Tuesday 31 January 2023

पाकिस्तान की मस्जिद में नमाजियों पर बम और भारत के अजमेर में ख्वाजा का करम बरस रहा था। यही फर्क है दोनों मुल्कों में।इस फर्क को राहुल, अखिलेश, अशोक गहलोत, ममता बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं को समझना चाहिए।कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान, पाकिस्तान को भी अफगानिस्तान जैसा इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है।

30 जनवरी को जब भारत के अजमेर में 240 पाकिस्तानी नागरिकों पर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन का करम बरस रहा था, तभी पाकिस्तान के पेशावर पुलिस हैड क्वार्टर की मस्जिद में नमाजियों पर बम बरस रहे थे। इस गोला बारी में साठ पाकिस्तानी नागरिक मारे गए, जबकि 160 बुरी तरह जख्मी हुए। मृतको में ज्यादातर पुलिसकर्मी हैं क्योंकि यह मस्जिद पुलिस हैडक्वाटर की ही है। इसके विपरीत भारत के अजमेर में सूफी संत ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में सरकारी तौर पर आए 240 पाकिस्तानियों ने 30 जनवरी को ही दरगाह की मस्जिदों में सुकून के साथ नमाज पढ़ी और पवित्र मजार पर चादर पेश की। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति दरगाह आता है, उस पर ख्वाजा का करम बरसा है। यानी 30 जनवरी को जब पेशावर की मस्जिद में बम बरस रहे थें, तब अजमेर में पाकिस्तानियों पर ख्वाजा का करम बरस रहा था। 30 जनवरी को हुई दोनों घटनाएं बताती है कि भारत और पाकिस्तान में कितना फर्क है। भारत में भारत का मुसलमान ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से आने वाले मुसलमान भी सुरक्षित हैं। हो सकता है कि सरकारी तौर पर आए 240 पाकिस्तानियों में पुलिस के अधिकारी भी शामिल हों। यदि ऐसे अधिकारी पेशावर की अपनी मस्जिद में नमाज पढ़ रहे होते तो उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। अच्छा हुआ कि ऐसे अधिकारी ख्वाजा साहब के उर्स में शरीक होने के लिए अजमेर आ आए। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी, महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला जैसे भारतीय राजनेता अपनी राजनीतिक स्वार्थों के खातिर देश में मुसलमानों के साथ भेदभाव होने का आरोप लगाते हैं। ऐसे नेताओं को 30 जनवरी की पेशावर और अजमेर की घटनाओं का फर्क समझना चाहिए। पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है और वहां मस्जिद में नमाज पढ़ते वक्त भी मुसलमान सुरक्षित नहीं है, जबकि मौजूदा समय में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो सनातन संस्कृति में विश्वास रखते हैं, लेकिन भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से मुसलमान भी सुरक्षित है। यानी भारत का हर नागरिक स्वयं को सुरक्षित मानता है। ख्वाजा साहब के उर्स में स्वयं पीएम मोदी ने भी अपनी ओर से चादर भेजी है। इतना ही नहीं कि पीएम मोदी ने ख्वाजा साहब को भारत की महान अध्यात्मिक परंपराओं का प्रतीक बताया है। राहुल गांधी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक के नेता बताएं कि पेशावर की मस्जिद में नमाजियों को मौत के घाट उतारने वाले कौन थे? क्या किसी गैर इस्लामिक धार्मिक संगठन ने मस्जिद में गोलियां चलाईं? राहुल से लेकर ओवैसी तक के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि पेशावर की मस्जिद में गोलियां चलाने वाले लोग तहरीक-ए-तालिबान संगठन के हैं। इसी कट्टरपंथी संगठन का शासन अभी अफगानिस्तान पर है और यह संगठन चाहता है कि पाकिस्तान भी अफगानिस्तान की तरह इस्लामिक स्टेट बने। यह संगठन अभी पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र नहीं मानता है। पाकिस्तान को अफगानिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए ही मस्जिदों में धमाके हो रहे हैं। सब जानते हैं कि दुनिया के किसी भी मुस्लिम राष्ट्र से ज्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं, लेकिन भारत में ऐसे मुसलमान भी हैं जो सूफी संतों के अनुयायी भी हैं, जबकि तहरीक-ए-तालिबान जैसे कट्टरपंथी संगठन सूफी विचारधारा को स्वीकार नहीं करते हैं। पहले पाकिस्तान ने ही इस संगठन को अफगानिस्तान में मजबूत किया और अब यह संगठन पाकिस्तान के लिए मुसीबत बन गया है। पाकिस्तान की सेना भी इस कट्टरपंथी से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। राहुल और ओवैसी माने या नहीं लेकिन यदि पाकिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो यह भारत के लिए बड़ा खतरा होगा। पूर्व में जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ था, तब भारत में भी कई मुस्लिम नेताओं ने तालिबान के पक्ष में बयान दिए थे। आज अफगानिस्तान की स्थिति देखी जा सकती है।

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चुनावी वर्ष में अजमेर डेयरी ने दूध का खरीद मूल्य बढ़ाया। अब एक लीटर दूध पर 59 रुपए तक मिलेंगे। अप्रैल तक 3 रुपए की अतिरिक्त वृद्धि।जिले में साठ हजार दूध उत्पादक परिवारों को मिलेगी मदद। अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी है लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से दावेदार।

चुनावी वर्ष में अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने जिले भर के दुग्ध उत्पादकों को राहत देने के लिए दूध के खरीद मूल्य में वृद्धि की है। 1 फरवरी से प्रति फैट 20 पैसे की वृद्धि की गई है। इससे पशु पालकों को प्रति लीटर 1 रुपया 30 पैसे तक अधिक मिलेंगे। मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना के पांच रुपए प्रति लीटर अनुदान के शामिल करने के बाद पशु पालकों को औसतन 59 रुपए प्रति लीटर का भुगतान किया जाएगा। इतना ही नहीं एक मार्च से एक रुपया और एक अप्रैल से तीन रुपए प्रति लीटर की अतिरिक्त वृद्धि की भी घोषणा की गई है। यानी एक अप्रैल से जिले के पशुपालकों को औसतन 62 रुपए प्रति लीटर की दर से भुगतान किया जाएगा। पशुपालकों से यह खरीद मूल्य देश में सर्वाधिक है। यानी अजमेर डेयरी अपने दुग्ध उत्पादकों को देश में सर्वाधिक भुगतान कर रही है। अजमेर जिले में साठ हजार दुग्ध उत्पादक परिवार है जो सीधे डेयरी के संकलन केंद्रों पर दूध जमा करवाते हैं। अजमेर डेयरी के इस निर्णय से साठ हजार पशु पालक परिवारों को राहत मिलेगी। राजस्थान में इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं। ताजा घोषणा को चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने हैं। अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी कांग्रेस की ओर से लोकसभा चुनाव में दावेदार हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चौधरी पिछले 25 वर्षों से अजमेर डेयरी के अध्यक्ष हैं। चौधरी ने बताया कि अजमेर डेयरी जिले के दुग्ध उत्पादकों के प्रति हमेशा संवेदनशील और जागरूक रही है। चूंकि पशुपालकों को पशु आहार की दरों में वृद्धि, लंपी बीमारी आदि समस्याओं से सामना करना पड़ रहा है, इसलिए दूध के खरीद मूल्य में वृद्धि की गई है। उन्होंने कहा कि दीपावली के बाद भी खरीद मूल्य में किसी भी प्रकार की कमी नहीं की जाएगी। चौधरी ने बताया कि संचालक मंडल की बैठक के निर्णय के अनुसार फरवरी माह में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों के अध्यक्षों और सचिवों की एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी। जिसमें एसबीआई के अधिकारी भी मौजूद रहेंगे।  किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से पशुधन खरीदने के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी जाएगी। पशु बीमा, पशु सोर्टेड सीमन की उपयोगिता बढ़ाने के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। डेयरी परिसर स्थित पुराने प्लांट के जीर्णोद्धार के साथ साथ नए प्लांट में 20 मीट्रिक टन पाउडर बनाने का निर्णय लिया गया। बैठक में इंद्र प्रथ गैस लिमिटेड और टाटा पावर के कार्यों की प्रगति पर भी संतोष व्यक्त किया गया। चौधरी ने बताया कि डेयरी में तकनीकी स्टाफ लगातार की कमी चल रही है। इस कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार से अनुरोध किया गया है।
 
गोल्ड दूध के मूल्य में वृद्धि:
संचालक मंडल की बैठक में अजमेर डेयरी के गोल्ड दूध के विक्रय मूल्य में प्रति लीटर एक रुपए की वृद्धि की गई है। उपभोक्ताओं को अब गोल्ड दूध की एक लीटर की थैली 62 रुपए में उपलब्ध होगी। लेकिन वहीं पांच लीटर की थैली के मूल्य में मात्र दो रुपए की वृद्धि की गई है। अजमेर डेयरी के कामकाज के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414004111 पर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी से ली जा सकती है। 

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वकील अभिषेक मनु सिंघवी की फीस तो सरकार के खजाने से ही जाएगी।जो फीस वहन करने की क्षमता रखता है, वह कोई भी वकील ला सकता है, लेकिन केस तथ्य वही रहेंगे- सीजे पंकज मित्थल।स्पीकर जोशी ने कहा था-मेरा फैसला देश में मिसाल बनेगा।

राजस्थान में कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफे के प्रकरण में अब विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी की ओर से कांग्रेस के नेता और देश के जाने माने वकील अभिषेक मनु सिंघवी पैरवी कर रहे हैं। सिंघवी की व्यस्तता के कारण ही 30 जनवरी को प्रकरण की सुनवाई विलंब से हुई। हालांकि राजस्थान हाईकोर्ट के सीजे पंकज मित्थल ने कहा भी कि जो फीस वहन करने की क्षमता रखता है, वह कोई भी वकील कर सकता है। लेकिन इससे केस के तथ्यों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। तथ्य वही रहते हैं। सीजे ने यह टिप्पणी तब की जब 30 जनवरी को अध्यक्ष जोशी की ओर से सुनवाई लंच बाद रखने का आग्रह किया गया। सिंघवी को दिल्ली से जयपुर आना था। सिंघवी देश के प्रमुख महंगे वकीलों में से एक हैं और वे हर उपस्थिति की फीस लेते हैं। चाहे अदालत में सुनवाई हो या नहीं। सिंघवी भले ही विधानसभा अध्यक्ष जोशी के वकील हों, लेकिन सिंघवी की फीस तो राज्य सरकार के खजाने से ही जाएगी, क्योंकि विधानसभा का सारा खर्च सरकार ही वहन करती है। स्पीकर जोशी की ओर से महंगे वकील सिंघवी के आने से प्रतीत होता है कि राजस्थान में कांग्रेस के विधायकों का इस्तीफा प्रकरण कानूनी पेचीदगियों में फंस गया है। गत वर्ष 25 सितंबर को जब कांग्रेस के 81 विधायकों ने इस्तीफे का सामूहिक पत्र विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंपा था, तब जोशी ने कहा था कि मैं ऐसा फैसला दूंगा जो देश के संसदीय इतिहास में मिसाल बनेगा। लेकिन अब हाईकोर्ट में विधानसभा के सचिव की ओर से कहा गया है कि अध्यक्ष ने इस्तीफे अस्वीकार कर दिए हैं, क्योंकि 25 सितंबर को विधायकों ने अलग अलग पेश होकर इस्तीफे नहीं दिए। सभी विधायकों ने इस्तीफे शांति धारीवाल, महेश जोशी, महेंद्र चौधरी, संयम लोढ़ा, रामलाल जाट और रफीक खान ने आकर दिए। यह भी कहा गया कि विधायकों ने इस्तीफे स्वेच्छा से नहीं दिए थे। भाजपा के नेता राजेंद्र राठौड़ की याचिका पर अब इस मामले में 13 फरवरी को सुनवाई होगी। स्पीकार जोशी का फैसला, कब मिसाल बनेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इस्तीफा प्रकरण में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की महत्वाकांक्षा को उजागर कर रहा है। सब जानते हैं कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने 25 सितंबर को कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई थी, लेकिन गहलोत समर्थक विधायकों ने मंत्री शांति धारीवाल के सरकारी निवास पर समानांतर बैठक कर 81 विधायकों के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिए। तब यह कहा गया कि कांग्रेस के विधायक अशोक गहलोत के अलावा किसी और को मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं करेंगे। अब जिस तरीके से विधानसभा सचिव का जवाब सामने आ रहा है, उससे प्रतीत होता है कि इस्तीफे सिर्फ अशोक गहलोत की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए दिलवाए गए। 

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Sunday 29 January 2023

पीएम मोदी का मालासेरी डूंगरी के माध्यम से भावनात्मक तौर पर जुडऩे का प्रयास।गुजरात के गुर्जर नेता पाटिल के कारण राजस्थान के कांग्रेसी नेता राम प्रसाद धाबाई को भी पीएम के मंच पर बैठने का मौका मिला।मालासेरी डूंगरी के धार्मिक विकास की राह खुली-ओम प्रकाश भडाना।

28 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब पौने दो घंटे तक राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में आसींद स्थित मालासेरी डूंगरी पर रहे। देशभर के गुर्जर समुदाय के लिए इस डूंगरी (पहाड़ी) का विशेष धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि 1111 वर्ष पहले गुर्जर समुदाय की माता साढू के घर में कमल के फूल में भगवान देवनारायण अवतरित हुए। पीएम मोदी ने 28 जनवरी को भगवान देवनारायण के 1111वें जन्मदिवस पर ही अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। मोदी ने जिस प्रकार महायज्ञ की पूर्णाहूति की और मंदिर में अपनी श्रद्धा दिखाई, उससे मंदिर के महंत सुरेश दास और पुजारी हेमराज भी प्रसन्न है। दोनों का कहना है कि यह पहला अवसर है, जब देश का कोई प्रधानमंत्री गुर्जर समुदाय के सर्वोच्च धार्मिक स्थल पर आया है। मोदी ने जिस प्रकार डूंगरी और मंदिर की धार्मिक गतिविधियों में भाग लिया, वह प्रशंसनीय है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ोदी ने मालासेरी डूंगरी के माध्यम से स्वयं को गुर्जर समुदाय से भावनात्मक तौर पर जुड़ने का प्रयास किया है। राजस्थान में 9 माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और मौजूदा समय में भाजपा का एक भी गुर्जर विधायक नहीं है। 2018 में कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट (गुर्जर) के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद थी, इसलिए गुर्जर समुदाय ने एकजुटता दिखाते हुए कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा मतदान किया। हालांकि हाईकमान ने गुर्जर समुदाय के पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया और अशोक गहलोत के शासन में पायलट की जो दुर्गति हो रही है, उससे गुर्जर समुदाय में नाराजगी है। ऐसे माहौल में विधानसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी का गुर्जरों के सर्वोच्च धार्मिक स्थल पर आना राजनीतिक दृष्टि से भी बहुत मायने रखता है। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भगवान देवनारायण के कमल के फूल और भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल के फूल को आपस में जोड़ने का प्रयास भी किया। मोदी ने अपने संबोधन में उन गुर्जर नेताओं और समाज सुधारकों का नाम लिया, जिनकी अभी तक उपेक्षा हुई। बिजोलिया आंदोलन के प्रमुख विजय सिंह पथिक का नाम उल्लेखनीय है। गुर्जर समुदाय की युवा पीढ़ी को भी पीएम के संबोधन से ही पता चला होगा कि विजय सिंह पथिक का असली नाम क्रांतिवीर भूप सिंह गुर्जर था। मोदी ने कोतवाल धन सिंह, जोग राज सिंह, रामप्यारी गुर्जर, पन्नाधाय गुर्जर जैसी हस्तियों का उल्लेख कर गुर्जर समुदाय को गौरव का अहसास करवाया। हो सकता है कि चुनाव में ऐसे दिवंगत गुर्जर नेताओं को पद्म विभूषण या पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जाए।
 
पाटिल के कारण धाबाई को मौका:
28 जनवरी को मालासेरी डूंगरी पर हुई सभा के मंच पर पीएम मोदी के साथ अखिल भारतीय गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पाटिल के साथ साथ महासभा की राजस्थान इकाई के प्रदेश अध्यक्ष रामप्रसाद धाबाई को भी बैठने का अवसर मिला। असल में पाटिल को मोदी के साथ मंच पर बैठाने के निर्देश पीएमओ से ही प्राप्त हुए। जब पाटिल को बैठाया गया तो महासभा के प्रदेशाध्यक्ष के नाते धाबाई को भी पीएम के साथ बैठने का अवसर मिल गया। धाबाई कांग्रेस के नेता है, लेकिन मंच पर बैठाने में राजनीति को दूर रखा गया। 28 जनवरी को मालासेरी डूंगरी पर सभा के लिए तीन मंच बनाए गए। मुख्य मंच पर पीएम मोदी वाला था, जिस पर पाटिल धाबाई, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, सांसद सुभाष बहरिया, महंत सुरेश दास और पुजारी हेमराज को अवसर मिला। जबकि दूसरे मंच पर भाजपा नेता, सांसद, विधायक और गुर्जरों की विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारी बैठे थे। उन्हीं में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के विजय बैंसला भी शामिल रहे। तीसरे मंच पर गुर्जर समुदाय के साधु-संत विराजमान थे। मोदी ने गुर्जर समुदाय के साधु संतों का भी आशीर्वाद प्राप्त किया।
 
विकास की राह खुली:
राजस्थान में भाजपा के ओबीसी मोर्चे के प्रदेशाध्यक्ष और गुर्जर समुदाय के प्रमुख नेता ओम प्रकाश भडाना ने कहा कि पीएम मोदी के आने से मालासेरी डूंगरी तीर्थ क्षेत्र के विकास की राह खुली है। गुर्जर समुदाय के सर्वोच्च धार्मिक स्थल की ओर पूरे देश का ध्यान आकर्षित हुआ है। भडाना ने कहा कि पीएम मोदी जिस किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं, वहां के विकास की योजना बन ही जाती है। समारोह में केंद्रीय कला एवं संस्कृति मंत्री अर्जुनराम मेघवाल स्वयं उपस्थित रहे। इसलिए उम्मीद है कि मालासेरी डूंगरी का विकास भी अन्य तीर्थ स्थलों की तरह होगा। भडाना ने कहा कि राजस्थान में ओबीसी की दूसरी सबसे बड़ी जाति गुर्जर है। प्रदेश और देश के विकास में गुर्जर समुदाय का विशेष योगदान रहा है। चूंकि 28 जनवरी का धार्मिक समारोह भगवान देवनारायण की 1111वीं जयंती पर हुआ, इसलिए गुर्जर समुदाय के लोग अपने अपने साधनों से मालासेरी डूंगरी पहुंचे। पीएम की सभा का निमंत्रण देने के लिए मालासेरी डूंगरी की परिवार में भिजवाए गए थे। एक अनुमान के मुताबिक 28 जनवरी को मालासेरी डूंगरी पर चार लाख गुर्जर उपस्थित रहे। 

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रंधावा में दम हो तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट का हाथ जुड़वाएं।कार्यकर्ताओं को उपदेश देने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि ऐसे उपदेश तो पहले के प्रभारी अविनाश पांडे और अजय माकन से सुन रखे हैं।मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने पायलट की तुलना महाभारत के अभिमन्यु से की।

राजस्थान में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा इन दिनों कार्यकर्ताओं को बहुत उपदेश दे रहे हैं। कभी विधायकों की कुंडली बनाने की बात करते हैं तो बयानबाजी पर फटकार लगाते हैं। रंधावा ऐसा प्रदर्शित कर रहे हैं जैसे वे ही कांग्रेस के सर्वेसर्वा है। एक बार प्रदेश प्रभारी के पद पर रहते हुए अजय माकन ने भी स्वयं को हाईकमान बताया था। मकान का क्या हश्र हुआ यह सभी ने देखा है। रंधावा में यदि दम हो तो वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का हाथ जुड़वा कर दिखाएं। जब तक प्रदेश स्तर पर गहलोत और पायलट का हाथ आपस में नहीं जुड़ेगा तब तक हाथ से हाथ जोड़ो यात्राएं भी सफल नहीं होंगी। रंधावा भले ही कितने भी उपदेश दे, लेकिन पायलट और गहलोत के समर्थक कार्यकर्ताओं के हाथ अलग अलग ही रहेंगे। उपदेश तो अविनाश पांडे और अजय माकन के भी सुने गए हैं। लेकिन गहलोत और पायलट में एकजुटता नहीं हुई है। जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी गहलोत और पायलट एक नहीं हुए, तब रंधावा के उपदेशों का क्या असर होगा? जयपुर और अजमेर में हुए संभाग स्तरीय सम्मेलनों से भी रंधावा को अपनी राजनीतिक हैसियत का अंदाजा लगा लेना चाहिए। जयपुर संभाग में कांग्रेस के 35 विधायक हैं, लेकिन सम्मेलन में आधे विधायक ही आए। रंधावा जिन विधायकों की कुंडली बनाने की बात कर रहे हैं वे ही विधायक रंधावा को प्रभारी ही नहीं मान रहे। अजमेर संभाग के सम्मेलन में खुद सचिन पायलट और गुजरात के प्रभारी रघु शर्मा भी विधायक की हैसियत से नहीं आए। प्रदेश प्रभारी की क्या हैसियत होती है, यह रघु शर्मा अच्छी तरह जानते हैं। रघु के प्रभारी रहते ही गुजरात में कांग्रेस को 182 में से मात्र 19 सीटें मिलीं। जब रघु शर्मा जैसे विधायक ही रंधावा के सम्मेलनों में नहीं आ रहे हैं, तब रंधावा को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। रंधावा को अपने पहले के प्रभारी अविनाश पांडे और अजय माकन के हश्र को भी देख लेना चाहिए। ये दोनों भी गहलोत और पायलट के चक्कर में राजस्थान से आउट हुए हैं। जब तक गहलोत और पायलट में मिलान नहीं होगा, तब तक नीचे के स्तर पर कार्यकर्ता बंटे रहेंगे। जो लोग सत्ता की मलाई चाट रहे हैं वे गहलोत के साथ हैं और जिन्होंने भाजपा के शासन में पांच वर्ष तक संघर्ष किया वे आज पायलट के साथ खड़े हैं।
 
गुढ़ा का फिर तीखा बयान:
कांग्रेस जब हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के अंतर्गत जिला स्तर पर पद यात्रा कर रही है, तब कांग्रेस सरकार के मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा का एक और तीखा बयान आया है। सरकार से असंतुष्ट चल रहे पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की तुलना गुढा ने महाभारत के अभिमन्यु से की है। गुढा ने कहा कि पायलट को भी कांग्रेस में कुछ लोगों ने घेर रखा है। लेकिन पायलट उन बहादुरों में से हैं जो संघर्ष के अंतिम चक्र में भी नहीं हारेंगे। पायलट अंतिम चक्र को तोड़ कर विजेता बनेंगे। इससे पहले गुढा ने कहा था कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। 

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श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहरा कर राहुल गांधी को भी सुखद अहसास हुआ होगा।30 जनवरी को श्रीनगर में जनसभा के साथ ही भारत जोड़ो यात्रा का समापन।

29 जनवरी को कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा झंडा फहराया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता मौजूद रहे। राहुल गांधी ने जब तिरंगा फहराया तब उनकी बहन और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थी। राहुल और प्रियंका के चेहरे पर खुशी देखी जा सकती थी। राहुल ने जब लाल चौक पर तिरंगा फहराया तब उन्हें भी सुखद अहसास हुआ होगा। क्योंकि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने से पहले तक लाल चौक में तिरंगा फहराना बहुत मुश्किल होता था। श्रीनगर सहित जम्मू कश्मीर के अधिकांश क्षेत्रों में आतंकवाद के कारण कर्फ्यू जैसी स्थिति रहती थी। लालचौक पर हर समय सशस्त्र सुरक्षा बल तैनात रहते थे। जब कभी तिरंगा फहराने की जरुरत होती तब सुरक्षा बलों को विशेष इंतजाम करने पड़ते थे। लेकिन 29 जनवरी को राहुल गांधी ने सामान्य हालातों में लाल चौक पर तिरंगा फहराया। तिरंगा फहराने के समय जिस तरह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की भीड़ रही उससे प्रतीत होता है कि अब जम्मू कश्मीर के हालात सामान्य हो रहे हैं। इन हालातों के मद्देनजर ही 30 जनवरी को कांग्रेस की ओर से श्रीनगर के शेरे कश्मीर स्टेडियम में एक जनसभा रखी गई है। इस जनसभा के साथ ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समापन भी हो जाएगा। यात्रा के समापन पर कांग्रेस ने कई विपक्षी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया है। इस सभा को राहुल गांधी भी संबोधित करेंगे। यहां यह उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी की यह यात्रा 7 सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई थी। 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते हुए यह यात्रा 29 जनवरी को श्रीनगर पहुंची है। इस यात्रा की दूरी 3 हजार 500 किलोमीटर मानी गई है। इसी वर्ष देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां से भी राहुल की यात्रा गुजरी है। देखना होगा कि राहुल की यात्रा का असर इन राज्यों के विधानसभा चुनाव पर कितना पड़ता है। अलबत्ता राहुल की यात्रा को लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ता उत्साहित हैं। 

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Saturday 28 January 2023

वायु सेना के तीन लड़ाकू विमान क्रेश होना दुखद। दुर्घटना एक ही समय हुई।

28 जनवरी का दिन भारतीय सेना के लिए दुखद माना जाएगा। इस दिन एक साथ ही तीन लड़ाकू विमान क्रैश हो गए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुखोई 30 और मिराज 2000 ने 28 जनवरी सुबह मध्यप्रदेश के ग्वालियर एयरबेस से विमान ने उड़ान भरी और दोनों विमान मुरैना की पहाड़ी पर टकरा गए। कुछ ही क्षणों में दोनों लड़ाकू विमान आग के गोलों में तब्दील हो गए। विमान में सवार दोनों पायलट सुरक्षित बचे हैं, लेकिन दोनों लड़ाकू विमानों की दुर्घटना होना अपने आप में गंभीर बात है। ग्वालियर एयरबेस से मुरैना की दूरी मात्र 40 किलोमीटर है, ऐसे में माना जा रहा है कि विमान उड़ने के साथ ही किसी तकनीकी खराबी का शिकार हो गए। भारतीय वायु सेना के लिए सुखोई और मिराज दोनों ही विमान बहुत अहम है। पाकिस्तान पर जब एयर स्ट्राइक हुई तब इन विमानों की भी भूमिका रही थी। 28 जनवरी को सुबह ही राजस्थान के भरतपुर के उच्चैन की पहाडिय़ों पर एक और लड़ाकू विमान  क्रेश हो गया। इस विमान ने आगरा एयरबेस से उड़ान भरी थी। यानी 28 जनवरी को एक साथ तीन लड़ाकू विमान दुर्घटना के शिकार हुए हैं। सेना ने इन हादसों को गंभीर माना है। 

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Friday 27 January 2023

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ध्वजारोहण के बाद ही अल्लाहू अकबर के नारे लगे।प्रतिबंध के बाद भी जेएनयू से लेकर कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी तक बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री खुलेआम देखी जा रही है।देश में धार्मिक आतंकवाद का जोर-बाबा रामदेव।लेकिन राहुल गांधी और कुछ फिल्म स्टारों को भारत में डर और भय का माहौल नजर आता है।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर यूपी की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ध्वजा रोहण का समारोह हो रहा था, तब कुछ विद्यार्थी अल्लाहू अकबर के धार्मिक नारे लगा रहे थे। गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन फिर भी यह विवादित फिल्म दिल्ली के जेएनयू कैम्पस से लेकर कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी तक में खुले आम देखी जा रही है। जो लोग कानून तोड़ कर प्रतिबंधित फिल्म देख रहे है, उन पर कार्यवाही करने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। जो लोग भारत की सनातन संस्कृति पर भरोसा कर सभी धर्मों को सम्मान देने के पक्ष में हैं उन्हें इन ताजा घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए। योग के माध्यम से करोड़ों लोगों को स्वस्थ रखने वाले बाबा रामदेव ने गणतंत्र दिवस पर ही कहा है कि देश में धार्मिक आतंकवाद का जोर है। हालांकि बाबा ने कहा कि सनातन धर्म पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन देशवासियों को देखना होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लेकर कोलकाता तक का जो माहौल है, उससे कैसे निपटा जाए। एक और यूनिवर्सिटी के कैम्पस में लोग कानून तोड़ रहे हैं, वहीं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और कुछ फिल्म स्टारों को भारत में डर और भय का माहौल नजर आता है। डर और भय के माहौल को समाप्त करने के लिए राहुल गांधी तो दक्षिण से उत्तर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। राहुल गांधी बताएं कि यदि भारत में डर का माहौल होता तो क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तिरंगा फहराने के समय अल्ला हू अकबर के नारे अौर जेएनयू से लेकर कोलकाता तक में प्रतिबंधित फिल्म देखने की घटनाएं होती? राहुल गांधी भी भारत के एक जिम्मेदार नागरिक हैं और सनातन धर्म में भरोसा कर रही मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं। ऐसे सनातन धर्म प्रेमी राहुल गांधी को भी देश के मौजूदा हालातों को समझना चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका निभाते हुए राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा की आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन यह विरोध देश का नहीं होना चाहिए। किस मंशा से घटनाएं हो रही है, उन्हें समझने की जरूरत है। जो लोक भारत में डर का माहौल देखते हैं उन्हें पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति देखनी और समझनी चाहिए। आज पूरा पाकिस्तान आतंकवाद की जकड़ में है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-01-2023)
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गहलोत साहब! राजस्थान में मोदी की नहीं बल्कि केजरीवाल की हवा खत्म करने की जरूरत है।यदि केजरीवाल की हवा खत्म नहीं की गई तो राजस्थान में भी कांग्रेस का गुजरात की तरह भट्टा बैठ जाएगा।गुजरात चुनाव में अशोक गहलोत और रघु शर्मा ही थे सर्वेसर्वा।सीएम गहलोत की तबीयत नासाज। जालंधर और अजमेर का दौरा रद्द।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि अब मोदी की हवा खत्म हो गई है और कांग्रेस की लहर चल रही है। मोदी की हवा खत्म और कांग्रेस की लहर का अहसास गहलोत को कैसे हो रहा है यह तो वही जाने, लेकिन यदि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की हवा को खत्म नहीं किया गया तो गुजरात की तरह राजस्थान में भी कांग्रेस का भट्टा बैठ जाएगा। राजस्थान में 9 माह बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। हालांकि राजस्थान में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। लेकिन जिस प्रकार गुजरात में केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया उसी तरह यदि राजस्थान में केजरीवाल ने शक्ति का प्रदर्शन किया तो कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान होगा।  दो माह पहले हुए गुजरात चुनाव की कमान अशोक गहलोत (सीनियर पर्यवेक्षक) और उनके शिष्य रघु शर्मा (प्रदेश प्रभारी) के हाथ में ही थी। 182 में से कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटें मिलीं। गहलोत और रघु शर्मा ने कांग्रेस की हार के लिए केजरीवाल को ही जिम्मेदार बताया। दोनों का कहना रहा कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने जो वोट प्राप्त किए वही कांग्रेस की हार का कारण बने हैं। जिन अशोक गहलोत को मोदी की हवा खत्म और कांग्रेस की हार का सुखद अहसास हो रहा है उन्हें यह भी समझना चाहिए कि गुजरात तो गैर हिन्दी भाषी ही है। यहां केजरीवाल की पार्टी का असर गुजरात से ज्यादा होगा। राजस्थान के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठों पर पंजाब और दिल्ली के सरकारी विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं। पंजाब के अखबारों में ऐसे विज्ञापन भले ही पंजाबी में हो, लेकिन राजस्थान में हिंदी में छप रहे हैं। केजरीवाल की पार्टी की उपलब्धियों वाले जो विज्ञापन अशोक गहलोत की नाक के नीचे है, उनका अहसास भी आंखों से नहीं हो रहा है तो फिर राजनीतिक समझ का अंदाजा लगाया जा सकता है। गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान गहलोत ने ही कहा था कि केजरीवाल की पार्टी का कोई असर नहीं है, लेकिन परिणाम के बाद कहा कि कांग्रेस की हार का कारण ही केजरीवाल की पार्टी रही है। अशोक गहलोत को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि 2018 के चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस को भाजपा से मात्र पौने दो लाख वोट ज्यादा मिले। तब 200 में से कांग्रेस को 99 तथा भाजपा को 77 सीटें मिली थीं। यदि गुजरात के मुकाबले में राजस्थान में केजरीवाल के उम्मीदवारों को आधे वोट भी मिल गए तो कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। अशोक गहलोत मोदी की हवा खत्म करने के बजाए केजरीवाल की हवा की चिंता करें, नहीं तो कांग्रेस की हवा निकल जाएगी। भे ही गुजरात की तरह आम आदमी पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाए, लेकिन कांग्रेस का भट्टा बैठ जाएगा। अशोक गहलोत की राजनीतिक समझ की भी दाद देनी पड़ेगी कि सचिन पायलट, निकम्मा, नाकारा और कोरोना कहने के बाद भी कांग्रेस की लहर का अहसास हो रहा है। गहलोत के मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा तो पहले ही कह चुके हैं कि यदि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। यहां यह खास तौर से उल्लेखनीय है कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस कभी भी चुनाव नहीं जीती है। 2013 में गहलोत के सीएम रहते कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिली थी, लेकिन 2018 में अपनी जादुई राजनीति से गहलोत फिर मुख्यमंत्री बन गए। अब तो गहलोत को लगता है कि उनके बगैर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चल ही नहीं सकती। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए गहलोत ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को भी ठुकरा दिया।
 
सीएम आ अजमेर दौरा रद्द:
27 जनवरी को तबीयत नासाज होने के कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अजमेर और जालंधर (पंजाब) का दौरा रद्द हो गया है। तय कार्यक्रम के अनुसार गहलोत को कांग्रेस के सांसद संतोख सिंह चौधरी के निधन पर होने वाले अरदास के कार्यक्रम में जालंधर जाना था। इसी प्रकार कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहीं श्रीमती सोनिया गांधी की चादर को ख्वाजा साहब के उर्स में पेश करने के लिए दोपहर बाद अजमेर आना था, लेकिन सुबह ही गहलोत की तबीयत खराब हो गई चिकित्सकों ने सर्दी के मौसम को देखते हुए पूर्ण विश्राम की सलाह दी। गहलोत के नहीं आने पर सोनिया गांधी की चादर को अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद लेकर आए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-01-2023)
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अजमेर में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर और जोधपुर संभाग में नियुक्त आईपीएस के पुत्र का विवाद चर्चाओं में ।अजमेर के लोक अभियोजक विवेक पाराशर का पुत्र भी ज्यादती का शिकार।

अजमेर शहर में तैनात एक पुलिस इंस्पेक्टर और जोधपुर संभाग में नियुक्त आईपीएस के पुत्र के बीच हुआ विवाद अब राजस्थान भर के पुलिस महकमे में चर्चा का विषय बना हुआ है। जानकार सूत्रों के अनुसार 26 जनवरी की शाम को पुलिस इंस्पेक्टर जब क्रिश्चियनगंज क्षेत्र के पृथ्वीराज नगर में साइकिलिंग कर रहे थे, तब एक युवक को संदिग्ध स्थिति में देखा। युवक को जब टोका गया तो उसने जमकर अभद्रता की। हालांकि युवक को समझाने का प्रयास किया गया, लेकिन शायद पुलिस इंस्पेक्टर की समझाइश में कमी रह गई। युवक का कहना रहा कि मेरे पिता के अधीन कई पुलिस इंस्पेक्टर काम करते हैं। बताया जाता है कि युवक के पिता जोधपुर संभाग में आईपीएस के तौर पर नियुक्त है। सूत्रों के अनुसार अभद्रता के शिकार पुलिस इंस्पेक्टर ने रात साढ़े आठ बजे जेएलएन अस्पताल में अपने स्वास्थ्य की जांच भी करवाई है। इस संबंध में क्रिश्चियनगंज पुलिस थाने को भी सूचना दी गई। चूंकि यह मामला पुलिस के दो बड़े अधिकारियों से जुड़ा था, इसलिए देर रात तक समझौते के प्रयास भी होते रहे। सूत्रों के अनुसार अब इस मामले में दोनों ही पक्षों की ओर से चुप्पी साध ली गई है। अजमेर पुलिस के अधिकारी भी विवाद की पुष्टि नहीं कर रहे हैं। लेकिन जेएलएन अस्पताल का रिकॉर्ड बताता है कि विवाद तो हुआ है।
 
पाराशर का पुत्र ज्यादती का शिकार:
अजमेर के जिला लोक अभियोजक विवेक पाराशर का पुत्र भी ज्यादती का शिकार हुआ है। पाराशर ने 26 जनवरी को क्रिश्चियनगंज पुलिस थाने में एक रिपोर्ट देकर बताया कि शास्त्री नगर स्थित सी स्क्वायर कोचिंग सेंटर में उनका पुत्र पढ़ने जाता है। 26 जनवरी को शाम साढ़े पांच बजे कुछ साथी छात्रों ने मारपीट की। इससे पहले भी मेरे पुत्र से मारपीट कर 10 हजार रुपए की राशि वसूली गई। साथी छात्र लगातार उनके पुत्र को ब्लैकमेल कर रहे हैं। पुलिस ने पाराशर की रिपोर्ट पर आरोपियों के खिलाफ धारा 323, 341, 384, 379, 143 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पाराशर का पुत्र इस समय अस्पताल में अपना इलाज करवा रहा है। 26 जनवरी की मारपीट में पुत्र के अनेक चोटें आई हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-01-2023)
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Monday 23 January 2023

मर्यादा का ख्याल रखते हुए अजमेर में गुरु ग्रंथ साहिब के 16 स्वरूप सिंधी समुदाय ने सिक्खों को लौटाए।धार्मिक क्षेत्र की यह एक महत्वपूर्ण घटना है।

देशभर में सिंधी समुदाय के मंदिरों और धार्मिक आश्रमों में गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप ही रखे जाते हैं। जब कभी किसी सिंधी परिवार में धार्मिक आयोजन होते हैं, तब मंदिरों में रखे गुरु ग्रंथ साहिब ही लाए जाते हैं। सिंधी समुदाय पूरे अदब और सम्मान से गुरु ग्रंथ साहिब को अपने पास रखते हैं। सिंधी संत भी गुरु ग्रंथ साहिब के अनुरूप ही प्रवचन भी देते हैं। इससे दोनों समुदायों में सामंजस्य भी बना रहता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। लेकिन 22 जनवरी को राजस्थान के अजमेर में सिंधी समुदाय  ने अपने मंदिरों और धार्मिक आश्रमों में रखे गुरु ग्रंथ साहिब के 16 स्वरूपों को पूरे सम्मान के साथ सिक्ख समुदाय को सौंप दिए। हालांकि सिक्ख समुदाय की ओर से गुरु ग्रंथ साहिब को लौटाने का कोई आग्रह नहीं किया गया था, लेकिन अवगत दिनों इंदौर में हुई एक घटना के मद्देनजर अजमेर के सिंधी समुदाय ने पवित्र ग्रंथों को सिक्ख समुदाय को लौटाने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया। जानकारी के मुताबिक पंजाब के एक निहंग दल ने इंदौर के सिंधी सनातन मंदिर पहुंचकर गुरु ग्रंथ साहिब को मर्यादा के साथ रखने की बात कही। दल का कहना रहा कि गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारे में ही रखे जाएं। यदि किसी अन्य धार्मिक स्थान पर रखे जाते हैं तो गुरु ग्रंथ साहिब वाले स्थान पर अन्य किसी की मूर्ति अथवा तस्वीर न हो। यह भी कहा गया कि यदि मर्यादा का पालन नहीं होता है तो सिंधी समुदाय को पवित्र ग्रंथ वापस करने चाहिए। इंदौर जैसा कोई विवाद न हो, इसलिए अजमेर के ईश्वर मनोहर उदासीन धाम की पहल पर सिंधी मंदिरों में रखे गुरु ग्रंथ साहिब के 16 स्वरूपों को सम्मान के साथ लौटाया गया है। अजमेर के सिंधी समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि हमारे मंदिरों में पूरे सम्मान के साथ पवित्र ग्रंथों को रखा जाता है। मंदिरों में भगवान झूलेलाल और अन्य साधु संतों की प्रतिमाएं या तस्वीरें भी लगी रहती हैं। ऐसे में कोई विवाद न हो, इसलिए पवित्र ग्रंथों को सम्मान के साथ लौटाया जा रहा है। हम चाहते हैं कि सिक्ख समुदाय के साथ सद्भावना बनी रहे। गुरु ग्रंथ साहिब के 16 स्वरूपों को ग्रहण करने वाली गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष सरदार अमरजीत सिंह छाबड़ा ने कहा कि यह सब आपसी सहमति से हुआ है। इसमें कोई विवाद नहीं है। धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस घटना के समय सिंधी समुदाय की ओर से ईश्वर मनोहर उदासीन संत स्वरूप दास के शिष्य गौतम सांई, स्वामी ईसर दास, सांई आत्मा दास, दादा नारायण दास, स्वामी अर्जुन दास, भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय मंत्री महेंद्र कुमार तीर्थानि, मोहन तुलसीयानी, लक्ष्मण राम दौलतानी, प्रकाश मूलचंदानी, नरेश आदि मौजूद रहे। वहीं सिक्ख समाज की ओर से  गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष अमरजीत सिंह छाबड़ा, सचिव नरेंद्र सिंह छाबड़ा, दशमेश गुरुद्वारे के प्रधान सरदार दिलबाग सिंह, अमरजीत सिंह टीनू आदि उपस्थित रहे। जिन सिंधी समुदाय के धार्मिक स्थलों से पवित्र ग्रंथ लौटाए गए हैं, उनमें ईश्वर मनोहर उदासीन आश्रम, ईश्वर गोविंद धाम सनातन मंदिर, श्री राम विश्व धाम सनातन मंदिर, प्रेम प्रकाश आश्रम, निर्मल धाम आश्रम, बालक धाम उदासीन आश्रम आदि शामिल हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (23-01-2023)
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जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है के नारे पर मुस्कुराते रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।जिस एसओजी की एएसपी 2 करोड़ रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार हैं वह एसओजी पेपर लीक की क्या जांच करेगी-नारायण बेनीवाल।हंगामे के कारण विधानसभा में कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों वाला भाषण राज्यपाल नहीं पढ़ सके।भाजपा ऐसी धमाल पट्टी चुनाव तक करती रहेगी-सीएम गहलोत।वरिष्ठ नेता ही विधानसभा की गरिमा को गिरा रहे हैं-सीपी जोशी।मार्शल के जरिए आरएलपी के तीनों विधायकों को सदन से बाहर निकाला।

राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन 23 जनवरी को जबरदस्त हंगामा हुआ। परंपरा के अनुसार नए सत्र की शुरुआत के अवसर पर जब राज्यपाल कलराज मिश्र ने सरकार की उपलब्धियों वाला भाषण पढ़ना शुरू किया तो प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया ने प्रदेश में हो रहे पेपर लीक का मामला उठाया। कटारिया का कहना था कि सरकार की विफलता के कारण हर परीक्षा का प्रश्न पत्र आउट हो रहा है, इससे 50 लाख परीक्षार्थी परेशान हैं। कटारिया के इस कथन के साथ ही भाजपा के विधायकों ने नारेबाजी शुरू कर दी। थोड़ी देर तो राज्यपाल ने भाषण को पढ़ा और फिर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से सलाह कर भाषण पढ़ना बंद कर दिया। राज्यपाल के भाषण को पढ़ा हुआ माना गया। भाजपा के विधायक जब विधानसभा में जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है के नारे लगा रहे थे तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुस्कुराते देखे गए। हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के तीनों विधायकों ने भी हंगामा करते हुए पेपर लीक मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की। विधायकों के हंगामे की वजह से राज्यपाल को भी सदन से जल्दी जाना पड़ा। भाजपा विधायकों ने हंगामे के दौरान फसलों के खराब होने का मामला भी उठाया। बीजेपी के विधायक बलवीर सिंह तो सरसों की फसल की गांठ को लेकर ही विधानसभा में पहुंच गए। परंपरा के मुताबिक सत्र के पहले दिन एक विधायक की शपथ और फिर शोकाव्यक्ति के बाद सदन को स्थगित कर दिया गया।

सीबीआई से जांच की मांग:
आरएलपी के विधायक नारायण बेनीवाल और पुखराज गर्ग ने पेपर लीक प्रकरण की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस समय पेपर लीक मामलों की जांच एसओजी कर रही है। जबकि हाल ही में एसओजी की एक एएसपी को 2 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। बेनीवाल ने कहा कि ऐसी जांच एजेंसी पेपर लीक की निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि पेपर लीक के प्रकरण में भाजपा और कांग्रेस मिले हुए हैं। बेनीवाल ने कहा कि सीबीआई जांच होने पर ही पेपर लीक के असली गुनहगार पकड़े जाएंगे। एसओजी की जांच तो गुनाहगारों को बचाने के लिए हो रही है।
 
चुनाव तक चलेगी धमाल पट्टी:
भाजपा के हंगामे के संबंध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राज्यपाल के भाषण के दौरान भाजपा विधायकों का हंगामा पूर्व नियोजित था। मुझे पता है कि भाजपा के लोग अब विधानसभा चुनाव तक इसी तरह धमाल पट्टी करते रहेंगे। भाजपा नहीं चाहती कि सरकार की योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण में सरकार की उपलब्धियां ही बताई जा रही थी। लेकिन भाजपा के विधायक सच्चाई को सुनना नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा इस कार्यवाही का मुकाबला कांग्रेस के कार्यकर्ता डट कर करेंगे। भाजपा विधायकों का कृत्य राज्यपाल का अपमान करना भी है। उन्होंने कहा कि आगामी 8 फरवरी को जनकल्याणकारी बजट प्रस्तुत किया जाएगा।

हंगामा दुर्भाग्यपूर्ण:
हंगामे के बाद जब विधानसभा की कार्यवाही शुरू हो हुई तो अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि हंगामा दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि सदन के वरिष्ठ विधायक ही माहौल बिगाड़ रहे हैं। सीपी जोशी का इशारा प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया की ओर था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में राजस्थान विधानसभा में ही देशभर के विधानसभा अध्यक्षों का सम्मेलन हुआ था। सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ ने भी संसद और विधानसभाओं में होने वाले हंगामों पर चिंता प्रकट की थी। तब सभी नेताओं ने संकल्प लिया कि सदन की कार्यवाही सुचारू तौर पर चलाने में सहयोग किया जाएगा। जिस विधानसभा में संकल्प लिया गया उसी विधानसभा में 23 जनवरी को जमकर हंगामा हुआ।  

आरएलपी के विधायक सस्पेंड:
राज्यपाल के अभिभाषण के बाद जब सदन दोबारा से शुरू हुआ तब भी आरएलपी के विधायक नारायण बेनीवाल, पुखराज गर्ग, इंदिरा देवी ने फिर से हंगामा करने लगे इस पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने तीनों विधायकों को एक दिन के सस्पेंड करने का ऐलान किया। लेकिन इसके बाद भी तीनों विधायक सदन से बाहर नहीं गए, इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने मार्शल बुलाकर तीनों विधायकों को बाहर निकलवा दिया। 

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धीरेंद्र शास्त्री की आड़ में सनातन धर्म पर हमला नहीं किया जाए।सनातन धर्म किसी की गर्दन काटने की सीख नहीं देता।

मध्यप्रदेश के बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री के करिश्मों को लेकर इन दिनों देशभर में चर्चा हो रही है। अनेक लोग धीरेंद्र के पक्ष में हैं तो कुछ लोग खिलाफ में बयानबाजी कर रहे हैं। चूंकि धीरेंद्र शास्त्री भारत की सनातन संस्कृति को आगे रखकर अपने करिश्मों का प्रदर्शन कर रहे हैं। इसलिए आलोचकों को सनातन धर्म पर भी हमला करने का अवसर मिल गया है। धीरेंद्र शास्त्री के करिश्मों से सहमत नहीं होने वाले लोग उनकी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन धीरेंद्र की आड़ लेकर सनातन धर्म पर हमला करना उचित नहीं है। आलोचकों को यह भी समझना चाहिए कि सनातन धर्म किसी की गर्दन काटने की सीख नहीं देता है। धीरेंद्र शास्त्री की आड़ लेकर कुछ लोग जिस तरह सनातन धर्म पर हमला कर रहे हैं, वैसा हमला यदि किसी दूसरे धर्म पर किया जाता तो अब तक न जाने कितने आलोचकों की गर्दन तन से अलग हो जाती। जो टीवी चैनलों के स्टूडियो में बैठक कर सनातन धर्म पर हमला कर रहे हैं, वे स्टूडियो में ही मारे जाते। लेकिन भारत की संस्कृति से जुड़ा सनातन धर्म हमेशा सद्भाव और भाईचारे का संदेश देता है, इसलिए किसी को भी हमला करने से डर नहीं लगता है। लेकिन सनातन संस्कृति में भरोसा रखने वालों का मानना है कि ईश्वर सब का लेखा जोखा रखता है। सभी को उनके कर्मों के अनुरूप परिणाम मिलेंगे। भले ही अभी किसी की गर्दन नहीं कट रही हो, लेकिन समय आने पर उनके कृत्यों के अनुरूप फल मिलेंगे। धीरेंद्र शास्त्री किसी को पीले चावल देकर अपने धार्मिक अनुष्ठान में नहीं बुलाते हैं। कोई न आना चाहे तो न आए। 130 करोड़ देशवासियों में से कुछ हजार लोग ही धीरेंद्र के अनुष्ठान में पहुंचते हैं। भारत में ऐसे अनुष्ठान अनेक स्थानों पर होते हैं, लेकिन बागेश्वर धाम की कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है। आलोचक यह भी समझ लें कि धीरेंद्र शास्त्री स्वयं को हनुमान जी का शिष्य बताते हैं। बालाजी महाराज की कृपा से ही धीरेंद्र शास्त्री करिश्मे करते हैं। करिश्मेों के बारे में तो धीरेंद्र शास्त्री और उनके अनुयायी ही जाने, लेकिन शास्त्रों में हनुमान की ताकत का जो विवरण दिया गया है, वह सभी को पता है। हनुमान जी की ताकत को चुनौती देने पर सोने की लंका को भी जलना पड़ा। सनातन संस्कृति में हनुमान जी एक ऐसे चरित्र हैं जो भक्त के रूप में प्रदर्शित हुए हैं। हो सकता है कि कुछ लोग सनातन धर्म से सहमत न हो, लेकिन फिर भी किसी भी धर्म की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। वामपंथी विचारधारा के लोगों ने तो सनातन धर्म की आलोचना को अपने एजेंडा ही बना लिया है। धीरेंद्र शास्त्री से ज्यादा सनातन धर्म की परंपराओं पर हमला किया जा रहा है। ऐसे लोगों में दूसरे धर्म के खिलाफ एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं है। धीरेंद्र शास्त्री की आड़ में हिन्दू समुदाय में ही विवाद करवाने की कोशिश की जा रही है। 

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Sunday 22 January 2023

6 वर्षों से जो दिल ने कहा उसे आरएएस प्रियंका जोधावत ने 365 पृष्ठों की पुस्तक में लिख दिया।सोशल मीडिया बना अभिव्यक्ति का आधार।

जो विवेकशील व्यक्ति कुछ लिखना और लोगों को पढ़ाना चाहता है उसे राजस्थान की वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और मौजूदा समय में जयपुर स्थित जवाहर कला केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत से प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रियंका भी उन विवेकशील व्यक्तियों में शामिल हैं, जो लीक से हट कर काम करना चाहती है। प्रियंका ने ऐसा किया भी। आमतौर देखा गया है कि बहुत से लोग अपनी भावनाओं को कविता या लेख में लिखते हैं, लेकिन उनके सामने अपने लिखे को दूसरों को पढ़ाने की समस्या होती है। इस समस्या का समाधान प्रियंका ने सोशल मीडिया से निकाला। प्रियंका ने अपना लेखन पहली बार 31 मार्च, 2017 को फेसबुक पर पोस्ट किया। लेखन के लिए फेसबुक पर जो दाद मिली, उससे उत्साहित होकर प्रियंका लिखती चली गई। अब प्रियंका ने अपने लेखन का संकलन एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक का नाम है, कुछ दिल ने कहा। वाकई प्रियंका ने दिल की बात लिखी है। प्रियंका के गीत, गजल और दिल की बात पढ़ने से प्रकृति के हर मौसम का अहसास भी होता है। चूंकि प्रियंका ने अपने अहसासों को हर रोज लिखा है, इसलिए सर्दी, गर्मी, बरसात और उमस भरे माहौल का भी प्रतिबिंब होता है। प्रकृति से प्रेम करने वालों को भी यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। युवा पीढ़ी की उमंगों को आसमान तक ले जाएगी प्रियंका के दिल की बातें। इस पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि इसमें आम बोलचाल के शब्द हे। प्रशासनिक सेवा में रहते हुए रोजाना लिखना कोई आसान काम नहीं है। 365 पृष्ठों की पुस्तक से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रियंका ने कितना लिखा होगा। इस पुस्तक में तो दिल की खास बातें ही शामिल की गई है। अप्रकाशित सामग्री तो अभी और है। इस पुस्तक को पढ़ने और प्रियंका की योग्यता को समझने के बाद यह लिखने की जरूरत नहीं कि प्रियंका सेवानिवृत्त आईएएस डीआर जोधावत की बेटी है। इस पुस्तक का प्रकाश जयपुर स्थित बोधि प्रकाशन ने किया है। पुस्तक को मोबाइल नंबर 9829018081 या बेसिक फोन नंबर 0141-2213700 पर वार्ता कर मंगाया जा सकता है।
 
कुछ ऐसे कहा प्रियंका ने:
प्रियंका जोधावत ने अपने पुस्तक में कुछ ऐसा कहा है...
स्पन्दन
ये पन्ने भी मेरे हैं,
और यह रोशनाई भी मैं हूं,
फना भी मैं ही हुई,
और जिन्दा भी मैं ही हंू।
मेरे सब्र एक समीम का ही असर है..
देखो न
फिर से जिन्दगी लिख रही है,
ये जिंदगानी मेरी।

कलम का संगीत
आवाज में साज है..
साज में आवाज है,
शब्दों में स्वर है..
स्वर में शब्द है,
संगीत में एहसास है..
एहसास में संगीत है,
विश्व का संगीत है..
संगीत का विश्व है।

मृदुल स्पर्श
एक रोशनी है एहसासों की, जो राह में चलती है संग मेरे।
एक नूर है ये इबादत का, जो वजूद को थामे है मेरे।

स्वर्ण प्रकाश
कुछ जीवन लम्हों में गुज़र जाता है,
कुछ खास लम्हों से जीवन बनता है,
ये लम्हों की गिरह कितनी अजीब है
कुछ उलझी सी कुछ सुलझी हुई सी,
कभी ये उलझन लम्हा दर लम्हा सुलझती है,
जब सुलझती है तो फिर सब नया लगता है।

S.P.MITTAL BLOGGER (22-01-2023)
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एएसपी दिव्या मित्तल पर कार्यवाही हुई तो अशोक गहलोत की सरकार पर संकट आ जाएगा।जिन पुलिस अफसरों ने गहलोत सरकार को बचाया, उन्हीं की मेहरबानी दिव्या पर रही।एसीबी के पास दिव्या के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं। जमानत पर 24 को सुनवाई।

राजस्थान पुलिस की जाबाज अधिकारी दिव्या मित्तल इन दिनों अजमेर की सेंट्रल जेल में बंद हैं। प्रदेश में भ्रष्ट कार्मिकों को पकड़ने वाली एजेंसी एसीबी का दावा है कि दिव्या ने नशीली दवा बनाने वाली हरिद्वार की एक कंपनी के मालिक से दो करोड़ रुपए की मांग की थी। दिव्या को रिश्वत लेते रंगे हाथों नहीं पकड़ा गया। एसीबी के पास सबूत के तौर पर कंपनी के मालिक की शिकायत और दिव्या का एक कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग है। दिव्या की गिरफ्तारी के बाद राजस्थान पुलिस में बवाल हो गया है। दिव्या अजमेर में एसओजी की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक थीं। लेकिन दिव्या के पास अजमेर रेंज के अलावा भी दूसरी रेंज के जिलों के मुकदमों की जांच भी आती रही। जब कोई फरियादी पुलिस महानिदेशक अथवा एसओजी के एडीजी के पास निष्पक्ष जांच के लिए गुहार लगाता तो उसका मुकदमा पुलिस की जांबाज अफसर दिव्या मित्तल को सौंप दिया जाता। एक माह पहले तक पुलिस महानिदेशक रहे एमएल लाठर और एसओजी के मौजूदा एडीजी अशोक राठौड़ तो दिव्या को ही प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ अफसर मानते हैं। लाठर और राठौड़ उन होनहार और वफादार अफसरों में शामिल रहे हैं, जिन्होंने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोरोना काल में लाठर कानून व्यवस्था के प्रभारी थे, तब अगस्त 2020 में गहलोत सरकार के विरुद्ध कांग्रेस के 19 विधायक दिल्ली चले गए और विधायक दिल्ली न भाग जाएं, इसके लिए लाठर ने ही प्रदेश की सीमाओं को सील करने का आदेश निकाला था। हालांकि यह आदेश कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए था। इस आदेश में राजस्थान से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई, जबकि दूसरे राज्यों से आने पर कोई रोक नहीं गाई। अब यह गृह मंत्री अशोक गहलोत और लाठर ही बता सकते हैं कि दूसरे राज्यों से लोगों के आते रहने पर कोरोना के संक्रमण को कैसे रोका जाएगा? कायदे से तो आने वालों को रोकना चाहिए था, लेकिन लाठर ने जाने वालों पर रोक लगाई। यदि लाठर ऐसा आदेश जारी नहीं करते तो कांग्रेस के 10-15 विधायक और दिल्ली पहुंच जाते। तब अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री पद का क्या होता, यह सब जानते हैं। कोरोना काल में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए सीएम गहलोत ने पांच आईपीएस की वरिष्ठता को लांघ कर लाठर को पुलिस महानिदेशक नियुक्त कर दिया। अब यदि पुलिस महानिदेशक के पद पर रहते हुए महत्वपूर्ण और जमीनों से जुड़े मुकदमों की जांच एसओजी को दी तो कौन सा गुनाह हो गया? जहां तक एसओजी के एडीजी अशोक राठौड़ का सवाल है तो विधायकों की खरीद फरोख्त से लेकर पेपर लीक तक के मामलों की जांच उन्हीं के अधीन हो रही है। गृहमंत्री के नाते अशोक गहलोत के साथ राठौड़ का अच्छा तालमेल है। ऐसे में यदि अजमेर रेंज के अलावा उदयपुर और अन्य जिलों के मुकदमों की जांच दिव्या मित्तल को सौंप दी तो क्या एतराज है? आखिर दिव्या राजस्थान पुलिस की जांबाज अफसर है। यदि एसीबी नहीं पकड़ती तो 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर दिव्या को पुलिस पदक से सम्मानित किया जाता। सम्मानित करने के आदेश भी जारी हो गए थे। दिव्या से ईर्ष्या रखने वाले पुलिस अफसर अखबारों में कुछ भी छपवा लें, लेकिन ऐसे किस्से मनोहर कहानियां ही साबित होंगे। यदि मनोहर कहानियों के आधार पर दिव्या के खिलाफ कार्यवाही होती है तो गहलोत सरकार पर संकट आ सकता है, क्योंकि दिव्या पर उन्हीं अफसरों की मेहरबानी रही, जिन्होंने गहलोत सरकार बचाई। किसी मामले को कैसे फुस्स किया जाता है, यह सीएम गहलोत को अच्छी तरह आता है। वैसे भी 24 जनवरी को दिव्या के जमानत के प्रार्थना पत्र पर अदालत में सुनवाई होनी है। एसीबी ने भले ही दिव्या को जेल भिजवा दिया हो, लेकिन एसीबी के पास दिव्या के खिलाफ ठोस सबूत नहीं है। दिव्या ने अपना वकील पूर्व एडीजे प्रीतम सिंह सोनी को किया है। एसीबी ने जिन कार्मिको को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा है, उन कार्मिकों की जमानत भी करवाने में प्रीतम सिंह सोनी सफल रहे हैं। जबकि दिव्या मित्तल से तो रिश्वत की राशि तक बरामद नहीं हुई है। किसी भी मुकदमे में एसीबी के पास सबसे बड़ा सबूत कार्मिकों को रिश्वत की राशि के साथ पकड़ना होता है। दिव्या के खिलाफ ऐसा कोई सबूत नहीं है। मनोहर कहानियों के तहत दिव्या की संपत्तियों की जो जानकारी अखबारों में दी गई,वे भी गलत निकली है। एसीबी के कार्यवाहक डीजी हेमंत प्रियदर्शी तो चाहते ही नहीं है कि अदालत में चालान पेश करने से पहले आरोपी की संपत्तियां सार्वजनिक की जाएं। प्रियदर्शी तो रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी आरोपी की पहचान उजागर करने के पक्ष में नहीं थे। यदि प्रियदर्शी का आदेश वापस नहीं होता तो दिव्या का नाम और फोटो भी अखबारों में देखने को नहीं मिलता। कोई माने या नहीं लेकिन दिव्या का निलंबन भी अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते रद्द हो जाएगा।

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Saturday 21 January 2023

पीएम मोदी की धर्म सभा के लिए पवित्र मालासेरी डूंगरी की मिट्टी और भगवान देवनारायण मंदिर के चावल राजस्थान के हर गुर्जर परिवार में पहुंचाए जाएंगे। पुष्कर में हुई बैठक।भगवान देवनारायण के 1111 वें अवतरण दिवस पर 28 जनवरी को डूंगरी पर होगी धर्म सभा।विष्णु के स्वरूप हैं भगवान देवनारायण। कमल का फूल और मंदिर का दुपट्टा पहनाकर पीएम मोदी का स्वागत किया जाएगा-पुजारी हेमराज।

21 जनवरी को पुष्कर के गुर्जर भवन में राजस्थान भर के गुर्जर नेताओं की एक बैठक हुई। कोई 25 जिलों से आए 200 नेताओं की बैठक में निर्णय लिया गया कि 28 जनवरी को भीलवाड़ा के आसींद में होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धर्मसभा के लिए पवित्र मालासेरी डूंगरी की मिट्टी और डूंगरी पर ही बने भगवान देवनारायण मंदिर में चढ़े पीले चावल प्रदेश के हर गुर्जर परिवार तक पहुंचाए जाएंगे। मिट्टी और चावल धर्मसभा के निमंत्रण के तौर पर दिए जाएंगे। 28 जनवरी को भगवान देवनारायण का 1111 वां अवतरण दिवस है। बैठक में आए प्रतिनिधियों को पवित्र डूंगरी की मिट्टी और मंदिर के चावल का बैग भी दिया गया। धर्म सभा के आयोजन से जुड़े भाजपा ओबीसी मोर्चे के प्रदेशाध्यक्ष ओम प्रकाश भडाणा ने बताया कि अब प्रदेश के हर जिले खासकर 25 गुर्जर बाहुल्य जिलों में ऐसी बैठकें होंगी और गुर्जर समुदाय के प्रत्येक घर में पवित्र मिट्टी और चावल पहुंचाए जाएंगे। गुर्जर समुदाय के लिए यह गर्व की बात है कि भगवान देवनारायण के 1111 वें अवतरण दिवस के समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग ले रहे हैं। जिन गुर्जर परिवारों में चौपहिया वाहन है, उन सभी से आग्रह किया गया है कि वे अपने वाहन में परिवार के सदस्यों और पड़ोस के लोगों को बैठाकर धर्म सभा में भाग लें। धर्मसभा में कितने लोग भाग लेंगे इसको लेकर कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है, लेकिन हमारा प्रयास है कि प्रदेश के हर गुर्जर परिवार का सदस्य धर्म सभा में उपस्थित हो। भडाणा ने बताया कि पुष्कर की बैठक में भाजपा की राष्ट्रीय सचिव अलका गुर्जर, सांसद सुखवीर सिंह जौनपुरिया, विधायक मानसिंह गुर्जर, अनीता गुर्जर, पूर्व मंत्री हेमसिंह भडाना, जवाहर, कालूलाल गुर्जर आदि उपस्थित रहे। धर्मसभा के आयोजन से जुड़ी और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9929590191 पर ओम प्रकाश भडाना से ली जा सकती है।
 
ऐसे होगा पीएम मोदी का स्वागत:
भीलवाड़ा के आसींद स्थित मालासेरी डूंगरी पर बने भगवान देवनारायण मंदिर के पुजारी हेमराज ने बताया कि पीएम मोदी को मंदिर कमेटी की ओर से आमंत्रित किया गया है। 1111 वें अवतरण दिवस पर आयोजित पंच कुंडीय महायज्ञ में पीएम मोदी पूर्णाहुति करेंगे। पीएम मोदी कोई दो घंटे तक मालासेरी डूंगरी पर रहेंगे। मंदिर में मोदी का कमल का फूल और दुपट्टा देकर स्वागत किया जाएगा। मोदी के स्वागत के लिए मंदिर कमेटी के सदस्य और पुजारी उत्साहित हैं। चूंकि 28 जनवरी को भगवान देवनारायण का 1111 वां अवतरण दिवस है, इसलिए विदेशों में रहने वाले गुर्जर भी महायज्ञ में भाग लेने के लिए आ रहे हैं। पुजारी हेमराज ने बताया कि गुर्जर समुदाय के लिए आसींद की मालासेरी डूंगरी का खास धार्मिक महत्व है। 11 सौ वर्ष पहले जब सवाई भोज जी शहीद हुए तब परंपरा के मुताबिक उनकी पत्नी गुर्जरी साडू ने भी सती होने का संकल्प लिया। लेकिन इसी दौरान ईश्वरीय आकाशवाणी हुई कि माता साडू को सती होने की जरुरत नहीं है, क्योंकि आज से एक माह बाद कमल के फूल स्वयं विष्णु जी देवनारायण के स्वरूप में आएंगे। आकाशवाणी के अनुरूप ही देवनारायण जी का अवतरण शिशु के रूप में माता साडू के पास हुआ। चूंकि यह सब कुछ मालासेरी डूंगरी पर ही घटित हुआ, इसलिए गुर्जर समुदाय के लिए यह डूंगरी (पहाड़) विशेष महत्व रखती है। मालासेरी डूंगरी को ही भगवान देवनारायण का अवतरण स्थल माना जाता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (21-01-2023)
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Friday 20 January 2023

अजमेर में तेलंगाना हाउस का विरोध करने का भाजपा का नैतिक अधिकार नहीं।क्योंकि वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री और शिव शंकर हेड़ा के अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष रहते हुए ही तेलंगाना सरकार को 5 हजार वर्ग मीटर भूमि का आवंटन हुआ है।कांग्रेस शासन में तो सिर्फ संशोधित मानचित्र स्वीकृत हुआ है।

अजमेर के जागरूक नागरिक राजेंद्र लालवानी ने 20 जनवरी को मुझे 24 जून 2018 वाला मेरा ब्लॉक संख्या 4244 भेजा है। सबसे पहले तो मैं आदरणीय लालवानी जी का आभार प्रकट करना चाहता हूं कि उन्होंने चार वर्ष पुराना मेरा ब्लॉग संभाल कर रखा और मौका आने पर मुझे ही पढ़ने के लिए भेज दिया। 24 जून 2018 वाले इस ब्लॉग को मैं ज्यों का त्यों अपने फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर आज फिर पोस्ट कर रहा हंू। यह ब्लॉग अजमेर में बनने वाले तेलंगाना हाउस से संबंधित है। इस ब्लॉग को उन भाजपा नेताओं को पढ़ना चाहिए जो आज तेलंगाना हाउस का विरोध कर रहे हैं। असल में तेलंगाना हाउस के लिए अजमेर के कोटड़ा क्षेत्र में पांच हजार वर्ग मीटर भूमि का आवंटन तब हुआ, जब राजस्थान में वसुंधरा राजे भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री थीं और अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष की कुर्सी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अजमेर महानगर के संघ चालक रहे शिव शंकर हेड़ा विराजमान थे। तब किसी भी भाजपाई नेता को अजमेर में तेलंगाना हाउस के बनने पर एतराज नहीं था। यही वजह रही कि 8 मार्च से 18 जून 2018 तकी चार माह की अवधि में पांच हजार वर्ग मीटर भूमि के चिन्हीकरण से लेकर भूमि का कब्जा सौंपते तक का कार्य हो गया। इस चार माह की अवधि में भूमि आवंटन की फाइल दो बार राज्य सरकार की स्वीकृति के लिए जयपुर भी गई। प्राधिकरण की जिस बोर्ड बैठक में भूमि आवंटन का निर्णय हुआ, उसके सदस्य भी भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल थीं। तब देवनानी और भदेल स्वतंत्र प्रकार के राज्य मंत्री भी थे। अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा के आदेश से ही 2 करोड़ 40 लाख 35 हजार रुपए की राशि तेलंगाना सरकार ने जमा करवाई। असल में यह भूमि आवंटन राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के बीच आपसी समझौते के तहत हुआ। जब वसुंधरा राजे ने तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में राजस्थान हाउस के लिए भूमि मांगी तो चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना से ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत के लिए आने वाले जायरीन के लिए अजमेर में भूमि मांगी। चंद्रशेखर राव के प्रस्ताव पर वसुंधरा राजे ने मात्र चार माह की अवधि में तेलंगाना सरकार को भूमि का कब्जा दिया। कांग्रेस के शासन में तो अभी 8 जनवरी को सिर्फ संशोधित चित्र स्वीकृत हुआ है। भाजपा अब इसे मुद्दा बनाकर भूमि आवंटन को निरस्त करने की मांग कर रही है। भाजपा नेताओं का मानना है कि तेलंगाना हाउस बनने से कोटड़ा क्षेत्र का माहौल खराब होगा। सवाल उठता है कि भाजपा नेताओं को यह आशंका 2018 में भूमि आवंटन के समय नजर क्यों नहीं आई। भाजपा के नेता अब भले ही राजनीतिक कारणों से तेलंगाना हाउस का विरोध करें, लेकिन नैतिक आधार पर विरोध करने का अधिकार भाजपा नेताओं को नहीं है।

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राजस्थान में अफसर हो तो दिव्या मित्तल, गृहमंत्री हो तो अशोक गहलोत और विपक्ष हो तो भाजपा जैसा। तीनों का गजब का करिश्मा।

अजमेर में नियुक्त एसओजी की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) दिव्या मित्तल दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में 16 जनवरी से एसीबी की रिमांड पर है। इसी बीच 18 जनवरी को एटीएस और एसओजी के एडीजी अशोक राठौड़ ने एक आदेश जारी कर कहा कि पुलिस विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए आगामी 26 जनवरी को एएसपी दिव्या मित्तल को भी पुलिस मुख्यालय से सम्मानित किया जाएगा। एसीबी की रिमांड में रहते हुए सम्मानित होने वाला आदेश दिव्या मित्तल के लिए ही निकल सकता है। हालांकि यह आदेश वापस ले लिया है, लेकिन इससे प्रतीत होता है कि गिरफ्तार होने से पहले पुलिस के आला अफसर कितने मेहरबान थे। अब जो कारनामे सामने आ रहे हैं, उनसे प्रतीत होता है कि दिव्या ने तो अपनी दिव्य ज्योति से राजस्थान पुलिस के डीजीपी तक को चकाचौंध कर रखा था। जब भी निष्पक्ष जांच की बात आती तो डीजीपी से लेकर एसओजी के एडीजी तक मुकदमे की फाइल को जांच के लिए दिव्या मित्तल को ही भेजते थे। दिव्या ज्योति के कारण बड़े अफसरों को दिव्या मित्तल के अलावा कोई नजर ही नहीं आता था। अपने इस दिव्य ज्योति के करिश्मे से ही दिव्या मित्तल ने एसीबी की योजना का पहले ही पता लगा लिया। इससे एसीबी की रंगे हाथों पकड़ने की योजना फेल हो गई। यदि दिव्या करिश्माई अफसर नहीं होती तो 50 लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़े ली जातीं। आखिर दिव्य ज्योति का अहसास करने वाले किसी अफसर ने ही तो एसीबी की जानकारी दिव्या तक पहुंचाई। अब सबूत के तौर पर एसीबी के पास ऑडियो रिकॉर्डिंग ही है। दिव्य ज्योति से मात खाए एसीबी के अधिकारी अखबारों में कुछ भी छपवा लें, लेकिन अदालत में दिव्या के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं करा पाएंगे। दिव्या ने अपना वकील भी प्रीतम सिंह सिंह सोनी को किया है। रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए कार्मिकों की जमानत भी एडवोकेट सोनी ने आसानी से करवाई है। दिव्य मित्तल से तो रिश्वत की राशि भी बरामद नहीं हुई है। डीजीपी स्तर तक के अधिकारी मानते हैं कि राजस्थान पुलिस दिव्या मित्तल जैसी उत्कृष्ट अधिकारी नहीं है। ईमानदारी और निष्पक्ष जांच में तो दिव्य पुरुष अधिकारियों से भी आगे हैं। इसीलिए अफसर हो तो दिव्या जैसी होनी चाहिए।
 
गृहमंत्री हो तो अशोक गहलोत जैसा:
दिव्या मित्तल के प्रकरण ने राजस्थान पुलिस के बड़े बड़े चेहरों पर से नकाब उतार दी है। जिन अफसरों ने दिव्या पर मेहरबानी बरसाई उनके नाम भी अखबारों में रोज छप रहे हैं। ये वे ही अफसर हैं जिन पर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की विशेष कृपा रहती है। यदि अशोक गहलोत जैसा गृहमंत्री नहीं होता तो बड़े बड़े अफसर एएसपी स्तर की एक अधिकारी पर इतनी मेहरबानी नहीं दिखा सकते थे। पुलिस महकमे का असली चेहरा सामने आने के बाद भी गृह मंत्री की भूमि पर कोई सवाल नहीं उठ रहा है। दिव्या मित्तल जिस तरह नशीली दवाओं के कारोबारियों से वसूली कर रही थीं, उसकी भनक गृहमंत्री को नहीं लगी, क्या ऐसा हो सकता है? क्या गृह मंत्री के अधीन आने वाली सीआईडी, एसओजी, एसीबी, एटीएस जैसी खुफिया एजेंसी सिर्फ विधायकों की निगरानी के लिए हैं? कांग्रेस और निर्दलीय विधायक यदि अपने रिश्तेदार के पास भी जाएंगे तो गृह मंत्री के नाते अशोक गहलोत को पता चला जाएगा। पुलिस की इतनी बदनामी के बाद भी गृह मंत्री की कोई जवाबदेही सामने नहीं आ रही है। ऐसा लग रहा है जैसे गृहमंत्री की कोई जिम्मेदारी है ही नहीं। अशोक गहलोत की गृहमंत्री वाली नाक के नीचे क्या क्या हो रहा है, यह राजस्थान की जनता साफ तौर पर देख रही है। दिव्या मित्तल के प्रकरण में गृहमंत्री होने के नाते अशोक गहलोत अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं? लेकिन यह भी सब जानते हैं कि दिव्या पर मेहरबान किसी अधिकारी पर कोई कार्यवाही नहीं होगी, क्योंकि ऐसे अफसरों की बदौलत ही अशोक गहलोत की सरकार बची हुई है। जिन अधिकारियों ने सरकार को बचाए रखा, उन्हें रिटायरमेंट के बाद भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां दी है। चाहे कोई मुख्य सचिव हो या डीजीपी।
 
विपक्ष हो तो भाजपा जैसा:
इसे विपक्ष का करिश्मा ही कहा जाएगा कि दिव्या मित्तल के प्रकरण में गृहमंत्री के नाते अशोक गहलोत की भूमिका पर कोई सवाल नहीं उठाया है। शायद भाजपा के नेताओं को यह पता नहीं होगा कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही गृहमंत्री हैं। जो प्रकरण 16 जनवरी से न्यूज़ चैनलों और अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है, उस पर विपक्ष के तौर पर भाजपा के नेता खामोश हैं। भाजपा नेताओं को लगता है कि इसी वर्ष राजस्थान में उनकी सरकार बन जाएगी, क्योंकि सरकार बनाने का नंबर उन्हीं का है। नंबर की वजह से ही भाजपा नेता आश्वस्त होकर बैठे हैं। यदि विपक्ष जागरूक होता तो दिव्या मित्तल के प्रकरण में गृहमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत को कटघरे में खड़ा कर देता। 

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Thursday 19 January 2023

सचिन पायलट के हाथ मजबूत होंगे तो राजस्थान में कांग्रेस भी मजबूत होगी-मंत्री बृजेंद्र ओला।अशोक गहलोत ने पायलट के साथ दगाबाजी कर सत्ता हथियाई है-सुचित्रा आर्य कांग्रेस नेत्री।नहीं हटे तो युवा वर्ग धक्का मार कर हटा देना-मंत्री हेमाराम चौधरी।21 से 100 विधायक करने वाले पायलट को गहलोत ने निकम्मा और नाकारा कहा-मंत्री राजेंद्र गुढा।यदि अधिकारी और नेता शामिल नहीं तो तिजोरी से पेपर लीक होना जादूगरी ही है।आखिर अशोक गहलोत इतना अपमान क्यों सह रहे हैं?

राजस्थान में विधानसभा चुनाव जब सिर पर हैं तब पूर्व डिप्टी सीएम और सात वर्ष तक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे सचिन पायलट प्रदेशभर में किसान सम्मेलन कर रहे हैं। पायलट की उपस्थिति के कारण इन सम्मेलनों में भीड़ भी आ रही है। हालांकि सम्मेलनों में महंगाई, बेरोजगारी आदि मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की जाती है, लेकिन मुख्य निशाना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही होते हैं। 17 जनवरी को हनुमानगढ़ के पीलीबंगा में आयोजित सम्मेलन में पूर्व विधायक सुचित्रा आर्य ने कहा कि सचिन पायलट से दगाबाजी कर अशोक गहलोत ने सत्ता हथियाई है।  इसी सम्मेलन में स्वयं पायलट ने कहा कि 2013 में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस का पतीला मांज दिया था। इतनी बुरी हार के बाद मुझे प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। मैंने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के दम पर पांच वर्ष तक भाजपा शासन में संघर्ष किया और कांग्रेस की सरकार बनवाई। 18 जनवरी को झुंझुनू के गुढ़ा में आयोजित सम्मेलन में प्रदेश के सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढा ने कहा कि 2013 में कांग्रेस को 21 सीट मिली, लेकिन 2018 में पायलट के नेतृत्व में चुनाव लड़ा तो कांग्रेस को 100 सीटें मिली। लेकिन अशोक गहलोत ने फिर भी पायलट को नकारा और निकम्मा कहा। गुढा ने कहा कि राजस्थान में सचिन पायलट ही कांग्रेस को जीत दिला सकते हैं। 16 जनवरी को परबतसर (नागौर) के सम्मेलन में वन मंत्री हेमाराम चौधरी ने गहलोत की ओर इशारा करते हुए कहा कि यदि वे नहीं हटेंगे तो युवा वर्ग धक्के मार कर हटा देगा। इसी सम्मेलन में पायलट ने पेपर लीक में सरगनाओं को पकड़ने की बात कही। इस पर सीएम गहलोत ने कहा कि हमने सरगनाओं को ही पकड़ा है। पेपर लीक में कोई अधिकारी व नेता शामिल नहीं है। 18 जनवरी को गुढा में हुए सम्मेलन में पायलट ने कहा कि यदि अधिकारी और नेता शामिल नहीं हैं तो तिजोरी से पेपर निकलना जादूगरी ही है। मालूम हो कि गहलोत स्वयं को जादूगर होने का दावा करते हैं। किसान सम्मेलनों में सरकार के मंत्री और कांग्रेस के नेता ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। जो काम विपक्ष को करना चाहिए वो काम कांग्रेस के नेता और सरकार के मंत्री ही कर रहे हैं। मंत्री ही जब अशोक गहलोत की आलोचना कर रहे हैं, तब उनके मुख्यमंत्री होने पर भी सवाल उठता है, एक ओर गहलोत अगले चुनाव में सरकार के रिपीट होने का दावा कर रहे हैं, वहीं उन्हीं की पार्टी के नेता और मंत्री खुला विरोध जता रहे हैं। एक दो नहीं बल्कि कई मंत्री गहलोत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। क्या मंत्रियों और विधायकों की बयानबाजी का असर गहलोत पर नहीं होता? सवाल यह भी है कि आखिर अपने ही लोगों से अशोक गहलोत इतना अपमान क्यों सहन कर रहे हैं? जहां तक कांग्रेस आलाकमान का सवाल है तो सचिन पायलट के ताजा बयानों से गहलोत को इशारा समझ लेना चाहिए।

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500 पाकिस्तानी जायरीन की मेहमान नवाजी के लिए 15 दिनों तक 1500 छात्राओं की पढ़ाई बंद।ख्वाजा साहब के उर्स में आने वाला पाक जायरीन का दल गवर्नमेंट सेंट्रल गर्ल्स स्कूल में ठहरेगा।अजमेर में तेलंगाना हाउस के लिए भूमि आवंटन का विरोध। कलेक्टर को ज्ञापन

सब जानते हैं कि पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू और सिक्खों के साथ धर्म के आधार पर किस तरह का अत्याचार किया जाता है, लेकिन ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में आने वाले 500 जायरीन की मेहमान नवाजी के लिए अजमेर में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। ख्वाजा उर्स में सरकारी स्तर पर पाकिस्तान से जायरीन दल के आने की परंपरा रही है। इसी परंपरा के अंतर्गत इस बार 23 जनवरी को पाकिस्तान से 500 जायरीन का एक दल अजमेर आ रहा है। ख्वाजा साहब का छह दिवसीय उर्स भी रजब माह का चांद दिखने पर 22 जनवरी या 23 जनवरी से शुरू हो जाएगा। सरकारी सूत्रों के अनुसार पाक जायरीन दल अजमेर में 2 फरवरी तक रहेगा। पाक जायरीन को अजमेर के पुरानी मंडी स्थित गवर्नमेंट सेंट्रल गर्ल्स स्कूल में ठहराया जाएगा। इस स्कूल में 1500 छात्राएं अध्ययन करती हैं। जिन कमरों में छात्राओं की कक्षाएं लगती हैं, उन्हीं में पाक जायरीन ठहरेंगे। ऐसी स्थिति में जिला प्रशासन 15 दिनों के लिए स्कूल को अपने अधीन ले रहा है। स्वाभाविक हैं कि 15 दिनों तक स्कूल में छात्राओं की पढ़ाई नहीं होगी। पाक जायरीन जब भी ख्वाजा उर्स में आते है, तब इसी स्कूल में ठहराया जाता है। हालांकि कई बार अभिभावकों ने 15 दिनों के लिए छात्राओं की पढ़ाई बंद किए जाने पर विरोध जताया है, लेकिन ऐसे अभिभावकों की कोई सुनवाई नहीं होती। प्रशासन ने अभी तक भी पाक जायरीन के लिए वैकल्पिक आवास के इंतजाम नहीं किए हैं। इसलिए पाक जायरीन के आने पर स्कूल को बंद कर दिया जाता है। प्रशासन का तर्क है कि सेंट्रल गर्ल्स स्कूल ख्वाजा साहब की दरगाह के निकट है, इसलिए जायरीन को इसी स्कूल में ठहराया जाता है। पाक जायरीन जब स्कूल में ठहरते हैं तो जियारत के लिए आना जाना लगा रहता है। सुरक्षा की दृष्टि से भी सेंट्रल गर्ल्स स्कूल को उपयुक्त माना गया है। पाक जायरीन की सुरक्षा के भी विशेष इंतजाम किए जाते हैं। एक एक जायरीन पर खुफिया नजर होती है। जायरीन जब स्कूल परिसर से बाहर निकलते हैं, तब भी उन पर निगरानी रखी जाती है। पाक जायरीन की सुविधा के लिए जिला कलेक्टर अंशदीप ने 18 जनवरी को ही सेंट्रल गर्ल्स स्कूल परिसर का दौरा भी किया है। एक दो दिन में स्कूल परिसर को प्रशासन अपने कब्जे में ले लेगा।
 
तेलंगाना हाउस का विरोध:
अजमेर विकास प्राधिकरण ने राज्य सरकार की अनुशंसा पर कोटड़ा स्थित पत्रकार कॉलोनी के सामने पांच हजार वर्ग मीटर भूमि तेलंगाना हाउस के लिए आवंटित की है। यहां तेलंगाना सरकार की ओर से निर्माण करवाया जाएगा। यही वजह है कि यह जमीन बहुत ही रियायती दर पर दी गई है। अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह के जियारत के लिए आने वाले तेलंगाना प्रांत के लोगों को आवास की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए ही अजमेर में तेलंगाना हाउस का निर्माण करवाया जाएगा। चूंकि तेलंगाना हाउस के लिए आवासीय कॉलोनी में भूमि का आवंटन किया गया है, इसलिए कोटड़ा क्षेत्र के नागरिकों में रोष व्याप्त है। 19 जनवरी को अजमेर सकल समाज की ओर से जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन देकर भूमि का आवंटन रद्द करने की मांग की गई है। कलेक्टर को ज्ञापन देने वालों में भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी, सुनील दत्त जैन, सुभाष काबरा, डिप्टी मेयर नीरज जैन, सतीश बंसल, विनीत जैमन आदि शामिल रहे। प्रतिनिधियों ने आशंका जताई कि आवासीय कॉलोनी में तेलंगाना हाउस बनने से माहौल खराब होगा। 

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Tuesday 17 January 2023

आखिर अशोक गहलोत किसके लिए राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट करवा रहे हैं?सरकार का चिंतन शिविर बनाम सचिन पायलट के किसान सम्मेलन।पेपर लीक में कोई नेता व अफसर शामिल नहीं-सीएम गहलोत।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहे कितना भी दिखावा कर लें, लेकिन अब वे कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के भरोसे के नेता नहीं रहे हैं। यदि गहलोत भरोसे के नेता होते तो 16 जनवरी से पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट राजस्थान में किसान सम्मेलनों की शुरुआत नहीं कर पाते। पायलट का पहला किसान सम्मेलन 16 जनवरी को नागौर के परबतसर में हुआ तो 18 जनवरी को झुंझुनू के गुढ़ा में होगा। पायलट की ओर से ऐसे पांच सम्मेलन होंगे। पायलट ने किसान सम्मेलनों की शुरुआत 16 जनवरी से तब की, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर जयपुर में चिंतन शिविर कर रहे हैं। इस चिंतन शिविर में मुख्य एजेंडा कांग्रेस सरकार को रिपीट करने का रहा। सवाल उठता है कि अशोक गहलोत राजस्थान में किस के लिए कांग्रेस सरकार को रिपीट करवा रहे हैं? गहलोत जब गांधी परिवार के भरोसे के काबिल ही नहीं रहे तो फिर सरकार रिपीट  का गहलोत को क्या फायदा होगा? 15 जनवरी को पायलट ने पंजाब में गांधी परिवार के प्रमुख सदस्य राहुल गांधी से मुलाकात की और 16 जनवरी को परबतसर में किसान सम्मेलन कर पेपर लीक मामले में गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा किया। जिन वन मंत्री हेमाराम चौधरी को सरकार के चिंतन शिविर में होना चाहिए था वो हेमाराम चौधरी किसान सम्मेलन में पायलट के साथ रहे। साथ ही नहीं रहे बल्कि अशोक गहलोत पर सीधा निशाना भी साधा। चौधरी ने कहा कि राजनीति में यदि युवाओं को मौका नहीं दिया तो युवा वर्ग धक्का देकर पुरानों को उठा देगा। पायलट ने भी कहा कि पेपर लीक मामलों में सिर्फ दलालों को पकड़ने से कुछ नहीं होगा। सरगनाओं को पकड़ना चाहिए। पायलट के किसान सम्मेलन से अशोक गहलोत को अब कांग्रेस में अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। हालांकि गहलोत खुद तर्जुबे कार नेता हैं, लेकिन उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि असली कांग्रेस वो ही है जो गांधी परिवार के साथ खड़ी है। मौजूदा समय में राजस्थान में सचिन पायलट ही गांधी परिवार के भरोसेमंद नेता हैं। विधायकों को पटाकर भले ही गहलोत अपनी सरकार चला लें, लेकिन 10 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में गांधी परिवार का भरोसेमंद नेता ही टिकट बांटेगा। तब गहलोत की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगा लेना चाहिए। यदि अशोक गहलोत गांधी परिवार से अलग हट कर राजस्थान में कोई नई राजनीतिक खिचड़ी पका रहे हैं तो अलग बात है। यह खिचड़ी कैसी बनेगी यह समय ही बताएगा, लेकिन गहलोत ने गांधी परिवार को चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गत 25 सितंबर को 108 में से 91 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे करवा कर गहलोत गांधी परिवार को सीधी चुनौती दी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि अब अशोक गहलोत ने भी गांधी परिवार से झगड़ा करने की ठान ली है, इसलिए वे सचिन पायलट के महत्व को स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
 
नेता-अफसर शामिल नहीं:
16 जनवरी को नागौर के परबतसर में किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पेपर लीक मामले में कहा था कि दलालों को नहीं सरगनाओं को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। पायलट के इस बयान पर 17 जनवरी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी प्रतिक्रिया दी। गहलोत ने कहा कि हमने सरगनाओं को ही पकड़ा है। कांग्रेस का कोई नेता यदि पेपर लीक के किसी आरोपी का नाम बताएगा तो उसे भी पकड़ा जाएगा। गहलोत ने स्पष्ट कहा कि पेपर लीक प्रकरण में कोई नेता और अफसर शामिल नहीं है। पेपर लीक अन्य राज्यों में होते हैं। लेकिन राजस्थान पहला ऐसा राज्य है, जहां पेपर लीक के आरोपियों पर सख्त कार्यवाही की गई है। 

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एएसपी दिव्या मित्तल की गिरफ्तारी के बाद यही बात सही है-जो पकड़ा जाए वही चोर और भ्रष्ट है।शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष जारोली के राजनीतिक संरक्षण का अभी तक पता नहीं चला।

राजस्थान पुलिस की जांच एजेंसी एसीबी में एडीजी दिनेश एमएन, एएसपी बजरंग सिंह शेखावत जैसे ईमानदार अधिकारी भी हैं जो बड़े बड़े मगरमच्छों को भी पकड़ते हैं। लेकिन आमतौर यही बात सही होती है कि जो पकड़ा जाए, वही चोर और भ्रष्ट है। राजस्थान पुलिस की जांच एजेंसी एसओजी की अजमेर चौकी की प्रभारी एएसपी दिव्या मित्तल को एसीबी के एएसपी बजरंग सिंह शेखावत की टीम ने 16 जनवरी को गिरफ्तार किया। दिव्या पर एक दवा कंपनी के मालिक से दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप है। हालांकि दिव्या को रिश्वत लेते नहीं पकड़ा गया, लेकिन एसीबी का दावा है कि दिव्या ने दो करोड़ रुपए की मांग की थी। एसीबी के पास ऑडियो और पीड़ित व्यक्ति के दिव्या से मुलाकात करने के सबूत है। राजस्थान पुलिस में दिव्या की छवि एक ईमानदार अधिकारी की है, इसलिए दिव्या को एसीबी में प्रतिनियुक्ति पर जा रही थी। राजस्थान के बहुचर्चित नशीली दवा के प्रकरण में दिव्या की जांच रिपोर्ट पर ही अजमेर पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही हुई। अब खुद दिव्या पर रिश्वत मांगने का आरोप लगा है। पीड़ित व्यक्ति से रिश्वत मांगते वक्त दिव्या ने कहा कि रिश्वत की राशि वह अकेले ही हजम नहीं करेंगी। यह राशि बड़े अधिकारियों को दी जाएगी। अब चूंकि दिव्या ही पकड़ी गई है, इसलिए उसे ही भ्रष्ट समझा जा रहा है, लेकिन दिव्या के बयान से स्पष्ट है कि पुलिस महकमे में और भी भ्रष्ट हैं जो अभी पकड़े नहीं गए हैं। जब तक पकड़े नहीं जाते, तब तक ईमानदार ही कहलाएंगे। अब दिव्या एसीबी के शिकंजे में है, तो उन अधिकारियों का भी नाम उजागर होना चाहिए जो दिव्या को मोहरा बना कर रिश्वत की राशि हजम कर रहे थे। वैसे भी एक एएसपी स्तर का अधिकारी सिर्फ अपने दम पर दो करोड़ रुपए की रिश्वत की मांग नहीं कर सकता है।
 
राजनीतिक संरक्षण पर कार्यवाही नहीं:
चाहे पेपर लीक का मामला हो अथवा भ्रष्टाचार का, लेकिन भ्रष्टाचार और अपराध को संरक्षण देने वालों पर कार्यवाही नहीं होती है। गत वर्ष जब रीट का पेपर लीक हुआ तब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारोली ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि पेपर लीक राजनीतिक संरक्षण के कारण हुआ है। हालांकि जारोली को भी अध्यक्ष पद से बर्खास्त किया गया, लेकिन किसी भी जांच एजेंसी ने जारोली के बयान के अनुरूप राजनीतिक संरक्षण देने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की। इतना ही नहीं जारोली का मुंह बंद रखने के लिए जांच एजेंसियों ने उन्हें भी क्लीन चिट दे दी। रीट पेपर के मामले में जिस तरह जांच में लीपापोती की गई उस से जाहिर है कि सरकार की मंशा असली अपराधियों को पकड़ने की नहीं है। 

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