Saturday, 30 November 2024

संभल की मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का असर अजमेर की दरगाह के प्रकरण में भी होगा।अब मुस्लिम पक्ष भी लामबंद हुआ।ख्वाजा साहब की दरगाह में मंदिर होने का मामला गर्म हुआ।

उत्तर प्रदेश के संभल की जामा मस्जिद में हुए सर्वे के प्रकरण में 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा निर्देश दिए है उनका असर अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में मंदिर होने के प्रकरण में भी पड़ेगा। हिंदू सेना के वाद पर अजमेर के सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय उस के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व विभाग को नोटिस जारी किए हैं। हिंदू सेना के वाद में दरगाह परिसर का सर्वे करवाने की मांग की गई है। नोटिस जारी होने के बाद से ही देश भर में अजमेर दरगाह का मामला गरम हो गया है। अखबारों से लेकर राष्ट्रीय न्यूज चैनलों तक बहस हो रही है। लेकिन इस बीच संभल की जामा मस्जिद के सर्वे से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा निर्देश दिए है, उससे भी अजमेर दरगाह का मामला और आगे बढ़ गया है। आमतौर पर किसी शहर के सिविल न्यायाधीश के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट कोई दखल नहीं देता है। सिविल कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध आए प्रार्थना पत्र पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट व जिला न्यायालय में जाने के लिए कहता है, लेकिन संभल के प्रकरण में 29 नवंबर को सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि उसे संभल के सिविल न्यायाधीश के सर्वे वाले आदेश पर कुछ आपत्तियां है। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिए कि सर्वे की रिपोर्ट को बंद लिफाफे में ही रखा जाए और सिविल न्यायालय फिलहाल कोई आदेश पारित न करे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकर्ता को हाईकोर्ट जाने को कहा है। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने संभल के सिविल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। संभल के प्रकरण में जो कानूनी प्रावधान और कार्यवाही सामने आई है, वही प्रावधान और कार्यवाही अजमेर की दरगाह के प्रकरण में भी अमल में लाई जा सकती है। अजमेर के सिविल न्यायाधीश चंदेल ने अभी सिर्फ नोटिस जारी किए है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। देखना होगा कि केंद्र सरकार से जुड़े तीनों विभाग दरगाह में मंदिर होने के मामले में क्या जवाब देते हैं। इसमें दरगाह कमेटी की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि कमेटी का नोटिस ही दरगाह के अंदर की इमारतों और अन्य स्थानों के रखरखाव का काम करता है। दरगाह से जुड़ी संपत्तियों पर अधिकार भी दरगाह कमेटी का है। ऐसे में दरगाह के अंदर मंदिर को लेकर सर्वे करवाने का दरगाह कमेटी का जवाब बहुत महत्वपूर्ण होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर के प्रकरण को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन संभल के मामले में जो दिशा निर्देश दिए है उनका असर अजमेर के सिविल कोर्ट पर भी पड़ सकता है। संभल के मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील हुजेफ अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दरगाह और मस्जिदों में मंदिर होने के दस मामले देशभर की अदालतों में लंबित है। इन सभी में सर्वे की मांग की गई है।

मुस्लिम पक्ष लामबंद:
ख्वाजा साहब की दरगाह के प्रकरण में सिविल अदालत द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद अब मुस्लिम पक्ष भी लामबंद हो गया है। दरगाह के दीवान जैनुअल आबेदीन ने कहा है कि वे अपनी लीगल टीम से विमर्श कर रहे हैं। सिविल अदालत में पक्षकार बनने के लिए विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह ख्वाजा साहब के परिवार से संबंध रखते हैं, इसलिए किसी भी अदालत को उनका पक्ष सुने बिना सर्वे के आदेश नहीं देने चाहिए। आबेदीन ने कहा कि ख्वाजा साहब का इंतकाल 1236 ईस्वी में हुआ था और तभी से इसी स्थान पर मजार बनी हुई है। दरगाह की धार्मिक रस्मों में खादिम समुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के अध्यक्ष गुलाम किबरिया और सचिव सैयद चिश्ती ने भी सिविल अदालत में पक्षकार बनने की बात कही है। इसी दौरान एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट के अध्यक्ष और वकील सैयद शहादत अली ने भी वकीलों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अंजुमन के पदाधिकारियों से मुलाकात की है। शहादत अली ने खादिम समुदाय को भरोसा दिलाया है कि कानूनी रूप से भरपुर मदद की जाएगी। प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत किसी भी धार्मिक स्थल में दखल नहीं दिया जा सकता है। इस विमर्श में यह बात भी कही गई कि अजमेर की सिविल अदालत ने अभी तक एक तरफा कार्यवाही की है। नोटिस जारी करने से पहले दरगाह से जुड़े मुस्लिम पक्षों के नहीं सुना गया। जहां तक दरगाह कमेटी का सवाल है तो केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली सरकारी संस्था है। इस कमेटी का दरगाह की धार्मिक परंपराओं से कोई सरोकार नहीं है। 

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राहुल प्रियंका बताए कि आखिर संविधान को खतरा कौन पहुंचा रहा है?

केरल के वायनाड से निर्वाचित होने के बाद 27 नवंबर को कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने लोकसभा में सांसद पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण करते वक्त प्रियंका ने अपने हाथ में संविधान की प्रति भी ले रखी थी। प्रियंका गांधी के भाई और कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी भी सार्वजनिक सभाओं में संविधान की पुस्तक को दिखाते हैं। दोनों भाई बहन का कहना है कि इन दिनों संविधान को खतरा है। वे संविधान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर संविधान को खतरा कौन पहुंचा रहा है? संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हुआ, लेकिन 29 नवंबर तक संसद के दोनों संसद एक दिन भी भी नहीं चल पाए। जिस संविधान से संसद चलती है, उसी संसद में राहुल और प्रियंका वाली कांग्रेस के सांसद हंगामा कर रहे हैं। लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ प्रातः 11 बजे आकर सदन की शुरुआत तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस के सांसदों के कारण सदन की कार्यवाही अगले दिन के लिए स्थगित करनी पड़ती है। राहुल और प्रियंका जब संविधान को बचाने की बात कर रहे हैं तो फिर संसद को चलने क्यों नहीं दिया जा रहा है? क्या संसद में हंगामा करना संविधान को खतरे में डालना नहीं है? भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यदि संसद को न चलने दिया जाए तो इसे संविधान को बंधक बनाना माना जाएगा। संविधान की रक्षा तो तभी होगी, जब संसद में जनहित के मुद्दों पर चर्चा हो। सरकार की ओर से बार बार कह जा रहा है कि वह विपक्ष द्वारा बताए हर मुद्दे पर बहस करने को तैयार है, लेकिन फिर भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल संसद को चलने नहीं दे रहे है। 

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अजमेर के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने अब अनुष्ठान स्वाध्याय मंडल के माध्यम से सक्रियता दिखाई।महंत शंभुनाथ की प्रतिमा स्थापित।

अजमेर के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने अब अनुष्ठान स्वध्याय मंडल के माध्यम से सामाजिक सक्रियता दिखाई है। इस संस्था का गठन भाजपा के नेता रहे आनंद सिंह राजावत ने किया है। संस्थान की ओर से आयोजित एक व्याख्यान कार्यक्रम में गहलोत ने कहा कि देश के समक्ष जात-पात, बेरोजगारी, शिक्षा प्रणाली, बिगड़ता पर्यावरण लोकतंत्र पर धनबल का प्रभाव जैसी अनेक चुनौतियां है। यदि समाज के प्रबुद्धजन सिर्फ सरकार के भरोसे रहेंगे तो फिर समस्याओं का समाधान नहीं हो पाएगा। उन्होंने लोगों को जागरूक होकर काम करने की बात कही। गहलोत ने कहा कि यदि प्रबुद्धजन चर्चा करते रहेंगे तो समस्याओं का समाधान भी होगा। इस कार्यक्रम में पार्षद ज्ञान सारस्वत ने कहा कि हमें मौजूदा चुनौतियां का मिल कर मुकाबला करना चाहिए। सारस्वत ने कहा कि वे अपने वार्ड में राजनीति से ऊपर उठ कर विकास के कार्य करवाते हैं यही कारण है कि वे लगातार तीन बार से पार्षद चुने जा रहे हैं। सारस्वत ने कहा कि जनसमस्याओं के समाधान के लिए किसी राजनीतिक पद की जरूरत नहीं है। कार्यक्रम में आनंद सिंह राजावत ने नवगठित अनुष्ठान स्वाध्याय मंडल के उद्देश्य के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में संयोजक पूरण शर्मा, सहसयोजक सुभाष दत्त शर्मा, मुकेश रावत, प्रकाश डेटवाल, राजू मली, भेरूलाल अजमेरा, नरेश कुमावत, फूल चंद नोगिया, शीथल सिंह, मुकेश शर्मा, गोत्तम चंद, सागर राजोरिया, हेमराज, रोहित देवडा, मनोज कुमार सेन, विमल शर्मा, धर्मेंद्र सोनी, मनीष मोदी, प्रताप सिंह पंवार, गणेश चंद, लखन साहू, गुलाब चंद, नरेन्द्र सिंह, दौलत, हेमंत कुमार, संदीप आदि ने भी अपनी सक्रियता दिखाई। अनुष्ठान स्वाध्याय मंडल की बढ़ती गतिविधियों को लेकर भाजपा की राजनीति में अनेक चर्चाए हो रही है। मालूम हो कि उत्तर क्षेत्र के भाजपा विधायक और विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के समर्थकों और पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के बीच मनमुटाव की खबरें प्रकाश में आई है। गहलोत ने मौजूदा हालातों को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां भी की है। माना जा रहा है कि अब अनुष्ठान स्वाध्याय के माध्यम से धर्मेन्द्र गहलोत अपनी सक्रियता दिखाएंगे। फिलहाल इसका मकसद लोगों को एकजुट करना है।

महंत प्रतिमा की स्थापना:
अजमेर के पुष्कर रोड शास्त्री कॉलोनी स्थित सोमनाथ महदेव श्रीनाथ जी की बगीची में 30 नवंबर को दिवंगत महंत शंभु नाथ की प्रतिमा स्थापित की गई। बगीची से जुड़े सेवादार तुलसी सोनी और मनोज काबरा ने बताया कि प्रतिमा स्थापित करने से पहले दो दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान हुए। 30 नवंबर को प्रातः 8 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के बीच प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। इससे पहले 29 नवंबर को हवन और धार्मिक भजनों का कार्यक्रम भी हुआ। क्षेत्र के सामाजिक विकास में इस धार्मिक स्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रतिदिन धार्मिक आयोजन भी होते हैं। दिवंगत महंत शंभु नाथ ने अपने जीवन काल में बगीची के विकास में सक्रिय भूमिका निभाई। श्रद्धालुओं के आग्रह पर ही बगीची में दिवंगत महंत की प्रतिमा स्थापित की गई है। बगीची की धार्मिक गतिविधियों की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829020647 पर तुलसी सोनी तथा 9829863629 पर मनोज काबरा से ली जा सकती है। 


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Friday, 29 November 2024

क्या इंदिरा गांधी ने इसलिए बंगाल को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त करवाया था।इस्कॉन ने तो बांग्लादेश के मुसलमानों की भी मदद की है।

इतिहास गवाह है कि जब पाकिस्तान की सेना अपने ही पूर्वी क्षेत्र के लोगों पर अत्याचार कर रही थी, तब भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस क्षेत्र को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त करवाया। 1971 में हुई इस कार्यवाही के बाद ही बांग्लादेश का उदय हुआ। आज उसी बांग्लादेश में कट्टरपंथी विचारधारा के मुसलमान हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे है। हाल ही में सत्ता पलट के बाद तो अत्याचारों की बाढ़ सी आ गई है। यहां तक कि हिंदुओं के मंदिर भी सुरक्षित नहीं है। सवाल उठता है कि क्या इसलिए इंदिरा गांधी ने बंगाल क्षेत्र को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराया था? 1971 में जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश बनवाया, तब पूरे बांग्लादेश में भारत की प्रशंसा हो रही थी। लेकिन आज उसी बांग्लादेश में भारतीयों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। सवाल उठता है कि आखिर बांग्लादेश में ऐसी कौन सी विचारधारा आ गई है जो हिंदुओं को ही कत्लेआम करने की सीख दे रही है। यदि इंदिरा गांधी हस्तक्षेप नहीं करती तो बंगाल क्षेत्र के लोग आज भी पाकिस्तान के जुल्मों का शिकार होते रहते। बांग्लादेश के लोगों को भारत के नागरिकों का अहसानमंद होना चाहिए, लेकिन इसके उलट आज कट्टरपंथी जमात भारतीय नागरिकों पर ही हमला कर रही है। उस इस्कॉन के लोगों को भी निशाना बनाया जा रहा है, जिसने बांग्लादेश के मुसलमानों की भी मदद की है। अंतरराष्ट्रीय संस्था इस्कॉन ने अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों में कार्यक्रम आयोजित कर भूखे मरते बांग्लादेश के लिए धन जुटाया। विदेशों से जो राशि एकत्रित की गई उससे अनाज खरीद कर बांग्लादेश के मुसलमानों को वितरित किया गया, लेकिन आज कट्टरपंथी लोग इस्कॉन के मंदिरों को ही निशाना बना रहे है। यहां तक कि इस्कॉन के प्रवक्ता चिन्मय कृष्णदास को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है। चिन्मय दास अब किस स्थिति में है यह किसी को भी पता नहीं है। 

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मोहन भागवत से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ख्वाजा साहब की मजार पर चादर पेश करते हैं। ऐसे में दरगाह में शिव मंदिर की बात बेमानी।दीवान जैनुअल आबेदीन ने अदालत में वाद को सस्ती लोकप्रियता हासिल करना बताया।

अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे के संबंध में दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार समय समय पर ख्वाजा साहब की मजार पर चादर पेश करते रहते हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछले 11 वर्षों से ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में देश की परंपरा के अनुरूप मजार शरीफ पर चादर पेश करवा रहे है। देश के अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल आदि नेता भी दरगाह में आकर जियारत करते रहे हैं। ख्वाजा साहब का इतिहास 850 वर्ष पुराना है। मैं स्वयं भी ख्वाजा साहब के परिवार से संबंध रखता हंू। हमारा परिवार भी परंपरागत तौर पर दीवान बनता आ रहा है। आजादी के बाद से हर प्रधानमंत्री सालाना उर्स में चादर के साथ साथ अपना संदेश भी देता है। लेकिन आज तक भी दरगाह में मंदिर होने की बात नहीं उठी। दीवान आबेदीन ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए अदालतों में मामले को उलझा रहे हैं। अदालतों का भी इस मामले में देश के कानून के प्रावधानों का ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। दरगाह में होने वाली हर गतिविधि का असर दुनिया भर में पड़ता है। मालूम हो कि हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के वाद पर अजमेर में सिविल अदालत ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय और उसके काम करने वाली दरगाह कमेटी के साथ साथ भारतीय पुरातत्व विभाग को नोटिस जारी किए हैं। गुप्ता ने वाद में ही दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। अब इस मामले में 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी।

मुस्लिम पक्ष को पक्षकार नहीं बनाया:
सिविल अदालत ने जो तीन विभागों को नोटिस जारी किए हैं, वह तीनों केंद्र सरकार से संबंधित है। ख्वाजा साहब की दरगाह में धार्मिक दृष्टि से खादिमों और दीवान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दरगाह की सभी धार्मिक रस्में इन दोनों पक्षों के द्वारा ही संपन्न करवाई जाती है, लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण पक्षों को पक्षकार नहीं बनाया गया है। ऐसे में मंदिर होने के दावे के संबंध में जवाब देने की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो गई है। दरगाह के खादिम समुदाय ने द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का भी हवाला दिया है। इसमें अयोध्या के प्रकरण को छोड़कर अन्य सभी धार्मिक स्थलों पर 1947 वाली स्थिति को बनाए रखने की बात कही गई है। ऐसे में सिविल अदालत द्वारा जारी नोटिस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। 

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आखिर उपचुनाव में कांग्रेस की बुरी हार की जिम्मेदारी डोटासरा ने ली।गहलोत, पायलट और जूली अभी भी चुप। गहलोत तो ईवीएम को जिम्मेदार मान रहे हैं।

राजस्थान के विधानसभा के उपचुनावों में कांग्रेस की जोर बुरी हार हुई उसकी जिम्मेदार अब प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ले ली है। डोटासरा ने एक बयान जारी कर कहा है कि हमसे जनता को समझने में चूक हुई है। हालांकि टिकटों का बंटवारा सभी की सहमति से किया गया था, लेकिन फिर भी मैं प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते हार की जिम्मेदारी स्वीकार करता हंू। डोटासरा ने कहा कि हम अपनी कमियों को दूर करेंगे। डोटासरा के बांगड़ अंचल में संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की बात भी कही। ये वो ही डोटासरा है जिन्होंने उपचुनाव की शुरुआत पर कहा था कि भाजपा को 7 में से जीरो सीट मिलेंगी। चुनाव में भाजपा को 7 में से पांच सीटों पर जीत मिली तथा कांग्रेस व बीएपी को एक-एक सीट। चुनाव में तीन सीट देवली, सलूंबर और खींवसर में तो कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई। भले ही कांग्रेस इतनी बुरी हारी, लेकिन फिर भी डोटासरा की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष के नाते हार की जिम्मेदारी ली है। जबकि इस बुरी हार पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, कांग्रेस विधायक दल के नेता टीकाराम जूली जैसे नेता अभी तक चुप है। यदि कांग्रेस को तीन चार सीटों पर जीत मिल जाती तो गहलोत, पायलट व जूली जैसे नेता श्रेय लेने की कोई कसर नहीं छोड़ते। इन तीनों बड़े नेताओं ने उपचुनाव में पूरी सक्रियता दिखाई थी, लेकिन इसके बाद भी 6 सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। डोटासरा ने तो अपनी कमियों को मानते हुए हार स्वीकार की है, लेकिन पूर्व सीएम गहलोत तो हार के लिए ईवीएम को दोषी मान रहे हैं। गहलोत का मानना है कि कांग्रेस ईवीएम की वजह से बार बार चुनाव हारती है। 

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Wednesday, 27 November 2024

तो अफसरशाही करा रही है भजनलाल सरकार की जग हंसाई।कांग्रेस सांसदों से ब्रेकफास्ट का निमंत्रण वापस लेने का मामला।

दिल्ली स्थित राजस्थान के बीकानेर हाउस को कुर्क करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि 26 नवंबर को प्रदेश के कांग्रेस सांसदों से ब्रेकफास्ट का निमंत्रण वापस लेने का मामला हो गया। दोनों ही मामलों में अफसरशाही की लापरवाही ही सामने आई है। अफसरशाही की इस लापरवाही से प्रदेश की भजनलाल सरकार की जग हंसाई हो रही है। मुख्यमंत्री जब दिल्ली प्रवास पर होते हैं तो संसद सत्र के दौरान, प्रदेश के सांसदों को लंच, डिनर या ब्रेकफास्ट (सुबह का नाश्ता) पर आमंत्रित करते हैं। यह एक सामान्य शिष्टाचार है। चूंकि 25 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ इसलिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की ओर से 26 नवंबर को सुबह सांसदों को ब्रेकफास्ट का आयोजन रखा। संबंधित अधिकारियों ने प्रदेश के सभी सांसदों को ब्रेकफास्ट का निमंत्रण मोबाइल पर भिजवा दिया, लेकिन बाद में कांग्रेस सांसदों से यह निमंत्रण वापस ले लिया गया। कांग्रेस के सांसदों को 25 नवंबर की रात को सूचित किया गया कि मुख्यमंत्री के साथ ब्रेक फास्ट सिर्फ भाजपा सांसदों का है। कांग्रेस सांसदों से निमंत्रण वापस लेने से साफ जाहिर है कि संबंधित अधिकारियों ने लापरवाही बरती है। सवाल उठता है कि आखिर यह चूक किस स्तर पर हुई है? दिल्ली में एक वरिष्ठ आईएएस रेजिडेंस कमिश्नर की भूमिका निभाते हैं। क्या मुख्य सचिव सुधांश पंत लापरवाह अधिकारियों पर कोई कार्यवाही करेंगे? विगत दिनों दिल्ली की पटियाला कमर्शियल कोर्ट ने पचास लाख रुपए की बकाया राशि की वसूली के लिए बीकानेर हाउस को कुर्क करने का जो आदेश दिया उसमें भी अफसरशाही की लापरवाही सामने आई है। देश की राजधानी दिल्ली में बार बार भजनलाल सरकार की जग हंसाई हो रही है। गंभीर बात तो यह है कि कांग्रेस सांसद भजनलाल जाटव को ब्रेकफास्ट का निमंत्रण वापस लेने की सूचना ही नहीं मिली और वे 26 नवंबर को सुबह मुख्यमंत्री के साथ ब्रेकफास्ट करने के लिए बीकानेर हाउस पहुंच गए। जाटव को असहज होकर बिना ब्रेकफास्ट के वापस लौटना पड़ा। इस मामले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भी गंभीरता दिखानी चाहिए। 25 से 30 लाख मतदाताओं का नेतृत्व करने वाले सांसदों के साथ सदव्यवहार की अपेक्षा तो की ही जाती है। सवाल यह भी है कि जब एक बार सभी सांसदों को ब्रेकफास्ट का निमंत्रण दे दिया गया था तो फिर वापस क्यों लिया गया? राजस्थान में कांग्रेस के 9 और आरएलपी व बीएपी का एक एक सांसद है। यदि 11 सांसद मुख्यमंत्री के साथ ब्रेकफास्ट कर भी लेते तो सरकारी खजाने पर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ता। सांसदों से निमंत्रण वापस लेना भी गंभीर मामला है। 

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Tuesday, 26 November 2024

अजमेर के वैशाली नगर के अरोरा एलर्जी अस्थमा केयर सेंटर में अब सरकारी कर्मचारी नि:शुल्क इलाज करा सकेंगे।कैंसर से भी ज्यादा जानलेवा है अस्थमा रोग-डॉ. पीयूष अरोरा।

अजमेर के जेएलएन अस्पताल के मेडिसिन विभाग के प्रमुख रहे डॉ. एसके अरोड़ा के सान्निध्य में चल रहे वैशाली नगर एलआईसी कॉलोनी स्थित अरोरा एलर्जी अस्थमा केयर सेंटर को अब राज्य सरकार द्वारा आरजीएचएस की कैशलेस सुविधा के लिए अधिकृत किया गया है। यानी सरकारी कर्मचारी अब अपना इलाज नि:शुल्क करा सकेंगे। अस्पताल की निदेशक डॉ. दीप्ति अरोरा ने बताया कि अस्पताल में एलर्जी टेस्टिंग, कम्प्यूटराईज्ड स्पाइरोमेट्री, अल्ट्रासाउंड सीटी स्कैन द्वारा फेफड़ों की बायोप्सी, ब्रोन्कोस्कोपी (दूरबीन द्वारा फेफड़ों की जांच और निदान), थोरैकोस्कोपी (दूरबीन द्वारा पानी व मवाद निकलना एवं बायोप्सी), खर्राटों की जांच एवं निदान (स्लीप स्टडी), श्वसन रोगों के लिए वैक्सीनेशन की सुविधा उपलब्ध, इंपल्स ऑसिलोमेट्री, एबीजी (ब्लड गैस एनालिसिस) आदि की सुविधाएं उपलब्ध है। इसके साथ ही अस्थमा सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर, ध्रूमपान छुड़ाना, निमोनिया, लंबी खांसी, आईएलडी अन्य श्वास की बीमारियां, श्वास एवं नाक की एलर्जी की विशिष्ट सेवाएं भी उपलब्ध है। अस्पताल की सुविधाओं के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9413224622 तथा 9828289222 पर ली जा सकती है।

कैंसर से भी ज्यादा जानलेवा:
जेएलएन अस्पताल के अस्थमा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पीयूष अरोरा ने बताया कि अस्थमा रोग कैंसर भी ज्यादा जानलेवा है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में कैंसर से ज्यादा अस्थमा रोग से लोगों की मृत्यु हो होती है। डॉ. अरोरा ने कहा कि इस जानलेवा बीमारी का सही समय पर इलाज होने से मरीज को स्वस्थ किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सर्दी के दिनों में अस्थमा रोगियों को ज्यादा परेशानी होती है। छोटे छोटे कारणों से स्वस्थ मनुष्य अस्थमा का रोगी बनी जाता है। 


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संभल के दंगाइयों के साथ खड़े होने वाले राहुल, अखिलेश और ओवैसी एक बार पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालात देख लें।बांग्लादेश में हिंदू धर्म गुरु चिन्मय कृष्णदास की गिरफ्तारी बहुत मायने रखती है।

उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद परिसर में अदालत के आदेश के बाद हुए सर्वे के दौरान 24 नवंबर को जो दंगा हुआ, उसमें अब कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता दंगाइयों के साथ खड़े हो गए हैं। भले ही डिप्टी कलेक्टर के हाथ पैर तोड़कर वाहनों को आग लगा दी गई हो और छतों से पत्थर फेंक कर दर्जनों पुलिस कर्मियों को जख्मी कर दिया गया हो, लेकिन फिर भी राहुल, अखिलेश की जोड़ी प्रशासन पर हालात बिगाड़ने का आरोप लगा रहे हैं। गंभीर बात तो यह है कि मुस्लिम लोगों को उकसाने में संभल के सांसद जियाउर रहमान बर्क की भूमिका भी सामने आई है। आरोप है कि सांसद बर्क 22 नवंबर को जामा मस्जिद में गए और योजना बनाई। संभल में जिस तरह दंगाइयों के साथ राहुल गांधी अखिलेश और ओवैसी खड़े हुए हैं, उन्हें एक बार पड़ौसी मुस्लिम देश पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालात देख लेने चाहिए। पाकिस्तान तो पूरी तरह मुस्लिम राष्ट्र है, लेकिन इसके बाद भी वहां सांप्रदायिक हिंसा हो रही है। खैबर पख्तून में शिया मुसलमानों को खुलेआम मौत के घाट उतारा जा रहा है। संभल में दंगाइयों की पैरवी करने वाले नेता बताए कि पाकिस्तान में शिया मुसलमानों को कौन मार रहा है। क्या शियाओं की हत्याओं के पीछे किसी हिंदू नेता का हाथ है? सब जानते हैं कि पाकिस्तान सुन्नी बाहुल्य देश है और वहां आए दिन शियाओं की हत्या होती है। जबकि भारत में ऐसा नहीं है। विपक्ष के नेता भले ही कुछ भी कहे, लेकिन भारत में हिंदुओं के कारण आम मुसलमान सुरक्षित है। पाकिस्तान की तरह बहुसंख्यक हिंदू मुसलमानों पर कोई ज्यादती नहीं करता। जबकि पाकिस्तान में कम संख्या वाले शियाओं पर ज्यादती होना आम बात है। विपक्षी नेताओं को भारत में मुसलमानों को उकसाने के बजाए शांतिपूर्ण तरीके से रहने की समझाइश करनी चाहिए। संभल में जिस सुनियोजित तरीके से हमला हुआ उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता। जहां तक संभल की जामा मस्जिद के विवाद का मामला है तो उसे संवैधानिक तरीके से सुलझाया जाना चाहिए। भारत में जिला न्यायालय के बाद उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट तक की व्यवस्था है। मस्जिद के प्रतिनिधियों को लगता है कि जिला न्यायालय ने सर्वे के आदेश गलत तरीके से दिए है तो उच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है, लेकिन सर्वे के विरोध में हिंसा करना अच्छी बात नहीं है। भारत में लोकतंत्र भी है। गत लोकसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 80 में से 37 सीटें जीती है। जिस पार्टी के पास एक राज्य में 37 सांस दहो, उस पार्टी का एक सांसद यदि अपनी जमात के लोगों को उकसाने का काम करे तो यह लोकतंत्र के लिए भी खतरा है। जियाउर रहमान बर्क मस्जिद के मामले को संसद में भी उठा सकते थे। सांसद होने के नाते बर्क को पता था कि संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हो रहा है। बर्क के पास सांसद के विशेषाधिकार सुरक्षित है, लेकिन बर्क ने जामा मस्जिद जाकर उकसाने का काम किया।

हिंदू धर्म गुरु गिरफ्तार:
पड़ोसी बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर लगातार अत्याचार हो रहे है। 25 नवंबर को ही इस्कॉन प्रबंधन से जुड़े हिंदू धर्म गुरु चिन्मय कृष्णदास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। जबकि चिन्मय दास ने तो हिंदुओं की सुरक्षा के लिए आवाज उठाई थी। राहुल गांधी, अखिलेश यादव जैसे नेता संभल में तो स्थानीय प्रशासन पर आरोप लगाते हैं, लेकिन बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचारों पर चुप रहते हैं। चिन्मय दास की गिरफ्तारी बहुत मायने रखती है। बांग्लादेश में बड़ी संख्या में हिंदू रहते हैं। 

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मेवाड़ घराने में चाचा भतीजे की जंग से महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग बलिदान को धक्का लग रहा है।

25 नवंबर को राजस्थान की मेवाड़ की धरती पर जो कुछ भी हुआ उससे महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग बलिदान को धक्का लगा है। चिंता की बात तो यह है कि महाराणा प्रताप के वंशज ही संपत्तियों को लेकर लड़ रहे हैं। जबकि महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के मान सम्मान के लिए सब कुछ त्याग दिया था। मेवाड़ के मान को बचाने के लिए प्रताप ने कभी भी आक्रमणकारी मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। लेकिन इसके विपरीत अब जमीनों के टुकड़ों को लेकर प्रताप के वंशज लड़ रहे है। 25 नवंबर को विश्वराज सिंह ने मेवाड़ घराने का राजतिलक तो करवा लिया, लेकिन उन्हें उदयपुर के सिटी पैलेस में प्रवेश करने से रोक दिया गया, क्योंकि सिटी पैलेस पर विश्वराज सिंह के चाचा अरविंद सिंह का कब्जा है। अरविंद सिंह का कहना है कि उनके पास दिवंगत भगवत सिंह ने अपने जीवन काल में ही बड़े पुत्र महेंद्र सिंह को परिवार से बहिष्कृत कर दिया था। ऐसे में महेंद्र सिंह के पुत्र विश्वराज सिंह का उदयपुर के सिटी पैलेस से कोई संबंध नहीं है। मेवाड़ घराने की प्रतिष्ठा उस समय तार तार हो गई, जब विश्वराज सिंह अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ सिटी पैलेस के मुख्य द्वार के बाहर खड़े रहे और उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। समर्थकों ने सिटी पैलेस पर पथराव किया। यानी जिस मेवाड़ घराने की शान के लिए महाराणा प्रताप ने सब कुछ त्याग दिया उसे मेवाड़ घराने के सदस्य अपने ही घर में जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अरविंद सिंह और विश्वराज सिंह माने या नहीं, लेकिन 25 नवंबर को मेवाड़ घराने की शान पर जो बट्टा लगा है उसकी भरपाई होना मुश्किल है। जब संपत्तियों के विवाद अदालतों में है तो फिर पत्थरबाजी क्यों हो रही है? ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्ष राजघराने की परंपराओं को भी सम्मान नहीं कर रहे हैं। परंपराओं के अनुसार बड़े पुत्र का बेटा ही घराने का प्रमुख होता है। इस नाते भगवत सिंह के बड़े पुत्र महेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र विश्वराज सिंह का ही पगड़ी दस्तूर होना चाहिए। इस लिहाज से 25 नवंबर को सामाजिक परंपरा के अनुरूप पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम हुआ, लेकिन संपत्तियों पर जंग के चलते यह पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम उदयपुर के सिटी पैलेस में नहीं हो सका। पगड़ी के कार्यक्रम का चित्तौड़ स्थित सरकारी किले के फतह प्रकाश महल में करना पड़ा। यह कार्यक्रम भी सरकारी स्थान पर इसलिए हो सका कि विश्वराज सिंह स्वयं नाथद्वारा से भाजपा के विधायक तथा उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की सांसद है। चूंकि पति पत्नी सत्तारूढ़ दल से जुड़े हुए हैं, इसलिए सरकारी स्थान पर पगड़ी का दस्तूर तो हो गया, लेकिन घराने का प्रमुख बनने के बाद भी सिटी पैलेस में प्रवेश नहीं हो सका। इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि राज प्रमुख बनने के बाद भी 25 नवंबर को रात दो बजे विश्वराज सिंह अपने समर्थकों के साथ उदयपुर के सिटी पैलेस के बाहर अपने समर्थकों के साथ बाहर खड़े रहे। इस से प्रमुख बनने वाली परंपरा भी पूरी नहीं हो सकी। अरविंद सिंह और उनके सुरक्षाकर्मियों ने विश्वराज सिंह को सिटी पैलेस की धूनी वाले स्थान के दर्शन तक नहीं करने दिए। जबकि घराने का प्रमुख बनने के बाद इस स्थान के दर्शन की परंपरा रही है। सिटी पैलेस में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आते हैं, लेकिन झगड़े के कारण पर्यटक भी सिटी पैलेस को देखने से वंचित हो गए। जो लोग स्वयं को महाराणा प्रताप के वंशज होने की बात कहते हैं, उन्हीं प्रताप के वंशजों की वजह से सिटी पैलेस के ऐतिहासिक धूनी स्थल पर अब पुलिस का एक इंस्पेक्टर रिसीवर नियुक्त हो गया। इससे ज्यादा शर्म और चिंता की बात मेवाड़ घराने के लिए नहीं हो सकती। अच्छा हो कि परिवार के सदस्य संपत्तियों के विवादों को आपस में बैठकर सुलझा लें, ताकि महाराणा प्रताप की वीरता और त्याग बलिदान को बट्टा न लगे। 

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Monday, 25 November 2024

जिन महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर मेवाड़ का मान बढ़ाया, अब उनके वंशजों को संपत्तियों को लेकर लड़ना उचित नहीं।महाराणा महेंद्र सिंह के निधन के बाद पुत्र विश्व राज सिंह के पगड़ी दस्तूर कार्यक्रम का भी विरोध।विश्वराज सिंह खुद नाथद्वारा से भाजपा के विधायक है तथा पत्नी महिमा सिंह राज्यसभा की सांसद।

इतिहास गवाह है कि महाराणा प्रताप ने मेवाड़ राज्य के मान सम्मान को बचाने के लिए जंगलों में घास की रोटियां तक खाई। प्रताप ऐसे प्रतापी राजा रहे जिन्होंने मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की, जब बड़े-बड़े राजघरानों ने अधीनता स्वीकार कर ली, ब महाराणा प्रताप ने अकबर को लगातार चुनौती दी। यही वजह है कि आज देश दुनिया में महाराणा प्रताप के त्याग और वीरता को याद किया जाता है। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि महाराणा प्रताप के वंशज आज कुछ संपत्तियों को लेकर सार्वजनिक तौर पर लड़ रहे हैं। मेवाड़ राजघराने से जुड़े महाराणा महेंद्र सिंह जी का निधन हाल ही में हुआ है। पिता के निधन के बाद पुत्र विश्वराज सिंह (नाथद्वारा के भाजपा विधायक) ने 25 नवंबर को चित्तौड़ के फतहप्रकाश महल में पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम रखा। इसमें पूर्व रियासतों के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया है। पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम होता इससे पहले ही विश्वराज सिंह के चाचा और एकलिंग जी ट्रस्ट उदयपुर के चेयरमैन महाराजा अरविंद सिंह ने फतह प्रकाश महल में आम लोगों के प्रवेश को निषेध कर दिया है। ट्रस्ट की ओर से कहा गया है कि 25 नवंबर 2024 को पास धारी ही महल में प्रवेश कर सकते हैं। अखबारों में प्रकाशित नोटिस और आम सूचना में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को पगड़ी दस्तूर कार्यक्रम करने का अधिकार नहीं है। नोटिस में स्पष्ट कहा है कि स्वर्गीय महाराजा भगवत सिंह जी ने जो वसीयत लिखी उसमें बड़े पुत्र महाराजा महेंद्र सिंह को परिवार से बहिष्कृत कर दिया था। इसके साथ ही छोटे पुत्र अरविंद सिंह को वसीयत का एग्जीक्यूटर नियुक्त किया। महाराजा भगवत सिंह की यह वसीयत सुप्रीम कोर्ट में भी प्रमाणित हो चुकी है। इसी सूचना में बताया गया कि महाराजा भगवत सिंह के जीवनकाल में ही बड़े पुत्र महेंद्र सिंह ने मुकदमे बाजी कर दी थी। परिवार की संपत्तियों को लेकर जो एकलिंग जी ट्रस्ट बना हुआ है उस ट्रस्ट के महेंद्र सिंह और उनके पुत्र विश्व राज सिंह कभी भी ट्रस्टी नहीं रहे। ऐसे में विश्वराज सिंह का इस ट्रस्ट से कोई सरोकार नहीं हे।

पगड़ी दस्तूर पर ऐतराज करना उचित नहीं:
एक और सपंत्तियों को लेकर मेवाड़ घराने में जंग छिड़ी हुई है तो दूसरी ओर राजपूत घरानों के इतिहासकार और प्रदेश के जाने माने समाजसेवी विक्रम सिंह टापरवाड़ा ने विश्वराज सिंह के पगड़ी दस्तूर के कार्यक्रम का विरोध किए जाने को उचित नहीं माना है। उन्होंने कहा कि राजपूत समाज में पगड़ी दस्तूर एक सामाजिक परंपरा है, जिसका हर परिवार निर्वाह करता है। महाराज भगवत सिंह के निधन के बाद ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते महेंद्र सिंह का भी पगड़ी दस्तूर का कार्यक्रम भव्य स्तर पर हुआ। जो लोग आज विश्वराज सिंह के पगड़ी दस्तूर कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं उन्हें महेंद्र सिंह जी के पगड़ी दस्तूर के कार्यक्रम को याद करना चाहिए। टापरवाडा ने बताया कि आजादी के बाद महाराजा भोपाल सिंह मेवाड़ घराने के पहले उत्तराधिकारी बने। चूंकि भोपाल सिंह जी के कोई पुत्र नहीं था इसलिए भगवत सिंह जी को गोद लेकर मेवाड़ा का उत्तराधिकारी बनाया गया। महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह, भगवत सिंह जी के ही पुत्र है। टापरवाडा ने भी माना कि परिवार के सभी सदस्यों को महाराणा प्रताप के त्याग और वीरता को याद रखना चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि विश्वराज सिंह स्वयं नाथद्वारा से भाजपा के विधायक हैं और उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की भाजपा सांसद हैं। प्रदेश की उपमुख्यमंत्री और जयपुर घराने की सदस्य दीया कुमारी से मेवाड़ घराने के पारिवारिक रिश्ते हैं। दीया कुमारी का समर्थन विश्वराज सिंह के परिवार को है। मेवाड़ा राज घराने के पगड़ी दस्तूर कार्यक्रम की ओर अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9460752009 पर विक्रम सिंह टापरवाड़ा से ली जा सकती है। 

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पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बदले रुख से राजस्थान में भाजपा को और मजबूती मिलेगी।संगठनात्मक बैठक में पहुंचकर राजे ने नवनिर्वाचित विधायकों को बधाई दी।7वीं की छात्रा ने अपनी गुल्लक के 22 हजार रुपए जय अंबे सेवा समिति वृद्धाश्रम में दिए।

24 नवंबर को जयपुर के भाजपा कार्यालय में संगठन पर्व के तहत संगठनात्मक बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अचानक पहुंची और हाल ही के उपचुनाव में जीते पांचों भाजपा विधायकों को पार्टी का दुपट्टा पहनाकर बधाई दी। राजे ने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर पर नवनिर्वाचित विधायकों को बधाई देना चाहती थी, इसलिए बैठक में आई हंू। विधायकों को बधाई देने के बाद पूर्व सीएम राजे बैठक से चली गई। उन्होंने बताया कि उन्हें जरूरी कार्य से दिल्ली जाना है। हालांकि इस बैठक में प्रदेश प्रभारी राधा मोहन अग्रवाल, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, सदस्यता अभियान के संयोजक अरुण चतुर्वेदी, सक्रिय सदस्यता अभियान के संयोजक ओंकार सिंह लखावत आदि नेता उपस्थित रहे। संगठनात्मक बैठक में राजे के आने को लेकर उनके बदले रुख से जोड़ा जा रहा है। सब जानते हैं कि गत विधानसभा के चुनाव परिणाम के बाद राजे ने भाजपा के चालीस नवनिर्वाचित विधायकों को अपने घर पर बुलाया था। तब इसे राजे का शक्ति प्रदर्शन माना गया। लेकिन उपचुनाव के परिणाम के बाद राजे स्वयं संगठनात्मक बैठक में उपस्थित हुई और नवनिर्वाचित विधायकों का स्वागत किया। जानकारों का मानना है कि राजे के इस बदले हुए रुख से प्रदेश में भाजपा को मजबूती मिलेगी। भले ही राजे ने 7 उपचुनाव में किसी भी सीट पर जाकर प्रचार न किया हो, लेकिन नवनिर्वाचित विधायकों का स्वागत कर राजे ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि वे भाजपा संगठन के साथ खड़ी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि विधायकों के सम्मान वाले फोटो वसुंधरा राजे ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर खुद पोस्ट किए हैं।

छात्रा की अनुकरणीय पहल:
अजमेर के मयूर स्कूल में पढ़ने वाली सातवीं कक्षा की छात्रा दक्षायनी सिंह बारहठ ने 24 नवंबर को अपना 12वां जन्मदिन कोटड़ा स्थित जय अंबे सेवा समिति वृद्धाश्रम में मनाया। आश्रम के अध्यक्ष समाजसेवी कालीचरण खंडेलवाल ने बताया कि दक्षायनी ने 22 हजार रुपए की राशि आश्रम में रह रहे वृद्धजनों के लिए दी। यह राशि छात्रा ने अपनी गुल्लक में एकत्रित राशि में से दी। खंडेलवाल ने कहा कि जिस प्रकार दक्षायनी ने अपना जन्मदिन वरिष्ठ नागरिकों के बीच बनाया उससे अन्य परिवारों के बच्चों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी वृद्धाश्रम में वरिष्ठ नागरिक मजबूरी के कारण रहते हैं। यदि बच्चे अपने परिवार के बुजुर्गों का सम्मान करें, तो फिर समाज में वृद्धाश्रमों की जरूरत ही नहीं रहेगी। चूंकि दक्षायनी के परिवार में बुजुर्गों का सम्मान होता रहा है, इसलिए उसने वृद्धाश्रम आकर अपना जन्मदिन मनाया। खंडेलवाल ने बताया कि दक्षायनी अजमेर के राजस्व मंडल के वरिष्ठ वकील भगवती सिंह बारहठ की पुत्री है। कोटड़ा में चल रहे वृद्धाश्रम के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414003357 पर अध्यक्ष खंडेलवाल से ली जा सकती है। 

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Sunday, 24 November 2024

उपचुनाव की जीत से राजस्थान में सीएम भजनलाल शर्मा सबसे बड़े नेता बन गए हैं। नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं।हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा को अब कुछ समय चुप रहना चाहिए।

11 माह पहले जब भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उनके नेतृत्व क्षमता को लेकर अनेक सवाल उठे। छह माह बाद लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 25 में से 11 सीटों पर भाजपा की हार ने सीएम शर्मा पर अनेक सवाल उठाए। लेकिन अब उपचुनाव में 7 में से 5 सीटों पर जीत मिलने से भजनलाल शर्मा प्रदेश में सबसे बड़े नेता बन गए है। शर्मा के लिए सबसे अनुकूल बात यह है कि भाजपा में उनके नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़ जैसे नेता विधानसभा चुनाव हारने के बाद खुद ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने गलत निर्णयों से राजनीतिक कद छोटा कर लिया। उपचुनाव में भी राजे की कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली। पांच सीटों पर जीत इसलिए मायने रखती है कि गत चुनाव में सिर्फ सलूंबर सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। देवली उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ़ की सीट भाजपा ने कांग्रेस से छीनी, जबकि खींवसर की सीट आरएलपी से ली गइ्र। यह भी तब जब लोकसभा के चुनाव में खींवसर, देवली और झुंझुनूं से कांग्रेस और आरएलपी के सांसद बने। देवली में सांसद हरीश मीणा, झुंझुनूं में बृजेंद्र ओला और खींवसर में सांसद हनुमान बेनीवाल ने पूरी ताकत लगा रखी थी। झुंझुनूं में तो सांसद ओला के पुत्र अमित ओला और खींवसर सांसद बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल उम्मीद थी। इतना ही नहीं देवली वाली सीट पर टोंक के विधायक पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पूरी ताकत लगा रखी थी। अलवर की रामगढ़ सीट पर आमतौर पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों के बाद भी भाजपा को इन सीटों पर जीत मिली है। स्वाभाविक है कि इसका श्रेय सीएम भजनलाल शर्मा को ही मिलेगा। जहां तक आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर की चौरासी सीट का सवाल है तो भले ही बीएपी के अनिल कटारा ने 23 हजार मतों से जीत दर्ज की हो, लेकिन गत चुनाव में इसी पार्टी के राजकुमार रोत 70 हजार मतों से जीते थे। मौजूदा समय में राजकुमार रोत सांसद हैं, लेकिन फिर भी 48 हजार मतों की खाई को पार किया गया। यानी चौरासी में भी भाजपा का प्रभाव बढ़ा है। कहा जा सकता है कि अब भजनलाल शर्मा प्रदेश में भाजपा की राजनीति में सबसे बड़े नेता है। प्रदेश का कोई भी नेता उन पर दबाव डालने की स्थिति में नहीं है।

बेनीवाल और किरोडी चुप रहे:
प्रदेश के उपचुनावों में सबसे बड़ा झटका आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल और प्रदेश के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को लगा है। यह दोनों ही नेता बड़बोले है। बेनीवाल तो स्वयं को प्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और किरोड़ी मीणा को यह मुगालता है कि उनकी वजह से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है। इतने गुमान के बाद भी बेनीवाल अपनी पत्नी और किरोड़ी लाल मीणा अपने भाई को चुनाव नहीं जितवा सके। किरोड़ी के समर्थक अब भले ही यह आरोप लगाए कि दौसा सीट पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अपनी ब्राह्मण जाति के वोट नहीं दिला सके, लेकिन मीणा की हार का सबसे बड़ा कारण किरोड़ी लाल का बड़बोलापन ही रहा है। इधर खींवसर में प्रचार के दौरान बेनीवाल ने कांग्रेस खासकर जाट नेताओं पर जो प्रतिकूल टिप्पणी की उसका खामियाजा कनिका बेनीवाल को उठाना पड़ा। बेनीवाल ने 2023 का चुनाव मात्र 2059 मतों से जीता था, लेकिन इन मतों की जीत को बेनीवाल ने गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए उनकी पत्नी पुराने उम्मीदवार रेवत राम डांगा से 14 हजार मतों से हार गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा का राजनीतिक सफर संघर्ष पूर्ण रहा है। दोनों ही लोकप्रिय नेता है। लेकिन उनकी लोकप्रियता पर उनका बड़बोला पन पानी फेर देता है। अच्छा हो कि अब कुछ समय के लिए यह दोनों नेता शांत रहे। चुप रहने से उनकी ताकत फिर से संग्रहीत होगी। 

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रामगढ़ से महाराष्ट्र तक केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का जलवा।मुख्यमंत्री के चयन में भी महत्वपूर्ण भूमिका।

राजस्थान के अलवर से भाजपा के सांसद और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का अलवर के रामगढ़ से लेकर महाराष्ट्र तक राजनीतिक जलवा देखने को मिला है। यादव महाराष्ट्र में भाजपा के चुनाव प्रभारी है। यादव जब महाराष्ट्र के चुनाव में व्यस्त थे, तभी उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र अलवर के रामगढ़ के उपचुनाव के लिए भी रामगढ़ आना पड़ा। यानी यादव ने अपने रामगढ़ से लेकर महाराष्ट्र तक में सफल रणनीति बनाई। यादव को भाजपा में चुनावी राजनीति का अनुभवी नेता माना जाता है। इससे पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश में भी यादव प्रभारी की भूमिका निभा चुके हैं। इस बार जब महाराष्ट्र में यादव को प्रभारी बनाया गया तो उनके सामने शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे प्रभावशाली नेता थे। भले ही महाराष्ट्र में कांग्रेस का कोई दम न हो, लेकिन महा अघाड़ी की चुनौतियां बहुत थी। यह सही है कि महाराष्ट्र में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति भी रही, लेकिन भूपेंद्र यादव ने शांत तरीके से विधानसभा स्तर पर रणनीति बनाई। आमतौर पर भूपेंद्र यादव मीडिया से दूर रहते हैं, इसलिए राजनीति में उनकी चर्चा कम होती है। मीडिया में आने के बजाए भूपेंद्र यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के निकट ज्यादा रहते हैं। भाजपा में राष्ट्रपति चुनाव तक में भूपेंद्र यादव की सक्रिय भूमिका होती है। 288 में से 231 सीटें महायुति को मिलना बताता है कि महाराष्ट्र में भूपेंद्र यादव ने कितनी मेहनत की है। एक ओर जहां महाराष्ट्र जैसे प्रदेश की रणनीति बनाई वहीं यादव ने अपने संसदीय क्षेत्र के रामगढ़ के उपचुनाव को जीतने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। रामगढ़ से वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जुबेर खान ने 17 हजार मतों से जीत दर्ज की थी। लोकसभा चुनाव में स्वयं भूपेंद्र यादव रामगढ़ से 2 हजार मतों से पीछे रहे, लेकिन इसके बावजूद उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार खुशवंत सिंह ने 14 हजार मतों से जीत दर्ज की। जबकि कांग्रेस ने दिवंगत विधायक जुबेर खान के पुत्र आर्यन खान को उम्मीदवार बनाया था। यादव ने जो रणनीति बनाई उसी में उन खुशवंत सिंह को उम्मीदवार बनाया जिन्होंने गत बार बागी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। तब खुशवंत को 40 हजार से भी ज्यादा वोट मिले। भूपेंद्र यादव का आकलन रहा कि जब खुशवंत सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर 40 हजार वोट प्राप्त कर सकते हैं तो भाजपा का उम्मीदवार बनने पर जीत पक्की हो जाएगी। इसे भूपेंद्र यादव का प्रभाव ही कहा जाएगा कि बागी खुशवंत सिंह को उप चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार बनाए जाने पर भाजपा में कोई विरोध नहीं हुआ। कुछ लोगों ने शुरुआत दौर में विरोध का प्रयास किया तो भूपेंद्र यादव ने समझाइश कर शांत कर दिया। यादव की रणनीति से ही कांग्रेस की परंपरागत सीट पर भाजपा को जीत मिली है। अब महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के चयन में भी यादव की सक्रिय भूमिका है। भूपेंद्र यादव को सब पता है कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

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भाजपा-मोदी को महाराष्ट्र से जो ताकत मिली, उससे अब संसद में वक्फ एक्ट संशोधन वाला प्रस्ताव पास करा लिया जाएगा।कांग्रेस के लिए यह सबसे बड़ी खुशी की बात है कि प्रियंका गांधी भी सांसद बन गई है।

सब जानते हैं कि वक्फ एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव गत मानसून सत्र में ही स्वीकृत होना था, लेकिन तब बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद देश में जो हलचल हुई उसे देखते हुए प्रस्ताव को संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया। यानी प्रस्ताव को स्वीकृत करने का मामला लोकसभा और राज्यसभा में टाल दिया गया, लेकिन 23 नवंबर को महाराष्ट्र में विधानसभा के जो परिणाम सामने आए, उससे भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नई ताकत मिली है। भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति के गठबंधन को जो 231 सीटें मिली उसकी ताकत को रात को ही पीएम मोदी ने एहसास कराया। परिणाम के बाद दिल्ली स्थित भाजपा के मुख्यालय में कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने जो संविधान बनाया उसमें वक्फ बोर्ड का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने तुष्टीकरण के चलते वक्फ एक्ट बना दिया। यानी पीएम मोदी मानते हैं कि देश में वक्फ एक्ट की कोई जरूरत नहीं है। हालांकि अभी इस एक्ट को पूरी तरह खत्म करने का प्रस्ताव नहीं है, लेकिन एक्ट में महत्वपूर्ण संशोधन किए जा रहे है। इन संशोधनों के बाद वक्फ संपत्तियों पर मुसलमानों का एकाधिकार समाप्त हो जाएगा। देश के विकास में वक्फ संपत्तियों पर एकाधिकार सबसे बड़ी बाधा है। कई शहरों में वक्फ के दखल के कारण विकास नहीं हो रहा है। रक्षा और रेलवे के बाद देश की सबसे ज्यादा भूमि वक्फ के पास है। संशोधन के बाद वक्फ की संपत्तियों का भी सार्वजनिक कार्यों के लिए उपयोग हो सकेगा। इसके साथ ही उन संस्थाओं पर शिकंजा कसेगा जो वक्फ के नाम पर देश की संपत्तियों पर कब्जा कर बैठी हैं। संशोधन के बाद मुसलमानों को भी फायदा होगा। क्योंकि अभी वक्फ एक्ट के कारण मुसलमानों को भी अपने अधिकार नहीं मिल रहे हैं। एक्ट की आड़ में कुछ मुस्लिम संस्थाएं संपत्तियों का दुरुपयोग कर रही है। मुंबई जैसे महानगर में तो वक्फ के कारण आम लोगों को बहुत परेशानी हो रही है। ऐसी ही स्थिति में देश की राजधानी दिल्ली की भी है। संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने पहले ही कह दिया है कि 25 नवंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी जाएगी। जानकार सूत्रों के अनुसार बदली हुई परिस्थितियों में केंद्र सरकार ने वक्फ एक्ट में संशोधन वाले प्रस्ताव को दोनों संसद में स्वीकार कराने की रणनीति बना ली है। हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत से पीएम मोदी का उत्साह हाई है।

कांग्रेसी की खुशी:
कांग्रेस ने महाराष्ट्र की 288 में से 101 सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे मात्र 15 सीट ही मिल पाई। लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है कि केरल की वायनाड सीट से प्रियंका गांधी सांसद बन गई है। प्रियंका ने चार लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की है। अब गांधी परिवार के तीन सदस्य संसद में है। श्रीमती सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा की सांसद है तो उनके पुत्र राहुल गांधी रायबरेली से लोकसभा के सांसद हैं। अब पुत्री प्रियंका गांधी भी सांसद बन गई है। दिल्ली में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास पहले से ही सरकारी बंगले हैं और अब प्रियंका गांधी को भी सरकारी बंगला मिल जाएगा। चूंकि राहुल गांधी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी है, इसलिए प्रियंका गांधी को लोकसभा में नई जिम्मेदारी भी मिल सकती है। फिलहाल प्रियंका गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव है। वायनाड चुनाव की कमान प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के पास थी। रॉबर्ट वाड्रा भी लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। प्रियंका गांधी की जीत से कांग्रेस का कार्यकर्ता भी बेहद खुश है। 

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Saturday, 23 November 2024

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में 48 में से 30 सीट जीतने वाली महा अघाड़ी विधानसभा चुनाव में फिसड्डी साबित हुई।भाजपा के साथ रहने वाली शिवसेना ही असली। उद्धव ठाकरे का घमंड टूटा।सवाल - क्या 125 विधायकों वाली भाजपा का मुख्यमंत्री बन पाएगा?झारखंड में हो हेमंत सोरेन को जेल भेजना भाजपा को भारी पड़ा।

6 माह पहले हुए महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन वाले महा विकास अघाड़ी को 48 में से 30 सीटें मिली थी। लेकिन 23 नवम्बर को घोषित विधानसभा के चुनाव परिणाम में महा अघाड़ी का सूपड़ा साफ हो गया है। कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के गठबंधन को 188 में से मात्र 55 सीटों पर बढ़त मिली है, जबकि भाजपा के गठबंधन महायुति को 225 सीटों पर बढ़त है। चुनाव परिणाम से जाहिर हो गया है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ही असली शिव सेना है। जबकि उद्धव का ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना को महाराष्ट्र के मतदाता ने शिवसेना मानने से इंकार कर दिया है। चुनाव परिणाम बताते है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को मात्र 19 सीटें मिली है। यानि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ जो गठबंधन किया उससे हिन्दू मतदाता नाराज रहा। हिन्दू मतदाताओं ने भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले शिंदे की शिवसेना को 53 सीटें जीतने दी। इसी प्रकार अपने चाचा शरद पवार का साथ छोड़कर अलग हुए अजित पवार को भी भाजपा से गठबंधन करने का फायदा हुआ। अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी भी 35 से ज्यादा सीटें लेने में सफल रही। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा दुर्गति कांग्रेस पार्टी की हुई है। कांग्रेस के 20 उम्मीदवार भी चुनाव जीत नहीं पाए है। कांग्रेस को मात्र 19 सीटों पर ही बढ़त है। महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव इसलिए भी महत्व रखता है कि मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। यदि महाराष्ट्र में महायुति को जीत नहीं मिलती तो शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखने को मिलती। चुनाव परिणाम ने यह भी दर्शा दिया है कि कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ जो गठबंधन किया उसे भी मतदाताओं ने नकार दिया है। इसके साथ ही अजित पवार ने भी यह साबित किया है कि असली एनसीपी वे दी है। शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को मात्र 15 सीटों पर बढ़त है। चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हैं तो सेफ हैं का जो नारा दिया उसका भी व्यापक असर हुआ है इस नारे के बाद महाराष्ट्र में हिन्दू मतदाता एकजुट हुआ। भाजपा ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 125 सीटों पर सफलता मिली। यानि महाराष्ट्र के मतदाताओं ने भाजपा पर पूरा भरोसा जताया। चुनाव परिणाम से उद्धव ठाकरे का घमंड भी टूट का है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा में उद्धव ने अपने दिवंगत पिता बाला साहब ठाकरे के सिद्धान्तों को भी छोड़ दिया था। बाला साहब ने हिंदुत्व को लेकर शिवसेना की स्थापना की थी। लेकिन उद्धव ने कांग्रेस और शरद पवार से गठबंधन कर हिंदुत्व के मुद्दे को छोड दिया।

क्या भाजपा का सीएम बन पाएगा?
घोषित परिणाम में 288 में से अकेले भाजपा को 125 सीटों पर बढ़त है। जबकि सहयोगी पार्टी शिव सेना (शिंदे) को 55 तथा एनसीपी (अजित पवार) को 35 सीटों पर बढ़त है। चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि हम सबने मिलकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। किसी एक पार्टी को ज्यादा सीट मिलने का मतलब यह नहीं कि उस पार्टी का मुख्यमंत्री हो। महाराष्ट्र के लोगों ने मेरे नेतृत्व वाली सरकार के कामकाज को देखकर भी वोट दिया है। शिंदे के इस बयान से प्रतीत होता है कि वे मुख्यमंत्री के पद को अपने पास बरकरार रखना चाहते हैं। भले ही भाजपा को 125 सीटें मिली हो। अब देखना होगा कि 125 सीटे हासिल करने के बाद भी क्या भाजपा मुख्यमंत्री पद से अपना दावा छोड़ सकती है? यहां यह उल्लेखनीय है कि 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का गठबंधन शिव सेना के साथ था और तब उद्धव ठाकरे ने 56 सीटें हासिल की और मुख्यमंत्री के पद पर दावा जताया। तब भाजपा के पास 105 सीटें थी। भाजपा ने उडव नकरे के दावे को स्वीकार नहीं किया और गठबंधन तोड़ लिया। बाद में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और शरद पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली। यानि 105 सीट मिलने पर भी भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर अपना हक जताया था। इस बार भाजपा के पास 125 सीटें है। देखना होगा कि भाजपा किस तरह मुख्यमंत्री का पद हासिल करती है। सरकार बनाने के लिए 145 विधायक चाहिए। भाजपा में देवेंद्र फडणवीस सीएम पद के सबसे मजबूत दावेदार है। पूर्व में भी फडणवीस मुख्यमंत्री रह चुके है, लेकिन शिव सेना में विभाजन के बाद जब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया, तब मजबूरी में फडणवीस को उप मुख्यमंत्री बनना पड़ा। विधानसभा के चुनाव में फडणवीस की रणनीति ही कारगर हुई है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का प्रयास है कि मुख्यमंत्री के पद को लेकर कोई विवाद न हो और महाराष्ट्र में महायुति वाला गठबंधन बना रहे। महायुति गठबंधन को बनाए रखने में महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव की सक्रिय भूमिका नजर आ रही है। चुनाव में ऐतिहासिक सफलता दिलाने में यादव की रणनीति भी काम आई है।

सौरेन को जेल भेजना भारी पड़ा:
23 नवम्बर को झारखंड के चुनाव परिणाम भी घोषित हुए, 181 में से 50 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा वाले गठबंधन को बढ़त है, जबकि भाजपा के गठबंधन को 30 सीटों पर ही बढ़त है। झारखंड में भाजपा के पिछड़ने का कारण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेजना बताया जा रहा है। आर्थिक अपराध में हेमंत सोरेन को जब जेल भेजा गया तो आदिवासी मतदाताओं में हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति देखी गई। जेल से बाहर आने के बाद सोरेन ने दाढ़ी बढ़ा ली और स्वयं को एक लाचार नेता के तौर पर प्रस्तुत किया। झारखंड में हेमंत सोरेन ने आदिवासियों का जो सहानुभूति कार्ड खेला उसका मुकाबला भाजपा नहीं कर सकी। हालांकि प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की चिंता जताईथी। यहां तक कहा था कि घुसपैठ आदिवासियों की रोटी और बेटी छीन रहे है। मालूम हो कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी लड़कियों के साथ विवाह कर रहे है। इसका आदिवासियों पर व्यापक असर पड़ा है।

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Thursday, 21 November 2024

राज भाजपा को हो या कांग्रेस का चलाते तो अफसर ही हैं। इसका ताजा उदाहरण दिल्ली के बीकानेर हाउस का कुर्की आदेश है।आखिर दिल्ली में बैठे रेजीडेंस कमिश्नर क्या कर रहे हैं?

21 नवंबर को राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को तब अपमानित होना पड़ा जब दिल्ली स्थित बीकानेर हाउस की संपत्ति को कुर्क करने का अदालती आदेश चस्पा किया गया। दिल्ली स्थित पटियाला कमर्शियल कोर्ट का यह कुर्की आदेश जब बीकानेर हाउस के मुख्य द्वार पर चस्पा किया जा रहा था, तब परंपरा के अनुरूप ढोल भी बजाया गया। मुझे नहीं पता कि ढोल की आवाज दिल्ली में नियुक्त राजस्थान के रेजिडेंट कमिश्नर को सुनाई दी या नहीं, लेकिन ढोल बजने की गूंज हर राजस्थानी के कान में सुनाई दे रही है। राजस्थान की विरासत का इतना बड़ा अपमान शायद ही कभी हुआ हो। सब जानते हैं कि दिल्ली का बीकानेर राजस्थान की विरासत और संस्कृति से जुड़ा है। अंग्रेजी शासन में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने अंग्रेज अफसरों के आग्रह पर दिल्ली में सात एकड़ से भी ज्यादा भूमि पर बीकानेर हाउस का निर्माण करवाया था। आजादी के बाद बीकानेर हाउस पर राजस्थान की नोखा नगर पालिका का स्वामित्व हो गया। नगर पालिका के साथ हुए विवाद पर ही संबंधित ठेकेदार को पचास लाख का भुगतान नहीं करने पर ही पटियाला कमर्शियल कोर्ट ने कुर्की के आदेश जारी किया। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि अदालत के आदेश के बाद भी न तो भुगतान किया जा रहा है और न ही पालिका का कोई अधिकारी उपस्थित हो रहा है। भले ही यह मामला नोखा नगर पालिका की लापरवाही से जुड़ा हो, लेकिन दिल्ली में नियुक्त रेजिडेंट कमिश्नर और राज्य सरकार के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। कोर्ट का आदेश पिछली कांग्रेस सरकार में ही हो गया था, लेकिन न तो कांग्रेस सरकार में और न मौजूदा भाजपा सरकार में कोर्ट के आदेश को गंभीरता से लिया गया। इससे जाहिर है कि राज भाजपा का हो या कांग्रेस का, चलाते तो अफसर ही है। इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि बीकानेर हाउस में मुख्यमंत्री का दफ्तर भी बना हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भी सरकार के किसी भी अधिकारी ने अदालत के आदेश की परवाह नहीं की। जबकि आए दिन राजस्थान के मुख्यमंत्री दिल्ली प्रवास में बीकानेर हाउस में रहते हैं। कांग्रेस के शासन में तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना डेरा ही बीकानेर हाउस में जमा रखा था। जिस बीकानेर हाउस की कीमत आज खरबों रुपए की है, उसे मात्र पचास लाख रुपए के लिए नीलाम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए, जिसकी वजह से राजस्थान की विरासत और संस्कृति की नीलामी हो रही है। भले ही नोखा नगर पालिका में कांग्रेस के समर्थक हो, लेकिन राज्य सरकार के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। 

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अडाणी का मामला भारत को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करने की साजिश है।कटघरे में तो विपक्षी दलों की सरकारें है, गुजरात में कांग्रेस सरकार ने अडानी को 10 पैसे प्रति मीटर के भाव से जमीन आवंटित की थी।

अमेरिका की न्यूयॉर्क फेडरर कोर्ट में भारत के उद्योगपति गौतम अडानी पर जो आरोप लगे हैं, उन्हें साधारण शब्दों में समझा जाए तो पता चलता है कि अडाणी ग्रीन एनर्जी ने अपने सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के लिए 75 करोड़ डॉलर निवेशकों से जुटाएं। इस राशि में 17 करोड़ डॉलर अमेरिकी निवेशकों के हैं। अब यह आरोप लगा है कि अडानी समूह ने जो राशि निवेशकों से जुटाए उसमें से दो हजार करोड़ रुपए भारत के अधिकारियों को रिश्वत के तौर पर दे दिए। चूंकि निवेशक अमेरिकी भी है, इसलिए कुछ लोगों ने अमेरिकी कानून के मुताबिक कोर्ट में मामला दायर किया है। सामान्य प्रक्रिया है कि जब कोई आरोप निर्धारित होते हैं तो आरोपी को अदालत में जवाब देने के लिए आना होता है। चूंकि भारत के आर्थिक विकास में अडाणी समूह की महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिए अमेरिका में हुई इस कार्यवाही से भारत में हड़कंप मच गया है। आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में हुई कार्यवाही भारत को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करना चाहती है। मौजूदा समय में भारत आर्थिक क्षेत्र में दुनिया की पांचवीं शक्ति है जो निकट भविष्य में तीसरी शक्ति बनने जा रही है। भारत की तरह अमेरिका भी एक लोकतंत्र देश है और वहां भी भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। ऐसी ताकतें नहीं चाहती कि भारत आर्थिक दृष्टि से अमेरिका के मुकाबले खड़ा हो। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भले ही अमेरिका में हुई कार्यवाही को राजनीतिक मुद्दा बनाए, लेकिन अडाणी के ताजा प्रकरण में भारत में विपक्षी दलों की सरकारें ही कटघरे में खड़ी हैे। इसमें छत्तीसगढ़ रही भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भी शामिल है। राहुल गांधी यदि गौतम अडानी के पीछे नरेंद्र मोदी को खड़ा मानते हैं तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रहते हुए जब गौतम अडानी की कंपनी के साथ सौर बिजली की दर का अनुबंध किया, जब भूपेश बघेल के पीदे कांग्रेस का कौन सा नेता खड़ा था? अडाणी की कंपनी ने वर्ष 2021-22 में जब राज्य सरकारों से अनुबंध किए तब तमिलनाडु में डीएमके, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर रेड्डी, उड़ीसा में बीजेडी की सरकार थी। अमेरिका की फैडरर कोर्ट में भारत के चार राज्यों की सरकारों के साथ हुए अनुबंध में ही रिश्वतखोरी के आरोप लगे हैं। कांग्रेस के इंडिया गठबंधन में डीएमके भी शामिल है। अच्छा हो कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाने से पहले अपने सहयोगी दलों और स्वयं की कांग्रेस पार्टी की ईमानदारी की जांच पड़ताल कर लें। तेलंगाना में तो हाल ही में कांग्रेस सरकार बनी है, यहां भी अडाणी समूह ने स्किल यूनिवर्सिटी के एक हजार करोड़ रुपए का डोनेशन दिया है। ऐसा नहीं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अडाणी समूह का विकास हुआ हो। राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे, तब भी केंद्र सरकार के सहयोग के कारण ही अडाणी को विदेश में ठेके मिले। गुजरात में तो चिमन भाई पटेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने अडानी समूह को मात्र 10 पैसे प्रति मीटर के हिसाब से हजारों बीघा भूमि आवंटित की थी। राहुल गांधी को बताना चाहिए कि इस मेहरबानी की एवज में अडाणी समूह से कितनी रिश्वत ली गई। यह माना कि राहुल गांधी को पीएम मोदी से व्यक्तिगत द्वेषता है लेकिन राहुल गांधी को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे देश का नुकसान होता हो। राहुल गांधी भले ही अडाणी समूह पर आरोप लगाए, लेकिन यह सच्चाई है कि अडाणी ने विदेशी सहयोग से भारत में हथियार बनाने के जो उद्योग लगाए है उनमें आज बड़ी मात्रा में सैन्य हथियार निर्मित हो रहे है। भारतीय सेना की मांग पूरी करने के बाद हथियारों का निर्यात भी किया जा रहा है। अडाणी समूह को जो एयरपोर्ट और बंदरगाह रखरखाव के लिए दिए गए है उन से सरकार को रॉयल्टी भी प्राप्त हो रही है। किसी भी देश के विकास में उद्योगपतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उद्योगपतियों के बगैर कोई भी देश विकास नहीं कर सकता। राहुल गांधी माने या नहीं लेकिन अमेरिका की कोर्ट में लगे आरोप कोई मायने नहीं रखते हैं। यह आरोप सिर्फ भारत को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करने के लिए लगाए गए है। राहुल गांधी को भारत विरोधी ताकतों का टूल नहीं बनना चाहिए। 

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परिणाम के बाद महाराष्ट्र में विधायकों की खरीद फरोख्त की आशंका।हरियाणा में हुई दुर्गति के बाद अनुमान लगाने वाले भी डरे।

हालांकि महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणाम 23 नवंबर को आएंगे, लेकिन 20 नवंबर को मतदान समाप्ति के तुरंत बाद मीडिया घरानों और अन्य संस्थाओं ने अनुमानित परिणाम घोषित कर दिए। ऐसे में परिणाम हरियाणा में भी घोषित किए गए थे, लेकिन परिणाम अनुमानों के उलट आए। सभी मीडिया घराने और अनुमान लगाने वाली संस्थाएं हरियाणा में कांग्रेस की जीत मान रही थी, लेकिन परिणाम में भाजपा की जीत हुई। इस दुर्गति के बाद अनुमान लगाने वाले भी डरे हुए हैं। इसलिए महाराष्ट्र के बारे में आधा अधूरा अनुमान लगाया गया है। अनुमान लगाने वाली संस्थाओं के आंकड़ों का औसत निकाला जाए तो महाराष्ट्र में भाजपा के गठबंधन वाले महायुति को न्यूनतम 137 सीटें दी गई है जबकि कांग्रेस के गठबंधन वाले महाअघाड़ी को न्यूनतम 120 सीटें दी है। महाराष्ट्र में 288 में से सरकार बनाने के लिए 145 सीट चाहिए। यानी औसत में भी किसी भी दल को बहुमत नहीं बताया जा रहा। वही जानकारों की माने तो महाराष्ट्र में परिणाम के बाद विधायकों की खरीद फरोख्त का दौर चलेगा। असल में इस बार शिवसेना और एनसीपी के दो दो गुट होने के साथ साथ भाजपा और कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की भी संख्या ज्यादा है। बागी उम्मीदवारों ने कई सीटों पर प्रमुख दलों के उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ रहे हैं। अनेक सीटों पर बागी उम्मीदवार अपने दल के अधिकृत उम्मीदवार से ज्यादा मजबूत है। कांग्रेस, भाजपा और शिवसेना व एनसीपी के दोनों गुटों के नेता अभी भी सतर्कता बरत रहे हैं। कुछ दलों ने तो अपने सभी उम्मीदवारों को एक स्थान पर एकत्रित कर लिया है। इसके साथ्ज्ञ ही भाजपा ने कई बागी उम्मीदवारों से संपर्क साधा लिया है। ताकि जरूरत पड़ने पर सहयोग लिया जा सके। इस बीच महाराष्ट्र के बड़े उद्योगपति चिंतित हैं क्योंकि यदि कांग्रेस के गठबंधन वाले महा अघाड़ी की सरकार बनती है तो सबसे ज्यादा असर उद्योग की रफ्तार पर पड़ेगा। यहां तक कि झुग्गी झोपड़ी वाला धारावी प्रोजेक्ट भी बंद हो ाजएगा। इसके दो लाख लाख गरीब लोग पक्के मकान से वंचित हो जाएंगे। झारखंड में सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों की जरूरत है, जबकि अनुमानों का औसत भाजपा को न्यूनतम 38 तथा जेएमएम को न्यूनतम 34 सीटें बता रहा है। झारखंड में भी खरीद फरोख्त की आशंका बनी हुई है। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना रहमान सज्जाद नोमानी भले ही भाजपा को हराने का फवा जारी करे, लेकिन महाराष्ट्र की भाजपा गठबंधन वाली सरकार ही अभिनेता सलमान खान को सुरक्षा दे रही है। मुसलमानों के जो नेता भाजपा के खिलाफ जहर उगलते हैं उन्हें कट्टरपंथ से सावधान रहना चाहिए। ऐसे नेता यह अच्छी तरह समझ लें कि मुसलमान जब तक हिंदुओं के साथ रह रहे है, तब तक ही सुरक्षित है। जिस दिन मुसलमानों को मुसलमानों के साथ रहना पड़ेगा उस दिन आम मुसलमान सुरक्षित नहीं रहेगा। भारत में रहने वाले मुसलमान अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हालात देख सकते हैं। कट्टरपंथी मुस्लिम नेता चाहे कुछ भी कहे, लेकिन भारत की सनातन संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जिसमें दूसरे धर्मों की परंपराओं का भी सम्मान होता है। यही वजह है कि अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह पर आम दिनों में मुसलमानों से ज्यादा हिंदू जियारत के लिए आते हंै। कट्टरपंथी नेताओं को भारत की सनातन संस्कृति के इस महत्व को समझना चाहिए। 

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परिणाम के बाद महाराष्ट्र में विधायकों की खरीद फरोख्त की आशंका।हरियाणा में हुई दुर्गति के बाद अनुमान लगाने वाले भी डरे।

हालांकि महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणाम 23 नवंबर को आएंगे, लेकिन 20 नवंबर को मतदान समाप्ति के तुरंत बाद मीडिया घरानों और अन्य संस्थाओं ने अनुमानित परिणाम घोषित कर दिए। ऐसे में परिणाम हरियाणा में भी घोषित किए गए थे, लेकिन परिणाम अनुमानों के उलट आए। सभी मीडिया घराने और अनुमान लगाने वाली संस्थाएं हरियाणा में कांग्रेस की जीत मान रही थी, लेकिन परिणाम में भाजपा की जीत हुई। इस दुर्गति के बाद अनुमान लगाने वाले भी डरे हुए हैं। इसलिए महाराष्ट्र के बारे में आधा अधूरा अनुमान लगाया गया है। अनुमान लगाने वाली संस्थाओं के आंकड़ों का औसत निकाला जाए तो महाराष्ट्र में भाजपा के गठबंधन वाले महायुति को न्यूनतम 137 सीटें दी गई है जबकि कांग्रेस के गठबंधन वाले महाअघाड़ी को न्यूनतम 120 सीटें दी है। महाराष्ट्र में 288 में से सरकार बनाने के लिए 145 सीट चाहिए। यानी औसत में भी किसी भी दल को बहुमत नहीं बताया जा रहा। वही जानकारों की माने तो महाराष्ट्र में परिणाम के बाद विधायकों की खरीद फरोख्त का दौर चलेगा। असल में इस बार शिवसेना और एनसीपी के दो दो गुट होने के साथ साथ भाजपा और कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की भी संख्या ज्यादा है। बागी उम्मीदवारों ने कई सीटों पर प्रमुख दलों के उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ रहे हैं। अनेक सीटों पर बागी उम्मीदवार अपने दल के अधिकृत उम्मीदवार से ज्यादा मजबूत है। कांग्रेस, भाजपा और शिवसेना व एनसीपी के दोनों गुटों के नेता अभी भी सतर्कता बरत रहे हैं। कुछ दलों ने तो अपने सभी उम्मीदवारों को एक स्थान पर एकत्रित कर लिया है। इसके साथ्ज्ञ ही भाजपा ने कई बागी उम्मीदवारों से संपर्क साधा लिया है। ताकि जरूरत पड़ने पर सहयोग लिया जा सके। इस बीच महाराष्ट्र के बड़े उद्योगपति चिंतित हैं क्योंकि यदि कांग्रेस के गठबंधन वाले महा अघाड़ी की सरकार बनती है तो सबसे ज्यादा असर उद्योग की रफ्तार पर पड़ेगा। यहां तक कि झुग्गी झोपड़ी वाला धारावी प्रोजेक्ट भी बंद हो ाजएगा। इसके दो लाख लाख गरीब लोग पक्के मकान से वंचित हो जाएंगे। झारखंड में सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों की जरूरत है, जबकि अनुमानों का औसत भाजपा को न्यूनतम 38 तथा जेएमएम को न्यूनतम 34 सीटें बता रहा है। झारखंड में भी खरीद फरोख्त की आशंका बनी हुई है। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना रहमान सज्जाद नोमानी भले ही भाजपा को हराने का फवा जारी करे, लेकिन महाराष्ट्र की भाजपा गठबंधन वाली सरकार ही अभिनेता सलमान खान को सुरक्षा दे रही है। मुसलमानों के जो नेता भाजपा के खिलाफ जहर उगलते हैं उन्हें कट्टरपंथ से सावधान रहना चाहिए। ऐसे नेता यह अच्छी तरह समझ लें कि मुसलमान जब तक हिंदुओं के साथ रह रहे है, तब तक ही सुरक्षित है। जिस दिन मुसलमानों को मुसलमानों के साथ रहना पड़ेगा उस दिन आम मुसलमान सुरक्षित नहीं रहेगा। भारत में रहने वाले मुसलमान अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हालात देख सकते हैं। कट्टरपंथी मुस्लिम नेता चाहे कुछ भी कहे, लेकिन भारत की सनातन संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जिसमें दूसरे धर्मों की परंपराओं का भी सम्मान होता है। यही वजह है कि अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह पर आम दिनों में मुसलमानों से ज्यादा हिंदू जियारत के लिए आते हंै। कट्टरपंथी नेताओं को भारत की सनातन संस्कृति के इस महत्व को समझना चाहिए। 

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अभिनेता सलमान खान ने कड़ी सुरक्षा में मतदान किया।क्या पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में किसी हिंदू को इतनी सुरक्षा मिल सकती है?पाकिस्तान में फिर आतंकी हमला, 12 जवानों की मौत।भारत में रहने वाले मुसलमानों को इस स्थिति को समझना होगा।

20 नवंबर को मुंबई में फिल्म अभिनेता सलमान खान ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। सलमान को घर से लेकर मतदान केंद्र तक कड़ी सुरक्षा में लाया गया। कोई एक दर्जन से भी ज्यादा सरकारी सुरक्षाकर्मी सलमान के साथ चल रहे थे। इस सुरक्षा घेरे के कारण ही सलमान के चेहरे पर डर का भाव नहीं था। अपने परंपरागत अंदाज में सलमान ने शुभचिंतकों का अभिवादन भी किया। सलमान को इतनी सुरक्षा लॉरेंस बिश्नोई की धमकी के बाद दी गई है। चूंकि लारेंस गैंग थोड़े ही दिन पहले पूर्व विधायक बाबा सिद्दीकी की हत्या कर चुकी है। इसलिए मुंबई पुलिस सलमान खान की सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरतना चाहती। भारत के सुरक्षा बलों की नजर में देश का हर नागरिक महत्व रखता है। भले ही वह किसी भी मजहब से ताल्लुक रखता हो, लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में किसी हिंदू नागरिक को सलमान खान जैसी सुरक्षा मिल सकती है? सब जानते हैं कि इन मुस्लिम देशों में हिंदू समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है। सुरक्षा मिलना तो दूर उल्टे सरकारी संरक्षण में हिंदुओं पर अत्याचार होते हैं। हिंदुओं को अब जान बचाने के लिए भारत आना पड़ रहा है। इन मुस्लिम देशों में हिंदू ही नहीं मुसलमान भी सुरक्षित नहीं है। इस्लाम में विभिन्न विचारधाराएं होने के कारण आए दिन जानलेवा हमले होते हैं। पाकिस्तान में तो प्रतिदिन दिन आतंकी हमले हो रहे हैं। 20 नवंबर को भी खैबर पख्तून में जो आत्मघाती हमला हुआ उसमें सेना के 12 जवान मारे गए। यह सभी जवान मुसलमान थे। यानी आतंकियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मरने वाला भी मुसलमान है। भारत में रहने वाले मुसलमानों को इस स्थिति को समझना होगा। मुस्लिम देशों में स्वयं मुसलमान सुरक्षित नहीं है जबकि भारत में मुस्लिम नागरिक पूरी तरह सुरक्षित है। हमारे सुरक्षाबलों को प्रत्येक नागरिक की कितनी चिंता है, इसका उदाहरण सलमान खान को दी गई सुरक्षा है। भारत में बिना किसी भेदभाव के हर नागरिक की सुरक्षा की जाती है। 

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Wednesday, 20 November 2024

आईटी कंपनियों का स्वागत तो है, लेकिन पहले अजमेर में दो दिन में एक बार पानी की सप्लाई तो हो।एलिवेटेड रोड के नीचे की सड़क आज भी टूटी पड़ी है। जयपुर रोड पर प्रवेश द्वार में भी तकनीकी सुधार हो।

इसमें कोई दो राय नहीं कि अजमेर उत्तर क्षेत्र के भाजपा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी अजमेर के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यही वजह है कि देवनानी के विदेश यात्रा से लौटने पर अनेक सामाजिक, धार्मिक राजनीतिक संगठन के प्रतिनिधि स्वागत करने के लिए उतावले हैं। देवनानी 21 नवंबर को जयपुर पहुंचने के बाद 23 नवंबर को अजमेर आएंगे। देवनानी का कहना है कि विदेश यात्रा में उनकी मुलाकात विप्रो, टीसीएस, अडाणी जैसे आईटी कंपनियों के प्रतिनिधियों से हुई है। इन कंपनियों के प्रतिनिधि अजमेर में अपना आउटलेट खोलने में रुचि रखते हैं। मालूम हो कि देवनानी की पहल पर ही अजमेर में आईटी पार्क विकसित किया जा रहा है। स्वाभाविक है कि जब इतनी नामी कंपनियों के आउटलेट खुलेंगे तो अजमेर के युवाओं को बेंगलुरु, मुंबई, पूणे, नोएडा, दिल्ली आदि महानगरों में नौकरी के लिए नहीं जाना होगा। उल्टे जो युवा अभी इन शहरों में काम कर रहे हैं वे वापस अपने अजमेर में आ सकेंगे। बड़ी आईटी कंपनियों का अजमेर में स्वागत तो हैं, लेकिन इससे पहले अजमेर वासियों को काम से कम दो दिन में एक बार पेयजल तो उपलब्ध कराया जाए। मौजूदा समय में चार पांच दिन में एक बार पेयजल की सप्लाई होती है। गंभीर बात तो यह है कि सर्दी शुरू होने के बाद भी पेयजल व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाया है। जिस बीसलपुर बांध से पानी लेकर जयपुर जिले में प्रतिदिन पेयजल की सप्लाई हो ती है, उसी बांध से अजमेर के लिए भी पानी लिया जाता है। जयपुर और अजमेर के लोगों के बीच भेदभाव क्यों हो रहा है, इसका जवाब भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को देना चाहिए, क्योंकि इन दोनों दलों का ही पिछले 25 वर्षों से बारी बारी शासन रहा है। मौजूदा समय में अजमेर के लोगों की आस विधानसभा अध्यक्ष देवनानी पर टिकी हुई है। देवनानी का भी प्रयास है कि 135 किलोमीटर दूर बने बांध से अजमेर शहर तक नई और मोटी पाइप लाइन बिछाई जाए, ताकि लोगों को प्रतिदिन पानी मिल सके। लेकिन यह देखना होगा कि देवनानी को अपने इन प्रयासों में सफलता कब मिलती है। विधानसभा अध्यक्ष के पद का प्रभाव काम में लेते हुए देवनानी अजमेर की सड़कों की स्थिति सुधारने का भी प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि शहर में बने एलिवेटेड रोड के नीचे की सड़क ही टूटी पड़ी है। सोनी जी की ऐतिहासिक नसियां के निकट से गुजर रही सड़क तो गड्ढों में तब्दील हो गई है। नसियां के निकट बोटल नेक की स्थिति है इसलिए दिन में कई बार जाम लग जाता है। देवनानी ने अपने विदेश दौरे में ऑस्ट्रेलिया और जापान की चमचमाती सड़कें भी देखी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अजमेर सड़कें कम से कम जयपुर की तरह तो हो ही जाए। देवनानी को विदेश यात्रा से आने के बाद अजमेर के एलिवेटेड रोड के नीचे वाली सड़क से भी गुजरना चाहिए। अजमेर का प्रतिनिधित्व जब वासुदेव देवनानी जैसे सशक्त और विकास पुरुष व्यक्ति कर रहे हैं, तब जयपुर रोड वाला प्रवेश द्वार भी सुगम और आकर्षक होना चाहिए। मौजूदा समय में नेशनल हाईवे के नीचे पुलिस बनाकर अजमेर में प्रवेश करने की व्यवस्था है। लोगो ंको पुलिया के नीचे से ही मुख्य सड़क पर चलना होता है। इसकी वजह से दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। अजमेर के विकास में रुचि रखने वालों का सुझाव है कि जयपुर रोड स्थित अशोक उद्यान की कुछ भूमि को लेकर प्रवेश द्वार को तकनीकी दृष्टि से सुगम बनाया जाए। 

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मतदान से एक दिन पहले हर दल का उम्मीदवार बूथवार पैसा बांटता है।

महाराष्ट्र में 288 सीटों पर 20 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए 19 नवंबर को सभी राजनीतिक दलों ने अंतिम तैयारी की। इसी तैयारी के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े और मुंबई स्थित नालासोपारा विधानसभा क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार की गतिविधियों को प्रतिद्वंद्वी दलों के कार्यकर्ताओं ने कैमरे में कैद कर लिया। अब आरोप लगाया जा रहा है कि भाजपा की ओर से वोट के लिए नोट बांटे जा रहे थे। नोट बांटने के आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन सब जानते हैं कि मतदान से एक दिन पहले ही हर दल का उम्मीदवार बूथ वार पैसा बांटता है। यदि यह पैसा न बांटा जाए तो अगले दिन मतदान केंद्र पर संबंधित उम्मीदवार का एजेंट नहीं बैठ पाएगा। सवाल अकेल भाजपा का नहीं है बल्कि कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों का है जो लोग चुनाव लड़ते हैं उन्हें पता है कि मतदान के दिन सुचारू व्यवस्था के लिए बूथ वार भुगतान किया जाता है। यह राशि प्रचार के अतिरिक्त होती है। कांग्रेस में ब्लॉक और वार्ड स्तर के नेता बूथ के हिसाब से राशि प्राप्त करते हैं। यही स्थिति भाजपा में मंडल स्तर पर है। चूंकि महाराष्ट्र में कांग्रेस और भाजपा के अलावा शिवसेना और एनसीपी के दो-दो गुट के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए पैसा बांटने की चर्चा ज्यादा हो रही है। कार्यकर्ता किसी भी दल का हो उसे पता है कि परिणाम के बाद कोई नेता नजर नहीं आएगा। जो उम्मीदवार चुनाव जीत जाएगा, वह भी काम नहीं आएगा। इसलिए कार्यकर्ता भी अपनी मेहनत का पूरा भुगतान मतदान वाले दिन तक वसूल लेता है। कांग्रेस और अन्य किसी दल भले ही अब विनोद तावड़े वाले मामले को भाजपा की तिजोरी से जोड़ दे, लेकिन ऐसी तिजोरी हर दल के उम्मीदवार के पास होती है। जो लोग राजनीति में शुद्धता का दावा करते हैं उन्हें सबसे पहले ऐसे कार्यकर्ता तैयार करने चाहिए जो पैसा लिए बगैर मतदान केंद्र पर एजेंट के तौर पर बैठ सके। यह राजनीति की सच्चाई है कि किसी भी दल के पास ऐसे समर्पित कार्यकर्ता नहीं है जो कार्यकर्ता के बगैर मतदान केंद्र पर बैठ सके। मतदान से एक दिन पहले बूथ वार पैसा बांटना हर दल के उम्मीदवार की मजबूरी है। 

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होटल खादिम का नाम बदलने पर ख्वाजा साहब की दरगाह के खादिमों ने एतराज जताया।

राजस्थान पर्यटन विकास निगम की अजमेर स्थित होटल खादिम का नाम होटल अजयमेरु करने पर ख्वाजा साहब की दरगाह के खादिमों ने ऐतराज जताया है। खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा कि नाम बदलना हमारी विरासत के साथ छेड़छाड़ करना है। उन्होंने कहा कि पूर्व में होटल का नाम खादिम इसलिए रखा गया कि अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह है और दरगाह के खादिम आने वाले जायरीन की खिदमत सेवा करते हैं। भले ही खादिम शब्द उर्दू का हो, लेकिन इस उद्देश्य सेवा की भावना से जड़ा हुआ है, लेकिन सरकार ने द्वेषतापूर्ण रवैया दिखाते हुए होटल खादिम का नाम परिवर्तित किया है। आज ख्वाजा साहब की दरगाह और खादिमों की वजह से अजमेर का नाम देश दुनिया में है। दुनिया में ताजमहल, लाल किला जैसी ऐतिहासिक इमारतें प्रसिद्ध है। इन इमारतों को देखने के लिए दुनिया भर से लोग भारत आते हैं। क्या ताजमहल और लाल किले का नाम भी बदला जा सकता है? सरवर चिश्ती ने कहा कि सरकार के अधीन आने वाली होटल खादिम का नाम परिवर्तित न किया जाए। मालूम हो कि अजमेर के भाजपा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के निर्देश पर ही होटल खादिम का नाम अजयमेरु होटल किया गया है। देवनानी का कहना है कि नया नाम अजमेर के इतिहास को उजागर करता है। पूर्व में अजमेर का नाम अजयमेरु ही था। अजयमेरु की स्थापना राजा अजय पाल ने ही की थी। 

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Tuesday, 19 November 2024

मेकअप के बिना हर अभिनेत्री बुझी हुई ही लगती है। तो फिर स्वरा भास्कर की सूरत को मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है?

मेरे इस ब्लॉग को समझने के लिए पहले मेरे फेसबुक पेज पर पोस्ट अभिनेत्री स्वरा भास्कर के दो फोटो देखने चाहिए। एक फोटो अभिनेत्री स्वरा भास्कर का है तो दूसरा फोटो स्वरा भास्कर के निकाह के बाद का है। स्वरा ने मुस्लिम युवक फहद खान से निकाह किया है। निकाह के बाद वाला फोटो नवीनतम बताया जा रहा है । सोशल मीडिया पर स्वरा भास्कर के दोनों फोटो बहस का मुद्दा बने हुए हैं। हिंदूवादी लोगों का कहना है कि निकाह से पहले स्वरा भास्कर को जो स्वतंत्रता थी वह अब नहीं है। वही निकाह का समर्थन करने वाले मुस्लिम संगठनों के लोगों का कहना है कि यह अच्छी बात है कि स्वरा भास्कर अब पूरे लिबास में रहने लगी है। स्वाभाविक है कि सलवार कुर्ता और उस पर चुन्नी के बाद स्वरा भास्कर का लुक साधारण नजर आ रहा है। सोशल मीडिया पर इस नए लुक को भले ही मुद्दा बनाया जा रहा हो, लेकिन हर अभिनेत्री मेकअप के बिना बुझी हुई ही नजर आ रही है। चूंकि हम स्क्रीन पर अभिनेत्रियों को मेकअप में देखते हैं। इसलिए असली चेहरे का पता नहीं चलता। स्वरा भास्कर भी जब फिल्मों में काम करती थी, तब हमेशा मेकअप में नजर आती थी। कपड़े भी ऐसे जो हर किसी का ध्यान आकर्षित करते थे। जो लोग स्वरा भास्कर को अभिनेत्री वाले अंदाज में देखना चाहते हैं उन्हें निकाह के बाद वाले लुक से निराशा हो सकती है, लेकिन तेज तर्रार स्वरा भास्कर अपना जीवन कैसे व्यतीत करे यह उनका व्यक्तिगत फैसला है। यह सही है कि जब वे अभिनेत्री थी तो उनके शब्द भी बोल्ड थे, लेकिन निकाह के बाद उनके बोल कैसे है, इसका पता आने वाले दिनों में चलेगा। सोशल मीडिया पर लोगों को किसी महिला के व्यक्तिगत जीवन पर टीका टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। निकाह के बाद यदि कोई परेशानी होगी तो स्वरा भास्कर स्वत: ही बता देंगी। कुछ लोगों को बेवजह स्वरा भास्कर की चिंता नहीं करनी चााहिए। 


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आखिर राहुल गांधी को माल से भरी तिजोरी ही क्यों नजर आती है?मुम्बई एयरपोर्ट पर राहुल ने अशोक गहलोत से हाथ से माला नहीं पहनी।

18 नवंबर को मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने पत्रकारों के समक्ष एक तिजोरी का प्रदर्शन किया। राहुल ने इस तिजोरी को अपने हाथ से खोला और तिजोरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के साथ साथ मुंबई की झुग्गी झोपड़ी वाला धारावी का पोस्टर निकाला। राहुल ने कहा कि पीएम मोदी ने एक है तो सेफ है कि जो बात कही है उसका मतलब गौतम अडानी से है। मोदी के सेफ का मतलब भले ही सुरक्षा से हो, लेकिन राहुल गांधी सेफ की तुलना तिजोरी से कर रहे है। यह सही है कि गत लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटें मिलने और फिर लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनने के बाद राहुल गांधी कुछ ज्याा ही उत्साहित हैं। लेकिन सवाल उठता है कि राहुल गांधी को माल से भरी तिजोरी ही क्यों नजर आती है? राहुल गांधी भले ही मोदी अडाणी की तुलना तिजोरी से करें, लेकिन सब जानते हैं कि नेशनल हेराल्ड की दो हजार करोड़ रुपए की संपत्ति को राहुल गांधी और उनके परिवार के सदस्यों ने धोखाधड़ी कर हड़प लिया। इस धोखाधड़ी में राहुल गांधी और उनकी माताजी श्रीमती सोनिया गांधी आज भी अदालत से जमानत पर है। श्रीमती इंदिरा गांधी के जमाने में राजस्थान की छोटी सादड़ी से भी जो तिजोरियां भरी गई उन्हें कांग्रेस के लोग अच्छी तरह जानते हैं। इतना ही नहीं राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा ने हरियाणा और राजस्थान में जमीनों का जो कारोबार किया उसे भी राहुल गांधी के परिवार के लोगों की ही तिजोरियां भरी गई। इसके विपरीत देश की जनता के सामने नरेंद्र मोदी की छवि है। मोदी के परिवार के सदस्य आज भी छोटा मोटा काम कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जहां तक उद्योगपति गौतम अडानी का सवाल है तो अडाणी के अनेक प्रोजेक्टों को कांग्रेस शासित कर्नाटक और तेलंगाना राज्यों में मंजूरी दी गई है। पूर्व में जब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी तो अनेक प्रोजेक्ट लगाने के लिए अडाणी समूह को रियायती दरों पर भूमि आवंटित की गई। आज भले ही राहुल गांधी तिजोरी से मोदी अडाणी वाला पोस्टर निकाले, लेकिन सवाल उठता है कि अडाणी समूह के प्रोजेक्ट मंजूर कर कांग्रेस के नेता भी तिजोरियां भर रहे हैं? मोदी अडाणी पर आरोप लगाने से पहले राहुल गांधी को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। महाराष्ट्र के चुनाव में राहुल गांधी जिस धारावी क्षेत्र को मुद्दा बना रहे हैं, उसी क्षेत्र में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले 2 लाख गरीबों को पक्का मकान मिलेगा। यह काम अडाणी समूह में सार्वजनिक टेंडर प्रणाली से प्राप्त किया है। महाराष्ट्र में जब कांग्रेस के गठबंधन की सरकार थी, तब राहुल गांधी भी धारावी क्षेत्र के काया पलट के समर्थक थे।

माला नहीं पहनी:
18 नवंबर को मुंबई एयरपोर्ट पर राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने राहुल गांधी का स्वागत किया। इस स्वागत के तीन फोटो गहलोत ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किए हैं। इन तीनों फोटो में गहलोत के हाथ में सूत की माला है। हलोत यह माला राहुल को पहनाने के लिए लाए थे, लेकिन राहुल ने गहलोत के हाथों से माला नहीं पहनी, इसलिए माला गहलोत के हाथ में ही धरी रह गई। गहलोत के हाथों माला नहीं पहनने को लेकर अब राजनीति में चर्चाएं हो रही है। जानकारों की मानें तो अशोक गहलोत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री रहते हुए 25 सितंबर 2022 को बगावत के जो जख्म दिए थे, वे अभी तक भी भरे नहीं है। अशोक गहलोत के राजनीतिक जीवन में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब वे मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद अभी तक भी कांग्रेस संगठन में कोई पद हासिल नहीं कर सकें। आमतौर पर सीएम के पद से हटने के बाद गहलोत राष्ट्रीय मंत्री बन जाते हैं। 

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सभापति हो तो पुष्कर के कमल पाठक जैसा। कैबिनेट मंत्री सुरेश रावत ने ऐसा गठजोड़ है जो कभी अजमेर में वासुदेव देवनानी और धर्मेन्द्र गहलोत के बीच हुआ करता था।देवनानी की पहल पर खादिम टूरिस्ट बैंगलों का नाम अजयमेरु होटल।

18 नवंबर को पुष्कर नगर परिषद की साधारण सभा हुई। इस सभा में नामांतरण, निर्माण कार्यों की स्वीकृति, पट्टों का वितरण, विकास कार्यों की स्वीकृति आदि के प्रस्ताव एक मिनट में पारित कर दिए गए। विपक्षी कांग्रेस के पार्षद ऐतराज करते इससे पहले ही सभापति कमल पाठक ने राष्ट्रगान शुरू कर करवा दिया। सभापति ने जो अंदाजा दिखाया उसका समर्थन आयुक्त कीर्ति कुमावत ने भी किया। साधारण सभा में ऐसा इसलिए हो पाया कि सभापति कमल पाठक और पुष्कर के विधायक कैबिनेट मंत्री सुरेश रावत के बीच हाथी छाप फेविकॉल वाला गठजोड़ है। यदि ऐसो मजबूत गठजोड़ नहीं होता तो आयुक्त कीर्ति कुमावत कांग्रेस पार्षदों के एतराज को नोट करती। मौजूदा समय में कमल पाठक और मंत्री सुरेश रावत के बीच वैसा ही गठजोड़ है जैसा पूर्व में अजमेर में भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी (अभी विधानसभा अध्यक्ष) और नगर निगम के तत्कालीन मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के बीच हुआ करता था। धर्मेन्द्र गहलोत इसी तरह साधारण सभा का संचालन करते थे। चूंकि गहलोत को देवनानी का समर्थन था इसलिए तब किसी भी विरोध को स्वीकार नहीं किया जाता था। देवनानी भी गहलोत के विरुद्ध सुनने को तैयार नहीं थे। देवनानी कहते भी रहे कि भाजपा के कुछ नेता मेरे और धर्मेन्द्र गहलोत के बीच के गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं, लेकिन हम दोनों के बीच फेविकॉल का गठजोड़ है। यह संयोग ही है कि धर्मेंद्र गहलोत भी 10 वर्षों तक मेयर रहे, जबकि पुष्कर नगर पालिका के सभापति कमल पाठक का दस वषों का कार्यकाल मात्र पांच दिन 25 नवंबर को पूरा हो रहा है। हालांकि अजमेर में अब देवनानी और गहलोत का गठजोड़ टुकड़े टुकड़े हो चुका है, लेकिन पुष्कर में कमल पाठक और सुरेश रावत का गठजोड़ बना हुआ है। अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि पुष्कर वाले गठजोड़ का अजमेर वाला हश्र होगा, लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। अलबत्ता पाठक और रावत के गठजोड़ की पूरे प्रदेश में चर्चा है।

अजयमेरु होटल:
राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अजमेर स्थित खादिम टूरिस्ट बैंगलो का नाम अब अजयमेरु होटल होगा। नाम बदलने पर पर्यटन विभाग ने स्वीकृति दे दी है। नाम बदलने के पीछे अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक व विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की सिफारिश रही है। देवनानी की सिफारिश पर ही अजमेर के स्टेशन रोड स्थित अद्र्ध सरकारी किंग एडवर्ड मेमोरियल होटल का नाम स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम पर रखा जा रहा है।  

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क्या अब जाट समुदाय हनुमान बेनीवाल के खिलाफ आंदोलन करेगा?ऐसे ही कथन पर गुर्जर समाज ने भाजपा विधायक अनीता भदेल के खिलाफ आंदोलन किया था।

आरएलपी के प्रमुख और कांग्रेस के समर्थन से नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने 18 नवंबर को जोधपुर में आरएएस व देवली के एसडीएम अमित चौधरी को तीन चार थप्पड़ मारने की बात कही। इतना ही नहीं बेनीवाल ने नरेश मीणा द्वारा अमित चौधरी को थप्पड़ मारने को भी जायज ठहराया। बेनीवाल ने कहा कि अमित चौधरी पीटने लायक ही है। अमित ने नागौर में रहते हुए आरएलपी के कार्यकर्ताओं को भी तंग किया था। नरेश मीणा ने तो एक थप्पड़ मारा, मैं होता तो तीन चार मारता। मालूम हो कि देवली विधानसभा के उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को मतदान हुआ था। तब निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने एसडीएम अमित चौधरी के थप्पड़ मारा था। हालांकि अब नरेश मीणा पुलिस रिमांड पर है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या अब अमित चौधरी के लिए जाट समुदाय हनुमान बेनीवाल के खिलाफ आंदोलन करेगा? यह सवाल इसलिए उठा है कि विगत दिनों जब नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा के समक्ष अजमेर सर्किट हाउस में भाजपा विधायक अनिता भदेल ने अजमेर विकास प्राधिकरण में नियुक्त उपायुक्त भरत राज गुर्जर (आरएएस) को पीटने की बात कही थी। भदेल ने भले ही उपायुक्त की कार्यशैली पर ऐतराज जताया, लेकिन गुर्जर समाज ने भदेल की धमकी को समाज की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। भदेल के खिलाफ अजमेर में कलेक्ट्रेट के बाहर प्रदर्शन भी किया गया। यहां तक धमकी दी गई कि यदि भदेल ने गुर्जर समाज से माफी नहीं मांगी तो प्रदेश के उपचुनाव में गुर्जर मतदाता भाजपा को वोट नहीं देंगे। गुर्जर समाज के साथ साथ आरएएस एसोसिएशन ने भी भदेल के खिलाफ मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया। अब जब हनुमान बेनीवाल ने एक आरएएस अधिकारी को थप्पड़ मारने की बात कही है तब अब आरएएस एसोसिएशन का रुख भी देखना होगा। 


S.P.MITTAL BLOGGER (19-11-2024)
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