Monday 2 January 2017

#2104
अजमेर में इस्लाम का पैगाम ख्वाजा साहब से भी पहले शाह मदार साहब लेकर आए थे। 
आज उनके सिलसिले के 6 करोड़ मुसलमान भारत में हैं।
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हालांकि मुस्लिम इतिहास में अजमेर की पहचान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की वजह से होती है। मुस्लिम इतिहास बताता है कि ख्वाजा साहब इस्लाम का पैगाम लेकर 588 हिजारी में इरान से अजमेर आए। लेकिन वहीं सैय्यद बदरुद्दीन जिन्हें जिन्दाशाह मदार के नाम से जाना गया, वे 404 हजारी में ही इस्लाम का पैगाम लेकर अजमेर आ गए थे। अजमेर की मशहूर मदार टेकरी भी आज जिन्दाशाह मदार के नाम से पहचानी जाती है। ख्वाजा साहब तो अजमेर में ही रह गए , लेकिन जिन्दाशाह मदार ने भारत वर्ष का भ्रमण किया और उनका इंतकाल उत्तर प्रदेश के कानपुर के मकनपुर में हुआ। चूंकि जिन्दाशाह मदार का अपना सिलसिला था, इसलिए वे जहां भी गए वहां इस्लाम का पैगाम दिया। यही वजह है कि आज भारत में कोई 6 करोड़ मुसलमान जिन्दाशाह मदार के सिलसिले से जुड़े हुए हैं। अब इन 6 करोड़ मुसलमानों को एक मंच पर लाने के लिए शाह अल्वी एसोसिएशन सक्रिय हो गई है। एक जनवरी को इस एसोसिएशन की एक राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस अजमेर के जवाहर रंगमंच पर आयोजित हुई। एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष इरफान रहम अली ने बताया कि हमारे सिलसिले के मुसलमान सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद पिछड़े हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारे सिलसिले के मुसलमान एकजुट नहंी है। अब हमने केन्द्र सरकार और देश और विभिन्न राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि जिन्दाशाह मदार के सिलसिले से जुड़ी सभी वक्फ सम्पत्तियों को हमें सौंपा जाए ताकि हम अपने सिलसिले के लोगों का विकास कर सकें। एसोसिएशन के राष्ट्रीय सलाहकार अध्यक्ष मुफ्ती अब्दुल हमाद मोहम्मद अल्वी ने बताया कि जिस प्रकार अजमेर में पाल बीसला और तोपदड़ा क्षेत्र में गुलाब शाह और पीले मियां के तकिए हंै, ऐसे तकिए देशभर में तीन लाख छब्बीस हजार है। तकिए की परंपरा जिन्दाशाह मदार के समय ही डली थी। शाह मदार ने अपने इल्म से देशभर में ऐसे इलाके (तकिए) बनाए। सरकार के नियमों के मुताबिक ऐसे तकियों की भूमि वक्फ की सम्पत्ति है। आज मुसलमानों मेें जो दीवान सांई, फकीर सैय्यद आदि के नाम से जाने जाते हैं उनका संबंध भी जिन्दा शाह मदार के सिलसिले से रहा है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इस सिलसिले के लोगों ने सक्रिय भूमिका निभाई। 
596 वर्ष की उम्र:
अल्वी ने मुस्लिम इतिहास के अनुसार दावा किया कि सूफी संत जिन्दा मदार शाह 596 वर्ष की उम्र तक जीवित रहे। असल में खुदा के करम से उन्हें सांस रोकने की ताकत मिल गई थी। शाह मदार ने अनेक वर्ष तक अपने शरीर का श्वास रोके रखा। इसलिए उनके नाम के साथ जिन्दा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि मोहम्मद गजनवी ने अब 17वीं बार अजमेर पर हमला किया तब भी शाह मदार का उल्लेख आया है। आचार्य चर्तुसेन की पुस्तक सोमनाथ में भी ऐसा उल्लेख है। चूंकि शाह मदार ने ख्वाजा साहब से पहले अजमेर में इस्लाम का पैगाम दिया, इसलिए हमारे सिलसिले के लिए अजमेर का खास महत्त्व है। हमारी एसोसिएशन अब राजस्थान सरकार और अजमेर जिला प्रशासन से भी मांग कर रही है कि हमारे सिलसिले की सम्पत्तियों को हमें सौंपा जाए। शाह ने बताया कि शाह मदार सीरिया से भारत में आए थे। उनका इंतकाल 838 हिजरी में हुआ। मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार शाह मदार अजमेर में कोई 100 वर्ष तक रहे। 404 हिजरी में आने के बाद वे अजमेर से 505 हिजारी में चले गए। चूंकि मकनपुर में उनका इंतकाल हुआ, इसलिए यहीं वहीं उनकी दरगाह भी बनी हुई है। 
(एस.पी.मित्तल) (02-01-17)
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