शाही इमाम बनाम संत रामपाल
मीडिया में अब संत रामपाल और जामा मस्जिद के शाही इमाम रहे महरूम अब्दुला बुखारी की तुलना की जा रही है। जिस प्रकार रामपाल ने अपने हिसार-बरवाला के आश्रम में बैठ कर सरकार और अदालत को चुनौती दी, उसी प्रकार अब्दुला बुखारी ने भी अपने जीवनकाल में दोनों ही संस्थाओं को ठेंगा दिखाया था। हरियाणा की पुलिस ने तो रामपाल को घसीट कर हाईकोर्ट में पटक दिया, लेकिन शायद इतनी सख्त कार्यवाही बुखारी के विरुद्ध कभी नहीं हुई। हालांकि अब उनके बेटे और शाही इमाम के पद से रिटायर हो रहे अहमद बुखारी भी अपने पिता के पद चिन्हों पर चलने का प्रयास कर रहे है। कितना चल पाते है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन रामपाल ने अपने कुकृत्यों से संपूर्ण हिन्दू संस्कृति को नुकसान पहुंचाया है। जो लोग कहते है कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मदरसों में सिर्फ जेहाद का पाठ पढ़ाया जाता है, वे अब जवाब दें कि रामपाल अपने बरवाला के सतलोक आश्रम में कौन-सा पाठ पढ़ा रहे थे। कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा सुरक्षा बलों पर हमले और सतलोक आश्रम से पुलिस पर पेट्रोल बम और पत्थर फैंकने की घटनाओं में क्या फर्क हैं। क्या रामपाल ने कश्मीर के आतंकवादियों की तरह काम नहीं किया? रामपाल तो कोर्ट के आदेश से जेल चले जाएंगे, लेकिन उन्होंने अपने कुकृत्यों से हिन्दू संस्कृति का जो नुकसान किया है उसकी भरपाई होने में समय लगेगा। अब जब कभी कश्मीर में आतंकवाद की वारदात होगी तो रामपाल के बरवाला आश्रम का भी उदाहरण दिया जाएगा। जब कभी बंगाल और उत्तर प्रदेश के मदरसों में कथित तौर पर जेहाद का पाठ पढ़ाए जाने का मामला उजागर होगा, तब रामपाल का उदाहरण सामने आएगा। सवाल यह नहीं है कि अब्दुला बुखारी ने देश के कानून को चुनौती दी या रामपाल ने पेट्रोल बम फैंके? सवाल यह है कि ऐसे व्यक्तियों में ऐसी चुनौती देने की ताकत कहां से आती है? इस सवाल का जवाब धर्म से ही जुड़ा है। ऐसे धर्म की आड़ लेकर पहले अपने अंध भक्त तैयार करते हैं और फिर भक्तों की भीड़ दिखाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन करते है। चूंकि हमारे देश में लोकतंत्र है, इसलिए सत्ता के लालची नेताओं को लगता है कि बुखारी, रामपाल जैसे धर्म के ठेकेदारों की मदद से वोट मिल जाएंगे। सत्ता के लालचियों का अपना स्वार्थ हो सकता है, लेकिन जो अकीदत और श्रद्धा के साथ ऐसे व्यक्तियों को पूजते है, उन्हें सोचना चाहिए। चाहे बुखारी हो या रामपाल इनके पास ऐसी कोई दिव्य शक्ति नहीं है जिससे इंसान के कर्मों परिणाम दला जा सके। सभी धर्मो में कर्म को ही प्रधानता दी गई है। जब आप को कर्म के अनुरूप ही परिणाम भुगतने हैं तो ऐसे व्यक्तियों के आश्रमों में जाने की क्या जरूरत है? अच्छे कर्म करें और यदि आदत के कारण गलत कर्म कर रहे है तो अपने माता-पिता की सेवा करें। माता-पिता के आशीर्वाद से फिर परिणाम में थोड़ा बदलाव आ सकता है। इन ढोंगियों के पास जाने से तो कुछ भी नहीं मिलेगा। न जाने कितने लोग स्वयं को अवतार मान कर प्रवचन दे रहे हैं, क्या इन प्रवचनों का कोई असर देखा गया। ये अवतार नहीं, बल्कि अच्छे वक्ता है। धर्म नहीं, इंसान बुरा होता है। जो लोग प्रवचनों में जाते है, उन्हें रामपाल के आश्रम से सबक लेना चाहिए। (एस.पी.मित्तल)
Thursday 20 November 2014
शाही इमाम बनाम संत रामपाल
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