भूमिका बेहद खराब रही है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का भी मानना है कि एसपी के आदेश के बाद भी थाने पर रिपोर्ट नहीं लिखी। 26 अप्रैल की घटना की रिपोर्ट 3 मई तक नहीं लिखा जाना यह बताता है कि पुलिस और सरकार के प्रतिनिधि आरोपियों को संरक्षण दे रहे थे। यदि सोशल मीडिया पर गैंगरेप का वीडियो वायरल नहीं होता तो पुलिस पूरे मामले को ही रफा-दफा कर देती। इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि जब पीडि़ता और उसका पति थाने पर रिपोर्ट लिखाने पहुंचा तो थानेदार ने कहा कि पुलिस अभी चुनाव में व्यस्त है। इस बीच  पांच बलात्कारी पीडि़त दम्पत्ति को वीडियो दिखाकर ब्लैकमेल करते रहे। समझ में नहीं आता कि संभागीय आयुक्त से जांच करवा कर राज्य सरकार अपनी नाकामियों को क्यों छिपा रही है?
किरोड़ी मीणा हिरासत में:
दलित युवती से उसके पति के सामने गैंगरेप की घटना के विरोध में 11 मई को भाजपा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के नेतृत्व में अलवर में बड़ा प्रदर्शन किया गया। डॉ. मीणा ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने इस शर्मनाक कांड में अब तक सिर्फ एक थानेदार को सस्पेंड किया है। एसपी को हटाया जाना कोई कार्यवाही नहीं है। अब जब यह बात उजागर हो गई कि पुलिस ने लापरवाही बरती है तो दोषी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज होना चाहिए। मीणा ने कहा कि सरकार पुलिस पर कार्यवाही करने से घबरा रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव की वजह से सरकार उच्च निर्दोश पर ही मामले को दस दिनों तक दबाए  रखा गया। मीणा के नेतृत्व में जब सैकड़ों ग्रामीण रूपावास रेल फाटका की ओर जा रहे थे कि तभी पुलिस ने मीणा और उनके कुछ समर्थकों को हिरासत में ले लिया। पुलिस को अंदेशा था कि प्रदर्शन कारी रेल ट्रेक को जाम करेंगे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर कर दिया। मीणा ने उन्हें हिरासत में लिए जाने की भी निंदा की है। 
एस.पी.मित्तल) (11-05-19)
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15 लाख से भी ज्यादा पाठकों को समर्पित है 5500वां ब्लॉग।

15 लाख से भी ज्यादा पाठकों को समर्पित है 5500वां ब्लॉग।
ऐसा स्नेह और गुस्सा बना रहे। 
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11 मई 2019 को मेरा 5500वां ब्लॉग सोशल मीडिया के करीब पन्द्रह लाख से भी ज्यादा पाठकों को समर्पित है। मेरे पास पाठकों की संख्या के लिए किसी सरकारी एजेंसी का सर्टीफिकेट तो नहीं है, लेकिन वाट्सएप ग्रुप, वेबसाइट, फेसबुक पेज, ब्लॉक स्पॉट आदि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेट फार्मों से प्राप्त फीडबैक और आंकड़ों से पता चलता है कि मेरे ब्लॉग रोजाना 15 लाख से भी ज्यादा पाठकों तक पहुंच रहे हैं। इसमें किसी पाठक द्वारा अन्य समूहों में फॉरवर्ड के आंकड़े शामिल नहीं है और वेब चैनलों द्वारा साहूकारी और चोरी चकारी से लिए गए ब्लॉग के आंकड़े भी शामिल नहीं है। पर इतना जरूर है कि अजमेर जिले में सभी प्रकार के मीडिया के पाठकों की संख्या से ज्यादा पाठक मेरे ब्लॉग के हैं। अजमेर जिले में तो गांव ढाणी तक वाट्सएप के जरिए ब्लॉग पहुंच रहे हैं, जबकि राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में रोजाना मेरे ब्लॉग पढ़े जाते हैं। यूपी, दिल्ली, एमपी, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल आदि हिन्दी भाषी राज्यों में भी ब्लॉग की पहुंच है। जिस प्रकार पाठकों को सुबह अखबार की तलब होती है उसी प्रकार शाम को चार बजे मेरे ब्लॉग का इंतजार रहता है। जब कभी किसी ब्लॉग में कम्प्यूटर की वजह से कोई त्रुटि हो जाती है तो मुझे पाठकों के गुस्से का भी सामना करना पड़ता है। असल में पाठकों को यह उम्मीद होती है कि मेरे ब्लॉग में कोई गलती नहीं होगी। मेरे लिए यह वाकई संतोष की बात है कि पाठक इतना भरोसा करते हैं। मेरा पूरा प्रयास होता है कि हर ब्लॉग सही तथ्यों पर लिखूं। अधिकांश पाठक मेरे लिखे की प्रशंसा भी करते हैं, जो मेरा आत्म विश्वास बढ़ाते हैं। जब पाठक किसी विचार को लेकर आलोचना करते हैं तब भी मुझे सीखने को मिलता है। मैं पहले भी लिख चुका हूं कि रोजाना लिखना बहुत कठिन होता है और जब आप करंट टॉपिक पर लिख रहे हो तो कठिनाई और बढ़ जाती है। लेकिन इसे ईश्वर की कृपा ही कहा जाएगा कि लाख कठिनाइयों के बाद भी मैं प्रतिदिन चार-पांच ब्लॉग लिखता हंू। तकनीकी दृष्टि से ब्लॉग लाखों पाठकों तक पहुंचाने में मेरी पत्नी श्रीमती अचला मित्तल का भी सहयोग रहता है। मुझे उम्मीद है कि पाठकों का स्नेह मेरे प्रति इसी तरह बना रहेगा।
एस.पी.मित्तल) (11-05-19)
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पेयजल की किल्लत को लेकर अजमेर में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी सड़कों पर।

पेयजल की किल्लत को लेकर अजमेर में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी सड़कों पर। 
जलदाय विभाग के इंजीनियर लाचार। 
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पेयजल की किल्लत को लेकर अब सत्तारूढ़ कांग्रेस के कार्यकर्ता भी अजमेर की सड़कों पर उतार आए हैं। असल में प्यासे लोगों के दबाव के चलते ही कांग्रेस के नेताओं को प्रदर्शन में शामिल होना पड़ रहा है। शहर कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष पूर्व पार्षद प्रताप यादव के नेतृत्व में अजमेर के नागफणी, बाबूगढ़ आदि क्षेत्रों के लोगों ने गंज स्थित जलदाय विभाग के दफ्तार पर प्रदर्शन किया। यादव का कहना रहा कि शहर में पहले ही तीन और चार दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई मात्र 45 मिनट के लिए हो रही है। लेकिन यह सप्लाई भी कम प्रेशर से है, इसलिए लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। शहर में पेयजल का और कोई स्त्रोत नहीं है इसलिए लोगों को सरकारी सप्लाई पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। वहीं जलदाय विभाग के इंजीनियर सप्लाई बढ़ाने को लेकर लाचार है। असल में अजमेर में पेयजल का एक मात्र स्त्रोत बीसलपुर बांध है। गत वर्ष वर्षा कम होने की वजह से बांध में पानी नहीं आया। पानी की कमी को देखते हुए जलदाय विभाग अब शहरी क्षेत्र में तीन दिन में और ग्रामीण क्षेत्र में सात दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई कर रहा है। ताकि बांध में बचे पानी को आगामी अगस्त माह तक काम में लिया जा सके। इंजीनियरों का मानना है कि आने वाले दिनों में पेयजल की और किल्लत होगी, क्योंकि भीषण गर्मी में जहां पानी की मांग बढ़ेगी वहीं बांध में वाष्पीकरण की वहज से पानी का जलस्तर तेजी से घट जाएगा। सरकार ने अभी तक भी बीसलपुर बांध के पानी को लेकर कोई आपातकालीन प्लान नहीं बनाया है। उल्लेखनीय है कि इसी बांध  से जयपुर जिले में भी पेयजल की सप्लाई हो रही है। अजमेर से ज्यादा पानी जयपुर को दिया जा रहा है। अजमेर और जयपुर के नागरिकों के साथ सरकार लगातार भेदभाव कर रही है। बीसलपुर बांध से अधिक मात्र में पानी लेकर जयपुर में प्रतिदिन सप्लाई की जा रही है, जबकि अजमेर में तीन से सात दिन में एक बार सप्लाई हो रही है। 
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Thursday 9 May 2019

अलवर गैंगरेप कांड के विरोध में भाजपा का राजस्थान भर में धरना प्रदर्शन।



अलवर गैंगरेप कांड के विरोध में भाजपा का राजस्थान भर में धरना प्रदर्शन।अजमेर में सिर्फ ज्ञापन।
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9 मई को भाजपा के कार्यकर्ताओं ने राजस्थान भर में अलवर गैंगरेप कांड के विरोध में धरना प्रदर्शन किया। जयपुर में केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड, प्रदेश अध्यक्ष मदनलाल सैनी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के नेतृत्व में आतिरिक्त कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया। भाजपा नेताओं का आरोप रहा कि सूचना देने के बाद भी कलेक्टर जगरूप सिंह यादव उपस्थित नहीं रहे। इससे कांग्रेस सरकार की संवेदनहीता का पता चलता है। असल में कांग्रेस सरकार ने प्रदेशभर में अधिकारियों को ऐसे ही निर्देश दिए हैं। अधिकारियों के इस रवैये से पता चलता है कि गैंगरेप  जैसे संवेदनशील मामलों में भी सरकार गंभीर नहीं है। सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट चुनाव प्रचार के लिए राजस्थान से बाहर है। कांग्रेस के नेताओं को पीडि़ता को न्याय दिलाने से ज्यादा चुनाव की चिंता है। भाजपा के सांसद किरोड़ी लाल मीणा पहले ही सीएम अशोक गहलोत के इस्तीफे की मांग कर चुके हैं। भाजपा का आरोप है कि प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान इस कांड को छिपाया रखा गया। 26 अप्रैल को हुई इस घटना को 6 मई को उजागर किया गया। प्रदेश में 29 अप्रैल और 6 मई को चुनाव हुए थे। चुनाव में कांग्रेस को नुकसान न हो इसके लिए मामले को दबाए रखा गया। पीडि़ता का कहना है कि 26 अप्रैल को जब वह अपने पति के साथ मोटर साइकिल पर जा रही थी, तब पांच लोगों ने मारपीट कर गैंगरेप किया। इतना ही नहीं आरोपियों ने अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। गैंगरेप की यह घटना मानवता को झकझोर ने वाली है। 
अजमेर में ज्ञापन:
अलवर गैंगरेप कांड में अजमेर में 9 मई को भाजपा के देहात जिला अध्यक्ष बीपी सारस्वत, शहर अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के नेतृत्व में अतिरिक्त कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया। हेड़ा ने बताया कि मंडल अध्यक्ष सोहनलाल शर्मा की माताजी का निधन हो जाने की वजह से प्रदर्शन का कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया। ज्ञापन देने वालों में लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी भागीरथ चौधरी, सोमरत्न आर्य, विकास चौधरी, रोहित यादव, विनीत पारीक, आनंद सिंह राजावत आदि शामिल थे। 
एस.पी.मित्तल) (09-05-19)
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कांग्रेस ने भले ही स्वीकार न किया हो, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने तो दो चरणों के चुनाव को राजीव गांधी के मुद्दे पर कर दिया है।

कांग्रेस ने भले ही स्वीकार न किया हो, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने तो दो चरणों के चुनाव को राजीव गांधी के मुद्दे पर कर दिया है।
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देश में लोकसभा चुनाव के 7 में से 5 चरण पूरे हो चुके हैं। छठा और सातवां चरण क्रमश: 12 मई और 19 मई को होगा। 6 मई के पांचवें चरण के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी कहा तो कांग्रेस में उबाल आ गया। कांग्रेस के नेताओं की टिप्पणियों को देखते हुए मोदी ने कहा कि यदि राजीव गांधी की छवि इतनी ही अच्छी थी तो कांग्रेस राजीव गांधी के मुद्दे पर शेष दो चरणों के चुनाव लड़ ले। हालांकि कांग्रेस ने मोदी की इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया, लेकिन मोदी ने राजीव गांधी पर लगातार राजनीतिक हमले जारी रखे। 8 मई को दिल्ली की चुनावी सभा में मोदी ने कहा कि राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए सेना की युद्ध पोत आईएनएस विराट का इस्तेमाल टैक्सी की तरह किया। जो युद्ध पोत समुन्द्र में देश की सुरक्षा के काम आनी चाहिए, उसे दस दिनों तक एक द्वीप पर खड़े रखा, ताकि प्रधानमंत्री के ससुराल और परिवार वाले पिकनिक मना सके। मोदी ने कहा कि नामदार (राहुल गांधी) कहते हैं कि सेना किसी की जागीर नहीं है, लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनके पिता ने सेना को जागीर की तरह ही इस्तेमाल किया। असल में कांग्रेस जिस चुनौती से बचना चाहती है उसी चुनौती को मोदी बार बार कांग्रेस के सामने खड़ा कर रहे हैं। 8 मई के दिल्ली वाले बयान पर कांग्रेस में फिर से उथल पुथल हो रही है। एक के बाद एक नेता मोदी के खिलाफ बोल रहे हैं। यानि दो चरणों के चुनाव को मोदी जिस मोड़ पर ले जाना चाहते थे, उसी मोड़ पर चुनाव प्रचार पहुंच रहा है। 12 और 19 मई के चुनावों का सबसे ज्यादा असर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में हैं। सब जानते हैं कि श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में क्या हुआ था। श्रीमती गांधी के बाद राजीव गांधी ही प्रधानमंत्री बने थे। इसे मोदी की रणनीति ही कहा जाएगा कि उन्होंने चुनाव के हर चरण में नीति को बदला है। सवाल यह भी है कि कांग्रेस दो चरणों के चुनाव राजीव गांधी के मुद्दे पर क्यों नहीं लडऩा चाहती? आखिर राजीव गांधी भी तो कांग्रेस के नेता रहे। कांग्रेस को राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल के कार्यों को देश के सामने रखने चाहिए, ताकि मोदी को जवाब दिया जा सके। 
एस.पी.मित्तल) (09-05-19)
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सरकारी बंगला कब्जाने के मुद्दे पर अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे में कोई फर्क नहीं।

सरकारी बंगला कब्जाने के मुद्दे पर अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे में कोई फर्क नहीं। 
पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं पर हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित। 
गहलोत के सीएम बनते ही याचिकाकर्ता का यू टर्न।
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9 मई को मुख्य न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट की अदालत में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं पर सुनवाई हुई। सरकार की ओर से महा अधिवक्ता एमएस सिंघवी और याचिकाकर्ताओं की ओर से विमल चौाधरी ने पक्ष रखा। दोनों पाक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश भट्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब किसी भी दिन हाईकोर्ट अपना फैसला सुना सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता मिलापचंद डाडिया और अन्य लोगों की ओर से ऐसी याचिकाएं तब प्रस्तुत की गई थी, तब वसुंधरा राजे प्रदेश की सीएम थीं। राजधानी जयपुर के सिविल लाइन में बंगला नम्बर आठ मुख्यमंत्री के लिए आरक्षित है, लेकिन राजे ने इस बंगले को अपना निवास नहीं बनाया। निवास के लिए राजे ने बंगला नम्बर 13 को अपने कब्जे में ले लिया। यानि राजे ने सीएम आवास के साथ साथ बंगला नम्बर 13 भी अपने पास रखा। 13 नम्बर बंगले को कब्जाने के पीछे तर्क दिया गया कि राजे पूर्व सीएम की हैसियत से भी एक बंगला अपने पास रख  सकती है। तब पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी वसुंधरा राजे के इस कृत्य की निंदा की। इशारा मिलते ही सामाजिक कार्यकर्ता मिलापचंद डांडिया हाईकोर्ट पहुंच गए। डांडिया ने अपनी जनहित याचिका में वो सब तर्क रखे जिससे राजे से बंगला नम्बर 13 छीन लिया जाए। लेकिन फैसला आते आते सीएम की कुर्सी पर अशोक गहलोत फिर से विराजमान हो गए। गहलोत सीएम बनते ही हाईकोर्ट में कहा गया कि यदि किसी पूर्व मुख्यमंत्री को विधायक होने के नाते सुविधा मिलती है तो कोई ऐतराज नहीं है। असल में पिछले बीस वर्षो से राजस्थान में गहलोत और राजे ही सीएम की कुर्सी पर अदला-बदली  कर रहे हैं। याचिका कर्ताओं के यू टर्न पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। असल में बंगला कब्जाने का जो रास्ता मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा राजे ने अपनाया, वही रास्ता अब मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपना रहे हैं। गहलोत को सीएम बने साढ़े चार माह हो गए, लेकिन गहलोत ने अभी तक भी सिविल लाइन का बंगला नम्बर 49 खाली नहीं किया है। जिस भाजपा के शासन में वसुंधरा राजे 8 नम्बर के साथ साथ 13 नम्बर पर भी काबिज रहीं, उसी प्रकार अब गहलोत भी 8 नम्बर के साथ साथ बंगला नम्बर 49 में काबिज है। राजे की तरह गहलोत का भी तर्क है कि उन्होंने बंगला नम्बर 8 को अपना निवास नहीं बनाया है। सत्ता का चरत्र एकसा होता है, इसका पता इससे भी चलता है कि राजे ने भी 8 नम्बर बंगले का उपयोग राजनीतिक गतिविधियों के लिए किया, इसी प्रकार गहलोत भी कांग्रेस की बैठकों के लिए मुख्यमंत्री आवास का उपयोग कर रहे हैं। दो बंगले कब्जाने को लेकर जो अशोक गहलोत वसुंधरा राजे की आलोचना करते रहे वो ही गहलोत खुद दो बंगलों पर कब्जा किए हुए हैं। लोकसभा चुनाव की आचार संहित बंगला छोडऩे में बाधक नहीं है। जो गहलोत स्वयं गांधीवादी होने का दावा करते है वो वसुंधरा राजे की तरह महलों की संस्कृति को स्वीकार कर रहे हैं। 
सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश:
पूर्व मुख्यमंत्रियों को राजधानी में बंगला आदि की सुविधा नहीं मिले, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश दे रखे हैं। इन्हीं आदेशों के चलते यूपी में अखिलेश यादव, मायावती आदि से सरकारी बंगले जबरन खाली करवाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अंतर्गत तो राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिविल लाइन के बंगला नम्बर 13 को भी अपने पास नहीं रख सकती है। राजे ने तो दिसम्बर 2018 में सीएम की कुर्सी छोडऩे से पहले ही बंगला नम्बर 13 आवंटित करवा लिया था। सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद गहलोत इसलिए चुप रहे कि उन्हें भी वसुंधरा राजे की राह पर चलना था। अब जब हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। तब देखना है कि गहलोत और राजे पर कितना असर होता है। वैसे नेताओं से नैतिकता की उम्मीद करना बेमानी है। 
एस.पी.मित्तल) (09-05-19)
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अजमेर के संभागीय आयुक्त मीणा पता लगाएंगे कि सरकारी बंगले में किस आईएएस ने स्वीमिंग पूल का निर्माण करवाया।

अजमेर के संभागीय आयुक्त मीणा पता लगाएंगे कि सरकारी बंगले में किस आईएएस ने स्वीमिंग पूल का निर्माण करवाया। पार्षदों ने फिर दिया ज्ञापन।
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अजमेर के नगर निगम आयुक्त के सरकारी बंगले में स्वीमिंग पूल का निर्माण किस आईएएस ने किया है। इसका पता अब अजमेर के संभागीय आयुक्त एलएन मीणा लगाएंगे। 9 मई को भाजपा के पार्षद रमेश सोनी के नेतृत्व में पार्षदों के एक प्रतिनिधि मंडल ने मीणा से मुलाकात की। पार्षदों ने कहा कि आयुक्त के बंगले में लाखों रुपए खर्च कर जो स्वीमिंग पूल का निर्माण हुआ, उस पर पीडब्ल्यूडी के अधिकारी अभियंता अशोक रंगनानी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। इस रिपोर्ट में यह माना है कि सर्किट हाउस के निकट बंगले का आवंटन 15 मई 2017 को नगर निगम के आयुक्त हिमांशु गुप्ता (आईएएस) को किया गया था। आवंटन के समय बंगले में स्वीमिंग पूल नहीं था। वैसे भी पीडब्ल्यूडी के बंगलों में स्वीमिंग पूल बनाने का कोई नियम नहीं है। गुप्ता को आवंटन से पहले यह बंगला दस साल तक खाली पड़ा रहा। लेकिन अब जब इस बंगले की जांच की गई तो पता चला कि स्वीमिंग पूल का निर्माण हुआ है। इस समय बंगले में निगम की मौजूदा आयुक्त सुश्री चिन्मयी गोपाल रह रही हैं। चिन्मयी पहले ही कह चुकी हैं कि उन्होंने बंगले में स्वीमिंग पूल का निर्माण नहीं करवाया है। संभागीय आयुक्त मीणा ने पार्षदों के समक्ष स्वीकार किया कि पीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट प्राप्त हो गई है, लेकिन रिपोर्ट में यह नहीं बताया कि स्वीमिंग पूल का निर्माण किसने किया है। इसलिए वह स्वीमिंग पूल के निर्माण की जानकारी हासिल करेंगे। संबंधित अधिकारी का पता लगाने पर वह नियम अनुसार कार्यवाही कर सकते हैं।  पार्षदों ने मांग की है कि संबंधित आईएएस का पता लगा कर सख्त कार्यवाही की जाए क्योंकि सरकारी बंगले में रहने वाला कोई भी आईएएस अपने वेतन से लाखों रुपए का स्वीमिंग पूल नहीं बनवा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार से एकत्रित की गई राशि में से स्वीमिंग पूल का निर्माण हुआ है। जिन ठेकेदारों ने सरकार की अनुमति के बिना निर्माण किया उनके विरुद्ध भी कार्यवाही होनी चाहिए। मीणा ने पार्षदों को भरोसा दिलाया कि वह इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच करेंगे। उल्लेखनीय है कि निगम के पूर्व आयुक्त हिमांशु गुप्ता इस समय बाड़मेर के जिला कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। निगम के आयुक्त के पद पर रहते हुए ही गुप्ता ने 13 व्यावसायिक नक्शों का मामला राज्य सरकार को प्रेषित किया था। गुप्ता का आरोप रहा कि उनके अवकाश पर रहते समय उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता में स्वीकृति जारी करा दी। गुप्ता की शिकायत पर सरकार ने 13 नक्शों की स्वीकृति निरस्त करने व साथ रलावता को चार्टशीट थमादी है और मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को भी दोषी मानते हुए नोटिस दिया है। 
एस.पी.मित्तल) (09-05-19)
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Tuesday 7 May 2019

आखिर अलवर पुलिस ने किसके आदेश से गैंग रेप की वारदात को छिपाए रखा?



आखिर अलवर पुलिस ने किसके आदेश से गैंग रेप की वारदात को छिपाए रखा?
क्या पुलिस 6 मई तक कांग्रेस सरकार को बदनामी से बचाना चाहती थी?
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राजस्थान में 6 मई को जब शेष 12 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो रही थी, तब अलवर जिले में गैंगरेप का एक शर्मनाक घटना उजागर हुई। हालांकि यह घटना 26 अप्रैल की है, लेकिन पुलिस ने इस घटना को दबाए रखा। राजस्थान में 29 अप्रैल को पहले दौरे में 13 सीटों पर मतदान हुआ। जो वारदात 26 अप्रैल को हुई हो, उसकी जानकारी यदि मतदान समाप्ति वाले दिन मिले तो पुलिस पर सवालिया निशान लगते हैं। अनुसूचित जाति के विवाहित जोड़े का कहना है कि 26 अप्रैल को जब वे अलवर जिले के लालबाड़ी से तालवृक्ष की ओर मोटर साइकिल पर जा रहे थे, तब थानागाजी बाईपास रोड पर पांच युवकों ने रास्ता रोक लिया। पांचों युवक पति-पत्नी को सूने स्थान पर ले गए और पति की पिटाई करने के बाद उसी के सामने पांचों युवकों ने उसकी पत्नी के साथ गैंगरेप किया। इतना ही नहीं गैंगरेप का वीडियो भी बनाया गया। संबंधित थाने की पुलिस ने जब कोई कार्यवाही नहीं की तो 2 मई को पीडि़त पति-पत्नी एसपी राजीव पचार के समक्ष उपस्थित हुए। हालांकि एसपी ने मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए, लेकिन फिर भी 6 मई तक गैंगरेप का मामला दबा रहा। पुलिस ने छोटेलाल गुर्जर को मुख्य आरोपी के तौर पर नामजद भी किया है। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट कह सकते हैं कि अलवर के गैंगरेप के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी, लेकिन सवाल उठता है कि यदि ऐसी घटना पांच माह पहले भाजपा सरकार की सीएम वसुंधरा राजे के समय में हुई होती तो गहलोत-पायलट की क्या प्रतिक्रिया होती? क्या अलवर की घटना के लिए सीधे सीएम वसुंधरा राजे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता? विधानसभा चुनाव के दौरान भी गहलोत पायलट ने प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाया था। क्या अब यह जिम्मेदारी गहलोत पायलट की नहीं है? वसुंधरा राजे ने तो गुलाबचंद कटारिया को गृहमंत्री बनाया था, लेकिन गहलोत ने तो गृह विभाग अपने ही पास रखा है। यानि प्रदेश के गृहमंत्री भी गहलोत ही है। अलवर पुलिस पर राजनीतिक दबाव होने से ही गैगरेप का मामला 6 मई तक दबा रहा। सरकार कोई भी हो, सरकारी मशीनरी का तो दुरुपयोग होता ही है। यदि पुलिस पर दबाव नहीं होता तो गैंगरेप 29 अप्रैल से पहले ही उजागर हो जाता। इसका फायदा पांचों अपराधियों को भी मिल रहा है। इसे राजनीतिक का चरित्र ही कहा जाएगा कि लोकसभा चुनाव के दौरान आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है। अब चूंकि प्रदेश की सभी 25 सीटों पर मतदान हो गया है तो संभव है आरोपी भी पकड़ में आ जाएं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीति और पुलिस की मिली भगत उजाकर कर दी है। 
एस.पी.मित्तल) (07-05-19)
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ईवीएम पर 21 विपक्षी दलों की पुनर्विचार याचिका एक मिनट में खारिज।

ईवीएम पर 21 विपक्षी  दलों की पुनर्विचार याचिका एक मिनट में खारिज। 
अब हार का ठीकरा ईवीएम पर ही फूटेगा।
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7 मई को कांगे्रस सहित 21 विपक्षी दलों को तब जोरदार झटका लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव की मतगणना के दौरान वीपीपेट की पचास प्रतिशत पर्चियों का मिलान ईवीएम में दर्ज वोटों से कराने की मांग करने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि आप लोग एक ही मुद्दे को लेकर बार-बार न्यायालय में क्यों आते हो? हम इस  मुद्दे पर पहले ही लम्बी सुनवाई कर चुके हैं। सुनवाई के बाद ही एक विधानसभा क्षेत्र के पंाच मतदान केन्द्रों की वीवीपेट की पर्चियों के मिलान के आदेश दिए जा चुके हैं। जब सैम्पल सर्वे हो रहा है तो पचास प्रतिशत की मांग क्यों की जा रही है? जस्टिस गोगोई ने मुश्किल से एक मिनट में पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। फैसले के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दिग्गज वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हमने न्यायालय से पचास के बजाए 25 प्रतिशत पर्चियों के मिलान का भी आग्रह किया, लेकिन न्यायालय ने हमारे आग्रह को नहीं माना। हम न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं, लेकिन चुनाव में पारदर्शिता की अपनी मांग पर कायम रहेंगे। ाइसको लेकर एक बार चुनाव आयोग के समक्ष मांग की जाएगी। 
ईवीएम पर फूटेगा हार का ठीकरा:
23 मई को मतगणना वाले दिन यदि विपक्षी दलों की हार होती है तो हार का ठीकरा अब ईवीएम पर ही फूटेगा। हालांकि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कह चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा और नरेन्द्र मोदी की हार होगी। यानि राहुल गांधी को ईवीएम में गड़बड़ी होने की कोई आशंका नजर नहीं आती है। लेकिन यदि 23 मई को हार होती है तो राहुल गांधी क्या कहेंगे यह अभी पता नहीं है। 
राफेल पर पुनर्विचार याचिका पर 10 को सुनवाई:
विपक्षी दलों ने राफेल विमान सौदे पर भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। इस पर 10 मई को सुनवाई होनी है। राफेल पर भी सुप्रीम कोर्ट पहले अपना निर्णय दे चुका है। आमतौर पर पुनर्विचार याचिका खारिज ही होती है। राफेल की सुनवाई के साथ ही राहुल गांधी के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर भी सुनवाई होगी। राफेल पर 6 मई को सुनवाई होनी थी, लेकिन राहुल की अवमानना वाली फाइल नहीं होने की वजह से सुनवाई टल गई। चीफ जस्टिस गोगोई चाहते हैं कि दोनों मामलों की एक साथ सुनवाई हो। 
एस.पी.मित्तल) (07-05-19)
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काश! यौन शोषण के प्रकरणों में सीजेआई वाली जांच की प्रक्रिया देशभर में नजीर बने।



काश! यौन शोषण के प्रकरणों में सीजेआई वाली जांच की प्रक्रिया देशभर में नजीर बने। 
देश के सरकारी दफ्तरों में यह बहुत बड़ी समस्या है।
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सुप्रीम कोर्ट के जज एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली इन हाउस जांच कमेटी ने यौन शोषण के प्रकरण में सीजेआई रंजन गोगोई को जो क्लीन चिट दी है उस पर मेरी कोई टिप्पणी नहीं है, लेकिन इन दिनों जिस दौर से सीजेआई गोगोई को गुजरना पड़ा, उन्हीं हालातों से देश के सरकारी दफ्तरों के अनेक कार्मिकों को भी गुजरना पड़ता है। लेकिन अधिकांश मामलों में आरोपी अफसर को ही दोषी माना जाता है। अधीनस्थ न्यायालयों का भी दबाव रहता है कि महिला के आरोपों की निष्पक्ष जांच हो। यदि कोई महिला इन हाउस जांच कमेटी का बहिष्कार करती हैं तो जांच में शामिल रखने के लिए उसकी हर शर्त मानी जाती है। आरोपी अफसर को तत्काल प्रभाव से हटाया ही जाता है, साथ ही जांच कमेटी में शिकायतकर्ता महिला के सुझाव पर सदस्यों की नियुक्ति होती है। शिकायकर्ता को अपने प्रतिनिधि के माध्यम से सबूत रखने की झूठ होती है। भले ही पुख्ता सबूत न हो, लेकिन महिला के कथन को काफी हद तक सही माना जाता है। कई मामलों में अधिकारी का कहना होता है उसने तो सिर्फ कार्य के लिए ऊंची आवाज में बोला था, लेकिन ऐसे अधिकारी की कोई सुनवाई नहीं होती। थोड़े बहुत भी सबूत होने पर तो आरोपी कार्मिक को नौकरी से ही हटा दिया जाता है। आरोप लगते ही कार्मिक और उसके परिवार के सदस्यों खास पत्नी और पुत्री को समाज में जिन हालातों का सामना करना पड़ता है, उसका दर्द वो ही समझ सकते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि आरोपी अधिकारी पहले स्वयं सुनवाई करे और स्वयं को निर्दोष होने का प्रमाण पत्र दे दें। स्वयं के पद पर बने रहते इन हाउस जांच भी संभव नहीं है। यदि जांच के दौरान आरोपी अफसर को नहीं हटाया जाता है तो अनेक महिला संगठन झंडा लेकर खड़े हो जाते हैं। यानि हर हाल में महिला को सही माना जाता है। कई बार ऐसे हालातों और सामाजिक दबावों की वजह से आरोपी अधिकारी आत्महत्या भी कर लेता है। असल में ऐसी सख्त व्यवस्था इसलिए की गई है कि कोई भी पुरुष अपनी साथी महिला कर्मचारी का शोषण नहीं कर सके। सीजेआई के कथित यौन शोषण प्रकरण में जांच की जो प्रक्रिया अपनाई गई है उससे देशभर में ऐसे आरोप झेल रहे कार्मिकों को राहत मिलनी चाहिए। अब देखना है कि सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगानी वाली सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी का अगला कदम क्या होता है। हालांकि शिकायतकर्ता महिला जस्टिस बोबड़े की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी से पहले ही अलग हो गई थी। 
एस.पी.मित्तल) (07-05-19)
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गुलाब कोठारी प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक।

गुलाब कोठारी प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक।
गहलोत सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत।
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7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जो मास्टर प्लान और अवैध निर्माणों को हटाने को लेकर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई को राजस्थान सरकार की विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट की इस कार्यवाही को राज्य की अशोक गहलोत सरकार  की सफलता माना जा रहा है। हाईकोर्ट के 12 जनवरी 2017 के आदेश के बाद प्रदेशभर में अवैध निर्माणों को तोडऩे और सीज करनी की कार्यवाही हो रही थी। चूंकि इस आदेश में         मास्टर प्लान को सख्ती से लागू करने और अवैध निर्माणों को नियमित नहीं करने को लेकर निर्देश दिए गए थे, इसलिए प्रदेश भर के स्थानीय निकायों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। प्रदेश के अवैध निर्माणों को लेकर राजस्थान पत्रिका के सम्पादक गुलाब कोठारी ने हाईकोर्ट का ध्यान आकर्षित किया था। इसलिए प्रदेशभर में यह मुकदमा गुलाब कोठारी प्रकरण के नाम से चर्चित हुआ। चूंकि पिछली भाजपा सरकार से मतभेद के चलते हुए पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी अपने पक्ष पर कायम रहे इसलिए सरकार को कोर्ट से कोई राहत नहीं मिल पाई। हालांकि अभी भी हाईकोर्ट में यह प्रकरण विचाराधीन है। भाजपा सरकार के समय भी सुप्रीम कोर्ट में कई बार याचिकाएं दायर की गई, लेकिन सरकार को सफलता नहीं मिली। लेकिन अब अशोक गहलोत की सरकार बनने के बाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने अब हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है इसलिए माना जा रहा है कि प्रदेश में मास्टर प्लान और अन्य समस्याओं का समाधान हो सकेगा। इससे उन लोगों को भी राहत मिलेगी जिन्होंने अपने भवनों के मानचित्र स्वीकृत होने के लिए स्थानीय निकायों में प्रस्तुत कर रखे हैं। 
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 से लंबित चल रहे गुलाब कोठारी प्रकरण में हाईकोर्ट ने 12 जनवरी 2017 को 34 बिंदुओं का विस्तृत आदेश दिया था। इसके तहत स्वायत्त शासन विभाग, नगरीय विकास विभाग और संबंधित विभागों को मास्टर प्लान की कठोरता से पालना करने, अवैध निर्माण नियमित नहीं करने और इकोलोजिकल जोन व ग्रीन एरिया आदि पुराने मास्टर प्लान के अनुसार रखने सहित कई प्रकार की हिदायतें दी गई थी।
एस.पी.मित्तल) (07-05-19)
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Monday 6 May 2019

तो सीबीएसई के मुकाबले में राजस्थान बोर्ड के विद्यार्थी पिछड़ जाएंगे।

तो सीबीएसई के मुकाबले में राजस्थान बोर्ड के विद्यार्थी पिछड़ जाएंगे। 
सीबीएसई ने दसवीं का परिणाम भी जारी किया। 
राजस्थान बोर्ड के 12वीं के परिणाम का भी पता नहीं।
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6 मई को केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने दसवीं की परीक्षा का परिणाम भी घोषित कर दिया। 12वीं का परिणाम पहले ही 2 मई को घोषित किया जा चुका है। यानि जिन विद्यार्थियों ने केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से परीक्षा दी वे अब प्रतियोगी परीक्षाओं और उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गए हैं। ऐसे विद्यार्थियों ने अपनी प्लानिंग भी शुरू कर दी है। जबकि जिन विद्यार्थियों ने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 10वीं और 12वीं की परीक्षा दी उन्हें अभी परिणाम का इंतजार है। सीबीएासई ने जहां दसवीं का परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया है, वहां राजस्थान बोर्ड के 12वीं के परीक्षा परिणाम का भी पता नहीं है। जानकारों की माने तो शिक्षा बोर्ड 20 मई से पहले परिणाम निकालने की स्थिति में नहीं है। इससे राजस्थान बोर्ड और सीबीएसई के विद्यार्थी की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल उठता है कि इस बार केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने परीक्षा लेने और परिणाम जारी करने की जो तैयारी की वैसे तैयारी क्या राजस्थान बोर्ड नहीं कर सकता है? अब जब  सीबीएसई अपने विद्यार्थियों को तेज गति से आगे ले जा रहा है, तो फिर राजस्थान बोर्ड अपने विद्यार्थियों को पीछे क्यों रखना चाहता है। सब जानते हैं कि राजस्थान बोर्ड की पहचान देश के चुनिंदा बोर्डों में से है। विश्वसनीयता की दृष्टि से भी राजस्थान बोर्ड आगे हैं। ऐसे में परीक्षा और परिणाम में पीछे रहने पर विद्यार्थी मायूस होता है। शिक्षा बोर्ड के अधिकारियों के पास परिणाम विलम्ब के अनेक बहाने होंगे, लेकिन इन बहानों से विद्यार्थी का कोई संबंध नहीं है। विद्यार्थी तो यही चाहता है कि जब केन्द्रीय बोर्ड ने परिणाम घोषित कर दिया है तो फिर राजस्थान बोर्ड को भी करना चाहिए। अब यदि केन्द्रीय बोर्ड ने राजस्थान बोर्ड के मुकाबले में परीक्षा जल्दी आयोजित की है तो राजस्थान बोर्ड को भी सबक लेना चाहिए। 
केन्द्रीयकृत मूल्यांकन:
सीबीएसई और राजस्थान बोर्ड की तैयारियों में सबसे बड़ा अंतर उत्तर पुस्तिकाओं का केन्द्रीयकृत मूल्यांकन का है। सीबीएसई अपने क्षेत्रीय कार्यालयोंं में उत्तर पुस्तिकाओं का केन्द्रीय मूल्यांकन करवाता है, जबकि राजस्थान बोर्ड अभी भी पुराने ढर्रे पर काम कर रहा है।  परीक्षा के बाद प्रदेशभर के केन्द्रों से उत्तर पुस्तिकाओं को अजमेर स्थित मुख्यालय पर मंगाया जाता है और फिर कोडिंग कर उत्तर पुस्तिकाओं को शिक्षकों के पास भेजा जाता है। ऐसे में समय काफी लगता है। केन्द्रीयकृत जांच की मांग पहले भी होती रही है।  लेकिन बोर्ड और राज्य सरकार के बीच तालमेल नहीं होने की वजह से केन्द्रीय मूल्यांकन प्रणाली को लागू नहीं किया जा सका है। राजस्थान बोर्ड में इस बार दसवीं और 12वीं के विद्यार्थियों की संख्या बीस लाख से भी ज्यादा की है। बीस लाख विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं की संख्या कोई सवा करोड़ मानी जा रही है। बोर्ड का कहना है कि सवा करोड़ उत्तर पुस्तिकाएं जांचने में समय तो लगता ही है। जानकारों की मांगे तो शिक्षक के घर पर उत्तर पुस्तिकाएं जांचने का खामियाज होशियर विद्यार्थियों को उठाना पड़ता है। ऐसी शिकायत आती हैं कि शिक्षक की पत्नी या परिवार के अन्य सदस्य ने उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की है। जबकि केन्द्रीय मूल्यांकन में संबंधित शिक्षक को ही केन्द्र पर आकर उत्तर पुस्तिकाओं की जांच करनी होती है। 
एस.पी.मित्तल) (06-05-19)
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आखिर ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल को किधर ले जाना चाहती है?



आखिर ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल को किधर ले जाना चाहती है?
निष्पक्ष चुनाव के लिए आयोग की सख्ती भी धरी रह गई। 
फोनी तूफान में भी पीएम का फोन रिसीव नहीं करतीं। बैठक भी नहीं करने दी।
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6 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोनी तूफान से प्रभावित उड़ीसा का हवाई दौरा किया। उड़ीसा के सीएम नवीन पटनायक भी साथ थे। मोदी ने सीएम पटनायक की प्रशंसा भी की। एक हजार करोड़ रुपए की सहायता की घोषणा भी की। चूंकि फोन तूफान से पश्चिम बंगाल में भी नुकसान हुआ है, इसलिए प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल का दौरा भी करना चाहते थे, इसके लिए मोदी ने ममता बनर्जी को फोन भी किया, लेकिन ममता ने फोन रिसीव नहीं किया। यदि प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल का दौरा करते तो तूफान पीडि़तों की मदद ही होती। असल में ममता ने यह दर्शाने की कोशिश की कि वे अपने राज्य के लिए केन्द्र पर निर्भर नहीं है। ममता पहले भी केन्द्र की कई योजनाओं को बंगाल में लागू करने से इंकार कर चुकी हैं। ममता एक ओर केन्द्र के दिशा निर्देशों की अवेहलना करती हैं तो दूसरी उनकी टीएमसी के समर्थक लोकसभा चुनाव में गुंडागर्दी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। 6 मई को ही बैरकपुर में भाजपा प्रत्याशी की जमकर पिटाई की गई। प्रत्याशी फर्जी वोटिंग पर शिकायत कर रहा था। बंगाल की स्थिति को देखते हुए चुनाव आयोग ने सख्त कदम उठाए। एक चरण में चार पांच सीटों पर ही मतदान करवाया, ताकि लोग बिना भय के मतदान कर सके। 6 मई को पांचवें चरण में तो बंगाल पुलिस को मतदान केन्द्र के बाहर ही रखा। केन्द्र के अंदर केन्द्रीय सुरक्षा बलों के जवानों की तैनाती की गई, लेकिन इसके बाद भी टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने जमकर गुंडागर्दी की। असल में ममता बनर्जी ने सत्ता के लालच में बंगाल में ऐसे लोगों को संगठित कर दिया है जो देश की एकता और अखंडता नहीं चाहते। फिलहाल ऐसे लोगों ने ममता बनर्जी की टीएमसी का राजनीतिक मखौटा लगा रखा है। आने वाले दिनों में बंगाल में भी कश्मीर जैसी आवाज उठने लगेंगी। ममता के शासन में ऐसे तत्व लगातार अपनी स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। जब केन्द्रीय सुरक्षा बलों की उपस्थिति में यह हाल है तो आने वाले दिनों में हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। चूंकि ममता बनर्जी केन्द्र सरकार की परवाह नहीं करती, इसलिए एक खास विचारधारा के वोट आसानी से मिल जाते हैं। इस तरीके से ममता भले ही चुनाव जीत लें, लेकिन बंगाल के हालात बहुत बिगड़ जाएंगे। ममता अब इतनी मजबूत हो गई कि कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी डरते हैं। 
पीएम का ममता पर हमला:
6 मई को उड़ीसा में तूफान प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल के तामलुक में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। मोदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में प्रभावित क्षेत्रों की जानकारी लेने के लिए उन्होंने दो बार सीएम ममता बनर्जी को फोन किया, लेकिन दोनों बार ममता ने कोई जवाब नहीं दिया। मैं चाहता था कि बंगाल में अधिकारियों की बैठक लेकर स्थिति का जायजा लू, लेकिन मुझे बैठक की भी इजाजता नहीं दी गई। बंगाल में ममता दीदी का अपना काम करने का तरीका है। उन्हें बंगाल के लोगों के हितों के बजाए स्वयं के हित की चिंता रहती है। मोदी ने कहा कि जब पाकिस्तान में बैठे अजहर मसूद को आतंकी घोषित किया गया तब पूरे देश में प्रशंसा हुई, लेकिन ममता दीदी ने एक बार भी केन्द्र सरकार के प्रयासों की प्रशंसा नहीं की। शायद ममता दीदी को अपने वोट बैंक की चिंता थी। दीदी को लगा होगा कि यदि अजहर मसूद की निंदा की गई तो बंगाल में उनके वोट बैंक पर असर पड़ जाएगा। बंगाल में जयश्रीराम का नारा लगाने वालों को जेल भेज दिया जाता है। अब तो हालत इतने खराब है कि सनातन संस्कृति के अनुरूप जो लोग मंदिरों में पूजा पाठ व्रत आदि करते हैं उन्हें भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 
एस.पी.मित्तल) (06-05-19)
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