Thursday 11 February 2021

भाई प्रताप सनकत की शादी की 25वीं सालगिरह और राष्ट्र दूत व दैनिक भास्कर की कहानी। देखते ही देखते गुजर गए 25 बरस।जब राष्ट्र दूत अखबार के लोन के लिए बैंक में मकान गिरवी रखना पड़ा।

11 फरवरी को अजमेर में दैनिक भास्कर के उपमुख्य संपादक प्रताप सनकत का फोन आया, कहा कि भाई साहब मेरी शादी की 25वीं सालगिरह है इसलिए 12 फरवरी को अजमेर के वैशाली नगर स्थित अजयमेरु पे्रस क्लब में आशीर्वाद देने के लिए आना है। प्रताप ने जब मुझे निमंत्रण दिया, तो मेरे सामने 25 वर्ष पहले की स्मृतियाँ ताजा हो गई। राष्ट्र दूत और दैनिक भास्कर से जुड़ी घटनाओं की जानकारी पाठकों को दू इससे पहले प्रताप सनकत का मोबाइल नम्बर 9340931641 बता रहा हंू ताकि शुभ चिंतक उन्हें शादी की सालगिरह पर बधाई दे सके। भाई प्रताप अब 2 होनहार बेटियों और एक बेटे के पिता है। प्रताप का विवाह फरवरी 1996 में हुआ, तब प्रताप दैनिक राष्ट्र दूत में मेरे सहयोगी थे। उस समय अजमेर से भास्कर और पत्रिका का प्रकाशन शुरू नहीं हुआ था, दैनिक नवज्योति का एकछत्र राज था। राष्ट्र दूत जयपुर से प्रकाशित होता था और हम लोग कचहरी रोड स्थित बंगाली गली के छोटे से दफ्तर में बैठकर खबरें भेजते थे। तब अमरजीत सिंह कलसी भी हमारे सहयोगी थे। मुझे याद है कि भाई प्रताप साइकिल पर दफ्तर आते थे और साइकिल पर ही खबरों का संकलन करते थे। शादी का रिसेप्शन भी हमने आजाद पार्क स्थित स्विमिंग पुल में धूमधाम से किया। इन्हीं दिनों दैनिक राष्ट्र दूत के मालिक राजेश जी शर्मा, राकेश जी शर्मा और सोमेश जी शर्मा का प्रस्ताव आया कि अजमेर से संस्करण शुरू करना है। उस समय नवज्योति के सामने राष्ट्रदूत निकालना चुनौती पूर्ण काम था। लेकिन इस चुनौती को हमने स्वीकार किया और वर्ष 1996 के अंत तक राष्ट्र दूत का अजमेर से प्रकाश शुरू कर दिया। जयपुर रोड पर प्रेस लगाने के लिए राष्ट्र दूत के मालिकों को बैंक से 20 लाख रुपए का लोन लेना पड़ा, तब बैंक में जमानत के तौर पर जायदाद के कागज़ात गिरवी रखने की बात आई। दी अजमेर अरबन को-ऑपरेटिव बैंक के तत्कालीन प्रबंध संचालक हनुमान प्रसाद कच्छावा ने कहा कि यह अजमेर शहर की बैंक है, इसलिए राष्ट्रदूत के मालिकों की जयपुर की जायदाद के कागज गिरवी नहीं रखे जा सकते। चूंकि लोन लेना जरूरी था, इसलिए मैंने अपने मकान और मेरे एक मित्र बेनीगोपाल गर्ग के मकान के कागजात बैंक में गिरवी रखवाए। मेरा राष्ट्रदूत के मालिकों से परिवार के सदस्य के तौर पर संबंध था, इसलिए मालिकों ने उस समय मुझे नई फिएट कार दी ताकि मैं और उत्साह के साथ अखबार का काम कर सकूं। लेकिन किन्हीं कारणों से अखबार प्रकाशन के कुछ दिनों बाद ही मुझे राष्ट्रदूत का काम छोडऩा पड़ा। जब मंैने काम छोड़ा तो भाई प्रताप ने भी राष्ट्रदूत छोड़ दिया। हालांकि तब मंैने प्रताप को कार्य करते रहने के लिए बहुत समझाया, लेकिन मेरे बगैर प्रताप ने काम करने से इंकार कर दिया। मुझे चमचमाती फिएट कार भी राष्ट्रदूत के मालिकों को लौटानी पड़ी। लेकिन उस समय मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती मकान के गिरवी होने की थी। मेरे विशेष अनुरोध पर कच्छावा जी ने मेरे मित्र बेनी गोपाल गर्ग के मकान के कागजात तो लौटा दिया, लेकिन मेरे मकान के कागजात तब तक रखे जब तक राष्ट्रदूत के मालिकों ने लोन चुकाया। कल्पना की जा सकती है, जिस संस्थान में आप काम न कर रहे हो, उस संस्थान के लिए आपका मकान में बैंक में गिरवी रखा हुआ हो। मैं यहां खासतौर से उल्लेख करना चाहता हंू कि 20 लाख का स्वीकृत करने के लिए बैंक के एमडी हनुमान प्रसाद कच्छावा ने एक रुपए का उपहार भी नहीं लिया। उल्टे हमें कई बार चाय कॉफी पिलाई। राष्ट्रदूत को छोडऩे के बाद मैं और भाई प्रताप बेरोजगार ही थे। लेकिन कोई चार माह बाद ही दैनिक भास्कर के अजमेर से निकलने की खबरें आने लगी। एक दिन भास्कर के संपादक और मालिक रमेश चंद अग्रवाल अजमेर आए और अखबार निकालने की संभावनाओं को तलाशा। अग्रवाल को एक ऐसे जुझारू और मेहनती पत्रकार की जरुरत थी, जो विपरीत परिस्थितियों में भास्कर का प्रकाशन करवा सके। असल में तब तक जयपुर में भास्कर का धमाका हो चुका था और राजस्थान के अखबारी जगत में जबर्दस्त हलचल मच हुई थी। जिस दिन रमेश अग्रवाल अजमेर आए उस दिन मैं अजमेर से बाहर था, लेकिन अग्रवाल को मेरे बारे में कई लोगों से जानकारी मिली। इसके बाद मुझे सूचना भिजवाई गई कि मैं जयपुर आकर अग्रवाल से मुलाकात करू। मैंने जब जयपुर में अग्रवाल से मुलाकात की तो हाथों हाथ मुझे भास्कर में काम करने का अवसर मिल गया। मुझे अजमेर का प्रभारी बनाया गया और अपनी टीम तैयार करने के निर्देश दिए गए। स्वभाविक था कि मेरी टीम ने पहला नम्बर प्रताप सनकत का होता। किन चुनौतियों के बीच 1997 में भास्कर का प्रकाशन हुआ यह बात प्रताप सनकत अच्छी तरह जानते हैं। तब अरविंद गर्ग, विनीत लोहिया आदि भी मेरे सहयोगी रहे। भाई प्रताप और अरविंद गर्ग अभी भी भास्कर में कार्यरत हैं। प्रताप को अब अखबार के उपमुख्य संपादक बन गए हैं। भाई प्रताप वाल्मीकि समाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जरुरतमंद परिवारों के सामूहिक विवाह करवाकर अपने समाज में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हैं। भास्कर से जुड़ी अनेक घटनाएं हैं, उन्हें फिर कभी बताने की कोशिश करुंगा, फिलहाल भाई प्रताप को शादी की वर्षगांठ की मुबारक बाद। 
S.P.MITTAL BLOGGER (11-02-2021)
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