Monday 28 February 2022

पन्ना प्रमुख और बूथ पर फोकस की तरकीबों के बाद भी मतदान वाले दिन प्रत्याशी को एजेंटों को पारिश्रमिक देना ही पड़ता है।राजनीतिक पार्टियां बूथवार खर्चा वहन करती हैं। तब संगठन घटा रह जाता है।

राजस्थान में 20 माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने बूथ स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी है। भाजपा ने मतदान केंद्र के हिसाब से पन्ना प्रमुखों की सूची बना ली है। यानी 60 मतदाताओं पर एक पन्ना प्रमुख नियुक्त किया है। इसी प्रकार कांग्रेस ने भी बूथ स्तर पर 10-10 कार्यकर्ताओं की सूची मोबाइल नंबर के साथ तैयार कर ली है। यानी आज चुनाव हो जाएं तो दोनों ही पार्टियों के पास बूथ स्तर तक की व्यवस्था है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह अच्छी बात है उसकी तैयारी बूथ स्तर तक है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसी व्यवस्था मतदान वाले दिन नजर आती है? जो नेता राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं, उन्हें अनुभव है कि मतदान वाले दिन मतदान केंद्र (बूथ) के अंदर जो पार्टी एजेंट बैठता है उसे भी दिनभर का पारिश्रमिक देना पड़ता है। ऐसे एजेंटों की सूची बनती है और फिर वार्ड अध्यक्ष का ब्लॉक अध्यक्ष के माध्यम से बूथ एजेंट तक निर्धारित राशि पहुंचाई जाती है। संबंधित प्रत्याशी एक-दो दिन पहले किसी वफादार नेता को भुगतान कर देता है, ताकि मतदान वाले दिन एजेंट की उपस्थिति सुनिश्चित हो जाए। हो सकता है कि कुछ एजेंट अपवाद भी हों, जो पारिश्रमिक नहीं लेते हों, लेकिन प्रत्याशी को तो संपूर्ण विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र के हिसाब से एजेंटों का पारिश्रमिक देना ही पड़ता है। बूथ एजेंट ही नहीं बल्कि वार्ड अध्यक्ष से लेकर संगठन के जिलाध्यक्ष और वार्ड पार्षद व सरपंच तक को खुश रखना पड़ता है। अभी 20 माह पहले कार्यकर्ताओं के नाम की सूचियां बनाई जा रही हों, लेकिन चुनाव के समय प्रत्याशी को अपने हिसाब से तैयारियां करनी पड़ती है। कई बार तो प्रत्याशी को अपनी ही पार्टी के जिलाध्यक्ष या मंडल अध्यक्ष पर भरोसा नहीं होता है। प्रत्याशी को लगता है कि जिलाध्यक्ष तो हरवा देगा, ऐसे में विवाद ज्यादा होता है। जो नेता अपने विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन चार बार चुनाव जीत रहा है, उसका अपना मैनेजमेंट बन जाता है। कई बार उसके रसूखात काम आ जाते हैं, लेकिन तब ऐसा नेता स्वयं को संगठन से बड़ा समझने लगता है। जो प्रत्याशी किसी दूसरे शहर से आकर चुनाव लड़ता है वह अपने करोड़ों की नकद राशि लेकर आता ही है। अब अखबार वाले भी चुनाव प्रचार की खबरों को प्रकाशित करने के लिए नकद राशि लेते हैं। प्रत्याशी चाहे जितना धुआंधार प्रचार कर लें, लेकिन उसकी खबर तभी प्रकाशित होती है, जब पैकेज को स्वीकार कर लिया जाएगा। प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों में खबरें कैसे छपती है, इसका अनुभव चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को अच्छी तरह है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (28-02-2022)
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