13 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मध्यप्रदेश के ग्वालियर के दौरे पर रहीं। इस अवसर पर ग्वालियर राज घराने के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मुर्मू को अपने निवास जय विलास पैलेस भी ले गए। ग्वालियर घराने की शान जय विलास पैलेस में ज्योतिरादित्य और उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी सिंधिया ने अपने हाथों से द्रौपदी मुर्मू को स्वादिष्ट व्यंजन परोसा। सब जानते हैं कि झारखंड का राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति बनने से पहले द्रौपदी मुर्मू का जीवन बेहद कष्टपूर्ण रहा। पति और पुत्र की मृत्यु ने तो मुर्मू को तोड़ ही दिया। आदिवासी क्षेत्र की होने के कारण मुर्मू को घर परिवार और समाज में भी विपरीत हालातों का सामना करना पड़ा। जिन द्रौपदी मुर्मू का जीवन कष्टपूर्ण रहा, उन्हीं आदिवासी महिला को अब राज घराने के प्रतिनिधि भोजन परोसा रहे हैँ। इसे भारत के लोकतंत्र की ताकत ही कहा जाएगा कि मुर्मू आज देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद पर विराजमान हैं। विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चाहे, जितने आरोप लगा लें, लेकिन एक गरीब और आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है। मोदी चाहते तो राजनीतिक नजरिए से भी किसी को राष्ट्रपति बना कर खुश कर सकते थे, लेकिन मोदी ने एक गरीब और आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बना कर दुनिया के सामने उदाहरण पेश किया है। जिन द्रौपदी मुर्मू के पास कभी दो वक्त के भोजन का इंतजाम नहीं था, वो ही द्रौपदी मुर्मू आज महलों में राजघरानों के प्रतिनिधियों के हाथ से भोजन ग्रहण कर रही हैं। यदि भारत में लोकतंत्र और नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री नहीं होता तो एक आदिवासी महिला कभी भी राष्ट्रपति नहीं बन सकती थीं। यह बात अलग है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी विपक्ष के कुछ नेत आदिवासी द्रौपदी मुर्मू का मजाक उड़ाते हैं। ऐसे लोगों को ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा।
गार्ड ऑफ ऑर्नर नहीं:
14 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जयपुर में राजस्थान विधानसभा में अपना संबोधन भी दिया। आम तौर पर किसी भी विधानसभा पर राष्ट्रपति को गार्ड ऑफ ऑर्नर दिया जाता है, लेकिन 14 जुलाई को जयपुर में इस परंपरा को नहीं निभाया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति भवन ने ही गार्ड ऑफ ऑर्नर नहीं देने के निर्देश दिए थे। असल में द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के रूप में एक साधारण महिला दिखना चाहती है। इसलिए पुरानी राजशाही परंपराओं को समाप्त करने में लगी है। अलबत्ता अपने संबोधन में द्रौपदी मुर्मू ने राजस्थान के इतिहास की सराहना की। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि इस विधानसभा के पूर्व सदस्य ओम बिड़ला लोकसभा के अध्यक्ष हैं और जगदीप धनखड़ राज्यसभा के सभापति हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान विधानसभा का इतिहास बेहद ही पुराना है।
सत्र लंबा चलाना गलत:
राष्ट्रपति के संबोधन से पहले राज्यपाल कलराज मिश्र ने संविधान का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि विधानसभा सत्र का सत्रावसान समय पर होना चाहिए। एक ही सत्र को लंबे समय तक चलाना संविधान की भावनाओं के अनुरूप नहीं है। माना जा रहा है कि राज्यपाल ने यह बात राजस्थान के संदर्भ में कही है। क्योंकि कांग्रेस सरकार एक ही सत्र को अगले कई सत्रों तक चलती है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि ताकि नए सत्र को चलाने से पहले राज्यपाल की अनुमति नहीं लेनी पड़े। संविधान के मुताबिक जब सत्र समाप्त हो जाता है तो अगले सत्र को शुरू करने से पहले राज्यपाल की अनुमति ली जाती है। लेकिन यदि पिछले सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ तो फिर अगला सत्र बिना अनुमति के ही शुरू कर दिया जाता है।
गार्ड ऑफ ऑर्नर नहीं:
14 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जयपुर में राजस्थान विधानसभा में अपना संबोधन भी दिया। आम तौर पर किसी भी विधानसभा पर राष्ट्रपति को गार्ड ऑफ ऑर्नर दिया जाता है, लेकिन 14 जुलाई को जयपुर में इस परंपरा को नहीं निभाया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति भवन ने ही गार्ड ऑफ ऑर्नर नहीं देने के निर्देश दिए थे। असल में द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के रूप में एक साधारण महिला दिखना चाहती है। इसलिए पुरानी राजशाही परंपराओं को समाप्त करने में लगी है। अलबत्ता अपने संबोधन में द्रौपदी मुर्मू ने राजस्थान के इतिहास की सराहना की। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि इस विधानसभा के पूर्व सदस्य ओम बिड़ला लोकसभा के अध्यक्ष हैं और जगदीप धनखड़ राज्यसभा के सभापति हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान विधानसभा का इतिहास बेहद ही पुराना है।
सत्र लंबा चलाना गलत:
राष्ट्रपति के संबोधन से पहले राज्यपाल कलराज मिश्र ने संविधान का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि विधानसभा सत्र का सत्रावसान समय पर होना चाहिए। एक ही सत्र को लंबे समय तक चलाना संविधान की भावनाओं के अनुरूप नहीं है। माना जा रहा है कि राज्यपाल ने यह बात राजस्थान के संदर्भ में कही है। क्योंकि कांग्रेस सरकार एक ही सत्र को अगले कई सत्रों तक चलती है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि ताकि नए सत्र को चलाने से पहले राज्यपाल की अनुमति नहीं लेनी पड़े। संविधान के मुताबिक जब सत्र समाप्त हो जाता है तो अगले सत्र को शुरू करने से पहले राज्यपाल की अनुमति ली जाती है। लेकिन यदि पिछले सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ तो फिर अगला सत्र बिना अनुमति के ही शुरू कर दिया जाता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (14-07-2023)
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