अजमेर राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का गृह जिला है। लेकिन प्रदेशभर की तरह अजमेर में भी डेंगू मरीजों का इलाज के लिए एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट्स) किट नहीं मिल रहा है। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती डेंगू के मरीजों की सांसों को बनाए रखने के लिए एसडीपी ब्लड की जरूरत है, लेकिन इस ब्लड के लिए जरूरी है, लेकिन इस ब्लड के लिए जरूरी किट नहीं मिल रहा है। जब चिकित्सा मंत्री के गृह जिले में ऐसी स्थिति है तो फिर प्रदेशभर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मीडिया में प्रतिदिन कोरोना काल के मैनेजमेंट को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में प्रदेशवासियों को एसडीपी किट तक नहीं मिल रहा है। असल में एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर के रक्त में न्यूनतम डेढ़ लाख प्लेटलेट्स होनी चाहिए, लेकिन डेंगू रोग के कारण मनुष्य के शरीर में प्लेटलेट्स घटने लगती हैं। यह स्थिति मरीज के लिए जानलेवा होती है। प्लेटलेट्स को बढ़ाने के लिए ही संबंधित ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति के शरीर के रक्त में से प्लेटलेट्स निकाल कर मरीज के शरीर में चढ़ाए जाते है। ब्लड में से प्लेटलेट्स निकालने वाली मशीन अजमेर जिले में सिर्फ एक प्राइवेट विद्यापति ब्लड बैंक में ही है। अब इस एकमात्र ब्लड बैंक के पास भी प्लेटलेट्स निकालने वाले किट नहीं है। इस ब्लड बैंक के मालिक मोहित का कहना है कि जयपुर की जो फार्म किट सप्लाई करती थ, वह फर्म यह किट नहीं दे रही है। ऐसे में संस्थान पर लगी मशीन भी बेकार पड़ी है। गंभीर बात तो यह है कि प्लेटलेट्स वाले किट पर चिकित्सा विभाग की कोई निगरानी नहीं है, इसलिए लोगों को ज्यादा परेशानी हो रही है। किट की किल्लत के चलते पीडि़त परिवार मुंह मांगी कीमत भी देने को तैयार है। ब्लड से निकले प्लेटलेट्स को बाहर से भी नहीं मंगवाया जा सकता है, क्योंकि प्लेटलेट्स को हाथों हाथ डेंगू के मरीज को चढ़ाया जाता है। अजमेर के सरकारी जेएलएन अस्पताल में ब्लड से प्लेटलेट्स निकालने वाली मशीन है, लेकिन यह मशीन अब हाफने लगी हे। टेक्नीशियन के अभाव में सरकारी मशीन रात के समय बंद रहती है, जबकि दिन भर में अधिकतम 15 मरीजों के लिए ही प्लेटलेट्स निकालने जाते हैं। जब सैकड़ों मरीजों को प्रतिदिन प्लेटलेट्स चाहिए, तब 15 प्लेटलेट्स की उपलब्धता कितनी मददगार होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, सरकारी अस्पताल में सुबह नंबर लगाया जाता है तो रात तक प्लेटलेट्स मिल पाते हैं। यानी ब्लड देने वाले व्यक्ति को भी दिनभर अस्पताल में बैठे रहना पड़ता है। कई बार सरकारी अस्पताल में भी किट का अभाव हो जाता है। एक व्यक्ति के ब्लड में से प्लेटलेट्स निकालने में करीब डेढ़ घंटा लगता है। हालांकि प्लेटलेट्स निकालने के बाद ब्लड को पुन: रक्तदाता के शरीर में डाल दिया जाता है, लेकिन मरीज के परिजनों के लिए रक्तदाता का इंतजाम करना भी मुश्किल होता है। निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जब प्लेटलेट्स गिरने लगता है तो डॉक्टर तत्काल प्लेटलेट्स की मांग करते हैं। अफसोस तो तब होता है जब कई निर्दयी डॉक्टर परिजन को दो टूक कह देते हैं कि प्लेटलेट्स नहीं लाए तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है। कोई भी डॉक्टर अपने मरीज के लिए प्लेटलेट्स का इंतजाम करवाने में मदद नहीं करता है। इधर डॉक्टर निर्दयी है तो उधर प्लेटलेट्स का इंतजाम नहीं हो रहा, ऐसी स्थिति में मरीज और परिजन की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। गंभीर बात तो यह है कि सरकारी अस्पताल में भी एक यूनिट प्लेटलेट्स के 10 हजार रुपए वसूले जा रहे हैं। हालांकि अजमेर प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का गृह जिला है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर का चिकित्सा विभाग अब रघु शर्मा को चिकित्सा मंत्री नहीं मानता है। असल में कांग्रेस हाईकमान ने रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बना दिया है। इसलिए पिछले 15 दिनों से रघु शर्मा दिल्ली और गुजरात के दौरे पर हैं। चिकित्सा अधिकारियों को भी पता है कि दीपावली बाद होने वाले मंत्रिमंडल फेरबदल से रघु शर्मा की मंत्री पद से छुट्टी हो जाएगी। इसलिए चिकित्सा विभाग ने भी डेंगू मरीजों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। एक ओर डेंगू मरीज और परिजन परेशान हो रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार में बैठे जिम्मेदार किसी भी व्यक्ति को शर्म नहीं आ रही है। परेशान लोगों की कोई सुध लेने वाला नहीं है।
S.P.MITTAL BLOGGER (31-10-2021)
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