अजमेर के निवासी रहे और राजस्थान से राज्यसभा के भाजपा सांसद भूपेंद्र यादव को एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी मिली है। यूं तो यादव मौजूदा समय में पांच मंत्रालय श्रम, रोजगार, वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के केंद्रीय मंत्री हैं, लेकिन भाजपा में उनका उपयोग संगठन में ज्यादा होता है। चार माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यादव को मध्य प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। किसी भी राज्य के चुनाव में चुनाव प्रभारी ही सारी रणनीति तय करता है। उम्मीदवार के चयन में प्रभारी की राय महत्वपूर्ण होती है। 2013 के राजस्थान के चुनाव में भी यादव को प्रभारी बनाया गया था, तब भाजपा को 200 में से 156 सीटें मिली थीं। गुजरात, उत्तर प्रदेश आदि के चुनावों में भी यादव की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो यादव नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के चुनाव प्रभारी रहे। दक्षिण के राज्यों के नगर निगम के चुनावों में भी भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में यादव की भूमिका रहती है। भाजपा हाईकमान की मंशा के अनुरूप यादव परिणाम भी देते हैं। लेकिन इस बार मध्यप्रदेश में भाजपा को जीतवाना चुनौतीपूर्ण काम है। एमपी भले ही अभी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार हो, लेकिन 2018 के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। तब 230 में 116 कांग्रेस को तथा 109 सीटें भाजपा को मिली थीं। तब भाजपा की हार का कारण एंटी इनकम्बेंसी ही माना गया। भाजपा की सरकार 2005 से ही चली आ रही थी। एंटी इनकम्बेंसी के कारण 2018 में भाजपा की 15 वर्ष पुरानी सरकार चली गई। यह बात अलग है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद 2020 में शिवराज सिंह के नेतृत्व में चौथी बार भाजपा की सरकार बन गई। स्वाभाविक है कि अब पांचवीं बार भाजपा की सरकार बनवाना भूपेंद्र यादव के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। लेकिन सब जानते हैं कि यादव चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी है और जीत के लिए कार्यकर्ताओं को एकजुट करने से लेकर मतदाताओं को पक्ष में करने के सारे उपाय आते हैं। यादव और भाजपा के लिए यह सकारात्मक बात है कि इस बार सिंधिया परिवार भाजपा के साथ हे। 2020 में कांग्रेस के जिन 14 विधायकों के साथ ज्योतिरादित्य ने पार्टी छोड़ी थी, उन सभी को उपचुनाव में ज्योतिरादित्य जीतवा कर लाए। हालांकि अब कांग्रेस का भी प्रयास है कि सिंधिया परिवार के प्रभाव को खत्म कर फिर से प्रदेश में सरकार बनाई जाए। कांग्रेस आलाकमान ने चुनाव की संपूर्ण जिम्मेदारी पूर्व सीएम कमलनाथ को सौंप रखी है। एमपी में अल्पसंख्यक मतों की संख्या असरकारक है। कई विधानसभा क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों का ही बहुमत है। देखना होगा कि कांग्रेस की चुनौतियों से यादव कैसे पार पाते हैं। यह भी सही है कि कर्नाटक में जीत के बाद राहुल गांधी भी उत्साहित हैं। कुछ ही दिनों में राहुल गांधी के दौरे शुरू होने वाले हैं। जहां तक भूपेंद्र यादव के राजनीतिक महत्व का सवाल है तो वह इसी से समझा जा सकता है कि केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मध्य प्रदेश के सहप्रभारी हैं। यादव को एमपी का चुनाव प्रभारी बनाए जाने से यह भी प्रतीत होता है कि याव फिलहाल राजस्थान की राजनीति से दूर रहना चाहते हैं।
राजस्थान में भी चुनौती:
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 7 जुलाई को राजस्थान में भी प्रहलाद जोशी को चुनाव प्रभारी तथा कुलदीप बिश्नोई व नितिन पटेल को सहप्रभारी नियुक्ति किया है। राजस्थान में चार माह बाद चुनाव होने हैं। यह बात सही है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। लेकिन पायलट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे कांग्रेस में ही बने रहेंगे। इसके साथ ही सीएम गहलोत की अनेक मुफ्त की योजनाएं ऐसी हैं, जिनके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। सीएम गहलोत को कांग्रेस संगठन की दयनीय स्थिति पता है, इसलिए अब वे ईनामी प्रतियोगिताओं के माध्यम से लोगों तक अपनी योजनाओं की जानकारी भिजवा रहे हैं। रोजाना परिणाम निकलेंगे उसका पहला पुरस्कार एक लाख रुपए का है, लोगों को महंगाई राहत शिविर में जाकर योजनाओं में अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फोटो को वेबसाइट पर अपलोड करना है। गहलोत की यह इनामी प्रतियोगिता बताती है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता योजनाओं की जानकारी देने में असमर्थ है। भले ही प्रदेश में कांग्रेस का संगठन कमजोर हो, लेकिन गहलोत ने अपने स्तर पर अनेक कार्य किए हैं। इसमें पचास हजार गांधी संदेश वाहकों की भर्ती भी शामिल हैं। गहलोत ने अपने दम पर प्रदेश में जो माहौल खड़ा किया है उसको चुनौती देना आसान नहीं होगा। हालांकि भाजपा हाईकमान ने राजस्थान की सीमा से लगे हरियाणा और गुजरात के नेताओं को सहप्रभारी बनाया है। कुलदीप बिश्नोई हरियाणा के कद्दावर नेता है तो नितिन पटेल गुजरात के डिप्टी सीएम रहे हैं। इन दोनों सह प्रभारियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी।
राजस्थान में भी चुनौती:
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 7 जुलाई को राजस्थान में भी प्रहलाद जोशी को चुनाव प्रभारी तथा कुलदीप बिश्नोई व नितिन पटेल को सहप्रभारी नियुक्ति किया है। राजस्थान में चार माह बाद चुनाव होने हैं। यह बात सही है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। लेकिन पायलट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे कांग्रेस में ही बने रहेंगे। इसके साथ ही सीएम गहलोत की अनेक मुफ्त की योजनाएं ऐसी हैं, जिनके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। सीएम गहलोत को कांग्रेस संगठन की दयनीय स्थिति पता है, इसलिए अब वे ईनामी प्रतियोगिताओं के माध्यम से लोगों तक अपनी योजनाओं की जानकारी भिजवा रहे हैं। रोजाना परिणाम निकलेंगे उसका पहला पुरस्कार एक लाख रुपए का है, लोगों को महंगाई राहत शिविर में जाकर योजनाओं में अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फोटो को वेबसाइट पर अपलोड करना है। गहलोत की यह इनामी प्रतियोगिता बताती है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता योजनाओं की जानकारी देने में असमर्थ है। भले ही प्रदेश में कांग्रेस का संगठन कमजोर हो, लेकिन गहलोत ने अपने स्तर पर अनेक कार्य किए हैं। इसमें पचास हजार गांधी संदेश वाहकों की भर्ती भी शामिल हैं। गहलोत ने अपने दम पर प्रदेश में जो माहौल खड़ा किया है उसको चुनौती देना आसान नहीं होगा। हालांकि भाजपा हाईकमान ने राजस्थान की सीमा से लगे हरियाणा और गुजरात के नेताओं को सहप्रभारी बनाया है। कुलदीप बिश्नोई हरियाणा के कद्दावर नेता है तो नितिन पटेल गुजरात के डिप्टी सीएम रहे हैं। इन दोनों सह प्रभारियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (08-07-2023)
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