Friday 4 May 2018

तो रामनाथ कोविंद अब बन गए हैं राष्ट्रपति। 
बरसात में नहीं टपकती राष्ट्रपति भवन की छत।
कलाकारों को पुरस्कार नहीं देने का मामला।
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गत वर्ष जब रामनाथ गोविंद ने देश के राष्ट्रपति का पद संभाला था, तब अपने पहले संबोधन में कहा कि मैं आम आदमी की पीड़ा को अच्छी तरह समझता हंू। कानपुर के गांव में जिस मकान में मैं रहता था, उस मकान की छत बरसात में टपकती थी। हम रात को सो नहीं पाते थे। इसी भाषण पर भरोसा कर देशवासियों  को लगा कि अब वाकई आम आदमी का राष्ट्रपति बना है। चूंकि कोविंद अनुसूचित जाति के रहे, इसलिए नरेन्द्र मोदी की सरकार ने भी अलग संदेश दिया, लेकिन अब प्रतीत होता है कि बरसात में ओलावृष्टि में भी कोविंद आलीशान राष्ट्रपति भवन में रात के समय आराम से सो सकते हैं। यह बात अलग है कि अब उन्हें अपने देश के कलाकारों को पुरस्कार देने की फुर्सत नहीं है। 3 मई को कोविंद ने 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरण समारोह में वर्षो पुरानी परंपरा को तोड़ दिया। 125 विजेताओं में से मात्र 11 विजेताओं को अपने हाथों से पुरस्कार दिए। कोविंद के इस व्यवहार से नाराज होकर कलाकारों ने पुरस्कार ही नहीं लिए। अब पूरा देश आम आदमी वाला राष्ट्रपति ढूंढ रहा है। सवाल उठता है कि क्या कोविंद को भी राजा-महाराजाओं की तरह जीने की चाह हो गई है। इसलिए तो हरेक विजेता को स्वयं पुरस्कार नहीं दे रहे। पुरस्कार का कितना महत्व है उतना ही राष्ट्रपति के हाथों से ग्रहण करने का है। यदि पुरस्कार को राष्ट्रपति द्वारा नहीं दिया जाता तो ऐसे पुरस्कार का महत्व भी नहीं होता। राष्ट्रपति भवन की सफाई है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पहले ही बता दिया था कि राष्ट्रपति मात्र एक घंटा ही रुकेंगे। यह सफाई कोई मायने नहीं रखती है, क्योंकि जब सभी कलाकारों को पुरस्कार देने की परंपरा है तो कोविंद को इसे निभाना चाहिए। कोविंद जिस गरीबी से निकल कर राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं उन्हें तो परंपरा निभाने के साथ-साथ नवाचार भी करने चाहिए, ताकि आम नागरिक को गे कि राष्ट्रपति भवन में उनका प्रतिनिधित्व है।

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