Friday, 4 April 2025
जो युवा नेता राहुल गांधी के आगे पीछे धूमते थे, जाब वो राहुल जी की ओर देखते भी नहीं है-खडग़े। कांग्रेस की संपत्तियों को हड़पने वाले कांग्रेसियों पर कार्यवाही होगी। कांग्रेस में अब सांसद और विधायक से ज्यादा जिलाध्यक्ष ताकतवर होंगे। राहुल जी, बड़े नेताओं का घमंड दूर करवाओ-अक्षय त्रिपाठी।
3 अप्रैल को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने 8 राज्यों के करीब 700 जिलाध्यक्षों से सीधा संवाद किया। दिल्ली के पार्टी मुख्यालय पर हुए इस संवाद में खडग़े ने कहा कि पार्टी के युवा नेता जो कभी राहुल गांधी के आगे पीछे घूमते थे, आज वे संसद भवन परिसर में राहुल जी की ओर देखते भी नहीं है। खडग़े का इशारा ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जतिन प्रसाद जैसे नेताओं की ओर था। यह नेता राहुल गांधी का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। खडग़े ने कहा कि अब हमे ंऐसे मौका परस्त नेताओं से सावधान रहने की जरुरत है। खडग़े ने गुलाम नबी आजाद की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो लोग जमीनी नेता नहीं थे, उन्हें भी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक बनाया, लेकिन जब कांग्रेस में संकट का समय आया तो ऐसे नेता कांग्रेस को छोड़ कर चले गए। इन नेताओं को अपनी असलियत का पता जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में चल गया है। मात्र 2 प्रतिशत ही वोट ले पाए हैं। जिलाध्यक्षों के संवाद में खडग़े ने तो लंबा भाषण दिया, लेकिन राहुल गांधी मात्र दस मिनट ही बोले। राहुल गांधी की रुचि अपनी पार्टी के जिलाध्यक्षों के विचारों को सुनने में थी। जिलाध्यक्षों ने कहा कि संगठन में जब पदाधिकारियों का चयन किया जाता है तब सांसद और विधायक की राय को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में जिलाध्यक्ष सिर्फ नाम मात्र का रहता है। जिलाध्यक्षों ने कहा कि पदाधिकारियों के चयन का अधिकार हमारे पास होना चाहिए ताकि ब्लॉक और बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत किया जा सके। राहुल गांधी ने जिला अध्यक्षों से जानना चाहा कि जब राज्य में हमारी सरकार होती है तो बोर्ड, निगम आदि में अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति कैसे होती है, क्या जिलाध्यक्ष अथवा संगठन के पदाधिकारियों से राय ली जाती है या फिर सीधे मुख्यमंत्री के स्तर पर ही नियुक्ति हो जाती है। राहुल गांधी के इस सवाल का जवाब किसी भी जिलाध्यक्षों ने नहीं दिया, क्योंकि अधिकांश राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री संवाद में मौजूद थे। राहुल गांधी ने यह भी जानना चाहा कि क्या जिलाध्यक्ष को विधानसभा चुनाव में पार्टी का उम्मीदवार बनाया जाए। इस पर 35 प्रतिशत जिलाध्यक्षों ने हाथ खड़े कर कहा कि टिकट नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि जब जिलाध्यक्ष ही उम्मीदवार बन जाता है तो फिर वह अन्य विधानसभा क्षेत्र में जाकर पार्टी का प्रचार नहीं कर पाता। पूरे कार्यकाल में जिलाध्यक्ष का काम टिकट हथियाने में लगा रहता है, लेकिन करीब 65 प्रतिशत जिलाध्यक्षों ने विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाए जाने का समर्थन किया। असल में ऐसे जिलाध्यक्ष भी थे जो मौजूदा समय में भी विधायक है। राहुल गांधी ने सवाल किया कि यदि हम जिलाध्यक्षों का पावरफुल बना देते हैं तो इस बात की गारंटी क्या है कि जिलाध्यक्ष अपने पद का दुरुपयोग नहीं करेगा। राहुल गांधी ने कहा कि अब संगठन में बदतमीजी नहीं चलेगी। पदाधिकारियों को कार्यकार्यताओं से अच्छा व्यवहार करना ही पड़ेगा।
संपत्तियां कांग्रेसियों ने ही हड़प ली:
जिला अध्यक्षों के सीधे संवाद में यह बात भी सामने आई कि कई जिलों में कांग्रेस की संपत्तियों को कांग्रेसियों ने ही हड़प लिया है। जो संपत्तियां संगठन की थी, उन्हें खुर्दबुर्द कर दिया। कांग्रेस के जो दफ्तर बरसों से किराए पर चल रहे थे, उन्हें भवन मालिक से सांठगांठ कर चुपचाप खाली कर दिया गया। राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस की संपत्तियों को खुर्दबुर्द करने वालों के खिलाफ अब सख्त कार्यवाही की जाएगी। यह पता लगाया जाएगा कि कांग्रेस के किन नेताओं की वजह से किराए के दफ्तर खाली हुए।
घमंड दूर करवाओ:
3 अप्रैल को हुए संवाद में राजस्थान के चालीस से भी ज्यादा जिलाध्यक्ष मौजूद थे, लेकिन बोलने का अवसर सीकर की जिलाध्यक्ष सुनीता गठाला और भीलवाड़ा के जिला अध्यक्ष अक्षय त्रिपाठी को ही मिला। इन दोनों के नामों की सिफारिश प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने की थी। सुनीता गठाला ने प्रदेश संगठन की जमकर प्रशंसा की। वहीं अक्षय त्रिपाठी ने कहा कि जब हमारी सरकार होती है तो विधायक और चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ही महत्व दिया जाता है। जबकि संगठन की मजबूती के लिए जिलाध्यक्ष को महत्व मिलना चाहिए। त्रिपाठी ने कहा कि कई बार जिलाध्यक्ष बड़े नेताओं को आमंत्रित करते हैं, लेकिन बड़े नेता या तो आते नहीं या फिर घमंडपूर्ण व्वहारकरते हैं। कार्यकर्ता सीधे मुंह बात नहीं करते। त्रिपाठी ने राहुल गांधी से आग्रह किया कि बड़े नेताओं का घमंड दूर करवाया जाए। जिलाध्यक्षों के संवाद में सचिन पायलट तो छत्तीसगढ़ के प्रभारी की हैसियत से मौजूद थे, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मौजूद नहीं रहे। गहलोत के पास मौजूदा समय में न तो किसी प्रदेश का प्रभार है और न ही वह संगठन के किसी पद पर है। यह पहला अवसर है, जब मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद गहलोत को अखिल भारतीय स्तर का संगठन का कोई पद नहीं मिला है।
अजमेर के दोनों अध्यक्षों ने भाग लिया:
3 अप्रैल को दिल्ली में हुए संवाद कार्यक्रम में अजमेर देहात के जिलाध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ और शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन ने भी भाग लिया। यहां उल्लेखनीय है कि राजस्थान में अजमेर एकमात्र ऐसा जिला है, जिसमें कार्यकारिणी के भंग होने के बाद नए अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं की गई है। राठौड़ और जैन को ही अध्यक्ष मानकर संगठन का काम चलाया जा रहा है। कार्यकारिणी भंग होने के बाद भी राठौड़ और जैन पूरी निष्ठा के साथ जिलाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के संवाद कार्यक्रम आमंत्रित किए जाने से जाहिर है कि बड़े नेताओं का भरोसा राठौड़ और जैन पर बना हुआ है। राठौड़ और जैन ने बताया कि संगठन को मजबूत करने की दृष्टि से दिल्ली का संवाद कार्यक्रम बहुत सफल रहा है। राहुल गांधी ने जिला अध्यक्षों से महत्वपूर्ण जानकारियां एकत्रित की है। अब यदि जिलाध्यक्षों को अधिकार मिलते हैं तो संगठन को मजबूती मिलेगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (04-04-2025)
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