राजस्थान की राजनीतिक इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब मंत्रिमंडल की बैठक में दो मंत्री आपस में भिड़ गए हो वह भी तब जब मंत्रिमंडल की बैठक सरकारी आवास पर हो रही थी। 3 जून को अखबारों में छपी खबरों पर भरोसा किया जाए तो प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल को धमकी दी कि उनके व्यवहार की शिकायत कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से की जाएगी। सब जानते हैं कि धारीवाल बहुत वरिष्ठ मंत्री हैं तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भरोसेमंद हैं। कहा जाता है कि मंत्रिमंडल में धारीवाल का नम्बर मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। यह भी सब जानते हैं कि गत वर्ष अगस्त माह में जब सचिन पायलट ने 18 विधायकों के साथ बगावत की थी, तब गहलोत ने ही पायलट की जगह डोटासरा को कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया था। हालांकि तब डोटासरा बहुत जूनियर थे, लेकिन गहलोत ने भरोसा जताते हुए डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष बनवा दिया। डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बने अभी 10 माह ही हुए हैं, लेकिन अब वे अशोक गहलोत की ही उपस्थिति में सोनिया गांधी का नाम लेकर वरिष्ठ मंत्रियों को धमकाने लगे हैं। जब मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री गहलोत मौजूद हैं, तब सोनिया गांधी से शिकायत करने की बात कह कर डोटासरा ने सीधे मुख्यमंत्री के नेतृत्व को चुनौती दे दी है। दस माह में ही डोटासरा को यह एहसास होने लगा है कि मंत्रियों की गलतियों पर अशोक गहलोत कुछ नहीं करेंगे इसलिए उन्हें सोनिया गांधी से शिकायत करनी पड़ेगी। डोटासरा मुख्यमंत्री गहलोत की वजह से कैबिनेट मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हुए हैं। गहलोत चाहते तो प्रदेशाध्यक्ष के पद के बाद डोटासरा से मंत्री पद वापस ले सकते थे, लेकिन अपनी पार्टी में विरोधियों को मात देने के लिए गहलोत ने डोटासरा को दोनों पदों पर बनाए रखा, लेकिन अब वो ही डोटासरा मुख्यमंत्री गहलोत की उपस्थिति में मंत्रिमंडल की बैठक को छोड़ने को तैयार है। 2 जून को यदि दूसरे मंत्री समझाइश नहीं करते तो डोटासरा मंत्रिमंडल की बैठक को बीच में ही छोड़ कर अपने घर चले जाते। जहां तक शांति धारीवाल का सवाल है तो उन्होंने भी अपने स्वभाव के अनुसार डोटासरा को लेकर टिप्पणी की। डोटासरा ने कहा कि वे पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष हैं तो शांति धारीवाल ने कहा कि आप जैसे अध्यक्ष बहुत देखे हैं। डोटासरा की तरह धारीवाल ने भी यह नहीं देखा कि बैठक में मुख्यमंत्री गहलोत मौजूद हैं। ऐसा नहीं कि डोटासरा और धारीवाल में बैठक के अंदर ही तू तू मैं मैं हुई। बैठक समाप्ति पर भी दोनों मंत्री आपस में उलझ गए। जहां डोटासरा ने धारीवाल की वरिष्ठता का कोई ख्याल नहीं रखा, वहीं धारीवाल ने भी सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के नाते डोटासरा की कोई इज्जत नहीं की। 2 जून को हुई इस घटना से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किन हालातों में सरकार चला रहे हैं। अब तक तो सचिन पायलट को ही जिम्मेदार ठहराया जाता था, लेकिन अब तो गहलोत के समर्थक मंत्री ही आपस में उलझ रहे हैं।
बगैर मुद्दे की लड़ाई:
2 जून को मंत्रिमंडल की बैठक में जो झगड़ा हुआ उसका कोई खास और बड़ा कारण नहीं था। डोटासरा का कहना था कि वैक्सीन को लेकर जिला कलेक्टरों के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा जाए। ज्ञापन देने के समय प्रभारी मंत्री भी उपस्थित रहें। इस पर धारीवाल का कहना रहा कि मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं का एक समूह सीधे दिल्ली जाकर राष्ट्रपति को ज्ञापन दें। धारीवाल का तर्क था कि कलेक्टर तो अपने हैं, उन्हें केन्द्र सरकार के खिलाफ ज्ञापन देने से क्या फायदा? हालांकि यह मुद्दा कोई बड़ा नहीं था,लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ कि धारीवाल की कार्यप्रणाली और व्यवहार को लेकर डोटासरा पहले से भी नाराज थे। यही वजह रही कि डोटासरा ने आरोप लगाया कि धारीवाल जयपुर के प्रभारी मंत्री हैं और उन्होंने कोरोना काल में एक बार भी जिला स्तर पर प्रशासनिक बैठक नहीं की है। जबकि मंत्रियों को अपने अपने प्रभार वाले जिलों में जाकर बैठक करनी थी। धारीवाल द्वारा जयपुर में बैठक नहीं करने को लेकर प्रदेशाध्यक्ष के नाते डोटासरा खफा थे। डोटासरा को उम्मीद थी कि वे सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष हैं, इसलिए धारीवाल उनका सम्मान करेंगे, लेकिन धारीवाल ने तो अपने ही अंदाज में डोटासरा से बात की। देखना होगा कि डोटासरा और धारीवाल के विवाद को मुख्यमंत्री कैसे निपटाते हैं।
बगैर मुद्दे की लड़ाई:
2 जून को मंत्रिमंडल की बैठक में जो झगड़ा हुआ उसका कोई खास और बड़ा कारण नहीं था। डोटासरा का कहना था कि वैक्सीन को लेकर जिला कलेक्टरों के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा जाए। ज्ञापन देने के समय प्रभारी मंत्री भी उपस्थित रहें। इस पर धारीवाल का कहना रहा कि मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं का एक समूह सीधे दिल्ली जाकर राष्ट्रपति को ज्ञापन दें। धारीवाल का तर्क था कि कलेक्टर तो अपने हैं, उन्हें केन्द्र सरकार के खिलाफ ज्ञापन देने से क्या फायदा? हालांकि यह मुद्दा कोई बड़ा नहीं था,लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ कि धारीवाल की कार्यप्रणाली और व्यवहार को लेकर डोटासरा पहले से भी नाराज थे। यही वजह रही कि डोटासरा ने आरोप लगाया कि धारीवाल जयपुर के प्रभारी मंत्री हैं और उन्होंने कोरोना काल में एक बार भी जिला स्तर पर प्रशासनिक बैठक नहीं की है। जबकि मंत्रियों को अपने अपने प्रभार वाले जिलों में जाकर बैठक करनी थी। धारीवाल द्वारा जयपुर में बैठक नहीं करने को लेकर प्रदेशाध्यक्ष के नाते डोटासरा खफा थे। डोटासरा को उम्मीद थी कि वे सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष हैं, इसलिए धारीवाल उनका सम्मान करेंगे, लेकिन धारीवाल ने तो अपने ही अंदाज में डोटासरा से बात की। देखना होगा कि डोटासरा और धारीवाल के विवाद को मुख्यमंत्री कैसे निपटाते हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-06-2021)
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