Saturday 30 July 2022

अंडर ट्रायल कैदियों के मुकदमों की सुनवाई जल्द हो-पीएम नरेंद्र मोदी।मुकदमों की सुनवाई वर्चुअल तकनीक से भी होनी चाहिए।राजस्थान हाईकोर्ट के जजों की फुल कोर्ट मीटिंग झुंझुनूं के मंडावा रिसोर्ट में हुई।

30 जुलाई को दिल्ली के विज्ञान भवन में देश के प्रथम जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत हुई। सम्मेलन में जिला स्तर के प्राधिकरण के अध्यक्ष (जिला एवं सत्र न्यायाधीश) और सचिव (अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश) भाग ले रहे हैं। देश भर में 676 जिला प्राधिकरण हैं। सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब आम आदमी को लगता है कि उसकी कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है, तब उसे अदालत के दरवाजे खुले मिलते हैं। यानी आम आदमी का भरोसा अदालतों पर बना हुआ है। पीएम ने कहा कि पिछले 8 वर्षों में देश की न्यायिक अवसंरचना पर 9 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। अब अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से वर्चुअल सुनवाई भी हो रही है। मुझे बताया गया कि देश में एक करोड़ मुकदमों की सुनवाई वर्चुअल तकनीक से हुई है। इसी प्रकार हाईकोर्ट में लंबित 60 लाख मुकदमों की सुनवाई भी वर्चुअल तकनीक से हुई। न्यायिक व्यवस्था और मुकदमों की जल्द सुनवाई के लिए यह शुभ संकेत हैं कि वर्चुअल तकनीक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। पीएम ने कहा कि जब देश में डिजिटल पेमेंट की शुरुआत की गई तो लोगों ने कहा कि यह कैसे होगा, लेकिन आज फुटपाथ पर खड़े होने वाला ठेला व्यापारी भी मोबाइल पर भुगतान प्राप्त कर रहा है। पीएम ने बताया कि दुनिया में आज जो डिजिटल पेमेंट हो रहा है उसका 40 प्रतिशत हिस्सा भारत का है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डिजिटल पेमेंट का आकर्षण कितना बढ़ रहा है। पीएम ने सम्मेलन में उपस्थित सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना और देश भर के जिला एवं सत्र न्यायाधीशों से आग्रह किया कि अंडर ट्रायल कैदियों के मुकदमों की सुनवाई जल्द होनी चाहिए। जो लोग जेलों में बंद हैं उनके मामलों में इस बात का अध्ययन किया जाए कि उन्हें किस प्रकार कानूनी मदद मिल सकती है। इस मामले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस मामले में वकील समुदाय को भी सहयोग करना चाहिए। देश के लिए यह सौभाग्य की बात है कि आगामी 15 अगस्त को देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। हमारे लिए अमृतकाल तो है ही साथ ही कर्तव्य काल भी है। समारोह में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा कि देश की ताकत युवाओं में है। युवा देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। न्यायिक संरचना को मजबूत करने में सरकार ने जो सहयोग दिया है उसके लिए रमन्ना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार भी जताया। इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजीजू ने पारिवारिक अदालतों में चल रहे मुकदमों के शीघ्र निस्तारण पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि पारिवारिक न्यायालयों में चलने वाले मुकदमों से सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी प्रभावित हो रही है। आज देश में पारिवारिक अदालतों में 11 लाख मुकदमे लंबित है, ऐसे मुकदमों की सुनवाई मानवीय दृष्टिकोण से होनी चाहिए। सम्मेलन में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश यूए ललित ने कहा कि न्यायिक सुनवाई में वर्चुअल तकनीक का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। डिजिटल इंडिया का लाभ गांव तक पहुंचा है। अब मुकदमों की सुनवाई भी वर्चुअल तकनीक से हो रही है।
जजों की बैठक रिसोर्ट:
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर और जयपुर पीठ के सभी जजों की बैठक 30 जुलाई को झुंझुनूं स्थित मंडावा रिसोर्ट में हुई। न्यायिक शब्दों में इस बैठक को हाईकोर्ट की फुल कोर्ट मीटिंग कहा जाता है। इस मीटिंग में संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित सभी न्यायाधीश उपस्थित रहते हैं। फुट कोर्ट मीटिंग में नीतिगत फैसले भी लिए जाते हैं। 30 जुलाई की बैठक में मुख्य न्यायाधीश एसएस शिंदे भी उपस्थित रहे। जानकार सूत्रों के अनुसार यह पहला अवसर है, जब फुल कोर्ट की मीटिंग जोधपुर और जयपुर से बाहर हुई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश शिंदे 1 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 

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जो लोग भारत में हिन्दुओं की गर्दन काट रहे हैं वो मुस्लिम राष्ट्रों के हाल भी देख लें।मुसलमानों के लिए भारत सबसे सुरक्षित देश-शाहनवाज हुसैन।

कर्नाटक में कट्टरपंथियों ने अब तीन हिन्दुओं की गर्दन काट कर हत्या कर दी है। ऐसी वारदातें राजस्थान और देश के अन्य प्रदेशों में हुई है। कश्मीर में भी कट्टरपंथी सोच के लोग हिन्दुओं को निशाना बना रहे हैं। भारत में जो लोग हिंदुओं की गर्दन काट रहे हैंं, उन्हें एक बार मुस्लिम राष्ट्रों के बिगड़े हालात भी देख लेने चाहिए। 28 जुलाई को ही सरकार से नाराज लोगों ने संसद पर कब्जा कर लिया। कब्जा करने वाले हिन्दू या ईसाई नहीं थे, बल्कि मुसलमान ही हैं। आरोप है कि इराक में अराजकता के लिए ईरान जिम्मेदार हैं। इराक और ईरान दोनों ही मुस्लिम राष्ट्र हैं। अफगानिस्तान के हालात दुनिया के सामने हैं। पाकिस्तान भुखमरी के कगार पर खड़ा है। भारत में जो लोग हिन्दुओं की गर्दन काट रहे हैं, वे बताएं कि मुस्लिम राष्ट्रों के हालातों में भारत का मुसलमान  रह सकता है? कट्टरपंथी माने या नहीं, लेकिन हिन्दुओं के साथ रहने के कारण ही मुसलमान भारत में सुरक्षित है। यह बात बिहार के मंत्री शाहनवाज हुसैन ने भी स्वीकार की है। उनका कहना है कि मुसलमानों के लिए भारत सबसे सुरक्षित देश है। भारत लोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ एक हिन्दू को जितनी आजादी है, उतनी ही एक मुसलमान को अपने धर्म के अनुरूप आचरण करने की आजादी है। दुनिया में संभवत: भारत एकमात्र देश होगा, जहां देश के संविधान से अलग हट कर मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता है। यह तब है जब 1947 में धर्म के आधार पर ही भारत का विभाजन कर पाकिस्तान को बनाया गया। आज मुसलमानों को जितने अधिकार पाकिस्तान में नहीं है उससे ज्यादा अधिकार भारत में मिले हुए हैं। भारत में यदि मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव होता है तो, 100 घरों की कॉलोनी में दो चार मुस्लिम परिवार नहीं रह पाते। मुसलमानों के साथ सरकारी योजनाओं के लाभ में भी भेदभाव नहीं होता है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तो केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अल्पसंख्यकों के लिए अलग से योजनाएं चलाई है, जिसका सबसे ज्यादा लाभ मुसलमानों को ही मिल रहा है। अनेक मुस्लिम राष्ट्रों में महिलाओं पर अनेक पाबंदियां लगी हुई है, जबकि भारत में मुस्लिम लड़कियां कॉन्वेंट स्कूल और कॉलेजों में पढ़ रही हैं। पढ़ाई से लेकर नौकरी प्राप्त करने तक मुसलमानों को समान अधिकार मिले हुए हैं। मुस्लिम राष्ट्र भी मानते हैं कि भारत में रहने वाले मुसलमान बेहतर स्थिति में हैं। सवाल उठता है कि जब मुसलमान बेहतर स्थिति में हैं, तब भारत में हिन्दुओं की गर्दन क्यों काटी जा रही है? हिन्दुओं की गर्दन काटने के विरोध में अब आम मुसलमान को भी आगे आना चाहिए। यदि भारत के हालात बिगड़ते हैं तो आम मुसलमान को भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। फिर मुस्लिम परिवारों के बच्चों को भी कॉन्वेंट स्कूल कॉलेज में पढ़ने नहीं दिया जाएगा। भारत की मजबूती तभी है, जब हिन्दू और मुसलमान भाईचारे के साथ रहे। 

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Friday 29 July 2022

कांग्रेस को विनम्र होने की जरुतर। लोकतंत्र में जनता ही राजा बनाती है।गांधी परिवार को अशोक गहलोत जैसे चापलूसों से दूर रह कर जनता का मूड समझना चाहिए।

लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू जब राष्ट्र की पत्नी हो सकती हे, तब हमारी क्यों नहीं? चौधरी का यह बयान कांग्रेस के घमंड को प्रदर्शित करता है। इस बयान के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का जो व्यवहार सामने आया, उससे प्रतीत होता है कि लगातार हो रही हार से कांग्रेस कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है। देश की प्रथम नागरिक पर अमान जनक टिप्पणी को कांग्रेस गंभीरता से नहीं ले रही है। कांग्रेस को लगता है कि उसकी राजनीतिक विरासत के सामने राष्ट्रपति का सम्मान कोई मायने नहीं रखता है। यह सही है कि कांग्रेस ने देश पर 60 सालों तक एक छत्र राज किया। यह राज भी कांग्रेस पर काबिज एक ही परिवार ने किया। जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक देश के प्रधानमंत्री रहे। कांग्रेस की मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी जब इटली से भारत आईं तक उनकी सास श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। बाद में उनके पति राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। 2005 से 2014 तक भले ही डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे हों, लेकिन सरकार की कमान सोनिया गांधी के पास ही थी। तब सोनिया दुनिया की चुनिंदा महिलाओं में से एक थीं। लेकिन अब लोकसभा में 545 में से कांग्रेस के मात्र 50 सांसद हैं और देश के सिर्फ दो राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार है। चुनावों में कांग्रेस की लगातार हार हो रही है। उत्तर प्रदेश जेसे सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस को मात्र दो विधायक है, जबकि पश्चिम बंगाल में तो एक भी विधायक नहीं है। लोकतंत्र में जनता ही राजा बनाती है। कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार को जनता का मूड पहचानना चाहिए। गांधी परिवार को अशोक गहलोत जैसे चापलूस नेताओं से भी दूर रहने की जरूरत है। असल में ऐसे नेता गांधी परिवार को हकीकत से अवगत नहीं होने देते। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सामने ऐसा माहौल खड़ा किया जाता है, जिससे लगे कि चारों तरफ जय जय कार हो रही है। गांधी परिवार को यदि अशोक गहलोत की भी सच्चाई देखनी है तो उनसे मुख्यमंत्री का पद छीन कर देख लें। यदि गहलोत के पास राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद नहीं हो तो गांधी परिवार को सबसे ज्यादा विरोध गहलोत का ही सहना पड़ेगा। चूंकि गांधी परिवार ने राजस्थान में कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं का हक छीन कर तीन बार गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया है, इसलिए गहलोत जरूरत से ज्यादा चापलूसी करते हैं। गांधी परिवार को यह समझना चाहिए कि जनता दूर होती जा रही है। ऐसे में विनम्रता दिखाने की जरुरत हे। अधीर रंजन चौधरी ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के विरुद्ध जो अपमानजनक टिप्पणी की है, उस से पूरे देश में नाराजगी है। कांग्रेस को विनम्र होकर द्रौपदी मुर्मू से बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए। माफी मांगने की पहल खुद सोनिया गांधी भी कर सकती है। इसके साथ ही चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता के पद से भी हटाया जाए। चौधरी के बिगड़े बोल से कांग्रेस को पहले भी मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। चौधरी का यह बयान झूठा है कि राष्ट्र पत्नी का शब्द उनके मुंह से गलती से निकल गया। एबीपी न्यूज़ संवाददाता अंकित गुप्ता के साथ हुए संवाद में साफ जाहिर है कि द्रौपदी मुर्मू के लिए चौधरी ने जानबूझकर राष्ट्र पत्नी शब्द का उपयोग किया है। चौधरी ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति नहीं, बल्कि राष्ट्र की पत्नी हैं। कांग्रेस यदि इस मुद्दे को बनाए रखती है तो उसे और नुकसान होगा। 

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राजस्थान में ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध करवाने वाले पंप चालकों (श्रमिकों) को तीन माह से मजदूरी भी नहीं मिली है।जलदाय मंत्री महेश जोशी भी नहीं सुन रहे हैं

राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी टंकी से ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध करवाने वाले करीब सात हजार पंप चालकों (श्रमिकों) को तीन माह से न्यूनतम मजदूरी का भी भुगतान नहीं हुआ है। मजदूरी का भुगतान करने की जिम्मेदारी जलदाय विभाग की है, लेकिन जलदाय मंत्री महेश जोशी भी गरीब श्रमिकों की कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि सरकार को मजदूरी की बड़ी राशि का भुगतान करना है। पंचायती राज विभाग से आए इन सात हजार श्रमिकों को 259 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करना है। चूंकि पंप चालक श्रमिक की श्रेणी में आते हैं, इसलिए महीने में 30 दिन के बजाए 26 दिन का ही भुगतान किया जाता हे। यानी एक श्रमिक को प्रतिमाह 6 हजार 734 रुपए देने हैं। प्रदेशभर के पंप चालक मजदूरी भुगतान के लिए कई बार जयपुर में धरना प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सवाल उठता है कि यदि श्रमिक को तीन माह मजदूरी भी नहीं मिलेगी तो वह ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कैसे करवाएंगे? क्या राज्य की कांग्रेस सरकार के पास पंप चालकों को मजदूरी देने का पैसा भी नहीं है? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ साथ जलदाय मंत्री महेश जोशी को भी संवेदनशील राजनेता माना जाता है, लेकिन पंप चालकों को मजदूरी भुगतान में दोनों ही राजनेता संवेदनशीलता नहीं दिखा रहे हैं। गंभीर बात तो यह है कि सरकार पर धरना प्रदर्शन का भी कोई असर नहीं हो रहा है। राजस्थान जनता जल कर्मचारी संघ के प्रतिनिधि अशोक वैष्णव का कहना है कि जब ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल योजनाओं पर करोड़ों रुपया खर्च किया जा रहा है, तब पंप चालकों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जा रही है। गत मई माह से ही मजदूरी का भुगतान नहीं होने से उनके परिवार के सामने भूखों मरने की स्थिति उत्पन्न हो गई है। श्रमिकों के पास इतना पैसा भी नहीं है कि बार बार जयपुर जाकर धरना दिया जाए, सरकार को हमारी पारिवारिक स्थितियों को देखते हुए जल्द मजदूरी का भुगतान करना चाहिए। वैष्णव ने बताया कि पंप चालकों को पंचायती राज विभाग से जलदाय विभाग में स्थानांतरित करने का निर्णय भी खुद मुख्यमंत्री गहलोत ने लिया है। लेकिन इसके बावजूद भी पंप चालकों को मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है। पंप चालकों की परेशानियों के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 9828013288 पर अशोक वैष्णव से ली जा सकती है। 

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Thursday 28 July 2022

जब राहुल गांधी के बराबर अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक हैसियत है तो फिर केजरीवाल को जेड प्लस की सुरक्षा पर एतराज क्यों?

पंजाब सरकार ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा देने की घोषणा की है। पंजाब सरकार के इस फैसले पर भाजपा, कांग्रेस, अकाली दल आदि एतराज कर रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि जब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को जेड प्लस से भी ज्यादा की सुरक्षा मिल रही है, तब केजरीवाल की सुरक्षा पर एतराज क्यों किया जा रहा है। राजनीति में जो हैसियत राहुल गांधी की है, वहीं केजरीवाल की भी है। राहुल की कांग्रेस पार्टी की दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार है, इसी प्रकार केजरीवाल की आम पार्टी की सरकार पंजाब और दिल्ली में है। जहां तक सांसदों की और अन्य राज्यों में विधायकों की संख्या का सवाल है तो केजरीवाल की पार्टी 10 वर्ष पुरानी है, जबकि कांग्रेस पार्टी 100 वर्ष की है। केजरीवाल ने पंजाब में कांग्रेस से ही सत्ता छीनी है तथा हिन्दी भाषी राज्यों में आम आदमी पार्टी तेजी से कांग्रेस का विकल्प बन रही है। गुजरात और हिमाचल में इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन दोनों ही राज्यों में केजरीवाली की पार्टी कांग्रेस के मुकाबले में आकर खड़ी हो गई है। भाजपा को भी अब इन दोनों राज्यों में कांग्रेस से ज्यादा आप से खतरा नजर आ रहा है। सब जानते हैं कि गांधी परिवार के तीनों प्रमुख सदस्य सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को पूर्व में प्रधानमंत्री को मिलने वाली एसपीजी की सुरक्षा मिली हुई थी, लेकिन अब एसपीजी के समकक्ष वाली केंद्रीय सुरक्षा बलों की सुरक्षा मिली हुई है। गांधी परिवार की सुरक्षा में वही पुलिस अधिकारी और जवान नियुक्त है जो पहले एसपीजी में अनुभव ले चुके हैं। यानी राजनीति में केजरीवाल के बराबर हैसियत रखने वाले राहुल गांधी केंद्रीय सुरक्षा बलों की मजबूत सुरक्षा मिली हुई है। जबकि केजरीवाल ने तो अपनी पार्टी के शासन वाले पंजाब से जेड प्लस की सुरक्षा ली है। जब राहुल गांधी एसपीजी के समकक्ष वाली सुरक्षा ले सकते हैं तो फिर केजरीवाल क्यों नहीं ले सकते? जहां तक भाजपा के एतराज का सवाल है तो दिल्ली में आम आदी पार्टी की मजबूत स्थिति भाजपा को सहन नहीं हो रही है। केजरीवाल के पुराने आदर्शवादी बयानों का हवाला देकर जेड प्लस सुरक्षा का विरोध किया जारहा है। लेकिन भाजपा को भी यह समझना चाहिए कि राजनीति में रह कर आदर्श और सिद्धांतों की बात करना बेमानी है।

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अर्पिता मुखर्जी के घरों से 50 करोड़ रुपए नकद, 6 किलो सोना, 8 फ्लैट के कागजात आदि सामग्री मिलने से ममता सरकार में फैले भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि तो एक जुझारू और मेहनतकश महिला की थी।भाजपा के नेताओं को राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु छत्तीसगढ़, पंजाब आदि राज्यों में क्यों नहीं पकड़ा जाता?

पश्चिम बंगाल के ताकतवर मंत्री और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी की महिला मित्र अर्पिता मुखर्जी के घरों से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों ने अब तक 50 करोड़ रुपए नकद, 6 किलो सोना, 8 फ्लैट के कागजात, शिक्षक भर्ती से संबंधित सरकारी दस्तावेज आदि सामग्री जब्त कर ली है। ईडी को अभी और माल मिलने की उम्मीद है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती में एक हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप है। पार्थ चटर्जी और अर्पिता के बीच कैसी मित्रता है, यह तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही जाने, लेकिन अर्पिता के घरों से जो सरकारी दस्तावेज मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि अभ्यर्थियों को अर्पिता के घर से ही शिक्षक भर्ती के नियुक्ति आदेश दिए जाते थे। नियुक्ति आदेश कैसे मिलते थे, इसका अंदाजा 50 करोड़ रुपए नकद, 6 किलो सोना और 8 फ्लैट के कागजात से लगाया जा सकता है। पूरा पश्चिम बंगाल जानता है कि पार्थ चटर्जी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सबसे भरोसेमंद मंत्री हैं। यही वजह है कि पार्थ को पार्टी का महासचिव भी बनाया गया। जब पार्थ चटर्जी की महिला मित्र से इतनी संपत्ति मिली है तो फिर ममता सरकार में फैले भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह तो सिर्फ शिक्षा विभाग का हाल है। खान, पुलिस, राजस्व, नगरीय विकास, ग्रामीण विकास, आबकारी पीडब्ल्यूडी आदि विभागों में फैले भ्रष्टाचार की स्थिति का आकलन किया जा सकता है। पश्चिम बंगाल के गत विधानसभा चुनाव में यह आरोप लगा कि सरकार में बैठे मंत्री अफसर और टीएमसी के नेता कटमनी यानी रिश्वत वसूलते हैं, लेकिन बंगाल की जनता ने ऐसे आरोपों को दरकिनार कर ममता बनर्जी को लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनवाया। यह सही है कि कोई 13 वर्ष पहले जब ममता ने कांग्रेस छोड़ कर टीएमसी बनाई थी, तब उनकी छवि एक जुझारू और मेहनतकश महिला की थी, इसलिए उन्होंने 25 वर्षों से काबिज कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को बंगाल से उखाड़ फेंका। तब यह माना गया कि ईमानदारी देखने को मिलेगी, लेकिन अर्पिता मुखर्जी के घरों से मिली अकूत संपत्ति से पता चलता है कि अब ममता बनर्जी की छवि भी बदल गई है। यह बात किसी के भी गले नहीं उतरेगी कि शिक्षा विभाग में फैले भ्रष्टाचार की जानकारी ममता बनर्जी को नहीं थी। मंत्रियों पर निगरानी के लिए ममता ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को नियुक्त कर रखा है। अभिषेक को सब पता है कि कौन मंत्री कितनी कट मनी वसूल रहा है। कांग्रेस की तरह टीएमसी भी परिवारवादी पार्टी है। टीएमसी में भ ममता और उनके भतीजे अभिषेक ही सर्वेसर्वा हैं। ममता और अभिषेक के बाद टीएमसी में कोई सुनवाई नहीं है। यदि ममता और भतीजे को खुश कर लिया जाए तो अर्पिता मुखर्जी के घरों पर करोड़ों रुपया नकद और सोना-चांदी रखा जा सकता है।

भाजपा नेताओं को भी पकड़ो:
देश के भ्रष्ट राजनेताओं पर इन दिनों सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों ने शिकंजा कस रखा है। भ्रष्टाचार करने वाले कई राजनेता जेल में बंद हैं तो कईयों से पूछताछ का दौर जारी है। चूंकि ऐसे भ्रष्टाचार राजनेताओं में ज्यादातर विपक्षी दलों के हैं, इसलिए आरोप लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। लेकिन कोई भी भ्रष्ट नेता अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब नहीं दे रहा है। पार्थ चटर्जी जैसे मंत्री की महिला मित्र के घरों से इतनी संपत्तियां मिल रही है, फिर भी केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगाए जा रहे हैं। यदि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए कर रही है तो फिर विपक्ष को भी मौका नहीं छोड़ना चाहिए। राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार हैं। भ्रष्टों को पकडऩे के लिए राज्यों में भी एसीबी जैसी एजेंसियां हैं। अच्छा हो कि विपक्षी दलों की सरकार भ्रष्टाचार करने वाले भाजपा नेताओं को भी पकड़े। भ्रष्टाचार करने वाले भाजपा नेताओं को पकड़ने से विपक्षी सरकारों को कोई नहीं रोक रहा है। 

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Wednesday 27 July 2022

गांधी परिवार से ईडी की पूछताछ पर आखिर कांग्रेस का विरोध क्यों?मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी राजस्थान छोड़कर दिल्ली में ही जमे हुए हैं।आखिर गुलाम नबी आजाद को भी साथ लाना पड़ा। आजाद ने बीमार सोनिया से लंबी पूछताछ पर एतराज जताया।

27 जुलाई को ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से पूछताछ की। इससे पहले दो बार की पूछताछ हो चुकी है। सोनिया गांधी के पुत्र और कांग्रेस संगठन में जान फूंकने में जुटे राहुल गांधी से भी पिछले दिनों 50 घंटे की पूछताछ हुई है। दोनों ही मौकों पर कांग्रेस धरना प्रदर्शन कर रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो अपना राजस्थान छोड़कर दिल्ली में ही जमे हुए हैं। पिछली बार भी जब राहुल गांधी से पांच दिनों तक पूछताछ हुई थी, तो सीएम गहलोत 10 दिनों तक दिल्ली में ही रहे। इस बार भी सोनिया गांधी से पूछताछ के मौके पर गहलोत 25 जुलाई से ही दिल्ली में हैं। असल में गांधी परिवार से पूछताछ के विरोध में आंदोलन की रणनीति गहलोत ही बना रहे हैं। गांधी परिवार की नीतियों का विरोध करने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को भी गहलोत की पहल पर ही 27 जुलाई को प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित रखा। गहलोत यह दिखाना चाहते हैं कि गांधी परिवार के साथ सभी कांग्रेसी खड़े हैं। गांधी परिवार से पूछताछ के विरोध में कांग्रेस जो देशव्यापी आंदोलन कर रही है, उससे अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही। गांधी परिवार की ही सदस्य श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा प्रभार वाले उत्तर प्रदेश से भी बड़े विरोध की खबरें नहीं आ रही है। चूंकि दिल्ली में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद मौजूद है, इसलिए राजस्थान के कार्यकर्ता मौजूद हैं। यदि पहचान की जाए तो दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान दिल्ली से ज्यादा राजस्थान के कार्यकर्ता और नागरिक मिलेंगे। राजस्थान में गहलोत के नेतृत्व में ही कांग्रेस की सरकार चल रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन ऐसे आंदोलन और विरोध जनता के हितों के लिए होने चाहिए। यानी किसी जन समस्या को लेकर विरोध होना चाहिए। लेकिन सब जानते हैं कि कांग्रेस तो गांधी परिवार के सदस्यों से ईडी की पूछताछ के विरोध में प्रदर्शन कर रही है। असल में प्रवर्तन निदेशालय को यह जानना है कि दो हजार करोड़ रुपए की संपत्ति वाले नेशनल हेराल्ड अखबार के मालिकाना हक को गांधी परिवार के सदस्यों के नाम क्यों और किस तरह हस्तारित किया गया? इतने बड़े बदलाव में वित्तीय नियमों का खुला उल्लंघन किया गया। जो जमीन सरकार से रियायती दर पर ली गई, उसे गांधी परिवार ने अपने नाम क्यों करवाया? क्या जांच एजेंसियों को जानकारी एकत्रित करने का भी हक नहीं है? जबकि इसी मामले में गांधी परिवार के सदस्य अदालत से जमानत पर हैं। असल में जब दो हजार करोड़ रुपए की संपत्ति का मालिकाना हक बदला गया, तब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। तब सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन थी। तब किसी ने भी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि देश की कोई जांच एजेंसी सोनिया गांधी से पूछताछ करने की हिम्मत करेगी। ब भले ही सपने में भ नहीं सोचा गया हो, लेकिन आज हकीकत में सोनिया गांधी से पूछताछ हो रही है। कांग्रेस के नेता भले ही इस पूछताछ को राजनीति से जोड़ रहे हों, लेकिन यह प्रकरण वित्तीय अपराध का है, जिसमें आरोपियों का पक्ष जानना जरूरी है। ईडी तो सिर्फ पक्ष जानने के लिए गांधी परिवार के सदस्यों को बुला रही है। कांग्रेसियों के आंदोलन में सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी भी शामिल हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस संगठन में जान फूंकने के लिए राहुल काफी मेहनत कर रहे हैं। भले ही उन्हें सफलता नहीं मिल रही हो, लेकिन राहुल गांधी के प्रयास लगातार जारी हैं। कांग्रेस में आज भी महत्वपूर्ण निर्णय राहुल गांधी ली लेते हैं।
 
आजाद का एतराज:
सीएम गहलोत की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ पर एतराज जताया। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में राजा महाराजाओं के बीच जब युद्ध होते थे, तब भी बीमार आदमी और महिला पर हाथ उठाने की मनाही थी। आजाद ने कहा कि सोनिया गांधी एक महिला है और पिछले कुछ दिनों से लगातार बीमार चल रही हैं। ऐसे में ईडी को सोनिया से लंबी और थकाने वाली पूछताछ नहीं करनी चाहिए। आजाद ने यह भी कहा कि जब सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी से पचास घंटे की पूछताछ हो चुकी है तब सोनिया गांधी से पूछताछ का कोई तुक नहीं है। उन्होंने कहा कि नेशनल हेराल्ड प्रकरण से जुड़े सारे दस्तावेज ईडी और अन्य जांच एजेंसियों के पास पहले से ही मौजूद हैं। 

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अयोध्या में राम मंदिर के बनने और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने पर इतनी चिढ़ क्यों?

महबूबा मुफ्ती सहित देश के कई नेताओं ने रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति के कार्यकाल पर प्रतिकूल टिप्पणी की है। ऐसे नेताओं का कहना है कि कोविंद ने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भाजपा के एजेंडे को पूरा किया है। लेकिन ऐसे नेताओं ने यह नहीं बताया कि कोविंद ने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए क्या गैर संवैधानिक कार्य किया? मालूम हो कि कोविंद का पांच वर्ष का राष्ट्रपति का कार्यकाल 25 जुलाई को ही पूरा किया है। इसी के साथ द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति का पद संभाल लिया है। आमतौर पर कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर राष्ट्रपति के लिए इस तरह की टिप्पणी नहीं की जाती है, लेकिन महबूबा मुफ्ती जैसी नेता अपने चिढ़चिढ़ेपन को उजागर करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती हैं। भारत की जो संवैधानिक व्यवस्था है, उसमें राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सिफारिशों पर ही काम करता है। राष्ट्रपति के भाषण में भी यही कहा जाता है कि मेरी सरकार का यह निर्णय है। यही स्थिति राज्यों के राज्यपाल की होती है। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनकड़ के भले ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से टकराव की स्थिति रही हो, लेकिन सरकारी भाषण में तो धनकड़ को वो ही कहना पड़ता था जो ममता का मंत्रिमंडल तय करता था। सब जानते हैं कि रामनाथ कोविंद के 2017 से 2022 तक के राष्ट्रपति कार्यकाल में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के गठबंधन वाले एनडीए की सरकार रही। स्वाभाविक है कि कोविंद को मोदी सरकार की सिफारिशों पर काम करना था। पर कोई एजेंडे की बात नहीं है, बल्कि भाजपा के लोकसभा चुनाव में जो वादे किए उन्हें पूरा करने की बात है। भाजपा ने देशवासियों से वादा किया था कि सत्ता में आने पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण तथा जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया जाएगा। हालांकि अयोध्या में मंदिर निर्माण में संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्रपति की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन अनुच्छेद 370 को हटाने वाले सरकारी प्रस्ताव पर कोविंद ने राष्ट्रपति के तौर पर हस्ताक्षर किए। यह सही है कि यदि कोविंद हस्ताक्षर नहीं करते तो मोदी सरकार का निर्णय प्रभाव नहीं होता। महबूबा मुफ्ती खुद बताएं कि अनुच्छेद 370 को हटाने वाले बिल पर कोवङ्क्षद हस्ताक्षर क्यों नहीं करते? अनुच्छेद 370 को हटाना भाजपा का एजेंडा नहीं, बल्कि देश हित का फैसला है। अनुच्छेद 370 के कारण ही कश्मीरियों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। एक ओर जहां कश्मीरियों को अपने अधिकार नहीं मिले, वहीं जम्मू कश्मीर आतंकवाद की जड़ में रहा। वर्ष 2014 से पहले तक कश्मीर में सुरक्षाबलों पर किस तरह पत्थर फेंके जाते थे, यह किसी से छिपा नहीं है। अब श्रीनगर के लाल चौक पर भी कोई भारतीय तिरंगा लेकर खड़ा हो सकता है। कश्मीर अब फिर से पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया है। इससे कश्मीरियों की आर्थिक स्थिति भी सुधरी है। महबूबा मुफ्ती जैसे नेता कुछ भी कहें, लेकिन अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने से करोड़ों देशवासी गौरवान्वित हैं। जहां तक रामनाथ कोविंद का सवाल है तो सब जानते हैं कि वे बेहद गरीब परिवार में जन्मे। उनके गांव की झोंपड़ी भी बरसात का पानी टपकता था। क्या ऐसे व्यक्ति का राष्ट्रपति बनना कम बात है। कोविंद ने राष्ट्रपति के तौर पर न केवल संविधान का संरक्षण किया बल्कि देश को मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महबूबा पाकिस्तान का समर्थन करती हैं। 

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सोनिया गांधी से पूछताछ के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपियों से पूछताछ और गिरफ्तार करने का अधिकार।राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने ही कहा था कि सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला दे।

27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि मनी लॉन्ड्रिंग के आपराधिक मामलों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को आरोपियों से पूछताछ और गिरफ्तार करने का अधिकार सही है। कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है और वर्ष 2018 में इस कानून में जो संशोधन हुए वह भी सही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ईडी मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में राजनेताओं के साथ साथ बैंक घोटाले बाजों से भी जांच पड़ताल और गिरफ्तारी का दौर जारी रखेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह महत्वपूर्ण फैसला तब आया है, जब नेशनल हेराल्ड की 2 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के हस्तांतरण के प्रकरण में ईडी के अधिकारी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछताछ कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि कोर्ट का फैसला आज ही आना चाहिए। गहलोत ने केंद्र सरकार पर ईडी के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 242 याचिकाएं दाखिल की गई थी। अधिकांश याचिकाएं वित्तीय घोटाला करने वाले राजनेताओं की ओर से दायर करवाई गई। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम की याचिका भी शामिल है। इन याचिकाओं में कहा गया कि प्राथमिकी दर्ज किए बिना ईडी आरोपियों को पूछताछ के लिए बुलाता है फिर उसकी गिरफ्तारी कर ली जाती है। गिरफ्तारी से पहले आरोप के कोई दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं करवाए जाते। याचिकाओं में ईडी द्वारा संपत्तियों को जब्त करने को भी चुनौती दी गई। मौजूदा समय में ईडी देश भर में करीब 3 हजार मामलों की जांच पड़ताल कर रही है। यह ऐसे मामले में जिन में इनकम टैक्स, सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियों ने एफआईआर दर्ज की हे। संबंधित जांच एजेंसियों की जानकारी और जुटाए गए सबूतों के आधार पर ही ईडी आरोपियों को पूछताछ के लिए बुलाती है। जरूरी होने पर पूछताछ के दौरान ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसमें आरोपियों को अदालत से अग्रिम जमानत करने का अवसर भी नहीं मिलता है। जानकार सूत्रों के देश में हुए वित्तीय घोटालों पर अंकुश लगाने के लिए ही वर्ष 2018 में कानून में संशोधन किया गया। इसी के बाद प्रवर्तन निदेशालय को अनेक अधिकार प्राप्त हुए। जिन राजनेताओं ने बेनामी संपत्तियां अर्जित कर रखी थी, उन्हें ईडी ने न केवल गिरफ्तार किया बल्कि जेल भी भिजवाया। कानून की खामियां का फायदा उठाकर ही बैंकों में बड़े पैमाने पर घोटाले हुए। बेईमानी से अर्जित संपत्ति को प्रभावशाली लोगों ने सफेद कर लिया। ईडी अब ऐसे बेईमान व्यक्तियों खास कर राजनेताओं पर नकेल कस रही है। यही वजह रही कि ईडी के अधिकारों को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ईडी की कार्यवाही जारी रहेगी। 

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Monday 25 July 2022

अजमेर की समाचार पत्र विक्रेताओं की समस्याओं का समाधान होगा।वाजपेयी अध्यक्ष, कुशवाहा महामंत्री बने।

24 जुलाई को अजमेर समाचार पत्र विक्रेताओं की समन्वय समिति की एक सभा विजय लक्ष्मी पार्क में आयोजित की गई। इस सभा में शहर के प्रमुख समाजसेवी और अखबार प्रबंधन के प्रतिनिधियों ने समाचार पत्र विक्रेताओं की समस्याओं के समाधान का भरोसा दिलाया। सभी ने माना कि हर मौसम में घर घर अखबार पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण काम है, जिसे समाचार पत्र विक्रेता पूरी मेहनत के साथ कर रहे हैं। सभा में विक्रेताओं के प्रतिनिधियों ने आने वाली समस्याओं को रखा। अंतर्राष्ट्रीय खेल अधिकारी धनराज चौधरी, समाजसेवी सुबोध जैन, विजय गुप्ता, हरीश गिदवानी, सुभाष काबरा आदि ने समाचार पत्र विक्रेताओं की समस्याओं के सहयोग करने का भरोसा दिलाया। सभी समाजसेवियों ने कहा कि विक्रेताओं के परिवार के सदस्यों की उच्च शिक्षा के खर्च में सहयोग किया जाएगा, विक्रेताओं के अल सुबह अंधेरे में अखबार बांटने की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए लायंस क्लब अजमेर शौर्य की ओर से रेडियम वाली जैकेट दी गई। विक्रेताओं की सभा में क्लब की निर्देशक, जागृति केवलरमानी, सुशीला तंवर, सुनीता शर्मा, श्रीमती सीमा ने भरोसा दिलाया कि भविष्य में भी सहयोग किया जाता रहेगा। इसी प्रकार समाजसेवी हरीश गिद्वानी (पेन वाले) ने सभी समाचारपत्र विक्रेताओं को बरसाती उपलब्ध करवाने की घोषणा की। समाजसेवी गिरीश बासानी ने भी विक्रेताओं को उपहार दिए। सभा में एडवोकेट देवेंद्र सिंह शेखावत ने विक्रेताओं को उनके अधिकारों की जानकारी दी व शेखावत ने कहा कि यदि विक्रेताओं की एकता बनी रहती है तो राज्य एवं केंद्र सरकार की अनेक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लिया जा सकता है।
 
वाजपेयी अध्यक्ष और कुशवाहा महामंत्री:
समाचार पत्र विक्रेताओं की सभा में चुनाव भी संपन्न हुए। सर्वसम्मति से हुए चुनावों में अध्यक्ष अश्वनी वाजपेयी, महामंत्री ओम प्रकाश कुशवाहा और कोषाध्यक्ष राजेश मीणा को चुना गया। इसके साथ ही इन तीनों पदाधिकारियों को समिति के अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया। समिति की कार्यकारिणी में निम्न को सदस्य बनाया गया है, गंगाधर टिकमानी, गौरव कश्यप, कमलेश, किशन गोपाल, नरपत, राधेश्याम, रमेश चंद्र शर्मा, संजय शर्मा, शंकर झालीवाल, योगेश उबाना, अश्विनी, राधेश्याम, शोभाराज, गोपाल चौहान, युवराज, अनिल टांक, राजेंद्र कच्छावा, प्रेम विनायक, मनोहर, खुशाल साहू, अनिल मेहरा, विजय गोयल, रविंद्र चौहान, विजय साहू, ब्रिजेश खारोल, लक्की, महेंद्र यादव व मुकेश गुर्जर है। समिति के मुख्य विधि सलाहकार देवेंद्र सिंह शेखावत और विधि सलाहकार हर्षित मित्तल होंगे। सभा में समिति को रजिस्टे्रशन करवाने का भी निर्णय लिया।
 
अखबार प्रबंधन के प्रतिनिधि भी उपस्थित:
समाचार पत्र विक्रेताओं की सभा में राजस्थान पत्रिका के अजमेर संस्करण के संपादक अनिल कैले, शाखा प्रबंध नरेश बंसत, प्रसार प्रभारी धर्मेन्द्र शमी, दैनिक भास्कर के ऑपरेशन हैड पंकज माथुर और उनकी टीम के सदस्य उपलब्ध रहे। अखबार प्रबंधन के प्रतिनिधियों ने भी समस्याओं के समाधान में हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। 

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दरगाह दीवान को सालाना सवा दो करोड़ रुपए नजराने के दिए जाने पर अब कानूनी राय ली जाएगी।ख्वाजा साहब की दरगाह के चढ़ावे पर फिर विवाद।p

अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में आने वाले चढ़ावे की राशि को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन को नजराने के रूप में प्रतिवर्ष जो सवा दो करोड़ रुपए की राशि दी जा रही है उस पर कुछ खादिमों ने कानूनी आपत्तियां दर्ज करवाई है। इन आपत्तियों को देखते हुए ही अंजुमन की एक बैठक बुलाई जा रही है। इस बैठक में दरगाह दीवान को दी जाने वाले नजराने की राशि पर निर्णय लिया जाएगा।  कानून विशेषज्ञों की राय लेकर नजराना राशि रोकने पर निर्णय होगा। चिश्ती ने बताया कि आगामी 12 अगस्त को दीवान को सवा दो करोड़ रुपए की राशि दी जानी है। इस तिथि से पहले पहले निर्णय ले लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार दरगाह दीवान ने दरगाह में अपने पद को लेकर न्यायालय की शरण ली थी। लेकिन यह कानूनी विवाद दरगाह में आने वाले चढ़ावे तक पहुंच गया। इस मामले में अंजुमन के पूर्व पदाधिकारियों की क्या भूमिका रही इस संबंध में भी खादिम समुदाय के समक्ष तथ्य रखे जाएंगे। उन्होंने कहा कि खादिम समुदाय जो निर्णय करेगा वही अंतिम होगा।
 
नजराना रोकने की मांग:
दरगाह के खादिम और सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार पीर नफीस मियां चिश्ती ने अंजुमन के सचिव को एक पत्र लिखकर दरगाह दीवान को दी जाने वाली नजराने की राशि रोकने की मांग की है। सचिव को लिखे पत्र में बताया गया है कि वर्ष 1933 में तत्कालीन दीवान आले रसूल की डिग्री और मौजूदा दीवान जैनुअल आबादी के न्यायालय में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के प्रकरण में वे स्वयं पक्षकार है। 13 नवंबर, 2013 को राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप दरगाह कमेटी (केंद्र सरकार द्वारा संचालित) को रिसीवर नियुक्त किया था। इस आदेश के अनुरूप ही दरगाह परिसर में पीले रंग की पेटियां लगाई गई। ताकि आने वाले जायरीन नजराना राशि डाल सके। पत्र में बताया गया कि दरगाह दीवान और खादिमों की संस्था अंजुमन की ओर से जो समझौता न्यायालय में प्रस्तुत किया गया, उसे आज तक भी न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया है। समझौता किन बिंदुओं पर हुआ इसकी जानकारी पक्षकार होते हुए भी मुझे नहीं दी गई है। दरगाह दीवान को मौजूदा समय में जो सवा दो करोड़ रुपए की राशि प्रतिवर्ष दी जा रही है, उसका आदेश किसी भी न्यायालय ने नहीं दिया है। जब राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश से दरगाह परिसर में पेटियां लगाकर चढ़ावे को एकत्रित किया जा रहा है, तब दीवान को एकमुश्त प्रतिवर्ष सवा दो करोड़ रुपए की राशि देना सही नहीं है। पीर नफीस मियां चिश्ती ने कहा कि दरगाह दीवान को दी जाने वाली राशि खादिम समुदाय की है। यदि न्यायालय ने दरगाह दीवान मुकदमा हार जाते हैं, तब इतनी बड़ी राशि की रिकवरी कैसे होगी। पत्र में भविष्य में दरगाह दीवान को नजराना राशि न दिए जाने की मांग की गई है। इस संबंध में जब दरगाह दीवान के प्रतिनिधि और उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती से पक्ष रखने का आग्रह किया गया तो उन्होंने कहा कि यह कानूनी मामला है, इसलिए मैं अभी कुछ भी नहीं कह सकता हंू। 

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देश का गरीब व्यक्ति मुझ में अपना प्रतिबिंब देख सकता है।राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने सबको कर्तव्य निभाने की भी सीख दी।लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करती हैं देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति।

25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली।  द्रौपदी मुर्मू  पहली ऐसी राष्ट्रपति हैं जिनका जन्म देश की आजादी के बाद हुआ है। मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 का है। जबकि देश की 1947 में आजादी मिली। राष्ट्रपति बनते ही मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि देश का गरीब दलित, पिछड़ा आदिवासी वर्ग का हर व्यक्ति मुझ में अपना प्रतिबिंब देख सकता है। अब कहा जा सकता है कि देश का गरीब से गरीब व्यक्ति भी राष्ट्रपति बन सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक सबका का साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की बात करते रहे, लेकिन अब नई राष्ट्रपति मुर्मू ने सबका कर्तव्य शब्द भी जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि अब सबको अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत है। मेरा यह सौभाग्य है कि मैं आजादी के 75वें वर्ष में राष्ट्रपति बन रही हंू। हमारे सामने आगामी 25 वर्षों का लक्ष्य है। यह भारत के लोकतंत्र की अहमियत है कि एक गरीब व्यक्ति भी राष्ट्रपति बनने का सामना देख सकता है। मैं उड़ीसा के आदिवासी क्षेत्र के छोटे से गांव से निकल कर यहां तक पहुंची हंू। हमारे गांव की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मैं कॉलेज जाने वाली गांव की पहली लड़की थी। राष्ट्रपति बनना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है बल्कि यह भारत के लोकतंत्र की उपलब्धि है। देश के विकास और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की भूमिका की चर्चा करते हुए मुर्मू ने कहा कि कोरोना काल में भारत में न केवल स्वयं को संभाला बल्कि दुनिया के जरूरतमंद देशों की मदद भी की। आत्मनिर्भर भारत की ही पहचान है कि अब तक कोरोना की 200 करोड़ डोज लोगों को लगाई जा चुकी है।
 
एक मिनट में बदल गई कुर्सी:
शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी मौजूद रहे। समारोह की शुरुआत में अशोक स्तंभ वाली राष्ट्रपति की कुर्सी पर कोविंद बैठे थे। लेकिन शपथ लेते ही द्रौपदी मुर्मू कोविंद वाली राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठी और कोविंद को पास वाली कुर्सी पर बैठना पड़ा। यानी मात्र एक मिनट में कुर्सी बदल गई। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित रहे, लेकिन परंपरा के अनुसार प्रधानमंत्री भी दर्शक दीर्घा में बैठे।
 
लहसुन-प्याज का सेवन नहीं:
जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों के खानपान के बारे में सभी को जानकारी है, लेकिन द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी आदिवासी महिला हैं जो लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करती हैं। हालांकि बदलते माहौल में अब खानपान का कोई महत्व नहीं है, लेकिन कहा जा सकता है कि द्रौपदी मुर्मू सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। 


S.P.MITTAL BLOGGER (25-07-2022)

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हाईकमान का डंडा पड़ा होगा, इसलिए वसुंधरा राजे कांग्रेस सरकार द्वारा बुलाई बैठक में नहीं आईं।क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के द्वारा पूर्व महिला मुख्यमंत्री के लिए इस तरह की भाषा उचित है?आखिर इतना चिढ़ चिढ़ा पन क्यों?

सब जानते हैं कि भाजपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वसुंधरा राजे राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। राजे केंद्र में मंत्री भी रही हैं। देश के चुनिंदा राजनेताओं में वसुंधरा राजे का भी नाम आता है। वसुंधरा राजे के राजनीतिक कद को देखते हुए ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) पर आयोजित सरकारी बैठक में राजे को भी बुलाया, लेकिन किन्हीं कारणों से राजे इस बैठक में शामिल नहीं हो सकीं। राजे की अनुपस्थिति पर गहलोत का कहना रहा कि भाजपा हाईकमान का डंडा पड़ा होगा, इसलिए राजे बैठक में नहीं आईं। सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री गहलोत को एक महिला पूर्व मुख्यमंत्री के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए? गहलोत स्वयं को महात्मा गांधी का अनुयायी होने का दावा करते हैं और फिर एक महिला सीएम के लिए डंडा पड़ने जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह सीएम गहलोत की कथनी और करनी में अंतर नहीं है? सवाल यह भी है कि गहलोत इतना चिढ़ चिढ़ा पन क्यों दिखा रहे हैं? राजनीति में तो ऐसा होता ही रहता है। केंद्र सरकार जब विभिन्न मुद्दों पर सर्वदलीय बैठक बुलाती है तो सभी बैठकों में सोनिया गांधी, राहुल गांधी उपस्थित नहीं होते। अशोक गहलोत यह तो अपेक्षा करते हैं कि उनके द्वारा बुलाई सरकारी बैठक में वसुंधरा राजे उपस्थित हो, लेकिन जब प्रधानमंत्री के लिए बेशर्म जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तब गहलोत सोचते नहीं हैं। जब गहलोत देश के प्रधानमंत्री को बेशर्म कह रहे हों, तब वसुंधरा राजे कांग्रेस की सरकारी बैठक में कैसे जा सकती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ज्यों ज्यों विधानसभा चुनाव निकट आ रहे हैं, त्यों त्यों गहलोत का चिढ़ चिढ़ा पन बढ़ता जा रहा है। गहलोत भी इस बात का आभास कर रहे हैं कि कांग्रेस से जनता दूर होती जा रही है। गहलोत की तुष्टीकरण की नीति से आम लोग नाराज हैं। यह तीसरा अवसर है, जब गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। सब जानते हैं कि जब जब भी कांग्रेस ने गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा, तब तब हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को एक बार 56 व दूसरी बार मात्र 21 सीटें मिली। प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट इस मुद्दे की ओर कई बार ध्यान आकर्षित कर चुके हैं। हालांकि 2018 का चुनाव कांग्रेस ने सचिन पायलट के नेतृत्व में भी लड़ा था। लेकिन मौजूदा समय में राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार में पायलट की कोई भूमिका नहीं है। गहलोत तो पायलट की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते हैं। राजस्थान में अगले वर्ष ही चुनाव होने हैं। 

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Sunday 24 July 2022

जब राजनीतिक दखल नहीं होता है तो रीट की परीक्षा शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो जाती है।15 लाख अभ्यर्थियों वाली परीक्षा को शांतिपूर्ण संपन्न करवाने के लिए राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण मंत्री और सचिव मेघना चौधरी को शाबाशी मिलनी चाहिए।

24 जुलाई को राजस्थान भर में रज्य स्तरीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गई। इस परीक्षा में करीब 15 लाख अभ्यर्थियों ने भाग लिया। किसी भी परीक्षा केंद्र अथवा प्रश्न पत्र रखने वाले स्थान से प्रश्न पत्र आउट होने की खबर नहीं है। शांतिपूर्ण परीक्षा संपन्न होने से 15 लाख अभ्यर्थियों के साथ साथ उनके परिवार के 50 लाख सदस्यों ने भी राहत की सांस ली है। रीट की शांतिपूर्ण परीक्षा  के लिए परीक्षा का आयोजन करने वाले राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण मंत्री (आईएएस) और सचिव मेघना चौधरी (आरएएस) को शाबाशी मिलनी चाहिए। दोनों अधिकारियों के आपसी तालमेल का ही नतीजा रहा कि बिना शोर गुल के 15 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा शांति के साथ हो गई। भले ही ये दोनों अधिकारी पिछले 10 दिनों से 24 में से मात्र 5 घंटे ही सोए हों। असल में इन दोनों अधिकारियों की काबिलियत की इसलिए चर्चा हो रही है कि गत बार हुई रीट परीक्षा का प्रश्न पत्र जयपुर के शिक्षा संकुल से आउट हो गया था, फलस्वरूप परीक्षा को रद्द करना पड़ा। जांच एजेंसियों ने माना कि प्रश्न पत्र 10-10 लाख रुपए में बिका। प्रदेश की जनता को याद होगा कि पिछली रीट परीक्षा में राजनीतिक दखल जबर्दस्त था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही नहीं बल्कि तत्कालीन स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा, तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग और खुद बोर्ड अध्यक्ष डीपी जारोली श्रेय लेने की होड़ में शामिल थे। ऐसा लग रहा था कि कोई प्रतियोगी परीक्षा न होकर, सत्तारूढ़ दल का उत्सव हो रहा है। नकल रोकने का बहाना कर दो दिन पूरे प्रदेश में नेटबंदी भी की गई। यहां तक की परीक्षा की तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वीडियो कॉन्फ्रेंस भी की। बोर्ड अध्यक्ष जारोली ने भी उछल कूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े कॉलेज शिक्षकों की भी सेवाएं ली गई। हालांकि परीक्षा की मुख्य जिम्मेदारी स्कूली शिक्षा मंत्री डोटासरा की थी, लेकिन रीट की तैयारियों में तनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग भी कूद पड़े। चूंकि बहुत ज्यादा घालमेल थी, इसलिए रीट का प्रश्न पत्र जयपुर से आउट हो गया। बाद में सरकार को डीपी जारोली को बोर्ड के अध्यक्ष पद से भी बर्खास्त करना पड़ा। जारोली और सुभाष गर्ग ने ही राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े शिक्षकों की एंट्री रीट परीक्षा में करवाई थी। लेकिन इस बार न तो राजीव गांधी स्टडी सर्किल की एंट्री हुई और न ही प्रदेश भर में नेटबंदी करनी पड़ी। मौजूदा स्कूली शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने भी परीक्षा को लेकर कोई बयानबाजी नहीं की। सीएम गहलोत ने भी परीक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह बोर्ड अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण मंत्री और सचिव मेघना चौधरी पर सौंपी दी। परीक्षा में कोई राजनीतिक दखल नहीं होने का नतीजा ही है कि 15 लाख अभ्यर्थियों ने शांति के साथ रीट की परीक्षा दे दी। मालूम हो कि गत बार परीक्षा रद्द होने के बाद वरिष्ठ आईएएस लक्ष्मीनारायण मंत्री को बोर्ड का अध्यक्ष और वरिष्ठ आरएएस मेघना चौधरी को सचिव नियुक्त किया था। मेघना चौधरी भाजपा शासन में भी दो बार रीट की परीक्षा करवा चुकी हैं। मेघना के अनुभव को देखते हुए ही कांग्रेस सरकार ने भी मेघना को बोर्ड का सचिव नियुक्त किया। मंत्री और मेघना की नियुक्ति तब हुई जब प्रदेश भर में शिक्षा बोर्ड की थू-थू हो रही थी। असल में मेघना चौधरी को अध्यात्म पर भी बहुत भरोसा है। अपने अध्यात्म के बल पर भी मेघना हर चुनौती को पार कर जाती है। मेघना ने भी मीडिया में कोई बयानबाजी किए बगैर चुपचाप अपना काम किया और परीक्षा संपन्न करवा दी। शांतिपूर्ण तरीके से परीक्षा संपन्न होने से राज्य सरकार और बाद में खुद सीएम गहलोत ने भी राहत की सांस ली। रीट परीक्षा के परिणाम के बाद करीब 30 हजार युवाओं को शिक्षक की नौकरी मिल सकेगी। 

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Saturday 23 July 2022

अजमेर की नाग पहाड़ी पर डाले जा रहे है सीड बम। पहाड़ी पर लगेंगे फल और छायादार वृक्ष।अजमेर के समाचार पत्र विक्रेताओं की सभा 24 जुलाई को

अजमेर की नाग पहाड़ी पर फल और छायादार वृक्षों के लिए इन दिनों बरसात के मौसम में सीड बम डाले जा रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण और पहाड़ों को बचाने के लिए यह कार्य हरिभाऊ उपाध्याय नगर विकास समिति (विस्तार) और आशियाना-पक्षी पर्यावरण एवं जीव संरक्षण समिति की ओर से किया जा रहा है। समिति के संरक्षक सत्य किशोर सक्सेना, डॉ. रमेश अग्रवाल, संस्थापक सुमनेश माथुर, अध्यक्ष संदीप धाबाई और उपाध्यक्ष अजय भाकर ने बताया कि 11 हजार सीड बम तैयार किए गए हैं। उपजाऊ मिट्टी से तैयार सीड बम को एनसीसी और अन्य स्वयं सेवी संगठनों के कार्यकर्ता पहाड़ी पर सुरक्षित स्थानों पर रखेंगे। सीड बमों को नि:शुल्क दिया जा रहा है। चूंकि सीड बम बरसात के मौसम में रखे जा रहे हैं, इसलिए आने वाले दिनों में नाग पहाड़ पर करंज, आम, जामुन, सीताफल, ईमली, सागवान, कुमटा, चुरेल, बिल्वपत्र, सरेप, अर्जुन, जंगल जलेबी आदि के पेड़ देखने को मिलेंगे। इस संबंध में और अधिक जानकारी संस्था के अध्यक्ष संदीप धाबाई से मोबाइल नंबर 9413828292 पर ली जा सकती है।
साधारण सभा 24 को:
अजमेर के समाचार पत्र विक्रेताओं की साधारण सभा 24 जुलाई को प्रात: 10 बजे विजय लक्ष्मी पार्क पर रखी गई है। समाचार पत्र विक्रेता समन्वय समिति की ओर से आयोजित इस सभा में घर घर अखबार पहुंचाने वाले व्यक्तियों की समस्याओं और उनके निदान पर विचार विमर्श किया जाएगा। समाचार पत्र विक्रेता के परिवारों के सदस्यों की उच्च शिक्षा में आने वाली परेशानियों पर भी विचार होगा। इसी प्रकार प्रत्येक विक्रेता को मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना से जोडऩे और सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए भी जानकारी दी जाएगी। इसी सभा में समाचार पत्र विक्रेताओं के संघ के चुनाव भी करवाए जाएंगे। सभा स्थल पर ही सामूहिक भोज का आयोजन भी किया जाएगा। समन्वय समिति के सदस्यों ने सभी अधिकृत विक्रेताओं से सभा में भाग लेने की अपील की है। एडवोकेट देवेन्द्र सिंह शेखावत ने बताया कि सभा में विक्रेताओं को उनके विधिक अधिकारों की जानकारी भी दी जाएगी। 

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राजस्थान में कांग्रेस सरकार बचाने की कीमत बाबा विजयदास को अपनी जान गवां कर चुकानी पड़ी।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले ही कहा था कि सरकार को बचाने वाले विधायकों को ब्याज सहित भुगतान करुंगा। इसलिए अब वैध और अवैध खनन को नहीं रोका जा सकता।राज्यमंत्री जाहिदा खान के बेटे से लेकर खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया तक गंभीर आरोप।

हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से जुड़े राजस्थान के भरतपुर के गोवर्धन क्षेत्र के पहाड़ आदि बद्री और कनकाचल पर खनन कार्यों को रोकने की मांग को लेकर क्षेत्र के प्रमुख संत बाबा विजय दास ने गत 20 जुलाई को केरोसिन डालकर स्वयं को आग के हवाले कर दिया। बेहतर इलाज के लिए बाबा को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। जहां इलाज के दौरान 23 जुलाई की तड़के बाबा का निधन हो गया। बाबा को आत्मदाह इसलिए करना पड़ा कि पिछले डेढ़ वर्ष से हो रहे साधु संतों के आंदोलन की ओर अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार कोई सुध नहीं ले रही थी। डेढ़ वर्ष से पर्वतों को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन की सुध नहीं लेने के पीछे गहलोत सरकार की राजनीति मजबूरी रही। असल में इन्हीं धार्मिक पर्वतों पर गहलोत सरकार की राज्य मंत्री जाहिदा खान के बेटे और पहाड़ी पंचायत समिति के प्रधान साजिद खान के नाम भी दो लीज आवंटित हैं। मंत्री के बेटे को खनन में कोई परेशानी न हो इसलिए खान विभाग ने पर्वतों को वन विभाग को नहीं सौंपे। यदि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से जुड़े पर्वतों को वन विभाग को सौंप दिया जाता तो अपने आप खनन पर रोक लग जाती। रोक लगने के बाद साजिद खान जैसे प्रभावशाली व्यक्ति भी खनन कार्य अथवा क्रेशर नहीं लगा सकते थे। सवाल उठता है कि आखिर खान विभाग ने वन विभाग को पर्वतों क्यों नहीं सौंपे? इस सवाल का जवाब जुलाई 2020 में ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दे दिया था। सब जानते हैं कि प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट जब 18 विधायकों को लेकर दिल्ली चले गए थे, तब सीएम गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों को जयपुर और जैसलमेर की होटलों में बंद कर दिया था। इन्हीं होटलों में गहलोत ने कहा कि जो विधायक आज मेरे साथ हैं, उन्हें ब्याज सहित भुगतान करूंगा। कामा की विधायक जाहिदा खान भी गहलोत के साथ थीं। जब जाहिदा खान ने गहलोत की सरकार बचाई है तब साजिद खान को पर्वतों से खनन से कैसे रोका जा सकता है? ब्याज सहित भुगतान का मतलब यही तो होता है। जुलाई 2020 में गहलोत ने कहा था कि कांग्रेस के विधायकों को 35-35 करोड़ रुपए में खरीदा जा रहा है। हालांकि विधायकों को खरीदने के सबूत गहलोत ने आज तक नहीं दिए। लेकिन ब्याज सहित भुगतान के सबूत सबके सामने हैं। ब्याज सहित वसूलने वाले विधायक और उनके रिश्तेदार 35 करोड़ नहीं बल्कि 35 सौ करोड़ वसूल रहे हैं। सीएम गहलोत ने प्रमोद जैन उर्फ भाया इसलिए खनन मंत्री बना रखा है ताकि जाहिद खान जैसे विधायक ब्याज सहित वसूली कर सके। भाया तो खनन कार्यों के सरगना है। यह बात भाजपा के किसी नेता ने नहीं बल्कि कांग्रेस के विधायक भरत सिंह ने कही है। भरत सिंह का कहना है कि भाया सबसे भ्रष्ट मंत्री हैं, लेकिन फिर भी अशोक गहलोत ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर रखा है। भाया की करतूतों को लेकर भरत सिंह ने सीएम गहलोत को भी कटघरे में खड़ा किया है। भरत सिंह का कहना है कि यदि मेरे आरोप झूठे हैं तो प्रमोद जैन को मेरे खिलाफ मानहानि का दावा करना चाहिए। सीएम गहलोत माने या नहीं लेकिन सरकार बचाने की एवज में संबंधित विधायक सौ प्रतिशत की दर से ब्याज की वसूली कर रहे हैं। यही वजह है कि प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। जाहिद खान अकेली विधायक नहीं है बल्कि खनन कार्य में कई विधायक लगे हुए हैं। सरकार बचाने की असली कीमत तो बाबा विजय दास ने अपनी जान गवां कर दी है। क्या यही गांधीवादी चेहरे की असलियत है?

S.P.MITTAL BLOGGER (23-07-2022)
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Sunday 17 July 2022

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बताएं कि क्या उदयपुर में गर्दन काटने अजमेर में दरगाह से भड़काऊ नारे लगाने जैसी वारदातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण हो रही हैं?राजस्थान की बिगड़ी कानून व्यवस्था के लिए खुद गहलोत जिम्मेदार हैं।

जयपुर में 16 जुलाई को हुए विधिक सेवा प्राधिकरण के राष्ट्रीय सम्मेलन में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि देश के हालात बहुत खराब हैं। हालात सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्यार मोहब्बत, और भाईचारे की अपील देशवासियों से करनी चाहिए। पीएम मोदी देशवासियों से हिंसा नहीं करने का आग्रह भी करें। गहलोत ने यह बात तब कही जब सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के  15 और विभिन्न हाईकोर्ट के 75 जज बैठे हुए थे। इनमें देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना और केंद्रीय कानून किरण रिजिजू भी शामिल रहे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सीएम गहलोत को अपने विचार रखने का अधिकार है। लेकिन गहलोत को यह बताना चाहिए कि उदयपुर में कन्हैयालाल टेलर की गर्दन काटने, अजमेर में दरगाह से भड़काऊ नारे लगाने जैसी घटनाएं भी क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण हो रही हैं। राजस्थान पुलिस ने अपनी जांच में स्वयं माना है कि उदयपुर में कन्हैयालाल की गर्दन काटने वालों के तार पाकिस्तान के कट्टरपंथियों से जुड़े हैं। अजमेर, करौली, भीलवाड़ा, जोधपुर, अलवर आदि शहरों में जो साम्प्रदायिक फसाद हुए उन्हें भी सुनियोजित माना गया। कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। राजस्थान में जो कानून व्यवस्था बिगड़ रही है उसकी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री होने के नाते अशोक गहलोत की ही है। लेकिन सीएम गहलोत शांति के लिए देश के प्रधानमंत्री से अपील करना चाहते हैं, यानी अपनी जिम्मेदारी को प्रधानमंत्री पर डाल रहे हैं। गहलोत का कहना है कि नरेंद्र मोदी अपील करेंगे तो जनता पर उसका असर होगा। सवाल उठता है कि क्या अशोक गहलोत अपील करेंगे तो जनता पर असर नहीं होगा? राजस्थान में इन दिनों जो घटनाएं हो रही है उनको रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। जहां तक पीएम मोदी के अपील करने का सवाल है तो उन्होंने कभी भी हिंसा को बढ़ावा देने वाली बात नहीं कही है। पीएम मोदी ने हमेशा सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास और सबका प्रयास की बात कही है। जहां तक भाईचारे का संदेश का सवाल है तो पीएम मोदी ने हमेशा भाई चारे की बात पर ही बल दिया है। अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह के बाहर चाहे जैसे नारे लगे लेकिन पीएम मोदी ने दरगाह की परंपरा का हर वर्ष निर्वाह किया है। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स में प्रधानमंत्री पद की परंपरा को निभाते हुए मोदी ने न केवल चादर भिजवाई बल्कि प्यार मोहब्बत और भाईचारे का संदेश भी दिया। सीएम गहलोत को यह पता होना चाहिए कि हर वर्ष ख्वाजा साहब के उर्स में पीएम मोदी का साम्प्रदायिक सद्भावना और प्यार मोहब्बत वाला संदेश दरगाह में पढ़ा जाता है। अपने संदेश में पीएम मोदी इस बात को स्वीकार करते हैं कि देश दुनिया में सद्भावना के लिए ख्वाजा साहब के सिद्धांतों और शिक्षाओं की जरूरत है। समझ में नहीं आता कि सीएम गहलोत अब पीएम मोदी से क्या अपील करना चाहते हैं। अच्छा हो कि सीएम गहलोत राजस्थान में कानून तोडऩे वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करें। सीएम गहलोत यदि कानून का सख्ती से इस्तेमाल करेंगे तो न तो उदयपुर में किसी की गर्दन काटी जाएगी और न ही किसी धार्मिक स्थल से भड़काऊ नारे लगेंगे। हकीकत तो यह है कि राज्य सरकार ने जो तुष्टीकरण की नीति अपना रखी है उसकी वजह से राजस्थान में आए दिन गर्दन काटने की धमकियां मिल रही हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-07-2022)
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सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए ममता बनर्जी से संघर्ष करने के कारण जगदीप धनखड़ को एनडीए ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। चुनाव तीना तय।राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र सबक ले सकते हैं। जो अशोक गहलोत दिन भर मोदी-शाह को कोसते हैं, उन्हीं से अपनी पुस्तक का विमोचन करवाते हैं मिश्र।

अजमेर में मेरे जैसे कई लो मिल जाएंगे जो यह कह सकते हैं कि देश के भावी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से सीधी पहचान है। धनखड़ ने 1991 में अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1993 में धनखड़ अजमेर जिले के किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। यानी धनखड़ का अजमेर के लोगों से सीधा संबंध रहा है। अब जब धनखड़ को केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन ने उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है, तब अजमेर में भी उत्साह का माहौल है। मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि राजस्थान में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने धनखड़ को उम्मीदवार बनाया है। यानी राजस्थान के जाट समुदाय के मतदाता भाजपा को वोट देंगे। धनखड़ जाट समुदाय के हैं। धनखड़ को किसी जाति का प्रतीक मानना उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय होगा। असल में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद पर रहते हुए धनखड़ ने सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ जो संघर्ष किया, उसी का परिणाम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सहयोगी दलों के नेताओं ने धनखड़ को देश का उपराष्ट्रपति बनाने का निर्णय लिया। सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में गत वर्ष किन हालातों में ममता बनर्जी ने विधानसभा का चुनाव जीता। इस जीत के बाद बंगाल में कितनी मार काट मची , यह किसी से छिपा नहीं है। हिन्दुओं की बस्तियों में आग लगाना लोगों का नरसंहार किया गया। तब धनखड़ ने राजभवन से बाहर निकल सनातनियों की हिम्मत बधाई। राज्यपाल के पद पर रहते हुए धनखड़ ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था नहीं रही है। हालात इतने बिगड़े कि खुद धनखड़ की जान को खतरा हो गया। कई बार ऐसे मौके आए जब आक्रमणकारियों ने धनखड़ को घेर लिया। और कोई राज्यपाल होता तो कोलकाता का राजभवन छोड़कर दिल्ली भाग आता। जगदीप धनखड़ ने पश्चिम बंगाल में रहकर ही आक्रमणकारियों से संघर्ष किया। यदि धनखड़ जैसा धाकड़ राज्यपाल नहीं होता तो पश्चिम बंगाल में सनातनियों की ज्यादा हत्याएं होती। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने धनखड़ के हौसले पस्त करने के लिए हर हथकंडा अपनाया, लेकिन धनखड़ ने हिम्मत नहीं हारी। सनातन धर्म की रक्षा करने वाला कोई व्यक्ति यदि भारत का उपराष्ट्रपति बनता है तो यह देश के लिए गर्व की बात है। कहा जा सकता है कि जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बना कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन भावनाओं के अनुरूप निर्णय लिया है। उपराष्ट्रपति सरकारी बंगले तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसे राज्यसभा का संचालन भी करना होता है। मौजूदा समय में राज्यसभा में संयुक्त विपक्ष के मुकाबले में एनडीए के सांसदों की संख्या कम है। ऐसे में राज्यसभा को सुचारू चलाना चुनौतीपूर्ण काम है। जहां तक धनखड़ की जीत का सवाल है तो इसमें कोई संदेह नहीं है। लोकसभा में 545 में से एनडीए के 250 सांसद हैं। 100 सांसद राज्यसभा में है। ऐसे में धनखड़ की जीत तय है।
 
मिश्र ले सकते हैं सबक:
धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र सबक ले सकते हैं। एक और जगदीप धनखड़ जैसे राज्यपाल हैं जो सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए ममता बनर्जी से संघर्ष करते रहे तो दूसरी तरफ कलराज मिश्र जैसे राज्यपाल हैं जो मोदी शाह को कोसने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अच्छा राज्यपाल होने का सर्टिफिकेट लेने में लगे हैं। गहलोत जैसे मुख्यमंत्री से अपनी प्रशंसा करवाने के लिए कलराज मिश्र ने अपनी पुस्तक का विमोचन भी करवाया। दिनभर मोदी शाह को कोसने वाले अशोक गहलोत ने कई अवसरों पर राज्यपाल मिश्र की प्रशंसा की है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने विश्वविद्यालयों के कुलपति नियुक्त करने का अधिकार राज्यपाल से छीन लिया, जबकि कलराज मिश्र इस बात से खुश रहे कि उत्तर प्रदेश के कुछ चहेते शिक्षाविदों को राजस्थान में कुलपति बनाने की सिफारिश सीएम गहलोत ने कर दी। ममता बनर्जी ने तो धनखड़ को सरकारी प्लेन की सुविधा भी बंद कर दी, जबकि राजस्थान सरकार का प्लेन हमेशा मिश्र की सेवा में रहता है। मिश्र चाहे जितनी बार अपने गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश जाएं कोई पूछने वाला नहीं है। सनातन धर्म की रक्षा करने की जरुरत तो राजस्थान में भी है, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र तो अशोक गहलोत द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही सुख सुविधाओं में ही आनंदित है। मिश्र राज्यपाल के साधारण अधिकारों का भी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। 

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Saturday 16 July 2022

अजमेर के महत्त्वपूर्ण विभागों में आरएएस के पद खाली। जो नियुक्त हैं उन्हें तबादले का इंतजार।अधिकारियों के नहीं होने से प्रशासन शहरों के संग अभियान भी प्रभावित।

यूं तो अजमेर संभाग मुख्यालय है, लेकिन अजमेर के प्रमुख विभागों में आरएएस अधिकारियों के अधिकांश पद रिक्त हैं। जो अधिकारी नियुक्त हैं उन्हें भी अपने तबादले का इंतजार है। क्योंकि उन्हें एक ही पद पर दो-तीन वर्ष हो गए हैं। ऐसे में नियुक्त अधिकारियों की भी काम करने में रुचि नहीं है। राज्य सरकार ने जरूरतमंद व्यक्तियों को आवासीय पट्टा देने के लिए 15 जुलाई से प्रशासन शहरों के संग अभियान का तीसरा चरण शुरू कर दिया है। सरकार के इस अभियान को सफल बनाने में स्थानीय निकाय विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन अजमेर में नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिकरण में आरएएस का टोटा है। निगम में एक उपायुक्त का पद रिक्त है, जबकि प्राधिकरण में बीमारी की वजह से एक उपायुक्त अवकाश पर हैं। अवकाश पर जाने वाले उपायुक्त अशोक चौधरी की सेवानिवृत्ति निकट है,इसलिए वे अपने गृह जिले बाड़मेर में किसी पद पर नियुक्त होना चाहते हैं। चौधरी ने अपने तबादले के लिए कांग्रेस विधायकों से भी सिफारिश करवाई है। लेकिन इसके बावजूद भी उनका तबादला नहीं हो रहा है। प्राधिकरण के आयुक्त के पद पर आईएएस अक्षय गोदारा नियुक्त हैं। गोदारा को भी अपने तबादले का इंतजार है। सचिव के पद पर किशोर कुमार को भी दो वर्ष हो गए हैं। अजमेर में स्थानीय निकाय के उपनिदेशक का पद भी लंबे समय से रिक्त पड़ा है। जबकि प्रशासन शहरों के संग अभियान में उपनिदेशक के पद की महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रामीण क्षेत्र के विकास में जिला परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन पिछले आठ महीने से जिला परिषद के सीईओ का पद रिक्त है। अब तक एसीईओ को सीईओ का चार्ज दे रखा था, लेकिन एसीईओ मुरारी लाल वर्मा भी 1 जुलाई को रिटायर्ड हो गए। यानी अब दोनों पद रिक्त हैं। इसी प्रकार डीआईजी स्टाम्प और अतिरिक्त कलेक्टर द्वितीय का पद भी रिक्त पड़ा हुआ है। अतिरिक्त कलेक्टर प्रशासन के पद पर कैलाश शर्मा को कार्य करते हुए दो वर्ष से ज्यादा का समय हो गया है। कई आरएएस अधिकारियों के रिक्त पदों का अतिरिक्त चार्ज दे रखा है, जबकि ऐसे अधिकारी पहले ही काम के बोझ से दबे हुए हैं। अजमेर में राजस्व मंडल, राजस्थान लोक सेवा आयोग, बिक्री कर प्राधिकरण, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड आदि जैसे राज्य स्तरीय कार्यालय हैं। लेकिन यहां भी अनेक पद खाली पड़े हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक दृष्टि से अजमेर का कोई धणी धोरी नहीं है। पिछले लंबे समय से आरएएस की तबादला सूची का इंतजार किया जा रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की व्यस्तता के चलते सूची जारी नहीं हो रही है। 

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कांग्रेस मुख्यालय में मंत्री की जनसुनवाई से ज्यादा लोग तो मेरे घर पर समस्याओं के निदान के लिए आते हैं।फिर भी कांग्रेस कल्चर में फिट नहीं होने वाले विधायक मंत्री हैं और मैं पांच बार का विधायक बाहर हूं-रामनारायण मीणा।

राजस्थान के सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के असंतुष्ट बयानों को लेकर 15 जुलाई को फर्स्ट इंडिया न्यूज़ चैनल पर रात 8 बजे बिग फाइट के लाइव प्रोग्राम में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामनारायण मीणा, भाजपा विधायक रामलाल शर्मा तथा राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर मैंने भी भाग लिया। 15 जुलाई को जयपुर में कांग्रेस मुख्यालय पर सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढा ने जनसुनवाई की। जनसुनवाई के दौरान ही गुढा ने कहा कि मैं कांग्रेस सरकार में मंत्री तो हूं लेकिन मैं कांग्रेस कल्चर में फिट नहीं हंू। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्नेह के कारण मैं कांग्रेस को समर्थन दे रहा हंू। मालूम हो कि गुढ़ा बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। गुढा के इस बयान पर कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामनारायण मीणा ने अपनी पार्टी का पक्ष प्रभावी तरीके से रखा, लेकिन साथ ही कहा कि कांग्रेस मुख्यालय में मंत्री की जनसुनवाई से ज्यादा लोग तो मेरे निर्वाचन क्षेत्र के आवास पर अपनी समस्याओं के निदान के लिए आते हैं। जबकि मेरे पास तो मंत्री पद भी नहीं है। मीणा ने कहा कि मैं प्रदेश के किसी भी कोने में जाऊं। मेरे स्वागत के दो सौ लोग एकत्रित हो ही जाएंगे। मेरी लोकप्रियता प्रदेशभर में है और मैं 10-12 विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव जीतने की स्थिति में हंू। राजेंद्र गुढा तो सिर्फ एक ही विधानसभा सीट से चुनाव जीतते हैं। मैं जन्मजात कांग्रेसी हंू। श्रीमती इंदिरा गांधी के जमाने से राजनीति कर रहा हंू। मैं कांग्रेस का एक अनुशासित सिपाही हंू, इसलिए मंत्री गुढा के बयान पर कोई बड़ी टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह सही है कि जो विधायक स्वयं को कांग्रेस कल्चर का नहीं मानते वे तो मंत्री हैं और पांच बार का विधायक तथा जन्मजात कांग्रेसी सरकार से बाहर हैं। किस विधायक को मंत्री बनाया जाए, यह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का विशेषाधिकार है, लेकिन जनभावनाओं का तो ख्याल रखना ही चाहिए। लाइव डिबेट में भाजपा विधायक रामलाल शर्मा ने कहा कि राजेंद्र गुढ़ा ने पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर जीता था। अब चूंकि कांग्रेस सरकार अंतिम दौर में है, इसलिए राजेंद्र गुढा कांग्रेस से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। शर्मा ने कहा कि विधानसभा चुनाव आते आते कांग्रेस संगठन और सरकार में भगदड़ मच जाएगी। लाइव डिबेट में मेरा कहना रहा कि अशोक गहलोत जिन राजनीतिक हालातों में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चला रहे हैं, उसमें मुख्यमंत्री को शाबाशी मिलनी चाहिए। राजेंद्र गुढा ही नहीं, बल्कि कई मंत्री सरकार के खिलाफ बोलते हैं, लेकिन फिर भी सीएम गहलोत धैर्य दिखाते हैं। राजनीति में ऐसी संवेदनशीलता अशोक गहलोत जैसे राजनेता ही दिखा सकते हैं, जहां मंत्री गुढ़ा का कांग्रेस कल्चर से मेल नहीं खाने का सवाल है तो गुढा कल्चर कौन सा है, यह उन्हें ही बताना पड़ेगा। गहलोत सरकार में मंत्री बनने के बाद गुढा ने कहा था कि मैं बसपा से विधायक बना और अब समर्थन देकर कांग्रेस सरकार में मंत्री बन गया हंू। गुढ़ा बसपा प्रमुख मायावती पर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप भी लगा चुके हैं। 

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सुप्रीम कोर्ट के 15 और हाईकोर्ट के 75 जजों की उपस्थिति में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि देश के हालात बहुत खराब है आप कुछ कीजिए।जयपुर में विधिक सेवा प्राधिकरण के राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने माना कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकील एक पेशी के 10-15 लाख रुपए की फीस लेते हैं।देश में पांच करोड़ मुकदमे लंबित हैं।

16 जुलाई को राजस्थान के जयपुर में सीतापुरा स्थित जेईसीसी सभागार में विधिक सेवा प्राधिकरण का 18 वां राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना के साथ साथ 15 जजों ने भाग लिया। सम्मेलन में हाईकोर्टों के करीब 75 जज भी उपस्थित रहे। देश में न्यायिक व्यवस्था के विकास और सुधार के लिए इस सम्मेलन को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह सम्मेलन 17 जुलाई तक चलेगा। सम्मेलन में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि आज देश के हालात बहुत खराब हैं। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना के अमेरिका में दिए गए भाषण को आधार बनाकर सीएम गहलोत ने कहा कि आप लोग देश के हालात सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने से लोग वोट देते हैं। मैं एक बार फिर पीएम मोदी से अपील करना चाहता हूं कि वे देश में प्रेम, भाई चारा वाला वक्तव्य दें। लोग धर्म के नाम पर हिंसा न करें, ऐसी अपील भी पीएम को करनी चाहिए। गहलोत ने कहा कि केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू यहां बैठे हैं मैं उनसे भी अपील करता हूं कि वे मेरी भावनाओं को पीएम मोदी तक पहुंचाएं। गहलोत ने कहा कि चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि लोकतंत्र खतरे में हैं। इन चार जजों में से एक गोगोई जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बन गए तो भी हालातों में सुधार नहीं हुआ। रिटायरमेंट के बाद क्या बनना है यह यदि जजों को चिंता रहेगी तो फिर हालात कैसे सुधरेंगे। गहलोत ने कहा कि आज चुनी हुई सरकारों को गिराया जा रहा है। यह तो अच्छा हुआ कि मेरी सरकार नहीं गिरी। यदि उस समय मेरी सरकार गिर जाती तो आज मैं मुख्यमंत्री के तौर पर इस सम्मेलन में उपस्थित नहीं होता। गहलोत ने कहा कि मेरी मोदी या भाजपा से कोई दुश्मनी नहीं है। हमारे बीच विचारधारा की लड़ाई है। हम सब चाहते हैं कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी रहे। जजों को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि वकील का चेहरा देखकर निर्णय क्यों होता है। सीएम गहलोत ने सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री रिजिजू के हिंदी में बोलने पर उनकी प्रशंसा की।

10-15 लाख की फीस:
सम्मेलन में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि यह राष्ट्रीय सम्मेलन आजादी के अमृत महोत्सव में हो रहा है। उन्होंने माना कि सरकार और ज्यूडीशियरी के बीच अच्छा तालमेल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज आम आदमी और न्याय के बीच दूरी है जिसे खत्म करने की आवश्यकता है। अमीर लोग तो अच्छा वकील कर न्याय प्राप्त कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ वकील एक पेशी के 10-15 लाख रुपए की फीस लेते हैं। जब इतनी फीस ली जाएगी तो आम आदमी को न्याय कैसे मिलेगा। रिजिजू ने कहा कि मौजूदा समय में देश भर में पांच करोड़ मुकदमे लंबित हैं। मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए सरकार और अदालतों को मिल कर काम करना चाहिए।
 
आम आदमी को न्याय मिले:
सम्मेलन में चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण का प्रयास है कि आम आदमी को न्याय मिले। पिछले कुछ वर्षों में प्राधिकरण ने अपने कार्यों का विस्तार किया है। इसके अंतर्गत लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है। 

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Friday 15 July 2022

एनआईए को जिस अहसान उल्ला उर्फ मुनव्वर की तलाश थी, हैदराबाद में उसी के घर से अजमेर दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती को पकड़ा।ब्यावर में लगे भड़काऊ नारों के प्रकरण में भी कार्यवाही होगी। सरवर चिश्ती को एडीएम कोर्ट से नोटिस।गौहर चिश्ती के प्रकरण में एनआईए ने अभी तक अजमेर पुलिस से संपर्क नहीं किया है-एसपी चूनाराम जाट।

अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह के मुख्य द्वार पर गत 17 जून को भड़काऊ नारे लगाने के प्रकरण में मुख्य आरोपी खादिम गौहर चिश्ती को अजमेर पुलिस ने 14 जुलाई की रात को हैदराबाद के सांई नाथ गंज स्थित गौस महल से गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तारी के संबंध में 15 जुलाई को अजमेर के एसपी चूनाराम जाट ने पत्रकारों को विस्तृत जानकारी दी। जाट ने बताया कि पुलिस को मुखबिर और तकनीकी सपोर्ट से पता चला कि गौहर चिश्ती 1 जुलाई को जयपुर से हवाई जहाज के जरिए हैदराबाद चला गया है। इस गुप्त सूचना के आधार पर ही अजमेर पुलिस ने भेष बदल कर हैदराबाद में रेकी की। रेकी में हैदराबाद पुलिस का भी सहयोग लिया गया। पुख्ता सूचना के आधार पर ही 14 जुलाई की रात को छापामार कार्यवाही कर गौहर चिश्ती को गिरफ्तार कर लिया गया। चिश्ती को अपने घर में शरण देने वाले अहसास उल्ला उर्फ मुनव्वर को भी गिरफ्तार किया गया है। जाट ने बताया कि अब गौहर चिश्ती और मुनव्वर को रिमांड पर लेकर विस्तृत पूछताछ की जाएगी। अजमेर के दरगाह थाने में चिश्ती के विरुद्ध भड़काऊ भाषण और नारे लगाने को लेकर मुकदमा दर्ज किया गया था। फरारी के दौरान चिश्ती किन किन व्यक्तियों के संपर्क में रहा, उसकी भी जांच की जाएगी। एसपी ने स्पष्ट किया चिश्ती के प्रकरण में एनआईए ने अभी तक भी अजमेर पुलिस से कोई संपर्क नहीं किया है और न ही दरगाह क्षेत्र के सीसीटीवी फुटेज मांगे हैं। लेकिन अजमेर पुलिस उदयपुर में कन्हैयालाल हत्याकांड के प्रकरण के बारे में भी गौहर चिश्ती से पूछताछ करेगी। मालूम हो कि कन्हैयालाल के हत्यारे रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद हत्या के बाद उदयपुर से अजमेर की ओर आ रहे थे कि तभी भीम टॉडगढ़ क्षेत्र में दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप है कि यह दोनों अजमेर में गौहर चिश्ती से मिलने के लिए ही आ रहे थे। कन्हैयालाल की हत्या के प्रकरण की जांच एनआईए कर रही है।
 
ब्यावर में लगे नारों के मामले की भी जांच होगी:
एसपी जाट ने बताया कि 17 जून को अजमेर में दरगाह के मुख्य द्वार पर जो भड़काऊ नारे लगे वैसे ही नारे अजमेर जिले के ब्यावर उपखंड में 10 जून को मौन जुलूस के दौरान लगे। नारों का वीडियो अब अजमेर पुलिस के संज्ञान में आया है। वीडियो की जांच पड़ताल कर उचित कार्यवाही की जाएगी। जाट ने कहा कि किसी भी असामाजिक तत्व को माहौल बिगाडऩे का मौका नहीं दिया जाएगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की पहल पर 10 जून को ब्यावर में भी मौन जुलूस निकाला गया था। लेकिन इस मौन जुलूस में खुले आम भड़काऊ भाषण लगे। हालांकि तब ब्यावर पुलिस की ओर से कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया, लेकिन अब सोशल मीडिया पर भड़काऊ नारों का वीडियो वायरल हो रहा है, तब पुलिस सक्रिय हुई है। वीडियो के माध्यम से नारे लगाने वालों की पहचान की जाएगी।
 
एडीएम कोर्ट से नोटिस:
एसपी जाट ने पत्रकारों को बताया कि दरगाह के खादिम सरवर चिश्ती के विवादित भाषण के प्रकरण में एडीएम कोर्ट से नोटिस जारी हुए हैं। चिश्ती के वायरल वीडियो के आधार पर पुलिस ने एडीएम कोर्ट में इस्तगासा प्रस्तुत किया है। इसमें सरवर चिश्ती को पाबंद करने की मांग की गई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सकल हिन्दू समाज ने जब एक रैली निकाली थी, तब सरवर चिश्ती ने दरगाह के मुख्य द्वार पर खड़े होकर विवादित भाषण दिया। इस भाषण के आधार पर ही पुलिस ने कार्यवाही की है। मालूम हो कि सरवर चिश्ती इस समय खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव हैं। हालांकि चिश्ती ने ऐसे सभी आरोपों से इनकार किया है।
 
एनआईए को मुनव्वर की तलाश:
प्राप्त जानकारी के अनुसार अजमेर पुलिस ने गौहर चिश्ती के साथ साथ जिस अहसास उल्ला उर्फ मुनव्वर को गिरफ्तार किया है। उसकी तलाश एनआईए को भी है। जानकार सूत्रों के अनुसार एनआईए ने विगत दिनों मुनव्वर के हैदराबाद स्थित आवास पर एक नोटिस भी चस्पा किया था। सूत्रों की माने तो उदयपुर में कन्हैयालाल टेलर की हत्या के प्रकरण में एनआईए को मुनव्वर की तलाश है। कहा जा सकता है कि जिस मुनव्वर को एनआईए नहीं पकड़ सही उसे अब अजमेर पुलिस ने पकड़ लिया है।
 
एनआईए की नजर:
जानकार सूत्रों के अनुसार अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में हो रही गतिविधियों और अजमेर पुलिस की कार्यवाहियों पर एनआईए की नजर है। हो सकता है कि गिरफ्तारी के बाद एनआईए गौहर चिश्ती से पूछताछ करे। चूंकि अभी तक गौहर चिश्ती फरार था, इसलिए एनआईए सक्रिय नहीं हुई। लेकिन अब जब गौहर चिश्ती गिरफ्तार हो चुका है तब एनआईए की सक्रिय बढ़ गई है। एनआईए ने कन्हैयालाल टेलर की हत्या के प्रकरण में मुख्य आरोपी रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद के साथ साथ अन्य 15 व्यक्तियों को भी गिरफ्तार किया है। एनआईए की अब तक की जांच में पता चला है कि हत्यारों के संपर्क पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथियों से भी रहे हैं। यही वजह है कि गौहर चिश्ती की गिरफ्तारी को एनआईए के सूत्र भी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि गौहर चिश्ती ने ही दरगाह के मुख्य द्वार पर खड़े होकर सिर तन से जुदा के नारे लगवाए थे और इसी के बाद उदयपुर में कन्हैयालाल टेलर की गर्दन काट दी गई। 

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मुख्यमंत्री जी, अजमेर विकास प्राधिकरण के अधिकारी तो काम को अटकाने में ही रुचि रखते हैं।पट्टे देने के लंबित प्रकरणों की फाइल मंगा कर सच्चाई जानी जा सकती है।सरकार के पट्टा अभियान को विफल करने में अफसरशाही ही सहायक।

राजस्थान में सरकार के पट्टा वितरण अभियान के तीसरे चरण की शुरुआत 15 जुलाई से हो गई है। तीसरे चरण की शुरुआत से पहले 14 जुलाई को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश भर के स्थानीय निकायों के अधिकारियों से संवाद किया। वीसी के जरिए हुए इस संवाद में सीएम गहलोत ने जानना चाहा कि पट्टे या जनता के काम अटकाने वाले अधिकारी चाहते क्या हैं? सरकार ने जब भूमि के पट्टे देने के मामलों में इतनी छूट दी है, तब पात्र व्यक्ति को पट्टे क्यों नहीं दिए जा रहे हैं? सीएम ने सख्त लहजे में कहा कि अब ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जाएगा। ऐसा नहीं की सीएम ने पहली बार इस तरह सख्ती दिखाई है। सीएम गहलोत पहले भी ऐसी बातें कह चुके हैं, लेकिन अफसरशाही पर सीएम के कथनों का कोई असर नहीं होता है, क्योंकि उच्च पदों पर बैठे अधिकारी काम अटकाने वाले अधिकारियों एवं कार्मिकों पर कोई कार्यवाही नहीं करते हैं। यदि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पट्टों के मामलों की हकीकत जाननी है तो अजमेर विकास प्राधिकरण के लंबित प्रकरणों की फाइलें मंगवा कर देख लें। अधिकारी किन किन हथकंडों से काम अटकाते हैं, उसका पता सीएम को लग जाएगा। राज्य सरकार के स्पष्ट आदेश के बाद भी एडीए के अधिकारी पट्टे जारी नहीं कर रहे हैं। उपायुक्त स्तर पर इतनी अड़चने डाली जाती है कि पट्टा प्राप्त करने वाला व्यक्ति परेशान हो जाता है। चूंकि उच्च स्तर पर कोई सुनवाई नहीं होती है, इसलिए पट्टों की फाइल लंबित पड़ी रहती है। एडीए में नियुक्त कोई अधिकारी अपने तबादले का भी इंतजार कर रहे हैं, इसलिए अधिकारी वर्ग काम ही नहीं करना चाहता। ऐसी स्थिति में अकेले अजमेर विकास प्राधिकरण की ही नहीं है, बल्कि प्रदेश के अधिकांश स्थानीय निकायों की है। अफसरशाही के कारण ही सरकार की नीति के अनुरूप पट्टे जारी नहीं हो रहे हैं। गहलोत सरकार अखबारों में विज्ञापन देकर बताती है कि पट्टे देने में कितनी रियायत दी गई है, लेकिन निकायों में पट्टे देने के काम पर कोई निगरानी नहीं है। प्रदेश की अफसरशाही खासकर स्थानीय निकायों के अधिकारियों को भी पता है कि सीएम गहलोत सिर्फ बोलते हैं, एक्शन नहीं लेते। सीएम गहलोत सिर्फ बोलते ही हैं, यह बात सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढा ने भी सार्वजनिक तौर पर कही है। स्थानीय निकायों में लंबित प्रकरणों की जांच करवाई जाए तो सरकार के पट्टा अभियान की पोल खुल जाएगी। 

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Thursday 14 July 2022

तो उद्धव ठाकरे के अब समझ में आई है महाराष्ट्र की जन भावना।

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने निर्णय लिया है कि 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाजपा गठबंधन वाले एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेंगे। यानी उद्धव ठाकरे के साथ जो 15 विधायक और 12 सांसद हैं, वे द्रौपदी मुर्मू को वोट देंगे। यह बात अलग है कि उद्धव ठाकरे अभी भी महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन में शामिल हैं। लेकिन उद्धव ठाकरे का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू का समर्थन महाराष्ट्र की जनभावनाओं को देखते हुए लिया गया है। यानी उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र की जन भावनाएं समझ में आ गई है। उद्धव को महाराष्ट्र के लोगों की भावनाएं तब समझ में आई है, जब उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन गई है। विगत दिनों जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 40 विधायक अलग हो गए थे, तब शिंदे ने कहा था कि हमने जनता की भावनाओं का ख्याल करते हुए कांग्रेस, एनसीपी की सरकार से अलग होने का निर्णय लिया है। लेकिन तब शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को उद्धव ठाकरे ने गद्दार कहा। तब उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की जनता की भावनाओं को समझने को तैयार नहीं थे। एनसीपी और कांग्रेस के दम पर आखिरी समय तक उद्धव ठाकरे अपनी सरकार को बचाने में लगे रहे, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने भी विधानसभा में बहुमत साबित करने के निर्देश दे दिए, तब उद्धव ठाकरे विधानसभा का भी सामना नहीं कर सके। अब जब ठाकरे की कुर्सी छीन चुकी है तो महाराष्ट्र की जनता की भावनाएं समझ में आने लगी है। महाराष्ट्र की जनता ने तो ढाई वर्ष पहले ही भाजपा और शिवसेना के गठबंधन को सरकार बनाने का अवसर दिया था। लेकिन मुख्यमंत्री बनने की ललक में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की जन भावनाओं का ख्याल नहीं रखा और भाजपा से गठबंधन समाप्त कर एनसीपी और कांग्रेस से मिल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली। चूंकि यह गठबंधन जन भावना के खिलाफ था, इसलिए शिवसेना के 55 में से 40 विधायक एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में अलग हो गए। अब महाराष्ट्र की जनता की  भावनाओं के अनुरूप भाजपा के समर्थन में शिंदे मुख्यमंत्री हैं। अब उद्धव ठाकरे के भी समझ में आ गया है कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ रहने से नुकसान ही होगा। इसलिए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के गठबंधन वाले एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का निर्णय लिया गया है। 

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आखिर ख्वाजा साहब की दरगाह की कौमी एकता की मिसाल को दरगाह के कुछ खादिम ही क्यों तोड़ने पर तुले हैं?फिर वायरल हुआ हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला वीडियो। तो ऐसे में दरगाह जियारत के लिए क्यों आएंगे हिन्दू?राजस्थान की गहलोत सरकार खामोश।

अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह को देश और दुनिया में साम्प्रदायिक सद्भाव (कौमी एकता) की मिसाल माना जाता रहा है। इसकी वजह यही है कि दरगाह में मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू समुदाय के लोग जियारत करने के लिए आते हैं। कहा जा सकता है कि मुसलमानों से ज्यादा आस्था (अकीदत) हिन्दुओं की दरगाह के प्रति है। यदि कौमी एकता की मिसाल वाली दरगाह से लगातार हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली गतिविधियां होंगी तो सवाल उठता है कि हिन्दू समुदाय के लोग दरगाह में जियारत के लिए क्यों आएंगे? दरगाह में हिन्दू विरोधी गतिविधियां कोई कट्टरपंथी जमात नहीं कर रही है, बल्कि दरगाह के कुछ खादिम ही कर रहे हैं। जिस प्रकार किसी हिन्दू तीर्थ स्थल पर मंदिर के पुजारी या तीर्थ पुरोहित (पंडे) होते हैं, उसी प्रकार ख्वाजा साहब की दरगाह में खादिमों द्वारा धार्मिक रस्म निभाई जाती है। खादिमों को ही ख्वाजा साहब की मजार पर जियारत कराने का हक है। जो खादिम दरगाह में धर्म के प्रतिनिधि है, उनमें से कुछ प्रतिनिधि यदि हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले बयान देंगे तो फिर दरगाह की कौमी एकता की पहचान पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। दरगाह के खादिमों को हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल इसलिए भी रखना चाहिए कि हिन्दू समुदाय के लोग बड़ी संख्या में दरगाह में जियारत के लिए आते हैं। जियारत के लिए आने वाले हिन्दुओं का भरोसा है कि ख्वाजा साहब के करम से उनका भला हो जाएगा। अब यदि ऐसी दरगाह के खादिम हिन्दू देवी देवताओं और उनकी परंपराओं पर प्रतिकूल टिप्पणियां करेंगे तो फिर सद्भावना कैसे होगी? 33 करोड़ हिन्दू देवी देवताओं पर प्रतिकूल टिप्पणियां वाला वीडियो भी दरगाह के एक खादिम की ओर से जारी किया गया है। अफसोसनाक बात तो यह है कि वीडियो जारी करने वाला खादिम, खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के परिवार का सदस्य है। वीडियो में जो बातें कही गई हैं, उन्हें यहां नहीं लिखा जा सकता। इस विवादित वीडियो के कुछ अंश अब न्यूज चैनलों पर दिखाए जा रहे है। इससे पहले दरगाह से ही हिन्दुस्तान हिला देने और सिर तन से जुदा करने जैसी बातें भी कही गई। यह माना कि दरगाह के सभी खादिम कट्टरपंथी सोच के नहीं है, लेकिन सद्भावना की सोच रखने वाले खादिम उन खादिमों को नहीं रोक पा रहे हैं जो विवादित वीडियो जारी कर रहे हैं। अजमेर का माहौल सुधारने के लिए जिला प्रशासन की ओर से 12 जुलाई को सर्वधर्म रैली भी निकाली गई। रैली जब ख्वाजा साहब की दरगाह पर पहुंची तो खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व अध्यक्ष मोईन हुसैन ने साफ शब्दों में कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह को सियासी स्थल नहीं बनने दिया जाएगा। लेकिन मोईन हुसैन के इस सकारात्मक भाषण का भी कोई असर नहीं हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ खादिम ख्वाजा साहब की दरगाह की कौमी एकता की पहचान को कमजोर करना चाहते हैं। एक के बाद विवादित वीडियो सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर जारी हो रहे हैं, उससे अजमेर खास कर दरगाह का माहौल और खराब हो रहा है। 33 करोड़ देवी-देवताओं को निशाने पर रख कर यदि कोई वीडियो जारी होगा तो प्रतिकूल असर पड़ेगा ही। अंजुमन के पूर्व अध्यक्ष मोईन हुसैन भले ही यह दावा करें कि विवादित बयान देने वालों का दरगाह के खादिम समुदाय से कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन जो विवादित वीडियो जारी हो रहे हैं, उसमें सबसे पहले स्वयं को ख्वाजा साहब का खादिम ही बताया जाता है। दरगाह का खादिम बताने की वजह से ही वीडियो का महत्व है। वीडियो जारी करने वाले खादिम यह नहीं सोच रहे कि इसका उन हिन्दुओं पर क्या असर पड़ेगा जो जियारत के लिए दरगाह में आते हैं।
 
गहलोत सरकार खामोश:
ख्वाजा साहब की दरगाह से जुड़े कुछ प्रतिनिधि लगातार विवादित बयान दे रहे हैं, लेकिन अशोक गहलोत के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार खामोश है। जिला एवं पुलिस प्रशासन के अधिकारी चाहे कुछ भी दावे करे, लेकिन कार्यवाही वही होगी जो गहलोत सरकार चाहती है। सीएम गहलोत और उनकी सरकार की नीतियांं जगजाहिर है। यदि नीतियां कानून के मुताबिक होती तो विवादित वीडियो जारी नहीं होते। ख्वाजा साहब की दरगाह की कौमी एकता की पहचान कायम रहे यह सब की जिम्मेदारी है। 

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