Saturday 22 December 2018

नसीरुद्दीन शाह कभी हमारे जवानों को शहीद करने वाले आतंकियों और उनके हिमायतियों की भी आलोचना कर दें।

नसीरुद्दीन शाह कभी हमारे जवानों को शहीद करने वाले आतंकियों और उनके हिमायतियों की भी आलोचना कर दें। भारत में और कितनी आजादी चाहिए।
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21 दिसम्बर को अजमेर में भाजपा की युवा शाखा के कार्यकर्ताओं ने जब फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को विरोध किया तो शाह के समर्थन में कई लोग खड़े हो गए। अपने आप को धर्म निरपेक्ष, प्रगतिशील और समाज झंडाबरदार समझने वाले साहित्यकार लेखक, कवि आदि भी मैदान में कूद पड़े। उन्हें लगता है कि नसीरुद्दीन शाह जैसे देशभक्त, अभिनेता और समाज को दिशा देने वाले का विरोध कर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने घोर पाप किया है। इससे बोलने की आजादी खतरे में पड़ जाएगी। नसीरुद्दीन शाह को अजमेर बुलाने वाले अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल के आयेाजकों का गुस्सा तो सातवें आसमान पर है। खैर आयोजकों के लिए तो यह अच्छी खबर है कि शाह के आए बगैर ही उन्हें अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर जगह मिल गई। जहां नसीरुद्दीन शाह के बुलंदशहर की हिंसा पर दिए गए बयान का सवाल है तो अपनी साथी कलाकार रत्ना पाठक से प्रेम विवाह कर लेने के बाद भी शाह को अपने देश में डर लगता है? शाह के प्रेम विवाह पर  शायद ही किसी ने आपत्ति की होगी। बल्कि इस प्रेम विवाह को धर्मरिपेक्षता की मिसाल बताया गया। सवाल उठता है कि 60 वर्ष की उम्र में शाह को किससे डर लग रहा है? शाह और उनके हिमायतियों में यदि हिम्मत है तो उन आतंकियों की आलोचना करे जो कश्मीर में रोजाना हमारे सुरक्षा बलों के जवानों को शहीद कर रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह एक बार कश्मीर जाकर देखे कि हमारे जवान किन परिस्थितियों में ड्यूटी दे रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह यह बात समझ लें कि यदि हमारे जवान कश्मीर में सीने पर आतंकियों की गोली और पीठ पर पत्थरों का सामना न करें तो कट्टरपंथी और देश के दुश्मन भारत में किसी को भी नहीं छोड़ेंगे। लोकतंत्र में आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना बेहद मुश्किल है। शाह क्यों नहीं आतंकियों और कटटरपंथियों की आलोचना करते हैं? शाह और उनके हिमायतियों को भारत में और कितनी आजादी चाहिए? अच्छा हो कि शाह जैसे लोकप्रिय व्यक्ति देश में सद्भावना को मजबूत करने का कार्य करें। अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है,जहां हजारों हिन्दू रोजाना जियारत के लिए आते हैं। दरगाह के आसपास के हिन्दू दुकानदार अपनी दुकान खोलने से पहले दरगाह की सीढियों पर चाबियां रखते हैं। हजारों हिन्दू जायरीन पूरी अकीदत के साथ मजार शरीफ पर सजदा करते हैं। जिस देश के लोगों की ऐसी भावना हो वो किसी को धर्म के आधार पर क्या डराएगा? देश के हालात समझने की जरुरत तो शाह और हिमायतियों को है। यदि नहीं समझे तो भारत के हालात पाकिस्तान जैसे होंगे, जहां कट्टरपंथियों की हुकुमत चलती है, तब शाह भी रत्ना पाठक से विवाह नहीं  कर पाएंगे। अच्छा हो कि एक बार शाह भी पाकिस्तान के हालात देख आएं। पूरी दुनिया में भारत का माहौल सबसे अच्छा बताया जाता है। उल्टे शाह का बयान देश का माहौल खराब कर रहा है।
एस.पी.मित्तल) (22-12-18)
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