जमीयत उलेमा ए हिन्द की याचिका पर 16 जून को सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिका में उत्तर प्रदेश के अवैध निर्माणों को तोडऩे की कार्यवाही पर रोक लगाने का आग्रह किया गया। लेकिन जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने फिलहाल तोडफ़ोड़ की कार्यवाही पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। इस मामले की सुनवाई अब अगले हफ्ते होगी। लेकिन कोर्ट ने यूपी सरकार को हिदायत दी है कि अतिक्रमण हटाने का कार्य भी नियमों के तहत किया जाए। अवैध निर्माण हटाने से पहले संबंधित व्यक्ति को नोटिस दिया जाए। इस मामले में यूपी सरकार को एक शपथ पत्र भी प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील का कहना रहा कि यूपी सरकार एक समुदाय विशेष के मकानों और दुकानों को ही तोड़ रही है। तोडफ़ोड़ की इस कार्यवाही में नियमों का भी उल्लंघन किया जा रहा है। कोर्ट को यह भी बताया कि समुदाय विशेष के जिन व्यक्तियों के नाम एफआईआर में दर्ज है उन्हीं के मकानों को तोड़ा जा रहा है। वहीं यूपी सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि यह याचिका राजनीतिक एजेंडे के तहत दायर की गई है। साल्वे ने कोर्ट को बताया कि जिन अवैध निर्माणों को जेसीबी से हटाया जा रहा है उनसे संबंधित व्यक्तियों को पहले नियमानुसार नोटिस दिए गए हैं। एफआईआर में दर्ज नामों और अतिक्रमण हटाने के बीच कोई संबंध नहीं है। एफआईआर दर्ज होने से पहले ही संबंधित व्यक्तियों को अतिक्रमण हटाने के नोटिस दिए गए थे। साल्वे ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि अतिक्रमण हटाने का कार्य नियमानुसार हो रहा है। इसमें कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है। अतिक्रमण हटाने की सामान्य प्रक्रिया है जो स्थानीय निकाय अपने स्तर पर करता है। साल्वे ने याचिका पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने पर भी आपत्ति प्रकट की।
मुंसिफ कोर्ट का मामला:
असल में स्थानीय निकाय द्वारा अतिक्रमण या अवैध निर्माण हटाने का मामला मुंसिफ कोर्ट का है। यदि किसी व्यक्ति को स्थानीय निकाय के नोटिस पर एतराज है तो उसे संबंधित मुंसिफ कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए। भारतीय न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत मुंसिफ कोर्ट को भी स्थानीय निकाय की कार्यवाही पर रोक लगाने का अधिकार है। यदि मुंसिफ कोर्ट ने रोक लगा दी है तो फिर उत्तर प्रदेश की सरकार भी संबंधित व्यक्ति का अतिक्रमण नहीं हटा सकती है। सवाल उठता है कि अतिक्रमण हटाने के मामले में मुंसिफ कोर्ट में याचिका दायर क्यों नहीं की जा रही? जाहिर है कि अतिक्रमण और अवैध निर्माण को हटाने के मामले को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है।
मुंसिफ कोर्ट का मामला:
असल में स्थानीय निकाय द्वारा अतिक्रमण या अवैध निर्माण हटाने का मामला मुंसिफ कोर्ट का है। यदि किसी व्यक्ति को स्थानीय निकाय के नोटिस पर एतराज है तो उसे संबंधित मुंसिफ कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए। भारतीय न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत मुंसिफ कोर्ट को भी स्थानीय निकाय की कार्यवाही पर रोक लगाने का अधिकार है। यदि मुंसिफ कोर्ट ने रोक लगा दी है तो फिर उत्तर प्रदेश की सरकार भी संबंधित व्यक्ति का अतिक्रमण नहीं हटा सकती है। सवाल उठता है कि अतिक्रमण हटाने के मामले में मुंसिफ कोर्ट में याचिका दायर क्यों नहीं की जा रही? जाहिर है कि अतिक्रमण और अवैध निर्माण को हटाने के मामले को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है।
S.P.MITTAL BLOGGER (16-06-2022)
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