Friday 10 June 2022

उपखंड पर एसडीएम और जिला मुख्यालय पर कलेक्टर राजा-महाराजा की भूमिका में होते हैं, इसलिए राजस्थान के खंडेला उपखंड में वकील हंसराज मावलिया आत्महत्या करते हैं।सवाल यह भी है कि जो वकील मेरिट पर वकालत करते हैं, उनका क्या होगा? खंडेला से कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला हैं विधायक।

राजस्थान के सीकर जिले के खंडेला उपखंड के एसडीएम राकेश कुमार ख्याली से तंग आकर वकील हंसराज मावलिया ने 9 जून को आत्महत्या कर ली। वकील ने एसडीएम की मौजूदगी में ही मौत को गले लगाया। मावलिया का आरोप रहा कि वह मेरिट पर वकालत करते हैं,इसलिए उनके प्रकरणों में कानून के अनुरूप निर्णय नहीं होते, जबकि जो वकील एसडीएम को रिश्वत देते हैं, उन्हें हाथों हाथ स्टे भी मिल जाता है। एक ही प्रवृत्ति के मुकदमे में अलग अलग निर्णय होते हैं। ऐसे निर्णयों के संबंध में जब मावलिया ने एसडीएम के समक्ष एतराज किया तो खंडेला के थानाधिकारी घासीराम ने उल्टे मावलिया को ही धमकाया। मृतक वकील मावलिया के सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने एसडीएम राकेश कुमार ख्याली और थानाधिकारी घासीराम के विरुद्ध विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया है। वकील हंसराज की मौत उपखंड स्तर के दफ्तरों में फैले भ्रष्टाचार की पोल भी खोलती है। आज लोकतंत्र में भले ही एसडीएम और कलेक्टर को लोक सेवक यानी जनता का नौकर माना जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि प्रशासनिक व्यवस्था में उपखंड स्तर पर एसडीएम राजा और जिला स्तर पर कलेक्टर महाराजा होते हैं। राजा की शिकायत जब महाराजा नहीं सुनता है, तब वकील हंसराज आत्महत्या करनी पड़ती है। एसडीएम की कार्यशैली से तंग आकर जब कानून के जानकार वकील को आत्महत्या करनी पड़ रही है, तब प्रकरण से जुड़े आम व्यक्ति की पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। हजारों लोग रोजाना उपखंड कार्यालय पर चक्कर लगाते हैं, लेकिन राजा (एसडीएम) के दर्शन नहीं होते। राजस्थान लोक सेवा आयोग से राज्य प्रशासनिक सेवा में चयन होने और प्रशिक्षण के बाद जब पहली बार कोई युवा एसडीएम की कुर्सी पर बैठता है तो पहली बार में ही स्वयं को राजा समझने लगता है, भले ही ऐसा युवा गरीब परिवार का ही हो। कोई माने या नहीं लेकिन अधिकांश एसडीएम की नियुक्तियां क्षेत्रीय विधायक और मंत्री की सिफारिश से ही होती है। राजस्थान में मौजूदा अशोक गहलोत की सरकार में तो विधायक ही सबसे ज्यादा हावी हैं। खंडेला से कांग्रेस के विधायक महादेव सिंह खंडेला हैं, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी सीकर के ही है। यदि डोटासरा और खंडेला का संरक्षण है तो फिर सीकर के राकेश कुमार ख्याली राजा की भूमिका ही निभाएंगे। ख्याली से यह पूछने वाला कोई नहीं है कि एक ही प्रवृत्ति के प्रकरण में अलग अलग निर्णय क्यों हो रहे हैं ? ऐसा नहीं कि उपखंड स्तर के हालात अभी कांग्रेस के शासन में ही बिगड़ हैं। पूर्व में भाजपा शासन में भी ऐसे ही हालत रहे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था में भी ऐसे ही हालात रहे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था में उपखंड दफ्तर के हालातों में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। एसडीएम के स्तर पर भ्रष्टाचार नहीं हो, इसलिए कामकाज में पारदर्शिता भी होनी चाहिए। एसडीएम और कलेक्टर को जो विवेकाधिकार दे रखे हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से समाप्त कर एक समान नीति बनानी चाहिए। कलेक्टर और एसडीएम की नियुक्तियों में राजनीतिक दखल बंद होना चाहिए। एक वकील तंग आकर (एसडीएम) के समक्ष ही आत्महत्या कर ले, तो ज्यादा शर्मनाक बात और कोई नहीं हो सकती।
 
मेरिट पर वकालत:
खंडेला में वकील हंसराज मावलिया की आत्महत्या से यह सवाल भी उठता है कि जो वकील तथ्यों के आधार पर मेरिट से वकालत करते हैं, उनका क्या होगा? मावलिया का आरोप रहा कि जो वकील एसडीएम को रिश्वत दे देते हैं उन्हें स्टे भी जावास से मिल जाता है। यानी वकील को कानून की जानकारी हो या नहीं, लेकिन जीत उसी की होती है। आज कल पक्षदार भी उसी वकील के पास जाते हैं जो साम दाम दंड भेद से मुकदमा जीतवा दें। मेरिट पर वकालत करने वाले वकील ठाले ही बैठे रहते है। हाईकोर्ट में अंकल जजेज का बोलबाला है तो जिला स्तर पर अनेक निर्णयों को संदेह की निगाह से देखा जाता है। हालांकि उपखंड स्तर पर एसडीएम के निर्णयों और न्यायिक व्यवस्था के फैसलों की तुलना नहीं की जा सकती है। न्यायिक व्यवस्था के फैसलों में काफी हद तक पारदर्शिता देखने को मिलती है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (10-06-2022)
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