15 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 4 हजार 412 रुपए प्रति बैरल रही। जबकि 5 फरवरी को यह कीमत 4 हजार 167 रुपए थी। यानि पिछले 10 दिनों में तेल की कीमतों में मात्र 245 रुपए की वृद्धि हुई। यहां यह बताना भी जरूरी है कि एक बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल मापा जाता है। यह बात सही है कि कच्चे तेल के परिवहन और फिर रिफ़ाइनरी में संशोधित करने में भी व्यय होता है। लेकिन सरकारों का आम तौर पर तर्क होता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढऩे से भारत में पेट्रोल डीजल के दाम बढ़े हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार का रिकॉर्ड बताता है कि पिछले 10 दिनों में मात्र 245 रुपए की वृद्धि हुई है, वह भी 159 लीटर पर लेकिन भारत में पिछले 10 दिनों में पेट्रोल डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। राजस्थान के गंगानगर में 15 फरवरी को एक लीटर पेट्रोल 99 रुपए 49 पैसे में बिका। इसी प्रकार देश में पेट्रोल 95 रुपए तथा डीजल 87 रुपए लीटर बिका। सरकार को अब यह बताना चाहिए कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में वृद्धि नहीं हुई तो फिर देश में पेट्रोल डीजल के दाम रोजाना क्यों बढ़ रहे हैं? क्या रिफायनरियों में तेल की लागत में वृद्धि हो रही है? यह माना कि हमें रुपए के बजाए डॉलर में तेल खरीदना पड़ता है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर की कीमत भी पिछले दिनों 72 रुपए 52 पैसे में अमरीका का एक डॉलर खरीदा गया। यानि तेल खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा भी ज्यादा खर्च नहीं करनी पड़ रही है। चार दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में कहा कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर रहा है। यानि भारत के पास कच्चा तेल या अन्य विदेशी वस्तु खरीदने के लिए डॉलर की कोई कमी नहीं है। देश की आर्थिक दृष्टि से यह अच्छी बात है कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है, लेकिन यदि इसका लाभ आम लोगों को न मिले तो ऐसे भंडारण का क्या फायदा? सब जानते हैं कि केन्द्र और राज्य सरकारों को सबसे ज्यादा राजस्व की प्राप्ति पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स से ही होती है। केन्द्र और राज्य सरकार 30-30 प्रतिशत तक टैक्स की वसूली कर रहे हैं। कोरोना काल में राज्य सरकारों के खजाने भी खाली पड़े हैं। ऐसे में पेट्रोल डीजल पर लगने वाला टैक्स ही मददगार साबित हो रहा है। देश के कई राज्यों में गैर भाजपा की सरकारें हैं। ऐसे विपक्षी दलों की सरकारें भी तेल की कीमतों की वृद्धि पर चुप है। यदि राजस्थान में कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकारें विरोध करती हैं तो उनकी भी टैक्स वसूली की पोल खुलती है। यानि तेल की कीमतों में वृद्धि पर सभी राजनीतिक दलों की सोच एक सी है। लेकिन तेल वृद्धि के लिए केन्द्र सरकार को ही जवाबदेह माना जाता है, इसलिए नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को तेल की कीमतों में वृद्धि पर जवाब देना ही चाहिए। सरकार माने या नहीं, लेकिन तेल मूल्य वृद्धि से लोगों में नाराज़गी है। सरकार ने अब रसोई गैस सिलेंडर पर साब्सिडी भी खत्म कर दी है। पिछले तीन दिनों में एक सिलेंडर में 175 रुपए की वृद्धि की है। 14 फरवरी को जो 50 रुपए बढ़ाए उसके बाद उपभोक्ताओं को अब 14 किलो गैस का सिलेंडर 773 रुपए में खरीदना पड़ेगा।
S.P.MITTAL BLOGGER (15-02-2021)
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