Wednesday 30 November 2022

अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के साथ फिर उठाया अपना हाथ।इसे कहते हैं थूक कर चाटना।केसी वेणुगोपाल में हिम्मत है तो धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ पर कार्यवाही करके दिखाएं।

22 नवंबर को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने प्रतिद्वंदी नेता पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को भाजपा से 190 करोड़ रुपए लेने वाला गद्दार नेता घोषित किया। इसके लिए गहलोत ने एनडीटीवी को एक विशेष इंटरव्यू भी दिया। लेकिन मात्र 7 दिन बाद ही 29 नवंबर को सीएम गहलोत उन्हीं गद्दार सचिन पायलट के साथ खड़े हो गए और पायलट से दोस्ती दिखाने के लिए अपना हाथ भी उठाया। सवाल उठता है कि जब पायलट के साथ दोस्ती ही दिखानी थी तो फिर थूकने जैसा बयान क्यों दिया? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि गहलोत स्वयं को गांधी जी का अनुयायी और सिद्धांतवादी नेता होने का दावा करते हैं। वैसे भी गहलोत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है। ऐसे में गहलोत के कथन को गंभीरता से लिया जाता है। 22 नवंबर को जब गहलोत ने पायलट को भाजपा से 190 करोड़ रुपए लेने वाला गद्दार नेता बताया, तब यह माना गया कि गहलोत अब आर पार की लड़ाई करेंगे। लेकिन मात्र सा तदन बाद ही गहलोत, उन्हीं गद्दार पायलट के साथ आकर खड़े हो गए। 29 नवंबर को जयपुर में भारत जोड़ों यात्रा की तैयारी बैठक में कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बीच में खड़े होकर गहलोत और पायलट का हाथ उठाया। इस फोटो के फ्रेम में पायलट का चेहरा तो दमक रहा था, क्योंकि उनकी स्थिति थूक कर चाटने जैसी नहीं थी, जबकि गहलोत की मुस्कान बता रही थी कि इस हाथ को उठाने में उन पर क्या बीत रही है। पायलट तो इस बात से खुश थे कि सीएम गहलोत को ही उनके साथ आना पड़ा है। गहलोत माने या नहीं लेकिन मात्र 7 दिन बाद ही पायलट के साथ हाथ उठाने से उनके बोलने का महत्व कम हुआ है। क्या गांधी जी के अनुयायी ऐसे ही होते हैं जो सात दिन में ही बदल जाएं या फिर यह सीएम की कुर्सी का मोह है जो छूट नहीं रहा है। ऐसे में गांधीवादी सिद्धांत भी पीछे रह गए हैं।
 
हिम्मत है तो कार्यवाही करके दिखाएं?:
भारत जोड़ों यात्रा की तैयारी बैठक में भी राजस्थान में कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी का मामला ही छाया रहा। नेताओं की बयानबाजी पर केसी वेणुगोपाल ने कहा कि अब यदि कोई नेता अथवा मंत्री पार्टी का अनुशासन तोड़ कर बयान देगा तो उसे चौबीस घंटे में पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा। वेणुगोपाल अपने कथन की कितनी क्रियान्विति करते हैं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन वेणुगोपाल में हिम्मत हो तो मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेन्द्र राठौड़ पर कार्यवाही करके दिखाएं। इन मंत्रियों को पार्टी का अनुशासन तोड़ने के आरोप में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने नोटिस दे रखे हैं। सवाल उठता है कि जब नोटिस वाले मंत्रियों पर ही कोई कार्यवाही नहीं हो रही है तब बयान देने वालों को चौबीस घंटे में बाहर कैसे निकाला जाएगा?

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तो क्या टूलकिट गिरोह ने बनाया इजरायली फिल्मकार नदाव लपिड को भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की जूरी का प्रमुख?विदेश और गृह मंत्रालय को उच्च स्तरीय जांच करवानी चाहिए।

सोशल मीडिया पर सक्रिय टूल किट गिरोह इस बात से खुश है कि भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की जूरी के प्रमुख नदाव लपिड ने भारतीय फिल्म द कश्मीर फाइल्स को दुष्प्रचार वाली फिल्म बताया है। हालांकि फिल्म के निर्देशक और कलाकारों ने लपिड के कथन का खंडन किया है, लेकिन सवाल उठता है कि इजरायली फिल्मकार  नदाव  लपिड को भारतीय फिल्म महोत्सव की जूरी का प्रमुख किसने बनाया? यह फिल्म महोत्सव पूरी तरह केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशा निर्देशों पर हो रहा है, इसलिए महोत्सव का शुभारंभ भी सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने किया। गोवा में चल रहे इस फिल्म महोत्सव में विदेशी फिल्में भी प्रदर्शित की गई है। इजरायली फिल्मकार लपिड ने द कश्मीर फाइल्स पर जो टिप्पणी की है, उससे प्रतीत होता है कि भारतीय फिल्म महोत्सव में टूलकिट गिरोह सक्रिय है, जिसने सुनियोजित तरीके से पहले लपिड को जूरी का प्रमुख बनाया और फिर कश्मीर फाइल्स पर बयान दिलवाए और अब  नदाव  लपिड के बयान को आधार बना कर कश्मीर में हिन्दुओं पर हुए आतंकी हमलों को झुठलाया जा रहा है। सब जानते हैं कि द कश्मीर फाइल्स फिल्म कश्मीर में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों पर बनी है। इस फिल्में दिखाया गया है कि किस तरह धर्म का आधार बना कर चार लाख हिन्दुओं को कश्मीर घाटी छोड़ने को मजबूर किया गया। हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों को इस फिल्म में सबूतों के साथ फिल्माया गया है। यह फिल्म सुनी सुनाई कहानियों पर नहीं बनी है, बल्कि उन व्यक्तियों को भी दिखाया गया, जिन्हें कश्मीर में प्रताड़ित किया गया। द कश्मीर फाइल्स फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है, लेकिन फिर भी लपिड को यह फिल्म दुष्प्रचार वाली नजर आती है। जाहिर है कि ऐसे बयान के पीछे टूलकिट गिरोह ही सक्रिय है। आतंकवाद से तो आज सबसे ज्यादा इजरायल ही प्रभावित है। आतंकवाद के कारण इजरायल के प्रधानमंत्री तक मारे गए हैं। इजरायल सरकार को भी  लपिड जैसे फिल्मकारों से सावधान रहने की जरूरत है। ऐसे फिल्मकार विदेशों में इजरायल की छवि खराब कर रहे हैं। लपिड के बयान को इजराय सरकार ने भी गंभीरता से लिया है, इसलिए इजरायल के भारत में राजदूत नासोर गिलोन ने बयान जारी कर लपिड को फटकार लगाई है।
 
विदेश और गृह मंत्रालय जांच कराए:
इजरायली फिल्म कार लपिड के बयान पर अब विदेश और गृह मंत्रालय को उच्च स्तरीय जांच करवानी चाहिए। यह पता लगाया जाना चाहिए कि भारतीय फिल्म महोत्सव की जूरी का प्रमुख लपिड को किन हालातों में बनाया गया। आखिर कौन लोग थे जिन्होंने लपिड को जूरी का प्रमुख बनाने की सिफारिश की। इसके साथ ही यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि लपिड ने किन सूचनाओं के आधार पर द कश्मीर फाइल्स को दुष्प्रचार वाली फिल्म बताया। 

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कांग्रेस और भाजपा ने अजमेर में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास नहीं होने का आरोप लगाया।जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा ने भी माना कि विकास कार्यों और मनरेगा की स्वीकृतियों में विलंब हो रहा है7ताजपुरा (सरवाड़) के सरपंच का मामला भी चर्चा में।लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्नेह भोज में अजमेर के भाजपाई भी शामिल हुए।

कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, वरिष्ठ नेता शक्ति प्रताप सिंह पिपरौली, जिला परिषद सदस्य और भाजपा नेता महेंद्र सिंह कड़ैल आदि ने आरोप लगाया है कि अजमेर के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य नहीं हो रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि मनरेगा की स्वीकृतियों में भी विलंब हो रहा है, जिससे ग्रामीण रोजगार नहीं मिल रहा। पिपली ने विकास कार्य नहीं होने के लिए जिला परिषद के सीईओ हेमंत स्वरूप माथुर को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि माथुर के रवैए से जिले भर के सरपंचों में भी नाराजगी है। इससे कांग्रेस सरकार की छवि खराब हो रही है। पिपरोली ने माथुर को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की है। यदि माथुर को नहीं हटाया तो ग्रामीण जनप्रतिनिधियों के सहयोग से जन आंदोलन किया जाएगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंशा शहरी क्षेत्र के युवाओं को भी रोजगार उपलब्ध करवाने की है, लेकिन जिला परिषद के सीईओ की वजह से ग्रामीणों को भी मनरेगा रोजगार नहीं मिल रहा है।
 
स्वीकृतियों में विलंब:
जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा ने भी माना है कि विकास कार्यों और मनरेगा में रोजगार देने की स्वीकृतियों में विलंब हो रहा है, जिसकी वजह से ग्रामीणों को परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि स्वीकृतियां जारी करने का मामला जिला कलेक्टर और जिला परिषद के सीईओ के बीच है। इन दोनों अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि स्वीकृतियां समय पर जारी हों। जब राज्य सरकार ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध करवाना चाहती है, तब प्रशासनिक स्तर पर विलंब नहीं होना चाहिए। श्रीमती पलाड़ा ने कहा कि स्वीकृतियों में हो रहे विलंब को लेकर एक पत्र वे भी कलेक्टर और सीईओ को लिख रही हैं। जब वे स्वयं जनसुनवाई कर ग्रामीणों को राहत दे रही हैं तो अधिकारियों की भी जवाबदेही होनी चाहिए। जरुरत हुई तो लापरवाह अधिकारियों पर कार्यवाही के लिए राज्य सरकार को लिखा जाएगा।
 
सरपंच का मामला भी चर्चा में:
जिला परिषद के सीईओ हेमंत स्वरूप माथुर पर भाजपा और कांग्रेस के आरोपों के मद्देनजर ही सरवाड़ पंचायत समिति के  ताजपुरा के सरपंच का मामला भी चर्चा में है। ताजपुरा ग्राम पंचायत में सड़क निर्माण में हुए भ्रष्टाचार में सरपंच को भी जांच में दोषी माना गया है। जांच की कार्यवाही राज्य सरकार के निर्देश पर ही हुई। अब पंचायती राज विभाग ने भी सरपंच पर कानूनी कार्यवाही के आदेश दिए हैं। सीईओ माथुर सरकार के निर्देशों के अनुरूप ताजपुरा की फाइल को आगे बढ़ाया गया है। कुछ सरपंच सीईओ की इस कार्यवाही से भी नाराज है, लेकिन वहीं जिला प्रमुख पलाड़ा का कहना है कि यदि भ्रष्टाचार हुआ है तो दोषियों पर कार्यवाही होनी ही चाहिए।
 
बिरला का स्नेह भोज:
दिल्ली में चार दिसंबर को होने वाले एमसीडी के चुनाव में भाजपा का प्रचार करने के लिए राजस्थान से ही पूर्व मंत्री, विधायक और भाजपा कार्यकर्ता गए हैं। उनमें अजमेर दक्षिण की विधायक अनिता भदेल, डिप्टी मेयर नीरज जैन, पार्षद देवेंद्र सिंह शेखावत, मंडल अध्यक्ष सतीश बंसल आदि भी शामिल है। राजस्थान के भाजपा कार्यकर्ताओं के सम्मान में 29 नवंबर की रात को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने आवास पर एक स्नेह भोज का आयोजन किया गया। इस भोज में राजस्थान के करीब सौ भाजपा नेताओं ने भाग लिया। यहां यह उल्लेखनीय है कि ओम बिरला राजस्थान के कोटा से लोकसभा सांसद हैं। स्नेह भोज में बिड़ला ने एक एक कार्यकर्ता के हाल चाल जाने। 

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Friday 25 November 2022

अशोक गहलोत यदि असली गांधीवादी हैं तो बागी विधायकों द्वारा 10-10 करोड़ रुपए लेने के सबूत सार्वजनिक करने चाहिए।क्या राहुल गांधी अपनी यात्रा में अब गद्दार सचिन पायलट को अपने साथ रखेंगे? आखिर एनडीटीवी ने इंटरव्यू को दो दिन तक क्यों छिपाए रखा?

अशोक गहलोत कांग्रेस के कोई साधारण नेता नहीं है। गहलोत उस राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं जो ऑस्ट्रेलिया के बराबर है। गहलोत ने मुख्यमंत्री के नेताओं ने सच बोलने और संविधान की रक्षा करने की भी शपथ ली है। ऐसे में अशोक गहलोत का झूठ बोलने का सवाल ही नहीं उठता। गहलोत से नैतिकता की भी उम्मीद की जाती है, क्योंकि वे स्वयं को महात्मा गांधी का अनुयायी मानते हैं। गहलोत यदि असली गांधीवादी हैं तो उन्हें कांग्रेस के बागी विधायकों द्वारा 10-10 करोड़ रुपए प्राप्त करने के सबूत सार्वजनिक करने चाहिए। एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में गहलोत ने कहा कि जुलाई 2020 में उनकी सरकार गिराने की साजिश करने वालों ने 10-10 करोड़ रुपए लिए। सब जानते हैं कि जुलाई 20 में सचिन पायलट के नेतृत्व में ही कांग्रेस के 18 विधायक दिल्ली गए थे। गहलोत के अनुसार पायलट सहित 19 विधायकों को 190 करोड़ रुपए प्राप्त किए। अब जब यह बात सीएम गहलोत खुद कह रहे हैं, तब राजनीति में यह बात बहुत गंभीर है। गंभीर बात इसलिए भी है कि दिल्ली जाने वाले 19 विधायकों में से पांच अब गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल हैं। यानी गहलोत ने उन विधायकों को मंत्री बना रखा है, जिन्होंने उनकी सरकार गिराने के लिए 10-10 करोड़ रुपए लिए। गहलोत के आरोप के बाद पायलट सहित 19 बागी विधायकों का खून कितना गर्म होगा, यह तो आना वाला समय ही बताएगा, लेकिन इतना जरूरी है कि जब से 19 विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाएंगे तो मतदाता इन्हें संदेह की निगाह से देखेगा। बागी विधायकों की इससे ज्यादा मानहानि नहीं हो सकती है। यदि दिल्ली जाने वाले विधायक चुप रहते हैं तो यह मान लिया जाएगा कि गहलोत जो कह रहे हैं वह सही है। अशोक गहलोत के अनुसार तो सुदामा जैसी छवि वाले मसूदा (अजमेर) के विधायक राकेश पारीक ने भी 10 करोड़ रुपए ले लिए हैं।
 
क्या अब पायलट यात्रा में साथ रहेंगे?:
राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा तीन दिसंबर को  राजस्थान में प्रवेश कर रही है। राहुल की यात्रा 18 दिसंबर तक राजस्थान में ही रहेगी। अब सीएम गहलोत ने पायलट को गद्दार और भाजपा से पैसा लेने वाला बता दिया है, तब सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी, पायलट को अपने साथ यात्रा में रखेंगे? गहलोत ने तो स्पष्ट कह दिया है कि वे पायलट की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते हैं। जानकारों की मानें तो राहुल गांधी चाहते थे कि राजस्थान में गहलोत और पायलट दोनों साथ रहें। लेकिन राहुल की यात्रा के आने से पहले ही गहलोत ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। गहलोत के रुख से गांधी परिवार खास कर राहुल गांधी के सामने संकट खड़ा हो गया है। राहुल गांधी भले ही पायलट को अपने साथ रो, लेकिन पायलट के मुद्दे पर गहलोत ने आर पार की लड़ाई लडऩे का मन बना लिया है। पायलट के मुद्दे पर गहलोत अब राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और गांधी परिवार से लडऩे के मूड में भी है। राजस्थान में अशोक गहलोत किसी भी स्थिति में पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। अशोक गहलोत का इंटरव्यू प्रसारित हुए 24 घंटे गुजर गए, लेकिन अभी तक भी किसी केंद्रीय नेता ने गहलोत के बयान को गलत ठहराने की हिम्मत नहीं दिखाई है। जयराम नरेश का बयान तो गहलोत के पक्ष में ही है।

दो दिन तक इंटरव्यू को छिपाया?:
एनडीटीवी के संवाददाता ने सीएम गहलोत का इंटरव्यू 22 नवंबर को पाली में ही रिकॉर्ड कर लिया था। न्यूज चैनलों के बीच जो प्रतिस्पर्धा चल रही है उसमें तो गहलोत का इंटरव्यू 22 नवंबर को ही एनडीटीवी पर जारी हो जाना चाहिए था, लेकिन यह इंटरव्यू 24 नवंबर को प्रसारित हुआ। सवाल उठता है कि एनडीटीवी ने गहलोत के इंटरव्यू को 2 दिनों तक क्यों छिपाए रखा? क्या इंटरव्यू देने के बाद प्रसारण को रुकवाया गया? एनडीटीवी निष्पक्ष पत्रकारिता करने का दावा करता है, इसलिए अब एनडीटीवी को स्पष्ट करना चाहिए कि गहलोत के इंटरव्यू को 2 दिन तक क्यों छुपाया?

S.P.MITTAL BLOGGER (25-11-2022)
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8 दिसंबर को जब गुजरात और हिमाचल के परिणाम आएंगे तब राहुल गांधी राजस्थान में होंगे।सीनियर ऑब्जर्वर होने के नाते गुजरात में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदार अशोक गहलोत की है।

मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत राजस्थान में कांग्रेस को जीता पाएंगे या नहीं यह तो एक वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनाव में पता चलेगा। लेकिन गुजरात में कांग्रेस की हार जीत का पता 8 दिसंबर को ही चल जाएगा।  8 दिसंबर को जब हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव परिणाम आएंगे तब राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ों यात्रा के साथ राजस्थान में होंगे। यानी राहुल गांधी इन दोनों राज्यों के परिणाम की जानकारी राजस्थान में ही मिलेगी। यात्रा में राहुल के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी होंगे। सीनियर ऑब्जर्वर के नाते गुजरात में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी गहलोत पर ही है। गहलोत ने ही गुजरात चुनाव की रणनीति बनाई और अभी हाल ही में जब राहुल गांधी ने गुजरात में दो जनसभाओं को संबोधित किया, तब भी गहलोत साथ रहे। गहलोत ने खुद भी कई जनसभाओं को संबोधित किया है। गहलोत ने अपने भरोसेमंद नेता रघु शर्मा को पहले ही गुजरात का प्रभारी नियुक्त कर दिया था। कांग्रेस के उम्मीदवार तय करने में भी गहलोत और रघु की भूमिका महत्वपूर्ण रही। यदि गुजरात में कांग्रेस को सरकार बनाने लायक बहुमत मिलता है तो इसका श्रेय गहलोत और रघु को ही मिलेगा, लेकिन बहुमत नहीं मिलता है तो कांग्रेस की हार का ठीकरा गहलोत और रघु पर ही टूटेगा। राहुल गांधी की गुजरात चुनाव में कितनी, रुचि रही इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राहुल ने अब तक सिर्फ एक बार एक दिन के लिए गुजरात का दौरा किया है। राहुल ने गहलोत को सीनियर ऑब्जर्वर बनाकर पूरी जिम्मेदारी गहलोत को सौंप रखी है। गहलोत का दावा है कि उनके नेतृत्व में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट होगी। इस दावे का पता तो अगले वर्ष चलेगा, लेकिन गहलोत की राजनीति में कितना दम है इसका पता गुजरात चुनाव के परिणाम से लग जाएगा। राजस्थान को लेकर गहलोत चाहे जितने भी दावे करें, लेकिन यह हकीकत है कि गहलोत जब जब भी मुख्यमंत्री रहे, तब तब राजस्थान में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 2013 में तो गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को 200 में से मात्र 21 सीटें मिली। इससे पहले 2003 में 56 सीटें मिली थी। दो बार के बाद भी गहलोत को 2018 में तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया, इसके पीछे गहलोत को गांधी परिवार का संरक्षक रहा। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में अशोक गहलोत गांधी परिवार को भी चुनौती दे रहे हैं। 

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Thursday 17 November 2022

तो राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा में विघ्न डालने वाला बयान विजय बैंसला ने सीएम अशोक गहलोत के इशारे पर दिया?पुष्कर के समारोह में भी विजय बैंसला के निमंत्रण पर एकत्रित हुए थे गहलोत समर्थक मंत्री और नेता। तब हुड़दंग हुआ था।

16 नवंबर को राजस्थान विप्र कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष महेश शर्मा ने दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से मुलाकात की। शर्मा ने राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा के मार्ग को लेकर हो रहे विवाद पर भी चर्चा की। राजस्थान में राहुल की यात्रा के 3 से 8 दिसंबर तक रहेगी। राजस्थान में यह यात्रा अधिकांश तौर पर गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों से निकलेगी। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए ही गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक और दिवंगत गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पुत्र विजय बैंसला ने धमकी दी है कि गुर्जर समुदाय राहुल की यात्रा का विरोध करेगा। विजय बैंसला का कहना है कि  राज्य सरकार ने पूर्व में जो लिखित वादे किए थे, उन्हें अभी तक भी पूरा नहीं किया है। इससे गुर्जर समाज में नाराजगी है। विजय बैंसला के इस बयान के संदर्भ में विप्र कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष महेश शर्मा ने राष्ट्रीय अध्यक्ष खडग़े को बताया कि यह बयान एक साजिश के तहत दिलवाया गया है। खडग़े को बयान देने वाले विजय बैंसला और आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ का फोटो भी दिखा गया। इस फोटो में दोनों बात करते नजर आ रहे हैं। यह तब है जब सीएम अशोक गहलोत ने धर्मेन्द्र राठौड़ को राहुल गांधी की यात्रा का राजस्थान में इंचार्ज बना रखा है। राठौड़ की झालावाड़ से लेकर अलवर तक दौरा कर यात्रा की तैयारियां कर रहे हैं। महेश शर्मा का कहना है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि जो विजय बैंसला धर्मेन्द्र राठौड़ के संपर्क में हों, वही बैंसला राहुल की यात्रा का विरोध करें। जानकार सूत्रों के अनुसार खडग़े ने महेश शर्मा की जानकारियों को गंभीरता से लिया है। खडग़े को यह भी बताया गया है कि धर्मेन्द्र राठौड़ वही नेता है, जिन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अनुशासनहीनता करने का नोटिस दे रखा है। राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में महेश शर्मा को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का समर्थक माना जाता है।
 
पुष्कर में हुड़दंग:
विजय बैंसला ने गत 12 सितंबर को अजमेर के पुष्कर में अपने पिता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के अस्थि विसर्जन के अवसर पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था। इस सभा में बैंसला ने सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को खास तौर से आमंत्रित किया था। सीएम पुत्र के साथ मंत्री अशोक चांदना, शकुंतला रावत (गुर्जर) के साथ धर्मेन्द्र राठौड़ भी पुष्कर आए। लेकिन अशोक चांदना के भाषण के दौरान जिस तरह जूते फेंके गए उससे सीएम पुत्र और अन्य मंत्रियों को बिना भाषण के ही बैरंग लौटना पड़ा। हालांकि सरकार के मंत्रियों का विरोध करने वाले भी गुर्जर समुदाय के लोग ही थे, लेकिन विजय बैंसला ने अपने ही लोगों की कड़ी आलोचना की। पुष्कर में भी गुर्जर समुदाय के लोग राज्य सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे थे। लेकिन तब बैंसला ने अपने ही लोगों का  विरोध किया तो अब राहुल गांधी की यात्रा का विरोध कर रहे हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि विजय बैंसला ने धर्मेन्द्र राठौड़ से संवाद के बाद ही यात्रा का विरोध करने वाला बयान दिया है। सब जानते हैं कि कांग्रेस की राजनीति में धर्मेन्द्र राठौड़ को सीएम गहलोत का संरक्षण है। गहलोत की मेहरबानी से ही राठौड़ राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष बने हैं। राठौड़ को राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त है। 25 सितंबर को भी अशोक गहलोत के समर्थन में विधायकों की समानंतर बैठक करवाने में राठौड़ की महत्वपूर्ण भूमिका थी। राठौड़ जो भी कार्य करते हैं उसमें सीएम की सहमति होती है। यानी विजय बैंसला ने राहुल की यात्रा को लेकर जो बयान दिया है, इसमें सीएम गहलोत की भी सहमति बनाई जाती है। जो विजय बैंसला अपने पिता की श्रद्धांजलि सभा में वैभव गहलोत को बुला रहे हों, वो विजय बैंसला अपनी मर्जी से राहुल की यात्रा का विरोध नहीं कर सकते हैं। विजय बैंसला ने जो घोषणा की है, उसका विरोध गुर्जर समुदाय के नेता ही कर रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-11-2022)
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अजमेर प्रशासन से न कांग्रेसी खुश न भाजपाई। पूर्व मेयर बाकोलिया ने मंत्री धारीवाल को गुमराह करने का आरोप लगाया।भाजपा की एकता पर मेयर ब्रज लता हाड़ा ने पानी फेरा। विधायक देवनानी को आश्चर्य।आखिर मंदिर परिसर में बनी अवैध दुकानों को सीज किया।

अजमेर जिला प्रशासन से न तो सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता खुश है और न ही प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के सांसद विधायक। आमतौर पर विपक्षी दलों के नेता सरकार के प्रशासन से नाराज होते ही है, लेकिन फिर भी समझदार प्रशासनिक अधिकारी विपक्ष के सांसद और विधायकों से व्यक्तिगत संवाद रखते ही हैं। लेकिन अजमेर में भाजपा के जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बीच यह सामान्य शिष्टाचार भी नजर नहीं आता है। कांग्रेस के नेता भी प्रशासन से खुश नहीं है। यह बात एक बार फिर 16 नवंबर को एलिवेटेड रोड की एक भुजा के लोकार्पण के समय देखने को मिली। लोकार्पण नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने किया, लेकिन समारोह में शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन और अन्य प्रमुख पदाधिकारी व पार्षद मौजूद नहीं थे। जैन का कहना है कि एक इंजीनियर से सिर्फ सूचना भिजवाई गई। प्रशासन के किसी भी अधिकारी ने समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित नहीं किया। सरकार के समारोह में प्रशासन द्वारा आमंत्रित नहीं किए जाने का आरोप विजय जैन पहले भी लगा चुके हैं। लेकिन प्रशासन ने कांग्रेस के पदाधिकारियों की कोई परवाह नहीं की है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मेयर कमल बाकोलिया समारोह में उपस्थित तो रहे, लेकिन एलिवेटेड रोड की सेफ्टी ऑडिट नहीं होने पर बाकोलिया ने नाराजगी जताई। बाकोलिया ने कहा कि कचहरी रोड वाली भुजा पर दोनों तरफ यातायात शुरू करने से पहले प्रशासन ने सेफ्टी ऑडिट करवानी चाहिए थी। लोकार्पण करवा कर प्रशासन मंत्री धारीवाल को भी गुमराह कर रहा है।
 
एकता पर पानी:
एलिवेटेड रोड के लोकार्पण समारोह का बहिष्कार करने का निर्णय भाजपा के सांसद, विधायक और पार्टी अध्यक्ष और मेयर ने सर्वसम्मति से लिया था। 16 नवंबर को सायं चार बजे होने वाले समारोह के बहिष्कार की जानकारी सुबह भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी ने मीडिया कर्मियों को दे दी। लेकिन शाम को सरकारी समारोह में जिला कलेक्टर अंशदीप के साथ मेयर श्रीमती ब्रज लता हाड़ा उपस्थित रही। मेयर हाड़ा की उपस्थिति पर विधायक देवनानी ने आश्चर्य व्यक्त किया है। देवनानी ने कहा कि मेयर भाजपा की है और सरकारी समारोह में नहीं जाने का निर्णय सामूहिक तौर पर लिया गया था, इसलिए भाजपा के शहर अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा भी समारोह में नहीं गए। देवनानी ने कहा कि सामूहिक निर्णय की पार्टी के सभी जिम्मेदार व्यक्तियों को पालना करनीचाहिए। जिस समारोह में सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक वासुदेव देवनानी, डॉ. प्रियशील हाड़ा ने भाग न लिया हो, उस समारोह में भाजपा की मेयर के भाग लेने से संगठन की एकता पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
 
दुकानें सीज:
अजमेर के अजय नगर स्थित कांचे के मंदिर के निकट मंदिर परिसर में बनी अवैध दुकानों को लेकर 15 नवंबर को एक ब्लॉग लिखा गया था। इन अवैध दुकानों पर कांग्रेस के पार्षदों सहित डिप्टी मेयर नीरज जैन ने भी आपत्ति जताई थी। आखिरकार 17 नवंबर को नगर निगम ने सभी 12 दुकानों को अवैध मानते हुए सीज कर दिया है। निगम की यह बड़ी कार्यवाही है। इससे शहर भर के अवैध निर्माणकर्ताओं में दहशत है। अब देखना होगा कि दुकानों का निर्माण करने वाले लोग क्या स्वायत्त शासन विभाग से दुकानों को सीज मुक्त करवाने में सफल हो पाते हैं। ऐसे कई मामले में सामने आए है, जिनमें विभाग ने सीज अवैध निर्माणों को खोलने के आदेश दिए है। सरकार ने सीज मुक्ति के अधिकार स्वायत्त शासन विभाग को दे रखे हैं। 

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Wednesday 16 November 2022

भाजपा के सांसद, विधायक और मेयर एलिवेटेड रोड की एक भुजा के लोकार्पण समारोह का बहिष्कार करेंगे।अजमेर प्रशासन पर सम्मान नहीं देने का आरोप लगाया।

अजमेर में निर्माणाधीन एलिवेटेड रोड की एक भुजा का लोकार्पण प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल 16 नवंबर को सायं चार बजे कर रहे हैं। यह लोकार्पण ऑनलाइन तकनीक से होगा, यानी धारीवाल जयपुर में रहेंगे और अजमेर कलेक्ट्रेट में बने वीडियो कॉन्फ्रेंस हॉल में अजमेर के जनप्रतिनिधि और अधिकारी उपस्थित रहेंगे। लेकिन इस ऑनलाइन लोकार्पण समारोह का सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक वासुदेव देवनानी, श्रीमती अनिता भदेल और नगर निगम के मेयर श्रीमती ब्रजलता हाड़ा ने बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। इन जनप्रतिनिधियों का कहना है कि प्रशासन ने सम्मान जनक तरीके से निमंत्रण नहीं दिया है। जनप्रतिनिधियों को जो सम्मान दिया जाना चाहिए वह अजमेर प्रशासन नहीं दे रहा है। नेताओं का कहना रहा कि एलिवेटेड रोड के निर्माण में लगातार विलंब हो रहा है, जिसकी वजह से शहर भर के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक देवनानी ने आरोप लगाया कि एलिवेटेड रोड के निर्माण में विलंब होने पर संबंधित कंपनी के विरुद्ध जुर्माना किया जाना चाहिए था, इसके विपरीत मंत्री धारीवाल जयपुर से ही लोकार्पण की रस्म अदा कर रहे हैं। धारीवाल का उद्देश्य सिर्फ कंपनी की करतूतों पर पर्दा डालना है। जिस भुजा का लोकार्पण किया जारहा है उस पर अभी लाइट भी नहीं लगाई गई है। देवनानी ने कहा कि इस भुजा पर ट्रैफिक तो दीपावली से पहले ही शुरू कर दिया गया था। अब किस बात का लोकार्पण किया जा रहा है? देवनानी ने इस बात पर अफसोस जताया कि आधे अधूरे एलिवेटेड रोड का लोकार्पण किया जा रहा है। अच्छा होता कि एलिवेटेड रोड का कार्य पूरा हो जाने पर लोकार्पण किया जाता। अभी पीआर मार्ग वाली भुजा पर गर्डर भी नहीं रखे गए हैं। इतना ही नहीं सोनी जी की नसियां के निकट तो दीवार ही बनाई जा रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि एलिवेटेड रोड का कार्य केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना के तहत हो रहा है। स्मार्ट सिटी के कार्यों पर खर्च होने वाली राशि का 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा दिया जा रहा है। भाजपा के नेता पहले भी आरोप लगा चुके हैं कि स्मार्ट सिटी के कार्यों के नाम पर केंद्र की राशि का दुरुपयोग किया जा रहा है। स्मार्ट सिटी योजना के तहत आना सागर के भराव क्षेत्र में जो पाथवे का निर्माण किया गया है। इसको लेकर भी शहरभर में नाराजगी है। पाथवे की वजह से हजारों टन मिट्टी आनासागर में भरी गई है, जिसकी वजह से आनासागर झील की भराव क्षमता कम हो गई है। स्मार्ट सिटी के इंजीनियरों ने अवैध कब्जे हटाए बगैर ही पाथ-वे का निर्माण कर दिया है जिसका फायदा अब अवैध कब्जाधारियों को मिल रहा है। 

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अनुशासनहीनता के आरोपियों पर कार्यवाही होने के बजाए अजय माकन को ही राजस्थान के प्रभारी महासचिव का पद छोड़ना पड़ा।राजस्थान में कांग्रेस की कलह और बढ़ी।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन ने राजस्थान के प्रभारी पद से इस्तीफा देने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को पत्रभेज दिया है। यह पत्र 8 नवंबर को लिखा गया है। जानकार सूत्रों के अनुसार अजय माकन अनुशासनहीनता के तीन आरोपियों पर कार्यवाही नहीं होने से खफा है। सूत्रों के अनुसार 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक के समांतर विधायकों की बैठक करने के मामले में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री महेश जोशी और आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ को अनुशासनहीनता करने का नोटिस दिया। उम्मीद जताई गई थी कि इन तीनों नेताओं पर कार्यवाही होगी। विधायक दल की बैठक निर्धारित स्थान पर नहीं होने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी श्रीमती सोनिया गांधी से माफी तक मांगी। उम्मीद थी कि आरोपी तीनों मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही होगी। लेकिन आज तक भी एक भी आरोपी के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई है। उल्टे धर्मेन्द्र राठौड़ को राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा की तैयारियों की जिम्मेदारी दे दी गई है। इन तीनों ही आरोपियों ने अजय माकन पर भी गंभीर आरोप लगाए थे। इन तीनों का कहना रहा कि 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक में अजय मकान चाहते थे कि मुख्यमंत्री पद के लिए एक लाइन का प्रस्ताव पास हो, जिसमें मुख्यमंत्री पद का निर्णय कांग्रेस हाईकमान पर छोड़ा जाए। नेताओं का कहना रहा कि ऐसा प्रस्ताव अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए करवाया जाना था। लेकिन हमने अजय माकन के षडय़ंत्र को विफल कर दिया। माकन को इस बात का भी दुख है कि जब अनुशासनहीनता के तीनों आरोपी उन पर आरोप लगा रहे थे, तब अशोक गहलोत ने कोई दखल नहीं दिया। 25 सितंबर के बाद राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने जो गुटबाजी हो रही है उससे भी अजय माकन दुखी हैं। अजय माकन को अब नहीं लगता कि अब वे राजस्थान में कोई प्रभावी भूमिका निभा पाएंगे। प्रदेश के हालातों को देखते हुए ही माकन ने इस्तीफे का पत्र खडग़े के पास भिजवा दिया गया है। माकन के इस्तीफे से राजस्थान में कांग्रेस की कलह और बढ़ गई है। सूत्रों के अनुसार पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट नहीं चाहते कि अजय माकन राजस्थान के प्रभारी के पद से हटे। पायलट ने भी हाल ही में कहा है कि जिन तीन मंत्रियों को अनुशासनहीनता का नोटिस दिया गया उन पर जल्द कार्यवाही होनी चाहिए। पायलट यह भी चाहते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद का निर्णय जल्द से जल्द हो। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान में मौजूदा हालातों में अशोक गहलोत की ही चल रही है। यही वजह है कि तीनों मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही होने के बजाए अजय माकन को भी इस्तीफा देना पड़ा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में सचिन पायलट ने तत्कालीन प्रभारी अविनाश पांडे की भूमिका पर भी एतराज जताया था। तब पांडे को प्रभारी महासचिव के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस बार पायलट समर्थक माने जाने वाले अजय माकन को प्रभारी पद छोड़ना पड़ा। 

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Sunday 13 November 2022

तो क्या सरकारी कार्मिकों को पेंशन का लाभ देने के दम पर ही विधानसभा का चुनाव जीता जा सकता है?राजस्थान में 9 करोड़ की आबादी में से 5 करोड़ मतदाता हैं। इनमें से मात्र 8 लाख सरकारी कार्मिक हैं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुजरात के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सीनियर आब्जर्वर हैं। इस नाते गहलोत ने 12 नवंबर को ही अहमदाबाद में चुनाव घोषणा पत्र जारी किया है। गुजरात में एक और पांच दिसंबर को मतदान होना है। कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का फोकस राज्य कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करना है। गहलोत का कहना है कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने अपने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम देने का निर्णय ले लिया है। गहलोत राजस्थान में भी इस स्कीम को बड़ा मुद्दा बना रहे हैं। गहलोत का कहना है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी स्कीम को लागू करने का कोई वादा नहीं किया था, लेकिन फिर मैंने सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, इसे लागू करने का निर्णय लिया है। गहलोत का यह भी कहना होता है कि 2003 के चुनाव में मैं राज्य के सरकारी कर्मचारियों को समझ नहीं पाया, इसलिए कांग्रेस का चुनाव हार गई। गहलोत तब भी राजस्थान के सीएम थे। लेकिन गहलोत को लगता है कि 2023 में उनकी सरकार रिपीट हो जाएगी, क्योंकि उन्होंने पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ देकर राज्य कर्मचारियों को खुश कर दिया है। यह बात अलग है कि पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ 2032 में रिटायर होने वाले कार्मिकों को मिलेगा। यानी अभी राज्य सरकार पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। उल्टे नई पेंशन स्कीम में राज्य सरकार को अपनी जो हिस्सा राशि देनी थी, वह भी बच गई है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या राज्य कर्मचारियों को खुश कर देने से विधानसभा का चुनाव जीता जा सकता है? राजस्थान में कुल 9 करोड़ की आबादी है और इसमें से पांच करोड़ मतदाता है। अशोक गहलोत ने पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने का निर्णय लिया है। उसका फायदा सिर्फ 8 लाख मतदाताओं (राज्य कर्मचारी) को ही मिलेगा। यानी 4 करोड़ 92 लाख मतदाताओं को कोई फायदा नहीं होगा। उल्टे पुरानी पेंशन स्कीम का बोझ गैर सरकारी मतदाताओं पर पड़ेगा। यह माना कि सरकार चलाने में कार्मिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन कार्मिकों को खुश करके चुनाव नहीं जीता जा सकता है। चुनाव जीतने के लिए आम मतदाताओं में सरकार और सरकार के मुखिया की लोकप्रियता और विश्वसनीयता होनी चाहिए। गहलोत सरकार की कितनी लोकप्रियता है, यह सरकार के मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा, प्रताप सिंह खाचरियावास, अशोक चांदना के साथ साथ पूर्व मंत्री हरीश चौधरी, भरत सिंह आदि बता रहे हैं। गुढा का तो यहां तक कहना है कि यदि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो कांग्रेस के 11 विधायक भी चुनाव नहीं जीत पाएंगे। 2013 में गहलोत के सीएम रहते मात्र 21 विधायक जीते। गहलोत सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस के नेताओं के अपने तर्क है, लेकिन गहलोत को 4 करोड़ 92 लाख मतदाताओं का भी ख्याल रखना चाहिए। 

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जो सिम्फोनिया प्रा. लि.कंपनी अजमेर का एलिवेटेड रोड बना रही है उसी कंपनी की मशीन अब नीलाम हो रही है।क्या कंपनी के सामने लाचार है अजमेर प्रशासन?

अजमेर नगर निगम के अधिशाषी अभियंता (यांत्रिक) ने 13 नवंबर को अखबारों में विज्ञापन देकर आम लोगों को सूचित किया है कि अजमेर में एलिवेटेड रोड बनाने वाली कंपनी मैसर्स सिम्फोनिया एवं ग्राफिक्स प्रा.लि. की पाइलिंग मशीन को 15 नवंबर को प्रातः 11 बजे नीलाम किया जाएगा। यह मशीन अभी कचहरी रोड स्थित पुरानी आरपीएससी भवन के सामने पड़ी है। इसी विज्ञापन में बताया गया कि मशीन को आम रास्ते से हटाने के लिए आरएसआरडीसी के परियोजना निदेशक ने 2 नवंबर 2012 (10 वर्ष पूर्व) को पत्र लिखा था, लेकिन सिम्फोनिया कंपनी ने मशीन को नहीं हटाया। इसको लेकर 11 नवंबर 2022 को जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की बैठक हुई। इस बैठक में ही पाइलिंग मशीन को जब्त और नीलाम करने का निर्णय हुआ। इसी के अनुरूप अब 15 नवंबर को प्रातः 11 बजे मशीन की नीलामी होगी। नीलामी की सरकारी बोली दस लाख रुपए रखी गई है। नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने वाले व्यक्ति को पहले 50 हजार रुपए जमा कराने होंगे।

प्रशासन की लाचारी:
नगर निगम के विज्ञापन से अजमेर प्रशासन की लाचारी प्रकट होती है। अजमेर में एलिवेटेड रोड भारत सरकार की स्मार्ट सिटी योजना के तहत बन रहा है। इस योजना के सीईओ जिला कलेक्टर को बनाया गया है। कलेक्टर ने एलिवेटेड रोड का कार्य आरएसआरडीसी (राजस्थान स्टेट रोड डवलपमेंट कारपोरेशन) को आवंटित किया है। इस एजेंसी ने मैसर्स सिम्फोनिया एंड ग्राफिक्स प्रा.लि. कंपनी को एलिवेटेड रोड बनाने का ठेका दिया है। यह रोड करीब 300 करोड़ रुपए में बन रहा है। सवाल उठता है कि जो कंपनी 300 करोड़ का काम कर रही है, वह अपनी एक मशीन को हटा नहीं रही है। जबकि स्मार्ट सिटी योजना के सीईओ स्वयं जिला कलेक्टर है। यह मशीन गत 10 वर्षों से कचहरी रोड के बीचो बीच खड़ी है। अब तो इस विशालकाय मशीन के पास ही एलिवेटेड रोड की भुजा है। यह मशीन यातायात में भी बाधक है। 10 वर्ष पूर्व लिखे पत्र के बाद भी मशीन के नहीं हटने से सिम्फोनिया कंपनी की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। जो कंपनी प्रशासन के अधीन काम कर रही है, वही कंपनी प्रशासन को चुनौती भी दे रही है। प्रशासन कंपनी की मशीन को आपसी सहमति से हटाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए जब्ती और नीलामी की कार्यवाही की जा रही है। इससे कंपनी और प्रशासन के संबंधों का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। जानकारों की मानें तो सिम्फोनिया कंपनी अब अपनी शर्तो पर एलिवेटेड रोड बना रही है, क्योंकि 90 प्रतिशत से ज्यादा राशि का भुगतान हो चुका है, जबकि काम अभी काफी बाकी है। गांधी भवन से पीआर मार्ग वाली भुजा पर तो अभी पूरे गार्डर भी नहीं रखे गए हैं। सोनी जी की नसिया के निकट तो भुजा की दीवार बनाने का काम ही हो रहा है। एलिवेटेड रोड के निर्माण में जहां लगातार विलंब हो रहा है,वहीं पिछले कई वर्षों से शहर की ट्रैफिक व्यवस्था भी बिगड़ी हुई है। शहर में लगातार जाम की स्थिति है। सिम्फोनिया कंपनी और प्रशासन के बीच तालमेल है ही नहीं। इसका खामियाजा अजमेर की जनता को उठाना पड़ रहा है। 

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Saturday 12 November 2022

85 वर्ष की उम्र में पत्नी की सेवा के साथ साथ लेखन का कार्य भी।गजब का आत्मविश्वास है साहित्यकार विनोद सोमानी हंस में।स्वर्गीय कृष्ण गोपाल गट्टानी को समर्पित की 34वीं पुस्तक, हां कहने का सुख।

अजमेर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार विनोद सोमानी हंस में 85 वर्ष की उम्र में भी गजब का आत्मविश्वास है। इस उम्र में जब अधिकांश लोग दूसरों पर आश्रित हो जाते हैं, तब विनोद सोमानी जिंदगी को मस्ती से जी रहे हैं। 12 नवंबर को सोमानी ने अपनी नवीनतम पुस्तक हाँ कहने का सुख, मुझे भेजी तो बात करने का अवसर भी मिला। मैंने जानना चाहा कि 85 वर्ष की उम्र में लेखन का कार्य कैसे कर लेते हो, तो सोमानी ने तपाक से कहा-लिखने से ही ताकत मिलती है। मैं सिर्फ लिखता ही नहीं बल्कि अपनी बीमार पत्नी की सेवा भी पूरी शिद्दत के साथ करता हंू। पत्नी की सेवा का ही फल है कि मैं 85 वर्ष की उम्र में भी अपनी 34वीं पुस्तक लिख पाया। हां कहने का सुख शीर्षक से ही प्रतीत होता है कि जीवन में सकारात्मक जरूरी है। सकारात्मकता होगी तो जीवन मस्ती से भरा होगा। यह पुस्तक  मैंने इसलिए भी लिखी है कि ताकि मनुष्य के जीवन में तनाव कम हो। इस पुस्तक के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9351090005 पर विनोद सोमानी से हंस से ली जा सकती है।
 
प्रभावी व्यंग्य:
सोमानी की पुस्तक की समीक्षा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी और सुप्रसिद्ध साहित्यकार फारुख अफरीदी ने लिखी है। फारुख अफरीदी ने लिखा है, हां कहने का सुख हिंदी में सोमानी की पहली व्यंग्य कृति है। इसमें 38 व्यंग्य आलेख हैं। इससे पहले सोमानी पांच छंद तीस राजस्थानी भाषा में व्यंग्य लिख चुके हैं। सोमानी ने मानव जीवन की व्यथा कथा, आडंबरों पर प्रहार, मनुष्य के दोगलेपन, कथनी और करनी में अंतर, साहित्य क्षेत्र की विडंबनाओं, मनुष्य की इच्छाएं, जोड़ तोड़ और जुगाड़, मानवीय गुणों-अवगुणों के हास्य व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से चुटीले अंदाज में प्रस्तुत किया है।

स्वर्गीय गट्टानी को समर्पित:
विनोद सोमानी हंस के पुत्र चार्टेट अकाउंटेंट डॉ. श्याम सोमानी ने बताया कि उनके पिता द्वारा लिखित यह पुस्तक उद्योगपति और समाजसेवी स्वर्गीय कृष्ण गोपाल गट्टानी को समर्पित की जा रही है।  गट्टानी  सांभरलेक के 1971 में उदयपुर आ कर बसे। उदयपुर में बजाज ग्रुप से जुड़ने के बाद रिलायंस ग्रुप में बड़े पदों पर काम किया।  गट्टानी को राष्ट्रीय स्तर पर उद्योग रत्न अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।  गट्टानी  ट्रस्ट के माध्यम से अनेक गरीब विद्यार्थियों को आज आर्थिक सहयोग दिया जा रहा है। कोई युवा धन के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहे इसका हमेशा ध्यान रखा जाता है। विकेंद्रीकरण के पक्षधर कृष्ण गोपाल  गट्टानी  ने अपने जीवन काल में ही व्यवसाय की जिम्मेदारी अपने पुत्र नीरज और निखिल को सौंप दी। आज उनकी पुत्रवधू  श्रीमती श्रद्धा एवं श्रीमती संगीता भी अपने अपने क्षेत्र के व्यवसाय को संभाल रही हैं। स्वर्गीय  गट्टानी  को यह पुस्तक समर्पित करते हुए सोमानी परिवार को गर्व की अनुभूति हो रही है। श्याम सोमानी ने बताया कि इस पुस्तक का प्रकाशन जयपुर स्थित साहित्यगार के द्वारा किया गया है। पुस्तक को मोबाइल नंबर 9314202010 पर फोन कर भी मंगाया जा सकता है। यह पुस्तक अमेजन और फ्लिपकार्ट के माध्यम से भी मंगाई जा सकती है। 

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पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ओबीसी आरक्षण के फेर में फंसाया।राजस्थान में तीन वर्ष भर्तियां नहीं हुई, इसलिए चुप रहा। लेकिन अब चुप नहीं रहूंगा।जी टीवी की लाइव डिबेट में हरीश चौधरी की दो टूक।

राजस्थान में ओबीसी आरक्षण की कथित विसंगतियों को लेकर 11 नवंबर को ज़ी टीवी समूह के राजस्थान के न्यूज़ चैनल पर लाइव डिबेट का प्रोग्राम हुआ। इस प्रोग्राम में विसंगती का मुद्दा उठाने वाले कांग्रेस के पूर्व राजस्व मंत्री हरीश चौधरी, भाजपा की पूर्व मंत्री और चार बार की विधायक श्रीमती अनिता भदेल के साथ पत्रकार के तौर पर मैंने भी भाग लिया। हरीश चौधरी चाहते हैं कि पूर्व सैनिकों की मेरिट आरक्षित श्रेणी में बनाई जाए। अभी यह मेरिट ओबीसी के 21 प्रतिशत आरक्षण में अलग से बनाई जा रही है। इससे ओबीसी वर्ग के युवाओं को नुकसान हो रहा है। इस कथित विसंगति को ठीक न करने के लिए हरीश चौधरी ने सीधे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जिम्मेदार ठहराया है। इससे राजस्थान की राजनीति खास कर सत्तारूढ़ कांग्रेस में खलबली मच गई है। लाइव प्रोग्राम में मैंने हरीश चौधरी से जानना चाहा कि ओबीसी वर्ग से जुड़े इस मुद्दे पर वे चार साल तक क्यों चुप रहे। पूर्व सैनिकों की मेरिट अलग से बने, यह प्रावधान तो भाजपा सरकार ने अपने अंतिम दिनों 2018 में लागू किया था। इस पर हरीश चौधरी ने स्वीकार किया कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार के शुरू के तीन वर्ष में भर्तियां नहीं हुई। अब जब भर्तियां शुरू हुई तो पता चला कि भाजपा सरकार के निर्णय से ओबीसी वर्ग के युवाओं को नुकसान हो रहा है। इसलिए यह मामला अब उठाया है। चौधरी ने कहा कि सरकार बनने के बाद लोकसभा चुनाव में और फिर दो वर्ष कोरोना काल में गुजर गए। चौधरी ने कहा कि कार्मिक विभाग सीएम गहलोत के पास है, इसलिए इस विसंगति को दूर करने की जिम्मेदारी सीएम की ही है। मैं इस मुद्दे पर लगातार सीएम से मिलता रहा, लेकिन जब 9 नवंबर को मंत्रिमंडल की बैठक में कोई निर्णय नहीं लिया गया तो मुझे मजबूरन विरोध करना पड़ा। अब यदि आंदोलन की जरूरत होगी तो वह भी किया जाएगा। मैं पूरी तरह ओबीसी वर्ग के साथ खड़ा हंू। हरीश चौधरी जिस तीखे अंदाज में ओबीसी वर्ग का मुद्दा उठा रहे हैं, उसमें सीएम गहलोत फंस गए हैं। गहलोत दावा कर रहे हैं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस सरकार रिपीट होगी, वहीं हरीश चौधरी का मानना है कि सरकार के रवैए से ओबीसी वर्ग में नाराजगी है। सब जानते हैं कि हरीश चौधरी मौजूदा समय में पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी भी हैं। चौधरी सीधे हाईकमान के संपर्क में रहते हैं। चौधरी की यह खिलाफत कांग्रेस की राजनीति में बहुत मायने रखती है। चौधरी ने लाइव प्रोग्राम में जिस बेबाक तरीके से अपना पक्ष रखा उस से प्रतीत होता है कि कांग्रेस में आंतरिक विवाद बहुत गहरा है। वहीं कांग्रेस की राजनीति में इस बार की भी चर्चा है कि हरीश चौधरी पुन: मंत्री बनने के लिए दबाव की राजनीति कर रहे हैं।
 
भदेल का संतुलित बयान:
प्रोग्राम में जहां हरीश चौधरी अपनी सरकार पर हमलावर नजर आए, वहीं भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री अनिता भदेल ने संतुलित प्रतिक्रिया दी। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व सैनिकों के लिए अलग से मेरिट बनाने का निर्णय भाजपा सरकार का ही है। भदेल ने कहा कि किसी विसंगति को दूर करने पर उन्हें कोई एतराज नहीं है, लेकिन सभी वर्गों के युवाओं का ख्याल रखा जाना जरूरी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पूर्व सैनिकों की मेरिट आरक्षित श्रेणी में बनती है तो सामान्य वर्ग के युवाओं के अवसर कम होंगे। 

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Friday 11 November 2022

गुजरात चुनाव से फ्री होते ही मंत्री पद पाने के लिए हरीश चौधरी से ज्यादा तीखी प्रतिक्रिया देंगे रघु शर्मा।आखिर अशोक गहलोत से अपने ही क्यों नाराज हो रहे हैं?मंत्री परसादी लाल मीणा ने प्रतापसिंह खाचरियावास और राजेंद्र गुढ़ा के बयानों की हवा निकाली।

राजस्थान के पूर्व राजस्व मंत्री और कांग्रेस के विधायक हरीश चौधरी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली को लेकर जो बयान दिया है, वह चौंकाने वाला है। राजस्थान में ओबीसी के 21 प्रतिशत आरक्षण से पूर्व सैनिकों को भी आरक्षण देने को लेकर चौधरी ने अपनी नाराजगी जताई है। चौधरी का कहना है कि 30 सितंबर को सीएम की ओर से कहा गया था कि ओबीसी आरक्षण की विसंगतियों को दो दिन में दूर कर दिया जाएगा। लेकिन डेढ़ माह बाद भी विसंगतियों को दूर नहीं किया। 9 नवंबर को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में भी इस मुद्दे को टाल दिया गया। विसंगतियां दूर नहीं होने से प्रदेश के ओबीसी वर्ग के युवाओं को नुकसान हो रहा है। हरीश चौधरी ने मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर सार्वजनिक तौर पर नाराजगी प्रकट कर प्रदेश भर के ओबीसी खास कर जाट समुदाय के आंदोलन को हवा दी है। प्रदेश में ओबीसी के आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ जाट समुदाय को ही मिल रहा है, क्योंकि ओबीसी की जातियों में सबसे ज्यादा शिक्षित और परिश्रमी जाट समुदाय के युवा ही है। हालांकि राजस्थान में 2018 में पूर्व सैनिकों को ओबीसी वर्ग में शामिल किया गया, लेकिन हरीश चौधरी ने अब इसे मुद्दा बनाया है। सब जानते हैं कि दो वर्ष पहले जब हरीश चौधरी को पंजाब का प्रभारी बनाया गया था, तब चौधरी राजस्थान में राजस्व मंत्री थे, लेकिन सीएम गहलोत ने चौधरी से राजस्व मंत्री पद वापस ले लिया। अब जब पंजाब के चुनाव में कांग्रेस की हार हो गई और हरीश चौधरी फ्री होकर राजस्थान आ गए हैं, तब वे चाहते हैं कि उनका केबिनेट मंत्री का पद फिर से मिल जाए। चौधरी ने तीन चार माह तो इंतजार किया, लेकिन अब और इंतजार नहीं हो पा रहा है। जानकारों की मानें तो मंत्री पद के लिए सीएम गहलोत पर दबाव बनाने के लिए ही हरीश चौधरी ने ओबीसी आरक्षण में विसंगतियों का मामला उठाया है। 8 दिसंबर के बाद गुजरात चुनाव से रघु शर्मा भी फ्री हो जाएंगे। रघु शर्मा भी हरीश चौधरी की तरह राजस्थान में चिकित्सा विभाग के कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन गुजरात का प्रभारी बनाए जाने पर सीएम गहलोत ने रघु से भी मंत्री पद ले लिया था। रघु भी चाहेंगे कि गुजरात में परिणाम आते ही उन्हें राजस्थान में वापस कैबिनेट मंत्री बना दिया जाए। यदि मंत्री बनाने में विलंब हुआ तो रघु शर्मा, हरीश चौधरी से भी ज्यादा तीखी प्रतिक्रिया दे सकते हैं। अशोक गहलोत के 2008 से 2013 के कार्यकाल में रघु शर्मा कई बार गहलोत का विरोध कर चुके हैं। रघु शर्मा को हरीश चौधरी से ज्यादा गुस्सा आता है। जानकार सूत्रों के अनुसार रघु की इच्छा के विपरीत गहलोत ने उन्हें गुजरात का प्रभारी बनवाया। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में अभी एक वर्ष शेष है। हरीश चौधरी और रघु शर्मा जैसे नेता एक वर्ष तक मंत्री पद से दूर नहीं रहना चाहते।
 
अपने ही क्यों कर रहे हैं विरोध?:
कांग्रेस के विधायक हरीश चौधरी को भी सीएम गहलोत का समर्थक माना जाता है। लेकिन चौधरी की ताजा प्रतिक्रिया से जाहिर होता है कि अब उनके मन में सीएम गहलोत को लेकर नाराजगी है। कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, राज्य मंत्री राजेंद्र गुढ़ा आदि ने पहले ही गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। आईएएस की एसीआर भरने को लेकर खाचरियावास सीएम के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं। वहीं राजेंद्र गुढ़ा गहलोत के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। इससे पहले भी कई मंत्रियों ने गहलोत की कार्यशैली पर नाराजगी जताई है। ये वो मंत्री और विधायक हैं जिन्हें गहलोत का समर्थक माना जाता है। सवाल उठता है कि अपने ही लोग गहलोत के खिलाफ क्यों  हो रहे हैं।
 
परसादी लाल मीणा आए समर्थन में:
मंत्री खाचरियावास और गुढ़ा के बयानों के विपरीत चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा अब गहलोत के समर्थन में आ गए हैं। खाचरियावास को जवाब देते हुए मीणा ने कहा कि मैं अपने विभाग के आईएएस अधिकारियों की एसीआर भरता हंू। उन्होंने कहा कि मेरा किसी भी सचिव से विवाद नहीं रहा है। राजेंद्र गुढ़ा को जवाब देते हुए मीणा ने कहा कि जो लोग ऐसे बयान दे रहे हैं वे कांग्रेस में नहीं रहना चाहते। जब कांग्रेस हाईकमान ने मंत्रियों और नेताओं को बयान देने पर रोक रखा है, तब मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लेकर क्यों बयान दिए जा रहे हैं। कांग्रेस हाईकमान को ऐसे मंत्रियों पर कार्यवाही करनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि गुढ़ा ने दो दिन पहले ही कहा था कि यदि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो अगले विधानसभा चुनाव में इनोवा कार में बैठने, जितने विधायक भी कांग्रेस के नहीं होंगे। 

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आनासागर के लिए कमेटी पर कमेटी बनाने से कुछ नहीं होगा।2014 के बाद नो कंस्ट्रक्शन जोन में हुए अवैध कब्जों को क्यों नहीं हटाया जा रहा?आनासागर की भराव क्षमता पुन: 16 फिट की जाए-धर्मेश जैन।

अजमेर के बीचो बीच बनी प्राकृतिक झील आना सागर को भू माफियाओं से बचाने के लिए हाईकोर्ट ने झील संरक्षण कमेटी बना कर रिपोर्ट तलब की है। हाईकोर्ट की इस कमेटी के निर्देश पर अजमेर प्रशासन अभी रिपोर्ट तैयार कर रही रहा है कि अब राज्य सरकार के स्वायत्त शासन विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. जोगाराम ने सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर भूपेंद्र माथुर के नेतृत्व में एक और कमेटी बना दी है। इस कमेटी के सदस्य भी अजमेर आकर जांच पड़ताल कर रहे हैं। इससे पहले भी आनासागर को लेकर अनेक जांच कमेटियां बनी, लेकिन आज तक भी आनासागर को भू माफियाओं के चंगुल से नहीं बचाया जा सका। 10 नवंबर को भी भूपेंद्र माथुर वाली कमेटी जब आना सागर का भ्रमण कर रही थी, तब भी भराव क्षेत्र में मिट्टी डाल कर आनासागर को छोटा किया जा रहा था। कमेटी पर कमेटी का तर्क समझ से परे है। जनवरी 2014 में आनासागर के भराव क्षेत्र को नो कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया गया था। इस आदेश का गजट नोटिफिकेशन भी हो चुका है। ऐसे में जनवरी 2014 के बाद हुए अवैध निर्माण टूटने ही चाहिए। जिला प्रशासन से लेकर सभी जांच कमेटियों के पास 2014 से लेकर 2022 तक की सैटेलाइट इमेज है। इससे आसानी से पता चल सकता है कि 2014 से अब तक कितना अवैध निर्माण हुआ है। जांच करने के बजाए अवैध निर्माणों को तत्काल प्रभाव से तोड़ा जाए। अजमेर के लोगों को हाईकोर्ट द्वारा बनाई गई झील संरक्षण समिति के अध्यक्ष डॉ. समित शर्मा (आईएएस) पर बहुत भरोसा है। डॉ. शर्मा ने जनवरी 2014 और नवंबर 2022 की सैटेलाइट इमेज भी तैयार कर ली है। डॉ. शर्मा को अब जिला प्रशासन की रिपोर्ट का इंतजार है। हो सकता है कि रिपोर्ट मिलने के बाद आनासागर के भराव क्षेत्र में हुए अवैध निर्माणों पर सख्त कार्यवाही हो। डॉ. समित शर्मा आनासागर के भराव क्षेत्र से अवैध कब्जों को हटाने को लेकर बेहद गंभीर हैं।
 
भराव क्षमता 16 फिट हो:
अजमेर यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष और आनासागर बचाओ समिति के अध्यक्ष धर्मेन्द्र जैन मांग की है कि आनासागर की भराव क्षमता को पुन: 16 फिट किया जाए। झील संरक्षण समिति के प्रमुख डॉ. समित शर्मा और जिला कलेक्टर अंशदीप को लिखे पत्र में जैन ने बताया कि 1975 तक आनासागर की भराव क्षमता 16  फिट थी, 16  फिट भराव क्षमता होने के कारण आनासागर के चारों तरफ पानी भरा रहता था। यही वजह थी कि भराव क्षेत्र में अवैध निर्माण भी नहीं हो पा रहे थे। लेकिन भू माफियाओं और अधिकारियों की आपसी मिलीभगत के कारण आनासागर की भराव क्षमता को 13 फिट कर दिया। इससे भराव क्षेत्र खाली रहने लगा और भू माफियाओं ने अवैध निर्माण कर लिए। अब तो आनासागर के भराव क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियां भी धड़ल्ले से हो रही है। जैन ने पत्र में आग्रह किया है कि आनासागर को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए राजस्व विभाग, नगर निगम, अजमेर विकास प्राधिकरण, स्मार्ट सिटी आदि विभागों का सहयोग लिया जाए। उन्होंने 1947 से अब तक के राजस्व रिकॉर्ड की जांच पड़ताल कराने की मांग भी की है। पत्र में कहा गया कि उन अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए जिन्होंने भराव क्षमता को 16 फिट से घटाकर 13 फिट किया है। यदि आनासागर में 16 फिट तक पानी भरा जाता है तो अवैध कब्जों की समस्या भी हर जो जाएगी। 

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Thursday 10 November 2022

सरकार की उपलब्धियां आमजन तक पहुंचे, यही उद्देश्य है जनसंपर्क निदेशालय का।राजस्थान के पत्रकारों के लिए हर वक्त दरवाजे खुले हैं-निदेशक पुरुषोत्तम शर्मा।

7 नवंबर को मैं जयपुर प्रवास पर रहा, तभी मेरी मुलाकात राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय के निदेशक पुरुषोत्तम शर्मा से हुई। मुझे यह अच्छा लगा कि कमरे के बाहर पर्ची का कोई सिस्टम नहीं था। यानी कोई भी पत्रकार अथवा जरुरतमंद व्यक्ति सीधे निदेशक से मिल सकता है। आम तौर पर ऐसी व्यवस्था सरकारी दफ्तरों में नहीं होती है। मैंने देखा कि निदेशक शर्मा राज्य सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने के काम में जुटे हुए थे। सरकार की उपलब्धियां इस तरह से प्रस्तुत की जाए ताकि जरूरतमंद  व्यक्ति लाभ उठा सके। शर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गरीबों के प्रति बहुत की संवेदनशील है। मुख्यमंत्री चाहते हैं कि चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में अधिक से अधिक परिवार पंजीकृत हो ताकि प्राइवेट अस्पतालों में भी गरीब का इलाज हो सके। सरकार की ऐसी अनेक कल्याणकारी योजनाएं हैं, जिनका लाभ जरूरतमंद व्यक्तियों को मिलना ही चाहिए। हमारा विभाग समय समय पर विभिन्न योजनाओं के फोल्डर भी छपवाता है, बाद में ऐसे फोल्डरों को सार्वजनिक समारोह में वितरित किए जाते हैं। शर्मा ने बताया कि उनका निदेशालय प्रतिमाह सुजस पुस्तिका का प्रकाशन भी करवाता है। इसकी पांच लाख प्रतियां छपवाई जाती है। प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में इस पुस्तिका को भेजा जाता है। इस पुस्तिका में भी सरकार की विभिन्न योजनाओं का विवरण होता है। उनके निदेशालय का काम पारदर्शिता के साथ हो रहा है। उन्हें जो भी सुझाव प्राप्त होते है उनका अध्ययन करवाने के बाद क्रियान्विति भी की जाती है।
 
500 पत्रकारों का अधिस्वीकरण:
निदेशक शर्मा ने बताया कि प्रदेश के 500 पत्रकारों का अधिस्वीकरण हो चुका है। अधिस्वीकरण की प्रक्रिया निरंतर जारी है। सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ अधिस्वीकृत पत्रकारों को तो मिलता ही है, साथ ही गैर अधिस्वीकृत पत्रकारों की मेडिकल डायरी बच्चों के लिए छात्रवृत्ति आदि की सुविधाएं भी दी जा रही है। पत्रकारों की मांग को ध्यान में रखते हुए अधिस्वीकरण की प्रक्रिया को और सरल बनाया जा रहा है ताकि जिला स्तर पर कार्यरत पत्रकारों को भी लाभ मिल सके। उन्होंने बताया कि 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले अधिस्वीकृत पत्रकारों को पत्रकार  सम्मान निधि के तौर पर 15 हजार रुपए मासिक दिए जा रहे हैं। पत्रकारों की समस्याओं के निदान के लिए निदेशालय हमेशा तत्पर रहता है। कोई भी पत्रकार उनके दफ्तर में आकर आसानी से मिल सकता है। पत्रकारों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी बेहद संवेदनशील है। सीएम गहलोत भी चाहते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक पत्रकारों को मिले।
 
अनेक नवाचार:
आमतौर पर जनसंपर्क विभाग के निदेशक आईएएस को ही बनाया जाता है, लेकिन सरकार ने इस समय राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा को निदेशक बना रखा है। सरकार ने जिस उम्मीद के साथ शर्मा को नियुक्त किया है, उस पर वे खरा भी उतर रहे हैं। शर्मा ने अपने एक वर्ष के कार्यकाल में कई नवाचार भी किए हैं। इनमें ईबुलेटिन, वीडियो बुलेटिन और ऑडियो बुलेटिन भी शामिल है। यानी सरकार की महत्वपूर्ण खबरों को मोबाइल पर भी सुना जा सकता है। 

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गुजरात की तरह क्या राजस्थान के भाजपा नेता भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करेंगे?

एक साल पहले तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने वाले विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री निनित पटेल सहित एक दर्जन भाजपा नेताओं ने घोषणा की है कि अब वे विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। माना जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की समझाइश के बाद गुजरात के भाजपा नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया है। गुजरात में इसी माह चुनाव होने हैं। हालांकि यह निर्णय ऐन मौके पर लिया गया है, लेकिन फिर भी यह माना जा रहा है कि इससे भाजपा की स्थिति मजबूत होगी तथा नए और युवाओं को आगे आने का मौका मिलेगा। राजनीति में ऐसा बहुत कम होता है, जब कोई नेता स्वेच्छा से चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करे। गुजरात में भाजपा गत 27 वर्षों से सत्ता में है। सत्ता में बने रहने के लिए जो कुछ भी किया जाता है, वह किया जा रहा है। गुजरात के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्रतिष्ठा भी जुड़ी है। सवाल उठता है कि क्या राजस्थान के कुछ वरिष्ठ नेता भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करेंगे? राजस्थान में ऐसे कई नेता है जो कई बार विधायक, मंत्री अथवा अन्य महत्वपूर्ण पदों पर हैं, लेकिन उनका विधायक और मंत्री बनने का लालच नहीं छूट रहा है। ऐसे नेता, कार्यकर्ता की वजह से चुनाव तो जीत जाते हैं, लेकिन कार्यकर्ता को विधायक मंत्री नहीं बनने देते। चार चार, पांच पांच बार विधायक रहने के बाद भी ऐसे नेता लाभ के पद से चिपके रहना चाहते हैं। ऐसे नेताओं की वजह से ही युवा कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल रहा है। राजस्थान में ऐसे अनेक विधायक हैं जो सिर्फ वसुंधरा राजे को ही मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। भाजपा का आला कमान माने या नहीं लेकिन राजस्थान में भाजपा दो भागों में बंटी हुई है। एक भाग वसुंधरा राजे का है और दूसरा संगठन का। हालांकि राजे ने कभी भी स्वयं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया, लेकिन उनके समर्थक राजे को ही मुख्यमंत्री बनने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह ने कहा भी है कि इस बार कमल के फूल और केंद्र सरकार की नीतियों पर ही चुनाव लड़ा जाएगा, लेकिन फिर भी भाजपा एकजुट नजर नहीं आ रही है। पिछले दिनों ही भाजपा नेताओं का एक शिष्टमंडल जब विधानसभा अध्यक्ष से मिला था तो उसमें वसुंधरा राजे शामिल नहीं थीं। कांग्रेस के 90 विधायकों के इस्तीफे से जुड़े इस मामले में यदि वसुंधरा राजे साथ होती तो विधानसभा अध्यक्ष पर और ज्यादा दबाव पड़ता। डॉ. सीपी जोशी इस्तीफे पर कब निर्णय लें, यह उनका विशेषाधिकार है। अलबत्ता गुजरात में भाजपा नेताओं ने जो पहल की है, उसका राजस्थान में इसलिए महत्व है कि यहां एक वर्ष बाद ही चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के परिणाम आते ही भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का फोकस राजस्थान पर रहेगा। जो नेता राष्ट्रीय नेतृत्व का इशारा समझेगा, वह फायदे में रहेगा। गुजरात में जिन नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है, उन्होंने भी हाईकमान का इशारा ही समझा है। राजस्थान में वैसे भी इस बार भाजपा की बारी है। पिछले पांच बार प्रदेश की जनता एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर दे रही है। मौजूदा समय में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही है। गंभीर बात यह है कि गहलोत सरकार के मंत्री खुद कह रहे हैं कि इस बार कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं होगी।  

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अशोक गहलोत के बारे में जो बात कथित तौर पर एक साल पहले रघु शर्मा ने कही, वही बात अब सार्वजनिक तौर पर मंत्री राजेंद्र गुढा कह रहे हैं।मुख्यमंत्री को सीधे चुनौती की बात पर भी गुढ़ा मंत्री बने हुए हैं।

राजस्थान के सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा ने सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है कि यदि अशोक गहलोत ही कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो अगले चुनाव में कांग्रेस के इतने विधायक ही होंगे जो एक इनोवा कार में आ सके। सब जानते हैं कि इनोवा कार में यदि यात्रियों को ठूंस ठूंस कर बैठाया जाए तो भी दस से ज्यादा नहीं आ सके। गुढा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कांग्रेस को यदि सरकार रिपीट करवानी है तो सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। पाठकों को याद होगा कि गुजरात में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हार्दिक पटेल ने भी गुजरात कांग्रेस के प्रभारी रघु शर्मा के हवाले से कहा था कि अशोक गहलोत के रहते राजस्थान में कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। रघु शर्मा ने यह बात तब कही, जब अशोक गहलोत की पहल पर ही उन्हें चिकित्सा मंत्री के पद से हटाकर गुजरात का प्रभारी बनाया गया था। उस समय हार्दिक पटेल गुजरात कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष थे। इसलिए दोनों के बीच सामान्य संवाद ही होता रहा था। हालांकि बाद में रघु शर्मा ने हार्दिक पटेल के बयान का खंडन कर दिया था। लेकिन तब रघु शर्मा के इस कथित बयान को लेकर राजस्थान की राजनीति गरमा गई थी, लेकिन राजनीति में अभी रघु शर्मा की जो इमेज है उसे देखते हुए यह माना गया कि रघु शर्मा ऐसी बात कह सकते हैं। रघु शर्मा के खेमे से ही गुजरात कांग्रेस में असंतोष का माहौल बन रहा है। चुनाव के मौके पर ही कांग्रेस के कई विधायक और नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। अशोक गहलोत ने भले ही कांग्रेस को मजबूत करने के लिए रघु शर्मा को गुजरात भेजा हो, लेकिन रघु के जाने के बाद ही कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो रही है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस, आम आदमी पार्टी से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने गुजरात में तेजी से कदम जमाए हैं। गुजरात के मुस्लिम मतदाताओं में भी कांग्रेस से ज्यादा केजरीवाल के प्रति आकर्षण है। हालांकि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को गुजरात का सीनियर आब्र्जवर  बनाया गया है, लेकिन गुजरात में गहलोत के बजाए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सक्रियता ज्यादा नजर आ रही है। केजरीवाल का गुजरात के मुस्लिम वोटरों पर कुछ ज्यादा ही फोकस है। वहीं अशोक गहलोत अपने राजस्थान में ही कांग्रेस के अंतर्विरोध में उलझे हुए हैं। सरकार के अनेक मंत्री अपने ही मुख्यमंत्री के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं। गहलोत के सीएम पद को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। 

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Tuesday 8 November 2022

हिंदू संस्कृति की तरह निकली मुस्लिम परिवार की बारात। महिलाओं ने बारात में डांस भी किया।गनी गुरदेजी के पोते के निकाह में हल्दी की रस्म भी हुई।नरेश सालेचा के भतीजे के रिसेप्शन पर फूलों के गुलदस्ते नहीं लिए।

6 नवंबर को मुझे अजमेर के एमए कादरी बिल्डर्स के मालिक हाजी मुस्तकीम खान कादरी के पुत्र आमिर खान की बारात में शरीक होने का अवसर मिला। यह बारात मुस्तकीम खान के हरिभाऊ उपाध्याय नगर से रवाना हुई, लेकिन इससे पहले सभी बारातियों के सिर पर साफे बांधे गए। बारात शुरू होते ही सड़क पर आतिशबाजी शुरू हो गई। दूल्हा घोड़ी पर बैठा तो परिवार की महिलाओं और लड़कियों ने डांस शुरू कर दिया। फिल्मी गानों पर लड़कों ने भी लड़कियों के साथ जमकर डांस किया। आतिशबाजी और सामूहिक डांस का दौर निकाह स्थल लक्ष्मी पैलेस तक जारी रहा। बारात के पहुंचने पर लड़की वालों ने सभी बारातियों को मोतियों की माला पहनाकर स्वागत किया। पूरे रास्ते नोटों की बरसात की गई। मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि मैं किसी मुस्लिम परिवार की बारात में शरीक हुआ हंू। कुछ लोग धार्मिक स्थलों पर चाहे जैसे नारे लगा लें, लेकिन अधिकांश मुस्लिम परिवार ऐसे हैं जो हिन्दू संस्कृति के अनुरूप ही मांगलिक कार्य करते हैं। जिस शान ओ शौकत के साथ बारात निकाली गई, उसमें हाजी मुस्तकीम खान कादरी को बधाई मिलनी चाहिए। इसके लिए मोबाइल नंबर 9414414166 पर मुस्तकीम को बधाई दी जा सकती है। भारत में कुछ लोग भले ही हिजाब को मुद्दा बना रहे हों, लेकिन आमिर खार ने तो निकाह से पहले विभिन्न स्थानों पर अपनी मंगेतर के साथ फोटोशूट भी करवाए।
 
हल्दी की रस्म भी:
अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह गांधी परिवार के खादिम सैय्यद अब्दुल गनी गुरदेजी के पौत्र और सैय्यद जकरिया गुरदेजी के पुत्र अली अब्बास का निकाह 6 नवंबर को हुआ। गनी गुरदेजी ने बताया कि निकाह से पहले 5 नवंबर को हल्दी की रस्म वैसे ही हुई जैसे हिन्दुओं में विवाह के अवसर पर होती है। गुरदेजी परिवार की महिलाओं ने दूल्हे अली अब्बास के शरीर पर हल्दी लगाई। 6 नवंबर को खादिम मोहल्ले से बारात भी निकाली गई तो 8 नवंबर को रिसेप्शन भी रखा गया। गुरदेजी ने कहा कि निकाह में अधिकांश रस्में हिन्दू संस्कृति के अनुरूप ही होती है। गुरदेजी का मानना रहा कि आम हिन्दू और मुसलमान आज भी भाईचारे के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन कुछ कट्टरपंथी हैं जो बेवजह का विवाद खड़ा करते हैं। अधिकांश खादिमों के बच्चे कान्वेंट स्कूलों में पढ़ते हैं।
 
फूलों के गुलदस्ते भी नहीं लिए:
नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के सदस्य और रेलवे बोर्ड के सदस्य रहे नरेश सालेचा के भतीजे और ग्रेनाइट कारोबारी अनिल सालेचा के पुत्र अरिहंत के विवाह के उपलक्ष्य में 7 नवंबर को जयपुर के सिरसी रोड स्थित आनंद वन (आम्रपाली) समारोह स्थल पर रिसेप्शन हुआ। सभी मेहमानों का सालेचा बंधुओं ने पूरी आत्मीयता के साथ स्वागत किया। लेकिन किसी भी मेहमान से फूलों के गुलदस्ते भी स्वीकार नहीं किए गए। असल में किसी भी प्रकार का उपहार न आने का आग्रह निमंत्रण पत्र के साथ ही कर दिया गया था। इतना ही नहीं 7 नवंबर को एक बार फिर सूचित किया गया कि रिसेप्शन में फ्लावर भी स्वीकार नहीं होंगे। आम तौर पर जब कोई अधिकारी बड़े पद पर होता है, तब उपहार स्वीकार करने में झिझक नहीं दिखाता। क्योंकि जितना बड़ा पद उतना बड़ा उपहार। लेकिन सालेचा बंधुओं ने फ्लावर भी स्वीकार नहीं कर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। मौजूदा समय में भी सालेचा देश भर की कंपनियों के विवादों को निपटाने वाली अपीलेट अदालत के तकनीकी सदस्य हैं। सदस्य का पद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के समकक्ष होता है। 7 नवंबर को हुए समारोह में राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया, हाईकोर्ट जजेज, सीनियर एडवोकेट, प्रशासनिक अधिकारी, दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक दीनबंधु चौधरी, समाजसेवी सुभाष काबरा, एडवोकेट हर्षित मित्तल आदि उपस्थित रहे।

S.P.MITTAL BLOGGER (08-11-2022)
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95 साल की उम्र में भी स्वस्थ और प्रसन्न हैं लालकृष्ण आडवानी।जन्मदिन पर आडवाणी को घर जाकर बधाई दी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।

8 नवंबर को पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का 95वां जन्मदिन उत्साह के साथ मनाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घर जाकर आडवाणी को जन्मदिन की बधाई दी। जन्मदिन पर बधाई देने की परंपरा को पीएम मोदी पिछले 8 वर्षों से निरंतर निभा रहे हैं। भारत की राजनीति के लिए अच्छी बात है कि 95 वर्ष की उम्र में लालकृष्ण आडवाणी स्वस्थ और प्रसन्न हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा को सफलता के इस मुकाम पर पहुंचाने में आडवाणी की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्ष 2013 में जब भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था, तब कई नेताओं ने आडवाणी की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। कांग्रेस वामपंथी दलों आदि के नेताओं ने आडवाणी के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंता भी जताई, लेकिन अब विपक्ष का कोई नेता आडवाणी को जन्मदिन पर बधाई नहीं दे रहा है। वहीं प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी घर जाकर बधाई देने की परंपरा को निरंतर निभा रहे हैं। मोदी समय समय पर आडवाणी के स्वास्थ्य की जानकारी भी परिजन से लेते रहते हैं। प्रधानमंत्री घर जाकर आडवाणी को बधाई देते हैं, इससे पता चलता है कि भाजपा की राजनीति में आडवाणी का कितना योगदान है। जन्मदिन पर राजनाथ सिंह द्वारा बधाई दिया जाना भी महत्वपूर्ण है। 2013 में जब राजनाथ सिंह भाजपा के अध्यक्ष थे, तब ही मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। उस समय राजनाथ सिंह ने ही प्रभावी भूमिका निभाते हुए वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी के बीच तालमेल भी बैठाया। राजनाथ सिंह का उस समय यह स्पष्ट कहना रहा कि नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त नेता है। भाजपा ने मोदी को जो जिम्मेदारी दी पर वे खरे भी उतरे हैं। मोदी के नेतृत्व में ही 2014 और 2019 में भाजपा को बहुमत मिला। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी आज भले ही कन्या कुमारी से कश्मीर तक की यात्रा निकाल रहे हों, लेकिन आडवाणी तो बहुत पहले ही कन्या कुमारी से कश्मीर तक की यात्रा निकाल चुके हैं। आडवाणी की यात्रा के संयोजक भी नरेंद्र मोदी ही रहे। आडवाणी ने यात्रा के समापन पर कश्मीर में जो संकल्प लिया उसी को पूरा करते हुए नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करवाया। 

S.P.MITTAL BLOGGER (08-11-2022)
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