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Thursday, 5 June 2025
25 मई को जो ब्लॉग लिखा उस पर 5 जून को सरकार ने अमल किया। गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम वित्त विभाग से लेकर स्वास्थ्य विभाग को देने से निजी अस्पतालों, सरकारी कार्मिकों आदि सभी को राहत मिलेगी।
5 जून को सरकार ने एक आदेश जारी कर फैसला किया कि राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) का नियंत्रण अब वित्त विभाग के बजाए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधीन होगा। सरकार की इस खबर को प्रकाशित करने के साथ दैनिक भास्कर ने श्रेय लिया है, यह फैसला भास्कर की 30 और 31 मई को प्रकाशित खबरों के आधार पर लिया गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि भास्कर में प्रकाशित हर खबर का सरकार पर असर पड़ता है, लेकिन जो पाठक मेरे ब्लॉग को नियमित पढ़ते हैं, उन्हें पता है कि गत 25 मई को ब्लॉग संख्या 11 हजार 617 में मैंने वित्त विभाग आरजीएचएस, निजी अस्पताल, पीड़ित सरकारी कर्मचारियों आदि की परेशानियों को उजागर किया था। इस ब्लॉग में मेरा फोकस यही था कि वित्त विभाग में जो आईएएस है, उन्हें चिकित्सा प्रणाली का ज्ञान नहीं है। चूंकि नवीन जैन (सचिव वित्त व्यय) जेसे आईएएस चिकित्सा प्रणाली को नहीं समझते हैं, इसलिए वे ऐसे फैसले कर रहे थे, जिसकी वजह से आरजीएचएस का उद्देश्य ही समाप्त हो रहा था। मेरा सुझाव था कि सरकार को आरजीएचएस की स्कीम को वित्त विभाग से लेकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को दी जाए और मेडिकल चिकित्सा के डॉक्टर समिति शर्मा जैसे आईएएस को जिम्मेदारी दी जाए। सरकार ने भले ही फिलहाल समित शर्मा को यह जिम्मेदारी न दी हो, लेकिन आरजीएचएस को वित्त विभाग से हटाकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधीन कर दिया है। सरकार के इस फैसले से निजी अस्पतालों, सरकारी कर्मचारियों आदि सभी को राहत मिलेगी। अब कम से कम अस्पताल में भर्ती मरीज की सच्चाई के बारे में समझा जा सकेगा। आरजीएचएस की आड़ में जिन निजी अस्पतालों ने फर्जीवाड़ा किया, उसका कारण भी अधिकारियों की नासमझी था। कुछ बेईमान निजी अस्पतालों का खामियाजा अधिकांश निजी अस्पतालों को उठाना पड़ रहा था। प्रदेश के जो निजी अस्पताल पूरी तरह पारदर्शिता के साथ करीब 12 लाख सरकारी और सेवा नियुक्त कर्मियों का इलाज कर रहे थे, उन्हें भी बिना किसी कारण के बेईमान समझा जा रहा था। इसका खामियाजा सरकारी कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा था। वित्त विभाग में बैठे आईएएस को इतनी समझ ही नहीं थी कि कौन से निजी अस्पताल बेईमान है या ईमानदार। बजट घटाने की आड़ में अंट शंट फैसले किए जा रहे थे। इसमें कोई दो राय नहीं की जो निजी अस्पताल फर्जीवाड़ा कर रहे हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही उन निजी अस्पतालों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए जो सरकारी कार्मिकों का पारदर्शिता के साथ इलाज कर रहे हैं। अब ब आरजीएचएस चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधीन आ गया है, तब उम्मीद की जानी चाहिए कि पारदर्शी और बेईमान निजी अस्पताल में फर्क होगा। सरकार को चाहिए कि समित शर्मा जैसे आईएएस अफसरों को सरकारी स्कीमों की क्रियाविधि की जिम्मेदारी दी जाए। डॉ. समित शर्मा पहले भी सरकार की निशुल्क दवा योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। डॉ. शर्मा की ईमानदारी पर आज तक कोई संदेह व्यक्त नहीं किया गया है। मौजूदा समय में डॉ. शर्मा पशुपालन विभाग के प्रमुख शासन सचिव है।
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प्रोफेसर भगवती प्रसाद सारस्वत किसी विश्वविद्यालय के कुलपति (कुलगुरु) तो 10 वर्ष पहले ही बन सकते थे। कोटा विश्वविद्यालय के कुलगुरु की नियुक्ति का मामला
241 कॉलेज और 3 लाख विद्यार्थियों वाले कोटा विश्वविद्यालय के कुलगुरु का पद प्रोफेसर भगवती प्रसाद सारस्वत 7 नजू को सायं चार बजे संभाल लेंगे। सत्तारूढ़ भाजपा के दिग्गज नेता प्रोफेसर सारस्वत ही कुलगुरु के पद पर नियुक्त 5 जून को राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने की है। विश्वविद्यालयों में नियुक्तियां राजनीतिक नजरिए से ही होती है, इसलिए स्वाभाविक है कि प्रो. सारस्वत की नियुक्ति में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सहमति रही। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रो. सारस्वत भाजपा के प्रभावशाली नेता होने के साथ साथ योग्य शिक्षाविद् भी हैं। मैं सारस्वत को तब से जानता हंू जब वे ब्यावर के कॉलेज में शिक्षक थे और तब भी हिंदुत्व के लिए सक्रिय थे। ब्यावर क्षेत्र के चीता मेहरात बाहुल्य गांवों में धर्म परिवर्तन न हो इसके लिए सारस्वत को कई बार संघर्ष भी करना पड़ा। मुझे अच्छी तरह ध्यान है कि वर्ष 2013 में जब वसुंधरा राजे भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री बनी तब सारस्वत बड़ी आसानी से अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी या अन्य किसी यूनिवर्सिटी के कुलपति बन सकते थे, लेकिन तब राजे ने सारस्वत का उपयोग भाजपा संगठन के लिया किया। चूंकि यूनिवर्सिटी के शिक्षक राजनीति में खुलकर भाग ले सकते हैं, इसलिए प्रो. सारस्वत को एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाणिज्य संकाय का डीन होते हुए अजमरे देहात भाजपा का जिला अध्यक्ष भी बना दिया। सीएम वसुंधरा राजे को प्रो. सारस्वत की योग्यता का पता था, इसलिए राज्य स्तरीय बीएचटी और बीएड जैसी प्री परीक्षा की जिम्मेदारी प्रो. सारस्वत को दी गई। वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए राजनीति में प्रो. सारस्वत का जबरदस्त रुतबा था। उस समय सारस्वत चाहते तो किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति बन सकते थे। प्रो. सारस्वत की उम्र अभी 65 वर्ष है, यानी वे कोटा विश्वविद्यालय के कुलगुरु के पद पर निर्धारित तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करेंगे। कुलगुरु के पद पर 70 वर्ष तक काम किया जा सकता है। सारस्वत ने प्रदेश स्तर पर भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने का काम भी किया है। चूंकि सारस्वत के संबंध मौजूदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से भी अच्छे रहे इसलिए उन्हें कोटा विश्वविद्यालय का कुलगुरु नियुक्त किया गया है। यह अच्छी बात है कि राजस्थान के किसी शिक्षाविद को ही कुलगुरु के पद पर नियुक्ति मिली है। इससे पहले राज्यपाल रहे कल्याण सिंह और कलराज मिश्र के कार्यकाल में राजस्थान के अधिकांश विश्वविद्यालयों में उत्तर प्रदेश के कुलपतियों की नियुक्तियां हुई। कलराज मिश्र तो इतने होशियार राज्यपाल थे कि उन्होंने कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी अपने प्रदेश के शिक्षाविदों की सिफारिश करवा दी। मोबाइल नंबर 9414007655 पर नवनियुक्त कुलगुरु प्रो. सारस्वत को बधाई दी जा सकती है।
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65 करोड़ की भीड़ वाले महाकुंभ की व्यवस्थाओं पर अंगुली उठाने वाले बेंगलुरु में 4 लाख की भीड़ को नहीं संभाल सके। इस्तीफा तो कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को देना चाहिए।
4 जून को कर्नाटक के बेंगलुरु में चार लाख की भीड़ को नियंत्रित नहीं करने के मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर सहित कई बड़े अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया है। आरोप है कि रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु क्रिकेट टीम जब आईपीएल का कप लेकर आई तो पुलिस ने भीड़ का आकलन नहीं किया। 35 जार की क्षमता वाले चिन्नास्वामी क्रिकेट स्टेडियम में चार लाख क्रिकेट प्रेमी आ गए। स्टेडियम के बाहर जो भगदड़ मची उसमें 11 क्रिकेट प्रेमियों की मौत हो गई। इस समारोह में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी मौजूद थे और उन्हीं की सहमति से आरसीबी की क्रिकेट टीम के लिए जश्न मनाया गया, लेकिन सिद्धारमैया ने सारी जिम्मेदारी बैंगलुरू पुलिस पर डाल दी। ये वो ही सिद्धारमैया है जिन्होंने प्रयागराज में हुए महाकुंभ की व्यवस्थाओं पर अंगुली उठाई थी। सिद्धारमैया ही नहीं कांग्रेस के सभी नेताओं ने महाकुंभ की व्यवस्थाओं को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना की। सब जानते हैं कि महाकुंभी की 45 दिनों की अवधि में 65 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने प्रयागराज में गंगा नदी में डुबकी लगाई। एक दिन में आठ करोड़ लोगों ने भी गंगा स्नान किया। जो लोग 65 करोड़ वाले महाकुंभ की व्यवस्थाओं पर अंगुली उठा रहे थे, वे अब चार लाख की भीड़ को भी नियंत्रित करने में विफल रहने के बाद भी चुप है। बेंगलुरु में हुई 11 लोगों की मौत और सरकार की विफलता पर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर कोई टिप्पणी नहीं की। अच्छा होता कि पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड करने के बजाए सिद्धारमैया खुद कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देते। अधिकारियों को सस्पेंड करने की कार्यवाही भी तब की है, जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने भगदड़ की घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से रिपोर्ट तलब की है।
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Wednesday, 4 June 2025
डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने पुष्कर के जिस रिसोर्ट का एमओयू किया उसे नगर परिषद ने सीज कर दिया। राइजिंग राजस्थान के अंतर्गत सौ करोड़ का निवेश।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट राइजिंग राजस्थान के अंतर्गत 29 अक्टूबर 2024 को प्रदेश की डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने अजमेर के कारोबारी गुरविंदर सिंह के साथ एक एमओयू किया। इस एमओयू के अंतर्गत सरकार ने भरोसा दिलाया कि पर्यटन नीति के अंतर्गत पुष्कर के वाम रोड पर सौ करोड़ रुपए की लागत वाले रिसोर्ट के निर्माण में पूरा सहयोग किया जाएगा। दीया कुमारी की उपस्थिति में हुए इस एमओयू पर अजमेर के जिला कलेक्टर लोकबंधु और प्रोजेक्ट के मालिक गुरविंदर सिंह के डिजिटल हस्ताक्षर भी हैं। दीया कुमारी ने अजमेर के ग्रेड जिनिया होटल में हुए राइजिंग राजस्थान के भव्य समारोह में कलेक्टर को निर्देश दिए कि छोटे निवेशकों का पूरा ख्याल रखा जाए, लेकिन 3 जून को पुष्कर नगर परिषद के गुरविंदर सिंह के इसी रिसोर्ट को सीज कर दिया। परिषद के आयुक्त जर्नादन शर्मा का कहना है कि रिसोर्ट के निर्माण के लिए नगर परिषद से कोई अनुमति नहीं ली गई। जबकि रिसोर्ट के मालिक गुरविंदर सिंह का कहना है कि यह निर्माण सरकार की एमएसएमई और पर्यटन नीति के तहत हो रहा है, इसलिए सभी स्वीकृतियां चरणबद्ध तरीके से ली जा रही है। जिस 18 हजार 813 वर्ग मीटर के दो भूखंडों पर रिसोर्ट का निर्माण हो रहा है, उसकी भूमि के पट्टे भी अजमेर विकास प्राधिकरण से लिए गए हैं। इसके बाद ही नगर परिषद के बायलॉज के अनुसार सैड बैक छोड़कर रिसोर्ट का निर्माण किया गया। पिछले वर्ष से निर्माण हो रहा है और अब जब 90 प्रतिशत निर्माण पूरा हो चुका है, तब रिसोर्ट को सीज किया गया है। जब कोई निर्माण नियम विरुद्ध है ही नहीं तो फिर सीज क्यों किया गया? जहां तक मानचित्र स्वीकृत करवाने का सवाल है तो एमएसएमई और पर्यटन नीति के तहत प्रक्रिया जारी है। हमने इस नीति के नियमों के अनुसार ही रिसोर्ट बनाया है। नगर परिषद ने जो द्वेषतापूर्ण कार्यवाही की है उसकी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, डिप्टी सीएम दीया कुमारी और क्षेत्र के विधायक व कैबिनेट मंत्री सुरेश रावत का ध्यान आकर्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि परिषद की इस कार्यवाही से भारी आर्थिक नुकसान शुरू हो गया है, क्योंकि रिसोर्ट पर करोड़ों रुपए का लोन बैंकों से लिया गया है। इस पूरे प्रकरण की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9828171421 पर गुरविंदर सिंह से ली जा सकती है।
राइजिंग राजस्थान को धक्का:
गुरविंदर सिंह के रिसोर्ट को सीज किए जाने से प्रतीत होता है कि प्रशासन में ऐसे अधिकारी बैठे है जो पीएम मोदी और सीएम शर्मा के राइजिंग राजस्थान को धक्का लगा रहे हैं। खबरें आ रही है कि जिन लोगों ने राइजिंग राजस्थान में एमओयू किए उनमें से अधिकांश लोग सरकार से रियायती दर पर जमीन मांग रहे है। जबकि गुरविंदर सिंह तो अपनी खातेदारी और पट्टे शुदा भूमि पर रिसोर्ट बना रहे हैं। पुष्कर में कृषि भूमि पर रिसोर्ट बने हैं, उन पर नगर परिषद ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं की। इसके विपरीत उस रिसोर्ट को सीज कर दिया जो पट्टे शुदा भूमि पर सरकार की नीति के अनुरूप बन रहा है। इतने बड़े प्रोजेक्ट को सीज करने से पहले परिषद के अधिकारियों ने जिला कलेक्टर लोकबंधु को भी विश्वास में नहीं लिया। पुष्कर नगर परिषद में भ्रष्टाचार की शिकायत चमर पर है, लेकिन परिषद के अधिकांश अधिकारी चुप है।
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नागौर में जाट राजपूत एकता को बनाए रखने के लिए सकारात्मक प्रयास। इसलिए क्षत्रिय करणी सेना के राज शेखावत की 8 जून वाली रैली को समर्थन नहीं मिल रहा।
श्री अमर एज्युकेशनल सोसायटी और श्री अमर राजपूत छात्रावास के पदाधिकारियों ने नागौर के जिला कलेक्टर को एक पत्र लिखकर आग्रह किया है कि क्षत्रिय करणी सेना के राज शेखावत को 8 जून को नागौर में रैली करने की अनुमति नहीं दी जाए। क्योंकि इस रैली से कानून व्यवस्था बिगड़ने की संभावना है। नागौर का संपूर्ण राजपूत समाज ऐसी रैली का समर्थन नहीं करता है। कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन पर अध्यक्ष नारायण सिंह भाटी, उपाध्यक्ष करण सिंह राठौड़, सचिव मनोहर सिंह सांखला, छैल सिंह चौहान, लक्ष्मण सिंह, नरेंद्र सिंह, राम सिंह आदि के भी हस्ताक्षर है। राजपूत समाज की सकारात्मक पहल का स्वागत अभिनव राजस्थान के डॉक्टर अशोक चौधरी और सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम टापरवाड़ा ने स्वागत करते हुए जाट समाज से भी ऐसा ही प्रयास करने की अपील की है। डॉ. चौधरी और टापरवाड़ा का कहना है कि कुछ लोग खरनाल मंदिर और लोक देवता तेजाजी के नाम वाले मंच का दुरुपयोग कर समाज में वैमनस्यता फैलाने का काम कर रहे है। जाट समाज के ऐसे नेताओं से समाज को नुकसान हो रहा है। लोक देवता तेजाजी सभी कौमों के पूज्य है, इसलिए उनकी गरिमा को ऐसे कृत्यों से कम न किया जाए। तेजाजी के मंदिर को राजनीति से दूर रखा जाए। उन्होंने कहा कि क्ष9ीय करणी सेना के राज शेखावत की रैली का राजपूत समाज द्वारा ही विरोध किया जाना यह दर्शाता है कि राजपूत समाज, जाट समाज से कोई टकराव नहीं चाहता। मालूम हो कि विगत दिनों नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान की रियासतों को लेकर जो टिप्पणी की उसके विरोध में ही राज शेखावत ने 8 जून को नागौर में क्षत्रिय करणी सेना की रैली करने की घोषणा की है। इसके जवाब में जाट समाज के कुछ नेताओं ने भी मुकाबले में रैली करने की घोषणा की, लेकिन नागौर के जाट और राजपूत समाज की प्रमुख संस्थाएं और अधिकांश नेता नहीं चाहते कि 8 जून की नागौर में कोई विवाद हो। इसलिए दोनों जातियों के नेताओं ने एकता के सकारात्मक प्रयास शुरू किए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि सर्वसमाज में जाट और राजपूत जातियों का बड़ा योगदान है। देश के मौजूदा हालात में इन दोनों प्रमुख जातियों में एकजुट रहना जरूरी है। दोनों ही जातियों के लोग खेती किसानी से भी जुड़े हुए हैं। दोनों जातियों की प्रमुख संस्थाओं और नेताओं के प्रयासों का ही परिणाम है कि राज शेखावत की 8 जून वाली रैली को समर्थन नहीं मिल रहा। राजपूत समाज की सकारात्मक पहल के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 7869697439 पर नारायण सिंह भाटी से ली जा सकती है।
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