राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने जो नई कार्यकारिणी घोषित की है उसमें सोशल इंजीनियरिंग का तो ध्यान रखा ही है, साथ ही चार माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी नजर रखी गई है। प्रदेश के जिन जिलों में भाजपा की स्थिति मजबूत है, उन्हें कार्यकारिणी में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। इसके बजाए उन जिलों के नेताओं को पदाधिकारी बनाया गया है जहां भाजपा की स्थिति कमजोर है, अजमेर, पाली, बाड़मेर, जालोर, सिरोही ऐसे अनेक जिले हैं जहां के नेताओं को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। क्योंकि यहां भाजपा के विधायकों की संख्या ज्यादा है। हालांकि 25 में से 24 लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा के सांसद है। लेकिन 13 संसदीय क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें विधानसभा में भाजपा की स्थिति कमजोर है। जिन क्षेत्रों में भाजपा कमजोर है, उन्हें कार्यकारिणी में प्रतिनिधित्व दिया गया है। यानी चार माह बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में संगठन के पदाधिकारियों की जिम्मेदारी भी होगी। सीकर जिले में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है, इसलिए श्रवण सिंह बगड़ी को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। झुंझुनूं से संतोष अहलावत को भी प्रदेश उपाध्यक्ष इसी नजरिए से बनाया गया। नई कार्यकारिणी में मौजूदा तीन सांसदों को भी पदाधिकारी बनाया गया है। अलवर के सांसद बाबा बालक नाथ योगी, टोंक सवाई माधोपुर के सुखबीर जौनपुरिया को उपाध्यक्ष तथा राजसमंद की सांसद दिया कुमारी को महामंत्री बनाया गया है। टोंक सवाई माधोपुर में आठ में से मात्र एक विधायक भाजपा का है। इसी प्रकार अलवर में 11 में से मात्र दो विधायक भाजपा के हैं। राजसमंद संसदीय क्षेत्र में भी भाजपा की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। अब इन सांसदों की जिम्मेदारी अपने अपने संसदीय क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव में भाजपा को जितवाने की होगी। नई कार्यकारिणी में नागौर से पूर्व सांसद सीआर चौधरी को भी प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। गत लोकसभा चुनाव में चौधरी का टिकट काट कर आरएलपी के उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल को भाजपा ने समर्थन दिया था। चूंकि इस बार बेनीवाल और भाजपा के संबंध अच्छे नहीं है इसलिए माना जा रहा है कि नागौर में भाजपा अपने बूते पर ही चुनाव लड़ेगी। सीआर चौधरी को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाने के यह भी मायने हैं कि वे लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए चौधरी को पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलानी होगी। नई कार्यकारिणी में विधानसभा चुनाव पर ही फोकस रखा गया है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का मानना है कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के सामने प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का चेहरा होता है, इसलिए जीत आसान हो जाती है। लेकिन विधानसभा के चुनाव में प्रदेश नेताओं के चेहरे सामने होते हैं, इसलिए कई बार हार का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 72 सीटें ही मिली पाई, जबकि छह माह बाद हुए लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने करीब 160 से भी ज्यादा सीटों पर बढ़त हासिल की। सभी 25 सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी चार लाख मतों से जोधपुर से हार गए। लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा भी लाखों में रहा। भाजपा की नई कार्यकारिणी का यह भी उद्देश्य है कि जो माहौल लोकसभा चुनाव में बनता है, उसे विधानसभा चुनाव में भी बनाया जाएगा। हालांकि पिछले 25 वर्षों के परिणाम बताते हैं कि राजस्थान में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस चुनाव जीतती है। इस बार भाजपा का नंबर है। हालांकि कांग्रेस सरकार को रिपीट करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुफ्त की अनेक योजनाओं की घोषणा कर रखी है।
गोयल का भरतपुर में डेरा:
चूंकि भरतपुर क्षेत्र में भाजपा की स्थिति सबसे कमजोर है, इसलिए अब भरतपुर की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को दी है। गोयल लगातार भरतपुर के दौरे कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी 28 जून को भरतपुर में एक सभा को संबोधित किया है।
S.P.MITTAL BLOGGER (02-07-2023)
गोयल का भरतपुर में डेरा:
चूंकि भरतपुर क्षेत्र में भाजपा की स्थिति सबसे कमजोर है, इसलिए अब भरतपुर की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को दी है। गोयल लगातार भरतपुर के दौरे कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी 28 जून को भरतपुर में एक सभा को संबोधित किया है।
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