Monday 27 June 2022

ख्वाजा साहब की दरगाह का उपयोग विवाद के लिए नहीं होना चाहिए।खादिम समुदाय खुद मानता है कि दरगाह में मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू आते हैं, लेकिन फिर भी अजमेर के हिन्दू दुकानदारों पर प्रतिकूल टिप्पणी।

26 जून को अजमेर में सनातन संस्कृति की रक्षार्थ निकले शांति मार्च पर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से तीखी प्रतिक्रिया दी गई। शांति मार्च को गैर जरूरी बताते हुए दरगाह बाजार के बंद रहने पर हिन्दू व्यापारियों को लेकर प्रतिकूल बातें कहीं गई। शांति मार्च के निकलने के बाद दरगाह के मुख्य द्वार पर खड़े होकर खादिम समुदाय के एक प्रतिनिधि ने जो संबोधन दिया, उसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। मुस्लिम प्रतिनिधि होने के नाते अपनी बात कहने का पूरा हक है। वे सार्वजनिक तौर पर शांति मार्च की अनुमति देने के लिए कांग्रेस सरकार और प्रशासन की आलोचना भी कर सकते हैं। लेकिन अच्छा हो कि ऐसे विवादों से ख्वाजा साहब की दरगाह का उपयोग नहीं हो। खादिम समुदाय के प्रतिनिधि का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पदाधिकारी भी घोषित है यानी खादिमों समुदाय के प्रतिनिधि भी हैं। सब जानते हैं कि दरगाह में मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू समुदाय के लोग जियारत के लिए आते हैं। पिछले दिनों जब एक हिन्दूवादी संगठन ने दिल्ली में बैठकर ख्वाजा साहब की दरगाह में धार्मिक चिन्हों की बात कही तो अजमेर में हिन्दू समुदाय का समर्थन नहीं मिला। उल्टे हिन्दू प्रतिनिधियों ने ऐसे दावों को खारिज कर दिया। इसके पीछे यही उद्देश्य था कि अजमेर में सौहार्द का माहौल बना रहे। तब अंजुमन के निवर्तमान अध्यक्ष मोइन सरकार ने एक बयान जारी कर कहा कि दरगाह में 70 प्रतिशत लोग हिन्दू समुदाय के आते हैं, जहां तक शांति मार्च के लिए दोपहर 12 बजे तक बाजार बंद करने का सवाल है तो 17 मार्च को जब मुस्लिम समुदाय ने मौन जुलूस निकाला था, तब भी दरगाह के आसपास के दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद रखी थी। तब किसी ने भी दुकानें बंद करने पर ऐतराज नहीं जताया। दरगाह में हिन्दू समुदाय के लोग जियारत के लिए आते हैं, उन्हें खादिम ही जियारत करवाते हैं। जियारत की रस्म में कोई खादिम भेदभाव नहीं करता है। हिन्दू जायरीन के लिए भी खुशहाली और सफलता के लिए दरगाह में दुआ की जाती है। सूफी परंपरा के अनुरूप हिन्दू समुदाय के लोग जियारत के बाद अपने खादिम का हाथ भी चूमते हैं। यही वजह है कि ख्वाजा साहब की दरगाह को देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में कौमी एकता का प्रतीक माना जाता है। देश का माहौल चाहे कैसा भी हो,लेकिन दरगाह की वजह से अजमेर का माहौल आमतौर पर सुकून भरा होता है। दरगाह के मुख्यद्वार की सीढिय़ों पर खड़े होकर ही सालाना उर्स में देश के प्रधानमंत्री से लेकर तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं के संदेश पढ़े जाते हैं। यदि ऐसे स्थान का उपयोग खादिम समुदय के कुछ प्रतिनिधि विवादों के लिए करेंगे तो यह सौहार्द के लिए अच्छा नहीं होगा। ख्वाजा साहब की दरगाह से तो हमेशा भाई चारे और साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश जाना चाहिए, क्योंकि दरगाह से सिर्फ मुसलमानों की ही नहीं बल्कि हिन्दुओं की भी आस्था जुड़ी है। यदि दरगाह से व्यापारियों को धमकाने के अंदाज में बातें कहीं जाएंगी तो फिर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। अजमेर में सुकून कायम रहे इसी जिम्मेदार अब खादिम समुदाय के प्रतिनिधियों की भी है। दरगाह की धार्मिक रस्मों में खादिम समुदाय की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह सही है कि खादिम समुदाय के प्रतिनिधि ने अपने समुदाय के पक्ष को प्रभावी तरीके से सोशल मीडिया पर रखते रहे हैं। उन्होंने सरकार की आलोचना करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन अब ऐसे में उनके बयान बहुत मायने रखते हैं। जहां तक प्रशासन द्वारा शांति मार्च को अनुमति देने का सवाल है तो मार्च को ख्वाजा साहब की दरगाह के सामने से निकलने की अनुमति नहीं दी गई। प्रशासन की सबसे बड़ी सफलता है। जिला कलेक्टर अंशदीप और पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा ने अपनी सूझबूझ से मुस्लिम समुदाय का मौन जुलूस भी निकलवाया तो हिन्दू समुदाय का शांति मार्च भी। दोनों ही अवसरों पर अजमेर में शांति रही। अजमेर के लिए यह संतोष और गर्व की बात है कि जब चेटीचंड, महावीर जयंती आदि धार्मिक जुलूस निकलते हैं, तब दरगाह के बाहर खादिमों की ओर से ही पुष्प वर्षा की जाती है। इसी प्रकार जब खादिम समुदाय की ओर से सरवाड़ शरीफ का जुलूस निकाला जाता है तो दरगाह से मदार गेट तक हिन्दू व्यापारी जुलूस पर पुष्प वर्षा करते हैं। ख्वाजा साहब की दरगाह की वजह से दोनों पक्षों के आर्थिक हित भी जुड़े हैं। अजमेर में सौहार्द बना रहे, यह सभी की जिम्मेदारी है। 

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दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण के संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल का 7 जुलाई को नागरिक अभिनंदन। दो पुस्तकों का विमोचन भी।एक दिन में दो करोड़ 14 लाख रुपए जमा करवाकर अजमेर के अरविंद गर्ग बने देश के पहले अल्पबचत एजेंट।

दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण के संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल का पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए आगामी 7 जुलाई को सायं पांच बजे जवाहर रंगमंच पर नागरिक अभिनंदन किया जाएगा। नागरिक अभिनंदन समिति के प्रतिनिधि और जाने माने साहित्यकार उमेश चौरसिया ने बताया कि डॉ. अग्रवाल का पत्रकारिता का अनुभव चालीस वर्षों से भी ज्यादा का है। डॉ. अग्रवाल ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई आयाम कायम किए हैं। अभिनंदन समारोह में ही डॉ. अग्रवाल पर प्रकाशित एक अभिनंदन ग्रंथ का लोकार्पण भी किया जाएगा। इस ग्रंथ में डॉ. अग्रवाल के पत्रकारिता के जीवन पर कई लेख संकलित हैं। इसी समारोह में डॉ. अग्रवाल की दो कृतियां चकल्लस और सिटी रिपोर्टिंग का विमोचन भी होगा। चौरसिया ने बताया कि दैनिक नवज्योति और भास्कर में प्रकाशित कॉलम चकल्लस की सामग्री को संकलित किया गया है। पत्रकारिता पर डॉ. अग्रवाल ने सिटी रिपोर्टिंग नामक पुस्तक लिखी है। समारोह में देश के जाने माने पत्रकार और भास्कर के मैनेजमेंट फंडा के स्तंभकार एन रघुरामन मुख्य अतिथि होंगे तथा सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार संपत सरल अध्यक्षता करेंगे। समारोह के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829482607 पर उमेश चौरसिया से ली जा सकती है।
 
अल्पबचत का रिकॉर्ड:
अजमेर के मुख्य डाकघर के पचास खातों में एक ही दिन 25 जून को 2 करोड़ 14 लाख 60 हजार रुपए जमा करवाकर अल्पबचत एजेंट अरविंद कुमार गर्ग ने देशव्यापी रिकॉर्ड बनाया है। देश भर में डाक घरों के करीब साढ़े पांच लाख अभिकर्ता हैं। यह अभिकर्ता छोटे छोटे निवेशकों की राशि डाकघर के बचत खाते में जमा करवाते हैं। देशव्यापी रिकॉर्ड बनाने वाले एजेंट गर्ग का कहना है कि पूर्व में जो ढाई प्रतिशत कमिशन मिलता था, उसे अब आधा प्रतिशत कर दिया गया है। लेकिन इसके बाद भी अल्पबचत एजेंट मेहनत कर छोटे निवेशकों को प्रेरित करते हैं। उन्होंने भी अपने निवेशकों को प्रेरित किया इसलिए एक दिन में रिकॉर्ड राशि जमा करवाई गई। गर्ग ने बताया कि डाक घरों के खातों में सेवानिवृत्त कर्मचारी भी अपनी जमा पूंजी का निवेश करते हैं। पांच वर्ष के लिए राशि जमा करवाने पर मात्र 6.7 प्रतिशत ब्याज दिया जाता है जो बेहद ही कम है। गर्ग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि अल्पबचत एजेंटों के कमिशन की राशि को बढ़ाया जाए ताकि डाक घरों में निवेश भी बढ़ सके। मोबाइल नंबर 9414212827 पर अरविंद गर्ग को बधाई दी जा सकती है। 

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Sunday 26 June 2022

सनातन संस्कृति की रक्षार्थ अजमेर में हिन्दुओं की एकता का ऐतिहासिक प्रदर्शन।न कोई नेतृत्व न कोई नेता, फिर भी कलेक्ट्रेट पर 20 हजार से ज्यादा सनातनियों का जमावड़ा।अनुशासन में दिखा युवाओं का जोश और होश। साधु संतों ने राष्ट्रपति के नाम कलेक्टर को ज्ञापन दिया। एसपी विकास शर्मा ने खुद संभाली व्यवस्थाएं।

26 जून 2022 का दिन अजमेर के लिए ऐतिहासिक माना जाएगा। आमतौर पर भीड़ किसी नेता, अभिनेता के नाम पर या फिर किराए पर लाई जाती है। पारिश्रमिक देने के बाद भी खाने पीने के इंतजाम तक किए जाते हैं, लेकिन 26 जून को सनातन संस्कृति की रक्षार्थ अजमेर में हिन्दू समुदाय ने एकता का ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। इसे सनातन संस्कृति की मजबूती ही कहा जाएगा कि बिना किसी नेतृत्व और नेता के लोग इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित हो गए। हालांकि शांति मार्च को सफल बनाने के लिए हिन्दू विचारधारा के कार्यकर्ता सक्रिय रहे, लेकिन किसी भी हिन्दूवादी संगठन ने अपने नाम की पहल नहीं की। यही वजह रही कि सनातन संस्कृति में विश्वास रखने वाले 20 हजार से भी ज्यादा सनातनी कलेक्ट्रेट पर एकत्रित हो गए। शांति मार्च प्रात: साढ़े नौ बजे मार्टिंडल ब्रिज स्थित परशुराम मंदिर से रवाना होकर कलेक्ट्रेट पहुंची। रास्ते में केसरगंज, पड़ाव, मदार गेट, गांधी भवन, कचहरी रोड पर व्यापारियों ने जगह जगह सनातनियों का स्वागत किया। कई स्थानों पर तो फूल बरसाए गए। हालांकि मार्च में नारे लगाने पर रोक थी, लेकिन फिर भी कुछ उत्साही युवकों ने जय श्रीराम के नारे लगाए। व्यापारियों ने स्वेच्छा से दोपहर 12 बजे तक अपने प्रतिष्ठान बंद रखे। जो व्यापारी शांति मार्च में नहीं हो सका उसने अपने प्रतिष्ठान के बाहर खड़े होकर मार्च का स्वागत किया। यही वजह रही कि शांति मार्च के दौरान बाजारों में भी जबरदस्त भीड़ थी। यदि बाजारों में स्वागत करने वालों की संख्या भी जोड़ ली जाए तो ऐतिहासिक एकता के प्रदर्शन में सनातनियों की संख्या 50 हजार के पार हो जाएगी। शांति मार्च में शामिल होने के लिए युवाओं ने शुरू से ही उत्साह देखा गया। हजारों युवा सिर पर केसरिया साफा बांध कर मार्च में शामिल हुए। कोई 200 फीट लंबा तिरंगा भी शांति मार्च में प्रदर्शित किया गया। हजारों युवाओं के हाथ में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा देखा गया। कोई 20 हजार से भी ज्यादा सनातनी जब कलेक्ट्रेट पर पहुंचे तो भीड़ का सैलाब देखने को मिला। कलेक्ट्रेट के मुख्य द्वार पर पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाए थे। पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा के नेतृत्व में पुलिस फोर्स तैनात थी। लेकिन किसी भी युवा ने अनुशासन को तोड़ने का प्रयास नहीं किया। पहले से जो सूची दी गई उसी के अनुसार साधु संतों का एक प्रतिनिधि मंडल कलेक्टर से मिलने और ज्ञापन देने के लिए कलेक्ट्रेट परिसर में गया। साधु संत जब ज्ञापन दे रहे थे, तब कलेक्ट्रेट के बाहर हजारों सनातनियों ने हनुमान चालीसा का पाठ किया। जिन साधु संतों और हिन्दू समाज के प्रतिनिधियों ने ज्ञापन दिया उनमें स्वामी स्वरूपदास, स्वामी अनादि सरस्वती, स्वामी शत्रुघ्न दास, श्याम सुंदर शरण, विमल गर्ग, राम निवास चौधरी, नरेंद्र सिंह छाबड़ा, कालीचरण खंडेलवाल, डॉ. विष्णु चौधरी, शिखर चंद सिंघी, डॉ. अशोक मेघवाल, किशन गुर्जर (पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश), शिवरतन वैष्णव, सुदामा शर्मा, पुनीत ढिलवारी, सुशील सोनी, प्रभु लौंगानी, गिरधारी मंगल, सूरज नारायण लखोटिया, ओम प्रकाश विजयवर्गीय, किशनगढ़ गुप्ता, आनंद अरोड़ा, भोलानाथ आचार्य, त्रिलोक इंदौरा, नरेश मुदगल, सुनील दत्त जैन आदि शामिल रहे। राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में कहा गया कि इन दिनों देश में हिन्दू देवी देवताओं को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की जा रही है, जिससे हिन्दू समुदाय आहत है। जो लोग भारत की सनातन संस्कृति की छवि खराब कर रहे हैं उनके विरुद्ध कार्यवाही किए जाने की मांग की गई। शांति मार्च को सुप्रसिद्ध फोटोग्राफर दीपक शर्मा ने अपने कैमरे में अलग अलग एंगल से कैद किया है। शर्मा द्वारा तैयार किया गया वीडियो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है। शांति मार्च को सफल बनाने में भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल भी अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय देखे गए। इसी प्रकार बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के संभाग संयोजक और एकल विद्यालय के जिला अध्यक्ष सुभाष काबरा भी अपने समर्थकों के साथ शांति मार्च में शामिल हुए। 

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सचिन पायलट भाजपा से मिले हुए थे तो उनके समर्थक विधायकों को मंत्री क्यों बनाया?राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर मानहानि का दावा करुंगा-केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत।भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर सचिन पायलट अभी भी चुप।

जोधपुर के सांसद और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत की लोकसभा चुनाव में हार से अभी तक बौखलाए हुए हैं, इसलिए अंट-शंट बयान देते रहते हैं। मैंने कभी नहीं कहा कि जुलाई 2020 में कांग्रेस के सियासी संकट के समय सचिन पायलट भाजपा के संपर्क में थे, लेकिन फिर भी सीएम गहलोत ने मेरा नाम पायलट के साथ जोड़ दिया। सीएम ने मेरी आवाज का नमूना लेने के लिए नोटिस देने की बात भी कही, जबकि ऐसा कोई नोटिस मुझे नहीं मिला। सीएम गहलोत जो मनगढ़ंत बातें कह रहे हैं उसके विरोध में मैं मानहानि का दावा करुंगा। मैं अब तक राजनीतिक नजरिए से जवाब दे रहा था, लेकिन गहलोत ने व्यक्तिगत हमले कर दिए हैं। शेखावत ने पलटवार करते हुए कहा कि जुलाई 2020 में यदि सचिन पायलट भाजपा से मिले हुए थे तो फिर पायलट के समर्थक विधायकों को गहलोत ने मंत्री क्यों बनाया? शेखावत ने कहा कि जुलाई 2020 में सियासी संकट कांग्रेस का आंतरिक मामला था। लेकिन सीएम गहलोत अपने राजनीतिक स्वार्थ के खातिर संकट को भाजपा से जोड़ रहे हैं। गहलोत ने अपने मंत्रिमंडल में चार उन विधायकों को शामिल किया जो पायलट के साथ दिल्ली गए थे। गहलोत को पहले यह बताना चाहिए कि दिल्ली जाने वाले विधायकों को मंत्री क्यों बनाया। शेखावत ने कहा कि गत लोकसभा चुनाव में अपने बेटे वैभव गहलोत की हार को गहलोत अभी तक भी नहीं भुला पाए हैं। मुझे जोधपुर की जनता ने सांसद बनवाया है। लेकिन गहलोत मेरे विरुद्ध व्यक्तिगत आरोप लगा रहे हैं। जहां तक ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) का सवाल है तो इस मामले में सीएम गहलोत प्रदेश की जनता को लगातार गुमराह कर रहे हैं। लेकिन अब मैं चुप नहीं बैठने वाला नहीं हंू। मैं स्वयं संबंधित 13 जिलों में जाकर सीएम गहलोत के कृत्यों के बारे में लोगों को बताऊंगा। सीएम गहलोत अपने राजनीतिक स्वार्थ की खातिर 13 जिलों के लोगों के सामने गलत बयानी कर रहे हैं।
 
पायलट अभी भी चुप:
यूं तो सीएम गहलोत जुलाई 2020 से ही आरोप लगा रहे हैं कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश में भाजपा का हाथ है। लेकिन पिछले एक सप्ताह में गहलोत ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं पहली-राजस्थान में विधायकों को 10-10 करोड़ रुपए बट गए थे, दूसरी कि सचिन पायलट भाजपा से मिले हुए थे। लेकिन अभी तक सचिन पायलट ने इस मामले में चुप्पी बनाए रखी है। 25 जून को जब गहलोत ने सीधे तौर पर यह मान लिया कि पायलट भाजपा से मिले हुए थे, तब पायलट को अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। 

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शिवसैनिकों को तय करना है कि मंदिर बनाने वालों के साथ रहना है या मंदिर तोड़ने वालों के समर्थकों के साथ।फिल्म निर्देशक रामगोपाल वर्मा की द्रौपदी मुर्मू पर बेहूदा टिप्पणी।

महाराष्ट्र में कोई सियासी संकट नहीं है। कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के सहयोग से चल रही उद्धव ठाकरे की सरकार का खेल खत्म हो गया है। ठाकरे के 55 विधायकों में से 40 विधायक पिछले पांच दिनों से गुवाहाटी में जमे हुए हैं। लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं और उद्धव ठाकरे के पास मात्र 15 सिर रह गए हैं। 286 में से 15 विधायकों को लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपके उद्धव की ओर से गुवाहाटी में जमे विधायकों को धमकी दी जा रही है। कांग्रेस और शरद पवार को ठाकरे परिवार की ताकत के टुकड़े टुकड़े करना चाहते हें, लेकिन उद्धव को यह समझना चाहिए कि जब सत्ता हाथ से जाती है, तब प्रशासनिक तंत्र भी सहयोग नहीं करता है। मुंबई पुलिस को भी पता है कि सत्ता में कौन आने वाला है। ऐसे में पुलिस के दम पर राज नहीं किया जा सकता है। जिस मुंबई पुलिस के दम पर विरोधी विधायकों को मुंबई की चौपाटी पर आने की चेतावनी दी जा रही है, वही मुंबई पुलिस विधायकों को सुरक्षित तरीके से एयरपोर्ट से विधानसभा और राजभवन तक ले जाएगी। मुंबई पुलिस की मदद के लिए केंद्रीय सुरक्षाबलों के सशस्त्र जवान भी तैनात रहेंगे। धमकियां अपने आप फुस्स हो जाएंगी, लेकिन उद्धव ठाकरे के पास जो शिव सैनिक बचे हैं, उन्हें यह तय करना चाहिए कि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनवाने वालों के साथ रहना है या फिर मंदिर तोड़ने वालों के समर्थकों के साथ। शिवसैनिक को पता है कि कौन कहां खड़ा है। जिन वीर छत्रपति शिवाजी ने अपनी धरती के लिए आक्रमणकारियों से संघर्ष किया, क्या उन्हीं आक्रमणकारियों के समर्थकों के साथ शिव सैनिक खड़े होंगे? शिव सैनिकों को संजय राउत जैसे नेताओं के बहकावे में नहीं आना चाहिए। राउत का तो कुछ नहीं होगा, लेकिन शिवसैनिक कानूनी झंझटों में फंस जाएंगे।
 
वर्मा की बेहूदा टिप्पणी:
अपनी फिल्मों में अभिनेत्रियों को कम कपड़ों में डांस और अभिनय कराने के लिए कुख्यात फिल्म निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर बेहूदी टिप्पणी की है। वर्मा ने अपने ट्वीट में लिखा, यदि द्रौपदी राष्ट्रपति हैं तो पांडव कौन है? और ज्यादा जरूरी सवाल कौरव कौन है? एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के नाम को महाभारत की द्रौपदी से जोड़ना कतई उचित नहीं है। सब जानते हैं कि द्रौपदी मुर्मू एक आदिवासी महिला है और उनका जीवन संघर्ष पूर्ण रहा है। राष्ट्रपति भवन में वे न केवल आदिवासी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करेंगी, बल्कि संघर्षशील महिलाओं की प्रेरणा स्त्रोत भी होंगी। ऐसी संघर्ष शील महिला पर रामगोपाल वर्मा की यह टिप्पणी बेहूदगी भरी है। 

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Saturday 25 June 2022

गुजरात दंगों के झूठ पर नरेंद्र मोदी ने शिव की तरह विष पिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने दंगों के सच पर मोहर लगा दी है।गोधरा में जब ट्रेन में आग लगाकर 60 यात्रियों को जिंदा जला दिया, तब प्रतिक्रिया में हिंसा हुई। लेकिन इस जन आक्रोश को रोकने में गुजरात सरकार ने भरसक प्रयास किया।गुजरात दंगों पर आरोप लगाने वालों पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का तीखा हमला।

25 जून को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2002 में हुए गुजरात दंगों के मद्देनजर उन राजनीतिक दलों, स्वयंसेवी संगठनों और मीडिया घरानों पर जमकर हमला बोला, उन्होंने एक साजिश के तहत तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम किया। शाह ने कहा कि आज जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम निर्णय दे दिया है, तब वे इस मुद्दे पर बोल रहे हैं। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह माना कि दंगे राज्य सरकार द्वारा प्रेरित नहीं थे। उल्टे राज्य सरकार ने दंगों को रोकने के लिए समुचित और प्रभावी कदम उठाए। जाकिया जाफरी ने एसआईटी की रिपोर्ट पर अपनी याचिका में जो सवाल उठाए उन सवालों का जवाब भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टता के साथ दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह याचिका झूठ को बनाए रखने के लिए है। अमित शाह ने कहा कि गुजरात दंगों की आड़ में नरेंद्र मोदी को 20 वर्षों तक कटघरे में खड़ा रखा गया। लेकिन अब सच सबके सामने आ गया है। नरेंद्र मोदी ने शिव की तरह विष पिया, लेकिन अब उनके पास सोने की तरह चमक है। अमित शाह ने कहा कि सच तो यह है कि गोधरा में ट्रेन में आग लगाकर चालीस यात्रियों को जिंदा जला दिया गया। तब प्रतिक्रिया स्वरूप जनआक्रोश सामने आया। इस जन आक्रोश को नियंत्रित करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जो भी कर सकते थे वो किया। यहां तक की सेना की मदद भी मांगी गई। यह कहना पूरी तरह गलत है, पुलिस फायरिंग में सिर्फ मुसलमान ही मारे गए। पुलिस फायरिंग में अन्य धर्मों के लोग भी मारे गए। सब जानते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ और उसके एनजीओ ने गुजरात के शहरों में झूठी एफआईआर दर्ज कराई। झूठ को बढ़ावा देने में तीस्ता और उसके एनजीओ की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। तीस्ता एक सामाजिक कार्यकर्ता बन कर किसके इशारे पर कार्यवाही कर रही थी, यह सब को पता है। तीस्ता के एनजीओ को उस समय केंद्र सरकार से भारी अनुदान मिला। गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग ने भी तब की राज्य सरकार को क्लीन चिट दी। इसके बाद गठित एसआईटी ने भी माना कि दंगे राज्य सरकार द्वारा प्रेरित नहीं थे। शाह ने कहा कि इस एसआईटी में गुजरात पुलिस के अधिकारी नहीं थे। बल्कि दूसरे राज्यों के अधिकारियों को शामिल किया गया। जिला अदालत ने भी एसआईटी की रिपोर्ट को सही माना लेकिन फिर भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने भी एसआईटी की रिपोर्ट पर मोहर लगाई, लेकिन कांग्रेस के सांसद की पत्नी जाकिया जाफरी ने एक बार फिर एसआईटी की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया जाफरी की याचिका को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं जाकिया जाफरी पर तो कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन जिन राजनीतिक दलों, एनजीओ और मीडिया घरानों ने 20 वर्षों तक झूठ को चलाए रखा उन्हें अब जवाब देना चाहिए। शाह ने कहा कि ऐसे लोगों को अब सार्वजनिक तौर पर क्षमा याचना करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब एसआईटी के अधिकारियों ने लगातार कई घंटों तक पूछताछ की। लेकिन मोदी ने कभी भी अपने कार्यकर्ताओं को धरना प्रदर्शन किए गए नहीं उकसाया और न ही पूछताछ के दौरान कोई आपत्ति दर्ज करवाई। लेकिन पिछले दिनों राहुल गांधी से जब ईडी ने पूछताछ की तो कांग्रेस ने कितनी नाटकबाजी की इसे पूरे देश ने देखा। अमित शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के बाद अब गुजरात दंगों का झूठ समाप्त हो जाना चाहिए। मैंने पिछले 20 वर्षों में नरेंद्र मोदी के उस दर्द को भी देखा है जो उन्होंने कई अवसरों पर सहन किया। एक निर्दोष व्यक्ति को बेवजह तंग किया जाता रहा। लेकिन मोदी ने पिछले बीस वर्षों में झूठे आरोपों पर कभी संयम नहीं खोया। इतना ही नहीं मोदी जब विदेश दौरे पर जाते तब संबंधित देश के अखबारों में मोदी विरोधी आर्टिकल छपवाए जाते थे। सुप्रीम कोर्ट में भी वकील कपिल सिब्बल ने झूठ को बनाए रखने के लिए बहुत से तर्क दिए, लेकिन मुझे संतोष है कि सुप्रीम कोर्ट ने उस एसआईटी की रिपोर्ट को सही माना तो तथ्यों पर आधारित है। 

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जुलाई 2020 में सचिन पायलट भाजपा से मिले हुए थे यह बात अब केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने स्वीकार कर ली है।ईआरसीपी पर 13 जिलों की जनता भाजपा को सबक सिखाएगी-सीएम अशोक गहलोत।डॉक्टरों के तबादलों को लेकर कांग्रेस विधायक अमीन कागजी का स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा के बंगले पर धरना।

राजस्थान में जुलाई 2020 में कांग्रेस में जो राजनीतिक संकट आया था उसमें अब एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। 25 जून को सीकर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मीडिया से संवाद करते हुए कहा कि सचिन पायलट भाजपा से मिले हुए थे, यह बात खुद केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने स्वीकार कर ली है। शेखावत ने हाल ही में कहा है कि यदि सचिन पायलट अपने प्रयासों में सफल हो जाते तो अब तक ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) को मंजूरी मिल जाती। गहलोत ने कहा कि जुलाई 2020 में मेरी सरकार गिराने की साजिश में शेखावत शामिल थे। इसलिए उनके विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज है। लेकिन शेखावत अपनी आवाज का सैम्पल नहीं दे रहे हैं। यदि शेखावत आवाज का सैम्पल दे तो उस ओडियो से मिलान किया जाए जिसमें सरकार गिराने की साजिश हो रही है। अब जांच एजेंसियों ने नोटिस तामिल करवाया है। उम्मीद है कि अब शेखावत की आवाज का सैम्पल लिया जा सकेगा। जहां तक ईआरसीपी का सवाल है तो राज्य सरकार ने राष्ट्रीय परियोजना बनाने के लिए केंद्र को जो प्रस्ताव भेजा है उसमें कोई संशोधन नहीं किया जाएगा। यदि प्रस्ताव को केंद्र की मंजूरी नहीं मिलती है तो अगले चुनाव में प्रदेश के 13 जिलों की जनता भाजपा को सबक सिखाएगी। गहलोत ने कहा कि शेखावत राजस्थान के सांसद हैं, इसलिए ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं की है। उन्होंने कहा कि यह योजना लाखों नागरिकों की प्यास बुझाएगी, इसलिए इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए। गहलोत ने कहा कि ईआरसीपी का प्रस्ताव भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है। मैंने तो इसे आगे बढ़ाया है। गहलोत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने ईआरसीपी के लिए 9 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, लेकिन यदि इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट मान लिया जाए तो लोगों को जल्द पेयजल उपलब्ध हो सकता है। सीएम गहलोत ने 25 जून को ईआरसीपी के मुद्दे पर जिस प्रकार सचिन पायलट और गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम का उल्लेख किया, उससे जाहिर है कि जुलाई 2020 में हुआ राजनीतिक संकट एक बार फिर तूल पकड़ रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सचिन पायलट जुलाई 2020 में जब कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ एक माह के लिए दिल्ली चले गए थे, तब सीएम गहलोत ने आरोप लगाया था कि मेरी सरकार गिराने की साजिश में भाजपा का हाथ है। तब गहलोत ने कांग्रेस विधायकों के 35-35 करोड़ रुपए में बिकने के आरोप भी लगाए। हाल ही में गहलोत ने अपने बयान में कहा कि राजस्थान में बागी विधायकों को 10-10 करोड़ रुपए तो बट भी गए थे।
 
कागजी का मीणा के आवास पर धरना:
25 जून को जयपुर के किशनपोल क्षेत्र के कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा के गांधी नगर स्थित सरकार आवास पर धरना प्रदर्शन किया। विधायक कागजी ने आरोप लगाया कि मंत्री मीणा ने उनकी सिफारिश के बगैर ही उनके क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का तबादला कर दिया। कागजी ने जानना चाहा कि क्या किशनपोल क्षेत्र में मरीज नहीं है। कागजी ने कहा कि कई अस्पताल डॉक्टर विहीन हो गए हैं। वहीं स्वास्थ्य मंत्री मीणा ने कागजी के आरोपों को तथ्यहीन बताया। उन्होंने कहा कि नियमों के अनुरूप ही डॉक्टरों के तबादले किए गए हैं। मीणा ने कहा कि वे ऐसे धरना प्रदर्शनों से दबाव में आने वाले नहीं है। 
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राहुल गांधी के दफ्तर में तोडफ़ोड़ के विरोध में कांग्रेस का राष्ट्रव्यापी आंदोलन क्यों नहीं हो रहा?राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी विरोध प्रकट नहीं किया है।वामपंथियों के खिलाफ बोलने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाती कांग्रेस?

विगत दिनों दिल्ली में जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी से पूछताछ की तो कांग्रेस ने देश भर में धरना प्रदर्शन किया। कांग्रेस शासित दोनों प्रदेशों राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भूपेश बघेल सरकार का कामकाज छोड़ कर दिल्ली आ गए। ईडी ने जितने दिन पूछताछ की उतने दिन कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन जारी रहा। पूछताछ नेशनल हेराल्ड अखबार की 2 हजार करोड़ की संपत्ति के हस्तांतरण में हुई वित्तीय अनियमितताओं को लेकर थी, लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार राहुल गांधी को परेशान कर रही है। लेकिन वही कांग्रेस अब राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र वायनाड़ (केरल) के दफ्तर में हुई भीषण तोडफ़ोड़ पर चुप है। यहां तक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी विरोध नहीं जात रहे हैं, जबकि राहुल के दफ्तर को पूरी तरह तहस नहस कर दिया गया। 24 जून को हुई इस तोडफ़ोड़ के लिए कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने केरल में सत्तारूढ़ मॉक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छात्रा शाखा एसएफआई के छात्रों को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन कांग्रेस की ओर से केरल में भी कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया जा रहा है। सवाल उठता है कि जो कांग्रेस सिर्फ पूछताछ पर देशव्यापी आंदोलन कर सकती है, वह राहुल गांधी के दफ्तर में हुई तोडफ़ोड़ पर चुप क्यों है? क्या केरल में सत्तारूढ़ माकपा के खिलाफ आंदोलन करने की हिम्मत कांग्रेस में नहीं है? यदि यही तोडफ़ोड़ राहुल गांधी के दिल्ली दफ्तर में हो जाती तो कांग्रेस के आंदोलन का अंदाजा लगाया जा सकता है? क्या कांग्रेस के नेताओं की नजर में राहुल गांधी के दफ्तर में हुई तोडफ़ोड़ कोई मायने नहीं रखती है? गंभीर बात यह है कि राहुल गांधी वायनाड़ ने से ही सांसद हैं, लेकिन इसके बाद भी केरल के सत्तारूढ़ दल की ओर से दफ्तर में तोडफ़ोड़ कीगई। इस तोडफ़ोड़ के विरोध में अभी राहुल गांधी की भी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। मालूम हो कि राहुल गांधी ने लोकसभा का पिछला चुनाव अमेठी (यूपी) के साथ-साथ वायनाड़ (केरल) से भी लड़ा था। अमेठी में राहुल की हार हुई, जबकि वायनाड़ में राहुल विजयी रहे। दफ्तर में ताजा तोडफ़ोड़ से लगता है कि वायनाड़ में भी राहुल का प्रभाव कम हो रहा है। ऐसे में राहुल गांधी 2024 में होने वाला चुनाव कहां से लड़ेंगे? 

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सनातन संस्कृति की रक्षार्थ अजमेर में सकल हिन्दू समाज का शांति मार्च 26 जून को।मार्च को सफल बनाने के लिए धार्मिक और सामाजिक संगठन सक्रिय।मार्च को शांति से निकालने के लिए पुलिस भी अलर्ट-एसपी विकास शर्मा।

सनातन संस्कृति की रक्षार्थ अजमेर में 26 जून को निकलने वाले सकल हिन्दू समाज के शांति मार्च की सभी तैयारियां सामाजिक और धार्मिक संगठनों के साथ साथ प्रशासन ने भी कर ली है। शांति मार्च किसी एक संगठन के आव्हान पर नहीं हो रहा, बल्कि इसमें अजमेर के सभी सामाजिक एवं धार्मिक संगठन शामिल है। शांति मार्च में सक्रिय कार्यकर्ताओं का मानना है कि मौजूदा समय में कुछ लोग भारत की सनातन संस्कृति को नुकसान पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। यही वजह है कि हमारे देवी देवताओं के बारे में गलत बयानी की जा रही है। यह शांति मार्च किसी के विरोध में नहीं है, इस मार्च के माध्यम से शांति का संदेश दिया जाएगा। मार्च के दौरान कोई धार्मिक नारे भी नहीं लगेंगे और न ही लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होगा। अलबत्ता लोगों के हाथ में देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा होगा। यह मार्च 26 जून को प्रात: 9 बजे श्रीनगर रोड स्थित पुराने अजंता सिनेमा घर के सामने बने परशुराम मंदिर से शुरू होकर मार्टिंडल ब्रिज से बाटा तिराहे होते हुए केसरगंज पहुंचेगा। यहां से पड़ाव, कवंडसपुरा, मदार गेट, गांधी भवन, कचहरी रोड होते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचेगा। सकल हिन्दू समाज के प्रतिनिधि जब साधु संतों के साथ जिला कलेक्टर को ज्ञापन देंगे, तब कलेक्ट्रेट के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा। लेकिन इस पाठ के लिए भी माइक का इस्तेमाल नहीं होगा। यानी लोग अपने स्थान पर खड़े होकर ही हनुमान चालीसा का पढ़ेंगे। कलेक्ट्रेट पर ही शांति मार्च का समापन हो जाएगा। शांति मार्च के आरंभ स्थल पर पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था की गई है ताकि दुपहिया वाहन चालकों को कोई परेशानी नहीं हो। परशुराम मंदिर से एक एक हजार की संख्या वाली वाहिनियां बनाई जाएगी। इन वाहिनियां पर सकल हिन्दू समाज के कार्यकर्ता नियुक्त होंगे जो अनुशासन बनाए रखने में मदद करेंगे। मार्च में शामिल लोगों के लिए मार्ग में जगह जगह पेयजल की व्यवस्था की गई है। मार्च को लेकर व्यापारी वर्ग भी सक्रिय है। व्यापारियों ने मार्च निकलने तक अपनी दुकान स्वेच्छा से बंद रखने का निर्णय लिया। व्यापारी अपनी दुकानें बंद रख कर शांति मार्च में भाग लेंगे। विभिन्न व्यापारिक संगठनों ने अपने स्तर पर निर्णय लेकर शांति मार्च को सफल बनाने का संकल्प लिया है। सामाजिक और धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अजमेर शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में भी संपर्क किया है। सकल हिन्दू समाज की एकता को मजबूत दिखाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से भी हजारों लोग शांति मार्च में शामिल होंगे। शांति मार्च के शुभारंभ स्थल पर वाहनों के खड़े करने की भी सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। शांति मार्च के आगे प्रमुख धार्मिक संस्थानों और धार्मिक स्थलों से जुड़े साधु संत और पदाधिकारी चलेंगे। साधु संतों के नेतृत्व में ही जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया जाएगा।
 
पुलिस भी अलर्ट:
जिला पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा ने बताया कि सकल हिन्दू समाज के शांति मार्च को देखते हुए पुलिस प्रशासन भी अलर्ट है। मार्च शांतिपूर्वक निकले, पुलिस की यह पहली प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि अजमेर सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी है। यहां सभी धर्मों के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं। फिर भी पुलिस ने शांति मार्च वाले मार्च पर पर्याप्त सुरक्षा बंदोबस्त किए हैं। एसपी शर्मा ने उम्मीद जताई की मार्च के शांतिपूर्वक निकलवाने में सभी लोग सहयोग करेंगे। मार्च के मद्देनजर संबंधित थाना क्षेत्र की पुलिस को भी अलर्ट किया गया है, साथ ही रिजर्व पुलिस का भी अलर्ट मोड़ पर रखा है। वे स्वयं सभी व्यवस्थाओं पर निगरानी बनाए रखे हुए हैं। 

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Friday 24 June 2022

जहां रजिस्टर रखा है, वहीं तो अटेंडेंस (उपस्थिति) दर्ज करवाएंगे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।राजस्थान की जनता ने नहीं, गांधी परिवार ने बनाया है मुख्यमंत्री। दैनिक भास्कर अखबार को यह समझना चाहिए।p

24 जून को देश के सबसे बड़े हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर के प्रथम पृष्ठ पर एक खबर छपी है। इस खबर में बताया गया है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पिछले 83 दिनों में से 54 दिन जनता के बीच से एब्सेंट (अनुपस्थित) रही है। प्रदेश की जनता का प्रतिनिधि बन कर अखबार ने कहा है कि उपस्थिति में सुधार नहीं किया तो परीक्षा से  डिबार कर दिया जाएगा। भास्कर ने वो 53 दिन बताए, जिनकी सीएम गहलोत और उनकी सरकार गैर हाजिर रही। इसमें कोई दो राय नहीं कि भास्कर ने जागरुक पत्रकारिता का प्रदर्शन किया है। लेकिन भास्कर को यह समझना चाहिए सरकार की उपस्थिति का रजिस्टर कहां रखा है? जहां रजिस्टर रखा है, वहां अशोक गहलोत ने अपनी सरकार की उपस्थिति दर्ज करवा दी है। प्रदेश की जनता भले ही परीक्षा से डिबार की चेतावनी दे रही हो, लेकिन उपस्थिति का रजिस्टर रखने वाले परिवार ने गहलोत सरकार की 100 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज की है। भास्कर जिस जनता की तरफ से चेतावनी दे रहा है, उस जनता ने गहलोत को सीएम नहीं बनाया है। राजस्थान की जनता ने तो सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कहा था। इसलिए कांग्रेस के 100 विधायकों को चुना था, जो भाजपा 200 में से 174 सीटें जीतने का दावा कर रही थी, उस भाजपा का एक भी गुर्जर उम्मीदवार विधानसभा का चुनाव नहीं जीत सका। चूंकि 21 विधायकों की संख्या 100 कर दी गई थी, इसलिए पायलट के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनवा दिया। सब जानते हैं कि कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति का रजिस्टर दिल्ली में गांधी परिवार के पास ही होता है। गांधी परिवार के पास रखे रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज कराने में सीएम गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। भास्कर ने भी देखा होगा की 13 से 14 मई के बीच जब कांग्रेस का चिंतन शिविर हुआ उपस्थिति का रजिस्टर उदयपुर आ गया था। उपस्थिति दर्ज करने वाले गांधी परिवार ने राज्यसभा के चुनाव में तीन उम्मीदवार तय किए। तीनों उम्मीदवारों को जीतवा कर गहलोत ने अपनी उपस्थिति प्रभावी तरीके से दर्ज करवाई। गत दिनों जब उपस्थिति दर्ज करने वाले एक सदस्य से ईडी ने पूछताछ की तो अशोक गहलोत पूरे स्कूल को ही दिल्ली ले गए। इस बार गहलोत ने 100 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवा दी। प्रदेश की जनता भले ही परीक्षा से डिबार की चेतावनी दे, लेकिन अशोक गहलोत ने अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव तक रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी है। हो सकता है कि गांधी परिवार अगले विधानसभा चुनाव तक उपस्थिति दर्ज कर रजिस्ट्रर अलमारी में बंद कर दिया हो। भले ही अगले चुनाव में कांग्रेस को 200 में से 11 अंक ही मिलें, लेकिन गहलोत सरकार परीक्षा से डिबार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस को परीक्षा तो गहलोत के स्कूल में ही देनी होगी। अशोक गहलोत पहले भी दो बार परीक्षा दे चुके हैं। पहली बार 200 में से 56 अंक और दूसरी बार 21 अंक ही मिले थे। इसलिए अब तीसरी बार 11 अंक की उम्मीद जताई जा रही है। कुछ लोगों को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव से पहले स्कूल का हेडमास्टर बदल दिया जाएगा। लेकिन इन उम्मीदों पर ईडी की पूछताछ के दौरान पानी फिर गया है। अशोक गहलोत की राजनीति को समझने के लिए भास्कर को अभी और अनुसंधान करने की जरूरत है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (24-06-2022)
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उद्धव ठाकरे अब बिना सेना के सेनापति।राजस्थान की तरह शिवसेना के विधायकों पर भी हो सकता है देशद्रोह का मुकदमा। मुंबई पुलिस आयुक्त ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की।

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को भले ही एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन अभी भी मिला हुआ हो, लेकिन 55 में से मात्र 13 विधायक ही उनके पास रह गए हैं। जो विधायक उद्धव के सामने बोलने की हिम्मत नहीं करते थे, वे विधायक ही उनके नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन उद्धव को लगता है कि वे शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। यही वजह है कि उद्धव ने सीएम का सरकारी आवास तो खाली कर दिया है, लेकिन सीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया है। हालांकि राजनीति में नैतिकता की बात करना बेमानी है, लेकिन महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार ने जिस सख्त रवैए से राजनीति की, उसे देखते हुए उद्धव ठाकरे से नैतिकता की थोड़ी उम्मीद तो की जा रही है। गुवाहाटी में बैठे शिवसेना के 38 विधायकों ने उद्धव को अपना नेता मानने से इंकार कर दिया है, लेकिन फिर भी उद्धव मुख्यमंत्री के पद का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। हो सकता है कि शरद पवार के झांसे में आकर उद्धव ठाकरे विधानसभा उपाध्रूख की मदद से एकनाथ शिंदे के समर्थक वाले शिवसेना के 13 विधायकों को अयोग्य घोषित करवा दें। लेकिन यह काम उद्धव ठाकरे के लिए आत्मघाती साबित होगा। शरद पवार के झांसे में आने के बजाए उद्धव को अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप देना चाहिए। उद्धव खुद बताएं कि मात्र 13 विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री पद पर बना रहा जा सकता है? जब शिवसेना के विधायक ही उन्हें अपना नेता नहीं मान रहे हैं, तब एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से कितने दिन मुख्यमंत्री रह सकते हैं? उद्धव माने या नहीं, लेकिन शिवसेना को कमजोर कर कांग्रेस और एनसीपी अपने मकसद में कामयाब हो रही हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना और ठाकरे परिवार का जो रौब रुतबा था, वह बेहद कमजोर हो गया है। उद्धव जितने दिन सीएम की कुर्सी पर रहेंगे, उतना ही शिवसेना कमजोर होगी। उद्धव को उनके पिता बाला साहब ठाकरे ने जो विरासत सौंपी है, उसे बचाने की जरूरत है। शिवसेना पर ठाकरे परिवार का दबदबा बना रहे, इसलिए बाला साहब ने कभी सरकारी पद स्वीकार नहीं किया। यह बाला साहब का रुतबा ही था कि मनोहर जोशी जैसे शिवसैनिक को पहले मुख्यमंत्री बनवाया और लोकसभा का अध्यक्ष। बाला साहब ने जिसे चाहा उसे महाराष्ट्र की गद्दी सौंपी। सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले शिव सैनिकों को भी पता था कि बाला साहब की मेहरबानी से ही कुर्सी मिली है। यानी मुख्यमंत्री न रहते हुए भी बाला साहब सरकार के सर्वेसर्वा थे। बाला साहब के निर्णय को चुनौती देने की हिम्मत किसी में नहीं थी, लेकिन आज उद्धव ठाकरे किस लाचारी में खड़े हैं, उसे पूरा देश देख रहा है। जिन राजनीतिक दलों के खिलाफ बाला साहब ने शिवसेना का गठन किया, उन्हीं विरोधी दलों के सामने उद्धव ठाकरे लाचारी दिखा रहे हैं। आखिर बाला साहब वाला वह रुतबा कहां चला गया?

देशद्रोह का मुकदमा:
जुलाई 2020 में डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 विधायक जयपुर से दिल्ली चले गए थे, तब राजस्थान में इन सभी विधायकों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था। इधर पुलिस में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ तो उधर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने इन विधायकों को कारण बताओं नोटिस जारी कर दिए। दिल्ली जाने वाले कांग्रेसी विधायकों को नियंत्रण में लाने के लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए था, वह अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ने किया। 24 जून को मुंबई में पुलिस आयुक्त ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद ही यह कयास लगाए जा रहे हैं कि राजस्थान की तरह महाराष्ट्र में गुवाहाटी जाने वाले शिवसेना के विधायकों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो सकता है। यदि राजस्थान की तरह महाराष्ट्र में भी विधायकों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होता है तो फिर शिवसेना के विधायकों के लिए गुवाहाटी से मुंबई लौटना आसान नहीं होगा। 

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Thursday 23 June 2022

सवाल गठबंधन की सरकार गिरने का नहीं, बल्कि महाराष्ट्र खास कर मुंबई में राष्ट्रवादी विचारधारा के कमजोर होने का है।उद्धव ठाकरे को सत्ता का मोह छोड़कर शिवसेना की राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत करना चाहिए।

महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से चलने वाली उद्धव ठाकरे की सरकार अब अंतिम सांसे ले रही है। इसीलिए उद्धव ठाकरे ने 22 जून की रात को मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिया और अपने पिता बाला साहब ठाकरे द्वारा निर्मित आवास मातोश्री में आ गए हैं। उधर असम की राजधानी गुवाहाटी में शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे के पास 37 से भी ज्यादा विधायकों का जुगाड़ हो गया है। शिवसेना के सांसद भी शिंदे के समर्थन में खड़े हो गए हैं। सांसद और विधायक जिस तरह उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना से अलग हो रहे हैं, उससेे प्रतीत होता है कि कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से चलने वाली सरकार और व्यवस्था में इन जनप्रतिधियों का दम घुट रहा था। सवाल महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार के गिरने का नहीं है, बल्कि राष्ट्रवादी विचारधारा के कमजोर होने का है। सब जानते हैं कि बाला साहेब ठाकरे ने मुंबई में किन हालातों में शिवसेना का गठन किया था। उस समय राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग खास मराठी मानुष स्वयं को असुरक्षित समझ रहा था, तब बाला साहेब ने शिवसेना का गठन कर राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों को सुरक्षित किया। तब बाला साहेब चाहते तो स्वयं मुख्यमंत्री बन जाते, लेकिन राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत बनाए रखने के लिए ठाकरे ने सरकार में कभी कोई पद नहीं लिया। यह बात अलग है कि भाजपा और शिवसेना के गठबंधन वाली सरकार उन्हीं के इशारे पर चलती थीं। बाला साहेब ठाकरे के निधन तक ठाकरे परिवार सत्ता से दूर रहा। लेकिन ढाई वर्ष उद्धव ठाकरे ने अपने पिता वाला साहेब की भावनाओं के विपरीत स्वयं मुख्यमंत्री बने की जिद पकड़ ली। 288 सीटों में से 56 सीटें मिलने पर भी उद्धव चाहते थे कि वे ही मुख्यमंत्री बने। 106 विधायकों वाली भाजपा ने जब उद्धव की शर्त को नहीं माना तो कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए। यानी बाला साहेब ने जिंदगी भर जिन लोगों से संघर्ष किया, उन्हीं से उद्धव ने हाथ मिला लिया। पिछले ढाई वर्ष में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी विचारों का क्या हश्र हुआ, यह पूरे देश ने देखा। जो दाऊद इब्राहिम मुंबई हमले का मास्टरमाइंड रहा, उसके समर्थक मजबूत हो गए। दाऊद और उसके परिजनों की संपत्तियां सत्ता में बैठे लोगों ने ही खरीद ली। उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे वे ताकते मजबूत हुई जो देश को कमजोर करना चाहती है। उद्धव ठाकरे माने या नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की उनकी जिद ने महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी विचारधारा को कमजोर किया है। अब उद्धव को चाहिए कि मुख्यमंत्री का पद त्याग कर फिर से शिवसेना को मजबूत करें, ताकि राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूती मिले। उद्धव की जिद ने ठाकरे परिवार की स्थिति को भी कमजोर किया है। ठाकरे परिवार के सामने जो नेता धीमी आवास में भी बोलने की स्थिति में नहीं थे, उन्होंने सीधे चुनौती दे दी है। उद्धव ठाकरे को अपनी स्थिति का अंदाज़ा इससे लगा लेना चाहिए कि 55 में से 40 विधायक मुंबई छोड़ कर गुवाहाटी चले गए हैं। उद्धव ठाकरे को संजय राउत जैसे बड़बोले नेताओं से भी सावधान रहने की जरुरत हे। बदली हुई परिस्थितियों में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना असली हो गई है। उद्धव ठाकरे जितना जल्दी एनसीपी और कांग्रेस से पीछा छुड़ाने, उतना ही फायदा होगा। उद्धव को अपने अहम को छोड़कर शिवसेना को मजबूत बनाए रखने की ओर ध्यान देना चाहिए। एकनाथ शिंदे ने जो भाजपा के सरकार सरकार बनाने का जो प्रस्ताव रखा है, उसे भी ठाकरे को स्वीकार करना चाहिए। ढाई वर्ष पहले महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा और शिवसेना के गठबंधन को ही जनादेश दिया था। 288 में से भाजपा और शिवसेना को 160 से भी ज्यादा सीटें मिली थीं। लेकिन तब उद्धव ठाकरे ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी का हाथ थाम लिया। उद्धव ठाकरे की जिद से ढाई वर्ष में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी विचारधारा को काफी नुकसान हुआ है। यदि उद्धव ठाकरे अभी कांग्रेस और एनसीपी के चक्कर में फंसे रहे तो ठाकरे परिवार की स्थिति और कमजोर होगी।

S.P.MITTAL BLOGGER (23-06-2022)
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राहुल गांधी और सचिन पायलट के पेशेंस में बहुत फर्क है ।दिल्ली जाने मात्र से पायलट से सब कुछ छीन लिया गया और देश में कांग्रेस से बहुत कुछ छीन जाने के बाद भी राहुल गांधी निर्णायक की भूमिका में है।ĺ

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने 22 जून को एक समारोह में अपने पेशेंस की तुलना राजस्थान के डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट के पेशेंस (धैर्य) से की। राहुल ने कहा कि वे 2004 से कांग्रेस पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी पेशेंस नहीं खोया। समारोह में मंच पर बैठे पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की ओर इशारा करते हुए राहुल ने कहा कि सचिन पायलट भी पेशेंस दिखा रहे हैं। राहुल ने यह बाद राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और पायलट के बीच चल रही खींचतान के संदर्भ में कही। राहुल गांधी ने भले ही अपने पेेशेंस की तुलना पायलट के पेशेंस से की हो, लेकिन राहुल और पायलट के पेशेंस में बहुत फर्क है। जुलाई 2020 में जब 18 विधायकों के साथ पायलट दिल्ली गए। तब सीएम अशोक गहलोत ने पायलट से डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद छीन लिया। पिछले दो वर्ष से पायलट कांग्रेस में सिर्फ एक विधायक की भूमिका में है। गहलोत का आज भी आरोप है कि सचिन पायलट भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार गिराने के प्रयास में थे। हालांकि पायलट का कहना है कि वे कांग्रेस हाईकमान को अपनी बात करने के लिए विधायकों के साथ दिल्ली गए थे। दिल्ली जाने मात्र से पायलट से सब कुछ छीन लिया गया। पायलट तब भी पेशेंस नहीं खो रहे है, जब सीएम गहलोत आए दिन कटाक्ष करते हैं। दो दिन पहले ही सीएम ने कहा कि 10-10 करोड़ रुपए बंट भी गए थे। यानी जो विधायक पायलट के साथ गए, उन्हें 10-10 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ। इतने कटाक्ष के बाद भी पायलट का पेशेंस मायने रखता है। जबकि राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते कांग्रेस से बहुत कुछ छीन गया। लोकसभा में 545 में कांग्रेस के 52 सांसद हैं, जबकि देश में सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार बची है। पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेता कांग्रेस छोड़ कर चले गए हैं। लेकिन इसके बाद भी राहुल गांधी कांग्रेस में निर्णायक की भूमिका में है। अध्यक्ष पद माताजी के पास ही है, राहुल गांधी जब चाहे ले सकते हैं। कांग्रेस में राहुल गांधी के निर्णय को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। विगत दिनों राहुल गांधी ने एक झटके में अमरिंदर सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया। भले ही इसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया हो, लेकिन राहुल के निर्णय की आलोचना किसी ने नहीं की। कांग्रेस का बहुत कुछ छीन जाने के बाद भी राहुल गांधी टेंशन फ्री होकर आए दिन विदेश चले जाते हैं, लेकिन सचिन पायलट राजस्थान में अपने वजूद के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं। इतने टेंशन के बाद भी पायलट मोदी सरकार की आलोचना का कोई मौका नहीं छोड़ते। राहुल गांधी और अशोक गहलोत माने या नहीं, लेकिन 2018 में कांग्रेस सरकार बनवाने में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह बात अलग है कि तब पायलट को पीछे धकेल कर गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। देखा जाए तो दिसंबर 2018 से ही पायलट पेशेंस दिखा रहे हैं। यदि जुलाई 2020 में एक माह के पेशेंस खोया तो उसकी जिम्मेदारी भी अशोक गहलोत की ही है। पायलट को कब तक पेशेंस रखना होगा, यह कोई नहीं जानता क्योंकि पिछले दिनों दिल्ली में रह कर गहलोत ने अपनी सीएम की कुर्सी और मजबूत कर ली है। राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान गहलोत ने दिल्ली में जो भूमिका निभाई, उसे देखते हुए गांधी परिवार का कोई भी सदस्य गहलोत को बेदखल नहीं कर सकता है। पायलट को अब गहलोत से ही राजनीति के दांव पेंच सीखने की जरूरत है।

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Wednesday 22 June 2022

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताएं कि राष्ट्रपति चुनाव यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार क्यों बनाया जा रहा है?राजस्थान में राज्यसभा चुनाव में भाजपा के निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने पर गहलोत ने आपत्ति जताई थी।

विपक्ष के तमाम नेताओं को पता है कि राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के गठबंधन एनडीए को पूर्ण बहुत है और एनडीए द्वारा घोषित उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ही राष्ट्रपति चुनी जाएंगी। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों की ओर से यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार घोषित किया गया है। सिन्हा की उम्मीदवारी से अब राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को मतदान होगा। विपक्ष चाहता तो राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध हो सकता था। लेकिन कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल नहीं चाहते कि एनडीए का उम्मीदवार निर्विरोध चुना जाए। इसे भारत की स्वास्थ्य लोकतांत्रिक व्यवस्था ही कहा जाएगा कि हार तय होने के बाद भी यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे हैं। चूंकि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के समर्थन से यशवंत सिन्हा चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पूछा जा रहा है कि यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार क्यों बनाया गया है? असल में गत दिनों जब राजस्थान में राज्यसभा की चार सीटों के लिए चुनाव हुआ तो तय था कि भाजपा का एक ही उम्मीदवार जीतेगा, लेकिन भाजपा के निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा को समर्थन देकर कांग्रेस के तीन उम्मीदवारों का निर्विरोध चुनाव रोक दिया। भाजपा की इस राजनीतिक चाल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कांग्रेस और समर्थक विधायकों को 10 दिनों तक होटलों में बंद रहना पड़ा। तब सीएम गहलोत ने निर्दलीय उम्मीदवार को मैदान में उतारने के लिए भाजपा की कड़ी आलोचना की। भाजपा पर विधायकों को खरीदने का आरोप भी लगाया गया। गहलोत इस तर्क को मानने को तैयार नहीं थे कि यह राजनीतिक निर्णय है। राजस्थान में कांग्रेस के 108 विधायक है, जबकि राज्यसभा के तीन उम्मीदवारों को जीतवाने के लिए 123 विधायकों के वोट चाहिए थे। यानी कांग्रेस को 15 वोटों का जुगाड़ करना था, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को सिर्फ 11 वोटों का ही जुगाड़ करना था, क्योंकि चंद्र के भाजपा के 30 सरप्लस वोट पहले से ही थे। राज्यसभा चुनाव में गहलोत ने अपने राजनीतिक चातुर्य से कांग्रेस के तीनों उम्मीदवार जीतवा दिए। गहलोत ने राज्यसभा चुनाव के समय जो आलोचना की, अब वही उनको जवाब देय बना रही है। राज्यसभा चुनाव के समय यदि भाजपा का कृत्य गलत था तो क्या अब राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस और विपक्ष का कृत्य सही है? गहलोत को बताना चाहिए कि बहुमत नहीं होने के बाद भी राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार क्यों बनाया गया है? 

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राजस्थान को भी विधायकों को 10-10 करोड़ रुपए बटे-सीएम गहलोतअब सचिन पायलट बताएं कि दिल्ली में किन-किन विधायकों को पैसा मिला।जनता साथ नहीं देगी तो हम क्या करेंगे?-सीएम गहलोत।महाराष्ट्र की असली शिवसेना अब गुवाहाटी में। ठाकरे सरकार का जाना तय। क्या एनसीपी ने शिवसेना के विधायकों को महाराष्ट्र से बाहर निकलने का मौका दिया?

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इन दिनों दिल्ली में रह कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। 22 जून को भी गहलोत ने दिल्ली में रह कर गांधी परिवार के समर्थन में देश के कांग्रेसी सांसदों और विधायकों को एकत्रित किया। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के नामांकन के समर्थन में कांग्रेस के सांसदों और विधायकों के हस्ताक्षर भी करवाए। 21 जून को राजस्थान के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश शिंदे संभाजी शिवाजी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए जयपुर आए थे, लेकिन 22 जून को फिर दिल्ली पहुंच कर कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। मोदी सरकार को देश विरोधी बताते हुए गहलोत ने कहा कि मौजूदा शासन में भाजपा और संघ वाले जमकर पैसा खा रहे हैं। संघ वालों को तो मोदी राज में मजा आ गया है। लेकिन इसके साथ ही गहलोत का यह भी कहना रहा कि जनता हमारा साथ नहीं देगी तो हम क्या कर सकते हैं? 22 जून को गहलोत ने मीडिया के प्रति स्वर भी बदले नजर आए। जो अशोक गहलोत जयपुर में न्यूज चैनलों और अखबारों को गोदी मीडिया कहते रहें, उन्हीं गहलोत ने राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान कवरेज के लिए मीडिया की प्रशंसा की। राहुल गांधी और कांग्रेस के संघर्ष को लगातार दिखाने पर गहलोत ने मीडिया को धन्यवाद दिया।
 
अब पायलट जवाब दें:
महाराष्ट्र के सियासी संकट पर सीएम गहलोत का कहना है कि जुलाई 2020 में भी राजस्थान में आए संकट के समय 10-10 करोड़ रुपए बंट गए थे। गहलोत का इशारा पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के नेतृत्व में दिल्ली गए कांग्रेस के 19 विधायकों की ओर था। हालांकि उस समय गहलोत ने एक एक विधायकों को 35-35 करोड़ के ऑफर की बात कही थी, लेकिन अब गहलोत ने 10-10 करोड़ रुपए बांटने की बात कही है। चूंकि कांग्रेस के 18 विधायक पायलट के नेतृत्व में ही दिल्ली गए थे, इसलिए अब पायलट को ही बताना चाहिए कि सच क्या है। क्या दिल्ली जाने वाले विधायकों को 10-10 करोड़ रुपए मिले? हालांकि जुलाई 2020 में भी पायलट ने कहा था कि वे कांग्रेस हाईकमान को अपनी बात सुनाने के लिए दिल्ली आए हैं, लेकिन पायलट की इस सफाई को अशोक गहलोत ने कभी भी स्वीकार नहीं किया। अब तो गहलोत ने 10-10 करोड़ रुपए बंटने की बात कह दी है। गहलोत के दावे में कितनी सच्चाई है यह पायलट ही बता सकते हैं, लेकिन पायलट के जो विधायक दिल्ली गए उनमें दीपेंद्र सिंह शेखावत, राकेश पारीक, जीआर खटाणा, मुरारीलाल मीणा, इंद्राराज सिंह, भंवरलाल शर्मा, बिजेंद्र ओला, हेमाराम चौधरी, पीआर मीणा, रमेश मीणा, विश्वेंद्र सिंह, रामनिवास गवाडिय़ा, मुकेश भाकर, सुरेश मोदी, हरीश मीणा, वेदप्रकाश सोलंकी व अमर सिंह जाटव हैं।

असली शिवसेना गुवाहाटी में:
उद्धव ठाकरे भले ही महाराष्ट्र में शिवसेना के प्रमुख हो, लेकिन मौजूदा हालातों में असली शिवसेना असम की राजधानी गुवाहाटी में है। ठाकरे सरकार के मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 55 विधायकों में से 30 विधायक गुवाहाटी में मौजूद हैं। शिंदे का कहना है कि गत विधानसभा का चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था, इसलिए शिवसेना को भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनानी चाहिए। शिंदे ने कहा कि हम शिवसेना के बागी विधायक नहीं है बल्कि हम ही असली शिवसेना हैं। आज भी यदि उद्धव ठाकरे भाजपा के साथ सरकार बनाने की घोषणा कर दे तो हम वापस मुंबई लौट जाएंगे। शिंदे ने जो शर्त रखी है उसे स्वीकारना अब उद्धव ठाकरे के लिए आसान नहीं है। क्योंकि पिछले ढाई वर्ष से कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से उद्धव ठाकरे सरकार चला रहे हैं। चूंकि अब ठाकरे के पास बहुमत नहीं है इसलिए वे विधानसभा को भंग करने का प्रस्ताव कर रहे हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 30 विधायकों के अलग हो जाने के बाद उद्धव ठाकरे का प्रस्ताव संवैधानिक दृष्टि से कोई मायने नहीं रखता है। यदि उद्धव ठाकरे अपनी ओर से कोई प्रस्ताव रखते हैं तो राज्यपाल सबसे पहले विधानसभा में सबसे बड़े दल भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में असली शिवसेना और भाजपा के गठबंधन वाली सरकार बनेगी। महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के दौरान ही राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी कोरोना संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती हो गए हैं। यही वजह है कि अब राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का राज्यपाल से मुलाकात करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि किसी पड़ोसी राज्य के राज्यपाल को महाराष्ट्र का चार्ज दे दिया जाएगा। इस बीच यह भी खबर है कि शिवसेना के विधायकों को महाराष्ट्र से भगाने में एनसीपी की भी भूमिका रही है। असल में गृह मंत्रालय एनसीपी के विधायक दिलीप वाले के पास है। सवाल उठता है कि जब इतनी बड़ी संख्या में विधायक महाराष्ट्र से बाहर जा रहे थे, तब गृह विभाग को खबर क्यों नहीं लगी। 

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नौकरशाही से तंग आकर सतगुरु ग्रुप अजमेर से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहल पर एक हजार 55 करोड़ रुपए का निवेश अजमेर में कर रखा है।दीपमाला इंफ्रा एस्टेट एंड टाउंस की फाइल चार बार नगर निगम में जमा करवाई गई है। हार बार फाइल गायब हो जाती है।

अजमेर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला सतगुरु इंटरनेशनल ग्रुप अब अजमेर से अपना करोड़ों का कारोबार समेटने की तैयारी में है। ग्रुप के वाइस प्रेसिडेंट राजा डी ठारानी ने बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सकारात्मक पहल पर ग्रुप ने अजमेर में एज्युकेशन, रियोस्टेट, होटल्स, आईजी आदि के क्षेत्रों में 1 हजार 55 करोड़ रुपए का निवेश किया। इस निवेश के लिए प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल खुद दुबई आए और उन्होंने ग्रुप के पदाधिकारियों से मुलाकात की। धारीवाल ने सीएम गहलोत की ओर से भरोसा दिलाया कि राजस्थान में निवेश करने पर कोई परेशानी नहीं होगी। निवेशकर्ता को सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। विभिन्न विभागों की एनओसी और लाइसेंस निवेशकर्ता के दफ्तर में पहुंचाए जाएंगे। धारीवाल के भरोसे पर ही हमने अजमेर में विभिन्न क्षेत्रों में एक हजार 55 करोड़ रुपए का निवेश किया, लेकिन नौकरशाही द्वारा तंग किए जाने के कारण अब हमारा ग्रुप अजमेर से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में है। ठारानी ने आरोप लगाया कि कुछ स्वार्थी लोग झूठी शिकायतें करते हैं और उन पर कुछ अधिकारी जांच बैठा देते हैं। इससे हमें अपने प्रोजेक्ट को पूरा करने में परेशानी हो रही है। बार बार आरटीआई लगाकर भी हमें परेशान किया जा रहा है। सच के सारे सबूत सरकारी दफ्तरों में मौजूद हैं। लेकिन फिर भी जांच के नाम पर हमें बार बार दफ्तर बुलाया जाता है। सिविल लाइन स्थित सतगुरु ग्रुप के दीपमाला इन्फ्राएस्टेट के सात मंजिला टाउनशिप के बारे में ठारानी ने बताया कि चार माह पहले हमें सूचित किया गया कि नगर निगम में फाइल नहीं मिल रही है। हालांकि फाइल को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नगर निगम प्रशासन की है। लेकिन फिर भी हमें हमारी फाइल के कागजातों की फोटो प्रति तैयार कर निगम के अधिकारियों को दे दी। कुछ दिनों बाद ही टाउनशिप की फाइल गायब होने के बारे में हमें बताया गया। मैंने स्वयं नगर निगम के आयुक्त और दोनों उपायुक्तों को अपने हाथों से तीसरी बार फाइल दी ताकि निगम में फाइल सुरक्षित रह सके। अब हमें बताया जा रहा है कि टाउनशिप की फाइल निगम से चोरी हो गई है और निगम ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवा दी है। सवाल उठता है कि जब हम बार बार नगर निगम में फाइल उपलब्ध करवा रहे हैं, तब हर बार फाइल गायब क्यों हो रही है? जाहिर है कि कुछ नौकरशाह हमें बेवजह परेशान करना चाहते हैं। इस प्रोजेक्ट में हमारा करोड़ों रुपया लगा हुआ है, उस प्रोजेक्ट की भूमि और निर्माण को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। जिस खसरा संख्या 3038 का उल्लेख किया जा रहा है उस खसरे की भूमि से हमारे दीपमाला इन्फ्राएस्टेट एण्ड टाउनशिप की भूमिका का कोई सरोकार नहीं है। हमने यह भूमि गर्ग परिवार के सदस्यों से खरीदी है। हमारे पास इस भूखंड के खरीद फरोख्त के सौ वर्ष पुराने दस्तावेज भी उपलब्ध हैं। सबसे पहले यह भूखंड 1921 में हरविलास शारदा के नाम था, भूखंड खरीद के इतने साफ सुथरे प्रमाण होने के बाद भी झूठी शिकायतों पर जांच करवाई जा रही है। नगर निगम के इंजीनियरों ने मौका मुआयना करने के बाद यह लिख कर दिया है कि सात मंजिला टाउनशिप का निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुरूप हो रहा है, लेकिन इसके बाद भी नगर निगम के अधिकारी भी जांच पड़ताल करवा रहे हैं। ठारानी ने कहा कि हम संबंधित अधिकारियों को अपनी सच्चाई के सबूत देते देते थक गए हैं, चूंकि नौकरशाही से हमें न्याय नहीं मिल रहा है, इसलिए अजमेर से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में है। अब हम उस राज्य में अपना निवेश करेंगे, जहां हमें परेशान न किया जाए। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने हमारे समूह के पदाधिकारियों से संपर्क किया है। 

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Tuesday 21 June 2022

विधान परिषद चुनाव में 134 विधायकों के वोट हासिल करने वाली भाजपा अब महाराष्ट्र में सरकार बनाने में जुटी।सत्तारूढ़ शिवसेना में बगावत सफल रही तो सरकार बनाने के लिए 135 विधायकों की जरूरत होगी।भाजपा के लिए राष्ट्रपति चुनाव और आसान होगा। यशवंत सिन्हा संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार होंगे।

महाराष्ट्र विधानसभा में कुल विधायकों की संख्या 288 है। मौजूदा समय में शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से गठबंधन की सरकार चल रही है। अभी तक ठाकरे सरकार को खतरा नहीं था, लेकिन 20 जून को महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव में 134 विधायकों के वोट हासिल करने के बाद भाजपा अब महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने में जुट गई है। 288 में से एक विधायक की मृत्यु हो चुकी है, जबकि एनसीपी के नवाब मलिक और अनिल देशमुख भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं। जेल में होने के कारण यह दोनों विधायक 20 जून को भी विधान परिषद के चुनाव में वोट डालने के लिए नहीं आ सके। अब जब शिवसेना के मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 13 विधायक भाजपा शासित गुजरात के सूरत शहर की होटल में आकर बंद हो गए हैं, तब यह माना जा रहा है कि अब 270 विधायकों में ही बहुमत साबित करना होगा। चूंकि विधान परिषद के चुनाव में 105 विधायकों वाली भाजपा ने 134 वोट हासिल कर लिए हैं, इसलिए भाजपा को लगता है कि उद्धव सरकार के गिर जाने पर अपना बहुमत साबित कर देगी। शिवसेना में जिन विधायकों ने बगावत की है उन्हें भरोसा दिलाया गया है कि इस्तीफे के बाद भी विधायीकी सुख सुविधा बनी रहेगी। राज्यपाल को 13 व्यक्ति को विधान परिषद में सदस्य नियुक्त करने का अधिकार है। ऐसे में एकनाथ शिंदे वाले सभी 13 विधायकों को विधान परिषद का सदस्य बना दिया जाएगा।  बाद में जब सरकार बनेगी तो उन्हें मंत्री पद भी दिया जा सकता है। यानी भाजपा ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने की तैयारी कर ली है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में बगावत का असली कारण विचारधारा का है। शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को लगता है कि शिवसेना अपनी हिन्दुत्ववादी छवि से बदल रही है। चूंकि उद्धव ठाकरे को एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार चलानी पड़ रही है, इसलिए कई अवसरों पर हिंदुत्व की विचारधारा को पीछे धकेल दिया जाता है। शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को लगता है कि इससे जनता के बीच समर्थन कम हो रहा है, जबकि इसका फायदा भाजपा को लगातार मिल रहा है। विधान परिषद के चुनाव में भाजपा ने पांच उम्मीदवार खड़े किए और ये पांचों जीत गए। भाजपा को निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों का भी समर्थन मिला। महाराष्ट्र में यदि शिवसेना के 13 विधायक इस्तीफा देते हैं तो फिर राष्ट्रपति के चुनाव में भी इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा के लिए राष्ट्रपति चुनाव और आसान हो जाएगा। इस बीच पूर्व भाजपा नेता और मौजूदा समय में टीएमसी के सांसद यशवंत सिन्हा ने संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनना स्वीकार कर लिया है। सिन्हा ने टीएमसी के सांसद पद से भी इस्तीफा दे दिया है ताकि किसी विपक्षी दल को उनकी उम्मीदवारी को लेकर एतराज  न हो। सूत्रों की माने तो ममता बनर्जी ने ही यशवंत सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया। 21 जून को दिल्ली में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के निवास पर हुई विपक्षी दलों की बैठक में यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति जताई गई। राष्ट्रपति चुनाव की गतिविधियों के दौरान ही महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार चलाने में शरद पवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब भी ऐसा संकट आता है, तब पवार ही संकटमोचक की भूमिका निभाते हैं। पहले एनसीपी में बगावत हुई थी, लेकिन इस बार शिवसेना में बगावत हुई है। एनसीपी की बगावत को तो शरद पवार ने थाम लिया था, लेकिन जानकारों का मानना है कि शिवसेना की बगावत को थामने में पवार सफल नहीं होंगे। शिवसेना में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के व्यवहार से भी विधायकों में काफी नाराजगी है। विधान परिषद के चुनाव में भी कांग्रेस में फूट देखने को मिली। ताजा सियासी संकट में कांग्रेस के विधायक इधर उधर न भागे इसके लिए सभी विधायकों को दिल्ली बुलाया गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली में ही हैं। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के विधायकों को दिल्ली के बाद जयपुर लाया जाएगा। 

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श्मशान की आड़ में एडीए की भूमि को कब्जाने में विफल रहने वाले दबंगों ने अब घूघरा में चारागाह भूमि की आड़ में दबाव बनाया। जबकि खुद दबंगों ने चारागाह भूमि पर मकान बना रखे हैं।

अजमेर के निकटवर्ती घूघरा गांव में दबंगों की दबंगई रुक नहीं रही है। एमडीएस यूनिवर्सिटी के निकट संस्कृति स्कूल के सामने जिस मार्ग को 200 फीट चौड़ा किया जाना है, वहां किनारे वाली भूमि पर ग्राम पंचायत की मदद से चारागाह भूमि के बोर्ड लगा दिए गए है। ताकि भूमि मालिकों पर दबाव बनाया जा सके। भूमि मालिकों पर दबाव बनाने के लिए ही पूर्व में संस्कृति स्कूल के सामने रातों रात एक बड़े भूखंड को श्मशान स्थल पर तब्दील कर दिया गया था। जबकि यह भूखंड अजमेर विकास प्राधिकरण (एडीए) का है। एडीए ने पुलिस संरक्षण में जेसीबी से दबंगों द्वारा बनाई गई चारदीवारी के तोड़ दिया। श्मशान की आड़ में एडीए की भूमि पर कब्जा करने में विफल रहने के बाद दबंगों ने अब चारागाह भूमि की आड़ में दबाव बनाने का काम शुरू कर दिया है। सवाल उठता है कि जिस मार्ग को मास्टर प्लान के अनुरूप 200 फिट चौड़ा किया जाना है, उस मार्ग के किनारे चारागाह भूमि के बोर्ड लगाने का क्या फायदा है। जानकारों की माने तो ग्राम पंचायत से ही जुड़े दबंगों ने खुद गांव की चारागाह भूमि पर पक्के मकान बनाकर कब्जे कर रखे हैं, यदि जिला प्रशासन घूघरा गांव की चारागाह भूमि की जांच पड़ताल कराए तो कई दबंगों की पोल खुल सकती है। इतना ही नहीं गांव के सार्वजनिक श्मशान स्थल की तीन बीघा भूमि पर भी ऐसे ही दबंगों ने कब्जे कर रखे हैं। राजस्व रिकॉर्ड में भी श्मशान भूमि पर कब्जे की बात स्वीकार की गई है। लेकिन ग्राम पंचायत से लेकर राजस्व महकमे तक में दबंगों का इतना डर और भय है कि उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं होती। दबंगों का उद्देश्य उन भूमि मालिकों को डराने धमका है, जिन्होंने पूर्व में भूमि खरीदी है। चूंकि अब ऐसी भूमि के दम बहुत बढ़ गए है, इसलिए दबंग दबाव बना रहे हैं। यह दबंगाई तब की जा रही है जब राज्य सरकार छोटे भूखंडधारियों के नियमन करने पर अनेक रियायत दे रही है। दबंगों की यह कार्यवाही सरकार की मंशा के विपरीत भी है। दबंगों के दखल की वजह से ही ग्राम पंचायत में भी नियमों के विरुद्ध संविदा पर कार्मिकों को रखा गया है। 

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Monday 20 June 2022

दिल्ली में कांग्रेस के विरोध की कमान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संभाली।राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में जंतर मंतर पर कांग्रेस के सत्याग्रह में राजस्थानियों की भीड़।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी से 20 जून को भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों ने चौथे दिन की पूछताछ की। नेशनल हेराल्ड अखबार की 2 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिकाना हक के हस्तांतरण में हुई वित्तीय अनियमितताओं को लेकर ईडी राहुल गांधी से पूछताछ कर रही है। हस्तांतरित मालिकाना हक में राहुल गांधी और उनकी माता जी श्रीमती सोनिया गांधी का 37-37 प्रतिशत का शेयर है। राहुल गांधी से हो रही पूछताछ का कांग्रेस के कार्यकर्ता लगातार विरोध कर रहे हैं। पूर्व में 13 से 15 जून के बीच हुई पूछताछ में भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली में ही रहे। 20 जून को होने वाली पूछताछ के मद्देनजर सीएम गहलोत 19 जून को ही दिल्ली पहुंच गए। दिल्ली में रहकर सीएम गहलोत कांग्रेस के विरोध की कमान संभाल रहे हैं। गहलोत ने जो रणनीति बनाई उसी का परिणाम रहा कि 20 जून को दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए सत्याग्रह में कांग्रेस के नए पुराने नेता बड़ी संख्या में देखने को मिले। सभी नेताओं को मंच पर सम्मान के साथ बैठाया गया। भीड़ में सबसे ज्यादा संख्या राजस्थान के कार्यकर्ताओं की रही। सीएम गहलोत द्वारा कमान संभालने के कारण ही राजस्थान के कई मंत्री और कांग्रेस के पदाधिकारी दिल्ली में टिके हुए हैं। सीएम गहलोत को महात्मा गांधी का अनुयायी माना जाता है। इसलिए धरना प्रदर्शन का स्वरूप बदलते हुए सत्याग्रह की शुरुआत की गई है। 20 जून को गहलोत ने कहा कि वे शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी दिल्ली पुलिस कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को तंग कर रही है। नेताओं और कार्यकर्ताओं को सत्याग्रह स्थल जंतर मंतर पर नहीं आने दिया जा रहा है। गहलोत ने कहा कि समझ नहीं आता कि कांग्रेस के सत्याग्रह से मोदी सरकार क्यों डर रही है? गहलोत ने कहा कि कांग्रेस को डराने के लिए हमारे नेता राहुल गांधी से चौथे दिन की पूछताछ हो रही है। जबकि सच्चाई यह है कि नेशनल हेराल्ड अखबार का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। यह अखबार स्वतंत्रता आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू ने शुरू किया था। कांग्रेस के कार्यकर्ता चाहते हैं कि यह अखबार निरंतर प्रकाशित होता रहे। इसलिए अखबार की कमान सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को सौंपी गई। जब अखबार का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है तब ईडी किस बात की पूछताछ कर रही है। गहलोत ने कहा कि ईडी या अन्य जांच एजेंसियों की पूछताछ से गांधी परिवार और कांग्रेस नेता डरने वाले नहीं है। यहां यह उल्लेखनीय है कि 17 जून को सीएम गहलोत के बड़े भाई अग्रसेन गहलोत से जोधपुर में सीबीआई के अधिकारियों ने भी पूछताछ की थी। अग्रसेन गहलोत को 2007 में हुए खाद घोटाले का आरोपी माना गया है। देश भर में जिन 17 खाद-बीज कारोबारियों के विरुद्ध सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया उनमें अग्रसेन गहलोत भी शामिल हैं। सीएम गहलोत का कहना है कि वे दिल्ली में मोदी सरकार के विरुद्ध आंदोलन चला रहे हैं, इसलिए उनके भाई के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया है। लेकिन सीबीआई की इस कार्यवाही से भी वे डरने वाले नहीं है।

S.P.MITTAL BLOGGER (20-06-2022)
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अग्निवीर बनने वाले युवाओं का हिंसा से कोई सरोकार नहीं।अग्निवीर बनने के इच्छु देशभक्त युवा 24 जून से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा सकेंगे। 24 जुलाई से परीक्षा के बाद 21 नवंबर से सैन्य प्रशिक्षण शिविर शुरू।कांग्रेस अब आंदोलन जीवी पार्टी बन कर रह गई है।

भारत की तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने स्पष्ट कर दिया है कि सेना में भर्ती के लिए घोषित अग्निवीर योजना वापस नहीं होगी। योजना की शुरुआत 24 जून से ही ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के साथ हो जाएगी। 24 जुलाई से होने वाली आनलाइन परीक्षा में जो युवा उत्तीर्ण होंगे उन्हें 21 नवंबर 2022 से सैन्य प्रशिक्षण देने का काम शुरू कर दिया जाएगा। लेकिन वे युवा अग्निवीर बनने के लिए रजिस्टे्रशन नहीं करवा सकेंगे जिन पर तोडफ़ोड़ ट्रेन व बसों को जलाने, निर्दोष लोगों के साथ मारपीट करने जैसे मुकदमे दर्ज हो गए हैं। कोई मुकदमा दर्ज नहीं है इसके लिए युवाओं को शपथ पत्र देना होगा। तीनों सेनाध्यक्षों की ओर से कहा गया कि भारतीय सेना में अनुशासनहीन युवाओं की कोई गुंजाइश नहीं है। देशभक्ति का जज्बा रखने वाले युवा ही अग्निवीर बनते हैं। पहली बात तो चार साल बाद कोई भी अग्निवीर बेरोजगार नहीं रहेगा। लेकिन फिर भी जो लोग अग्निवीरों के बेरोजगार होने का मुद्दा उठा रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि सेना से प्रतिवर्ष 17 हजार 600 सैनिक स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेते हैं। क्या कभी इन सैनिकों ने बेरोजगारी का मुद्दा उठाया? असल में सेना में कार्य करने के बाद गैर सैन्य क्षेत्रों में रोजगार के ज्यादा अवसर मिलते हैं। यह माना जाता है कि सेना में कार्य कर चुका युवा न केवल अनुशासित होगा, बल्कि ईमानदारी से कार्य भी करेगा। अभी प्रतिवर्ष 45 हजार अग्नि वीरों की भर्ती की योजना है। आने वाले वर्षों में 90 हजार प्रतिवर्ष किया जाएगा। अग्निवीरों में से ही प्रतिवर्ष 25 प्रतिशत को सेना में तथा शेष को केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ साथ राज्य पुलिस की भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी। अग्नि वीरों को जो सर्टिफिकेट मिलेगा उससे मर्चेंट नेवी में भी आसानी से नौकरी मिल जाएगी। सेना में अग्निवीर बनने वाले हर युवा को रोजगार मिलेगा। कुछ लोग बेवजह अग्निवीर योजना के बारे में भ्रम फैला रहे हैं। अग्निवीर योजना देश की एकता और अखंडता से जुड़ी है। सेना में अनुशासनहीनता कभी भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
 
हिंसा से सरोकार नहीं:
देश के जो युवा अग्निवीर बनना चाहते हैं उनका मौजूदा ङ्क्षहसा से कोई सरोकार नहीं है। देश में सक्रिय राष्ट्र विरोधी ताकते ही अग्निवीर योजना का विरोध करवा रही है। इसमें कुछ युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। बहकावे में आकर जो युवा हिंसा कर रहे हैं उन्हें 24 जून को ही पता चल जाएगा कि असल अग्निवीर कौन हैं? 24 जून से जब अग्नि वीर बनने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होगा, तब युवाओं को रजिस्ट्रेशन के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। अग्निवीर बनने के लिए लाखों युवा बेसब्री से 24 जून का इंतजार कर रहे हैं। तब उन युवाओं को पश्चाताप होगा, जिनके विरुद्ध पुलिस ने हिंसा करने के मुकदमे दर्ज कर लिए हैं।
 
आंदोलन जीवी पार्टी:
केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ कोई भी आंदोलन हो उसमें कांग्रेस पार्टी कूद पड़ती है। दिल्ली में जेएनयू के वामपंथी छात्रों का आंदोलन हो या फिर किसान आंदोलन। मौजूदा समय में अग्निवीर योजना के विरोध में चल रहे आंदोलन को भी कांग्रेस हवा दे रही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस शासित राज्यों को छोड़कर कांग्रेस पार्टी किसी अन्य प्रदेश में अपने बूते पर बड़ा आंदोलन खड़ा करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए अन्यों के आंदोलन में कूद पड़ती है। अग्निवीर योजना के विरोध में आंदोलन धीमा न हो इसके लिए 19 जून को दिल्ली में कांग्रेस की ओर से सत्याग्रह भी किया गया। यही वजह है कि अब कांग्रेस पार्टी की स्थिति आंदोलन जीवी पार्टी बन कर रह गई है। राजस्थान में सिर्फ अशोक गहलोत की वजह से कांग्रेस में सक्रियता नजर आती है। 20 जून को भारत बंद का राजस्थान में कोई असर नहीं देखा गया। लेकिन फिर भी जिला कलेक्टरों के माध्यम से आदेशों को लेकर कई आदेश निकलवाए गए। बंद के समर्थन में सरकारी प्रयासों के बाद भी कोई युवा सड़क पर प्रदर्शन करने के लिए नहीं आया। यहां तक कि कांग्रेस के अधिकांश कार्यकर्ता भी अपने घरों पर ही बैठे रहे। असल में पिछले दो वर्ष प्रदेश में कांग्रेस की जिला और ब्लॉक कमेटियां भंग पड़ी है। पार्टी में चल रही आंतरिक गुटबाजी के कारण कार्यकर्ता भी असंजस की स्थिति में है। 

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Sunday 19 June 2022

आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ को पुष्कर में राजनीति जाजम नहीं बिछाने देंगी प्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष नसीम अख्तर।पुष्कर नगर पालिका के ईओ अभिषेक गहलोत का पहले नसीम के पति इंसाफ अली ने चश्मा उतारा और फिर कांग्रेसियों ने पालिका कर्मियों की पिटाई की।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक और राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ विधानसभा का चुनाव अजमेर के पुष्कर से लड़ना चाहते हैं। इसके लिए राठौड़ पुष्कर में राजनीतिक जाजम बिछाने का प्रयास कर रहे हैं। आए दिन पुष्कर आकर सामाजिक, प्रशासनिक, धार्मिक और राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। अखबारों में राठौड़ की बड़ी बड़ी खबरें भी प्रकाशित होती है, लेकिन राठौड़ की कांग्रेस पार्टी की प्रदेश उपाध्यक्ष श्रीमती नसीम अख्तर ही पुष्कर में राठौड़ की राजनीति जाजम बिछाने नहीं देंगी। श्रीमती अख्तर और उनके पति अजमेर जिला देहात कांग्रेस के उपाध्यक्ष इंसाफ अली पुष्कर पर अपना हक मानते हैं। श्रीमती अख्तर पुष्कर की विधायक भी रह चुकी हैं। 17 जून को कांग्रेस के पार्षदों और नगर पालिका के कार्मिकों के बीच जो कुछ भी हुआ, उससे जाहिर है कि नसीम अख्तर, धर्मेन्द्र राठौड़ को आसानी से राजनीतिक जाजम बिछाने नहीं देंगी। पालिका के ईओ अभिषेक गहलोत 17 जून को जब पुष्कर घाट स्थित होटल सनसेट और पुष्कर इन को सीज करने के लिए पहुंचे तो हंगामा खड़ा हो गया। ये दोनों होटल कांग्रेस पार्षद के रिश्तेदारों के हैं। होटलों को सीज की कार्यवाही से बचाने के लिए नसीम के पति इंसाफ अली मौके पर पहुंच गए। आपसी वाद विवाद के बाद इंसाफ अली ने ईओ गहलोत के आंखों पर लगे फैशनेबल चश्मे को छीन लिया। इसके बाद कांग्रेसियों ने पालिका कर्मियों की जमकर पिटाई की। एक दो थप्पड़ ईओ गहलोत के गाल पर भी मारे गए। जानकारों की माने तो ईओ गहलोत को धर्मेन्द्र राठौड़ का ही संरक्षण है। यह तीसरा अवसर है जब गहलोत पुष्कर नगर पालिका के अधिशाषी अधिकारी बने हैं। पिछले दिनों नसीम ने अथक प्रयास कर गहलोत को एपीओ करवा दिया था। लेकिन सरकार के इस आदेश के खिलाफ गहलोत हाईकोर्ट से स्टे ले आए। चूंकि राठौड़ का संरक्षण है, इसलिए गहलोत ने बड़ी शान से पालिका का ईओ का पद संभाल लिया। आमतौर पर सरकार के आदेश के विरुद्ध कोर्ट से स्टे लाने वाला अधिकारी आसानी से नौकरी नहीं कर पाता है। सरकार के पास अनेक तौर तरीके होते हैं, जिसके अंतर्गत सरकार विरोधी अधिकारी को सामान्य काम भी नहीं करने दिया जाता। लेकिन इसे अभिषेक गहलोत की दिलेरी ही कहा जाएगा कि कोर्ट के आदेश से पद संभालने के बाद कांग्रेस के पार्षदों के खिलाफ ही पहली कार्यवाही की। गहलोत का कहना है कि उच्चस्तरीय जांच में जयपुर घाट की होटलों के निर्माण को अवैध माना गया है। इसलिए सीज की कार्यवाही की जा रही है। चूंकि 17 जून को ईओ गहलोत और पालिका कर्मी मारपीट के शिकार हो गए इसलिए अब पालिका कर्मियों की ओर से पुष्कर थाने में नामजद रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी गई है। इधर कांग्रेस के पार्षद धरना प्रदर्शन कर रहे हैं तो उधर पालिका के सफाई कर्मी हड़ताल पर चले गए हैं। यानी पुष्कर का माहौल तनावपूर्ण हो गया है। हालांकि जिला कलेक्टर अंशदीप हालातों को संभालने में लगे हुए हैं। लेकिन उनके सामने भी सबसे बड़ी समस्या सत्तारूढ़ कांग्रेस के आपसी विवाद की ही है। प्रशासन भी इस मामले में फूंक फूंक कर कदम रख रहा है। हालांकि राजस्थान में विधानसभा के चुनाव डेढ़ वर्ष होने हैं, लेकिन पुष्कर में कांग्रेस के नेताओं के बीच अभी से ही तलवारें खिंच गई। कांग्रेस की राजनीति में नसीम अख्तर और उनके पति इंसाफ अली को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का समर्थक माना जाता है। लेकिन श्रीमती अख्तर सीएम गहलोत के साथ भी नजर आती हैं। राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में दिल्ली में जो धरना प्रदर्शन हुआ उसमें सीएम गहलोत के साथ साथ नसीम अख्तर भी शामिल हुई। देखना होगा कि पुष्कर के ताजा राजनीतिक हालातों से धर्मेन्द्र राठौड़ कैसे मुकाबला करते हैं। यूं पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में राठौड़ के समर्थकों की भी कमी नहीं है। लेकिन नसीम के समर्थकों का रुख हमेशा आक्रमणकारी होता है। 

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शरद पवार के बाद फारुख अब्दुल्ला ने भी राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनने से इनकार किया।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब अपने अहम की लड़ाई लड़ रही हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चाहती हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी जाए। ममता की यह चाहत तब है, जब विपक्ष एकजुट नहीं है और पीएम मोदी के पास अपना उम्मीदवार जीतवाने के लिए पर्याप्त वोट हैं। लेकिन इसे ममता बनर्जी का राजनीतिक अहम (घमंड) ही कहा जाएगा कि संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा करने की जिद पर अड़ी है। ममता ने अब तक एनसीपी के प्रमुख शरद पवार और नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला के समक्ष उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव रखा, लेकिन इन दोनों ने ही राष्ट्रपति पद का चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया। नामांकन की अंतिम तिथि 29 जून है। देखना है, जब तक ममता बनर्जी और कितने नेताओं के समक्ष उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव रखती हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का प्रयास है कि राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध हो। इसलिए विपक्षी नेताओं से संपर्क करने के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई गई है। लेकिन पीएम मोदी चाहें जितने सकारात्मक प्रयास कर लें, लेकिन ममता बनर्जी उम्मीदवार खड़ा ही करेंगी। यदि कोई राजनेता तैयार नहीं हुआ तो महात्मा गांधी के रिश्तेदार गोपाल कृष्ण गांधी को ही उम्मीदवार बना दिया जाएगा। हालांकि ममता की इस दि से कई विपक्षी दल अलग हो गए हैं। राज्य में सत्तारूढ़ विपक्षी दल नहीं चाहते कि ममता बनर्जी की तरह केंद्र सरकार से झगड़ा किया जाए। यही वजह है कि कई विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर सीधे प्रधानमंत्री से संपर्क में है। असल में तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी का घमंड आसमान पर है। इस घमंड के कारण ही वे देश के प्रधानमंत्री पद को भी अपमानित करने से बाज नहीं आती हैं। देश के संघीय ढांचे में राज्यपाल की संबंधित प्रदेश के विश्वविद्यालयों के चांसलर होते हैं। विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलरों की नियुक्ति चांसलर की हैसियत से राज्यपाल ही करते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता ने चांसलर के अधिकार राज्यपाल जगदीप धनखड़ से छीन कर स्वयं ले लिए हैं। ममता बनर्जी पहली मुख्यमंत्री होंगी जो अपने प्रदेश के विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर नियुक्त करेंगी। 

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अजमेर में रेलवे स्टेशन के सामने अंडरपास के निर्माण पर निर्णय नहीं।अजमेर के जिन क्षेत्रों में वाहन पहुंच रहे हैं, उन्हीं में कचरा संग्रहण शुल्क लिया जाएगा।

अजमेर के जिला कलेक्टर और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के सीईओ अंश दीप ने कहा है कि रेलवे स्टेशन के सामने तथा फुट ओवर ब्रिज के नीचे प्रस्तावित अंडर पास के निर्माण पर अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। इस संबंध में जल्द ही स्मार्ट सिटी और आरएसआरडीसी के इंजीनियरों की बैठक बुलाकर निर्णय लिया जाएगा। कलेक्टर ने माना कि बरसात के दिनों में नला बाजार से आने वाला पानी मदार गेट के घंटा घर के सामने से होकर रेलवे स्टेशन की ओर ही जाता है। ऐसे में यदि अंडर पास बनेगा तो बरसात का पानी अंडरपास में भी जाएगा। प्रस्तावित अंडरपास से होने वाली समस्याओं की ओर शहर के व्यापारियों ने भी ध्यान आकर्षित किया है। कलेक्टर ने कहा कि शहर हित में जो होगा वही किया जाएगा।
 
फिजीवल नहीं है अंडरपास:
प्राप्त जानकारी के अनुसार रेलवे स्टेशन के सामने फुट ओवर ब्रिज के नीचे अंडरपास का निर्माण फिजीवल नहीं है। स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों ने पूर्व में आंकलन किया था, तब भी बरसात में अंडरपास में पानी भरे रहने की बात सामने आई थी। असल में नला बाजार से जो पानी आता है उसके निकास का कोई विकल्प नहीं है। मौजूदा समय में भी बरसात के दिनों में रेलवे स्टेशन के सामने बरसात का पानी भरा रहता है। यदि अंडरपास का निर्माण किया गया तो बरसात में पानी ही भरा रहेगा। जानकारों की मानें तो अंडरपास का निर्माण करने वाले आरएसआरडीसी और स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों के बीच तालमेल का अभाव है। फिजीवल नहीं होने के बाद भी स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों ने अंडरपास बनाने के आदेश नहीं दिए हैं। 300 करोड़ रुपए की लागत वाले एलिवेटेड रोड का कार्य स्मार्ट सिटी ने आरएसआरडीसी को दे रखा है। एलिवेटेड रोड के अंतर्गत ही अंडरपास बनना प्रस्तावित है। तालमेल के अभाव के कारण ही एलिवेटेड रोड के निर्माण में भी विलंब हो रहा है। एलिवेटेड तक के निर्माण के कारण पिछले तीन वर्ष से अजमेर के स्टेशन रोड, कचहरी रोड, पीआर मार्ग और आगरा गेट क्षेत्र के व्यापारियों का कारोबार ठप पड़ा है। लेकिन व्यापारियों की परेशानी की किसी को चिंता नहीं है।
 
कचरा संग्रहण शुल्क:
अजमेर राजस्थान के उन शहरों में शामिल है, जहां कचरा संग्रहण शुल्क वसूलना शुरू हो गया है। सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं से लेकर होटल, रेस्टोरेंट, दुकानदार, समारोह स्थल आदि तक के मालिकों से कचरा संग्रहण शुल्क की दरें निर्धारित की है। कचरा संग्रहण शुल्क की वसूली का व्यापारियों ने विरोध भी किया है, लेकिन व्यापारियों के विरोध को दरकिनार कर नगर निगम ने शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है। शुल्क वसूलने का काम ठेके पर दिया गया है इसलिए ठेकेदार के कार्मिक दुकानदारों से बदजुबानी भी कर रहे हैं। शहर के उन क्षेत्रों के दुकानदारों से भी शुल्क वसूला जा रहा है, जहां कचरा संग्रहण के लिए वाहन नहीं आते हैं। इस संबंध में व्यापारियों ने नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी रूपाराम चौधरी का ध्यान आकर्षित किया है। चौधरी का कहना है कि जिन क्षेत्रों में वाहन नहीं आ रहे हैं,वहां फिलहाल शुल्क नहीं लिया जाएगा। चौधरी ने कहा कि आमतौर पर शहर भर में प्रतिदिन कचरा संग्रहण के लिए वाहन आते हैं। लेकिन कुछ गली अथवा बाजारों के हिस्सों में वाहन नहीं आने की शिकायतें भी मिली है। उन्होंने कहा कि संबंधित ठेकेदार को निर्देश दिए जा रहे हैं कि जिन क्षेत्रों में वाहन सुविधा नहीं है, वहां के घरेलू और व्यवसायिक उपभोक्ताओं से कचरा संग्रहण शुल्क नहीं लिया जाए। चौधरी ने कहा कि जिन क्षेत्रों में वाहन नहीं आ रहे हैं, उनकी जानकारी नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में उपलब्ध करवाई जाए। ऐसे सभी क्षेत्रों में जल्द से जल्द वाहन उपलब्ध करवाए जाएंगे। चौधरी ने शहरवासियों से अपील की है कि अजमेर को स्वच्छ रखने के लिए निर्धारित शुल्क अदा करने में सहयोग करे। 

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Friday 17 June 2022

सरस के नकली घी की बिक्री के प्रति अजमेर डेयरी ने उपभोक्ताओं को आगाह किया। डेयरी के अधिकृत काउंटरों से ही घी व अन्य उत्पाद खरीदने की सलाह। नकली घी की जानकारी डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी के मोबाइल नंबर 9414004111 पर दें।अजयमेरु प्रेस क्लब में मीडिया वर्कशाप 26 को।

अजमेर दुग्ध डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी और प्रबंध संचालक मदनलाल ने बाजार में कथित तौर पर बिक रहे नकली सरस घी के प्रति उपभोक्ताओं को आगाह किया है। चौधरी और मदनलाल ने बताया कि बाजार में सरस के नाम पर नकली घी बेचने की शिकायत डेयरी प्रबंधन को प्राप्त जो रही हैं। 15 किलो के टिन को सरस डेयरी के घी के नाम पर कुछ लालची लोग दुकानों पर बेच रहे हैं। हालांकि डेयरी प्रबंधन अपनी ओर से ऐसे बेईमान व्यापारियों पर कार्यवाही करेगा। लेकिन यदि इस संबंध में कोई जानकारी हो तो डेयरी अध्यक्ष चौधरी के मोबाइल नंबर 9414004111 और मदनलाल के मोबाइल नंबर 9829287770 पर सीधे दी जा सकती है। इसी प्रकार डेयरी के डिप्टी मैनेजर लादूराम के मोबाइल नंबर 9460241744 पर भी दी जा सकती है। चौधरी ने कहा कि उपभोक्ताओं को डेयरी के अधिकृत काउंटरों से ही सरस घी और अन्य उत्पाद खरीदने चाहिए। डेयरी के घी सौ प्रतिशत शुद्ध है। शुद्धता को लेकर सरकार ने जो मापदंड निर्धारित कर रखे हैं उन सब की पालना अजमेर डेयरी करती है। चूंकि बाजार में डेयरी के घी की लगातार डिमांड बढ़ रही है इसलिए कुछ लालची व्यापारी नकली घी बेचने का काम कर रहे हैं। ऐसे तत्वों से उपभोक्ताओं को सावधान रहने की जरूरत है।
 
मीडिया वर्कशॉप 26 को:
अजयमेरु प्रेस क्लब, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और इंडिया डाटा पोर्टल के संयुक्त तत्वावधान में एक मीडिया वर्कशॉप 26 जून को आयोजित की जाएगी। वर्कशॉप वैशाली नगर स्थित होटल लेक विनोरा में पूर्वाह्न 11 से 12:30 बजे तक होगी। वर्कशॉप पत्रकारिता और शोध में आंकड़ों और विजुअलाइजेशन की महत्ता विषय पर केंद्रित होगी। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरों को पाठकों एवं दर्शकों के लिए विश्वसनीय बनाने के लिए आंकड़ों और विजुअलाइजेशन की महत्ता बढ़ती जा रही है । इसके तहत खबर के साथ ग्राफिक्स, इमेजेस, डायग्राम, चाट्र्स आदि बनाए जाते हैं। खबर के साथ इन सभी का समावेश हो जाने पर खबर की विश्वसनीयता बढ़ जाती है। साथ ही पाठक को आसानी से समझ में आ जाती है । अत: सभी सदस्यों से निवेदन है कि वे इस वर्कशॉप में भाग लेकर अपनी कार्यकुशलता को बढ़ाने का प्रयास करें। इस वर्कशॉप के प्रतिभागियों को इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस का प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा। इसके लिए सभी प्रतिभागियों को सलंग्न रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरकर सबमिट करना होगा ताकि उनके प्रमाण पत्र ईमेल द्वारा भेजे जा सकें। आईएसबी देश-दुनिया का एक प्रतिष्ठित संस्थान है। हाल ही में पेशेवर लोगों को प्रबंधन के गुर सिखाने में इसकी रैंकिंग आईआईएम से भी ऊपर आंकी गई है। वर्कशॉप के संबंध में और अधिक जानकारी क्लब के महामंत्री राजेंद्र गुंजल से मोबाइल नंबर 9414259372 पर ली जा सकती है। 

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बड़े भाई अग्रसेन गहलोत के जोधपुर स्थित आवास और प्रतिष्ठान पर सीबीआई का छापा। गरीब किसानों की खाद को विदेशी कंपनियों को बेचने का आरोप।जोधपुर में सात बड़े कारोबारियों के 32 ठिकानों पर लगातार दूसरे दिन भी आयकर विभाग की जांच जारी।जयपुर पहुंचने पर सीएम गहलोत ने कहा कि मैं डरने वाला नहीं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बड़े भाई अग्रसेन गहलोत के जोधपुर स्थित आवास और अनुपम कृषि प्रतिष्ठान पर 17 जून को सीबीआई ने एक साथ छापामार कार्यवाही की है। अग्रसेन गहलोत पर गरीब किसानों की अनुदानित खाद को विदेशी कंपनियों को महंगे दामों में बेचने का आरोप है। इस आरोप के मद्देनजर ही केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग ने गहलोत पर 5 पांच करोड़ 56 लाख रुपए की पेनल्टी भी लगाई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2007 में देश में जब खाद का भारी संकट था, तब सरकारी उपक्रम इंडियन पोटास लिमिटेड से अग्रसेन गहलोत ने भारी मात्रा में अनुदानित खाद प्राप्त की। कायदे से इस खाद को गरीब किसानों को रियायती दरों पर दिया जाना चाहिए था। लेकिन गहलोत और उनकी फर्म अनुपम कृषि ने खाद को विदेशी कंपनियों को महंगे भाव में निर्यात कर दिया। यह घोटाला वर्ष 2009 तक जारी रहा। वर्ष 2012-13 में केंद्रीय जांच एजेंसियों ने इस घोटाले को उजागर किया। घोटाले में देश के अन्य शहरों के खाद बीज कारोबारी भी शामिल रहे, लेकिन केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चल रही थी। इसलिए इस खाद घोटाले को भूला दिया गया। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की सरकार बनी तो यह खाद घोटाला एक बार फिर उजागर हुआ। पहले इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच पड़ताल की। घोटाले के आरोपी अग्रसेन गहलोत सहित देशभर के खाद बीज कारोबारियों से ईडी के अधिकारियों ने पूछताछ की। अग्रसेन गहलोत ने गिरफ्तारी से बचने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर स्थित मुख्य पीठ से जमानत ले ली। इस मामले में अभी भी गहलोत की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट की रोक लगी हुई है। लेकिन कोर्ट ने गहलोत को निर्देश दिए हैं कि वे जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग करे। जानकारों की मानें तो घोटाले की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई में एक नया मुकदमा दर्ज किया है। इस नए मुकदमे में ही 17 जून को जोधपुर में मंडोर स्थित आवास और पावटा स्थित प्रतिष्ठान पर सीबीआई ने एक साथ छापामार कार्यवाही की। सीबीआई के मुकदमे में अग्रसेन गहलोत के परिवार के अन्य सदस्यों को भी आरोपी बनाया गया है। यही वजह है कि सीबीआई के अधिकारी गहलोत के साथ साथ परिवार के अन्य सदस्यों से भी पूछताछ कर रहे हैं। सीबीआई की इस कार्यवाही से जोधपुर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा गया है। अशोक गहलोत सरकार के मंत्रियों और पदाधिकारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मंत्रियों का कहना है कि सीएम गहलोत दिल्ली में रहकर केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध की जो रणनीति बना रहे हैं, उससे घबरा कर ही सीबीआई ने मुख्यमंत्री के भाई पर छापामार कार्यवाही की है। केंद्र सरकार के इशारे पर हुई इस कार्यवाही से कांग्रेस डरने वाली नहीं है। नेताओं ने कहा कि पहले प्रवर्तन निदेशालय राहुल गांधी से पूछताछ के नाम पर तंग कर रहा है तो वहीं अब डराने के लिए मुख्यमंत्री के भाई पर छापामार कार्यवाही करवाई गई है। केंद्र की इस कार्यवाही का कांग्रेस के कार्यकर्ता डट कर मुकाबला करेंगे।
 
आयकर विभाग की जांच दूसरे दिन भी जारी:
जोधपुर में ही आयकर विभाग की आकस्मिक जांच पड़ताल 17 जून को लगातार दूसरे दिन भी जारी रही। जोधपुर के रियल एस्टेट ज्वैलर्स बुलियन, हैंडीक्राफ्ट आदि के 7 बड़े कारोबारियों की 32 ठिकानों पर 16 जून को छापामार कार्यवाही की गई थी। यह कार्यवाही दूसरे दिन 17 जून को भी जारी रही। आयकर विभाग के अधिकारियों को बड़ी मात्रा में अघोषित आय मिलने की उम्मीद है। आयकर विभाग की इस कार्यवाही से भी जोधपुर में दहशत का माहौल बना हुआ है।
 
मैं डरने वाला नहीं गहलोत:
चार दिन बाद सीएम गहलोत दिल्ली को छोड़कर 17 जून को जयपुर लौट आए हैं। जयपुर लौटते ही गहलोत ने कहा कि मेरे भाई के यहां सीबीआई की कार्यवाही से मैं डरने वाला नहीं हंू। मैंने पिछले चार दिनों में दिल्ली रहकर केंद्र सरकार के खिलाफ जो प्रदर्शन किया उसी का परिणाम है कि मेरे भाई के यहां कार्यवाही की गई है। गहलोत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय भी राहुल गांधी से बेवजह की जांच कर रहा है। मैं कांग्रेस का एक कार्यकर्ता होने के नाते राहुल गांधी के साथ खड़ा हंू। मैं केंद्र सरकार को यह बताना चाहता हूं कि 19 जून को फिर दिल्ली जाऊंगा और जब 20 जून को राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ होगी तब दिल्ली में ही रहंूगा। गहलोत ने केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया। गहलोत ने राहुल गांधी का तो प्रभावी तरीके से बचाव किया, लेकिन अपने भाई पर लगे आरोपों के बारे में कोई सफाई नहीं दी। 
S.P.MITTAL BLOGGER (17-06-2022)
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